ऑफिस से बड़े बाबू कैलाश शर्मा के अचानक हार्ट फेल से मृत्यु की सूचना ने उनकी वृद्धा माँ और एकमात्र बेटी सविता पर वज्रपात कर दिया. बेटे के निधन की सूचना से वृद्धा माँ हाहाकर कर उठी, भगवान् ने उनका सहारा ही छीन लिया था. अचानक पोती सविता के चीत्कार और रुदन से मानो वह जाग गईं. सविता को कलेजे से चिपटा अपने आंसू पोंछ डाले.
“रो मत सवी बेटी, तेरी दुर्गा दादी तेरे साथ है.”प्यार से सविता को तसल्ली दे कर दुर्गा बीते समय में खो गई. भगवान् ने क्या उसे बस दुःख सहने के लिए ही जन्म दिया था.
छोटी उम्र
में ही माता-पिता की मृत्यु का आघात सहने के बाद चाचा के घर आश्रय मिला था. विवाह
के बाद नन्हें बेटे कैलाश के जन्म ने खुशियों के द्वार खोल दिए थे, पर उनकी खुशी भगवान् को मंजूर नहीं
थी. पति और बाद में पुत्र-वधू की मृत्यु के बाद आज एकमात्र पुत्र का अचानक यूं चले
जाना उन्हें आमूल हिला गया, पर
अब युवा पोती उनका दायित्व था. उन्हें अपने को सहेजना ही होगा.
कैलाश जी के
परिवार में बस एक बेटी सविता और वृद्धा माँ ही थीं. बेटी के जन्म के एक वर्ष बाद
ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई. माँ और मित्रो के बहुत कहने पर भी उन्होंने दूसरा
विवाह नहीं किया. अपना पूरा ध्यान अपनी बेटी सविता के लालन-पालन में ही लगा दिया.
सविता में सौन्दर्य और मेधा साकार थी. उसके पिता हमेशा शिक्षा का महत्त्व बता कर
जीवन में कुछ बनने को प्रेरित करते रहते. सविता अपने पिता के आदर्शों का सच्चे मन
से सम्मान करती थी. पिता की प्रेरणा से सविता के मन में भी कुछ कर गुजरने की
आकांक्षा थी, हर परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण
करते हुए अब वह बी.ए. फाइनल में पढ़ रही थी.
कैलाश बाबू के कार्यालय वालों ने उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी की ज़िम्मेदारी ले ली थी. सविता को सीने से चिपटाए दुर्गा सब शून्य आँखों से देख रही थीं मानो वह किसी और की अंतिम यात्रा थी. अरथी ले जाने को शव वाहक गाड़ी आ गई थी.सबके मन में यही प्रश्न था, चिता को आग कौन देगा? दुर्गा दादी से पूछने का साहस नहीं था. कैलाश शर्मा के निकट के मित्र जानते थे, छोटी कही जाने वाली जाति की लड़की से विवाह करने के कारण कुल-गोत्र पर झूठा अभिमान करने वाले उनके अपने रिश्तेदारों ने उनसे सारे संबंध तोड़ लिए थे. किसी रिश्तेदार से सहायता की आशा व्यर्थ थी, उनकी दृष्टि में कैलाश जी वर्षों से जाति और समाज से पूर्णत: वहिष्कृत थे.
कैलाश शर्मा
के निकट मित्र रमेश कुमार ने दादी से आ कर धीमे से कहा-
“माँ जी,
हमारे बड़े बाबू तो चले गए,
उनकी चिता को अग्नि कौन देगा,
.आप किसी संबंधी का नाम-पता बता
दीजिए, उन्हें हम बुला
लाएंगे.”
“उसके जीते
जी जिन्होंने उससे रिश्ता तोड़ लिया, उसको अपमानित किया, अब उनके हाथों उसकी अंतिम विदा कैसे होगी.” बात कहती दादी के आंसुओं का सैलाब बह निकला.
सविता भी ज़ोरों से रो पड़ी.
“क्या पंडित
जी से अंतिम संस्कार कराना --- -----“
“नहीं, जिस बेटे को नौ महीने अपनी कोख में
रखा पाल-पोस कर बड़ा किया, उसकी
अंतिम विदाई किसी पराए हाथों से नहीं उसकी माँ के हाथों होगी. मै अपने बेटे को खुद
विदा करूंगी.” दृढ़ता
से दुर्गा ने कहा.
“क्या,
ये कैसे संभव होगा,
माँजी, आप सह नहीं सकेंगी’ रमेश जी ने समझाना चाहा.”
“उसका
जाना सह रही हूँ तो, विदाई
तो देनी ही होगी, मेरा
कैलाश चला गया.” वह
रो पडीं.
“माँजी
हमारे तो देवता चले गए. हम ग़रीबों को भी वह इतनी इज्जत देते थे. हमें ईमानदारी और
मेहनत से आगे बढ़ने को समझाते थे.” कार्यालय का सफाई कर्मचारी मोहन रो पडा,.
“हमसे
कहते, जात-पांत, उंच-नीच सब झूठ है, इंसान अपने कर्मों से बड़ा या छोटा
बनता है माँजी, आप
अपने को अकेला मत समझिए, हम
सब आपके साथ हैं.”
तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों ने कहा.
“जानती
हूँ, उसके यही
ऊंचे विचार झूठे दंभियों को उसका दुश्मन बना गए. पीठ पीछे उसकी हँसी उड़ाते थे.
उनका अपमान मेरे बेटे को ले गया. अब चलो देर हो रही है.”दादी की दृढ़ता से सब विस्मित थे.
“कमला बहिन, मेरे वापिस आने तक मेरी सवी को अपने
साथ रखना, मै
चाहती हूँ इसे अपने पिता का जीवंत रूप ही याद रहे, उसकी अंतिम विदाई का दृश्य याद ना रहे.”सविता को साथ आते देख, दादी ने उसे रोक कर पड़ोसिन कमला मौसी
से कहा.
शव वाहक
गाड़ी में कैलाश शर्मा का शव रखा जा चुका था. रमेश कुमार तथा अन्य कुछ लोगों के साथ
दादी भी वाहन में जा कर अपने बेटे के सिर के निकट बैठ गईं प्यार से बेटे के बाल
संवारती बोलीं’
“अपनी
माँ को छोड़ कर कैसे चला गया, मेरे लाल, अब
हम किसके सहारे जीएंगे, एक
बार भी नहीं सोचा?”बेटे
का माथा प्यार से चूमती
माँ बिलख उठी. सबकी आँखें नम हो गईं.
सजी चिता पर
निष्प्राण शरीर रखा जा चुका था. पंडित जी ने मंत्रोच्चार के साथ शव को अग्नि को
समर्पित करने के लिए जब कहा तो लोग स्तब्ध थे, दुर्गा ने हाथ जोड़ कर कहा-
“हमारा नाता
बस इतने ही दिनों का था, अब
इसके बाद आगे की यात्रा तुझे अकेले ही करनी है. तेरी माँ तेरे साथ नहीं होगी,
पर राह में कोई कंटक ना आए,
इसकी प्रार्थना करती रहेगी. जा
बेटा तुझे तेरी माँ अंतिम विदाई दे रही है.” कहते हुए दुर्गा ने चिता को प्रज्वलित कर
दिया. धू-धू करती चिता को देखती दुर्गा वहीं धरती पर निष्प्राण सी बैठ गई.
“माँजी,
अब आप जाइए बाक़ी काम हम सब पूरे
कर लेंगे.”लोगों ने कहा.
“नहीं जब तक
अपने बेटे की अस्थियों का विसर्जन ना कर लूं, उसकी अंतिम विदाई कैसे पूरी होगी. चिता ठंडी
होने तक यहीं रुक कर उसके अंतिम अवशेष नदी में प्रवाहित करने हैं.”
“अगर आप
कहें तो हम आपके साथ अस्थि विसर्जन के लिए हरिद्वार चल सकते हैं. ऑफिस की गाड़ी
आपको ले जाएगी.:”कार्यालय
प्रमुख ने शांत स्वर में कहा,
“नहीं,
मेरे बेटे ने किसी भी आडम्बर
में विश्वास नहीं किया, उसके
लिए हर नदी का जल गंगा जल रहा, उसे
इसी नदी में उतनी ही शान्ति मिलेगी जितनी गंगा जल में. आप लोग घर जाइए.आपके साथ के
लिए आभारी हूँ. नाम आँखों के साथ हाथ जोड़ दुर्गा ने सबको विदा दे दी.
“आप लोग
जाइए साहब जी, हम लोग
माँजी के साथ रुकेंगे,” तृतीय
श्रेणी के सब कर्मचारियों ने एक स्वर में कहा
कुछ दिन बीत
चले थे. घर का सूनापन और सन्नाटा मुखर था. कैलाश शर्मा के ऑफिस से सविता के लिए
नौकरी का प्रस्ताव दिया गया था.
अपने घर की
आर्थिक स्थिति जानते हुए सविता नौकरी को तैयार थी, पर दादी ने दृढ़ता से अपना निर्णय सुना दिया-
“नहीं मेरी
सवी नौकरी नहीं करेगी. मेरे बेटे का सपना था, उसकी बेटी खूब पढ़ाई करे और कुछ बन कर अपने परिवार का नाम रौशन
करे. मै अपने बेटे का सपना पूरा करूंगी.”
अपने पति का
पुश्तैनी घर बेच कर शहर से कुछ दूरी पर दादी ने एक छोटा सा घर ले लिया. अपना घर
छोडती सविता की आँखों से पुराने सुखद दिनों की यादें आंसुओं के रूप में बह रही थीं, पर दादी ने प्यार से उसके आंसूं पोंछ
कर कहा-
“जब तक मै
जीवित हूँ तेरी आँखों से आंसू नहीं बहने दूंगी. तुझे किसी तरह की चिंता नहीं करनी
है. कैलाश की भविष्य-निधि और घर बेचने के बाद बचे पैसे तेरी उच्च शिक्षा और भविष्य
के लिए काफी हैं. कैलाश और तेरे बाबा की पेंशन हम दोनों के जीवन के लिए बहुत हैं.”
सविता नहीं
जानती थी उसकी दादी की बातों में कहाँ तक सच्चाई है, पर उनकी बातों ने उसे साहस ज़रूर दिया. पिता का
अभाव उनका प्यार और प्रेरणा भुला पाना आसान नहीं था, पर पिता और दादी के प्रेरक शब्दों ने उसे
टूटने नहीं दिया. अपने दुखों को भुला कर वह पढाई में जुट गई. दुर्गा अकेले में
कितना भी रोती, पर सविता
के सामने सामान्य बनी रहती,
उसे अपने पापा की कमी भुलाने की कोशिश करती रहती. पिता द्वारा बनाई दिनचर्या के
अनुसार सविता दिन में पढाई करने के बाद शाम को खुली हवा में कुछ देर घूमने के लिए
बाहर ज़रूर जाती थी. उसके पिता उसे समझाया करते-
“गोधूलि-
बेला में किताबों में सिर गडाए रखने से आँखों की रोशनी कम होती है, इस समय खुली हवा में घूमने जाना अच्छा
होता है.”
.शाम को
डूबते सूर्य को देखना और पक्षियों को अपने घर ळौटते देखना सविता को बहुत प्रिय
लगता था. उस दिन सविता एक दूसरे रास्ते से जा रही थी अचानक एक घर के बाहर रखे
फूलों के गमलों पर उसकी नज़र पड़ी. गुलाब के उस पौधे पर पत्तियों से अधिक मुस्कुराते
फूल झूम रहे थे. मुग्ध देखती सविता की बेध्यानी में उसका पैर एक पत्थर से टकरा
गया. चीख मारती सविता ज़ोरों से गिर गई थी. घर के सामने बरामदे में बैठा युवक उसकी
चीख सुन कर बाहर आ गया. सविता उठने का व्यर्थ उपक्रम कर रही थी, शायद पैर में मोच आ गई थी या हड्डी
टूट गई थी, युवक ने
सविता को सहारा देकर खडा करना चाहा, पर सविता की आँखों से दर्द के कारण आंसू आ गए.
“रुकिए, मै अन्दर से दर्द दूर करने वाला
स्प्रे ले कर आता हूँ.”युवक
तेज़ी से घर के भीतर चला गया हाथ में स्प्रे लाए युवक ने सविता के पैर पर स्प्रे कर के सविता से कहा,
“अगर आपका
फ्रैक्चर नहीं हुआ है तो बस थोड़ी ही देर में आपका दर्द भाग जाएगा. स्पोर्ट्स- मैंन
इसे हमेशा इस्तेमाल करते हैं.”
“आप भी
खिलाड़ी हैं?”कजरारे नैन
उठा कर सविता ने युवक से सवाल किया.
“जी नहीं मै
तो यहाँ कम्प्यूटर कम्पनी में काम करता हूँ. इस स्प्रे को कभी ज़रुरत के लिए रखता
हूँ,”
थोड़ी देर
में सविता का दर्द काफी कम हो गया, वह
उठने की कोशिश कर रही थी. उसे रोक कर युवक ने कहा-
“आपको कहाँ
जाना है? कुछ देर मेरे
घर में रेस्ट ले लीजिए तब तक आपके लिए रिक्शा बुलाता हूँ. अभी आप पैदल नहीं जा
सकेंगी. मुझे दुःख है, मेरे
घर के सामने आपको चोट लग गई. पता नहीं अपना नाम सार्थक करने वाला ये पत्थर कहाँ से
आ गया.”
‘गलती इस
पत्थर की नहीं, हमारी है, फूलों की सुन्दरता देखने में सड़क से
ध्यान हट गया था. वैसे हमारा घर दूर नहीं है, थोड़ी दूर पर लाल रंग वाले घर में रहते हैं.”
“आपका घर मै
ने देखा है. लगता है आपको फूलों से बहुत प्यार है. आपने भी फूलों के पौधे लगाए
हैं. चलिए, आपको सहारा
देता हूँ. रिक्शा आने तक, सामने
बरामदे में ही बैठिएगा.”युवक
सविता का संकोच समझता था.
संकोच के
साथ सविता युवक का सहारा ले कर धीमे कदमों से चल कर बरामदे में पड़ी कुर्सी पर बैठ
गई. कुर्सी के सामने मेज़ पर कम्प्यूटर खुला रखा हुआ था.
“हमारी वजह
से आपका काम रुक गया.. हमारी लेक्चरार्स और फ्रेंड्स जब कम्प्यूटर इस्तेमाल करती
हैं तो हम भी सोचते हैं, काश
हम भी ऐसे ही काम कर सकते, पर
हमें तो कम्प्यूटर की ए बी सी डी भी नहीं आती.”सविता के सुन्दर मुख पर उदास मुस्कान थी.
अपने पिता
के सीमित साधनों को जानते हुए सविता उनसे कोई बड़ी चीज़ नहीं मांगती. साथ की लडकियां
जब अपने कम्प्यूटर पर आसानी से बहुत सी जानकारी ले लेतीं तो वह भी सोचती काश वह भी
उनकी तरह विभिन्न विषयों पर कम्प्यूटर की सहायता ले सकती, पर उसने अपने पिता से कभी इस विषय में कुछ
नहीं कहा जीवन में उसे जो मिला उसे सहजता से स्वीकार किया.
“इसमें कौन
सी कठिन बात है, अगर आप
चाहें तो आसानी से कम्प्यूटर पर काम करना सीख सकती हैं.”
“सच, क्या ऐसा हो सकता है, पर हमें कौन सिखाएगा?”
“अगर आप
चाहें तो कम्प्यूटर के बेसिक्स तो मै आपको सिखा सकता हूँ. शनीवार और इतवार को मेरा
ऑफिस बंद रहता है. इस शहर में नया आया हूँ कोई घनिष्ठ मित्र भी नहीं हैं, मेरा समय अच्छे काम में बीतेगा.”युवक के मुख पर मीठी मुस्कान थी.
“आप हमें
कैसे सिखा सकते हैं, हमारे
पास तो कम्प्यूटर नहीं है.”सच्चाई
से सविता ने कहा.
“ये कोई बड़ी
समस्या नहीं है, मुझे
ऑफिस से नया लैप टॉप मिला है, मेरा
पुराना लैप टॉप बेकार पडा है. आप उस पर सीख सकती हैं.”
“हम आपका
लैप टॉप कैसे ले सकते हैं,वो
तो बहुत महंगा होगा.”संकोच
से सविता ने पूछा
“अपनी
पुरानी चीजें बेचने की मुझे आदत नहीं है, अगर वो किसी के काम आ जाएं तो खुशी होती है. आपका जब नया लैप टॉप
आ जाए तो ये पुराना किसी और को दे दीजिएगा. पहले कम्प्यूटर सीखने का पक्का निर्णय
तो ले लीजिए.”मुस्कुरा कर
युवक ने कहा.
“रिक्शा आ गई थी. सविता
धीमे से उठ कर खडी हो गई, ताज्जुब
था अब पैर का दर्द नामालूम सा था. रिक्शे पर बैठने के पहले युवक ने एक सुन्दर
सुर्ख लाल गुलाब तोड़ कर सविता को देते हुए कहा-‘
“ये इस
गुलाब का माफीनामा है. जो एक फूल जैसी सुन्दर लड़की का अपराधी बन गया. वैसे आपका
नाम जान सकता हूँ?”
“जी धन्यवाद,
इस सुन्दर फूल को दोषी मत बनाइए,
हम कोई सुन्दर भी नहीं हैं
हमारा नाम सविता है और आप?”सविता
के चेहरे पर लाज की लालिमा थी.
“शिव कुमार,
पर सिर्फ शिव कहलाना ही पसंद
है. आपसे भी यही नाम चाहूंगा. उम्मीद करता हूँ, हम फिर जल्दी मिलेंगे.”
सविता की
चोट की बात से दादी घबरा गई, पर
सविता ने पूरी बात बता, स्प्रे
दिखाया था. दादी को तसल्ली दे कर सविता सोचती रह गई क्या वह सच में कम्प्यूटर सीख
सकेगी? मन में उत्साह
था.
दूसरे दिन
सविता ने दादी को अपने कम्प्यूटर सीखने की इच्छा बता कर कहा था—
“दादी, हम कम्प्यूटर सीखना चाहते हैं,.आज की दुनिया में कम्प्यूटर का प्रयोग
बहुत ज़रूरी है. आगे भी वो हमारे काम आएगा. कल जिन शिव कुमार से मिली हूँ, वह सिखाने को तैयार हैं.
‘ये तो बड़ी अच्छी बात है,
कि तू आगे बढना चाहती है, पर ऐसे ही किसी अनजान इंसान पर भरोसा
करना ठीक नही होता, तू
बहुत भोली है. पहले मुझे उससे मिलना होगा.”
“ठीक है
दादी उनसे कहेंगे वह आपसे मिलने आ जाएं .कल शनीवार है, वह आ सकते हैं.”
“नहीं बेटी,
ये हमारा काम है, हम खुद उबके घर चलेंगे.’
“थैंक्स
दादी, तुम हमारी प्यारी
दादी हो,” खुशी से दादी
के गले से लिपट कर सविता बोली
.सवेरे की
प्रतीक्षा में सविता को नींद आनी मुश्किल थी. पता नहीं शिव कुमार से मिल कर
दादी क्या फैसला लेगी. वैसे वो बहुत अच्छे इंसान हैं. सवेरे जल्दी तैयार हो कर
सविता दादी की प्रतीक्षा कर रही थी. दादी के साथ शिव के घर पहुंच, बंद दरवाज़े की बेल बजाने पर एक छोटे
लड़के ने द्वार खोला.
“आप कौन हैं,
किनसे मिलना है?”लड़के ने पूछा.
“कौन है,
राजू?” आवाज़ सुन कर शिव स्वयं दरवाज़े पर आगया था.
“अरे आप,
अचानक, पैर तो ठीक है?”शिव घबरा सा गया.
“जी ये
हमारी दादी हैं, आपसे
मिल कर बात करना चाहती थीं. हमें आपका स्प्रे भी लौटाना था.”
“ओह,
स्प्रे लौटाने की ज़रुरत नहीं
थी. आइए.” दादी को
प्रणाम कर दोनों को घर के भीतर आने की राह देता, शिव पीछे हट गया.
कमरे में एक
बेंत का सोफा, चार
कुर्सियां और मेज़ थी. अलमारी में किताबें सजी हुई थीं. सबके बैठ जाने पर शिव ने
लड़के को राजू कह कर पानी लाने के लिए आवाज़ दी थी.
शिव बेटा,
कल तुमने सविता की बहुत मदद की,
उसके लिए बहुत धन्यवाद. सविता
ने कल तुम्हारे साथ जो बातें हुईं मुझे बताई हैं. इसके पिता नहीं रहे, मै आज के ज़माने और पढाई के बारे में
कुछ नहीं समझती. इसे लग रहा है तुम कम्प्यूटर सिखाने में इसकी सहायता कर सकते हो,
क्या ये सच है?”
“जी हाँ
दादी, शानीवार और इतवार
को मेरे पास कोई काम नहीं रहता. यहाँ मेरे मित्र भी नाम भर के ही हैं, छुट्टी के दिन वे सब अपने परिवार के
साथ व्यस्त रहते हैं. सविता को अगर सीखने में रूचि है तो मुझे सिखाने में. खुशी
होगी.”
“शिव बेटा,
तुम क्लास लेने की कितनी फीस
लोगे?”दादी ने पूछा.
“दादी जी,
मै अनाथ हूँ, अनाथालय में किसी उदार व्यक्ति की
सहायता से मेरा पालन-पोषण और शिक्षा पूरी हुई है. इसलिए विद्या-दान के लिए पैसे
लेना अपराध मानता हूँ. मुझे फीस नहीं चाहिए, पर सविता की तरह अपने लिए भी आपका आशीर्वाद
और प्यार ज़रूर चाहूंगा, मिलेगा
ना?”मुस्कुरा के सविता
को देख कर शिव ने कहा.
उस बीच राजू
चाय के तीन कप और बिस्किट ट्रे में ला कर मेज़ पर रख गया.
“तुम्हारी
बातें सुन कर बहुत अच्छा लगा. तुम्हें मेरा प्यार और आशीर्वाद ज़रूर मिलेगा. वैसे
क्या तुम जानते हो अनाथालय में तुम्हारी किसने सहायता की थी?”
जी नहीं,
बहुत कोशिश की, पर उनका नाम गुप्त ही रखा गया. पर वह
मेरी पढाई और शिक्षा के लिए पैसे बराबर भेजे जाते रहे. उनकी कृपा से आज यहाँ पहुँच
सका हूँ. भगवान उन्हें दीर्घायु करे. वह जो भी थे उनके उपकार का ॠण तो इस जीवन में
नहीं उतार सकता, बस
प्रति माह एक मेधावी बच्चे की पढाई के लिए पैसे भेजता हूँ और इस अनाथ राजू के
दायित्व उठाता हूँ,”इतना
कह कर शिव मौन हो गया.
“वाह बेटे,
तुम तो बहुत महान कार्य कर रहे
हो. भगवान् तुम्हें यश,और
सफलता दें.”
“आपका
आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ. मेरा कोई अपना नहीं है आपको देख कर लगा अगर मेरी दादी
होतीं तो उनसे भी ऐसा ही आशीर्वाद मिलता.”शिव का कंठ भर आया.
“मुझे अपनी
दादी ही समझ सकते हो बेटा,
पर हमारी एक समस्या है, हमारे
पास बस एक कमरा है, सारी
गृहस्थी वहीं जमा है, तुम
इसे कहाँ पढ़ाओगे?”
“अगर आपको
अपने इस बेटे पर विश्वास है तो सविता क्लास के लिए यहाँ आ सकती है. यहाँ तो बस
राजू ही मेरे साथ रहता है. आपके विश्वास को कभी निराश नहीं करूंगा.”गंभीरता से शिव ने कहा.
“जिसने जीवन
में इतने कष्ट देखे हैं, माँ-बाप
का प्यार नहीं जाना, अपनी
मेहनत और लगन से इस मुकाम पर पहंचा है, उस पर अविश्वास कैसे कर सकती हूँ. अपनी अनुभवी आँखों से देख सकती
हूँ, तुम एक सच्चे और
अच्छे इंसान हो. तुम सविता की क्लास कब से शुरू कारोगे?”दादी ने सीधा सवाल किया.
“अगर सविता
तैयार है तो क्लास का श्रीगणेश आज आपके आशीर्वाद से ही किया जा सकता है.”
“इससे अच्छी
बात क्या होगी, सविता तो
क्लास शुरू करने के लिए दीवानी है.”
“ठीक है
पहले चाय पीजिए फिर मै आज से ही सविता का कम्प्यूटर से परिचय करता हूँ.”
“मुझे घर
जाना होगा, कुछ ज़रूरी
काम निबटाने हैं. क्लास खत्म कर के सविता आ स्वयं घर आ जाएगी. मेरा आशीर्वाद हमेशा
तुम्हारे साथ रहेगा.”दादी
उठ खडी हुईं.दादी को द्वार तक छोड़ कर शिव ने अलमारी से अपना पुराना लैप टॉप निकाला,
उसे चार्जिंग में लगा दिया.
सविता के चेहरे पर खुशी और उत्साह
छलका पड़ रहा था. शिव कुमार को पास आते देखते ही वह आदर के साथ खडी हो गई.
“अरे रे यह
क्या, मै कोई मास्टर जी
नहीं हूँ, हम दोस्तों की
तरह् रहेंगे तभी तुम आसानी से सीख सकोगी. टीचर या मास्टर से भय हो सकता है,
पर दोस्त से दिल खोल कर बात की
जाती है, एक और बात तुम
मुझे सिर्फ शिव कहोगी और मै तुम्हारी दादी की तरह तुम्हें सवी पुकारूंगा. कहो मेरी
शर्त मंजूर है?” शिव के
चेहरे पर मुस्कान थी.
“जी,
पर आप तो हमसे बड़े हैं आपका
सिर्फ नाम कैसे ले सकती हूँ.?” धीमी
आवाज़ में अपनी बात कहती सविता का मुख लाल हो उठा.
“मुझे सिर्फ
शिव सुनने की ही आदत है, अगर
मंजूर नहीं तो दोस्ती और क्लास नहीं.”
“ये शर्त तो
कठिन है, पर कोशिश
करेंगे,”सविता ने शर्मा
कर कहा,
“चलो आज
तुम्हारा परिचय तुम्हारे इस नए दोस्त से कराता हूँ.”अपना कम्प्यूटर खोल कर शिव ने सविता को की-
बोर्ड, माउस आदि
दिखा कर उनके कार्य समझाने शुरू किए थे.
शिव द्वारा
दी जानकारी को सविता ध्यान से देख-समझ रही थी. कोशिश करने पर माउस और ऐरो उसकी पकड़
से बाहर हो जाते, सविता
को हँसी आ गई.
“आपके
कम्प्यूटर का ये ऐरो तो शैतान बच्चे की तरह है, हमारी बात मानता ही नहीं. अपनी मनमानी कर रहा
है.”सविता की बात सुन कर
शिव ज़ोरों से हंस पडा.
“वाह क्या
उपमा दी है, पर इस शैतान
बच्चे को तुम्हें साधना होगा. घबराओ नहीं, जल्दी ही यह तुम्हारे इशारों पर नाचेगा. बस कोशिश करते रहना है.”
“आपका लंच
का समय होगया है, अब
हमें जाना चाहिए. क्या राजू आपके लिए खाना बनाता है?
“क्या बात
करती हैं, उसके लिए तो
मुझे खाना बनाना होता है या खाना बाहर से मंगाना होता है. वैसे कभी-कभी नूडल्स
उबाल लेता हूँ., या
कच्चा - पक्का कुछ बना लेता हूँ. हम दोनों के लिए काफी हो जाता है.”शिव के शब्दों में राजू के लिए स्नेह
था.
“आप दोनों
हमारे यहाँ खाना क्यों नहीं खा लेते? हम दादी से कहेगे, उन्हें
बहुत खुशी होगी.”
“नहीं तुम
ऐसा बिल्कुल नहीं कहोगी, जिस
दिन दादी पर वैसा अधिकार पा गया तो अपने आप सब कुछ मांग लूंगा, पर अभी नहीं,”
शिव ने
की-बोर्ड की सहायता से कुछ शब्द लिख कर दिखाए तो सविता की आँखें चमक उठीं. शिव की
मदद से जब स्वयं
कुछ शब्द टाइप किए तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था, मानो उसने सब सीख लिया हो. उसकी खुशी चेहरे को
और भी कमनीय बना गई थी. शिव उसे मुग्ध देखता रह गया.
“आज के लिए
इतना ही काफी है. घर में सब फिर से दोहरा लेना. अब तुम्हें राजू घर छोड़ आएगा.”अचानक शिव जाने को खड़ा हो गया.
घर में
सविता उत्साह के साथ अपनी दादी को पहले दिन की कामयाबी के बारे में बता रही थी कि दादी ने उसे रोक कर
प्यार से कहा-
“अब
कम्प्यूटर की दीवानगी में खाना-पीना भी भूल जाएगी. अभी तक तेरे इंतज़ार में भूखी बैठी
हूँ.”
“सौरी,
दादी,”सविता प्यार से दादी के गले लग गई.
“क्यों पाठ
याद कर लिया या पनिशमेंट चाहिए.”दूसरे
दिन सविता के आने पर शिव ने पूछा.
जी नहीं,
हमने सब याद कर लिया.”भोलेपन से सविता बोली.
“वाह: तब तो
तुम्हें इनाम मिलना चाहिए.”
शिव ने एक पीला गुलाब सविता को थमाया था.
“अरे ये
कितना सुन्दर है, जैसे
सोने का बना गुलाब है. उस दिन इसे नहीं देखा था.”सविता मुग्ध थी.
“आज ये पहली
बार खिला है, इसलिए इस
पर किसी विशेष व्यक्ति का ही अधिकार था.”
“हम विशेष
कैसे हो गए? वैसे भी इसे
कुछ दिन और अपने जन्मदाता की गोद में मुस्कुराने देना अच्छा होता. अब ये सूख
जाएगा.”सविता ने प्यार
भरी नज़र फूल पर डाल कर संजीदगी से कहा,”.
“मुझे नहीं
पता था, एक फूल का
अपराधी बन जाऊंगा. कहिए क्या सज़ा देंगी?”शिव ने शरारत से कहा.
“हम आपको
सज़ा कैसे दे सकते हैं? विस्मित
सविता बोली.
“एक बात याद
रखना, अगर हमे सच्चे
दोस्त बनना हैं तो गलती करने वाले दोस्त को दूसरे दोस्त द्वारा सज़ा देने का पूरा
अधिकार होगा.”शिव ने
गंभीरता से कहा.
“हम सोचते
हैं, आप अपना इतना समय
हमें दे रहे हैं, उतने
समय में आप अपना कोई और फायदे का काम कर सकते हैं, हम आपका समय ले रहे हैं और बदले में कुछ नहीं
दे रहे हैं.”
“वही काम कर
रहा हूँ. अब आगे कुछ सीखना है तो शुरू करें.”शिव ने अपना कम्प्यूटर खोल लिया.
शिव की
गंभीर मुद्रा से सविता जैसे डर गई. उदास मुख के साथ शिव जो बता रहा था, सुनती और नोट करती रही. अचानक उसके
डरे हुए मुख को देख कर शिव ठठा कर हंस पडा.
“क्यों डरा
दिया न? इसीलिए तो पहले
दिन ही कहा था, हम दोस्त
हैं तुम्हारा टीचर बन कर अपने दोनों के बीच दूरी नहीं लाना चाहता. अपने स्कूल के
दिनों का एक मजेदार किस्सा सुनाता हूँ, जब मै अपने टीचर से खूब डरता था, पर अचानक एक दिन भूत बन कर मै ने अपनी शैतानी
से टीचर को डरा दिया.”
“आप क्या
सचमुच इतने शैतान थे, यकीन
नहीं होता.” शिव के भूत
बन कर टीचर को डराने के किस्से को सुन कर सविता खिलखिला के हंस पड़ी.
“तुम ऐसे ही
हंसती हुई अच्छी लगती हो. सीरियस चेहरे वाली लड़की को काम सिखाने में मज़ा नहीं आता.
जीवन में हँसी का बहुत महत्त्व है, हमेशा
हंसती रहना.”
घर में
सविता बहुत देर तक शिव की बातें मन ही मन दोहराती रही. अचानक उसका मूड बहुत अच्छा
हो गया था. इसके पहले उसने अपने लिए कभी ऎसी बातें नहीं सुनी थीं.
“कम्प्यूटर
सीखने के चक्कर में कहीं अपनी पढाई मत नेगलेक्ट करना. दो महीने बाद फाइनल एक्जाम
है, फर्स्ट डिवीजन लाओगी
तो यूनीवर्सिटी में एडमीशन आसान होगा.”शिव ने सलाह दी.
“जी,
हम पूरी मेहनत कर रहे हैं. आपको
निराश नहीं करेंगे.”
दिन बीत रहे
थे. शिव के साथ सविता बहुत सहजता से बातें कर लेती थी. अक्सर दोनों अपने-अपने जीवन
की खट्टी-मीठी बातें भी शेयर कर लेते. दोनों अब मित्र बन चुके थे. अक्सर शिव
अनाथालय के अपने एकाकी जीवन की बातें सुना कर अपनी उदासी से सविता को भी उदास कर
देता. काश, सविता के
पिता की तरह उसे भी अपने पिता का स्नेह मिल पाता. उनके ना रहने पर भी स्मृति में
तो पिता हमेशा
साथ रहते. वैसे दादी शिव को बुला कर प्यार से उसका मनपसंद खाना खिलातीं और राजू के
लिए भी पैक कर के भेजतीं. सविता और दादी के साथ शिव
अपने को पूर्ण पाता और शिव के साथ सविता का मन खिल उठता.
राजू ने आ
कर बताया, पिछले दो
दिनों से शिव को तेज़ बुखार था. ठीक से बात भी नहीं कर पा रहे हैं.उसकी बीमारी की
बात ने सविता को बेचैन कर दिया. दादी ने सुना तो निर्णय लेने में देर नही की.
“शिव तुझे
बिना फीस लिए अपना समय देता है, वह
यहाँ अकेला है. इस वक्त हमें उसकी मदद करनी चाहिए. हम दोनों शिव के घर चल कर
उनकी देखभाल कर सकते हैं. हमें नहीं भूलना चाहिए कि मुश्किल के समय कभी हमारी
भी किसी ने मदद की थी.”
“तुम बहुत
अच्छी हो दादी, उनके लिए
कुछ खाने का सामान और फल भी ले चलने होंगे.”
दादी के साथ
जब शिव के घर पहुंची तो उसकी स्थिति ने सविता को द्रवित कर दिया. शिव का हंसता हुआ
चेहरा ज्वर की तेज़ी से कुम्हला गया था. एकाकी बच्चे की तरह निरीह शिव को देख सविता
का मन भर आया. राजू ने बताया-
“साहब ने कल
रात सामने से चाय मंगा कर पी है, कुछ
खाया नहीं है. हमें खाना बनाना नहीं आता.”
दादी ने शिव
के किचेन में अपने साथ लाया सामान सजा कर शिव के लिए सूजी की खीर बना कर सविता को
दे कर कहा-
“इसे खाने
से शिव बेटे को ताकत मिलेगी. हम रसोई ठीक करते हैं” शिव का किचेन एक बैचलर के
अनुसार अव्यवस्थित था, कुछ
डिब्बों में सिर्फ दाल-चावल भर था.
दादी पर
कृतज्ञ दृष्टि डाळ सविता ने शिव को जगाया था.
“उठिए जनाब,
बहुत आराम हो गया. पहले दादी की
बनाई मीठी खीर खाइए फिर कड़वी दवा मिलेगी.”
दादी के नाम
से शिव सजग हो गया, हाँ
सविता ने यही तो कहा है तभी दादी भी आ गई
”कैसा जी है,
बेटा? अब डरने की कोई बात नहीं हैं, हम आ गए हैं.”दादी ने प्यार से कहा.
सविता और
दादी को शिव विस्मय से देख रहा था, पर
चेहरे पर आश्वस्ति स्पष्ट थी.
“आपको तकलीफ
होगी, दादी?”मुश्किल से शिव कह सका.
“अरे नहीं,
अपने बेटे के घर में कैसी तकलीफ
अब जल्दी से खीर खा कर बताओ कैसी बनी है? मै खाने के लिए खिचडी बनाती हूँ.” दादी किचेन में चली गईं.
“कुछ खाने
से ताकत आएगी. प्लीज़ दो चम्मच खा लीजिए.” बात कहती सविता का गला भर आया.
ज्वर की
तेज़ी के कारण मुश्किल से पूरी आँखें खोल सविता को देख शिव् के चेहरे पर रंग आ गया.
“तुम मुझे
छोड़ कर मत जाना.”आवाज़
जैसे कहीं गह्ररे से आरही थी.
“नहीं
जाऊंगी, पर पहले ये खीर
खानी होगी.” चम्मच शिव
के मुंह की तरफ बढ़ा कर सविता ने कहा.
भोले बच्चे
की तरह से शिव ने मुंह खोल कर खीर ले ली. दो-तीन चम्मच के बाद शिव ने और लेने से
मना कर दिया.
“तेरे साहब
ने किसी डॉक्टर की दवाई ली है?”सविता
ने राजू से पूछा.
“दो घर छोड़
कर एक डॉक्टर साहब रहते हैं, हम
उनसे दवाई लाए रहे.”
दवाई के नाम
पर एस्पिरीन की तीन गोलियां थीं. डॉक्टर का घर पूछ सविता उनके पास जा पहुंची.
“डॉक्टर
साहब, आपके पड़ोसी शिव
कुमार बहुत बीमार हैं, प्लीज़
उन्हें चल कर देख लीजिए. आपकी फीस मै कल घर से ला कर दे दूंगी उन्हें आपकी मदद की
ज़रुरत है.”
“नो
प्रॉब्लेम, फीस की ज़रुरत
नहीं है.उन्हें जानता हूँ. आप उनकी कौन हैं?”
“उनकी
स्टूडेंट हूँ. चलिए चलें?”
डॉक्टर ने
शिव का अच्छी तरह से चेक-अप कर के कुछ दवाइयां लिख कर सविता को थमा कर कहा-
“घबराने की
कोई बात नहीं है, एक-दो
दिनों में बुखार उतर जाएगा. इनके खाने-पीने का ध्यान रखिएगा.”
दो दिन ठीक
समय पर दवा और स्वास्थ्यप्रद भोजन मिलने से शिव का बुखार बहुत हल्का हो गया. दादी
जब बाहर शिव की गार्डेन देख रही थी तब सविता को अकेले पा शिव ने कहा-
“तुम मेरी
संजीवनी हो, कभी अकेले
छोड़ कर मत जाना वरना बेमौत मर जाऊंगा.”
“ऎसी बातें
करना ठीक नहीं है. हमें अपनी पढाई पूरी करनी है.अपने पापा का सपना पूरा करना है”
गंभीरता से सविता बोली.
“माफ़ करना,
पर अपने दिल पर काबू नहीं रख
सका. जिस दिन से तुम्हें देखा बस तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम हो ही ऎसी,
बुद्धि और सौन्दर्य दोनों तुममे
साकार हैं, पर मुझे अपने
पर कंट्रोल रखना चाहिए था. भूल गया, मै तुम्हारे योग्य नहीं हूँ.”आवाज़ में उदासी थी.
“आप माफी मत
मांगिए, हमें अपराध-बोध
होगा. अब आप ठीक हैं, राजू
को सब समझा दिया है, वह
आपकी देखभाल कर लेगा. हमें आज्ञा दीजिए.”
“नाराज़ हो
कर जा रही हो, सवी? मै बड़ा बदकिस्मत हूँ, प्यार देने वाले माता-पिता भी मुझे
अकेला छोड़ गए. तुमने मुझे क्यों बचा लिया.
मेरा मर जाना ही ठीक होता.”
“अगर अब आप
ऎसी बातें करेंगे तो हम सच में नाराज़ हो जाएंगे.”सविता ने सच्चाई से कहा.
घर वापिस
लौटी सविता को उदास देख दादी ने स्नेह से कहा -
तू चिन्तित दिख रही है, अब
शिव बेटा ठीक है, तेरी
परीक्षा निकट है, पढाई
पर ध्यान दे,”
“हाँ दादी,,
सोचती हूँ परीक्षा होने तक
कम्प्यूटर क्लास भी ना करूं.”
“जैसा तू
ठीक समझे.”इतना कह कर एक
गहरी दृष्टि सविता पर डाल, दादी
काम में लग गई.
अकेले में
सविता को शिव की कही बातें याद आ कर उसे बेचैन कर देतीं, किताबें खोलने पर शिव का उदास चेहरा पृष्ठों
में उभर आता. सविता परेशान हो जाती ये उसे क्या हो गया है, कहीं वह भी तो शिव को चाहने नहीं लगी है. सोच
में डूबी सविता को अचानक दादी ने आ कर चौंका दिया-
“तेरे
मास्टर जी आए हैं, बाहर
इंतज़ार कर रहे हैं. अन्दर आने को तैयार नहीं है.”
“क्या, कब आए, वो ठीक तो हैं?”घबराहट में सवाल पूछती सविता तेज़ी से बाहर गई
थी,
क्षीणकाय
उदास सा शिव अपने स्कूटर के सहारे बाहर खड़ा था. जब से सविता शिव के घर से वापिस आई
थी, राजू का इंतज़ार कर
रही थी, पर शायद शिव ने
उसे खबर देने को मना कर दिया था, और
आज अचानक वह खुद क्यों आया है.
“ये क्या
अभी तबियत ठीक भी नहीं हुई और आप यहाँ आ गए. शायद फिर बीमार होने का इरादा है.”
“अगर
तीमारदार तुम हो तो ज़िंदगी भर बीमार रह सकता हूँ.”गंभीरता से शिव ने कहा.
“आपसे कह
चुकी हूँ, हमें ऎसी
बातें अच्छी नहीं लगतीं. जब तक हम अपनी पढाई पूरी नहीं कर लेते अपनी आगे की ज़िंदगी
के बारे में कुछ नहीं सोच सकते.“
“मै भी
तुम्हारे भविष्य के विषय में ही सोचता रहा, सवी. तुम्हें सिर्फ ग्रेजुएशन ही नहीं करना है,
बल्कि तुम्हें कम्प्यूटर में
आगे बढ़ते देखना देखना मेरा सपना है. तुम्हें एम.सी.ए. यानी मास्टर इन कम्प्यूटर
एप्लीकेशन में एडमीशन की तैयारी करनी है.”
“क्या ये सच
हो सकता है? कॉलेज की
फीस तो बहुत ज़्यादा होगी.”खुशी
से सविता पूछ बैठी.
“उसकी चिता
तुम्हे नहीं करनी है, अगर
फर्स्ट डिवीजन ले आईं तो फीस का इंतजाम मेरा दायित्व है.”
“हम आपका और
एहसान कैसे ले सकते हैं, पहले
ही आपने हमारे लिए इतना किया है.”
“तुमने मुझे
नई ज़िंदगी दी है, सवी.
तुमसे मिलने के पहले अपने को अकेला अनाथ इंसान मानता था, पर अब अपने जीवन को पूर्ण मानता हूँ. छोड़ो, मेरी बात तुम नहीं समझोगी. प्रैक्टिस
करती रहना. कुछ दिनों को बाहर जा रहा हूँ, लौट कर तुम्हारा टेस्ट लूंगा.”बात समाप्त कर शिव स्कूटर स्टार्ट
कर चला गया.
विस्मित
सविता शिव की बातों का अर्थ समझने की असफल कोशिश करती रही. शिव ने कहा है उसे
फर्स्ट डिवीजन लानी है. शिव को भुला कर वह पढने की कोशिश करती, पर शिव की अनुपस्थिति उसे बेचैन कर
देती. शिव की हर पल प्रतीक्षा उसे परेशान करती, क्यों वह शिव के बिना अपने को अकेली पाती है.
शिव जैसे उसके जीवन का आधार बन गया था. उसे अनमनी देख अचानक एक दिन दादी ने सविता
से कहा-
“मुझे आजकल
शिव की बहुत चिंता रहती है, सवी.”
क्यों दादी,
उन्हें क्या हुआ, अब तो वह बिलकुल ठीक हैं.”
“उसके विवाह
की आयु है. पर उसके लिए कौन चिंता करेगा? वैसे भी लडकी के विवाह के समय उसके माता-पिता लड़के के अलावा उसके
परिवार को भी जांचते हैं. शिव अनाथालय में पला -बढ़ा है, उसके विषय में वे न जाने क्या सोचें. उन्हें
उसके जन्म से जुड़ी बातों के विषय में शंका भी हो सकती है.”
“ये तो बहुत
गलत बात है, दादी. शिव
जैसे अच्छे इंसान कम ही होते हैं. पापा कहते थे, इंसान अपने कर्मों से जाना जाता है, जन्म से नहीं. तुम ही सोचो दादी अगर
तुम नहीं होतीं तो क्या मुझे भी अनाथालय नहीं जाना पड़ता? हम तो कहते हैं वो लड़की बहत भाग्यवान होगी
जिसका शिव के साथ विवाह होगा.” उत्तेजना से सविता का सुन्दर चेहरा लाल हो गया.
“अगर तेरा
यही मानना है, तो मुझे
तेरी बात मान्य है.”दादी के मुख पर हलकी मुस्कान थी.
सविता के मन
की बात जान कर दादी ने मन ही मन शिव को अपने दामाद के रूप में चुन लिया. सविता के
विवाह की तैयारी दादी को अकेले ही करनी होगी ऐसा सोच कर दादी अपने एक पुराने
परिचित दूकानदार से बात करने गई थी. उन्हें क्या पता उसी दूकानदार के जरिए बात
कैलाश जी के कुछ रिश्तेदारों तक पहुँच गई. एक दिन अचानक सविता की अनुपस्थिति में
कैलाश जी के कुछ रिश्तेदार दादी के पास पहुंच कर चिल्लाने लगे-
“क्या चाहती
हो, भाभी. कैलाश भैया तो
अपनी गलती के कारण चले ही गए अब उनकी बेटी को कुंए में धकेल रही हो?एक नाजायज अनाथ के साथ उसे बाँध रही
हो.”कैलाश जी के छोटे भाई ने रिश्ता दिखाया.
“अच्छा अब
तुम्हें अपनी रिश्तेदारी याद आई है, उस वक्त कहाँ थे जब कैलाश हमें अकेला छोड़ गया था. उस वक्त सविता की याद
नहीं आई. तुम ही लोगों ने उसका वहिष्कार कर के उसे तोड़ दिया था कितना अकेला और
दुखी था मेरा कैलाश.”दादी ने आँचल से आंसू पोंछे.
“कैलाश ने
गलती की थी, अब तुम भी
वही गलती करने जा रही हो.तुम्हारा शिव न जाने वो किसके पाप का फल है. हम ये रिश्ता नहीं होने देंगे,
ये हमारे सम्मान का प्रश्न
है.”ताऊ दहाड़े.
“खबरदार अब
मेरे होने वाले दामाद के खिलाफ एक शब्द भी मुंह से निकाला तो मुझसे बुरा कोई नहीं
होगा. मेरे बेटे, की मौत
पर भी मेरी और सविता की याद नहीं आई. सब समझती हूँ, तुम्हारी नीयत अब मेरे इस घर और पैसों पर है.
सोचते होगे इस बूढ़ी के मरने के बाद सब कुछ मेरी सविता से आसानी से छीन लोगे,
पर भगवान् ने हमारी सवी को शिव
का साथ दिया है. हम अब अकेले नहीं हैं. निकल जाओ मेरे घर से वरना पुलिस को
बुलाऊंगी.” दादी ने हाथ में लाठी उठा कर रौद्र रूप धर लिया था.
दादी के उस
रूप से वे डर गए और बाहर जाने में ही भलाई समझी. वे जानते थे दादी की बातों में
सच्चाई थी. उनके जाने के बाद दादी ने शांत हो कर पानी पिया और इस विषय में सविता
को कुछ भी न बताने का निर्णय लिया. यह भी सोच लिया अब बिना किसी तामझाम के जल्दी
ही सविता का विवाह शिव के साथ कर देगी.
परीक्षा
समाप्त हो गई. सविता को फर्स्ट डिवीजन पाने की पूर्ण आशा थी. तभी एक दिन अचानक शिव
ने आ कर उसे चौंका दिया-
“तुम आ गए,
शिव, इतने दिन क्यों लगा दिए?”खुशी से उमगती सविता इतना ही पूछ सकी.
“सच कहो सवी,
क्या तुम मुझे मिस कर रही थीं?” सविता पर सीधी नज़र डाल शिव ने पूछा.
“नहीं- -
हाँ. नही, “सविता हड़बड़ा
गई, कोई उत्तर नहीं बन
पड़ा.
“तुम अपने
मन को नहीं समझ पा रही हो, सवी.
सच्चाई यही है कि हम एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं, पर मै अपनी सच्चाई और स्थिति से परिचित हूँ.
एक अज्ञात कुल-परिवार का अनाथ, तुम्हे
पाने के सपने भी नहीं देख सकता. तुम मुझे भले ही ना मिल सको. पर आजीवन तुम मेरी
प्रेरणा रहोगी. तुम्हारे एम.सी.ए.में एडमीशन के लिए फ़ॉर्म लाया हूँ, भर लेना. डिपार्टमेंट के हेड से बात
हो गई है, तुम्हारा एडमीशन
हो जाएगा.”.गंभीरता से अपनी बात कहते शिव ने सविता को फ़ॉर्म थमाए थे.
“तुम हमारे
लिए इतना क्यों कर रहे हो, शिव? तुम्हे धन्यवाद के शब्द या बदले में
कुछ देने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं हैं.”सविता के नैनों से मोती जैसे आंसू
ढुलकने लगे.
“क्योंकि मै
तुम्हें अपने से भी ज़्यादा चाहता हूं, सवी. शायद अब मेरा तुमसे दूर हो जाना ही ठीक होगा. जल्दी ही तुमसे
हमेशा के लिए दूर चला जाऊंगा यहाँ रहते हुए अपने दिल पर नियंत्रण नहीं रख सकूंगा.” उदास स्वर में शिव ने
कहा.
“वाह,
ऐसे कैसे जा सकते हो? एक बड़ी खुशी की बात है, मुंह तो मीठा करना ही होगा.” अचानक
दादी ने बाहर से अन्दर आ कर अपनी बात से उन्हें चौंका दिया.
“दादी आप,
ये क्या कह रही हैं? आपने कहा था, आप सवी के विवाह को ले कर परेशान थीं. क्या
सवी की शादी कहीं तय हो गई है?’अपने
को भरसक संयत रख कर शिव ने पूछा.
“हाँ,
उसी खुशी में तो मिठाई खिला रही
हूँ. अपने दामाद को ऐसे ही कैसे विदा कर सकती हूँ.”
“आपका दामाद
कौन -कहाँ—है?”विस्मित
शिव इतना ही पूछ सका. चेहरे पर जैसे काली छाया सी तैर गई थी.
“क्या अब भी
नहीं जान सके? तुम ही
मेरी सवी का प्यार, उसके
शिव हो. जैसे शिव ने विष-पान कर के सबका कल्याण किया था. तुमने भी अपने अज्ञात
अतीत पर विजय पा कर अपने को प्रमाणित किया है. दूसरों की नि:स्वार्थ मदद करते हो.
मेरी अनुभवी दृष्टि हमेशा तुम्हें परखती रही और तुम खरा सोना सिद्ध हुए, शिव.”स्नेहपूर्ण दृष्टि डाल दादी ने
सच्चाई से कहा.
“दादी आप मेरा,
कुल, जाति कुछ नहीं जानतीं न जाने किसी की अवांछित
सन्तान हूँ—या मजबूरी ----“
“बस इसके
आगे कुछ मत कहना, शिव.
इस विषय में मेरी सवी से बात हो चुकी है. उसका मन पढ़ चुकी हूँ. तुम्हे उसने सच्चे
मन से चाहा है, अपने
पिता की तरह वह भी कुल, जाति
आदि में विश्वास नहीं रखती, तुम
एक आदर्श, उदार, स्वाभिमानी और योग्य इंसान हो.
तुम्हें पाना किसी भी लडकी का सौभाग्य होगा, और मेरी सवी वही सौभाग्यशाली लड़की है. ठीक कह
रही हूँ ना सवी?”
“नहीं, अभी हमें अपनी पढाई पूरी करनी है,
शादी नहीं.”सविता ने संकोच से
कहना चाहा.
“इसीलिए तो
तेरी शादी तेरे मास्टर जी से कराने का निर्णय लिया है, वैसे अगर तुझे मंजूर नहीं तो यह रिश्ता नहीं
होगा. क्यों शिव ठीक कह रही हूं ना?” दादी के स्वर में मज़ाक स्पष्ट था.”
“जी दादी,
आप बिलकुल ठीक कह रही हैं.”शिव
ने दादी का साथ दिया.
“जाइए आप
दोनों से हम नहीं बोलते.”दादी के सीने पर अपना मुख छिपा सविता बोली.
“तेरे मन की
ही तो कर रही हूँ, पगली.”
प्यारसे सविता के माथे को चूम दादी ने कहा.
दादी के चरण
स्पर्श के लिए झुके शिव और सविता को पास के मन्दिर से आने वाली प्रात:कालीन पूजा
की घंटियां और शंख-ध्वनि जैसे दोनों को अपना पावन आशीर्वाद दे रही थीं.
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