12/6/09

एक मामूली घटना

कार के बाईं ओर मुड़ते ही संध्या को लगा था, सामने वाले कोने में मोटरसाइकिल के साथ खडे़ लड़कों ने जैसे आपस में कोई इशारा किया था।


एक लड़के ने सब ठीक का संकेत देते हुए शायद अंगूठे से ओ0के0 कहा था। कार के पीछे आती मोटरसाइकिल देख न जाने क्यों संध्या का हृदय धड़क उठा । थोड़ी देर में वस्तुस्थिति स्पष्ट हो गई थी। मोटरसाइकिल पर सवार युवक निश्चय ही उनकी कार का पीछा कर रहे थे। धीमें से संध्या ने पति से कहा था-

सुनो लगता है ये मोटरसाइकिल हमारा पीछा कर रही है।

तुम्हें यूँ ही व्यर्थ का शक हो रहा है,  ये रास्ता किसी और का भी तो हो सकता है। रवीन्द्र ने बात टालने की कोशिश की थी पर सामने लगे शीशे में आ रही मोटरसाइकिल की छाया ने मानो उन्हें भी सचेत कर दिया था।

संध्या तुम अपने ऑर्नामेंट्स उतार कर पर्स में रख लो। पूजा बेटी तुम पीछे सीट पर लेट जाओ ताकि तुम्हारा सिर न दिखाई दे।

पति के निर्देश सुनते ही संध्या का हृदय जोरों से धड़कने लगा था। काँपते हाथों से चेन और सोने की चूड़ियाँ उतार पर्स में डाल लीं । हे भगवान् रक्षा कर। संध्या ने भयभीत दृष्टि पीछे की सीट पर बैठी पुत्री पूजा पर डाली थी।

प्रायः शाम होते ही उस छोटे शहर की बिजली कई घंटों को कट जाया करती थी। रात का अंधकार पहले ही आतंकित किए था, उस पर पीछा करने वाले युवकों का मकसद भी अज्ञात था। रवीन्द्र ने कार की गति तीव्र कर दी थी, साथ ही पीछे आती मोटरसाइकिल की गति भी तेज हो गई थी। अपने घर वाली लेन में प्रवेश करते ही संध्या मानो जी गई । मोटरसाइकिल दूसरी ओर मुड़ गई थी। रवीन्द्र ने भी आश्वस्ति की श्वास ली थी- चलो खतरा टल गया।

उन फ्लैट्स के लिए सड़क के पार थोड़ी दूर पर कार के गैरेज बनाए गए थे। पूजा हमेशा पापा के लिए गैरेज का द्वार खोलकर कार पार्क कराया करती थी। आज भी वह कार में रूक गई थी, रवीन्द्र ने कहा -

तू चली जा पूजा, मैं कार गैरेज में रखकर अभी आया।

नहीं पापा, अब तो घर आ ही गया है चलिए गैरेज मैं ही खोलती हूं। मम्मी तुम घर चलो, मैं पापा के साथ अभी आई। कार से उतर संध्या घर की सीढ़ियाँ भागती हुई चढ़ गई थी। काल बेल बजाते ही छोटी पुत्री ने द्वार खोल पूछा था-

बड़ी देर कर दी माँ, क्या चाचाजी बनारस से वापस आ गए।

पुत्री की बात अनसुनी करती संध्या दौड़कर बालकनी में पहुंच गई थी। विस्मित बेटी, माँ के साथ बालकनी में आ गई ।

बालकनी में खड़ी संध्या चीत्कार कर उठी। रवीन्द्र की कनपटी पर पिस्तौल रखे वे युवक उन्हें कार के अन्दर ठेल रहे थे। दूसरी लेन से पहुंच,  वे युवक गैरेज के पास उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

बचाओं....... बचाओं....... आवाज पर कुछेक पड़ोसी बाहर आए थे,  पर तत्परता के साथ रवीन्द्र को कार के अन्दर ठेल एक युवक ड्राईविंग सीट पर जा बैठा था। दूसरे ने पूजा को जबरन पीछे की सीट पर ढ़केल कर द्वार बन्द कर लिया था। संध्या का चीत्कार रूदन में बदलता जा रहा था। पड़ोसियों के पत्थर और ढ़ेले भी अपहरणकर्ताओं का कुछ न कर सके थे। पूजा का ‘मम्मी-मम्मी’ का आर्तनाद क्षीण होता गया ।

कुछ पड़ोसी दौड़कर पुलिस थाने फ़ोन करने गए। फ़ोन की घंटी पर भी उत्तर नदारद था। कई बार की कोशिशों के बाद अन्ततः मिस्टर तलवार ने सलाह दी थी।

चलो थाने चलकर रिपोर्ट दर्ज करा आएँ। अंधकार के उस माहौल में चंद मिनटों पहले अपहरण के साक्षी पड़ोसी, कार बाहर निकालने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे। अन्ततः रवीन्द्र के घनिष्ट मित्र अरविंद ने साहस दिखाया ।

रिपोर्ट तो करानी ही है, कौन मेरे साथ आ रहा है? दो तीन लोगों के सामने आते ही अरविंद ने गैरेज से कार बाहर निकाल ली थी।

थाने मे  ऊंघते कांस्टेबल को देख अरविंद ने जोरों से पूछा था-

इंस्पेक्टर साहब कहाँ हैं?

सजग होते कांस्टेबल ने उत्तर के स्थान पर प्रश्न किया

कहां से आए हैं, क्या काम है।।

हमें रिपोर्ट लिखानी है, इंस्पेक्टर साहब को बुलाओ। अर्जेंट रिपोर्ट है। माधवानी साहब ने ऊंची आवाज में कहा था।

इंस्पेक्टर साहब ‘रेड’ पर निकले हैं, आज रात भर नहीं मिलेंगे। कांस्टेबल ने जम्हाई ले कहा।

दो जिंदगियों का सवाल है, इंस्पेक्टर नहीं हैं तो उनकी जगह दूसरा कौन उनका काम देखता है, उसे बुलाओ। अरविंद ने डपट के कहा।

ऐ साहब ज्यादा जोर न दिखाएँ, कह दिया न वो ‘रेड’ पर गए हैं अर्जेंट काम से निकले हैं, फालतू आराम करने नहीं गए हैं। कांस्टेबल के स्वर में गर्व छलक आया था।

परेशान पड़ोसियों ने एक दूसरे को असहाय दृष्टि से देखा था। माधवानी साहब ने फिर कोशिश की थी

देखो भइया, हमें वह जगह बता दो जहाँ इंस्पेक्टर साहब मिलेंगे। हम आपको इनाम देंगे।

इनाम की बात सुनते ही कांस्टेबल की आँखों मे चमक आ गई थी।

साहब ने तो बताने को मना किया था पर आपका भी अर्जेंट काम है। इंस्पेक्टर साहिब मार्केट की कैसेट की दूकानों में छापा मारने गए हैं। आजकल ई कैसेट लाईब्रेरी वाले बहुतै धांधली करे हैं। दुनिया भर की बुलू फिल्में लाके पैसा कमा रहे हैं।।

अच्छा भई, हमें यहाँ से एक फ़ोन करने देंगे, हम एस0पी0 साहब से बात करेंगे।

अरे ये साला फोनवा तो पिछले चार दिनों से मरा पड़ा है............ कहकर कांस्टेबल हॅंस दिया था। कुछ रूककर फिर वह बोला था-

अरे आज की छापामारी में तो डी0एस0पी0 साहिब, मजिस्ट्रेट साहिब सबै गए हैं। कहाँ खोजेंगे उन्हें, वे तो कहीं नाश्ता पानी कर रहे होंगे। कहता कांस्टेबल रहस्यात्मक ढंग से मुस्कुरा दिया।

सबकी चिन्ता और आक्रोश बढ़ता जा रहा था।

टु हेल विद दिस कंट्री एंड इट्स सिस्टम.........। टेबल पर घूँसा मारता अरविंद, क्रोधित हो उठा था।

आदमी के जीवन से अधिक महत्वपूर्ण क्या ये छापामारी है? नीरजनाथ ने मानो अपने आप से प्रश्न किया था।

ज़रूर है, आदमी की मौत,  उनके लिए आम घटना है। अगर खूनी पकड़ लिया तो उनकी पौ-बारह, उससे पैसे वसूल कर उनकी जेबें भरती हैं,  आखिर जाने वाला तो चला ही गया,  अब उसके नाम पर रोने से क्या फ़ायदा जो जी रहा है उससे लाभ उठाओं। माधवानी ने अंग्रेजी में कहा।



भला ये भी कोई बात हुई, सारी की सारी पुलिस फोर्स कैसेट छापामारी में लगा दी गई और यहाँ हम कितने असुरक्षित हैं इसके लिए किसी को चिन्ता ही नहीं? कॉलोनी में दिन-दहाड़े लूट, कत्ल हो रहे हैं, उनसे क्या? नीरज ने फिर कहा था।

लाइए कोई रिपोर्ट दर्ज़ करने का रजिस्टर तो होगा,  हम रजिस्टर में अपनी रिपोर्ट दर्ज़ कर दें अरविंद द्वारा रिपोर्ट लिखने के लिए रजिस्टर की माँग पर कांस्टेबल एकदम चैतन्य हो उठा था।

ये कैसे हो सकता है,  रिपोर्ट तो पुलिस का आदमी लिखेगा। आप इन्तजार करें, थोड़ी देर में इन्स्पेक्टर साहिब आते ही होंगे।

आप समझते क्यों नहीं, हमारे मुहल्ले से एक आदमी और उनकी बेटी को दो लड़के कार में ले गए हैं। उनकी जान खतरे में है।।

अरे नहीं, आजकल के लड़कन को बस मोटरकार का शौक लग गया है। हम कहे हैं ई लोग छोकरियन पर रौब जमाए खातिर दिन-दहाड़े कार लूटते हैं। फिकिर की कौनू बात नहीं है। अरे बस जरा मौज-मस्ती के बाद वे उन लोंगन को छोड़ देंगे। हम ऐसे बहुत केसवा देख चुके हैं साहिब। उस गंभीर वातावरण में कांस्टेबल का वह कुत्सित इशारा नश्तर-सा चुभ गया था। अरविंद का आक्रोश चरम सीमा पर था,

वाह हमारी पुलिस की क्या प्राथमिकताएँ हैं,  इधर दो जानें खतरे में है,  उधर कैसेट की छापामारी कर एक रात में देश से भ्रष्टाचार को दूर कर देंगे।।

हद हो गई, हम यहाँ एक घंटे से व्यर्थ ही सिर मार रहे हैं। नीरजनाथ विक्षुब्ध थे।

चलो कमिश्नर के घर चलते हैं। थककर अरविंद ने कहा था।

पर उनके घर जाकर भी हम क्या कर सकेंगे, यहाँ तो कोई निर्देश सुनने वाला है नहीं। दूसरे थाने के लोग हमारी रिपोर्ट दर्ज नहीं करेंगे क्योंकि यह क्षेत्र उनके क्षेत्र में नहीं आता। इतनी रात में यूँ दौड़ना क्या ठीक है? माधवानी ने शंका व्यक्त की थी।

माधवानी की शंका निरर्थक नहीं थी। कुछेक माह पूर्व माधवानी के मित्र का परिवार छुट्टी के दिन उनके घर आया हुआ था। उनका बेटा सामने वाले मैदान में गेंद खेलने गया था। काफी देर बाद तक जब वह वापिस नहीं आया था तो उसके खो जाने की रिपोर्ट लिखने जब वे इसी थाने में आए थे, तो थानेदार ने साफ़ मना कर दिया था।

ये केस लालगंज थाने का है, हम इसकी रिपोर्ट दर्ज़ नहीं कर सकते

लाख मिन्नतों के बावजूद थानेदार नहीं पिघला था.......

आप सब नहीं जानते साहिब,  हम सरकारी लोग कानून खिलाफ़ी नहीं कर सकते। आप जाइए लालगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज़ कराइए

पर तब तक तो वह लड़का न जाने कहाँ पहुँच जाएगा, थानेदार जी। लड़के के पिता ने मनुहार की थी।

अब तक कहाँ पहुंचा होगा, भगवान जाने। अब फ़ालतू टाइम वेस्ट न करें,  जाइए रपट लिखाइए। थानेदार ने अन्तिम निर्णय दे दिया था।

अन्ततः चार दिन बाद उस नन्हें बालक का शव ही हाथ लग सका था। कहीं आज भी .......... माधवानी सिहर उठे थे। रवीन्द्र के साथ उनकी बेटी पूजा के चेहरे नयनों के समक्ष कौंध उठे थे।

अरविंद ने निर्णय लिया था .

चलो यहाँ समय व्यर्थ गंवाने से कोई फ़ायदा होने वाला नहीं,  हम-दो, डिप्टी कमिश्नर के पास जाते हैं और माधवानी और नाथ तुम दोनों हरीसिंह को अप्रोच करो। शायद वही हमारी....... मदद कर सके।।

हरीसिंह वो तो नम्बरी गुंडा है,  आप उसके पास जाएँगे? कांस्टेबल के कान खड़े हो गए थे।

अब तो कई बातों से यह सिद्ध हो गया है कि पुलिस की अपेक्षा हम गुंडों के संरक्षण में ज्यादा सुरक्षित हैं,  सिपाही जी। माधवानी ने कांस्टेबल पर करारा व्यंग किया था।

ठीक है, फिर जाइए, वही आपकी रक्षा करेगा। आगे से यहाँ कभी मत आइएगा, समझे। कांस्टेबल ने कंधे झाड़, जेब से सुर्ती निकाल हथेली पर जोर से रखी थी।

माधवानी और नाथ स्कूटर से रवाना हो गए थे, अरविंद एक कागज पर रिपोर्ट लिखने के लिए रूक गया था कि तभी थाने के अहाते में जीप रूकते ही कांस्टेबल सतर्क हो उठा था। सुर्ती मुंह में डाल तेजी से बाहर निकल गया था। जीप से उतरे लोगों के ठहाके थाने में बैठे अरविंद तक पहुंच रहे थे।

यार आज की छापेमारी में तो मज़ा आ गया। साल्ला देसी ही दिखा रहा था, अन्दर व्हिस्की की बोतलें छिपा रखी थीं।

तुमने पूरी व्हिस्की जब्त तो कर ली न?

अरे दो दिन बाद इसके बेटे का बर्थ- डे है तभी खोलेगा, क्यों ठीक कहा न, नागेन्द्र?

और उसी दिन वो जब्त- शुदा कैसेट भी चलाएँगे। बड़ा गर्म माल रखते हैं, साले।

हॅंसते हुए वे पुलिस कर्मी जैसे ही थाने में प्रविष्ट हुए। अरविंद की आग्नेय दृष्टि से वे चौंक गए।

कहिए अर्जेन्ट काम पूरा कर आए? व्यंग्य से अरविंद ने पूछा था।

जी...........हाँ.............आपकी तारीफ़? थाना-इंस्पेक्टर ने हड़बड़ा कर पूछा था।

सर ये लोग रिपोर्ट लिखाने आए हैं,  इनकी कालोनी से कोई कार लेकर भाग गया है।पीछे आते कांस्टेबल ने चुस्ती से आगे बढ़ कर उत्तर दिया था।

आजकल कार की चोरी बहुत बढ गई है........... क्या नई कार थी? घटना मामूली जान इंस्पेक्टर ने शांति की साँस ली थी।

बात सिर्फ़ कार की नहीं है इंस्पेक्टर,  उसके साथ दो जीवन जुड़ेहैं। पता नहीं वे अब जीवित मिलेंगे भी या नहीं। आप लोग अर्जेन्ट काम के लिए निकले थे, ये घटना तो मामूली-सी है। मात्र दो जिंदगियों का ही तो प्रश्न है। आक्रोश से अरविंद का स्वर थरथरा उठा था।

कुर्सी पर बैठते इंस्पेक्टर ने अरविंद को बैठने का संकेत दिया था। आदेशात्मक स्वर में कांस्टेबल को डांट पिलाई थी...........

साहब की खबर हमें क्यों नहीं की गई?



वो साहब आप अर्जेन्ट काम पर गए थे सो बता दिया था। कांस्टेबल हकला रहा था।

ईडियट, फ़ोन नहीं कर सकता था? इंस्पेक्टर ने फिर डांटा था।

आपका फोन तो पिछले कई दिनों से खराब है। अरविंद ने बीच में रोका था।

ओह देखता हूं,  यहाँ अक्सर तार ढीले हो जाते हैं............ये देखिए जंक्शन बाक्स का ये स्क्रू ढ़ीला हो गया था इसलिए फ़ोन काम नहीं कर रहा था। ऐ रामदीन जरा स्क्रूड्राइवर से इस पेंच को कस दो। थोड़ा देखना चाहिए कि फ़ोन काम काहे नहीं कर रहा। इंस्पेक्टर ने तार कांस्टेबल को पकड़ा दिया था।

हाँ तो बताइए घटना क्या है? वारदात कब, कैसे, किस समय हुई? वारदात के पूरे डेढ घन्टे बाद इंस्पेक्टर ने रिपोट दर्ज़ करने की प्रक्रिया शुरू की थी।

अरविंद के मुंह खोलने के पहले ही फ़ोन घनघना उठा, तत्परता से इंस्पेक्टर ने फ़ोन कान से लगाया था। उधर से आती सूचना निश्चय ही गम्भीर थी, इंस्पेक्टर के मुख का रंग बदलता जा रहा था।

ओ0के0 हम अभी  पहुंच रहे हैं। आप कौन हैं, कहाँ से बोल रहे हैं, हलो......... हलो......... पर उधर वाले ने फ़ोन डिस्कनेक्ट कर दिया था।

माथे पर चुहचुहा आई पसीने की बॅंदों को रूमाल से पोंछता इंस्पेक्टर लगभग खड़ा हो गया था।

क्या हुआ इंस्पेक्टर, कोई खास खबर? दिल अरविंद का भी तेजी से धड़क रहा था।

किसी अज्ञात व्यक्ति ने सूचना दी है पुराने नाले के पास दो शव फेंके गए हैं, शव में शायद एक लड़की भी है। मुझे फौरन जाना है, सॉरी।

अब क्यों जाना है, कहाँ जाना है इंस्पेक्टर? मुर्दे बोल नहीं सकते, उनकी तो बस शिनाख्त की जाती है और मैं यहाँ से ही उनकी शिनाख्त कर रहा हुँ- एक शव है मिस्टर रवीन्द्र वर्मा का और दूसरा उनकी पुत्री पूजा वर्मा का।

पर ये भी तो हो सकता है ये शव किसी और के हों, जब तक देख न लिया जाए........।

इतनी देर से यहाँ, इस थाने में जो देख-सुन रहा हुँ उससे तो मुझे यही आश्चर्य है, कैसे हम आज तक सुरक्षित रह सके हैं। मुझे पूरा विश्वास है अब इस शहर में आपका जीवन और अधिक शांतिपूर्ण हो जाएगा, क्योंकि भविष्य में हम आपसे नहीं, हरीसिंह से सहायता लेंगे। थैंक्यू-थैंक्यू वेरी मच इंस्पेक्टर...........।

इंस्पेक्टर के अवाक् मुख पर तेजी से थाने का द्वार बन्द कर जलती आँखों के साथ अरविंद बाहर आ गया था।

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