उदास रंग
अनमने से निशांत ने मीनल के सामने ईमेल का एक प्रिंट-आउट फेंक सा दिया।
‘क्या है?’
‘खुद देख लो।‘जवाब के साथ निशांत कमरे से बाहर चला गया।
निशांत के उस अप्रत्याशित जवाब ने मीनल को चौंका दिया। ज़रूर कोई ख़राब ख़बर है वर्ना शादी की रात ही निशांत ने मीनल से कहा था-
‘हम दोनों असली अर्थों में पति-पत्नी तभी बन सकेंगे जब हम सच्चे दोस्त बन जाएं। हमारे बीच कोई परदा ना रहे।‘
अपनी उस बात को निशांत ने पूरी तरह से निभाया है। पहली रात ही निशांत ने शादी के पहले नेहा नाम की लड़की के पीछे अपनी दीवानगी की कहानी सुना डाली। मीनल से भी हंस कर पूछा था-
‘अब अपनी सुनाइए। कितने रोमियो आपके दीवाने थे? हां जिसे तुमने चाहा बस उसका नाम बता दीजिए, बंदे को कोई शिकायत नहीं होगी। तुम्हारे अतीत से मेरा कोई सरोकार नहीं है।‘
‘मेरा कोई अतीत नहीं है। हमारे मुहल्ले को तो देखा है, उस माहौल में रोमांस का क्या कोई चांस हो सकता है?’ दृढता से ओंठ भींच मीनल ने जवाब दिया।
‘कमाल है, क्या तुम्हारा छोटा सा मुहल्ला ही तुम्हारी पूरी दुनिया थी? यूनिवर्सिटी-कॉलेज में कोई नहीं मिला?’
‘मिला होता तो क्या आप मिलते?’
मीनल के उस जवाब पर जी खोल कर हंसते निशांत ने मीनल को बाहों में समेट लिया।
सच तो यह है निशांत ने पूरी तरह से अपनी बात निभाई है। उसके नाम आए पत्रों को खोल कर पढने की मीनल को पूरी इज़ाजत थी। अक्सर एक दूसरे के नाम आए पत्रों को पढ कर दोनों एन्ज्वॉय करते, पर आज निशांत ने एक शब्द भी नहीं कहा।
प्रिंट- आउट पर नज़र डालती मीनल के चेहरे का रंग उड़ गया। लिज़ा की चंद पंक्तियां थीं
‘रोहित नहीं रहा। गोमती के किनारे मीनल की उपस्थिति में उसका अंतिम संस्कार किया जाए, यही उसकी आख़िरी ख़्वाहिश थी। मीनल से अनुरोध है, जाने वाले की अंतिम इच्छा ज़रूर पूरी करे। अंतिम संस्कार नौ दिसम्बर को चार बजे होगा। मीनल के लिए रोहित ने एक पेंटिंग बनाई है, लिज़ा उसे साथ लाएगी।‘
मीनल की आँखों से कितने आंसू बह गए, उसे ज़रा भी भान नहीं रहा अचानक निशांत की रूखी आवाज़ ने उसे चौंका दिया।
‘लखनऊ के लिए फ़्लाइट बुक करा दी है। सुबह दस बजे पहुंच जाओगी। तुम्हारे घर फ़ोन कर दिया है। जयंत रिसीव कर लेगा।‘
‘निशांत वो रोहित हमारे पड़ोस में------‘आंसू पोंछते मीनल ने कहना चाहा।
‘इस वक्त कुछ जानने-सुनने का मूड नहीं है। तुम अपनी पैकिंग कर लो।‘ मीनल को कुछ् कहने का मौका दिए बिना ही निशांत चला गया।
आंसुओं के सैलाब में रोहित का मुस्कराता चेहरा साकार हो उठा। ड्राइवर ने आकर मीनल को चैतन्य किया-
‘साहब ने आपको एयरपोर्ट ले जाने के लिए गाड़ी भेजी है। फ़्लाइट टाइम पर है। आपका बैग ले जाता हूं।
‘साहब नहीं आए?’ मीनल पूछ बैठी।
‘साहब मीटिंग में हैं, नहीं आ पाएंगे।‘ ड्राइवर ने शालीनता से जवाब दिया।
मीनल जान गई। निश्चय ही निशांत बेहद आहत है। काश, उसने अम्मा की बात न मान निशांत को सब कुछ बता दिया होता। विदा होती मीनल को अम्मा ने अपनी कसम दे कर कहा था-
‘देख मीनू, जो होना था हो गया। अब रोहित का नाम भूल जाने में ही तेरी भलाई है। मर्द बड़े शक्की होते हैं। भूल कर भी रोहित का नाम ज़बान पर मत लाना। तुझे कसम है अपनी माँ की।‘
प्लेन में बैठी मीनल के मानस में पुराने चित्र उभरते आ रहे थे।
मातृ-पितृ विहीन रोहित अपनी मेहनत और दृढ संकल्प के कारण ही यूनिवर्सिटी के कला विभाग में प्रोफ़ेसर बन सका था। चंडीगढ से आया रोहित जल्दी ही अम्मा का स्नेह-पात्र
बन गया था। रोहित के लिए अम्मा के मन में ढेर सारी ममता थी। बेचारे को छुटपन से ही माँ का प्यार नसीब नहीं हुआ और अब तो उसके सिर पर बाप का भी साया नहीं रहा। अम्मा रोहित को उसका मन-पसंद खाना बना कर खिलातीं। अम्मा का प्यार पा कर रोहित का कुम्हलाया मन खिल उठा। अम्मा के सामने रोहित बच्चा बन जाता। रोहित की चित्र-कला के अलावा उसका गिटार-वादन सबको मुग्ध कर जाता। उसकी बनाई पेंटिंग्स देख, लोग वाह-वाह कर उठते। उसके गिटार की मीठी धुन पर मुहल्ला जा्गता था।। अम्मा ने रोहित से कहा था-
‘इस मीनू को भी कुछ गुण सिखा दे, बेटा। पराए घर गुणों की ही कदर की जाती है। आखिर बेटी पराई अमानत ही तो ठहरी।‘ अम्मा ने ठंडी सांस भरी।
‘रहने दो अम्मा, हमे न गुणवंती बनना है, ना पराए घर जाना है।‘ तुनक कर मीनल बोली थी।
‘तुम तो गुणों की खान हो मीनल, पर गिटार या पेंटिंग सीखने से गुणों में और इज़ाफ़ा हो जाएगा।‘ रोहित की मीनल पर निबद्ध दृष्टि में न जाने क्या था कि मीनल रोमांचित हो उठी।
तीन वर्षों में रोहित मीनल के परिवार का प्रिय सदस्य बन, सबका विश्वास जीत चुका था। यह रोहित की ही ज़िद थी कि मीनल गिटार सीखने के साथ आड़ी-सीधी रेखाएं खींच कर चित्र बनाने लगी। रोहित को गोमती से प्यार था और उसके साथ मीनल भी गोमती में नौका-विहार की दीवानी हो उठी। दोनों की शामें अक्सर गोमती के किनारे बैठ कर या नौका-विहार में ही बीततीं। रोहित के साथ मीनल को कहीं भी आने-जाने की छूट थी। किसी ने कभी नहीं सोचा दोनों युवा थे, उम्र का तकाज़ा कोई ग़लती करा सकता है। सच तो यही था रोहित के बिना मीनल का जीवन अपूर्ण था। दोनों एक-दूसरे के पूरक थे। शायद अम्मा और पापा ने मन ही मन दोनों का रिश्ता तय कर लिया था।
जाड़ों की छुट्टियों में जब रोहित् ने अपने कुछ विद्यार्थियों के साथ किसी सागर-तट पर पेंटिंग-कैंप करना तय किया तो मीनल अड़ गई। ज़िद कर बैठी-
‘हमने कोई सी-बीच नहीं देखा है। हम भी कैंप मे जाएंगे।‘
मीनल की ज़िद ने अम्मा-पापा को असमंजस में डाल दिया। युवा बेटी को कैंप में भेजते डर सा लग रहा था। उनके संशय को रोहित के दृढ शब्दों ने दूर कर दिया-ों
‘विश्वास कीजिए, मीनल मेरे साथ आपकी अमानत की तरह रहेगी। आपका मुझ पर जो विश्वास है कभी टूटने नहीं दूंगा।‘
रोहित के शब्दों ने सब का संशय दूर कर दिया। वह अब अपरिचित नहीं रह गया था। मीनल को कैंप में जाने की इजाज़त मिल गई।
सागर के गंभीर सौंदर्य ने मीनल को विस्मित कर दिया। दूर से आती सागर-लहरों का सागर-तट के वक्ष पर सिर धर कर बिखर जाना, उसे समर्पण का अभिनव रूप लगा। विद्यार्थियों को अनुशासित रहने के निर्देश देते रोहित ने हल्की मुस्कान के साथ मीनल पर दृष्टि दाली थी। उस दृष्टि ने मीनल को लाल कर दिया। विद्यार्थियों को अपने- अपने ढंग से चित्रकारी करनी थी। मीनल के लिए ना समय का बंधन था, ना सोने-जागने के कड़े नियमों का बंधन था। मीनल का हर पल एक नया सपना जीता।
भोर की उजास के पहले ही रोहित अपना ईजल, पैलेट और कैनवास ले कर निकल जाता। सागर-तट के जनशून्य भाग में बैठ कर अपनी तूलिका से रंग भरता। नींद टूटने पर मीनल थर्मस में चाय ले कर पहुंचती। रोहित के साथ सागर का सौंदर्य दुगना हो जाता।
उस दिन भी रोहित अपने चित्र में रंग भर रहा था। सी-बीच पर टहलती लिज़ा के पांव अचानक ठिठक गए। सामने कैनवास पर उभरा दृश्य अदभुत था। उन्मत्त युवा सागर लहरों के बीच से अपनी सबल भुजाएं फैलाए, मंथर गति से बहती आ रही नदिया की तन्वी धारा को अपने आलिंगन- पाश में बांधने को आतुर खड़ा था। सागर और नदी की प्रेम-कहानी लिज़ा के लिए नई नहीं थी, पर वह जीवंत चित्र, सारी कल्पनाओं को झुठलाता, जैसे एक सजीव सत्य था। पास पड़ी शिला पर लिज़ा चुपचाप बैठ गई। अपनी तन्मयता में चित्रकार को लिज़ा की उपस्थिति का तनिक सा भी भान नहीं था। लिज़ा उसकी तन्मयता भंग नहीं करना चाहती थी कि एक मीठी आवाज़ ने चौंका दिया-
‘अब कुछ देर के लिए अपनी तूलिका को विराम दीजिए, चित्रकार महोदय्। देखिए गर्म चाय और सैंडविच लाई हूं।‘ हाथ में थर्मस और सैंडविच का पैकेट लिए मीनल खड़ी थी।
‘थैंक्स्। अगर तुम न होतीं तो यह चित्रकार भूखा मर जाता।‘ परिहास करते रोहित की दृष्टि अचानक शिला पर बैठी लिज़ा की दृष्टि से टकरा गई।‘
‘हलो, आप?’ रोहित पूछ बैठा।
‘मैं लिज़ा। काफ़ी देर से आपके ब्रश का कमाल देख रही हूं। इस अदभुत चित्र को देख कर लग रहा है, कहीं इन लहरों के बीच से कोई ऐसा सुदर्शन युवक सचमुच ना उठ खड़ा हो।‘ हंसती लिज़ा ने कहा।
‘थैंक्स फ़ॉर योर कॉम्प्लिमेंट्। बस शौकिया ब्रश चला लेता हूं। आइए, इसी बात पर एक कप चाय हो जाए। क्यों मीनू, हमारे मेहमान को भी चाय मिलेगी?’
‘ज़रूर, तुम्हारे हिस्से की चाय तो दे ही सकती हूं। ठीक है ना?’ शैतानी से मीनल बोली।
‘लिज़ा, यह मीनल, मेरी सखी, मेरा प्रेम, मेरी प्रेरणा, मेरी सब कुछ है। ज़िद कर के मेरे साथ आई है ताकि मुझे डिस्टर्ब कर सके।‘
‘अच्छा, हम तुम्हें डिस्टर्ब करते हैं। अभी तो कह रहे थे हम ना होते तो तुम भूखे मर जाते। अगर ऐसा ही था तो अपने साथ लाने की इजाज़त क्यों ली?’ मान भरे सुर में मीनल ने कहा।
‘माफ़ करो, ग़लती हो गई। अरे तुम्हारे बिना तो रोहित का अस्तित्व ही नहीं है। हां पहले लिज़ा से परिचय तो कर लें।‘
ँधेरा
चाय का सिप लेती लिज़ा बताती गई। स्कूल –टीचर लिज़ा हर साल नार्वे से जाड़ों में इसी सी-बीच पर आती है। यहां रह कर काफ़ी हिंदी भी सीख चुकी है। चित्रकला से उसे बहुत प्यार है। नार्वे में आयोजित होने वाली पेंटिंग- एक्ज़ीबीशन्स में वह भी सहयोग देती है।
रोहित का आज का चित्र देख कर वह अभिभूत है। उसके और चित्र देखना उसका सौभाग्य होगा।
‘यहां तो रोहित के बस दो-चार चित्र ही देख सकेंगी। हमारे साथ लखनऊ चलिए , घर की हर दीवार पर रोहित के बनाए चित्र लगे हैं।‘ उत्साहित मीनल ने लिज़ा को निमंत्रण दे डाला।
‘इंवीटेशन के लिए थैंक्स्। अगर एतराज़ ना हो तो वही दो-चार चित्र देखने आ जाऊं।‘ लिज़ा ने इजाज़त चाही।
‘ज़रूर आपका स्वागत है। बस यहां से थोड़ी दूर पर सनशाइन मोटेल में अपने विद्यार्थियों के साथ ठहरा हूं।‘
‘ रोहित को भीड़-भाड़ पसंद नहीं इसलिए यह मोटेल चुना है। मीनल ने जानकारी दी।
‘असल में रोमांस के लिए एकांत चाहिए, इसीलिए मैंने एकांतवास चुना है। ठीक कहा न मीनू?’ शरारती हंसी से रोहित का चेहरा और भी दर्शनीय हो उठा। लिज़ा मुग्ध देखती रह गई।
‘छिः। सबके सामने ऐसे मज़ाक करते शर्म नहीं आती।‘ मीनल ने नाराज़गी से कहा।
‘अरे यहां सब कौन हैं? यहां तो बस लिज़ा हैं और इनके देश में प्यार का इज़हार चोरी- छिपे नहीं, सबके सामने किस, मेरा मतलब चुंबन कर के किया जाता है। क्यों लिज़ा ठीक कहा ना?’ परिहास से रोहित का चेहरा चमक रहा था।
‘ठीक कहते हैं। वैसे आप दोनों मैरिड तो नहीं लगते।‘कुछ संशय से लिज़ा ने जानना चाहा।
‘जी हां, अभी हमारी शादी नहीं हुई है, पर उसी की प्रतीक्षा है।‘ मीनल पर दृष्टि डाल रोहित ने कहा।
‘शादी नहीं हुई, पर आप दोनों साथ रह रहे हैं। आपके परिवार वालों को ऑब्जेक्शन नहीं है? मैंने तो सुना था, यहां इतनी आज़ादी नहीं दी जाती।‘
‘ठीक सुना है, पर मेरा और मीनल का जो रिश्ता है, उसकी पवित्रता पर हमारे घरवालों को पूरा विश्वास है।‘
सुबह के सूरज की रक्तिम आभा से रंजित आकाश में अब सुनहरी किरणें बिखरने लगी थीं। सैलानी लहरों पर तैरने आने लगे थे। रोहित ने चित्रकारी बंद कर अपना सामान समेटना शुरू कर दिया। शाम को मिलने का वादा कर, लिज़ा ने विदा ली।
‘लिज़ा के सामने खूब फ़्लर्ट कर रहे थे। कहीं उसे इम्प्रेस तो नहीं कर रहे थे?’ मोटेल पहुंचते ही मीनल चालू हो गई।
‘शायद ठीक समझीं। फ़ेअर काम्प्लेक्शन तो मेरी वीकनेस रही है।‘ रोहित ने बनावटी गंभीरता से कहा।
‘तो उसी के साथ शादी कर लेना। हमे पूरी ज़िंदगी यह नहीं सुनना है कि हमारा रंग गोरा नहीं है।‘मीनल ने चिढ कर कहा।
‘अरे बाबा, नाराज़ मत हो। तुम्हारे सांवले रंग में जो नमकीन चार्म है, वह गोरी चमड़ी में कहां? तुम्हारे सामने तो स्वर्ग की अप्सरा भी कम है। ग़लती के लिए कान पकड़ता हूं।‘
रोहित के उस अंदाज़ पर मीनल हंस पड़ी।
लिज़ा के साथ उनकी वो शाम बहुत अच्छी बीती। रोहित का हर चित्र लिज़ा को विस्मित करता गया। अपने कैमरे से रोहित के चित्रों की तस्वीर उतारती लिज़ा ने कहा-
‘नार्वे में अक्टूबर के शुरू में एक अंतरराष्ट्रीय एक्जीबीशन होने जा रही है, अगर तुम्हारी परमीशनन हो तो तुम्हारी पेंटिंग्स की एंट्रीज़ फ़ोटो के माध्यम से दे दूं।
‘मुझे खुशी है तुम्हें मेरी पेंटिंग्स पसंद आईं, पर क्या ये पेंटिंग्स उस एक्ज़ीबीशन में एंट्री लायक हैं? रोहित ने शांति से कहा।
‘तुम नहीं जानते, तुम कितने बड़े कलाकार हो, रोहित्। मुझे विश्वास है, तुम्हारी पेंटिंग्स ज़रूर चुनी जाएंगी।‘
‘थैंक्स, लिज़ा। मैं सपने नहीं देखता। मैं कोई महान कलाकार नहीं हूं। वैसे भी नार्वे आने-जाने के साधन मेरे पास नहीं हैं।‘ हल्की उदासी रोहित के चेहरे पर उतर आई।
‘उसके लिए चिंता की ज़रूरत नहीं है, रोहित। जिन कलाकारों के चित्र चुने जाएंगे, उनके आने-जाने और रहने की व्यवस्था का उत्तरदायित्व आयोजकों का होगा।‘
‘अगर ऐसा हुआ तो हम भी साथ चलेंगे। हमे ले चलोगे न, रोहित?’ मीनल ने चहक कर कहा।
‘अभी से ख़्याली पुलाव मत पकाइए, मीनल जी। मैं सपने नहीं देखता।‘
‘शायद इस बार आपके सपने सच हो जाएं। मेरा विश्वास झूठा नहीं हो सकता।‘दृढ स्वर में लिज़ा ने कहा।
लिज़ा के वापस नार्वे लौटने के पहले, उसके अनुरोध पर रोहित ने सागर वाला चित्र पूरा कर दिया। रोहित के सभी चित्रों को कैमरे में कैद कर, लिज़ा चली गई। मीनल को लिज़ा की कमी महसूस होने लगी । सच्चाई से बोली--
‘लिज़ा विदेशी है, पर उसका स्वभाव कितना मीठा है। कुछ ही समय में कितनी अपनी सी लगने लगी।‘
‘वाह! कमाल है, आज पहली बार किसी और लड़की की तारीफ़ तुम्हारे मुंह से सुन रहा हूं।‘ रोहित ने चिढाया।
‘क्यों, क्या हम किसी और की तारीफ़ नही कर सकते?’ मीनल ने नाराज़गी से कहा।
‘बिल्कुल सही फ़र्माया। याद है, जब तुम्हारी सहेली मोना ने मुझसे पेंटिंग सीखनी चाही तो तुमने उसकी हज़ार कमियां गिना डालीं। अंततः उसे पेंटिग सीखने नहीं आने दिया। मेरा तो एक स्टूडेंट चला गया। नुक्सान तो मेरा हुआ न।‘ रोहित ने परिहास किया।
‘वो तो इसलिए कि उसकी पेंटिंग में कतई रुचि नहीं थी। वह तो तुम्हें इम्प्रेस करना चाहती थी। वैसे भी मोना अच्छी लड़की नहीं थी।‘
‘मान गए आपकी पारखी नज़र काबिले तारीफ़ है। मुझे बचा कर आपने मुझ पर बड़ा एहसान किया है। इस एहसान को तो इस जीवन में नहीं चुका सकूंगा।‘ रोहित की हंसी पर मीनल चिढ गई।
‘जाओ हम तुम से बात नहीं करेंगे।,
‘ऐसा ग़ज़ब मत करना, हम तो जीते जी मर जाएंगे।‘
‘रोहित, तुम मरने की बात कभी भी मुंह से मत निकालना वर्ना ----‘ मीनल की आँखें भर आईं, गला रुंध गया।
लखनऊ में पुरानी दिनचर्या के साथ लिज़ा से फ़ोन पर बातें होती रहतीं। मीनल उत्सुकता के साथ रोहित की पेंटिंग्स चुनी जाने की सूचना की प्रतीक्षा कर रही थी। अंततः एक दिन वह अप्रत्याशित खुशखबरी आ ही गई। रोहित के चित्र प्रदर्शनी के लिए चुन लिए गए थे। लिज़ा ने बताया था, रोहित के अस्थाई वीज़ा और और टिकट का प्रबंध शीघ्र ही किया जाएगा। रोहित के जाने की बात ने मीनल को उदास कर दिया। उसकी उदासी पर रोहित ने तसल्ली दी थी-
‘घबराओ नहीं, बस एक महीने की ही तो बात है। शादी के बाद तुम्हें पूरी दुनिया की सैर कराऊंगा। अपना पासपोर्ट बनवा लो, मीनल्।;
मीनल की आँखों में सपने तैरने लगे। जबरन होठों पर मुस्कान ला कर,
मीनल ने रोहित को विदा किया था।
जिस दिन रोहित ने अपनी पेंटिंग सर्वश्रेष्ठ घोषित किए जाने की सूचना दी, मीनल ने सारे मुहल्ले वालों को मिठाई खिला, भगवान के आगे सिर नवाया था। रोहित ने एक और अच्छी ख़बर दी थी।
उसके बनाए चित्र देख कर, यूनीवर्सिटी के फ़ाइन आर्ट्स- डिपार्टमेंट के अध्यक्ष ने उसे जॉब ऑफ़र किया था। रोहित के पास स्थाई वीज़ा नहीं था, जिसके बिना उसकी नियुक्ति नहीं हो सकती थी। लिज़ा की राय थी, इस सुनहरे अवसर को खोना ठीक नहीं होगा। यह अवसर रोहित का भविष्य बना देगा। भारी वेतन उसके सारे सपने पूरे कर देगा। नार्वे में उम्मीदवारों की कमी नहीं है। लिज़ा ने एक तरीका सुझाया था, अगर रोहित सिर्फ़ नाम भर के लिए लिज़ा से विवाह कर ले तो रोहित को शीघ्र ही स्थाई वीज़ा मिल जाएगा। वीज़ा मिलते ही दोनों तलाक ले लेंगे। लिज़ा के सुझाव ने रोहित को असमंजस में डाल दिया। एक ओर सुनहरा भविष्य लालायित कर रहा था, दूसरी ओर लिज़ा के साथ विवाह की बात गले से नीचे नहीं उतर रही थी। लिज़ा के साथ विवाह की शर्त मानना कठिन ही नहीं असंभव जैसा था। लिज़ा के सुझाव पर रोहित ने फ़ैसला मीनल पर छोड़ दिया। अगर उसे यह शर्त मंज़ूर नहीं, तो रोहित तुरंत वापस आने को तैयार था। लिज़ा ने रोहित को कई ऐसे लोगों से मिलाया, जिन्होंने स्थाई वीज़ा पाने के लिए किसी नार्वे की नागरिक स्त्री से विवाह किया और वीज़ा मिल जाने पर तलाक ले लिया।
रोहित ने मीनल से कहा था—
‘अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है, तो लिज़ा के साथ बस नाम भर के लिए विवाह करने के लिए अपनी स्वीकृति देना। तुम पर कोई दवाब नहीं है। तुम्हारी नामंज़ूरी भी मुझे खुशी-खुशी मंज़ूर है। एक बात ज़रूर याद रखना, घर में किसी को इस बारे में कोई खबर नहीं होनी चाहिए। यह बात बस हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए। तुम जानती हो मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं। यहां जॉब लेने से तुम्हारे सपने सच कर सकता हूं, मीनल। सोच-समझ कर निर्णय लेना, तुम्हारा फ़ैसला मुझे मंज़ूर होगा।‘
मीनल गहरे सोच में पड़ गई। उसकी हां का मतलब, चाहें नाम के लिए ही सही, पर कुछेक दिनों के लिए रोहित को लिज़ा के हाथों सौंपना होगा। ना कहने का अर्थ दोनों के स्वर्णिम भविष्य को ख़त्म कर देना था। बेचैनी ने मीनल को कई रातें सोने नहीं दिया। अंततः उसके भय पर रोहित के प्रति विश्वास ने विजय पाई। रोहित को अपनी स्वीकृति देती मीनल ने उसके साथ बेवफ़ाई ना करने के लिए अपनी कसम दे डाली।
एक-दो महीनों की जगह पूरे दो वर्ष बीत गए। रोहित नहीं लौटा। उसकी व्यस्तता इतनी बढ गई थी कि अब फ़ोन करने पर रोहित की जगह लिज़ा ही होती। उसका हमेशा एक ही जवाब होता, रोहित को बहुत बड़े-बड़े असाइंमेंट्स मिले हैं वह बहुत बिज़ी है। मीनल के भेजे पत्र वापस आ जाते। अम्मा झुंझलातीं-
‘लगता है उस विदेशिनी ने रोहित पर जादू कर दिया है। उसकी कैद में है हमारा रोहित्। यह भी कोई बात हुई, ना फ़ोन पर बात करता है, ना तेरे खतों के जवाब देता है। अब उसका इंतज़ार बेकार है।‘
रात-रात भर जाग कर रोती मीनल ने उसी दुख में एम0ए0 पूरा कर लिया। अम्मा को उसकी शादी की चिंता खाए जाती, पर मीनल शादी के लिए तैयार ही नहीं होती। आखिर अम्मा की भूख-हड़ताल के आगे मीनल हार गई। उसे हाँ करनी ही पड़ी। मीनल के सपने टूट चुके थे। आशा दामन छोड़ गई थी। निशांत जैसे योग्य, समझदार लड़के के साथ मीनल का विवाह, अम्मा ने अपना सौभाग्य माना था।
रोहित के नाम को सीने में दफ़्न कर, मीनल ने निशांत के साथ नई ज़िंदगी शुरू की थी। शादी के बाद निशांत ने मीनल को कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था। रोहित की याद जब भी टीस सी उठती, मीनल उसे जबरन दबा देती। अम्मा ने समझाया था, उस अतीत को भुला देने में ही समझदारी है जिसका कोई अस्तित्व ही न हो।
आज तो उस अतीत से परदा उठ गया था। ना जाने निशांत पर क्या बीते? पता नहीं अब ज़िंदगी कौन सा मोड़ लेगी। घर पहुंचती मीनल का दिल धड़क रहा था, ना जाने क्या होने वाला है।
सारी बात सुन अम्मा गंभीर हो आईं।
‘तूने ग़लती की है। तुझे नहीं आना चाहिए था। रोहित तेरा अतीत था, उसे अपने आज से क्यों जोड़ बैठी, मीनू?’
‘हम क्या करते अम्मा, हमारे कुछ कहने के पहले ही निशांत ने यहां के लिए
हमारी फ़्लाइट बुक करा दी।‘ मीनल रो पड़ी।
‘मुझे तो डर है तेरी इस ग़लती के बदले कहीं तेरा उस घर से हमेशा के लिए नाता ही ना टूट जाए। किसके अंतिम संस्कार के लिए आई है? जिसने तेरे साथ सारे नाते तोड़ दिए, उसके साथ कौन सा रिश्ता निभाने आई है? तू उसके अंतिम संस्कार के लिए नहीं जाएगी, मीनू।‘ अम्मा ने दृढ शब्दों में फ़ैसला सुना दिया।
‘नहीं अम्मा, हम जाएंगे। उसकी अंतिम इच्छा हमे पूरी करनी ही होगी।‘ बात कहती मीनल रो पड़ी।
‘ठीक है, मुझे जो कहना था, कह दिया। आगे अपने भले-बुरे के लिए तू ज़िम्मेदार है।‘ अम्मा ने नाराज़गी से कहा।
गोमती के किनारे की वह शाम बेहद उदास और सूनी थी। यही नदी रोहित के साथ कितनी जीवंत हुआ करती थी। उदास खड़ी लिज़ा के पास पहुंचते ही मीनल की आँखों से आंसू बह निकले। ताबूत में बंद रोहित की कल्पना ने मीनल को सिहरा दिया।
‘आई एम सॉरी, मीनल्। तुम्हारे रोहित को तुम तक जीवित नहीं पहुंचा सकी।‘आगे बढ कर मीनल का हाथ थाम, लिज़ा ने उदास स्वर में कहा।
‘मेरा रोहित? नहीं लिज़ा। रोहित को तो मैं बहुत पहले ही खो चुकी।‘
‘नहीं, मीनल्। रोहित हमेशा तुम्हारा ही रहा। रोहित के प्यार में पड़ कर मैं सही-ग़लत भुला बैठी। रोहित को पाने की नाकाम कोशिश करती रही, पर वह कभी मेरा नहीं हो सका। आखिर रोहित को हमेशा के लिए खो दिया। लिज़ा की आँखें नम थीं।
रोहित की मृत देह पंडित जी द्वारा अग्नि को समर्पित कर दी गई। आंसू पोंछती मीनल को लिज़ा ने एक बंद लिफ़ाफ़ा थमा कर कहा—
‘इस पत्र को शांत मन से पढना। कुछ दिन पहले रोहित ने लिखा था। तुम तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी थी। रोहित की बनाई आखिरी पेंटिंग होटल में छोड़ आई हूं। वह पेंटिंग तुम होतल से ले जाओगी या मैं तुम्हारे घर पहुंचा दूं? तुम्हारे यहां आने से रोहित की आत्मा को ज़रूर शांति मिली होगी। यहां आने के लिए थैंक्स, मीनल्।
‘मुझे पेंटिंग नहीं चाहिए। वह तुम्हीं रख लो। रोहित से जुड़ी कोई भी चीज़ मैं नहीं ले सकती।‘
‘ठीक है। उस स्थिति में मैं वह पेंटिंग यहां आर्ट- सेंटर में दे जाऊंगी, पर एक बार उस पेंटिंग को देख ज़रूर लेना मीनल, यह मेरी रिक्वेस्ट है।‘
‘अपने मन की कर आई। अपना बसा-बसाया घर तोड़ने की क्या तूने कसम खाई है , मीनू?’ घर लौटी मीनल को माँ ने आड़े हाथों लिया था।
माँ की बातें अनसुनी कर, मीनल ने अपने को कमरे में बंद कर लिया। शादी के बाद भी घर की इकलौती बेटी मीनल का कमरा उसी के नाम पर था। धडकते दिल से लिज़ा का दिया लिफ़ाफ़ा खोला था। खत में लिखा था—
मीनल,
तुम्हें मेरी मीनल कहने का अधिकार तो खो चुका हूं। एक भूल ने जीवन ही बदल डाला। अपने को सज़ा देते यह भूल गया कि मेरे अपराध का परिणाम तुम्हें भी भोगना पड़ेगा। तुम्हारी पीड़ा पूरी तरह से महसूस की है मैने--
जिस दिन मेरी पेंटिंग को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया, तुम बहुत याद आईं। अपनी हर खुशी को तुम्हारे चेहरे पर पढता रहा हूं। कितनी खुश होतीं तुम्। यूनीवर्सिटी का जॉब पाने के मोह में लिज़ा के साथ तुरंत शादी ज़रूरी थी। तुमसे पूरी दुनिया की सैर कराने का जो वादा किया था, वो जॉब मिलने पर ही पूरा कर सकता था।
लिज़ा ने मेरे पुरस्कार और शादी की पार्टी एक साथ ही आयोजित की थी। खुशी के उस माहौल में ड्रिंक्स ना लेने की मेरी मनाही नकार दी गई। काश, मैने ड्रिंक्स ना लीं होतीं। सबने ज़ोर दिया दोहरी खुशी सेलीब्रेट करनी ही होगी। ना जाने कितने पेग जबरन गले से उतरवा दिए गए। सफ़लता का उन्माद नशे के साथ चढ चुका था। उसी रात जब लिज़ा मुझसे चिपटी, मैं बह गया और अनजाने ही तुम्हारे साथ विश्वासघात कर बैठा। तुमने बेवफ़ाई ना करने की अपनी कसम दी थी। तुम्हारी कसम तोड़ कर तुम्हारा सामना कैसे कर सकता था, मीनू?
सुबह नशा उतरने पर अपने आप से नफ़रत हो गई। उसी रात तुम्हे हमेशा के लिए खो दिया। अपने लिए अकेलेपन की सज़ा तभी तय कर ली। लिज़ा को भी अपना फ़ैसला सुना दिया। उसके साथ की गई नाम की शादी से भी उसे आज़ाद कर दिया। लिज़ा की ज़िद की वजह से स्थाई वीसा ले कर यहीं का हो कर रह गया वर्ना मैं किसी अज्ञात स्थान पर जाना चाहता था। भारत लौटने पर तुम्हें सामने पा कर क्या मैं अपनी सज़ा काट पाता? लिज़ा ने जितना ही पास आना चाहा, मैं उससे उतना ही दूर होता गया। हां, तुमसे बात करने का माध्यम उसे ही बनाया था। सब कुछ भुलाने के लिए शराब का सहारा भी बेकार रहा। अपनी हर पेंटिंग में ज़हरीले उदास रंग भरता गया।
तुम्हारी शादी की ख़बर ने रात भर सोने नहीं दिया, पर गुनह्गार तो मैं ही था। शराब ने अपना असर दिखा दिया है। डॉक्टर ने बताया है मेरा लिवर डैमेज हो चुका है। शायद दो-चार महीने और सांस ले सकूं, पर वह नहीं जानता मेरी सांसें तो तुमसे अलग हो कर पहले ही बंद हो चुकी हैं। मैं जो कभी उमड़ता-उफ़नता सागर हुआ करता था, अब बर्फ़ के सागर में दफ़्न हो चुका हूं। मेरी अंतिम पेंटिंग तुम्हारी शादी के लिए मेरा अंतिम उपहार है। पेंटिंग में खुशी के रंग भरने की कोशिश की थी, पर शायद मेरे अंतर के उदास रंगों ने, पेंटिंग को उदास बना डाला। शायद तुम्हें मेरी जीवंत पेंटिंग्स की जगह यह उदास पेंटिंग पसंद ना आए, पर यह मेरी अंतिम पेंटिंग और आखिरी तोह्फ़ा है। तुम्हें दिया वादा पूरा ना कर सकने का अपराधी हूं। माफ़ी का हकदार तो नहीं, पर क्या मुझे माफ़ कर सकोगी, मीनल?
रोहित
मीनल की आँखों से आंसू झरते गए। नशे में हुई एक भूल के के लिए रोहित ने अपने को इतनी बड़ी सज़ा दे डाली। अगर उसने मीनल को सचाई बता दी होती तो क्या मीनल उसे माफ़ ना कर देती? मीनल सोच में पड़ गई, क्या सचमुच कोई पुरुष इतना भावुक और संवेदनशील हो सकता है? शायद नहीं, पर रोहित का यही सत्य था। रोहित कोई सामान्य पुरुष नही, मीनल का अद्वितीय रोहित था। कितनी ही बार रोहित के इस सत्य और दृढता से, मीनल का साक्षात्कार हुआ था। मीनल के सोच के बीच एक और सत्य पूरी तरह से उजागर था, क्या भूल सिर्फ़ रोहित से ही हुई थी? मीनल भी तो इस भूल के लिए ज़िम्मेदार थी। विदेश जाने की ललक उस पर इस कदर हावी थी कि आगा-पीछा कुछ नहीं सोच सकी। अपने सबसे अनमोल और प्रिय पात्र रोहित को दूसरी स्त्री को सौंपते, वह ज़रा नहीं हिचकी। अपनी दुनिया उसने खुद उजाड़ी है। रोहित का वह अंतिम उपहार, वह पेंटिंग उसे लानी ही होगी। आंसू पोंछ मीनल उठ खड़ी हुई।
बाहर जाती मीनल को देख माँ चौंक गई।
‘अब कहां जा रही है? क्या करने पर तुली है मीनल?” माँ के स्वर में आक्रोश था।
‘लिज़ा के पास से अपनी एक चीज़ लानी है।‘
‘देख मीनू, बचपना मत कर्। रोहित की कोई निशानी लाने की ग़लती मत करना। निशांत तुझे कभी माफ़ नहीं करेगा। पहले ही क्या कम कर गुज़री है। क्यों अपनी हरी-भरी ज़िंदगी उजाड़ने पर तुली है।‘
‘डरो मत अम्मा। हम निशांत को अच्छी तरह से जानते हैं। उनका दिल बहुत बड़ा है। वह हमे ज़रूर माफ़ कर देंगे। अगर हमने रोहित का अंतिम उपहार स्वीकार नहीं किया तो निशांत ज़रूर नाराज़ होंगे। रोहित की आखिरी इच्छा हमे पूरी करनी ही होगी।‘
माँ को अवाक् छोड़ मीनल के कदम लिज़ा के होटल की ओर बढ चले थे।
भूल दोनों की थी। एक मार्मिक कहानी। काश मीनल ने स्वीकृति ना दी होती। ऐसी ही कहानियां देती रहिए। बधाई।
ReplyDeleteनेहा शर्मा
Excellent story... I completely loved this story.
ReplyDeleteIs kahani ko please aage badhaiye. Aage kya hoga? Kya nishant is sach k saath minal ko swikar kar payega?
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