12/1/09

एक तराशा हीरा

आगरा शहर से कुछ दूर बसे गाँव में रहने वाले ज्यादातर मजदूर चमड़े के कारखानों में काम करते थे। क़रीम के घर में बड़ा बेटा रहमान दो बेटियाँ अकीला और रेहाना के बाद सबसे छोटा बेटा कमाल था। क़रीम आगरा के जूता बनाने वाले कारखाने में काम करता है। बड़े बेटे रहमान से क़रीम को काफ़ी उम्मीदें थीं, पर फ़िल्मों के चक्कर में पड़कर रहमान कुछ दिन पहले माँ के संदूक से ज़ेवर चुराकर बम्बई भाग गया। क़रीम के लिए यह चोट सह पाना आसान न था। रहमान उसके साथ जूतो के तल्ले बनाया करता। दोनों की आय से घर का खर्च चल रहा था। बड़ी बेटी अकीला के ब्याह का कर्ज़ सिर पर था और अब दूसरी बेटी रेहाना भी शादी के लिए तैयार थी। छ्ठी कक्षा मे पढ रहे कमाल से अब्बा.अम्मी की परेशानियाँ छिपी नहीं थी। इसीलिए उसने अब्बा के साथ जूते के कारखाने में काम करने का निर्णय ले डाला। कमाल की बात सुनकर क़रीम चैंक उठा।

'यह क्या कह रहा है, बेटा? तेरी अभी उमर ही क्या है। इतनी मेहनत कैसे कर पाएगा? फिर तेरी पढ़ाई का क्या होगा?'

'वह सब मैंने सोच लिया है, अब्बू। मैं रात को मौलवी साहब से पाठ पढ़ लिया करूँगा। रही बात मेहनत की तो आपने भी तो मेरी ही उम्र से यह काम शुरू किया था न, अब्बू?'

बेटे की बात सुन, क़रीम की आँखों में आँसू छलछला आए। ज़मीला बेगम ने ऐसा बेटा पाने के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा किया। अकेले क़रीम की कमाई से घर का खर्च चलाना ही मुश्किल होता फिर कर्ज़ा उतारना तो नामुमकिन ही होता। कारखाने में काम के लिए कमाल को भेजती ज़मीला का जी भरा आ रहा था। खाने का डिब्बा थमाते अम्मी ने समझाया था-

'ठीक वक्त पर खाना खा लेना, कमाल बेटा।'

'जी अम्मी, आप बिल्कुल परेशान न हों, मैं अब्बा को भी खाने की याद दिला दूँगा।'

'परेशान कैसे न होऊॅं, ये दिन तो तेरे खाने-खेलने के थे, पर तू हम सबका पेट भरने के लिए मज़दूरी करने जा रहा है।' ज़मीला ने आंचल से आँसू पोंछ लिए।

'बच्चे को काम पर भेजते, मन खराब न करो बेगम, अल्लाह अच्छे दिन जरूर लाएगा।' क़रीम ने ज़मीला को तसल्ली दी।

'काश् हमारा रहमान भी कमाल जैसा होता।' जमीला ने बड़े बेटे की याद कर, गहरी सांस ली।

'उसका नाम भी न लो, बेगम। वह तो हमारी जमा-पॅंूजी भी ले गया। घर के चिराग़ ने ही घर में आग लगाई हैं। क़रीम, रहमान का नाम भी नहीं सुनना चाहता था।'

'ऐसा न कहें अब्बा, भाई जान जरूर वापस आएंगे। चलिए अब्बा देर हो रही है।'

कारखाने में क़रीम के साथ कमाल को आता देख, क़रीम के परिचित मजदूरों में से किसी ने तो हमदर्दी जताई, पर कुछ ने टोक दिया। अमज़द क़रीम का हमउम्र दोस्त था। कमाल उसे प्यारा लगता।

'यह क्या क़रीम, इतने ज़हीन बेटे की पढ़ाई छुड़ा, इसे इस काम में झोंकना क्या ठीक बात है? यह वक्त इसकी तालीम का है।'

'मैंने भी लाख मना किया, पर यह मानता ही नहीं, कहता है रात में पढ़ाई कर लेगा।'

'चाचा, आप मेरी फिक्र न करें। आपके साथ रहते जो हुनर सीख जाऊॅंगा, वह ज़िंदगी भर काम आएगा।' बड़ी शांति से जवाब दे, कमाल काम में लग गया।

'खुश रहो, बेटा। क़रीम तू सचमुच किस्मत वाला है जो कमाल जैसा बेटा मिला।'

कुछ ही दिनों में कमाल जूतों के तल्ले बनाना सीख गया उसके हाथ की सफ़ाई देखने वाली होती। खाली वक्त में जब उसके हम-उम्र लड़के खेलते, कलाम चमड़े की कतरनों को जोड़कर चप्पलों के नमूने तैयार करता। पिछले तीन दिनों से चमड़े की कतरनें जोड़कर वह अपनी मम्मी के लिए चप्पलों की एक जोड़ी तैयार करना चाह रहा था। चप्पल तैयार थी, पर तला बनाने के लिए चमड़ा नहीं था। अन्ततः कमाल ने तरीका निकाल लिया। चप्पल के नीचे पुराने टायर का तला बनाकर, उसके ऊपर चमड़े की कतरनें चिपकाकर, चप्पल को तैयार कर लिया। कमाल का नन्हा मन संतोष से भर उठा। चमड़े की चप्पलें देखकर अम्मी कितनी खुश होगी। चमड़े के जूते-चप्पलें बनाने वाले अब्बू, अम्मी के लिए चमड़े की चप्पलें कब खरीद सके? अम्मी ने हमेशा सस्ती प्लास्टिक की चप्पलें ही पहनी है। चप्पल की जोड़ी देख क़रीम चैंक गया, कौन कह सकता है कि ये चप्पलें फेंकी गई बेकार कतरनों से बनाई गई हैं।

'वाह बेटे, तूने तो कमाल कर दिया। एक दिन तू जरूर नामी कारीगर बनेगा।'

'शुक्रिया अब्बू, पर मेहरबानी करके आप अम्मी को इस बारे में अभी कुछ न बताइएगा।'

'वो क्यों बेटे?'

'मैं ये चप्पलें अम्मी को ईद पर देना चाहता हूँ।'

'खुदा तुझे लम्बी उमर दे, हमें तुझ पर नाज़ हैं।'

बाप-बेटे बातों में इतने मशगूल थे कि उन्हें पता ही नहीं लगा कारखाने के मालिक, मुहम्मद अन्सारी पीछे खड़े उनकी बातें सुन रहे हैं। अचानक सामने मालिक को खड़ा देख क़रीम अचकचा गया।

'सलाम मालिक, यह मेरा बेटा कमाल हैं। कमाल, मालिक को सलाम कर। यही हमारे माई-बाप हैं।'

'वाह! लगता है तुम्हारा बेटा कुछ पढ़ा-लिखा भी हैं।'

'जी हुजूर, पाँचवीं में पढ़ रहा है। दिन में मेरे साथ काम करता है, शाम को मौलवी साहब के पास पढ़ने जाता है।'

'पढ़ना.लिखना अच्छा लगता है, कमाल?'

'जी सर, मैं पूरा मन लगाकर पढ़ाई करता हूँ। अल्लाह मेहरबान रहे तो इस बार भी अव्वल रहूँगा'

'वाह तुम तो बड़े ज़हीन मालूम होते हो।'

क़रीम से मालिक को बात करते देख, आसपास के कुछ मजदूर इकट्ठे हो गए। अमज़द मालिक की बातें ध्यान से सुन रहा था। कमाल की तारीफ सुन, उससे नहीं रहा गया।

'मालिक इस लड़के का नाम ही कमाल नहीं है।, यह सचमुच कमाल का लड़का है। शुरू-शुरू में चमड़ा कूटते इसकी हथेलियों पर खून छलछला आता, पर इसने कभी उफ़ नहीं करी।'

'यही नहीं, जब इसके हमउम्र खेलते, उस वक्त भी यह काम करता ताकि इसके अब्बू को ज्यादा पैसे मिल सकें।' रहीम ने भी अपनी राय जाहिर की थी।

'क्या यह सच है, कमाल?'

'मैं यह नहीं जानता था रहीम चचा और अमजद चचा जान मुझे इतना प्यार करते हैं मैं आज जान सका, मैं कितना खुशकिस्मत हूँ।'

तुम्हारा बेटा सचमुुच धूल में पड़ा हीरा है,क़रीम। इसे तराशने की जरूरत है।

'यह आपकी मेहरबानी है हुजूर।'

'कमाल, जरा यह चप्पल तो दिखाना।'

'इसकी ग़लती माफ करें मालिक, नादान है। खाली वक्त में चमड़ें की बेकार कतरनें जोड़कर चप्पल की ये जोड़ी बनाई है। कारखाने के काम के वक्त यह अपना काम नहीं करता' क़रीम घबरा गया था।

'वाह, ये चप्पलें तो बहुत खूबसूरत हैं। चमड़े की बेकार कतरनों से भी इतनी अच्छी चीज बनाई जा सकती है। मैं सोच भी नहीं सकता।'

'शुक्रिया, सर। अगर आप इजाज़त दें तो मैं ये चप्पलें अपनी अम्मी को देना चाहता हूँ। अगर आप चाहें तो चमड़े की कतरनों की कीमत ले लीजिए।'

'नहीं बेटे। ये तोहफ़ा तुम्हारी अम्मी का है। इसे पैसों से नहीं तौला जा सकता। मैं जानता हूँ तुम्हारी अम्मी इसे पाकर कितनी खुश होंगी। एक बात और, मेरी ओर से नए चमड़े की एक और जोड़ी चप्पल बनाकर, अपनी अम्मी को जरूर देना।'

'शुक्रिया, सर। आप बहुत अच्छे हैं।'

खुशी से कमाल का चेहरा चमक उठा।

'अब्दुल क़रीम एक घंटे बाद कमाल के साथ तुम मेरे आँफिस में आना।'

'जी मालिक, अभी पहॅुंचता हूँ।'

करीम को अपने आँफिस में आने के निर्देश देकर अन्सारी साहब चले गए। जाते वक्त कमाल के सिर पर प्यार से हाथ फेर दुआ दी थी।

'चल बेटा खाना खा लें।'

सामने लगे नल से हाथ धो, एक पेड़ की छाया में बैठ करीम ने कपड़े में बंधा प्लास्टिक का डिब्बा खोला था। डिब्बे में रोटी, प्याज और पुदीने की चटनी थी।

'वाह, आज तो अम्मी ने बड़ी जोरदार चटनी बनाई है।' सूखी रोटी पर चटनी लगा कमाल ने टुकड़ा तोड़ मॅुंह में रखा था।'

'या अल्लाह, तू सचमुच कमाल का है। सूखी रोटी खाकर भी कोई शिक़ायत नहीं। खुदा तुझे सारे जहाँ की खुशियाँ दे।'

'आमीन।' पास बैठे रोटी खा रहे अमज़द ने भी कमाल को दुआ दी थी।

खाना खाकर दोनों अन्सारी साहब के आँफ़िस पहॅुंचे। दरवाजे के बाहर बैठा चपरासी क़रीम को देख ताज्जुब में पड़ गया।

'क्या हुआ, क़रीम भाई? कोई ख़ास मुश्किल आ गई है क्या?'

'नहीं भइया, मालिक ने बुलाया है।'

'अच्छा, कोई ग़लती तो नहीं की?'

'अल्लाह जाने क्यों बुुलाया है। अपनी जान में तो हमने कोई ग़लत नहीं की। जरा साहब को ख़बर कर दो भइया।'

'देखता हूँ, साहब बहुत बिज़ी हैं।'

कमरे से बाहर वापस आए चपरासी का रूख ही बदला हुआ था।

'जाओ भाई, साहब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं।'

परदा उठाकर क़रीम के साथ कमाल मालिक के कमरे में पहॅुंचा था। कमरे के वैभव ने कमाल की आँखें चैंधिया दीं। मिट्टी के बने घर में, टीन के टुकड़ों से छाई गई छत के नीचे रहने वाले कमाल के लिए वह कमरा एक अजूबा ही था। धूप में रहकर काम करने वाला क़रीम भी कमरे की ठंडक में सुकून का अनुभव कर रहा था।

अदब से साहब को आदाब कर, दोनों निर्देश की प्रतीक्षा में खड़े थे।

'बैठो अब्दुल क़रीम, कमाल तुम भी बैठो।'

'नहीं मालिक हम खड़े ही ठीक हैं, आपके सामने बैठने की जुर्रत कैसे कर सकते हैं।'

'नहीं क़रीम मियां, जब तक तुम दोनों नहीं बैठोगे मैं अपनी बात नहीं कह सकगा।'

मालिक के निर्देश को टालना संभव नहीं था।

'तुम्हारे बेटे में मैंने एक अच्छे इंसान और कुशल कामगार को देखा है, क़रीम मियां। जो लड़का फेंकी गई कतरनों से इतनी अच्छी चप्पलें बना सकता है, अगर उसे काम की ट्रेनिंग दी जाए तो वह हमारे कारखाने के लिए कितने काम का आदमी होगा, तुम समझ सकते हो?'

'आपके सामने मैं क्या कहूँ, सरकार?'

'मैं आपके कमाल को माँगना चाहता हूँ?'

'आपका हुक्म सर-आँखों सरकार, पर मैं आपकी बात ठीक समझ नहीं सका हुजूर।'

'मेरा मतलब है, कमाल की पढ़ाई उसकी ट्रेनिंग का पूरा खर्चा हमारी कम्पनी उठाएगी। जब तक कमाल की टेªनिंग पूरी नहीं होती, आपको कमाल की तनख्वाह बराबर मिलती रहेगी।'

'अल्लाह आपको दुनिया-जहान की खुशियाँ दे। इसकी अम्मी की भी यही ख्वाहिश थी, यह खूब पढ़े।' खुशी से क़रीम की आँखें छलछला आई

'कमाल बेटे, तुम क्या बनना चाहते हो।?' प्यार से अंसारी साहब ने पूछा था।

'मेरा सपना है, खूब पढ़-लिखकर एक जूते की फैक्ट्री खोलूँ, जिसमें नई-नई डिज़ाइन के जूते-चप्पलें तैयार कर सकूँ।'

'अल्लाह तुम्हारे सपने ज़रूर पूरे करेगा, बेटे। क़रीम मियां, मैंनेजर साहब कमाल की पढ़ाई और टेªनिंग का पूरा इंतजाम करा देंगे। अब आप जाकर यह खुशख़बरी अपनी बेग़म को दें।'

'सलाम मालिक।' खुशी से क़रीम के पाँवों को जैसे पंख मिल गए।

घर पहॅुंचे क़रीम का खिला चेहरा देख ज़मीला को लगा, रहमान की कोई खबर मिली है। क़रीम से पूरी बात सुन जमीला की आँखें भर आई अल्लाह क्या उन पर इतना मेहरबान हो सकता है? तभी कमाल ने अपने झोले से चप्पल निकाल अम्मी को दी थी।

'वाह। इतनी खूबसूरत चप्पलें, किसने बनाई हैं?'

'तुम्हें पसन्द आई, अम्मी?' कमाल जवाब पाने को उत्सुक था।

'पसन्द आने से क्या फ़ायदा? ये चप्पलें तो अमीरों के लिए हैं। किसके लिए बनाई हैं बेटे?'

'ये चप्पलें मैंने तुम्हारे लिए बनाई हैं, अम्मी।'

'पर तू तो कह रहा था, ये चप्पलें अम्मी को ईद पर देगा?' करीम ताज्जुब में था।

'तब तक दूसरी चप्पलें बन जाएंगी। अब्बू, याद नहीं सर ने क्या कहा था?' कमाल मुस्करा रहा था।

'सच तुझ पर कुर्बान जाऊॅं बेटे, खुदा तुझे हर कामयाबी दे।' ज़मीला ने चप्पलें सीने से लगा लीं।

'सच, आज तुम्हारी इन चप्पलों की वजह से करिश्मा ही हुआ। उस करिश्में की वजह से अल्लाह के रहमों-करम पर पूरा यकीन हो गया।'

'अल्लाह हमारे कमाल को बड़ा आदमी बनाए, हमारे दुख दूर हों।'

'नहीं अम्मी, हम बस अच्छे इंसान बनना चाहते है। आज हमें आगे बढ़ने का जो मौका मिला है, अल्लाह सबको दे।'

'अब मुझे यकीन है हमारा कमाल कारखाने का बड़ा अफसर बनेगा। मैं तो जिंदगी भर मजदूर ही रहा, पर मेरा बेटा कुछ बन सके इसी में हमारी खुशी है।'

'मजदूरी करना शर्म की बात नहीं है, अब्बू। ईमानदारी से किया गया हर काम, इज्ज़त का होता है। मुझे आप पर नाज़ है।'

'खुश रहो बेटे।' सच्चे दिल से क़रीम ने बेटे को दुआ दी थी।

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