6/8/15
उसका प्यार
एम ए फ़ाइनल की कक्षा में प्रोफ़ेसर नाथ ऐन्शिएंट हिस्ट्री का क्लास ले रहे थे। प्रोफ़ेसर नाथ अपने विषय के एक्सपर्ट माने जाते थे। उनके लेक्चर को शैतान लड़के भी मिस नहीं करते थे। राजकुमार अगली बेंच पर बैठ कर पूरे मनोयोग से उनका लेक्चर सुन रहा था।
“मे आई कम इन, सर?” एक मीठी आवाज़ से सबकी दृष्टि खुले दरवाज़े पर खड़ी सुजाता पर पड़ी थी। गोरे सुंदर चेहरे पर हवा से झूल आई बालों की लटें मानो चांद पर घिर आई बदली जैसी दिख रही थीं।
“आ जाइए, पर अगर कल फिर देर से आईं तो क्लास में आने की ज़रूरत नहीं है। आपने पूरे क्लास को डिस्टर्ब किया हैं।“ प्रोफ़ेसर नाथ ने कड़ाई से कहा।
“इनकी क्या ग़लती, सर। इनका ड्राइवर देर से आया होगा, या साथ आने वाले सिपाही ठीक वक्त पर इन्हें पहुंचाने नहीं आए होंगे।“शरारत के लिए बदनाम दुस्साहसी किशोर ने व्यंग्य किया।
किशोर की बात पर सब हंस पड़े। वास्तव में शहर के डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ़ पुलिस की इकलौती बेटी सुजाता के साथ कार में एक कांस्टेबल भी आया करता था। डी एस पी साहब का शहर में बड़ा दबदबा था। उन्हीं के डर से चाह कर भी लड़के सुजाता पर छींटाकशी करते डरते थे।
“जी नहीं, मेरा ड्राइवर या सिपाही ऐसी गुस्ताखी करने की हिम्मत भी नहीं कर सकते। सर, असल में मैं देर से सो कर उठी थी। कोशिश करूंगी कल से ठीक समय पर आ जाऊं।‘’बिना डरे सुजाता ने कहा।
“दैट्स बेटर। अगर कल भी देर से सो कर उठें तो घर में आराम कीजिएगा।“
“जी सर, मैं ऐसा ही करूंगी।“ अपनी बात कहती सुजाता अपनी सहेली विनती के पास जा कर बैठ गई।
‘सर, प्लीज़ हम काफ़ी टाइम बर्बाद कर चुके हैं। आप अपना अगला प्वाइंट बता रहे थे, उसे मैं आधा ही नोट कर सका हूं, क्या आप उसे फिर बताएंगे?”राजकुमार ने गंभीरता से कहा।
“चमचा कहीं का, प्रोफ़ेसर को मक्खन लगा रहा है। इसे तो मैं देख लूंगी।‘सुजाता बुदबुदाई।
“उसे मक्खन लगाने की क्या ज़रूरत है, याद नहीं, प्रीवियस का टॉपर है। सुना है हर एक्ज़ाम में फ़र्स्ट पोज़ीशन पर रहा है।‘विनती ने धीमी आवाज़ में कहा।
जिस दिन राजकुमार सफ़ेद कुरते-पाजामे के साथ हाथ में छाता लिए क्लास में प्रविष्ट हुआ था, उसे उस रूप में देख बहुत से रिमार्क्स दिए गए थे। उन सबसे निर्लिप्त राजकुमार शांति से बैठ गया था। कुछ ही दिनों में उसकी बुद्धि का लोहा सबको मानना पड़ा था। एम ए प्रीवियस में अपने ऊंचे अंकों से पिछले वर्षों का रिकार्ड तोड़ कर राजकुमार ने सबको चमत्कृत किया था।
प्रोफ़ेसर का लेक्चर शुरू हो गया था। सुजाता गंभीरता से नोट्बुक में कुछ लिखने लगी।
अपनी तन्मयता में सुजाता को पता भी नहीं लगा, कब प्रोफ़ेसर नाथ उसके पास आकर खड़े हो गए थे। सुजाता की नोट्बुक उठा कर देखने पर नोट्स की जगह राजकुमार का हास्यास्पद चित्र बना हुआ था। नीचे लिखा था ‘पढाकू बुद्धू।‘
“वाह आप तो बड़े अच्छे चित्र बना लेती हैं, पर इसमें एक कमी है। राजकुमार के चेहरे पर बुद्धि का जो प्रकाश है, वह मिसिंग है। अगली बार कोशिश कर के और अच्छा चित्र बनाइएगा। क्यों दोस्तो मैं ठीक कह रहा हूं न?”ऐसा कहते हुए प्रोफ़ेसर नाथ ने सुजाता द्वारा बनाया गया राजकुमार का कार्टून क्लास में दिखाया था। स्टूडेंट्स के ठहाके गूंज उठे, पर जिसका चित्र बनाया गया था, वह उदासीन ही रहा।
“नहीं सर, आप ग़लत समझे। मैं तो बस यूं ही पेंसिल चला रही थी। सर, असल में ऐसे चित्र बनाना मेरी हॉबी है।” सुजाता ने सफ़ाई दी।
“अभ्यास से आप अच्छे चित्र बना सकती हैं। वैसे क्लास में दूसरों के स्केच बनाने की जगह अगर आप लेक्चरस पर ध्यान दें तो अच्छे रिज़ल्ट ला सकती हैं। भविष्य में आपसे ऐसी ही उम्मीद रखूंगा, मिस सुजाता।“प्रोफ़ेसर नाथ ने गंभीरता से कहा।
“थैंक्यू, सर। आपकी एडवाइस पर अमल करने की पूरी कोशिश करूंगी।“
क्लास खत्म हो गया । सबके साथ राजकुमार भी अपनी नोट्बुक उठा कर बाहर आगया। उसके साथ के लड़के मानो उसी का इंतज़ार कर रहे थे।
“वाह राज साहब, आप हैं बड़े खुशकिस्मत्। जो लड़की किसी को लिफ़्ट नहीं देती, वह आपकी तस्वीर बना रही थी? किशोर ने छेड़ा।
“अजी ऐसे कहो-‘जिनके दीदार की हसरत हमारे दिल में है, वह तो भाईजान की महफ़िल में हैं।“सलीम ने शायराना अंदाज़ में कहा.
“अरे हम तो इन्हें भोला-भाला, सीधा-सादा समझते थे, पर ये तो छुपे रुस्तम निकले।“विनीत ने भी
“एक बात समझ लीजिए, शहर के डी एस पी की इकलौती बेटी है, मिस सुजाता। उनसे दूर ही रहिएगा जनाब कहीं जरा सी भी चूक हुई नहीं कि हथकड़ी पड़ जाएगी।“अजय ने चेतावनी दी।
“आप लोग ये सब क्या कह रहे हैं। मुझे ऐसी बातें बिल्कुल पसंद नहीं हैं।“राजकुमार गंभीर था।
“हां भई अब हमारी बातें क्यों पसंद आएंगी, अब तो सुजाता पसंद आएंगी।” किशोर ने कहा।
“प्लीज़ स्टॉप आल दिस, क्यों बेकार किसी शरीफ़ लड़की के बारे में उल्टा-सीधा बोल रहे हैं।“’
“ठीक है यार, हम तो तुमको आगाह करना चाहते थे। प्रेम की पगडंडी पर ज़रा सम्हल कर चलना। इस रास्ते की कठिनाइयों का तुम्हें अंदाज़ा नहीं है।“कमल ने भी अपनी राय दी।
“आपके सुझावों के लिए आभारी हूं, पर जिसके सामने मुश्किलों के पाहाड़ खड़े हों, उन्हें पार करने की कोशिशों में प्रेम तो मेरे लिए सूखी नदी बन चुका है। चलता हूं, देर हो रही है।“किसी के उत्तर की प्रतीक्षा न करके राजकुमार तेज़ी से चला गया। विस्मित मित्र उसे जाता देखते रहे।
दूसरे दिन सुजाता ठान कर आई थी उस पढाकू को मज़ा चखाना है। क्लास में राजकुमार ने अपने लिए एक खास जगह चुन रखी थी। सुजाता ऐसी जगह बैठी थी जहां से हो कर राजकुमार को अपनी सीट पर जाना होता था। जैसे ही राजकुमार अपने स्थान पर जाने लगा सुजाता ने जानबूझ कर अपने इंक वाले पेन को इस तरह से झटका कि राजकुमार के सफ़ेद कुरते पर नीली स्याही के धब्बे पड़ गए।
“ओह आई एम सॉरी, मेरी ग़लती से आपके कपड़े खराब हो गए। इन्हें ड्राईक्लीन करा लीजिएगा। ड्राईक्लीनिंग के पैसे मुझसे ले लीजिएगा।“भोला सा चेहरा बना कर सुजाता ने कहा।
“कोई बात नहीं, वैसे अपने कपड़े मैं खुद धोता हूं। आप परेशान न हों। कपड़ों के दाग़ तो छूट सकते हैं, पर मन पर जो निशान पड़ जाएं, उन्हें मिटा पाना आसान नहीं होता।“
“आप क्या कह रहे हैं, मैं समझी नहीं,?”
“आप नहीं समझेंगी, मिस सुजाता। जाने दीजिए, यह मेरी अपनी बात है।“शांति से अपनी जगह बैठते राजकुमार को सुजाता विस्मय से देखती रही।
क्लास खत्म होने पर राजकुमार अपना छाता ले कर बाहर चला गया। सुजाता के बाहर जाने के उपक्रम पर विनती ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया। एक विनती ही थी जो सुजाता की सच्ची सहेली थी, और दूसरी लड़कियां उसके साथ बस औपचारिक संबंध ही रखती थीं।
“आज तूने ठीक नहीं किया। बेचारे राज के कपड़ों पर जानबूझ कर इंक के दाग डाल दिये। इतना ही नहीं उसके स्वाभिमान को भी आहत किया है, सुजाता।“
“वो कैसे, विनती। मुझे कल उसकी बात बहुत गुस्सा आया था, जब उसने कहा मेरी वजह से उसका टाइम बर्बाद हुआ है। बहुत जमा रहा था जैसे बस उसे ही पढाई करनी हो। मैं ने उसी का बदला लिया है।“
“उसने गलत क्या कहा? तूने उसका कार्टून बनाया, आज उससे ड्राईक्लीनिंग के पैसे देने की बात कह कर उसका अपमान किया है, सुजाता। मुझे तुझसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। मेरी बात पर शांति से सोचना। किसी को अकारण अपमानित करना ठीक बात नहीं है, सुजी।“’
विनती की बातों ने सुजाता को सोच में डाल दिया। अनजाने ही वह किसी का अपमान कर बैठी थी। सच तो यह है कि उसके मन में अभिमान नाम की चीज़ भी नहीं है, पर अपने विरुद्ध कही जाने वाली बात का जवाब दिए बिना वह रह नहीं सकती। राजकुमार ने कहा था, वह अपने कपड़े खुद धोता है, क्यों? सुजाता की कार उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। कार में बैठते ही तेज़ पानी बरसने लगा। कार कुछ ही दूर गई थी कि पानी में भीगता राजकुमार पैदल जाता दिखाई दिया।
‘ड्राइवर, वो जो पैदल जा रहे हैं, उनके पास कार रोक दो।“सुजाता ने ड्राइवर को आदेश दिया। अपने पास कार रुकते देख राजकुमार चौंक गया।
“राजकुमार जी, आइए आपको आपके घर तक छोड़ दूं। पानी तेज़ बरस रहा है, आपका छाता आपको तेज़ बौछार से नहीं बचा सकता।‘’
“थैंक्यू, मेरे लिए परेशान होने की ज़रूरत नहीं है, सुजाता जी। पैदल चलने और पानी में भीगने जैसी मामूली बातें सहने की मुझे आदत है।‘’
‘’प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए, मैं जानती हूं मैं ने ग़लती की है। अगर आप मेरे साथ नहीं आए तो समझूंगी कि आप मुझसे नाराज़ हैं। मैं सज़ा की हकदार हूं, अगर आपने माफ़ नहीं किया तो मैं भी आपके साथ पैदल चलूंगी, नहीं तो कार में आ जाइए।‘’
“अजीब लड़की हैं आप। एक बात सोच लीजिए मेरे कपड़ों से आपकी कार खराब न हो जाए, अगर ऐसा हुआ तो मेरे पास साफ़ कराने के लिए पैसे नहीं हैं।“अनचाहे ही राज के मुंह से व्यंग्य निकल गया।
“अब तो आपकी नाराज़गी ज़ाहिर हो ही गई। चलिए मैं भी पैदल चलती हूं।‘
“अरे-अरे- ये क्या कर रही हैं? बड़ी ज़िद्दी हैं आप, चलिए मैं आपके साथ आता हूं।“‘कार का डोर खोल कर सुजाता के उतरने की कोशिश ने राजकुमार को पराजित कर दिया।
“थैंक्स, राज जी। वैसे आप सचमुच मुझसे बहुत नाराज़ हैं। आई एम एक्स्ट्रीमली सॉरी।“
“गलत समझ रही हैं आप, मेरा तो जन्म ही दूसरों से अपमान सहने के लिए हुआ है। विश्वास कीजिए मेरे मन में आपके प्रति कोई दुर्भाव नहीं है।“ संजीदगी से राजकुमार ने कहा।
“लगता है आपका गुस्सा अभी कम नहीं हुआ है। ड्राइवर “बहार रेस्ट्रा” पर कार रोकना।“
“देखिए सुजाता जी, मुझे सीधे घर जाना है, मेरी माँ इंतज़ार कर रही होगी। वैसे भी होटेल या रेस्ट्राज़ में जाने की मेरी आदत नहीं है।‘
“बिना कोल्ड- ड्रिंक लिए आपका पारा नीचे कैसे उतरेगा।“सुजाता ने मुस्कुरा कर कहा।
“मैं पारा पी कर ही बड़ा हुआ हूं, सुजाता जी।“
“वेरी इंटरेस्टिंग, तब तो आपको अपना नाम नील कंठ रखना चाहिए था। इतना विष पी कर भी ज़िंदा हैं।“ सुजाता हंस पड़ी।
“नाम का क्या, कुछ भी रख दो। माँ ने न जाने क्या सोच कर मेरा नाम राजकुमार रख दिया।“
“आपका क्रोध शांत करने के लिए तो शायद पूरे रेस्ट्रा की कोल्ड ड्रिंक कम होंगी। एक लड़की पर इतना क्रोध करना शोभा नहीं देता।‘’
रेस्ट्रा में बैठते ही राजकुमार ने सीधे शब्दों में कहा-
“आपकी ज़िद पर यहां आगया हूं, पर एक ज़िद मेरी भी है। बिल का पेमेंट मैं ही करूंगा। यह मेरे स्वाभिमान का प्रश्न है। मेरी ज़ेब में कुल बीस रुपए पचास पैसे हैं, इतने में जो कुछ मिल जाए, मंगा लीजिए।“
“ओ के, मंज़ूर्। वेटर दो ठंडे कोक ले आओ।“
“आज आपकी ज़िद की वजह से अपनी ट्यूशन के लिए लेट हो रहा हूं।“
‘इस ग़लती के लिए तो मैं ही ज़िम्मेदार हूं। मुझे दोषी बना कर आप दोष-मुक्त हो सकते हैं।“
“कभी निरपराध होते हुए भी मुझे दोषी ठहराया गया है। मैं जानता हूं, यह सह पाना कितना कठिन होता है। आप अपने को व्यर्थ ही अपराधी मान रही हैं।“
“आपकी बातें बड़ी रहस्यमयी हैं। अपने बारे में कुछ बताएंगे?”सुजाता जानने को उत्सुक थी।
“मेरी ज़िंदगी तो एक खुली किताब है, सब पढ लेते हैं।“राजकुमार उदास था।
“खुली किताब पढने के लिए भी तो उसके पेज पलटने पड़ते हैं।‘
“मेरी ज़िंदगी में ऐसा कुछ नहीं जिसे सराहा जाए।‘’
“आपकी बातें मेरी उत्सुकता बढा रही हैं। लगता है आपकी ज़िंदग़ी में कुछ ऐसा घटा है, जिसने आपको बदल दिया है। क्लास के साथी भी आपको जीनियस दार्शनिक कहते हैं।“
“क्या जानना चाहती हैं आप, यही कि बचपन में पिता एक दुर्घटना मे माँ पर एक छोटे बालक का दायित्व छोड़ कर इस दुनिया से चले गए। माँ स्कूल में दाई का काम करके किसी तरह अपने बेटे को पाल रही थी। नाम तो बेटे का राजकुमार रख दिया, पर माँ का हाथ बटाने के लिए माँ का दुलारा राजू खाली समय में कभी लोगों के जूते चमकाया करता था और कभी घरों में अखबार पहुंचाया करता था।“अचानक राजकुमार चुप हो गया।
“क्या- - आ, कहीं वह बालक आप तो नहीं थे, क्या आप सच में बूट पॉलिश करते थे?” सुजाता की विस्मित दृष्टि राजकुमार पर निबद्ध थी।
“ठीक पहचाना। एक दिन एक पार्क में बच्चों का फ़ैंसी ड्रेस कॉम्पटीशन चल रहा था, नन्हा राजू भी कौतुक से तमाशा देख रहा था। आयोजक ने समझा वह भी फ़ैंसी ड्रेस में आया है। उसे प्यार से मंच पर ले जाया गया। अपने स्वाभाविक रूप और हाज़िरजवाबी के कारण उसे फ़ैंसी ड्रेस का अभिनेता समझा गया और फ़र्स्ट प्राइज़ दी गई। बातों-बातों मे जब उसने अपनी सच्चाई बताई कि वह एक गरीब माँ का बेटा है, माँ की मदद के लिए बूट पॉलिश करता है तो उसके हाथ से प्राइज़ छीन कर उसे धक्का देकर मंच से नीचे धकेल दिया गया। साथ में धोखेबाज़, बेईमान, चोर जैसे अपशब्दों की बैछार लिए जब वह माँ से लिपट कर रोया तो माँ ने कहा था-
“बेटा अपमान की इस चिंगारी को बुझने मत देना, यही तुझे आगे बढने की हिम्मत देगी। तुझे खूब बड़ा आदमी बनना है, मेरे बच्चे। तुझे वो ऊंचाई छूनी है जिसके आगे सब सिर झुकाएं।‘’
मैं साथ के बच्चों की हंसी का सामान था। मुझसे कहते-
“ऐ बूट पॉलिश वाले मेरे जूते चमकाने के कितने पैसे लेगा?”
“कल अखबार पहुंचाने में देर की तो पैसे नहीं मिलेंगे.”
उनकी हंसी पहले रुलाती थी, बाद में अभ्यस्त हो गया। यही मेरी नियति है, सोच कर पढाई में पूरा ध्यान लगा दिया। माँ और मास्टर जी का प्यार और प्रेरक शब्द मुझे आगे बढने की राह दिखाते रहे।“ राज उदास हो आया।
“फिर क्या हुआ, राज?’ राज के मौन पर सुजाता ने जानना चाहा।
“उसके बाद कभी स्कूल में घंटी बजाने का काम किया, कभी दूसरे घरों के काम किए। मेट्रिक में जब जिले भर मे प्रथम स्थान मिला तब मेरे मास्टर जी ने सीने से लगा लिया। स्कॉलरशिप के साथ बच्चों की ट्यूशन्स लेते हुए आज यहां तक पहुंचा हूं।“
सुजाता स्तब्ध थी। मुंह से एक बोल भी नही फूटा। शायद आँखें पनीली थीं।
“कहिए मेरी इस खुली किताब को पढ कर आप शर्मिंदा तो नहीं हैं कि आज आपके साथ कार में बैठ कर आया और अब मेरे साथ कोल्ड ड्रिंक पीने को मज़बूर हैं।“राजकुमार की आवाज़ कुछ रूखी हो आई।
“नहीं, सच्चाई यह है कि आज आप जैसे महान व्यक्ति से मिलना अपना सौभाग्य मान रही हूं। आज अपनी निगाहों में मैं बहुत नीचे गिर गई हूं। आपकी ज़िंदगी तो एक मिसाल है। इताना झेल कर भी आप हर एक्ज़ाम में टॉप करते रहे हैं। मैं ऐसे जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती हूं।“
“ऐसा कह कर आप मुझे शर्मिंदा कर रही हैं। मैं बचपन से अपमान का ज़हर पीकर बड़ा हुआ हूं। अब तो ये मेरी आदत बन गई है। मुझे किसी का कुछ भी कहा सुना, न प्रशंसा ना अपमान छू भी नहीं पाता।“
“ मैं सच कह रही हूं, सारी सुख-सुविधाएं होते हुए भी मुझे कभी फ़र्स्ट डिवीज़न नहीं मिली। अपनी तो बस रॉयल डिवीज़न ही रही है।“
“अगर क्लास में दूसरों के चित्र बनाती रहीं तो शायद कभी ऐसा भी हो सकता है कि अखबार के रिज़ल्ट वाले पेज पर आपका नाम भी न छपे।“राजकुमार हल्के से मुस्करा दिया।
“थैंक्स गॉड, आप मुस्कराए तो। वैसे गुस्से में आप एकदम ऐंगरी यंग मैन दिखते हैं, राज। क्या हम आपको राज कह सकते हैं? राजकुमार बड़ा लंबा नाम है।“सुजाता पूछ बैठी।
“मुझे खुशी होगी। थोड़ी ही देर में आपके बारे में इतना तो जान गया कि आप एक अच्छी चित्रकार हैं, ज़िद्दी हैं, अपनी बात किसी से भी मनवा सकती हैं। इसके अलावा और क्या हैं बताएंगी?”
“एक बिंदास लड़की हूं, पर आज कान पकड़ती हूं भविष्य में कभी कोई कार्टून नहीं बनाऊंगी।“
‘ये फ़ैसला तो ग़लत है, किसी कला को छोड़ना नहीं चाहिए। कार्टून कितने लोग बना पाते हैं, सुजाता जी? वैसे अगर आप चाहें तो अपना हस्ताक्षर कर के मेरा कार्टून मुझे दे दीजिए।“
“एक शर्त पर कि आप हमे सुजाता जी नहीं कहेंगे, बस सुजाता कहेंगे। अज से हम दोस्त हुए न?’
“मंज़ूर, पर अब जाने की इजाज़त दीजिए। बारिश भी बंद हो गई है।“
“अपना कीमती वक्त देने के लिए शुक्रिया। चलिए आपको आपके घर तक छोड़ दूं।“
“थैंक्स, पर इसकी ज़रूरत नहीं है, मेरी मंज़िल बस दो कदम पर है। मेरा स्टूडेंट पास में ही रहता है।“
“कहीं आपको डर तो नहीं है कि मैं आपके खिलाफ़ उससे कुछ कह दूंगी।“ सुजाता ने परिहास किया।
“ अगर आप उससे कुछ भी कहेंगी तो वह आपका विश्वास नहीं करेगा। मुझ पर उसे विश्वास है।“बात खत्म करते हुए राजकुमार तेज़ी से उठ कर बाहर चला गया।
घर लौटी सुजाता सोच में पड़ गई। देर रात तक राजकुमार की बातें याद आ रही थीं। कैसे इतने अपमान-उलाहनों के बीच वह अपने को सामान्य रख सका है? बचपन का अपमान भुलाना आसान नहीं होता और वह तो इसे जीता आया है। इतना ही नहीं उसने तो सुजाता का बनाया अपना हस्यास्पद कार्टून भी मांगा है। न जाने कब वह सो पाई।
दूसरे दिन क्लास खत्म होने के बाद बाहर आकर वह राज की प्रतीक्षा कर रही थी। हाथ में राज का कार्टून था। राज के आते ही मुस्कुरा कर कहा-
‘ ये लीजिए आपका चित्र लाई हूं, पर बदले में आपको कल के क्लास वाले नोट्स देने होंगे।“
“अगर आप ये न भी दें तो भी मैं नोट्स ज़रूर दूंगा। एक शर्त है, आप उन पर फिर कोई चित्र न बना दें। मदद करना तो हर इंसान का फ़र्ज़ है।“ राज कुमार के चेहरे पर हंसी थी।
“क्या मेरा अपराध कभी नहीं भुलाया जाएगा, राज?”
“अपराध कैसा वही तो हमारी मित्रता की कड़ी है। आज तक किसी ने मुझे इस लायक कहां समझा था।“
“बचपन की बीती बातें क्या भुलाई नहीं जा सकतीं, राज़?
“वही तो मेरी प्रेरणा की चिंगारी हैं, सुजाता।“नोट्स देते राज ने कहा।
“नोट्स के लिए थैंक्स्। आइए आपको घर तक छोड़ दूं।
“माफ़ कीजिए, अपनी आदतें बिगाड़ने की ज़िम्मेदारी आपको नहीं दे सकता।‘
“एक रिक्वेस्ट है, क्या आप अपने दूसरें शिष्यों के साथ मुझे भी शामिल कर सकते हैं। मैं भी अब पढाई के लिए सीरियस हूं, पर आपकी गाइडेंस चाहिए।‘’
“शिष्य नहीं, पर अपनी सहपाठिनी की मदद कर सका तो खुशी होगी, पर क्या आप सचमुच पढाई के लिए सीरियस हैं?”शोख और चुलबुली सुजाता पर वह विश्वास नहीं कर पा रहा था।
“मेरी एक क्वालिटी से आप अनजान हैं, राज। मैं जिस चीज़ या बात को चाहती हूं, उसे टूट कर चाहती हूं। उसे पूरा करने से भगवान भी नहीं रोक सकते।“गंभीरता से सुजाता ने कहा।
“यह तो अच्छी क्वालिटी है तो चलिए आज से ही शुरुआत करते हैं। उस पीपल के पेड़ की छाया अच्छी रहेगी। प्राचीन गुरुकुलों में ऐसे ही प्रकृति के शुद्ध वातावरण में शिक्षा दी जाती थी।“
राजकुमार ने पहले चैप्टर से मुख्य बिंदु समझाने शुरू किए। गंभीर सधी आवाज़ में मानो जादू था। इतिहास जैसा विषय भी इतना रोचक हो सकता है, सुजाता विस्मय-विमुग्ध सुनती रही। एक-एक शब्द मानस में स्थाई रूप में अंकित होता जा रहा था। एक घंटे का समय पलक झपकता सा बीत गया। किताब बंद करते हुए राजकुमार ने कहा-
“अब मुझे जाना होगा, मेरी ट्यूशन का वक्त हो गया है। कल आपसे सवाल पूछूंगा, तैयार रहिएगा।“
“ज़ी गुरुदेव, अगर आप चाहें तो अभी सारे सवालों के जवाब दे सकती हूं।“सुजाता ने हंस कर कहा।
“कल आपको अपने नोट्स भी दूंगा, उन्हें पढने से- - - -।“
“मुझे भी फ़र्स्ट डिवीज़न मिल जाएगी। ठीक कह रही हूं न?’ राज का वाक्य काट कर सुजाता ने कहा।‘
“ज़रूर, बशर्ते क्लास में प्रोफ़ेसर के लेक्चर ध्यान से सुने। तस्वीरें बनाकर या लोगों के कपड़ों पर स्याही के दाग डालने जैसी शरारतें न करें।“राज के चेहरे पर शरारती हंसी खिल आई।
“मैंने कान पकड़े थे न जनाब, अब और कितनी बार मेरी ग़लती की शिकायत करेंगे?’सुजाता नाराज़ थी।
“सॉरी, नाराज़ न हों, मैंने मज़ाक में कहा था।“
आश्चर्य इस बात का था कि पढाई को सीरियसली न लेने वाली सुजाता को अब विषय में रुचि आने लगी थी। दूसरे दिन ही नहीं अब उसे हर दिन राजकुमार के साथ समय बिताने की प्रतीक्षा रहती। कभी किसी पेड़ के नीचे कभी पास की गार्डेन में पढाई करते हुए कभी- कभी सुजाता अपनी चंचलता के किस्से सुना कर राज को हंसाती। देखने में गंभीर राज के पास भी कुछ मनोरंजक कहानियां सुनाने को होतीं। जब से सुजाता को पता लगा राज कविताएं लिखता है, तब से अक्सर राज को अपनी कविताएं सुनानी पड़तीं। उन कविताओं का दर्द सुजाता के मन को छू जाता। सुजाता गीत गाती है इस बात की जानकारी राज को कॉलेज के वार्षिकोत्सव में मिली। उसकी मीठी आवाज़ ने समां बांध दिया। अब राज के अनुरोध पर पढाई के बाद कभी-कभी उसे कोई गीत सुनाना पड़ता। आप से दोनो कब एक दूसरे के लिए आप से तुम हो गए, उन्हें पता ही नहीं लगा।
शायद दोनो ही इस सत्य से अपरिचित थे कि वे दोनो एक-दूसरे के कितने निकट आ गए थे। एक- दूसरे के साथ समय जैसे पूर्ण हो उठता था। कभी दृष्टियां मिल जाने पर दोनों ही संकुचित हो उठते। उन अनुरागमयी दृष्टियों का रहस्य अब रहस्य नहीं रह गया था। अक्सर घर लौटने में देर होने पर सुजाता राज से कहती-
“आज फिर देर हो गई, माँ रोज़ टोकती हैं। तुम्हारे साथ वक्त इतना कम क्यों पड़ जाता है, राज़?”
“आज जो नोट्स दिए हैं घर जा कर पढ लेना, वक्त लंबा हो जाएगा।?’राज हंसता।
सुजाता की सहेली विनती को ताज्जुब होता यह कोई नई ही सुजाता थी।
“क्या बात है, सुजी तू एकदम बदल गई है। अब पढाई के अलावा क्लास में न कोई शैतानी करती है न कोई नया तमाशा खड़ा करती है। पहले इतिहास विषय को बोरिंग कह कर अक्सर क्लास बंक करती थी, पर अब तो टेस्ट में भी अच्छे नम्बर ला रही है।“
“सब गुरु की कृपा है, मेरी विनती।“कह कर सुजाता हंस दी।
देर से घर लौटने पर घर में माँ के साथ चाय पी रहे पापा ने पूछा-
“सुजी बेटी, तुम्हारी माँ बता रही थी कि कुछ दिनों से घर देर से लौट रही हो। कोई खास वजह तो नहीं है?” पुलिस अधिकारी पिता की भेदक दृष्टि बेटी पर निबद्ध थी।
“जी पापा, आजकल आपकी बेटी पढाई कर रही है।‘सुजाता ने गर्व से कहा।
‘अच्छा तो इसके पहले क्या करती थी? मैं तो इसी धोखे में था कि मेरी बेटी पढाई कर रही है।“
“ओह पापा, आप पुलिस ऑफ़िसर हैं, भला आपको आपकी बेटी धोखा दे सकती है? मम्मी जल्दी कुछ खाने को दो, भूख लग रही है॥“
“तेरी मनपसंद पकौड़ियां बनी हैं। ठंडा लेगी या चाय?’
ठंडा ही चलेगा, मां।‘’पकौड़ियां खाती सुजाता को याद आया, राज को भी तो घर लौटने में देर हो जाती होगी। कल से उसके लिए भी कुछ स्नैक्स ले जाएगी।
“मुझे खुशी है कि आजकल तू सचमुच पढाई के लिए सीरियस है। भगवान को धन्यवाद है कि तुझे सद्बुद्धि तो आई।“पापा ने मुस्कुरा कर कहा।‘’
“पापा, राजकुमार तो कहता है, अगर मैं मन लगा कर पढूं तो उसे भी पीछे छोड़ सकती हूं।“
“ये राजकुमार कौन है?’ पुलिस अधिकारी पापा के माथे पर बल पड़ गए।
“ओह, ही इज़ अ जीनियस, पापा। शुरू से आज तक हर क्लास में टॉप करता आया है।‘
‘अच्छा तू भी उसका लोहा मान गई, तब तो उससे मिलना पड़ेगा। किसी दिन उसे घर ले आ।“
“अरे उसे तो जब चाहूं घर ला सकती हूं। कल ही उसे बुला लूंगी।“
“इतना विश्वास है उस पर?’
“विश्वास नहीं, अधिकार कहिए पापा। वह मेरी बात टाल ही नहीं सकता।‘गर्व से सुजाता ने कहा।‘
“ठीक है, कल मिल लेते हैं तेरे जीनियस राजकुमार से।“
“आप उससे ज़रूर इम्प्रेस्ड होंगे, पापा।“विश्वास से सुजाता ने कहा।
“आखिर मेरी बेटी की पसंद का इंसान मामूली कैसे हो सकता है।“
“ऑफ़्कोर्स, पापा। आपकी ही तो बेटी हूं।“
सुजाता के कहने पर राजकुमार दूसरे दिन उसके घर गया था। सुजाता की माँ और पिता को अनुमान हो गया था कि सुजाता इस राजकुमार नाम के लड़के को बहुत पसंद करती है। दोनो राजकुमार की प्रतीक्षा कर रहे थे। नौकर के साथ राजकुमार ड्राइंग रूम में पहुंचा जहां वे दोनो बैठे थे। खादी के सफ़ेद कुरते-पाजामे में राजकुमार का व्यक्तित्व प्रभावशाली लग रहा था। गोरे चेहरे पर तेजस्विता झलक रही थी।
‘आओ यहां बैठो बेटा, हम सुजाता के माता-पिता हैं। सुजी तुम्हारी बहुत तारीफ़ करती है।“’
“रामू, राज साहब के लिए शर्बत और नाश्ता लाओ।“माँ ने सेवक को आदेश दिया।
“कहो बेटे, यहां कब से हो?’एस पी साहब ने जानना चाहा।
“पिछले चार वर्षों से इस शहर में आया हूं, उसके पहले गांव में था। गांव में बस बारहवीं क्लास तक की शिक्षा की व्यवस्था थी इसलिए आगे की पढाई करने यहां आया हूं।‘शांति से राजकुमार ने जवाब दिया।
“गांव में तुम्हारी ज़मीन- ज़ायदाद रही होगी?’
“जी नहीं, मेरी ज़ायदाद के नाम पर बस मेरी माँ हैं। वह मेरे ही साथ रहती हैं। मेरे पिता का स्वर्गवास मेरे बचपन में ही हो गया था।
“ओह, शायद तुम्हारे कोई संबंधी, बंधु-बांधव रहे होंगे, उन्होंने ही तुम्हारी देख-रेख की होगी।“
‘बंधु-बांधव के नाम पर बस एक पड़ोसी रामदीन काका ही हैं। उन्होंने हर कदम पर मेरा साथ दिया है। मेरा हौसला बढाया है।‘
‘ऐसी हालत में तो तुम्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा। यहां तक कैसे पहुंचे हो, राज?”
“उन कठिनाइयों की वजह से ही तो आज यहां तक पहुंच सका हूं, सर्। बचपन में दूसरों के बूट-पॉलिश करते, घरों और स्कूल में काम करते वक्त सोचता था, जिनके जूतों पर पॉलिश कर रहा हूं, वे पढे-लिखे इंसान हैं। ऊंचाई पर पहुंचने के लिए पढाई ज़रूरी है। इसीलिए पढाई पूरी करने की अदम्य इच्छा मेरे मन में घर गई थी।‘
“क्या कहा तुम दूसरों के जूतों पर पॉलिश भी करते थे? विश्वास नहीं होता।“डी एस पी साहब चौंक गए, चेहरे पर वितृष्णा स्पष्ट उजागर थी।
“अविश्वास का प्रश्न ही नहीं उठता, सर। मेरा वही अतीत तो मुझे आगे और आगे बढने की प्रेरणा देता है।‘राजकुमार ने विश्वास के साथ कहा।
‘अच्छा, तुम बैठो, मुझे एक ज़रूरी मीटिंग में जाना है। शांति तुम मेरे साथ आओ।‘अचानक सुजाता के पापा उठ खड़े हुए और पत्नी को भी साथ ले गए।
तभी सुजाता हाथ में शर्बत की ट्रे के साथ ड्राइंग रूम में आई। साथ में रामदीन मिठाई और नमकीन की प्लेट लिए आया था। माँ –पापाको न देख ताज्जुब से कहा-
“अरे माँ और पापा कहां गए, राज? तुम शर्बत लो, मैं उन्हें बुलाती हूं।“
“नहीं, उसकी ज़रूरत नहीं है। मुझे ट्यूशन के लिए जाना है, देर हो रही है। मैं चलता हूं।‘
‘यह क्या राज, हमेशा घोड़े पर सवार रहते हो। हमारे लिए टाइम ही नहीं है।‘सुजाता नाराज़ थी।“
‘मेरा सब कुछ तुम्हारा ही है, सुजाता, पर शायद मैं तुम्हारे लिए उपयुक्त नहीं हूं। लगता है मेरा यहां आना ठीक नहीं था। तुम्हारे पापा बहुत समझदार हैं। मैं चलता हूं। मुझे क्षमा करना।“सुजाता को विस्मित छोड़ राज चला गया।
राज के जाते ही सुजाता के पापा और माँ ड्राइंग रूम में आगए। सुजाता के पापा के चेहरे पर क्रोध था।
‘इसी लड़के के गुण गा रही थीं। अपनी नहीं तो मेरी इज्ज़त का तो ख्याल रखतीं। शर्म नहीं आती इसे अपना दोस्त कहती हो। एक बात समझ लो मुझे तुम्हारा इसके साथ मिलना-जुलना कतई पसंद नहीं।‘
‘क्यों पापा, राजकुमार में कौन सी खराबी देखी आपने?’तेज़ आवाज़ में सुजाता ने कहा।
‘मैने दुनिया देखी है, मैं ऐसे लड़कों को जानता हूं। ये बड़े घर की लड़कियों पर डोरे डाल, अपना मतलब सिद्ध करते हैं। अगर मेरी बात नहीं मानी तो अंजाम बुरा होगा। उसे इस शहर से ही नहीं दुनिया से उठवा सकता हूं। इसे मेरी चेतावनी समझ लो।‘वह दहाड़े।
“आपके इस फ़ैसले की वजह जान सकती हूं, पापा?”बिना डरे सुजाता ने पूछा।
“आर्थिक, सामाजिक किसी भी दृष्टि से वह ह्मारी बराबरी पर खड़ा नहीं हो सकता, समझीं।“
“बौद्धिक शब्द तो आप भूल ही गए पापा। उसकी बराबरी किससे करेंगे? आपकी झूठी मान्यताओं पर मैं विश्वास नहीं करती। मैं राज से मित्रता नहीं छोड़ सकती।‘ स्पष्ट शब्दों में सुजाता ने कहा।
“अगर तेरा यही फ़ैसला है तो कल से तू कॉलेज नहीं जाएगी।“
‘यह मेरा फ़ाइनल इयर है, मैं ने बहुत मेहनत की है। मै अपनी पढाई अधूरी नहीं छोड़ सकती।“
“तुझे एक निर्णय लेना है, कॉलेज या राजकुमार से मित्रता, इन दोनो में से एक को चुनना होगा।“
‘सुजी बेटी, क्यों अपने पापा से बहस कर रही है। वह तेरा भला ही तो चाहते हैं। जल्दी ही तेरी शादी एक बड़े अच्छे लड़के से होने वाली है। ऐसे में अपने पापा की बात मानने में ही भलाई है।‘माँ ने कहा।
“क्या कहा, मेरी शादी होने वाली है। नहीं माँ, मैं शादी करूंगी तो सिर्फ़ राज से वर्ना मैं आपके सामने प्रण लेती हूं, जीवन भर शादी नहीं करूंगी।“दृढ शब्दों में सुजाता ने अपना फ़ैसला सुना दिया।
“तुझे कॉलेज भेजना ही ग़लती थी। पढाई की जगह एक चालाक और छोटे इंसान के जाल में फंस गई। अब अगर कॉलेज गई तो मुझे वचन देना होगा तू उस लड़के से नहीं मिलेगी।“
“आप उसे छोटा इंसान इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वह गरीब है। काश आप देख पाते सब उसकी कितनी इज्ज़त करते हैं। वह तो आदर्श की मिसाल है, पापा। मैं वचन देती हूं राज से बात नहीं करूंगी, पर उसके लिए मेरे मन में जो भावनाएं हैं, कभी नहीं बदलेंगी।‘बात कह कर सुजाता वहां से चली गई।
‘मुझे उस राज और उसकी माँ से बात करनी होगी, शांति। यह लड़की अपनी ज़िद पर अड़ी रहेगी।‘
दूसरे दिन सवेरे डी एस पी साहब की जीप राज के छोटे से घर के सामने आकर रुकी थी।
‘आपने कैसे कष्ट किया, सर्। क्या मुझसे कोई गलती हो गई? आवाज़ सुन कर माँ भी बाहर आगई।
“बहुत बड़ी गलती की है। अपनी औकात भूल कर मेरी बेटी को अपने जाल में फंसाया है। जानते हो उसका विवाह लंदन के एक इंजीनियर से होने वाला है। खबरदार जो अब कभी सुजाता से बात करने या मिलने की कोशिश भी की। अगर मेरी बात नहीं मानी तो बेमौत मारे जाओगे।“
“ये तो खुशी की बात है कि सुजाता की शादी होने वाली है, पर अगर वह मुझसे बात करना चाहें तो?’
“नहीं, मैं ने उससे वचन ले लिया है, वह तुमसे बात नहीं करेगी। अपनी जान प्यारी है तो मेरी बात याद रखना। एक बात और तुम सुजाता को कभी नहीं बताओगे कि मैं यहां आया था या मैने क्या कहा।“
जीप जाने के बाद माँ ने अपने राजू को चिपटा लिया। आँखों से आँसू बह रहे थे।
“हे भगवान, तू क्यों इतना निर्दयी है। मेरे बच्चे की खुशी तुझसे नहीं देखी जाती। छुटपन में सिर से बाप का साया उठा लिया और अब उससे उसका प्यार छीन रहा है। बेटे के जीवन की रक्षा कर प्रभु।“
“तू डर मत माँ, इन अमीरों को हम गरीबों से डर लगता है। हंसी आती है न माँ?’आँखों में आक्रोश था।
वो दिन कितने कठिन थे। एक ही क्लास में होते हुए, एक-दूसरे को देख कर भी बात न कर पाना मन को चीर डालता था। एक दिन विनती ने राज को एक छोटी सी चिट लाकर दी थी। सुजाता ने लिखा था-
‘पापा द्वारा दिए गए अपमान से हिम्मत मत हारना, राज। तुम्हें बहुत आगे बढना है। माँ के सपने पूरे करने हैं। वचनबद्ध हूं, बात नहीं कर सकती, पर मेरा रोम-रोम तुम्हारी सफलता की कामना करता है। ये तुम्हारी परीक्षा की घड़ी है, निराश मत करना। टॉप तुम्हें ही करना है। मां के शब्द याद रखना तुम्हें उस ऊंचाई पर पहुंचना है, जहां तुम्हारे समक्ष सब झुकने को विवश हों। तुम्हारे साथ बिताया एक-एक पल मेरी अमूल्यतम निधि है, मेरे जीवन की सबसे बड़ी सौगात है। तुमसे बात न करने की विवशता के बावजूद मैं हमेशा तुम्हें अपने साथ पाती हूं। पता नहीं तुमसे अलग हो कर जी भी पाऊंगी या नहीं?”
चिट पढते राज की आँखें अनायास ही सुजाता पर पड़ गईं। इन कुछ ही दिनो में जैसे हंसता फूल मुरझा गया था। उत्तर में राज ने लिखा-
‘हमने बात न करने का वचन दिया है इसलिए यह अंतिम चिट है। अपना ख्याल नहीं रख रही हो। जैसे कोई दूसरी ही सुजाता हो। जानता हूं, तुम्हारे भविष्य में मैं नहीं हूं, पर मुझे वही हंसती हुई साहसी सुजाता चाहिए वर्ना नाराज़ हो जाऊं तो दोष मत देना। तुमसे अलगाव की पीड़ा क्या मुझे कम है, पर तुम्हें हिम्मत रखनी है। ऐसी निराशाजनक बातें मेरी सुजाता कैसे कर सकती है, वह तो मेरी प्रेरणा है। शुभ कामनाओं के लिए धन्यवाद। तुम्हें भी अनन्त मंगल कामनाएं, इस बार फ़र्स्ट डिवीज़न लाओगी न?“
इसके बाद दोनो के बीच न कोई बात हुई ना ही पत्र लिखे गए। परीक्षा के बाद सुजाता का कॉलेज आना छूट गया। राजकुमार ने टॉप किया था। अब राज प्रशासनिक प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गया। उसकी माँ का सपना था उसका राजू बेटा कलक्टर बने। अपने अपमान शायद वह तभी भूल सकेगा। पढते-पढते पृष्ठों में सुजाता का चेहरा साकार हो जाता। उसे खुशी थी परीक्षा में सुजाता को भी फ़र्स्ट डिवीज़न मिली थी। अक्सर उसका मन तड़प उठता, क्या सुजाता भी उसे याद करती होगी या नया घर बसा चुकी होगी। सुजाता के बारे में खबर मिलने का कोई साधन नहीं था। विनती भी अपने घर लौट चुकी थी। सुजाता के पापा का भी एस पी के रूप में दूसरे शहर में ट्रांसफ़र हो गया था।‘
पूरे तीन वर्षों बाद जिलाधिकारी राजकुमार को पद्रह अगस्त की परेड की सलामी लेने जाना था। उनके परेड ग्राउंड में पहुंचते ही शहर के सम्मानित लोग स्वागत के लिए आ पहुंचे। एस पी साहब ने जैसे ही सैल्यूट किया, राजकुमार ने उन्हें पहचान लिया।
“सर, आप यहां? आपने मुझे पहचाना नहीं, मैं आपके घर जा चुका हूं।“आदर से कलक्टर साहब ने कहा।
“क्या- आ- आप, कब कैसे?” एस पी के साथ अन्य लोग भी अचंभित थे।
“मैं राजकुमार हूं, उस समय मैं एम ए फ़ाइनल का विद्यार्थी था। आपसे मिलने गया था।“
एस पी साहब पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। स्तब्ध शून्य में ताकते रह गए।
“माफ़ कीजिएगा, सर। भूल हो गई।“हकला कर एस पी साहब इतना ही कह सके।
घर वापस लौटे पति का परेशान चेहरा देख पत्नी चिंतित हो उठी।
“क्या बात है, आप परेशान क्यों हैं, परेड तो ठीक से हो गई? नए कलक्टर कैसे हैं?’
“सुजाता के साथ पढने वाला जो लड़का घर आया था, वही कलक्टर बन कर यहां आया हैं। मैंने उसका कितना अपमान किया था। मैं कितनी ग़लती पर था। काश मै ने सुजाता की बात मान ली होती।“
“तो अब भी क्या बिगड़ा है, सुजी ने तो कहा था वह बस राज से ही शादी करेगी। आज तक उसी के लिए तो कुंवारी बैठी है। ऐसा करो उसे डिनर पर बुला लो, फिर दोनो बात कर लेंगे।“
दूसरे दिन राजकुमार को दो पत्र एक साथ मिले। पहले में पुरानी बातें भुला देने के लिए क्षमा- याचना के साथ उसे एस पी के घर में डिनर के लिए आमंत्रित किया गया था दूसरा छोटा सा पत्र सुजाता का था-
“ राज, तुम्हारी सफलता के लिए हार्दिक बधाई। यह तो प्रत्याशित ही था। तुम्हें डी एम की कुर्सी पर बैठे देखने की अपनी अदम्य इच्छा को किसी तरह से रोक रही हूं। जिससे बात तक करने की मनाही थी, आज उसके स्वागत की तैयारियां हो रही हैं। कितनी हास्यास्पद बात है न राज?
एक विनती है, तुम उस घर में डिनर के लिए नहीं आना जहां कभी तुम्हें अपमानित लौटना पड़ा था। जानती हूं मुझसे मिलने को उत्सुक होगे, पर तुम्हारे अपमान को मैं एक पल के लिए भी नहीं भूली हूं। उस अपमान के बदले में मैं ने अपने लिए दंड़ निर्धारित किया है कि अब मेरे घर में कभी शहनाई नही बजेगी। यह तुम्हारे स्वाभिमान का प्रश्न है, राज। इसे मामूली बात कह कर टाला नहीं जा सकता। आजीवन तुम्हारी याद में जी लूंगी। अपना ये निर्णय घर में सबको बता चुकी हूं।“ - -सुजाता।
घर में डी एम साहब के डिनर की ज़ोरदार तैयारियां की जा रही थीं। सुजाता ने धीमी आवाज़ में माँ से कहा- “राज नहीं आएंगे। बेकार तैयारियां कर रही हो, माँ।
‘”क्यों, क्या कहीं तूने मना तो नहीं कर दिया?’ माँ शंकित हो उठी।
सुजाता के मौन पर माँ ने उसकी ओर नज़र उठा कर देखा, वह एक मामूली सूती धोती पहने थी।
“यह क्या सुजी, क्या तेरे पास कोई अच्छी साड़ी नहीं है? तुझसे तो बात करते भी डर लगता है। तेरा यूं उदास रहना, अपने पापा से सीधे मुंह बात न करना, क्या ठीक है बेटी? वह अपने को कितना अपराधी महसूस करते हैं। तेरी शादी के कितने सपने देखे थे, पर तूने जोगन बनने का फ़ैसला ले लिया है।“
कॉल बेल पर दरवाज़ा खोलने पर राजकुमार को देख माँ का चेहरा खिल उठा। राज के अभिवादन पर माँ ने प्यार भरी दृष्टि डाल उसे अंदर आने को आमंत्रित किया। सुजाता पर नज़र पड़ते ही राज के चेहरे पर खुशी झलक आई।
“आओ, बेटा, सुजाता के पापा काम से बाहर गए हैं। थोड़ी देर में आ जाएंगे।“
‘कैसी हो, सुजाता? सुना है, कॉलेज में ज़ॉब कर रही हो। तुम्हारे स्टूडेंट्स हिस्ट्री को बोरिंग विषय तो नहीं कहते? उम्मीद है क्लास तो बंक नही करते होंगे।“चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी।
‘तुम लोग बातें करो, मैं कोल्ड ड्रिंक भिजवाती हूं।“माँ भीतर चली गईं।
“क्या बात न करने की कसम खाई है, सुजाता?”सुजाता के मौन पर राज ने कहा।
“तुम्हें मेरा पत्र मिला था, फिर क्यों आए, राज?”
“तुमसे फिर मिलने की इच्छा दबा पाना क्या आसान होता, सुजाता?”राज ने सुजाता की आँखों में देख कर सीधा सवाल किया।
“तुम्हारा जिसने इतना अपमान किया उस इंसान को क्या भूल सकते हो राज, क्या इस अपमान के ज़हर को भी शिव की तरह पी गए? नहीं राज, मुझे सब याद है। मैं अपने पापा को कभी क्षमा नहीं कर सकती।“ सुजाता के चेहरे पर दृढ निश्चय स्पष्ट था।
“अपमान ही तो रक्त बन कर मेरी धमनियों में बहता रहा है। यही मेरी प्रेरणा और जीवन-शक्ति है, सुजाता।“गंभीरता से राज ने कहा।
“जानते हो, पापा ने आज तुम्हें क्यों बुलाया है?”सुजाता ने राज के चेहरे पर दृष्टि डाल कर पूछा।
“उस अपमान को फिर दोहराने की इच्छा तो नहीं है उनकी, इतना तो विश्वास है।‘राज मुस्कुरा रहा था।
“तुमने शादी क्यों नहीं की, राज?”अचानक सुजाता पूछ बैठी।
“अगर मुझे यह विश्वास नहीं होता कि कोई मेरी प्रतीक्षा कर रही है तो शादी ज़रूर कर लेता।“
“तुमने ये कैसे जाना, राज? क्या यह संभव नहीं था कि मेरी शादी हो चुकी होती।“
“क्या मैं अपनी सुजाता को नहीं जानता जो जिसे चाहती है टूट कर चाहती है। जो अपनी हर ज़िद की पक्की है और ज़िद मनवाना भी चाहती है। क्या यह मुझसे छिपा था कि तुम मुझे उतना ही चाहती हो, जितना मैं तुम्हें चाहता था.“राज की मुग्ध दृष्टि पर सुजाता का चेहरा लाल हो गया।
“गलत कह रहे हो, मैं तुम्हें ज़्यादा चाहती थी- - -“
“अगर यह बात सच है तो अब हमारे घर में शहनाई बज सकती है, बेटी। राज कुमार जी, मैं तो अपनी ग़लती के लिए आपसे माफ़ी मांगने का भी हक़दार नहीं हूं, पर आपसे विनती है, मेरी बेटी को स्वीकार कर लीजिए। यह आपको अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है।“ एस पी साहब ने हाथ जोड़ लिए।
“आप मेरे पिता समान हैं, माफ़ी मांग कर मुझे शर्मिंदा न करें। आपने जो किया था वह अपनी बेटी की भलाई सोच कर किया था।“राज ने विनम्रता से कहा।
“नहीं पापा, कल का वह छोटा इंसान आपका दामाद कैसे बन सकता है?”तीखी आवज़ में सुजाता ने कहा।
“ठीक कहती हो, बेटी। मैं घमंड में अंधा था। राजकुमार जी ने मेरी आँखें खोल दीं हैं। मैं जान गया हूं कि कोई काम छोटा नहीं होता। इंसान के गुण उसे छोटा या बड़ा बनाते हैं। मेरी गलती माफ़ कर दे , सुजी।“
एस पी साहब का गला रुंध गया।
“अब आप अंदर चलिए, सुबह से काम पर निकले हैं। फ़्रेश हो जाइए, मैं खाना लगवाती हूं।“सुजाता की माँ ने आकर पति से कहा। माँ समझ चुकी थी दोनो का अकेले में बात करना ज़रूरी है।
दोनो के भीतर जाने पर राज ने सुजाता से गंभीर स्वर में कहा-
“अपने जीवन साथी के रूप में मुझे स्वीकार कर लो, सुजाता। तुमने सिर्फ़ मुझे चाहा और मैं भी सिर्फ़ तुम्हारा रहा। क्या हमारे स्वर्णिम भविष्य के लिए इतना ही काफ़ी नहीं है? अगर तुम न मिलीं तो मेरा जीवन व्यर्थ है।“
“तुम महान हो, राज। तुम भूल रहे हो, तुम्हारे अपमान का कारण मैं बनी थी। फिर भी--- “
“नहीं सुजाता, तुम तो मेरी प्रेरणा हो। आज जो भी बन सका हूं, उसके लिए तुम्हारी चंद प्रेरक पंक्तियों का श्रेय है। तुमने लिखा था, मुझे कुछ बन कर दिखाना है। तुमने मेरे अंतर में कैद अपमानित राजू को मुक्ति दिलाई है। यकीन करो, अगर तुम नहीं मिलतीं तो तुम्हारी याद के सहारे जीवन काट देता।“
“मैं तो हमेशा से तुम्हारी थी, राज। तुम मेरे आराध्य हो। यह जीवन तुम्हारा है।‘
राज ने उठ कर सुजाता के माथे पर झूल आई लट को स्नेह से संवार कर कहा-
“चलो हमे माँ और पापा का आशीर्वाद लेना है। हमारा प्यार जीत गया, सुजी।“
सुजाता का चेहरा सिंदूरी हो उठा मानो अस्ताचल सूर्य की सारी लालिमा उसको खुशी से रंग गई हो।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
I love to read this story... :)
ReplyDeleteबेह्तरीन अभिव्यक्ति !सुन्दर व सार्थक रचना ,शुभकामनायें
ReplyDeleteकुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार...
बहुत ही प्यारी कहानी लिखी है आपने, थैंक्यू!
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग है
MyTechnode.Com
Kahani bahut achchi hai. Mai 3-4 baar padh chuka hu. fir jab b apka blog dekhta hu ye kahani jaroor padhta hu. Kash aapse kuchh sikhne milta. - Uttam
ReplyDeleteVery nice article, totally what I wanted to find.
ReplyDeletemy homepage Heel Lift
nice story.
ReplyDeleteinteresting story, but this like old pattern..
ReplyDeletesubmit story online
Bahut badiya
ReplyDeletevery nice story..impressive..
ReplyDeletevery nice story..impressive
ReplyDeleteबहुत खूब लिखा है आपने आपके इन कहानिओं से प्रभावित होकर मेने भी एक अपना ब्लॉग बनाया जरूर पढ़े
ReplyDeletehttp://mytopstories.blogspot.com/
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteलेखक को हार्दिक शुभकामनायें