महादेवी जी को बच्चों से बहुत प्यार है। बच्चे प्यार से उन्हें गुरू जी कहते हैं। महादेवी गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए इलाहाबाद से झूंसी गाँव जाती थीं।
घीसा के पिता नहीं हैं। वह पढ़ने के लिए उनकी कक्षा में आता है। वह गुरू जी का बहुत आदर करता है। उनका कहा मानता है। उसे अपनी माँ और अपने पिल्ले से भी बहुत प्यार है।,
इलाहाबाद शहर में गंगा नदी के पार झूंसी नाम का एक छोटा-सा गाँव है। इसी गाँव में आठ-नौ वर्ष का एक बालक घीसा रहता था। घीसा की विधवा माँ मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपना और घीसा का पेट पालती थी।
महादेवी जी अक्सर नाव से झूंसी जाया करतीं। झूंसी में गरीब बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं था। महादेवी जी ने एक पीपल के पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। बच्चे उन्हें गुरू जी पुकारते।
एक दिन घीसा का हाथ पकडे़, उसकी माँ गुरू जी के पास आ पहुंची। हाथ जोड़कर उनसे बोली-
”इन बच्चों के साथ इसे भी बैठा लें ।गुरू जी। बिना बाप का बच्चा है। दिन भर इधर-उधर घूमता फिरता है। इनके साथ चार अक्षर पढ़ लेगा। आपका बड़ा उपकार होगा गुरू जी।“
”क्या नाम है तेरा?“ महादेवी जी ने पूछा।
”घीसा।“ घीसा की आँखें चमक उठीं। फिर उसने पूछा-
”गुरू जी, आप हमें पढ़ाएँगी?“
”क्यों नहीं घीसा। मन लगाकर पढ़ोगे तो कुछ बन जाओगे।“
”हम खूब मन लगा के पढेंगे। आपका कहा मानेंगे गुरू जी।“
महादेवी जी चार दिन झूंसी जातीं। घीसा के लिए ये चार दिन बड़ी खुशी के होते। वह सुबह-सुबह पीपल के पेड़ के नीचे झाडू लगाता। गोबर से जमीन लीपता। गुरू जी के लिए चटाई बिछाता, उनकी कलम-दवात सजाकर रखता। जब गुरू जी पढ़ातीं, घीसा की आँखें उनके चेहरे पर गड़ी रहतीं। उनकी हर बात वह ध्यान से सुनता। एक दिन गुरू जी ने बच्चों को समझाया-
”बच्चों को सफ़ाई से रहना चाहिए। रोज नहाकर साफ़ कपड़े पहनने चाहिए। गंदे कपड़े जरूर धोने चाहिए।“
दूसरे दिन घीसा पढने नहीं आया। गुरू जी ने बच्चों से पूछा-
”क्या बात है आज घीसा पढ़ने नहीं आया?“
रामू ने हॅंसते हुए जवाब दिया-
”आपने कल कहा था कि गंदे कपड़े धोकर, साफ कपड़े पहनने चाहिए। कल से ही घीसा माँ के पीछे पड़ा था। आज पैसे लेकर साबुन लाया है। इस वक्त वह अपना फटा कुरता साबुन की बट्टी से धो रहा है।“
थोड़ी देर बाद घीसा आ पहुंचा। उसका कुरता अभी कुछ गीला था। गुरू जी ने प्यार से कहा-
”क्यों रे घीसा, पढ़ने के समय तू क्या कर रहा था?“
”गुरू जी, हमारा कुरता बहुत गंदा था। आपने बताया साफ़ कपड़े पहनने चाहिए। कुरता धोने में देर हो गई। हमें माफ़ कर दें।“ धीमे से घीसा ने देरी का कारण बताया।
उसने शाम को जाते ही माँ से कहा-
”माँ, गुरू जी कहती हैं कि रोज कपड़े धोकर पहना करो। मैं आज कुरता धोऊंगा। साबुन की बट्टी मॅंगा दो न।“
माँ के पास पैसे नहीं थे। उसने कहीं से माँगकर रात को उसे पैसे दे दिए। वह सवेरे ही दुकान पर गया। तुरंत कुरता धोकर सुखाया। लेकिन कुरता सूख नहीं रहा था। स्कूल के लिए देर हो चुकी थी। इसीलिए वह गीला ही कुरता ऊपर डालकर भागता हुआ कक्षा में आया है।
गुरू जी ने देखा ज्यादातर बच्चों के पास एक ही कुरता था। घीसा का कुरता तो बिल्कुल फट चुका था। दूसरे दिन गुरू जी बच्चों के लिए नए कुरते और जलेबियाँ ले गई। नया कुरता पाकर घीसा की आँखें चमक उठीं। जल्दी से कुरता बदन पर लटका, गुरू जी के पाँव छू लिए।
सब बच्चों को पाँच-पाँच जलेबियाँ मिलीं। दूसरे बच्चों ने चटपट जलेबियाँ खा डालीं, पर घीसा अपनी जलेबियाँ लेकर घर भाग गया। लौटने पर गुरू जी ने पूछा-
”घीसा, तूने जलेबियाँ यहाँ क्यों नहीं खाई?“ शर्माते हुए घीसा ने बताया-
”दो जलेबियाँ माँ के लिए रख आया। एक जलेबी अपने पिल्ले को खिला दी। दो हमने खाई हैं। पिल्ले को एक जलेबी कम मिली है। अगर गुरू जी एक जलेबी और दे दें तो उसे भी पूरा हिस्सा मिल जाए।“
अपनी माँ से तो घीसा प्यार करता ही था। पर अपने पालतू पिल्ले के लिए भी उसके मन में प्यार था। गुरू जी की तो घीसा पूजा करता। कड़ी धूप में बैठा वह गुरू जी का इंतजार करता।
अचानक गुरू जी के पेट में दर्द रहने लगा। डॉक्टर ने उन्हें आपरेशन कराने की सलाह दी। जब गुरू जी ने बच्चों को बताया वह कुछ दिनों तक झूँसी नहीं आ सकेंगी तो घीसा रो पड़ा।
गुरू जी थोड़ी देर यहाँ ठहरिएगा। हम अभी आते हैं। जाइएगा नहीं। गुरू जी से विनती कर, घीसा तेजी से भाग गया। थोड़ी देर बाद नंगे बदन घीसा वापस आया। उसके हाथ में एक बड़ा-सा तरबूज था। तरबूज में एक छोटी-सी फाँक काटी गई थी। उसमें से अंदर का लाल रंग झलक रहा था।
”गुरू जी, यह तरबूज आपके लिए खेत से लाए हैं। लाल है या नहीं इसलिए थोड़ा-सा कटवाकर देखना पड़ा।“ घीसा दौड़ने के कारण हाँफ़ रहा था।
”मेरे लिए क्यों, घीसा? यह तरबूज तू खा और अपनी माँ के लिए ले जा।“ गुरू जी ने कहा।
”नहीं गुरू जी, आप तो माँ और भगवान से भी ऊपर हैं। यह तरबूज लाने के लिए पैसे नहीं थे, गुरू जी। नया कुरता देकर आपके लिए यह तरबूज लाए हैं। गर्मी में हम नंगे बदन रह सकते हैं।“ खुशी से घीसा का चेहरा जगमगा रहा था। यह सुनकर गुरू जी की आँखें नम हो गई।
नया कुरता घीसा को बहुत प्यारा था, पर उसके दिल में गुरू जी के लिए उस कुरते से कहीं ज्यादा प्यार था। गुरू जी को तरबूज देकर उसे जो खुशी मिली, उसके मुकाबले नया कुरता खो देने का दुख कुछ नहीं था।
गुरू जी ने घीसा को सीने से चिपटा लिया। दोनों की आँखों से आँसू बह निकले।
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ReplyDeleteगुरु और शिष्य परंपरा को बताती कहानी| लेकिन आज के समय न ऐसे गुरु रहे न ही शिष्य | सारे रिश्तों का बस बाजारीकरण हो रहा है |
ReplyDeleteBahot acchi Kahani hai
ReplyDeleteHeart touching
ReplyDeleteMy favorite story...
DeleteMy favorite Story.. Much Love <3
DeleteMy Favourite Story..Much Love <3
DeletePyaar hi to h jo insan ko ek dusre se baandhe rakhta h
DeleteKya kahani tha sach me mai to kho gya pure kahani me really amazing 👌👌
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