3/11/11

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

महिला. क्लब में कंचन वर्मा का ज़ोशीला भाषण चल रहा था। सभी लड़कियाँ और औरतें अपने व्यक्तित्व में निखार लाने के लिए कंचन जी से टिप्स जानने को उत्सुक थीं। सचमुच कंचन जी की पर्सनैलिटी किसी को भी प्रभावित कर सकती थी। भाषण देते हुए कंचन जी ने एक ख़ास बात कह डाली। पर्सनैलिटी यानी व्यक्तित्व में निख़ार लाने के लिए सिर से पाँव तक हर बात पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी है। अक्सर मँहगे और सुन्दर कपड़े तो पहने जाते हैं, पर कभी-कभी पाँव की चप्पले या सैंडल पोल खोल देते हैं। ज़रा सोचिएए लाल ड्रेस के साथ पुरानी घिसी हुई या ग़हरी नीली.पीली चप्पलें कैसी लगेंगी।

सबकी हँसी के साथ दीप्ति ने अपने पाँव पीछे खींच लिए। कंचन जी ने कितनी सही बात कही थी। अपने कपड़े खरीदने में दीप्ति कंजूसी नहीं करती, पर वह ख़ुद एक चप्पल महीनों से घसीट रही है। दो.तीन बार चप्पल की मोची से मरम्मत भी करा चुकी है। मन ही मन उसने निश्चय कर लियाए आज ही वह एक-दो जोड़ अच्छे सैंडल और चप्पल ज़रूर खरीदेगी।

बी0ए0 में अच्छी पोज़ीशन के आने कारण एम0ए0 प्रीवियस में पढ़ रही दीप्ति को स्कॉलरशिप मिल रही थी। मध्यवर्गीय परिवार की पहली बेटी को उसकी सुंदरता के कारण दीप्ति नाम दिया गया था। तीन बेटियों के विवाह की चिंता के कारण जूते या चप्पलों पर ज़्यादा खर्च करना माँ की नज़र में फ़िजूलखर्ची थी। वैसे दीप्ति को अपनी स्कॉलरशिप के पैसे खर्च करने की छूट थी।

घर वापसी में दीप्ति वेलफ़िट शू-शाप पर उतर गई। काली टी.शर्ट और जींस पहने एक सौम्य युवक ने मुस्करा कर उसका स्वागत किया.

कहिए मिस। हाउ कैन आई हेल्प यू?

मुझे लेटेस्ट स्टाइल की चप्पलें और सैंडल चाहिए।

ओ0के0 अभी हाज़िर करता हूँ। मिनटों में युवक ने उसके सामने चप्पलों और सैंडलों के डिब्बे खोलकर सजा दिए। दीप्ति असमंजस में पड़ गई, कौन सी चप्पल या सैंडल चुने। नौजवान जैसे उसके मन का असमंजस भांप गया.

मिस, आपके पाँवों में यह चप्पलें बहुत अच्छी लगेंगी और ख़ास बात यह हैए यह चप्पल हर ड्रेस के साथ मैच करेगी। वैसे यह सैंडल भी अच्छे हैं। बताइए आपको दोनों में से क्या पसंद हैं।

मुझे लाइट पिंक कलर के सैंडल चाहिए्। गुलाबी रंग उसकी कमज़ोरी थी।

ओह ! आपकी पसंद तो स्पेशल है। सॉरी अभी तो हमारे पास पिंक सैंडल अवेलेबल नहीं हैं पर दो दिनों में आपकी पसंद के सैंडल हाज़िर कर दूँगा। क्या आप दो दिन इंतजार कर सकती हैं/

ठीक है, पर दो दिनों में आप कहाँ से मंगाएंगे।

फ़ैक्ट्री में आज ही आर्डर कर दूँगा।

आपकी अपनी ही फै़क्ट्री है।

बड़े भाई की फै़क्ट्री अपनी ही समझता हूँ। इन चप्पलों और सैंडलों में से कोई और पसंद नहीं आया  युवक के चेहरे पर मीठी मुस्कान थी।

यह सफ़ेद चप्पल अच्छी है, पर कुछ मंहगी है वर्ना- - अचानक कुछ कहते.कहते दीप्ति रूक गई।

आपके लिए दस प्रतिशत की छूट दे सकता हूँ, अगर फिर भी यह मँहगी लगे तो पंद्रह प्रतिशत तक छूट दी जा सकती है।

इसका मतलब अब तो यह चप्पल लेनी ही पड़ेगी। वैसे आप बड़े अच्छे सेल्समैन हैं। इस तरह से कस्टमर को छूट देते रहे तो भाई के घाटे के ज़िम्मेदार आप होंगे। कुछ शरारत से दीप्ति ने कहा।

अगर कस्टमर आप जैसा हो तो घाटे की चिंता नहीं है। ज़रा चप्पल पहन कर देख लीजिए, साइज़ तो ठीक है ।  दीप्ति ने जैसे ही चप्पल पाँव में पहनी   युवक ने खुशी से कहा.

देखा, यह चप्पल आप ही का इंतज़ार कर रही थी। परफे़क्ट फ़िटिंग और आपके पैरों में पड़कर तो इसकी खूबसूरती में चार  चाँद लग गए हैं।

थैंक्स ! आप बातें अच्छी बना लेते हैं। यह चप्पलें पैक कर दीजिए। वैसे क्या आप सब लड़कियों से ऐसी ही बातें करते हैं।

यह तो कस्टमर पर डिपेंड करता है। युवक मुस्करा रहा था।

इट्स ओ0के0। दीप्ति ने पर्स से पैसे निकाले तभी एक लड़का दूकान में आ गया।

भाई जी, अब आप जाकर आराम करें। मैं आगया। लाइए ये चप्पलें पैक कर दूँ। लड़के ने कहा।

तूने लंच तो ठीक से लिया या ज़ल्दबाज़ी में आधा पेट खाकर ही आ गया। प्यार से युवक ने पूछा।

आपके रहते कोई आधा पेट कैसे रह सकता है? आपकी मेहरबानी बनी रहे। हमे और कुछ नहीं चाहिए। लड़के के चेहरे पर कृतज्ञता और खुशी झलक रही थी।

इसका मतलब आप सेल्स मैन नहीं, दूकान के मालिक है, पर आप तो सेल्स्मैन जैसा काम कर रहे थे। दीप्ति ने ताज्जुब से कहा।

आप ग़लत समझ रही हैंए यहाँ न कोई मालिक है न नौकर। हम सब एक साथ हैं।

यही तो भाई जी का बड़प्पन है। हम नाचीज़ों को इतना प्यार और सम्मान देते हैं। लड़के ने आदर से कहा।

दो दिनों बाद दीप्ति फिर अपने पिंक सैंडलों के लिए वेलफ़िट शू-शॉप पहुँची थी। ड्यूटी पर उस दिन वाला लड़का था। पहले दिन वाले युवक को दूकान में न देख दीप्ति को हल्की. सी निराशा हुई। दीप्ति को देखते ही लड़के ने तीन.चार डिब्बों में से गुलाबी सैंडल निकाल कर सामने रख दिए।

भाई जी ने ख़ास ऑर्डर से आपके लिए ये सैंडल मँगवाए हैं। आपको कौन से पसंद हैं?

ष्तुम्हारे भाई जी कहाँ हैं?

क्लास करने गए हैं। पाँच बजे तक आ जाएँगे।

क्लास, कौन. सा क्लास करते हैं/
वो तो हम नहीं जानते, पर वह रोज़ क्लास करने जाते हैं।

ठीक है, मैं कल पाँच बजे के बाद आऊँगी।

क्यों, क्या सैंडल पसंद नहीं आएए मै्डम।

ऐसी बात नहीं है, उनसे कुछ बात करनी है। लड़के को और बात करने का मौक़ा न दे, दीप्ति दूकान से बाहर चली गई।

दूसरे दिन यूनीवर्सिटी में डिबेट थी। डिबेट में दीप्ति भी भाग ले रही थी। डिबेट का विषय'- प्रेम- विवाह ही सफल होते हैं',  सबकी रूचि का था। विषय के विपक्ष में प्रतिभागियों की जीत कठिन लग रही थी। दीप्ति को सिद्ध करना था, सिर्फ़ प्रेम.विवाह ही सफल हो सकते हैं। डिबेट शुरू हो गई। लड़के और लड़कियों में भारी उत्तेजना थी। दीप्ति ने अपने ज़ोरदार तर्कों से प्रेम.विवाह के पक्ष में अपना वक़्तव्य प्रस्तुत किया। तालियों की गड़गड़ाहट ने उसकी विजय निश्चित सी कर दी। कुछेक प्रतिभागियों के बाद विरोधी पक्ष की ओर से संजीव कुमार का नाम पुकारा गया। उसके स्टेज़ पर आने के पहले ही तालियाँ गूंज उठीं। पास बैठी लड़की ने धीमें से कहा. यह तो एम0ए0 हिस्ट्री का टॉपर है। पूरी आर्ट फ़ैकल्टी में टॉप किया था। आजकल हिस्ट्री में रिसर्च कर रहा हैं। संजीव पर नज़र पड़ते ही दीप्ति चौंक पड़ी। वेलफ़िट-शू-शॉप का सेल्स-मैन संजीव के रूप में स्टेज पर खड़ा था।

संजीव की दलीलों ने प्रेम.-विवाह की धज्जियाँ उड़ा दी। संजीव के तर्कों की वज़ह से उसकी टीम विजयी घोषित की गई। डिबेट के अंत में जलपान का आयोजन था। संजीव को बधाई देती दीप्ति पूछ बैठी.

सोच रही हूँ, आपका कौन. सा रूप सत्य है। वेलफ़िट का सेल्समैन या यूनीवर्सिटी का टॉपर?

आप जिसे पसंद करें। कुछ शैतानी से संजीव ने कहा।

 तो आप प्रेम.विवाह के विरूद्ध हैं। संजीव की बात को नकार कर दीप्ति ने सवाल किया।

देखिए, डिबेट में जीत पाने के लिए झूठ को भी सच बनाकर अपनी बात सिद्ध करनी पड़ती है, पर आप तो प्रेम.विवाह में यकीन रखती हैं न्। दो उत्सुक आँखे दीप्ति के चेहरे पर गड़ गईं।

अभी आपने ख़ुद ही कहा, डिबेट में झूठ और सच कोई अर्थ नहीं रखता। मैं भी आपसे सहमत हूँ।
वैसे मैं आपकी बात मानता हूँ, प्रेम-विवाह ही असली विवाह होता है। आपने झूठ नहीं कहा था। सहास्य संजीव ने कहा।

घर पहुँची दीप्ति का मन उमगा-उमगा पड़ रहा था। अपनी हार के लिए कतई दुख नहीं था। दूसरी शाम वह वेलफ़िट पहुँची थी। संजीव एक कुर्सी पर बैठा कोई किताब पढ़ रहा था। दीप्ति को आया देखए किताब रख दीप्ति के पास आ गया।

आपके पिंक सैंडल तो कल ही आ गए थे। कैलाश बता रहा थाए शायद आपको पसंद नहीं आए।

नहीं, आप नहीं थे इसलिए - - अचानक दीप्ति कुछ कहते-कहते रूक गई।

इसका मतलब आपको मेरी तलाश थी, पर क्यों, दीप्ति जी।

सैंडल पर कंसेशन तो आप ही दे सकते हैं न।

ओह ! यानी मेरी ज़रूरत बस अपने फ़ायदे के लिए थी। संजीव शरारत से मुस्कराया।

फ़ायदा देखने में क्या ग़लती है , संजीव जी्।
 ठीक कहती हैं, ज़्यादातर लोग अपना फ़यादा ही देखते हैं।

और आप अपना फ़ायदा-नुक्सान नहीं देखते।  दीप्ति ने सवाल किया।

 सच यही है अपना फ़ायदा कभी नहीं चाहा। हाँ तो बताइए इन सैंडलों में से आपको कौन सा पंसद है/  संजीव के इशारे पर कैलाश ने सैंडल सामने रख दिए।

दीप्ति को एक सैंडल पसंद आ गया। कीमत पूछने पर संजीव ने कहा.

पहले ट्राई कीजिए। दाम तो तय हो ही सकते हैं, पर चीज़ आपको पसंद आनी चाहिए।

सैंडल दीप्ति के पैरों में एकदम फ़िट आए।

वाह ! बहुत अच्छी च्वाँइस हैए आपकी। कैलाश सैंडल पैक कर दो।

थैंक्स। पहले कीमत तो बताइए।

कीमत के लिए परेशान न हों, ये सैंडल हमारी ओर से आपके लिए गिफ़्ट हैं।

ओह नो। मैं आप से गिफ़्ट कैसे ले सकती हूँ। बस कीमत में दस-.पंद्रह प्रतिशत की छूट दे दीजिए।

असल में आपकी वज़ह से हमें बहुत फ़ायदा हुआ है। इन सैंडलों को लेडीज ने बहुत पसंद किया है। इनकी बहुत डिमांड हैए पर अभी तक किसी को नहीं दिए गए क्योंकि आपकी पसंद को प्रिफ़रेंस देनी थी। अब आपने अपने लिए सैंडल पसंद कर लिए, बाकी तो मिनटों में बिक जाएंगे।

पर, मेरा मतलब है- - लेकिन ये तो ठीक बात नहीं है। दीप्ति ह्रबड़ा सी गई
पर और लेकिन छोड़िए। ये आपकी चीज़ है। कैलाश सैंडल पैक करने से पहले दो कप कॉफ़ी ले आओ।

कॉफ़ी क्यों? क्या यह भी फ़ायदे का हिस्सा है? दीप्ति अपने परिहास पर मुस्करा रही थी।

आपके साथ कॉफ़ी पीने से मेरा ज़रूर फ़ायदा है। सुबह से कॉफ़ी की तलब उठ रही थी अकेले कॉफ़ी पीने में मज़ा ही नहीं आता। उम्मीद हैए इस बंदे का साथ देंगी। यकीन दिलाता हूं, मेरे साथ कॉफ़ी का मज़ा बढ़ जाएगा। हँसते हुए संजीव ने कहा।

अपने पर आपको इतना यकीन है तो हम भी आज़मा लेते हैं। कुछ शोख़ी से दीप्ति ने कहा।

पहला घूंट लेती दीप्ति ने मुँह बनाया.

ऊँहुक, ज़रा भी मज़ा नहीं आया।

ओह ! तो रहने दीजिएए कोल्ड-ड्रिंक मँगवाता हूँ।

अरे नहीं, कॉफ़ी बहुत अच्छी है। मैं तो मज़ाक कर रही थी। एक बात बताइए, क्या आप अपने सभी कस्टमर्स को ऐसे ही एंटरटेन करते है?
यह बात तो किसी ख़ास कस्टमर पर डिपेंड करती है। वैसे मैं आपको कस्टमर नहीं, मित्र मानता हूँ। आखि़र हम दोनों एक ही विश्वविद्यालय के साथी हैं। हाँ, कल वेंकट-हॉल पहुँच रही हैं न।

 वेंकट-हॉल में क्या है?

आपको पता नहीं कल आतंकवाद और विश्व-शांति विषय पर अन्तरविश्वविद्यालय भाषण-प्रतियोगिता है।

ओह ! तब तो आप ज़रूर भाग ले रहे होंगे।

हेड ऑफ़ डिपार्टमेंट का कहना तो मानना ही होता है। उनका आदेश है मैं प्रतियोगिता में भाषण दूँ। आप आएंगी तो मुझे खुशी और उत्साह दोनों मिलेगा।

कोशिश करूँगी, पर न पहुँच सकूं तो माफ़ कीजिएगा।

नहीं ये माफ़ी आसान नहीं होगी।

क्या खूब कड़ी सज़ा देंगे? हँसती दीप्ति का चेहरा और भी सुंदर लग रहा था।

आपको सज़ा देना किसे संभव होगा, दीप्ति। यह मेरा अनुरोध है, प्लीज़।

ठीक है, ज़रूर पहुँचूँगी। आपको सुनना अच्छा लगेगा।

सच कह रही है।  संजीव की मुग्ध आँखों ने दीप्ति का चेहरा लाल कर दिया।

दीप्ति के पैरों में नए सैंडल देख उसकी सहेली गीता ने परिहास किया.

वाह ! इतने कीमती और सुंदर सैंडल। लगता हैए कंचन वर्मा का भाषण रंग लाया है। लगता है काफ़ी पैसे खर्च कर डाले?

नहीं,  यह तो किसी की मेरे लिए गिफ़्ट है। कुछ शर्माती. सी दीप्ति ने कहा।

वाह जी। ऐसा कौन चाहने वाला है? हमे भी तो पता लगे। गीता की बात में व्यंग्य था।

धत्त ! यह तो मैंने सैंडल की डिज़ाइन दी थी उसके लिए यह मेरे शेयर की गिफ़्ट है।

मेरा कहा मान ये गिफ़्ट वग़ैरह से दूर ही रह। अक्सर लड़कियों पर इसी तरह से डोरे डाले जाते हैं।

थैँक्स फ़ॉर योर एडवाइस मैं बच्ची नहीं हूँ। चल वेंकट_हॉल चलते हैं। आज ज़ोरदार भाषण_ प्रतियोगिता है।

नहीं तू ही जा। मुझे भाषण बाज़ी में कतई रूचि नहीं है। अंततः दीप्ति को अकेले ही वेंकट.हॉल जाना पड़ा। खचाखच भरे हॉल में दीप्ति की निगाहें संजीव को ढूंढ़ रही थीं। तभी हॉल में प्रविष्ट हो रहे संजीव पर दीप्ति की दृष्टि पड़ी। संजीव भी जैसे उसे ही खोज़ रहा था। नज़रे मिलते ही दीप्ति ने हाथ हिलाए अपनी उपस्थिति जता दी; संजीव ने उत्तर मुस्कान से दिया।

कई प्रतिभागियों के बाद संजीव का नम्बर आया। सधी आवाज़ में सारगर्भित तरीके से संजीव ने कहा.

विश्व.शांति केवल आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने पर ही संभव है। हमें अपने नौजवान दोस्तों को गुमराही से बचाना है। जन्म से कोई आतंकवादी नहीं होता। परिस्थितियाँ और ग़लत साथ उन्हें आतंकवाद की खाई में ढकेल देता है। उन्हें किसी भी हालत में इस खाई में गिरने से बचाना है।

ज़ोरदार तालियों की गड़गड़ाहट ने स्पष्ट कर दिया, संजीव के भाषण ने सबको कितना प्रभावित किया है। परिणाम प्रत्याशित थे। संजीव को प्रथम पुरस्कार दिया गया। बधाई देती दीप्ति ने ट्रीट की फ़र्माइश कर डाली। रेस्ट्रा में दीप्ति के सामने बैठे संजीव ने पूछा.

कहिए मोहतरमा आपकी खि़दमत में बंदा क्या पेश करे।

चाँद के साथ आकाश के सारे तारे बस। शैतानी से दीप्ति ने जवाब दिया।

चांद-.तारे ही क्यों, आपके लिए तो यह जान भी हाज़िर है। यह मेरा वादा है। संजीव ने मुस्करा कर वादा किया। हँसी.खुशी की वह शाम बिता घर लौटी दीप्ति पर माँ बरस पड़ी.

सुना है, तू किसी जूते वाले के साथ घूमती.फिरती है। शर्म नहीं आती ऐसे लोगों से दोस्ती कर खांदान का नाम बदनाम कर रही है।

उसके भाई की शू-फ़ैक्ट्री है, माँ। वह ख़ुद भी एम0ए0 का टॉपर है। सब उसकी इज़्ज़त करते हैं।

मुझे तेरी बकवास नहीं सुननी है। ख़बरदार जो उसके साथ मेलजोल बढ़ाया वर्ना मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

माँ की चेतावनी के बावजूद दीप्ति ने संजीव से मिलना बंद नहीं किया। दोनों के बीच नज़दीकियाँ बढ़ती गईं। अचानक एक दिन संजीव कह बैठा.

मुझे अपना जीवन.साथी बनाओगी, दीप्ति। अब तुम्हारे बिना रहना मुश्किल है।

यह क्या कह रहे हो, संजीव। मुझे अपनी पढ़ाई पूरी करनी है। दीप्ति आगे बोल नहीं सकी।

पढ़ाई तो मेरे साथ भी पूरी कर सकती हो, दीप्ति। अब तो मुझे यूनीवर्सिटी में लेक्चरशिप भी मिल गई है। कल ही नियुक्ति-पत्र मिला है। बोलो मेरा हमेशा साथ दोगी।  संजीव ने दीप्ति के सामने हथेली खोल दी।

दीप्ति के मौन ने संजीव को बैचेन कर दिया। मैं तुम्हें सच्चे मन से चाहता हूँ। तुम्हें अपने से ज़्यादा प्यार करता हूँ। प्लीज़ मुझसे विवाह कर लो। असमंजस में पड़ी दीप्ति ने संजीव की फैली हथेली में अपना हाथ दे दिया।

थैंक्स, दीप्ति। तुम मेरी ज़िंदगी हो। अब मेरी जिंदगी को कोई मुझसे अलग नहीं कर सकता। वादा करो, दीप्ति, हम हमेशा साथ रहेंगे।

वादा करती हूं, संजीव।

घर पहुँची दीप्ति को माँ ने प्यार से लिपटा लिया। तेरी तो किस्मत खुल गई, मेरी बेटी।

क्यों ऐसा क्या हो गया, माँ।

अरी सुनेगी तो खुशी से उछल पड़ेगी। तेरी चंद्रा आँटी का इंजीनियर देवर अमरीका से आया है। विनीत को तू पसंद आ गई है। दो दिन में सगाई और शादी फिर तू हमे छोड़ अमरीका चली जाएगी।

यह नहीं हो सकता, माँ। मैं किसी और से वादा कर चुकी हूँ।

किससे उसी जूता बेचने वाले से।

माँ, वह प्रोफ़ेसर है। तुम्हें उसका अपमान करने का हक़ नहीं है। दीप्ति की आवाज़ में तेज़ी थी।

अपमान क्यो, यही तो उसकी सच्चाई है, कल तेरी सहेली गीता को भी उसने चप्पले बेची हैं। तुझे भी तो मुफ़्त का सैंडल देकर भरमाया है। आज तू उसकी दीवानी बनी बैठी है पर वाद में किस्मत को रोएगी। कहाँ अमरीका का इंजीनियर कहाँ वह मामूली इंसान।

माँ की तेज़ आवाज़ सुनकर पापा भी आगए। दीप्ति के सिर पर प्यार से हाथ धरकर समझाया.

तेरी माँ ठीक कह रही है, बेटी। विवाह सात जन्मों का बंधन होता है। शादी के समय भावुकता की जगह व्यावहारिक होना उचित है। विनीत के साथ तेरे सारे सपने पूरे हो सकते हैं। अच्छी नौकरी, कार, घर सब कुछ तो है उसके पास। एक बार तू विनीत से मिल ले फिर तेरे फ़ैसले पर हम दबाव नहीं डालेंगे।

माँ.बाप की ज़िद पर दीप्ति विनीत से मिलने को तैयार हो गई। अंततः फ़ैसला तो उसे ही लेना था। विनीत से उसका विवाह ज़बरदस्ती तो नहीं किया जा सकता।

विनीत के प्रभावशाली व्यक्तित्व ने दीप्ति पर गहरा असर डाल दिया। उसकी बातचीत का अंदाज़ अनोखा था। अमरीका के मनमोहक सपनों के जाल में बंधी दीप्ति को विनीत ने आश्वासन दिया था.

आप अपनी पढ़ाई अमरीका में पूरी कर सकती हैं। वहाँ आप जैसी लड़कियों की बहुत कद्र होती है।

अमरीकी विश्वविद्यालय में पढ़ने की कल्पना ने दीप्ति को रोमांचित कर दिया। फ़िल्मों में देखे अमरीका के मनोहारी दृश्य साकार होते लग रहे थे, पर संजीव से किया वादा,  रात भर दुविधा में पड़ी करवटें बदलती दीप्ति सुबह होते.होते फ़ैसला ले चुकी थी। पापा ठीक कहते हैं, विवाह के समय प्रैक्टिकल होने में ही अक्लमंदी है। विनीत को हाँ कहने में ही सबकी खुशी है।  पलक झपकते चार दिन बीत गए। शॉपिंग_ शादी की रस्मों के बीच संजीव से मिलना संभव नहीं था। हाँ फ़ोन पर बड़ी मासूमियत से अपने लड़की होने की मज़बूरी की बात कहकर संजीव से माफ़ी ज़रूर माँग ली। स्तब्ध संजीव को और बात करने का मौक़ा भी नहीं दे पाई।

एयरपोर्ट पर एक भारी बुके के साथ संजीव को आया देखए दीप्ति अपराध-बोध से दब. सी गई।

बधाई ! भावी जीवन के लिए मेरी शुभकामनाएँ। मुस्कान में संजीव का दर्द छिपा था।

सिक्यूरिटी. चेक के लिए जाती दीप्ति ने मुड़कर देखा तो संजीव ने हल्के से हाथ उठा उसे विदा दी थी। प्लेन में बैठी दीप्ति की आँखों के सामने संजीव का उदास चेहरा कौंध गया, पर विनीत की मीठी बातों के साथ अमरीका पहुँचने की उमंग जागने लगी।

टैक्सी से चारों ओर फैली हरियाली और ऊँची.ऊँची इमारतों को विस्मय से निहारती दीप्ति मुग्ध थी। टैक्सी एक छोटे से अपार्टमेंट के सामने रूकी थी। दरवाज़ा खोल विनीत ने कहा.

अपने घर में तुम्हारा स्वागत है, दीप्ति।

चारों ओर निगाह दौड़ाती दीप्ति चौंक गई। एक बड़ा. सा हॉलनुमा कमरा, किचेन के लिए छोटी. सी जगह, एक पुराना सोफ़ा और मेज़ के साथ कुर्सियां, जिस पर बैठकर खाना खाया जा सकता था। क्या विनीत ने इसी कमरे को बंगला कहा था।

कुछ ही दिनों में सच्चाई सामने आ गई। विनीत इंजीनियर नहीं एक मामूली मैकेनिक था। दीप्ति विफ़र पड़ी.

तुमने झूठ क्यों कहा, धोखा किया है मेरे साथ। माफ़ करना, दीप्ति। तुम मन को इस क़दर भा गईं कि झूठ बोलकर ही तुम्हें पाना चाहा। वैसे इतना कमा लेता हूँ कि हम दोनों का काम अच्छी तरह चल जाए।

नहीं, तुम्हारे झूठ के साथ मैं नहीं रह सकती। मुझे वापस जाना है। दीप्ति की आँखों से आँसू बह निकले।

वापस जाकर अपने माँ.बाप के दुख का कारण ही तो बनोगी, दीप्ति। अभी उन्हें दो और बेटियाँ ब्याहनी हैं। तुम्हारी वापसी का ग़लत अर्थ लगाया जाएगा। मैं तुम्हें हर खुशी दूँगा, दीप्ति।

विनीत की बात में सच्चाई थी। माँ.बाप को दोष देने से क्या फ़ायदा , उनकी बड़ी बेटी अमरीका में सुख से है, उनके लिए यही सबसे बड़ी खुशी थी। दीप्ति के अमरीका के सपने टूट गए। पढ़ाई पूरी करने का सवाल ही नहीं उठता था। विनीत ने नरमी से समझाया था.

अमरीका में पढ़ाई बहुत महँगी है। मैं चाहकर भी तुम्हें कॉलेज में नहीं पढ़ा सकता। तुम अगर कहीं काम कर लो तो शायद कुछ हो सके। तुम अपने पैसे जमा कर सकती हो। वेरी सॉरी मैंने झूठा वायदा किया था।

 दीप्ति बैचेन रहती। वैसे विनीत के व्यवहार से उसे शिक़ायत नहीं थी पर उसका झूठ कचोटता रहता। अमरीका के नशे में उसने संजीव का प्यार ठुकरा दिया और बदले में एक इंजीनियर की जगह मैकेनिक मिला। अब तो उसे इसी जीवन से एडजस्ट करना था।

पास के एक स्टोर में सेल्स गर्ल की तरह काम शुरू करते हुए आँखे भर् आईं, पर शायद कुछ पैसे कमाकर अपनी पढ़ाई पूरी कर सके।

काम से वापस आई दीप्ति ने चाय का कप थामा ही था कि फ़ोन की घंटी सुनाई पड़ी-- उधर से एक परिचित आवाज़ आई.

पहचानों तो जाने।

गीता्। तू  क्या इंडिया से फ़ोन कर रही है।

इंडिया से नही, यहीं भारतीय दूतावास से फ़ोन कर रही हूँ। गीता की चहकती आवाज़ में खुशी थी।

अरे वाह, तू भी अमरीका में है। बहुत अच्छा लग रहा है।
जी हाँ, मैं भी तेरी तरह शादी करके अपने पति देव के साथ अमरीका आई हूँ।

गीता तू यहां यहाँ किस शहर में है/

इंडियन एम्बैसी तो अमरीका के वाशिंगटन डी0सी0 में ही है। इतना तो पता है न। गीता हँस रही थी।

ओह ! तो तेरे पति इंडियन एम्बैसी में हैं। उनका नाम तो बता।
सिर्फ़ नाम ही क्यों, तू तो उनसे खूब अच्छी तरह से परिचित है।

किसकी बात कर रही है, गीता। दीप्ति ताज्जुब में थी।
संजीव की याद है या उसे भूल गई ।

संजीव अमरीका में है। दीप्ति के स्वर में गहरा विस्मय था।
जी हाँ। आई0एफ0एस यानी भारतीय विदेश सेवा परीक्षा में संजीव को दूसरा स्थान मिला। पहली पोस्टिंग अमरीका में हुई है।

दीप्ति के मौन पर गीता ने फिर कहा.- तेरी शादी ने संजीव को तोड़ दिया था। उस वक़्त मैंने ही उसे सहारा दिया। जिंदगी से हार न मानने की जगह उसे फिर से जीने की राह दिखाई। आज हम दोनों बहुत खुश हैं।

तूने दोस्त होकर मुझे धोखा दिया है, गीता। तूने ही माँ को बताया था, संजीव लड़कियों को जूते-चप्पल पहनाता है। तू नहीं चाहती थीए संजीव से मेरी शादी हो। दीप्ति की आवाज़ में व्यंग्य और क्रोध था।

माँ से मैंने क्या झूठ कहा था । पुरानी बातें दोहराने से क्या फ़ायदा। गीता ने शांति से कहा।

झूठ.सच की छोड़। अब समझ में आ रहा है शुरू से ही तेरा मक़सद क्या था। मैं धोखे़ में रही। दीप्ति ने तेज़ी से कहा।
क्या कहा, धोख़ा मैंने दिया। नहीं, दीप्ति, धोख़ा तो तूने संजीव को दिया। उसके साथ शादी का वादा किया, पर जैसे ही अमरीका जाने का चांस मिला, एक पल में तूने फ़ैसला बदल लिया। सच कह, विनीत के साथ शादी का फ़ैसला तूने ही लिया था न।  अगर संजीव से सच्चा प्यार किया था तो अपने वादे पर अडिग रहती। क्यों दीप्ति यही सच है न।

सच नहीं, तू जले पर नमक छिड़क रही है। संजीव को पाकर मुझे नीचा दिखा रही है। माँ.बाप की मरज़ी मानना मेरी मज़बूरी थी।

चल यही सही, आखि़र अपनी ग़लती के लिए किसी को तो ज़िम्मेदार ठहराना ही था। काश ! तूने संजीव के प्यार की क़दर की होती।

ठीक है, जो मैंने खोया, तूने तो वो पा लिया। यही सुनाने के लिए फ़ोन किया था।
नहीं, तुझे फ़ोन करने के पीछे एक ख़ास मक़सद है।

मकसद, अब और क्या बाक़ी है,गीता/

तुझसे एक ही बात कहनी है। कभी भूलकर भी मुझे फ़ोन मत करना। याद रख, जो बीत गई सो बात गई। अब पुराना परिचय याद करने या कराने से कोई फ़ायदा नहीं। जो घाव भर रहे हों उन्हें कुरेदने की कोशिश मत करना, दीप्ति। हम दोनो अपनी.अपनी दुनिया में खुश रहें, इसी में हमारी भलाई है। वैसे भी विनीत तेरी ही पसंद है। उम्मीद है, तू मेरी बात समझेगी।

बात ख़त्म होते ही फ़ोन कट गया। स्तब्ध दीप्ति शून्य में ताकती रह गई। अमरीका के सपने तो मृगतृष्णा ही सिद्ध हुए। झूठे सपनों के नाम पर संजीव का सच्चा प्यार खुद उसने ही तो ठुकराया था। हे भगवान, वह यह कैसा फ़ैसला ले बैठी।  हथेलियों में चेहरा ढ़ांप दीप्ति पलंग पर ढह गई।


1 comment:

  1. Hi,

    It is such a great story.
    Today I have read so many stories from your blog. You are very good writer keep it up going.
    Regards,
    Parveen Kumar

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