12/3/09

फाँस

”नीलू भाभी........“


पीछे से आयी पुकार पर नीलम ने मुड़कर देखा था। सिन्दूर बिना नीलम का चेहरा बहुत सूना-सा लगा था। माथे पर बड़ी-सी दमकती बिन्दी और माँग में गहरा लाल सिन्दूर, नीलम भाभी को अलग पहचान दे जाते थे। क्या अतुल दा नहीं रहे............?

स्तब्ध काजल को अपनी ओर निहारते देख, नीलम हल्के-से मुस्कराई थी।

”अरे काजल तू अचानक यहाँ कैसे?“

”नीरज को एक साल की इंडिया-पोस्टिंग मिली है। अभी दो दिन पहले ही तो यहाँ पहुँचें। लेकिन भाभी तुम लोग बाँम्बे कब आये? मुझे कोई खबर भी नहीं दी?“ काजल के स्वर में हल्की शिकायत-सी थी।

”हाँ काजल, बस कुछ ऐसा ही रहा। तू बता कैसी है? नीरज जी तो ठीक हैं?“

”हम सब तो ठीक हैं, पर हमारे अतुल दा कैसे हैं?“ स्वर में बेहद उत्सुकता थी।

”ठीक ही होंगे.........“

”वाह ऐसे कह रही हैं जैसे वह आपके पति न होकर कोई अजनबी हैं। कोई नयी खबर नहीं है भाभी? हमें तो आपने भुला ही दिया।“

”भाभी की जगह दीदी पुकारो तो ठीक रहेगा काजल।“ कुछ विरक्त से स्वर में नीलम ने कहा था।

”कयों भाभी न पुकारूँ? तुम मेरी भाभी थीं, हो और हमेशा हरोगी। क्या अतुल दा से लड़ाई कर डाली है भाभी?“

”सब कुछ यहीं पूछ डालोगी काजल।“

”तुम पहेलियाँ क्यों बुझा रही हो भाभी। जब भी अतुल दा के बारे में कुछ पूछ रही हूँ, तुम टाल रही हो, कैसे हैं अतुल दा?“

”जहाँ होंगे, ठीक ही होंगे।“

”फिर पहेली, आखिर बात क्या है? तुम्हारे बिना अतुल दा क्या एक पल को भी ठीक रह सकते हैं?“

”हम दोनों अलग हो गये हैंए काजल......“

”क्या .......... ये कैसे हो सकता है भाभी तुम दोनों को एक-दूसरे के बिना .... नहीं मैं तो सोच भी नहीं सकती।“ काजल परेशान हो उठी थी।

”ज्यादा मिठाई में ही चींटी लगती है न काजल?“

”या यॅंू कहो, लोगों की नजर लग गयी एभाभी।“

”शायद यही सच रहा हो।“

”अभी तुम कहाँ जा रही हो भाभी?“

”यहाँ काँलेज में जाँब ले लिया है। कभी घर आना काजल, बहुत दिनों से तुझसे बातें नहीं की हैं।“

”कभी क्यों, आज ही पहॅुंचॅंूगी। बहुत दिनों से तुम्हारे हाथ का खाना भी नहीं खाया है, आज कसर पूरी कर लुँगी।“

”ठीक है काजल, नीरज जी को भी लाना- इन्तजार करूँगी। चलुँ काजल, क्लास के लिए देर हो रही है।“

”ठीक है भाभी।“

नीलम मुड़कर चल दी थी। नीलम की पीठ को देखती काजल उदास खड़ी रह गयी थी। क्या हो गया है भाभी को हमेशा की तरह न उमंग कर काजल को गले से लगाया, न ढंग से हालचाल पूछा। काँलेज जाने की ऐसी भी क्या जल्दी, क्या थोड़ा रूक नहीं सकती थीं?

घर पहुँच काजल गुमसुम-सी पड़ गयी थी। नीरज के आने पर भी हमेशा की तरह काजल उत्साहित न हो सकी थी।

”क्या बात है भई, आज चाँद से चेहरे पर बदली छाई है। कोई ख़ास बात?“

”आज मार्केट जाते अचानक नीलू भाभी मिल गयी थी एनीरज।“

”वाह इस बात पर तो तुम्हारा चेहरा खुशी से चमकना चाहिए था। घर बैठे मनोकामना पूरी हो गयी, पर तुम तो उनके लखनऊ होने की बात कह रही थीं न?“

”मुझे तो यही पता था, पर वह बाँम्बे में जाँब कर रही हैं। जानते हो नीरज, अतुल दा और नीलम भाभी अलग हो गये हैं।“

”अरे उनके प्रेम की चर्चा करते तो तुम थकती नहीं थीं फिर ये सब कैसे हो गया?“

”वो सब मुझे भी पता नहीं। नीलू भाभी काँलेज जा रही थीं, वहाँ सब कुछ जान लेना तो पाँसिबिल नहीं था न?“

”तो अब घर जाकर पता कर लो।“

”उसी के लिए तो मैं तुम्हारा वेट कर रही थी। मुझे नीलू भाभी के पास ले चलोगे एनीरज?“

”मेरे ख्याल से नीलू भाभी मेरे सामने खुलकर बात नहीं कर सकेंगी। मैं तो उनके लिए नया व्यक्ति ठहरा, मेरे रहने से बेकार संकोच करेंगी। उनके पास तुम्हारा अकेला जाना ही ठीक होगा।“

”बम्बई में नयी जगह खोज पाना क्या आसान होगा? तुम पहॅुंचा कर चले आना। मैंने वहीं खाने के के लिए भी कह दिया था।“

”पर मुझे तो दस बजे की फ्लाइट से दिल्ली जाना है।“

”अरे अचानक ये दिल्ली का प्रोग्राम कैसे बन गया?“

”बाँस का हुक्म।“

”फिर तो आज नीलू भाभी के पास जाना नहीं हो सकेगा?“

”तुम चाहो तो चली जाओ, मैं खुद तैयारी कर चला जाऊॅंगा?“

”वाह, यह भी कोई बात हुई। आज तक कभी तुमने अपनी तैयारी स्वंय की है? बताओ कितने दिन के लिए कपड़े रख दुँ?“

”चार-पाँच दिन तो लग ही जाएँगे......“

”चार-पाँच दिन? मैं तो एकदम बोर हो जाऊॅंगी।“

”क्यों भई, अब तो तुम्हारी फ़ेवरिट भाभी जान भी मिल गयी हैं- अब हमारी क्यों याद की जाएगी।“

”भाभी तुम्हें रिप्लेस कर सकती हैं एनीरज?“

”क्या करूँ, नौकरी करना है तो बाँस का हुक्म बजाना ही होगा। कहो तो नौकरी छोड़ पत्नी-सेवा शुरू कर दुँ।“

”तुम और पत्नी-सेवा?“

”क्यों करता नहीं हूँ? करके दिखाऊॅं।“

”छिः गंदे कहीं के, नहीं बोलना है तुमसे, काम करने दो मुझे।“ पास आते नीरज को काजल ने मीठे स्वर में झिड़का था।

नीरज के चले जाने के बाद काजल पलंग पर जा लेटी थी, पर नींद आने का नाम ही नहीं ले रही थी। सुबह नीलम से हुई बातें दिमाग में चक्कर काट रही थीं।

अतुल दा ने घर में जब नीलम से विवाह करने का अपना निर्णय चाची को सुनाया था तो वह काठ-सी खड़ी रह गयी थीं।

‘क्या कह रहा है एअतुल? उनकी अंतिम इच्छा भी पूरी नहीं होगी।’ मुश्किल से चाची कह पायी थीं।

‘माँ, मैं पिताजी के दिये वचन पर अपना जीवन कुर्बान नहीं कर सकता। रेखा से विवाह करना असम्भव है। मैं नीलम से प्यार करता हूँ।’

‘प्यार-व्यार मैं नहीं जनती, पिता को अंतिम समय दिये गये वचन को तू यॅंू नहीं भुला सकता एअतुल। उनकी आत्मा की शांति की बात ज्यादा महत्वपूर्ण है और जो जीवित है उसकी शांति-अशांति से तुम्हें कोई मतलब नहीं माँ?’

‘उसी समय तूने उनसे ये बात क्यों नहीं कही थी?......... जाते-जाते रेखा के सिर पर हाथ धर आशीर्वाद तो न देते। क्या बीतेगी उस लड़की के दिल पर, यह भी सोचा है?’

‘मैं रेखा से माफी माँग लुँगा माँ, पर पत्नी रूप में उसे स्वीकार कर पाना असंभव है। मैं उसका जीवन नष्ट नहीं करना चाहता।’

‘जीवन तो उसका तूने नष्ट कर ही दिया है अतुल- इतने दिनों की सगाई टूटने पर बदनामी लड़की की ही होती है- ये बात जानता है न?’

‘सब कुछ जानता हूँ माँ। मैं रेखा के लिए सुपात्र खोजकर ही अपना विवाह करूँगा।’

‘अगर उस लड़की में जरा-सा भी स्वाभिमान है तो तेरी भीख स्वीकार नहीं करेगी। तू उसे दुखी करके सुखी नहीं रह सकेगा एअतुल।’

माँ के उस वाक्य पर अतुल चैंक गया था। पराई लड़की के लिए इनके मन में इतना स्नेह कि अपने बेटे के अमंगल की कामना कर बैठी थीं।

बचपन से पड़ोस के उस घर में खेली-बढ़ी काजल को, चाची से बेटी-सा स्नेह प्राप्त हुआ था। अतुल दा के हाथ में बचपन से राखी बाँधती आयी काजल को उससे भी बड़े भाई-सा स्नेह-संरक्षण मिला था। चाची की बात सुन काजल को अतुल दा पर कितना गुस्सा आया था।

‘भला ये भी कोई बात हुई अतुल दा-रेखा भाभी को कैसा लगेगा? वह भी हाड़-मांस की इन्सान हैं, उनके दिल पर क्या बीतेगी, एक मिनट को भी सोच पाये हो।’

‘सब सोच-समझ कर ही निर्णय लिया है एकाजल। विवाह कर मैं रेखा के प्रति अधिक अन्याय करूँगा। तू ही बता, शरीर किसी के साथ रहने को बाध्य हो, पर मन किसी और के वश में हो- क्या यह न्यायोचित होगा? तू समझ नहीं सकेगी काजल, जबरन रेखा से विवाह, उसका अपमान ही तो होगा?’

अतुल दा का उतरा मॅंुह देख काजल का मन भर आया था। पूरी रात सोचने में बिता, अगले दिन काजल ने निर्णय ले लिया था। रिक्शे से रेखा के घर पहुँच काजल ने प्रश्न किया था-

‘रेखा दीदी, अगर किसी व्यक्ति का किसी लड़की से प्रेम हो, सब कुछ जानते हुए ऐसे व्यक्ति से विवाह करना क्या ठीक है?’

‘किसकी बात कर रही है काजल?’

‘उसे छोड़ दो, बस मेरे प्रश्न का उत्तर देना होगा।’

‘नहीं, ऐसे व्यक्ति पत्नी के साथ कभी न्याय नहीं कर सकते। पत्नी को हमेशा पूर्व पे्रमिका की कसौटी पर परखा जायेगा। ऐसे व्यक्ति से विवाह करना मूर्खता होगी।’

‘अर्थात् तुम किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं करोगी न रेखा दी?’ काजल ने सीधा प्रश्न किया था।

‘मुझे मूर्ख समझती है जो ऐसे व्यक्ति के लिए हाँ कहूँगी, पर तू किसके बारे में पूछ रही है?’ रेखा जैसे शंकित हो उठी थी।

‘अतुल दा किसी और से प्रेम करते हैं रेखा दी, पर चाचाजी ने अंतिम समय उनसे तुम्हारे साथ विवाह का वचन लिया था।’

‘ओह.........’ रेखा चुप पड़ गयी थी।

‘चाची अतुल दा को तुम्हारे साथ विवाह के लिए विवश कर रही हैं एरेखा दी। बताओ क्या जबरदस्ती किया विवाह सफल हो सकेगा?’

‘यही बात बताने अतुल ने तुम्हें भेजा है एकाजल? स्वंय कह पाने का साहस क्या उनमें नहीं था?’

‘नहीं रेखा दी, अतुल दा तुमसे स्वंय सब कुछ बताते, पर सब जानकर मुझसे नहीं रहा गया। मैं स्वंय आ गयी, पर अब लगता है शायद यह मेरी गलती थी।’

‘अगर उनके कहने से तुम आती तो सचमुच अपमानित महसूस करती। तुम उन्हें मेरा सन्देश दे देना, मेरी ओर से वह स्वतन्त्र हैं।’

‘अतुल दा तुम्हारे लिए बहुत चिन्तित हैं, वह कह रहे थे..........’

‘उन्हें मेरी चिन्ता करने का अब न अधिकार है न कारण। अपनी चिन्ता मैं स्वंय करने में सक्षम हूँ- यह बता देना। हाँ अब अपनी सफ़ाई देने आने की भी उन्हें जरूरत नहीं है।’

‘तुम अतुल दा से नाराज हो?’

‘अगर वह दबाव में आकर मुझसे विवाह करते तो ज़रूर नाराज होती।’ रेखा ने हॅंसने की असफल चेष्टा की थी।

परिवार के हर सदस्य ने अतुल दा को धिक्कारा था- ‘बाप के आँख मॅंूदते ही लड़के ने उनकी बात टाल दी। अरे सपूत होता तो प्रेम-वेम को ताक पर रख बाप की अन्तिम इच्छा पूरी करता।’

‘रेखा जैसी लड़की क्या आसानी से मिल पाती है। हज़ारों में एक है वह लड़की।’

‘अरे देख लेना पछतायेगा अपनी करनी पर। जैसा बोओ वैसा ही पाओगे।’

सब की सुनी-अनसुनी कर अतुल दा ने नीलम से अपने विवाह की तिथि की घोषणा कर दी थी।

बारात के नाम पर अतुल दा के दो-चार दोस्त और रिश्ते के भाई ही गये थे। परिवार के बड़े सदस्यों ने तो शादी का बाँयकाट ही किया था।

‘दिवंगत बाप की आत्मा को दुखाने वाली शादी में जाकर हम क्यों पाप के भागी बनें?’

एकलौते पुत्र के विवाह के लिए चाची के अरमान धरे ही रह गये। मामूली स्कूल-टीचर की लड़की से कैसी उम्मीद।

अतुल दा के साथ जब नीलम भाभी द्वार पर आ खड़ी हुई तो सब चैंक गये थे। साँवले अतुल दा के साथ खड़ी भाभी सचमुच चैदहवीं का चाँद थीं। इतना उजला गोरा रंग, तराशे नयन-नक्श, बुद्धि की दीप्ति से चेहरा जगमगा रहा था। स्तब्ध ताकती चाची को किसी ने टोका था-

‘अब बहू की आरती कर घर में लाओगी या बाहर ही खड़ा रखोगी अतुल की माँ?’

चैंक कर चाची ने आरती का थाल उठाया था। दीप की ज्योति नीलम भाभी के नयनों में चमक उठी थी। झुक कर पाँव छूती नीलम को चाची ने सीने से लगा लिया था।

नीलम भाभी ने घर में उजाला कर दिया था। उनके कंठ से निकला मधुर स्वर अनायास ही आकृष्ट कर लेता था।

‘ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनिया........’ नीलम के गीत ने सबको मुग्ध कर दिया था।

‘कुछ भी कहो, अतुल ने हीरा खोज निकाला है।’

‘हर समय सास के आगे-पीछे घूमती रहती है। अरे कोई और लड़की होती तो घमंड से बात न पूछती।’ पड़ोसिनें चाची के भाग्य को सराहते न थकतीं।

नीलम भाभी में क्या नहीं था- पढ़ाई में हमेशा प्रथम रहने के साथ नृत्य-संगीत की भारी डिग्रियाँ, घर के काम-काज में इतनी निपुण कि लोग ताज्जुब कर जाते। काजल तो उनकी अभिन्न सखी बन गयी थी, बेले की कलियों के गजरे बना, नीलम के केशों को सजाने में उसे विशेष आनन्द आता था। अतुल दा का बेतरतीब कमरा अब नीलम के हाथों का स्पर्श पा चमक उठा था।

‘अतुल दा सच बताइए, नीलम भाभी को किस खजाने से चुरा लाये हैं आप?’ काजल अतुल को खिजाती पूछती थी।

‘क्यों क्या तेरे पास कोई इन्क्वाँयरी के लिए आया था?’

‘देखते नहीं, घर के चारों ओर आजकल पुलिस की सरगर्मी बढ़ गयी है। भाभी तुम छिप कर रहना वर्ना बेचारे अतुल दा चोरी के जुर्म में जेल चले जाएँगे।’

‘अच्छा पुरखिन ये बता चोरी किसने की है- मैंने या नीलम ने?’

‘सब जानते हैं, चोर तुम हो अतुल दा।’

‘एकदम गलत, मेरा दिल चुरा इसने मुझे अपराधी बनाया है। विश्वास न हो तो पूछ लो।’

‘छिः, शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते।’ नीलम भाभी का लाल पड़ा मुख, काजल को बहुत भाता था।

चाची को टाइफाँइड हो गया था। नीलम भाभी ने दिन-रात एक कर दिया था। चाची की चारपाई से सटा अपनी खटिया डाल ली थी। उनकी सेवा देख सब ने नीलम भाभी का लोहा मान लिया था।

‘सगी बेटी भी इतनी सेवा नहीं कर सकती। भाग्यवान हो अतुल की माँ।’

चाचाी स्वंय अपना भाग्य सराहतीं-‘कभी तो आराम कर लिया कर नीलम। तू बीमार पड़ गयी तो घर कैसे चलेगा?’

‘मैं कभी बीमार नहीं पड़ सकती माँ, बड़ी मजबूत जान है मेरी।’ हॅंसकर नीलम उत्तर देती।

‘रात में तू यहाँ मेरे पास सो रहती है, वहाँ अतुल अकेला पड़ा रहता है। मुझे अच्छा नहीं लगता।’ नयी ब्याहली बहू को अपने पास सोते देख चाची संकुचित हो उठतीं। नीलम के प्रति चाची के हृदय में कभी कोई कुंठा रही होगी, अब यह सोच पाना भी सम्भव नहीं था। चाची का घर उल्लास से महकता रहता था। कभी चाची दुख करतीं-‘उनके भाग्य में यह सुख नहीं बदा था......... ऐसे ही चले गये।’

काजल के पापा का बंगलौर ट्रांसफर हो गया था। लखनऊ छोड़ते समय नीलम भाभी के गले लगी काजल को अलग कर पाना मुश्किल हो गया था।

‘अरे पगली, हम तेरे पास आते रहेंगे।’ चाची ने उसे दिलासा देना चाहा था।

‘तेरी शादी में एक महीना पहले से पहुँचेगी तेरी भाभी बशर्ते अभी रोना बन्द कर दे।’ अतुल के परिहास ने सब को हॅंसा दिया था।

लखनऊ से काजल के पास नीलम की चिट्ठियाँ बराबर आती रही थीं। काजल का विवाह अचानक ही तय हुआ था। नीरज अमेरिका से भारत विवाह के लिए आया था। काजल के घर के पास ही उसका घर था। काजल नीरज को भा गयी और बस आनन-फानन एक सप्ताह के भीतर विवाह हो गया था। विवाह में अतुल दा अकेले ही पहॅुंचे थे।

‘तू किसी को बुलाना ही नहीं चाहती थी वर्ना, सब के आने का समय न देती।’ अतुल उसे चिढ़ा रहा था।

‘भाभी क्यों नहीं आयी और चाची के न आने की क्या वजह है अतुल दा?’

‘तेरी भाभी बीमार चल रही है काजल, किसी का उसके पास रहना जरूरी था, इसीलिए माँ नहीं आ सकीं।’

‘क्या हुआ है भाभी को?’

‘कुछ खास नहीं, शायद मौसमी बुखार है, दो-चार दिन में ठीक हो जायेगी। तेरे विवाह में न आ पाने का बहुत दुख है उसके मन में।’

विवाह के बाद काजल अमेरिका चली गयी थी। कुछ दिनों तक वह सब को पत्र लिखती रही फिर पढ़ाई और घर की व्यस्तता के कारण धीरे-धीरे पत्र लिखने-लिखाने में व्यवधान आता गया।

नीरज ने जब बताया, उसकी कम्पनी उसे एक वर्ष के लिए भारत नियुक्ति पर भेज रही है तो घर वालों के साथ अतुल दा और नीलम भाभी से मिल पाने की कल्पना से काजल खिल उठी थी और आज सुबह नीलम भाभी से मिलना कितना अप्रत्याशित और विचित्र था। नीलम के आज के चेहरे से पूर्व परिचित नीलम भाभी के चेहरे में कोई साम्य ही नहीं था। ऐसा क्या घटा, क्या हुआ जो उन्हें एकाकी जीवन जीना पड़ रहा है?

अचानक काजल को याद आया कल इतवार था, भाभी का काँलेज बन्द रहेगा। सुबह होते ही नीलम भाभी को जा पकड़ने की कल्पना में डूबी काजल की नींद सुबह ही खुली थी।

उतनी सुबह काजल को द्वार पर खड़ा देख नीलम का मुख हल्की उजास से परिपूर्ण हो उठा था।

”कल शाम-तेरी राह देखती रही क्यों नहीं आयी? अन्दर आ काजल। नीरज जी नहीं आये?“

”कल नीरज को टूर पर जाना पड़ गया भाभी मेरा मतलब.......दीदी। साँरी, भाभी पुकारने की आदत पड़ गयी है न..........“

”ठीक कहती है काजल, किसी भी आदत को आसानी से छुड़ा पाना उतना आसान नहीं होता। मुझे ही देख अब जाकर इस जिन्दगी की आदत डाल सकी हूँ।“ ठंडी साँस-सी ली थी नीलम ने।

”ये सब क्या हो गया भाभी? तुम्हारे बिना अतुल दा के बारे में सोच भी नहीं सकती.........“

”कभी मुझे भी यही गुमान था काजल....... शायद उन्हें समझ पाने में भूल की थीं मैंने....“ कुछ रूककर नीलम ने वाक्य पूरा किया था।

”नहीं भाभी, अतुल दा को मैंने बचपन से जाना है, कहीं कोई गलती जरूर हुई है।“

”जन्म देने वाली माँ भी अपने पुत्र को पूरा नहीं जान पाती काजल।“ नीलम के स्वर में उदासी थी।

”तुम्हारे बीच ऐसा क्या घटा भाभी, मुझे नहीं बताओगी?“

”आज तक किसी से कुछ नहीं बताया काजल, पर तुझसे छिपा पाना सम्भव नहीं। बहुत दिनों से तलाश थी, किसी से दिल खोल बात कर सकॅं..... जान सकुँ, गलती क्या मेरी ही थी?“

”अपने को व्यर्थ दोष दे, दुखी होना ठीक नहीं। मैं तुमसे अलग तो नहीं हूँ, मुझे सब बता मन हल्का कर लो भाभी।“

”अतुल के यू के जाने के बारे में शायद तुझे पत्र डाला था काजल?“ कुछ रूककर नीलम ने पूछा था।

”हाँ भाभी। उस समय मेरे एग्जाम्स चल रहे थे। बाद में मैं बीमार पड़ गयी थी। काम्प्लीकेशन्स के कारण चार महीने कुछ भी न कर सकी। तुम भी तो अतुल दा के साथ यू के गयी थीं न?“

”कहाँ जा पायी थी मैं? माँ की बीमारी अचानक बढ़ गयी थी। असाध्य रोग के कारण उन्हें अकेले छोड़ पाना भी सम्भव नहीं थां। मैंने ही अतुल को अकेले भेज दिया था।“

”अतुल दा को तुमने विदेश जाने दिया, ये जानते हुए भी कि चाची कैंसर की मरीज थीं, कभी भी कुछ हो सकता था। तुमने पूरी रिसपांसिबिलिटी अकेले कैसे ली भाभी?“ काजल विस्मित हो उठी थी।

”और चारा भी क्या था। उतना अच्छा चांस छोड़ना अक्लमंदी तो नहीं था, पर आज लगता है मेरी सबसे बड़ी मूर्खताए मेरा वही निर्णय था।“

”मूर्खता कैसी? तुमने पति के हित में इतना बड़ा निर्णय लिया, क्या यह साधारण बात है। सिर्फ इसी बात के लिए अतुल दा को तो जीवन-भर के लिए तुम्हारा ऋणी हो जाना चाहिए था।“

”ऋणी? मैं तो आज इस नतीजे पर पहुँची हूँ, त्याग-तपस्या सब व्यर्थ है। स्त्री पुरूष को केवल सेक्स से बाँध सकती है और सब झूठ है काजल, सब झूठ है।“

”क्या कह रही हो भाभी, क्या अतुल दा को तुम बाँध नहीं सकी थीं? हर समय तुम्हारे आगे-पीछे घूमते अतुल दा की सब कितनी हॅंसी उड़ाते थे। श्याम दा तो उन्हें तुम्हारा गुलाम ही कहते थे।“

”नहीं काजल, वह भ्रम था। तेरे सामने अपनी पराजय स्वीकारने में कैसी लाज? कभी तेरे अतुल दा पर कितना विश्वास था मुझे, जानती है न?“

”वह हैं भी तो इसी योग्य।“

”काश यही सच होता, पर काजल तेरे दृढ़-प्रतिज्ञ अतुल दा भी अन्ततः एक सामान्य पुरूष ही सिद्ध हुए।“

”क्या किया अतुल दा ने, जल्दी बताओ भाभी, तुम्हारी बातें परेशान कर रही हैं।“

”माँ की बीमारी में उनके आये पत्र मेरा हौसला बढ़ा जाते थे। एक-एक पंक्ति में मेरे प्रति आभार व्यक्त होता था। अतुल के लिए कुछ भी कर पाने की भावना से मैं माँ की जी-जान से सेवा में जुटी रहती थी। कैंसर का अन्त कितना दुखद होता है, यह तुम नहीं समझोगी। अंतिम क्षणों में माँ को भयंकर कष्ट था। एक-एक पल भारी पड़ता था। डाँक्टर की राय से अतुल को बुलाया गया था।“

”वापिस आये अतुल न जाने क्यों अपरिचित से लगे थे। कभी लगता, मेरा कुछ खो गया था, पर क्या, समझ नहीं पाती थी मैं। अतुल के लिए माँ की मृत्यु अप्रत्याशित घटना थी। माँ अच्छी हो जायेगी, यही विश्वास लेकर वह आये थे। अंतिम समय तक माँ उनसे दो बात भी न कर सकीं, क्या यह धक्का कम था? अतुल के गाम्भीर्य और मौन को माँ की मृत्यु का सदमा समझ, मैं टाल गयी थी।“

”सब कुछ निबट जाने के बाद अतुल वापिस जाने की तैयारी करने लगे थे। मैं प्रतीक्षा करती रही, वे मुझे भी साथ ले जाने को कहेंगे। अब भारत में शेष ही क्या था? अन्ततः मैंने ही कहा था- ‘अब यहाँ अकेले रह पाना संभव नहीं, मैं भी तुम्हारे साथ चलुँगी अतुल।’“

”‘कुछ दिन रूक जाओ वहाँ जाकर पूरी व्यवस्था कर तुम्हें इन्फ़ाँर्म करूँगा।’ अतुल जैसे चैंक से गये थे।“

”‘तुम्हारे पास तो दो कमरों का अपार्टमेंट है। दोनों के लायक पैसा भी मिलता है और क्या चाहिए? ज़रूरत हुई तो मैं भी जाँब ले सकती हूँ एअतुल।’“

”‘मेरा मतलब - वहाँ कुछ और सुविधाएँ जुटा लेता........’“

”ओह, अतुल मैं कोई मेहमान नहीं तुम्हारी पत्नी हूँं। तुम्हारी देखभाल करना मेरा दायित्व है। मैं अब किसी भी हालत में यहाँ अकेली नहीं रहूँगी।“ नीलम जैसे ज़िद पर उतर आयी थी।

”तुम्हारा वीसा............“

”उसकी चिन्ता मत करो, भइया की दूरन्देशी से वह पहले ही ले चुकी हूँ।“ नीलम का चेहरा पति के साथ जाने की खुशी से चमक रहा था।

”अतुल जैसे कुछ परेशान हो उठा था। उसके मॅंुह को देख नीलम हॅंस पड़ी थी।“

”कम आँन अतुल, मैं जानती हूँ तुम्हारा घर कितना अस्त-व्यस्त होगा, पर उसके लिए मैं तुम्हें सज़ा नहीं दुँगी। इतना डर क्यों रहे हो?“

”अन्ततः दोनों का जाना तय हुआ था। उत्साह से नीलम तैयारी में जुट गयी थी, पर अतुल बुझा-सा लगता रहा। माँ की मृत्यु का सदमा मान, नीलम ने उस पर अधिक ध्यान नहीं दिया था। प्लेन में भी अतुल का गंम्भीर मौन नीलम को चुभने लगा था।“

”क्या बात है, मेरा वहाँ जाना अच्छा नहीं लग रहा है। कोई गर्ल-फ्रेंड बना ली है?“

”नीलम के परिहास का भी अतुल पर कोई असर नहीं दीखा था।“

”सब औपचारिकताएँ निभा दोनों बाहर आ गये थे। ग्रीन पार्क विलेज पहुँचने में शायद पैंतालीस मिनट लगे थे। अपार्टमेंट का द्वार खोलता अतुल चैंक गया था। सामने सोफे पर लेटी ब्रिटिश युवती कोई मैगज़ीन देख रही थी। अतुल को देख वह चहक उठी थी-

‘ओह डियर इतने दिन लगा दिये! हाओ इज योर मदर?’ अतुल के गले में बाँहें डालने को आतुर रोज़लीना की दृष्टि पीछे बुत-सी खड़ी नीलम पर पड़ी थी।“

”लीना, मीट माई वाइफ नीलम। नीलम ये रोजलीना, मैं इनका पेइंग गेस्ट हूँ।“

”रोज़लीना के चेहरे पर पुत आयी राख, नीलम से छिपी न रह सकी थी। रोज़लीना स्तब्ध उसे ताकती रह गयी थी।“

”नीलम वह सामने बाथरूम है, फ्रेश होना चाहोगी?“ अतुल ने जैसे उसे वहाँ से हटाना चाहा था।

”पहले सामान बेडरूम में ले जाना है, कपड़े निकालुँगी। तुम्हारा बेडरूम कौन-सा है अतुल?“ नीलम का स्वर कुछ तीखा पड़ गया था।

”अतुल का चेहरा जैसे फक्-सा पड़ गया था। मुश्किल से सामने वाले कमरे की ओर उॅंगली उठा सका था।“

”कमरे में प्रवेश करते ही स्थिति स्पष्ट हो गयी थी। इसीलिए अतुल उसे साथ लाने में हिचक रहा था। उसके वहाँ पहुँचने के पहले उन साक्ष्यों को हटाना सचमुच जरूरी था। सामने कार्नर पर रखे चित्रों में अतुल की बाँहों में लिपटी रोज़लीना, नाम मात्र के वस्त्रों में सागर-तट पर धूप सेंकते ...... वे दोनों, कितने निकट थे। निश्चय ही रोज़लीना अपने पेइंग गेस्ट की पूरी देखभाल कर रही थी। अल्मारी में टॅंगे दोनों के कपड़े तक उनकी अभिन्नता के साक्षी थे। पति-पत्नी के शयनकक्ष का प्रतीक वह कमरा, दोनों के सम्बन्धों को उजागर कर रहा था। अतुल और रोज़लीना के साथ शेयर किये गये न जाने कितने पल सजीव थे वहाँ।

”रोज़लीना से अतुल ने क्या बातें कीं, नीलम ने जानने की कोशिश नहीं की। थोड़ी देर बाद रोज़लीना शायद कहीं बाहर चली गयी थी। उसके क्रुद्ध स्वर के साथ तेजी से द्वार बन्द होने की आवाज नीलम तक पहॅुंची थी।“

”कमरे के एक कोने में खड़ी नीलम के पास आकर अतुल ने धीमे से पूछा था- ‘कपड़े निकाल लिए?“

”तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध है अतुल?“

”डोंट मिसअंडरस्टैंड मी नीलम- हम दोनों अच्छे दोस्त हैं। तुम समझ नहीं सकतीं यहाँ अकेले रह पाना कितना कठिन है। रोज़ी ने मेरी बहुत मदद की है।“

”इसके लिए तुमने उसे मेरी जगह दे डाली अतुल“

”तुम नहीं समझोगी नीलू, यहाँ की लड़कियाँ बेहद फ़ास्ट होती है।, उन्हें ये सब रोज की बात है। उनसे भावनात्मक रूप में जुड़ा नहीं जा सकता.....“

”शारीरिक रूप से तो जुड़ा जा सकता है?“ न जाने कैसे नीलम के मॅुंह से निकल गया था। निरूत्तरित अतुल को लगभग झकझोर नीलम ने फिर पूछा था- ‘तुम्हें मेरी कसम, सच-सच बताओं नहीं तो मैं उससे पता कर लुँगी।’

”नीलम एक रात तुम बेहद याद आ रही थीं। उस दिन शायद ड्रिंक के ज्यादा पेग्स ले लिए थे तभी वो ग़लती कर बैठा। पर विश्वास करो, उसके साथ मैं तुम्हीं को महसूस कर रहा था। आई एम साँरी नीलम......“

”सच कहती हूँ काजल मैं पागल-सी हो उठी थी। काँलेज में एक लड़की ने कभी कहा था..... पति को देवता मानना सबसे बड़ी गलती होती है। हर पति अन्ततः एक पुरूष है, जो हमेशा नवीनता का भूखा होता है।“

”नीलम भाभी...... तुमने सब कैसे सहा होगा?“ काजल जैसे रो पड़ी थी।

”कुछ समझ में नहीं आ रहा था। अपार्टमेंट के उस कमरे में अतुल के साथ साँस लेना कितना कठिन था। तत्काल एक ही बात समझ में आयी थी- मुझे एकान्त चाहिए था। अतुल कमरा छोड़ जा चुके थे। बाथरूम में शावर खोल खड़ी रह गयी थी। अतुल ने कुछ खाने के लिए बहुत जोर दिया था, पर जिस मनःस्थिति से मैं गुजर रही थी, उसमें क्या गले के नीचे पानी भी उतार पाना सम्भव था काजल?“

”हाय भाभी, तुम क्या सोच कर गयी थीं, क्या मिला। इन्ही अतुल दा ने रेखा से विवाह इसीलिए नहीं किया था क्योंकि उनका कहना था, मन से वह तुमसे जुड़े थे। सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध बनाना उन्हें अन्याय लगा था।“

”एक पल की भूल क्षम्य हो सकती है काजल, पर उस भूल को ये कहकर जस्टीफाई करना कि रोज़लीना में वह मुझे देखते थे, क्या पाप नहीं?“

मौन काजल बस ‘हाँ’ में सिर-भर हिला सकी थी।

”फिर तुम यहाँ कैसे पहुँची थी भाभी?“

”दूसरे दिन तक मैं निर्णय ले चुकी थी। अतुल को पास बुला मैंने कहा था- ‘पूरी रात सोचने के बाद इस निर्णय पर पहॅुंची हूँ कि तुमने अपनी बात सचाई से स्वीकार की है अतुल, इसलिए तुमसे अपना सत्य बताना मेरा भी कर्तव्य बन जाता है।’“

”तुम्हारा सत्य?“ अतुल ताज्जुब में पड़ गये थे।

”हाँ अतुल, कल मैं अपना आपा खो बैठी थी, बाद में शान्ति से सोचा तो लगा, ग़लती सभी से हो सकती है।“

”तो तुमने मुझे माफ़ कर दियाए नीलम?“ अतुल उत्साहित हो उठा था।

”अतुल माफी तो मुझे माँगनी है, तुम्हारी बातें सुनने के बाद से लगातार सोचती रही हूँं, तुम अपराधी बन दुख पाओ और मैं अपराध करके भी देवी बनी रहूँ, ये तो ठीक नहीं है न?“

”तुमने कौन सा अपराध किया है नीलम? गलती तो मैंने की है।“

”तुमने ठीक कहा था अतुल, अकेलापन काट पाना सचमुच बहुत कठिन होता है। माँ की बीमारी में अकेलेपन के साथ कभी बहुत डर भी लगता था अतुल, इसीलिए मैंने भी किसी का सहारा खोज लिया था। मैं शायद यह बात तुम्हें कभी न बताती, पर पूरी रात सोच कर यही लगा, हमारे बीच कोई भेद नहीं रहना चाहिए इसीलिए.........“

”तुम क्या कह रही हो नीलम, तुम कोई ग़लती नहीं कर सकतीं- बीमारी में किसी की मदद लेना अपराध नहीं।“

”तुम्हारे सामने सत्य स्वीकार करूँगीए अतुल। एक रात कुछ पलों को मैं भी दुर्बल पड़ गयी थी।..... मुझे क्षमा करो अतुल।“

”तुम झूठ बोल रही हो नीलम। मुझसे बदला लेने के लिए ये सब कह रही हो?“

”नहीं अतुल यह सच है। अपनी भूल के लिए मैं स्वंय शर्मिन्दा हूँ। अगर मैं ये बात छिपाये रखती तो मुझे कभी शान्ति नहीं मिल सकती अतुल।“

”कौन था वह नीच? जिंदा नहीं छोडॅंूगा उसे मैं।“ अतुल तैश में आ गया था।

”अब क्रोध से क्या फ़ायदा, गलती को भुला देना ही ठीक है। अपना अतीत धो-पोंछकर हम नयी जिंदगी शुरू कर सकते हैं।“

”इम्पाँसिबिल, तुमने क्या मुझे काठ का उल्लू समझ लिया है? जब तक उस कमीने का नाम-पता नहीं बताओगी, मैं चैन की साँस नहीं ले सकता।“

”नाम-पता जानकर क्या चैन से रह सकोगे अतुल? गलती तो नाम जानकर नहीं सुधारी जा सकती। मैं नाम बताने में असमर्थ हूँ।“

”मैं तुम्हें देवी समझ अपने को कर्स करता रहा और तुम वहाँ ये गुल खिला रही थीं। धिक्कार है तुम्हें। मुझे तो सोचकर भी शर्म आती है।“

”सांत्वना देने को आगे बढ़ती नीलम को देख अतुल लगभग चीख पड़ा था- ‘लीव मी अलोन,’ दोनों हाथों से सिर पकड़ अतुल वहीं बैठ गया था।“

”ये तुमने क्या कह दिया भाभी। तुम और पाप.......... उसंभव। तुम्हारा सच क्या था?“

”जिस व्यक्ति ने जीवित रहते ही मेरे अस्तित्व को नकार दिया, उसे आघात पहुँचाने की तीव्र इच्छा हो आयी थी काजल। अपनी पराजय अतुल कभी सह नहीं सकता था...........“

”ओह भाभी, अतुल दा से क्या इस तरह बदला लेना था?“

”बदला लेकर क्या मिलता काजल? उन्हें बस यही जताना चाहा था जिस पर अपने से भी अधिक विश्वास किया हो- उससे विश्वास-भंग की पीड़ा कितनी गहरी होती है।“

”उसके लिए अपने चरित्र को दाँव पर लगा दिया?“

”अतुल का साथ छूटने के बाद वो बातें निहायत गौड़ हो जाती हैं काजल।“

”फिर भी तुमने ऐसा क्यों किया नीलू भाभी?“

”पुरूष के अहं को जानती है न काजल? पत्नी उसे परमेश्वर मान पूजती रहे, यह उसका प्राप्य है, पर अगर पत्नी उसे छोड़ अन्य का वरण कर ले तो?............ नहीं सह पायेगा उसका अहं- वही मैंने चाहा था। अतुल अपनी इस पराजय को कभी नहीं भुला सकेंगे, हमेशा फाँस-सी गड़ती रहेगी उनके मन में।“

”पर तुम्हारे देवीत्व की तो वे पूजा करते?“

”क्या करती देवी बनकर? झूठे देवीत्व की अपेक्षा मैं भी किसी की आकांक्षा बन सकती हूँ- क्या अधिक सम्मानजनक नहीं?“ नीलम तेज पड़ गयी थी?

”पता नहीं तुम क्या कहना चाह रही हो, अतुल दा कहाँ है?“

”जो कह रही हूँ शायद कभी न समझ सको काजल। अतुल को मैं वहीं छोड़ आयी थी।“

”कहाँ रोजलीना के साथ?“

”अतुल को जबरन टेम्स तक ले गयी थी। उसके सामने बिछुवे, सिन्दूर, चूड़ियाँ एक साथ अेम्स में प्रवाहित कर कहा था- इन झूठे बंधनों को यहीं बहा, हम अपना जीवन जीने को स्वतंत्र हैं अतुल। मेरी ओर से तुम पर कोई बंधन नहीं, तुम बंधन-मुक्त हो।“

”वहाँ से सीधे एयरपोर्ट चली आयी थी। अतुल ने बार-बार रोकना चाहा, जानना चाहा था जो कुछ मैंने कहा उसका सत्य क्या था, पर मैं मौन ही रही थी। शायद अतुल को मेरी बात पर सन्देह था।“

”अतुल दा ने तुम्हें पत्र लिखे भाभी?“

”इसीलिए तो बिना किसी को कुछ बताये यहाँ आ गयी थी। मेरी अभिन्न सहेली मीरा ने सहारा दिया और डिग्रियों ने रास्ता सुझाया।“

”नीलम दीदी, अगर कभी अतुल दा सामने पड़ गये!“

”तो कमजोर नहीं पडॅंूगी, इतना विश्वास है।“

”जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है दीदी?“

”किसलिए काजल, क्या अपने को भाग्य के भरोसे छोड़ रोने के लिए? मैंने सोच-समझ कर जो निर्णय लिया, उसे मुझे ही तो निभाना है न?“

”अगर मुझे अतुल दा मिल जाएँ तो पूछॅू उनसे, किस बल पर उतनी बड़ी-बड़ी बातें बनाया करते थे। इतने कमजोर थे अतुल दा?“

”यही बात मेरे मन में भी फाँस-सी चुभती थी काजल, पर अब तो उन्हें भी दोष नहीं दे पाती। दोष किसे दुँ? पता नहीं अतुल की क्षणिक दर्बलता दोषी थी या रोजलीना का आकर्षण ......... पराजित तो मैं ही रही। एक बात बता काजल, मैंने क्या गलती की थी?“

”तुमने कोई गलती नहीं की दीदी, तुम गलती कर ही नहीं सकतीं, तुम तो धन्य हो, इतना सब सहकर भी अतुल दा को दोष नहीं दे पा रही हो?“

”झूठी महानता का दम्भ नहीं भर सकती काजल। उनके सीने में जो घाव दे आयी, क्या वह बात ठीक थी?“

”लोहा ही लोहे को काटता है, तुमने कोई गलती नहीं की। पराजय की फाँस की चुभन तुम्हीं क्यों झेलती रहो भाभी?“

”जो भी हो, तूने मेरे दिल को कितनी शान्ति दी है काजल। शायद इसीलिए तेरी प्रतीक्षा करती रही थी। अरे इतने घने बादल घिर आये, हमें बातों में पता भी नहीं लगा। तुझे प्याज की पकौड़ियाँ बहुत पसन्द थीं न काजल, अभी बनाकर लायी।“

काजल के उत्तर की प्रतीक्षा किये बिना नीलम उठ कर किचन की ओर चल दी थी। नीलम की पीठ निहारती काजल के मुख पर सन्तोष बिखर आया था।

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