महात्मा गाँधी जी बचपन से ही सत्य और अहिंसा का पालन करते थे। कभी झूठ नहीं बोलते थे, कभी गलत काम नहीं करते थे। ये बातें उन्होंने अपनी माँ से सीखी थीं। जानते हो उन्होंने एक बार माँ को भी सच का पाठ पढ़ाया था।
2 अक्टूबर, 1869 को करमचंद गाँधी के घर पुत्र का जन्म हुआ। शिशु का नाम मोहनदास रखा गया। उसकी माँ पुतलीबाई प्यार से मोहन को मोनिया कहकर पुकारतीं। मोहन भी अपनी माँ को बहुत चाहता था। माँ की हर बात ध्यान से सुनता और उसे पूरा करने की कोशिश करता।
बचपन से मोहन की बुद्धि बहुत तेज थी। वह सवाल पूछ-पूछ कर माँ को परेशान कर डालता। मोहन के घर में एक कुआँ था। कुएँ के चारों ओर पेड़-पौधे लगे हुए थे। कुएँ के कारण बच्चों को पेड़ पर चढ़ना मना था। मोहन सबकी आँख बचा, जब-तब पेड़ पर चढ़ जाता। एक दिन उसके बड़े भाई ने मोहन को कुएँ के पास वाले पेड़ पर चढे़ देखा। उन्होंने मोहन से कहा-
”मोहन, तुझे पेड़ पर चढ़ने को मना किया था। पेड़ पर क्यों चढ़ा है, चल नीचे उतर।“
”नहीं, हम नहीं उतरेंगे। हमें पेड़ पर मजा आ रहा है।“
क्रोधित भाई ने मोहन को चाँटा मार दिया रोता हुआ मोहन माँ के पास पहुं.चा और बड़े भाई की शिकायत करने लगा।
”माँ, बड़े भइया ने हमें चाँटा मारा। तुम भइया को डाँटो।“
माँ काम में उलझी हुई थी। मोहन माँ से बार-बार भाई को डाँटने की बात कहता गया। तंग आकर माँ कह बैठी-
”उसने तुझे मारा है न? जा, तू भी उसे मार दे। मेरा पीछा छोड़, मोनिया। तंग मत कर।“
आँसू पोंछ मोहन ने कहा-
”यह तुम क्या कह रही हो, माँ? तुम तो कहती हो अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। भइया मुझसे बड़े हैं। मैं बड़े भइया पर हाथ कैसे उठा सकता हूँ? हाँ तुम भइया से बड़ी हो। तुम उन्हें समझा सकती हो कि वह मुझे न मारें।“
मोहन की बात सुन, माँ को अपनी भूल समझ में आ गई। हाथ का काम छोड़, माँ ने मोहन को सीने से चिपटा लिया। उनकी आँखों से खुशी के आँसू बह चले-
”तू मेरा राजा बेटा है, मोनिया। आज तूने अपनी माँ की भूल बता दी। हमेशा सच्चाई और ईमानदारी की राह पर चलना, मेरे लाल।“
मोहन ने अपने घर और आसपास एक और बात देखी। उसने देखा कि ऊंची जाति के लोग मेहतर आदि को नीची निगाह से देखते। अगर गलती से कोई ऊंची जाति वाला नीची जाति वाले से छू जाए तो उसे नहाना पड़ता। मोहन की समझ में यह बात नहीं आती कि इंसानों के बीच यह अंतर क्यों है? एक दिन मोहन का बदन, उनके घर में सफ़ाई का काम करने वाले से छू गया। उन्होंने माँ से कहा-
”माँ, गलती से मैंने मेहतर को छू लिया। मुझे नहला दो।“
माँ सोच में पड़ गई। उस दिन मौसम ठंडा था। शाम के समय नहलाना क्या ठीक होगा? कुछ सोचकर माँ ने कहा-
”यह नहाने का समय नहीं है। जा बाजार में किसी मुसलमान को छू आ। फिर तुझे नहाना नहीं पड़ेगा।“
मोहन सोच में पड़ गया। मनुष्य तो सब एक से हैं। एक को छूने पर नहाना पड़ता है, दूसरे को छू लेने से नहाना नहीं पड़ता, ऐसा क्यों है?
माँ से पूछने पर भी सही उत्तर नहीं मिल सका। यह सवाल मोहन के मन में हमेशा बना रहा। जब वे बड़े हुए तो उन्होंने लोगों को यही समझाया-
”सारे मनुष्य भगवान के बनाए हुए हैं। सब मनुष्य समान हैं। कोई जन्म से ऊंचा या नीचा, बड़ा या छोटा नहीं हो जाता। सबको प्यार करना ही ठीक बात है।“
बचपन में मोहन की माँ उसे राजा हरिश्चंद्र और श्रवण कुमार की कहानियाँ सुनाया करतीं। मोहन के मन पर इन कहानियों ने गहरा असर डाला। उन्होंने तय किया वे भी श्रवण कुमार की तरह अपने माता-पिता का कहना मानेंगे उनकी सेवा करेंगे। घर में सब उन्हें खूब प्यार करते।
हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद मोहनदास बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए। उनकी माँ ने सुना था इंग्लैंड में लोग शराब पीते हैं। माँस खाते हैं। मोहनदास से उनकी माँ ने वचन लिया-
”बेटा, प्रतिज्ञा करो। तुम वहाँ शराब नहीं पियोगे, माँस नहीं खाओगे। मन लगाकर पढ़ाई करोगे।“
मोहन ने माँ के सामने शपथ ली- ”माँ मैं कभी शराब नहीं पीऊंगा, माँस नहीं खाऊंगा। बैरिस्टर बनकर घर लौटूँगा।“
इंग्लैंड में शराब और माँस के बिना रहना कठिन काम था, पर मोहनदास ने माँ को दिए वचन का पूरा पालन किया। उन्होंने कभी माँस नहीं खाया और कभी मदिरा नहीं चखी। पूरी मेहनत के साथ पढ़ाई पूरी करके बैरिस्टर बने। घर लौटने पर उन्हें अपनी माँ नहीं मिल सकीं। जब वह इंग्लैंड में थे, उनकी माँ की मृत्यु हो गई थी। मोहनदास को माँ से न मिल पाने का बहुत दुख रहा।
मोहनदास ने भारत की आज़ादी के लिए वकालत छोड़ दी। अंगे्रजी का शासन समाप्त करने के लिए उन्होंने बहुत त्याग किए। वे कई बार जेल गए। अंगे्रजों के अत्याचार सहे। अंत में भारत स्वाधीन हुआ।
सारा देश मोहनदास कमरचंद गाँधी को प्यार करता था। उन्होंने हमेशा सादा जीवन बिताया, इसीलिए वह महात्मा गाँधी कहलाए। भारतवासी उन्हें ‘बापू’ कहते हैं। महात्मा गाँधी ने सारे विश्व को शांति और अहिंसा का पाठ पढ़ाया। गाँधी जी का नाम भारत में ही नहीं, विदेशों में भी सम्मान के साथ लिया जाता है।
Pahlee baar Gandhiji ke baareme kayee jaankaariyan milee...bahut khoob!
ReplyDeleteSwagat hai!
Mahatma jaisa aajtak is dhartee par dooja hua nahi!
ReplyDeleteLikhtee rahen! Hamara gyan wardhan hoga!
Pushpa ji,
ReplyDeleteBahut hee prerak aur gyanvardhak ---sansmaran..lekh hai apka.aise preranapad sahitya kee jaroorat bhee hai---shubhakamnaon ke satha.
Poonam
Achchha preranaprad prasang--aise lekhon,kahaniyon kee aj bahut jaroorat hai.hardik shubhakamnayen.
ReplyDeleteHemantKumar
very good you have put very knowledgeable storie about Our Nation Father.
ReplyDeleteBut we should apply in our life, which make us better than others also.
Rochak prastuti.
ReplyDeleteस्वागत और बधाई
ReplyDeletenarayan narayan
ReplyDeleteमित्रो,
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद्। अन्य कहानियों और उपन्यास पर भी आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है।
पुष्पा सक्सेना
मुझे यह कहते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है की आपके ब्लॉग से मुझे जैसे मेरी मंजिल मिल गयी है . धन्यवाद पुष्पाजी ! - अखिल
ReplyDeleteसक्सेना
Ati sundar prastuti. Suresh
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