12/6/09

तस्वीर

अपार्टमेंट की खिड़की खोलते ही वे दोनों फिर दिखाई दिए। रोज सुबह उसी मेपल वृक्ष के नीचे दोनों वृद्ध घण्टों बैठे रहते । निःशब्द शून्य में निहारते, सड़क की व्यस्तता से इतने निर्लिप्त मानो उनके सामने व्यस्त सड़क नहीं, शून्य सागर लहरा रहा है। कभी आपस में बात करते मैंने उन्हें शायद ही देखा हो। चेहरों पर वही उदासीनता, जो यहां के वृद्धों के चेहरों पर अक्सर दिखाई देती है।
विनीत से पूछा-

कौन हैं ये लोग रोज देखती हूं इन्हें, बस खड़े या बैठे रहते है।

वे-बेघर हैं, आंटी। लोगों से पैसों की मदद चाहते हैं।

क्या? मैंने तो सोचा था अमेरिका में भिखारी नहीं होते?

यहाँ भी गरीब लोग रहते हैं, इनका कोई घर नहीं है। 
पर मैंने तो उन्हें किसी से कुछ माँगते नहीं देखा न कोई उन्हें कुछ देता है। ये भिखारी कैसे हुए?

वह हमारे यहाँ की तरह जोर से गुहार नहीं लगाते बस धीमें से पूछेंगे। हैव यू गॉट ए क्वार्टर यानी उन्हें पच्चीस सेंट्स दे सकते हो? कभी पूछते हैं ,हम उनके लिए क्या कर सकते हैं।

मैं उनसे जाकर कुछ बात कर सकती हूं ?

ऐसी गलती मत करना, अमेरिकन बहुत रिज़र्व्ड होते हैं, व्यक्तिगत बातें कतई पसन्द नहीं करते विनीत ने स्पष्ट चेतावनी दे दी थी।

विनीत की स्पष्ट चेतावनी के वावजूद दूसरे दिन उसके कॉलेज जाने के बाद सड़क पार कर मैं उस मेपल वृक्ष के नीचे पहुंच ही गई। मध्य जून में आलबनी में खासी गर्मी पड़ रही थी।  मेंपल की ठण्डी छाया बहुत सुखद लग रही थी। अविचलित मूर्ति सदृश्य खड़े उस वृद्ध से अभिवादन पर प्रत्युत्तर की आशा में उनकी ओर देखा था। एक पल को सफेद पलकें हिली थीं, मौन रह कर ही धीमें से सिर हिला दिया। विनीत की कही बात याद हो आई फिर भी जब वहाँ तक पहुंच ही गई तो प्रश्न तो पूछने ही थे।

आपको रोज़ यहाँ देखती हूं। लगता यहाँ के पुराने रहने वाले हैं, आप!

यस। बस उसके बाद और कुछ नहीं कहा था उन्होंने।

कैसा लगता है यहाँ............मेरा मतलब है, आपने शायद अपनी युवावस्था यहाँ बिताई होगी और आज इस आयु में भी आप यहाँ है। तब और आज में बहुत अन्तर होगा! प्रश्न करती मेरी दृष्टि उस निर्विकार झुर्रियोंदार चेहरे पर टिक गई।

उपेक्षा से मुझ पर दृष्टि डाल वह सड़क निहारने लगे। अपमानित अनुभव करके भी मैंने पुनः कुरेदा।

लगता है, मेरी बात करना आपको पसन्द नहीं।

वर्षों से मैंने किसी से बात नहीं की है, मैं बात करना भूल गया हूं। संक्षिप्त सा उत्तर।

मैं भारत से आई हूं, हमारी मान्यता है बातें करने से मन हल्का हो जाता है। मैं यहाँ टूरिस्ट हूं। एक माह रहूंगी यहां के जीवन के प्रति उत्सुकता है। आपके अनुभवों का लाभ उठाना चाहूंगी।

यहाँ का जीवन? ये दौड़ती कारें-जीवन का प्रतिनिधित्व करती हैं। संक्षिप्त सा उत्तर पाकर मन में आशा सी बंध गई।

ये कारें भी तो कहीं ठहरती होंगी, कही तो इनका भी पड़ाव आता होगा।

जहाँ वे थकीं, पड़ाव लेने की चाह जागी, स्क्रेप. यार्ड में फेंक दी जाती हैं। फिर वही संक्षिप्त उत्तर।

अगर आपको कभी समय मिले उस सामने वाले अपार्टमेंट में आइए। आपके साथ एक कप चाय पीकर बहुत अच्छा लगेगा। दिन में बहुत अकेलापन महसूस करती हूं।

मैं कहीं नहीं जाता। उत्तर के बाद वह उठकर चल दिए और मैं अपमानित वापिस आ गई। विनीत ने ठीक ही कहा था इनसे बात करने की चेष्टा ही व्यर्थ है।

अगले चार-पाँच दिन हम न्यूयार्क घूमने चले गये। वापिस आये अभ्यासवश सड़क के पार दृष्टि चली गई। सामने वही वृद्ध दीवार का सहारा ले खड़े थे। हाथ में एक पोलीथीन के बैग में कुछ था। खिड़की खुलते ही लगा उन्होंने दृष्टि उठा अपार्टमेंट की ओर देखा है, पर शायद वह मेरा भ्रम था। अगले क्षण वह पुनः निर्लिप्त से सड़क पर दृष्टि गड़ाए थे।

चाय का कप थामते ही कॉल- बेल बजी।  कहीं  विनीत तो वापिस नहीं आया। द्वार खोलते ही उन्हें खड़ा देखा। प्रसन्न मुख अभिवादन कर उन्हें अन्दर आने का निमन्त्रण दिया। धीमें थके कदमों से चलकर वह अन्दर आ गए। ड्राइंगरूम में उन्हें बिठा, चाय लाने की अनुमति ले, मैं किचेन में आ गई।

चाय के साथ बिस्किट ले उनके पास पहुंची तो पाया वह ड्राइंगरूम की दीवार पर सजे तैल- चित्रों को खड़े हो ध्यान से देख रहे थे। विनीत के लिये मैं तीन-चार चित्र बनाकर लाई थी। मेरे आने पर पूछा।

किसने बनाए हैं ये चित्र।

मैंने।

कहीं सीखा था।

जी नहीं, यूं ही हाबी की तरह शौकिया बनाती हूं।

कुछ अभ्यास से अच्छे चित्र बना सकती हो। स्ट्रोक ठीक है।

क्या आपको पेंटिग आती हैं? मैं विस्मित थी।

एक ज़माने में यही मेरा जीवन थी।

फिर छोड़ क्यों दिया? यह हॉबी तो अकेलेपन को भी दूर भगाती है। मेरी प्रतिक्रिया स्वभाविक थी।

हाँ, पर कभी यह अपनों से दूर भी कर सकती है। अजीब उत्तर था। चाय पीकर वह अब जाने लगे तो पूछा

अपने चित्र दिखाएँगे।

अपने किसी चित्र को मैंने अपनी स्मृति में भी नहीं रखा है। रूखेपन से उत्तर दे वे चले गए दूसरे दिन न जाने क्यों लगा वह आएंगे और सचमुच पहले दिन के समय ही वह उपस्थित थे। प्रसन्नता से कहा था

आपकी प्रतीक्षा में मैंने अभी चाय नहीं पी, आइए।

चाय पीने नहीं आया हूं,  तुम्हें देने को यह ब्रश लाया था इससे अपने चित्रों को मैं अन्तिम रूप देता था।

एक सूखा सा बेहद पुराना ब्रश थमाते उनकी दृष्टि कोई एक पल को ब्रश पर ठहरी और फिर हटा ली। ब्रश थामते उस अज्ञात वृद्ध के प्रति मेरा हृदय न जाने कैसी करूणा से भर उठा।

मैं इसे बहुत सम्भाल के रखूंगी, इससे मेरे चित्रों में जान पड़ जाएगी। बहुत धन्यवाद।

भगवान तुम्हें सफलता दें। वृद्ध ने सच्चे हृदय से आशीष दिया।

आप मुझे पेंटिंग की कुछ बारीकियाँ समझायेंगे।

इसे कभी अपने जीवन से मत जोड़ना बस। मैं उनके उत्तर पर अपना विस्मय न रोक सकी।

आपका यह दर्शन मेरी समझ में नहीं आता, कला तो तभी सफल होती है, जब जीवन का अंग बन जाती है;  तभी उसमें पूर्णतः घुल जाती है।

मैंने इसे अपने जीवन से जोड़ा था, जीवन से ज्यादा प्यार किया था उसे। वह मेरी कलाकृति थी अनुपम-अद्वितीय। मेरी सर्वोत्तम कृति उस रचना के बाद लगा था उससे अधिक और कुछ बना पाना सम्भव नहीं पर जानती हो जाते-जाते क्या कह गई!

वृद्ध मानो स्वागत भाषण कर रहे थे, उनकी सब बातें स्पष्ट कुछ समझ पाना भी तो कठिन था कभी-कभी तो एकदम बुदबुदाते से लगते थे। मैं कुछ समझ पाने की पूरी चेष्टा कर रही थी।

तब जीवन से भरपूर युवा था मैं, पेंटिग मेरी हॉबी थीं ।हर सुन्दर चीज़ को चित्र में उतारना मेरी ज़िद थी। कॉलेज की हर लड़की मेरी मॉडेल बनना चाहती थी। प्रकृति के हर रंग को चित्र में कैद करने का भूत सवार था मुझ पर। ढेर सारे चित्रों से मेरा घर भर गया था। मित्रों ने जिद करके उन चित्रों की एक प्रदर्शनी आयोजित कराई थी। वह वहां आई थी।  मेरे एक-एक चित्र को मंत्रमुग्ध निहारती रह गई थी। अभिभूत खड़ी उसकी एक मुद्रा ऐसी भाई कि उसके अनजाने, एक स्केच खींच उसे भेंट कर दिया। अपना रेखाचित्र देख वह चमत्कृत हो उठी।

इतनी सुन्दर दिखती हूं क्या मैं? प्रश्न में बच्चों सा कौतूहल और भोलापन था।

इससे हज़ार गुना ज्यादा सुन्दर। यह तो बस रेखाएँ हैं।  तुममें जो नैसर्गिक रंग है वह कहां भर पाया हूं। वाक्य जैसे अपने आप फ़िसल गया था।

तब तो यह स्क्रेच नहीं लूंगी मैं रंगीन चित्र दीजिए। कुछ शैतानी से वह मुस्कराई थी। उसकी मुस्कान के सम्मोहन में मैं बंध गया था।

मेरा मॉडेल बनना पड़ेगा, अपना पूरा समय देना होगा मैं भी शरारत पर उतर आया था।

कब से बैठना होगा, अभी इसी पल से मेरा समय आपका है। शब्दों में उतावली थी।

मैं हंस पड़ा था ‘कल सुबह दस बजे यहाँ आना होगा’ ठीक पौने दस पर वह उपस्थित थी उसके आने से पहले पूरी रात सोचता रह गया था किस रूप, किस मुद्रा में वह सबसे अच्छी लगेगी स्टूडियो लेजा उससे कहा था जैसे तुम्हें जैसे अच्छा लगे उसी तरह बैठो।

जानती हो वह कैसे बैठी थी?  अपनी पूरी तरह दृष्टि मुझ पर निबद्ध कर, पूर्ण आत्मविश्वास से मुस्करा रही थी वह। उसकी दृष्टि में न जाने कैसा चैलेन्ज लगा था मुझे मानो कह रही थी अपने कैनवास पर लाख कोशिश करके भी देख लेना, कभी तुम मुझे, मुझसे ज़्यादा सुन्दर नहीं उतार सकते।

बस मैं जैसे पागल हो गया।  पूरे दिन न जाने कितने प्रयास किए, पर एक में भी पूर्णता नहीं अनुभव की मैंने। थक गया पर वह अविचलित उसी गर्वित मुद्रा में मुस्कराती रही। मैं हार गया, उसके जाने के बाद भी उसकी वह अविजित छवि मेरे मानस पर अंकित रही। शायद पूरी रात ब्रश चलता रहा था मैं। सुबह उसने ही आकर जगाया था- मुख पर उल्लास छलक रहा था।

अदभुत-इस सौंदर्य की मैं स्वामिनी हूं-विश्वास नहीं होता। सच कहो इसमें तुमने अपनी कल्पना के रंग तो नहीं भरे हैं? रात का चित्र उसके हाथ में था। बस फिर तो वह मेरे चित्रों की नायिका बन गई थी। कभी झरने में नहाती छवि, कभी डूबते सूर्य की लालिमा से रंजित उसका उदास मुख, कहीं फूलों की  लताओं  के बीच से झांकता  उसका मुख, कहीं विलोज की लताओं में झूलती वह,  कभी इन्द्रधनुषी सपने आंखों में उतारे हॅंसती ,टीना।

टीना का पहला चित्र जब न्यूयार्क की पत्रिका में प्रकाशित हुआ तो मेरे पास प्रशंसा के न जाने कितने पत्र आए थे। टीना के सौंदर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई थीं। कुछ ने उसका पता जानना चाहा था कुछ अन्य चित्रकारों ने उस मॉडेल की खोज की थी। मैं डर गया था, कहीं टीना को ये लोग मुझ से अलग न कर दें। प्रदर्शनियों पत्रिकाओं में मैं विशेष ध्यान रखता टीना के चित्र न जाएं। टीना ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। वह अपने को, मेरी पेन्टिंग के लिए पूर्ण रूप से समर्पित कर चुकी थी। टीना को कोई मुझसे छीन न ले यह भय सदैव मुझ पर हावी रहता था उसके बिना अपूर्ण पाता था मैं अपने को। एक दिन उससे पूछ ही लिया था।

मेरी जीवन. साथिन बन हमेशा को मेरे पास रह सकती हो, टीना।

उत्तर में टीना ने अपना चेहरा मेरे वक्ष में छिपा लिया। ओह स्टीव कब से मैं प्रतीक्षा कर रही थी-आई लव यू स्टीव।

विवाह के लिए टीना के पापा ने सहर्ष सहमति नहीं दी थी। धनी पिता की एक मात्र बेटी थी टीना। एक साधारण चित्रकार से टीना का विवाह उन्हें नहीं रूचा था। उनकी इच्छा के विरूद्ध हमने विवाह किया था। विवाह के बाद टीना ने अपने पिता का घर भुला ही दिया था, मैंने अगर कभी कुछ पूछना चाहा तो टीना का स्पष्ट उत्तर रहता,

जो निर्णय मैंने ले लिया वह अटल होता है, पापा से संबंध तोड़, तुमसे जोड़ा है।  पापा ने तुम्हें स्वीकार नहीं किया तभी मैंने उनके अस्तित्व को अस्वीकार कर दिया था। पापा इस बात को मुझसे ज्यादा जानते हैं, वह कभी मेरे पास नहीं आएंगे,  स्टीव। तुम परेशान मत हो।

शायद टीना की यही बात उसके चरित्र की विशेषता थी जिसे मैं नज़रअन्दाज़ करता रहा। वह ऊपर से विलो-लता सी लचीली थी, कोमल थी, पर अन्दर से पर्वत सी दृढ़ थी, कोई उसे हिला नहीं सकता था। टीना को पाकर लगा था सारा विश्व मैंने जीत लिया हो। टीना-सी पत्नी ओर जॉन-सा मित्र-हमारा संसार पूर्ण हो उठा था। टीना को मैंने न जाने कितने कैनवसों पर उतार डाला था, पर मन नहीं भरता था। हमेशा लगता था अब भी कहीं कुछ और बाकी है कहीं कोई अपूर्णता हैं। जॉन टीना के चित्रों का शुरू से प्रशंसक था। कई बार उसने पूछा था।

अपनी प्रदर्शनियों में टीना के चित्र न लगाकर अन्याय करते हो, स्टीव। तुम्हारी कला उन्हीं चित्रों में खिली हैं।

जॉन के प्रस्ताव को मैं हमेशा टाल जाता था। टीना के कुछ न्यूड चित्र भी, जो मैंने पहले बनाए थे, अब वे मेरे शयनकक्ष की शोभा थे। एक वर्ष बाद हमारी बच्ची का जन्म हुआ था। हमारे प्रेम की प्रतीक अप्रतिम, अपूर्व, अद्वितीय कलाकृति इतनी कोमल कि लगता था, स्पर्श से ही कुम्हला जाएगी हमने उसका नाम, एंजलीना दिया था। एकदम ग्रीक देवी सी पवित्र और प्यारी थी वह।

एंजलीना को पाकर लगा मेरी कला पूर्ण हो गई। अपने चित्रों में मैं लाख प्राण भरने की कोशिश करता पर वे निर्जीव ही रहते। एंजलीना मेरी सजीव, सप्राण कलाकृति थी। मैं उसका निर्माता था, गर्व से भर उठा था मैं। एंजलीना को कैनवास पर उतार मैंने टीना से कहा था-
 आज मेरी साधना पूर्ण हो गई। इतना सुन्दर चित्र इसके पहले कभी नहीं बनाया था। एक क्षण को लगा टीना मेरी बात पर कुछ बुझ-सी गई थी, पर शायद वह मेरा भ्रम था। यह सोच कर मैंने ध्यान नहीं दिया।

एंजलीना के चित्र मैंने पत्रिकाओं में भेजने शुरू कर दिए थे। हर जगह से उन चित्रों की प्रशंसा आ रही थी। चित्रों की माँग बढ़ती जा रही थी। मैं दिनरात ब्रश चलाता। एंजलीना की हर अदा कैनवास पर उतारता रहा। नन्हीं बच्ची के चेहरे का भोलापन उसकी हंसी निश्छल मुस्कान पूरी स्वाभाविकता के साथ मैं चित्रित कर रहा था। इस बीच मैं टीना को मानो भूल सा गया था।

एक दिन पत्रिकाओं में प्रकाशित अपने चित्रों को देखती टीना ने कहा था,

तुम्हें याद ही नहीं ,स्टीव कभी मुझे कैनवास पर चित्रित कर तुम धन्य होते थे। ये कुछ चित्र जॉन ने मेरी अनुमति से प्रकाशित कराए हैं, काफी पैसा आ गया है इनसे। सोचा अचानक सरप्राइज दूंगी तुम्हें।

अपने चित्रों पर तुम्हारा अधिकार है-प्रकाशन का नहीं, ये मेरे चित्र हैं, मेरी मेहनत का परिणाम है। उत्तेजना मेरे शब्दों में स्पष्ट थी।

कुछ कम्पनीज मॉडलिंग को बुला रही हैं, स्टीव अगर हाँ कह दो...............।

कभी नहीं-मेरी पत्नी हो तुम-मुझे कतई पसन्द नहीं, समझीं।

तो स्लेव हूं तुम्हारी............ ताले में बन्द कर रखोगे मुझे? टीना के स्वर में आक्रोश था। मैं शान्त रह गया।

दूसरे दिन टीना ने चाय पीते हुए जॉन से मेरी शिकायत की थी। जॉन ने टीना का ही पक्ष ले मुझसे कहा था।
 इतनी सुन्दर पेटिंग्स को केवल अपनी सम्पत्ति बनाए रखना समाज के प्रति अन्याय है, स्टीव। मैं कहता हूं, तुम एक प्रदर्शनी सिर्फ टीना की ही पेंटिग्स की क्यों नहीं करते? टीना इस प्रस्ताव पर खिल उठी थी।

क्या ये सम्भव है जॉन! मैं एक प्रदर्शनी की अकेली नायिका बन सकती हूं!

क्यों नहीं! देखना इस प्रदर्शनी के बाद स्टीव अमेरीका का सर्वश्रेष्ठ चित्रकार का ख़िताब पाएगा और तुम सौंदर्य- साम्राज्ञी का।

क्यों बेकार की बातें कर रहे हो, तुम जानते हो मै इसके फ़ेवर में नहीं हूं। मैंने स्पष्ट इन्कार कर दिया था।

क्यों नहीं, स्टीव-सोचो तुम्हारे कलाकार को मान मिलेगा और कलाकार की दृष्टि में उसका मॉडेल सिर्फ मॉडेल है, पत्नी.  प्रेयसि कोई नहीं, प्लीज हाँ कह दो न, स्टीव। जॉन ने ज़िद की।

मैं इस प्रदर्शनी के लिए तत्पर नहीं था। लगता था अपना निजी जीवन पब्लिक के लिए खोल रहा हूं। टीना और जॉन के उत्साह और अनुरोध पर अनिच्छा के बावजूद भी मैंने स्वीकृति दे दी थी।

टीना का अधिकांश समय उन दिनों जॉन के साथ प्रदर्शनी के आयोजन की तैयारी में ही बीतता था। मैं उनके उत्साह से निर्लिप्त बना, अपने को व्यस्त बनाए रहा। दो दिन के बाद प्रदर्शनी का उदघाटन होने वाला था। उदघाटन के समय चित्रकार के रूप में मेरी उपस्थिति अनिवार्य थी। टीना ने मेरे लिए नया सूट बनवया था। टाई और कमीज़ भी उसने अपनी पसन्द की निकाली थी। उसका उत्साह से दमकता मुख न जाने क्यों मुझे ईर्ष्यालु बना रहा था-मानो वह मेरी कला नहीं अपने सौंदर्य का प्रदर्शन कर, दूसरों की प्रशंसा पा, मुझे पराजित करना चाहती थी। वह बार-बार कहती............।

अगर प्रदर्शनी सफल रही तो तुम्हें बहुत सम्मान मिलेगा न, स्टीव!.............. मेरे मन के भावों को पूरी सच्चाई से से चित्रित किया है तुमने। मुझे पूरा विश्वास हैं तुम्हें प्रसिद्धि, यश मिलेगा, स्टीव।

जॉन ने प्रदर्शनी का आयोजन निःसंदेह बहुत सुन्दर ढंग से किया था। उदघाटन के लिए प्रसिद्ध गणमान्य व्यक्ति आमंत्रित थे।

उन चित्रों का निर्माता मैं, एक सम्मानित अतिथि के रूप में खड़ा था। टीना गुलाबी परिधान में प्रशंसकों से घिरी हुई थी। उसका  सुन्दर चेहरा गुलाब-सा खिला हुआ था। कभी बीच में आ कानों में फुसफुसा जाती,

इट इज गोइंग टु वी ए ग्रैंड सक्सेस। लोग मेरी कला से अधिक उसकी नायिका के प्रति आकृष्ट थे यह स्पष्ट था। तभी मेरी दृष्टि पीछे की दीवार पर गई थी, जहाँ टीना के न्यूड चित्र टंगे थे। कुछ लड़के उन चित्रों को देख अपमान जनक रूप में मुस्कराते टिप्पणी दे रहे थे। कुछ ही पलों में मैं अपने निर्णय पर पहुंच गया।   निश्चय ही इस प्रदर्शनी का आयोजन टीना को एक माडल रूप में प्रतिष्ठित करने की दृष्टि में किया गया था। चित्रों के नीचे ‘अछूता सौदर्य’, ‘दिव्य रूप’ ‘इन्द्रधनुषी सपने’ ‘अनछुई कली’ आदि शीर्षक दिए गए थे। अपनी उदासीनता दिखाने के लिए उदघाटन के पहले मैं कभी भी प्रदर्शनी की व्यवस्था आदि देखने नहीं गया था, अन्यथा न्यूड चित्र लगाने की परमीशन कभी न देता। उन चित्रों को वहाँ देख मैं बौखला उठा।  भीड़ से घिरी टीना को बाहर खींच लाया । मेरा मुख तमतमा रहा था।

ये चित्र तुमने यहाँ क्यों लगाए!

क्यों यही तो मेरे सर्वोत्तम चित्र है इन्हें देख मुझे यू-एस की कम से कम पाँच बड़ी कम्पनीज ने माँडलिंग के आफ़र दिए हैं। टीना दर्प से मुस्कराई थी। व्यापक न्यूड।

तुम न्यूड- मॉडलिंग करोगी? सबके सामने इन चित्रों की तरह अपने को खोल के रखोगी? मेरा स्वर आवेश पूर्ण था।

तो इसमें नुक्सान ही क्या है? सुन्दरता सबके इन्ज्वायमेंट की वस्तु है। कमरे में बन्द रखने की चीज़ नहीं है, माई डियर हस्बैंड। टीना परिहास में बात समाप्त करना चाहती थी।

मेरा आवेश बढ़ता जा रहा था ..मेरी पत्नी हो सबकी नहीं समझीं। मैं चिल्लाया।

टीना विस्मित थी धीमे से बोली,

जो कहना है घर चल कर कहन॥  तुम तो एकदम ओरिऐंटल हस्बैंड की तरह बिहेव कर रहे हों। डोंट बी सो पोजिसिव, माई डियर।

साफ़-साफ़ कयों नहीं कहतीं, तुम मेरे बनाए चित्रों के सहारे अपने लिए नया रास्ता चुन रही हो। याद रखो अगर मैंने चित्र न बनाये होते; तुम्हें इतनी इंपार्टेन्स न दी होती तो बड़ी कम्पनीज तो क्या कोई मामूली आदमी भी तुम्हें नहीं पूछता। मैं क्रोध में भला-बुरा सब भूल चुका था।

मुफ्त मॉडलिंग की थी मैंने तुम्हारे लिए अगर पैसा लिया होता तो आज मेरा महत्व समझते। अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए ये चित्र बनाये थे, तुमने। टीना भी उत्तेजित हो उठी थी।

उसके इस वाक्य पर जैसे पागल हो उठा था मैं। जेब से पूरे पैसे निकाल उस पर फेंक मारे थे ..
ये लो पैसा कितना, पैसा चाहिए! मैं स्वार्थी हूं ,  तुम्हें एक्सप्लायट किया है न? ये लो...........

पागलपन में मैंने उसके चित्र उतार कर फाड़ने शुरू कर दिये। जॉन मुझे रोकने आया तो उसे झिड़ककर दूर कर दिया। मेरे इस व्यवहार से घबरा कर लोग प्रदर्शनी- हॉल से बाहर जाने लगे थे। अपमानित टीना ने बस एक पल को मेरी ओर ताका था और फिर तेजी से बाहर चली गयी। सारे चित्रों को फाड़कर ही मुझे शाँति मिली। प्रदर्शनी हॉल में बस मैं अकेला रह गया था।  जॉन उन फटे कागजों को समेट रहा था।

बहुत देर सड़कों पर घूमने के बाद एंजलीना याद आई थी। स्वयं महसूस कर रहा था, मुझसे ज्यादती हो गई। मुझसे संयत व्यवहार की आशा की जानी चाहिए थी। टीना के चित्रों पर दी गई टिप्पणियों ने शायद मेरे रक्त में उबाल ला दिया था। अपनी गलती को जस्टीफ़ाई करता सोच रहा था टीना से कैसे माफी मागूंगा?

घर एकदम सूना मिला था। एंजलीना की बेबी- सिस्टर मेरी ही प्रतीक्षा कर रही थी। उसने ही बताया था।

मेम साहब बेबी को लेकर कहीं गई हैं, मेसेज आपकी टेबिल पर है।

टेबिल पर टीना की चंद पंक्तियाँ थीं-

अपने को कलाकार कहने का दम्भ भरते हो, सच तो यह है कि तुम सिर्फ़ एक महत्वाकांक्षी, स्वार्थी और क्षुद्र व्यक्ति हो। कलाकार अपनी कला से सबको आमंत्रित करता है। उसकी कला उसकी आराध्या होती है, तुम तो अपनी कला को अपनी क्रीतदासी समझते हो

मैं जा रही हूं।  साथ में तुम्हारी अनुपम कलाकृति जिसके निर्माण का दावा तुम करते हो, उसे भी ले जा रही हूं। याद रखना यह कलाकृति तुम्हारी नहीं, तुम्हारे दुर्बल क्षणों की देन, मेरी चीज़ है। इसका निर्माण मैंने तुम्हारे चित्रकार को देखकर किया था-इसकी निर्मात्री मैं हूं,। यह सिर्फ़ मेरी है। इसके निर्माण में तुम्हारा अस्तित्व, मैं अस्वीकार करती हूं।

मुझे खोजना व्यर्थ है। अब तुम अपनी साधना बस अपने लिए करना। अलविदा-

टीना।

उसी दिन से मैं यहाँ खड़ा उसे खोज रहा हूं। पार्किंग स्पेस ही वह जगह है, जहाँ टीना ने प्रदर्शनी आयोजित की थी। मेरी नन्हीं बच्ची एंजलीना तो अब पूर्ण युवती होगी। यहाँ से गुजरती हर बच्ची में मैं अपनी एंजलीना को खोजता हूं। हर स्त्री के चेहरे में टीना को पहिचानना चाहता हूं। मेरी इस खोज में मेरे मित्र जॉन ने भी अपना जीवन बिता दिया है। अब तो अंतिम बेला आ गई है, न जाने टीना जीती है या नहीं।

आपके साथ आपके मित्र जॉन खड़े रहते हैं।

हाँ टीना के घर छोड़ जाने में वह अपने को दोषी ठहराता है। प्रदर्शनी- आयोजन का प्रस्ताव उसी ने रखा था न।

आपने कभी टीना या एंजलीना के चित्र किसी मैंगजीन में प्रकाशित नहीं देखे? हो सकता है उन्होंने मॉडलिंग का काम अपना लिया हो!

नहीं, वह मुझे बेहद प्यार करती थी।  मैं जानता हूं, उसने मॉडलिंग कभी नहीं अपनाई होगी। वह जानती थी, मैं इसके लिये उसे कभी स्वीकृति नहीं देता। बहुत स्वाभिमानी थी टीना, उसने कुछ भी किया होगा, पर मेरी इच्छा के विरूद्ध कुछ नहीं करेगी।

इतना प्यार, इतनी अंडरस्टैंडिग फिर भी आप दोनों कभी नहीं मिले?

टीना का यही स्वभाव था जो उसने छोड़ दिया, जिस चीज का परित्याग कर दिया, उसे दुबारा कभी ग्रहण नहीं करेगी। यही उसकी कमज़ोरी थी, यही उसका बल था। बात समाप्त कर के वह चल दिए।

चंद मिनटों के बाद खिड़की  से, उन्हें जॉन के साथ अपनी दृष्टि से दूर जाते देखती रही। एक शूल सा जैसे मेरे अन्दर धंसता चला जा रहा था।

हे भगवान, इन्हें इनकी टीना से मिला दे, मैंने प्रार्थना की थी।

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