शहर के नामी मेडिकल कॉलेज के वार्षिकोत्सव में प्रसिद्ध उद्योगपति वयोवृद्ध शशि कान्त जी मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे. पिछले तेइस वर्षों से शशि कान्त जी अपने दिवंगत पुत्र रवि कान्त की स्मृति में मेडिकल कॉलेज के सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी को ‘सूर्य- सम्मान’ के नाम से स्वर्ण पदक तथा इक्यावन हज़ार रुपयों की धनराशि पुरस्कार के रूप में प्रदान करते आए हैं. परम्परा के अनुरूप कॉलेज की प्राचार्या ने मंच पर आकर घोषणा की-
“मुझे यह घोषित करते हुए बहुत प्रसन्नता है कि इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का पुरस्कार दिव्या कान्त को दिए जाने का निर्णय लिया गया है. दिव्या ने पिछले पांच वर्षों का रिकार्ड तोड़ कर सर्वोच्च अंक प्राप्त किए हैं. दिव्या, कृपया मंच पर आ कर अपना पुरस्कार ग्रहण करें.”
सधे कदमों से दिव्या मंच पर पहुंची थी. सौम्य शांत चेहरे पर गंभीरता थी, तालियों की गूँज के मध्य शशि कान्त जी की दृष्टि दिव्या को दिए जाने वाले प्रमाणपत्र पर पड़ी थी. अचानक उनके चेहरे के भाव बदल गए. दिव्या को देख कर जैसे वह कहीं खो से गए थे.अचानक सजग हो वह दिव्या से पूछ बैठे-
“तुम्हारी इस सफलता के पीछे क्या तुम्हारे पापा की प्रेरणा है?”
“यह मेरा दुर्भाग्य है कि मेरे जन्म के पहले ही मेरे पापा एक दुर्घटना में इस संसार से चले गए, पर उनकी तस्वीर मुझे हमेशा प्रेरणा देती रही.” दिव्या का सुन्दर चेहरा अवसादपूर्ण था.
कांपते हाथों से दिव्या को पुरस्कार देते शशि कान्त जी थके से कुर्सी पर बैठ गए.पास बैठी प्राचार्या ने धीमे शब्दों में उन्हें बताया-
“दिव्या की माँ ने समाज की तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए बेटी को जन्म दिया और अपनी मेहनत और आत्मविश्वास से बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाया है.”
“क्या इस समय दिव्या की माँ इस समारोह में उपस्थित हैं?”
“काश आज वह जीवित होतीं और बेटी का सम्मान देख पातीं. एक वर्ष पहले उनकी कैंसर से मृत्यु हो गई एक प्रसिद्ध अमरीकी कॉलेज में कैंसर पर रिसर्च करने के लिए दिव्या को स्कॉळरशिप मिली है. दो महीने बाद वह अमरीका जाने वाली है. हमें दिव्या पर गर्व है” प्राचार्या के चेहरे पर सच्ची खुशी थी.
घर लौट कर शशि कान्त जी अनमने से पलंग पर लेट गए. पलंग के ठीक सामने अपने बेटे रवि की तस्वीर पर उनकी दृष्टि निबद्ध थी. मेडिकल कॉलेज की सर्वश्रेष्ठ छात्रा होनहार डॉक्टर दिव्या, उनके अपने पुत्र रवि की बेटी है. दोनों के चेहरों में कितना साम्य है. रवि जैसा ही तेजस्वी चेहरा, वही दृढ़ता और गंभीरता. इतने वर्षों में उन्होंने कभी यह जानने की भी कोशिश नही की, उनके रवि का खून कहाँ और कैसे पल्र रहा है. आज दिव्या को देख कर उनके मन में ममता का ज्वार क्यों उमड़ रहा है. पिछले तेइस वर्षों की घटनाएं आँखों के सामने चलचित्र की तरह से क्यों साकार होती जा रही हैं. ऐसा लग रहा है जैसे वो कल की ही बातें हों. यह सच है उन्होंने कभी जानने की कोशिश नहीं की कि वे दोनों माँ बेटी कैसे जी रही हैं, पर लोग सुना जाते, रवि की बेटी अपने पिता की तरह मेधावी है, हर परीक्षा में प्रथम आती है, ये सब सुन कर भी कब उनका दिल उसे देखने को उमड़ा था?
रवि ने ही उन्हें बताया था कैसे उसकी और और पूजा की पहली भेंट कॉलेज की डिबेट में हुई थी.
हॉल में विद्यार्थियों की भीड़ थी. बोर्ड पर डिबेट का विषय “कॉलेज में लड़कियों के एडमीशन के लिए पन्द्रह प्रतिशत सीट आरक्षित होनी चाहिए” स्पष्ट लिखा हुआ था .विषय के पक्ष और विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत करने थे. विषय को ले कर विद्यार्थियों के बीच काफी उत्तेजना थी.लडकियां पक्ष में और लड़के विपक्ष में अपने-अपने तर्क दे रहे थे. पूजा के मंच पर आते ही एक लड़के ने रिमार्क कसा-
“ये लो लड़कियों की वकालत करने उनकी लीडर आ गई, लड़की होने का फ़ायदा इन्हें भी तो मिलेगा.”
सधी आवाज़ में पूजा ने अपनी बात कहनी शुरू की-
“आरक्षण की बैसाखी के सहारे कॉलेज में प्रवेश क्यों? जिस तरह से मखमल पर टाट का पैबंद खटकता है, वैसे ही आरक्षण के सहारे प्रवेश लेने वाली लड़की सबकी आँख की किरकिरी बन जाएगी. नहीं, मुझे दया की भीख कतई स्वीकार नहीं है. मै ज़ोरदार शब्दों में लड़कियों को किसी भी तरह का आरक्षण दिए जाने का विरोध करती हूँ” लड़कों में सन्नाटा छा गया. लड़कियों के चेहरे तमतमा आए.
“अरे बड़ी-बड़ी बातें बनाना बहुत आसान बात है, वक्त पड़ने पर देखेंगे.”आशा ने व्यंग्य से कहा.
एक लड़के ने सवाल कर डाला-
“इसका मतलब इस कॉलेज में क्या आपने बिना किसी सिफारिश या डोनेशन के एडमीशन लिया है? सब जानते हैं इस कॉलेज में या तो डोनेशन या सिफारिश से एड्मीशंन किए जाते हैं या नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक वालों को चांस मिलता है.”
“मुझे हर विषय में नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक मिले हैं, निश्चय ही मेरे एडमीशन का आधार मेरी योग्यता ही थी.”पूजा ने शान्ति से जवाब दिया.
सबने आश्चर्य से पूजा को देखा तो यही है वह लड़की जिसे पूरे राज्य में सेकण्ड पोजीशन मिली है.
हिस्ट्री विषय में शोध कर रहे रवि कान्त ने अपने स्थान पर खड़े हो कर पूजा का तालियों से अभिनन्दन किया. अब अन्य विद्यार्थियों ने भी रवि का साथ दिया. केवल कुछ लडकियां ही अप्रसन्न दिखीं. सर्व- सम्मति से पूजा को प्रथम पुरस्कार प्रदान किया गया.
दूसरे दिन कक्षा से बाहर आती पूजा को बधाई देने के लिए रवि उसकी प्रतीक्षा कर रहा था.
“आज एक बार फिर आपको बधाई दे रहा हूँ, आपके विचारों से बहुत प्रभावित हुआ हूँ. काश हर लड़की की सोच आप जैसी ही होती.”मुस्कुराते हुए एक गुलाब का फूल पूजा को देते हुए रवि ने कहा.
’”धन्यवाद, पर आपने तो कल ही तालियाँ बजा कर मेरी जीत पर मोहर लगा दी थी.”फूल लेती पूजा ने सहास्य कहा.
“आप तो अपराजिता हैं, व्यक्तिगत लाभ का मोह कितने लोग ही छोड़ पाते हैं.”मुग्ध रवि ने कहा.
दूसरे दिन क्लास के हंसोड़ सहपाठी मनोज ने ब्लैक बोर्ड पर पूजा के चरणों पर सिर धरे रवि का चित्र बना रखा था. पूजा के हाथों में सरस्वती की तरह वीना थी. लड़कों के ठहाकों पर पूजा की सहेली मानसी ने चित्र पर आपत्ति जताई, पर पूजा ने शांत स्वर में कहा-
“देवी सरस्वती के चरणों में तो सभी विद्यार्थी नत मस्तक रहते हैं. ठीक कहती हूँ न, मनोज?””
पूजा की बात सुन कर मनोज ने स्वयं ही चित्र मिटा दिया
क्लास के बाहर रवि पूजा की प्रतीक्षा कर रहा था.एम् ए का टॉपर रवि कान्त हिस्ट्री विषय में पीएच डी कर रहा था. वह विभागाध्यक्ष का प्रिय विद्यार्थी था. अपनी योग्यता के कारण रवि पार्ट टाइम लेक्चरार के रूप में भी कार्य कर रहा था. शोध कार्य पूरा होने पर उसकी स्थायी नौकरी पक्की थी.’
“अरे आप, क्या अब रोज़ बधाई देने आ कर अपना समय व्यर्थ करेंगे?”
“आपसे मिलने से समय व्यर्थ नहीं होता बल्कि बन जाता है. आपसे प्रेरणा जो मिलती है.”
“”ये लो, हमारे मजनूँ मियाँ अपनी लैला से मिलने आ गए. एक दिन में ऎसी दीवानगी?”मनोज ने आवाज़ कसी.
“क्या बकवास है, अभी इसका दिमाग ठीक करता हूँ. सीनियर्स से ऐसे बात की जाती है.”रवि उत्तेजित था
“जाने दीजिए, उसकी मज़ाक करने की आदत है. वैसे कहिए क्या आज मुझसे कोई काम है?”शान्ति से पूजा ने पूछा.
“आपकी इतनी बड़ी विजय को सेलीब्रेट करना चाहता हूं.आपके साथ एक कप कॉफी की रिक्वेस्ट है.”
“माफ़ कीजिए रवि जी, आपको अपने बारे में स्पष्ट बात बताना चाहूंगी. मै एक निर्धन विधवा माँ की बेटी हूँ. मेरी माँ ने बहुत मेहनत कर के मुझे यहाँ तक पहुंचाया है. मै ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिससे मुझ पर या मेरी माँ पर कोई उंगली उठा सके. आपके प्रस्ताव के लिए आभारी हूँ, पर आपके साथ कॉफी के निमंत्रण के लिए नहीं जा सकती.”
“आपकी इस बात से मेरे मन में आपके लिए और भी आदर बढ़ गया. यकीन कीजिए कभी ऎसी कोई बात नहीं करूंगा जो आपके सम्मान को चोट पहुंचाए. आपके साथ नि:स्वार्थ मित्रता का अनुरोध तो कर सकता हूँ.”रवि की आशा भरी नज़र पूजा के चेहरे पर निबद्ध थी.
“मेरा कोई शत्रु नहीं है, यदि आपकी मित्रता सीमा में रहे तो मुझे मंजूर है.”मीठे स्वर में पूजा बोली.
“मंजूर है, आपका हिस्ट्री में आनर्स कोर्स का फाइनल है, अगर कभी कोई ज़रुरत हो तो आपकी मदद करने में खुशी होगी. मै भी इतिहास विषय में ही शोध कार्य कर रहा हूँ.”
“अरे ये तो बड़ी अच्छी बात है, अगर आपके पास पुराने नोट्स और कुछ किताबें हों जो मेरे काम आ सकें उन्हें क्या मुझे दे सकते हैं?”पूजा के चहरे पर खुशी थी.’
“कल ही आपके पास आपके काम की सारी किताबें और नोट्स यहाँ पहुंचा दूंगा.”’
“नहीं आप यहाँ आने की तकलीफ ना करें, कल लाइब्रेरी में आपसे ले लूंगी.”
“ठीक है, कल इसी वक्त लाइब्रेरी में आपका इंतज़ार करूंगा.”रवि विदा ले कर चला गया.
पूजा को खुशी थी लाइब्रेरी में अक्सर सब किताबें मिल पाना आसान नहीं होता था. खरीदने के लिए माँ पर बोझ डालना उचित नहीं था. उसे याद है किस तरह उसके पिता की एक खान- दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. कारखाने के मालिक ने पिता को दोषी ठहरा, मुआवजे की रकम भी नहीं दी थी. उस दुःख की घड़ी मे भी माँ ने हिम्मत से काम लिया. स्कूल में बच्चों की देख-रेख करते हुए पूजा को बड़ा किया था. अपनी स्थिति देख कर उन्होंने पूजा को खूब पढ़ा कर आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लिया था. पूजा ने भी माँ को कभी निराश नहीं किया, स्कालरशिप और बच्चों की ट्यूशन लेकर हर परीक्षा में ऊंचे अंकों के साथ पास होती रही. आज माँ के त्याग और तपस्या की वजह से पूजा बी ए फाइनल में है. उसने सोचा है बी ए की परीक्षा पास करके वह कहीं कोई नौकरी कर के माँ को आराम देगी. माँ को अपने जीवन में बस दुःख ही मिला है.
रवि शहर के प्रसिद्ध उद्योगपति शशि कान्त जी का इकलौता बेटा था, बिरादरी में शशि कान्त जी का बहुत मान था.. शशि कान्त जी को अपने उच्च कुल-गोत्र का बड़ा अभिमान था. मन ही मन उन्होंने रवि का विवाह अपने धनी मित्र की बेटी कल्पना के साथ करने का निर्णय ले रखा था. शशि कान्त जी चाहते थे रवि उनके काम में हाथ बटाए, पर रवि को अध्यापन में रूचि थी, वह अपना शोध कार्य पूरा कर के लेक्चरार बनने का निश्चय कर चुका था.
अगले दिन क्लास खत्म होने पर पूजा लाइब्रेरी पहुंची थी, रवि पहले ही पहुँच चुका था. साथ में बैग में किताबें और नोट बुक्स थीं.. पूजा को देख वह हलके से मुस्कुरा कर खडा हो गया.
“ये क्या, आपसे छोटी हूँ, आप क्यों खड़े हो गए?”पूजा के स्वर में संकोच था.
“महिलाओं का सम्मान करना हर पुरुष का पुनीत कर्तव्य है.”रवि ने मुस्कुरा कर जवाब दिया.
किताबें और नोट्स देख कर पूजा की आँखों में चमक आ गई/
“आपने तो मुझे खजाना ला दिया. मुझे बताया गया है, आप अपने बैच के टॉपर थे, अब इन नोट्स की मदद से मुझे भी अच्छी पोजीशन मिल सकती है.” पूजा के कजरारे नैनों में खुशी थी.
“आपको इसके बदले में अपने घर में मुझे चाय पिलानी होगी.”रवि ने हंस कर कहा.
“मेरा घर आपके लायक नहीं है. हम किसी तरह से गुजर कर रहे हैं, उस पर माँ अक्सर बीमार रहती है.”पूजा के चेहरे पर उदासी के बादल घिर आए.
“जिस घर में आप जैसी तेजस्विनी रहती है, वह घर तो महान है. वैसे भी घर ऊंचे महलों से नही बनते बल्कि उसमे रहने वालों की भावनाओं और उनके आपसी प्यार से बनते हैं.”गंभीरता से रवि बोला.
“आपकी बातों से बहुत प्रेरणा मिलती है, धन्यवाद.”
“सिर्फ धन्यवाद से काम नहीं चलेगा, यहाँ पास में नन्दू का टी- स्टॉल मशहूर है. आपको चलना होगा.”
“अगर लोगों ने कुछ कहा तो ?”पूजा हिचक रही .
“आप यूनीवर्सिटी में पढती हैं, क्रांतिकारी विचार रखती हैं, पर लोगों से डरती हैं. मेरे साथ चलिए कोई कुछ कहने का साहस भी नहीं करेगा.बाद में आपको घर कार से ड्रॉप कर दूंगा.” रवि ने कहा.
“नहीं-नहीं उसकी ज़रुरत नहीं है, वैसे भी मेरे घर तक आपकी कार नहीं जा सकती. मै चली जाऊंगी.
चाय के स्टॉळ पर कुछ लडके-लडकियां चाय पीते हुए बातें कर रहे थे. मनोज भी उनमे से एक था.
“पूजा जी, रवि जी के साथ खूब छन रही है, हमें भी मौक़ा दीजिए आपके लिए आकाश के तारे तोड़ कर ला सकता हूँ” दूसरे दिन मनोज ने रिमार्क दिया.
“आकाश के तारे किस काम आएँगे, मनोज? टॉपर के साथ होने से उनकी नॉलेज काम आएगी, अगर चाहो तो तुम भी उनका ज्ञान पा सकते हो.” शान्ति से पूजा ने मसलाह दी.
उस दिन के बाद से रवि और पूजा अक्सर लाइब्रेरी में मिल जाते. पूजा रवि की योग्यता से अभिभूत थी. कठिन से कठिन प्रश्न के उसके पास हल होते थे. अब रवि के साथ बातें करने में पूजा को संकोच नहीं होता था. रवि उसे अच्छी पोजीशन लाने को प्रोत्साहित करता. एक दिन मनोज पूजा के पास फ्रेंडशिप बैंड ले कर आया और शैतानी से बोला-
“इस बैंड को स्वीकार कर लीजिए और हम दोस्त बन जाएंगे. वैसे रवि जी में कोई सुरखाब के पर तो नहीं लगे हैं. हमें भी आज़मा कर देखिए.”
बिना कुछ कहे पूजा ने मनोज के हाथ से फ्रेंडशिप बैंड ले कर मनोज की कलाई पर बाँध कर कहा-
“दोस्ती से ज़्यादा मजबूत राखी का बंधन होता है. आज से तुम मेरे भाई हुए, मनोज.”
“माफ़ करना, पूजा, मेरी कोई बहिन नहीं है, तुमने आज उसकी कमी पूरी कर दी. हमेशा भाई का फ़र्ज़ निभाता रहूँगा.”मनोज की आँखे भर आईं.
उस दिन के बाद से मनोज पूजा और रवि के साथ मिलता, बातें करता. उसे भी रवि से पढाई पर ध्यान देने की प्रेरणा मिल रही थी. अब तीनो अच्छे मित्र थे.
अचानक एक दिन रवि को अपने घर आया देख पूजा विस्मित रह गई.
“रवि जी, आप यहाँ., कैसे?”
“कमाल है तुम तो ऐसे डर रही हो, जैसे घर में कोई चोर घुस आया हो. याद है, वादा किया था, एक दिन तुम्हारे घर आऊँगा. अब अन्दर भी आने दोगी या बाहर से ही वापिस जाना होगा.”
“माफ़ कीजिएगा, आइए.” रवि को कमरे में आने के लिए जगह बनाने के उपक्रम में पूजा पीछे हट गई.
एक छोटे से कमरे में खाट पर पूजा की माँ लेटी थीं. एक ओर एक छोटी मेज़ पर पूजा की किताबें करीने से रखी थीं. पास में एक कुर्सी थी. साथ में लगी हुई रसोई भी रवि ने देख ली. छोटी सी जगह भी सुव्यवस्थित थी, कुर्सी आगे खीच पूजा ने रवि को बैठने को कह कर माँ से कहा-
“माँ ये रवि जी हैं. इन्होने अपनी किताबें और नोट्स दे कर मदद की है.”
“खुश रहो बेटा, इस लड़की की मदद कर ने वाला कोई और नहीं है.”माँ का कंठ भर आया.
“आप परेशान ना हों, ये खुद इतनी ज़हीन हैं, इन्हें किसी की मदद की ज़रुरत नहीं है. आपकी तबियत ठीक नहीं है, इसलिए आपको देखने चला आया.”शालीनता से रवि ने कहा.
“तुम्हारी बड़ी कृपा है, बेटा, वरना हमारी कौन परवाह करेगा. पूजा तुम्हारी बहुत तारीफ़ करती है.”
“अच्छा पूजा जी क्या हम सचमुच आपकी तारीफ के लायक हैं, आपको मुझमे क्या अच्छाई नज़र आती है?”रवि के चेहरे पर मुस्कान स्पष्ट थी.
“हम अभी आपके लिए चाय लाते हैं,” शर्म से लाल मुख के साथ पूजा रसोई में चली गई.
माँ से उनका दुःख-सुख सुनता रवि सोच में पड़ गया उतनी समस्याओं के बीच कैसे पूजा अपने विचारों में दृढ़ता और तेजस्विता सुरक्षित रख सकी है. उसके मन में पूजा के लिए एक अव्यक्त आकांक्षा जाग रही थी. उसका जी चाह रहा था उस भोली सी पूजा को अपनी सशक्त भुजाओं में ले कर कहे, तुम अकेली नहीं हो पूजा, मै तुम्हारे साथ हूँ. तुम मुझ पर अपने को सौंप कर निश्चिन्त रह सकती हो. पूजा के लिए मन में ढेर सारा प्यार और करुणा का ज्वार उमड़ रहा था. इतने अभावों के होते हुए भी
उसने कितने साहस के साथ लड़कियों के लिए आरक्षण का विरोध किया था. उस दिन के बाद से रवि पूजा से अक्सर मिलता, कोई क्या कहेगा, इसकी उसे कतई परवाह नहीं थी. अब तक वह अपने मन का सत्य जान गया था, उसे पूजा से प्यार हो गया था.
रवि का शोध कार्य पूरा हो गया था.पीएच डी की डिग्री के साथ ही उसे यूनीवर्सिटी में लेक्चरार के रूप में जॉब भी मिल गया. उसके शोध- कार्य को बहुत प्रशंसा मिली थी. विभागाध्यक्ष ने बधाई देते हुए कहा-
“रवि, अगर तुम चाहो अमरीका की किसी यूनीवर्सिटी में जॉब ले कर बेहतर ज़िंदगी पा सकते हो.”
“नहीं सर, अपने देश को छोड़ कर विदेश जाने की मुझे कोई चाह नहीं है. भारत में क्या कुछ नहीं है” “मुझे तुम्हारे विचार सुन कर बहुत खुशी है,डिपार्टमेंट में तुम जैसे प्रोफ़ेसर ही चाहिए.”विभागाध्यक्ष के चेहरे पर रवि के लिए गर्व था.
नौकरी मिलते ही रवि ने मन ही मन में एक निर्णय ले लिया. पिछले कुछ दिनों पूजा के साथ बातें करते हुए उसने अनुभव किया, पूजा ही उसकी जीवन संगिनी बनने ,के योग्य है. उसमे वो सारे गुण हैं जो एक पत्नी और साथी में आवश्यक हैं. उसे पता भी नहीं लगा वह पूजा से अनजाने ही प्यार करने लगा था. अब उसे पूजा की माँ और अपने माता-पिता को अपने निर्णय की सूचना देनी होगी, पर पहले पूजा का मन जानना ज़रूरी था.”
“पूजा मुझे तुमसे कुछ कहना है, नाराज़ तो नहीं होगी?”
“आपसे क्या कभी नाराज़ हो सकती हूँ?”पूजा के ओंठों पर मीठी मुस्कान थी.
“तुमसे जो पूछूंगा उसका जवाब हाँ में चाहिए वरना सवाल ही नहीं पूछूंगा. तुम्हारी ना सह नहीं सकूंगा.”
“आप तो पहेलियाँ बुझा रहे हैं, वैसे आप कोई ऎसी बात पूछ ही नहीं सकते जिसका उत्तर ना हो.”
“मुझसे शादी करोगी, बहुत चाहता हूँ तुम्हे. कहो मंजूर है?”
“ये आप क्या कह रहे हैं, कहाँ आप, कहाँ मै? आप इतने योग्य और अच्छे हैं, आपको हज़ारों अच्छी लडकियां मिल जाएंगी.”कुछ पल मौन के बाद पूजा बोली.
“मुझे हज़ारों लडकियां नहीं चाहिए, बस तुम हाँ कह दो, वरना ज़िंदगी भर बिन ब्याहा ही रह जाऊंगा, ये मेरा निश्चय है.” प्यार से पूजा के माथे पर झूल आई लट हटाते रवि ने कहा.
“मुझे माँ के प्रति दायित्व पूरे करने हैं, उसके पहले अपने बारे में कैसे सोच सकती हूँ.”
“तुम्हारी माँ क्या मेरी माँ नहीं हैं, हम दोनों मिल कर उन्हें ज़िंदगी की सारी खुशिया देंगे, मुझ पर विश्वास करती हो तो बस हां कह दो,”
“क्या आपके माता-पिता जी मुझे स्वीकार कर सकेंगे. भला राजा और रंक में मेल कैसे हो सकता है.
“अपने माँ-पापा का लाडला इकलौता बेटा हूँ, मेरी बात तो माननी ही होगी. जल्दी ही तुम्हे शुभ सूचना दूंगा. एक रहस्य बताऊँ, तुम्हारी माँ से स्वीकृति ले चुका हूँ.” रवि के मुख पर शरारत थी.
“सच, कब? माँ ने मुझे कुछ नहीं बताया.”पूजा का विस्मय स्वाभाविक था.
“वो हम माँ बेटे के बीच की बात थी. मै ने ही उन्हें तुमसे ये बात बताने को मना किया था.”
उत्साहित रवि ने अपने माँ-बाप से जब पूजा के साथ अपने विवाह की बात बताई तो मानो घर में भूचाल आ गया. माँ-बाप पर रवि का विश्वास गलत निकला .शशि कान्त दहाड़ उठे –
“खबरदार भूल कर भी ये बात फिर मत कहना. ये असंभव है.”
“पापा, मै पूजा से बहुत प्यार करता हूँ, उसके अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकता.”
“शर्म नहीं आती, अपने खानदान का नाम मिट्टी में मिलाना चाहते हो. पूरी बिरादरी में हमारा कितना सम्मान है. एक नीचे कुल की लड़की से शादी कर के अपने कुल का नाम डुबोना चाहते हो. हमारी मान-मर्यादा का भी ख्याल नहीं है. इसीलिए तुझे पढाया लिखाया था. मुझे ये कतई मंजूर नही है.”
“पापा मै निर्णय ले चुका हूँ, पूजा के अलावा किसी और लड़की से शादी की बात भी नहीं सोच सकता. पूजा बहुत ही अच्छी, बुद्धिमान और गुणवती लड़की है. आप बस एक बार उससे मिल लीजिए - -“
“बस अब इसके आगे एक शब्द भी मुंह से निकाला तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. उस लड़की की शक्ल देखना भी मुझे मंजूर नहीं है. अगर तुझे अपनी मनमानी करनी है तो इस घर में तेरे लिए कोई जगह नहीं है. याद रख तेरे इस कदम से मै तुझे अपनी संपत्ति से बेदखल कर दूंगा.”
“मुझे आपकी संपत्ति नहीं चाहिए, बस आप और माँ का आशीर्वाद चाहिए.” शांति से रवि ने कहा.
“वो तुझे कभी नहीं मिल सकता. चला जा और फिर कभी अपना चेहरा हमें मत दिखाना, हम समझ लेगे हमारी कोई औलाद ही नहीं है.”क्रोध से शशि कांत जी की आँखे लाल हो गई थीं.
अपने घर से निष्कासित रवि का पूजा से विवाह करने का निश्चय और भी दृढ हो गया. अपने कुछ मित्रों और मनोज को अपना निर्णय सुनाने पर सबने रवि के फैसले की प्रशंसा की. मनोज तो बहुत उत्साहित हो उठा. उन सबने रवि को सादे ढंग से मन्दिर में विवाह करने की राय दी. रवि के माता-पिता की नाराजगी से पूजा विवाह के लिए राज़ी नही हो रही थी, पर उसकी माँ ने अपनी बीमारी का वास्ता देकर पूजा को विवाह के लिए राजी कर लिया.एक सादे समारोह में कुछ मित्रों की उपस्थिति में रवि और पूजा विवाह-बंधन में बंध गए. मनोज ने भाई के फ़र्ज़ निभाए थे.
पूजा के कहने पर रवि पूजा के साथ अपने घर माँ-बाप का आशीर्वाद लेने गया था.
दोनों को देखते ही शशि कांत जी का पारा चढ़ गया. नौकर को आवाज़ दे कर चिल्लाए-
“रामू जल्दी गंगाजल ला, हमारे घर को इन लोगों ने अपवित्र कर दिया.”दुखी और निराश पूजा और रवि अपने छोटे से घर में वापिस आ गए.
रवि को जानने वालों से शशि कान्त जी सुनते रवि और पूजा की गृहस्थी सुख-शान्ति से चल रही है. रवि ने अपने घर में माँ-बाप की तस्वीरें लगा रखी हैं, रोज़ उन्हें प्रणाम कर के यूनीवर्सिटी जाता है. रवि की प्रेरणा से पूजा ने बी ए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास कर ली है. रवि उसे एम् ए में प्रवेश लेने को कह रहा है, पर अब उनके घर एक नया फूल खिलने वाला है, पूजा माँ बनने वाली है.
शुभ चिन्तक शशि कान्त जी को समझाते-
“अब गुस्सा छोड़ दीजिए, आप बाबा-दादी बनने वाले हैं. पूजा भी एम् ए में प्रवेश लेने की तैयारी कर रही है, पूजा को किसी की मदद चाहिए.”
“नहीं, उनसे हमारा कोई रिश्ता नहीं है. इस घर में उसका नाम लेना भी निषिद्ध है.”
उधर जहां रवि और पूजा घर में नए मेहमान के आने की सूचना से खुश थे वहीं रवि को माँ-बाप की अनुपस्थिति कष्ट देती. काश इस समय उनकी खुशियाँ बांटने और आशीर्वाद देने वे उनके साथ होते. पूजा की मदद के लिए उसकी माँ आ गई थी, पर पूजा रवि के जीवन के अभाव को महसूस करती, पर वह विवश थी. रवि अपने बच्चे को डॉक्टर बनाने का स्वप्न देखता और पूजा हंसती.
उसके बाद सब कुछ कितनी जल्दी घट गया था. पिता बनने की खुशी में रवि ने एक स्कूटर खरीद लिया था. इतवार के दिन पूजा के साथ पिकनिक पर जाने के लिए दोनों बाहर निकले थे. स्कूटर को बांई ओर मोड़ते ही सामने से आ रही तेज़ रफ़्तार की ट्रक रवि के स्कूटर से टकरा गई. पूजा स्कूटर से छिटक कर दूर गिर गई, पर रवि ट्रक के नीचे आ गया. बेहोशी टूटने पर पूजा ने अपने को हॉस्पिटल में पाया.
दुर्घटना की खबर पा कर रवि के माँ-बाप अपने को रोक नहीं सके. हॉस्पिटल के डॉक्टर शशि कांत जी से परिचित थे. संवेदना पूर्ण शब्दों में उनसे कहा-
“हमें दुःख है, हम आपके बेटे को नहीं बचा सके, पर आपकी बहू और उसकी कोख में पल रही बेटी सुरक्षित हैं. आप उन्हें दो-तीन दिनों बाद घर ले जा सकते हैं. कम से कम यही संतोष है कि रवि की निशानी और आपकी वारिस तो आपके साथ रहेगी.”
“नहीं बिलकुल नही, उस अभागिन को तो इस दुनिया में आने ही नहीं देना चाहिए. आने के पहले ही बाप को खा गई. डॉक्टर आपको जितना पैसा चाहिए दूंगा, पर आप उसे कोख में ही खत्म कर दीजिए. मुझे उससे नफरत है, उसे जन्म नहीं लेने दे सकता.” शशि कांत जी ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा.
“ये आप क्या कह रहे हैं? यह पाप है और कानूनन भी अपराध है. आखिर वो बच्ची आपका ही खून है.”
“हमारा उन दोनों से कोई रिश्ता नहीं है, अगर उसकी कोख में बेटा होता तो एक बार उसे अपना वारिस मान कर झेल भी लेते, पर इस अभागिन का तो जन्म ही पाप है, चलो शान्ति” आंसू पोंछती पत्नी पति के साथ चली गई.
रवि उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुका था. पूजा की माँ बिलख रही थी. खबर पा कर मनोज आ गया था, वह स्तब्ध था. अभी दो दिन पहले ही तो वह रवि और पूजा से मिल कर गया था. माँ से रवि के पिता की बातें सुन कर पूजा के आंसू सूख गए, नहीं वह रवि की निशानी अपनी बेटी को जन्म देगी.
उसके लिए उसे जीना ही होगा. वह रवि की स्वाभिमानी पत्नी है. आश्रय के लिए वह श्वसुर के पाँव नहीं पड़ेगी, हार नहीं मानेगी. दृढ निश्चय कर वह उठ गई.
“माँ मुझे घर ले चलो, मुझे अपनी बेटी को जन्म देना है.”
मनोज और माँ के साथ पूजा उसी घर में आ गई, जहां से रवि उसे सम्मान के साथ अपने साथ ले गया था. माँ को रोता देख पूजा ने शांति से कहा था-
“माँ रोने से अगर जाने वाला लौट आए तो खूब रो लो, पर जो चला गया वो तो अब कभी लौट कर नहीं आएगा. अब हमें आने वाले दिनों की चिंता करनी है.”
“तुम परेशान मत हो, पूजा. तुम्हारा ये भाई हर कदम पर तुम्हारे साथ है.”मनोज ने सच्चाई से कहा.
“जानती हूँ, भाई. अब अपने यहाँ वाले पुराने स्टूडेंट्स की ट्यूशन लेना शुरू करूंगी.”उदास पूजा बोली.
“तुम किसी स्कूल में भी तो जॉब ले सकती हो, साथ में प्राइवेट एम् ए भी कर लोगी.” मनोज ने राय दी.
“अभी तो जो आने वाली है, उसकी चिंता करनी है, रवि होते तो “अधूरी बात कहती पूजा रो पड़ी .
उदास लंबे दिन बीतने लगे, अंतत: वह दिन भी आ गया जब पूजा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया. मनोज नवजात बच्ची बी के लिए पालना ले आया.
“अगर आज रवि जी होते तो कितनी खुशी मनाते, पर आज हम कुछ नहीं कर पारहे हैं.”मनोज उदास था.
“ऐसा नहीं सोचते, तुम जैसा भाई पा कर मै धन्य हूँ.”बेटी को पालने में लिटाती पूजा बोली.
“अब दिव्या के भविष्य लिए तुम्हे कोई अच्छा जॉब लेना होगा, पूजा. पास के स्कूल में जगह खाली है, तुम एप्लाई कर दो. रवि जी तो तुम्हें एम् ए कराते फिर तुम कॉलेज में जॉब करतीं, पर अभी कुछ दिन घर के पास में काम करना ही ठीक होगा.”मनोज ने सलाह दी.
“तुम ठीक कहते हो, मनोज. हाँ तुमने मेरी बेटी का दिव्या नाम भी रख दिया.”पूजा मुस्कुरा उठी.
“हाँ देख लेना, तुम्हारी बेटी अपना दिव्या नाम सार्थक करेगी.”मनोज ने विश्वास से कहा.
आज वही दिव्या मेडिकल कॉलेज की सर्वश्रेष्ठ स्टूडेंट का पुरस्कार पा चुकी है, पर उसका वह सम्मान देख पाने को पूजा नहीं रही.
असमय पलंग पर लेटे शशि कांत को देख पत्नी विस्मित थी.
“क्या बात है, इस वक्त क्यों लेटे हैं’?”
“अपने पाप पर पछता रहा हूँ. जानती हो, जिस अजन्मी बच्ची को मै ने माँ की कोख में ही समाप्त करने को कहा था, आज वह पूरे मेडिकल कॉलेज का गौरव है. अमरीका के प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज ने उसे कैंसर में रिसर्च करने के लिए स्कॉलरशिप दी है. अब वह कैंसर विशेषज्ञ बन कर वापिस आएगी.”
“तो अब क्या सोच रहे हो? हमने तो अपनी सारी संपत्ति का वारिस गोपाल को बनाने का निश्चय किया है.”शान्ति ने जवाब दिया.
“नहीं गोपाल मेरे भाई का बेटा ज़रूर है, पर मेरी सच्ची वारिस मेरे रवि की बेटी दिव्या ही है. उसमे रवि का खून है, मेरे रवि के सारे गुण हैं. उसका अधिकार किसी और को नहीं दे सकता.”
“पर दिव्या तो लड़की है, वो हमारी वारिस कैसे बन सकती है? वंश तो बेटे से ही चलता है. यही सोच कर तो हमने गोपाल को गोद लेने का निश्चय किया है.” पत्नी ने तर्क दिया.
“पर दिव्या तो लड़की है, वो हमारी वारिस कैसे बन सकती है? वंश तो बेटे से ही चलता है. यही सोच कर तो हमने गोपाल को गोद लेने का निश्चय किया है.” पत्नी ने तर्क दिया.
“मेरा सोच गलत था, शान्ति. कॉलेज की प्राचार्या ने दिव्या के बारे में जो कुछ बताया उसके सामने हज़ार लड़के भी कम हैं. ये हमारा सौभाग्य है, हमारे घर में उस जैसी तेजस्विनी ने जन्म लिया.”
“अब क्या करने की सोच रहे हो?’शान्ति ने पति के दृढ चेहरे को देख कर पूछा.
“कल ही अपनी गलती का प्रायश्चित करने दिव्या के पास जाऊंगा. अपनी पोती को अपने साथ ले कर आऊँगा.”शशि कान्त के चेहरे पर निश्चय की चमक थी.
दूसरे दिन बड़े सवेरे शशि कान्त दिव्या के घर पहुँचे. दिव्या कॉलेज के पीछे बने एक छोटे से घर में रहती थी. इस समय वह पूजा कर के अपने माता-पिता के चित्रों के सामने दीप जला रही थी. खुले दरवाज़े से प्रविष्ट हो कर शशि कान्त चुपचाप दिव्या के पीछे जा कर खड़े हो गए. बेटे का चित्र देख कर उनकी आँखें नम हो गईं. अचानक पीछे मुड़ी दिव्या शशि कान्त को देख कर चौंक गई.’
“आप यहाँ, क्या किसी काम से आए हैं?”दिव्या विस्मित थी.
‘”अपनी पोती को उसके घर वापिस ले जाने आया हूँ?”भीगे स्वर में शशि कान्त ने कहा.
“आपकी पोती, आप क्या कह रहे हैं?’ यहाँ तो बस मै ही रहती हूँ.’
“हाँ बेटी तुम्हीं मेरे रवि का अंश मेरी पोती, मेरी वारिस हो. मुझे अपनी गलती का बहुत दुःख है, मुझे माफ़ कर दो.”शशि कान्त की आँखों से आंसू बह निकले.
“आप क्या कह रहे हैं? मै किसी की पोती नहीं हूँ. ना मेरे कोई बाबा-दादी हैं.”दिव्या ने तेज़ी से कहा.
“”ऐसा मत कह तू मेरे रवि की बेटी है और मेरी पोती है.’शशि कान्त जी ने आशापूर्ण शब्दों में कहा.
‘आप कहना चाहते हैं, आप मेरे पापा के वही पिता हैं जिन्होंने मेरी माँ को दर-दर की ठोकरें खाने को अकेले छोड़ दिया. हाँ क्या कहा, मै आपके बेटे का अंश हूँ, वही अंश जिसे आपने माँ की कोख में ही समाप्त कर देना चाहा था. जिस इंसान ने इतने अन्याय किए, उसके साथ मेरा कोई संबंध नही हो सकता.”
“जानता हूँ, मेरे अपराध माफी लायक नहीं हैं, पर आज मेरी आँखें खुल गई हैं. कहते हैं सुबह का भूला अगर शाम को वापिस आ जाए तो भूला नहीं कह्लाता. मेरा सब कुछ तुम्हारा है, तुम्हें अमरीका जाने की ज़रुरत नहीं है. तुम्हारे लिए एक हॉस्पिटल खुलवा दूंगा, तुम उसकी हेड होगी.”वह विनती कर रहे थे.
“एक मिनट रुकिए, अभी आती हूँ.”दिव्या कमरे के भीतर से अपनी पुरस्कार राशि और स्वर्ण पदक ले कर वापिस आई.
“ये लीजिए आपके पुरस्कार में दिए गए पैसे और स्वर्ण पदक आपको वापिस कर रही हूँ. इन्हें रख कर अपनी माँ के संघर्ष और त्याग को अपमानित नहीं करूंगी. मेरी माँ अपराजिता थी, सारी दुनिया के व्यंग्य, उलाहने सुन कर भी उसने हार नहीं मानी साहस के साथ संघर्ष किया, किसी से ना सहायता मांगी, ना किसी के आगे सिर को झुकाया मुझे स्वाभिमानपूर्ण जीवन जीने की राह दिखाई. मैं बस अपनी माँ की बेटी हूँ. उसे किसी हालत में पराजित नहीं होने दे सकती.”
“ये क्या कर रही हो बेटी, इस पुरस्कार पर तो तुम्हारा अधिकार है. एक पल को इस बूढ़े को बाबा समझ कर ही माफ़ कर दो.” शशिकांत दयनीय हो आए.
“क्षमा कीजिए, मुझे बाबा शब्द से एक ऐसे क्रूर इंसान का आभास होता है, जिसने एक पल को भी नहीं सोचा ना कभी जानने की कोशिश की कि उनके बेटे की पत्नी, जिसकी कोख में उनके बेटे का अंश पल रहा था, वह कहाँ रही, कैसे जी सकी. मैने कभी अपने बाबा-दादी का नाम भी नहीं जानना चाहा. मेरे मन में बाबा-दादी शब्दों के लिए कोई आदर नहीं है.’
“मै तुम्हारे दुःख को समझता हूँ, अपनी गलती की भरपाई करना चाहता हूँ. तुम्हें ढेर सारा प्यार दे कर प्रायश्चित करना चाहता हूँ.”शशि कान्त ने आंसू भरी आँखों से कहा.
“क्या आप मेरी माँ के अपमान, व्यंग्य वांणों से छलनी हुए मन को जोड़ सकेंगे. कहाँ से लाएंगे मेरी माँ को? आप उम्र में बड़े हैं इसलिए आपका अपमान नहीं करना चाहती. आप चले जाइए, ये हमारी पहली और आखिरी भेंट थी, अब हम कभी नहीं मिलेंगे.”
हाथ जोड़ कर अपराजित दिव्या ने विदा दे दी. बहते आंसुओं के साथ पराजित शशि कांत दरवाज़े से बाहर चले गए.
No comments:
Post a Comment