2/20/20

उसका आकाश

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अभी सूर्योदय पूरी तरह से नहीं हुआ था, उषा की लालिमा से रंगे आकाश को सूर्य की रश्मियां भेद कर धरती पर आने का प्रयास कर रही थीं. पिता के अस्वस्थ होने के कारण सजल को उनके स्थान पर भोर की बेला में गंगा स्नान के बाद मंदिर जाना पड़ता था. अपने पापा का हर आदेश पूरा करना सजल का ध्येय था. आखिर उसकी इच्छा-पूर्ति के लिए उसके पापा ने अपना पुश्तैनी घर ही नहीं अपनी ज़मीन-जायदाद भी अपने विश्वस्त मुनीम के हाथों सौंप, उसके साथ शहर आ गए थे. साथ में पूरा बड़ा परिवार भी उनके साथ शहर आ गया था.

अचानक सजल की दृष्टि स्नान करती एक युवती पर पड़ी थी. बदन से लिपटी भीगी साड़ी उसके सौन्दर्य को उजागर कर रही थी. लोगों की लोलुप दृष्टि से अनजान सूर्य को अर्ध्य देती युवती प्रभात के सौन्दर्य की अभिवृद्धि कर रही थी. सजल का मन चाहा उस युवती की फोटो अपने मोबाइल पर उतार ले, पर उसके संस्कारों ने उसे ऐसा करने से रोक दिया. कुछ ही देर बाद एक चादर से अपने को ढांप वह बाहर आ गई. सजल के पास खडी एक औरत की व्यंगपूर्ण बात सजल के कानों में पड़ी थी,

“सौ-सौ चूहे खा कर बिल्ली हज को चली.”

“अरी कमली इधर आ, कहीं वो तुझे छू ना ले.”दूसरी स्त्री ने अपनी बेटी को संकेत से बुलाया.


उन बातों से निर्लिप्त युवती आगे बढ़ती गई. पिता की अस्वस्थता के कारण सजल का यूनीवर्सिटी जाने के पूर्व मन्दिर जाना आवश्यक था. सजल ने जब यूनीवर्सिटी में लेक्चरार बनने की बात की तो जैसे घर में भूचाल आ गया. उसके पापा सीताराम चौंक गए, इतनी बड़ी जायदाद और संपत्ति का इकलौता वारिस शहर में मास्टरी करे, ये बात उनके गले से नीचे नहीं उतर रही थी. शहर में पढने तक की बात तो ठीक थी, पर अब अब शहर जाने की जिद से वह परेशान हो उठे, पर सजल के ह़ठ के आगे उन्हें झुकना ही पडा.

“पापा, अब जमींदारों के ज़माने लद गए, आप ही देखिए अब क्या आपको लोग वैसे ही इज्ज़त देते हैं? युवा पीढी को सही राह दिखाना बहुत महत्वपूर्ण कार्य है, मै ने निर्णय ले लिया है, मै शिक्षक ही बनूंगा.”

शहर आने पर अपने साथ आए बड़े परिवार के लिए सीताराम जी ने गंगा किनारे एक बड़ा मकान खरीद लिया. जमींदारी की शानोशौकत अभी भी बाक़ी थी. अपना मन्दिर ना हो तो कैसी पूजा-अर्चना, अत: गंगा-किनारे एक मन्दिर बनवा कर बनारस से अपने पुराने पुजारी को भी बुलवा लिया. रोज प्रात:गंगा-स्नान के बाद मन्दिर में पंडित जी के वचन सुन कर उनका मन शांत हो जाता. अब मन्दिर के भजन-कीर्तन में भारी संख्या में लोग आने लगे थे. पिछले सप्ताह से खांसी-ज़ुकाम और तेज़ बुखार के कारण डॉक्टर ने उन्हें सवेरे गंगा-स्नान जाने के लिए मना कर दिया था. अब उनके स्थान पर सजल को यह दायित्व उठाना पड़ता था.

मन्दिर मे सजल के प्रवेश पर पुजारी जी ने ज़ोरदार शब्दों में स्वागत किया-

“आइए भैया जी, आरती के लिए आपकी प्रतीक्षा थी, लीजिए आरती कीजिए.”

सजल ने आरती शुरू की और “ॐ जय जगदीश हरे” के भजन ने मन्दिर का वातावरण पावन कर दिया. आरती समाप्त होने पर पुजारी जी के सहायक चरण दास ने सजल के हाथ से आरती का थाल ले लिया. भक्त जन आरती लेने को उमड़ पड़े. अपनी-अपनी श्रद्धा के अनुरूप सब थाल में पैसे रख रहे थे. वापिस जाने वालों को अमृत- जल और इलायची दानों का प्रसाद दिया जा रहा था. अचानक सजल की नज़र कोने में खडी अपने में सिमटी गंगा-स्नान कर रही उसी युवती पर पड़ी. वो आरती लेने आगे क्यों नहीं आई, सजल विस्मित था. पुजारी के सहायक चरण दास से पूछा -

“आपने उस लड़की को आरती नहीं दी?”

“नहीं भैया जी, वो इस आरती के लायक नहीं है. आप उसे छोड़िए.”उसके चेहरे पर कुत्सित मुस्कान थी.

घर लौटता सजल विस्मित था, उसके बारे में ऎसी कौन सी बात हो सकती है, पापा से पूछना होगा.दूसरे दिन भी वही दृश्य था, पर आज सजल अपने मन को नहीं रोक सका. उस लड़की की फोटो अपने मोबाइल पर उतार ही ली. अगले दिन भी सजल इसी आशा से मन्दिर गया कि शायद वो लड़की आज भी वहां होगी और आज सजल पंडित जी के सहायक से उसे आरती देने को अवश्य कहेगा, शायद उसके पास आरती में डालने के लिए पैसे ना हों और इसी लिए वो आरती लेने आगे नहीं आती.

मंदिर में सब पूर्ववत, दृश्य था, आरती कर चुकने के बाद सजल ने चारों और दृष्टि दौडाई, पर आज वह मन्दिर में नहीं थी. सजल को हलकी सी निराशा हुई. ना जाने क्यों उसकी फोटो कम्प्यूटर पर प्रिंट कर डाली. ऎसी कौन सी बात है जिसके कारण उसे आरती लेने के योग्य नहीं समझा जाता. दो-तीन दिन ऐसे ही बीत गए, वो लड़की मन्दिर में नहीं दिखी. उसके बारे में किसी से पूछने में भी सजल को संकोच होता था.अचानक अगले दिन वो लड़की दिखाई दी थी, साधारण सी धोती में वो बेहद उदास दिख रही थी. सजल मन्दिर में एक किनारे बैठ गया.सबके जाने के बाद लड़की संकोच के साथ पुजारी जी के सामने हाथ जोड़े विनय करती बोली थी’

“पुजारी काका, हमारी माँ बहुत बीमार है, उसके नाम की पूजा कर दीजिए, बहुत कृपा होगी.”धोती के आँचल में बंधी गाँठ खोल कर एक मुड़ा-तुड़ा एक नोट पुजारी की ओर बढाया था.

“पागल हुई है, भला पांच रुपयों से माँ की बीमारी दूर भगाएगी. कम से सौ रूपए तो लाती.”

“हमारे पास बस इतने ही पैसे बचे हैं, वैद्य जी को पैसे देने थे.”धीमे से लड़की ने कहा.

“क्यों, रात भर की कमाई बस इतनी ही होती है?”कुटिल मुस्कराहट से चरण दास बोला.

लड़की के मौन से क्षुब्ध सजल पुजारी के समीप जाकर बोला-

“पंडित जी, भगवान् अपने भक्तों को पैसे ले कर आशीर्वाद नहीं देते, उनकी भावना से प्यार करते हैं. आप इनकी माँ के नाम से पूजा कीजिए, यदि आपको आपत्ति है तो बाक़ी पैसे मै दे दूंगा.”

“अरे नहीं भैया, हम अभी पूजा करे देते हैं, पैसे भी रहने दो, बेटी.”पंडित जी ने मंत्रोच्चार शुरू किए..

लड़की ने एक बार कृतज्ञता भरी दृष्टि उठा कर सजल को देखा और नैन झुका लिए.

लडकी के जाने के बाद सजल ने चरण दास से पूछा-

“ये लड़की कौन है, इसे आरती भी क्यों नही दी जाती?“

“भैया जी, देखने में ये लड़की बड़ी भोली बनती है, पर रात में पास वाले शराब -घर में रात भर नाच कर कमाई करती है. यहाँ चार पैसे चढाते इसकी नानी मरती है.”घ्रृणापूर्ण शब्दों में चरण दास बोला.

“मुझे इन बातों से कोई मतलब नहीं है, पर इस मन्दिर में आने वाले सब भक्त जन समान होते है, उनके साथ एक सा व्यवहार होना चाहिए. पैसों से भक्ति नहीं तौली जाती.”गंभीरता से सजल ने कहा.

“जी भैया जी, ऐसा ही होगा. ये चरण दास तो पागल है.”विनीत स्वर में पंडित जी ने कहा.

घर लौटता सजल सोच रहा था, चरण दास ने कहा वो लड़की बार में नाचने वाली यानी बार-गर्ल है. क्या ये सच हो सकता है,पर क्या ये उसका शौक है या कोई मजबूरी. अपनी सोच को झटक सजल कॉलेज जाने को तैयार होने चला गया, पर वो लड़की उसके दिमाग पर छाई रही. उसका सच जानने को वह बेचैन था.

दो दिनों तक सजल मन्दिर नहीं जा सका , पर वो लड़की उसके दिमाग से नहीं उतरी. तीसरे दिन उसे उस लड़की की प्रतीक्षा थी.कुछ देर बाद उदास मुख के साथ उसने मन्दिर में प्रवेश किया. कंधे पर निचोड़ी गई भीगी धोती थी.पहले की तरह ही वह मन्दिर के एक कोने में सिमटी सी खडी थी.आरती के समय हाथ जोड़े वह मन प्रार्थना सी कर रही थी. आरती समाप्त होने पर चरण दास सबके सामने आरती का थाल लिए आरती के साथ भक्तों को प्रसाद दे रहा था. सजल पर एक नज़र डाल, चेहरे पर भरसक मुस्कान ला, चरण दास ने आरती का थाल लड़की की तरफ बढाया. कुछ संकोच के साथ धोती के आँचल में बंधे कुछ सिक्के थाल में डाळ आरती लेती लड़की का चेहरा खुशी से चमक उठा. उसे मन्दिर से बाहर जाते देख सजल भी बाहर निकल आया.लड़की के पास जा कर पूछा-

“अब तुम्हारी माँ की तबियत कैसी हैं?”

लड़की उस सवाल पर चौंक गई, पर सजल को देख सहज धीमे से जवाब दिया-

“ठीक नहीं है. रोज़ कंपकंपी दे कर बुखार चढ़ जाता है. वैद्य जी कहते हैं उसे बड़े डॉक्टर के पास ले जाओ. पर वो तो बहुत पैसे लेंगे.“आवाज़ में मायूसी थी.

“तुम माँ को सरकारी अस्पताल में भी तो ले जा सकती हो. वहां तो मुफ्त इलाज होता है.”

“दो दिन तक हम लाइन में बैठे रहे पर जब तक नंबर आया, डॉक्टर साहब की ड्यूटी ख़त्म हो गई, वो घर चले गए.”

“तुम्हारा नाम क्या है, घर में और कौन –कौन हैं?”

“सुजाता, घर में बस हम और हमारी माँ हैं. हमारे बाबूजी गाँव के स्कूल में मास्टर थे. उनकी अचानक मृत्यु से हम बेसहारा हो गए. बाबूजी ने गाँव के बच्चों को विद्या-दान दिया, पर अपने लिए पैसों का मोह नहीं रखा वरना शहर में किसी अच्छे स्कूल में पढ़ा कर ज़्यादा पैसे कमा सकते थे.”

“क्या तुमने भी गाँव में कुछ पढाई की है?”

“हमने फर्स्ट डिवीजन में हाई स्कूल पास किया था, पत्राचार कार्यक्रम से बारहवीं की पढाई कर रहे थे, तभी बाबू जी चले गए. बाबूजी कहते थे हमें खूब पढ़- लिख कर टीचर बनना चाहिए और गाँव की लड़कियों को आगे बढ़ने में सहायता करनी चाहिए. काश बाबूजी न जाते.”सुजाता की आँखें नम थीं.

“तुम्हे एक डॉक्टर का नाम दे रहा हूँ, उनके पास मेरा कार्ड ले जाना वह तुम्हारी माँ का मुफ्त इलाज करेंगे. मै उनसे फोन से बात कर लूंगा. अगर बुरा ना मानो तो जानना चाहता हूँ, तुम यहाँ क्या काम करती हो?”सजल ने सहानुभूति से पूछा.

“माँ की बीमारी और पैसों की तंगी से हम परेशान थे, गाँव में कोई काम मिलने का सवाल ही नही था. हमारे गाँव की कमला मौसी अपने साथ गाँव की लड़कियों को शहर में काम दिलाने ले जाती थीं, हमने भी अपने लिए उनसे मदद मांगी थी, पर काश हम यहाँ ना आए होते.”सुजाता चुप हो गई.

“क्यों ऐसा क्या हुआ, यहाँ कोई दूसरा काम मिलना इतना मुश्किल नहीं है,”

“ये हमारा दुर्भाग्य था हमें शहर के बारे में कुछ पता नहीं था, ना ही यहाँ हमारा कोई परिचित था. मौसी ने कहा शहर में दसवीं पास को कोई नौकरी नहीं मिल सकती, अगर जीना है तो यहाँ होटल में लडकियां नाच कर के पैसे कमाती हैं, तुम भी वही काम कर सकती हो.”सुजाता आगे नहीं बोली.

“ये तो तुम्हें गुमराह करने वाली बात है, क्या इसीलिए तुम रात में होटल में - - -. “सजल आगे कुछ नहीं पूछ सका. स्थिति स्पष्ट थी.

“पहले तो हम इस काम के लिए तैयार नहीं थे, पर माँ की बीमारी और पैसों की ज़रुरत ने हमें मजबूर कर दिया ,अकेली जान होती तो ज़हर खा कर मर जाते, पर माँ को कौन देखेगा.”सुजाता ने आँचल आँखों से लगा लिया.

“परेशान मत हो, कोई राह मिल जाएगी.”सहानुभूति से सजल ने कहा.

“हमारा घर आ गया, कमला मौसी ने अपने घर के पास हमें रहने को ये कोठरी दी है.”

“क्या मै तुम्हारी माँ से मिल सकता हूँ?’ दरबेनुमा कोठरी को देखते सजल ने पूछा.

“नहीं ये जगह आपके पैर रखने लायक नहीं है, हमें माफ़ कीजिएगा.”बंद दरवाज़ा खोल सजल को बाहर विस्मित खड़ा छोड़, सुजाता भीतर चली गई.

सजल के मन में सुजाता के लिए बहुत सहानुभूति और दया थी. बेचारी लड़की कितनी मुश्किलों का सामना कर रही है. उसे उसकी दुखद स्थिति से बाहर निकालने का कोई रास्ता निकालना होगा. अचानक यूनीवर्सिटी जाते समय रास्ते में ‘आर्य कन्या कॉलेज’ का बोर्ड देखते सजल को समस्या का हल मिल गया. कॉलेज की प्रिंसिपल कनक लता की बेटी सजल की फेवरिट स्टूडेंट रही है, प्रिंसिपल से सजल का अच्छा परिचय था.आज ही उनसे सुजाता के विषय में बात करनी होगी.

शाम को लौटते समय सजल कनक जी से मिलने पहुँच गया.संक्षेप में सुजाता की कहानी बता कर सजल ने कनक जी से पूछा क्या वह किसी प्रकार सजाता की आगे की पढाई के साथ उसे कोई पार्ट टाइम काम भी दे सकती हैं ताकि वह अपना जीवन सुधार सके. कुछ देर सोचने के बाद कनक जी ने कहा-

“हमारा कॉलेज दो शिफ्टों में चलता है. सवेरे आठवीं तक की और शाम को दसवीं से बारहवीं की क्लासेज होती हैं. अगर सुजाता सवेरे की शिफ्ट में आ कर छोटी कक्षाओं की लड़कियों की मदद कर सके तो शाम की शिफ्ट में वह बारहवीं की लड़कियों के साथ पढाई कर सकती है. इसके लिए उसे वेतन भी मिलेगा.”

“यह तो सुजाता के लिए बहुत अच्छी मदद होगी, पर अभी उसकी माँ बीमार है, उसके ठीक होते ही वह खुशी से आपके कहने के अनुसार काम कर सकेगी. आपकी सहायता के लिए आभारी हूँ.”

“आप किसी असहाय लड़की की मदद कर रहे हैं, यह पुन्य का काम है, इसके लिए धन्यवाद की आवश्यकता नहीं है. मुझे भी पुन्य का भागी बनने दीजिए.”मुस्कुरा कर कनक जी ने कहा.

सजल से कनक जी का प्रस्ताव सुनते ही सुजाता का चेहरा खुशी से चमक उठा.

“क्या ये सच हो सकता है? आप तो हमारे लिए भगवान् हैं. आपने जिन डॉक्टर के पास भेजा था, उन्होंने कहा है, माँ जल्दी ठीक हो जाएगी, घबराने की कोई बात नहीं है.”

“मेरे ख्याल से तुम प्रिंसिपल साहिबा से मिल लो, शायद वह तुम्हारी कुछ और भी मदद कर सकें, वह अकेली ही रहती हैं.”कनक वर्मा का पता दे कर सजल ने सलाह दी.

“जी, हम कल ही उनसे मिल आएँगे. आपका धन्यवाद देने को हमारे पास शब्द नहीं हैं.”

“उसकी कोई ज़रुरत नहीं है, अगर तुम्हारा सपना पूरा हो जाए तो मुझे खुशी होगी.”.

सुजाता की सीधी-सच्ची बातों से इकलौती बेटी की माँ कनक जी के ह्रदय में उसके प्रति करुणा और स्नेह की भावनाएं उमड़ आईँ. उसके घर की स्थिति जान उन्होंने उसे और उसकी माँ को अपने बंगले के आउट हाउस में रहने की जगह देने का निर्णय ले लिया. वैसे भी पति की मृत्यु और विवाह के बाद बेटी के विदेश चली जाने से वह उस बड़े बंगले में अकेली ही रह रही थीं. कनक जी के चरण स्पर्श कर सुजाता ने माँ के स्वस्थ होते ही उनके साथ रहने और उनके अनुसार कार्य करने का वादा कर के खुशी मन से विदा ली थी.

दस दिनों बाद छोटी सी अटैची और कपड़ों की एक गठरी के साथ दोनों माँ बेटी कनक लता जी के बंगले पहुंची थीं. श्रद्धा से कनक जी को प्रणाम करती सुजाता ने अपनी माँ का परिचय दिया था.

“मैडम, हम आपके बहुत आभारी हैं, ये मेरी माँ शन्नो देवी हैं हम दोनों आपकी सेवा में कोई कमी नहीं रक्खेंगे.”सुजाता ने नम्रता से कहा.

“तुम्हारी सहायता करके मुझे खुशी होगी.सवेरे स्कूल की पारी में क्या तुम पांचवी और छठी कक्षाओं को गणित पढ़ा सकोगी? दूसरी पारी में तुम बारहवीं कक्षा के साथ पढाई कर सकोगी, सुजाता?”
“जी मैडम जी, गणित मेरा प्रिय विषय है, आपको निराश नहीं करूंगी. आपके घर के कामों में मेरी माँ सहायता करेगी, माँ खाना बहुत अच्छा बनाती है, क्यों ठीक कह रहे हैं ना माँ?”

“अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है, मेरी बेटी अच्छे खाने की शौकीन है.”मुस्कुरा कर कनक जी ने कहा.

“आपकी बेटी कहाँ हैं?”सुजाता ने चारों तरफ दृष्टि डाल कर पूछा.

“पिछले महीने उसकी शादी हो गई और पति के साथ लन्दन चली गई, अब तुम्हें उसकी जगह भरनी है.”

“ये तो हमारा सौभाग्य होगा. आपको माँ ही मानूंगी.” सच्चाई से सुजाता ने कहा.

“ठीक है, अभी तुम लोग आराम करो, रामू इन्हें इनका कमरा दिखा दो और रात का भोजन भी करा देना. सुजाता, तुम सवेरे आठ बजे स्कूल चली जाना वहां मिस नाथ तुम्हें तुम्हारी कक्षाएं दिखा देंगी. वह जूनियर स्कूल की इंचार्ज हैं.”

“जी मैडम, हम ठीक समय पर पहुँच जाएंगे. माँ के लिए क्या आदेश है?

“अभी वह बीमारी से उठी हैं, उन्हें कुछ दिन आराम करने दो, अभी तुम लोगों के भोजन की व्यवस्था रामू ही करेगा, बाद में अगर तुम चाहो तुम स्वयं अपना भोजन बनाने को स्वतन्त्र हो.”

बहुत सवेरे सुजाता तैयार हो कर स्कूल पहुँच गई. एक नई राह पाकर चेहरे पर खुशी की आभा थी. मिस नाथ को अभिवादन कर के अपना परिचय दिया था. मिस नाथ स्नेह से उसे उसकी कक्षाओं में ले गईं और बच्चों से उसका परिचय कराया. बच्चों ने ज़ोरदार शब्दों में नमस्ते टीचर कहा तो सुजाता सकुचा गई, ये संबोधन उसके लिए नया जो था.

समय अविराम गति से चल रहा था. अपने सद्व्यवहार के कारण सुजाता और उसकी माँ दोनों ही कनक जी की विश्वासपात्र बन गईं. कनक जी ने सुजाता और शन्नो को पहिनने के लिए बेटी के सलवार-सूट और अपनी कुछ अच्छी धोतियाँ दे कर प्यार से कहा-

“शहर और स्कूल में अच्छे कपडे पहिनने होते हैं, इन्हें लेने में संकोच मत करो. इन्हें प्यार से दे रही हूँ.”

“आपने हमारी इतनी मदद की है, हमें मुश्किल के समय सहारा दिया है, आपकी दी हुई चीज़ें सिर आँखों. आपके कारण हम सम्मान से रह पा रहे हैं. हम आपके बहुत आभारी हैं.”शन्नो ने कहा.

अब सुजाता की माँ कनक जी को बेड टी देने से ले कर उनका मनपसंद नाश्ता और लंच-डिनर भी बनाने लगी थीं. सुजाता और उसकी माँ अब घर के सदस्यों जैसी बन गई थी. सजल कभी यूनीवर्सिटी से लौटते समय या अवकाश के दिन सुजाता और उसकी माँ से मिलने जाता रहता था. सुजाता के अनुपम भोले सौंदर्य उसकी सच्चाई और मीठे स्वभाव के प्रति उसके मन में आकर्षण था. उसकी प्रथम छवि उसके कंप्यूटर पर ही नहीं उसके मन में भी अंकित थी, पर सुजाता के सम्मुख कुछ भी कहने का साहस नहीं था. सुजाता उसे आदर और सम्मान की दृष्टि से ही देखती थी. उसकी नज़रों में सजल उनके लिए भगवान् सदृश्य था जिसने उसे नई ज़िंदगी दी है, उसे सम्मान ही दिया जा सकता है. सुजाता की माँ अपने सीमित साधनों में सजल की खातिर करने में कोई कमी नहीं रखती थी. दोनों का रोम-रोम सजल का आभारी था.

एक दिन सजल के आने पर शन्नो ने सजल से कहा -

“सजल बेटा, तुम ही इस सुजाता को समझाओ, सारे दिन स्कूल-कॉलेज करने के बाद इसी छोटे से कमरे में कैद बैठी रहती है. बाहर की खुली हवा में भी तो जाना ज़रूरी है. इसके मन में डर बैठ गया है कहीं कोई इसे पहिचान ना ले.”

“आप ठीक कहती हैं, मौसी. इस तरह डरने से ज़िंदगी नहीं काटी जा सकती. चलो सुजाता, आज हम पास वाला पार्क देखने चलेंगे. बसंत ऋतु है, रंग-बिरंगे फूलों से पार्क की शोभा देखते ही बनती है. तुम्हें भी तो फूलों से प्यार है.”सजल ने खुशी से कहा.”

“नहीं, हम नहीं जा सकते. आज लड़कियों की परीक्षा की कापियां जांचनी हैं.”सुजाता ने बहाना बनाया.

”अरे वो तो तुम्हारा रोज़ का कम है, पार्क से एक घंटे में लौट आएँगे. ये बहाना नहीं चलेगा.”

“सजल बेटा ठीक ही तो कह रहे हैं, ऐसे मुंह छिपा कर कब तक बैठी रहेगी.. तू अपने बाबूजी की बहादुर बेटी है, वह तुझ पर नाज़ करते थे, अपने डर को तो हराना ही होगा.”

“ठीक कहती हो, माँ. हम भूल गए थे कायर कभी सफल नहीं हो सकते. चलिए सजल जी.”सुजाता में अचानक उसका खोया साहस जाग उठा.

बाग़ अपने पूरे यौवन पर था.चारों तरफ रंग-बिरंगे फूलों का मेला सजा हुआ था. तितलियाँ उन पर कभी बैठतीं और कभी उड़ जातीं. सुजाता का चेहरा खुशी से चमक रहा था. सजल उसे मुग्ध दृष्टि से निहारने से अपने को नहीं रोक सका. अचानक सुजाता बोल उठी-

“इतने सुन्दर फूलों को लोग क्यों तोड़ते हैं. शाखों पर झूलते फूल कितने अच्छे लगते हैं.”

“मुझे तो यही पता है कि प्रेमिका अपने प्रेमी से ऐसे ही फूलों की अपेक्षा रखती है. प्रेम जताने के लिए इन फूलों से अच्छा और कौन सा तरीका है?”मुस्कुराते सजल ने सुजाता को देखा.

“प्रेम जताने के लिए क्या किसी सहारे की ज़रुरत होती है, वो तो अपने आप पता चल जाता है. मुझे तो फूल तोड़ने वाले अपराधी लगते हैं. फूलों को भी शाख पर पूरा जीवन जीने का अधिकार है.” फूलों को प्यार से निहारती सुजाता ने सच्चाई से कहा.

“बच गया.” सजल धीमे से बुदबुदाया.अभी कुछ देर पहले वह एक फूल तोड़ सुजाता को देने वाला था. मन में तो था वो फूल सुजाता की लंबी वेणी में लगा पाता.

“कुछ कहा आपने?”कजरारे नयन उठाकर सुजाता ने पूछा.

“नहीं, सोच रहा था, तुम प्रेम के बारे में इतना सब कैसे जानती हो?”

“हमने किताबों में पढ़ा है. बाबूजी हमारे लिए अच्छी-अच्छी कहानियों की किताबें लाते थे. हमें मन्नू भंडारी, प्रेमचंद, शरत चन्द्र की कहानियां बहुत अच्छी लगती थीं. गुलेरी जी की कहानी ‘उसने कहा था’ और धर्मवीर भारती जी की ‘गुनाहों का देवता’ पढ़ कर हम हम बहुत रोए थे” भोले चेहरे पर उदासी स्पष्ट थी.

“उन कहानियों में ऐसा क्या था जिसने तुम्हें रुला दिया.”

“आप जब खुद पढ़ेंगे तब जान सकेंगे. आपस में इतना प्यार करने वाले अंत में मिल नहीं सके.”

“इस दुनिया में सब कुछ मनचाहा तो नहीं मिल सकता,सुजाता.”अचानक सजल गंभीर हो उठा.

“आपकी यूनीवर्सिटी में तो बहुत ऎसी किताबें होंगी .क्या हमें पढने को मिल सकती हैं?”दो उत्सुक नयन सजल के चेहरे पर निबद्ध थे.

“हाँ, किताबें तो बहुत होंगी,पर मुझे उनके बारे में कुछ पता नहीं है. कभी तुम मेरे साथ चल कर लाइब्रेरी से खुद किताबें चुन लेना.”

“क्या ये सच हो सकता है? परीक्षा के बाद हमारी छुट्टी है, क्या हम आपके साथ चल सकते हैं?”

“पहले कहानियां छोड़ कर परीक्षा की तैयारी करो. फर्स्ट डिवीजन आने पर तुम्हें यूनीवर्सिटी में आसानी से एडमीशन मिल सकेगा.”सजल ने गंभीरता से कहा.

“यूनीवर्सिटी की पढाई का तो बहुत खर्चा होगा?स्वर में चिता थी .

“अच्छे नंबर आने पर ज़रुरतमंद विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप मिल सकती है. वैसे तुम्हारे स्टूडेंट्स तुम्हारी टीचिंग से बहुत खुश हैं और कई स्टूडेंट्स तुमसे ट्यूशन भी लेना चाहते हैं. खर्चे की चिता छोड़ दो.”विश्वास से सजल ने समझाने के अंदाज़ में कहा.

अचानक सुजाता को भान हुआ संध्या गहराने लगी थी. एक-दूसरे के साथ बातों में समय का उन्हें ध्यान ही नहीं रह गया था.

‘”बहुत देर होगई, माँ परेशान होंगी. हमें घर चलना चाहिए.”

“माँ जानती हैं मै तुम्हारे साथ हूँ, वह परेशान नहीं होंगी.”

दूसरे दिन यूनीवर्सिटी लाइब्रेरी में सजल ने जब “गुनाहों का देवता” उपन्यास की मांग की तो लाइब्रेरियन चौंक गया, मज़ाक में पूछा-

“क्या बात है प्रोफ़ेसर साहिब,हिस्ट्री छोड़ कर अब हिन्दी विषय पढ़ाने वाले हैं?” मै बदनाम हो जाऊंगा.”

“मुझे नही, किसी और को पढने के लिए चाहिए. वैसे ऎसी ही कुछ और किताबें भी दे सकते हैं?”

“पता नहीं, इस उपन्यास में ऐसा क्या है, लडकियां इसके पीछे दीवानी हैं, अभी कुछ किताबें लडकियां रिटर्न कर के गई हैं, आप देख सकते हैं.”

गुनाहों का देवता के साथ कुछ और किताबें लेकर सजल सुजाता के घर पहुंचा था. किताबें देख कर सुजाता खुशी से खिल उठी. किताबों के पृष्ठ पलटती सुजाता को देख कर उसकी माँ ने कहा

“बस अब पढाई भूल कर ये कहानियां पढेगी. पहले भी इसका यही हाल था, इसके बाबूजी कहते थे, किताबें पढने से दिमाग की खिड़कियाँ खुलती हैं, लिखने की स्टाइल आती है.”

“हाँ माँ, इसीलिए तो हम क्लास में हमेशा फर्स्ट आते थे,”कुछ गर्व से सुजाता ने कहा.

“अब इस परीक्षा में ये बात सिद्ध करनी है, सुजाता वरना मै बदनाम हो जाऊंगा, किताबें जो लाया हूँ.”सजल ने परिहास किया.

“आपको निराश नहीं करूंगी.”सुजाता ने सच्चाई से कहा.

“ठीक है, कुछ दिनों के लिए पापा के कुछ काम देखने के लिए गाँव जा रहा हूँ,लौट कर मिलूंगा.”

दिन बीत रहे थे, सुजाता की परीक्षा समाप्त होगई. उसे पूरा विश्वास था, उसे फर्स्ट डिवीजन मिलेगी. अब उसकी आँखों में सपने आने लगे थे. उन सपनों में सजल का विश्वासपूर्ण चेहरा अनायास ही कौंध जाता था. सुजाता सोचती शायद उसकी वजह सजल की उसके लिए की गई सहायता थी. परीक्षा समाप्त होने पर खाली समय काटने के लिए सजल द्वारा लाई गई किताबें पढती सुजाता को सजल याद आने लगता. उसकी कमी खलती, उसे सजल के आने की प्रतीक्षा रहती. लगता जैसे सजल के बिना ज़िंदगी में कोई आनंद ही नहीं रह गया था. उसकी अन्यमनस्कता देख शन्नो ने पूछा था-

“क्या बात है, सुजाता,किन ख्यालों में खोई रहती है? एक बात याद रख अपनी सीमा से आगे बढ़ने की मत सोच, सपने हमेशा सच नहीं होते.”माँ का मन जैसे बेटी के मन को पढ़ गया था.
“हम अपनी सीमा जानते हैं, माँ, कभी अपनी सीमा नहीं भूल सकते.” उदासी से सुजाता ने जवाब दिया.

बीस दिनों बाद सजल को देख सुजाता का चेहरा फूल जैसा खिल गया .उतावली सी बोली-

“आपने इतने दिन लगा दिए, आपने तो कहा था कुछ दिनों को जारहा हूँ.”

“पन्द्रह-बीस दिन कुछ ही दिन होते हैं, सुजाता, क्या मुझे मिस कर रही थीं.’’ मुस्कुराते सजल ने पूछा.

‘हाँ --नहीं, असल में आप जो किताबें लाए थे वो पढ़ लीं, इसलिए बोर होरहे थे.”सुजाता ने बात बनाई.

“ठीक है, पर मैने तुन्हें सच में मिस किया.”सुजाता को गहरी दृष्टि से देखते सजल ने कहा.

“अरे सजल बेटा, कब आए? कल शिवरात्रि है सो कुछ फलाहार की सामग्री लाने गई थी.”बाहर से आई शन्नो ने हाथ का झोला रख कर कहा.

“अरे वाह, तब तो आपके हाथ का बना प्रसाद मुझे भी मिलेगा.” सजल ने खुशी से कहा.

‘ज़रूर, पर तुम्हारे घर जैसा प्रसाद हम कहाँ बना पाएंगे. हम तो बस कुछ हल्का सा नाम का बना लेते हैं. पहले तो हम मन्दिर में जाकर शिव जी की पूजा करके प्रसाद लेते थे, पर अब तो सुजाता मन्दिर जाने के नाम से भी डरती है.”उदास स्वर में शन्नो ने कहा.

“अरे ये क्या बात हुई, इसी बात पर कल आप दोनों को अपने मन्दिर ले चलूँगा. आप तैयार रहिएगा.”

“नहीं, हम उस मन्दिर में नहीं जाएंगे. आप माँ को ले जाइएगा.”सुजाता ने डरी आवाज़ में कहा.

“कम-ऑन सुजाता, तुम अपने अतीत को कब तक ढोती रहोगी? कल हम उसी मन्दिर में जाएंगे, तैयार रहना. मजाल है मेरे साथ कोई तुम्हे कुछ कह सके.”सजल ने दृढ स्वर में कहा.

“अगर किसी ने हमें पहिचान लिया तो?”सुजाता शंकित थी.

“तुम अपनी नई पहिचान और अपना नया परिचय भूल रही हो, गुरुआनी जी.” सजल ने परिहास किया. दूसरे दिन शन्नो सवेरे से ही तैयार होगई. शंकित मन से सुजाता भी जाने को तैयार थी. निश्चित समय पर सजल आ गया. मन्दिर के बाहर ही शन्नो ने श्रद्धा से हाथ जोड़, मन्दिर में प्रवेश किया.

मन्दिर में भक्त भारी संख्या में उपस्थित थे. शिव जी को दूध से स्नान कराने के लिए होड़ लगी हुई थी. चरणदास सबको आरती लेने का सौभाग्य दे रहा था. आरती लेने के लिए स्त्री और पुरुषों की अलग पंक्तियाँ बनी हुई थीं. सुजाता की चांस आने पर जब उसने एक पांच रूपए का नोट रख कर आरती लेने का उपक्रम किया तो उसे गहरी नज़र से देखता चरण दास उसे पाहिचान गया.

“अरे वाह, तेरा तो रंग-रूप और पहिनावा ही बदल गया. लगता है आजकल रात में बहुत कमाई हो रही है. ऐसे घटिया काम करके मन्दिर को अपवित्र करते शर्म नहीं आती?” चरण दास ने जोर से कहा.

“कैसा काम, क्या कह रहे हो भाई?” लोगों की उत्सुकता बढ़ गई.

“अरे शराबखाने की नचनिया है. गंदी कमाई करती है.”घृणा से चरण दास ने सूचना दी.

“इसे बाहर निकालो, ये मन्दिर गंदा कर देगी, बाहर निकालो.” समवेत स्वर गूंजे.

पुजारी जी के पास अपने पापा द्वारा मन्दिर के लिए भेजी गई धनराशि का चेक देने गए सजल को शोर सुनाई दिया. चेक पुजारी जी को देकर सजल लोगों की भीड़ के पास पहुंचा. सुजाता की आँखों से बहते आंसू देख सजल सब समझ गया.

“क्या बात है, आप लोग मन्दिर में शोर क्यों मचा रहे हैं?” सजल ने कड़ी आवाज़ में पूछा.

“भैया जी,ये लोग इस नचनिया को मन्दिर में आने पर शोर मचा रहे हैं.”डरते हुए चरण दास ने कहा.

“ऎसी बकवास करते शर्म नहीं आती? खबरदार जो एक भी शब्द और निकाला.”सजल ने क्रोध से कहा.

“अरे भाई, आप नहीं जानते. चरण दास सच कह रहा है. हमने भी इसका नाच देखा है. क्या गज़ब का नाचती है. आजकल दिखाई नहीं देती. अपना नया नाच घर बता दे, हम दीवाने पहुँच जाएंगे.”घृणित दृष्टि और शब्दों से एक व्यक्ति बोला. बात समाप्त होते ही सजल का ज़ोरदार तमाचा उस व्यक्ति के गाल पर पडा था.

“बकवास बंद करो. अभी बताता हूँ ये कौन है.”चरण दास की आरती की थाली से कुमकुम उठा, सजल ने सुजाता की सूनी मांग को रंग दिया. लोग स्तब्ध देखते रह गए.

“अब याद रखना, ये मेरी पत्नी सुजाता है. आपमें से कई लोगों के बच्चों को शिक्षा देकर उनका जीवन सुधार रही है. एक महिला का अपमान करते हुए आपको शर्म आनी चाहिए. अगर आपकी ऎसी ही भावनाएं हैं तो इस मन्दिर में आकर इसकी पवित्रता नष्ट करने आने का आपको अधिकार नहीं है. निकल जाइए यहाँ से- - - .” स्तब्ध लोग सजल के आवेश में तमतमाए मुख को देख बाहर जाने लगे.

“ये क्या किया बेटा? ऐसा करना ठीक नही हुआ. तुम्हारे परिवार में इसको स्वीकार नहीं किया जाएगा.”भयभीत स्वर में शन्नो ने सच्चाई कही.

“आप परेशान ना हों, आप और सुजाता घर जाइए. अपने परिवार वालों से मिल कर स्थिति स्पष्ट कर के आता हूँ. मुझे विश्वास है, वे लोग समझ जाएंगे.”अपनी बात समाप्त कर सुजाता पर एक दृष्टि डाल सजल तेज़ी से चला गया.

स्वप्नवत सुजाता माँ के साथ घर पहुंची थी. अचानक ये क्या हो गया. बह सोच रही थी, उसका अपमान सजल को सहन नहीं हो सका और उसी आवेश में सजल जो कर बैठा, वह सत्य नहीं हो सकता. सजल ने जो किया वो बस कुछ क्षणों का उन्माद भर था, उसमें प्यार तो संभव ही नहीं है.अब सुजाता क्या करे?शन्नो भी बेटी के बहते आंसू देख स्थिति समझ रही थी. काश वे दोनों मन्दिर गई ही ना होतीं

उधर सजल के घर पहुँचने के पहले कुछ शुभचिंतकों द्वारा खबर नमक मिर्च लगा कर पहुंचा दी गई थी.सजल को देखते ही उसे घर में कदम भी ना रखने के लिए पिता दहाड़ उठे.

“तुझ जैसे कुल कलंकी के लिए अब इस घर में कोई जगह नहीं है. हमारे लिए तू मर गया. खबरदार जो इस घर में कदम भी रखा.”

“पापा आप गलत समझ रहे हैं, सुजाता एक अच्छे परिवार की लड़की है. यहाँ के स्थानीय स्कूल में अपनी पढाई के साथ छोटी कक्षाओं में पढाती भी है.”

“बकवास बंद कर, सारी सच्चाई जानता हूँ. मेरी आँखों के सामने से हट जा वरना मै जहर खा कर अपनी जान दे दूंगा. यही दिन दिखाने के लिए शहर - -“आवेश में शब्द अटक गए.

“पापा, आप शांत हो जाइए, मेरी बात तो सुन लीजिए- - - “सजल ने कुछ कहना चाहा.

“अब सुनने को क्या बाक़ी रह गया है,कुलकलंकी. जा उसी नचनिया के साथ नाच.”आवेश में उनका कंठ रुद्ध हो गया और वह गिर पड़े.

सजल द्वारा उन्हें उठाने के प्रयास में वह मूर्छित हो गए. डॉक्टर ने चेक- अप कर के बताया, उन्हें माइल्ड हार्ट अटैक पड़ गया था. उस स्थिति में उन्हें किसी प्रकार का सदमा नहीं लगना चाहिए वरना स्थिति गंभीर हो सकती है. डॉक्टर ने सजल को समझाया था, अच्छा हो वह झूठ में ही उनकी मनचाही बात स्वीकार कर ले, बाद में उनके स्वस्थ होने पर सच्चाई बता सकता है. होश आते ही सजल को सामने देख वह कुछ कहते उसके पूर्व ही सजल ने विनीत स्वर में कहा-

“मेरे अपराध को क्षमा कर दीजिए. उस लड़की से कोई संबंध नहीं रखूंगा. वह चली गई है.”

“सच कह रहा है? अगर ऐसा है तो पंडित जी से कल ही पूजा करानी होगी और तुझे प्रायश्चित करना होगा.”उनकी आवाज़ में संतोष था.

“जी पापा, आप जैसा कहेंगे करूंगा, पर आपको नहीं खो सकता.”सजल का स्वर दुखी था. मन में चिंता थी, न जाने सुजाता कैसी होगी, क्या सोच रही होगी. उसे समझाने जाना ही होगा. कुछ समय के बाद सब समस्या सुलझानी ही होगी. अब सुजाता उसकी पत्नी है, उसे उसका अधिकार मिलना ही चाहिए.

दो दिन बाद पिता के सो जाने के बाद सजल चुपचाप सुजाता से मिलने निकला था. मन शंकित था, न जाने सुजाता उसके विषय में क्या सोच रही होगी. उसे कायर समझ उससे नफरत तो नहीं कर रही होगी. जैसे भी हो, उन्हें पिता के स्वस्थ होने तक शांत रहना होगा.

सुजाता के घर दूसरा ही दृश्य था. उसे देखते ही शन्नो ढाढें मार रो पड़ी. रोते-रोते अस्फुट शब्दों में बता सकी कि मन्दिर से लौटने के बाद सुजाता एकदम चुप थी. दूसरी सुबह माँ के उठने के पहले ये चिट्ठी सजल के नाम छोड़ कर कहीं चली गई. अपना कोई पता भी नहीं दे गई.

“ना जाने कहाँ, कैसी होगी मेरी बेटी?” सजल को चिट्ठी देती शन्नो फिर रो पड़ी.

स्तब्ध सजल क वो कुछ पंक्तियाँ पढ़ गया-

“सजल जी,

आज अचानक अपने उच्च संस्कारों के कारण आप मेरा अपमान नहीं सह सके. जानती हूँ, यह घटना प्रेम के कारण नहीं बनी थी. आपके साथ प्रेम की कल्पना भी करने का दुस्साहस नहीं कर सकती. मेरी जगह कोई भी लड़की होती, तो आप उसके सम्मान की रक्षा के लिए वही करते जो आपने मेरे साथ किया. इस अचानक उत्पन्न स्थिति के कारण अपने को किसी भी प्रकार के बंधन में नही समझिएगा, मेरी ओर से आप हर बंधन से मुक्त हैं. आपने मुझे गर्त से निकाल कर नया जीवन दिया है, उसके लिए आजीवन आभारी रहूंगी.

जा रही हूँ, पर विश्वास दिलाती हूँ, कभी कोई कलंकित या अमानजनक कार्य नहीं करूंगी, मेरी स्मृति में आप सदैव सूर्य सदृश्य प्रेरक और प्रकाशित मार्गदर्शक रहेंगे. एक अनुरोध है यदि संभव हो माँ को मेरी कमी सहने की शक्ति दीजिएगा. मेरी खोज ना करने की प्रार्थना है, शायद इतने समय का ही साथ था.

विदा और प्रणाम,

सुजाता.

सजल स्तब्ध रह गया, उसने आने में विलम्ब कर दिया. काश वह सुजाता को बता पाता, वह घटना आकस्मिक नहीं थी, जो कुछ भी हुआ वो सजल के मन में सुजाता के प्रति प्रेम के कारण ही हुआ था. काफी पहले से वह अपने मन को जान गया था, वो सुजाता को बेहद चाहने लगा है, वह यह भी समझ गया था, सुजाता भी उसे चाहती है, पर समय और अवसर की प्रतीक्षा आवश्यक थी. काश अपने पिता को झूठी सांत्वना देने का अपराध न किया होता. शन्नो का रो-रो कर बुरा हाल था. इतनी मुश्किलों के बाद बेटी को राह मिली थी, अब न जाने कहाँ भटकेगी, न जाने किस समस्या का सामना करेगी. कनक जी को भी वह कुछ नहीं बता कर गई थ,सब परेशान थे.

“घबराइए नहीं मौसी. मै सुजाता को खोज लाऊंगा. वह मेरे ही कारण घर छोड़ कर गई है, मै ही उसे वापिस लाऊंगा.”दृढ़ता से अपनी बात कह कर सजल वापिस आया था.

दिन माह और लंबे चार वर्ष बीत गए, सजल की हज़ार कोशिशों के बावजूद सुजाता का कहीं कोई पता नहीं था. सजल के विवाह के लिए प्रस्ताव आ रहे थे, पर सजल ने दृढ़ता से कह दिया-

“पापा के जीवन के लिए मैने अपने मन के सत्य को नकारा है, विवाह मेरे लिए असंभव है.”

छुट्टी के दिन चाय के साथ उस दिन के न्यूज़ पेपर पर नज़र डालता सजल चौंक गया. उस अप्रत्याशित खबर को पढ़ते हुए सजल के चेहरे पर खुशी चमक उठी. सुदूर झारखंड के आदिवासी क्षेत्र में “मदर मार्था वेलफेयर होम ” में रहने वाली सुजाता शर्मा ने अपने अथक परिश्रम से न सिर्फ प्रथम श्रेणी में एम ए की परीक्षा उत्तीर्ण की है वरन प्रशासनिक सेवा में भी सफलता प्राप्त की है. अपने दुखद अतीत के कारण सुजाता जी, का संकल्प है कि वह अपने पद का सदुपयोग असहाय लड़कियों की सुरक्षा और सम्मान के लिए करेंगी.

खुशी से उमगता सजल शन्नो के पास पहुंचा था. अंतत:वह अपनी सुजाता को पा ही गया था.

“क्या यह सच हो सकता है, हमारी बेटी कलक्टर बन गई है?” खुशी से शन्नो की आँखें बरसने लगीं.

“हाँ, मौसी, अब जल्दी ही आप अपनी बेटी से मिल सकेंगी. उससे मिलने जा रहा हूँ.”

“पापा क्या आपके घर में एक कलक्टर बहू आ सकती है?”समाचार पत्र दिखाते सजल ने खुशी से पूछा.

“हमारे भाग्य में बहू का सुख कहाँ है, वो भी कलक्टर बहू कह कर क्या मज़ाक कर रहा है?”

“आप पहिचान नहीं रहे हैं, यह वही लड़की है, जिसके साथ मैने विवाह किया था और आपने उसके लिए अपशब्द कह कर घर में उसका प्रवेश निषिद्ध कर दिया था. आपकी जिन्दगी के लिए मै ने उसे खो दिया था. अब अपने अपराध के लिए उससे क्षमा मांग कर मुझे अपनी गलती का प्रायश्चित करना है. मै घर छोड़ कर जा रहा हूँ.”

“नहीं बेटा, मुझे इतना बड़ा दंड मत दे, मेरी भूल के कारण तू विवाह ना कर, जोगी बन गया है. मै खुद तेरे साथ चल कर उससे क्षमा मागूंगा. अपने बूढ़े पिता को अकेला मत छोड़ कर जा.”वह रो पड़े.

“नहीं, उसकी आवश्यकता नहीं है. मुझे अपनी सुजाता पर विश्वास है. उसका निर्णय मुझे मान्य होगा. वैसे भी उसे इस घर में ला कर उसका अपमान नहीं करूंगा” इतना कह कर सजल घर से चला गया.

“आप यहाँ, कैसे क्यों?”अचानक सजल को अपने सामने देख सुजाता चौंक गई. चेहरे पर खुशी की चमक आगई, पर अनजाने ही मुंह से ये शब्द निकले थे –

“कमाल है, लंबे चार वर्षों बाद अपने पति को देख कर यह कैसा प्रश्न, सुजाता? क्या इतने वर्षों तक मेरी याद नहीं आई?’सजल का स्वर व्यथित था.

“आप क्या आज भी एक झूठे बंधन को सत्य मानते हैं? आप भी जानते हैं उस दिन जो हुआ अचानक उत्पन्न परिस्थिति का परिणाम था, इसीलिए अपने पत्र में आपको बंधन-मुक्त कर आई थी. आपका परिवार मुझे कभी स्वीकार नहीं करेगा.”

“नहीं सुजाता, वो मेरे जीवन का सत्य था, अन्यथा आज तक तुम्हारी स्मृति में अविवाहित रह कर तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होता. तुम्हें अपने से ज़्यादा प्यार किया है और मुझे विश्वास था, मेरी प्रतीक्षा पूर्ण होगी. यह भी जानता हूँ तुम भी मुझे बहुत चाहती हो. तुम्हें बताना चाहता हूँ, मेरे परिवार में तुम्हारा स्वागत है, पिताजी को अपनी भूल पर पछतावा है..”विश्वासपूर्ण शब्दों में सजल ने कहा.

“मानती हूँ आपने मुझे नव जीवन दिया था, पर आपके जीवन में आपकी पत्नी बन कर रह पाना मेरी नियति नहीं है. मुझे क्षमा करें, यह सौभाग्य मेरा नहीं हो सकता. आपके मार्ग-दर्शन और प्रेरणा से अब तो मुझे अपनी राह मिल गई है, अब मै अपना जीवन सम्मान के साथ जी सकती हूँ.”शांत स्वर में सुजाता बोली.

“मुझे तुम्हारी सफलता पर गर्व है, तुम्हारी सफलता मेरा गौरव है. सुजाता. तुम्हारी मेधा और आत्मविश्वास पर मुझे विश्वास था पर क्या अपनी सफलता की कहानी मुझे नहीं सुनाओगी?”

“ज़रूर सुनाऊंगी, आज भी वह दिन कल की तरह से याद है.” कुछ पल के मौन के बाद सुजाता बोली

“झरते आंसुओं के सैलाब के साथ जो ट्रेन खड़ी थी , उसमें चढ़ गई थी. कम्पार्टमेंट में सिस्टर मारिया कुछ आदिवासी लड़कियों के साथ दिल्ली से लौट रही थीं. उन लड़कियों ने राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में ट्रॉफी जीती थी. मुझे आंसू बहाते देख सिस्टर सब समझ गईं तेज़ आवाज़ में कहा था-

“अपने आंसू पोंछ डालो, इन्हें बहा कर कुछ नहीं मिलेगा. अपनी लड़ाई तुम्हें खुद लडनी होगी. इन लड़कियों को देखो इन्होंने अपने साहस और दृढ निश्चय से आज अपनी मंजिल पा ली है. इन्होंने अपना दुःख, और अपने आंसू भुला कर नई सम्मानपूर्ण ज़िंदगी पाई है. मुझे यकीन है, हिम्मत से तुम अपना जीवन संवार लोगी. अगर चाहो तो हमारे साथ तुम “मदर मार्था वेलफेयर होम” चल कर नव जीवन पा सकती हो.”

उनकी बातों ने मुझे एक नई शक्ति दी थी. वर्षों पहले आदिवासी लड़कियों की दयनीय स्थिति देख कर मदर ने इस वेलफेयर होम की स्थापना की थी. आज तक न जाने कितनी लड्कियाँ यहाँ अपना जीवन संवार चुकी हैं. “मदर मार्था वेलफेयर होम” में अपनी पढाई करने के साथ छोटी लड़कियों को पढ़ाते हुए अपना अतीत भुला रही थी, पर माँ और आपकी याद बेचैन करती थी.”अचानक सुजाता मौन हो गई.

“हाँ शन्नो मौसी ठीक हैं और अब तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं. वैसे यह मेरी खुशकिस्मती है कि तुम मुझ नाचीज़ को भी याद करती थीं..”सजल ने हंसते हुए कहा.“

“आप ही तो मेरे प्रेरक थे अन्यथा मुझमें इतना साहस कहाँ से आता? सिस्टर ने सलाह दी थी, अपने अतीत के अपमान को धोने के लिए हाथ में कोई शक्ति होनी आवश्यक है, तभी मैने निर्णय लिया कि प्रशासक के रूप में यह कार्य करना संभव होगा. असहाय और दुखद स्थिति में जीने के लिए विवश हुई स्त्रियों को सम्मान दिलाना मेरे जीवन का संकल्प होगा.” सुजाता के मुख पर विश्वास की चमक थी.

‘’ तुमने नारी शक्ति को सार्थक किया है. तुमसे एक सच जानना चाहता हूँ , तुम्हें अपनी पत्नी बना कर अकेला छोड़ आया क्या मुझे मेरे उस अपराध की क्षमा नहीं मिल सकेगी, सुजाता?” सजल का स्वर आहत था.

“आप किस अपराध की बात कर रहे हैं? आप तो मेरे आराध्य हैं, आज आपकी ही प्रेरणा से यहाँ तक पहुंच सकी हूँ. आपकी अपराधिन तो मै हूँ जो आपको अपना पता बताए बिना इतनी दूर आगई.”

“तो सच कहो, मुझ पर विश्वास तो करती हो, सुजाता?”गंभीर स्वर में सजल ने सवाल किया.

“अपने से ज़्यादा, आप पर विश्वास है. आपके विश्वास ने ही तो मुझे यहाँ तक पहुंचाया है.”

“अगर ऐसा है तो मेरी बात मान लो. तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ, हम दोनों अपने –अपने कार्य - क्षेत्र में पूरी सच्चाई के साथ अपने कर्तव्यों को पूर्ण करेंगे.हमारा विवाह हमें अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होने देगा दूर रह कर भी हम ज़रुरत के समय हमेशा साथ होंगे और भाग्य से जब भी हम दोनों को साथ होने के अवसर मिलेंगे तो जीवन का पूरा आनंद लेंगे. बोलो क्या तुम्हे, मेरा प्रस्ताव स्वीकार है?”सजल की विश्वास पूर्ण दृष्टि सुजाता के मुख पर निबद्ध थी.

“आपके शब्दों पर अविश्वास कैसे कर सकती हूँ ?आज तो अपने भाग्य से ही ईर्षा हो रही है. सपने भी सच हो सकते हैं, ये आज ही जान सकी हूँ.” सुजाता के सुन्दर मुख पर खुशी की चमक थी.

“तो चलो हम अपना नव जीवन शुरू करने के पहले अपने परिवार वालों का आशीर्वाद ले लें. इतना ही नहीं, उसी मन्दिर में कलक्टर सुजाता का सम्मान-समारोह आयोजित किया जाएगा जहां कभी तुम जाने से भी डरती थीं. मुझे विश्वास है तुम मजबूर लडकियों की प्रेरणा बन कर उन्हें नव जीवन दे सकोगी.मै हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ.”सजल के मुख पर दृढ़ता थी.

प्यार से सुजाता का हाथ थाम सजल ने उसके माथे पर झूल आई लट हटा चुम्बन अंकित कर दिया. उदित हो रहे सूर्य की रश्मियों ने सुजाता के लाज से लाल पड़े कपोलों की लालिमा और बढ़ा दी.



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