12/16/09

फ्लोरिस्ट

 दृश्य - 1


समयः प्रातः काल

कैमरा एक मेडिकल कॉलेज को बाहर से देखता है।
कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं आ-जा रहे हैं। लड़कियों का ग्रुप बातें करता हुआ, हंसता-बोलता जा रहा है। वार्ड से डॉक्टर श्याम बाहर आ रहे हैं। कमीज़-पैन्ट के ऊपर डाक्टरों वाला सफेद कोट पहने हैं। आयु लगभग 27.28 वर्ष है। बाल बेतरतीब से हैं। चेहरे पर दाढ़ी है। डॉक्टर के सौम्य-सुंदर चेहरे पर उदासी है। वार्ड के बाहर बेंच पर बैठे मरीज़ डॉ श्याम का अभिवादन करते हैं। वह सिर हिलाकर उत्तर देते हैं।

डॉ श्याम सीढ़ियों से नीचे उतर रहे हैं। सीढ़ियों के नीचे सामने क्यारियों में सुंदर फूल खिले हैं। श्याम की दृष्टि फूलों पर पड़ती है। फूलों की क्यारियों के पास एक सुंदर युवती खड़ी है। वह फूलों को प्यार-भरी नज़र से देख रही है। अचानक नज़र उठाते ही युवती की दृष्टि डॉ श्याम पर पड़ती है। युवती की नज़रों में पहचान के भाव उभरते हैं। वह श्याम की ओर बढ़ आती है। युवती का नाम शिवानी है। वह विवाहिता है। सिल्क की साड़ी-ब्लाउज में उसका रूप खिल उठा है। गले में सोने की चेन, कानों में टॉप्स एक हाथ में घड़ी व दूसरे में कंगन है। उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है।

शिवानी ः- अर्रे श्याम। डॉ श्याम ही हो न तुम?

श्याम ः- जी....... ई........, माफ़ करें,  मैं पहचान नहीं पाया।

शिवानी ः- ये क्या हाल बना रखा है। इतने पास से न देखती तो शायद पहचान ही न पाती, और हाँ मुझे नहीं पहचाना,  मैं शिवानी हूं (हंसती है)

श्याम - ओह, आप बहुत बदल गई हैं, इसीलिए पहचान नहीं सका। (मुस्कराता है)

शिवनी - इतनी तो नहीं बदली कि तुम पहचान ही न पाओ। अपने सीनियर्स को इतनी जल्दी भुला देना ठीक नहीं है, डॉक्टर। अपनी रैगिंग तो याद होगी या वो भी भूल गए। (हंसती है)

श्याम - वो भी क्या भूलने की बात है? पहले तो कॉलेज के सारे बोर्ड साफ करवाए फिर आपके लिए नोट्स कॉपी करने पड़े थे। (हंसता है)

शिवानी - यह हुई न बात वर्ना मुझे तो लगा था नए चेहरों के सामने पुराने चेहरे बदरंग हो जाते हैं। (हंसती है)

श्याम - आपका चेहरा क्या कभी बदरंग हो सकता है? आप का खिला चेहरा तो हम जूनियर्स को कभी न थकने की प्रेरणा देता था। (मुस्कराता है)

शिवानी - वाह, थैंक्स फ़ॉर दि काम्प्लिमेंट्स। हाँ ये क्या आप-आप लगा रखा है, डोंट बी फ़ार्मल श्याम। मैं वही पुरानी शिवानी हूँ जिसके साथ तुम सब अपनी प्रेम-कहानियाँ शेयर किया करते थे। हाँ तुम्हारी प्रेम-कहानी का क्या रहा? शादी-वादी कर ली या अभी रोमांस ही चल रहा है? (हॅंसती है)

श्याम - किसकी बात कर रही हैं, आप?

शिवानी - कम ऑन, श्याम। लगता है इन कुछ सालों में काफ़ी बदल गए हो। चलो कॉफ़ी -हाउस में चलकर बैठते हैं, भई मेहमान हूँ तुम्हारी, मेज़बानी नहीं करोगे?

श्याम -कॉफ़ी-हाउस जाने की आदत छोड़ दी है, शिवानी।

शिवानी - क्या? ये तो अनहोनी हो गई। सोच रही हूँ तुम वही श्याम हो या उस श्याम के जुड़वां भाई हो? भई कॉलेज का कॉफ़ी-हाउस तो प्रेमियों का मिलन-स्थल था। सारे जोड़े वहीं तो मिलते थे। (हंसती है) सबके मिलने का वक्त तय रहा करता था।

श्याम - मैं सब कुछ भूल चुका हूँ, शिवानी। कुछ भी याद नहीं रहा। (उदास है)

शिवानी - (ग़ौर से श्याम को देखती है) ठीक कह रहे हो, ये बुझी-बुझी सी आवाज़, उतरा चेहरा, ये सब तो कोई दूसरी ही कहानी सुना रहे हैं। क्या कविता से धोखा खा गए, पर वो तो ऐसी लड़की नहीं थी।

श्याम - कविता तो कल्पना की चीज होती है, शिवानी। असल ज़िँदगी में कविता कब साकार हो पाती है?

शिवानी - अरे रे रे, ये तो मामला गंभीर नज़र आ रहा है। ऐसा करो,  तुम्हारी यादों की खिड़कियां खोलने के लिए हम कॉफ़ी-हाउस चलते हैं। हाँ, कॉफ़ी-हाउस का रास्ता याद है या वो भी भूल गए, मेरे देवदास। (हंसती है)

श्याम - रास्ते याद रखने से ही तो मंज़िल तक नहीं पहुँचा जा सकता, शिवानी।

शिवानी - सच कहूँ तो तुम्हारी ये उखड़ी-उखड़ी बातें सुनकर ताज्जुब हो रहा है। तुम ही तो कहा करते थे, ज़िंदगी में कुछ भी पाने के लिए बस हौसला चाहिए। अपने हौसले के बल पर ही तुमने न जाने कितने इनाम जीते, सर्जरी में एम.एस. किया, और आज?

श्याम - चलो, कॉफ़ी- हाउस ही चलते हैं। शायद वहां पुराने दिनों में लौट सकूँ।

शिवानी - एक बात कहना तो भूल ही गई। हॉस्पिटल के सामने अचानक ये इतने रंगीन फूल कैसे खिल आए, श्याम?  यहाँ तो पहले सूखी घास हुआ करती थी। प्यार से फूलों को सहलाती है।

श्याम - ये मेरी यादों के फूल हैं, शिवानी। अपने हाथों से इन्हें रोपा-सींचा और खिलाया है।

शिवानी - क्या, मतलब डॉक्टरी के साथ बागवानी भी शुरू कर दी है, श्याम? (हंसती है)

श्याम - हाँ, बागवानी, ही मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा सच है, शिवानी।

शिवानी - वाह, लगता है सच्चे प्रकृति-प्रेमी बन गए हो। चलो,कॉफ़ी की तलब उठ रही है।

दोनों जाते हैं। कैमरा दोनों को गेट से बाहर जाते देखता है।
 छात्र-छात्राएं, मरीज़ आदि को भी कैमरा देखता है। गेट से बाहर सड़क का दृश्य है। गेट के दाहिनी ओर थोड़ी ही दूर पर ‘इंडिया कॉफ़ी- हाउस’ का बोर्ड लगा है।
 बोर्ड पढ़कर कैमरा श्याम और शिवानी के साथ कॉफ़ी-हाउस में प्रविष्ट होता है।



दृश्य - 2

इंडिया कॉफ़ी- हाउस के अंदर का दृश्य। कॉफ़ी- हाउस में छात्र-छात्राओं, डाक्टरों की भीड़ है। कैंटीन के सर्विंग ब्वायज़, आवाज़ों पर कॉफ़ी, समोसे, इडली, दोसा आदि सर्व कर रहे हैं। श्याम और शिवानी एक कोने की खाली टेबिल पर बैठ़ते हैं। एक छोकरा उनके पास आता है। वह कमीज़ और नेकर पहने है, कंधे पर अंगोछा है। छोकरे के हाथ में पानी के दो ग्लास हैं। वह पानी मेज़ पर रखकर अभिवादन करता है।

छोकरा - अरे, डॉक्टर बाबू। आज बहुत दिन पीछे इधर आया है। क्या इन मेम साहब से शादी बनाई है, फिर कविता दीदी का क्या हुआ?

श्याम - अरे नहीं, रंगा। ये तो शिवानी दीदी हैं। इन्होंने भी इसी कॉलेज से डॉक्टरी की पढ़ाई की है।

छोकरा - ओह। तब तो हमसे ग़लती हो गया। हमको माफ़ करने का, दीदी।

शिवानी - कोई बात नहीं, रंगा। तुम कहाँ के रहने वाले हो?

छोकरा - पता नहीं,  दीदी। माँ-बाप होते तब न जानतां? जब से होश सम्हाला, सड़कों पर भटकता रहा। अब यही केंटीन हमारा घर है।

शिवानी - जिसका कोई नहीं होता, उसकी मदद भगवान करते हैं। तुम कभी हिम्मत नहीं हारना, रंगा। (प्रेरक मुस्कान)

छोकरा - हाँ,  दीदी। ये तो आप ठीक बोला। बताइए आपके लिए क्या स्पेशल लाऊं? (मुस्कराता है)

श्याम - एक कप बढिया सी गरमागरम कॉफ़ी और मसाला दोसा। क्यों शिवानी तुम्हें यहां का दोसा पसंद है न?

शिवानी - थैंक्स गॉड। तुम्हें मेरी पसंद तो याद रही, हाँ बस एक ही कप कॉफ़ी का ऑर्डर क्यों दिया, श्याम? तुम साथ नहीं दोगे?

श्याम - मैंने कॉफ़ी छोड़ दी है। रंगा मेरे लिए नींबू पानी ले आना।

छोकरा - अभी लाया साहब। (जाता है)

शिवानी - क्या कॉफ़ी की जगह नीबू- पानी? तुम्हें क्या हो गया है, श्याम? पहले तो हर एक घंटे के बाद तुम्हे कॉफ़ी की ज़रूरत पड़ती थी?

श्याम - पहले वाली सारी बातें कविता के साथ चली गईं, शिवानी।

शिवानी - लगता है गहरी चोट खाई है। मुझे पूरी कहानी नहीं सुनाओगे, श्याम? जब तक मैं थी कविता से तुम्हारी खूब नोकझोंक चला करती थी। सच कहूँ तो तुम उसके प्रति काफी कठोर थे। प्रिया के ख़त को पाकर ताज्जुब हुआ था।

श्याम - प्रिया ने क्या लिखा था?

शिवानी - यही कि हमेशा कविता पर व्यंग्य करते रहने वाला श्याम, कविता का दीवाना बन बैठा है। दोनों की जोड़ी जल्दी ही शादी के बंधन में बंधने वाली है। (हंसती हैं)

श्याम - मेरी छोड़ो, अपनी बताओ शिवानी। एम.एस. पूरा करते ही तुम तो अमरीका उड़ गई। हम सब मायूस ही रह गए (हंसता है)

शिवानी - वाह, ये हुई न बात। सच कहूँ तो मैं भी तुम्हें बहुत पसंद करती थी। यहाँ आते वक्त पुराने चेहरों में तुम्हारा ही चेहरा सबसे ज़्यादा याद आ रहा था। उम्र में बड़ी न होती तो तुमसे ही शादी कर लेती। (हंसती है)

श्याम - काश् ये सच पहले ही बता दिया होता तो तुम्हें अमरीका कभी न जाने देता। अब बताओ किससे शादी की है? कॉलेज में तो तुम्हारे कई दीवाने थे, पर तुमने उन बेचारों को लिफ्ट ही नहीं दी।

शिवानी - मैंने उसी के साथ शादी की है, जिसे बचपन से चाहती रही। डॉ अरूण अमरीका में कार्डियोलॉजिस्ट हैं। हम दोनों एक-दूसरे का इंतज़ार करते रहे और अब एक साथ हैं। (हंसती है)

श्याम - वाह। अपने प्यार की तुमने हवा भी नहीं लगने दी। इसीलिए आशिकों के दिल तोड़ डाले, ये बताओ यहाँ कैसे आना हुआ?

शिवानी - अरूण की बहन की शादी में इंडिया आई थी। पुराने कॉलेज को एक बार देखने का मोह हो आया।

श्याम - पुराने साथियों में से किससे मिलीं, शिवानी?

शिवानी - सबसे पहले तुम्हीं मिल गए, श्याम। कभी हमने एक-दूसरे के सुख-दुख बांटे हैं। मुझसे अपनी जिंदगी का दर्द नहीं बाँटोगे, श्याम?

श्याम - बताने को अब कुछ भी बाकी नहीं रहा, शिवानी।

शिवानी - राख में भी चिंगारी बची रह जाती है, श्याम।

श्याम - पर मैं तो ऊपर से नीचे तक राख बन चुका हूँ, शिवानी

शिवानी - गलत कह रहे हो, ये बेतरतीब बाल, बढ़ी दाढ़ी साफ बता रही है, तुम किसी का ग़म पाल रहे हो।

श्याम - हाँ, शिवानी। वह कविता की तरह आई और आँसुओं में डुबोकर चली गई।

(रंगा एक ट्रे में कॉफ़ी, नीबू-पानी, मसाला दोसा लेकर आता है। टेबल पर सजाकर रखता है।)

रंगा - शिवानी दीदी, आपके लिए स्पेशल कॉफ़ी और दोसा लाया है। अमरीका में ऐसी कॉफ़ी और दोसा नहीं मिलने का। (हंसता है)

शिवानी - तुम बहुत अच्छे लड़के हो, रंगा। कोशिश करो, खाली वक्त में पढ़ाई करने से तुम भी अपनी जिंदगी, सॅंवार सकते हो। श्याम, तुम रंगा की मदद कर सकते हो।

श्याम - ठीक कहती हो। रंगा की पढ़ाई की व्यवस्था ज़रूर करूँगा। रंगा मास्टर, तुमने शिवानी दीदी का दिल जीत लिया।

रंगा - थैंक्यू दीदी। आप भी बहुत अच्छी हैं। (हंसता हुआ जाता है)

शिवानी - सर्जरी डिपार्टमेंट वाले रेजीडेंट्स में, गर्ल इंटर्नीज़ के आने का सबसे ज़्यादा तुम्हें ही इंतज़ार रहता था न, श्याम। (हॅंसती है)

श्याम - हाँ, शिवानी, इंटर्न्स के आने से हमे काफ़ी मदद मिल जाती थी वर्ना ...............

शिवानी - ज़िंदगी बड़ी नीरस हो जाती थी, क्यों ठीक कहा न। (हॅंसती है)

श्याम - तुम्हीं बताओ पूरे वक्त चीर-फाड़ के बीच एक मुस्कराती लड़की से क्या गंभीर वातावरण हल्का नहीं हो जाता?  सच कहूँ तो तुम्हें सर्जरी करते देख बड़ा ताज्जुब होता था। मैं सोचता था सर्जरी लड़कियों का क्षेत्र नहीं है।

शिवानी - क्यों, क्या लड़कियाँ बस गाइनेकोलोजिस्ट ही बन सकती हैं? जनाब मैंने अपने काम से अमरीका में भी झंडे गाड़ दिए हैं। शिवानी मेहता एक जानी-मानी सर्जन है। (हॅंसती है)

श्याम - ठीक कहती हो। शिवानी। लड़कियाँ ऊपर से जितनी ही कोमल दिखती हैं, अंदर से उतनी ही दृढ़ होती हैं। (सोच में पड़ जाता है)

शिवानी - ये बात शायद कविता के बारे में कह रहे हो। देखने में बेहद डेलीकेट, क्यूट सी लड़की थी। मेडिकल प्रोफ़शन की जगह उसे मॉडेलिंग के लिए जाना चाहिए था।

श्याम - मैंने भी उसे ग़लत समझा था, पर बाद में अपने काम से उसने सबको आश्चर्य में डाल दिया। न जाने कहाँ से इतना उत्साह और ऊर्जा पाती थी, कविता। (खोया-खोया सा है)

शिवानी - प्रिया ने लिखा था, डा0 नेगी ने कविता को ”मोस्ट रिमार्केबल गर्ल ।ऑफ दि बैच“ का खिताब दिया था।ड़ॉ नेगी से यह खिताब पाने वाली कविता ज़रूर अपूर्व रही होगी, श्याम।

श्याम - हाँ, शिवानी। वह हर जगह, हर बात में रिमार्केबल थी।

शिवानी - कहानी कहाँ से शुरू करोगे, श्याम?

श्याम - लंबी कहानी है, पेशेंस रख सकोगी, शिवानी?

शिवानी - मेरे पेशेंस को चैलेंज कर रहे हो, श्याम? आज़मा कर देख ही लो। (हॅंसती है)

श्याम - तुम्हारे अमरीका जाने के बाद सीनियर रेज़ीडेंसी का चाँस मुझे मिला था। आज भी वो बात एकदम कल की बात की तरह याद है। सर्जरी वार्ड में कविता के साथ राहुल और तुम्हारी कज़िन प्रिया की डयूटी लगी थी। कविता के चेहरे पर जैसे डर सा छाया हुआ था। बड़े भोलेपन से अपनी बात कह गई थी...

कहानी फ्लैश बैक में शुरू होती है



दृश्य - 3
कैमरा देखता है---
हॉस्पिटल का सर्जरी- वार्ड। मरीज़ो के संबंधी बाहर बैठे हैं। डॉक्टर श्याम के साथ उनके सहयोगी डॉ प्रशान्त एक कमरे में बैठे हैं। कमरे में चार्ट लगे हुए हैं। डाक्टर की मेज़ पर प्रेस्क्रिप्शन पेपर्स कालिंग बेल, पेन स्टैंड, मरीज़ों की फ़ाइलें आदि रखी हैं। श्याम के सामने डॉ प्रशान्त बैठे हैं।

श्याम - आज के इंटर्नीज़ को उनकी डयूटी समझा दी हैं, प्रशान्त

प्रशान्त - हाँ, पहले  उन्हें डॉ नेगी के साथ राउंड पर जाना है। कल ग्यारह बजे बेड नं0 सेवन की टांग एम्प्यूटेट  की जानी है। कविता और प्रिया को असिस्ट करना है।

श्याम - ओ के। डॉ नेगी के राउंड में कहीं कोई कमी न रहे, इसका ध्यान रखना ज़रूरी है।

प्रशान्त - फ़िक्र की कोई बात नहीं है, मैंने सब चेक कर लिया है।

(दरवाजे़ पर नॉक करके कविता अंदर आने की अनुमति माँगती है। उसके साथ राहुल और प्रिया हैं)

कविता - मे आई कम इन, सर।

श्याम - कम इन

(तीनों अंदर आते हैं। श्याम के सामने खड़े होते हैं। श्याम का अभिवादन करते हैं।)

श्याम - गुड मॉर्निंग। सर्जरी वार्ड का काम कठिन है, यहाँ मेहनत करनी होगी।

कविता - जी, सर। हमारी जहाँ भी डयूटी लगी है, हमने पूरी मेहनत से काम किया है। (ओंठ भींचती है)

श्याम - डॉ नेगी के साथ राउंड में हर पेशेन्ट की केस-हिस्ट्री ध्यान से सुनना ज़रूरी है। कल ग्यारह बजे एक पेशेन्ट की टाँग काटी जानी है। डॉ कविता और डॉ प्रिया आपको असिस्ट करना। ज़रूरत पड़ने पर छोटी-मोटी सर्जरी आपको करनी पड़ सकती है, इसलिए हर सर्जरी को पूरी बारीकी से देखिएगा।

प्रशान्त - घबराने की ज़रूरत नहीं है, आपको मेजर सर्जरी नही करनी होगी। हो सकता है किसी का लम्प निकालना पड़े या छोटा-मोटा एपेंडिक्स का आपरेशन करना पड़े। (हंसता है)

(कविता सिहरती है)

कविता - एक बात कहें सर, न जाने क्या बात है, खून देखते ही मुझे चक्कर सा आ जाता है। क्या कल के टाँग काटी जाने वाले वाले केस में शामिल न रहने के लिए मुझे एक्स्क्यूज़ करेंगे? मुझे कोई दूसरा काम दे दीजिए।

प्रिया - सर, यह ठीक कह रही है। सचमुच यह खून देखकर अपसेट हो जाती है। क्लास में एक -दो बार  बेहोश भी हो चुकी है

श्याम - कमाल है, खून देखकर बेहोश हो जाती हैं फिर इस प्रोफेशन में आई ही क्यों?

(श्याम व्यंग्य करता है)

कविता - मम्मी चाहती थीं, मैं डॉक्टर बनूँ। सच कहूँ तो मैंने ख़ास कोशिश भी नहीं की, पर सेलेक्शन हो ही गया।

प्रिया - शायद तेरे पापा ने डोनेशन दिया होगा। आखिर अमीर पिता की इकलौती बेटी जो ठहरी।

(हॅंसती है। मज़ाक का पुट है)

श्याम - एडमीशन डोनेशन से भले ही हो जाए, यहाँ काम में कोई छूट नहीं है, डॉक्टर कविता। कल डॉ नेगी के साथ सर्जरी में आपको असिस्ट करना है, और हाँ याद रखिए वहाँ बेहोश होकर अपना तमाशा मत बनाइएगा, समझीं। (आवाज़ में कठोरता है)

कविता - कौन कहता है, मेरा एडमीशन डोनेशन से हुआ है। मैं नेशनल स्कॉलर हूँ, एंड फ़ॉर योर इन्फ़ार्मेशन सर, आई एम टॉपर ऑफ माई बैच।

प्रिया - यस सर। प्री-मेडिकल एक्ज़ाम्स में भी कविता की पूरे राज्य में सेकेंड पोज़ीशन थी। शी इज़ रिएली जीनियस।

श्याम - ठीक है, यहाँ तो इनका काम ही बताएगा, ये कितने पानी में हैं। (आवाज़ में चुनौती है)

कविता - आपको शिक़ायत का मौका नहीं मिलेगा, सर।



दृश्य - 4

कैमरा कविता के घर को बाहर से देख कर भीतर का दृश्य देखता है।
कविता के घर का दृश्य। आलीशान बॅंगले के पोर्टिको में कविता की कार रूकती है। ड्राईवर अदब से दरवाज़ा खोलता है। कविता उतर कर घर में प्रविष्ट होती है। कविता ड्राइंग- रूम से होकर अपने कमरे में जाती है। उसके कमरे में बढ़िया पलंग, ड्रेसिंग-टेबल, स्टडी-टेबल व चेयर है। अल्मारी में पुस्तकें सजी हैं। कविता अनमनी सी पलंग पर लेट जाती है। कविता की माँ आती हैं। वह साड़ी-ब्लाउज़ पहने हैं। कलाई में घड़ी व कंगन है। गले में सोने की चेन व टाप्स पहने हैं। वह कविता के पास आती हैं।

माँ - क्या बात है, बेटी?  यहाँ चुपचाप पड़ी है, तबियत तो ठीक है?

कविता - हाँ, बस यूँ ही, मन अच्छा नहीं है।

माँ - ज़रूर कोई बात है, वर्ना मेरी बेटी यूँ उदास नहीं होती। सच कह, क्या हुआ?

(पंलग की पाटी पर बैठ, कविता का सिर सहलाती है)

कविता - माँ, मेरी कमज़ोरी की हॅंसी उड़ाई जाती है।

माँ - तुझमें कौन सी कमज़ोरी है, कविता? मेरी बेटी तो हज़ारों में एक है।

कविता - नहीं माँ, तुम्हारी बेटी बहुत कमज़ोर है। बचपन से खून देखकर मैं घबरा जाती थी, फिर तुमने मुझे मेडिकल- प्रोफे़शन में जाने को क्यों प्रेरित किया, माँ?

माँ - देख कविता, जो इंसान अपनी कमज़ोरी पर विजय पा ले, वह ज़िदगी में कुछ भी कर सकता है। आखि़र तूने एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूरी की या नहीं? जो खून हम सबके शरीर में बहता है, उसे व्यर्थ बहने देने से बचाना, ड़ॉक्टर का कर्तव्य है। मैं चाहती हूँ तू सर्जन बनकर अपने डर पर विजय पा ले।

कविता - हाँ, माँ। मुझे उसकी चुनौती का जवाब देना है। मैं ज़रूर अपने भय पर विजय पा लूँगी।

माँ - किसकी चुनौती की बात कर रही है, कविता?

कविता - एक पेशेंट की टाँग कटती देखना आसान तो नहीं होगा, पर मैं ज़रा भी विचलित नहीं होऊंगी। किसी को कुछ कहने का मौका नहीं दूंगी।

माँ - हाँ, बेटी। सड़े अंग को निकालकर अगर जीवन दिया जा सके तो उसमें कैसा भय। पढ़ते वक्त ऑटोप्सी में भी तो निर्जीव शरीर से ही मानव-शरीर को जाना था न, कविता। समझ ले, उस मरीज़ की टॉंग निर्जीव है।

कविता - माँ तुमने किस आसानी से मेरे निश्चय को दृढ़ कर दिया, तुम कितनी अच्छी हो माँ।

(प्यार से माँ के गले में हाथ डालती है)

माँ - ठीक है, अब माँ का बहुत लाड़ हो गया। चल तेरे मन की पकौड़ियाँ बनवाई हैं।

कैमरा दोनों के साथ खाने के कमरे में जाता है।

(दोनों खाने के कमरे में जाती हैं। खाना सर्व करने वाला एक दस-ग्यारह बरस का लड़का है। वह हॅंसमुख लड़का है। उसका नाम रामू है)

रामू - वाह दीदी जी आ गई। हमने तो समझा आज हॉस्पिटल में दीदी का किसी मरीज़ से झगड़ा हो गया। (हॅंसता)

कविता - क्यों रे, क्या मैं तुझे झगड़ालू दिखती हूँ?

रामू - झगड़ालू लोगों को चेहरे से थोड़ी जाना जा सकता है, दीदी जी? पड़ोस की कमला ताई चेहरे से कितनी सीधी दिखती हैं। पर लड़ते वक्त उन्हें भगवान भी नहीं रोक पाते। (हॅंसता है)

माँ - चल, बहुत बकबक करने लगा है। दीदी की मनपसंद पकौड़ी और चाय ला।

रामू - चाय नहीं, दूध लाऊंगा। चाय पीने से रंग काला हो जाता है। शादी के वक्त दीदी का काला रंग नहीं चलेगा।

कविता - अब तू मार खाएगा। माँ, तुम्हारे प्यार ने इसे बिगाड़ दिया है। स्कूल में यही सब सीखता है।

रामू - स्कूल में क्या सीखूंगा, दीदी जी? रोज तो मास्टर लोग हड़ताल पर रहते हैं। (हॅंसता है)

कविता - ठीक है, बाबा तू अब भाग यहाँ से। (हॅंसती है)

माँ - कविता बेटी, एक बात कहनी है, तेरे पापा चाहते हैं अब तेरी शादी कर दी जाए। डॉक्टरी की पढ़ाई हो गई। एक साल इंटर्नशिप के बाद पक्की डाक्टर बन जाएगी।

कविता - नहीं, माँ। प्लीज़ पापा से कह दो, मैं एम.एस. के बाद ही शादी के बारे में सोच सकती हूँ।

माँ - वाह। कहाँ तो डाक्टरी की पढ़ाई के लिए तैयार नहीं थी, और अब सर्जरी में एम.एस. करेगी? (हॅंसती है)

कविता - हाँ, माँ। सिर्फ एम.बी.बी.एस. की डिग्री का मूल्य नहीं है, एम.डी. या एम.एस. किए बिना अच्छा जॉब नहीं मिल सकता।

माँ - तुझे कौन सी नौकरी करनी है? तेरे पापा तेरे लिए घर में ही अस्पताल खुलवा देंगे।

कविता - नहीं, माँ। आज तक मैंने जो भी पाया है, अपनी योग्यता के बलबूते पाया है, फिर भी लोग ताने देने से नहीं चूकते। मेरी हर उपलब्धि के पीछे पापा का हाथ बताया जाता है। काश़ पापा एम.एल.ए. न होकर कोई मामूली सी नौकरी करते।

माँ - कमाल करती है, अरे तू किस्मत वाली है। तेरे पापा का समाज में कितना नाम है, सब उनकी इज्ज़त करते हैं और तू चाहती है वो कोई मामूली से इंसान होते, तेरी अक्ल पर तो पत्थर पड़ गए हैं, कविता।

कविता - एक बात जान लो मां, मैं अपनी काबलियत से ही नौकरी पाऊंगी। पापा को अगर अस्पताल खोलना है तो ग़रीबों के लिए खै़राती अस्पताल खोल दें। उन्हें अपने अस्पताल के लिए बहुत से डॉक्टर मिल जाएंगे।

(रामू हाथ में खाने की प्लेट में पकौड़ियाँ लेकर आता है)

रामू - लीजिए दीदी जी, आपकी मनपसंद आलू-बैगन की पकौड़ियाँ लाया हूँ। हाँ पापा जी के खैराती अस्पताल में हमे कम्पांउंडर बना दीजिएगा। (हॅंसता है)

कविता - कम्पांउंडर बनने के लिए पहले मेट्रिक तो पास कर। हर वक्त शैतानी करता है। गाँव में तेरी माँ आस लगए बैठी है, उसका बेटा कुछ बनकर गाँव वापस जाएगा।

रामू - चिन्ता न करें दीदी जी, रामू कम्पांउंडर बनकर ही गाँव जाएगा। मेरी दीदी जी डाक्टरनी हैं तो मैं भी कम्पांउंडर बनकर रहूँगा।

कविता - ये हुई न बात। वाह महाराज ने पकौड़ियाँ तो बड़ी मज़ेदार बनाई हैं। काश़ कभी पापा भी हमारे साथ बैठकर पकौड़ियाँ खा पाते, पर उनके पास तो हमारे लिए वक्त ही नहीं है।

माँ - क्या करें, दुनिया जहाँन के दुख-दर्द वही तो दूर करते हैं।

रामू - हाँ माँजी, साहब को महाराज के हाथ की पकौड़ियाँ नहीं पाँच सितारा होटल की डिशेज भाती हैं। (हॅंसता है)

माँ - चुप रह, ऐसी बातें करेगा तो वापस गाँव भेज दूंगी। वो चाहें जितने भी बिज़ी रहें, हर वक्त हमारी चिन्ता करते हैं। बेटी के भविष्य के लिए ही तो वह इतनी मेहनत करते हैं।

कविता - अपना भविष्य तो हर इंसान खुद बनाता है। पापा को मेरी बैसाखी बनने की ज़रूरत नहीं है। मुझे तो उनका प्यार ही चाहिए था ..........................

माँ - वो तुझे बहुत प्यार करते हैं, बेटी। तेरे मुँह से जो निकला, पूरा होता है या नहीं?

कविता - छोड़ो माँ। जा रही हूँ, कल के लिए पढ़ना है।

(कविता कमरे से जाती है। माँ उसे जाते देखती है)



दृश्य - 5
 कैमरा हॉस्पिटल के सर्जरी- वार्ड के ऑपरेशन- थिएटर में प्रवेश करता है

सर्जरी वार्ड का आपरेशन थिएटर। डॉ नेगी के साथ डॉ श्याम, कविता और प्रिया सर्जरी विभाग के गाउन पहने सहायता के लिए खड़े हैं। हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क है। है। डॉ श्याम कविता को देखता है। दोनों की दृष्टि मिलती है। डॉ नेगी मरीज़ की टाँग एम्प्यूटेट कर रहे हैं। कविता अपने ओंठ भींचकर खड़ी है। चेहरे पर दृढ़ता ती है। श्याम से नज़र हटा कविता सर्जरी देखती है। डा0 नेगी को सिज़र्स थमाती है। सर्जरी समाप्त होती है। डॉ नेगी के साथ कविता और प्रिया बाहर आती हैं। डॉ नेगी उन्हें धन्यवाद देते हैं।

डॉ नेगी - थैंक्स डॉ कविता और डॉ प्रिया। आज का पहला एक्सपीरियंस कैसा रहा?

कविता - सच कहूँ तो पहले तो मैं नर्वस थी, निर्जीव शरीर के अंग कटते देखे हैं, पर एक जीवित इंसान को अंग-विहीन कर देने की बात से मन उदास हो जाता है।

डॉ नेगी - एक बात याद रखो, डॉक्टर को संवेदनशील होना चाहिए, पर किसी का जीवन बचाने के लिए कठोर निर्णय लेने में देर नहीं करनी चाहिए। संवेदनशीलता के साथ व्यावहारिकता और हिम्मत एक कुशल डॉक्टर के गुण होते हैं।

कविता - आपकी यह बात हमेशा याद रखूँगी। थैंक्स, डॉक्टर।

डॉ नेगी - ओ.के.। हाँ हर मरीज़ की केस-हिस्ट्री पूरी सावधानी से तैयार की जानी चाहिए इससे इलाज में सुविधा होती है। डॉ श्याम विल हेल्प यू टु प्रिपेयर दि केस-हिस्ट्री। तुम लकी हो,कविता जो डॉ श्याम के साथ काम करोगी। (डॉ नेगी के साथ डॅ श्याम जाता है।)

प्रिया - वाह कविता तूने तो कमाल ही कर दिया। मुझे तो डर था तू ज़रूर फ़ेंट हो जाएगी। (हॅंसती है)

कविता - नहीं, प्रिया। अब मैं कभी बेहोश नहीं होऊंगी क्योंकि मुझे सर्जन बनना है।

प्रिया - तू सर्जरी में एम.एस. करेगी? कम ऑन कविता, ये तो सबसे बड़ा मज़ाक होगा। (हॅंसती है)

कविता - यह तो वक्त ही बताएगा, प्रिया यह सच है या मज़ाक। चल, पेशेंट्स के चार्ट चेक कर लें।

(दोनों जाती हैं।)



दृश्य - 6

कैमरा कविता को काम करते हुए देखता है।
दृश्यों के माध्यम से कविता को डॉ नेगी और डॉ श्याम के साथ वार्ड के राउंड लेते दिखाया जाएगा।  डॉ श्याम मरीज़ों के चार्ट चेक करते हैं। केस-हिस्ट्री तैयार कराते है । कविता डॉ नेगी को एक मरीज़ की फ़ाइल देती है।

 कविता- सर, यह बेड नम्बर बीस की केस हिस्ट्री है। फ़ाइल देती है।
डॉ नेगी कविता द्वारा तैयार की गई केस-हिस्ट्री देख रहे हैं। फ़ाइल देख कर कहते हैं-

डॅा नेगी - एक्सलेंट जॉब। डॉ कविता तुमने मरीज़ की केस-हिस्ट्री इतनी अच्छी बनाई है जितनी शायद मैं या डॉ श्याम भी न बना पाएँ। ऐसे ही काम करती रहीं तो अच्छी डॉक्टर बन जाओगी। वैसे किस फ़ैकल्टी में पोस्ट ग्रैजुएशन करना चाहोगी।

कविता - सर, मैं सर्जरी में एम.एस. करना चाहती हूँ।

श्याम - क्यों, क्या अब किसी का खून बहता देख चक्कर नहीं आते?

(चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान है)

कविता - जी नहीं, मैंने अपनी कमज़ोरी पर विजय पाली है। डॉ श्याम, क्या मैंने आपको निराश किया है?

डॉ नेगी - नो-नो, तुम्हारे काम की तो मरीज़ तक तारीफ़ करते हैं। कल बेड नम्बर  नाइन की पेशेंट कह रही थी,  वह डॉ कविता से ही इलाज कराएगी। कविता उसकी बेटी से भी ज्यादा उसकी परवाह करती है।

कविता - थैंक्यू, सर। (चेहरे पर मुस्कान है)

डॉ नेगी - विश यू गुड लक कविता, तुम अच्छी सर्जन बन सकती हो। मुझे उम्मीद है तुम एम.एस. में एडमीशन के लिए ज़रूर क्वालीफ़ाई कर लोगी। ओ.के. श्याम, मैं चलता हूँ। तुम सम्हाल लेना।

श्याम - जी, सर। (डॉ नेगी जाते हैं। श्याम कविता की ओर देखता है)

श्याम - डॉ नेगी की बातों को सच मत मान बैठिएगा। वह तो सबको ऐसे ही उत्साहित करते हैं।

कविता - थैंक्स फ़ॉर दि एडवाइज़। मैं अपने को अच्छी तरह जानती हूँ। दूसरे मेरे बारे में क्या राय रखते हैं, मुझ पर उसका कतई असर नहीं होता, डॉ श्याम।

(अचानक शोर सा मचता है। स्ट्रेचर पर वार्ड- ब्वॉय एक युवती और एक बच्चे को लाते हैं। वार्ड-नर्स डॉ श्याम के पास आती है।)

नर्स - सर, इमर्जेंसी-केस है। कार एक्सीडेंट में हसबैंड की तत्काल मौत हो गई। पत्नी की हालत भी सीरियस है। बेचारा बच्चा अनाथ न हो जाए।

श्याम - तुरंत ऑपरेशन- थिएटर में ले चलो। कविता, डॉ प्रशान्त के साथ तुरंत पहुँचो।

(वार्ड- ब्वॉय स्ट्रेचर आपरेशन- थिएटर में ले जाते हैं। डॉ प्रशान्त के साथ कविता पहुँचती है। स्त्री खून में लथपथ है। डॉ श्याम चेक- अप कर रहे हैं तभी वह अंतिम सांस लेती है। श्याम के चेहरे पर निराशा आ जाती है)

श्याम - सॉरी, हम कुछ नहीं कर सकते। शी इज़ नो मोर। (सब आपरेशन थिएटर से बाहर आते हैं।

वार्ड-नर्स बच्चे को दूध पिला रही है। कविता की दृष्टि बच्चे पर पड़ती है।)

कविता - इस नन्हीं जान का क्या होगा, डॉक्टर?

श्याम - अगर बच्चे के माँ-बाप धनी हुए तो शायद कोई रिश्तेदार इसे पाल लें वर्ना अनाथालय तो हैं ही। प्रशान्त, कॉफ़ी की सख्त ज़रूरत है, लेट्स गो।

कविता - आप कितने कठोर हैं। इस बच्चे के लिए कोई संवेदना ही नहीं है?

प्रशान्त - यही दुनिया का सच है, कविता। चलो तुम्हें बढ़िया कॉफी पिला लाएँ। मूड बदल जाएगा।

कविता - नो थैंक्स। मेरा मूड नहीं बदल सकता।

श्याम - ऐसे कमज़ोर दिल के साथ ये सर्जन बनेंगी, प्रशान्त। (हॅंसता है)

कविता - सर्जन बनने का मतलब हृदयहीन बन जाना नहीं होता, डाक्टर

प्रशान्त - अपने सीनियर्स को क्या कॉम्प्लिमेंट्स दिए जा रहे हैं। आपकी हिम्मत की दाद देता हूँ। (मुस्कराता है)

कविता - आपने ठीक पहचाना। सच बात कहने में मुझे किसी का डर नहीं रहता। मैं वार्ड में जा रही हूँ।

(तेज़ी से चली जाती है। श्याम और प्रशान्त कॉफ़ी हाउस की ओर जाते हैं।)
कैमरा दोनो को जाते देखता है।



दृश्य - 6

कॉफी- हाउस में कविता और प्रिया बैठी हैं। दोनों के सामने कॉफी के  मग हैं।

कविता - तेरा काम कैसा चल रहा है, प्रिया? डॉ प्रशान्त अच्छे स्वभाव के हैं,  तेरा काम तो आसान होगा।

प्रिया - हाँ, वह हम इंटर्नीज़ का बहुत ख्याल रखते हैं। उनके साथ काम करना अच्छा लगता है। तेरा क्या हाल है? बड़ी थकी सी दिखाई दे रही है।

कविता - क्या कहूँ, जी-जान लगाकर काम करती हूँ। सब मेरे काम से खुश हैं, पर डॉ श्याम कोई न कोई कमी निकाल कर मूड खराब कर देते हैं। उन्हें तो इस ज़िंदगी में खुश नहीं कर पा।ऊंगी।

प्रिया - सम्हल के रहना, ऐसी नोकझोंक प्यार की पहली सीढ़ी होती है।

कविता - क्या कहा? प्यार और वो भी डॉ श्याम जैसे नीरस इंसान से जो हर समय मुझे ग़लत या कमज़ोर साबित करने की कोशिश करता है। नो वे,प्रिया। हाँ लगता है तू ज़रूर डॉ प्रशान्त को चाहने लगी है।

प्रिया - ना बाबा, मैं तो डॉक्टर से शादी नहीं करूँगी। घर में भी प्यार भरी बातों की जगह मरीज़ों की बातें करनी पड़ेंगी। हंसती है।

(दोनों हॅंसती हैं)

कविता - (घड़ी की ओर देखती है) ओह माई गॉड। इतनी देर हो गई, पता ही नहीं चला। शायद मेरी ज़रूरत पड़ी हो।

प्रिया - क्यों, क्या तेरा पेजर तेरे पास नहीं है? अगर तेरी ज़रूरत पड़ी होती तो तेरे पेजर पर बीप न आ जाती। वैसे भी हॉस्पिटल हम दोनों से ही नहीं चलता। (हॅंसती है)

(दोनों उठकर बाहर आती हैं। कैमरा दोनो को सड़क से हॉस्पिटल के गेट में प्रवेश करते देखता है)



दृश्य - 7
 कैमरा डॉ श्याम क कमरा देखता है।

डॉ श्याम का कमरा। कविता प्रिया के साथ पहुँचती है। श्याम के साथ डॉ प्रशान्त भी बैठे हैं। दोनों गम्भीर हैं।

श्याम - डॉ कविता, कहाँ थी आप? यहाँ मरीज की जान जा रही है और आप का कहीं पता ही नहीं?

प्रिया - सॉरी,  डॉक्टर। सुबह से हम दोनों बिज़ी थे। एक कप कॉफ़ी के लिए चले गए।

श्याम - मैं आपसे नहीं, डॉक्टर कविता से बात कर रहा हूँ। डॉ नेगी के सामने बड़ी-बड़ी बातें बनाती हैं, पर डयूटी कैसे निभाई जाती है, नहीं जानतीं। क्या अब ये भी बताना पड़ेगा कि इंटर्नीज़ की बीप पर फ़र्स्ट कॉल होती है।

कविता - लेकिन मुझे तो बीप नहीं मिली, डॉक्टर।

श्याम - बीप कैसे सुन पाती, हॅंसी-मज़ाक करते वक्त बेचारे पेशेंट्स को कौन याद रखे। कान सुन्न हो गए होंगे। अगर काम के लिए सीरियस नहीं थीं तो मेडिकल- प्रोफे़शन में आई ही क्यों?

कविता - आप बार-बार मुझे ये क्यों जताना चाहते हैं कि मैं इस प्रोफेशन के लिए अनफ़िट हूँ। मैंने कहा न मुझे बीपर पर कॉल नहीं मिली।

श्याम - एक बार नहीं, तीन बार कॉल किया था, झूठे बहानों से मुझे सख्त नफ़रत है।

कविता - मैं भी कभी झूठ नहीं बोलती, सर।

श्याम - ओ.के. मैं ही गलत हूँ। नाउ प्लीज गो टु बेड नं0 थर्टीन, अब तो सुन रही हैं न आप?

(कविता का चेहरा उदास है। वह कमरे से बाहर आती है। पीछे से प्रिया भी आती है)

प्रिया - सॉरी, कविता। मेरी ही वजह से तुझे इतनी बातें सुननी पड़ीं, पर सचमुच तेरे पेजर पर बीप तो सुनाई नहीं दी, पेजर ठीक तो है?

(कविता पेजर निकाल कर देखती हैं)

कविता - ओह माई गॉड, पेजर की बैटरी तो खत्म हो गई है। काम में इस कदर बिज़ी रही कि बैटरी पर ध्यान ही नहीं दे पाई। यह तो सरासर मेरी ही ग़लती थी।

प्रिया - चल, गलती हो गई, पर डॉ श्याम का इस तरह सबके सामने तेरा अपमान करना क्या ठीक था?

कविता - जाने दे, ये तो रोज़ की बात है। न जाने उन्हें मुझसे क्या दुश्मनी है। हमेशा मेरी कमियाँ ही ढूंढ़ते रहते हैं।

प्रिया - अरे, मैं अपनी डायरी तो ड़ॉ श्याम के रूम में ही छोड़ आई। तू चल, मैं आती हूँ।

(प्रिया तेजी से वापस लौटती है। डॉ श्याम के कमरे में पहुँचती है)

श्याम - कहिए, आपकी फ़्रेंड के मिजाज़ अब कैसे हैं? ये अमीर मां-बाप की बेटियां काम को सीरियसली क्यों लेंगी?

प्रशान्त - अब छोड़ भी, अरे भूल गए। इंटर्नशिप में हमसे भी तो ऐसी ग़लतियाँ हो जाया करती थीं।

श्याम - पर हम अपनी ग़लती मान भी लेते थे, यूँ बहस तो नहीं करते थे। न जाने अपने को क्या समझती है........

प्रशान्त - समझने को तो वह बहुत कुछ समझ सकती है। एम.एल.ए. की इकलौती बेटी है। सुनते हैं जल्दी ही मिनिस्टर बनने वाले हैं। चीफ़ मिनिस्टर के ख़ास आदमी हैं।

श्याम - एम.एल.ए. की बेटी होने का ये मतलब तो नहीं कि यहाँ भी रोब जमाए। पॉलिटीशियन के बच्चे भी अपने को राजा समझते हैं।

प्रिया - एक्सक्यूज मी, सर। कविता के पेजर की बैटरी डाउन थी। मैं भी उसके साथ थी, बीप हम तक नहीं पहुँची।

प्रशान्त - दूसरों पर विश्वास करना सीखो, श्याम। पुअर कविता, क्या कुछ नहीं कह डाला तुमने? वार्ड- ब्वॉय तक झाँक रहे थे।

प्रिया - वैसे भी सर, पिछले दो दिनों से कविता फ़ीवर में काम कर रही है। दवाइयों के सहारे डयूटी पूरी कर रही है। उसकी सिंसियरिटी पर शक करना ठीक नहीं। मैं अपनी डायरी लेने आई थी। अब जा रही हूँ। (जाती है)

प्रशान्त - प्रिया ठीक कह रही है। डॉ नेगी किसी की यूँ ही तारीफ़ नहीं करते। मैंने भी देखा है कविता बहुत मेहनत से काम करती है। जब और इंटर्नीज़ डयूटी पूरी करने के बाद आराम करने चली जाती हैं, कविता अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद भी मरीज़ों के साथ रह जाती है।  मरीज़ों की ब्लड- रिपोर्ट खुद कलेक्ट करती है, उसकी बनाई केस-हिस्ट्रीज़ दूसरों के लिए नमूना होती हैं।

श्याम - ओ.के.। मान लिया मैं ग़लती पर था, पर अब कविता-पुराण बंद करो।

प्रशान्त - देखता हूँ, जब से कविता की डयूटी यहाँ लगी है तू मौके बे मौके उस पर व्यंग्य करता है। बात क्या है, श्याम।

श्याम - शायद शुरूआत ही ठीक नहीं थी।

प्रशान्त - तो अब मध्यांतर सुखद बना डालो। शायद अंत सुखद हो जाए। (हॅंसता है)

श्याम - काश् मैं भी तुम्हारी तरह रोमांटिक नेचर का होता तो बात आसान होती। लड़कियाँ तुझ पर जान देती हैं।

प्रशान्त - अजी, आप भी कम नहीं हैं। पिछले साल ड्रामा फे़स्टिवल में तेरी हीरोइन नीना तो तुझ पर मर मिटी थी। (हॅंसता है)

श्याम - वैसे हम सबने मस्ती भी खूब की थी। खाली ऑपरेशन- थिएटर  में रिहर्सल किया करते थे। (हॅंसता है)

प्रशान्त - वो दिन भूल गए और आज बेचारी लड़कियों को फटकारते हो।

श्याम - कहा न सॉरी। अब तो माफ़ कर दे यार। हंसता है।

प्रशान्त - देर आए दुरूस्त आए। अच्छा चलता हूँ, घर में कुछ मेहमान आने वाले है। (उठता है)

श्याम - क्यों क्या कोई ख़ास मेहमान आ रहे हैं। बता सगाई कब कर रहा है?

प्रशान्त - जिस दिन कोई मन को भा गई, तुरन्त प्रोपोज़ करके शादी कर डालूँगा। (दोनों हंसते हैं)

कैमरा श्याम के साथ प्रशान्त को जाते देखता है। थोड़ी देर बाद दूसरी ओर से आ रही कविता को देखता है। कविता श्याम के पास आती है, सीरियस है।

कविता - बेड नं. थर्टीन की दो दिन बाद सर्जरी है। मैं आपको असिस्ट करूँगी। क्या निर्देश हैं?

श्याम - आई एम सॉरी, कविता। गुस्से में मैं कुछ ज़्यादा ही बोल गया

कविता - ग़लती मेरी थी, मैंने बैटरी पर ध्यान नहीं दिया।

श्याम - ऐसी भूल हो ही जाती है। मुझे माफ़ कर दो, कविता।

कविता - इट्स ओ.के. ,सर। माफ़ी माँगकर मुझे शर्मिंदा न करें। मुझे बैटरी का ध्यान रखना चाहिए था।

श्याम - इतनी व्यस्तता में ऐसी ग़लती हो जाना, मामूली बात है। मुझे अपना आपा नहीं खोना चाहिए था।

कविता - नहीं, सीरियस केस के लिए कॉल पर मेरे न पहुँचने से आपका मूड खराब होना वाजिब ही था, सर।

श्याम - चलिए दोनों का मूड ठीक करने के लिए कॉफ़ी-हाउस चलते हैं। (मुस्कराता है)

कविता - नो थैंक्स, सर। अभी मुझे कुछ पेशेंट्स की ब्लड- रिपोर्ट्स कलेक्ट करनी हैं।

श्याम - ब्लड रिपोर्ट तो नर्स या वार्ड- ब्वॉय भी कलेक्ट कर सकते हैं। कॉफी नहीं तो कोल्ड ड्रिंक चलेगी?  ठडा पीने से पारा उतर सकता है। मुसकराता है।

कविता - नहीं, सर। मैं जो निर्णय ले लेती हूँ, बदलती नहीं। प्लीज एक्सक्यूज़ मी।

(डॉ श्याम खड़े रह जाते हैं, कविता तेज़ी से बाहर चली जाती है।)

(दृश्य डॉ श्याम के गम्भीर चेहरे पर फ्रीज होता है)



दृश्य - 8
  
कैमरा कविता के घर के अंदर जाता है।


कविता के घर का दृश्य। कविता अपने कमरे में बैठी पढ़ रही है। उसके माता-पिता का प्रवेश। पिता खादी का कुर्ता-पाजामा पहने हैं। कविता उन्हें देखकर सिर उठाती है।

कविता - अरे पापा, आप? आज इस वक्त घर में?

पिता - हाँ, बेटी। बता तेरी इंटर्नशिप कैसी चल रही है? अगर कोई प्रॉबलेम हो तो बता, कॉलेज के प्रिंसिपल से कह दूँगा।

कविता - ओह नो, पापा। प्लीज मेरे कॉलेज के प्रिंसिपल से मेरे लिए कभी कोई फ़ेवर मत माँगिएगा। मेरी इंटर्नशिप में कोई समस्या नहीं है। वैसे मुझे खुशी है, आपको याद है, मैं इंटर्नशिप कर रही हूँ।

पिता - कमाल है, अपनी बेटी के बारे में नहीं जानूँगा। हाँ एक ख़ास बात कहने आया था।

कविता - कहिए, पापा?

पिता - आज शाम, शहर के नामी इंडस्ट्रियलिस्ट मि0 मेहता के घर हमे पार्टी में जाना है। मैं चाहता हूँ,  तुम हमारे साथ ज़रूर चलो। तैयार रहना।

कविता - पापा, मुझे पार्टीज़ में जाना पसंद नहीं।

पिता - उन्होंने ख़ास तौर से तुझे बुलाया है। उनका बेटा अमरीका में डॉक्टर है। मैंने सुना है तू एम.एस. सर्जरी में करना चाह रही है। एम.एस. के लिए अमरीका आइडियल कंट्री है। उनके बेटे से एडमीशन के बारे में जानकारी भी मिल जाएगी।

माँ - अब तेरे पापा, इतना कह रहे हैं तो मान भी जा, बेटी

पिता - ठीक है, मैं जाता हूं, शाम को सात बजे हमे चलना है।

कविता - जी, पापा।

(पिता तेज़ी से बाहर जाते हैं। माँ कविता के पास आती है)

माँ - कविता, आज तू मेरी प्याज़ी सितारों वाली साड़ी पहनकर पार्टी में चलना। तुझ पर खूब खिलेगी।

कविता - क्या बात है, मम्मी? कॉलेज के कलचरल प्रोग्राम में मैं तुम्हारी साड़ी पहनना चाहती थी तब तो तुमने कह दिया था,  मैं साड़ी खराब कर दूंगी और आज तुम खुद वही साड़ी ऑफ़र कर रही हो? (हॅंसती है)

माँ - अब तू डाक्टरनी जो बन गई है। (हॅंसती है)

कविता - नहीं माँ, मैं साड़ी नहीं सलवार-सूट में ही चलूंगी। मुझसे साड़ी नहीं सम्हलती।

माँ - कब तक साड़ी नहीं पहनेगी, बेटी? कल को शादी होगी क्या तब भी सलवार-सूट ही पहनेगी?

कविता - वाह, अगर अमरीका गई तब तो पैंट-कमीज़ पहननी होगी, मम्मी। (हॅंसती है)

माँ - अरे, जब अमरीका जाएगी तब जो जी चाहे पहनना-ओढ़ना। आज तो साड़ी पहन ले।

कविता - देखो माँ, एक बात समझ लो, पापा अगर अपने इंडस्ट्रियल दोस्त के बेटे से मेरा रिश्ता तय करना चाहते हैं तो मुझे वहाँ ले जाना बेकार है।

माँ - हर बात में ज़िद अच्छी नहीं लगती, कविता। तेरे पापा के सम्मान का सवाल है। तू चल कर तो देख, फिर जो जी में आए करना। (आवाज में नाराज़गी है)

कविता - ओ.के.। जब मेरे मन की ही चलनी है तो मुझे चलने में क्या ऐतराज़ है, पर एक शर्त है।

माँ - आ गई फिर शर्त पर। बता क्या है तेरी शर्त।

कविता - हम लोग जल्दी वापस आएँगे।

माँ - क्यों, कल तो इतवार है। कल तो तुझे हॉस्पिटल नहीं जाना है फिर लौटने की क्या जल्दी है?

कविता - कल हमारे कॉलेज की पिकनिक है। ठीक सात बजे बस स्टार्ट हो जाएगी। अगर मैं देर से पहुँची तो पिकनिक मिस हो जाएगी। आज रात जल्दी सोना होगा ताकि कल जल्दी उठ सकूँ

माँ - ठीक है, तेरे पापा से कह दूंगी, हम जल्दी लौट आएँगे।

कविता - थैंक्स, मम्मी। तुम बहुत अच्छी हो। (माँ के गले में बांहें डालती है। हॅंसती है)

माँ - अच्छा-अच्छा, बहुत माँ की तारीफ़ हो गई। थोड़ा आराम कर ले, फ्रेश हो जाएगी। इतनी मेहनत करती है, अपने पर भी ध्यान दिया कर। चेहरा उतरा-उतरा रहता है।

कविता - जो हुक्म, मेरी मम्मी। (दोनों हॅंसती हैं)



दृश्य - 9


कैमरा देखता है--
इंडस्ट्रियल मि0 मेहता का घर। घर आलीशान बंगला है। बाहर बिजली की झालर लगी है। कविता अपनी माँ और पापा के साथ कार में मि0 मेहता के घर जा रही है। कार बंगले के पोर्टिको में रूकती है। ड्राइवर गाड़ी का दरवाज़ा खोलता है। कविता के पापा, मम्मी व कविता उतरते हैं। कविता की मम्मी के हाथ में एक बड़ा बुके है। तीनों मेन दरवाज़े पर पहॅंचते हैं। दरवाज़ा एक बड़े हॉल में खुलता है। हॉल में तेज़ रोशनी है। बहुत से अतिथि हैं। मि0 मेहता, श्रीमती मेहता अपने पुत्र डॉ समीर के साथ दरवाज़े पर खड़े होकर आने वालों का स्वागत कर रहे हैं। मि0 मेहता कविता के पापा का बेटे से परिचय कराते हैं।

मि0 मेहता - समीर बेटे यह हमारे शहर के सम्मानित एम.एल.ए. राजेश कपूर जी हैं। मिसेज़ कपूर और उनके साथ हैं उनकी टैलेंटेड बेटी डॉ कविता.......... और ये है हमारा बेटा डॉ समीर। अमरीका में कार्डियोलॉजिस्ट है।

(श्रीमती कपूर फूलों का गुलदस्ता समीर को थमाती हैं)

श्री कपूर - वाह! अमरीका में लोगों के दिलों का इलाज करते हो। बड़ी खुशी होती है, जब अपने देश के बच्चे विदेशों में अपने अच्छे काम से नाम कमाते हैं।

मि0 मेहता - अब आपकी बेटी भी तो डॉक्टर है। उसे अमरीका क्यों नही भेज देते। सुना है कविता बेटी अपने बैच की टॉपर है। ऐसे ही स्टूडेंट्स तो माँ-बाप का नाम रौशन करते हैं।

समीर बेटे, कविता को अपने साथ ले जाओ। हम बुजुर्गो की कम्पनी में वह बोर हो जाएगी। (हॅंसते है)

समीर - माई प्लेज़र। आइए, कविता जी।

(दोनों बाहर बालकनी में जाते हैं। वेटर सबको ड्रिंक्स सर्व कर रहे हैं। समीर ऑरेंज जूस  का ग्लास कविता को थमाता है।)

कविता - थैंक्स।

समीर - आपको देखकर लगता नहीं कि आप डॉक्टर हैं।

कविता - क्यों क्या डॉक्टर के चेहरे पर उसका काम लिखा होता है? (मुस्कराती है)

समीर - असल में आप तो डॉक्टर नहीं, मॉडेल दिखती हैं। आपके जैसे शार्प  फ़ीचर्स और फ़िगर तो बेस्ट मॉडेल के पास भी शायद ही हों। (सीटी बजाता है)

कविता - लगता है, मॉडेलिंग की दुनिया के बारे में आपकी ख़ासी अच्छी नॉलेज है (मुस्कराती है)

समीर - अमरीका में रहता हूँ, वहाँ खुलापन है। जिसके पास अच्छी फ़िगर और आप जैसी सूरत हो उसके पीछे हज़ारों लोग रहते हैं। वैसे आप अमरीका के लिए बहुत सूटेबेल हैं। आप जैसी पत्नी पाना किसी का भी सपना होगा। (हॅंसता है।)

कविता - माफ़ कीजिएगा, मुझे अपने देश से बहुत प्यार है। अमरीका का जीवन मुझे रास नहीं आने वाला। मेरा यू.एस.ए. जाने का कतई कोई इरादा नहीं है।

समीर - कमाल है, आज की हर लड़की अमरीका के सपने देखती है और आप कहती हैं, आपको वहाँ का जीवन रास नहीं आएगा। जानती हैं वहाँ इंडियन डॉक्टर्स कितना कमाते हैं?

कविता - पैसा मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता, समीर जी।

समीर - हाँ मैं तो भूल ही गया, आप धनी माँ-बाप की इकलौती बैटी हैं, पर अमरीका की क्वालिटी ऑफ़ लाइफ़ यहाँ नहीं मिल सकती।

कविता - ये तो अपना-अपना सोच है, समीर जी। मुझे यहाँ की ज़िंदगी पसंद है। सोचती हूँ, कुछ दिनों किसी गाँव में जाकर काम करूँ। गाँवों में डॉक्टरों की बहुत कमी है।

समीर - आप मुझे समीर जी क्यों कह रही हैं? सिर्फ़ समीर ही काफ़ी है। अमरीका में तो बच्चे अपने माँ-बाप को भी उनके नाम से पुकारते हैं। वैसे आपने गाँव की ज़िंदगी नहीं देखी है। वहाँ इतनी गंदगी है कि आप साँस भी नहीं ले पाएँगी। आप जैसी ब्राइट डॉक्टर के लिए अमरीका में खुला आकाश है।

कविता - देखती हूँ, आप तो अमरीका से बहुत प्रभावित हैं, पर मेरी वहां। जाने में कोई दिलचस्पी नहीं।

समीर - मेरे साथ चलकर देखिए, ज़िंदगी का मज़ा आ जाएगा। (हॅंसता है)

कविता - थैंक्स। मैं जिंदगी का भरपूर मज़ा ले रही हूँ। अब इजाज़त चाहूँगी।

समीर - इतनी जल्दी क्यों? हाँ पापा कह रहे थे, आप सर्जरी में एम.एस. करना चाह रही है। मेरी राय है, सर्जरी लड़कियों का विषय नहीं है। यकीनन, हिन्दुस्तान में लेडी गायनोकोलॉजिस्ट्स की सख्त ज़रूरत है। पैसा बरसेगा।

कविता - आपकी राय के लिए शुक्र गुज़ार हूँ। मुझे अब जाना चाहिए।

समीर - अरे आपने अपनी हॉबीज़ तो बताई ही नहीं?  फ़ॉर योर इन्फ़ार्मेशन मुझे पार्टीज़ और क्लब-लाइफ पसंद है। आई इन्ज्वाय दैट लाइफ़ थौरोली।

कविता - मेरी कोई हॉबी नहीं है, बेहद बोर किस्म की किताबी कीड़ा हूँ। (हॅंसती है) एनी हाओ, नाइस मीटिंग यू।

(हाथ का ग्लास मेज़ पर रखती है। हॉल में जाती है। पीछे-पीछे विस्मित समीर जाता है। हॉल में कविता के पापा, माँ मेज़बान  मिस्टर तथा मिसेज़ मेहता के साथ बातें कर रहे हैं। हाथों में खाने की प्लेटें हैं। टैबल पर खाना सजा है। कविता व समीर को देख, सब मुस्कराते हैं।)

मि0 मेहता - कम ऑन। कहो कविता बेटी, कब अमरीका जा रही हो? (मुस्कराते हैं)

कविता - सोचना पड़ेगा, अंकल। माँ, कल मेरी पिकनिक है, हम चलें?

मिसेज़ मेहता - अरे वाह। पहली बार घर आई हो, बैठकर बातें भी नहीं कर पाए और जाने की जल्दी है। खाना तो खा लो समीर, प्लीज़ हेल्प कविता।

(समीर के साथ कविता मेज़ के पास जाती है। एक प्लेट में सलाद व थोड़ा सा दही व पुलाव लेती है। कविता माँ-बाप के साथ खड़ी होकर दो-चार चममच खाकर प्लेट रख देती है।)

मिसेज़ मेहता - तुमने तो कुछ खाया ही नहीं, कविता। क्या खाना पसंद नहीं आया?

कविता - नहीं, आँटी। खाना तो बहुत अच्छा है। मैं इतना ही खाती हूँ। (हॅंसती है)

मिसेज़ मेहता - हमारा समीर भी कैलोरीज़ गिन-गिन कर खाता है। हाँ नेक्स्ट सैटरडे को समीर डांस-पार्टी ऑर्गेनाइज़ कर रहा है। समीर तुमने कविता को इन्वाइट कर लिया या नहीं?

कविता - नहीं-नहीं, मुझे तो डांस ही नहीं आता, मैं डांस- पार्टी में आकर क्या करूँगी।

मि0 मेहता - क्यों भई, समीर तुम्हें स्टेप्स सिखा देगा। समीर तो डांसिंग में एक्सपर्ट है। क्यों, समीर।

समीर - माई प्लेजर, पापा। (हॅंसता है)

मि0 कपूर - ठीक है, अगर कविता फ्री हुई तो ज़रूर आएगी। वैसे तुम हमारे यहाँ कब आ रहे हो?

समीर - जब आप कहें, हाजिर हो जाऊंगा। (हॅंसता है)

मि0 कपूर - ठीक है, जल्दी ही दिन तय कर लेंगे। अभी तो तुम इंडिया में रहोगे न?

समीर - जी हाँ, चार हफ्ते तो रहना ही है। (हॅंसता है)

मिसेज कपूर - आप सबसे मिलकर बहुत खुशी हुई! आज कविता को कुछ काम है इसलिए जल्दी जाने की मज़बूरी है। आज के लिए माफ़ी चाहेंगे (सब अभिवादन करते हैं। कविता के साथ उसके माता-पिता कार में बैठकर वापस आते हैं। कार में कविता के पापा बात शुरू करते हैं।)

मि0 कपूर - कहो कविता बेटी, समीर के बारे में क्या राय है?

कविता - ऊपर से नीचे, तक ही नहीं अंदर से भी पूरे अमरीकी भक्त हैं। हिन्दुस्तान में उनकी कोई रूचि ही नहीं है। (हॅंसती है)

मि0 कपूर - अमरीका देश ही ऐसा है, कोई भी उसके रंग में रंग जाएगा। जानती है लाखों रूपए, महीने में कमाता है।

कविता - पापा, मुझे समीर या उनकी कमाई से कुछ लेना-देना नहीं है। ये चैप्टर यहीं बंद कर दीजिए।

मि0 कपूर - तेरा दिमाग समझ पाना आसान नहीं, न जाने क्या चाहती है। (क्षुब्ध दिखते हैं।)

(चलती कार पर कैमरा केंद्रित होता है)



दृश्य - 10

कैमरा कविता के कमरे में जाता है-


कविता का बेडरूम। वह घड़ी में अलार्म लगाकर सोने की तैयारी कर रही है। बैग में एक जोड़ी कपड़े रखकर पलंग पर लेटकर लाइट ऑफ़ कर देती है। हल्का संगीत चलता है। रात का अंधकार। सोती कविता पर कैमरा केंद्रित होता है।



दृश्य 11


कैमरा कविता के बेड रूम को देखता है।


समय प्रातः काल। कविता की माँ कविता को जगा रही है।

माँ - कविता बेटी, तुम्हें तो पिकनिक पर जाना है। जल्दी उठो। (कविता अंगड़ाई लेकर उठती है। घड़ी में सवा छह बजे है।। कविता कूद कर पलंग से उठती है।)

कविता - ओह माई गॉड। अलार्म बजा ही नहीं। अब क्या होगा, मम्मी?

माँ - दस-पंद्रह मिनट में तैयार हो जा। ड्राइवर तुझे तेरी बस तक कार से पहुँचा देगा। अगर बस छूट गई तो पिकनिक-प्लेस तक कार से चली जाना।

कविता - नहीं, मम्मी। मैं सबके साथ बस में ही पिकनिक पर जाऊंगी। मैं एक आम लड़की की तरह जीना चाहती हूँ। अगर बस छूट गई तो नहीं जाऊंगी।

माँ - तेरी बातें मेरी समझ से बाहर हैं। जानती है तेरे पापा को कितना बुरा लगता है जब तू कालेज जाने के लिए बस के इंतज़ार में बस-स्टैंड पर खड़ी रहती है।

कविता - मेरे कॉलेज की ज़्यादातर लड़कियाँ पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ही इस्तेमाल करती हैं। मुझमे कौन से सुरखाब के पर लगे हैं।

माँ - तू जाने तेरा काम जाने, पर तू सचमुच अनोखी है।

(माँ जाती है, कविता तेज़ी से बाथरूम में जाती है। जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाहर आती है। कार में ड्राइवर दरवाज़ा खोलता है। कविता बैठती है। कार तेज़ी से गेट से बाहर निकलकर मेन रोड पर आती है)



दृश्य - 12
 

 कॉलेज का बहरी दृश्य, कैमरा एक खुले मैदान मे खड़ी बसें देखता है। बस में स्टूडेंट्स बैठे हैं।--


कॉलेज के सामने 4 बसें खड़ी हैं। बसों को देखता हुआ कैमरा एक बस नं0 4 पर आकर रूकता है। बस के अंदर कॉलेज के स्टूडेंट्स और  इंटर्नीज़ बैठे हैं। सामने वाली सीट पर प्रिया बैठी है। उसके पास की जगह खाली है। डॉ श्याम एक शीट के साथ बस में अंदर आते है।। सब गुडमार्निंग कहते हैं।

श्याम - तो हम चलने के लिए तैयार हैं। कोई छूटा तो नहीं?

प्रिया - सर, अभी कविता नहीं आई है।

श्याम - उनकी नींद इतनी जल्दी शायद खुल नहीं पाई  हो, जरूर देर रात तक किसी पार्टी का मज़ा ले रही होगी। वीकेंड था न। (सब हॅंसते हैं। श्याम घड़ी देखता है)

श्याम - किसी एक की वजह से हम सब लेट नहीं हो सकते। हमे समय से निकलना है।

प्रिया - सर, बस पाँच मिनट और वेट कर लीजिए।  वो देखिए कविता की कार आ रही है। बस पहुंच ही गई ,प्लीज़, सर।

(कविता की कार बस के पास आकर रूकती है, कविता कार से उतर कर बस में चढ़ती है। श्याम को देखकर विश करती हैं)

कविता - गुड मॉर्निंग, सर।

श्याम -  यहां आने के लिए थैंक्स।  आपकी सुबह हो गई। शायद आपके ड्राइवर को भी देर में उठने की आदत है। (आवाज में व्यंग्य है)

कविता - आज कार में आना मेरी मज़बूरी थी।  आपकी जानकारी के लिए, सर मैं बस में ही आती-जाती हूँ।

(प्रिया इशारे से कविता को अपने पास बुलाती है)

प्रिया - आ, कविता। तेरे लिए प्लेस बचा रखी है।

(कविता बैठती है। श्याम ड्राइवर से बस चलाने को कहता है। ड्राइवर बस स्टार्ट करता है। श्याम एक सीट पर बैठता है। बस चलती है। स्टूडेंट्स शोर मचाते हैं।)

कविता - पिकनिक का सारा मूड ही खराब कर दिया।

प्रिया - छोड़, समझ ले, तेरे ग्रह, डॉ श्याम से नही मिलते। तीन महीने बाद तो दूसरे डिपार्टमेंट में पोस्टिंग होनी ही है।अब अपना मूड मत खराब कर।

 (बस में स्टूडेंट्स गीत गाते हैं। बस एक नदी के किनारे रूकती है। सब नीचे उतरते हैं। हंसी-खुशी का माहौल है। श्याम निर्देश देता है)

श्याम - आधे घंटे तक आप इस जगह का जायज़ा लेकर यहीं वापस आ जाइएगा। याद रखिए, टाइम- मैनेजमेंट का ध्यान रहे।

 कैमरे द्वारा कुछ सुंदर सीनों को दृश्यों में दिखाया जाएगा।

(सब स्टूडेंट्स इधर-उधर जाते हैं। प्रिया और कविता दूसरी लड़कियों के साथ एक ओर जाती हैं। आधे घंटे बाद सब वापस आते हैं।  डॉ श्याम, डॉ प्रशान्त दूसरे डाक्टरों के साथ बैठे बातें कर रहे हैं। कॉलेज के चपरासी, महाराज आदि चाय व नाश्ता सर्व कर रहे हैं। डॉ प्रशान्त सबको संबोधित करते हैं।)

प्रशान्त - चलो भई, आज लड़कों और लड़कियों के बीच अंताक्षरी का खेल खेला जाए।

राहुल - सर, जो जीतेगा, उसे क्या इनाम मिलेगा?

प्रशान्त - ये तो एक सीक्रेट है। पहले जीत कर तो दिखाओ।

राहुल - मुश्किल ये है, लड़कियाँ तो पढ़ते वक्त भी गाती हैं। हमारी प्रैक्टिस कम है। (सब हॅंसते हैं)

अंताक्षरी का प्रोग्राम शुरू होता है। एक के बाद एक कड़ी जोड़ी जा रही है। लड़कियों पर गीत रूकता है, सब एक-दूसरे को देख रही हैं। अचानक कविता की मीठी आवाज़ गूँजती है। सब गीत की मिठास पर मुग्ध हो, तालियाँ बजाते हैं। लड़कियों की टीम जीत जाती है। लड़कियाँ कविता की पीठ ठोंकती हैं। अंताक्षरी के बाद खाना परोसा जाता है। लंच के बाद पिकनिक समाप्त होती है। सब बस में बैठकर लौटते हैं।

कैमरा बस मे लड़कों और लड़कियों को गाते शोर मचाते देखता है।



दृश्य - 13
कैमरा सर्जरी वार्ड मे डॉ श्याम और डॉ प्रशांत को बातें करते देखता है।


सर्जरी वार्ड में डॉ प्रशान्त और डॉ श्याम बातें कर रहे हैं। कविता और प्रिया आती हैं। अभिवादन करती हैं।

प्रशान्त - डॉ कविता, आपको तो डॉक्टर की जगह गायिका बनना चाहिए था। क्या मीठा गला पाया है।

प्रिया - यस, सर। कल तो जीत का सेहरा कविता के माथे रहा।

प्रशान्त - इस बार एनुअल फ़क्शन ( वार्षिकोत्सव)  में कविता जी का सोलो साँग ज़रूर रहेगा। अच्छा, अब काम पर चलता हूँ। बाय, श्याम। चलें डॉ प्रिया, हमारे मरीज़ हमारी राह देख रहे होंगे।

प्रिया - यस, सर। (दोनों जाते हैं)

(श्याम एक लाल गुलाब कविता को देता है)

श्याम - मेरी ओर से एक प्यार भरी भेंट। एक उभरती गायिका के नाम।

कविता - थैंक्स, इस फूल की वजह?

श्याम - अपनी ग़लतियों के लिए, इस गुलाब की मार्फ़त माफ़ी माँग रहा हूँ। माफ कर सकेंगी?

कविता - आपने कोई ग़लती नहीं की है। मुझे फूल बहुत प्यारे हैं। (गुलाब लेकर, प्यार से सहलाती है)

श्याम - चलिए कहीं तो हमारी पसंद एक है। मैं भी फूलों के बीच पला हूँ।

कविता - सच? मैं हमेशा सोचती हूँ, कितना अच्छा होता बड़े से बंगले की जगह एक फूलों से घिरा छोटा सा घर होता।

श्याम - यह बात सोचने में ही अच्छी लगती है, कविता। बड़े घर का मोह छोड़ पाना आसान नहीं होता। माफ करना मैं तुम्हें कविता कह गया ... लेकिन मैंने जो कहा, वह मेरा पक्का यकीन है।

कविता - नहीं, ये बात मैं दिल से कह रही हूँ। हाँ आप हमे कविता ही कहें, मैं आपसे छोटी हूँ।

श्याम - तो चलें, इसी बात पर एक-एक कप कॉफ़ी हो जाए? (हॅंसता है)

कविता - और काम का क्या होगा?

श्याम - दस मिनट के लिए काम रूक सकता है। (हॅंसता है)

कविता - देखती हूँ, आपके सिद्धान्त बदलते जा रहे हैं। (मुस्कराती है)

(दोनों कॉफ़ी हाउस जाते हैं। रंगा कॉफी लाकर रखता हैं। दोनों उससे कुछ बातें करते हैं।

दृश्यों के माध्यम से श्याम और कविता को साथ-साथ कॉफ़ी-हाउस आते-जाते दिखाया जाता है। दोनों बातें करते हैं, हॅंसते हैं।



दृश्य - 14


कैमरा कविता के घर की सजावट देखता हुआ हॉल मे प्रविष्ट होता है।


कविता का घर। घर सजा हुआ है। कविता जैसे ही बेड-रूम से बाहर आती है, उसके माता-पिता उसे आशीर्वाद देते हैं। कविता उनके साथ घर में बने मंदिर में जाती है। सब हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं। कविता भजन गाती है। माँ मंदिर की रोली लेकर कविता के माथे पर टीका लगाती है।
कविता के पिता कविता के हाथ में कार की चाभी देते हैं।

पिता - कविता, बेटी। आज तुम्हारे 21 वें जन्मदिन पर हमारी ओर से यह कार तुम्हारे लिए है।

कविता - थैंक्स, पापा। घर में दो-दो गाड़ियाँ हैं। मुझे तो कार की ज़रूरत ही नहीं है। ये कार मेरी ओर से मम्मी को भेंट है। (हॅंसती है)

पिता - मैंने बडे़ शौक से ये विदेशी कार तेरे जन्मदिन के लिए मंगाई है, बेटी।

कविता - सच कहूँ, पापा। मैं विदेशी चीज़ों के प्रयोग की हिमायती नहीं हूँ। मुझे क्षमा करें।

(सब गंभीर से बाहर आते हैं। ड्राइंग-रूम में समीर अपने माता-पिता के साथ इंतज़ार कर रहा है। समीर कविता को बुके देता है। उसकी माँ कविता को एक कीमती विदेशी परफ्यूम का सेट देती हैं।)

समीर - हैप्पी बर्थ डे, कविता।

कविता - थैंक्स।

मिसेज मेहता - जन्मदिन मुबारक हो। ये परफ्यूम समीर अमरीका से लाया है, कविता बेटी। उम्मीद है तुम्हें समीर का उपहार पसंद आएगा।

कविता - क्षमा करें, आंटी। मैं विदेशी चीज़ें इस्तेमाल नहीं करती। आपका आशीर्वाद ही काफ़ी है।

मि0 मेहता - कमाल है, आज की लड़कियों को तो विदेशी चीज़ों का क्रेज है।

मिसेज मेहता - अगर तुम्हारी शादी विदेश में हो जाए तो क्या करोगी, कविता? क्या इंडिया से सामान ढ़ोकर ले जाओगी? (मुस्कराती हैं)

कविता - ज़रूरी तो नहीं, शादी विदेश में ही की जाए।

कविता की माँ - अरे, ये बातें छोड़िए। आइए, आप सबके साथ कविता की मनपसंद डिशेज़ खाई जाएँ।

(सब डाइनिंग टेबल पर जाते हैं। वहाँ हलवा, पकौड़ी, आलू टिक्की, मिठाइयाँ हैं। कविता की माँ समीर की ओर मिठाइयाँ बढ़ाती हैं)

समीर - ओह नो। मुझे ये सब, मिठाई वगैरह सूट नहीं करती। मैं फ्राइड खाना खाकर अपना वज़न नहीं बढ़ाना चाहता। मुझे उबला खाना ही पसंद है। (हॅंसता है)

कविता - व्हाट ए पिटी। अगर इंडियन फ़ूड एन्ज्वाय नहीं किया तो कुछ भी खाना ही बेकार है। फ्राइड फ़ूड तो मेरी जान है। वैसे तला खाकर भी मैं अपना वेट मेंटेन करती हूँ। (हॅंसती है)

कविता की माँ - क्यों नहीं, सारे दिन हॉस्पिटल में ऊपर-नीचे सीढ़ियां जो चढ़ती-उतरती है। इतनी एक्सरसाइज क्या कम होती है?

समीर - सैटरडे को डांस-पार्टी में आइए। डांसिंग इन इटसेल्फ इज ए गुड एक्सरसाइज। आएंगी न? (उत्सुकता से देखता है)

कविता - सॉरी, सैटरडे को मैं नाइट-डयूटी पर हूँ...................

समीर - फिर आप डांसिंग स्टेप्स कैसे सीखेंगी? (आवाज़ में निराशा है)

कविता की माँ - अरे कविता वो खुद बहुत अच्छी डांसर है। इंडियन-वेस्टर्न दोनों ही तरह के डांसेज़ की इसने ट्रेनिंग ली है। गाना तो इतना अच्छा गाती है कि ................

कविता - लता मंगेशकर भी शर्मा जाए। मम्मी, तुम बेकार ही झूठी तारीफ़ें कर रही हो। अच्छा प्लीज एक्सक्यूज़ मी। मुझे हॉस्पिटल जाना है।

समीर - क्या, हमने तो सोचा था, आज के स्पेशल दिन हम सब कहीं किसी अच्छे रेस्ट्रा में चलेंगे। आज डयूटी से छुट्टी नहीं कर सकती? (हॅंसता है)

कविता - आप एक  डॉक्टर से डयूटी न करने को कह रहे हैं, डॉ समीर। यह तो गुनाह है। वैसे भी मेरे रजिस्ट्रार दो दिन की छुट्टी पर थे, आज ही ज्वाइन करने वाले हैं। मेरी उन्हें ज़रूरत होगी।

समीर - ओह तो आपके रजिस्ट्रार हमसे ज़्यादा इम्पार्टेंट हैं?

कविता - जी नहीं, मेरे लिए, अपनी डयूटी सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अच्छा अंकल-आंटी, यहाँ आकर मुझे आशीर्वाद देने के लिए धन्यवाद। सॉरी, मुझे जल्दी जाना पड़ रहा है ,पर मम्मी-पापा आपके साथ हैं। बाय डॉ समीर...............................

(तेजी से बाहर जाती है। सब उसे जाता देखते हैं)

मिसेज़ मेहता - (कविता की माँ से बात करती हैं) मिसेज कपूर आपकी बेटी हम सबको बेहद पसंद है। हमारे समीर के बारे में आपकी क्या राय है?

कविता की माँ - आपका समीर तो हज़ारों में एक है, पर कविता को एम.एस. करने की धुन है। अभी शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है।

मि0 मेहता - पोस्ट ग्रैजुएशन  करने के लिए तो अमरीका आइडियल कंट्री है। शादी के बाद भी वह पढ़ाई पूरी कर सकती है, क्यों मि0 कपूर, मैं ठीक कह रहा हूँ न?

मि0 कपूर - आप बिल्कुल सही फ़र्मा रहे हैं, पर आजकल के बच्चे माँ-बाप की बात कहाँ सुनते हैं। मैं फिर कविता से बात करूंगा।

समीर - हो सकता है, कविता किसी को पसंद करती हो, उस हालत में उसे निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।

कविता की माँ - नहीं, हमारी कविता ऐसी नहीं है, इस वक्त तो उस पर पढ़ाई का भूत सवार है, बस।

मि0 मेहता - ठीक है, हमे भी बहुत जल्दी नहीं है। अगर कविता तैयार हो जाए तो हम इंतज़ार कर सकते हैं।

कविता की माँ - हम कविता को ज़रूर समझाएंगे।

मिसेज मेहता - तो अब हम चलते हैं। इजाज़त दीजिए।

कविता की माँ - आने के लिए शुक्रिया। समीर के साथ एक दिन डिनर पर आइए। मैं उबला खाना बनवाऊंगी। (मुस्कराती हैं)

(सब हॅंसते हैं। अभिवादन के बाद सब जाते हैं। कविता के माता-पिता उन्हें कार तक छोड़ने जाते हैं। हाथ हिलाकर विदा करते हैं। कार गेट से बाहर जाती है)





दृश्य -15

कैमरा कविता को मुस्कराते हुए सर्जरी-वार्ड मे प्रवेश करते हुए देखता है। 
कविता सर्जरी वार्ड में प्रवेश करती है। वार्ड के एक कमरे पर डॉ श्याम का नाम लिखा है। कविता नॉक करके अंदर जाती है। श्याम कुर्सी से खड़ा होकर विश करता है। एक बड़ा सा लिली के फूलों का बुके कविता की ओर बढ़ाता है।

श्याम - जन्म दिन मुबारक हो, कविता। इन फूलों की तरह हमेशा खिली रहो। (मुस्कराता है)

कविता - थैंक्स। आपको कैसे पता लगा, मुझे लाल लिली बहुत पसंद हैं।

श्याम - जिसे मन से चाहा जाए, उसकी पसंद-नापसंद का पता तो होना ही चाहिए। (हॅंसता है)

कविता - जी ............ई .............. (शर्माती है)

श्याम - मेरा मतलब फूलों के साथ पला-बढ़ा हूँ। ग्राहक की शक्ल देखते ही उसकी पसंद जान सकता हूँ।

कविता - इसका मतलब आप फूलों के व्यापारी हैं। (हॅंसती है)

श्याम - एकदम ठीक पहचाना। शहर में हमारी बहुत साख है। हम नामी फ़्लॉरिस्ट हैं, जनाब।

कविता - ओह रियली? मार्वेलेस। आप जानते नहीं, आई लव फ़्लावरॅ्स।

श्याम - खुद भी तो फूल जैसी हो, कविता। आई लव यू, कविता।

कविता - प्लीज़ मुझे एम्बैरेस मत कीजिए ..................

श्याम - तुम मुझे पसंद नहीं करतीं, कविता? शायद मैं तुम्हारे लायक नहीं।

कविता - नहीं ....... नहीं, आप तो एक ब्रिलिएंट स्टूडेंट रहे हैं और अब एक्सेलेंट डॉक्टर हैं। आपको कौन नहीं चाहेगा,पर मै अभी कुछ सोच नहीं पा रही हूं--

श्याम - सब कुछ हूं, पर प्यार करने लायक इंसान नहीं हूं  ठीक कहा न, कविता। मै अपने को रोक नहीं सका, मै तुम्हें बहुत चाहता हूं कविता ....................

कविता - अभी मैं कुछ सोच नहीं सकती। मुझे वक्त दीजिए, सर।

श्याम - एक शर्त पर कि तुम मुझे सर नहीं कहोगी और तुम्हारा जवाब ‘हाँ’ में होगा। (मुस्कराता है)

कविता - अगर आपने ऐसी शर्त लगा दी तो ‘ना’ कहने का सवाल ही कहाँ उठता है, पर मेरी भी एक शर्त है।

श्याम - बताइए, मोहतनमा। हाँ याद रखो आगे से मुझे न आप कहोगी न सर। मैं बस तुम्हारा श्याम हूँ, समझीं।

कविता - ठीक है, पर जब भी घर जाओगे, मेरे लिए अपनी बगिया से हर बार नए-नए फूल लाने होंगे। (हॅंसती है)

श्याम - मंज़ूर। बगिया का हर फूल आपको अर्पित करूँगा। (प्यार से कविता का हाथ लेकर उस पर चुंबन अंकित करता है। कविता लजाकर आँखें नीचे करके मुस्कराती है)

दृश्यों के माध्यम से संगीत के साथ कविता और श्याम को कभी बाग में फूलों के बीच बैठकर बातें करते दिखाया जाएगा। कभी झरने या नदी के पास गीत गाते हैं। श्याम कभी रजनीगंधा के, कभी गुलाब आदि के फूल कविता को देता है। दोनों के बीच सपने खिलते हैं। हाथ में हाथ डाले हॅंसते-मुस्कराते हैं।



दृश्य - 16



कविता का घर। कविता अपने कमरे में कुरसी पर बैठ कर एक किताब पढ़ रही है। म्यूज़िक सिस्टम पर एक गज़ल बज रही है। कविता की माँ हाथ में एक पत्र लिए आती है।

माँ - बड़ी अच्छी ख़बर है, कविता।

कविता - क्यों क्या समीर मेहता से भी ज़्यादा अच्छा दामाद मिल गया है, मम्मी? (हॅंसती है)

माँ - समीर तो तेरे लिए आँखें बिछाए बैठा है, पर तेरा दिमाग़ तो सातवें आसमान पर उड़ता है।

कविता - काश् सात आसमान होते माँ। मैं तो बस एक ही आसमान जानती हूँ। वैसे मैं पूरी तरह इस धरती से जुड़ी हुई हूँ, मम्मी वर्ना समीर के साथ अमरीका न उड़ जाती। (हॅंसती है)

माँ - तो कोई किसान खोज ले, पूरी तरह धरती से जुड़ जाएगी।

कविता - किसान में क्या खराबी है, मम्मी। उस जैसा मेहनती इंसान तो आदर का पात्र है। अपना पसीना बहाकर, हमारा पेट भरता है। हाँ तुम्हारी खुश- ख़बरी की बात तो रह ही गई।

माँ - तेरे शेखर भइया की सगाई पक्की हो गई है।

कविता - सच, माँ? कहाँ, कब? (आवाज़ में खुशी है) ये तो सचमुच अच्छी खबर है।

माँ - लखनऊ में लड़की के पिता कॉलेज के प्रिंसिपल हैं।

कविता - अरे मेरी होने वाली भाभी क्या करती हैं। उनके बारे में तो बताओ। देखने में कैसी हैं?

माँ - नेहा ने एम.ए. किया है। बाकी बातें खुद पूछ लेना।

कविता - हम उनसे कब मिलेंगे? शादी कब होगी?

माँ - तेरी ताई जी ने हम सबको सगाई में बुलाया है। उनकी बात तो टाली नहीं जा सकती। हमे लखनऊ चलना होगा।

कविता - पर मेरी हॉस्पिटल की डयूटी का क्या होगा?

माँ - सगाई की रस्म इतवार को रखी है। शनिवार को जाकर सोमवार तक वापस आ जाएँगे। तेरे न जाने से शेखर को बहुत बुरा लगेगा। तुझे कितना प्यार करता है।

कविता - ठीक है, मैं छुट्टी ले लूंगी। नेहा भाभी से तो मिलना ही होगा।

माँ - चल, तू मान तो गई। मुझे तो डर था तू मना न कर दे।

कविता - क्या मैं इतनी खराब हूँ, मम्मी?

माँ - नहीं, ज़रा सिरफिरी है, बस।

(दोनों हॅंसती हैं। कैमरा उन्हें देखता हुआ दीवार पर लगे एक चित्र पर केंद्रित होता है। दृश्य फ्रीज़ होता है)



दृश्य - 17

कैमरा सर्जरी वार्ड मे है।

सर्जरी वार्ड में डॉ श्याम का कमरा। कविता के प्रवेश पर श्याम मुस्कराता है।

श्याम - आज इतनी देर कर दी। कब से इंतज़ार कर रहा हूँ।

कविता - अरे, देर कहाँ हुई? रोज ही के टाइम पर तो आई हूँ।

श्याम - इंतज़ार की घड़ियाँ बड़ी लम्बी होती हैं, कविता।

कविता - तो जनाब अब तीन-चार दिनों के लिए आराम फ़र्माएँ। मैं हॉस्पिटल नहीं आऊंगी।

श्याम - क्यों, क्या बात है?

कविता - सगाई के लिए जा रही हूँ। (शैतानी से मुस्कुराती है)

श्याम - क्या? किसकी सगाई के लिए जा रही हो। तुम्हारी सगाई तो नहीं हो सकती, कविता?

कविता - क्यों नहीं हो सकती, क्या देखने में इतनी गई-गुज़री हूँ?

श्याम - तुझ पर तो हज़ारों लोग कुर्बान हो जाएँ, पर हम दानों कितने करीब आ चुके हैं। अब तुम साथ तो नहीं छोड़ दोगी, कविता?

कविता - सगाई से दूरी कैसे आ जाएगी, श्याम? (हॅंसती है)

श्याम - सगाई और उसके बाद किसी और के साथ शादी के बाद भी क्या हम पास रहेंगे, कविता? ऐसे मज़ाक मुझे पसंद नहीं।

कविता - मज़ाक तो तुम कर रहे हो, श्याम। अरे भई मैं अपने कज़िन की सगाई पर जा रही हूँ। दो-तीन दिन बाद वापस आ जाऊंगी।

श्याम - ओह, मेरे भगवान। कुछ देर के लिए तुमने तो मेरी जान ही ले डाली थी, कविता। पता नहीं दो-तीन दिन कैसे काट सकूँगा।

कविता - मैं भी तुम्हें मिस करूँगी, श्याम। लौटते ही मिलने आऊंगी।

श्याम - हाँ, एक अच्छी बात है, डॉ  नेगी तुम्हारी बहुत तारीफ़ कर रहे थें। आज उनके साथ राउंड है। चलो।

(दोनों जाते हैं। राउंड लेते हुए दृश्य)



दृश्य - 18

कैमरा देखता है--



लखनऊ में प्रिंसिपल राजेन्द्र मोहन का आवास बॅंगले के चारों ओर सुंदर बगीचा है। दो कारों में कविता के माता-पिता, ताऊ-ताई व भाई शेखर आवास में पहूँचते हैं। राजेन्द्र मोहन सपत्नी उनका स्वागत करते हैं। कार से उतर कर अतिथि ड्राइंग-रूम में पहुँचते हैं। ड्राइंग-रूम सुंदर ढंग से सजा है। दीवारों पर पेंटिंग्स लगी हैं। सब बैठते हैं। एक सेवक शर्बत व पानी ट्रे में लाता है। सब लेते हैं।

प्रिंसिपल - कहिए यहाँ के रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई?

कविता - बहुत परेशानी हुई। रास्ता काटे नहीं कट रहा था, क्यों शेखर भइया, बार-बार आप पूछ रहे थे लखनऊ अब और कितनी दूर हैं। (सब हॅंसते हैं)

मि0 कपूर - ये मेरी बेटी कविता है। इंटर्नशिप कर रही है। मज़ाक करना इसका स्वभाव है।

कविता - अंकल, हमारी नेहा भाभी को बुलाइए न। अब और इंतज़ार कर पाना कठिन है।

पिं्रसिपल - (अपनी पत्नी से कहते हैं) नेहा की मम्मी ही नेहा को बुलाएँगी। भई आवाज़ देंगी या खुद बुलाकर लाएँगी।

कविता - आँटी को क्यों तकलीफ़ देते हैं, इजाज़त हो तो हम खुद उन्हें ले आएँ। (हॅंसती हैं)

प्रिंसिपल - तुम्हारी भाभी पर सबसे ज़्यादा हक तो तुम्हारा है। वो सामने वाला कमरा नेहा का है। नेहा को तुमसे मिलकर बहुत खुशी होगी।

(हॅंसते हैं)

कविता उठ कर जाती है।

दृश्य - 19

कैमरे के साथं कविता, नेहा के कमरे मे जाती है। कैमरा नेहा का कमरा देखता है।

नेहा का कमरा। कमरा सुसज्जित है। कमरे में पलंग, टेबल-चेयर, म्यूज़िक सिस्टम रखा है। दीवारों पर नेहा के बनाए चित्र लगे हैं। कविता परदा उठाकर प्रवेश करती है। नेहा कुर्सी पर बैठी एक मैगज़ीन देख रही है।

कविता - अंदर आने की इजाज़त मिलेगी? (मुस्कराती है)

(नेहा मैगज़ीन से नज़र उठाकर कविता को देखकर खड़ी हो जाती है।)

नेहा - आइए। (मुस्कराती है)

कविता - मैं आपकी प्यारी ननद कविता हूं। बिन बुलाए आने के लिए माफ़ी चाहती हूँ। (हॅंसती हुई कुर्सी पर बैठती है)

नेहा - नहीं-नहीं। मैं तो वक्त काटने के लिए मैगज़ीन पलट रही थी। आपके आने से अच्छा लग रहा है।

कविता - यानी दोनों तरफ़ बराबर की आग लगी है। उधर शेखर भइया आपसे मिलने को बेताव हैं, इधर आपका वक्त काटे नहीं कट रहा है।

नेहा - आप बातें बहुत अच्छी करती हैं, पर सच ये नहीं है।मैने तो बस---

कविता - आप दोनों का सच तो आप ही जानें, वैसे उम्र में शेखर भइया से बहुत छोटी हूँ, इसलिए मुझे आप न कहकर तुम कहें तो अच्छा लगेगा। हाँ बाहर आपका इंतज़ार हो रहा है, चलें?

नेहा - जैसा आप ........... मेरा मतलब जैसा तुम कहो। (मुस्कराती है)

कविता - ये हुई न बात। आपके बारे में जितना सुना था उससे कहीं ज़्यादा अच्छी हैं। हम दोनों की खूब पटेगी।

नेहा - देखो कविता, तुम भी मुझे आप न कहकर, तुम पुकारो तो हमारी दोस्ती पक्की रहेगी। दोस्ती की पहली शर्त, ये  कोई किसी को आप न कहे।कहो मंज़ूर है?

कविता - दोस्ती पक्की करनी है तो हर शर्त मंज़ूर है। इसी बात पर हाथ मिलाइए।

नेहा - तुमसे मिलकर बहुत अच्छा लग रहा है,कविता। नए घर की सोच कर थोड़ा डर लगता था,पर अब तुम यानी मेरी दोस्त मेरे साथ रहेगी।

कविता - जी नहीं,आपके साथ मेरे शेखर भैया रहेंगे। अगर मै आपके साथ ज़्यादा रही तो वे सह नहीं पाएंगे। हंसती है।

नेहा - तुम बहुत अच्छी बातें करती हो, कविता। वैसे तुम्हारी  हॉबीज़ क्या हैं,कविता।

कविता - मेरी हॉबीज़ क्या होंगी? दिन- रात बीमारों के कष्ट दूर करने की कोशिश करती हूं , पर आप बहुत अच्छी कलाकार हैं। ये सारी पेंटिग्स आपकी बनाई हुई हैं, न?

नेहा - बस यूँ ही ब्रश चला लेती हूँ, लेकिन तुमने फिर मुझे आप कहा है। दिस इज़  नॉट फ़ेयर।

कविता - ओ.के. अब चलो मेरी होने वाली भाभी, वर्ना लोग मुझसे नाराज़ हो जाएँगे।

(दोनों उठकर बाहर आती हैं।)



दृश्य - 20



ड्राइंग रूम का पूर्ववत दृश्य। सब लोग हॅंस बोल रहे हैं। नेहा के आते ही शेखर खड़ा हो जाता है।

कविता - अरे रे रे, भइया। भाभी का रौब अभी से पड़ गया। बैठ जाइए जनाब। क्यों भाभी इजाज़त है?
 (सब हॅंसते हैं। शेखर संकुचित होता है। नेहा को कविता शेखर के पास सोफ़े पर बैठाती है)

प्रिंसिपल - सचमुच कविता बेटी का बड़ा अच्छा स्वभाव है। मुझे खुशी है, नेहा को कविता के रूप में एक अच्छी बहन मिल जाएगी।

शेखर की माँ - हमारी भी यह खुशकिस्मती है कि हमे नेहा जैसी बहू मिल रही है।

शेखर के पिता - अब बातों में वक्त क्यों गवाएँ।  रिंग सेरीमनी शुरू की जाए।

प्रिंसिपल - हमे इसी शुभ घड़ी का इंतजार था। नेहा की माँ, आपका क्या ख़्याल है?

माँ - सौ प्रतिशत आपके विचारों से सहमत हूँ। शुभ कार्य मे देर क्यों?

शेखर की माँ - आओ बेटे शेखर, अब जेब से नेहा के लिए अंगूठी निकालो।

शेखर - क्या? माँ, अंगूठी  लाना तो आपकी ज़िम्मेदारी थी।

माँ - वाह! सगाई तेरी है और अंगूठी मेरी ज़िम्मेदारी है। मुस्कराती हैं।

(सब एक-दूसरे को आश्चर्य से देखते हैं।)

प्रिंसिपल - कोई बात नहीं, दूसरी अंगूठी का इंतज़ाम हम कर लेंगे।

माँ - (हॅंसती है) अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रही थी। भला मैं अंगूठी लाना भूल सकती थी। यह ले, शेखर। नेहा को रिंग पहना।

(कैमरा शेखर की माँ एक सुंदर अंगूठी की डिब्बी खोलती है। कैमरा   अंगूठी पर केंद्रित होता है)

शेखर अंगूठी नेहा की उंगली में पहनाता है। सब तालियाँ बजाते हैं। नेहा की माँ नेहा को एक  अंगूठी देती है। नेहा शर्माते हुए शेखर को   अंगूठी पहनाती है। सब तालियाँ बजाते है।

नेहा की माँ - भगवान इस जोड़ी को बनाए रखे।

प्रिंसिपल - अब बातें ही करोगी या सबका मुंह भी मीठा कराओगी?

नेहा की माँ - सारा इंतज़ाम है, जनाब, सिर्फ़ मिठाई ही नहीं, नेहा की सहेलियों ने मनोरंजन का भी इंतज़ाम कर रखा है। चलिए, सब हॉल में चलें।

प्रिंसिपल - वाह! यह हुई न बात।

कैमरा - एक बडे़ हॉल में मेज़ पर मिठाइयाँ, नमकीन रखे हैं। सबके पहुँचते ही स्टेज पर रोशनी होती है। चार-पाँच लड़कियाँ एक गीत पर नृत्य करती हैं। सब प्लेटों में मिठाइयाँ आदि लेकर कुर्सियों पर बैठते हैं। शेखर व नेहा बीच में हैं। कविता अपने भाई के पास वाली कुर्सी पर बैठती है। नृत्य की समाप्ति पर सब तालियाँ बजाते हैं।

कविता - (नेहा की माँ से कहती है) आँटी, आपने तो आज का दिन यादगार दिन बना दिया है। बहुत सुंदर कार्यक्रम था।

शेखर - वो तो होना ही था, आखिर, सगाई किसकी है, जनाब।

कविता - रहने दीजिए, ज्यादा बातें बनाने की ज़रूरत नहीं हैं। ये सब तो मेरे लिए किया गया है क्यों भाभी ठीक कह रही हूं न?
 
नेहा सिर झुका कर हामी मे सिर हिला कर, मुस्कराती है।

प्रिंसिपल - अब आप लोग थोड़ा आराम कर लीजिए थक गए होंगे।

कविता - अंकल। मुझे तो आपकी गार्डेन देखनी है। कार से आते वक्त रंग-बिरंगे फूल देखकर जी चाह रहा था, गार्डेन में ही रूक जाऊं।

शेखर - यानी कि आपका इरादा मेरी सगाई मिस करने का था।

कविता - मिस करने की हिम्मत कैसे करती, शादी में आपसे भारी गिफ्ट जो लेनी है।

(सब हॅंसते हैं)

प्रिंसिपल - पहले आराम तो कर लो, गार्डेन कोई भागा थोड़ी जा रहा है।

नेहा की मां - हां,  बेटी पहले लंच ले लो,आज शाम को नेहा की सगाई के उपलक्ष में संगीत और डांस का प्रोग्राम है। उसमे तो तुम्हें भी डांस करना होगा।

शेखर की मां - ज़रूर, हमारी कविता ने कत्थक डांस के साथ संगीत भी सीखा है।

कविता - ताई जी आप क्यों झूठी तारीफ़ कर रही हैं ,मुझे कुछ नहीं आता।
 
शेखर -  हां इसे तो बस बातें बनाना आता है।

कविता- -शेखर भइया ,आप जानते हैं, नेहा भाभी कितनी बड़ी कलाकार हैं। इनके कमरे मे जा कर इनकी बनाई पेंटिंग्स देखिए।

कविता की मां - हां, शेखर तुम नेहा के साथ जाओ, हम लोग शादी की तारीख वगैरह तय करते हैं। ठीक है न बहन जी,आपको तो कोई ऐतराज़ नहीं है? नेहा की मां से पूछ्ती है।

नेहा की मां - आपने इजाज़त दी है, मुझे क्यों ऐतराज़ होगा। मुस्कराती है।

कविता- - अब हम चलें अंकल?

प्रिंसिपल - ठीक है, बेटी। चलिए, हम आपको अपनी बगिया दिखाते हैं। डॉक्टर की आर्डर तो मानना ही पडे़गा।

कैमरा - प्रिंसिपल के साथ कविता को अपने सुंदर बगीचे में ले जाता है। चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिले है। कविता मुग्ध दृष्टि से फूलों को देख रही है-

कविता - अंकल, आपकी गार्डेन बहुत सुंदर है। रंग-बिरंगे फूलों से लगता है, आपको भी फूलों, से बहुत प्यार हैं।

प्रिंसिपल - फूल किसे अच्छे नही लगते। हमारा हेड गार्डेनर बहुत अनुभवी और कुशल है। उसी की मेहनत से मेरा घर और कॉलेज- कैम्पस फूलों के रंगों से खिल उठा है।

कविता -  अंकल, हम आपकी गार्डेन के फूलों का आनंद  ले रहे है, वहाँ शेखर भइया और नेहा भाभी भी एक-दूसरे से परिचय पा लेंगे। (हॅंसती है)

प्रिंसिपल - लगता है हमारी कविता बेटी का पेट तो फूल देख कर ही भर जाएगा। तुम्हारी आंटी लंच के लिए हमारा इंतज़ार करेंगी।

कविता - फूलों को देखकर मन ताज़ा हो जाएगा तो भूख भी ज़्यादा लगेगी।
 कविता मुग्ध दृष्टि से फूलों को देखती है प्रिंसिपल उसे संकेत से फूलों को दिखा रहे हैं। हल्का संगीत चलता है)

प्रिंसिपल- चलो बेटी सब लंच पर इंतज़ार कर रहे होंगे।

कविता- यहां से जाने का तो जी नहीं चाहता, पर सबको भूखा रखना अन्याय होगा। चलिए अंकल।
             (मुग्ध दृष्टि फूलों पर डालती है।)

दोनो घर की ओर जाते हैं।


दृश्य - 21


 कैमरे द्वारा शाम के उत्सव का दृश्यांकन किया जाता है।
कैमरा देखता है - समय संध्या-काल।
 प्रिंसिपल साहब का घर विद्युत-लड़ियों से जगमगा रहा है। ड्राइंग रूम में काफ़ी अतिथि आए हुए हैं। युवा लड़कियाँ लहॅंगा, सलवार-सूट में नृत्य के लिए तैयार हैं। नेहा का श्रृंगार किया जा रहा है। सहेलियाँ उसे छेड़ रही हैं। शेखर ने सूट पहन रखा है। कविता घाघरा-चोली पहने है। माता-पिता, ताऊ-ताई अच्छे कपड़े पहने हैं। नेहा की सहेलियाँ उसे बाहर लाती हैं। शेखर मुग्ध दृष्टि से देखता है। सोफ़े पर शेखर के पास नेहा को बैठाया जाता है।
लड़कियाँ गीत पर नृत्य करती हैं। कविता को भी खींचकर ले जाती हैं। कविता नेहा को भी जबरन नृत्य में शामिल कर लेती है। लड़के शेखर को उठाकर नचाते हैं। सब तालियाँ बजाते हैं। (नृत्य का दृश्यांकन)

नेहा की मां - आइए, डिनर तैयार है।

सब एक बड़े कमरे मे जाते हैं। बड़ी मेज़ों पर विभिन्न डोंगों मे डिनर लगाया गया है। कविता शेखर और नेहा को एक साथ बैठाती है और प्लेटों मे खाना देती है । अतिथि भी भोजन करते हैं हंसी-खुशी का माहौल है। हल्का संगीत चल रहा है।

 रात्रि-भोज (डिनर) के साथ ही दृश्य-फ्रीज होता है।



दृश्य - 22

कैमरे द्वारा छायांकन,वापसी को सब तैयार हैं।

प्रिंसिपल का ड्राइंग-रूम। शेखर का परिवार वापसी के लिए तैयार है।

प्रिंसिपल - आप सबका तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। मुझे यकीन है, हमारी नेहा आपके घर बहुत खुश रहेगी।

शेखर के पिता - अब जल्दी ही शादी की तारीख तय करके हम नेहा बेटी को अपने घर ले जाएँगे।

कविता - ताऊजी, आप शेखर भइया से पूछ लें, हो सकता है यहाँ आने के पहले ही उन्होंने तारीख निकलवा ली हो?

शेखर - चुप रह। बहुत बकबक करती है। चाचाजी, अब जल्दी ही इसे विदा करने का इंतज़ाम करना होगा।

कैमरा एक प्रौढ़ को हाथ में बड़ा सा गुलाब का गुलदस्ता लेकर कमरे में प्रवेश करते हुए देखता है।

प्रौढ़ - नेहा बेटी के लिए ये गुलदस्ता लाया हूँ, साहब।

प्रिंसिपल - आओ, रामदीन। कविता बेटी यही हमारे कॉलेज के हेड गार्डेनर है।।

कविता - ओह। कितने सुंदर गुलाब हैं और लाल लिली तो बहुत ही सुंदर है। पापा इन्हें तो गवर्नमेंट हाउस में हेड गार्डेनर होना चाहिए।

प्रिंसिपल - इनका असली गुलाब तो इनका बेटा डॉक्टर श्याम है। अरे हाँ, कविता बेटी वो तुम्हारे ही मेडिकल कॉलेज में तो सर्जन है।

कविता - क्या .......... आ .......?  डॉ श्याम आपके बेटे हैं?

रामदीन - हाँ बिटिया। ये सब हमारे प्रिंसिपल साहब की मेहरबानी का फल है। इन्हीं ने हमारे बेटवा को डॉक्टर बनाने में मदद की, वर्ना हमारी क्या औक़ात थी?

प्रिंसिपल - ऐसा क्यों कहते हो, रामदीन। श्याम पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा। बारहवीं तक बराबर वजीफ़े पाता रहा। मेडिकल एंट्रेस एक्ज़ाम में भी उसने अपनी योग्यता के सहारे क्वालीफ़ाई किया। मैंने तो बस कॉलेज के चैरिटी- फंड से उसकी एम.बी.बी.एस. की फ़ीस दिलवाई थी।

रामदीन - हमने तो उसी दिन से तय कर लिया, जिनगी भर प्रिंसिपल साहब की गुलामी करूँगा। बेटा डॉक्टर हो गया उसके पीछे इन्हीं का तो हाथ है।

प्रिंसिपल - अच्छा-अच्छा, बहुत बातें हो गईं। अब ये गुलदस्ता, कविता बेटी को दे दो इसे फूलों से बहुत प्यार है। वैसे मैं तो कहता हूँ, अब रामदीन का बेटा सर्जन बन गया है, इसे काम करने की ज़रूरत नहीं है, पर ये न जाने कौन सा कर्ज़ चुका रहा है। अरे करने वाला तो भगवान है, हमे तो बस माध्यम बनाया है। (हॅंसते हैं)

रामदीन - हमारे लिए तो आप भी धरती पर भगवान का रूप हैं। लो बेटी हमारा आशीर्वाद और ये फूल तुम्हारे हुए।

(कविता झुककर पाँव छूती है। रामदीन पीछे हटता है। चेहरे पर आश्चर्य है)

रामदीन - अरे रे रे, ये क्या? हम किस लायक हैं?

कविता - नहीं बाबा, आप तो महान इंसान हैं। आपको हमेशा याद रखूंगी। प्रणाम।

मिसेज़ कपूर - हमारी कविता ग़रीबों के साथ बहुत हमदर्दी रखती है। चलें, बेटी।

कविता - माँ, रामदीन बाबा तो दुनिया के सबसे अमीर इंसान हैं। इनके पास ईमानदारी, मेहनत का गुण और अपने काम के प्रति सम्मान है। ये ग़रीब कैसे हुए?

प्रिंसिपल - वाह, बेटी। ठीक कहती है। एक मेहनतकश, स्वाभिमानी इंसान ग़रीब कैसे हो सकता है।

रामदीन - खुश रहो, बेटी। भगवान तुम्हें भी हमारी नेहा बिटिया जैसा घर और वर दे।

(सब एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। कविता, नेहा के गले लगती है। शेखर भी नेहा पर मीठी दृष्टि डाल कर विदा लेता है। सब कार में बैठ़ते हैं। एक कार में कविता और उसके माता-पिता हैं, दूसरी में शेखर अपने माँ-बाप के साथ बैठ़ता है। नेहा, प्रिंसिपल सपत्नी हाथ हिलाकर विदा देते हैं। कारें गेट से बाहर जाती हैं। कविता उदास सी रामदीन को देखती है)



दृश्य - 23

कैमरा कविता के कमरे में देखता है।

कविता का घर। कविता तैयार हो रही है। कपड़े अल्मारी से निकालती है, फिर पलंग पर फेंक देती है। चेहरे पर उद्विग्नता है। बेचैन सी एक कुर्सी पर बैठ जाती है। माँ का प्रवेश

माँ - अरे कविता, कमरे का ये क्या हाल बना रखा है? हॉस्पिटल नही जाना है, क्या?

कविता - जा रही हूँ, मम्मी। (उठती है)

माँ - क्या बात है जब से वापस लौटी है,  चुप पड़ गई है। रात भी ठीक से खाना नहीं खाया। तबियत तो ठीक है?

कविता - मेरी तबियत को क्या होना है?  मुझे तो उसकी तबियत ठीक करनी है।

माँ - किसकी बात कर रही है,  कविता?

कविता - (चौंकती है)  है, एक मरीज़। क्या पहनूँ,  माँ?

माँ - ताज्जुब है, आज तक कभी मुझसे पूछकर कपड़े पहने हैं, जो आज मेरी मर्ज़ी पूछ रही है?  कोई ख़ास बात है, कविता?

कविता - नहीं, माँ। सोचती हूँ, एम.एस. के लिए यू.के. चली जाऊं। वहाँ उषा मौसी भी हैं, तुम निश्चिंत रहोगी।

माँ - तब यू.एस.ए. ही क्यों नहीं चली जाती। समीर तेरी हाँ का इंतज़ार कर रहा है, कविता?

कविता - नहीं, माँ। शादी अभी मेरी लिस्ट में नहीं है। देर हो रही है,  मुझे जाना है।

(तेजी से बाथरूम का दरवाज़ा बंद कर लेती है)



दृश्य - 24

कैमरा कविता को हाथ मे  फूल लिए आता देखता है। वह सर्जरी-वार्ड मे प्रवेश करती है।

कविता  रामदीन द्वारा दिए गए फूलों के साथ डॉ श्याम के कमरे में प्रवेश करती हैं। चेहरे पर उत्तेजना है। पाँवों की आहट पर श्याम रोगियों के चार्ट से दृष्टि उठाकर कविता को देखते हैं। चेहरे पर खुशी बिखर जाती है। अपनी जगह से उठकर कविता के पास आकर उसका हाथ पकड़ना चाहते हैं। कविता पीछे हट जाती है।

श्याम - ओह कविता, तुम आ गईं ?। मैं तुम्हें कितना मिस करता रहा ..................

कविता - ठहरिए, सर। पहले ये गुलाब तो लीजिए।

श्याम - लवली रोजेज़, थैंक्स। फूलों की क्या ज़रूरत थी, तुम आ गई तो सब कुछ मिल गया, कविता। और हाँ दो दिनों में मैं ‘सर’ बन गया? (हॅंसता हैं)

कविता - ये ख़ास गुलाब हैं, इनकी खुशबू पहचान लोगे।

(श्याम गुलाबों से सिर उठाकर कविता को देखता है। चेहरे पर विस्मय है)

कविता - तुम्हारी गार्डेन के गुलाब हैं, श्याम। पहचान नहीं पाए? (व्यंगपूर्ण स्वर हैं)

श्याम - मेरी गार्डेन के गुलाब?

कविता - शायद ग़लती हो गई। तुम तो फूलों के व्यवसायी हो। तुम्हारी फ़्लॉरिस्ट- शॉप से ये प्यारे गुलाब तुम्हें भेंट देने लाई हूँ।

श्याम - तुम कहाँ गई थीं, कविता, ये गुलाब कहां से लाई हो? (आवाज़ मे  भय है।)

कविता - तुम इतने छोटे हो सकते हो, मैं सोच भी नहीं सकती थी, श्याम। (आवाज रूंध जाती है)

श्याम - कविता, थोड़ा शांत हो जाओ। लो पहले पानी पी लो।

(श्याम टेबल से पानी का ग्लास उठाकर कविता को देता है। क्रोधावेश में कविता ग्लास फेंक देती है)

कविता - तुम बहुत बड़े फ़्लॉरिस्ट हो न श्याम? तुम्हारी गार्डेन में न जाने कितने माली काम करते हैं, यही कहा था न तुमने? यू चीट-लायर। (कविता की आँखों से आँसू बह निकलते हैं)

श्याम - मुझे माफ़ कर दो, कविता। आई एम एक्स्ट्रीमली सॉरी।

कविता - किस बात की माफ़ी माँग रहे हो, डॉ श्याम?

श्याम - यही कि मैंने झूठ कहा था। मेरी कोई फ्लॉरिस्ट-शॉप नहीं है। मैं एक ग़रीब इंसान का बेटा हूँ।

कविता - नहीं, श्याम। सच तो ये है तुम एक महत्वाकांक्षी, कर्मठ और एक महान इंसान के ग़रीब बेटे हो।

श्याम - मेरी बात समझने की कोशिश करो, कविता। तुम इतने बड़ घर की इकलौती बेटी हो, भला कैसे बताता मेरे पिता एक कॉलेज में हेडमाली हैं। तुम्हें खो देने का साहस नहीं कर सका। मुझे माफ़ कर दो, कविता।

कविता - दुख है, जिस इंसान ने मिट्टी से इतने सुंदर फूल उगाए, अपने ही बीज को संवारने में कहाँ ग़लती कर गया। एक लड़की को पाने के लिए अपने पिता का वजूद ही नकार दिया, श्याम?

श्याम - तुम मेरा सच नहीं जानती हो कविता, -हमेशा मेरे नाम के साथ माली का बेटा  लगा कर मेरे साथियों ने मेरा मज़ाक उड़ाया और दूसरे कुछ आभिजात्य वर्ग वालों  ने अपमानित किया है। अपमान की वो आग सीने मे धधकती रही है। आभिजात्य वर्ग के प्रति मेरा आक्रोश तुमने भी सहा है,कविता।  आज सफलता पाकर भी मेरे सीने मे वो अपमानित श्याम क़ैद है। चाहकर भी उसे मै क़ैद से मुक्त नहीं कर सका हूं।

कविता - नहीं, श्याम। इसके लिए कोई एक्सप्लेनेशन नहीं चलेगा। काश् तुमने बताया होता, तुम अपने पिता के सपनों के गुलाब हो। मिट्टी में गिरी उनकी पसीने की बूंदों ने तुम्हारा पोषण किया है, तो मैं तुम्हें सिर-माथे लेती, पर आज अपने झूठ की वजह से तुम मेरी निगाहों में इतने नीचे गिर गए हो ...........

(वाक्य पूरा नहीं करती, आवेश से चेहरा तमतमा उठता है)

श्याम - मैं प्रायश्चित करने को तैयार हूँ, कविता। मुझे कड़ी से कड़ी सज़ा दो, उफ़ नहीं करूँगा।

कविता - तुम्हारी सज़ा यही है, जिसे तुमने चाहा, वह तुमसे दूर चली जाए। मैं ये देश छोड़कर जा रही हूँ, डॉ श्याम।

श्याम - नहीं, ये नहीं हो सकता। तुम मुझे प्यार करती हो। कहीं ऐसा तो नहीं मेरी सच्चाई जान, मुझे स्वीकार करने की तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही हैं,  कविता?

कविता - मेरी हिम्मत को चैलेंज मत करो,  श्याम।

श्याम - मुझे अपने प्यार पर यकीन है,  कविता। एक दिन मेरा प्यार तुम्हें ज़रूर वापस लाएगा।

कविता - कुछ ही दिनों  के बाद मेरी इंटर्नशिप खत्म हो रही है। उसके बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। तुम्हारे साथ काम करना मेरी मज़बूरी है, पर इस बीच हमारे संबंध औपचारिक ही रहेंगे। मेरी शर्त है कि हम कभी सीमा  पार नहीं करेंगे।

श्याम - ऐसा न कहो, कविता। मैंने सच्चे मन से सिर्फ़ तुम्हें ही चाहा है।

कविता - अच्छा होता, मेरे साथ अपने जन्मदाता पिता को भी प्यार कर पाते। देर हो रही है, वार्ड का राउंड लेने चलना है। (चेहरा कठोर है)

दृश्यों के माध्यम से डॉ नेगी,  डॉ श्याम के साथ कविता को रोगियों के वार्ड का राउंड लेते दिखाया जाएगा। डॉ नेगी पेशेंट्स के चार्ट्स देखकर कविता की पीठ ठोंकते हैं। डॉ श्याम, कविता से बात करने की कोशिश करते वह चुप रहती है, उनकी किसी बात का जवाब नहीं देती ।

डॉ नेगी - मुझे पूरा विश्वास है तुम एक कुशल सर्जन बन कर नाम रौशन करोगी। मेरी शुभ कामनाएं और आशीर्वाद, सफ़ल रहो।

कविता झुक कर पांव छूती है। श्याम आगे आ कर कुछ कहना चाहता है, पर कविता बिना सुने चली जाती है।

डॉ श्याम उसे जाता देखते हैं।  श्याम के उदास चेहरे पर कैमरा फ़्रीज़ होता है।



दृश्य - 25



डॉ नेगी का कमरा। कमरे में मानव शरीर के विभिन्न अंगों के चार्ट्स लगे हैं। बड़ी सी टेबल पर सुंदर पेन-स्टैंड, कॉलिंग बेल, पेशेंट्स के चार्टस / फाइलें व प्रेस्क्रिप्न पैड रखे हैं। कमरे में कविता, प्रिया और राहुल खड़े हैं।

ड़ॉ नेगी - आज आप सबकी इंटर्नशिप समाप्त हो रही है। जिस मेहनत से आपने यहाँ काम किया, उसके लिए मेरी बधाई। उम्मीद है इसी लगन और मेहनत से हमेशा अपने प्रोफ़ेशन का सम्मान बढ़ाएँगे।

कविता - सर, मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए। मैं सर्जरी में स्पेशलाइज़ेशन के लिए यू.के. जा रही हूँ।

डॉ नेगी - काँग्रेच्चुलेशन्स। जितना तुम्हें देखा है। मुझे पूरा यकीन है तुम एक अच्छी सर्जन बनोगी।

प्रिया - यस, सर। कोई बिलीव नहीं कर सकता, पहले यही कविता ब्लड देखकर ही अपसेट हो जाती थी। कविता की विल- पॉवर बहुत स्ट्रांग है, जो ठान लेती है, पूरा करके ही छोड़ती है। (हॅंसती है)

ड़ॉ नेगी - ओ.के. ऑल दि बेस्ट। मैं फिर दोहराता हूँ, कविता इज़ ए रिमार्केबल डॉक्टर। (हॅंसते हैं)

सब डॉ नेगी से हाथ मिलाते हैं। उनके कमरे से बाहर आते हैं।

कैमरा उन्हें जाता देखता है।



दृश्य - 26



हॉस्पिटल कॉरीडोर का दृश्य। पेशेंट्स। डॉक्टर्स आ जा रहे हैं। कविता और प्रिया Oडॉ नेगी के कमरे से बाहर आ रही है। सामने से श्याम आ रहा है। प्रिया उसे विश करती है।

प्रिया - गुड आफ़्टर नून, सर।

श्याम - गुड आफ़्टर नून। हाओ आर यू? (कनखियों से कविता को देखता है। कविता का चेहरा निर्विकार है)

प्रिया - थैंक्यू। फ़ाइन, सर। आप कैसे हैं?

श्याम - जी रहा हूँ। डॉ कविता, बेड नं. टेन के बारे में आपसे कुछ डिसकस करना है। मेरे रूम में आ जाइए।

कविता - सॉरी, सर। सर्जरी वार्ड से हमे विदा मिल गई है। मुझे ज़रूरी काम है। मैं जा रही हूँ। चल, प्रिया।

डॉ श्याम को हतप्रभ छोड़, कविता प्रिया का हाथ पकड़ तेज़ी से बाहर जाती है। दोनों मेन-रोड पर पहुँचती हैं।

प्रिया - ऐसी क्या बात है, कविता दो मिनट के लिए डॉ श्याम के साथ मरीज़ के बारे में बात कर लेती तो क्या हो जाता? अरे तू ही तो कहती है हम डॉक्टरों की ड्यूटी कभी ख़त्म नहीं होती और आज तूने कह दिया तेरी सर्जरी-वार्ड से विदा होगई, जब कि तू सर्जरी मे एम एस करने जा रही है। चेहरे पर विस्मय है।

कविता- आज फ़्री होने की खुशी मनाने का मन था, प्रिया। चल, आज यहाँ हमारा आखिरी दिन है, एक-एक कप कॉफ़ी साथ हो जाए।


कैमरा दोनों को कॉफ़ी- हाउस जाते देखता है।

दृश्य - 27



 कैमरे द्वारा कॉफ़ी-हाउस के दृश्यों  का छायांकन किया जाता

दोनों काफ़ी हाउस में प्रवेश करती हैं। एक कोने में बैठती हैं। रंगा आकर टेबिल साफ़ करता है। एक लड़का दो ग्लास पानी लाकर रखता है।
रंगा - क्या बात है। कविता दीदी, आजकल अपना डॉ श्याम इधर कॉफ़ी पीने नहीं आता। पहले तो आप दोनों रोज़ इधर आते थे। (हॅंसता है)

कविता - क्या मैंने डॉ श्याम का ठेका ले रखा है? तुझे उनकी इतनी ही फ़िक्र है तो हॉस्पिटल में जाकर मिल आ। (खीजती है)

रंगा - माफ़ करना, दीदी। हमने तो ऐसे ही पूछ लिया। (रंगा जाता है)

प्रिया - क्या बात है, कविता। पिछले दो-चार दिनों से तू उखड़ी-उखड़ी सी है। आज डॉ श्याम को तूने जिस तरह जवाब दे डाला, वह तेरे स्वभाव से मेल नहीं खाता। क्या श्याम से कोई नाराजगी है? प्यार में छोटी-मोटी नोकझोंक चलती ही रहती हैं, कविता। (हॅंसती है)

कविता - डॉ श्याम का मेरे सामने नाम भी मत लेना। वो तो ऊपर से नीचे तक फ़्रॉड है। मेरा उनसे कुछ लेना-देना नहीं है, प्रिया।

प्रिया - वाह। कल तक तो उनकी तारीफ़ो के पुल बाँधती थी, आज वो धोखेबाज़ हो गए। (हॅंसती है)

कविता - तू लकी हैं, प्रिया। डॉ प्रशान्त ने सीधे-सीधे अपनी प्रेम-कहानी तुझे सुना डाली। बेकार का भ्रम तो तूने नहीं पाला। अब अच्छी लड़की की तरह माँ-बाप के कहने से शादी कर रही है।

प्रिया - अरे रे रे। लगता है, बात कुछ सीरियस है। क्या श्याम की ज़िंदगी में कोई और लड़की है, कविता?

कविता - छोड़, प्रिया। इस वक्त ड़ॉ श्याम का नाम लेकर मेरा मूड और मत खराब कर। तू बता तेरे सुमीत जी कैसे हैं? (हॅंसती है)

प्रिया - सीधे-साधे इंसान हैं। उन पर अपनी डॉक्टरी का रोब जमा सकती हूँ। (हॅंसती है)

कविता - इस भुलावे में मत रहना। वो प्रोफ़ेसर हैं, अपनी बात मनवाना अच्छी तरह जानते होंगे।

(दोनों हॅंसती हैं)

प्रिया - तू सचमुच श्याम को छोड़कर यू.के. जा रही है? उनके बिना रह पाएगी। तुम दोनों की प्रेम-कहानी पूरे कॉलेज में फैल चुकी है। (हॅंसती है)

कविता - मुझे अपने पर विश्वास है ...................

प्रिया - अपने अनुभव के आधार पर मैं दावा कर सकती हूँ, तू श्याम के लिए ज़रूर वापस आएगी, बशर्ते श्याम भी तेरा इंतज़ार कर रहे हों। (हॅंसती है)

कविता - चल, अभी तो घर में माँ इंतज़ार कर रही होंगी।

(दोनों कॉफ़ी-हाउस से निकल कर अलग-अलग दिशाओं में जाती हैं। कैमरा कविता की पीठ पर निबद्ध होता है)



दृश्य - 28

कैमरा पहले सीन वाले कॉफ़ी-हाउस मे आता है  डॉ श्याम और शिवानी बैठे है, सामने खाली मग और ग्लास हैं। फ़्लैश-बैक समाप्त होता है। श्याम अपनी कहानी सुना कर चुप हो जाता है।

शिवानी - तुमने सच्चाई कविता को शुरू में ही बता दी होती, श्याम तो आज कहानी का सुखद अंत होता।

श्याम - मैं मानता हूँ, कविता को मेरी सच्चाई जानकर बहुत चोट पहुँची होगी। अपनी कायरता या डर की वजह से मैं कविता को खो बैठा, शिवानी।

शिवानी - तुम्हारे पिता को तुम्हारे और कविता के बारे में कुछ पता है, श्याम?

श्याम - नहीं, वह बस इतना ही जान सके, कविता मेरे ही कॉलेज मे डॉक्टरी पढ़ रही थी। उसने उन्हें बहुत आदर-मान दिया। उनके पाँव छू, उसने उन्हें चौका दिया। वो तो कविता को आशीषते नहीं थकते।

शिवानी - इस तरह कब तक चलेगा, श्याम?

श्याम - अपनी भूल का प्रायश्चित कर रहा हूँ, शिवानी। बाबू के लिए इसी शहर में एक फूलों की दूकान खोल दी है। वे अपनी फ़्लॉरिस्ट-शॉप के प्रति बहुत उत्साहित हैं, पर शादी के लिए मेरी उदासीनता, उन्हें कष्ट देती है।

शिवानी - उन्हें असलियत क्यों नहीं बता देते, श्याम?

श्याम - वो बता पाने के लिए कविता का इंतज़ार है, शिवानी।

शिवानी - तुम्हें यकीन है, कविता तुम्हारे लिए वापस लौटेगी?

श्याम - मुझे पक्का विश्वास है। मेरा प्यार उसे मुझ तक ज़रूर खींच लाएगा।

शिवानी - भगवान तुम्हारा विश्वास सच करें। चलो तुम्हारी फ़्लॉरिस्ट-शॉप देखें, इसी बहाने बाबा से भी मुलाकात हो जाएगी।

श्याम - चलो, बाबू, तुम्हें देखकर बहुत खुश होंगे।

(दोनों कॉफ़ी-टेबल से उठकर खड़े होते हैं। कॉफ़ी-हाउस से बाहर निकलते हैं।)

कैमरा उन्हें बाहर जाता देखता है।



दृश्य -29

कैमरा बाहर से एक फूलों की दूकान देखता है। दूकान पर "बसंत-बहार" का बोर्ड लगा, पढता है।श्याम और शिवानी को आते देखता है। दोनों के साथ शॉप में प्रवेश करता है।

शिवानी और श्याम दूकान के अंदर आते हैं। कैमरा, दूकान के अंदर सजे गुलाब, लिली आदि के बुकेज़ को देखता हुआ दूकान के स्वामी रामदीन को देखता है। रामदीन कुर्ता-पाजामा पहने हैं। वह एक ग्राहक से बात कर रहे हैं। आर्डर लेते हैं। एक युवक तत्परता से बुके निकाल कर थमाता है। श्याम के साथ शिवानी पहुँचती है। रामदीन की दृष्टि दोनों पर पड़ती है। चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है।

संवाद

श्याम - कैसा काम चल रहा है, बाबू। ये मेरी सीनियर  डॉ शिवानी हैं। अमरीका से आई हैं।

शिवानी - प्रणाम, बाबा। आपकी शॉप के फूल तो इतने सुंदर हैं कि जी चाहता है, सारे फूल खरीद डालूं। (हॅंसती है)

श्याम - ये फूल बाबू की मेहनत के फूल हैं। अपने जीवन की सारी पूंजी लगाकर बाबू ने शहर के बाहर ज़मीन खरीदकर ये फूल उगाए हैं।

शिवानी - सच, इन फूलों के रंगों में बाबा की मेहनत महक रही है।

रामदीन - वाह। यही बात कविता बेटी भी कह रही थी। जानते हो, श्याम मेरी फूलों की दूकान देख कविता कितनी खुश हुई।

श्याम - ( चौंकता है) किस कविता की बात कर रहे हो, बाबू?

रामदीन - याद नहीं, लखनऊ में प्रिंसिपल साहब की बेटी की सगाई में तेरे कॉलेज में पढ़ने वाली लड़की कविता ने मेरे पाँव छुए थे। आज भी मेरे पाँव छूकर गई है। बड़ी प्यारी लड़की है, कविता। (मुस्कराते हैं)

श्याम -क्या ........ कविता यहाँ आई थी ...... कब ?

रामदीन - थोड़ी देर पहले ही तो गई है। कल से रोज़ाना पच्चीस बुके राजभवन में भेजे जाएँगे। ये देख ऑर्डर के लिए पेशगी रूपए भी दे गई है। (एक रसीद दिखाते हैं)

श्याम - इसका मतलब कविता वापस आ गई है, शिवानी।

शिवानी - हाँ, श्याम शायद तुम्हारा यकीन सच्चा है।

रामदीन - कैसा यकीन, श्याम। हाँ, आज शाम कविता बेटी का जन्म-दिन है। मैं उसे अपनी ओर से फूल भेजना चाहता हूँ।

श्याम - तुमने कैसे जाना, आज कविता का जन्म दिन है, बाबा।

रामदीन - माँ के साथ कविता मंदिर गई थी। फूल लेने यहाँ आई थी तभी उसकी माँ ने बताया था। बड़ी अच्छी लड़की है, कविता।

श्याम - ओह, आज का दिन मैं कैसे भूल गया। आज उसका जन्मदिन है।

रामदीन - क्या तू, कविता को जानता है, श्याम? (ताज्जुब में है)

श्याम - बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, बाबा। वो सफ़ेद गुलाब के फूल दे दो। मैं खुद कविता को देकर आऊंगा।

रामदीन - हाँ, यही ठीक होगा। मेरी ओर से भी बधाई और मेरा आशीर्वाद दे आना (फूल श्याम को देता है। श्याम फूल लेकर बाहर आता है)

शिवानी - मेरी शुभकामनाएँ। भगवान से प्रार्थना करूँगी तुम्हें तुम्हारी कविता मिल जाए, श्याम। (हॅंसती है)

श्याम - थैंक्स, शिवानी।

शिवानी और श्याम अलग-अलग दिशाओं में जाते हैं। कैमरा सफ़ेद गुलाब के फूलों पर केंद्रित होता है।



दृश्य - 30

कैमरे मे कविता के सजे हुए घर के दृश्यों के साथ अंदर के दृश्यों को लिया  जाता है।

कविता का घर। बंगला विद्युत- झालरों से सजा है ड्राइंग-रूम में फूल सजे हैं। अतिथियों में स्त्री-पुरूष, बच्चे युवक-युवतियाँ हैं। म्यूज़िक सिस्टम पर हल्का संगीत चल रहा है। कविता ने गुलाबी सिल्क का सलवार-सूट पहन रखा है। अतिथि उसे उपहार-फूल देकर बधाई दे रहे हैं। कविता हल्की मुस्कान के साथ उपहार-फूल ले रही है। कविता के माता-पिता, अतिथियों का स्वागत कर रहे हैं। कविता की सहेली प्रिया अपने पति सुमीत के साथ आती है। कविता को फूल देकर प्रिया और कविता गले मिलती हैं।

प्रिया - भारत- वापसी का स्वागत है। मुझे तो लग रहा था कहीं तुम वहीं न बस जाओ। (हॅंसती है)  इनसे मिलो मेरे पति देव प्रोफ़ेसर सुमीत।

कविता - नमस्ते, जीजू। प्रिया आपको परेशान तो नहीं करती? (हॅंसती है)

पति - प्रोफे़सर हूँ, शैतान स्टूडेंट्स को साधना जानता हूँ। (हॅंसता है)

प्रिया - और बता, यू.के. कैसा लगा? हमारी याद आती थी या नहीं?

कविता - तेरी याद न आती तो क्या उस देश को छोड़कर वापस आती। चल, पहले कोल्ड-ड्रिंक्स तो ले ले।

(संकेत से वेटर को बुलाती है। प्रिया और उसके पति को कोल्ड ड्रिंक के ग्लास थमाती है। तभी प्रोफ़ेसर के कुछ मित्र आकर उन्हें अपने साथ ले जाते हैं। प्रिया और कविता अकेली रह जाती हैं)

प्रिया - एक बात बता, श्याम से मिली या नहीं?

कविता - नहीं। न मिलने की चाहत है।

प्रिया - रहने दे, सच तो ये है श्याम की चाहत ही तुझे यहाँ वापस खींच लाई वर्ना वहीं किसी चाहने वाले के साथ घर बसा लेती। सुना है, तेरे चारों ओर भॅंवरे मंडराते थे।

कविता - वाह रहती तो भारत में है, पर ख़बर लंदन की रखती है। (हॅंसती है)

प्रिया - अजी, हम क्या किसी से कम हैं, हमारे भी एकाध चाहने वाले लंदन में हैं। तुझ पर पूरी नज़र रखते थे।

कविता - अच्छा तो अब मेडिकल- प्रोफे़शन छोड़, डिटेक्टिव एजेंसी खोल ली है। (हॅंसती है)

प्रिया - मज़ाक छोड़, कविता। ये बता, श्याम की सज़ा कब खत्म होगी। जानती है, अपनी भूल का वह किस तरह प्रायश्चित कर रहा है? सच तो ये है, प्रायश्चित को ही उसने ज़िदगी का मक़सद बना लिया है।

कविता - हाँ उसने अपने पिताजी के लिए एक फ़्लॉरिस्ट शॉप खुलवा दी है।

प्रिया - सिर्फ़ इतना ही नहीं, छुट्टी का पूरा दिन वह अपने पिता की बगिया की देख -रेख में बिताता है। अपने सर्जरी-वार्ड की क्यारियों में उसी बगिया से फूलों के पौधे लाकर खुद रोपता है।

कविता - मैं उसके फूलों वाली क्यारियाँ वार्ड में देख आई हूँ ............................

प्रिया - यानी तू डिपार्टमेंट तक गई, पर श्याम से नहीं मिली? (चेहरे पर ताज्जुब है)

कविता - नहीं।

प्रिया - श्याम से नहीं मिलना था तो उसके डिपार्टमेंट तक बेकार ही चक्कर लगा आई? सच्चाई से कब तक मुंह चुराएगी, कविता?

कविता - मेरी यही सच्चाई है।

प्रिया - अगर श्याम तेरे सामने आ जाए तो इसी सच्चाई पर कायम रह सकेगी? उसे खाली हाथ वापस कर सकेगी, कविता?

कविता - अगर उसमें इतना साहस होता तो क्या मुझे यू.के. जाने देता?  मुझे रोक न लेता।

प्रिया - किस हक़ से तुझे रोकता, कविता। काश् तू उसके सच्चे प्यार की कद्र कर पाती। तूने मुझे निराश किया है, कविता । (उदास है)

कविता - देख, आज के दिन उन पुरानी बातों को दोहरा कर मूड मत खराब कर। । तेरे लिए यू के से एक गिफ़्ट लाई हूं, उसे पाकर तू अपनी मायूसी भूल जाएगी।

 प्रिया- रुक कविता,  जो मैं देख पा रही हूं, उसने तो मेरा मूड ही बदल दिया। ज़रा उधर  तो देख- -प्रिया हॉल के द्वार की ओर इशारा करती है।

कैमरा दोनों की दृष्टि का अनुसरण करता है



दृश्य - 31 कैमरा



तभी कैमरा श्याम को सफे़द रजनीगंधा के फूलों के साथ ड्राइंग-रूम के खुले दरवाज़े से प्रवेश करता देखता है। कविता और श्याम की नज़रें मिलती हैं। प्रिया भी श्याम को देखती है। श्याम एक क्षण को ठिठक जाता है।

प्रिया - अरे, श्याम आ रहा है। देख, कविता, इस बार ग़लती मत करना। तुम दोनों के पास एक-दूसरे से कहने के लिए ढेर सारी बातें होंगी। मैं अपने पति देव के पास जा रही हूँ। प्लीज़ अब अपनी नाराज़गी भूल जा, श्याम को बहुत सज़ा दी है तूने।

(जाने का उपक्रम करती है। कविता उसका हाथ पकड़ना चाहती है। प्रिया हाथ छुड़ाकर श्याम को हाथ हिला, विश करके सुमीत के पास चली जाती है। श्याम आगे आकर कविता को फूल थमाता है। कविता मूर्ति सी खड़ी , फूल थामती है।)

श्याम - जन्म-दिन मुबारक हो, कविता।

कविता - शुक्रिया ....................

श्याम - माफ़ करना, ये जानते हुए भी कि तुम्हें लाल गुलाब पसंद हैं, आज सफे़द गुलाब के फूल लाया हूँ।

कविता - (फूलों से नज़र उठाकर श्याम को देखती है) क्यों, श्याम?

श्याम - सफे़द रंग शांति का प्रतीक होता है। क्या मेरे अशांत जीवन को शांति मिलेगी? ये सफे़द फूल मेरी ओर से संधि के प्रतीक हैं। जो चाहो, सज़ा दे दो, पर मुझे छोड़कर मत जाना, कविता। बोलो, कविता?

(व्यंग्र नज़र कविता के चेहरे पर गड़ती है। कविता प्यार से गुलाब के फूलों से अपने गालों को सहलाती है। चेहरे पर भीनी मुस्कान आती है)

कविता - तुमसे दूर रहना, मेरे लिए भी आसान नहीं था, श्याम। दूर रहकर ही जाना जिसे सच्चे मन से प्यार किया जाता है, उसकी कमज़ोरियों को नज़र- अंदाज़ करके माफ़ी दे देनी चाहिए। शायद मैंने ज़्यादती की है।

श्याम - नहीं, कविता, सच्चा प्यार ही इंसान को अपनी कमज़ोरियों पर विजय पाने की शक्ति देता है। तुम्हारे प्यार ने ही मुझे अपना फ़र्ज याद दिलाया है। बाबूजी आज अपने वर्तमान से बहुत खुश हैं।

कविता - हाँ, मैं बाबूजी से मिल चुकी हूँ। उनकी खुशी देखकर; सच तुम पर गर्व हुआ, श्याम।

श्याम - इसके लिए तो मैं तुम्हारा आभारी हूँ, कविता। तुमने एक कायर इंसान को साहस देकर, पूरा बदल डाला। (मुस्कराता है)

कविता - ठीक कहते हो, एक चीर-फाड़ करने वाले डॉक्टर को फ़्लॉरिस्ट बना दिया है। (हॅंसती है)

श्याम - जानती हो इस फ़्लॉरिस्ट का सुंदरतम गुलाब कौन है?

कविता - लाल गुलाब, ठीक कहा न?

श्याम - नहीं, कविता। मेरे जीवन का सुंदरतम गुलाब तुम हो।

कविता - गुलाब में कांटे होते हैं, जरा बचकर रहिएगा, जनाब। (हॅंसती है)

श्याम - मैं तो काँटों से भी प्यार करता हूँ। अगर काँटों की चुभन महसूस न की तो ज़िंदगी में सुख और दुख का अंतर कैसे समझ में आएगा, कविता।

कविता - लगता है, मेरे न रहने पर भारतीय-दर्शन का भी अध्ययन कर डाला है? (हॅंसती है)

श्याम - तुमसे अलग रहकर ही तो जीवन का दर्शन समझ सका हूं, कविता। (गम्भीर है)

कविता - यानी एक-दूसरे से दूर रहकर हम दोनों की ज़्यादा समझदार हो गए हैं। क्यों न हम हमेशा अलग ही रहें। (आवाज़ में शरारत है)

श्याम - नहीं, अब तुम्हें खोने की ग़लती नहीं करूँगा, कविता, पर क्या तुम्हारे मम्मी-पापा मुझे स्वीकार कर सकेंगे?

कविता - ये तो सीरियस समस्या है, बताओ इसे कैसे सुलझाएँ।

श्याम - मेरे ख़्याल में हमे उन्हें सब कुछ सच-सच बता देना चाहिए। तुम्हारे पापा तो सच्चे समाज-सेवक हैं। मुझे स्वीकार करना क्या इतना कठिन होगा?

कविता - हूँ, ये बात तो ठीक है। वैसे भी पापा अपनी चहेती बेटी का दिल नहीं तोड़ सकते। (हॅंसती है)



दृश्य - 32



कैमरा प्रिया के साथ कविता की माँ को श्याम और कविता की ओर आते देखता है। दोनों के चेहरों पर खुशी है। श्याम के पास आकर प्रिया उसका परिचय कविता की माँ से कराती है।

प्रिया - आँटी, यही डॉक्टर श्याम, शहर के नामी सर्जन हैं। श्याम, ये कविता की मम्मी और हमारी प्यारी आँटी हैं।

माँ - हम तुम्हारे बहुत आभारी हैं, डाँ0 श्याम। तुमने मेरे भतीजे राहुल की सर्जरी करके उसे नई जिंदगी दी है।

श्याम - मरीज़ की ज़िंदगी बचाना तो हर डॉक्टर का फ़र्ज़ होता है। अब तो आपकी बेटी भी सर्जन बन गई है। (मुस्कराता है)

माँ - कविता को सर्जन बनाने में भी तो तुम्हारा ही श्रेय है। (मुस्कराती हैं) न तुम चुनौती देते, न कविता सर्जरी में एम.एस. करती।

श्याम - नहीं ऐसा कहकर मुझे शर्मिन्दा न करें। अपनी ग़लती के लिए मैं कविता से माफ़ी माँग चुका हूँ।

माँ - माफ़ी तो कविता को माँगनी चाहिए। उसने तुम्हारे दिल को ठेस पहुंचाई है।

श्याम - ग़लती तो मेरी ही थी। झूठ के पैर नहीं होते इसीलिए सज़ा तो मिलनी ही चाहिए थी। मैंने कविता को बहुत बड़ा आघात पहुंचाया हैं।

प्रिया - वैसे आँटी, दोनों ही ने एक-दूसरे का भला किया है। श्याम की ज़रा सी चुनौती ने कविता को सर्जन बना दिया और कविता की मीठी सी फटकार ने ड़ॉ श्याम को फूलों का राजा बना दिया। (हॅंसती हैं)

कविता - जानते हो श्याम। इस प्रिया ने मम्मी-पापा को हमारे बारे में सब कुछ बता दिया। दोस्ती की जगह दुश्मनी निभाई है।

माँ - छिः, ये क्या कह रही है। अगर प्रिया बेटी ने सच्चाई न बताई होती तो ये ज़िद्दी कविता, यू.के. में पड़ी रहती और हम अपनी बेटी खो बैठते। मैं तो तुम्हारी आभारी हूँ, श्याम बेटे। तुम्हारी चाहत आखिर इसे वापस खींच ही लाई।

प्रिया - अरे आँटी, किसकी बात कर रही हैं। कविता तो इसी इंतज़ार में थी, कब आप और अंकल, श्याम के साथ इसकी शादी के लिए हाँ कहें, और देखिए आपकी हाँ सुनते ही पहली फ़्लाइट से उड़कर आ गई। (हॅंसती है)

कविता - देख रही हूँ, हमारी सीधी-सादी प्रिया पर प्रोफेसर सुमीत का रंग चढ़ गया है। खूब भाषणवाज़ी करने लगी हैं।

श्याम - आँटी, क्या आप मेरी जिंदगी का सच जानती हैं। मेरे पिता एक ग़रीब इंसान हैं।

माँ - नहीं, श्याम। तुम्हारे पिता की सच्चाई और ईमानदारी के आगे तो सारी धन-सम्पत्ति धूल समान है। मैं उनसे मिल चुकी हूँ, वह तो आदर के पात्र हैं।

प्रिया - अरे डॉ श्याम। हमारी आँटी और अंकल बहुत ग्रेट हैं। चलिए जनाब, दोनों के पाँव छूकर आशीर्वाद ले लीजिए। कहीं चूक गए तो मौका निकल जाएगा। पार्टी में कई और भी सुपात्र मौज़ूद हैं। (सब हॅंसते हैं)

कवित गुलाब के फूल एक कोने में रखे फ़्लॉवर वाज़ में रखती है। कैमरा फूलों पर केंद्रित होता है।



दृश्य - 33

कैमरा श्याम, कविता, कविता की माँ और प्रिया को, कविता के पापा मि0 कपूर की ओर जाते हुए देखता है।  उन्हें अपनी ओर आता  देखकर कविता के पिता मुस्कराते हैं।

मि0 कपूर - कहिए, ये पार्टी हमारी ओर क्यों आ रही है?

प्रिया - जल्दी से अपने होने वाले जमाई राजा को आशीर्वाद दे डालिए, अंकल। यही हैं डॉ श्याम ....... (श्याम और कविता झुक कर कविता के पापा व मम्मी के पाँव छूते हैं। वे उन्हें आशीर्वाद देते हैं। पापा घोषणा करते हैं।)

मि0 कपूर - दोस्तों, आज कविता के जन्मदिन के साथ एक और खुशी जोड़ना चाहता हूँ। आज मैं अपनी बेटी कविता की डॉ श्याम के साथ सगाई अनाउंस करता हूँ।

(सब लोग तालियाँ बजाते हैं। श्याम के पिता भी आकर सम्मिलित होते हैं। श्याम उन्हें आश्चर्य से देखता है।)

श्याम - माफ़ करना, बाबू। ये सब इतना अचानक हो गया, मुझे खुद ख़बर नहीं थी, पर आप यहाँ कैसे?

रामदीन - मुझे बिना बताए, बगैर मेरी इजाज़त के सगाई कर ली। चल, घर चलकर तुझसे बात करता हूँ।

श्याम - सगाई की खबर तो खुद मुझे भी नहीं थी, बाबू ................

रामदीन - रहने दे, अब बातें बनाने से तेरी सज़ा कम नहीं होगी। क्यों कविता बेटी, ठीक कहा न ? (मुस्कराते हैं)

कविता - जी, बाबा। इन्हें कड़ी से कड़ी सज़ा दीजिएगा। वैसे सज़ा भोगने की इन्हें आदत है। (मुस्कराती है)

मि0 कपूर - आपको यहाँ आने में थोड़ी देर हो गई, माफ़ करें आपके आने के पहले ही मुझे सगाई की घोषणा करनी पड़ी। क्या ड्राइवर देर से पहुँचा?

रामदीन - असल में मैं कविता बेटी के लिए उसके मनपसंद लाल लिली के फूलों का इंतज़ार कर रहा था। लाल लिली हमारी बगिया की ख़ासियत हैं। श्याम ने इन्हें खुद अपने हाथों से लगाया है। लो, श्याम ये फूल कविता को दे दो। (फूल श्याम को थमाता है)

श्याम - अच्छा तो आप सबने मिलकर पूरी तैयारी की थी और मैं मूर्ख बन गया। चलिए, ये सज़ा भी कुबूल की वैसे ये लिली के फूल असली फ़्लॉरिस्ट की भेंट हैं। कुबूल फ़र्माएँ

श्याम लाल लिली के फूल कविता को थमाता है। कविता फूल लेती है। दोनों रामदीन के पाँव छूते हैं, वह उन्हें आशीर्वाद देते हैं। कैमरा श्याम द्वारा लाए रजनीगंधा के फूलों को देखता हुआ लाल लिली के फूलों को देखता है। संगीत तीव्रतर होता है। श्याम और कविता एक-दूसरे को देखकर मुस्कराते हैं। हवा में हिलते खिले रंग-बिरंगे फूल विदा देते प्रतीत होते है। लाल लिली के फूल स्क्रीन पर छा जाते हैं।



दृश्य - 34

अंतिम दृश्य निर्माता के लिए।

श्याम और कविता की शादी के दृश्य फ़िल्माए जा सकते हैं, पर यह  विकल्प निर्माता की मर्ज़ी पर  है।

No comments:

Post a Comment