अर्पित को स्कूल जाता देखते ही घरों से औरतें बाहर निकल आई थीं. अर्पित के स्कूल का रास्ता उसके पुराने बंगले के सामने से हो कर जाता था.
“कहो, बेटा, तुम्हारी मम्मी वापिस आई या नहीं?’
“हाय-हाय कैसी निर्दयी माँ थी, बेटे का भी मोह नही रहा, मजे करने भाग गई.””
““अरे भगोड़ी कलंकिनी के गम में इसके पापा ने ज़हर खा कर जान दे दी.”
सबकी बातें सुनता अनुत्तरित अर्पित रोता हुआ घर वापिस आ गया.
“क्या हुआ मुन्ना, स्कूल काहे नहीं गए?“प्यार से अर्पित के आंसू पोंछता रामू द्रवित था.
“हम स्कूल नहीं जाएंगे, काका, सब हमसे मम्मी और पापा के बारे में कह रहे थे.”आंसू फिर बह निकले.
“अरे मुन्ना तुम लोगों की बातें काहे सुनते हो, ठहरो हम तुम्हारे साथ चलते हैं, देखें किसकी हिम्मत कुछ कहने की पड़ती है?”रामू ने आश्वस्त किया.
“नहीं हमें स्कूल नहीं जाना है.” हथेली से बहते आंसू पोंछता दस वर्ष का अर्पित रो रहा था.
“चलो हम फादर के पास चलते हैं, वो तुम्हें बहादुर बच्चा कहते हैं ना?”
अपने पुराने बंगले से थोड़ी दूर पर एक मिशनरी स्कूल में अर्पित पढता था. स्कूल के प्रिंसिपल फादर जेम्स, अर्पित के हार्ट स्पेशलिस्ट पापा डॉ अमित चंद्रा का बहुत सम्मान करते थे. डॉ चंद्रा स्कूल के विकास के लिए अनुदांन तथा मेधावी और निर्धन बच्चों को छात्रवृत्ति भी देते थे. अर्पित फादर जेम्स का प्रिय छात्र था.
अर्पित की मम्मी मोनिका स्कूल के कार्यक्रमों में तो रूचि नही लेती थी, पर पुरस्कार देने अवश्य जाती थी. अखबारों में अपनी फोटो देख कर उसे अपने रूप पर अभिमान होता था. क्लब और किटी पार्टीज़ ही उसकी दुनिया थी. पति डॉ चंद्रा को अपने मरीजों को नव- जीवन देने की व्यस्तता के कारण मोनिका को साथ देना संभव नहीं था, पर पत्नी की गतिविधियों से उन्हें कोई शिकायत नही होती.
रामू सोच में पड़ गया, दस दिनों में उस नन्हे अर्पित की तो दुनिया ही उजड़ गई. एक ही दिन में माँ और पापा दोनों उसे अकेला छोड़ गए. भला हो फादर जेम्स का जिनके हाथों अपने दुलारे बेटे को सौंप कर अर्पित के पापा ने आँखें मूंदी थी. पत्नी के अचानक हमेशा के लिए उन्हें और घर को छोड़ कर चले जाना वह सह नहीं सके थे, मृत्यु के पहले वकील को बुला कर अपनी वसीयत कर के फादर जेम्स को सारी संपत्ति और धनराशि का ट्रस्टी बना दिया था.
फादर और डॉ चंद्रा के डॉक्टर मित्र बोस बाबू की धीमी बातों से ज़हर खाने जैसी बात बाहर खड़े रामू ने सुनी थी. अंतिम संस्कार भी तुरंत कर दिया गया था, मोनिका का भी इंतज़ार नहीं किया गया. अर्पित का रोना सुनते रामू का कलेजा फटा जा रहा था. उतने बड़े बंगले में अकेला अर्पित कैसे रह पाएगा. फादर जेम्स ने अर्पित को अपने घर में रखने का ही निर्णय लिया था.
‘आज से तुम मेरे ब्रेव बेटे हो, अर्पित. मेरे साथ तुम्हे अपनी नई ज़िंदगी शुरू करनी है. अपने पापा की तरह नामी डॉक्टर बन कर उनके सपने पूरे करने हैं.”
“नहीं हम कुछ नहीं कर सकते, हमें पापा के साथ रहना है.”आंसुओं का सैलाब बह निकला.
“तुम्हारे पापा को गॉड ने अपने पास बुला लिया है, वहां उनकी ज़रुरत थी. अब तुम्हें बहादुर लड़के की तरह से ज़िंदगी जीनी है. अगर तुम रोओगे तो तुम्हारे पापा को दुःख होगा. तुम्हारे साथ तुम्हारे रामू काका और मै रहूँगा.”प्यार से अर्पित के सिर पर हाथ फेरते फादर ने समझाया.
“फादर, पापा ने ज़हर क्यों खाया, मुझे क्यों नहीं बताया”.अर्पित ने भी बोस अंकल और फादर की बातें सुन ली थीं.
“अभी तुम बहुत छोटे हो. इस बारे में हम बाद में बात करेंगे. अब सब कुछ भूल कर तुम्हें पढाई में मन लगाना है, इसी से तुम्हारे पापा को खुशी मिलेगी. पढाई को अपना सच्चा दोस्त बना लो, अर्पित.”
फादर के घर का एक हिस्सा रामू और अर्पित के लिए काफी था. अपने कमरे का सामान समेटते अर्पित की आँखों के सामने से दस वर्षों का इतिहास छूट रहा था. रामू और फादर जेम्स ही अब उसका परिवार था. पापा तो अनाथालय में पळे थे और मम्मी के किसी भी रिश्तेदार के बारे में कभी नही सुना, वह अपनी सौतेली माँ से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ कर पापा के साथ आ गई थी. अर्पित माँ-पापा की अपनी छोटी सी दुनिया में कितना खुश था.
अर्पित को अपने पापा बहुत अच्छे लगते थे. अपनी व्यस्तता के बावजूद अर्पित के लिए वह समय निकाल ही लेते थे. उसके साथ उसके स्कूल और उसके दोस्तों के बारे में जानकारी लेते हुए वह खूब मज़ा लेते. सच तो यह है, उस समय वह एक गंभीर डॉक्टर नहीं उसके साथ बच्चा बन जाते थे.. अर्पित के लिए अच्छी किताबें और दिमागी खिलौने वही लाते थे. मम्मी की अति व्यस्त दुनिया में अर्पित को अपने लिए ज़्यादा जगह नहीं मिलती थी. घर के पुराने विश्वस्त सेवक रामू पर अर्पित का दायित्व होता और वह सच्चे मन से अर्पित को प्यार करता.
लन्दन से डॉ चंद्रा के मित्र हरीश के आने से घर में खूब रौनक हो गई. मेडिकल कॉलेज में पढ़ते हुए हरीश और डॉ चंद्रा की अच्छी मित्रता हो गई थी. हरीश स्वभाव से चंचल था और डॉ चंद्रा गंभीर स्वभाव के थे. पढाई के मुकाबले हरीश का ध्यान लड़कियों से दोस्ती करने में ज़्यादा लगता था. स्नेही और उदार डॉ चंद्रा उसे छोटे भाई की तरह प्यार करते .सच्चाई तो यह थी, उन्ही के कारण हरीश एक्जाम्स में पास होता गया और पहला चांस मिलते ही लन्दन चला गया. डॉ चंद्रा ने अपने देश में रह कर ज़रूरतमंद लोगों की सेवा का निर्णय लिया था.
“वाऊ भाभी, तुम्हे तो मै भाभी कह ही नहीं सकता, यूं लुक सो यंग एंड ब्यूटीफुल. तुम्हे तो मोना डार्लिंग कहना ठीक रहेगा. क्यों अमित भाई आपको तो कोई ऐतराज़ नहीं है?”शरारती मुस्कान के साथ मोनिका को देखते हुए हरीश बोला..
“बिलकुल नहीं, पर तेरी शरारतें अभी गई नहीं. अब शादी कर डाल. सुना है अभी भी लड़कियों से फ्लर्ट करता है.” डॉ अमित ने प्यार से कहा.
“ये बात तो आपने ठीक सुनी है, पर अभी तक मोना डार्लिंग जैसी खूबसूरत कोई लड़की ही नहीं मिली है.”मोनिका पर नज़र जमाए चेहरे पर फिर शरारत थी.
“अब रहने दे, मोनिका का दिमाग मत खराब कर. लन्दन में क्या सुन्दर लड़कियों की कमी है?”
“जाने दो हरीश, तुम्हारे भाई साहब के पास सुन्दरता देखने-परखने का वक्त ही कहाँ है? इन्हें तो बस दूसरों के दिल चीरने में मज़ा आता है.”मोनिका ने व्यंग्य किया.
‘वैसे इसी काम के लिए हमारे डॉ अमित चंद्रा जी लन्दन तक में मशहूर हैं.”हरीश मुस्कुराया.
“आप तो अपने भाई की तारीफ़ करेंगे ही, मुझसे पूछिए, मेरी कितनी बोरिंग लाइफ है, हरीश.”
“ओह नो हरीश, मुझे सब हैरी कहते हैं, अब तो हरीश किसी दूसरे का नाम लगता है. वैसे जब तक यहाँ हूँ आपको एक मिनट के लिए भी बोर नहीं होने दूंगा, ये मेरा वादा है.”
“मुझे तो आज ही पता लगा तुम्हारी लाइफ बोरिंग है. तुम्हे तो हमेशा अपनी ज़िंदगी एंज्वाय ही करते देखा है.” डॉ अमित के चेहरे पर विस्मय था.
तभी स्कूल से वापिस आए अर्पित को देख हरीश ने खुशी से कहा-
”अरे ये हमारा अर्पित हीरो है, इतना बड़ा हो गया. पिछली बार तो फोन पर ठीक से बात भी नहीं कर पाता था. तो हीरो, अपने हैरी अंकल को अपना शहर घुमाओगे?”
“जी, अंकल” छोटा सा जवाब दे कर अर्पित अपने कमरे की तरफ चल दिया.
“अरे अभी तो हमारी ठीक से बात भी नहीं हुई और जनाब चल दिए.”हरीश ने कहा.
“अपने पापा पर गया है. उनकी ही तरह सीरियस रहता है, बस किताबें ही इसकी दोस्त हैं.”रूखे स्वर में मोनिका बोली.
जब से हैरी घर आया था, घर में जैसे खुशी का त्यौहार साथ लाया था. अब मोनिका को क्लब अकेले नहीं जाना पड़ता, मोनिका के डांस- पार्टनर के रूप में हैरी अपने अलावा किसी और को चांस ही नहीं देता. देर रात तक दोनों क्लबों की शान बढाते, मोनिका की प्रतीक्षा करते डॉ अमित ने अगर कुछ ठीक नही भी महसूस किया तो उसे बस अपने मन तक ही सीमित रखा.
अर्पित सोचता उसकी मम्मी हैरी अंकल के साथ कितनी खुश रहती हैं, अंकल की हर बात पर कितना हंसती हैं, पर पापा के साथ थोड़ी ही देर में किसी छोटी सी बात पर नाराज़ हो जातीं हैं. पापा मम्मी की नाराज़गी को कितनी आसानी से सह जाते हैं. कभी-कभी उसे मम्मी पर बहुत गुस्सा आता, पर अपने लिए पापा का प्यार सब भुला देता.
दिन बीत रहे थे . एक रात उसने पापा को मम्मी से कहते सुना
“तुम्हे अपने पर कंट्रोल रखना चाहिए, मोनिका. कल रात तुम इतना ज़्यादा ड्रिंक करके आई थीं कि अगर मै ना सम्हालता तो तुम हरीश के साथ उसके बिस्तर पर ही सो जातीं, वह क्या सोचता.”
“ओह, आई डोंट केयर, तुम इतने पुराने ख्यालों वाले इंसान हो, तुम क्या जानो ड्रिंक मुझे किस दुनिया में ले जाता है. हवा में उडती हूँ, पर तुम्हे मेरी खुशी सहन नहीं होती.”ळड़खड़ाती आवाज़ में मोनिका बोली.
“तुम नहीं जानतीं, शराब तुम्हारी सेहत के लिए अच्छी चीज़ नही है. अपने बेटे का तो ख्याल रखो, उसके लिए तुम्हारे पास वक्त ही नहीं रहता, कितना अकेला हो गया है. फादर जेम्स उसके लिए बहुत कंसर्न हैं. उन्हें लगता है, आजकल वह कुछ परेशान सा रहता है. ”
“अर्पित सिर्फ मेरा ही बेटा नहीं है, तुम्हारी भी ज़िम्मेदारी है. वैसे उसके लिए क्या कमी है, कमरे में टीवी, वीडिओ- गेम्स हैं. अगर फादर को इतनी ही परवाह है तो अर्पित को अपने साथ क्यों नहीं रख लेते. उनके पास तो बड़ा घर है और अकेले ही रहते हैं. अब सोने दो.”मोनिका ने बात खत्म कर दी.
अर्पित जैसे डर सा गया, यह सच था, फादर उसे बहुत प्यार करते हैं, पर अपने घर से अलग होने की बात उसे अच्छी नहीं लगी, पर अगर कभी ऐसा हो गया तो? नहीं, वह अपने पापा को छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा. बचपन से उसकी देखरेख रामू काका करते आ रहे हैं, वह उनके साथ अपने मन की बातें आसानी से कर लेता है. उस रात अर्पित को डरावने सपने जगाते रहे.
दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे. मम्मी घर में कम चाचा के साथ बाहर ज़्यादा रहतीं. अचानक एक दिन स्कूल से वापिस आया अर्पित घर में पसरे सन्नाटे से चौंक गया. रामू काका भी बरामदे में चुपचाप बैठे थे. पापा का कमरा बंद था. इस वक्त तो पापा हॉस्पिटल में होते हैं.
“क्या बात है, रामू काका, मम्मी कहाँ हैं, क्या पापा आज हॉस्पिटल नही गए?”
“क्या बताएं बेटा, बहुत गड़बड़ हो गई, तुम्हारी मम्मी भाग गई, मेरा मतलब चली गई. तुम चलो खाना खा लो. अपने पापा को भी बुला लो, उन्होंने भी खाना नहीं खाया है.”रामू की आवाज़ में दुःख था.
अर्पित को जैसे किसी अनहोनी का आभास हो गया था. भागता हुआ पापा के कमरे के बंद दरवाज़े पर दस्तक दी थी. कई बार पुकारने पर पापा ने दरवाज़ा खोला था. उनके चेहरे को देख अर्पित डर गया.
“क्या हुआ, पापा, आप हॉस्पिटल क्यों नहीं गए, खाना भी नहीं खाया?
“कुछ नहीं बेटा,आज भूख नहीं है, तुम खा लो. मुझे कुछ ज़रूरी काम करने हैं.”
“पापा रामू काका कह रहे हैं मम्मी हैरी अंकल के साथ चली गईं, मम्मी क्यों चली गईं, क्या मम्मी के साथ आपकी लड़ाई हुई थी, वो वापिस कब आएंगी?”अर्पित रुआंसा था.
“पता नहीं— “ कह कर डॉ चंद्रा चुप हो गए.
“हम मम्मी के बिना कैसे रहेंगे?”
“तू तो मेरा बहादुर बेटा है, ये लेटर फादर जेम्स को दे देना वह सब सम्हाल लेंगे. हमेशा उनका कहना मानना. वो तुझे अपने बेटे की तरह प्यार करते हैं.”डॉ अमित ने एक लिफाफा अर्पित को थमा दिया.
‘क्या आप कहीं जा रहे हैं? हम आपके बिना नहीं रह सकते, मम्मी भी नहीं हैं.”अर्पित जोर से रो पडा,.
“बहादुर बच्चे ऐसे नहीं रोते. हमेशा हिम्मत से काम करना. अच्छा अब तुम जाओ, मुझे वकील अंकल से बात करनी है.”अर्पित के सिर पर प्यार से हाथ फेर उसके पापा ने उसे भेज दिया.
परेशान अर्पित पापा की अजीब बातें नहीं समझ पाया. वह उसे फादर जेम्स की बात मानने को क्यों कह रहे थे. मम्मी के बिना घर कितना सूना लग रहा था. हांलाकि वह उसे ज़्यादा वक्त नहीं देती थीं, पर उनका घर में होना उसे साहस देता था. रोते हुए ना जाने कब आँख लग गई. रामू काका ने झकझोर कर जगाया था.
“उठो भैया, गज़ब हो गया. मालिक चले गए.” डॉक्टर साहिब कह रहे हैं, दिल का दौरा पडा था, वह बचा नहीं सके.” रामू रो रहा था,
अर्पित बिस्तर छोड़ पापा के कमरे की तरफ भागा था. डॉक्टर बोस अंकल और फादर जेम्स धीमे-धीमे बातें कर रहे थे. उनकी बातों से अर्पित को पापा के ज़हर खाने जैसी कोई बात सुनाई दी थी, पर बोस अंकल ने कहा पापा को दिल का दौरा पडा था. सच क्या था, अर्पित की समझ के बाहर था.
अर्पित स्तब्ध रह गया, सदमे की वजह से आंसू गले में ही फंस गए. शहर में पापा का कितना नाम है, मम्मी उन्हें छोड़ कर अंकल के साथ चली गईं, ये बदनामी उसके स्वाभिमानी पापा कैसे सह सकते थे? .दुःख और आक्रोश ने अर्पित को पागल सा कर दिया.
पापा को मुखाग्नि देता अर्पित बिलख पडा था. लन्दन के पते पर मोनिका और हैरी नहीं मिल सके थे, उनकी खोज करने का कोई ज़रिया भी नहीं मिल रहा था. आंसू पोंछ कर दृढ आवाज़ में अर्पित ने सबके असमंजस को दूर कर दिया था-
“किसी का भी इंतज़ार करना बेकार है. अब देर करने की ज़रुरत नहीं है.”
जब फादर जेम्स ने आ कर उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा तो उनसे लिपट कर अर्पित जोर से रो पडा. अचानक उसे याद आया पापा ने उसे उन्हें लेटर देने को कहा था. लेटर पढ़ते फादर जेम्स गंभीर हो गए.
“डोंट वरी, माई चाइल्ड. आज से तू मेरा बेटा है. हम दोनों साथ रहेंगे.
“फादर, अब हम इस घर में नहीं रहेंगे.”अर्पित रो रहा था.
“ठीक है, अर्पित. मेरा घर बहुत बड़ा है, उसमे एक अलग हिस्सा तुम्हारा होगा. वैसे. तुम्हारे पापा ने अपनी विल में लिखा है, जब तुम अट्ठारह साल के हो जाओगे तब तुम उनकी सारी संपत्ति और कैश के हकदार होगे. मुझे उन्होंने तुम्हारा अभिभावक और ट्रस्टी बनाया है. अभी ये बातें तुम नहीं समझ सकोगे, मुझ पर यकीन रखना बेटे, वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.”उनकी आवाज़ में प्यार और करुणा थी.
अपने घर से विदा होते अर्पित की आँखों के सामने ना जाने कितने चित्र उभर रहे थे, यादें आंसुओं में बह निकलीं. अपना कमरा छोड़ता अर्पित एक-एक चीज़ को भीगी आँखों से समेट रहा था. फादर जेम्स उसकी मानसिक स्थिति को समझ रहे थे. दस वर्षों का इतिहास मिट रहा था. पुरानी यादों में रामू काका ही उसके साथ जा रहे थे. फादर जेम्स जानते थे अर्पित उनके साथ कितना जुड़ा हुआ था. अर्पित समझ नहीं पा रहा था, अभी कुछ दिन पहले रोज़ी की मम्मी, रोज़ी के पापा को तलाक दे कर चली गई, पर ये बात रोज़ी के पापा और दूसरों ने स्वाभाविक रूप से ली थी. मम्मी ऐसे क्यों चुपचाप भाग गई, हां, रामू काका ने यही तो कहा था.
दिन बीतने लगे, फादर जेम्स का स्नेह अर्पित के दुखों पर मरहम का काम कर रहा था. वैसे भी दुःख भुलाने के लिए समय ही सबका सहायक बनता है. पढाई में तो अर्पित पहले ही बहुत अच्छा था, अब फादर की गाइडेंस और अपना दुःख भुलाने के लिए पढाई ही उसकी साथी थी. लेकिन सहानुभूति जताने के बहाने लोगों की बातें उसे तिलमिला देतीं. माँ के लिए मन में गहरा आक्रोश उभरता, पर उसे कहाँ किस के सामने निकाल पाता. कभी सोचता पापा ने आत्महत्या क्यों की, कम से कम वह तो उसके साथ रहते. अर्पित को क्यों भूल गए, उसे अकेला छोड़ गए. अर्पित अब अंतर्मुखी हो गया था.
एक दिन फादर ने कहा-
“अर्पित माई चाइल्ड, तुम्हारी मम्मी तुमसे मिलने आई है, वह तुम्हे अपने साथ लन्दन ले जाना चाहती हैं. वोटिंग- रूम में तुम्हारे अंकल के साथ तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं.”
“नहीं, कभी नहीं, वह मेरी माँ नहीं हैं. मै उनसे नहीं मिलूंगा, ना उनके साथ लन्दन जाऊंगा.”अर्पित की आँखें जल रही थीं, हाथ की मुट्ठियाँ भिंच गई थीं.
तभी मोनिका उसकी आवाज़ सुन कर कमरे में आ गई. अर्पित से कहना चाहा-
“अर्पित बेटे, तुम यहाँ अकेले कैसे रहोगे? मेरे साथ चलो, मै तुम्हारी माँ हूँ”
“नहीं, तुम मेरी माँ नही हो, तुमने पापा को मारा है, यहाँ से चली जाओ. मुझे फादर के साथ रहना है.” रोता हुआ अर्पित, मोनिका को स्तब्ध छोड़ कर वहां से चला गया.
उनके जाने के बाद अर्पित ने फादर से कहा था- “प्लीज़ फादर उन्हें मेरा कोई समाचार नहीं दीजिएगा. मेरा उनसे कोई संबंध नहीं है.”
“ठीक है, मै तुम्हारे मन की बात समझता हूँ, ऐसा ही होगा, पर अगर कभी तुम्हारा मन बदले तो मुझे बता देना. मेरे पास तुम्हारी माँ अपना पता छोड़ गई है. उसे आशा है एक दिन तुम उसे ज़रूर माफ़ करोगे.’फादर ने प्रॉमिस किया.
दिन महीने और साल बीतते गए. अर्पित ने अकेलेपन को अपना लिया था. मित्रों में बस उसकी पुस्तकें, फादर जेम्स और रामू ही उसके साथी थे. उसकी गंभीरता किसी को भी उसके पास आने से रोकती रही. अर्पित को बारहवीं कक्षा में सर्व प्रथम स्थान मिला. उसकी पीठ ठोंकते फादर ने पूछा-
“अर्पित, अब तुम्हे डिसाइड करना है, आगे तुम क्या करना चाहते हो?’
“फादर, मुझे पापा का सपना पूरा करना है, वह मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे. मै भी उनकी तरह हार्ट-स्पेशलिस्ट बनना चाहता हूँ.”दृढ आवाज़ में अर्पित ने अपना लक्ष्य बता दिया.
“मुझे खुशी है, तुम अपने पापा का सपना पूरा करना चाहते हो. मुझे पूरा यकीन है तुम्हे सफलता मिलेगी.” फादर ने विश्वास के साथ उसका हौसला बढाया.
मेडिकल कॉलेज में एडमीशन की कोई समस्या ही नहीं थी. एंट्रेंस एक्जाम में भी उसे प्रथम स्थान मिला था. अठारह वर्ष पूरे होने पर फादर ने अर्पित से उसके पापा की वसीयत के बारे में बताकर पूछा-
“तुम्हारे पापा तुम्हारे नाम काफी धन और संपत्ति छोड़ गए हैं, अब तुम जिस तरह चाहो इसका उपयोग कर सकते हो.”
“मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरे घर और धन से अनाथ बच्चों का जीवन बना दीजिए. ऐसा करने से पापा की आत्मा को खुशी मिलेगी.”
‘तुम अपने पापा के सच्चे बेटे हो, ऐसा ही होगा.”प्यार से फादर ने अर्पित के सिर पर हाथ रख कर कहा.
कॉलेज के प्रोफेसर अर्पित जैसे होनहार विद्यार्थी की क्लास में काफी तारीफ़ करते. उसके साथी भी उसकी योग्यता से प्रभावित थे. दिन-महीने साल बीतने लगे. अर्पित अब मेडिकल के फाइनल इयर में पहुँच गया था. तभी एक दिन एक नई लड़की ने क्लास में प्रवेश लिया था. प्रोफ़ेसर अभी नहीं आए थे, लड़की ने क्लास के सामने खड़े हो कर अपना परिचय बिंदास स्टाइल में दिया-
“हाय गाइज़, मै अंकिता, नवाबों के शहर लखनऊ से आई हूँ. हीरोइन बनने का सपना था, पर पेरेंट्स की जिद की वजह से मेडिसिन कर रही हूँ. पापा की पाकिस्तान के उच्चायोग में पोस्टिंग की वजह से आपके शहर में आई हूँ, इस शहर से पुराना रिश्ता रहा है, कॉलेज में देर से आई हूँ, आपकी हेल्प चाहिए.” चेहरे पर मीठी मुस्कान थी.
‘आपके लिए तो जान भी हाज़िर है, अंकिता जी, बस हुकम करती जाइए.” शरारती नरेन ने कहा.
क्लास में ठहाके गूँज उठे, तभी प्रोफ़ेसर वर्मा के आने से सब चुप हो गए. अंकिता ने अपने बैठने के लिए निगाह दौडाई, अर्पित के साथ खाली जगह देख कर अंकिता नि:संकोच अर्पित के पास जा कर बैठ गई. अर्पित हलके संकोच के साथ थोड़ा और सिमट गया. पीछे से रजत ने रिमार्क दिया-
“वाह, क्या जगह चुनी है, टॉपर से हेल्प लेना आसान होगा.”
क्लास खत्म होने के बाद अंकिता ने अर्पित से कहा-
“कुछ देर पहले आपकी तारीफ़ सुनी आप टॉपर हैं, मेरी हेल्प तो करेंगे.?
“तारीफ़ लायक तो कुछ नहीं है, बस अर्पित हूँ. हाँ किसी की भी हेल्प करना, मेरा फ़र्ज़ है.”
“अर्पित, आप ही हर बैच के टॉपर हैं, तब तो तारीफ़ लायक हुए ना? फ़र्ज़ निभाने के लिए तहे दिल शुक्रिया, वैसे हम लखनऊ के हैं, हमारी बातों में लखनवी अंदाज़ तो होना ही चाहिए.”वो मुस्कुरा दी.
घर वापिस आया अर्पित अंकिता की बेबाक बातों को सोच कर मुस्कुरा दिया. ये भी क्या बताने की बात थी कि वह हीरोइन बनना चाहती थी, वैसे शायद वह एक अच्छी हीरोंइन बन सकती थी. अचानक अपनी सोच पर अंकित चौंक गया. वह क्यों किसी लड़की की फ़िज़ूल की बातों के बारे में सोच रहा था.
दूसरे दिन अर्पित को देखते ही अंकिता के चेहरे पर खुशी खिल आई. पहले दिन की तरह ही आज भी वह नि:संकोच अर्पित के पास बैठ गई
अचानक अर्पित की फ़ाइल पर उसकी लिखाई देख कर कह बैठी-.
“आपकी लिखाई बहुत अच्छी है, हांलाकि डॉक्टर्स अपनी खराब लिखाई के लिए मशहूर होते हैं.”
“ऎसी कोई बात नहीं है, मेरे पापा की लिखाई भी बहुत अच्छी थी.”
“क्या आपके पापा डॉक्टर हैं, इसीलिए आपको उनकी इतनी अच्छी गाइडेंस मिली है.”
“मेरे पापा मुझे गाइड करने के पहले ही चले गए.”अर्पित का चेहरा अवसादपूर्ण था.
“ओह, सॉरी. आपकी माँ आपके साथ रहती हैं?”
“मेरी कोई माँ नहीं है. फादर जेम्स ही मेरे सब कुछ हैं.”अचानक जैसे उसके चहरे पर आक्रोश आ गया.
“माफ़ कीजिएगा, आप शायद किसी वजह से परेशान हैं. क्या हम दोनों दोस्त बन सकते हैं?”
“मेरी किसी के साथ ना दोस्ती है ना दुश्मनी, हम क्लास के साथी हैं, क्या इतना ही काफी नहीं है?’
अर्पित ने रूखी आवाज़ में कहा.
“ये बात आप जैसे जीनियस के लिए भले ही काफी हो, पर हमें तो दोस्त के बिना ज़िंदगी ही बेगानी लगती है. कोई तो ऐसा होना ही चाहिए जिसके साथ दिल खोल कर बात की जा सके. बाई दी वे क्या हम रोज़ आपके साथ इस बेंच पर बैठ सकते हैं?”चेहरे पर वही मीठी मुस्कान खिली थी.
“ये बेंच मेरी प्रॉपरटी नहीं है, जहां जी चाहे बैठ सकती हैं, आप लड़कियों से दोस्ती क्यों नहीं कर लेतीं?“ कह कर अर्पित चुप हो गया.
“हमें लगता है कि लडकियां शायद हमें पसंद नहीं करतीं, उन्हें लगता है, हम पढाई के लिए सीरियस नहीं हैं.”मासूमियत से अंकिता ने कहा.
“ऐसा तो मुझे भी लगा, जब आपने दिल खोल कर अपनी बात कही थी.”
“इसका मतलब आपने हमारी बाते सच मान लीं, फॉर योर इन्फौर्मेशन हम टॉपर भले ही नहीं हैं, पर हमेशा फर्स्ट डिवीजनर रहे हैं.”उसके सुन्दर मुख पर हल्का सा गर्व छलक आया.
प्रोफ़ेसर कुमार के आते ही क्लास में शान्ति छा गई.
अगले दिन अंकिता बड़े आराम से अर्पित के साथ बेंच पर बैठ गई.
“अब जबकि ये बेंच जगह आपकी प्रॉपरटी नहीं है, तो इस जगह पर अपना अधिकार जमा सकती हूँ. कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं है?”शरारती मुस्कान चहरे को और कमनीय बना गई थी.
“अच्छा हो आप लड़कियों के साथ बैठा कीजिए, मुझे परेशान करने की ज़रुरत नहीं है.”
“आपको बताया तो था लडकियां हमसे जेलस हैं, हमने टॉपर के साथ दोस्ती जो कर ली है.”
“आप मेरी दोस्त किसी हालत में नहीं हो सकतीं, अपनी गलतफहमी दूर कर लीजिए.”“
“दोस्ती ना सही, दुश्मनी भी तो नहीं है. इतना ही काफी है. कल प्रोफ़ेसर कुमार के लेक्चर के कुछ नोट्स छूट गए थे आज अपने नोट्स देने होंगे.”अधिकार से अंकिता ने कहा.
“अगर क्लास में ध्यान से नोट्स नहीं ले सकतीं, तो अच्छा हो फिल्म लाइन में चली जाओ. शायद वही जगह तुम्हारे लिए ठीक होगी.”अचानक अर्पित ने अंकिता को तुम कह कर संबोधित कर गया.
“सच कहो, तुम ऐसा ही सोचते हो या नोट्स ना देने का बहाना है. हाँ हम साथी हैं फिर एक-दूसरे को तुम ही कहना ठीक है, साथियों को आप कहना बड़ा फार्मल सा लगता है.”
“मेरे पास बेकार की बातों के लिए वक्त नही है. एक सच और जान लो, मुझे अकेले रहने की आदत है, किसी का साथ नहीं चाहिए.”कड़ी आवाज़ में अर्पित ने कहा.
“ये तो साफ़ दीखता है. क्लास के इतने साथियों के होते हुए भी तुम बिलकुल अकेले क्यों हो, अर्पित?”
“यही मेरी ज़िंदगी का सच है, इसमें झांकने की कभी कोशिश मत करना.”सपाट आवाज़ में उसने कहा.
अंकिता जैसे उसके कठोर चेहरे से डर गई, क्या है अर्पित की ज़िंदगी का सच? कुछ ही दिनों में अंकिता अर्पित के रूखे बर्ताव के होते हुए भी उसमे रुचि लेने लगी थी. उसकी गंभीरता और तेजस्विता ने उसे आकृष्ट किया था. जो भी हो वह अर्पित की ज़िंदगी का सच जानने की कोशिश ज़रूर करेगी. शायद फादर जेम्स के पास उसके जीवन का सच सुरक्षित है.
एक दिन क्लास के बाद बारिश होने लगी थी, अंकिता बारिश से बेपरवाह हलकी बूंदों का आनंद लेती हॉस्टल के लिए पैदल ही चल दी. साइकिल पर जा रहे दो लड़कों को यह नज़ारा देख मस्ती करने की सूझी. साइकिल से उतर कर अंकिता के दांए बांए चलते हुए कुछ उलटे-सीधे रिमार्क्स देने की हिमाकत कर बैठे. अंकिता ने रुक कर एक की कमीज़ का कालर पकड़ उसके चेहरे पर जोर का तमाचा लगा कर शान्ति से कहा कहा-
“चल तेरी साइकिल पर तेरे घर चलती हूँ, घर में माँ बहिन तो होंगी, इस मौसम में उनके हाथ की चाय और पकौड़ी तो मिलेगी? उन्हें भी तो पता लगना चाहिए तू कितना बड़ा हीरो है.”
सकपका कर दोनों अपनी साइकिलें ले कर भाग लिए. पीछे से आ रहे लोगों का इस दृश्य ने अच्छा मनोरंजन किया. साथ की लड़कियों ने भी अंकिता के साहस की तारीफ़ की थी.
“तुम्हारी हिम्मत से हमें भी साहस मिला है, हमें भी ऐसे ही इन जैसों को तुम्हारी ही तरह ठीक करना चाहिए, ऐसे गुंडों की वजह से हमारा अकेले आना- जाना मुश्किल हो गया है .”
समय बीतने लगा. फाइनल एक्जाम्स के लिए कुछ ही समय रह गया था. थियोरी क्लासेज के साथ प्रैक्टिकल चल रहे थे. सीनियर रेसिडेंट्स और प्रोफेसरों के साथ वार्ड के मरीजों की केस हिस्ट्री और रिपोर्ट देखना और समझना होता था. अक्सर वार्ड के राउंड के समय अंकिता भी अर्पित के साथ होती. अर्पित की जानकारी और उसके उत्तर प्रोफेसरों को प्रभावित करते. उसकी बनाई पेशेंट्स की केस- हिस्ट्री देख कर प्रोफ़ेसर कान्त दूसरे स्टूडेंट्स के सामने अर्पित की तारीफ़ करते हुए कहते-
“मुझे पूरा यकीन है, अर्पित एक दिन एक बहुत सफल कारडियोळॉजिस्ट बनेगा.”
एक दिन एक बच्चे को बेड पर अकेले रोता देख अंकिता बच्चे के पास जा कर प्यार से बोली-
“क्या हुआ, क्यों रो रहे हो? अच्छे बच्चे ऐसे नहीं रोते. क्या मम्मी की याद आ रही है?’
“हो सकता है, इसे माँ की याद नही, बल्कि उससे जुड़ी कोई दुःखद बात याद आ रही हो”अजीब स्वर में अर्पित ने कहा.
“कमाल करते हो, भला माँ से जुड़ी कोई बात तकलीफ कैसे दे सकती है?”अंकिता विस्मित थी.
“कभी-कभी कोई ऎसी बात बच्चे की ज़िंदगी ही ख़त्म कर देती है, तुम नहीं समझोगी.”
अंकिता सोच में पड़ गई, क्या रहस्य है जिसने अर्पित को इतना कटु बना दिया है. फादर जेम्स के पास से वो रहस्य पता करना होगा.एक दिन अचानक अंकिता को अपने सामने आया देख कर फादर चौंक गए.
“यस माई डियर, तुम्हे क्या कहना है, क्या कोई परेशानी है?’प्यार से फादर ने पूछा.
अपना परिचय देकर अंकिता ने सीधे शब्दों में कहा था-‘
“फादर, आपका बेटा अर्पित एक जीनियस है, पर वह सामान्य लड़कों जैसा नहीं है. ऐसा लगता है जैसे उसके मन में कोई गहरा दुःख छिपा हुआ है. हमें उसके साथ हमदर्दी है, क्या आप बताएंगे वह ऐसा क्यों है?”आशापूर्ण दृष्टि फादर के चेहरे पर निबद्ध थी.
“तुम अर्पित को कब से जानती हो?’
“अभी कुछ महीने ही हुए हैं, पर ऐसा लगता है मानो बहुत पहले से जानती हूँ.”
“कुछ और समय बीतने दो, शायद उसे जान सको. इतनी जल्दी किसी को जान पाना संभव नहीं होता.’
“,हमारा मानना है, किसी के साथ कुछ समय का परिचय भी वर्षों पुराना सा लगता है.”अंकिता की आवाज़ में विश्वास था.
“शायद तुम ठीक कहती हो, मुझे खुशी है, तुम अर्पित को जानना चाहती हो, इसके लिए इंतज़ार करो, अगर कभी उसके दिल के पास जा सकीं तो वह खुद तुम्हे सब बता सकेगा. अगर तुम उसकी सच्ची दोस्त बन सकीं तो मुझे भी खुशी होगी, अब मेरी प्रेयर का समय होरहा है, गॉड ब्लेस यू. फादर चले गए.
बाहर निकल रही अंकिता का सामना रामू से हो गया.
“तुम कौन हो बेटी, किससे मिलने आई थीं?” स्नेह से रामू ने पूछा.
“क्या आप इसी घर में रहते हैं?हम फादर के पास आए थे.”अंकिता ने आदर से जवाब दिया.
“ हाँ हम और मुन्ना मतलब अर्पित बेटा इसी घर में रहते हैं.”
“अप अर्पित के साथ कब से रहते हैं? हम अर्पित की दोस्त हैं, उनके साथ पढ़ते हैं..”
“अरे हमने ही तो पांच बरस के मुन्ना को पाल- पोस कर इतना बड़ा किया है. तुम मुन्ना की दोस्त हो .अब तुम्हें ऐसे वापिस नहीं जाने देंगे आओ, कुछ खा पी कर जाना.”
ठीक है, काका .”घर भीतर से सुव्यवस्थित था.एक कुर्सी पर बैठ अंकिता ने रामू से वही सवाल दोहराया जिसका उत्तर वह फादर से जानना चाहती थी.
“हमें बहुत खुशी है, तुम हमारे मुन्ना की दोस्त हो और उसकी उदासी दूर करना चाहती हो. मुन्ना एक हंसते –खेलते परिवार का एकलौता बेटा था. बुरा हो उस हरीश का जिसने इस घर को आग लगा दी और हमारे मुन्ना को अनाथ बना दिया.”दुखी स्वर में रामू ने कहा.
“ऐसा क्या हुआ, काका? आप हम पर भरोसा रखिए, हम आपकी बेटी जैसे हैं. हम मुन्ना का दुःख दूर करना चाहते हैं, उसे ज़िंदगी मे खुशियाँ देना चाहते हैं, इसीलिए हम फादर से बात करने आए थे. आपके साथ हमारी बातों के बारे में अर्पित को कुछ मत बताइएगा.”
“अगर तुम सच कह रही हो तो हम तुम्हें पूरी बात बताते हैं. बेटी.”
रामू ने अर्पित की माँ के घर छोड़ कर जाने और पिता की मृत्यु की कहानी सुनाते हुए कई बार पनियाई आँखें अपनी धोती के खूंट से पोंछी. अंकिता चाय का सिप लेते हुए रामू की बातें सुन रही थी. दस वर्ष के बालक के असहनीय दुःख की कल्पना से उसके नयन भी भर आए.
“जानती हो बेटी दस बरस का मुन्ना एक ओर माँ-बाप के बिछोह का दुःख सह रहा था, दूसरी तरफ लोगों के तानों ने उसका दिल छलनी कर दिया. वह उस दिन के बाद से हमेशा के लिए हंसना भूल गया.”
“अब आप परेशान ना हों, अर्पित को फिर हंसाने और खुश करने की अब मेरी ज़िम्मेदारी है.”लौटते हुए रामू के पाँव छू कर उन्हें विस्मित कर दिया.
“खुश रहो, बेटी. अब आती रहना. तुमने इस बूढ़े को नई ज़िंदगी दी है.”
उस दिन के बाद से अंकिता अर्पित के साथ और भी अपनापन महसूस करने लगी. अपना ज्यादा से ज़्यादा समय अर्पित के साथ बिताना उसे अच्छा लगता. कठिन से कठिन काम और सवाल अर्पित अपनी तीव्र मेधा से जिस आसानी से पूरा कर लेता वो अंकिता को चमत्कृत करता. अंकिता की कोशिश रहती वह अर्पित के साथ सीरियस बातों की जगह खुशगवार बातें करती रहे, जो अर्पित का मूड बदल सकें.. उसके परिहास अक्सर अर्पित को मुस्कुराने को विवश कर देते. ताज्जुब की बात यह थी कि अब अर्पित भी अंकिता के साथ सहज होने लगा था. कभी-कभी उसकी शरारती बातों पर उसके ओंठों पर हलकी मुस्कान आ जाती. अब अंकिता का साथ उसे बोझिल नहीं लगता, पर पता नहीं वह अपने इस परिवर्तन को लक्ष्य कर सका था या नहीं.
कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए धन जमा करने की योजना के आधार पर कॉलेज के विद्यार्थियों द्वारा टिकट बेच कर अनारकली नाटक का मंचन करने का निर्णय लिया गया था. सर्वसम्मति से अंकिता को अनारकली के रोल के लिए चुना गया था.
अंकिता ने अर्पित से सलीम का रोल निभाने का बहुत अनुरोध किया पर अर्पित ने कडाई से कह दिया-
“नहीं ये असंभव है, तुम्हें जो करना है, करो. मुझे इन झंझटों में खींचने की कोशिश मत करना.”
अंतत: नरेन् को सलीम के रोल के लिए चुना गया.नरेन् इस सौभाग्य से बेहद प्रसन्न था.
“ठीक है अर्पित, पर कल सन्डे की छुट्टी है, हम तुम्हारे साथ कॉलेज के स्टेज पर रिहर्सल करेंगे. अकेले खाली स्टेज पर रिहर्सल करना ठीक नहीं होगा. तुम बस खड़े रहना. आखिर ये नाटक एक अच्छे उद्देश्य के लिए किया जा रहा है. कॉलेज के प्रति तुम्हारा भी तो कुछ दायित्व है.” अंकिता ने जोर दिया.
“ठीक है, इतनी मदद के लिए आ जाऊंगा.” अर्पित ने हामी भर दी.
ठीक समय पर अर्पित स्टेज पर पहुँच गया. अंकिता ने उसके हाथ में नाटक की स्क्रिप्ट दे कर कहा-
“अनारकली यानी जब मेरे डायलौग के बाद सलीम का रोल आए तो तुम पढ़ कर बोल देना. चलो अब रिहर्सल शुरू करते हैं. अंकिता ने अपने डायलॉग शुरू किए -
“ओह मेरे शहजादे, आपके दीदार की आरज़ू में इस कनीज़ की जान अटकी हुई है, वरना - - -‘
इतना बोल कर अंकिता रुक गई. अर्पित की तरफ स्क्रिप्ट बढ़ा कर कहा-
“अर्पित तुम्हें शाहजादे सलीम का रोल यहाँ से पढ़ कर कहना है--.
“ऐसा न कहो, मेरी जान - - - - “
“ये क्या बकवास है? तुमने आने को कहा था, इसका मतलब ये नहीं कि मै नाटक करूंगा.”
अर्पित आक्रोश में आ गया था.
“नाराज़ क्यों होते हो मेरे शहजादे? ये नाचीज़ तो आप पर कुर्बान है.”अंकिता हंस रही थी.
“मै जा रहा हूँ. याद रखो, मुझे ऐसे मज़ाक पसंद नहीं हैं.”अर्पित ने नाराज़गी से कहा.
“किसने कहा ये मज़ाक है, तुम तो मेरे सलीम बन चुके हो, अर्पित. सच पता नहीं कब और कैसे हम तुम्हें चाहने लगे हैं. तुम्हारी गंभीरता, तेजस्विता, मेधा ने आकृष्ट किया और तुम हमारी चाहत बन गए.”अंकिता ने गंभीरता से कहा.
‘ये कैसी बातें कर रही हो, मुझे नाटकों की भाषा बिलकुल पसंद नहीं. अगर मेरा अतीत जान पातीं तो मुझसे नफरत करतीं.” बात कहते हुए अर्पित जैसे कहीं खो सा गया.
“हम अतीत में नहीं वर्तमान में जीते हैं. जानते हो अतीत को भूतकाल कहा जाता है, यानी उसे भूलने में ही जीवन है. तुम्हारा अतीत कुछ भी रहा हो, अब तुम मेरे वर्तमान और भविष्य हो. हम दोनों मिल कर इसे खुशियों से भर देंगे. नफरत तो हमारे बीच सांस ले ही नहीं सकती.” अंकिता ने विश्वास से कहा.
“तुम एक लड़की हो, ऎसी बातें किसी अच्छी लड़की को शोभा नहीं देतीं.”अर्पित ने नाराजगी से कहा,
“हम आज की लड़की हैं, साफ़ दिल के हैं और सच्ची बात कहने में ज़रा भी नहीं हिचकते. हम तुम्हें प्यार करने लगे हैं, ये सच्चाई है. वैसे हमारे स्वभाव के बारे में इतना तो तुम जान ही चुके हो.”
‘मेरी प्यार शब्द पर आस्था नहीं है, उस पर विश्वास करना मूर्खता है.अगर प्यार में शक्ति होती तो मेरी माँ मेरे इतना प्यार करने वाले पापा को छोड़ कर किसी और के साथ क्यों जातीं”अर्पित अचानक अपने जीवन का कडवा सच कह गया.
“सिर्फ इसीलिए तुम्हारा प्यार से विश्वास उठ गया है क्योंकि तुम्हारी माँ ने अपनी मनपसंद जीने की राह चुन ली? एक बात बताओ एक विवाहित पुरुष किसी पराई स्त्री के साथ विवाहेत्तर संबंध बनाए रख सकता है, जब पत्नी से मन भर जाए उसे छोड़ कर दूसरा विवाह कर सकता है तो एक स्त्री अपना मनपसंद साथी क्यों नहीं चुन सकती?” अंकिता ने अर्पित से सवाल किया.
“तुम नहीं जानतीं, पापा उन्हें कितना प्यार करते थे, पापा ने मम्मी की किसी बात की कभी शिकायत नही की फिर भी मम्मी उन्हें आत्महत्या करने को छोड़ गईं.”
“एक कड़वा सच यह है कि तुम्हारे पापा स्वार्थी और कायर थे. उनका अहं सबसे ऊपर था वरना अपने दस साल के बेटे के बारे में कुछ नहीं सोचा, समाज में अपने अपमान की बात तो सोची, पर मासूम बेटे को भुला कर स्वयं आत्महत्या कर के मुक्त हो गए. अगर संभव हो मेरी बातों को शान्ति से सोचना..”
कुछ तेज़ी से अंकिता ने अपनी बात कही.
“तुम जो कह रही हो, ये सच नहीं है, मेरे पापा कायर और स्वार्थी नहीं थे.”अर्पित बेचैन हो उठा.
“तुम जो सोचते हो सोचो, मेरी सोच अलग है. खैर तुम्हारे मन से तुम्हारे पापा की छवि धूमिल नहीं करना चाहती, पर अपनी माँ के साथ अन्याय कर रहे हो, सच कहो, क्या तुम्हे कभी अपनी माँ याद नहीं आतीं?. एक बात कहूं, नाराज़ मत होना, तुम्हारे साथ शादी के बाद तुम्हारी माँ से आशीर्वाद लेने तुम्हें खींच कर उनके पास ले जाऊंगी.”अंकिता ने मुस्कुरा कर कहा.
“एक सच मुझ से भी जान लो. ना कभी हमारी शादी होगी ना ही तुम्हारे सपने सच होंगे. तुमने तो मेरी सोच पर बहुत चोट पहुंचाई है, अंकिता. अपनी सोच को बदल पाना आसान नहीं है, इसीलिए कहता हूँ, मुझे छोड़ दो, हमारा मिलन असंभव है,”
“सॉरी, हमारी डिक्शनरी में असंभव शब्द है ही नहीं , तुम्हें भी हमारी बात माननी ही होगी. अब तो ये अंकिता तुम्हारी बन चुकी है, अर्पित. ”
“मेरी इच्छा के विरुद्ध मुझसे कोई काम नहीं करा सकता.” यकीन से अर्पित ने कहा.
“ये बात तो समय आने पर ही पता लगेगी, हमें तो पूरा यकीन है हम तुम्हारी अंकिता ज़रूर बनेंगे” मुस्कुराती अंकिता ने कहा.
“तुम मेरे साथ विवाह के सपने मत देखो, मेरा अतीत तुम्हारे पेरेंट्स को कभी स्वीकार नहीं होगा.”
“हम अपने को भी जानते हैं और अपने पेरेंट्स को भी जानते हैं. शादी का फैसला हम दोनों का होगा, उसमें उन्हें कोई ऐतराज़ कैसे हो सकता है? हम दोनों बालिग हैं, अपना भला-बुरा समझते हैं. वैसे भी हमारी पापा- मम्मी को अपनी बेटी के निर्णय पर पूरा यकीन रहता है.उनका तो बस आशीर्वाद होगा.”
“तुम सपनों की दुनिया में जीती हो, अंकिता, मे भविष्य में नहीं अपने अतीत के साथ जीता हूँ.”
“अपने अतीत का काला कम्बल कब तक ढोते रहोगे अर्पित, अब इसे उतरवा के रहूंगी, ये मेरा वादा है . अब नाटक की तैयारी के लिए जा रही हूँ.“
अंकिता नाटक में अभिनय की तैयारी पूरे मन से कर रही थी. अंकिता ने अर्पित को नाटक देखने जाने को तैयार कर लिया था. पहले ही दृश्य में अंकिता छा गई. अपने अभिनय, सौन्दर्य और परिधान से उसने अनारकली को साकार कर दिया था. उस दिन पहली बार अर्पित को अंकिता के विषय में पता चला कि अपनी दूसरी क्वालिटीज़ के साथ वह एक बहुत अच्छी नृत्यांगना भी है. नाटक की समाप्ति पर हॉळ तालियों से गूँज उठा.
“नाटक देखने आने के लिए थैंक्स. वैसे तुम्हें मेरा एक्टिंग कैसा लगा,अर्पित?” अंकिता ने धीमे से पूछा.
“ये तो जानता था, तुम अच्छी अभिनेत्री हो, कोई और लड़की तुमसे ज़्यादा अच्छा एक्टिंग शायद ही कर पाती.”अर्पित ने सच्चाई से कहा.
“वाह, आज तो मेरा जीवन सफल हो गया, अनारकली ने सलीम को इम्प्रेस कर ही लिया.”
उस रात अर्पित ना चाहते हुए भी अंकिता के विषय में सोचता रह गया. उसकी बातें भुला पाना संभव नहीं था. यह सच था, अंकिता अगर फिल्मों में जाती तो टॉप की हीरोइन होती. वह बिना किसी हिचक के अपने मन की बात साफ़-साफ़ कह जाती है. क्या वह सचमुच अर्पित को चाहने लगी है? अपने पापा और मम्मी से बिना डरे अपनी राय दे दी. अचानक अर्पित को अपनी माँ याद आने लगीं. जब वह अच्छे मूड में होती थीं तो अर्पित को कितना प्यार करती थीं. पापा की मृत्यु के बाद भी वह उसे अपने साथ ले जाने आई थीं. और पापा क्या वह कायर थे? शायद मम्मी को डर था, तलाक माँगने पर वह मम्मी को तलाक नहीं देते इसीलिए मम्मी ने यह राह चुनी होगी. बहुत देर बाद वह सो सका था .फोन की घंटी से उसकी नींद टूटी. फोन पर रजत था
“अर्पित बहुत बुरी खबर है. अंकिता का सीरियस एक्सीडेंट हो गया है, वह आई सी यू में है.”
“क्या कैसे?जवाब बिना सुने किसी तरह बदहवास अर्पित हॉस्पिटल पहुंचा था. आई सी यूं में अंकिता बेहोश थी. माथे पर पट्टी बंधी हुई थी. अर्पित व्याकुल हो उठा. वहां खड़े लड़कों ने बताया कॉलेज आते समय अंकिता की रिक्शा से तेज़ गति से आ रहा ऑटो रिक्शा टकरा गया. गनीमत है, अंकिता उछल कर दूर जा गिरी वरना ऑटो रिक्शा उस पर चढ़ जाता. उस दृश्य की कल्पना से अर्पित काँप उठा.
“डॉक्टर अंकिता कैसी है, वह सीरियस तो नहीं है?”एक सांस में अर्पित डॉक्टर सिन्हा से पूछ बैठा.
“हैव पेशेंस, तुम तो खुद एक डॉक्टर हो, अर्पित. जब तक पेशेंट को होश नहीं आ जाता कुछ नहीं कहा जा सकता. गॉड ब्लेस हर, उसके पेरेंट्स को इन्फौर्म कर दिया है.” डॉक्टर चले गए.
अर्पित निढाल सा बैठ गया. अंकिता की एक-एक बात याद आ रही थी. क्या वह खुद भी उसे नहीं चाहने लगा था. उसका साथ कितना जीवंत हुआ करता है. अनजाने ही अंकिता उसके जीवन में स्थायी जगह बना चुकी है, स्पष्ट समझ में आ रहा था. अंकिता के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है. पूरे दिन बिना खाए-पिए अर्पित निश्चल बैठा था. रजत, नरेन सागर के कहने पर मुश्किल से एक कप चाय गले से नीचे उतारी थी. सबकी समझ में आ गया था, अर्पित का अंकिता के साथ दोस्ती से ज़्यादा कुछ और ही रिश्ता बन चुका है. सब अंकिता के लिए मौन प्रार्थना कर रहे थे.
शाम की फ्लाइट से अंकिता के पेरेंट्स आ गए. और ये संयोग ही था कि उनके आते ही अंकिता ने आँखें खोली थीं. नर्स ने तुरंत डॉक्टर को बुलाया था. अर्पित हाल जानने को आगे बढ़ आया.
“डॉक्टर अर्पित, खतरे की कोई बात नहीं है. चोट गहरी नहीं थी, सदमे से बेहोश हो गई थी. शी इज फाइन.”सीनियर डॉक्टर सिन्हा ने आश्वस्त किया.
अर्पित और और अंकिता के पेरेंट्स के चेहरों पर आशा और खुशी की चमक आ गई. आदर से अंकिता के पेरेंट्स को अपना परिचय देते ही, अंकिता की माँ ने प्यार से कहा-
“तुम्हें अपना परिचय देने की ज़रुरत नहीं है, अर्पित. अंकिता ने तुम्हारे बारे में सब कुछ बताया है. हम तो तुमसे मिलने आने ही वाले थे, पर आज अचानक आना हो गया.”
अर्पित के साथ अपने मम्मी-पापा को देखती अंकिता खुश हो गई.
“सॉरी मम्मी-पापा, मेरी वजह से आपको आना पड़ गया. अर्पित तुम इतने परेशान क्यों दिख रहे हो?”
“तुमने तो मेरी जान ही ले ली थी, पता नहीं क्या-क्या सोच बैठा था.”
“अपनी इस हालत का मतलब जनाब समझ पाए या नहीं? मम्मी कहने को ये जीनियस डॉक्टर है, हार्ट स्पेशलिस्ट बनने चला है, पर अपने दिल की बात ही नहीं समझता.”अंकिता ने मज़ाक किया.
“ऐसा ही होता है, बेटी. उम्मीद है, तेरे एक्सीडेंट ने इसे इसके दिल का राज़ खोल दिया. सुना है सवेरे से भूखा-प्यासा तेरी सलामती की प्रार्थना कर रहा है.”अंकिता के पापा ने हंस कर कहा.
“अर्पित तुम मम्मी-पापा को अपने कॉलेज की कैंटीन में ले जाओ, हमें पता है मम्मी-पापा ने भी कुछ नहीं खाया होगा. मम्मी, अर्पित को भी कुछ खिला देना, मम्मी इन जनाब का चेहरा सूख गया है वरना शहजादे सलीम दीखते हैं.” हंसती अंकिता ने अर्पित को चिढाया.
“चुप रह, इस वक्त भी शरारत से बाज़ नहीं आ रही है, अर्पित ये मेरी बेटी बड़ी साफ़ दिल की लड़की है, इसकी बातों पर नाराज़ तो नहीं होते?”
“जी नहीं, अंकिता को समझता हूँ.”धीमे से अर्पित ने कहा.
रात में अंकिता को डिस्चार्ज कर दिया गया. अंकिता और उसके मम्मी-पापा के साथ पांच सितारा होटल में अर्पित को भी जाना पडा. अंकिता के पापा की पोजीशन की वजह से उन्हें विशेष सम्मान दिया जा रहा था. डिनर के बाद कमरे में पहुँच अंकिता की मम्मी ने अर्पित से पूछा-
“अर्पित बेटे, एक महीने बाद तुम दोनों फाइनल इयर पूरा कर लोगे, उसके बाद तो बस एक वर्ष की इंटर्नशिप ही करनी है. हमारी बेटी तुम्हें बहुत चाहती है, क्या तुम उसे अपनी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार करोगे?”
“अभी मै इस विषय में कुछ नहीं सोच सका हूँ, मै एम् एस करना चाहता हूँ. वैसे शायद आप मेरा अतीत नहीं जानतीं वरना आप ये प्रस्ताव नहीं रखतीं.”संकोच से अर्पित ने कहा.
“एम् एस तो अंकिता भी करेगी, पर उसके लिए तुम दोनों की शादी बंधन नहीं बनेगी, बल्कि दोनों साथ –साथ पढाई पूरी कर लोगे. अंकिता हमें तुम्हारे और तुम्हारे अतीत के बारे में सब कुछ बता चुकी है, तुम्हें अपने मन में अतीत से कोई शिकायत नहीं रखनी चाहिए.”अंकिता के पापा ने गंभीरता से अपनी बात कही
“हाँ बेटे, तुम्हारे साथ जो हुआ दुखद था, पर उसे भुलाने में ही समझदारी है.”माँ ने भी हामी भरी.
.”वाह मम्मी-पापा ये आप क्या कह रहे हैं, अर्पित ने तो पूरी ज़िंदगी अतीत की काली कमली ओढ़े रखने की ठान रखी है. अगर उसे उतार दिया तो ज़िंदगी क्या बेमानी नहीं हो जाएगी, क्यों अर्पित ठीक कहा ना?”अंकिता ने सीधा व्यंग्य किया.
“एक बात जान लो, मेरी बेटी अंकिता जो ठान लेती है, उसे पूरा कर के ही छोडती है, मुझे पूरा यकीन है, अगर तुम अपने अतीत से छुटकारा पाना चाहते हो तो अंकिता ही उसकी दवा है.”पापा ने कहा.
“आप लोग बेकार परेशान हैं, अर्पित मेरे लिए भूखा-प्यासा पूरे दिन बैठा रहा क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि जनाब अर्पित भी मुझे बेहद चाहते हैं. ये अपने मन की बात नहीं मानने की जिद करता है, पर असल में तो हम इसके मन को जानते हैं.. क्यों अर्पित इस सच को तो स्वीकार करोगे या कह दो ये झूठ है.”अंकिता ने सीधी दृष्टि अर्पित पर डाल गंभीरता से कहा.
“मानता हूँ, अपने मन को नहीं समझा पाया, ये तुमसे हार गया, अंकिता. हाँ तुम्हारी जीत पर मुझे खुशी है. तुमने जो सपने देखे, अपने अतीत के कारण मुझे उन पर विश्वास नही था, पर तुमने जो कहा सच कर दिया. तुम्हारा आभारी हूँ, अंकिता.”अर्पित के चेहरे पर खुशी की आभा थी.
“अंकिता तेरे एक्सीडेंट की वजह से हमें आना पडा, पर तूने जिसे अपने जीवन साथी के रूप में चुना, उसे स्वीकार करते बहुत खुशी है. हमारा आशीर्वाद हमेशा तुम दोनों के लिए रहेगा.” पापा ने खुशी से कहा.
“ये हमारा सौभाग्य है अर्पित कि हमें तुम्हारा जैसा योग्य बेटा मिला है. हमें अंकिता के चुनाव पर हमेशा यकीन रहा है, तुम्हारे साथ हमारा परिवार पूर्ण हो गया. हमारी अंकिता अब तुम्हारी हुई.” मम्मी के सजल नयनों में प्यार था.
“अर्पित अब पापा-मम्मी का आशीवाद तो चरण-स्पर्श कर के ले लो या ये भी बताना होगा?”हंसते हुए अंकिता ने कहा.
मम्मी-पापा के चरण छूने को झुके अर्पित को पापा ने प्यार से अपने सीने से लगा लिया. “मम्मी- पापा’ कहते अर्पित के नयन भर आए. वर्षों का अवसाद पल भर में तिरोहित हो गया.
Thank you . for that kind of story,keep doing the good work.EMOTIONAL STORIES। 7-Jan The Day I Will Never Forget
ReplyDeleteheart touching story.Thanks for sharing your amazing content . I will also share with my friends. Great content thanks a lot.
ReplyDeletepankaj kumar