संडे के दिन चाय के कप के साथ शरद ने अख़बार खोला था। पूरे सप्ताह ऑफ़िस की व्यस्तता के बाद एक इसी दिन उसे कुछ आराम का मौका मिलता था। कभी सोचता अच्छा होता, किसी बड़ी कम्पनी का उच्च अधिकारी होने की जगह किसी कॉलेज में प्रोफ़ेसर बन जाता। कॉलेज में छुट्टियां तो मिलतीं। अचानक उसकी निगाह एक विज्ञापन पर पड़ी। रोज़- गार्डेन में गुलाबों की प्रदर्शनी थी। शरद का मन खिल उठा। फूलों से उसे बहुत प्यार था विशेषकर गुलाब उसकी पहली पसंद थे। अपने घर में भी उसने अलग-अलग रंगों वाले गुलाबों की रंगीन क्यारियां बनवा रखी थीं। उसकी कोशिश रहती वह गुलाब के अनूठे रंगों से अपनी गार्डेन को सजा सके। उसके दोस्त हंसते-
‘यार
शरद, तुझे
अपने लिए
बीवी ऐसी
ही ढूंढनी
होगी जो
इन गुलाबों
को तेरी
तरह ही
प्यार दे
सके वर्ना
प्यार के
अभाव में
ये सूख
जाएंगे।‘
विज्ञापन देखते
ही शरद
गुलाबों की
प्रदर्शनी में
जाने को
उतावला हो
उठा। सवेरे
जल्दी जाने
से भीड़
कम होगी
और फूलों
का सही
आनन्द लिया
जा सकेगा।
कैमरे को
गले से
लटका शरद
ने कार
स्टार्ट की
थी। अभी
कम ही
लोग प्रदर्शनी
में पहुंचे
थे। चारों
ओर हवा
में झूमते
गुलाबों पर
मुग्ध दृष्टि
डालते शरद
की नज़र
एक अनोखे
गुलाब पर
अटक गई।
गुलाबी और
ज़ामुनी पंखुड़ियों
वाला अकेला
गुलाब अपने
समस्त सौंदर्य
के साथ
इठला रहा
था। शरद
ने जैसे
ही कैमरा
क्लिक किया
गुलाब को
प्यार भरी
नज़रों से
सहलाती एक
लड़की भी
तस्वीर में
उतर आई।
शायद उसी
पल वह
वहां आई
थी। कैमरे
से नज़र
हटा शरद
ने उस
लड़की को
देखा था।
गुलाब के
सौंदर्य से
होड़ लेती
उस लड़की
ने गुलाबी
सलवार सूट
के साथ
जामुनी चुन्नी
ओढ रखी
थी। विस्मित
शरद कुछ
कह पाता
कि लड़की
की मीठी
आवाज़ सुनाई
दी-
‘एक्स्क्यूज़
मी, मिस्टर।
किसकी परमीशन
से आपने
मेरी तस्वीर
खींची है?’आवाज़
में तेजी
थी.
‘माफ़
कीजिएगा, आपकी
फ़ोटो लेने
का मेरा
कोई इरादा
नहीं था,
कैमरा क्लिक
करते ही
आप उसी
गुलाब के
पास अचानक
आ गईं,
जिसे मैं
अपने कैमरे
में कैद
करना चाह
रहा था।
आप भी
मानेंगी, इतना
सुंदर और
अनूठा गुलाब
बहुत रेयर
होगा।‘ शालीनता
से शरद
ने सफ़ाई
देनी चाही।
‘आपकी
बातों में
मैं नहीं
आने वाली,
हो सकता
है आपने
गुलाब की.नहीं
मेरी ही
फ़ोटो लेनी
चाही हो।‘
‘ये
बात तो
तब संभव
थी जब
मैं जानता
कि आप
इस समय
इस स्पॉट
पर आने
वाली हैं।
आप अपना
ऐड्रेस दे
दीजिए इस
नायाब गुलाब
के चित्र
के साथ
आपकी फ़ोटो
आप तक
पहुंच जाएगी।‘
‘यानी
कि आप
मेरा पता
लेकर मेरे
घर आ
पहुंचेंगे।
बाई दि
वे अगर
आप कोई
प्रोफ़ेशनल फ़ोटोग्राफ़र
हैं और
इस नायाब
फ़ोटो को
किसी कॉम्पटीशन
या मैगज़ीन
में भेजने
की योजना
बना रहे
हों तो
आने वाली
मुश्किल से
सावधान रहें।‘स्वर
में चेतावनी
सी थी.
‘कमाल
करती हैं,
ये कैसे
सोच लिया
कि मैं
कोई प्रोफ़ेशनल
फ़ोटोग्राफ़र
हूं। एक
बड़ी कम्पनी
में अच्छी
भली नौकरी
करता हूं।
फ़ोटोग्राफ़ी
मेरी हॉबी
है। फ़ॉर
योर इन्फ़ॉरमेशन
ये फ़ोटो
बस मेरे
ऐलबम में
रहेगी।‘
‘अगर
ऐसा है
तो मेरे
साथ वाली
फ़ोटो कैमरे
से इरेज़
कर दीजिए
और इस
गुलाब की
जितनी चाहें
फ़ोटो खींचते
रहिए।‘ लड़की
ने कड़ाई
से कहा।
‘अगर
आपको किसी
सुंदर चीज़
को मिटाने
का इतना
ही शौक
है तो
लीजिए आप
खुद इरेज़
कर दीजिए।
वैसे ये
फ़ोटो आपके
ऐलबम की
शोभा बढा
सकती है।‘
शरद ने
अपना कैमरा
लड़की को
देते हुए
कहा।
कैमरे में
लिए गए
चित्र को
देखती लड़की
के चेहरे
पर एक
मुग्ध भाव
आगया।
‘आप
सच कह
रहे हैं,
इस फ़ोटो
का मिस
यूज़ नहीं
किया जाएगा?’
लड़की ने
अविश्वास से
कहा।
‘लीजिए, ये
मेरा कार्ड
रख लीजिए,
कोई भी
ग़लती होने
पर मेरे
खिलाफ ऐक्शन
ले सकती
हैं।‘ शरद
के चेहरे
पर हल्की
मुस्कान आ
गई।
‘ठीक
है, विश्वास
कर रही
हूं। अगर
मुश्किल न
हो तो
फ़ोटो की
एक कॉपी
‘महिला- कल्याण
केंद्र’ में
भेज दीजिएगा।
ऐड्रेस नोट
कर लीजिए।‘
‘नो
प्रॉबलेम, मैं
इस केंद्र
को जानता
हूं। मेरे
ऑफ़िस के
रास्ते में
पड़ता है।‘
‘थैंक्स,
तकलीफ़ के
लिए क्षमा
चाहूंगी।‘कुछ
नरमी से
लड़की ने
कहा.
‘माई
प्लेज़र, पर
आपका नाम
क्या है।
केंद्र में
किसके नाम
से फ़ोटो
छोड़नी होगी?’
लड़की जैसे
ही जाने
को मुड़ी,
शरद पूछ
बैठा।
‘आकांक्षा-
- बस इतना
कहना ही
काफ़ी होगा।‘
वाह: क्या
सार्थक नाम
है। आप
तो किसी
की भी
आकांक्षा हो
सकती हैं।
शरद के
मन ने
सोचा।
घर लौटकर
शरद ने
सबसे पहले
एक स्टूडियो
में फ़ोटो
की प्रतियां
निकालने को
दे दीं।
ताज्जुब की
बात ये
थी कि
शरद भी
प्रतियों की
उत्सुकता से
प्रतीक्षा कर
रहा था।
नियत दिन
फ़ोटो की
प्रतियां लाने
गए शरद
से फ़ोटोग्रफ़र
ने पूछा-
‘बहुत
सुंदर तस्वीर
आई है।
साथ में
जो खड़ी
हैं, क्या
वह आपकी
पत्नी हैं
या कोई
मॉडेल हैं?
आपने कमाल
की फ़ोटो
ली है।
अगर आप
इजाज़त दें
तो इस
फ़ोटो को
इन्लार्ज करके
अपने स्टूडियो
में लगाना
चाहूंगा।‘
‘भूल
कर भी
ऐसी ग़लती
मत कीजिएगा
वर्ना आपको
लेने के
देने पड़
जाएंगे।‘ शरद
को अपना
वादा याद
था, फ़ोटो
का दुरुपयोग
किसी हालत
में मान्य
नहीं होगा।
‘ऎसी
क्या बात
है,सर?
सच तो
यह है
,इस
फोटो से
मेरे स्टूडियो
में ग्राहकों
की संख्या
बढ़ जाएगी.
इतना ही
नहीं अगर
आप इस
तस्वीर को
किसी मैगजीन
में छपवा
दें तो
मैं गारंटी
के साथ
कह सकता
हूँ कि
आपको ही
फर्स्ट प्राइज़
मिलेगी. गुलाब
और इस
चेहरे में
से कौन
ज्यादा सुन्दर
है, कहना
मुश्किल है,’
मुग्ध दृष्टि
से तस्वीर
देखते फोटोग्राफर
ने कहा.
‘आपके
सुझाव के
लिए धन्यवाद,
पर मुझे
न किसी
पुरस्कार की
चाह है
ना ही
आपके स्टूडियो
के ग्राहकों
की संख्या
से मतलब
है, बस
इतना याद
रखिएगा ये
तस्वीर सिर्फ
मेरी है.
अगर इसका
कहीं भी
इस्तेमाल हुआ
तो आप
मुश्किल में
आ जाएंगे.’
शरद ने
तीखा जवाब
दिया.
‘आपकी
बात समझ
गया,सर.
ये लीजिए
आपके फोटोग्राफ्स.”
प्रतियां लिफ़ाफ़े
में डालते
फोटोग्राफर
ने एक
बार फिर
फोटो पर
हसरत भारी
निगाह डाल,
लिफाफा शरद
को थमा
दिया.
‘थैंक्स.
पेमेंट कर
शरद बाहर
आगया. महिला
कल्याण केंद्र
पर कार
रोक शरद
रिसेप्शन की
और बढ़
गया. मन
में क्षीण
सी आशा
थी शायद
वहां आकांक्षा
मिल जाए.
रिसेप्शन पर
एक युवती
ने स्वागत
करते हुए
पूछा- -
‘नमस्ते,सर,
बताइए आपकी
क्या सेवा
कर सकती
हूँ?”
‘मुझे
मिज़ आकांक्षा
से मिलना
है, क्या
वह इस
समय यहाँ
हैं?
“क्षमा
करें, आकांक्षा
दीदी अभी
नही. आई
है.,
पर थोड़ी
देर में
वह ज़रूर
आ जाएंगी.
अभी वह
अस्पताल में
भर्ती औरतों
को देखने
गई हैं.
आप चाहें
तो प्रतीक्षा
कर सकते
हैं.”
“क्या
आकांक्षा जी
डाक्टर है?”
विस्मित शरद
ने जानना
चाहा.
“जी
नहीं, पर
दीदी दुखी
औरतों के
जख्मो पर
प्यार और
हिम्मत का
मरहम लगा
कर सबका
दू;ख-दर्द
ज़रूर कम
कर देती
हैं. अस्पताल
के अलावा,
इस केंद्र
की देखभाल
और यूनीवर्सिटी
में पढाई
के साथ
इतने सारे
काम हमारी
आकांक्षा दीदी
ही कर
सकती है.”
रिसेप्शनिस्ट
के चहरे
पर आदर
का भाव
था.
“ओह, पर
मैं ठीक
से समझा
नही.” शरद
कुछ सोचने
की कोशिश
कर रहा
था.
‘मतलब
दीदी समाज-शास्त्र
विषय में
रिसर्च कर
रही हैं
और जो
औरते तकलीफ
में होती
हैं, दीदी
उन्हें सहारा
देती हैं.
अरे ये
लीजिए, आकांक्षा
दीदी आ
पहुंची. आपको
ज़्यादा प्रतीक्षा
भी नहीं
करनी पड़ी.”
रिसेप्शनिस्ट
की दृष्टि
का अनुसरण
करते शरद
की निगाहें
आकांक्षा पर
ठहर सी
गई. सफ़ेद
सलवार- सूट
पर धानी
दुपट्टे में
आकांक्षा का
खिला चेहरा
ऐसा लग
रहा था
मानो नई
कोमल हरी
पत्तियों के
बीच सफ़ेद
फूल खिल
रहा था.
चहरे पर
हलकी मुस्कान
के साथ
आकांक्षा ने
रिसेप्शनिस्ट
को स्नेह
भरी दृष्टि
से देख,
पास खड़े
शरद को
देखा.
“अरे
आप यहाँ,
याद आया
शायद आप
फोटो लाए
है. आइए
उधर कुर्सी
पर बैठते
हैं.’ शरद
के हाथ
में पकडे
लिफ़ाफ़े पर
आकांक्षा की
नज़र पड़
गई.
“जी
हाँ, आपकी
अमानत पहुंचाना
मेरा दायित्व
जो था.’
हलकी मुस्कान
के साथ
शरद ने
लिफाफा बढाया.
“धन्यवाद,
आशा करती
हूँ आपने
अपना वादा
निभाया होगा.
इस फोटो
की प्रतियां
कहीं बाहर
नहीं दी
हैं.’
“जी
हाँ, फोटो
की तीन
प्रतियों में
से दो
आपको दे
रहा हूँ
, एक
मेरे पास
है. अगर
आप चाहें
तो फोटोग्राफर
से कन्फर्म
कर सकती
हैं. वैसे
वह आपकी
फोटो अपने
स्टूडियो में
लगाना चाहता
था.’
‘ओह
नो, आपने
उसे मना
तो कर
दिया, फिर
भी एक
बार देख
लीजिएगा उस
पर विश्वास
करना ठीक
नहीं. अपने
फायदे के
लिए ऐसे
लोग कुछ
भी कर
सकते हैं.”
“परेशान
न हों
मैंने उसे
चेतावनी दे
दी है,
वह ऎसी
गलती नहीं
कर सकता,
ऐसा लगता
है आप
किसी के
विश्वासघात
की शिकार
हुई हैं.
दुनिया में
सब लोग
धोखेबाज़ ही
नहीं होते.’
शरद ने
कहा.
‘आपको
ज़्यादा प्रतीक्षा
तो नहीं
करनी पड़ी? आप
फोटो हमारी
रिसेप्शनिस्ट
रूबी को
दे सकते
थे.” शरद
की बात
का उत्तर
न दे
उसने अपनी
बात कही.
“आप
इस केंद्र
से कैसे
जुडीं? रिसेप्शनिस्ट
आपके कामों
की बहुत
तारीफ़ कर
रही थी.
”“यह
केंद्र मेरा
घर है.
यहाँ रहने
वाली शोषित,
परिवार से
निर्वासित स्त्रियाँ
ही मेरा
परिवार है.”
“आपके
विचार जान
कर बहुत
खुशी हुई.मुझे
यकीन है,
आप की
प्रेरणा से
इन स्त्रियों
को नव
जीवन मिल
सकेगा. मै
मानता हूँ
हमारा समाज
आज भी
स्त्रियों को
उनका प्राप्य
नहीं दे
सका है.”
“मुझे
खुशी है,
आप ऐसा
सोचते हैं
वरना पुरुषों
की गलती
के लिए
भी औरत
को ही
दोषी ठहराया
जाता है.
पता नहीं
कैसे समाज
के सोच
को बदला
जा सकता
है.”आकांक्षा
चहरे पर
आक्रोश था.
“मेरा
सोचना है
कि एक
दिन स्त्रियों
को उनका
प्राप्य अवश्य
मिल सकेगा.
बस स्त्री
को अपनी
शक्ति पहचाननी
है. मुझे
विश्वास है
आप जैसी
नारी की
प्रेरणा से
स्त्रियों में
जागरूकता लाई
जा सकती
है.”
“आपको
बहुत देर
हो गई,
मेरा भी
काम का
समय हो
गया.. फोटो
पहुँचाने के
लिए धन्यवाद.”
अचानक हाथ
जोड़ आकांक्षा
ने विदा
मांग ली.
आकांक्षा द्वारा
उसे इस
तरह अकस्मात्
विदा देने
की बात
से शरद
के चहरे
पर विस्मय
और खिसियाहट
स्पष्ट थी.
क्या कारण
हो सकता
है कि
इतनी सुन्दर
शिक्षित लड़की
को समाज-सेवा
के लिए
ऎसी ही
जगह काम
करना था.
रिसेप्शनिस्ट
ने बताया
था आकांक्षा
समाज-शास्त्र
विषय में
शोध-कार्य
कर रही
हैं.. इसी
उधेड़बुन में
वह घर
पहुँच गया.
मालिक को
आया देख
रामू ने
चाय की
ट्रे सामने
रख दी.
अनमने भाव
से शरद
ने चाय
का कप
होंठो से
लगाया, पर
जैसे चाय
में आकांक्षा
का चेहरा
उभर आया
था.. अचानक
उसे याद
आया समाज-शास्त्र
विभाग में
उसका मित्र
अविनाश भी
लेक्चरार है.
वह ज़रूर
आकांक्षा के
बारे में
जानता होगा.
अविनाश से
मिलने की
सोच करके
शरद को
काफी आश्वस्ति
सी महसूस
हुई. वैसे
वह स्वयं
भी सोच
रहा था
ज़रा सी
देर के
परिचय में
उसे उस
लड़की की
बारे में
जानने की
इतनी उत्सुकता
क्यों है.
भविष्य में
उससे शायद
ही कभी
मिलना हो.
“अरे
शरद, कहो
आज हमारी
याद कैसे
आगई? सुना
है अब
अपनी कम्पनी
में बड़े
ऊंचे पद
पर पहुँच
गए हो.”
बहुत दिनों
बाद शरद
को अपने
विभाग में
देख अविनाश
विस्मित और
खुश था.
‘ऐसी
बात नहीं
है, भला
कोई अपने
दोस्तों को
भुला सकता
है, बस
काम के
प्रेशर की
वजह से
मिल नहीं
पाया. तू
सुना कैसा
है. यूनीवर्सिटी
की नौकरी
में तो
छुट्टियों का
मज़ा रहता
है.”शरद
ने सफाई
दी.
“तू
चाहे तो
तू भी
नौकरी बदल
ले, पर
तेरी कम्पनी
वाले ठाठ
यहाँ नहीं
मिलेंगे. अब
बता तू
किस काम
से आया
है, सिर्फ
मुझसे मिलने
ही तो
आया नहीं
है. क्यों
ठीक कहा
न?” अविनाश
शरारत से
मुस्कराया.
‘क्यों
क्या बिना
काम के
तेरे पास
आना गुनाह
है.?
हाँ मानता
हूँ, इधर
कुछ दिनों
से नहीं
आ पाया
वरना क्या
पुरानी मीठी
यादें भुलाई
जा सकती
है.’
“अरे
मे तो
मजाक कर
रहा था,
चल कैफेटेरिया
चलते हैं,
बहुत दिनों
से तेरे
साथ कॉफी
का मज़ा
नहीं लिया
है.”दोनों
साथ उठ
खड़े हुए.
कैफेटेरिया
में विद्यार्थियों
की भीड़
थी. दोनों
एक कोने
की खाली
टेबल पर
बैठ गए.
अविनाश ने
वेटर को
कॉफी लाने
के निर्देश
देकर पूछा
–
“कुछ
खाने को
मंगाऊं?”
“नही,यार.
कभी तेरे
घर आऊँगा
तब शीला
भाभी के
हाथ का
बना खाना
खाऊंगा. कैसी
हैं, भाभी
जी?’
“अच्छी
भली हैं.
आजकल समाज-सेवा
की धुन
चढी है.
हमारे विभागाध्यक्ष
डाक्टर नारंग
ने अपनी
माँ की
स्मृति में
एक महिला-
कल्याण केंद्र
खोला है.
शीला वहां
की स्त्रियों
को कढ़ाई-बुनाई
सिखाने जाती
है. वैसे
वहाँ की
सर्वेसर्वा
एक मिस
आकांक्षा हैं.
कमाल की
लड़की है
आकांक्षा..”
“वाह
इन सो
कॉल्ड मिस
आकांक्षा में
ऎसी क्या
बात है
जिसने हमारे
दोस्त को
भी इम्प्रेस
कर रखा
है.” ””अगर
तुम उससे
मिलोगे तो
तुम समझोगे,
बुद्धि और
सौन्दर्य का
मिलन किसे
कहते हैं? हर
परीक्षा में
टॉप किया
है..उसे
तो जो
देखेगा उस
पर न्योछावर
हो जाएगा,”
‘लगता
है मेरा
दोस्त भी
उस पर
न्योछावर है,
भाभी से
कहना होगा.”शरद
ने परिहास
किया.
‘मेरी
छोड़, आकांक्षा
ने गाम्भीर्य
का ऐसा
कवच ओढ़
रखा है
कि वो
तो लड़कियों
से भी
बात नहीं
करती..वैसे
हेड उस
पर बहुत
भरोसा करते
हैं. अगर
तू चाहे
तो तुझे
मिलवा सकता
हूँ. तू
तो अभी
तक शादी
के बंधन
में नही
बंधा है”.अविनाश
ने मज़ाक
किया.
“रहने
दे, मुझे
किसी समाज-सेविका
से शादी
नहीं करनी
है. पति-
सेवा की
जगह समाज-सेवा
होगी.”
“पागल
है, अरे
आकांक्षा का
तो रिसर्च
का विषय
ही ऎसी
स्त्रियों से
संबंधित है.
उनकी आज
की स्थिति
और उनके
निर्वासन के
कारण आदि
जानने के
लिए ही
उसने उस
केंद्र में
रहने का
निश्चय किया
है. प्रताड़ित
स्त्रियों को
वह नई
राह और
जीना सिखाती
है. में
तो कहता
हूँ, बड़े
जीवट वाली
लड़की है.
उसकी तो
जितनी भी
तारीफ़ की
जाए कम
है.”अविनाश
के चहरे
पर प्रशंसा
थी.
“थैक्स
यार, अब
चलता हूँ.
हाँ कॉफी
बहुत अच्छी
थी. किसी
दिन तेरे
घर आऊँगा.
भाभी जी
को मेरी
याद दिला
देना.”अचानक
शरद उठ
खडा हुआ.
अविनाश से
हाथ मिला
कार में
जा बैठा.
आज ऑफिस
में अवकाश
था. अनायास
ही उसने
कार केंद्र
की और
मोड़ दी.
रिसेप्शनिस्ट
ने उसे
पहचान लिया.
“आइए
सर, अभी
दीदी को
बुलाती हूँ.
वह अन्दर
ही कुछ
काम कर
रही हैं.”
रिसेप्शनिस्ट
भीतर चली
गई.
शरद
कोने में
पड़ी कुर्सी
पर बैठ
गया. समझ
में नहीं
आरहा था
वह आकांक्षा
से मिलने
को इतना
उत्सुक क्यों
था. कोई
बहाना तो
बनाना ही
पड़ेगा. आश्रम
से आती
आकांक्षा को
देख शरद
खडा हो
गया.
“अरे
आप कैसे
आए? आप
तो फोटो
उसी दिन
दे गए
थे.” आकांक्षा
विस्मित थी.
‘आज
फोटो देने
नहीं आया
हूँ. असल
में आपके
आश्रम और
आपके कार्यों
की बहुत
तारीफ़ सुनी
है. आप
के इस
पुनीत कार्य
में मै
भी अपना
कुछ सहयोग
देना चाहता
हूँ. आपका
आश्रम देखना
चाहता हूँ”.
“धन्यवाद
मिस्टर कुमार.
आपको निराश
करते हुए
दुःख है,
पर इस
मन्दिर जैसे
आश्रम में
मैंने पुरुषों
का प्रवेश
सर्वथा निषिद्ध
कर रखा
है.” गंभीरता
से आकांक्षा
ने कहा.
”पुरुषों
से इस
नाराजगी की
कोई ख़ास
वजह? कहीं
ऐसा तो
नहीं आपको
किसी ने
धोखा दिया
है या--?”
“मै
ने अपनी
व्यक्तिगत ज़िंदगी
के बारे
में किसी
को भी
बात करने
का अधिकार
नहीं दिया
है. अब
क्या आपको
कुछ और
कहना है?”
“क्या
सिर्फ पुरुष
होने के
कारण मुझे
आश्रम को
आर्थिक सहायता
देने का
भी अधिकार
नहीं है?”
“आश्रम
की स्त्रियों
को स्वावलम्बी
और स्वाभिमानी
बनाने की
शिक्षा दी
गई है.
अपने हुनर
से वे
स्वावलंबी बन
रही हैं.
अनुदान की
अपेक्षा आप
किसी और
तरीके से
उनकी मदद
करना चाहें
तो ठीक
होगा.’ उदासीन
स्वर में
आकांक्षा ने
कहा.
“बताइए
मैं और
किस तरह
से उनकी
मदद कर
सकता हूँ,
मुझे कुछ
सहायता कर
के खुशी
मिलेगी.’
‘कुछ
ही दिनों
बाद आश्रम
की स्त्रियाँ
एक सांस्कृतिक
कार्यक्रम का
मंचन करने
वाली हैं.
अनुदान की
जगह अगर
आप इस
कार्यक्रम के
टिकट बेचने
में मदद
कर सकें
तो आभार
मानूंगी. हम
सिर्फ अनुदान में
विश्वास नहीं
रखते,”
‘”वाह
ये तो
बहुत अच्छी
बात है.
मैं पूरी
कोशिश करूंगा
ज़्यादा से
ज्यादा टिकट
बेच सकूं’.”
शरद का
चेहरा खिल
उठा.
“एक
बात याद
रखिए, मुझे
इम्प्रेस करने
के चक्कर
में कहीं
खुद ही
सारे टिकट
मत खरीद
लीजिएगा.” पहली
बार आकांक्षा
के चहरे
पर मीठी
मुस्कान थी.
शरद मुग्ध
देखता रह
गया.”
“यानी
कि आप
जानती हैं
मै आपको
इम्प्रेस करना
चाहता हूँ.
वैसे क्या
चाय के
लिए नहीं
पूछिएगा. आज
तो ऑफिस
में भी
चाय नही
पी है.”
शरद ने
मज़ाक किया.
“एक
बात स्पष्ट
करना चाहूंगी,
मुझे इम्प्रेस
करने के
चक्कर में
अपना समय
बर्बाद करने
की गलती
भूल कर
भी मत
कीजिएगा. आपको
बता दूं
यहाँ चाय
कौन बनाती
हैं?”
“सब
जानता हूँ
आपके आश्रम
में किस
तरह की
दुखी और
असहाय स्त्रियाँ
रहती हैं.
आप उन्हें
अपना परिवार
मानती हैं.
कहिए ठीक
कहा न?”
शरद के
चहरे पर
शरारत थी.
“लगता
है आपकी
स्मरण –शक्ति
बहुत अच्छी
है. अपनी
इस क्वालिटी
को ऑफिस
के कामों
में ही
लगाएं तो
बेहतर है.
वैसे अभी
पांच मिनट
में आपकी
चाय हाज़िर
हो जाएगी.”
रिसेप्शनिस्ट
को चाय
मंगाने का
आर्डर दे
कर आकांक्षा
ने ऑफिस
की डेस्क
से टिकटों
का एक
पैकेट निकाल
कर शरद
की और
बढाते हुए
कहा- -.
“ये
तीस टिकट
हैं, अगर
इतने ही
बेच सकें
तो काफी
है.”
“ये
तो एक
हफ्ते में
ही बेच
लूंगा, और
टिकट लेने
के बहाने
आपसे एक
बार फिर
मिलना हो
जाएगा. वैसे
अगर बुरा
न माने
तो एक
सच कहना
चाहता हूँ,
आपसे जो
एक बार
मिल ले
वह बार-बार
मिलना चाहेगा.”
साहस कर
के शरद
ने कहा.
“जानती
हूँ, पर
एक सच
और भी
जानते होंगे,
सुन्दर गुलाब
में भी
कांटे होते
हैं. अगर
ये कांटे
चुभ जाएं
तो तिलमिला
देते हैं.”आकांक्षा
के चेहरे
पर आक्रोश
सा था.
“जानता
हूँ, फिर
भी क्या
गुलाब से
प्यार करना
छोड़ना संभव
है? जानती
हैं, मेरी
गार्डेन में
बहुत किस्मों
के गुलाब
खिलते हैं.
उनकी काट-छांट
में न
जाने कितनी
बार कांटे
चुभे हैं,
पर गुलाबों
के प्यार
में कभी
कमी नहीं
आई है.”
शरद की
दृष्टि आकांक्षा
के चहरे
पर निबद्ध
थी.
रिसेप्शनिस्ट
के साथ
साफ़ आसमानी
धोती पहने
एक स्त्री
चाय के
प्यालो वाली
ट्रे के
साथ आई
थी. सावधानी
से ट्रे
सामने की
मेज़ पर
रख शालीनता
से हाथ
जोड़ शरद
को नमस्ते
की थी.
चेहरे पर
पड़ी लकीरें
उसके सुन्दर
चेहरे को
उदास बना
रही थीं.
“मिस्टर
कुमार, यह
चन्दा है.
इसे संगीत
का बहुत
अच्छा ज्ञान
है. सांस्कृतिक
कार्यक्रम की
यह जान
है. क्यों
चन्दा ठीक
कह रही
हूँ न?
हाँ यह
मिस्टर कुमार
हैं, यह
हमारे शो
के टिकट
बेचने में
मदद करेंगे.” चाय
का प्याला
शरद की
और बढाती
आकांक्षा ने
कहा.
“धन्यवाद,
मुझे खुशी
होगी अगर
आपके कुछ
काम आ
सकूं.” चाय
का सिप
लेते शरद
ने कहा.
“पता
नहीं चाय
आपको पसंद
आई या
नहीं, पर
चन्दा के
हाथ की
बनी अदरक
तुलसी की
चाय मुझे
बहुत पसंद
है.” आकांक्षा
के मुख
पर संतोष
की खुशी
थी.
“आपकी
पसंद भला
गलत कैसे
हो सकती
है. चाय
सचमुच अच्छी
थी. डरता
हूँ कहीं
इस चाय
के लिए
फिर ना
आना पड़े.”
शरद ने
परिहास किया.
“चाय
के लिए
या मेरे
लिए? सच
कहते क्या
डर लगता
है. वैसे
ऎसी भूल
मत कीजिएगा,
पछताएंगे”. बात
ख़त्म करती
आकांक्षा ने
विदा के
लिए हाथ
जोड़ शरद
को फिर
विस्मित कर
दिया.
वापस लौटते
शरद के
मन में
आकांक्षा की
कही बात
समझ में
नहीं आ
रही थी उसने
ऐसा क्यों
कहा ऎसी
गलती मत
कीजिएगा, पछताएंगे.
क्या उसने
शरद के
मन की
बात पढ़
ली थी.
अब जैसे
आकांक्षा शरद
के लिए
पहेली बनती
जा रही
थी. इतना
तो निश्चित
था, कोई
बात ज़रूर
है जिसने
उसकी ज़िंदगी
में कडुवाहट
भर दी
है. क्या
हो सकता
है, कहीं
वह बलात्कार
की शिकार
तो नहीं
हुई है,
जिसकी वजह
से उसे
पुरुषों से
इतनी नफरत
हो गई
है. नहीं
ऐसा नहीं
हो सकता,
पर- - -,
नहीं अब
वह उसके
बारे में
नहीं सोचेगा.
गराज में
कार पार्क
करते शरद
ने निश्चय
कर डाला.
अपने निश्चय
के बावजूद
दूसरे दिन
शरद ने
अपने असिस्टेंट
को बुला
कर कहा_
“महिला
कल्याण केद्र
द्वारा यह
कार्यक्रम आयोजित
किया जा
रहा है,
इस कार्यक्रम
से जो
धन आएगा,
उसे पीड़ित
महिलाओं के
कल्याण-कार्यों
में लगाया
जाएगा. ऑफिस
में. जो
लोग दुखी
स्त्रियों की
सहायता करना
चाहें उन्हें
ये टिकट
दे दीजिएगा,
उम्मीद इस
पुनीत कार्य
में सब
मदद करेंगे.”
“क्यों
नहीं सर,
लोग पिक्चर
देखने में
भी तो
इतने पैसे
बर्बाद करते
है. ये
तो पुन्य
का काम
है.” असिस्टेंट
ने चापलूसी
भरे शब्दों
में. कहा.
वह अच्छी
तरह से
समझता था,
साहब का
काम पूरा
करने के
बहुत फायदे
हैं.
चार दिनों
में तीस
टिकट बिक
जाना कठिन
काम नहीं
था, भले
ही पीठ-पीछे
कुछेक ने
कहा, ये
हमारे कुमार
साहब को
समाज-सेवा
का शौक
कब से
हो गया.
शायद अपनी
किसी गलती
का प्रायश्चित
कर रहे
हैं. जो
भी हो
शरद के
असिस्टेंट को
अपने काम
में तो
कामयाबी मिल
ही गई
थी.
आकांक्षा को
एकत्रित की
गई राशि
देने के
बहाने शरद
को फिर
उससे मिलने
का बहाना
मिल ही
गया.
“वाह, आपने
तो कमाल
कर दिया.
धन्यवाद के
साथ आपको
ये वी
आई पी
कार्ड देना
मेरा फ़र्ज़
बनता है.
आपके लिए
प्रोग्राम में
सबसे अगली
सीट पर
स्थान रहेगा,
पर समय
से आना
पडेगा, ये
इसलिए कह
रही हूँ
क्योंकि आप
एक व्यस्त
अधिकारी हैं.”
“आपके
लिए तो
समय से
पहले आना
मेरा सौभाग्य
होगा. वैसे
मैंने कोई
इतना बड़ा
काम नहीं
किया है
की मुझे
वी आई
पी बना
दिया जाए.
अगर मेरे
पुरुष होने
से आपको
कोई परेशानी
न हों
तो आपके
कार्यों में
सहयोग देकर
मुझे बहुत
खुशी होगी,”
मीठी सी
मुस्कान शरद
के अधरों
पर आ
ही गई
“कितने
पुरुष वस्तुत:
पुरुष होते
हैं, मिस्टर
कुमार? कभी
यही पुरुष
इंसान के
वेश में
जंगली भेड़ियो
से भी
बदतर होते
हैं, पर
एक पुरुष
होने के
नाते आप
इस सत्य
को स्वीकार
नही कर
सकते.”
“मुझे
आप जानती
ही कितना
हैं, दुःख
है कि
आपने मुझे
भी जानवरों
की श्रेणी
में रख
दिया. जीवन
में किसी
पुरुष के
धोखे का
शिकार बनने
के कारण
सब पुरुषों
को एक
ही तराजू
में तौलना
क्या ठीक
है, आकांक्षा
जी?” शरद
का स्वर
आहत था.
“माफ़
कीजिए, आपको
निशाना बनाना
मेरा लक्ष्य
नहीं था,
आपने यह
कैसे सोच
लिया, मै
किसी का
शिकार बन
सकती हूँ.
नही. शायद
गलत कह
रही हूँ,
इन्हीं पुरुष
नामधारी जीवों
के कारण
मुझे समाज
ने एक
ऐसा खिताब
दिया है
जिसे पाकर
मै पत्थर
बन गई
हूँ.’
“आप
पत्थर बन
गई हैं,
ऐसा तो
कहीं किसी
ऐंगल से
नहीं देख
पा रहा
हूँ. आप
तो एक
कोमल टहनी
पर खिली
गुलाब का
फूल दिखती
हैं.’ शरारती
मुस्कान शरद
के अधरों
पर थी.
‘गुलाब
के फूलों
की ज़ात
यानी किस्मों
के नाम
होते हैं,
मेंरे पास
गुलाबॉ जैसा
कुछ नहीं
है. आकांक्षा
ने अजीब
स्वर में
कहा.कहा.
“आप
की बातें
समझ नहीं
पाया, मेरे
लिए आप
पहेली बनती
जा रही
हैं.’
“मुझे
पहेली ही
बनी रहने
दें, समाधान
पाने के
प्रयास में
बहुत निराशा
होगी. एक
दिन बाद
प्रोग्राम है,
बहुत काम
करने है.
आप ठीक
समय पर
आ जाइएगा.”
“जो
भी हो,
आप अगर
पहेली हैं
तो मै
समाधान खोज
कर ही
चैन से
सो सकूंगा.”
शरद दृढ
था.
“परेशान
न हों
,मिस्टर
कुमार. समाधान
खोजने में
आपकी बहुत
लोग सहायता
करेंगे.” अब
माफी चाहूंगी, अचानक
आकांक्षा उठ
कर चली
गई विस्मित
शरद उसे
जाते देखता
रह गया.
शरद परेशान
था, आकांक्षा
उसकी समझ
से परे
थी. उसने
क्यों कहा
उसके पास
गुलाबों जैसा
कुछ नहीं
है, पर
सिर्फ आकांक्षा
ही क्या
किसी गुलाब
से कम
है? शरद
जितना ही
आकांक्षा के
बारे में
ना सोचना
चाहता ,वह
उसके दिमाग
पर हावी
होती जा
रही थी.
यह तो
निश्चित था
उसके मन
पर कोई
आघात पहुंचा
था, पर
क्या? काश
वह पहेली
बूझ पाता.
शरद को
लगता शायद
वह आकांक्षा
को चाहने
लगा है.
यह तो
सच था
उसमें चुम्बकीय
आकर्षण है,
पर उसकी
उदासीनता शायद
किसी को
भी अपने
पास नहीं
आने देती.
यही तो
अविनाश ने
भी कहा
था. इसी
उधेड़बुन में
शरद की
आँख लगी
ही थी
कि फोन
की घंटी
बज उठी.
अलसाए शरद
ने फोन
उठाया. दूसरी
और उसके
चाचा थे.
“शरद
बेटा कैसे
हो? तुम्हे
नींद से
उठा दिया,
कल मै
तुम्हारे पास
पहुँच रहा
हूँ. रिसीव
तो करोगे
ही, पर
पिछली बार
की तरह
लेट मत
हो जाना..’
चाचा जी
की हँसी
ने शरद
को चैतन्य
कर दिया.
“डोंट
वरी चाचू
, समय
से पहले
पहुँच जाऊंगा.”
फोन रख
कर शरद
के अधरों
पर मुस्कान
आ गई.
दूसरे दिन
चाचा के
आ जाने
से शरद
बहुत खुश
था. चाचा
उसे बेटे
की तरह
से प्यार
करते थे.
दोनों के
बीच चाचा-भतीजे
से ज़्यादा
दोस्ती का
रिश्ता था.
शरद उनके
साथ अपने
दिल का
हर राज़
आसानी से
खोल सकता
था. चाचा
को शहर
घुमाने के
लिए उसने
ऑफिस से
छुट्टी ले
ली.
‘आप
बहुत अच्छे
समय पर
आए हैं,
कल यहाँ.
के महिला
कल्याण केंद्र
द्वारा एक
कलचरल प्रोग्राम
होने वाला
है, मुझे
वी आई
पी कार्ड
मिला है,
आपको भी
चलना होगा.’
शरद ने
खुशी से
कहा.
‘वाह, बेटा
तुम कब
से महिलाओं
का कल्याण
करने लगे?”
चाचा ने
मज़ाक किया.
दूसरे दिन
शरद बेहद
उत्साहित था.
ठीक समय
पर पहुँचने
की बात
उसे याद
थी नियत
समय पर
चाचा के
साथ शरद
कार्यक्रम-स्थल
पर पहुँच
गया. द्वार
पर गुलाब
की कलियाँ
देकर उनका
स्वागत किया
गया. हाल
में शरद
की आँखे
आकांक्षा को
खोज रही
थीं. पर
आकांक्षा कहीं
नहीं दिखी.
कार्यक्रम का
संचालन मिस्टर
नारंग कर
रहे थे.
उनके साथ
शहर के
एन जी
ओ के
दो सदस्य
मंच पर
थे. मिस्टर
नारंग ने
केंद्र के
बारे में
बताते हुए
आकांक्षा की
भूरि –भूरि
प्रशंसा की.
शरद का
जैसे उत्साह
ही ख़त्म
हो गया
था. अचानक
गुलाबी रंग
की साड़ी
में आकांक्षा
ने मीठी-सधी
आवाज़ में
माइक पर
धन्यवाद देना
शुरू किया
था. उसकी
वाणी और
अनुपम सौन्दर्य
से हाल
में सन्नाटा
सा खिच
गया. शरद
उसे अपलक
निहारता रह
गया तभी
पास बैठे
चाचा की
आवाज़ ने
उसे चौंका
दिया.
“अरे, आकांक्षा
यहाँ? इतने
दिनों बाद
आज आकांक्षा
यहाँ मिलेगी,
सोचा भी
नहीं था.”
“आप
आकांक्षा को
जानते हैं
चाचू?’ शरद
विस्मित था.
“मै
ही क्या,
फूलपुर का
हर इंसान
आकांक्षा को
जानता है.
बड़ी लम्बी
कहानी है.’
“ऎसी
क्या बात
है, चाचू?”
शरद का
रोम- रोम
जैसे कान
बन गया
हो. अब
तो उस
पहेली को
बूझने का
समय आ
पहुंचा था,
जिसे जानने
के लिए
वह बेचैन
था. कार्यक्रम
से तो
उसका मन
उचाट हो
गया था.
अपनी क्षमता
के अनुसार
केंद्र की
स्त्रियों का
प्रदर्शन अच्छा
ही था,
निश्चय ही
उनकी इस
सफलता में
आकांक्षा के
कुशल निर्देशन
और नेतृतव
का कमाल
था, पर
शरद को
तो घर
जाने की
जल्दी थी.
“घर
चल कर
बात करते
हैं. कल
आकांक्षा से
भी मिलूंगा.
आज तो
वह व्यस्त
है”. चाचा
निश्चिन्त थे.
घर पहुंचते
ही शरद
ने सवालों
की झड़ी
लगा दी.
“चाचू, ऎसी
क्या बात
थी जो
आपने कहा,
आकांक्षा को
सब जानते
थे.”
“बात
ही ऎसी
थी. आकांक्षा
की अपूर्व
सुन्दरी माँ
माया, फूलपुर
में दरिंदों
की दरिंदगी
का शिकार
हुई थी.
उस सुन्दर
अकेली औरत
पर दरिन्दे
आँख लगाए
बैठे थे.
“क्या
माया जी
के साथ
उनके परिवार
वाले नहीं
थे/”
“अपने
माता-पिता
को एक
दुर्घटना में
खोकर, उसे
ताऊ के
घर शरण
लेनी पड़ी
थी. ताऊ
ने उसकी
सम्पत्ति पर
अपना अधिकार
जमा, उसे
बेघर कर
दिया. उनके
दुर्व्यवहार
के कारण
माया ने
फूलपुर के
एक स्कूल
में नौकरी
कर ली.
इलाहाबाद से
रोज़ फूलपुर
आना –जाना
कठिन था
इसलिए फूलपुर
में ही
एक कमरा
ले कर
रहने लगी.’
‘आप
ये सब
बातें कैसे
जानते हैं,
चाचू?”
‘उस
समय फूलपुर
मेरी ही
कस्टडी में
आता था.
तेज़ तूफानी
रात में
माया का
दरवाज़ा तोड़
कर वे
दरिन्दे घुसे
थे. माया
की चीखें
किसी को
नहीं सुनाई
दी या
जान कर
न सुनी
गईं. सुबह
खुला दरवाज़ा
देख कर
थाने में
खबर दी
गई थी.
उसे अस्पताल
मे भरती
करा दिया
गया, पर
माया अपना
मानसिक संतुलन
खो चुकी
थी. सबसे
बड़ी त्रासदी
तो यह
हुई जब
दो माह
बाद उसे
गर्भवती पाया
गया.” चाचा
चुप होगए.
.“सच
यह तो
माया जी
के प्रति
बहुत बड़ा
अन्याय हुआ,
उन्हें. किसने
सहारा दिया
चाचू?’
“मिशन
अस्पताल से
आई डाक्टर
माया के
प्रति बहुत
सहानुभूतिपूर्ण
थीं, उस
अवस्था में
उसे मेंटल
हॉस्पिटल भेजना
उचित नही
था, माया
के ताऊ-ताई
ने उसे
पापिन कह
घर में
रखने से
साफ़ इनकार
कर दिया.
नौ माह
बाद बेटी
को जन्म
देते ही
माया ने
इस दुनिया
से विदा
ले ली.
बच्ची का
प्यारा चेहरा
देख डाक्टर
के मुंह
से सहसा
निकल गया
‘आकांक्षा’. बस
तभी उसका
नामकरण हो
गया. अस्पताल
की दाई
रतनी को
बच्ची की
देखभाल का
दायित्व दिया
गया.,
अकेली जान
रतनी को
बच्ची के
साथ
जैसे नया
जीवन मिल
गया.
“आकांक्षा
के ताऊ-ताई
के मुकाबले
तो रतनी
दाई अच्छी
थी. क्या
आकांक्षा रतनी
के साथ
रही, चाचू?’शरद
की आवाज़
में आक्रोश
था.
“रतनी
ने उसे
माँ जैसा
प्यार दिया,
पर मोहल्ले
वाले उस
बच्ची को
पाप की
औलाद और
नाजायज़ कहते
थे. यहाँ
तक कि
बच्चे भी
उसे पापिन
कह कर
चिढाते. समय
बीतता गया.
आकांक्षा चौथी
कक्षा में
पहुँच
गई, पढाई
में वह
हमेशा अव्वल
रही. स्कूल
में एक
फ़ार्म भरती
आकांक्षा ने
अपना नाम
“आकांक्षा नाजायज़”
लिखा तो
टीचर स्तब्ध
रह गई.
वास्तविकता
जानने पर
टीचर ने
रतनी को
समझा कर
आकांक्षा को
अपनी मिशन
में काम
कर रही
विधवा बहिन
के पास
पढ़ने के
लिए भेज
दिया.. मुझे
खबर मिलती
रही आकांक्षा
अब बड़ी
हो चुकी
थी और
नाजायज़ का
अर्थ समझने
लगी थी.
दुःख इस
बात का
है
कि फूलपुर
का कोई
व्यक्ति अचानक
मिलने पर
आकांक्षा के
घाव कुरेद
देता एक
अखबार में
पुरस्कार लेती
आकांक्षा को
देखा था
इसीलिए आज
पहचान गया.”
“ओह
इसीलिए वह
किसी के
सामने नहीं
खुलती, अपने
को सबसे
अलग और
दूर रखती
है . मुझे
वह हमेशा
एक अनबूझ
पहेली ही
लगी.”
“तुम
आकांक्षा को
कितना और
कैसे जानते
हो?’ तभी
उनकी नज़र
टीवी पर
रखे एक
फोटो पर
पड़ी, जिसमे
आकांक्षा गुलाब
के फूल
से होड़
लेती खडी
थी.
“हूँ, तो
तुम्हारा आकांक्षा
के साथ
कोई अफेयर
चल रहा
है?’ चाचा
गंभीर थे.
‘ऐसा
बिळ्कुळ नहीं
है चाचू,
पर न
जाने क्यों
मै उसके
प्रति गहरा
खिचाव महसूस
करता हूँ.”
शरद नि:संकोच
पूरी कहानी
सुना गया.
“उसके
साथ शादी
का इरादा
तो नहीं
रखते, बरखुरदार?”
“अगर
ऐसा हो
तो उसे
मै अपना
सौभाग्य मानूंगा.”शरद
ने सच्चाई
से कहा.
“उसकी
सच्चाई जानते
हुए भी
क्या अपनी
माँ को
इस शादी
के लिए
राजी कर
सकोगे?”
“उस
काम के
लिए आप
पर पूरा
भरोसा है.
पापा के
न रहने
पर माँ
आप पर
ही तो
वि्श्वास रखती
हैं.”
“ठीक
है, पर
पहले तुम
तो आकांक्षा
से ‘हाँ’
कहला लो.”
चाचा जैसे
सोच में
पड़ गए
थे.
“शुक्रिया
चाचू जान,
आपने तो
मेरी प्रॉब्लेम
ही हल
कर दी,
इसीलिए तो
आप मेरे
प्यारे चाचू
हैं.’
शरद को
रात काटनी
मुश्किल लग
रही थी,
कैसे सवेरा
हो और
वह आकांक्षा
के सामने
अपने दिल
का राज
खोल दे.
क्या कमी
है आकांक्षा
में, अगर
उसकी माँ
के साथ
कुछ गलत
हुआ तो
उसमे आकाँक्षा
का क्या
दोष? आज
वह समझ
पा रहा
था वह
आकांक्षा की
ओर न
सिर्फ उसके
अनुपम सौदर्य
की वजह
से आकृष्ट
था बल्कि
उसके पूरे
वजूद ने
शरद को
अपने मोहपाश
में जकड
लिया था.
शरद को
आया देख
आकांक्षा का
चेहरा खिल
उठा.
“माफ़
कीजिएगा, कल
आपको इतने
सुन्दर प्रोग्राम
के लिए
बधाई नहीं
दे सका.”
शरद ने
कहा.
“धन्यवाद,
आपके सहयोग
के लिए
हम सब
भी आभारी
हैं.” मीठे
स्वर में
आकांक्षा ने
उत्तर दिया.
“ आकांक्षा
जी, आज
आपसे कुछ
माँगने आया
हूँ, देने
का वादा
करना होगा?”
“मै
आपको क्या
दे सकती
हूँ, अगर
संभव हुआ
तो वादा
पूरा कर
के ज़रूर
खुशी होगी.”
“क्या
आप मुझे
अपना जीवन
साथी बना
सकती हैं?
मै आपको
बहुत चाहता
हूँ. जीवन
भर आपका
साथ देता
रहूँगा.” बिना
किसी भूमिका
के अचानक
शरद कह
गया.
“क्या—
- कह
रहे हैं
आप?’ आकांक्षा
का चेहरा
पीला पड़
गया.
“मै
आपकी पूरी
कहानी जानता
हूँ, जो
हुआ उसके
लिए आप
कतई जिम्मेदार
नहीं हैं.”
“सब
कुछ जानते
हुए आप
ऐसा प्रस्ताव
रख कर
मेरा उपहास
क्यों करना
चाहते हैं?”
“आपका
उपहास नहीं
अपना सत्य
बता रहा
हूँ. जिस
दिन से
आपको देखा
है एक
अजीब कशिश
महसूस करता
रहा और
अब अपने
दिल का
सत्य जान
चुका हूँ.
प्लीज़ आकांक्षा,
मुझे स्वीकार
कर लो.”
‘जब
से समझ
आई, अपने
लिए पापिन
की बेटी,
नाजायज़ शब्दों
में भरा
तिरस्कार ही
झेला है.
आपको उस
अपमान का
भागी कैसे
बनने दे
सकती हूँ.
मुझे क्षमा
करें.”
“अगर
ऎसी बात
है तो
मै कहूंगा,
आपकी ये
समाज-सेवा
एक झूठ
है,” तेज़
आवाज़ में
शरद ने
कहा.
‘क्या
कहा, मेरी
समाज-सेवा
झूठ है,
किस आधार
पर आप
ऐसा कह
सकते हैं?’
आवाज़ भीगी
सी थी.
‘सच
ही तो
कह रहा
हूँ, जो
अपने मन
की कुंठा
से मुक्त
नहीं हो
सकी, वह
दूसरों का
मार्ग-दर्शन
कैसे कर
सकती है?
आपको तो
अपनी माँ
या अपने
लिए कहे
गए अपशब्दों
को चुनौती
की तरह
स्वीकार कर
के सबका
डट कर
विरोध करना
चाहिए था,
पर आपने
क्या किया?
अपने को
सबसे अलग
काट कर
अपने लिए
अकेलेपन की
सज़ा खुद
तय कर
ली.”
“आप
समझ नहीं
रहे हैं,
पूरे समाज
से लड़
पाना क्या
इतना आसान
होता है.
ना जाने
मेरी माँ
मुझे जन्म
देने तक
कैसे जीवित
रह पाई.”
आकांक्षा का
स्वर भीग
आया.
“माँ
का दुःख
याद करने
की जगह
आपको तो
अपने आक्रोश
की आग
से समाज
में चेतना
जगानी चाहिए
थी. आप
आज तक
वही पुराना
दुःख जी
रही हैं.,
नाजायज़ और
नपुंसक तो
वह दरिन्दे
थे जिन्होंने
रात के
अँधेरे में
एक अबला
का जीवन
नष्ट किया.’
शरद की
आवाज़ में
उत्तेजना थी.
चेहरा क्रोध
से लाल
हो उठा.
उस चहरे
को विस्मय-
विमुग्ध आकांक्षा
ताकती रह
गई.
“आज
तक किसी
ने मुझसे
इस तरह
से चुनौती
नही दी,
मिस्टर कुमार.
आप ठीक
कहते हैं
मुझे कुंठा-मुक्त
होना चाहिए.’आकांक्षा
के नयन
छलछला आए.
“इसी
बात पर
मेरी अर्जी
मंजूर कर
लो आकांक्षा.
तुम्हारे पास
कुंठा को
फटकने भी
नहीं दूंगा.
मेरा प्यार
सब भुला
देगा.’ शरद
की उत्सुक
दृष्टि आकांक्षा
के चहरे
पर निबद्ध
थी.
‘आपको
मेरी माँ
की दुर्भाग्य
पूर्ण कहानी
किसने सुनाई,
मिस्टर कुमार.?”
“.उस
घटना के
समय मेरे
चाचा इलाहाबाद
में सीनियर
एस पी
थे. उन्होंने
ही उन
दरिंदों को
सज़ा दिलवाई
थी. आज
भी उन्हें
दुःख है,
उन वहशियों
को फांसी
नहीं दिलवा
सके. मुझे
विश्वास है
समाज में
चेतना आएगी,
समाज बलकृत
स्त्री से
नहीं बलात्कारियों
से घृणा
करेगा, उन्हें
फांसी की
सज़ा दी
जाएगी. चाचा
जी तुम्हे
जानते हैं,
उन्होंने ही
तुम्हारी हाँ
सुनने के
लिए मुझे
यहाँ भेजा
है.”
“आपने
तो मेरा
दृष्टिकोण ही
बदल दिया,
मिस्टर कुंमार.
मै सोच
भी नहीं
सकती थी
कोई पुरुष
आप जैसे
विचार भी
रखता होगा.
हमेशा डरती
रही, यहाँ
तक कि
साथ की
लड़कियों से
भी मित्रता
नहीं कर
पाई. हमेशा
यही डर
रहा, कहीं
वे मेरी
कहानी जान
कर मुझसे
नफरत ना
करें. आप
नहीं जानते
बचपन से
कितनी नफरत
और अपमान
का ज़हर
मैने पिया
है.”आकांक्षा
का गला
भर आया.
.“दूसरों
के विवाह
होते देख
क्या कभी
आपके मन
में भी
विवाह की
इच्छा नहीं
हुई, आकांक्षा?’’
“नहीं, एक
ही बात
मुझ पर
हावी रही,
अगर कभी
कोई समझदार
सुपात्र व्यक्ति
मिला भी
होता और
उससे शादी
कर भी
लेती तो
हमेशा डर
लगा रहता,
जो अपमान
का ज़हर
मुझे पीना
पडा, कहीं
वही अपमान
मेरे जीवन
साथी और
नाजायज़ माँ
की संतान
कहला कर,
मेरी सन्तान
को ना
सहना पड़े
? सच
तो यह
है पुरुष
मात्र से
नफरत की
वजह से
मैने कभी
शादी की
बात भी
नही सोची”.
“अब
तो यह
डर अपने
मन से
निकाल फेंको,
आकांक्षा. किसकी
मजाल जो
मेरी पत्नी
या मेरे
बच्चों की
और नज़र
उठा कर
भी देख
सके. कुछ
उलटा-सीधा
कहना तो
दूर की
बात है.
मुझे हिम्मती
इंसान तो
मानोगी, अब
तो ‘हाँ’
कह दो
आकांक्षा. एक
रिक्वेस्ट है,
मिस्टर कुमार
नहीं, मै
तुम्हारा शरद
बनाना चाहता
हूं, आकांक्षा.’
शरद की
गहरी दृष्टि
आकांक्षा के
चहरे पर
निबद्ध थी.
आकांक्षा को
मोंन देख
शरद व्यग्र
हो उठा.
“मुझ
पर यकीन
नहीं कर
पारही हो,
आकांक्षा? कहो
तो अपनी
सच्चरित्रता
के प्रमाण-पत्र
प्रस्तुत कर
दूं.,
गवाहों को
पेश करूं,
जो कहो
करने को
तैयार हूँ,
बस तुम्हारी
ना नहीं
सुन सकता.”
‘मुझमे
ऐसा क्या
देखा मिस्टर
कुमार जो
इस हद
तक दीवानगी
है. वैसे
आपके प्रमाणपत्र
की ज़रुरत
नहीं है.
शीला भाभी
से आपकी
तारीफें सुन
चुकी हूँ.
सच तो
यह है,
आपको मुझसे
ज़्यादा अच्छी
हज़ारों लडकियां
मिल जाएंगी.
हम दोनों
के बीच
कोई प्रेम-संबंध
भी तो
नहीं है.
मेरी जो
परिस्थितियाँ
है उनमे
इतनी जल्दी
कोई निर्णय
ले पाना
संभव नहीं
है.”
“iइसका
मतलब आप
प्रेम में
तो यकीन
रखती हैं.
एक सच
बताइए क्या
कभी कोई
आपकी ओर
या आप
किसी की
और आकृष्ट
हुई हैं?’
‘मेरा
तो सवाल
ही नहीं
उठता, हाँ
अगर कोई
आपकी तरह
मेरा बाहरी
रूप देख
कर आकर्षित
हुआ भी
हो तो
मेरी उदासीनता
और दृढ़ता
के कारण
किसी को
आगे बढ़ने
का साहस
ही नही
हुआ. उस
दृष्टि से
आप सचमुच
बहुत हिम्मती
हैं, मिस्टर
कुमार. आपकी
बातों में
न जाने
क्या बात
थी जो
आपके साथ
मै अपनी
वो बातें
शेयर कर
सकी, जो
वर्षों से
मेरे सीने
में कैद
थीं.”
“मिस्टर
कुमार नहीं,
आपके मुंह
से शरद
अच्छा लगेगा.
इसका मतलब
मुझसे आप
प्रेम भले
ही न
करें, , पर
आपके मन
में मेरे
लिए नफरत
तो कतई
नही है,
अब आप
मेरी हिम्मत
जान ही
गई हैं
तो अपना
लक्ष्य पूर्ण
किए बिना
पीछे नहीं
हटने वाला,
आपको दो
दिन का
समय देता
हूँ बशर्ते
आपका उत्तर
“हाँ” में
होगा.’
“क्या
ये बात
धमकी तो
नहीं है
या जो
आपने हमारे
प्रोग्राम के
जो तीस
टिकट बेचे
उसका मुआवजा
चाहते हैं.?”आकांक्षा
हलके से
मुस्कुराई.
“अच्छा
तो आप
मज़ाक भी
कर लेती
हैं. शायद
अभी आपके
व्यक्तित्व
के न
जाने कितने
पृष्ठ खुलने
बाक़ी हैं.”
शरद भी
हंस पडा.
घर पहुँच
चाचा को
न देख
शरद ने
सोचा वह
किसी से
मिलने गए
होंगे. उन्हें
सारी बात
बताने को
उतावला था.
आकांक्षा क्या
हाँ कहेगी.
मन बेचैन
था. संध्या
का अन्धकार
घिरता आ
रहा था,
तभी उसके
चाचू जान
ने घर
में प्रवेश
किया.
“आप
कहाँ गए
थे, चाचू?
कब से
आपका इंतज़ार
कर रहा
था.” शरद
ने नाराजगी
दिखाई.
“लगता
है, तुम्हारी
बात बनी
नहीं वरना
चेहरा यूं
लटका सा
न होता.”
बिना रुके
शरद आकांक्षा
के साथ
हुई अपनी
सारी बातें
बता गया,”
“मुझे
तो उम्मीद
कम लगती
है, तुम्हारा
प्यार एकतरफा
है, शरद.”
“नहीं, चाचू,
उसने खुद
स्वीकार किया
है, मै
वह पहला
इंसान हूँ,
जिसके साथ
उसने अपना
दिल खोल
कर बाते.
की हैं.
आपको ऐसा
क्यों लगा?”
शरद मायूसी
से बोला.
“अरे
बेटा, तेरा
अधूरा काम
मै कर
आया हूँ.
तू तो
उससे हाँ
नहीं करा
सका, पर
मै उसकी
रजामंदी ले
आया हूँ.
काम आसान
नहीं था,
पर तेरी
बातों से
उसे नई
दिशा मिली
और बाक़ी
कमी मेरी
कोशिश से
पूरी हो
गई. आखिर
तेरा चाचू
जान जो
ठहरा” चाचा
मुस्करा रहे
थे.
“ओह
चाचू आप
महान हैं.
बहुत बहुत
शुक्रिया.” खुशी
से शरद
चाचू से
लिपट गया.
“कल
वापिस चला
जाऊंगा, भाभी
को भी
तो राजी
करना है.”
“वो
तो आपके
बाँए हाथ
का खेल
हैं, चाचू.’”
शरद का
चेहरा खुशी
से जगमगा
उठा.
दूसरी सुबह
का शरद
को बेसब्री
से इंतज़ार
था. हाथ
में अपनी
गार्डेन के
ताज़े गुलाबों
के साथ
शरद आकांक्षा
से मिलने
जा पहुंचा.
“स्वीकृति
दे कर
इस शरद
को अनुगृहीत
किया है,
आकांक्षा. देखो
इन गुलाबों
में एक
भी काँटा
नहीं है,
अब शरद
कुमार के
साथ तुम्हारा
जीवन भी
कंटक रहित
होगा.”
“आप
पर विश्वास
है, अब
इस आकांक्षा
के जीवन
में अगर
कभी किसी
कांटे ने
गलती से
भी आने
की कोशिश
की तो
वह चुभ
नहीं सकेगा
क्योंकि उसमे
प्यार का
गुलाबी रंग
होगा,.” हाथ
में शरद
के लाए
गुलाब के
फूल लेती
आकांक्षा ने
कहा.”
“कमाल
है, मेरी
चाहत ने
आपको एक
रात में
कवयित्री बना
दिया, आकांक्षा
जी, आपने
तो काँटों
को भी
गुलाब का
ताज पहना
कर गुलाबी
रंग दे
दिया.’ शरद
हंस रहा
था.
‘कवयित्री
तो नहीं,
पर सच
ये है,
आपसे बातें
करने के
बाद इतना
हल्का महसूस
कर रही
थी जैसे
आकाश में
उड़ रही
हूँ.”
“यही
सच है,
अपने पंख
पसारो, आकांक्षा,
तब देख
पाओगी सारा
आकाश तुम्हारा
है.’ आकांक्षा
के माथे
पर झूल
आई लट
को बड़े
प्यार से
हटाते शरद
ने कहा.
उभरते सूर्य की रश्मियों के साथ आकांक्षा के चेहरे पर खुशियों के गुलाब खिल रहे थे.
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