6/9/20

डेविड अंकल

TO MY GRANDSON: Niagara grandfather gives advice to his grandson ...

पिछले कुछ दिनों से मौसम खुशगवार होगया था. छुट्टी के दिन सुनहरी धूप में लोग अपने-अपने अपार्टमेंट्स से बाहर निकल कर धूप सेंकने का आनंद ले रहे थे. अंकल डेविड भी अपनी आराम कुर्सी पर बैठे बाहर आते –जाते लोगों को देखते हुए, मौसम का मज़ा ले रहे थे. प्रोफ़ेसर डेविड की ज़रुरतमंदों के प्रति नि:स्वार्थ सेवा और सहायता भाव के कारण दूसरे अपार्टमेंट्स में रहने वाले और शहर के लोग उन्हें आदर से डेविड अंकल कह कर संबोधित करते थे. वह सबके स्नेह और आदर के पात्र थे. जब भी किसी को कोई समस्या आती वह नि:संकोच अंकल डेविड के पास पहुंच  कर समस्या का समाधान पा लेता. उनकी दृष्टि में कष्ट के समय हर जाति-धर्म के अमीर-गरीब इंसान प्यार और सहानुभूति के पात्र थे. दूसरों की मदद करने में वह अपने अर्जित धन को नि:संकोच व्यय करने में खुशी पाते.

पिछले कुछ दिनों से वह पास वाले अपार्टमेन्ट से अक्सर एक नौ-दस वर्ष के बालक को कुछ देर के लिए बाहर आते देख रहे थे. वह किसी काम से बाहर आता दिखता था. बालक को कभी बाहर खेलते या किसी से बात ना करते देख उन्हें आश्चर्य ज़रूर होता. अपनी उम्र के बच्चों के लिए वह बालक अपरिचित ही था. बालक के चेहरे पर उदासी और गंभीरता रहती. बाहर खेल रहे बच्चों पर लालायित सी दृष्टि डाल वह नज़र हटा लेता और घर के भीतर चला जाता. वह बालक अपनी उम्र के बच्चों के साथ क्यों नहीं खेलता, कारण उनकी समझ में नहीं आता. उस अपार्टमेन्ट में तो मिस्टर वर्मा का परिवार रहता था. परिवार में पति -पत्नी और दो किशोर पुत्र ही रहते थे. शायद उनके यहाँ कोई रिश्तेदार आए होंगे. उस दिन उस बालक को हाथ में झोला लिए बाहर जाते देख डेविड विस्मित थे. बालक को इधर- उधर कुछ खोजता सा देख कर डेविड ने उसे प्यार से बुलाया था-

“माई चाइल्ड, लगता है, तुम यहाँ नए आए हो. क्या खोज रहे हो?”

“जी, हम यहाँ चाचा –चाची के पास रहने आए हैं. चाची ने ब्रेड लाने को भेजा है, पर हमें पता नहीं ब्रेड कहाँ मिलेगी.” बात खत्म करते हुए बालक की आवाज़ भीग सी गई.

“यहाँ से सीधे चलते जाओ तो रोड पर ब्रेड की शॉप मिल जाएगी. बच्चे, तुम्हारा नाम क्या है?”

“थैंक यूं अंकल, मम्मी हमें मुन्ना कह कर पुकारती थीं. वैसे हमारा नाम गोपाल वर्मा है,”

“क्या तुम्हारे मम्मी-पापा भी आए हैं?’उस भोले से बालक के प्रति डेविड की उत्सुकता बढ़ रही थी.

“नहीं, हमारे मम्मी- पापा तो भगवान् जी के पास चले गए हैं. इंडिया में हमारा कोई नहीं था, इसलिए चाचा हमें अपने साथ यहाँ अमरीका लाए हैं.” गोपाल की आँखों से आंसू बह निकले.

“अरे तुम बहादुर बच्चे हो, रोते नहीं. यहाँ तुम अकेले नहीं हो, अपने चाचा-चाची के साथ रहते हो. वो तुम्हें प्यार करते हैं, इसीलिए तो तुम्हें अपने साथ लाए हैं.”डेविड ने बालक को सांत्वना दी.

“नही, चाची कहती हैं, हम उन पर बोझ हैं. हम उनका खाना खाते हैं, उसके बदले में हमें घर का काम करना होगा. इंडिया में हम अंगेजी स्कूल में पढ़ते थे. अपने क्लास में हमेशा फर्स्ट आते थे. हमें घर के काम करने नहीं आते. मम्मी घर के काम करती थीं. बाथरूम धोते हुए हमें उल्टी आती है.” अब गोपाल फिर रो पडा.

“देखो, अमरीका में सबको अपने घर के काम करने होते हैं. तुम ब्रेड लेकर जाओ, वरना देर हो जाएगी.”

गोपाल के जाने के बाद अंकल डेविड के मन में उस नन्हें बालक के प्रति करुणा उमड़ आई. नए परिवेश में नए परिवार के साथ वह कैसे अपने को सामान्य रख पाएगा. उसकी बातों से स्पष्ट है, नए परिवार में उसे स्नेह से नहीं स्वीकारा गया है. माँ-बाप के प्यार में पलने वाले दुलारे बच्चे को यहाँ खाना खाने के बदले में काम करना होगा. बेचारा बच्चा ऐसा व्यवहार कैसे सह पाएगा?

कुछ देर बाद गोपाल को वापिस लौटता देख डेविड ने मुस्कुरा कर प्यार से कहा-

“वाह, तुम तो बहुत होशियार बच्चे हो. बस हिम्मत से ऐसे ही सब काम सीख जाओगे.”

“आप बहुत अच्छे हैं, अंकल. हमारे पापा भी ऐसे ही कहते थे.”गोपाल के चेहरे पर हल्की खुशी आगई.

“तुम जब चाहो, मेरे पास आ जाना, तुम्हारा अंकल हूँ.”प्यार से उसके सिर पर हाथ धरते डेविड ने कहा.

“जी अंकल. जाऊं, देर होने पर चाची नाराज़ होगी.”आँखों में भय की छाया स्पष्ट थी.

उस दिन के बाद से डेविड अक्सर उस बालक को कभी कचरा का भारी कंटेनर मुश्किल से बाहर लाते देखते तो कभी कुछ और काम के लिए घर से बाहर आते देखते, उसके मुख पर वही उदासी और गंभीरता रहती. डेविड को देख उसके उदास चेहरे पर हलकी सी खुशी झलक आती. डेविड भी उसे प्यार से हाथ हिला अपना प्यार जता देते. एक दिन उसे हाथ में मक्खन की टिकिया लिए घर जाते देख कर डेविड ने परिहास किया-

“वाह मास्टर गोपाल मक्खन खा कर मज़बूत बनेंगे.”

“नहीं हम यहाँ मक्खन नहीं खा सकते, ये तो नरेश भैया के लिए है. वह इसके बिना ब्रेड नहीं खाते. इंडिया में हमारी मम्मी हमें रोज़ मक्खन और ब्रेड खिलाती थीं जिससे हम मज़बूत बनें.“

“क्यों तुम मक्खन क्यों नहीं खा सकते?”आश्चर्य से अंकल डेविड ने पूछा.

“चाची कहती है, हमारे पापा हमारे लिए पैसे नहीं छोड़ गए हैं, मक्खन महंगा होता है ना. हमें भी ब्रेड के साथ मक्खन अच्छा लगता है, पर यहाँ तो हमारे पास पैसे नहीं हैं.”गोपाल उदास था.

 “तुम बहुत अच्छे बच्चे हो, जब मक्खन- ब्रेड खाने का मन हो, मेरे पास आ जाया करो. मै तुम्हें मक्खन और ब्रेड खिलाऊंगा. मै तुम्हारा अंकल जैसा ही हूँ.” आवाज़ में सच्चा स्नेह था.

’सच अंकल, पर --?”

“पर क्या, तुम जब चाहो मेरे पास आ सकते हो. मुझे तुम्हारे जैसे बच्चे अच्छे लगते हैं.”

“चाची नाराज़ होंगी, वो कहती हैं हमें बाहर किसी के साथ बात नहीं करनी चाहिए, ना किसी का दिया कुछ खाना चाहिए. हमें आपसे बात करना अच्छा लगता है. आपको देख कर पापा की याद आती है.”गोपाल की आँखें भर आईं.

“मै तो तुम्हारा अंकल हूँ, कोई बाहर वाला नहीं हूँ. तुम मुझे अपने पापा जैसा ही समझ सकते हो. जब भी कोई ज़रुरत हो बिना डरे मेरे पास आ सकते हो.

“जी, अंकल. आप बहुत अच्छे हैं.”उसके चेहरे पर खुशी सी आ गई थी.

अब अक्सर किसी काम से बाहर आता-जाता गोपाल डेविड को गुड मार्निंग ज़रूर कहता. डेविड भी उसके साथ प्यार से बातें करते. गोपाल के साथ उन्हें स्नेह सा हो गया था. जब वह कभी उसे चॉकलेट या बिस्किट देते तो गोपाल के उदास भोले चेहरे पर खुशी की चमक आ जाती. शुरू में गोपाल को उनसे कुछ लेते संकोच होता, पर डेविड के समझाने पर उसका उनके प्रति संकोच कम होता गया. कभी-कभी चाची के दुर्व्यवहार पर उसके बहते आंसू पोंछ डेविड उसे प्यार से चिपटा कर साहस से जीने की सलाह देते.

कुछ  दिन बाद अचानक रात में किसी ने अंकल डेविड का दरवाज़ा खटखटाया था. विस्मित द्वार खोलते डेविड ने देखा गोपाल सिसकियाँ ले कर रो रहा था.

“क्या हुआ, बच्चे, तुम रो क्यों रहे हो? आओ, भीतर आओ.”

“चाची ने हमें घर से निकाल दिया. कहा हम कहीं भी जाकर मर जाएं. चाची कहती हैं, अच्छा होता मम्मी-पापा के साथ हम भी भगवान् जी के पास चले जाते.”गोपाल ज़ोरों से रो पडा.

“ऐसे नहीं कहते, क्या हुआ, चाची ने तुम्हें घर से क्यों निकाल दिया, गोपाल? पूरी बात बताओ.’

“हम कांच के बर्तन धो रहे थे, एक डोंगा हमारे हाथ से छूट कर टूट गया. चाची ने बहुत मारा और घर से बाहर निकाल दिया. हम कहाँ जाएं अंकल?’

“घबराओ नहीं, आज रात तुम मेरे पास रहो. सवेरे तुम्हारे चाचा से बात करूंगा. कुछ खाया है या नहीं? चलो पहले कुछ खा लो, फिर हम बात करेंगे.”

“शाम को रोटी खाई है. हमारा पेट तो नहीं भरा, पर चाची कहती है हम भुक्कड़ हैं, सबके हिस्से का खा जाते हैं. हमारे मम्मी-पापा को गालियाँ देती हैं, हमें उन पर छोड़ कर मर गए.”गोपाल रो रहा था.

“अरे बस एक रोटी खा कर तुम बहादुर बच्चे कैसे बनोगे?” डेविड ने एक केला और बिस्किट दे कर गोपाल को तसल्ली तो दी, पर मन भर आया, हैं बेचारे बच्चे को भर पेट खाना भी नहीं मिलता.

“हमें केला और बिस्किट बहुत अच्छे लगते हैं, मम्मी हमें रोज़ देती थीं, चाची नरेश और रमेश भैया को देती हैं, हमसे कहती हैं, हमें हज़म नहीं होगा.”

“कोई बात नहीं, मै तुम्हें रोज़ केला और बिस्किट दूंगा. इसके बदले में तुम्हें खूब पढाई करनी होगी.”

“हम पढाई कैसे कर सकते हैं? चाची कहती है, स्कूल जाने के लिए बहुत पैसे चाहिए, मेरे मम्मी-पापा पैसे नहीं छोड़ गए हैं. इंडिया में तो हम रोज़ स्कूल जाते थे.”उदास स्वर में गोपाल बोला.

“तुम यहाँ भी स्कूल ज़रूर जाओगे. तुम थके हुए हो, आओ अब इस सोफ़े पर सो जाओ.“ डेविड ने गोपाल के लिए सोफे पर कम्बल दे कर प्यार से कहा.

दोनों जैसे ही बिस्तर में लेटे द्वार पर दस्तक हुई. डेविड के द्वार खोलने के उपक्रम पर गोपाल डर गया.

“अंकल चाची मारेगी- - “

 “डरो नहीं, तुम्हें कोई नहीं मार सकता.” द्वार पर गोपाल के चाचा परेशान खड़े थे.

“डेविड अंकल, मै अभी बाहर से घर वापिस आया हूँ, हमारा भतीजा गोपाल घर से भाग गया है. उसे खोजते हुए हम परेशान हो गए हैं, ना जाने कहाँ चला गया. कहीं वह आपके पास तो नहीं आया है? अक्सर लोगों ने उसे आपके साथ बातें करते हुए देखा है.”घबराई आवाज़ में गोपाल के चाचा ने पूछा.

“माफ़ कीजिए, वह भागा नहीं है, घर से निकाल दिया गया है. अमरीका के क़ानून आप जानते हैं, एक छोटे बच्चे को पीटने और रात में घर से बाहर निकालने के अपराध की सज़ा में आपको लंबे समय के लिए जेल हो सकती है. मै पुलिस को इन्फौर्म कर रहा हूँ.” कड़े शब्दों में डेविड ने चेतावनी दी.

“क्षमा कीजिए अंकल, मेरी पत्नी को बहुत जल्दी क्रोध आ जाता है. प्लीज़ आप पुलिस को मत बुलाइए, हमें माफ़ कर दीजिए. मविष्य में ऐसा कभी नहीं होगा. पत्नी को समझाऊंगा.” चाचा दयनीय हो उठे.

“हम नहीं जाएंगे, चाची मारेगी, हम आपके साथ रहेंगे.”गोपाल डेविड के पैरों से लिपट कर रो पडा.

“डरो नहीं, गोपाल तुम्हें कोई नहीं मारेगा. मै हूँ ना. अगर किसी ने तुम्हारे साथ खराब बर्ताव किया तो मुझे बताना. वैसे आज रात तुम मेरे साथ ही रहोगे. कल सवेरे तुम्हें तुम्हारे चाचा ले जाएंगे.”

गोपाल के चाचा की तरफ देख डेविड ने शान्ति से कहा-

“वर्मा जी, उम्मीद है आपको गोपाल को आज रात मेरे साथ रहने से कोई ऑब्जेक्शन नहीं होगा. वह अभी डरा हुआ है.”

“जी नहीं, अंकल, मुझे पूरा विश्वास है, आपके पास गोपाल बिलकुल सुरक्षित है. देख गोपाल, अंकल को परेशान मत करना. धन्यवाद डेविड अंकल, आपने मेरी परेशानी दूर कर दी वरना रात में कहाँ भटकता.” हाथ जोड़े चाचा के चले जाने के बाद निश्चिन्त गोपाल सोफे पर आराम से सो गया.

गोपाल के सो जाने के बाद अंकल डेविड को नींद नहीं आई.निश्चिन्त सोते हुए गोपाल को दयनीय दृष्टि से देख वह सोच में डूब गए. उन्होंने अपनी भारतीय प्रेमिका आशा से हिन्दी सीखने के साथ भारत की स्त्रियों की ममता और त्याग की कितनी ही बातें सुनी थीं. स्वयं उनकी प्रेमिका आशा सच्चे प्यार और दया की मूर्ति थी. उसके साथ डेविड ने राग-द्वेष से परे, प्यार और उदारता का मर्म जाना था. वह सोच में पड़ गए, गोपाल की चाची का यह कैसा निर्मम रूप है, नारी इन दो रूपों में कितना विरोधाभास है. जहां उनकी आशा दया और प्यार को चरितार्थ करती थी, वहीं गोपाल की चाची कठोरता को साकार करती है, शायद इसीलिए कहा जाता है, दुनिया में अच्छे और –बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं.

आज फिर डेविड को अपनी प्रिय प्रेमिका आशा की  बातें याद आने लगी. आशा के साथ उनका परिचय एक सेमीनार में हुआ था. अपना पेपर प्रस्तुत करती आशा के वक्तव्य से अध्यक्ष के रूप में उपस्थित डॉ रॉबर्ट डेविड बहुत प्रभावित हुए थे. चाय के समय आशा को बधाई देने से वह अपने को रोक नहीं सके. डेविड जैसे महान वैज्ञानिक से अपनी प्रशंसा सुन आशा कितनी खुश हुई थी. उसके बाद कई अन्य कार्यक्रमों में मिलने से दोनों एक-दूसरे को पसंद करने लगे थे. उनकी मित्रता कब प्रगाढ़ प्रेम में बदल गई, दोनों नहीं जान सके. अंतत: दोनों ने विवाह करके साथ काम करने का निर्णय लिया था.

आशा का परिवार वर्षों पूर्व अमरीका में स्थायी रूप से रह रहा था, पर आशा को अपनी माँ से भारतीय संस्कार मिले थे. उसकी माँ उसे भारतीय संस्कृति के विषय में और भारतीय नारियों के त्याग की कहानियां सुनाती तो आशा मुग्ध रह जाती. उसके मन में भारतीय स्त्रियों के लिए बहुत आदर भाव था. डेविड के साथ शादी के पूर्व आशा भारत में स्थित प्रेम के प्रतीक ताजमहल को देखने जाना चाहती थी. भारत में रहने वाले ओने अन्य परिवार जनों से मिलने को भी वह उत्सुक थी.

डेविड को याद है, ताजमहल देख आशा मुग्ध हो गई थी, पर ताज के बाहर सड़क पर खड़े बच्चों को भीख मांगते देख वह कितनी द्रवित हो उठी थी. उसकी खुशी गायब होगई थी. बच्चों को पास के होटल में भरपेट खाना खिलाने के बाद भी वह उन्हीं के विषय में सोचती रही, काश वह भारत में रह कर उन जैसे गरीब अनाथ बच्चों के लिए कुछ कर पाती.

“डेविड, क्या विवाह के बाद हम दोनों हर साल इंडिया आकर कुछ समय ऐसे बच्चों के भविष्य के लिए कुछ योजनाएं बना कर उनका भविष्य नहीं संवार सकते?”

“क्यों नहीं, तुम्हारे साथ ऐसे काम करने में मुझे सच्ची खुशी मिलेगी. यह मेरी खुशकिस्मती है कि मुझे तुम मिलीं जिसके ह्रदय में प्यार और दया की भावनाएं हैं,”डेविड ने सच्चाई से कहा,

“असल में डेविड, तुहारा परिचय भारतीय स्त्रियों से नहीं रहा है अन्यथा जानते भारतीय स्त्रियाँ ममता, क्षमा, प्यार, दया और त्याग का साकार रूप होती हैं. मेरा बचपन इंडिया में बीता है, वहां अपनी नानी दादी से लेकर परिवार की सभी स्त्रियों को इन रूपों को साकार करते देखा है. वैसे डेविड, मेरा भी तो यह सौभाग्य है, मुझे तुम जैसा स्नेही, अंडरस्टैंडिंग जीवन साथी मिलने वाला है,”आशा के मुख पर प्यार की मुस्कान थी.

“तुम ठीक कहती हो, आशा. यहाँ तुम्हारे सभी परिवार जनों ने मुझे जो अपनापन दिया, उससे अभिभूत हूँ. तुम्हारे पेरेंट्स तो मुझे अपना बेटा ही मानते हैं. मुझे खुशी है, मुझे तुम्हारा स्नेही परिवार मिला है.”

यह उनका दुर्भाग्य था कि विवाह के पूर्व आशा की ओवरी में कैन्सर डायग्नोज़ किया गया था. देर से निदान होने के कारण, डॉक्टरों की कोशिशें और डेविड की अपनी सेवा भी आशा को बचा नहीं सकी. आशा की मृत्यु के बाद वह टूट जाते, पर दुनिया से विदा लेने के पूर्व आशा ने उनसे अनुरोध किया था कि उसकी मृत्यु के बाद वह वह टूटेंगे नहीं बल्कि अपना विवाह कर के नई ज़िंदगी शुरू करेंगे. दूसरों में अपना प्यार बाँट कर अपना जीवन सार्थक करेंगे. आशा की मृत्यु के बाद डेविड आज तक विवाह नहीं कर सके. आज भी आशा की यादें डेविड के ह्रदय में उनके साथ हैं, अपना समय वह विद्यार्थियों की सहायता, और ज़रुरतमंद लोगों की सेवा में बिता रहे हैं. अपने सेवा-भाव के कारण वह सबके अंकल बन गए हैं. आज इस नन्हें बालक गोपाल के कष्ट ने उन्हें झकझोर दिया.

वह सोच रहे थे, गोपाल की चाची का भारतीय नारी के ममतामयी माँ के रूप के स्थान पर यह कैसा कठोर रूप है? एक मातृ-पितृ विहीन अबोध बालक को प्यार की जगह प्रताड़ित करना कितना बड़ा अन्याय है. ये मासूम तो अमरीका के नियम और क़ानून से सर्वथा अनभिज्ञ है. उसके चाचा- चाची इसी बात का लाभ उठा रहे हैं और भाई की एकमात्र संतान होने के बावजूद उसके साथ अमानवीय व्यवहार कर रहे हैं. उससे मुफ्त के नौकर जैसा व्यवहार कर रहे हैं, नहीं, वह इस अन्याय से गोपाल को मुक्त करा कर रहेंगे. अपने निर्णय से आश्वस्त वह सवेरे की प्रतीक्षा करते हुए सो गए.

सवेरा होते ही गोपाल की नींद खुल गई. रात की याद आते ही उसके चेहरे पर भय छा गया. डेविड ने गोपाल को जगा देख कर  प्यार से कहा-

“सामने बाथरूम है, जाकर फ्रेश हो जाओ फिर हम दोनों साथ-साथ नाश्ता करेंगे.”

“अगर चाची को पता लग गया तो वह हमें मारेगी. कहेगी आपसे शिकायत की है.”डर स्पष्ट था.

“तुम्हे डरने की ज़रुरत नहीं है, जल्दी करो. मुझे बहुत भूख लगी है.”डेविड ने हंस कर कहा.

जल्दी से फ्रेश हो कर गोपाल बाहर आगया. उसे अब खूब भूख लग आई थी. रात में पेट भर खाना कहाँ खाया था. इतने दिनों बाद अंकल के दिए केले और बिस्किट कितने अच्छे लगे थे. खाने की मेज़ पर अपने मनपसंद व्यंजन देख गोपाल का मुख खिल गया.

“हमारी मम्मी भी हमें ऐसे ही रोज़ अच्छी-अच्छी चीजें बना कर खिलाती थी. आपने हलवा तो बहुत अच्छा बनाया है, हमें हलवे के साथ पूरी बना कर खिलाती थीं. चाची तो रोज़ सूखी रोटी के साथ नमक या अचार देती है, हमें बिलकुल अच्छा नही लगता.” अचानक डोर- बेल पर गोपाल जैसे काँप सा उठा. हांथ में पकड़ा कौर छूट गया. भयभीत स्वर निकला- “चाचा-चाची - - .”

“तुम ब्रेकफास्ट ख़त्म करो, मै देखता हूँ.”डेविड द्वार खोलने चले गए.

जैसा कि गोपाल को भय था, द्वार पर उसके चाचा और चाची खड़े थे. डेविड के साथ कमरे में प्रवेश करते ही चाची ने आंचल आँखों से लगा रोना शुरू कर दिया, रुआंसी सी आवाज़ में बोली-

“हाय मुन्ना, तू हमसे नाराज़ होकर घर से भाग आया. हम तेरे लिए पूरी रात रोते रहे. हैं. गलती करने पर क्या तेरी माँ तुझे नहीं डांटती थीं? अब घर चल. तेरे भाई तेरा इंतज़ार कर रहे हैं.”

“ठीक कहती हैं मिसेज वर्मा, अनजाने में कांच का एक बर्तन टूट जाने पर इसकी माँ तो इसे आपसे भी ज़्यादा पीटतीं. कहती, अरे नौ-दस साल का हो गया घर के कामकाज भी ठीक से नहीं कर पाता, मुफ्त की रोटियाँ तोड़ता है, काम तो करना ही चाहिए. क्यों ठीक कह रहा हूँ ना?”डेविड के शब्दों का व्यंग्य ना समझ पाने की मुद्रा में चाची शांत खड़ी थीं

“हमें माफ़ कर दीजिए, मै अपने काम के सिलसिले में घर से ज़्यादा समय बाहर ही रहता हूँ. घर में क्या होरहा है, मुझे ज़्यादा पता नहीं रहता, मेरी पत्नी अपनी गलती पर बहुत दुखी है.” विनीत स्वर में चाचा ने कहा.

“आपने सोचा होगा, बच्चा नहीं जानता, उसके साथ इस तरह का व्यवहार आपको कड़ी सज़ा दिला सकता है. अमरीका में लोग दूसरों के घरों में ताक-झाँक नहीं करते. मुझे पता लगा है, आपकी पत्नी ने पड़ोसियों से कहा है, यह बालक उनका रिश्तेदार है. कुछ दिनों को आया है, पर मुझे गोपाल से उसके यहाँ आने की सच्चाई का पता लगा है. सच देर तक छिपाया नहीं जा सकता .जिस दिन सच्चाई खुलेगी आपका क्या हश्र होगा, समझते हैं ना?” डेविड का चेहरा आक्रोश से तमतमा आया था.

“हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई, आगे से किसी शिकायत का मौक़ा नही होगा.”हाथ जोड़े चाचा बोले.

“वैसे आप यह तो जानते होंगे, गोपाल किस स्कूल में पढने जाता है और किस क्लास में है?”

“असल में कुछ दिनों से मै एक ज़रूरी काम की वजह से बहुत बिजी था, इसलिए गोपाल का नाम लिखाने स्कूल नहीं जा सका.”शर्मिन्दा होते हुए चाचा ने जवाब दिया.

“क्या आपकी पत्नी यह भी नहीं जानती, बच्चों की पढाई के लिए अमरीका के सरकारी स्कूलों में फ़ीस नहीं लगती. गोपाल से कहा गया है, यहाँ स्कूल की फ़ीस बहुत ज़्यादा है, गोपाल के पेरेंट्स आपके लिए पैसे नहीं छोड़ गए, इसलिए गोपाल को स्कूल नही भेजा जा सकता. यह सच्चाई है या सफ़ेद झूठ?एक ज़हीन बच्चे को शिक्षा से वंचित रखना अपराध ही नहीं पाप है.”डेविड के शब्दों में गहरा क्रोध स्पष्ट था .

“हमारी गलती माफ़ कीजिए, मै कल ही गोपाल को स्कूल में एडमीशन दिला आऊँगा. आपको किसी तरह की नाराज़गी का मौक़ा नहीं मिलेगा.”चाचा ने फिर विनती करते हुए कहा.

“आप अमरीका मे रहते हुए यहाँ के क़ानून तो जानते हैं. किसी बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार आपको कहाँ पहुंचाएगा, ये बात तो बताने की ज़रुरत नहीं है.” कडाई से डेविड ने कहा.

“मुझे दुःख है, हमसे अपराध हुआ है. अब ऎसी गलती नहीं होगी. गोपाल बेटा घर चल.”

“नहीं— ” कहता गोपाल डेविड के पांवों से लिपट कर रो पडा.

एक क्षण गोपाल की भयाक्रांत याचनापूर्ण आँखों को देख डेविड एक निर्णय पर पहुँच गए. गोपाल के चाचा से कहा-

“अगर आप लोग अन्यथा ना लें तो मै गोपाल का दायित्व लेना चाहूंगा. मुझे गोपाल का गॉड फादर बनने की इजाज़त दे सकें तो बहुत आभार मानूंगा. मुझे अपना अकेलापन खलता है. एक बच्चे का साथ होने से मेरा मन लग जाएगा. आपके पास तो अपने दो बेटे हैं, उम्मीद है आप मेरा प्रस्ताव स्वीकार करेंगे.”

“नहीं, ये कैसे हो सकता है. गोपाल हमारे भाई की निशानी है.” चाचा बोले.

“अगर मै चाहूँ तो सिर्फ कल रात की घटना के आधार पर आपसे गोपाल की कस्टडी ही नहीं छीन ली जाएगी बल्कि आपको कड़ी सज़ा दी जाएगी. आप सोच कर निर्णय लीजिए.”

“जी- - -,हमें तो कोई ऐतराज़ नहीं है, पर असली स्थिति समझ कर हमारे रिश्तेदार क्या कहेंगे.” चाचा ने सोच कर समस्या बताई.

“रिश्तेदारों को अगर गोपाल की चिंता होती तो क्या एक बार भी उन्होंने उसकी सुध ना ली होती? आप उस तरफ से निश्चिन्त रहें.’

“हम जानते हैं, हमारे साथ गोपाल को वैसा प्यार नहीं मिला, जिसका उसे अधिकार था. आज से गोपाल आपका हुआ. मुझे यकीन है आपके मार्ग-दर्शन में गोपाल एक अच्छा इंसान बन सकेगा.”

“धन्यवाद, मेरी यही कोशिश रहेगी, गोपाल ना सिर्फ एक अच्छा इंसान बने बल्कि उसे हर वो खुशी मिले जो एक बच्चे का अधिकार होता है.” गंभीरता से डेविड ने कहा.

“गोपाल बेटा, हमें माफ़ करना, हम तुझे तेरे प्यार का हक़ नहीं दे सके. आज से डेविड अंकल तेरे माता-पिता की जगह हैं, डेविड अंकल के सपने पूरे करना.” प्यार से गोपाल के सिर पर हाथ धर चाचा ने कहा.

उनके जाने के बाद गोपाल खुशी से अपने डेविड अंकल के गले से लिपट गया.

“अंकल, अब हम सच में हमेशा आपके पास रहेंगे,?”

“हाँ गोपाल,आज से तू मेरा बेटा हुआ. आज सबसे पहले स्कूल में तेरा एडमीशन कराना है. उसके लिए नए कपडे स्कूल का बैग और किताबें लानी हैं. चल जल्दी से तैयार हो जा.”

“सच अंकल, हम स्कूल जाएंगे, आपके साथ रहेंगे. कितना मज़ा आएगा.” ताली बजा कर गोपाल हंस पड़ा.

डेविड अंकल उसकी खुशी देख उसे मुग्ध निहारते रह गए.

दिन, महीने, वर्ष बीतते गए. नन्हा गोपाल सफलतापूर्वक उम्र की सीढियां चढ़ता हुआ एक मेधावी युवक बन चुका था. अंकल डेविड के प्यार और मार्ग-दर्शन में स्कूल से कॉलेज की हर परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर वह उनके सपने पूरे करने को दृढ संकल्प था. एक डॉक्टर बन कर वह भी अपने डेविड अंकल की तरह अनाथ बच्चों और ज़रूरतमंदों की सेवा करने के लक्ष्य को पूर्ण करना चाहता था. आत्मविश्वास से परिपूर्ण युवक गोपाल अपने सौम्य स्वभाव के कारण सबको प्रिय था. उसके चाचा - चाची भी अब उसके समक्ष अपने को लज्जित महसूस करते, पर गोपाल उनका भी आदर करता. अंतत: उन्हीं के कारण तो वह अमरीका आ सका और अंकल डेविड से मिला. यह उदारता, क्षमाशीलता और सबके प्रति प्रेम की भावनाएं उसे अंकल डेविड से ही मिली थी.

गोपाल की तेजस्विता, तीव्र मेधा और सौम्य व्यवहार लड़कियों को आकृष्ट करता, पर गोपाल की उदासीनता उन्हें उसके निकट आने से रोक देती. गोपाल के समक्ष उसका लक्ष्य ही सर्वोपरि था. मेडिसिन करते समय लिली नाम से पुकारी जाने वाली लिलियन नाम की लड़की दूसरी लड़कियों से बहुत अलग थी. गोपाल की तरह उसे भी अपने काम के अलावा किसी और बात में रूचि नहीं थी. अक्सर गोपाल और लिली को एक साथ काम करने के अवसर मिलते. रात की ड्यूटी के समय भी लिली और गोपाल साथ होने के बावजूद बहुत कम बातें करते.

लिली का अपने काम के प्रति समर्पण और लगन गोपाल को प्रभावित करता. समय बीतने के साथ गोपाल और लिली एक- दूसरे के साथ सहज हो चले थे. गोपाल को पता चला लिली एक ऑरफ़ेनेज में पली है. पढाई में सर्वप्रथम स्थान पाने के कारण उसे स्कॉलरशिप मिलती रही. कॉलेज की पढाई के लिए उसने ट्यूशन्स और लोन का सहारा लिया था. ज़रूरतमंदों की सहायता करने के संकल्प के साथ लिली ने डॉक्टर बनाने का निर्णय लिया था. निश्चय ही दोनों एक-दूसरे को पसंद करते, पर दोनों ही प्रेम की भावना से अनजान थे. समय पंख लगा कर बीत गया. डॉक्टर बन जाने के बाद गोपाल और लिली दोनों को अपने-अपने गन्तव्य पर लौटना था. अलगाव की भावना दोनों को व्यथित कर रही थी. दोनों अपने मन के भीतर अंकुरित प्रेम को पहिचान चुके थे., पर उस प्रेम को वाणी नहीं दे सके थे.

“गोपाल, क्या हम दोनों एक  जगह मिल कर काम नहीं कर सकते. तुमसे दूर जा पाना सहज नहीं लग रहा है. तुम्हारे साथ ज़िंदगी जीना चाहती हूँ, गोपाल.” नम आँखों के साथ लिली अपने मन की बात कहने से अपने को रोक नहीं सकी.

“तुम्हारे मन की बात समझता हूँ, मै भी तुम्हें बहुत मिस करूंगा. तुम बहुत अच्छी लडकी हो, तुम्हें बहुत पसंद करता हूँ, पर अपने पापा जैसे अंकल की अनुमति के बिना कोई निर्णय नहीं ले सकता. शायद जीवन में जिन्हें प्यार किया उनसे अलग होना ही मेरी नियति है.”गंभीर स्वर से गोपाल ने कहा.

“क्या तुम्हारी अपनी इच्छा का कोई महत्त्व नहीं है, गोपाल?” उदास स्वर में लिली पूछ बैठी.

“ज़रूर है, पर आज जिन महान व्यक्ति की वजह से इस मुकाम तक पहुंच सका हूँ, उनसे मैने सिर्फ लिया भर है, बदले में उन्ह्रें कुछ देने का दुस्साहस भी नहीं कर सकता. इसीलिए मेरे विवाह के लिए वह जो भी निर्णय लेंगे, मुझे मान्य होगा. उनकी यह एक इच्छा अवश्य पूरी करना चाहता हूँ. उम्मीद है, मेरी बात समझ सकोगी, पर तुम हमेशा मेरी यादों में रहोगी, लिली.”

‘समझती हूँ, गोपाल और तुम्हारे लिए गॉड से प्रेयर भी करूंगी.”आंसू छिपा लिली इतना ही कह सकी.

गोपाल को उसके हेड ने किसी काम से दो दिनों के लिए रोक लिया था. लिली के जाने के दो दिन बाद गोपाल ने वापिस जाने का निश्चय किया था. दोनों को नए जीवन के लिए अपने को तैयार करना था. भारी मन से दोनो ने एक-दूसरे से शायद फिर कभी ना मिलने के लिए विदा ली थी.

आज डेविड अंकल का घर फूलों से सजाया गया था. द्वार पर डॉ गोपाल वर्मा की नेम प्लेट लगाई गई थी. आज गोपाल डॉक्टर बन कर वापिस आरहा था. उसके स्वागत के लिए अपार्टमेंट्स के लोग इकट्ठे थे. अब उन्हें ज़रुरत के वक्त हॉस्पिटल के लिए दूर नहीं जाना होगा. उनके लिए अपना डॉक्टर उनके पास ही उपलब्ध रहेगा. कार से उतरे गोपाल ने अंकल डेविड के पाँव छू कर उन्हें चमत्कृत कर दिया.

“कैसे हैं,पापा ? दवाइयां तो ठीक समय पर लेते हैं या नहीं?”प्यार और आदर से गोपाल ने पूछा.

“क्या तूने मुझे पापा कहा?” विस्मित डेविड और कुछ नहीं पूछ सके.

“आपको पापा कहा, आप नाराज़ तो नहीं हुए? सच्चाई ये है, आपने मुझे सिर्फ पापा का प्यार ही नहीं दिया, मेरे लिए मेरे पापा ने जो सपने देखे होंगे, आपने सब पूरे किए हैं. इसलिए आपको पापा के सिवाय और कुछ नहीं कह सकता, पापा.” गोपाल का गला भर आया.

“तुम मेरे बेटे ही तो हो, तुम्हारे पापा कहने से तो मेरा जीवन धन्य होगया. बता तेरे लिए बदले में क्या दे सकता हूँ?’“ अंकल डेविड की आँखों में खुशी के आंसू छलक आए.

“अगर ऐसा है तो बताइए अपने डॉक्टर बेटे को क्या इनाम मिलेगा.” गोपाल ने परिहास से माहौल हल्का करना चाहा.

“ लिली बेटी, इधर तो आओ. गोपाल, ये रहा तेरा इनाम, बता पसंद आया या नहीं?”

“लिली, तुम यहाँ, कैसे, क्यों ?” लिली को सामने देख विस्मित गोपाल इतना ही पूछ सका.

“मुझे नहीं पता डेविड अंकल ने मुझे फ़ौरन ही यहाँ पहुंचने के लिए क्यों फ़ोन किया था.” संकोच से लिली इतना ही कह सकी.

“लिली को यहाँ क्यों बुलाया, पापा?” गोपाल ने डेविड पर प्रश्नभरी दृष्टि डाली.

“तेरा पापा हूँ,. मुझसे दूर हो कर भी तू कभी मुझसे दूर नहीं हुआ, जानता था, मेरे प्रति अतिशय आदर और प्यार के कारण मन में छिपे अपने प्रेम का सत्य मुझे कभी नहीं बताएगा. तुझे बचपन से जाना है, समझने में मुझे देर नहीं लगी, तेरे मन को आसानी से पढ़ लिया.” हंसते हुए डेविड ने कहा.

“वो कैसे, पापा?” अब गोपाल के विस्मित होने की बारी थी.

“आसान सी बात थी, जो गोपाल कभी किसी लड़की का नाम भी नहीं लेता था, उसकी बातों में किसी लड़की लिली के नाम के साथ जो प्रशंसा होती थी, उसका मर्म समझ पाना कठिन नहीं था. लिली से फ़ोन कर के तुम दोनों की सच्चाई जान ली. मेरे कारण लिली से अपने प्यार को स्वीकार करने से झिझक रहा था. लिली के बारे में मेरे पास पूरी रिपोर्ट है, जान गया हूँ, लिली बहुत अच्छी लड़की है,.”

“सच कहिए पापा, क्या आप लिली को मेरे लिए सच्चे मन से स्वीकार कर रहे हैं. कहीं मेरा मन रखने के लिए तो आप उसे अपनी स्वीकृति नहीं दे रहे हैं?” गोपाल अब भी दुविधा में था.

‘तेरा पापा क्या कभी झूठ का सहारा ले सकता है? लिली बहुत  प्यारी लड़की है. इससे अच्छी जीवन संगिनी तुझे नहीं मिल सकती. एक बात और, अब कभी यह मत कहना कि अपने जीवन में तूने जिन्हें चाहा उनसे अलगाव ही तेरी नियति है. अब तेरे जीवन में बस खुशियां ही खुशियां होंगी, गोपाल.”“

“पापा” कहता गोपाल डेविड के गले लिपट मानो फिर वही पहले वाला बच्चा गोपाल बन गया था.

5 comments: