12/1/09

रोबोट


पति की आकस्मिक मृत्यु ने शकुन को स्तब्ध कर दिया। दस वर्षीय पुत्र सुखदेव के साथ भविष्य एक प्रश्नचिन्ह था। अशिक्षित शकुन के समक्ष दूसरों के घर की चाकरी के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प शेष न था। सेठ श्यामलाल जी के मुनीम ने उसे सेठानी तक पहुंचा दिया था-
'आपकी सेवा के लिए शकुन को लाया हूँ। बहुत ईमानदार औरत है, मजबूरी में बाहर निकली है।'
'ठीक है, पर इसकी जिम्मेदारी आप पर होगी मुनीम जी, और यह लड़का कौन है?'
'हमारा बेटवा, मालकिनी।'
'इसे समझा देना, बच्चों के खिलौने और दूसरी कोई भी चीज छुए- छेड़े नहीं वर्ना तुम्हारा यहाँ टिकना मुश्किल होगा।'
'जी मालकिनी, सुखदेव यहाँ की कोई चीज नहीं छुएगा। समझ गया न रे?'
सुखदेव की दृष्टि घर के बच्चों पर थी। उनके खिलौने सुखदेव के लिए अजूबा थे। माँ की बात समझे बिना, उत्साहित सुखदेव ने सेठानी के बड़े बेटे के पास पड़ा खिलौना उठा लिया।
'देख तो माँ, कित्ता सुन्दर हाथी है और इस पर चढ़ा सवार तो राजा लगता है न?'
ऐ लड़के, खबरदार जो हमारे खिलौने छुए। तू नौकर है, इन खिलौनों को हाथ भी लगाया तो निकाल दिया जाएगा। समझ गया या समझाऊं। रोहन ने चेतावनी दी थी।
राजा भइया के उठे हाथ से अविचलित सुखदेव बोला था-
'क्या नौकर खिलौनों से नही खेल सकते, माँ?'
'हाँ बेटा, हम दूसरों की चाकरी के लिए बनें हैं, हमें मजे उड़ाने का हक नहीं। राजा भइया ठीक कहते हैं। इसे माफ़ कर दो, राजा भइया।'
'क्या नाम है तुम्हारा ..............हाँ शकुन। देखो पूरे घर की सफ़ाई, रसोई का काम सम्हाल लोगी?' सेठानी के मन में संशय था।
'जी मालकिनी। जो भी काम कहेंगी, करूँगी बस हमें आसरा दे दें।' हाथ जोड़, शकुन गिड़गिड़ाई थी।
'ठीक है, शांति इन्हें पीछे वाली कोठरी दिखा दे। दोनों वहीं रहेंगे।'
दूसरे दिन से शकुन जी-जान से काम में जुट गई थी। सुखदेव को सख्त हिदायत दी थी कि वह बच्चों की किसी भी चीज को हाथ न लगाए। शकुन जब काम में लगी रहती सुखदेव बच्चों के पास खड़ा, उन्हें खिलौने से खेलता देखता रहता। उसकी समझ में एक बात नहीं आती, मालिक के बच्चों के पास खेलने के लिए उतने ढे़र सारे खिलौने हैं, पर उसे खिलौनों से खेलने का अधिकार नहीं, ऐसा क्यों? सेठ का बड़ा लड़का रोहन सुखदेव का समवयस्क था। खिलौनों के प्रति सुखदेव का आकर्षण। स्पष्ट था। उसे चिढ़ाने की गरज से रोहन उसे छेड़ता-
'ऐ लड़के, तू इस रोबोट से खेलेगा?'
'आप हमें इसे खेलने को देंगे?'
अविश्वास के बावजूद सुखदेव की आँखें में आशा की चमक जाग उठती।
'हाँ, पर इससे खेलने के लिए तुझे हमारी एक शर्त पूरी करनी होगी?' रोहन उसका विश्वास बढ़ाता।
'कौन सी शर्त, भइया जी?'
'तुझे हमारा घोड़ा बनकर हमें पीठ पर घुमाना होगा।' रोहन की आवाज में चुनौती होती।'
'घोड़ा कैसे बनते हैं, रोहन भइया?'
'अरे बुद्धू, इतना भी नहीं जानता?' झुक जरा, हाँ ऐसे ही हाथ-पाँव के बल चलना होगा और हम तेरी पीठ पर बैठकर घुड़सवारी करेंगे। बोल है मंजूर।'


'जी राजा भइया। हम घोड़ा बनेंगे।''ठीक है, अब हम घोड़े की पीठ पर बैठते हैं।'
सब बच्चों तालियाँ बजाओं। चल मेरे घोड़े टिक-टिक-टिक।'
रोहन की टिटकार पर सुखदेव, हाथ-पैरों के बल घोड़ा बन चलने लगा। परिवार के बच्चे तालियाँ बजाकर हॅंस पड़े।
'अरे ओ घोडे़, थोड़ा तेज दौड़ वर्ना चाबुक पड़ेगी.......................'
बच्चे ताली बजाकर हॅंस पड़े।
'अरे ओ घोड़े, थोड़ा और तेज दौड़ वर्ना चाबुक पड़ेगी........................'
सुखदेव ने तेजी से चलने की कोशिश की, पर सांस उखड़ गई और वह गिर गया। रोहन का वज़न कुछ कम नहीं था, सुखदेव के गिरते ही वह भी गिर पड़ा। खिसियाए रोहन ने सुखदेव की पिटाई शुरू कर दी, पर बड़ी बहिन शांति ने उसे रोका था।
'यह क्या रोहन, एक तो छोटे से बच्चे की पीठ पर सवार हुए, उस पर उसकी पिटाई कर रहे हो। हम बाबूजी से शिकायत करेंगे।'
'रोते सुखदेव की हिम्मत ही न हुई कि वह रोबोट हाथ में भी उठा ले। रोहन ने फिर हाँक लगाई थी।'
'ऐ मरियल घोड़े, जरा घास अच्छी तरह से खाया कर। अगली बार गिराया तो हंटर से मार पड़ेगी।' पास खड़े बच्चे रोहन के परिहास पर बच्चे ज़ोरों से हंस पड़े और रोता हुआ सुखदेव, माँ की खोज में चला गया।
'क्या हुआ सुक्खू, काहे रो रहा है, बेटा?' रोटी सेंकती शकुन का जी भर आया।
'अम्मा, रोहन भइया ने कहा था अगर हम उनके घोड़ा बनेंगे, वह हमें रोबोट से खेलने देंगे, हम घोड़ा भी बने, पर उन्होने हमें रोबोट नहीं दिया। हमको मारा।'
'जाने दे बेटा, वह बड़े लोग हैं। तू उनके खिलौने माँगता ही क्यों है अभागे। तुझे हमने गुड़िया बनाकर दी थी, उससे खेल राजा बेटा।'
'नहीं हम गुड़िया से नहीं खेलेंगे। हमें भी रोबोट चाहिए। हम बड़े आदमी क्यों नहीं हैं, अम्मा।'
'अपनी-अपनी किस्मत है, बेटा। हम गरीब हैं, वो अमीर हैं।'
'हम भी अमीर बनेंगे, अम्मा। हम भी रोबोट से खेलेंगे। अचानक सुखदेव की आवाज गम्भीर हो उठी।'
दूसरे दिन शकुन ने रोहन से अनुनय की थी-
'रोहन भइया, आप राजा बेटे हैं, कोई पुराना टूटा-फूटा खिलौना इस सुक्खू को दे दें। भगवान आपको बहुत खिलौनें देंगे।'
'ठीक है, ले ये मोटर गाड़ी हैं, पर अब यह चाभी से नहीं चलती। ऐसे ही दौड़ा ले।' बड़ी उदारता से टूटी मोटर कार और एक ढ़पली बजाने वाला बंदर रोहन ने सुखदेव को थमाया था।
टूटे खिलौने हाथ में पा, सुखदेव की आँखों में चमक आ गई। खिलौने को उलट-पुलट, सुखदेव ने कुछ स्क्रू कसे, चाभी लगाई और मोटर गाड़ी तेजी से दौड़ चली। थोड़ी देर बाद चाभी वाला बंदर भी चाभी से ढ़पली बजाने लगा। खुशी से सुखदेव नाच उठा।
'रोहन भइया, यह देखिए हमने खिलौने ठीक कर दिए।'
'रहने दे, यह खिलौने पहले ही ठीक थे, हमसे ग़लती हो गई। ला इधर, ये हमारे खिलौने हैं। इनसे हम खेलेंगे।'
'नहीं रोहन, यह बेईमानी है। तुमने तो ये खिलौने बेकार कह कर फेंक दिए थे। ये खिलौने सुखदेव ने ठीक किए हैं। यह खिलौने अब सुखदेव के हैं।'
'बड़ी आई इसकी तरफ़दारी करनेवाली। जा नहीं देता, तू क्या करेगी?'
'हम इसे अपना बात करने वाला गुड्डा दे देंगे जो तुम्हें भी बहुत अच्छा लगता है।'
'ठीक है ये खिलौने रख ले, पर इनके बदले में हमारे सारे टूटे खिलौने ठीक करने होंगे।'
'ज़रूर रोहन भइया। हम आपके सारे खिलौने ठीक कर देंगे, कृतज्ञता से सुखदेव का स्वर गदगद था।'
'एक बात बता सुखदेव, तूने टूटे खिलौने कैसे ठीक कर लिए?' शांति स्वयं विस्मित थी।
'हमारे बाबू ऐसी ही खिलौने बनाते थे, हम उनके साथ काम करते थे और रोहन भइया की तरह स्कूल भी जाते थे।' सुखदेव उदास हो आया।
'तब तो तेरे पास बहुत खिलौने होंगे, सुखदेव?'
'नहीं, शांति जीजी। खिलौने तो बाबू बेचने के लिए बनाते थे, हमें तो बस दो-तीन खिलौने ही मिले थे।'
'तेरी दूकान के खिलौने कहाँ गए, सुखदेव?' रोहन भी अब बातों में शामिल था।
'दीवाली पर बाबू ने खिलौनों के साथ पटाखे भी रक्खे थे, पता नहीं कैसे पटाखों में आग लग गई। पटाखों की आग में बाबू के साथ, सारे खिलौने भी खत्म हो गए।'
'ओह। कोई बात नहीं सुखदेव, तुम हमारे खिलौनों में से एक-दो खिलौने ले सकते हो।' शांति सदय हो आई।
'नहीं, तू टूटे खिलौने ठीक करके खेल सकता है। हाँ इस रोबोट को कभी मत छूना, यह बहुत महंगा है। ऐसे खिलौनों से नौकर नहीं खेलते समझा।'
सचमुच सुखदेव के लिए वह रोबोट एक अजूबा था। न जाने कैसे आदमी की तरह पाँव बढ़ाकर आगे चलता। आँखों में लाल-लाल बच्ची जलती। पहली बार तो उसे देखकर सुखदेव डर ही गया था। अक्सर रातों में भी उसे वही रोबोट चलता हुआ दिखाई देता। रोबोट के लिए सुखदेव के  मन में अद्भुत आकर्षण था, पर उसे छूने का उसने कभी साहस नहीं किया। अब बच्चों के पुराने टूटे खिलौने ठीक करने में सुखदेव का अधिकांश समय बीतने लगा।
अचानक एक दिन स्कूल से वापस आए रोहन की चिल्लाहट पर सारा घर इकट्ठा हो गया। सहमे खड़े सुखदेव की कमीज का कालर पकड़ रोहन चीखा था-
'ऐ चोट्टे, बता मेरा रोबोट कहाँ छिपाकर रखा है। कई दिनों से उस पर तेरी निगाह थी। सीधे-सीधे बता दे वर्ना पुलिस पकड़ कर ले जाएगी।'
'हम सच कहते हैं, रोहन भइया, हमने आपके रोबोट को हाथ भी नहीं लगाया।' सुखदेव रो पड़ा।
'सुखदेव की माँ, अपने बेटे से पता करके रोहन का रोबोट ला दे वर्ना पुलिस को खबर देनी होगी।' कड़ी आवाज में मालकिन ने भी रोहन की बात का समर्थन किया।
'ऐसा न करें। मालकिन, हमारा बेटा चोर नहीं है। हम इसकी खाल उधेड़ देंगे, पर पुलिस न बुलाएं। तू पैदा होते ही मर क्यों नहीं गया, अभागे।'
झर-झर झर रहे आँसुओं के साथ शकुन सुखदेव को थप्पड़ मारती गयी। सुखदेव की चीखों को जैसे शकुन सुन ही नहीं पा रही थी। अन्नतः शांति ने शकुन को रोका था..............
'बस करो, हम जानते हैं, सुखदेव चोर नहीं है। उसे मत मारो।'
'तू चुप रह शांति, हमेशा इस शैतान की हिमायत करती है। इतना बड़ा रोबोट क्या हवा में उड़ गया।' रोहन की आँखें आग बरसा रही थीं।
शकुन को बेटे के साथ तुरन्त घर छोड़कर जाने के आदेश दे दिए गए। कोठरी में पहुँच शकुन, सुखदेव को सीने से लिपटा बिलख पड़ी।
'हमें माफ कर दे, सुखदेव। हम जानते हैं तू कभी चोरी नहीं कर सकता।'
'अब हम कहाँ जाएंगे, माँ?'
'जहाँ भगवान ले जाए, बेटा। चल अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।'
पुत्र का हाथ पकड़ शकुन अनजानी राह चल दी। बेध्यानी में चल रही शकुन के पीछे कार का ब्रेक लगने पर भी कार का हल्का सा धक्का शकुन को धरती पर गिरा देने को काफ़ी था। कार में सेठ राधाकमल थे। फौरन शकुन को अपने साथ कार में बिठा लिया। रोते सुखदेव से उसके दुर्भाग्य की कहानी सुन सेठ राधाकमल स्तब्ध रह गए।
'तुम्हें खिलौने बनाने सिखाए जाएँ तो सीखोगे, सुखदेव?'
'ज़रूर सेठ जी। हम रोहन भइया के टूटे खिलौने ठीक कर देते थे। हमारे बाबू की खिलौनों की दुकान थी। हम उनके साथ काम करते थे।' उत्साहित सुखदेव के आँसू सूख गए थे।
'सबसे पहले तुम कौन सा खिलौना बनान चाहोगे, सुखदेव बेटे?'
'हम सबसे पहले एक रोबोट बनाएंगे। उसे रोहन भइया को देंगे।'
'क्यों बेटे, तुम रोबोट अपने लिए क्यों नहीं रखोगे?'
'क्योंकि रोहन भइया ने हम पर रोबोट चोरी करने का जो इलजाम लगाया है, उससे माँ का अपमान हुआ है? माँ की बेइज्ज़ती हम कैसे सह सकते हैं।'
'शाबाश, सुखदेव। तुम बहुत अच्छे बच्चे हो। मेरी खिलौने बनाने की फ़ैक्ट्री है। मैं तुम्हें खिलौने बनाने की ट्रेनिंग दिलाऊँगा, साथ में तु्म्हें पढ़ाई भी करनी होगी। कर सकोगे दोनों काम?'
'ज़रूर कर सकूँगा। क्या आप माँ को भी काम देंगे? वह बहुत अच्छी गुड़िया बना सकती है।'
'ठीक है, तुम्हारी माँ को गुड़िया बनाने का काम दिया जाएगा। अब तो खुश हो न?'
'आप बहुत अच्छे है, सेठ जी। बाबू कहा करते थे दुनिया में अच्छे लोग भी रहते है। आप बहुत दयालु हैं।'
'नही बेटा, देश के हर बच्चे को पढ़ने-लिखने, खेलने-खाने का अधिकार है। मैं तो बस भगवान का एक सेवक हूँ।'
'माँ ठीक हो जाएगी न?' सुखदेव के चेहरे पर चिन्ता झलक आई।
'तुम्हारी माँ बिल्कुल ठीक हैं, उसे चोट नहीं आई है। थोड़ी देर में वह तुम्हारे पास होगी।'
'धन्यवाद सेठ जी।' सुखदेव की दृष्टि बाहर की चहल-पहल पर निबद्ध हो गई। सेठ राधाकमल का वात्सल्यपूर्ण हाथ उसकी पीठ पर था।

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