1/30/16

इंतज़ार



“तेरे लिए एक अच्छी खबर है.”भरसक चेहरे पर मुस्कान लाने की कोशिश करते हुए अमर ने कहा.

“अब भी मज़ाक,अमर?”मुश्किल से आँखें खोल दर्द के साथ इरा बुदबुदाई.
“मज़ाक नहीं, सच सुन कर खुश हो जाओगी. कल कानपुर से माँ-पापा आरहे हैं.”
“नहीं, उन्हें क्यों बुलाया, अमर?” पीड़ा से इरा के ओंठ भिंच गए.
“देखना माँ की गोद में सर रखते ही तेरा दर्द भाग जाएगा.’अमर ने तसल्ली देने की कोशिश की थी
पिछले तीन हफ़्तों से इरा का दर्द बर्दाश्त के बाहर हो रहा था. सारा बदन दर्द से ऐंठ जाता, उसकी काराहें सुन कर अमर और बच्चों के दिल रो पड़ते, पर इरा के कैंसर की अब अंतिम स्थिति यही थी. डॉक्टरों का दिया समय अब समाप्त हो रहा था. उन्हीं की सलाह पर अमर ने इरा के माँ-पापा को बुलाया था. कम से कम अपनी एकलौती बेटी को उसके अंतिम समय में देख तो लें.
“माँ की गोद में आँखें खोली थीं, अब बंद आँखें माँ कैसे सहेंगी, अमर? किसी तरह अस्फुट शब्दों में बात कहती इरा दर्द से चीख पड़ी.आँखों से आंसू बह निकले.
प्यार से उसके आंसू पोंछ अमर ने बच्चे की तरह से दुलारा-

“तू इतनी ब्रेव है, तेरे साहस का तो हम सब लोहा मान गए. ये जानते हुए भी कि तू कितने असाध्य रोग के पंजे में जकड चुकी थी, कभी किसी के सामने अपनी बीमारी का नाम तक नहीं लिया. हमेशा हंसते हुए सहज ज़िंदगी जी है. अब कमजोर मत पड़, इरा.”

“क्या हुआ, पापा, मम्मी ठीक तो है? स्कूल से आई बेटी रीमा शंकित थी.

“हाँ, मम्मी ठीक है. कल तेरे नानी-नाना आ रहे हैं. मम्मी को वही बता रहा था.”

“तू कुछ खा ले, रीमू?” किसी तरह बोलती इरा की आँखों में बेटी के लिए ममता छलक रही थी.

“ओके, मम्मी. हम अभी फ्रेश हो कर आते हैं.” कुछ ही देर में रीमा वापस आ गई थी.

“पापा, अब हम मम्मी के पास हैं, आप रेस्ट कर लीजिए.”

जब से इरा की हालत बिगड़ी थी, बच्चे और अमर बारी-बारी से इरा के पास बैठते थे.

तेरह साल की रीमा अपनी उम्र से ज़्यादा समझदार हो गई थी. जब से इरा को अपने कैंसर का पता लगा था, उसने तब से उसने दस वर्ष की रीमा को समझाना शुरू कर दिया था .

“अगर एक दिन तुम सबको छोड़ कर मुझे भगवान के पास जाना पड़े तो मेरी बहादुर बेटी सब सम्हाल लेगी ना? अपने भाई -पापा और इस घर की जिम्मेदारी उठा सकेगी?”

हाँ मम्मी, पर हम गॉड से प्रे करेंगे वो तुम्हें कभी ना ले जाएं.”भोलेपन से रीमा कहती.

“एक बात याद रखना हमेशा सूरज को देख कर आगे बढ़ती जाना, कभी पीछे मुड़ कर अपनी परछाई मत देखना, बेटी. अपनी माँ की तरह हर मुश्किल का हिम्मत से सामना करना.”उस उम्र में इरा की बातें रीमा कितना समझ पाती, पर अब तेरह साल की रीमा बहुत कुछ समझने लगी है.

यूं तो जिस दिन से डॉक्टर ने बताया था इरा का कैंसर अंतिम स्टेज में है, उसका जीवन अधिक से अधिक चार- पांच साल चल सकेगा, शायद उसी दिन से इरा ने दिन गिनने शुरू कर दिए थे ,पर जड़ हुए अमर को तसल्ली देने को हंसते हुए अमर से कहा था –

“चार-पांच साल तो बहुत होते हैं, अमर. देखना अपने सारे काम पूरे कर लूंगी. इस दुनिया में जो आया है, उसे जाना तो होता ही है, अचानक चले जाने से तो अच्छा यही है, मुझे अपना जाने का समय पता लग गया है.”उसके चेहरे की मुस्कान से अमर स्तब्ध रह गया था.

अपने कमरे में पलंग पर लेटे अमर के सामने पंद्रह वर्ष पहले की पुरानी यादें सजीव हो गईं. आज अंतिम साँसे गिन रही कंकाल बनी, इरा का कहाँ गया वो मनोहारी रूप, कंचन सी काया? शहर के वीमेंस कॉलेज के चैरिटी शो में वह आमंत्रित था. स्टेज पर सांस्कृतिक कार्यक्रम चल रहे थे. अचानक एक मीठी आवाज़ ने जैसे अमर को दूसरे ही लोक में पहुंचा दिया. स्टेज पर इरा की ग़ज़ल से जैसे पूरा हॉल संगीतमय हो गया था. विस्मित अमर स्टेज पर गाने वाली युवती को मुग्ध देखता रह गया. जितनी ही मीठी उसकी आवाज़ थी, उतना ही सुन्दर उसका मनभावन रूप था. ग़ज़ल समाप्त होते ही अमर की तंद्रा भंग हो गई. ना जाने कैसा जूनून था पागलों की तरह अपनी जगह से उठ कर सीधे ग्रीन रूम में इरा के पास जा खड़ा हुआ. सीधे सवाल पूछ डाला था-

“मुझसे शादी करोगी?”पर्स उठा कर जाने को तैयार इरा से कहा था.

“क्या, कह रहे हो?”दो सुन्दर विस्फारित नयन उस पर निबद्ध थे,

“सीधी ही बात तो कह रहा हूँ, फिर दोहरा देता हूँ, मुझसे शादी करोगी?”

“पागल हो, जान ना पहिचान ,सीधे शादी करने चले आए.”आवाज़ में क्रोध था.

“जान- पहिचान के लिए ये रहा मेरा विजिटिंग कार्ड, अच्छी तरह से देख लो. पहिचान हो जाएगी.”अमर ने अपना विजिटिंग कार्ड इरा के सामने रख दिया था.

“अब जाते हो या सिक्यूरिटी गार्ड को आवाज़ दूं?”इरा की आवाज़ में तेज़ी थी.

“उसकी ज़रुरत नहीं है, पर मेरा वादा है, आपको अपनी बना कर ही चैन लूंगा.”अमर बाहर आ गया.अमर के बाहर जाने के बाद इरा ने सरसरी दृष्टि सामने रखे कार्ड पर डाली थी. स्पष्ट शब्दों में छपा था-

अमर सहाय, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वर्ल्ड बैंक, शिकागो. लापरवाही से कार्ड वहीं छोड़ इरा घर चली गई थी.

कुछ देर बाद मानो अमर को होश आया था, ये कैसी दीवानगी थी, वह क्या कर बैठा. उसके साथ पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ था. क्या इरा के संगीत में कोई जादुई शक्ति थी जिससे वह बंधा चला गया. शायद उस ग़ज़ल में कोई ऎसी बात थी जिसने उसे ऐसा करने को मजबूर कर दिया. जो भी हो, अपनी इस मूर्खता पर उसे इरा से माफी मांगनी होगी.

दो दिन बाद इरा के घर की बेल बजाने पर इरा ने ही दवाजा खोला था.

“तुम फिर यहाँ, क्यों आए हो?”इरा द्वारा दरवाज़ा बंद करने की कोशिश पर अमर ने दरवाज़ा पकड़ कर बंद होने से रोक लिया.

“अपनी उस दिन की गलती के लिए माफी माँगने आया हूँ, प्लीज़ माफ़ कर दीजिए.”

“कौन है, इरा बिटिया?”एक पुरुष-स्वर ने पूछा.

“कोई नहीं पापा, चन्दा माँगने वाले हैं.”

“अरे आप यहाँ ? तुम इन्हें नहीं जानतीं इरा, अभी कुछ दिन पहले ही तो इनकी पोस्टिंग शिकागो में हुई है. मेरी इनके साथ सुरेश के घर मुलाक़ात हुई थी. प्लीज़ अन्दर आइए,.”इराके पापा ने स्वागत किया. विवश इरा को अमर को घर के भीतर लाना पडा. अमर के बैठने पर इरा के पापा ने इरा से कहा था-

“इरा बेटी, अपनी मम्मी को बुला लो और चाय के लिए भी कह दो.”

“नहीं- नहीं, उसकी कोई ज़रुरत नहीं है. एक प्रोग्राम में इरा जी की ग़ज़ल सुनी थी, उसी के लिए उन्हें बधाई देने आया था. बहुत अच्छी गायिका हैं.”अमर ने बहाना बनाया.

“हाँ, बचपन से ही इसे संगीत का शौक था, अब अमरीका की इतनी बड़ी कम्पनी में नौकरी करती है, पर अपना संगीत नहीं छोड़ सकी. इसका मतलब आपको भी म्यूजिक में रूचि है.”उन्होंने गर्व से बताया.

“जी हाँ, बस सुनने का शौक है. आप क्या यहाँ ही रहते हैं?”अमर ने परिचय बढाया.

“हम लोग तो कानपुर में रहते हैं, इरा ने अमरीका देखने को बुलाया है. वहां मेरे नाम की विकास दास नाम से टेक्सटाइल फैक्टरी है.” इरा के पापा के चेहरे पर खुशी और संतोष स्पष्ट था.

तभी माँ के साथ ट्रे में चाय लिए इरा आगई. इरा के चेहरे पर नाखुशी और शंका साफ़ झलक रही थी. शायद वह सोच रही थी कहीं ये पागल फिर उसी दिन की तरह से कोई दीवानगी ना कर बैठे.

माँ को प्रणाम कर अमर ने हल्की दृष्टि इरा पर डाली थी. गुलाबी सलवार सूट में वह बहुत सुन्दर लग रही थी. अमर की तरफ चाय का कप बढाती इरा ने अमर पर नज़र डालने की ज़रुरत नहीं समझी.

.“आशा, ये मिस्टर अमर सहाय हैं, यहीं बैंक में बड़े ओहदे पर काम करते हैं. हमारी इरा बेटी के गीत की बधाई देने आए हैं.” विकास दास ने पत्नी से अमर का परिचय कराया.

“क्या तुम्हारे माता-पिता भी यहीं रहते हैं? उनसे मिल कर अच्छा लगेगा.” आशा जी ने कहा.

“जी नहीं यहाँ अकेला ही रहता हूँ. जब से पापा नहीं रहें माँ को जैसे संसार से वैराग्य सा हो गया है. हरिद्वार में मेरी ताई के साथ गीता आश्रम में रहती हैं. बहुत बुलाने पर भी नहीं आतीं, मै ही उन्हें देखने इंडिया जाता रहता हूँ.”अमर की आवाज़ में उदासी थी.

“सच है, बेटा, पति के ना रहने से दुनिया ही बदल जाती है. हम लोग जब तक यहाँ हैं, आया करो, हमें अच्छा लगेगा.” आशा जी ने स्नेह से कहा.

“ हाँ अमर, आशा ठीक कहती है. इरा को तो हर महीने ऑफिस के काम से शहर से बाहर जाना होता है, उसकी ऐबसेन्स में बहुत अकेलापन महसूस होता है. समय मिले तो आते रहा करो.”

“इस परदेश में ऐसा महसूस होना स्वाभाविक है, पर अगर कभी कोई ज़रुरत हो तो मुझे अपना बेटा समझ कर नि:संकोच बुला लीजिएगा. सुरेश अंकल की तरह आप भी मेरे अंकल ही हुए. ये मेरा कार्ड है, मेरा फोन नम्बर और घर का पता भी दिया हुआ है.”अपना कार्ड देते अमर ने इरा पर नज़र डाली थी.

“खुश रहो, बेटा. तुम्हारी बात सुन कर बहुत अच्छा लगा.परदेश में कोई तुम्हारे जैसा मिल जाए तो बहुत अच्छा लगता है.तुमने जो कहा उसे याद रखूंगा.””

वापस होते अमर ने इरा पर मुस्कुरा कर नज़र डाली थी. अमर को दरवाज़े तक छोड़ने आना इरा की विवशता थी. अक्सर लोगों के जाने पर इरा ही दरवाज़ा बंद करने आती थी.अमर की मुस्कराहट से चिढी इरा ने धीमे से कहा था-

“यूं पी के लोग बहुत मिलनसार और खातिर पसंद होते हैं, माँ ने घर आते रहने को कहा है, इसका मतलब ये नहीं कि जब जी चाहा, आ जाओ. अगर उन्हें तुम्हारा पागलपन पता लग जाए तो घर में कभी ना आने दें.”इरा की आवाज़ में चेतावनी थी.

“लेकिन अगर यहाँ आने का जी चाहे तो अपने को कैसे रोक सकूंगा.”अमर हंस रहा था

“ज़्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश मत करो, अच्छी तरह से समझ लो आज आए सो आए अब फिर आने की ज़रुरत नहीं है.”दरवाज़ा बंद कर के इरा चली गई.

एक सप्ताह बाद पापा के परिचित मित्र सुरेश जी के घर उनके बेटे के जन्म दिन पर विकास दास को सपरिवार लंच के लिए आमंत्रित किया गया था. सुरेश जी ने बड़ी गर्मजोशी के साथ विकास जी के परिवार का स्वागत किया था. उनकी बड़ी बेटी उषा इरा को देख कर खिल गई, इरा का हाथ पकड़, उषा उसे अपने साथ की हमउम्र लड़कियों के पास ले गई.

“लो भई, अब हमारी लता मंगेशकर आ गई, अब खूब रंग जमेगा.” इरा को देख निशा चहकी.

सामने से अमर को आता देख इरा चौंक गई, फिर याद आया पापा ने बताया था, अम्रर के साथ उनका परिचय सुरेश जी के घर में ही हुआ था.

“हाय उषा, तेरे कजिन अमर की क्या पर्सनैलिटी है. मेरा परिचय करा दे.”अमर को मुग्ध दृष्टि से देखती माला बोली.

“अरे मेरा कजिन अमर मोस्ट एलिजिबिल बैचेलर है, ना जाने कितनी लडकियां उस पर मरती हैं.पता नहीं, किस लड़की का भाग्य उसे पा सकेगा. वैसे तुम सबको उससे मिलाती हूँ.”गर्व से उषा ने कहा.

“अमर भैया, इधर आओ, यहाँ बहुत लोग तुमसे मिलना चाहते हैं.”उषा ने आवाज़ दी.

“वाह, मेरी किस्मत इतनी ब्यूटीफुल गर्ल्स, मुझ जैसे इंसान से मिलना चाहती हैं.”चेहरे पर मुस्कान थी.

“अमर जी आपसे मिलना तो हमारा सौभाग्य है. सुना है आप गिटार बहुत अच्छा बजाते हैं. क्या हमें भी सुनने का मौक़ा मिलेगा?”सुमन ने शोखी से कहा.

“ज़रूर, बशर्ते आपमें से कोई साथ में अपना स्वर दे.”अमर ने अपने में सिमटी इरा को देख कर कहा.

“ये तो सोने में सुहागा वाली बात हुई. हमारी इरा आपका साथ देगी.”माला ने बात पक्की कर दी.

“नहीं-नहीं, हम नहीं गा सकते.”इरा ने प्रतिवाद किया.

“अब तेरी ना नहीं मानी जाएगी. इतने फंक्शंस में गाती है, आज मेरे भाई के जन्म दिन पर तो तुझे गाना ही पडेगा. भैया अभी गिटार लाती हूँ.”उषा ने इरा को गाने पर मजबूर कर ही दिया.

अमर ने गिटार के सुर मिला कर, इरा की तरफ देखा और गिटार पर एक गीत की धुन शुरू कर दी. इरा के मौन पर सब लड़कियों ने इरा को गाने के लिए विवश कर दिया. इरा की मीठी जादुई आवाज़ के साथ गिटार की धुन ने ऐसा सामान बांधा कि सब मंत्रबिद्ध से रह गए. गीत समाप्त होने पर बहुत देर बाद लोगों को तालियाँ बजाने की याद आई. उसके बाद सबकी फरमाइश पर अमर के गिटार पर इरा को गीत गाने ही पड़े. इरा और अमर समारोह के मुख्य पात्र और पात्री बन गए. सबने इरा के गायन और अमर के गिटार की दिल खोल कर तारीफ़ की.

“विकास जी, आपकी बेटी तो खरा सोना है, क्या मीठा सुर पाया है. मुझे तो पता ही नहीं था, इरा बेटी इतनी गुणवती है. भगवान् इसे लंबी उम्र दे.”सुरेश जी ने सच्चे मन से तारीफ़ की.

‘आपका अमर भी तो कम नहीं है, बैक के नीरस काम के बीच भी गिटार से इतना प्यार करता

है. कितना अच्छा गिटार बजाता है.”विकास जी ने भी जवाब दिया.

घर लौटने के बाद इरा की माँ और पिता काफी देर तक आज के जन्म दिन के समारोह और अमर के बारे में बात करते रहे. बिस्तर पर लेटी इरा भी सोच में पड़ गई, अमर के साथ उसकी पहले दिन की भेट क्या उसका जुनून था? आज तो उसका कोई भी आपत्तिजनक व्यवहार नहीं था. जो भी हो, वह गिटार सचमुच अच्छा बजाता है और इतना तो जान गई कि उसे संगीत से प्यार है.

इरा को दूसरे दिन एक सप्ताह के लिए शिकागो से बाहर जाना पडा था. मम्मी-पापा को सावधानी से रहने को कह कर इरा ने किसी मुश्किल के समय के लिए कुछ टेलीफोन नम्बर भी दिए थे. अचानक दो दिन बाद उसे पापा का मेसेज मिला था, उसकी माँ हॉस्पिटल में हैं, डॉक्टर अभी जांच कर रहे हैं. खबर मिलते ही इरा ने अपनी वापिसी की सूचना फोन से दी थी. उसकी फ्लाइट रात के दो बजे पहुँचने वाली थी. विकास जी परेशान हो उठे, तभी उन्हें याद आया, अमर ने अपना फोन नम्बर दे कर कहा था-

“अगर कभी किसी तरह की ज़रुरत पड़े तो उसे अपना बेटा समझ कर नि:संकोच काम बता दें.” सुरेश जी को रात में परेशान करना ठीक नहीं है. इरा के ऑफिस वालों के पते ज़रूर थे, पर उन्हें अभी वह जान कहाँ पाए थे. साहस करके अमर को फोन लगाया था. बात सुनते ही अम्रर ने कहा-

“आंटी हॉस्पिटल में हैं, अभी पहुंचता हूँ. इरा की चिंता ना करें, उसे एयपोर्ट से मै रिसीव कर लूंगा.”कुछ ही देर में अमर हॉस्पिटल पहुँच गया था. डॉक्टर से बात करने पर पता लगा आशा जी को गैस की समस्या थी. खतरे की कोई बात नहीं थी. विकास जी ने अमर को धन्यवाद देना चाहा तो उसने कहा

”क्या अपने बेटे को कोई पिता धन्यवाद देता है?”

एयरपोर्ट पर अमर को देख कर इरा किसी अनिष्ट की आशंका से डर गई.

“तुम यहाँ, मम्मी तो ठीक है?”

“मम्मी बिलकुल ठीक हैं और अभी उन्हें हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करा कर, घर छोड़ कर आया हूँ.”

“थैंक्स, हम तुम्हें यहाँ देख कर कुछ और ही सोच कर डर गए थे.”

“क्यों, क्या मेरी शक्ल इतनी डरावनी है?”अमर मुस्कुरा रहा था.

घर पहुंची इरा को देख व् विकास जी खुश तो हुए, पर पछतावे से बोले –

“सॉरी ,बेटी. तेरा प्रोग्राम बिगड़ गया. रात में आशा ने जब सीने में दर्द बताया तो बस हार्ट अटैक ही सोच बैठा. उस वक्त बस अम्रर ही याद आया. अमर की वजह से सारी परेशानी दूर हो गई. एक बेटे की तरह इसने साथ दिया. ऐसे लड़के कम ही मिलेंगे.”स्नेह से अमर को देखते विकास जी ने कहा.

“अब अंकल बहुत तारीफ़ हो गई. ये तो मेरा फ़र्ज़ था. अब आप सब आराम कीजिए, मै चलता हूँ.”

“थैंक्स, अमर. आपका ये एहसान हमेशा याद रखूंगी.”इरा ने सच्चाई से कहा.

“इसका मतलब अब इस घर के दरवाज़े मेरे लिए खुले रहेंगे.”शरारत से अमर ने कहा.

“जी हाँ अब आप जब चाहें, आ सकते हैं.”मीठी मुस्कान के साथ इरा बोली.

उस दिन के बाद से अमर अक्सर इरा के घर जाने लगा. उसके वहां जाने से इरा के घर में खुशी का माहौल बन जाता. इरा की माँ उसे जबरन खाना खिला कर ही वापिस जाने देतीं. बेचारे को माँ के हाथ का बना खाना कहाँ नसीब हो पाता है. अब तो इरा को भी अमर के आने की प्रतीक्षा रहती.

अचानक एक दिन सुरेश जी ने इरा के पापा के सामने अमर के साथ इरा के विवाह का प्रस्ताव रख कर चौंका दिया.

“अमर मेरे दूर के रिश्ते के भाई का बेटा है, पर मुझे सगे चाचा जैसा प्यार और सम्मान देता है. उसके विवाह की चिंता करने वाली माँ वैराग्य ले बैठी है. अमर बहुत समझदार और योग्य लड़का है. इरा बेटी उसके साथ बहुत खुश रहेगी. अगर आप उचित समझें तो हम लोग दोनों का विवाह करा सकते हैं.”

इरा के माता-पिता के इनकार का सवाल ही नहीं उठता था. इरा भी थोड़ी मनुहार के बाद अमर के साथ विवाह के लिए राजी हो गई. अमर को पाकर कोई भी लड़की अपना भाग्य सराहेगी, ये बात इरा भी मानती थी. एक सादे समारोह में दोनों का मन्दिर में विवाह संपन्न हो गया. बेटी को अमर को सौंप इरा के माँ-पापा कानपुर वापिस चले गए.

विवाह के बाद दोनों के जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ थीं. दो वर्ष बाद रीमा और आशीष के जन्म ने उनकी खुशियाँ दुगनी कर दीं बच्चों के आ जाने से घर गुलज़ार हो उठा. समय के साथ बच्चे स्कूल जाने लगे, दोनों ने इरा और अमर की तरह तीव्र मेधा पाई थी. आशीष अपने पापा से गिटार सीखता और रीमा माँ से संगीत सीखती. उनके मित्र परिहास करते,उनके घर में तो पूरा आर्केस्ट्रा ही है. जीवन में कहीं कोई कमी नहीं थी. इरा को कभी-कभी अम्रर छेड़ता

“देखा जो कहा था पूरा किया, तुम्हें पा ही गया.”आवाज़ में गर्व होता

’वो तो जनाब हमें आप पर तरस आ गया, वरना इस इरा को चाहने वालों की कोई कमी नहीं थी.”इरा शान से जवाब देती.

कुछ दिनों से अमर ने महसूस किया, इरा की खाने में रूचि नहीं रह गई थी. एक या आधी रोटी भी मुश्किल से खा पाती. उसकी मनपसंद डिशेज़ भी अनछुई रह जातीं.

“क्या बात है, इरा, देख रहा हूँ आजकल तुमने खाना बहुत कम कर दिया है. कहीं और ज़्यादा स्लिम होने का चक्कर तो नहीं है?’अमर ने इरा को छेड़ा.

नहीं, अमर पेट में भारीपन लगता है. भूख नहीं लगती. ताज्जुब ये है कि इतना कम खाने पर भी मेरा वज़न बढ़ता जा रहा है. कमर पर सब कपडे टाइट हो रहे हैं.”मुस्कुराती इरा ने बताया.

“मेंरे ख्याल से तुम्हें अपनी परवाह करनी चाहिए. अपनी डॉक्टर फ्रेंड मीरा से सलाह क्यों नहीं लेतीं..”

अमर को याद आया उसके बाद डाक्टरों के पास जाने का सिलसिला चलता रहा. पहले डॉक्टर की दी गई गैस की दवाइयां चलती रहीं, पर कोई फ़ायदा नज़र नही आया. उस बीच इरा को बार-बार यूरिन के लिए जाना पड़ने लगा तो डॉक्टर ने उसे यूरोळॉजिस्ट के पास रिफर कर दिया. उस डॉक्टर को लगा, इरा यूरीनल पाइप में कोई खराबी आ गई है. दवाइयां चलती रहीं, समय बीतता जा रहा था. इरा की स्थिति में कोई सुधार नहीं आ रहा था. अब कभी-कभी एक्सेसिव ब्लीडिंग भी इरा को परेशान करती.

“ये डॉक्टर मुझे यूंही नचा रहे हैं, सोचती हूँ किसी होम्योपैथ से दवा लूं.”परेशान इरा ने अमर से कहा.

“अभी तक तुम मुझे नचाती थीं, अब डॉक्टर तुम्हें नाचा रहे हैं,”अमर ने परिहास किया

.इरा के घर के पास एक रिटायर्ड नर्स मारिया रहती थी. इरा उसका बहुत सम्मान करती थी. बच्चे जब छोटे थे कभी उनकी तबीयत खराब होने पर घबराई इरा सिस्टर मारिया को ही बुला लाती थी. मारिया अपने अनुभव से इरा की सहायता करती थी. इरा और मारियाके बीच माँ-बेटी जैसा संबंध बन गया था. कुछ दिनों से अपनी परेशानियों के कारण इरा मारिया से नहीं मिल सकी थी. एक दिन मिलने पर इरा ने जब अपनी परेशानी मारिया को बताई तो अनुभवी आँखों में शंका उभर आई.

“इरा, तुम फ़ौरन गायनोकोळॉजिस्ट डॉक्टर मार्था से मिलो. वह अपने काम में बहुत मशहूर हैं.”

“पर सिस्टर मुझे कोई गाइनिक प्रॉबलेम तो है ही नहीं, उनके पास जाने से क्या फ़ायदा.?”

“आई विश. ऐसा ही हो, पर चेक अप कराने में तो कोई नुक्सान नहीं है. तुम चाहो तो मै तुम्हारे साथ चल सकती हूँ. मार्था मुझे बहुत मानती हैं. उनके साथ काम कर चुकी हूँ.”मारिया गंभीर थी.

डॉक्टर मार्था ने इरा की समस्या सुन कर तुरंत कई टेस्ट्स करने के निर्देश दिए थे. रिपोर्ट मिलने वाले दिन डॉक्टर मार्था ने फोन कर के कहा था-

“इरा, अपने पति के साथ फ़ौरन मुझसे मिलो, देर मत करना.”

“क्यों डॉक्टर, ऐसा क्या है, मेरे पति बाहर गए हुए हैं, मै आ रही हूँ.”शंकित इरा तुरंत ही चल दी.

“इरा, तुम इतने दिन कहाँ थीं? अच्छा हो, अपने पति के साथ आओ..”

“डॉक्टर, आपको जो बताना है, मुझे बता दीजिए. मेरा दिल बहुत मज़बूत है, जो भी है सह लूंगी.’

“तुम एक बहुत सीरियस बीमारी में जकड चुकी हो. इतनी देर क्यों कर दी, इरा?”

“सीरियस बीमारी कैंसर तो नहीं हो सकती, आप बता ही दीजिए.”इरा ने मज़ाक करना चाहा.

“हिम्मत रखो, इरा, तुम्हें ओवेरियन कैंसर है.”

“क्या - आ? ये नहीं हो सकता. मै तो बिलकुल ठीक हूँ, बस कुछ छोटी-मोटी प्रॉबलेम्स हैं.”

“काश ऐसा ही होता, तुम अमरीका में रहती हो, यहाँ के नियम जानती हो, डॉक्टर का फ़र्ज़ है, अपने पेशेंट को उसकी बीमारी के बारे में सब कुछ सही-सही बता दे. तुम्हारा कैंसर लास्ट स्टेज में पहुँच चुका है.” डॉक्टर ने गंभीरता से कहा.

मेरे पास कितना समय शेष है, डॉक्टर?”इरा के चेहरे का रंग बदल गया था,,

“ज़्यादा से ज़्यादा चार-पांच साल. मुझे दुःख है.”

“इसका मतलब अब कुछ नहीं हो सकता, मेरे बच्चे अभी छोटे हैं, डॉक्टर. मेरे पति सह नहीं सकेंगे.”

“एक डॉक्टर होने के नाते हम अपने मरीज़ को बचाने की हर संभव कोशिश करते हैं, उस के बाद गॉड की मर्जी. तुम्हारी सर्जरी की जाएगी, उसके लिए तुम्हारे हसबैंड की परमीशन चाहिए..”

अमर नहीं जानता अपने कैंसर की लास्ट स्टेज के बारे में सुन कर इरा की क्या प्रतिक्रया रही होगी, पर जब वह वापिस आया तो इरा ने मुस्कुराते हुए मज़ाक में कहा था-

“मिस्टर अमर सहाय, अब आपको अपनी पत्नी की सेवा करने का मौक़ा मिला है. बस कुछ सालों की मेहमान है. कल आपको डॉक्टर मार्था ने बुलाया है.”

“मुझे ऐसे मज़ाक पसंद नहीं हैं, इरा. सच –सच बताओ, डॉक्टर ने क्या बताया.”अमर नाराज़ था

“सच ही कह रही हूँ, मेरा कैंसर लास्ट स्टेज में पहुँच चुका है, अमर, पर अभी मेरे पास कुछ वक्त है.”

“अच्छा तुम्हारा कैंसर लास्ट स्टेज में है और तुम हंस रही हो.”अमर यकीन नहीं कर पाया.

“ठीक है ये देखो, मेरी रिपोर्ट पर तो विश्वास करोगे.”.इरा ने अपनी रिपोर्ट अमर को पकड़ा दी.

“नहीं, ये नहीं हो सकता.” अमर सर पकड़ कर बैठ गया.

“अरे जनाब, अभी हम नहीं जा रहे हैं, अभी तो हमारी सर्जरी होनी है. शायद उसके बाद कुछ और समय मिल जाए.”इरा ने अमर को तसल्ली देनी चाही.

सर्जरी के पहले इरा ने सिस्टर मारिया से कहा था-

“सिस्टर मेरी सर्जरी के वक्त तुम मेरे लिए प्रार्थना करना. अगर मुझे कुछ हो जाए तो मेरे बच्चों का ख्याल रखना. मुझे तुम पर यकीन है. तुम मेरी बात याद रखोगी.”

“तुम्हे कुछ नहीं होगा, माई चाइल्ड. तुम्हारे बच्चे मेरे बच्चों जैसे हैं. उनको बचपन से प्यार दिया है.”मारिया की आँखें भर आईं. इरा के साथ उनका प्यार का रिश्ता रहा है.

सर्जरी तो हो गई, ओवरी निकाल देने पर भी कैंसर का जो जाल पूरे शरीर में फैल चुका था, उसे निकाल फेंकना संभव नहीं था. इरा ने अपनी नार्मल लाइफ जीनी शुरू कर दी. उसने दृढ निश्चय कर लिया ,जीवन के जितने दिन शेष हैं उन्हें अपने परिवार के साथ एक-एक पल खुशी के साथ बिताएगी. अपने ऑफिस के बहुत से साथियों को पता भी नहीं चलने दिया कि वह कैसे मौत के साए में जी रही थी. अपने मित्रों के साथ उसी गर्मजोशी के साथ मिलती, बच्चों और अम्रर को आभास भी नहीं होने देती कि उसका जीवन कुछ ही समय का मेहमान है. पहले ही की तरह से पार्टी के लिए मित्रों को इनवाइट करती.जो उसके बहुत निकट के मित्र होते उन्हें हंस-हंस कर बताती कैसे अमरीका के डॉक्टर भी उसके कैसर से धोखा खा गए. सब स्तब्ध रह जाते, पर इरा का परिहास चलता रहता. अमर और बच्चों की फेवरिट डिशेज बनाती, अमर इतना काम करने पर नाराज़ होता तो इरा हंस कर कहती-

‘कहते हैं पति के दिल पर राज्य करने के लिए पेट के रास्ते से दिल जीता जा सकता है. वही करती हूँ.”

“मेरे दिल पर तो तुम पहले ही राज्य क्र चुकी हो, अब और क्या चाहती हो?”अमर भी हंस पड़ता.

“अमर, इस सन्डे मै ने ओवेरियन कैंसर के लिए फाइव के यानी पांच किलोमीटर की दौड़ ऑर्गनाइज़ की है. तुम्हे भी मेरे साथ दौड़ना होगा. बस सवेरे जल्दी उठाना होगा.”अचानक एक दिन इरा ने सूचना दी.

“क्या, पागल हो गई हो? इस हालत में दौड़ोगी. इससे क्या फ़ायदा होगा?”विस्मित अमर ने पूछा.

“डॉक्टर ने कहा है, अभी मै सभी काम सामान्य रूप में कर सकती हूँ. हाँ तुम फायदे की बात पूछ रहे हो, तो अपने साथ दौड़ते साथियों से मुझे कितनी शक्ति और मॉरल सपोर्ट मिलेगा, तुम समझ नहीं सकते. उससे बड़ी बात ये है कि लोगों को ओवेरियन कैंसर के बारे में जानकारी मिलेगी. काश मुझे इसके बारे में पहले से कुछ पता होता.”इरा के चेहरे पर हलकी सी उदासी थी.

अमर के विरोध के बावजूद पिछले साढे तीन वर्षों से इरा अपने साथियों और मित्रों के साथ उत्साहपूर्वक पांच किलोमीटर दौडती रही है, दौड़ने के बाद चेहरे पर थकान का निशाँन तक नहीं होता बल्कि आँखों में जीत की चमक होती. विवश अमर को भी साथ देना होता, वह इरा की हिम्मत पर ताज्जुब करता. करीब चार वर्ष का समय बीतने वाला था. .अब इरा की तबियत कुछ गिरी-गिरी सी रहती.पिछले कुछ दिनों से से वह देर रात तक कुछ लिखती रहती. अमर कहता-

“इतनी देर तक जागना ठीक नहीं है. तुम्हें आराम करना चाहिए. क्या लिखती रहती हो?”

“कुछ नहीं, ऑफिस के काम नोट करती हूँ, तुम सो जाओ.”इरा सामान्य स्वर में जवाब देती.

अमर सोचता शायद वह अब भी अपने ऑफिस के कामों को पूरा कर रही है. अधूरे काम छोड़ना कभी उसकी आदत नहीं रही है.

“अमर, इस सोलह तारीख को एक पार्टी करनी है. रीमा और आशीष के सारे दोस्तों को और हमारे भी कुछ फ्रेंड्स को इनवाइट कराना है.”

“क्या कह रही हो, अपनी हालत देखी है, इतना काम कौन करेगा?’

“मेरी इतनी सी खुशी भी पूरी नहीं करोगे? अपने बच्चों को एक खुशी तो दे जाऊं. मै ने पार्टी का मेनू बना लिया है. बाहर से सब कुछ मंगा लो.”“

“तुम्हारी ऎसी ही बातें मुझे तुम्हारी बात मानने को मजबूर कर देती हैं वरना तुम्हारी ऎसी हालत में पार्टी करना क्या ठीक है?”

“अभी तो ठीक महसूस कर रही हूँ, तुम बेकार डराते रहते हो. एक बात कहूं, ये सच है, मुझे अपने दुनिया से जाने वाले दिन का इंतज़ार है, पर उससे डरती नहीं, पर तुम्हारी आँखों और चेहरे पर मेरी मौत की जो दहशत है, उसे साफ़ देख पाती हूँ. तुम्हारे उस डर से इस दुनिया को छोड़ने की बात सोच कर दुःख होता है. मुझे खुशी से जाने दो, अमर. अब रुक पाने का कोई उपाय शेष कहाँ रह गया है?”

अंतत: शानदार पार्टी हुई. रीमा और आशीष ने अपने मित्रों के साथ जी खोल कर एंज्वाय किया. बहुत दिनों बाद उनके चेहरों पर खुशी आई थी. कुछ देर के लिए वे माँ की बीमारी भूल से गए थे वरना उन पर इरा की बीमारी हमेशा हावी रहती थी. इरा ने भी अपनी शिफौन की नीली साड़ी पहिनी थी. पूरे समय अपने मित्रों के साथ जिस तरह से हँसी-मजाक कर रही थी कि यह विश्वास कर पाना असंभव था कि वह बस कुछ ही दिनों की मेहमान है. पार्टी के बाद इरा निढाल सी पलंग पर गिर सी गई. बस उस दिन के बाद से उसकी हालत बिगडती ही गई और अब तो उसका दर्द और तकलीफ देख कर कभी-कभी अमर सोचने को विवश हो जाता, इतना कष्ट वह कैसे सह पा रही है, इससे अच्छा है वह अब चली ही जाए. अब ना तो कोई पेन किलर उसका दर्द कम कर सकता था, ना कोई दवा, उसका दर्द देख पाना भी सहन नहीं हो रहा था.

“पापा, आ कर देखिए, मम्मी एकदम चुप हो गई है,”घबराई रीमा ने आ कर अमर को चैतन्य किया.

“कुछ देर पहले दर्द से छटपटाती इरा, शान्ति से सो रही लग रही थी. उसका चार वर्षों का इन्तजार ख़त्म हो गया था, वह जा चुकी थी.

दुखी अमर ने पास के घर में इरा के निधन की सूचना दे दी, सूचना देनी ज़रूरी थी.

दो दिन बाद भारत से इरा के भाई के आने पर अंतिम संस्कार किया जाना तय किया गया था. नियमानुसार इरा का शव हॉस्पिटल ले जाया जाना था लोग आने लगे थे इरा की मृत्यु प्रत्याशित ही थी, फिर भी उसका जाना दुखद था. उसकी सहेलियां उसके साहस की बातें कर रही थीं. हॉस्पिटल की एम्बुलेंस में आए लोग इरा का शव ले गए. अमर की उसके लिए यही अंतिम विदाई थी. अब दो दिन बाद उसके अंतिम संस्कार की तैयारी करनी थी. अचानक आशीष ने अमर के हाथ में एक डायरी देकर रोते हुए कहा-

“मम्मी ने कहा था, जब वह हमारा घर छोड़ कर चली जाएं तब ये डायरी आपको दे दूं.”

विस्मित अमर डायरी ले कर अपने कमरे में चला गया. अमर को याद आया शायद देर रात तक इरा इसी डायरी पर कुछ लिखती रहती थी और वह समझता रहा इरा ऑफिस के काम पूरे कर रही थी. अमर ने पहला पृष्ठ खोला था-

“डॉक्टर से अपने कैंसर की बात सुन कर भी आशा थी आजकल कैंसर लाइलाज तो नही है, पर सिर्फ चार या पांच साल का जीवन शेष है? यानी अब सोते-जागते अपनी मौत का इंतज़ार करना है, ज़रूरी तो नहीं वो इतनी मोहलत दे ही दे.

अमर बेहद परेशान हैं, बच्चों को सच्चाई बता कर अभी से दुखी करना गलत होगा. सर्जरी से कोई उम्मीद नहीं बढी, कैंसर ने मेरे शरीर में अपना साम्राज्य पूरी तरह से जमा लिया है, उस पर विजय पाना असंभव है.

अब मै ने तय कर लिया है, जीवन के जितने भी वर्ष शेष हैं, उन्हें पूरी तरह भरपूर खुशी के साथ जियूंगी. हाँ अपने काम जितनी जल्दी पूरे कर सकूं, करने की कोशिश करूंगी. अमर सत्य जानते हुए भी मेरे साहस के कारण आश्वस्त से रहते हैं, बच्चों को अब वास्तविकता ज्ञात हो गई है, पर मेरा सामान्य व्यवहार उनके जीवन में दुःख नहीं घोलता. दोनों बच्चे आ कर अपने स्कूल और मित्रों के बारे में पहले की तरह से ही बातें करते हैं, मेरे साथ पहले जैसा ही हँसी-मज़ाक करते हैं. हम सब कैरम, शतरंज ही नहीं कभी-कभी मिल कर अपना आर्केस्ट्रा का शौक भी पूरा करते हैं, अमर ने मेरे कई गीत रिकार्ड किए हैं, शायद मेरी बेटी रीमा उन गीतों को दोहराते हुए मुझे याद किया करेगी.अब तबियत ठीक नहीं लगती, अब समय कम रह गया लगता है, अमर से जो कहना है अब लिख ही देना ठीक है.

अमर, मै चाहती हूँ मेरा अंतिम संस्कार बहुत सादगी से किया जाए, संस्कार में गायत्री मन्त्र और दूसरे मन्त्रों के साथ सिस्टर मारिया की प्रार्थना के मन्त्र भी पढ़े जाएं, मेरे कपडे भारत के किसी अनाथालय को दे देना. मेरी मृत्यु पर किसी की आँख से आंसू नहीं निकलने चाहिए, मै ने बहुत साहस और खुशी के साथ अपना जीवन जिया है, मेरी मौत तो पिछले चार सालों से मेरे साथ रही है, पर उससे कभी डरी नहीं. सच तो यह है पिछले चार वर्षों से हर दिन उसका इंतज़ार करती रही हूँ.

मेरी फाइव के की दौड़ कभी रुकनी नहीं चाहिए, अब इस दौड़ को चलाते रहना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, अमर. इस दौड़ के रुकने का मतलब मुझे भूल जाना होगा. तुम्हारा साथ मेरे बच्चे ज़रूर देंगे, इसका यकीन है.

अमर, मेरे बच्चों के जन्म दिन खूब धूमधाम से मनाना उन्हें मेरी कमी कभी महसूस नहीं होने दोगे, इस बात का तो पूरा विश्वास है. जाती बेला में अपने मन की एक बात कहना चाहती हूँ, संसार से जाने वाले के मरण- दिवस पर प्रति वर्ष पूजा- पाठ का आयोजन करने वाली प्रथा मुझे कभी न्यायोचित नहीं लगती, किसी के दुनिया से जाने का दिन क्यों याद किया जाए? तुम्हे अगर मेरा जन्म दिन याद रहे तो बस उसे ही बच्चों के साथ केक काट कर खुशी से मनाया करना. उस दिन की याद में बच्चे खुशी से माँ को याद करें, यही चाहती हूँ. तो मिस्टर अमर सहाय मेरे जाने के बाद भी मेरा जन्म दिन मनाया करेंगे ना?

एक सत्य विचलित और व्यथित करता है, जानती हूँ, मेरा बेटा आशीष तो लड़का है, अपने पापा की छत्रछाया मे बड़ा हो कर उनके जैसा ही योग्य बनेगा, पर अमर, अपनी किशोरी बेटी से कैसे कहूं, उसे अब अपनी माँ के बिना अकेले ही अपना जीवन जीना होगा, किसी समस्या में उसे कौन सम्हालेगा, कौन सलाह देगा? कैसे समझाऊं दस साल बाद उसे अपने शरीर में कैंसर की संभावनाओं का शक दूर करने के लिए नियमित रूप से टेस्ट कराते रहना होगा. भगवन, तुमने मुझे बहुत कुछ दिया, काश मेरी बेटी के लिए मुझे जीवन के तीन-चार वर्ष और दे देते. मेरी बेटी- - - -.




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