12/6/09

एक नया गुलाब

जाड़े की ठंडी रात में डिलक्स ट्रेन जब इलाहाबाद पर रूकी तो जनशून्य प्लेटफार्म देख पूजा सिहर उठी थी। किसी तरह सूटकेस और बैग नीचे उतार पूजा ने चारों ओर असहाय दृष्टि डाली । अम्मा की जिद पर इस समय उसे गुस्सा आ रहा था। अच्छी-भली अन्य लड़कियों के साथ वह भी एम0ए0 के लिए दिल्ली जा रही थी, पर अम्मा को अपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से न जाने क्या लगाव था कि अड़ गई-


पूजा एक बार जाकर तो देख, वहाँ की तो हवा में भी साहित्य बहता है। अगर तू उस वातारण में रच-बस न गई, तो मैं तेरी अपराधिनी ठहरूंगी।

अम्मा के तर्को और वर्णनों ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रति उनके मन में भी आकर्षण जगा दिया था, इसीलिए अकेली ही इस विश्वविद्यालय से एम0ए0 करने चली आई थी। अम्मा नहीं जानतीं, उनकी यादों के विश्वविद्यालय के फेले हरे लानों में, विभागों की नई इमारतें बन चुकी हैं। विद्यार्थियों की भीड़ में उनका विश्वविद्यालय इस कदर खो गया था कि स्वयं अम्मा उसे शायद ही पहिचान पातीं। इन सबके बावजूद अपना इंगलिश डिपार्टमेंट उसे अच्छा लगा था। इसी विभाग में फ़िराक गोरखपुरी और डा0 बच्चन के लेक्चर हुआ करते थे । यहाँ के विद्यार्थियों के व्यक्तित्व में एक इलाहाबादी छाप हुआ करती थी।

क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं? पीछे से आए स्वर ने पूजा को चौंका दिया था, मुड़ते ही एक युवक समीप खड़ा दिखा था।

जी ई...........आज स्टेशन पर एक भी कुली नहीं है, सोच रही हूं,  इतना समान कैसे उठाऊं?

इस ठंडी रात में हम दोनों के लिए कोई कुली खड़ा मिलेगा- सोचना ही बेकार है। जाड़ो में इस ट्रेन से हम जैसे यात्री ही कभी भूले-भटके आते होंगे, जिन्हें और किसी ट्रेन में रिजर्वेशन नहीं मिला हो। ठीक कहा न? शब्दों में परिहास झलक रहा था।

पता नहीं बाहर रिक्शा मिलेगी या नहीं......... पूजा के स्वर में अनिश्चय स्पष्ट था।

बाहर तो जाना ही होगा, वाहन प्लेटफार्म पर तो पहुंचेंगे नहीं। उसके स्वर के व्यंग्य से पूजा झुंझला उठी थी।

इनफ़ॉर्मेशन के लिए धन्यवाद। बैग कन्धे पर टांग, जैसे ही पूजा ने भारी सूटकेस उठाना चाहा, तत्परता से आगे बढ़ उसका सूटकेस उस युवक ने उठा लिया था।

लगता है नाराज हो गईं...........मेरी आदत ही खराब है। कहिए किस ओर जाना है?।

यूनिवर्सिटी वीमेंस होस्टेल............।

तब तो आधा रास्ता आपको अकेले ही जाना होगा, मैं तो मेडिकल कॉलेज तक जाऊंगा।

मेडिकल स्टूडेंट हैं आप?

स्टूडेंट नहीं, डाक्टर बन चुका हूं,  मिस................?

पूजा................।

हाँ तो पूजा जी में हाउस जॉब कर रहा हूं। कभी हॉस्पिटल आएं तो किसी भी लड़की से डा0 मनोज का पता पूछें,  बस मुझ तक पहुंच जाएगी।

ओह, इतने पॉपुलर है आप? निश्चय ही आपसे आज की ये मुलाकात मेरे लिए भी महत्वपूर्ण सिद्ध होगी, न जाने कब आपकी जरूरत पड़ जाए? पूजा ने परिहास किया था।

वैसे डॉक्टर से मित्रता अच्छी नहीं होती..........। मनोज मुस्करा रहा था।

प्लेटफार्म से बाहर निकलने के लिए बने पुल की सीढ़ियों के पास टिकट चेकर खड़ा नजर आया था। उन्हें बाहर जाता देख उसने कहा था-

शहर की हालत ठीक नहीं, दंगो के कारण कर्फ़्यू लगा हुआ है।

हे भगवान- दंगे किस वजह से हुए हैं? पूजा का चेहरा फक पड़ गया था।

दंगो की वजह नहीं होती बिटिया...........। स्नेह से टी0सी0 ने पूजा से कहा था।

अब क्या होगा? पूजा ने दृष्टि मनोज पर डाली थी।

होना क्या है, चलिए हाथ-पाँव सिकोड़, वेटिंग रूम की किसी चेयर पर बैठे, रात आखों में काट डालेंगे।

निश्चिन्त हो मनोज वेटिंग रूम की ओर बढ चला था। कंधे पर बैग लटकाए पूजा उसके पीछे चल रही थी। उस रात मनोज का यूं अचानक मिल जाना कितना साहस दे रहा था। वेटिंग रूम का अटैंडेंट गहरी नींद में सो रहा था। भिड़े द्वार को ठेल मनोज के पीछे पूजा प्रतीक्षालय में प्रविष्ट हुई थी। सामान बीच की मेज पर रख, मनोज ने पूजा को आरामदेह ईजी चेयर पर बैठने का संकेत करते कहा था-

 अब बताइए मेरी मजदूरी क्या होगी ,आपका भारी सामान ढो कर लाया हूं।

जो आप कहें..........

एक प्याला गर्मा-गर्म चाय मिल जाती तो मेहनताना माफ़ कर देता।

ये तो बहुत आसान शर्त है,  अभी लीजिए। साथ लाए थर्मस से चाय उंडेलती पूजा प्रसन्न हो उठी।

वाह आपने तो कमाल कर दिया। इस ठंडी जनशून्य रात में आप न होतीं तो एक कप चाय भला मिल पाती?

आते समय माँ ने जबरदस्ती थर्मस दे दिया था। उन्हें हमेशा यही डर लगता हैं उनकी बेटी कहीं ट्रेन में भूखी न रह जाए। इसीलिए इतना ढेर-सा सामान लादना पड़ता है।

लकी हैं आप .........। अचानक मनोज जैसे उदास हो आया था।

लड़के मां-बाप की बात नहीं मानते, पर लड़कियों को उनकी हर आज्ञा शिरोधार्य करनी पड़ती हैं न? पूजा ने पूछना चाहा था।

......अगर मां हो तो...........। मनोज ने वाक्य अधूरा छोड़ दिया था।

मेरी मां नहीं हैं पूजा जी।

ओह आई एम सॉरी................।

चलिए इस एक बात के लिए तो मैं आपसे ईर्ष्या कर सकता हूं, न?

ईर्ष्या  क्यों?  आप हमारे घर आइए, अम्मा आपको अपना बेटा ही जानेंगी, बहुत बड़ा दिल है उनका। पूजा के स्वर में विश्वास था।

रात के शेष तीन घंटे उन्होंने एक दूसरे से परिचय प्राप्त करने में काट दिए थे। पत्नी की मृत्यु के बाद मनोज के वैजानिक पिता ने अपने को अनुसंधान कार्य में डुबो दिया था। मातृहीन मनोज का लालन-पालन विधवा बुआ ने किया था। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के बाद पिछले पांच वर्षों से वह इलाहाबाद में रहता आया था। पूजा की प्रेरणा, साहित्यिक अभिरूचि वाली उसकी माँ थीं। पिता भी कुछ अंशो में माँ पर ही निर्भर रहते थे, इसीलिए तो माँ की इच्छा के कारण पूजा को इलाहाबाद आना पड़ा था। छोटा भाई रोहित बैडमिंटन का कॉलेज चैम्पियन, इस वर्ष बी कॉम प्रथम वर्ष का छात्र है।

शायद सुबह के समय पूजा को नींद आगई थी।

चलिए मिस पूजा कर्फ़्यू खुल गया है। ऐसे सोती रहीं तो रात फिर यहीं गुजारनी पड़ेगी।

चौंक कर उठती पूजा को मनोज की मुग्ध दृष्टि निहार रही थी। पूजा लजा गई थी। स्टेशन से बाहर आकर मनोज ने पूजा का सामान रिक्शे में रख रिक्शे वाले को निर्देश दिए थे, मैं पीछे वाली रिक्शा में आ रहा हूं,  वीमेंस हॉस्टेल चलना है

नहीं-नहीं, आप कष्ट न करें- इस समय तो उजाला है, भय का कोई कारण नहीं। मैं चली जाऊंगीं।

क्यों लड़कियों के दर्शन के सुख से वंचित करना चाहती है?

उसके लिए आपको पूर्ण स्वतंत्रता है, मैं तो आपके कष्ट की बात सोच कर कह रही थी।

एक सुन्दर लड़की के पीछे जाने का सुख नहीं जानतीं आप पूजा जी,  वर्ना इस तरह की बात न करतीं।

जैसी आपकी इच्छा। पूजा ने तर्क नहीं किया था।

वीमेंस-होस्टेल के लंबे रास्ते भर पूजा को अपनी पीठ पर टिकी मनोज की दृष्टि का आभास होता रहा था। अजीब सी खुशी, कुछ नया सा लग रहा था पूजा को। वीमेंस होस्टेल के गेट पर पहुंच रिक्शा रूक गई थी। पूजा ने उतर कर मनोज से कहा था-

बहुत धन्यवाद, आज आप न होते तो..............

आपका हार्ट- फ़ेल हो जाता....... अरे पूजा जी शायद आपने कहानियाँ कम पढी हैं। जानती नहीं किसी सुन्दर राजकुमारी की रक्षा के लिए समय-असमय नायक जरूर पहुंच जाता है।

मनोज जी, न तो मैं राजकुमारी हूं , न ही आप नायक हैं, पर आपकी शुक्रगुजार हूं। अगर घर होता तो आपको चाय के लिए जरूर आमंत्रित करती, पर................

ये आपका घर नहीं है। ओ के फिर मिलेंगे। चलता हूं, बाय, पूजा। मनोज रिक्शे में बैठ, चला गया था।

पूरे दिन पूजा न जाने कैसी खुमारी में डूबी रही थी। एक अनजानी पुलक से मन उमग रहा था। नीता ने छेड़ा था-

क्या बात है, लगता है छुट्टियों में कहीं बात बन गई है। हमें नहीं बताएंगी, पूजा?।

बात बने तब तो बताऊं? सच, अभी तो शुरूआत भी नहीं है, नीतू।

पर तेरा ये गुलाबी चेहरा तो कोई और ही कहानी बता रहा है, सखि?

जिसका रंग ही गुलाबी हो, उसकी दूसरी रंगत कहाँ से आएगी, बता तो? गुलाब हो आए चेहरे के विषय में पूजा ने सफाई से बात बना दी।

क्लासेज समाप्त होते ही नीता ने पूजा से सिविल लाइन्स जाने का अनुरोध किया था-

खन्ना के यहाँ साड़ियों का सेल लगा है, चल देख आएं।

सेल की साड़ियाँ सड़ी होती हैं,  मैं पैसे बर्बाद नहीं करने वाली।

अरे सेल में जाने का मतलब ये तो नहीं कि तुझे कुछ खरीदना जरूरी ही है।

फिर जाने से फ़ायदा?

बड़ी बोर है तू पूजा, कभी सोचती हूं, न जाने कैसे तुझे दोस्त बना बैठी।

तो तोड़ दे दोस्ती,  गलती का प्रक्षालन हो जाएगा।

यही तो मुश्किल है, बड़ी खराब आदत डाल रखी है, एक बार जिसे पकड़ लिया, जिंदगी भर नही छोड़ पाती ।

तब तो तेरा पति बड़ा भाग्यवान होगा री............

क्यों तू क्या एक पति से संतुष्ट नहीं रहेगी?

धत्त, मैंने ऐसा कब कहा?

तो चल रही है- सिविल लाइन्स?

नहीं चलूंगी तो क्या बख्शेगी मुझे तू?

सिविल लाइन्स की रौनक देख पूजा खुश हो गई थी।

एक बात सच है नीतू,  इस जगह कोई भी उदास नहीं रह सकता?

उदास हों तेरे दुश्मन- चल आज चाट खाई जाए, न जाने कितने दिन हो गए बिना चाट के.....।

और तेरा साड़ी वाला सेल? .उसका क्या करेगी।

वो तो यहाँ आने का बहाना भर था। उस चाट वाले की आलू की टिक्की बढ़िया होती है, चल वहीं चलते हैं।

कहिए पूजा जी शहर पहुंचते ही सिविल लाइनिंग शुरू हो गई? मनोज के स्वर की पूजा ने जरा भी प्रत्याशा नहीं की थी।

क्यों उम्मीद नहीं कर रही थी कि यूँ पकड़ी जाएंगी? हाँ, अपनी सहेली का परिचय तो कराइए ,पूजा जी? मनोज अपने मित्र दिलीप के साथ खड़ा मुस्कुरा रहा था।

ये मेरी सखी नीता...... हम दोनों एक सब्जेक्ट में हैं और साथ ही रूम- मेट भी हैं। नीतू ये डा0 मनोज....। आज सुबह ही इनसे परिचय हुआ है.......

..बात पूरी हो गई न ,पूजा जी। और ये मेरा दोस्त दिलीप। मित्र का परिचय कराया था, मनोज ने।

हम लोग चाट खाने जा रहे हैं, आप भी आएंगे? पूजा ने पूछा था।

एक डाक्टर के नाते नेक सलाह दूं,  बाहर की चाट इस मौसम में न खाएं।

अगर बीमार हो गए तो इलाज तो करेंगे न ,डॉ0 मनोज? नीता ने चुटकी ली थी।

डर है, कहीं आपका इलाज करता डाक्टर ही रोगी न बन जाए।।

मज़ाक छोड़िए, हम तो चाट जरूर खाएंगे, आप आएं न आएं। पूजा ने उत्तर दिया था।

आप बुलाएं और हम न आएं असम्भव..........क्यों दिलीप, चला जाए?“

ऐज यू विश.....। दिलीप भी साथ हो लिया था।

विदा लेते मनोज ने नीता से कहा था-

नीता जी आपके होस्टेल में कोई कल्चरल प्रोग्राम हो तो बुलाना तो नहीं भूलेंगी?

मैं भले ही भूल जाऊं,  पूजा तो याद रखेगी।

नीता के उत्तर पर पूजा ने जरा शोखी से कहा था-

ना भई, हमारे होस्टेल में बाहरी व्यक्तियों को आमंत्रित नहीं किया जा सकता।

मंद स्मित के साथ मनोज ने पूजा पर गहरी दृष्टि डाल कहा था-

कभी बाहर वाले अपनों से भी अधिक अपने हो जाते हैं पूजा जी, शायद ये सच आप नहीं जानतीं।

होस्टेल पहुंचते ही नीता रूष्ट हो उठी थी।

सुबह से जो गुलाब खिल रहे थे, उनका राज अब समझ में आया। हमें बताया तक नहीं। हम तो गैर ठहरे न.............।

बताना क्या था- प्रतीक्षालय का जरा सा परिचय क्या प्रेम- कहानी थी, जो रस लेकर तुझे सुनाती? पूजा खीझ उठी थी।

प्रेम कहानी की नायिका तो बन ही गई है  तू,   पूजा मेरी बात की सच्चाई जल्दी ही पता लग जाएगी।

बड़ी अनुभवी है न तू। पूजा ने मीठी झिड़की दी थी।

अरे हम तो उड़ती चिड़िया पहिचानने वाले हैं। चेहरा देख मन की बात जान लेती हूं।

बड़ी आई ज्योतिषी कहीं की। प्यार से पूजा ने नीता की पीठ पर धौल जमाई थी।

दूसरे दिन संध्या, वार्डेन ने पूजा को बुलाया था-
तुमसे मिलने डा0 मनोज आए हैं, कह रहे हैं तुम्हारे पिता के मित्र के पुत्र हैं। जानती हो इन्हें?। वार्डेन की भेदक दृष्टि पर पूजा बस ‘हाँ’ में सिर भर हिला सकी थी।

ठीक है पर याद रखना सात बजे के बाद बाहर रहना निषिद्ध है।

जी, मैडम । पूजा ने झुके सिर के साथ उत्तर दिया था।

वार्डेन के कमरे से बाहर आते ही मनोज जोर से हॅंस पड़ा था।

माई गॉड,  ये वार्डेन है या जेलर? मुझसे जो जिरह की कि मैं तो सकपका गया था। अच्छा हुआ स्टेशन पर तुमने अपने पापा का नाम बता दिया था, वर्ना मैं तो पकड़ा जाता।

अच्छा ही तो होता.......... झूठ बोलने की सज़ा तो मिलनी ही चाहिए न?

अच्छा इस झूठ से तुम्हारा कोई फ़ायदा नहीं हुआ? मनोज ने पूरी दृष्टि से पूजा के मुख को ताका था।

अगर मैं कह देती मैं तुम्हें नहीं जानती तो?

झूठ बोलने का दुस्साहस आधारहीन तो नहीं था मेरा?

पूजा का मुख बस लाल हो आया था।

उस दिन के बाद से न जाने कितनी संध्याएं दोनों ने रेस्त्रों के एकान्त में या किसी पार्क के एकान्त कोनों में गुजारी थीं । जिस संध्या मनोज की हॉस्पिटल में ड्यूटी लगती, वह शाम पूजा के लिए बोझिल हो उठती थी। ड्यूटी से अवकाश पाते ही मनोज पूजा की प्रतीक्षा में बाहर खड़ा मिलता। साथ ही लड़कियों ने दोनों को न जाने कितने नाम दे रखे थे।

अचानक एक दिन पूजा के घर से तुरन्त घर पहुंचने का तार मिला था। पूजा की घबराहट पर सबने सांत्वना दी थी।

घबरा नहीं पूजा, सब ठीक होगा।

होस्टेल का चपरासी पूजा को ट्रेन में बिठा वापिस आया था। लगभग दो सप्ताह बाद उदास पूजा वापिस लौटी थी।

क्या हुआ था , पूजा घर में सब ठीक तो हैं न? नीता ने पूछा था।

रोहित की तबियत अचानक खराब हो गई थी। पूजा के नयन छलछला आए थे।

क्या हुआ है रोहित को?

मस्कुलर डिस्ट्राफी, .......... कहते हैं इस रोग में शनैः-शनैः मांसपेशियां शिथिल होती जाती हैं और अन्त में हृदय और दिमाग भी प्रभावित हो जाता है। डाक्टर कहते हैंए इस रोग का इलाज संभव नहीं है। पूजा का कंठ भर आया था।

पहले से रोग के कोई लक्षण नहीं दिखे थे, पूजा? नीता गम्भीर थी।

ये रोग अचानक ही पता लगता है। तू तो जानती है रोहित अपने कॉलेज का बैडमिंटन- चैम्पियन था- एक दिन अचानक उसे पैर में कमजोरी सी लगी। कुछ दिन तक घरेलू इलाज से जब फ़ायदा नहीं हुआ तो डाक्टर को दिखाया था। पूजा अचानक चुप हो गई थी।

ओह माई गॉड। तेरे मम्मी पापा तो बहुत परेशान होंगे?

दोनों एकदम टूट गए हैं.......मैं तो वापिस आना ही नहीं चाहती थी पर अम्मा ने जबरन भेज दिया। कह रही थी रोहित के लिए वे दोनों हैं, मुझे पढ़ाई पूरी करनी चाहिए। पूजा का स्वर उदास था।

रोहित कैसा फ़ील कर रहा हैं?

पहले कुछ दिन तो एकदम चुप हो गया, पर अब कॉलेज जाने लगा था। किसी का सहारा लेकर जाना पड़ता है उसे। डाक्टर ने वैशाखी की सलाह दी है, पर एक दिन वे भी उसका साथ छोड़ देंगी, नीतू। पूजा रो पड़ी थी।

भगवान चाहेंगे सब ठीक हो जाएगा, पूजा। क्या पता चमत्कार ही हो जाए।

भगवान करे तेरी ही बात सच हो, पर डाक्टर ने तो अम्मा, बाबूजी से कहा है कि वे मानसिक रूप से तैयार रहें कि रोहित की नियति व्हील चेयर या बिस्तर ही है। भरे गले से पूजा ने बताया था।

मौन नीता अपना सांत्वनापूर्ण हाथ पूजा की पीठ पर फेरती रह गई थी।

शाम को होस्टेल के मैसेंजर ने आकर कहा था मनोज साहब आए हैं। मनोज पूजा को देख खिल उठा था-

कब आई पूजा, सच तुम्हारे बिना मैं तो बेमौत मर गया।

आज ही पहुंची हूं । पूजा के उतरे चेहरे पर दृष्टि डाल मनोज चौंक गया -

क्या हुआ वहाँ जाकर हमारे ग़म में बीमार हो गई थीं? सब ठीक तो है न पूजा? मनोज के प्रश्न पर पूजा रो पड़ी।

सब ठीक कहाँ है, मनोज, भइया बहुत बीमार है।

क्या हुआ रोहित को?

डाक्टर कहते हैं मस्कुलर डिस्ट्राफी का केस है।

क्या............आ............? मनोज का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया था।

हाँ मनोज वो कहते हैं अब भइया कभी ठीक नहीं होगा, कभी बैडमिन्टन नहीं खेल सकेगा, क्या यह ठीक है? तुम भइया को ठीक कर सकते हो, मनोज?

ये एक दुर्भाग्यपूर्ण त्रासदी है पूजा। मनोज के निराशापूर्ण उत्तर पर पूजा के नयन भर आये थे।

एक बात पूंछूं,  पूजा.  क्या तुम्हारे खानदान में किसी को ये कष्ट हो चुका है, इस बारे में जानती हो?

नहीं मनोज, वहाँ भी डाक्टर ने यही बात पूछी थी, पर अम्मा, पापा किसी को कुछ पता नहीं...।

तुम साहस रखो, भगवान से प्रार्थना करो और कुछ किया भी तो नहीं जा सकता, पूजा।

रोहित एकदम गुमसुम हो गया है मनोज, कितनी बातें करता था.........पर मेरे आते समय जानते हो क्या कहा मुझसे?

क्या कहा?

कहने लगा-

पूजा, अब तो तू ही इस घर की एकलौती अमानत है। अम्मा-पापा को कभी दुखी मत होने देना। खूब पढ़ना कुछ बनकर दिखाना, मेरी बहिन। पूजा के नयनों से आँसुओं की धारा बह निकली थी।

सच ही तो कहा है रोहित ने। उसके स्वप्न-आकांक्षाएँ तुम्हें ही पूरी करनी होंगी, पूजा। आज चलता हूं। कल से इमरर्जेंसी वार्ड में ड्यूटी है, शायद जल्दी न आ सकूं। साहस रखो, पूजा। पूजा की पीठ थपथपा मनोज चला गया था।

आठ-दस दिनों तक मनोज को नहीं आया देख नीता पूछ बैठी थी-

तेरे डाक्टर का क्या हाल है, पूजा? दिखाई नहीं दिया?

इमरर्जेंसी वार्ड में ड्यूटी लगी बता रहा था.........।

रोहित कैसा है? घर से माँ का पत्र आया है?

हाँ, माँ ने लिखा है, इसी रोग पर रिसर्च कर रहे डाक्टर आशीष रोहित के मित्र बन गए हैं। उनके रहने से रोहित का मनोबल बढ़ रहा है।

ये दो अच्छी खबर सुनाई, क्या पता उनकी रिसर्च तेरे रोहित भइया पर ही सफल हो सके। विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि आज कुछ भी तो असम्भव नहीं लगता।। नीता का स्वर विश्वासपूर्ण था।

तेरी बातों से मैं जी जाती हूं, नीता, वर्ना..........। पूजा का कंठ रूंध गया था।

अच्छा अच्छा- अब बातें न बना चल क्लास को देर हो रही है। नीता के साथ पूजा भी मुस्करा उठी थी।

पंद्रह-सोलह दिनों तक मनोज का पूजा से मिलने न आना, पहली बार हुआ था। पूजा की व्यग्रता नीता से छिपी नहीं थी। पूजा का उदास मुख देख अन्ततः नीता ने ही कहा था-

-व्यर्थ परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, आज शाम मेडिकल कॉलेज चलते हैं। डर है कहीं तेरे दिलफेंक मजनूं किसी और के इश्क में गिरफ्तार न हो गए हों।

छिः, वह ऐसे नहीं हैं। क्या पता दिन रात ड्यूटी करते बीमार न हो गए हों। पूजा के स्वर में चिन्ता झलक रही थी।

उसी दोपहर, पूजा को मनोज का पत्र डाक से मिला था-

प्रिय पूजा,

बहुत सोचने के बाद ये पत्र लिख रहा हूं। तुम्हारे भाई रोहित की बीमारी से मैं बहुत व्यथित हुआ हूं। एक युवा जीवन-शक्ति का इस प्रकार क्षय होना दुर्भाग्यपूर्ण है। एक सच जो बार-बार मेरी चेतना पर हावी हो रहा है उसे बता पाना सहज नहीं, पर एक डाक्टर का कर्तव्य है, वह सच न छिपाए।

पूजा, ये रोग वंशानुगत होता है। तुम्हारे माँ-पिता भले ही न जानें, पर उनमें से किसी के परिवार की किसी पीढ़ी में ये रोग किसी न किसी को अवश्य हुआ होगा। अजीब बात यह है कि इसके शिकार लड़के होते हैं, पर स्वस्थ लड़कियाँ भी इस रोग की वाहिका हो सकती हैं। जो बात मैं लिख नहीं पा रहा हूं, तुम समझ सकती हो न? बार-बार अपने को कोसता हूं, क्यों बना डाक्टर? एक मित्र के रूप में हमेशा तुम्हारा हूं। हाउस जॉब समाप्त हो गया है, कल लखनऊ जा रहा हूं। मिल कर बिछड़ने का दुःख शायद असह्य हो, अतः बिना मिले ही जा रहा हूं।

तुम्हारे सुख के लिए मेरी मंगल कामनाएँ सदैव तुम्हारे साथ हैं।

मुझे क्षमा कर देना, पूजा।

तुम्हारा

मनोज

पत्र हाथ में थामे पूजा स्तब्ध खड़ी थी.......... क्या मनोज का लिखा सच हो सकता है............उसकी सन्तान भी रोहित की तरह पीड़ा झेलेगी? आशंका ने पूजा को आपादमस्तक सिहरा दिया था। मात्र आशंका के आधार पर इतने दिनों का प्रगाढ परिचय, नितान्त अपरिचय में बदल गया था। नीता ने उसे झकझोर के चैतन्य किया था।

डक्या हुआ पूजा- किसका पत्र है? रोहित तो ठीक हैं न?

पूजा ने निःशब्द, पत्र नीता को थमा दिया था। सरसरी दृष्टि से पत्र पढ़ नीता का मुख क्रोध से लाल हो उठा था।

कायर कहीं का............भला ये भी कोई इन्सान हुआ? अरे ये तो डाक्टर के नाम पर कलंक है। अच्छा हुआ इसकी असलियत पहले ही खुल गई वर्ना पूरी जिन्दगी रोती, पूजा।।

पूजा की आँखों से बहते आँसू सावधानी से पोंछती नीता ने समझाया था-

मान ले तेरा मनोज से विवाह हो चुका होता, उसके बाद रोहित को ये बीमारी होती तो तेरी क्या नियति होती पूजा, समझ रही है न?

मेरी नियति तो शीशे की तरह साफ़ है नीता, अब मैं जीकर क्या करूँगी?

हाँ अब तो तू त्रासदी की सही नायिका बन गई है? अरे जिस बात का अस्तित्व ही नहीं, उसकी सम्भावना मात्र से ही रोने लगें तो ये पूरी दुनिया लोगों के आँसुओं से डूब जाएगी।

पर मैं क्या करूँ नीता...........मनोज ने ऐसा क्यों किया?

अब आप उठिए और फ़ाइनल एक्जाम्स की तैयारी कीजिए। दस दिन रह गए हैं। रोहित तेरी सफलता से कितना खुश होगा। उसकी और अम्मा पापा की प्रसन्नता ही तेरी सबसे बड़ी जिम्मेवारी है, पूजा।।

तब से नीता ने पूजा को एक क्षण के लिए भी अकेले नहीं छोड़ा था। अगर नीता न होती तो एम0ए0 फाइनल की परीक्षा दे पाना पूजा को शायद ही सम्भव हो पाता।

परीक्षा समाप्त होने के बाद घर वापिस जाने के लिए लड़कियों का उत्साह देखते बनता था। पूजा का निरूत्साहित मुख देख वार्डेन ने भी सांत्वना दी थी-

तेरे भाई के विषय में जानकर हमें भी बहुत दुःख है, पूजा, पर वहां तेरे जाने से सबका मनोबल बढे़गा। सबको हिम्मत देना बेटी। झुककर श्रद्धापूर्वक उनके पाँव छूती पूजा का मन भर आया था।

नीता से अलग होना कितना कठिन था। दोनों सखियाँ गले मिल रो पड़ी थीं। नीता ने अलग होते, पूजा से कहा था-

हर सप्ताह हम पत्र लिखेंगे, जिसने इस पत्र-व्यवहार को तोड़ा वह अपराधी बनेगा। ठीक कहा न?

ठीक, तेरे पत्र तो मेरे लिए संजीवनी सरीखे होंगे, नीतू।

पूजा ने जाते ही नीता को पत्र लिखा था-

मेरी नीतू,

डॉ आशीष तो कमाल के जीवट वाले व्यक्ति हैं। उन्हें अपने शोधकार्य की सफलता पर पूर्ण विश्वास है। रोहित भइया की अंतिम परिणति तो विधाता जाने, पर उन्होंने रोहित में जीवन के प्रति एक नई दृष्टि का प्रादुर्भाव किया है। घर में हर समय छाया मौत के भय का आतंक, अब मानो दूर हट गया है। आशीष जी को देख लगता है डॉक्टर हो तो ऐसा, जो धरती पर भगवान का रूप लेकर, कार्यरत हो।

प्यार सहित तेरी,

पूजा

नीता ने पूजा को लिख भेजा था- कहीं डॉक्टर आशीष, मनोज की रिक्त जगह तो नहीं भर रहे हैं? सम्हल के रहना, फिर धोखा खाया तो सम्हालने के लिए तेरी सखी के कन्धे नहीं मिलेंगे।
तेरी नीतू।

अपने विवाह के अवसर पर पूजा को गले लगा नीता बोली थी-

अब तू कब बुला रही है हमें? हम दोनों जरूर आएंगे। कहीं बात चल रही हैं?।

डॉकटर आशीष हैं न, उन्होंने माँ से कहा है...........। पूजा रूक गई थी।

क्या कहा है री? पूरी बात तो बता......। नीता उत्सुक हो उठी थी।

माँ को मैंने मनोज का पत्र दिखा दिया था, वे भी आशंकित हो उठी थी। डॉ आशीष से कह बैठी थी..................

मेरी बेटी का क्या होगा- आशीष? क्या भाई के रोग का दंड इसे झेलना होगा?

वो क्यों मांजी? डॉ आशीष विस्मित हो उठे थे।

रोहित की बात सुन क्या पूजा से कोई विवाह करेगा, बेटे?

क्यों नहीं मांजी, क्या कमी है पूजा में? ऐसी लड़की भला कोई स्वीकार क्यों नहीं करेगा?

तुम उसका उद्धार करोगे, आशीष? माँ का स्वर दयनीय हो आया था।

उद्धार कहकर अपनी सुयोग्य बेटी का अपमान न करें। मेरा सौभाग्य आपने मुझे इस योग्य समझा। मुझे स्वीकार है आपका ये प्रस्ताव, पर पूजा से पूछ लेना भी ज़रूरी है, मांजी।

हाय सच। देखा इसे कहते हैं पुरूष, और एक वह था डरपोक,  कापुरूष ............नीता का वाक्य पूरा होने के पहले पूजा ने बात काट दी थी-

छोड़ उस बात को, समझ ले मेरी वही नियति थी। पर मैं आशीष जी की स्वीकृति सहजता से नहीं ले पा रही हूं, नीता।

क्यों? इसमें असहज होने की कौन-सी बात है पूजा?

क्या ये उनका मेरे प्रति दया. भाव नहीं है?

तू प्रेम-शास्त्र की बड़ी अनुभवी पण्डिता है न, तभी तो धोखा खा बैठी। सुना नहीं तेरी प्रशंसा में आशीष ने माँ से क्या कुछ नहीं कहा था।

फिर भी विश्वास कर पाने का साहस नहीं होता

अब मेरा कहा मान पूजा, आशीष को स्वीकार कर अपना अतीत धो-पोंछ डाल और हाँ उनसे कभी भूल कर भी अपना प्रेम-प्रसंग मत बता बैठना।

वो तो मैंने सब बता भी दिया........। कुछ मुस्करा कर पूजा ने कहा था।

हे भगवान हो गई छुट्टी,  तुझे कब तक अक्ल आएगी? क्या कहा उन्होंने?

मुझे अपने पर विश्वास है पूजा, अपना भय, आशंकाएं मुझे सौंप तुम निश्चिन्त रहो। बस इतना भर ही कहा था।

ये हुई न बात...........। नीता प्रसन्न हो उठी थी।

सच तो ये है रोहित का दुख-कष्ट आशीष जी इस तरह बांट रहे हैं कि रोहित अपने को बेहद सहज पाता है। इन पाँच छह महीनों में वैशाखी से रोहित व्हील-चेयर पर आ गया है।  उसके अंग शिथिल होत जा रहे हैं पर उत्साह में वृद्धि होती जा रही है।

वो कैसे, पूजा? क्या रोहित अपने को असहाय नहीं पाता।

रोहित को आशीष जी ढेर सारी पुस्तकें दे जाते हैं, रोज शाम उन पुस्तकों पर दोनों बातें करते हैं। रोहित की बी कॉम की परीक्षा भी आशीष जी की देख-रेख में आयोजित की गई थी। अब रोहित बुक्स और म्यूजिक कैसेट्स के सहारे आसानी से अपना समय काट लेता है। उसने अपनी जीवनी लिखनी भी शुरू कर दी है, नीता।

ये सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है,  पूजा, भगवान आशीष जी का श्रम सार्थक करें।

शायद वो सम्भव न हो, पर जानती है अपनी बीमारी के बारे में रोहित स्वयं पढ़कर डॉ आशीष के साथ उस पर बातचीत भी करता है। लगता है वो अपने को तैयार कर रहा है। कुछ दिन पहले उसकी कविताएँ पढ़ी थीं, उनमें मृत्यु की प्रतीक्षा है, नीता। पूजा का कंठ भर आया था।

बस कर पूजा और नहीं सुना जाता। भगवान का रोहित के प्रति अन्याय है यह।

विवाह के बाद नीता गुवाहाटी चली गई थी। तेल के कारखाने में उसका पति उच्च पदाधिकारी था। लगभग एक वर्ष बाद पूजा के विवाह का निमन्त्रण पहुँचा था।

पूजा के विवाह के कार्ड के उत्तर में नीता ने लम्बी सी चिट्ठी भेजी थी। एक माह की बेटी के साथ पहुंच पाना कठिन था, पर आशीष जी के साथ गुवाहाटी आने का निमन्त्रण पति-पत्नी ने जोरदार शब्दों में भेजा था।

आशीष को पा पूजा का जीवन अर्थ पा गया था। नीता के पास वर्षों तक पत्रों का सिलसिला चलता रहा, तब भी जब पूजा माँ बनने वाली थी। पूजा प्रार्थना करती उसकी बेटी हो पर आशीष मुस्करा कर कहते-

।मैं ड़ॉक्टर हूं पूजा, मेरे साथ डर कर नहीं जीना है। मैं तुमसे कुछ परीक्षणों की अनुमति चाहता था, पूजा.......।

परीक्षण.........क्या तुम्हें भी ऐसी ही शंका है, आशीष?

इसीलिए तो कुछ टेस्ट्स करना चाहता हूं। मैं कल्पना में नहीं, यथार्थ में विश्वास रखता हूं, पूजा। यदि इन परीक्षणों द्वारा हमारी आने वाली संतान में किसी प्रकार की त्रुटि का आभास मिला,  तो कष्ट भोगने के लिए उसे हम आमन्त्रित नहीं करेंगे, पूजा।

क्या ये सम्भव है, आशीष?

मुझे विश्वास है, पूजा.............।

भगवान तुम्हारा परीक्षण सफल करे, आशीष। पूजा ने स्वीकृति दे दी।

पूजा का स्वस्थ गोल मटोल बेटा अब बीस वर्ष का सौम्य युवक बन चुका था। बेटे के जन्म के चार वर्षों बाद रोहित चला गया गया था। डॉकटर आशीष रोहित के अन्तिम क्षणों तक साथ रहे थे। उसके साहसपूर्ण अन्त ने माता-पिता को भी रोने नहीं दिया था।

अम्मा बस इतने ही दिनों को आया था, पर इन कुछ दिनों में तुम सबसे जो मिला उतना तो लोग वर्षों जीवित रहकर भी नहीं पा पाते हैं। मुझे अपनी जिन्दगी से कोई शिकायत नहीं। नए जीवन में पूर्ण स्वस्थ रूप में जन्म लेकरए जीवन जी सकूं, यही आशीर्वाद देना, अम्मा।

अम्मा की आँखों में आँसू देख रोहित ने कहा था-

अपने पुत्र के इस जीर्ण क्षीण कलेवर को बदल नया स्वरूप नया जामा पहिनने की आज्ञा दो, अम्मा। बहुत थक गया हूं, जाने का आशीर्वाद दो, माँ।

अम्मा का हाथ बेटे के सिर पर चला गया, पर क्या वह उसको चले जाने का आशीर्वाद दे सकती थी।

रोती अम्मा की गोद में नन्हे बेटे राहुल को डाल, आशीष ने कहा था-

अपने इस रोहित को सम्हालिए मां जी। इसके कारण पूजा के पास मेरे लिए समय ही नहीं रहता अम्मा ने राहुल को वक्ष से सटा लिया।

आशीष ने घर मे ही अस्पताल खोल लिया था। पूजा को अपने साथ ले जा आशीष ने कहा था..

ये सब तुम्हारे रोहित जैसे ही हैं, इसके जीवन में आशा की किरण भी शेष नहीं है। इन्हें अन्तिम क्षण तक साहस देना हमारा कर्तव्य है, पूजा। इनके निराश जीवन में तुम आनन्द की किरण बन जी सको, तो मेरा काम सहज हो सकेगा। मेरे लिए कर सकोगी ये काम, पूजा?

श्रद्धापूर्वक पति के दृढ-प्रतिज्ञ चेहरे को एक पल ताक पूजा ने पूछा था-

अगर तुम्हें विश्वास है मैं ये कर सकूंगी,  तो आज इसी पल से मेरा ये जीवन इनका होकर रहेगा।

आशीष का चेहरा चमक उठा था।

घर के कार्य पूर्ण कर पूजा आशीष के साथ ही अस्पताल चली जाती थी। अधिकांश रोगी युवक ही थे। उनके पास बैठ, उनकी पीड़ा समेटती पूजा उन्हें हंसाती जाती थी। कभी गीतों के कैसेट बजते, कभी किसी युवा कलाकार की उंगलियाँ पकड़ चित्रकारी कराती। पूजा का मन अवसाद से परिपूर्ण हो उठता। क्या सपने देखे थे इन्होंने और आज आकाश तक उड़ान भरने की आकांक्षा रखने वाले ये पंछी अपने हाथ का ग्रास मुंह तक ले जाने में असमर्थ थे। सबको पूजा के आने की प्रतीक्षा रहती। पूजा को देख उनके चेहरे खिल उठते। नर्से शिकायत करतीं।

पूजा दीदी, आपके सामने हमें कोई लिफ्ट नहीं देता।

पूजा के साथ अब कुछ समाज-सेविकाएँ भी अस्पताल में रोगियों की सेवा को आने लगी थीं।

कार्य के प्रति समर्पित पत्नी की ओर अनुरागभरी दृष्टि डाल एक दिन डॉ आशीष ने पूजा से कहा था-

बी0ए0 में तुम्हारा एक विषय मनोविज्ञान था पूजा,  मैं चाहता हूं मानसिक रूप से पिछड़ों के लिए एक आनन्द घर की स्थापना करो।

निरूत्तर पूजा से फिर कहा था उन्होंने-

...............मुझे तुम्हारी शक्ति में विश्वास है, पूजा। राहुल पढ़ने चला गया है तुम घर पर अकेली ही तो रह जाती हो। डॉ गुप्ता तुम्हें गाइड करेगे। मेरा स्वप्न साकार कर सकोगी, पूजा..........तुम्हारे आनन्द घर में सब आनन्द पा सकेंगे न, पूजा?

स्वीकृति में पूजा के नयन छलछला आए थे।

उत्साहपूर्वक आनंद घर शुरू किया गया था। समाचार पत्रों ने विस्तार से डॉ आशीष और उनकी पत्नी पूजा के कार्यों की सराहना की थी।

अस्पताल का एक भाग डॉ आशीष ने शोध-कार्य के लिए विकसित किया था। सशक्त माँसपेशियाँ को निर्जीव कर देने वाले शत्रु को पकड़कर नष्ट कर देने का मानो डॉ आशीष ने प्रण कर रखा था। अपनी सफलता का उन्हें पूर्ण विश्वास था-

देख लेना एक दिन इस रोग को समूल नष्ट कर दिया जाएगा, पूजा......काश ये काम जल्दी हो पाता। पूजा उनकी अकुलाहट समझती थी-

हे भगवान, इनकी साधना सफल करना।

उस दिन आनन्द- घर में एक युवक को देख पूजा चौंक उठी थी- किससे साम्य था उस मुखाकृति का? उसके पास जाने को पूजा ने जैसे ही पाँव बढ़ाए, सिस्टर नंदिता ने आकर कहा था-

राहुल भइया आए हैं, बाहर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। राहुल के अचानक कॉलेज से आने की सूचना पा, वह तुरन्त लौट पड़ी थी। बाहर खड़े राहुल का देख पूछा था-

क्या हुआ, यूँ अचानक कैसे आ गए?

फ़ाइनल इअर स्टूडेंट्स का इंडिस्ट्रियल टूर था, रास्ते में एक दिन को रूक गया। कल धनबाद जाना है मॉम। जल्दी चलो, मेरे फ्रेंड्स वेट कर रहे हैं- मेरी ब्यूटीफुल मॉम को देखने को सब उत्सुक हैं।

छिः, शर्म नहीं आती, इत्ता बड़ा हो गया पर बातें वही रहीं। पूजा घर आ गई थी।

एक दिन की जगह दो दिन रूककर राहुल और उसके मित्र धनबाद गए थे। दो दिनों तक घर उनके ठहाकों से गूँजता रहा था। उनके चले जाने के बाद गहरा सन्नाटा सा छा गया था। कुर्सी पर सिर टिकाए पूजा आँखें बंद किए बैठी थी। न जोन कब आशीष कमरे में आ गए थे। पूजा के माथे पर स्नेह से हाथ धर कर पूछा था-

थक गई या बेटे की याद आ रही है?

अरे आप कब आए, पता ही नहीं लगा। चाय मंगवाऊं?

तुमने जवाब नहीं दिया, तबियत कैसी है? आशीष ने फिर पूछा था।

घर में इतना अच्छा डॉक्टर हो तो भला रोग प्रवेश का साहस कर सकता है?

जानती हो आज कौन मिला था?

मैं अन्तर्यामी तो हूं नहीं,  पर जरूर कोई अपना ही मिला होगा............. कौन था?

डॉकटर मनोज................।

मनोज.................यहाँ...............?

हाँ, कल संध्या उसके बेटे को तुम्हारे आनन्द घर में प्रवेश दिया गया है। आज उसी के विषय में बात करने आया था।

क्या हुआ उसके बेटे को? अचानक ‘आनन्द घर’ के उस अपरिचित युवक का चेहरा पूजा के नयनों के समक्ष कौंध गया था।

एक त्रासदी है उसका जीवन.............. डॉ आशीष चुप हो गए थे।

मुझे ठीक-ठीक बताओ, आशीष ............ क्या बात है?

डॉ मनोज का पुत्र राजन, शरीर से पूर्ण विकसित युवा है पूजा,  पर मानसिक दृष्टि से वह दस वर्ष का बालक है........वैसा ही कोमल मन है उसका। डॉ आशीष का स्वर उदास था।

ओह! ..................ये तो भगवान का मनोज के प्रति अन्याय है........... पूजा दुःखी हो उठी थी।

जानती हो क्या कह रहा था मनोज? उसका ख्याल है, अपनी युवावस्था में किसी का दिल तोड़ने के अपराध के कारण वह शापित है।

ये झूठ है, सरासर गलत है। तुम तो मुझे जानते हो आशीष, मैंने सपने में भी ये नहीं चाहा होगा। पूजा कातर हो उठी थी।

जानता हूं,  अपनी पूजा को मुझसे ज्यादा कौन पहिचानेगा? इसीलिए तो उसे कल खाने पर बुलाया है।

डिनर की तैयारी कर पूजा बाहर बरामदे में आ बैठ गई थी। अतीत आज जबरन वर्तमान को ठेल, उसका स्थान ले बैठा था।

कम्पनी बाग में लगे लाल गुलाब को देख पूजा मुग्ध हो गई थी-

कितना सुन्दर गुलाब है, मनोज- लाल रंग में अजीब आकर्षण है न?

दो दिन से ज्यादा नहीं टिकेगा ये रंग। कल तक शायद सारी पंखुरियाँ झड़ चुकी होंगी।

कितनी वीभत्स कल्पना है तुम्हारी। पूजा रूष्ट हो उठी थी।

मैं व्यवहारिक आदमी हूं,  कविता करना नहीं जानता, पर एक वादा है- विवाह के बाद तुम्हें फूलों की तरह सजा-संवार कर जरूर रखूंगा।

और अगर पांखुरी की तरह कभी मैं झड़ जाऊं तो, मान लो लंगड़ी हो जाऊं?

मनोज ने पूजा के अधरों पर अपनी हथेली रख दी थी।

मुझे अपंगता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं आज कहा सो माफ किया,  आगे कभी ऐसी अपशकुनी बात मुंह से भी नहीं निकालना समझीं।

सामने गेट को खोलते आशीष के पीछे वह अधेड़ सा व्यक्ति क्या मनोज था।

आशीष के साथ आए मनोज ने हाथ जोड़कर जब अभिवादन किया तो मानो पूजा सोते से जागी थी। नमस्ते................।

तुम दोनों तो परिचित हो इसलिए परिचय की औपचारिकता नहीं निभा रहा ऊं। पूजा टेक केयर आफ योर गेस्ट,  मैं फ्रेश होकर अभी आया। एक्सक्यूज मी, मनोज।

टेक योर टाइम। डॉ मनोज ने कहा था।

बैठिए........... पूजा ने कुर्सी आगे खिसकाई थी।

अच्छी तो हैं.............।।

जी................

आपसे माफ़ी माँगने को बेचैन था, डॉ आशीष से कहा था..........वे बोले तुम स्वयं ही माँग लेना।

माफ़ी....क्यों........?

वर्षों से मैं जिस आग में जल रहा हूं- समझ नहीं सकेंगी।

कैसी आग,  ड़ॉ मनोज? अब मैं पहेलियाँ बूझने की उम्र पार कर चुकी हूं। पूजा का स्वर गम्भीर था।

राजन के विषय में डॉ आशीष ने बताया ही होगा। उसके कारण पिछले सत्रह वर्षो से जो मानसिक यातना झेल रहा हूं, , शब्दों में बता पाना संभव नहीं। एक दिन काल्पनिक भय के कारण इलाहाबाद में अपना सब कुछ छोड़, भाग आया था शायद ये उसी का दंड है......। मनोज का स्वर भावुक हो उठा था।

एक डॉक्टर को ये भावुकता शोभा नहीं देती , डॉ मनोज। इस प्रकार के अन्धविश्वास एक साधारण व्यक्ति से अपेक्षित हैं, डॉक्टर से नहीं........। पूजा का स्वर दृढ था।

बहुत अभागा हूं, पूजा जी। बेटे का जन्म होने के बाद से अपने को दोष देता रहाहूं। पत्नी भी बारह वर्षीय पुत्र को मुझ पर छोड़ चली गई...... बहुत अकेला पड़ गया हूं। समाचार पत्रों में आपके आनन्द- घर की बात पढ़कर उसे यहाँ ले आया हूं। मेरे अपराध के लिए मुझे क्षमा कर सकेंगी, पूजा जी

एक बार पहले अपमानित हो चुकी हुँ डॉ मनोज, आज माफ़ी माँगकर और अपमानित न करें। आज जो कुछ पा सकी हूं,  उसके बाद किसी से भी कोई शिकायत शेष नहीं रह गई है।

लेकिन मैं अपने को कैसे समझाऊं,  कैसे अपने को माफ करूँ? मनोज का स्वर कातर था।

आशीष कमरे में आ गए थे। मनोज के कंधे पर हाथ धर कहा था-

बी ब्रेव माई फ्रेंड, राजन की तुम चिन्ता छोड़ दो। हमारी पत्नी के ‘आनन्द घर’ में उसे बस आनन्द ही मिलेगा। पूजा तुम्हारे सुख की भागी भले ही नहीं बन सकी-तुम्हारे दुःख के भागी, हम दोनों हैं। राजन की देख-रेख का दायित्व ले सकोगी न, पूजा?

राजन के जीवन का एक-एक पल आनन्दमय बनाने का प्रयास करूँगी आशीष, तुम्हें मुझ पर विश्वास है न?

डॉ आशीष, मैं, आप और पूजा जी का आजीवन आभारी रहूंगा। कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं मेरे पास। मनोज का स्वर बेहद आभारी था।

आशीष ने मनोज के कंधे थपथपा पूजा से कहा था-

अब खाना मिलेगा देवीजी या ड़ॉ मनोज भूखे ही वापिस जाएँगे। आशीष किस सहजता से गम्भीर वातावरण भी हल्का कर देते हैं। पूजा हल्के से मुस्करा उठी थी।

मनोज के चले जाने के बाद पूजा रात भर सो नहीं सकी थी। करवट बदलती पूजा के सिर पर हाथ धर, आशीष ने मानो मौन सांत्वना देनी चाही थी।

बहुत सवेरे उठने का डॉ आशीष को अभ्यास था। गार्डेन का चक्कर लगाना उन्हें अच्छा लगता था। पूजा को जल्दी उठा देख उन्हें आश्चर्य हुआ था-

क्या बात हैं, आज बहुत जल्दी उठ गई? तबियत तो ठीक है?

मैं सोच रही थीडॉ मनोज को कैसा लगेगा- राजन को यहाँ छोड़कर एकदम अकेले पड़ जाएंगे न?

इसीलिए तो वह विवाह कर रहे हैं................।

क्या................आ....................?

ये सच है पूजा...................।

पर इस उम्र में, बेटे को इस हालत में छोड़................?

हर व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण होता है पूजा, तुम ही सोचो क्या सुख पाया है उस व्यक्ति ने? अगर हम मनोज को, जीवन के कुछ वर्ष सुख से जीने में सहायता कर सकें, तो क्या गलत है?

तुम.......... इन्सान नहीं देवता हो, आशीष। पूजा एकटक पति के उज्ज्वल मुख को निहारती मुग्ध थी।

ये बहुत पुराना डॉयलाग है, पूजा। बताना चाहता था, तुमने जो गुलाब का पौधा लगाया था उसमें आज पहला फूल खिला है। उसका रंग-रूप देख मुग्ध रह जाओगी- एकदम तुम्हारी प्रतिछवि है।

डॉ आशीष के आगे बढे हाथ में अपनी हथेली दे पूजा मुस्करा दी थी।

एक नया गुलाब उनकी प्रतीक्षा कर रहा था।

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