अनुबन्ध
कुलदीप के शव को फटी आँखों से ताकती तनवीर पत्थर बनी बैठी थी। परिचित परिवारों के सदस्य इकट्ठे होते जा रहे थे। केन्ट का वह एरिया भारतीय विशेषकर पंजाबी और सिख.समुदाय का केन्द्र था। तनवीर की हालत देख, औरतों के आँसू नहीं थम रहे थे। अभी चार महीने पहले ही तो लाल जोड़े में आई तनवीर की आरती उतार उन्होंने प्यार से घर के अन्दर लिया था। छुटपन से अनाथ कुलदीप अपने प्यार.भरे स्वभाव के कारण किसी का बेटा, किसी का भाई या देवर बन चुका था। उन परायों के बीच उसे अपना परिवार मिल गया था।
‘‘अरी तन्नी, तू रोती क्यों नहीं, तेरा कुलदीप तुझे अकेला छोड़, हमेशा के लिए चला गया।’’ चुन्नी के छोर से आँखें पोंछती मनजीत परजाई रो पड़ीं। कुलदीप के रूप में उन्हें लक्ष्मण जैसा देवर मिल गया था।
बुत बनी तनवीर की कोई प्रतिक्रिया न देख,
सतवन्त ताई आगे बढ़ आईं। तनवीर को गले से लगा रुँधी आवाज में तसल्ली देनी चाही-
‘‘तू फिकर न कर,
तन्नी पुत्तर। हम सब तेरे अपने हैं। अपने को अकेला मत समझ।’’
साथ के टैक्सी.ड्राइवर उदास खड़े थे। उनके बीच से उनका सबसे ज्यादा जिन्दादिल साथी कुलदीप उन्हें छोड़ गया। हाइवे पर एक्सीडेन्ट होना कोई नई बात नहीं थी, पर कुलदीप तो बहुत होशियार ड्राइवर था। पुलिस का कहना है, एक्सीडेन्ट के समय वह मोबाइल पर बात कर रहा था।
पैसेन्जर से अच्छे पैसे पाकर कुलदीप की खुशी दुगनी हो गई थी। उत्साहित कुलदीप ने तनवीर को फोन लगाया था। शाम को लोढ़ी में पहनने के लिए उसने अपनी तन्नी के लिए जामुनी रंग का जरदोरी का सलवार-सूट खरीदा था। तभी जोर के धमाके के साथ सब शून्य हो गया। घबराई तनवीर बस ‘हलो जी...ई’
कहती रह गई थी।
अन्तिम संस्कार के समय कुलदीप का कोई अपना न होते हुए भी सब उसके अपने थे। सबकी आँखें नम थीं। अचानक जैसे तनवीर को होश हो आया। दिल दहलानेवाला उसका चीत्कार सबको रुला गया। बड़ी मुश्किल से औरतें उसपर काबू पा सकीं।
पाँच.सात दिन बारी.बारी
से कोई.न.कोई पड़ोसिन तनवीर के पास बनी रहीं। सतवन्त ताई और मनजीत परजाई का मन अपने घर में टिकता ही नहीं था। तन्नी का दुःख उनका अपना दुःख बन गया था। सबके सामने एक बड़ा सवाल था, आगे अब तन्नी का क्या होगा? किराए का घर तो छोड़ना ही होगा। सब सोच में पड़ गए। कहाँ जाएगी, तनवीर?
कुलदीप और तनवीर दोनों की कहानी से सब परिचित थे। कुलदीप ने बताया था, छुटपन में ही उसके माता.पिता
हैजे के शिकार हो, उसे चाचा.चाची के सहारे छोडकर, इस दुनिया से जा चुके थे। लालची चाचा.चाची
पूरी जायदाद पर कब्जा चाहते थे। समझदार हो रहा कुलदीप उनकी राह का काँटा था। जवान हो रहे कुलदीप को शुभचिन्तक गाँववालों ने इशारों-इशारों में बताया था, चाचा
उसकी जान का दुश्मन बन चुका है। उसके साथ रहने में उसकी जान को खतरा है। पास के गाँव में रहनेवाला जगजीत अक्सर कुलदीप से मिलता रहता। जगजीत जर्मनी में टैक्सी चलाता था। कुलदीप की दयनीय हालत देख, उसने
सलाह दी थी,
‘यहाँ
रहकर चाचे की चाकरी करके क्यों बेकार गालियाँ खाता है। मेरे साथ चल। कुछ दिन जर्मनी में टैक्सी चलाने के बाद अमेरिका का वीसा आसानी से मिल जाएगा। तेरी जिन्दगी बन जाएगी, कुलदीपे।’
चाचा
ने पूरी जायदाद अपने नाम लिखवा, कुलदीप को जर्मनी के टिकट के पैसे देकर उसपर एहसान किया था। अमेरिका आकर कुलदीप की दुनिया ही बदल गई। जगजीत को वह अपना मार्ग-दर्शक भाई मानता। जगजीत की घरवाली, मनजीत परजाई के साथ अपना सुख.दुःख
बाँटता। वह स्पष्ट कहता-
‘खून के रिश्तों से बड़ा मन का रिश्ता होता है। जगजीत से मेरे मन का रिश्ता है। उसने मुझे नई जिन्दगी दी है।’
जगजीत की बहन की शादी में कुलदीप भी उसके साथ, उसके
गाँव गया था। आखिर जगजीत की बहिन कुलदीप की भी तो बहिन
ही हुई. वापसी में तनवीर भी उसके साथ आई थी।
‘क्यों रे, कुलदीपे, यह परी कहाँ से उड़ा लाया? तूने तो हमें अपनी शादी की खबर भी नहीं दी?’ सतवन्त ताई ने मीठा उलाहना दिया था।
‘हाँ, कुलदीप देवर जी, अब हमें सच.सच बताओ, यह कमाल कैसे हो गया?’ कमलजीत परजाई ने सबके मन की बात कही थी।
‘एक बात जान ले, कुलदीपे, अगर इन्हें पूरी कहानी नहीं सुनाई तो ये तूझे तनवीर से मिलने नहीं देंगी।’ मनजीत परजाई ने चेतावनी दे डाली। बीस दिन की बच्ची को लेकर मनजीत ननद की शादी में नहीं जा पाई थी। प्रेम.कहानी सुनने को वह भी उत्सुक थी।
‘अरे परजाई, ऐसी कड़ी सजा मत देना। चलो, मैं सब बताता हूँ।’
औरतें चित्त स्थिर कर जिज्ञासु मुद्रा में बैठ गईं। सबके मन में कोई फिल्मी कहानी उभर रही थी। कुलदीप ने बताना शुरू किया-
‘शादी
में हम सब लड़के देर रात तक जश्न मनाते रहे। सुबह सामने वाले कुएँ पर औरतों और लड़कियों की भीड़ जमा थी। सब खूब हँसी-ठिठोली कर रही थीं।’
‘हाँ, वही तो वक्त होता था, हम सब लड़कियाँ कुएँ पर कुछ देर बैठकर खूब गप्पें मारते थे।’ कमलजीत की आँखों के सामने अपने गाँव का कुआँ उभर आया।
‘हाँ.हाँ, वहीं
बैठकर सासों को बहू.पुराण सुनाने का मौका मिलता था।’ सतवन्त ताई की बहू ने कनखियों से सतवन्त ताई को ताका।
‘अरे, कुलदीप को अपनी बात तो पूरी करने दो। अपनी कहानी फिर कभी सुना लेना।’ सतवन्त ताई ने झिड़की दी।
‘मनजीत परजाई की बात सही है। सारी लड़कियाँ खूब हँसी.मजाक
कर रही थीं, पर उनमें से एक लड़की उदास दिख रही थी। लग रहा था, कोई फूल खिलने के पहले ही मुरझा गया था। मुझे लगा, जैसे
वह मेरा ही इन्तजार कर रही थी।’
‘ओए होए, कुलदीपे,
तू तो हीरो बन गया। अब बता, तूने
अपने प्यार का इजहार कैसे किया?’ मनजीत ने छेड़ा।
‘जगजीत ने बताया, वह तनवीर थी। सौतेली माँ के जुल्मों ने उसकी यह हालत कर दी है। कभी वही तनवीर मुहल्ले की जान हुआ करती थी। सौतेली माँ की तीन और बेटियाँ हैं, पर घर का सारा काम तनवीर के मत्थे डाल, सब मौज करती हैं।’
जगजीत की बातों से मुझे अपनी पुरानी जिन्दगी याद हो आई, बस तभी तनवीर के साथ अपनी शादी बनाने की ठान ली।’
‘यह हुई न मरदों वाली बात। एक बेसहारा लड़की को सहारा देकर तूने बड़ा अच्छा काम किया, कुलदीपे।’
सतवन्त ताई के चेहरे पर खुशी थी।
‘अमेरिका में कमानेवाला दूल्हा मिलने की बात से सौतेली माँ जल गई। शादी न होने देने के लिए बहुत अड़ंगे लगाए, पर गाँववालों और जगजीत की मदद से शादी हो ही गई। अब तनवीर को उस घर में कभी नहीं जाना पड़ेगा, जहाँ उसकी हालत मजदूरिन से भी बदतर थी।’ कुलदीप बात पूरी कर चुप हो गया। चेहरे पर दृढ़ निश्चय की चमक थी।
‘ठीक कहता है, कुलदीपे। हम अपनी तनवीर को इतना प्यार देंगे कि उसे अपने पुराने दिन कभी याद न आएँ।’
सचमुच कुलदीप के प्यार ने मुरझाई तनवीर को फूल.सा खिला दिया। दोनों की जोड़ी खूब सजती। कुलदीप की तरह ही तनवीर भी सबकी अपनी प्यारी ‘तन्नी’
बन गई।
अब तनवीर का क्या होगा? पुरुष.समाज सोच में पड़ गया। तनवीर तो टूरिस्ट-वीसा पर आई थी। कुलदीप ने सोचा था, अमेरिका में रहते हुए ही वह तनवीर का वीसा.स्टेटस बदलवा लेगा। कुलदीप खुद ग्रीन.कार्ड पर था। तनवीर कानूनन छह महीने से ज्यादा अमेरिका में रह नहीं सकती। भारत लौटाने का मतलब उसे फिर उसी नरक में झोंक देना था। वयोवृद्ध सरदार कुलवन्त सिंह ने समस्या उठाई।
‘‘अब हमें सोचना है, तनवीर पुत्तर की कैसे मदद की जाए?’’
‘‘सच तो यह है, ताया
जी, इधर कुआँ है तो उधर खाई है। तन्नी को इन्डिया नहीं भेजा जा सकता। हमारा कुलदीप उसे जिस आग से बचाकर लाया है, हम तन्नी को उसी आग में जलने को नहीं भेज सकते, पर यहाँ रहने में भी कानूनी अड़चन है।’’ जगजीत ने संजीदगी से कहा।
सब सोच में पड़ गए। अचानक हरजीत ने एक चैंकानेवाला प्रस्ताव सबके सामने रख दिया-
‘‘अगर माफी मिले तो जो एक तरीका दिमाग में आ रहा है! बताऊँ।’’
‘‘हाँ.हाँ, बेखौफ अपना तरीका बता, पुत्तर। तन्नी पुत्तर की खुशी हमारे लिए सबसे ऊपर है।’’
‘‘अरमिन्दर को जानते हैं न, ताया
जी?’’
‘‘अरे, उसे कौन नहीं जानता। पूरी बिरादरी को बदनाम कर रहा है।’’ सरदार जी का चेहरा कठोर था।
‘‘इस मुश्किल वक्त में वही हमारी मदद कर सकता है, ताया
जी।’’ हरजीत ने झिझकते हुए कहा।
‘‘क्या
कह रहा है, हरजीते? इसी अरमिन्दर ने पहले पचास साल की एक औरत के साथ शादी बनाकर अमेरिका की सिटीजनशिप ली। उसे तलाक देकर इन्डिया से सुरजीत के साथ शादी करके उसे लाया। उससे भी तलाक हो गया अब तो उसने यह धन्धा बना लिया है। पैसे लेकर जरूरत की लड़कियों से शादी करता है, उन्हें तलाक देकर खुला घूमता है। ऐसे नीच इन्सान से कौन.सी मदद मिलेगी। अरमिन्दर के तो नाम से भी नफरत होती है।’’ सरदार जी के चेहरे पर नफरत साफ थी।
‘‘हाँ, कहने को तो वह ऑटोमोबाइल्स पार्टस की दुकान का मालिक है, पर असल में वह औरतों को परमानेन्ट वीसा (स्थायी निवास का परमिट) दिलाकर पैसे कमाता है। इसके बावजूद कहता है, वह किसी की मजबूरी का कोई फायदा नहीं उठाता, बल्कि उनकी मदद करता है।’’ जगजीत ने नाराजगी से कहा।
‘यह सच बात है। असल में अरमिन्दर को न जाने क्यों औरत जात से नफरत है। उसके खिलाफ किसी लड़की ने कोई शिकायत नहीं की, बल्कि वे उसकी एहसानमन्द हैं।’’ हरजीत ने दलील पेश की।
‘‘तू कहना क्या चाहता है, हरजीते। साफ लफ्जों में अपनी बात कह।’’ सरदार जी ने जानना चाहा।
‘‘तनवीर की शादी अरमिन्दर से करानी होगी। अरमिन्दर की बीवी बनकर तनवीर को स्थायी वीसा मिल जाएगा। परमानेन्ट वीसा के बाद तनवीर यहाँ रहने और काम करने को आजाद होगी।’’ हरजीत ने बात साफ.साफ कह दी।
‘‘तेरी
बात का मतलब, हम मासूम तन्नी को उस भेडि़ए के हाथ सौंप दें?’ जगजीत ने गुस्से से कहा।
‘‘हम सब अरमिन्दर से बात करेंगे। यह बात साफ.साफ बता दी जाएगी कि यह शादी बस नाम के लिए होगी। उसकी मदद से तनवीर की मदद हो सकती है।’’
‘‘क्या
अरमिन्दर पर यकीन किया जा सकता है? अगर उसने तन्नी की मर्जी के खिलाफ कोई जबरदस्ती की तो?’’ जगजीत ने सवाल किया।
‘‘अगर उसने ऐसा करने की गलती की तो हम सब मिलकर उसे ऐसा सबक सिखाएँगे कि उसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी।’’
हरजीत ने दृढ़ता से कहा।
हरजीत की बात में दम था, पर अन्जाम खतरनाक भी हो सकता है। बहुत सोचने पर सबका फैसला हरजीत के पक्ष में ही था। तनवीर को इस नाम की शादी के लिए राजी करने की जिम्मेदारी औरतों को दी गई। तनवीर को समझा पाना आसान नहीं था। इन्डिया वापस जाने के नाम पर तनवीर काँप उठती। आते.आते सौतेली माँ ने कड़ी चेतावनी दी थी-
‘अमेरिका का लड़का फाँसकर हमारा बड़ा नाम किया है। खबरदार, जो दोबारा इस घर में पाँव रखने की जुर्रत की, तेरे
लिए इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बन्द हो चुके हैं। पलटकर मुँह दिखाया तो तेरी खैर नहीं।’
तनवीर को सीने से लगा, मनजीत ने समझाया-
‘‘देख तन्नी, तू मेरी छोटी बहन जैसी है। तेरी भलाई के लिए ही हमने यह फैसला लिया है। कुलदीप नहीं चाहता था, तू कभी वापस इन्डिया जाए। यहाँ रहकर तू एक नई जिन्दगी जी सकती है, पर उसके लिए पक्का वीसा चाहिए।’’
सबके
समझाने से तनवीर का विरोध ज्यादा देर नहीं टिक सका। उसकी सलामती की सबने जिम्मेदारी ली थी। अरमिन्दर से जब बात की गई तो उसने सपाट शब्दों में अपनी बात कह दी-
‘‘जरूरतमन्द लड़कियों और औरतों को परमानेन्ट वीसा दिलाना मेरा मकसद है। पैसे मिलेंगे तो तनवीर क्या, किसी से भी शादी के लिए तैयार हूँ।’’
‘‘एक बात समझ ले, अरमिन्दर। हमारी तनवीर पैसे देने की हालत में नहीं है। उस मजबूर की मदद कर दे, रब्ब
तेरा भला करेगा।’’ सरदार जी ने प्यार से कहा।
‘‘तू तनवीर की मदद कर दे। हम सब मिलकर जो भी बनेगा, पैसे इकट्ठे करके तूझे दे देंगे।’’ जगजीत ने मिन्नत.सी की।
‘‘वाह! मुझे क्या इतना गया.गुजरा समझ लिया? भीख के पैसे नहीं चाहिए। सरदार जी हमारे बुज़ुर्ग हैं उनके वास्ते तनवीर से नाम के
वास्ते शादी के लिए तैयार हूँ.’’ अरमिन्दर ने नाराजगी से कहा।
‘‘ठीक है, माना यह शादी बस नाम के लिए होगी, पर पैसों की भरपाई की जगह जब तक तनवीर को पक्का वीसा नहीं मिल जाता, वह तेरा घर सम्हालेगी। तेरे लिए रोटी.शोटी
बनाएगी, साफ.सफाई
करेगी। बोल, यह रास्ता मंजूर है?’’ ताया जी की बात मानेगा, पुत्तर?’’
सरदार जी ने पुचकारा।
‘‘ठीक है, वीसा मिलते ही तनवीर को तलाक दे दूँगा। उस वक्त यह शर्त मत रखिएगा कि उसे जिन्दगी.भर के लिए सहारा दूँ।’’ सबकी बातें सुनकर अरमिन्दर सोच में पड़ गया था। कुलदीप के साथ उसने तनवीर को एक.दो बार देखा था। वाहे गुरु! भोली.भाली लड़की के साथ तो अन्याय हो गया। उसकी मदद करने से कुलदीप की आत्मा को जरूर चैन पड़ेगा। अरमिन्दर की ‘हाँ’ से सबके चेहरे चमक उठे।
‘‘हमें
तेरी हर बात मंजूर है। हम ऐसी कोई शर्त नहीं रखेंगे।’’ सबने आश्वस्ति की साँस ली।
गुरुद्वारे में दोनों के विवाह के समय सारी बिरादरी इकट्ठी थी। तनवीर के आँसू चुन्नी से पोंछ सतवन्त ताई ने तसल्ली दी-
‘‘घबरा
मत, तन्नी। शादी तो नाम के वास्ते है। कुछ महीनों बाद यहाँ हमारे साथ अमरीका में रहने के लिए तू आजाद होगी। हम सब भी तेरे साथ हैं।’’
‘‘मेरे
को तो लगता है, अरमिन्दर जैसा इन्सान भी हमारी तन्नी के साथ अच्छा इन्सान बन जाएगा। और अगर दोनों के मन मिल गए तब तो बल्ले.बल्ले। क्यों तन्नी?’’ उस गम्भीर माहौल को मनजीत ने अपने परिहास से हल्का करना चाहा।
आँसू.भरी आँखों के साथ तनवीर उस बदनाम अरमिन्दर के घर आ गई। विशृंखल घर पर उचाट निगाह डालती तनवीर से अरमिन्दर ने कहा-
‘‘एक बात अच्छी तरह से समझ ले। इस घर को अपना घर समझने की भूल कभी मत करना। यह कमरा तेरा वेटिंग.रूम है। जिस दिन तेरा टिकट मिल गया, अपनी
गाड़ी पकड़कर चलती बनना।
‘‘जी...ई...!’’ आँखें फिर भर आईं।
‘एक और बात साफ कर दूँ। यह मेरा घर है, यहाँ
गृहस्थी जमाने की कोशिश मत करना। घर में कुछ बर्तन जरूर पड़े हैं, पर रोटी पकाने का कोई सामान नहीं है। अब कुछ वक्त तुझे यहाँ रहना है तो कुछ इन्तजाम करना होगा। आज बाहर से खाना आ जाएगा। अच्छी मुश्किल में पड़ गया।’’ अरमिन्दर का आक्रोश फूट पड़ा।
अरमिन्दर के जाने के बाद एक छोकरा खाने की थाली के साथ आ पहुँचा।
परजाई जी, आपके लिए खाना लाया हूँ। अरमिन्दर प्राजी ने कहा है, उनका
इन्तजार न करें।’’अपनी बात पूरी कह छोकरा चला गया.
तनवीर की रूलाई उमड़ रही थी। कुलदीप उसे कितने प्यार से खाना खिलाता था, पर अब कुलदीप कहाँ था! खाना
छूने का भी मन नहीं किया। आँखों से नींद भाग चुकी थी, क्या
से क्या हो गया?
देर रात दरवाजा खुलने की आवाज पर तनवीर डर गई। कमरे की खिड़की से बाहर झाँकने पर हाथ में बोतल के साथ डगमगाते कदमों के साथ अरमिन्दर आता दिखाई दिया। नशे में धुत्त वह अपने कमरे में चला गया। इस आदमी के साथ तनवीर कैसे रहेगी!
सुबह
नहा.धोकर तनवीर पाठ कर चुकी थी। उस अजनबी माहौल में उसकी समझ में नहीं आ रहा था, वह क्या करे! पता नहीं, वह चाय पीता है या नहीं! ताई ने समझाया था-
‘समझदारी से कुछ वक्त निकालना होगा, तन्नी। अपने को उससे बस दूर रखना। इस बीच उसकी और उसके घर की ठीक देखभाल कर लेना, पुत्तर। रब्ब सब भला करेगा।’
तनवीर के सोच को अरमिन्दर की आवाज ने तोड़ा-
‘‘देखता हूँ, कल रात खाना नहीं खाया। थाली वैसे ही रखी हुई है। क्यों, तन्नी?’’
‘‘जी...भूख नहीं थी।’’
‘‘एक बात समझ ले, यहाँ
कोई मान.मनौवल करनेवाला नहीं है। ताया जी ने कहा है, तू सारा घर सम्हालेगी। भूखी रहकर काम कैसे कर पाएगी। चाय पीती है?’’
‘‘जी...ई...आप चाय लेंगे?’’ डरती तनवीर ने पूछा।
‘‘मैंने कहा न, अपने काम से काम रख। मेरी जिन्दगी में दखलअन्दाजी का गुनाह मत करना। कल कुछ सामान आया है, चाय की पत्ती, चीनी होगी। दूध फ्रिज में होगा।’’
अपनी
बात कहकर अरमिन्दर चला गया। जाते.जाते
ताकीद करता गया, अनजान बन्दे के लिए दरवाजा मत खोलना। अपने लिए जो दिल चाहे, पका ले।’’
रात की अनछुई थाली में से एक रोटी गले से उतार, तनवीर ने पानी पी लिया। इस जिन्दगी की तो उसे आदत डालनी ही होगी। किचेन के लिए आए सामान को व्यवस्थित कर, घर में झाड़ू लगा डाली। अरमिन्दर के खुले कमरे में झाँकने पर, बेड पर ढेर सारे बिखरे कपड़े दिखाई दिए। क्या करे, तनवीर! पर रात में उसने कहा था, उसे घर सम्हालना है। कपड़े तहाकर, तनवीर ने कमरा व्यवस्थित कर दिया। समझ नहीं पा रही थी, दिन कैसे कटेगा, कुलदीप की यादें कचोट रही थीं। सूना घर काटने दौड़ रहा था।
रात के खाने के लिए दाल-सब्जी के साथ रोटियाँ बना डालीं। अगर अरमिन्दर आ गया तो खाना परोस देगी। बहुत देर रात तक इन्तजार करने के बाद दो रोटियाँ खा लीं। ताई ठीक कहती हैं, कुछ भी हो जाए, यह पापी पेट नहीं मानता, इसे तो भरना ही पड़ता है। फिर दरवाजा खुलने की वही आवाज और अरमिन्दर का लड़खड़ाते कदमों से घर में आना, तनवीर को डरा गया। अगर कभी उसने उसके साथ जबरदस्ती की तो तनवीर क्या करेगी? कल से अपने बन्द दरवाजे के आगे टेबल लगाकर सोएगी।
उदास
सूने दिन बीतने लगे। अरमिन्दर ने तनवीर के स्थायी वीसा के लिए कार्रवाई शुरू कर दी। इतने दिनों में तनवीर काफी सामान्य हो चली थी। अरमिन्दर ने कभी कोई गलत हरकत नहीं की, बल्कि उसकी जरूरतों के बारे में पूछ, तनवीर का मन हल्का कर देता-
‘तुझे
जो चाहिए, मुँह खोलकर बता दिया कर। शरम करेगी तो परेशानी तुझे ही होगी।’
अरमिन्दर की उस बात ने तनवीर का दिल छू लिया। अरमिन्दर काम पर जाने को निकलनेवाला था कि तनवीर एक टिफिन का डब्बा लेकर आ गई-
‘‘आपके
लिए खाने का डब्बा तैयार किया है...।’’
‘‘क्या
मैंने कहा था, मेरे
लिए खाना बना?’’ रुखाई से अरमिन्दर ने कहा।
‘‘नहीं, पर आप रोज बाहर का खाना खाते हैं। घर में रोटी बनती है, इसलिए...।’’
‘‘देख तनवीर, मैंने पहले ही कह दिया था, इस घर को न अपना घर समझ और न मुझे अपना मरद। रोटी का डब्बा थमा, घरवाली बनने की कोशिश मत कर, समझी।’’
अरमिन्दर की कड़ी बात पर आँसू.भरी आँखों के साथ तनवीर अपने कमरे में चली गई। काफी देर बाद बाहर आने पर देखा, रोटी का डब्बा नहीं था। क्या अरमिन्दर डब्बा ले गया या गुस्से में कहीं फेंक दिया?
उस शाम अरमिन्दर कुछ जल्दी आ गया। रोटी वाला डब्बा किचेन के सिंक में रखकर कहा-
‘‘तेरा
डब्बा तो मेरे साथी खाली कर गए। कह रहे थे, सब्जी अच्छी बनी थी।’’
उस छोटी.सी बात से तनवीर का चेहरा खुशी से चमक उठा। उस दिन के बाद से तनवीर रोज खाने का डब्बा थमाने लगी, पर शाम का वही रूटीन चलता रहा।
सतवन्त ताई और मनजीत परजाई अक्सर आ जातीं। व्यवस्थित घर देखती मनजीत परजाई के चेहरे पर शरारत छलक आई-
‘‘वाह तन्नी, देखती हूँ, तूने अरमिन्दर का घर तो खूब सँवार दिया है। चमक रहा है घर, एक बात बता, क्या
घर के मालिक को भी सँभाल दिया है?’’
‘‘चुप कर, मनजीत। जो मुँह में आता है, बोल देती है। सही.गलत का तो ध्यान रखा कर। हाँ तन्नी पुत्तर, बता,
वह मुआ तेरे को परेशान तो नहीं करता?’’ सतवन्त ताई ने मन की बात पूछी।
‘‘नहीं
ताई, कभी परेशान नहीं किया। हमारी जरूरतों का ख्याल रखते हैं।’’ थोड़ी.सी खुशी चेहरे पर झलक आई।
‘‘क्या
कहा, तन्नी? वह तेरी हर जरूरत का ख्याल रखता है?’’ मनजीत कान में फुसफुसाई।
शर्म
से तनवीर का चेहरा लाल हो आया। ताई ने आश्वस्ति की साँस ली-
‘‘चल, सुनकर तसल्ली हुई। हम सब डरते थे, कहीं
वो तेरे साथ कोई बदसलूकी न करे।’’
चाय और पकौड़े खाकर, तन्नी को आशीर्वाद दे, दोनों चली गई। जाते-जाते
तन्नी ने फिर आने का वादा ले लिया। राह में मनजीत को चुप देख, ताई ने पूछा-
‘‘क्या
सोच रही है, मनजीत पुत्तर?’’
‘‘एक बात का डर लग रहा है, ताई।
कहीं भोली तन्नी उस अरमिन्दर शैतान के जाल में न फँस जाए। वह बन्दा तो प्यार का मतलब भी नहीं जानता। हमारी तन्नी धोखा न खा बैठे।’’
‘‘क्या
पता, तन्नी के साथ अरमिन्दर सुधर जाए, रब्ब
पर भरोसा रख, सब ठीक होगा।’’
बैसाखी के दो दिन पहले अरमिन्दर ने तनवीर के सामने एक कीमती सलवार-सूट डाल, उसे ताज्जुब में डाल दिया। सपाट आवाज में जानकारी दे डाली-
‘‘दो दिन बाद बैसाखी का मेला लगेगा। ये सूट डालकर, मेला देख आना।’’
‘‘आप चलेंगे, जी?’’
तन्नी ने अपनी उत्सुक नजर अरमिन्दर के चेहरे पर डाली।
‘‘मेरा
मेले.ठेले से कोई वास्ता नहीं है, तेरी
ताई और परजाई तुझे ले जाएँगी। ये पैसे रख ले, जो जी चाहे, खरीद लेना।’’
नोटों का एक बड़ा बण्डल देख, तन्नी डर गई।
‘‘नहीं
जी, हमें पैसे नहीं चाहिए। हम मेला नहीं जाएँगे।’’
‘‘बेकार की बातें सुनना, मेरी आदत नहीं है। यह औरतों का मनपसन्द मेला है। तू जरूर जाएगी। मैं परजाई को बोल चुका हूँ। वह साथ ले जाएगी।’’ तनवीर की हाँ.ना का इन्तजार किए बिना वह चला गया।
बैसाखी.मेले के लिए मनजीत के साथ कई औरतें आई थीं। नया सूट पहने तन्नी को निहारती, मनजीत की नजर ठहर गई।
‘‘वाह तन्नी, तू तो परी दिख रही है। बड़ा प्यारा सूट डाला है।’’
‘‘वो लाए थे...।’’ शर्माती तन्नी बस इतना ही कह सकी।
‘‘ओए होए। यह ‘वो’ कौन हैं, जी?’’
सबकी
हँसी ने तन्नी का चेहरा लाल कर दिया। मेले में सबने खूब मजे किए। झूले की ऊँची पेंग चढ़ाई, खूब मिर्ची वाली चाट के चटखारे लिए। फोटो खिंचवाई, बिन्दी.चूडि़याँ खरीदीं। उतनी देर के लिए तनवीर अपना दुःख भुला बैठी। लौटने पर आशा के विपरीत अरमिन्दर घर में था।
‘‘कैसा
रहा मेला?’’अचानक सवाल पूछ अरमिन्दर ने चौंका दिया .
‘‘बहुत
मजा आया। औरतों का गिद्दा खूब जमा। मनजीत परजाई ने जबरदस्ती चूडि़याँ दिलवा दीं...।’’
‘‘ठीक है, बहुत रात हो गई। जा सो जा।’’ अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर,अरमिन्दर ने तन्नी के उत्साह पर ठण्डे पानी के छींटें डाल दिए।
तन्नी सोच में पड़ गई, क्या
उससे कोई गलती हो गई? अब तन्नी को जिन्दगी दूभर नहीं लगती। उसे अरमिन्दर की प्रतीक्षा रहती। उसका मनपसन्द खाना बना, उसकी
तारीफ के दो शब्द सुनने को आतुर रहती। समझ नहीं पाती, अरमिन्दर को लोग खराब बन्दा क्यों कहते हैं! उसने
तनवीर के साथ न कभी बदसलूकी की, न उसकी स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश की, उल्टे उसकी जरूरतों का ख्याल रखा है। कुलदीप की यादें धूमिल पड़ने लगी थीं। अपनी नई जिन्दगी से उसने समझौता कर लिया था। अचानक एक दिन अरमिन्दर को शराब पीते देख, कह बैठी,
‘‘आप इतनी शराब न पिया करें, नुकसान करती है। मेरे चाचा की मौत...।’’
‘‘मेरे
फायदे.नुकसान से तुझे क्या लेना.देना
है? इस बारे में तो सुरजीत का कहा भी नहीं माना।’’ तन्नी की बात बीच में ही काट, रुखाई से अरमिन्दर ने कहा।
‘‘जी, यह सुरजीत कौन थी?’’भोलेपन से तन्नी सवाल कर बैठी.
‘‘थी नहीं, है। उसकी यादें इस दिल में इतनी गहरी बैठी हैं, उन्हें कोई नहीं मिटा सकता। मेरी सबकुछ है, सुरजीत।’’
‘‘अब वह कहाँ हैं?’’
‘‘मुझे
छोड़ गई। मेरे ही दोस्त के साथ घर बसा लिया, पर मैं ताउम्र उसका इन्तजार करूँगा। अगर मेरा प्यार सच्चा है, तो वह मेरे पास जरूर वापस आएगी।’’
न जाने क्यों अरमिन्दर की बात से तनवीर का दिल बैठ गया। कई कहानियाँ याद हो आईं। प्रेमिका या प्यारी बीवी के न रहने पर लोग ‘देवदास’
बन जाते हैं, पर सच्ची जीवन.संगिनी मिल जाने पर पुराने घाव भर जाते हैं। क्या तनवीर के साथ ने अरमिन्दर पर कोई असर नहीं डाला?
दो दिन बाद हाथ में लिफाफा लिए अरमिन्दर ने खुशी.खुशी
तनवीर से कहा-
‘‘ले, तेरा टिकट आ गया। तुझे यहाँ रहने का परमानेन्ट वीसा मिल गया। आज से तेरी छुट्टी, खुशी मना। जहाँ जी चाहे, जाने के लिए आजाद है।’’
‘‘कहाँ
जाएँ हम?’’ तनवीर की आवाज जैसे गहरे कुएँ से आ रही थी।
‘‘अरे, अब तू जो चाहे, कर सकती है। तलाक होते ही किसी ठीक इन्सान के साथ शादी करके घर बसा सकती है।’’
‘‘क्या
तुम ठीक इन्सान नहीं हो? हम यहाँ क्यों नहीं रह सकते?’’
‘‘क्या
कह रही है? कहीं
तू अपने को मेरी घरवाली तो नहीं मान बैठी? देख,
तन्नी, मैंने पहले ही कह दिया था, जिस दिन तेरा टिकट आया, तुझे
यहाँ से जाना होगा। मेरा घर तो तेरे लिए मुफ्त की सराय था। अब तेरा दाना-पानी
यहाँ से उठ गया।’’
‘‘हम इस घर के एक कोने में पड़े रहेंगे, जी। हमें यहाँ रहने दीजिए।’’ तन्नी की आँखों से आँसू गिर रहे थे।
‘‘आँसू
बहाना बेकार है। मैंनू तुझे कोई धोखा नहीं दिया है। पहले ही साफ-साफ बता दिया था, तेरा-मेरा कोई रिश्ता नहीं है। मैं प्यार.व्यार में यकीन नहीं रखता, समझी।’’
‘‘अगर यह सच है तो सुरजीत को याद क्यों करते हो?’’ अचानक तन्नी तड़प उठी।
‘‘सुरजीत का नाम मत ले। एक सच जान ले, इस दुनिया में पैसा ही सबकुछ है। अगर उस वक्त मेरे पास इतने पैसे होते तो सुरजीत क्यों जाती?’’ अरमिन्दर की आवाज तल्ख हो आई।
‘‘हमें
पैसों का जरा भी मोह नहीं है। हम आपका घर देखेंगे...।’’
‘‘फिर वही बात। जब तू मुझे आजाद करेगी तभी तो किसी और के साथ शादी बनाकर, पैसे कमाऊँगा। तेरी वजह से अपना धन्धा चैपट नहीं कर सकता, समझी। मैं तेरे से तलाक की अर्जी दे रहा हूँ।’’
‘‘ठीक है, हमें भी कोई पैसे कमानेवाला काम दिला दो। हम चले जाएँगे।’’ चुन्नी से आँसू पोंछ डाले तन्नी ने।
‘‘तू किसी के साथ शादी बनाकर, आराम की जिन्दगी जी सकती है। तू कहे तो कोई अच्छा लड़का देखूँ?’’
‘‘नहीं-नहीं,
हमें शादी नहीं बनानी है। शादी का सुख हमारे नसीब में नहीं है, जी।’’
अरमिन्दर सोच में पड़ गया। कुछ देर बाद बोला-
‘‘तू पढ़ी.लिखी तो है नहीं , कोई ठीक काम अँगरेजी जाने बिना मिल नहीं सकता। पाँचवीं पास औरत क्या कर सकती है?’’
‘‘हम कोई भी काम कर सकते हैं। किसी के घर रोटी पकाने का काम तो मिल जाएगा?’’ तन्नी ने मासूमियत से कहा।
‘‘एक काम कर सकती है, बुरा
न माने तो कहूँ।’’
‘‘जी, कहिए?’’तन्नी की आँखों में आशा झलक उठी.
‘‘मेरे
चाचे का बेटा हरमिन्दर अमेरिका आना चाहता है, पर आजकल वीसा मिलना मुश्किल है। तू उसके साथ शादी बनाकर मुँहमाँगे पैसे पा सकती है। देख, मैंने मुफ्त में तेरी मदद की है, तू पैसे लेकर मेरा एहसान उतार सकती है।’’
‘‘छिह, यह क्या कह रहे हो, जी? ये तो पाप है।’’
‘‘हरमिन्दर के साथ भी तेरी शादी नाम के वास्ते होगी। तेरी मर्जी के बिना वह तुझे छुएगा भी नहीं, यह मेरी गारन्टी है।’’
‘‘नहीं.नहीं, यह नहीं हो सकता...!’’तन्नी डर गई.
‘‘सोच ले। मैं तो कहता हूँ, तेरा
परमानेन्ट वीसा तेरे लिए तुरुप का पत्ता है। मेरी तरह शादी बनाकर जरूरतमन्दों को वीसा दिलाकर तू खूब पैसे बना सकती है। इस बीच अगर किसी के साथ मन मिल जाए तो घर बसा सकती है।’’
‘‘नहीं, यह सुनना भी गलत है।’’ चुन्नी से चेहरा ढाँप, तन्नी अपने कमरे में जाकर पलंग पर औंधी पड़ गई।
रात.भर जागी तन्नी ने अन्ततः फैसला ले ही लिया। अरमिन्दर का एहसान चुकाने का यही तरीका ठीक रहेगा। सूजी आँखों के साथ सुबह.सुबह
अरमिन्दर को फैसला सुना दिया-
‘‘अपने
हरमिन्दर को इत्तला कर दो, हम तैयार हैं।’’
‘‘वाह! यह हुई न बात। मैं अभी इन्डिया फोन लगाता हूँ। जब तक हमारा तलाक होता है, तू इन्डिया जाकर चाचे के घर रहकर, सब देख.समझ ले।’’
‘‘जी...।’’
‘‘अपना
सामान पैक कर डाल। मैं तेरा टिकट करा देता हूँ।’’ उत्साहित अरमिन्दर फोन पर टिकट बुक कराने लगा।
अरमिन्दर नहीं जानता, यह फैसला लेते वक्त तन्नी कितनी बार मरी थी, पर अरमिन्दर ने साफ.साफ कहा था, उसका
एहसान चुकाना तन्नी का फर्ज था। अरमिन्दर से शादी करना अगर पाप नहीं था तो हरमिन्दर से शादी के लिए ऐतराज क्यों?
तन्नी का इन्डिया जाने का टिकट आ गया। टिकट थामती तन्नी को लगा, उसकी
मौत का फरमान आ गया है। अरमिन्दर ने हजार डॉलर देते हुए समझाया था-
‘‘ये डॉलर मुश्किल के वक्त के लिए सम्हाल कर रखना। चाचे के घर तुझे एक पैसा भी नहीं खर्चना होगा। तुम दोनों की यहाँ वापसी होने पर हरमिन्दर को अपने साथ काम पर लगा लूँगा।’’
‘‘ठीक है, उसे भी परमानेन्ट वीसा मिलने पर अपनी तरह जरूरतमन्दों को वीसा दिलाने के धन्धे में लगा लेना।’’तन्नी की कड़वी आवाज अनचाहे ही निकल गई।
‘‘चुप कर। इस काम से मुझे कोई खुशी नहीं मिलती। सच्चाई यही है, सच्चा प्यार भी पैसा चाहता है।’’
‘‘अब तो तुम पैसे वाले हो, घर क्यों नहीं बसा लेते। कुछ भी कहो, तुम्हें इसमें मजा आता है।’’
‘‘मैं क्या करता हूँ, यह मेरी मर्जी है। तू अपने काम से मतलब रख। अपनी जिन्दगी में दखलअन्दाजी का हक मैंने किसी को नहीं दिया है।’’अरमिन्दर ने कडाई से कहा.
जगजीत उसे एयरपोर्ट पर छोड़ने के लिए अपनी टैक्सी के साथ आ चुका था। आँसू.भरी आँखों से तन्नी ने आखिरी बार उस घर को निहारा, जिसके साथ न जाने कितनी यादें जुड़ चुकी थीं। तन्नी के हाथ से सूटकेस ले, जगजीत ने पूछा-
‘अचानक इन्डिया क्यों जा रही हो, तन्नी परजाई। हम तो तेरे परमानेन्ट वीसा मिलने पर खुशी मना रहे थे। ताया जी तुझे कोई काम दिलाने की सोच रहे हैं। अच्छा हुआ, तुझे
अरमिन्दर से आजादी मिल जाएगी।’’
‘‘हाँ, भइया। जल्दी ही वापस आएँगे।’’
‘‘इधर किसी
से भी मिले बिना क्यों जा रही हो? अभी वक्त है, उधर होता चलूँ?’’
‘‘नहीं, भइया। सीधे एयरपोर्ट चलना है। हम वापस आकर उन्हें समझा लेंगे।’’
‘‘अरमिन्दर कहाँ है, तुझे छोड़ने नहीं आएगा? वैसे उससे ऎसी उम्मीद रखना ही बेकार है ’’
‘‘हम उनके कौन रिश्तेदार लगते हैं? बहुत
एहसान कर दिया, अब और नहीं।’’ आवाज में कड़वाहट घुल आई।
एयरपोर्ट पर तन्नी को छोड़, जगजीत चला गया। तन्नी की समझ में नहीं आ रहा था, क्या करे। कितनी खुशी से इस देश की धरती पर कदम रखा था, आज कितने भारी मन से इन्डिया जाना पड़ रहा है। एयर इन्डिया का काउन्टर सामने ही था। अरमिन्दर ने बताया था, काउन्टर पर सब हिन्दी समझते हैं।
सूटकेस खींचती तन्नी काउन्टर की ओर बढ़ी ही थी कि अचानक सूखा मुँह लिए अरमिन्दर सामने आ खड़ा हुआ-
‘‘वापस
चल, तन्नी। तू कहीं नहीं जाएगी।’’
‘‘क्या...क्यों?’’ विस्मित तन्नी और कुछ नहीं पूछ सकी।
‘‘क्योंकि पिछले चन्द घण्टों में जान गया, मैं तेरे बिना नहीं रह सकता। सुरजीत की झूठी यादों के सहारे जीने की कोशिश में, अपने
को बहुत सजा दे चुका। मेरे कहे.सुने
को माफ कर दे, तन्नी। चल, तेरा घर तेरा इन्तजार कर रहा है!’’
तन्नी की आँखों से आँसुओं का सैलाब उमड़ आया। अरमिन्दर की फैली बाँहों में तन्नी समा गई।
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