फ्लॅारिस्ट
“अर्रे - श्याम ! डॅा श्याम ही हो न तुम ?”
अचानक आई उस आवाज पर युवक ने सिर उठा कर देखा था। दाढ़ी से ढके होने के बावजूद, चेहरे की सुन्दरता स्पष्ट थी।
“ये क्या हाल बना रखा है, इतने पास से भी पहिचानना मुश्किल था।”
युवक की आँखों में अपरिचय का भाव देख, शिवानी हंस पड़ी थी।
“पहिचाना नहीं, मैं शिवानी हूँ। तुम्हारी सीनियर जरूर थी, पर अपने सीनियर्स को इतनी जल्दी भुला देना ठीक नहीं है, डॅाक्टर।”
“माफ कीजिए, आप बहुत बदल गई हैं।”
“इतनी तो नहीं बदली कि तुम पहिचान भी न पाओ। लगता है नए चेहरों में पुराने चेहरे बदरंग हो जाते हैं।” शिवानी के होठों पर हॅंसी खिल आई थी।
“नहीं वैसी बात नहीं है, आप अपनी सुनाइए।”
“ये क्या आप-आप लगा रखा है ? डोंट बी फ़ॉर्मल, श्याम। हो ! सुना था मेरे जाने के बाद तुम्हारी कोई खास मित्र बन गई थी। क्या हाल है उसका, शादी-वादी कर ली या अभी रोमांस ही चल रहा है ?”
“किसकी बात कर रहीं है ?” श्याम ने अनभिज्ञता दिखाई थी।
“कमाल है, सुना है दीवानगी की हद तक उसे चाहते थे। प्रिया ने तो खत में यही इन्फ़ॉर्मेशन दी थी।”
“वो सब छोड़िए, आप कैसी हैं?”
“अच्छी-भली सामने खड़ी हूँ, वेट भी दो-तीन किलो बढ़ गया होगा। पहले तो हम कैलोरीज गिन कर खाते थे।”
“ठीक ही तो लग रही हैं।”
“अरे भई इतने दिनों बाद मिले हैं, एक कप कॅाफी फिर साथ हो जाए?”
“कॅाफी की तो आदत छूट गई है।”
“लगता है तुम वह श्याम नहीं, फिल्मी कहानी की तरह श्याम के जुड़वा भाई हो। याद नहीं हमारा कॅाफी टाइम फिक्स हुआ करता था क्या यह भी भूल गए हो कि मैं तुम्हारी रजिस्ट्रार हुआ करती थी?
“मैं तो वह सब कुछ भूल गया हूँ, शिवानी जी।”
“लगता है तुम सचमुच सब भूल गए हो, वर्ना ये शिवानी में ‘जी’ कहाँ से आ गया? इतना भी याद नहीं, हम सबको पहले नामों से पुकारा करते थे।”
“मुझे तो कुछ याद ही नहीं रहा, शिवानी।”
यह क्या बुझी-बुझी बातें कर रहे हो, तुम्हारी यादों की खिड़कियाँ खोलने को चलो कॅाफी हाउस चलते हैं। वह भी याद है या मैं रास्ता दिखाऊॅं?
मेडिकल कॅालेज के पास बने उस कॅाफी-हाउस में स्टूडेंट्स ही नहीं वरन डॅाक्टर्स और इंटर्नेस भी वहाँ आ बैठते थे।
“दो काफी-कुछ साथ में चलेगा?” शिवानी ने आर्डर देते पूछा था।
“ओनली लाइम जूस- ।”
“ये क्या कॅाफी की जगह लाइम जूस, तुम सचमुच बदल गए हो, डॅाक्टर श्याम।”
“सिर्फ श्याम ही चलेगा। आई एम नो मोर ए डॅाक्टर।”
“क्या कह रहे हो? कॅालेज के गोल्ड मेडलिस्ट थे तुम।”
“था, अब कुछ नहीं हूँ। सच बस इतना ही है।”
“सच इसमे कहीं ज्यादा है, क्या हुआ बताओगे नहीं श्याम ? हम सीनियर्स तुम्हें कितना एप्रीशिएट करते थे, तुम्हें पता नहीं होगा। यहाँ आते समय पुराने चेहरों में तुम्हारा चेहरा ही सबसे ज्यादा मुखर था।”
“आजकल कहाँ हो, शिवानी ? तुम तो स्टेट्स चली गई थीं न?”
“हाँ मैडिसिन में रेसीडेंसी मिल गई थी, वहीं डॅा अरूण से शादी कर ली। अरूण की बहिन की शादी में इंडिया आई तो अपने पुराने कालेज को एक बार फिर देखने का मोह हो आया था।”
“कैसा लगा यहाँ आकर ?”
बहुत से नये चेहरों में पुराने चेहरे खोज रही हूँ, आज तुम मिल गए। अब तुम बताओ कैसा चल रहा है सब?
“दूसरों के लिये शायद सब ठीक होगा, पर मेरी तो दुनिया ही बदल गई है, शिवानी।”
“क्या बात है श्याम, कभी हमने एक-दूसरे के दुख-सुख बाँटे हैं। मुझे नहीं बताओगे?”
“बताने को अब कुछ भी शेष नहीं है।”
“राख में भी चिंगारी बची रह जाती है, श्याम।”
“पर मैं तो पूरे का पूरा राख हो गया हूँ, शिवानी।”
“गलत कह रहे हो डॅाक्टर। ये बेतरतीब बाल, दाढ़ी साफ बता रही है, तुम किसी का गम पाल रहे हो।”
“किसका गम, किसकी बात कर रही हो ?”
“जहाँ तक याद पड़ता है, शायद कविता नाम था न उसका ?”
“हाँ -वह कविता ही थी।” श्याम जैसे अपने आप से बातें कर रहा था।?
“तुमने तब शायद सर्जरी में रेजीडेंसी ज्वाइन की थी न श्याम? इंटर्नीज के ड्यूटी ज्वाइन करने का सबसे ज्यादा तुम्हें ही इंतजार था, श्याम”।
“वो तो उनके आने से हमारा काम आसान हो जाता इसलिये वर्ना-”
“हाँ-हाँ यह मैं समझती हूँ, बेचारे इंटर्नीज को किस कदर पीसते थे। उनसे काम लेते हम भूल ही जाते थे कि जब हम इंटर्नीज थे तो इसी काम के बोझ के मारे कितना रोते थे। कभी-कभी बस दो घंटे सोना हो पाता था।”
“आश्चर्य है आपको कविता की अब तक याद है?”
“क्यों नहीं, बेहद डेलीकेट, क्यूट सी लड़की थी, मेडिकल प्रोफेशन के लिये एकदम अनफिट लगती थी न, श्याम?”
“पहले ऐसा ही लगा था, पर बाद में उसने अपने काम से सबको आश्चर्य में डाल दिया था। न जाने कहाँ से उत्साह की ऊर्जा पाती थी कविता।” श्याम खोया-खोया सा कहता गया।
“सुना है डॅा नेगी ने उसे “मोस्ट रिमार्केबिल गर्ल ऑफ़ दि बैच” कहा था?”
“हाँ शिवानी, वह हर जगह, हर बात में रिमार्केबिल थी।”
“कहानी कहाँ से शुरू करोगे, श्याम?”
“सुनने के लिये पेशेंस रख सकोगी?”
“और मेरे पास करने को है ही क्या, शायद तुम्हारे काम आ सकूँ?”
“तुम्हारे जाने के बाद सीनियर रेजीडेंसी का चांस मुझे मिला था, शिवानी।” कविता के साथ दो और इंटर्नीज की ड्यूटी सर्जरी वार्ड में लगी थी। कविता ने आकर मुझसे कहा था-
“सर, न जाने क्या बात है, खून देखते ही मुझे चक्कर से आ जाते हैं। सीरियस आपरेशन्स अटेंड करना मुझे कठिन लगता है।”
“हाँ सर! क्लास में दो-एक बार यह फेंट भी हो चुकी है, सचमुच यह ब्लड देख ही नहीं सकती।” रश्मि ने उसकी बात की पुष्टि की थी।
“फिर इस प्रोफेशन में आई ही क्यों?”
“मम्मी की विश थी, डॅाक्टर बनॅूं। मैंने कोई खास प्रयास नहीं किए, पर न जाने कैसे सेलेक्शन हो गया।” कविता ने सपाट स्वर में जवाब दिया था।
“शायद तेरे पापा ने डोनेशन दे दिया हो। कहीं तो पैसा खर्चना है। क्या करेगी इतने पैसों का कविता, इकलौती बेटी ठहरी न।” दूसरी इंटर्नीज ने कविता को छेडा था।
“एडमीशन डोनेशन से भले ही हो जाए, यहाँ काम में कोई छूट नहीं है, समझीं, मिस कविता।” श्याम का स्वर कटु हो आया था।
“कौन कहता है मेरा एडमीशन डोनेशन से हुआ है। आई0एम0ए0 नेशनल स्कॉलर, टॅापर ऑफ माई बैच। प्री-मेडिकल एक्जाम में भी मेरी पूरे प्राविंस में थर्ड पोजीशन थी समझे डॅाक्टर ?” उसके उत्तेजित लाल मॅुंह पर आत्मविश्वास छलक रहा था।
“ठीक है, ये तो आपका काम ही बताएगा आप कितने पानी में हैं।” श्याम ने जैसे उसे चुनौती दी थी।
श्याम की उस बात ने कविता के अहं को ललकारा था। उसी दिन ट्रक दुर्घटना में गम्भीर रूप से घायल स्कूटर-सवार हॅास्पिटल में एडमिट हुआ था। सीनियर सर्जन को कॅाल दी गई थी। आनन-फानन आपरेशन की तैयारी की गई थी। इंटर्न के रूप में कविता को असिस्ट करना था।
“यहाँ बेहोश होकर मत गिरिएगा, डॅा कविता, वर्ना यह मरीज बेचारा बेमौत मारा जाएगा।” डॅा श्याम ने उसे चेतावनी दी थी।
“डोंट वरी डॅाक्टर, अटेंड टु योर ड्यूटी।” कविता के स्वर में तीखापन था।
दूसरे दिन मरीज की बांह एम्प्यूटेड की जानी थी। मानव हाथ पर आरी चलती देख सहज नहीं होता, पर चिकित्सकों के लिये यह सामान्य बात थी। सड़े-गले अंगों को रखने से क्या फायदा? श्याम ने दृष्टि उठा सामने खड़ी कविता को देखा था। ओठों को अन्दर भींचे कविता दृढ़ता से खड़ी, घायल की बांह कटती देख रही थी।
इंटर्नीज की ब्लीप पर फर्स्ट-कॅाल होती थी। उस दिन पूरे दिन ड्यूटी करने के बाद कविता को भूख का एहसास हुआ था। रश्मि को साथ ले वह कैंटीन चली गई थी। व्यस्तता के बीच ब्लीप की मद्धिम पड़ती बैटरी पर कविता का ध्यान भी नहीं गया था।
वापस वार्ड पहॅुंचने पर सबके सामने ही डॅा श्याम ने कविता को बुरी तरह फटकारा था-
“यहाँ मरीज की जान चली जाए, आपको क्या मतलब ? आप तो रसगुल्ले उड़ाइए।”
“लेकिन मुझे तो ब्लीप नहीं मिली थी।”
“ब्लीप कैसे सुन पातीं, हॅंसी-मजाक करते समय कान सुन्न जो हो जाते हैं। अगर काम के लिये सीरियस नहीं थीं तो मेडिकल प्रोफेशन में आई क्यों ?”
“मैंने कहा न सर, ब्लीप नहीं मिली।”
“एक बार नहीं तीन बार कॅाल किया था, झूठे बहानों से मुझे सख्त नफरत है।”
“मैं भी झूठ नहीं बोतली, सर।”
“ओ के मैं ही गलत हूँ। नाउ प्लीज गो टु बेड नम्बर सेवन, अब तो सुन पा रही हैं न ?”
अपमान से कविता का मुँह लाल हो आया था। किसी तरह अपने को संयत रख, वह बेड नम्बर सात की ओर चली गई थी। ब्लीप पर दृष्टि पड़ते ही कविता चौंक गई थी। बैटरी खत्म हो चुकी थी, उस पर ध्यान न देना, उसकी गलती हो सकती थी, पर सबके सामने इस तरह फटकारना क्या ठीक था?
कविता के हटते ही रजिस्ट्रार राकेश ने श्याम को समझाया था-
“यार तू ज्यादा ही बोल गया, इंटर्नशिप में हमसे भी तो गलतियाँ हो जाया करतीं थीं।”
“पर हम अपनी गलती मान भी लेते थे, यूँ बहस तो नहीं करते थे। न जाने अपने को क्या समझतीं हैं, ये लड़कियाँ, ऑलवेज प्रिवलेज्ड क्लास-”
“वह तो ठीक कहा। जानता नहीं कविता शहर के एम0एल0ए0 की बेटी है।”
“एम0एल0ए0 की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं कि यहाँ भी रोब जमाए। ये राजनीतिज्ञ ही नहीं, उनके बच्चे भी अपने को राजा से कम नहीं समझते।”
थोड़ी देर बाद रश्मि पहॅुंची थी। “सर, कविता की ब्लीप की बैटरी खत्म हो गई थी, वह उसे बदलवाने गई है। आपको मेसेज देने को कहा है।”
“अपनी गलती पर परदा डालने के लिये अच्छा बहाना बनाया है” श्याम के स्वर के व्यंग्य पर रश्मि तुनक गई थी।
“बहाना बनाने की क्या जरूरत थी, सर ? मैं उसके साथ थी, हमें ब्लीप नहीं मिली क्योंकि बैटरी डाउन थी - यही सच है।”
“दूसरों पर विश्वास करना सीखो डॅा श्याम। पुअर गर्ल - क्या कुछ नहीं कह डाला तुमने ? वॉर्ड ब्वॉय तक सुन रहे थे।” राकेश का स्वर कविता के प्रति सहानुभूतिपूर्ण था।
“वैसे भी सर, पिछले दो दिनों से कविता को फीवर चल रहा है। दवाइयाँ खाकर पूरी ड्यूटी करती है। उसकी सिंसियरिटी पर शक करना ठीक नहीं।” रश्मि का स्वर अभी भी तीखा था।
श्याम चुप रह गया था। जब से कविता वार्ड में आई थी, श्याम उस पर व्यंग्य करता रहा। पूरी सतर्कता और जिम्मेदारी के साथ अपनी ड्यूटी निबटाने के बाद जब और इंटर्नीज आराम के लिये हॉस्टल भागते, कविता मरीजों के पास रूक जाया करती थी। कुछ दिन पहले वॉर्ड से जब एक औरत को दूसरे वॉर्ड में भेजा जाने लगा तो वह रो पड़ी थी-
“डॅाक्टर साहिब, हम इसी वॉर्ड में रहेंगे। कविता डॅाक्टर हमारी बेटी जैसी हैं।” बड़ी मुश्किल से उसे भेजा जा सका था। कविता ने वादा किया था, वह उसे रोज देखने जाया करेगी।
वार्ड के किसी भी काम को निबटाने के लिये कविता सदैव तत्पर रहती। नए मरीजों का चेक-अप करती, कविता को देखना एक अनुभव होता था। मरीज की केस-हिस्ट्री वह इतनी अच्छी तैयार करती कि सीनियर डॅाक्टर भी उसकी तारीफ किए बिना नहीं रहते थे।
कुछ दिनों को जब उसकी ड्यूटी इंटेंसिव केयर यूनिट में लगी तो कविता जैसे सोना ही भूल गई थी। साथ की लड़कियाँ हॅंसी उड़ाती तो वह जवाब देती-
“जब यहाँ हमसे जागने की अपेक्षा की जाती है तो सोएं क्यों ?”
सीरियस केस आते ही कविता सीनियर डॅाक्टर के साथ काम करती, रोग की पूरी जानकारी लेती जाती थी। उसके उत्साह और लगन से प्रभावित हो डॅा नेगी ने सबके सामने कहा था -
“डॅा कविता इज दि मोस्ट रिमार्केबिल गर्ल ऑफ दिस बैच।”
“डॅा कविता इज दि मोस्ट रिमार्केबिल गर्ल ऑफ दिस बैच।”
कालेज की प्रतियोगिताओं में कविता को सर्वाधिक पुरस्कार मिले थे। साथ के विद्यार्थी उसे छेड़ते -
“कविता जिस प्रतियोगिता में भाग ले रही हो उसमें हमारा पार्टिसिपेशन ही बेकार है।”
“कविता जिस प्रतियोगिता में भाग ले रही हो उसमें हमारा पार्टिसिपेशन ही बेकार है।”
ऐसे कविता खून देखकर घबरा जाती थी, पर जिस दिन से डॅाक्टर श्याम ने उसकी इस कमजोरी की हॅंसी उड़ाई, कविता ने अपनी घबहराहट पर यूँ विजय पा ली, मानों वह जन्म से ऐसे वातावरण में रही-पली है जहाँ हाथ-पाँव काटना मामूली बात हो।
डॅा श्याम सचमुच अपनी गलती महसूस कर रहे थे। आधे-घंटे बाद सूखे मॅुंह के साथ जब कविता वॉर्ड में पहॅुंची तो श्याम ने उसके निकट जा कहा था-
“आई एम सॅारी - मुझे पता नहीं था, ब्लीप की बैटरी डाउन थी।”
अनुत्तरित कविता से फिर श्याम ने कहा था-
“मुझसे सचमुच गलती हो गई, मुझे माफ कर दो, कविता।”
“मुझसे सचमुच गलती हो गई, मुझे माफ कर दो, कविता।”
“इट्स ओके, सर। गलती मेरी थी। मुझे बैटरी चेक करनी थी-”
“इतनी व्यस्तता में ऐसी गलती हो जाना मामूली बात है। मुझे अपना आपा नहीं खोना चाहिए था।”
“आप बेकार परेशान हैं। सीरियस केस के लिए कॅाल पर न पहॅुंचने से आपका मूड खराब होना ठीक ही है।”
“चलिए एक कप कॅाफी ले लें। आप बहुत टेंशन में हैं।”
“नो थैंक्स सर। मैं बिल्कुल टेंशन में नहीं हूँ। अभी मुझे बेड नम्बर सेवन की ब्लड रिपोर्ट कलेक्ट करनी है।”
“ब्लड- रिपोर्ट तो वार्ड ब्वाय भी कलेक्ट कर सकता है। कॅाफी नहीं तो कोल्ड ड्रिंक चलेगी ?”
“नो थैंक्स, मैं जो निर्णय ले लेती हूँ, वह बदलता नहीं सर, प्लीज एक्सक्यूज मी।”
डॅा श्याम को वहीं खड़ा छोड़, कविता ब्लड- रिपोर्ट कलेक्ट करने चली गयी थी।
उस हॅास्पिटल में इंटर्नीज से बहुत कठिन काम लिये जाते थे। हॅास्पिटल मैनेजमेंट के विचार में अनुभव से डॅाक्टर अधिक जान-सीख सकते हैं। बात सही भी थी, यहाँ के डॅाक्टर सर्वत्र प्रशंसा पाते थे। कड़ी मेहनत के बीज जो यहाँ बोए जाते, वह जीवन भर काम आते।
उस दिन के बाद से डॅाक्टर श्याम कविता के प्रति विशेष सदय हो गए थे। डिपार्टमेंट की पिकनिक, पार्टीज में कविता का साथ उन्हें बहुत अच्छा लगता था। कुछ ही दिनों में वह जान गए थे, प्रखर बुद्धि के साथ कुछ विशेष करने की तमन्ना कविता के रक्त में बहती थी।
पिता के वैभव का कविता ने कभी प्रदर्शन नहीं करना चाहा। शुरू में दो-तीन बार उसे लेने चमचमाती कार और वर्दीधारी ड्राईवर आया, पर बाद में आम लड़कियों की तरह कविता ने भी बस में ही जाना पसंद किया था।
श्याम सर्जरी में एम0एस0 कर रहा था और कविता का सपना कार्डियोलॅाजिस्ट बनने का था। कविता अपने विषय पर जब अधिकारपूर्वक बात करती तो श्याम हॅंस पड़ता।
“अभी इंटर्नशिप तो पूरी करो, कॅार्डियोलॅाजिस्ट बनना आसान नहीं। मेरे ख्याल में तो तुम प्रसूति विभाग में चिकित्सा के लिये उपयुक्त हो। लड़कियों के लिए यही विभाग ठीक है, समझीं।”
“रहने दीजिए जनाब, कॅार्डियोलॅाजिस्ट सिर्फ लड़कों का सब्जेक्ट नहीं है। मैं दिखा दूँगीं, लेडी डाक्टर इस डिपार्टमेंट के लिए कितनी सूटेबल हो सकती हैं।”
“क्यों नहीं, सुन्दर मुखड़े देख, दिल बेचारा यूँ ही बेमौत मारा जाएगा।”
“चलो तुमने मुझे सुन्दर तो माना।” कविता भी मजाक पर उतर आती।
कविता के जन्मदिन पर बहुत सबेरे श्याम ने फूलों के गुलदस्ते के साथ बधाई दी थी।
“थैंक्स ! आपको कैसे पता मुझे लाल लिली बहुत पसंद हैं?”
“फूलों के बीच पला-बढ़ा जो हूँ। कैसे ग्राहक, कैसे फूल चाहेगें, देखते ही पता लगा सकता हूँ।”
“मतलब फूलों के व्यवसायी हैं आप ?”
“जी एकदम ठीक पहिचाना। शहर में हमारी बहुत साख है, फ्लॅारिस्ट ठहरे हम लोग।”
“ओह रियली, मार्वलेस ! यू नो, आई लव फ्लॅावर्स ।”
“खुद भी तो आप फूल जैसी हैं।”
“नहीं मैं कविता ही ठीक हूँ।”
उस दिन के बाद दोनों पास आते गए थे। श्याम जब भी अपने घर जाता लौटते समय कविता को लिली, रजनीगंधा या गुलाबों के फूल लाना कभी नहीं भूलता।
उन फूलों के बीच दोनों के सपने खिलते चले गए थे।
“तुम्हारा गार्डेन देखने का बहुत जी चाहता है, कब ले चलोगे मुझे। इतने ढेर से रंगों के बीच तुम खो नहीं जाते श्याम ?”
“जरूर ले चलॅूंगा, एम0एस0 पूरा कर लेने दो, उसके बाद हम दोनों चलेगें।”
“कोई फोटो नहीं है श्याम, जब तक वहाँ नहीं पहॅुंचती, उसी से संतोष कर लॅू।”
श्याम की दिखाई फोटो को कविता मुग्ध ताकती रह गई थी। इतने रंगों के फूलों की तो वह कल्पना भी नहीं कर पाई थी।
“ओह श्याम, तुम कितने लकी हो, इन फूलों के बीच रहना कितना अच्छा लगता होगा। एक बात बताओ, तुम्हारा माली कौन है, उसे तो पद्मश्री दी जानी चाहिए। मैं पापा से कहूँगी यहाँ के राजभवन में उसे आमंत्रित किया जाए। यहाँ भी ऐसे ही फूल लगवाऊॅंगी।”
“मेरा माली - वहाँ तो कई माली हैं, किसका नाम बताऊॅं - “ श्याम हड़बड़ा सा गया था।
“अरे कोई हेड माली तो होगा उसी की गाइडेंस में तो ये सब काम होता होगा ?”
“हेड माली - नहीं मुझे उसका नाम याद नहीं। चलो एक कप कॅाफी हो जाए।”
“इस वक्त कॅाफी ?” कविता ताज्जुब में पड़ गई थी। कॅाफी पीने का उनका समय बंधा हुआ था।
“हाँ बस मूड हो आया, चलें ?”
कॅाफी पीता श्याम जैसे कहीं खो सा गया था।
“क्या बात है, आर यू ओ के ?” श्याम के उखड़े मूड को देख कविता ने पूछा था।
“परफेक्टली ओ के। बस जरा सिर में दर्द सा हो गया था।”
तीन चार दिन बाद कविता बड़े अच्छे मूड में आयी थी-
“दो दिन के लिये बाहर जा रही हूँ, बाय कहने आयी थी।”
“क्या बात है ? बड़ी खुश दिख रही हो। कहीं सगाई कराने तो नहीं जा रही हो ?” श्याम ने उसे चिढ़ाया था।
“एकदम ठीक पकड़ा, सचमुच एंगेजमेंट के लिए ही जा रही हूँ।” कविता ने भोला सा मॅुंह बना कर जवाब दिया।
“व्हॉट नॅानसेंस, तुम्हारी एंगेजमेंट कैसे हो सकती है ?”
“क्यों नहीं हो सकती, क्या इतनी बुरी लगती हूँ देखने में ?”
“वो बात नहीं है, पर तुम जानती हो हम एक दूसरे के कितने पास आ चुके हैं।” श्याम अपनी बात स्पष्ट नहीं कर पा रहा था।
“पास तो हम हमेशा रहेगें, सगाई से उसमें क्या फर्क आने वाला है?”
“सगाई और शादी दूसरे से करने के बाद भी, हम पास रहेगें -?”
क्या मतलब है तुम्हारा ? देखो कविता, मुझे ऐसे मजाक बिल्कुल पसंद नहीं हैं समझीं।
क्या मतलब है तुम्हारा ? देखो कविता, मुझे ऐसे मजाक बिल्कुल पसंद नहीं हैं समझीं।
“मजाक तो तुम कर रहे हो, अरे भई मैं अपने कजिन की सगाई पर जा रही हूँ। दो दिन बाद लौट आऊॅंगी।”
“ओह गॅाड, तुमने तो कुछ देर को सचमुच ही मेरी जान ले डाली थी।” श्याम ने आश्वस्ति की सांस ली थी।
“ठीक है लौट कर मिलते हैं। बाय।”
कविता के बिना दो दिन श्याम ने बेचैनी में काटे थे। इन कुछ दिनों में उसका पूरा जीवन ही कवितामय हो उठा था।
वॉर्ड से लौटकर श्याम अपने कमरे में पहॅुंचा ही था किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी थी। “कम इन-।”
दरवाजा ठेल हाथ में लाल गुलाबों का गुलदस्ता लिए कविता अन्दर आ गई थी।
“ओह कविता - तुम आ गई। मैं तुम्हें कितना मिस करता रहा।”
“ठहरो श्याम, पहले ये तो लो।” हाथ में पकड़े गुलाब थमाती कविता ने अपनी ओर तेजी से बढ़ रहे श्याम को रोक दिया था।
“ओह लवली रोजेज - थैंक्स।”
“इनकी खुशबू तो पहिचानते ही होगे।”
श्याम ने फूलों से सिर उठा कविता को देखा था।
“तुम्हारे बाग़ के गुलाब, तुम्ही नहीं पहिचान पाए ?”
“मेरे बाग़ -।”
“क्यो कहीं कोई गलती हो गई ? तुम्हारी फ्लॅारिस्ट शॉप से लाई हूँ।” फटी-फटी दृष्टि से श्याम कविता को ताकता रह गया।
“तुम - तुम इतने छोटे हो सकते हो, मैं सोच भी नहीं सकती थी श्याम -।” आवेश में कविता की वाणी रूद्ध हो गई थी।
“क्या हुआ, कविता - आराम से बैठो। ये पानी पी लो -।”
श्याम के हाथ में पकड़ा पानी का गिलास कविता ने झटक कर दूर फेंक दिया।
“तुम बहुत बड़े फ्लॅारिस्ट हो न, श्याम - तुम्हारी गार्डेन में न जाने कितने माली काम करते हैं। यू चीट - लॅायर -।”
“मुझे माफ कर दो कविता”
“किस बात की माफी माँग रहे हैं डॅा श्याम ?” व्यंग कविता के ओठों पर फैल गया था।
“यही कि - मेरी कोई फ्लॅारिस्ट शॉप नहीं - मैं एक गरीब इंसान हूँ।”
“ठीक कह रहे हो, डॅा श्याम। तुम एक महात्वाकांक्षी, कर्मठ और मेरे ख्याल से एक महान इंसान के बहुत गरीब बेटे हो।”
“मेरी बात समझने की कोशिश करो कविता - तुम इतने बड़े घर की लड़की हो, भला कैसे बताता मेरे पिता एक इंस्टीट्यूट के हेडमाली हैं - तुम्हें खो देने का साहस नहीं कर सका, मुझे माफ कर दो, कविता।”
“जिस व्यक्ति ने मिट्टी से इतने सुन्दर फूल उगाए, अपने ही बीज को संवारने में कहाँ गलती कर गया ? एक लड़की को पाने के लिए अपने पिता को ही नकार दिया, डॅा श्याम ?”
“कविता -।”
“नहीं श्याम, इसके लिए कोई एक्सप्लेनेशन नहीं चलेगा। काश तुमने बताया होता, तुम अपने पिता के सपनों के गुलाब हो। मिट्टी में गिरी उनकी पसीने की बूँदों ने तुम्हारा पोषण किया है, तो मैं तुम्हें सिर-माथे लेती, पर आज तुम अपने झूठ के कारण मेरी निगाह में इतने नीचे गिर गए हो -।” आवेश से कविता का चेहरा तमतमा आया था।
“मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ, मुझे सजा दो, कविता।”
“तुम्हारी सजा यही है, डॅा श्याम, जिसे तुमने चाहा, वह तुम्हें कभी न मिले। मैं हमेशा के लिए जा रही हूँ।”
‘ओ ! क्या ये तुम्हारा मुझसे अलग होने का बहाना नहीं, कविता ? मेरी सच्चाई जान, मुझे स्वीकार करने का तुम्हारा साहस शेष नहीं रह गया है।’ बौखलाहट में श्याम को यही जवाब सूझा था।
श्याम के बाद-प्रतिवाद के लिए कविता रूकी नहीं थी। यू0के0 की एक छात्रवृत्ति ले, वह शहर छोड़ चली गई थी। एक उसांस के साथ श्याम ने अपनी कहानी खत्म की थी।
“ओह ! शायद कविता कहीं जल्दबाजी कर गई। काश ! मैं उससे मिल पाती शिवानी गम्भीर हो उठी थी।”
“नहीं गलती मेरी ही थी, जिस पिता ने मुझे यहाँ तक पहॅुंचाया, उसे भुला दिया। बारहवीं तक वजीफों के सहारे पढ़ा, मेडिकल की प्रवेश-परीक्षा में क्वॅालीफाई करने पर बाबू की आँखों में ढेर सारे गुलाब खिल आए थे। इंस्टीट्यूट के प्रिंन्सिपल के पाँवों पर सिर धर दिया था बाबू ने।”
“हमार बेटवा डॅाक्टर बनी साहेब, आपकी मदद चाही। जिनगी भर गुलामी कर लेब, मुला एकर मदद कर दें साहेब।” बाबू की सेवा ध्यान में रख, प्रिंन्सिपल साहब ने इंस्टीट्यूट की ओर से मेरी पढ़ाई की व्यवस्था कराई थी -।
इंटर्नशिप के बाद सब आसान होता गया था, जितने पैसे मिलते काम चल जाता था।
“यह सब कविता को क्यों नहीं बताया, श्याम ?”
“वही तो मेरा अक्षम्य अपराध बन गया, शिवानी। संयोग इसे ही तो कहते हैं, शिवानी के कजिन की सगाई उसी इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल की बेटी से ही होनी थी। शायद लाल लिली के फूल देखते ही उन्हें वह पहिचान गई थी, प्रिंसिपल साहब ने जब कविता को सबसे इंट्रोड्यूस कराया तो बाबू के बेटे का नाम गौरव से लिया गया था।”
“हमारे हेड माली का बेटा वहाँ सर्जन है, डॅाक्टर श्याम - इनका असली फूल तो वही है।”
“जरा सोचो, कविता को यह कितना बड़ा धक्का लगा होगा, शिवानी।”
“तुम्हारे पिताजी को इस बारे कुछ पता नहीं है, श्याम ?”
“बस इतना जान सके, मेरे साथ की लड़की थी कविता। उसने उन्हें बहुत आदर-मान दिया था। लौटते समय बाबू के पाँव छू, उन्हें चौंका दिया था। उसे आशीषते बाबू नहीं थकते, शिवानी।”
“पर इस तरह कब तक चलेगा श्याम ?”
“अपनी भूल का प्रायश्चित कर रहा हूँ। बाबू के लिए एक छोटी सी फूलों की दूकान शहर में खोल दी है। बाबू दूकान के प्रति बहुत उत्साहित हैं, पर मेरी उदासीनता उन्हें बहुत कष्ट देती है, शिवानी।”
“तो उन्हें असलियत क्यों नहीं बता देते, श्याम ?”
“वह बता पाने के लिए कविता का इंतजार है, शिवानी।”
“तुम समझते हो वह वापिस आयेगी ?”
“वह जरूर आएगी शिवानी, मैं उसे अच्छी तरह से जानता हूँ।” दृढ़ स्वर में श्याम ने उत्तर दिया था।
“भगवान तुम्हारा विश्वास सच करें, श्याम।” श्याम के हाथ पर अपना हाथ धर शिवानी ने आशीर्वाद सा दिया था।
apki yeh kahani bahoot hi best hai jaise wo ladki ka itna bada kadam uthana accha laga.
ReplyDeletethank you
i like this story very much and also tatta pani is also heart touching and i love it..
ReplyDeleteBitter truth of life..... Bahut khubsoorati se darshaya hai
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