“मम्मी, पापा इस समर- वेकेशन में मैं इंडिया जा रही हूं। झारखंड की आदिवासी स्त्रियों पर मेरा प्रोजेक्ट ऐक्सेप्ट हो गया है। वहां जाने और रहने के लिए मुझे ग्रांट भी मिली है।’’खुशी से उमगती दीप्ति ने अपनी माँ सुषमा और पापा अनिल को सूचना दी।
“क्या, पागल हो गई है, दीपू? भला उन जंगली लोगों के बीच तू रह सकेगी। आदमी तीर-कमान लिए शिकार करते फिरते हैं। शिकार का अधपका मांस खाने वालों को तू क्या सह सकेगी।“ वितृष्णा सुषमा के चेहरे पर स्पष्ट थी।
“नहीं मम्मी, वे जंगली नहीं हैं, वे अपने परिवेश के अनुसार जीते हैं। हम जिन सुख-सुविधाओं के बीच में रहते हैं, उनकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते।“
“शायद तेरी मम्मी ठीक कहती है। तेरा जन्म अमरीका में हुआ है, इसी देश में पली-बढी है। झारखंड के जंगल और वहां रहने वाले आदिवासियों के बारे में तू नहीं जानती। तेरे लिए वहां का जीवन जी पाना आसान नहीं होगा।“अनिल ने बेटी को समझाना चाहा।
“नहीं पापा, पिछले कई वर्षों से मैं भारत में रहने वाले आदिवासी समुदायों के जीवन और उनकी समस्याओं के विषय में स्टडी कर रही हूं। जानती हो मम्मी, कुछ ऐसी जानकारियां मिली हैं जिन्होंने मेरे निर्णय को और भी दृढ कर दिया है। एक घर में रहने वाली तीन-चार औरतों के बीच बस एक धोती होती है। जो स्त्री बाहर जाती है, वह धोती पहनती है बाकी स्त्रियां - ।“दीप्ति वाक्य पूरा नहीं कर सकी।
“ऐसी जगह और ऐसे लोगों के बीच रहने के खतरों की तो सोच, दीपू। तेरी जैसी कोमल और सुंदर लड़की को क्या उन जंगलियों के बीच कोई डर नहीं है?” सुषमा ने शायद व्यावहारिक बात कही।
“डरो मत मम्मी, मैं अपनी रक्षा खुद कर सकती हूं। यहां सीखे जूडो- कराटे बेकार नहीं जाएंगे। किसी को तो पहल करनी ही होगी। अंधेरे में जी रही उन औरतों को भी तो रौशनी पाने का हक़ है।‘
“शाबाश, बेटी मुझे तुझ पर गर्व है। मैं तेरे साथ हूं। भगवान तुझे अपने मक़सद को पूरा करने में ज़रूर मदद करेंगे। मैं आज ही अपने मित्र दिनेश से इस बारे में बात करता हूं, शायद वह मदद कर सके। उसका काफ़ी समय रांची में बीता है। आजकल हरिद्वार के आश्रम मे रह रहा है।“
दूसरे दिन अनिल ने खुशी से बताया था दिनेश का मेधावी बेटा रवि आदिवासी- विकास योजना विभाग में डायरेक्टर है। दिनेश ने हमारी दीपा के लिए अपने बेटे रवि की पूरी सहायता और ज़िम्मेदारी का विश्वास दिलाया है। अब डर की कोई बात नहीं है।“
“यू आर ग्रेट पापा। अब तो मम्मी का भी ड़र भाग जाएगा।“दीप्ति बच्ची की तरह मां से लिपट गई।
दीप्ति उत्साह से भारत जाने की तैयारी में जुट गई।
कई घंटों की उड़ान के बाद दीप्ति रांची पहुंची थी। रांची के छोटे से एयरपोर्ट को देखना एक अनुभव था।
पापा ने कहा था एयरपोर्ट पर उसे रिसीव करने रवि पहुंचेगा। चारों ओर नज़र दौड़ाने पर भी रवि जैसा कोई व्यक्ति नज़र नहीं आया। तभी एक वर्दीधारी द्राइवर हाथ में उसके नाम का प्लैकार्ड लिए दिखाई दिया।
“आप शायद मुझे लेने आए हैं, मैं ही दीप्ति वर्मा हूं।“
“जी हां, रवि साहब बाहर कार में हैं। आइए।“
दीप्ति का मन खिन्न हो गया। हज़ारों मील दूर से आने वाली दीप्ति को रिसीव करने एक ड्राइवर को भेज दिया। मम्मी से भारत में अतिथि-सत्कार की बड़ी-बड़ी बातें सुनी थीं, नमूना आज देख लिया। अपने को क्या समझते हैं ये रवि कुमार। अगर उसे अपने ठहरने की जगह पता होती तो टैक्सी से चली जाती।
कार में बैठा सुदर्शन युवक हाथ में पकड़ी किताब के पृष्ठों में खोया हुआ था। दीप्ति के आने का उसे भान भी नहीं हुआ।
“नमस्ते, मैं दीप्ति वर्मा। अगर ग़लती नहीं कर रही हूं तो आप ही रवि कुमार हैं।“
दीप्ति की मीठी आवाज़ पर रवि ने किताब से निगाह हटा कर दीप्ति को देखा था। सलवार सूट में दीप्ति बहुत प्यारी लग रही थी। गुलाबी रंग ‘का सूट उसकी गुलाबी रंगत से होड़ ले रहा था। चेहरे पर थकान की जगह उत्साह की चमक थी।
“विश्वास नहीं होता आप सीधे अमरीका से आ रही हैं। हलो-हाय की जगह नमस्ते - -। वैसे आपने ठीक पहचाना, मैं रवि ही हूं।“शब्दों का तीखापन दीप्ति को चिढा गया।
“एक्स्क्यूज़ मी मिस्टर कुमार। नमस्ते की जगह हलो कहने से क्या कोई अमरीकी हो जाएगा? शायद आप भूल रहे हैं, मै एक भारतीय माँ-बाप की, बेटी हूं। भारतीय संस्कृति में आतिथ्य-सत्कार के विषय में भी अच्छी जानकारी है।“अनजाने ही दीप्ति का आक्रोश उभर ही आया। उसके अभिवादन के जवाब में व्यंग्य क्या यही सभ्यता है?
“हरि काका, चलिए। फ़्लाइट लेट आई, बहुत टाइम वेस्ट हो गया।“दीप्ति की बात को अनसुना कर रवि ने ड्राइवर को निर्देश दिए थे।उसे फिर किताब में आँखें गड़ाते देख दीप्ति चिढ गई। इसी रूखे इंसान के हाथ उसकी ज़िम्मेदारी देने में पापा कितनी बड़ी गलती कर गए।खैर, उसे इस रवि नाम के इंसान से क्या लेना-देना है। कर्टिसी नाम की चीज़ तो जानता ही नहीं। कम से कम झूठ को ही सही एक बार पूछ तो लेता कि उसे यहां पहुंचने में तकलीफ़ तो नहीं हुई।
“माफ़ कीजिए आपको डिस्टर्ब कर रही हूं, आप कोई ज़रूरी बुक पढ रहे हैं। मैं जानना चाहती हूं मेरे रहने की व्यवस्था कहां की गई है।“
“जिस काम के लिए आप यहां आई हैं उसे पूरा करने के लिए शहर में किसी बंगले की व्यवस्था तो की नहीं जा सकती। शहर से दूर वनांचल में मेरे घर के पास एक कॉटेज बनाया जा रहा है। आज आप म्रेरे साथ रहेंगी, कल तक आपका कॉटेज तैयार हो जाएगा।“
“अगर कॉटेज में सोने भ्रर की व्यवस्था है, तो मैं मैनेज कर लूंगी।“
“आप नहीं जानतीं ये जगह ख़तरनाक भी हो सकती है। कल आपके लिए चौकीदार आ जाएगा।
“शायद मैं आपसे ज़्यादा ही इस वनांचल को जानती हूं। पिछले कई सालों से इस क्षेत्र के बारे में पढ रही हूं।‘कुछ गर्व से दीप्ति ने कहा।
“ओह रियली, वैसे इस इंटरेस्ट की कोई खास वजह? ऐनी वे, हरि काका मुझे ड्राप करके इन्हें इनके कॉटेज पहुंचा दीजिएगा। इनके पास फ़्रोजेन फ़ूड तो होगा ही, अमरीकी ऐसा ही खाना पसंद करते हैं। हां कैंडल और पानी भी देख लीजिएगा।“अपने छोटे से बंगलेनुमा घर के सामने कार रुकते ही रवि उतर कर चला गया। दीप्ति के होंठों से “बाय” शब्द निकलता ही रह गया।
“रूड, अनकलचर्ड कहीं का। अपने को न जाने क्या समझता है।“दीप्ति बुदबुदाई।
कॉटेज के सामने कार से उतर कर हरि ने सम्मानपूर्वक दीप्ति के लिए कार का दरवाज़ा खोला था। टॉर्च की रोशनी में बिस्तर बिछा देख दीप्ति ने आश्वस्ति की सांस ली। इतनी देर बाद अब नींद उस पर हावी होने लगी थी। हरि ने जेब से माचिस निकाल कर कैंडल जला दी। मेज़ पर बिसलेरी की पानी की बोतलें थीं। निश्चय ही किसी जानकार की यह सूझ-बूझ थी। हरि ने एक ट्यूब देते हुए कहा
“यहां मच्छर होते हैं, इसे लगा लीजिएगा। कल कॉटेज में जाली लगा दी जाएगी। अगर कोई चूहा परेशान करे तो टॉर्च जला लीजिएगा। चूहा रौशनी से भाग जाएगा।“
‘क्या यहां चूहे हैं? मुझे चूहों से डर लगता है।“दीप्ति की आवाज़ में सचमुच डर था।
“अच्छा होता आज आप रवि भैया के साथ रुक जातीं, पर आप---“
“परेशान मत होइए, मैं डरूंगी नहीं। एक बात बताइए आप की बोली तो यहां की नहीं लगती।“
“ठीक पहचाना। मैं कानपुर का हूं। अनाथ हो जाने पर रवि भैया के पापा ने सहारा दिया। अब रवि भैया के साथ हूं। बाहर भले ही उन्हें साहब कहूं, पर घर में मैं उनका काका और वह मेरे भैया हैं। हरि की आवाज़ में रवि के लिए स्नेह और आदर था।
“’मेरी वजह से बहुत देर हो गई, अब आप जाइए, हरि काका।“आदर से दीप्ति ने कहा।
“तुमने मुझे काका कहा बहुत अच्छा लगा, बिटिया। भैया ठीक कह रहे थे आप अमरीका की नही लगतीं।
‘’अमरीका के लोग भी हम सब जैसे होते हैं, काका। पता नहीं क्यों आपके रवि भैया को अमरीका के बारे में कुछ गलतफ़हमी है।‘’
‘’भैया के मन की थाह पाना आसान नहीं है, न जाने क्या क्या सच है। कल सवेरे महुआ आ जाएगी, यहां की रहने वाली लड़की है। वह आपकी मदद करेगी।‘हरि जैसे किसी सोच में पड़ गया था।
आधी रात सोते जागते दीप्ति को जैसे ही नींद आई कि चिड़ियों ने भोर के गीत गा कर दीप्ति की नींद तोड़ दी। सियाटेल में भी चिड़ियां आती थीं, पर बर्ड-फ़ूड खा कर उड़ जाती थीं। इतनी मीठी चहचहाहट कब सुनी। अंगड़ाई ले कर दीप्ति कॉटेज का दरवाज़ा खोल कर जैसे ही बाहर आई, बाहर के मनोहारी दृश्य ने उसे मुग्ध कर दिया। पेड़ों से झूलते सुर्ख लाल पलाशों ने जैसे जंगल में आग लगा दी थी। हवा में शाल महुआ और साखू की नशीली सुवास थी। धरती पर गिरे फूलों को उठा गाल से छुआ, अंगारों जैसे पलाश को हाथ में पा लेने के लिए दो-तीन बार उछलने पर भी पलाश उसकी पहुंच के ऊपर थे। अचानक पीछे से आई एक कठोर आवाज़ ने उसे चौंका दिया;
“ये क्या कर रही हैं अगर फ़्रैक्चर हो गया तो ये उम्मीद मत रखिएगा कि मैं आपको उठा कर हॉस्पिटल ले जाऊंगा। अच्छा हुआ अपने कमरे की खिड़की खोलते ही ये नज़ारा दिख गया वर्ना- -‘
डोंट वरी रवि जी, मुझे आपसे ऐसी कोई उम्मीद बिल्कुल नहीं है। इस बार ये फूल मेरे हाथ आ ही जाते पर आपने डिस्टर्ब करके मेरा चांस खत्म कर दिया।“आवाज़ में नाराज़गी स्पष्ट थी।
“क्या करेंगी इन फूलों का, देखने में भले ही सुंदर लगें, पर इनमें कोई गुण नहीं है, न गुलाब या चम्पा जैसी सुगन्ध ही है। इनसे तो बस होली पर रंग खेलने के लिए रंग बनाया जाता है। इसी लिए इनका दूसरा नाम टेसू है।“
“कमाल करते हैं जिनसे होली जैसे त्योहार को रंगीन बनाया जाता है, उन्हें आप गुणहीन कहते हैं। सच तो ये है कि ये फूल गुलाब और चम्पा से भी ज्यादा गुणकारी हैं।“
“वैसे आप जितनी बड़ी-बड़ी बातें करती हैं उस हिसाब से चूहों से तो नहीं डरना चाहिए। कहिए रात में सो पाईं या नहीं?’’रवि के चेहरे पर मुस्कुराहट देख दीप्ति चिढ गई।
“मैं बच्ची नहीं हूं, मै सोऊं या जागूं, आपसे मतलब?”
“बच्ची नहीं हैं ये बात तो आपकी कुछ देर पहले की हरकत से साफ़ ज़ाहिर होगया।“
“रवि भैया, आपने बुलाया है।“ मीठी आवाज़ के साथ एक आदिवासी युवती आ खड़ी हुई। उसके सुगठित शरीर और सांवले रंग में गहरा आकर्षण था।
“हां महुआ, ये मेम साहिबा अमरीका से यहां की औरतों की तकलीफ़ें देखने आई हैं। यहां की औरते इनकी बोली क्या समझेंगी, तुम्हें उनकी बातें इन्हें समझानी होंगी। आज से तुम्हारी ड्यूटी इनके साथ ररहेगी।“आवाज़ मे खासा व्यंग्य था।
“माफ़ कीजिए मैं तकलीफ़ें देखने नहीं बल्कि उनकी सहायता करने आई हूं। आप ग़लत भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, रवि जी।“दीप्ति ने अपनी बात विश्वास से कही।
“ओह, अगर ये बात है तो कहिए टीवी और पत्रकारों को बुला दूं। आपका इंटरव्यू ले लेंगे। अमरीका से एक लड़की इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए अपने देश की सुख-सुविधाएं छोड़ कर यहां रह कर कष्ट उठा रही है। आपका नाम हो जाएगा और आपकी सरकार आपको सम्मानित भी कर देगी।“रवि की आवाज़ की कड़वाहट ने दीप्ति को तिलमिला दिया।
“प्लीज़ मुझे अपना काम करने दीजिए। नाम के लिए काम करने के लिए हज़ारों मील से आने की ज़रूरत नही थी। आपको बता दूं, पढाई में ही नहीं हर ऐक्टिविटी में मेरा नाम सबसे ऊपर रहता था। मैं आज और अभी से काम शुरू करने जा रही हूं, बेकार की बातों के लिए मेरे पास समय नहीं है। तेज़ी से मुड़कर दीप्ति कॉटेज में चली गई। पीछे-पीछे विस्मित महुआ भी गई।
“दीदी जी चाय बना दूं? रवि भैया ने कल ही सब सामान मंगाया है।“
“तुझे चाय बनानी आती है, महुआ? इतनी साफ़ बोली कहां से सीखी?” दीप्ति विस्मित थी।
“करीब ग्यारह बरस की थी। शहर से मिशन की सिस्टर पोलिओ की दवा देने आई थीं। बस्ती में सुई के नाम से ही सब डरते थे। मिशन की सिस्टर की बात जब मैने सबको समझाई तो लोग बच्चों को पोलिओ दवा दिलाने को तैयार हो गए। सिस्टर मेरे काम से बहुत खुश हुईं। सिस्टर के समझाने और मेरी ज़िद की वजह से बापू मुझे शहर भेजने को राज़ी हो गए।‘
“तुम वापस क्यों लौटीं महुआ? शहर में कोई अच्छा काम मिल सकता था।“दीप्ति ने पूछा
“बापू बीमार हो गए, मुझे लौटना पड़ा।“महुआ उदास लगी।
“कोई बात नहीं तुम यहां भी पढ सकती हो।“दीप्ति ने तसल्ली दी।
“हां रवि भैया भी यही कहते हैं। उन्होंने किताबें भी लाकर दी हैं।“
चलो, कोई तो अच्छा काम कर रहे हैं वर्ना हर बात में व्यंग्य ही रहता है, दीप्ति ने सोचा।
महुआ के साथ दीप्ति एक ऐसी बस्ती में पहुंची जहां दरिद्रता साकार थी चिथड़े लपेटे बच्चे, धोती के नाम पर छोटे से कपड़े के टुकड़े से लाज ढकने का असफल प्रयास करती स्त्रियां, मिट्टी में सने चावल के दाने खाती बच्ची को देख दीप्ति सिहर गई। पानी के लिए एक छोटी सी तलैया, जिसके पानी से सारी ज़रूरतें पूरी की जाती थीं। दीप्ति समझ नहीं पारही थी वह कहां से शुरू करे। साथ लाए बिस्किट और चाकलेट से क्या उनके पेट भर सकेगी?
महुआ के सहारे उसने अपनी बातें शुरू कीं। कुछ दिनो की हिचकिचाहट के बाद औरतें खुलने लगीं। सबकी एक ही कहानी, दारू पी कर मारपीट करने वाला पति और लकड़ी-पत्ते बेचकर बच्चों का पेट भरने वाली औरतें। औरतों और बच्चों के लिए कपड़े और उन सब की मूल ज़रूरतों की लिस्ट तैयार करके दीप्ति ने रवि से कहा -
“आज आपकी जीप चाहिए। शहर से कुछ सामान लाना है।“बात खत्म करती दीप्ति ने रवि के सामने लिस्ट रख दी।
“सॉरी ये सामान खरीदने के लिए बजट अप्रूव कराना होगा। वैसे भी व्यक्तिगत कामों के लिए आपको जीप नहीं दी जा सकती।“
“व्हाट डू यू मीन? ये मेरा व्यक्तिगत काम नहीं है। असल में तो आपको ये सब देखना चाहिए था। पर, आप तो नाम भर के अधिकारी हैं, वर्ना कमसे कम उन्हें साफ़ पानी तो मुहैया कराया जा सकता था। एक दिन वो पानी पी कर देखिए, पर आपको क्या मतलब खुद तो बिसलेरी का पानी पीते हैं।“
“अगर आपको इतनी ही हमदर्दो है तो आप शौक से वो पानी पी सकती हैं, पर लिख कर दे दीजिएगा कि आप अपनी इच्छा से रिस्क ले रही हैं। आखिर आप मेरी ज़िम्मेदारी हैं। आपके चक्कर में मुझे फांसी का फन्दा स्वीकार नहीं होगा।‘’
“अगर ऐसा ही है तो कल मैं उन सबके साथ बना खाना खाऊंगी। और हां मैं शहर जा रही हूं। ये सामान अपने पैसों से खरीदूंगी, आप बजट अप्रूव कराते रहिएगा।“आवाज़ में नाराज़गी थी।
“आज तो आप अपने पैसों से इनकी ज़रूरतें पूरी करा देंगी, पर आगे क्या होगा, सोचा है। सरकारी कामों में समय लगता है। क्या आप आगे की भी ज़िम्मेदारी लेने को तैयार हैं?”रवि ने दीप्ति को गहरी नज़र से देखा।
“जब तक हूं तब तक की तो ज़िम्मेदारी ले ही सकती हूं।“
“बाई दि वे, आप कब तक यहां है? अमरीका से ज़्यादा दिन दूर रह पाना आसान नहीं होगा।“
“मैं आज में जीती हूं और मेरा आज कह रहा है उनकी ज़रूरतें पूरी कर ही सकती हूं। आप परेशान न हों मैं बस से चली जाऊंगी, शायद टैक्सी तो मिल न सके।“
“आप यहां की बस- सर्विस के बारे में नहीं जानतीं। अगर बस की छत पर बैठने की हिम्मत हो तो आज़मा लीजिए।“सपाट शब्दों में रवि ने अपनी बात कह कर सामने खुली फ़ाइल पर नज़र जमा दी।
“थैंक्स फ़ॉर योर ऐडवाइस्। मिस्टर रवि कुमार्। मुझे यकीन है बस में सफ़र करने वाले आपकी तरह हृदय्हीन नहीं होंगे। मैं मैनेज कर लूंगी।“दीप्ति तेज़ी से कमरा छोड़ कर बाहर चली गई।
ज़िंदगी में साबुन- तेल,कंघी जैसी छोटी-छोटी बहुत सी चीज़ें पाकर सबके चेहरे खिल उठे। बुधवारी बार-बार छोटे से शीशे में चेहरा निहार, चेहरे पर जमी धूल पानी से धो रही थी। कलसिया कंघी से उलझे बालों को सुलझाने का भरसक प्रयास कर रही थी। बच्चे कौतुक से अपना खेल छोड़ तमाशा देख रहे थे। इन कुछ ही दिनों में दीप्ति ने उन्हें सफ़ाई का महत्व समझा दिया था। अब दीप्ति उनके कपड़ों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए अपने परिवार से पैसे मंगाने की सोच ही रही थी कि हरि काका एक बड़े से बंडल के साथ आ पहुंचे। बंडल में औरतों और बच्चों के लिए कपड़े थे। दीप्ति को सामान देते हुए कहा-
“रवि भैया ने कुछ कपड़े भेजे हैं, आपको देने को कहा है। आप सबको बांट दीजिएगा।‘
“क्या, उन्हें सरकारी अप्रूवल इतनी जल्दी मिल गया?”दीप्ति ने व्यंग्य से कहा।
“क्या बात करती हो बिटिया, भला सरकारी काम इतनी जल्दी हो जाते हैं? ये सब तो भैया ने अपने पैसों से खरीद कर भेजा है।“
“आप ये सारा सामान वापस ले जाइए और उनसे कहिएगा, उनकी दया की ज़रूरत नहीं है। शायद ये सब मुझे दिखाने के लिए भेजा है कि वह किसी हालत में मुझसे पीछे नहीं हैं।“
“ऐसी बात नहीं है बिटिया, तुम नहीं जानतीं भैया का कितना बड़ा दिल है। वह सरकार से इन लोगों की भलाई के लिए कितनी कोशिशें कर रहे हैं, पर हर बात तो उनके हाथ में नहीं है। वैसे यहां के लोग जानते हैं हर ज़रूरत के वक्त इनकी मदद के लिए भैया दिन-रात एक कर देते हैं। शायद इसी लिए उन्होंने आज तक अपनी ज़िंदगी के बारे में कुछ नहीं सोचा।“हरी ने आदर से कहा।
सबकी लोलुप दृष्टियों की दीप्ति अवहेलना नहीं कर सकी। उनके सामने जो खुला खज़ाना था उसे ठुकरा देना क्या संभव होता? दीप्ति ने सबसे कहा-
“कल हम सब यहां दाल-भात बनाकर खाना खाएंगे और नाच गा कर खुशी मनाएंगे। आप सब बच्चों के साथ अच्छी तरह से स्नान करके नए कपड़े पहिन कर आएंगी।“
“वाह दीदी कल तो बहुत मज़ा आएगा। हम सब खूब नाचेंगे।“मुनिया ने हंस कर कहा। दूसरी सुबह महुआ को टोकरों में सामान ले जाते देख रवि समझ गया उस ज़िद्दी लड़की ने अपना कहा पूरा किया है। रवि को देख उत्साहित महुआ ने बताया-
“आज तालाब के किनारे हम ढेर सारा दाल-भात पकाएंगे। दीदी भी हमारे साथ मिल कर खाएंगी। खूब मज़ा आएगा। आप भी आइएगा भैया।“बात कहती महुआ तेज़ कदमों से चली गई।
तालाब के किनारे साफ़ नए कपड़े पहिने बच्चों और औरतों की भीड़ थी। सबके चेहरों पर खुशी थी। एक बड़े बर्तन में पानी उबाला जा रहा था। दीप्ति ने समझाया था पानी उबाल कर पीने से बीमारियां नहीं होतीं। दाल-भात पानी में पकाया जारहा था। बच्चों की द्रृष्टि भात की हांडी पर थी। इस बीच औरतों ने खाना परोसने के लिए पत्तों से पत्तलें तैयार कर लीं। सबके साथ दीप्ति भी खाने बैठी ही थी कि अचानक किसी सबल हाथ ने उसे उठा कर खड़ा कर दिया। जलती आंखों से रवि उसे खींचता हुआ जीप की ओर ले चला। दीप्ति का हाथ छुड़ाने का प्रयास व्यर्थ गया।
“महुआ, तुम सबको भर-पेट खिला कर आना, हम जा रहे हैं।“
“ये क्या कर रहे हैं? मेरा हाथ छोड़ो। दीप्ति चिल्लाई।”
“मैंने कहा था न कि अगर शहीद होने का इतना ही शौक है तो अपने देश में जा कर शहीद होना। मुझे अपने गले में फांसी का फन्दा नहीं डलवाना है, समझीं।“
“मैं जियूं या मरूं, इससे आपको क्या लेना-देना है। मुझे अपने ढंग से काम क्यों नहीं करने देते?”
“जब तक आप मेरी ज़िम्मेदारी हैं, मुझे आपको ग़लत काम करने से रोकने का पूरा हक है।“
“मैं आपको अपनी ज़िम्मेदारी से बरी करती हूं, इज़ दैट ओ के?”
“उसके लिए कोर्ट से ऑर्डर लाना होगा, मिज़ दीप्ति वर्मा।“
खाने की टेबल पर दीप्ति को जबरन बैठा रवि ने हरि को पुकारा था-
“काका, खाना लगवा दीजिए। दीप्ति मिस भी खाएंगी।“
“नहीं, मुझे यहां का खाना नहीं खाना है। मैं वही खाना खाऊंगी जो यहां की सारी औरतें खाती हैं।“
“ठीक है, काका कल बाज़ार् से इनके लिए मोटा चावल ले आना। इन्हें हमारा खाना पसंद नहीं है।“
दरवाज़े पर दस्तक के साथ कुछ फ़ाइलों के साथ एक व्यक्ति ने प्रवेश किया। रवि को अभिवादन कर उसने फ़ाइलें रवि के सामने रख दीं
“सर, आपके प्रोपोज़ल मंत्री जी को बहुत पसंद आए हैं। हैंड- पम्प लगाने और कुंए खुदवाने “के तो ऑर्डर भी दे दिए हैं। जल्दी ही काम शुरू हो जाएगा।“
“ये तो अच्छी खबर है। स्वास्थ्य केंद्र और आंगनबाड़ी के प्रस्तावों का क्या हुआ?”
“आपके सभी प्रस्ताव विचाराधीन हैं। उम्मीद है वो योजनाएं भी स्वीकृत हो जाएंगी।“बात समाप्त करके अभिवादन के बाद व्यक्ति चला गया।
“ओह तो आप सचमुच इस क्षेत्र का कायाकल्प करने जा रहे हैं या ये सब कागज़ी बातें मुझे इंप्रेस करने के लिए की जा रही हैं?”दीप्ति ने कटाक्ष किया।
“आपको इंप्रेस करके मुझे क्या मिलेगा? मैं जो कर रहा हूं, वो मेरा फ़र्ज़ है।“
“रवि ने खाना शुरू भी नहीं किया था कि बस्ती से भागता हुआ जुगनू आ पहुंचा। हांफ़ते हुए कहा-
“इतवारी का बेटा नानकू पेड़ से गिर गया है। सिर से खून बह रहा है, होश में नहीं लगता। जल्दी चलिए भैया। इतवारी रो-रो के बेहाल है।“
हाथ का ग्रास वापस प्लेट में रख, रवि जाने को उठ खड़ा हुआ।
“हरि काका, जल्दी जीप निकालो, अस्पताल जाना है।“अपने पीछे दीप्ति को आते देख रवि ने कहा-
“आप कहां जा रही हैं। आपका वहां कोई काम नहीं है।“आवाज़ में रुखाई थी।
“फ़ॉर योर इंफ़ॉर्मेशन, मैंने फ़र्स्ट- एड की पूरी ट्रेनिंग ले रखी है। शायद आपसे ज़्यादा मैं नानकू की हेल्प कर सकूं। अब देर मत कीजिए, जल्दी चलिए।“
पेड़ के नीचे नानकू बेहोश पड़ा था। खून से कपड़े तर थे। पास में उसकी माँ बदहवास सी रो रही थी। पास खड़े लोगों ने कहा-
“ अब मत रो इतवारी, रवि भैया आगए। वो सब ठीक कर देंगे। रवि भैया तो हमारे लिए भगवान हैं।“
बिना देर किए रवि ने नानकू को गोद में उठा लिया। नानकू के खून से रवि की सफ़ेद शर्ट रंग गई। जीप मे बैठे। रवि के साथ दीप्ति भी बैठ गई।
“नानकू का सिर ऊंचा रखिए वर्ना खून ज़्यादा बहेगा।“दीप्ति ने कहा।
पहली बार दीप्ति से बहस न कर रवि ने अपने हाथों को ऊंचा कर नानकू का सिर ऊंचा कर लिया। दीप्ति ने अपनी चुन्नी से नानकू के माथे का खून साफ़ कर दिया। हस्पिटल में रवि के पहुंचते ही हलचल मच गई। रवि ने फ़ोन से खबर दे दी थी, डॉक्टर पहले से ही तैयार थे। नानकू को निरीक्षण के लिए अंदर ले जाया गया। रवि के साथ दीप्ति बाहर प्रतीक्षा कर रही थी। काफ़ी देर बाद रवि डॉक्टर के पास नानकू का हाल जानने के लिए गया था। दीप्ति के पास आकर कहा-
“खतरे की कोई बात नहीं है। नानकू को यहां दो तीन दिन रखा जाएगा। जीप भेजी है, इतवारी आ जाएगी। नानकू के पास रहने से उसे तसल्ली मिलेगी।‘’
‘’ये आपने बहुत अच्छा किया। माँ के पास रहने से नानकू को भी अच्छा लगेगा।“
“चलिए कैंटीन में चल कर कुछ खा लें। आपने सवेरे से कुछ नहीं खाया है।“
“आपने भी तो खाना नहीं खाया है, मेरी तो आदत है अक्सर कॉलेज मे बिज़ी होने पर लंच लेना भूल जाती थीं। मम्मी से डांट खानी पड़ती थी।“
“ये बात तो मान सकता हूं, अगर अमरीकियों की तरह से खाती रही होतीं तो आप अपनी साइज़ से डबल होतीं।‘’ रवि के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी।
“अच्छा, जानती हूं, आपको अमरीका के बारे में बहुत जानकारी है, पर अब सचमुच भूख लग रही है। आज आपकी वजह से खाना भी नसीब नहीं हुआ।“दीप्ति ने शिकायत की।
“आपका अपराधी हूं, सज़ा दे सकती हैं। जो कहें करना मंज़ूर है, पर पहले पेट-पूजा हो जाए। वैसे आज अपनी सुंदर चुन्नी से नानकू का खून पोंछ कर अपनी चुन्नी खराब कर डाली।“
“आपकी भी तो सफ़ेद शर्ट लाल हो गई। सच कहूं तो आपके इस रूप की मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी।“दीप्ति ने सच्चाई से कहा।
“एक बात कहूं मैं इतना बुरा इंसान नहीं जितना आप समझती हैं।“हल्की मुस्कान के साथ रवि ने कहा।
हॉस्पिटल के अहाते में ही एक कैंटीन थी। कैंटीन में पहुच, रवि ने खाने का आर्डर दे दिया। दीप्ति के मन में आया रवि के बारे में उसने जो धारणा बना रखी थी शायद वो सही नहीं थी। उसके दिल में इन अदिवासियों के प्रति दया- भाव हैं। एक बात समझ में नहीं आती हर बात में वह अमरीका और अमरीकियों पर व्यंग्य क्यों करता है।
“एक बात बताइए ऐसा लगता है, आप को अमरीकन्स के प्रति कोई शिकायत है। ऐसा क्या हुआ रवि जी जिसने आपके मन में अमरीका के लिए विद्वेष पैदा कर दिया है?”
“जिस अतीत को भुला दिया, उसे दोहरा पाना तकलीफ़ ही देगा।“
“कभी-कभी उस तकलीफ़ को किसी के साथ बांट कर मन को शांति मिलती है। प्लीज़, मुझे अपना मित्र समझ कर अपना दुख-दर्द बाँट सकें तो मन हल्का हो सकता है।“
“शायद आप ठीक कहती हैं। कई वर्षों से जो आग मन में जलती रही, पता नहीं आपसे बता कर वो शांत हो सकेगी या नहीं। फिर भी कहता हूं।“कुछ देर सोच कर रवि ने कहा।
“तब मैं ग्यारह बरस का था। घर में माँ-पापा और बड़ी बहिन रितु दीदी थीं। दीदी आदिवासियों के जीवन पर रिसर्च कर रही थीं। दीदी की आंखों में भविष्य के सपने जगमगाते थे। आदिवासियों के जीवन पर आधारित कुछ अनोखे चित्र लेने अमरीका से एक फ़ोटोग्रफ़र रॉबिन आया था। अमरीका की एक्ज़ीबीशन में वह उन तस्वीरों को सम्मिलित करना चाहता था। दीदी के गाइड ने दीदी को रॉबिन की मदद की ज़िम्मेदारी दी थी। पूरे उत्साह के साथ दीदी रॉबिन को साथ ले कर जंगल के दूरवर्ती इलाकों में भी ले जातीं। उन दिनो भी ये पलाश पूरे जंगल को लाल रंग से रंगे हुए थे। रॉबिन तो उस सौंदर्य पर पागल हो उठा। दीदी से छिपा-छिपा कर गरीब आदिवासी लड़कियों को पैसों का लालच दे कर उनके सुगठित शरीरों की तस्वीरें उताररता गया। दीदी की भी कई तस्वीरें इन्हीं पलाश के फूलों के साथ खींची थीं। सह तो यह है दीदी के सौंदर्य से पलाश का रंग खिल उठा था। अपने खुशमिजाज़ स्वभाव के कारण रॉबिन पूरे परिवार का स्नेह-पात्र बन गया था। उसके साथ दीदी को कहीं भी भेजने में किसी को कोई आपत्ति कैसे होती। रॉबिन के साथ् जैसे कोई और ही दीदी होतीं, जीवन से भरपूर, सपनों में खोई - -।“
अचानक रवि चुप हो गया, मानो कहीं और खो गया था।
“फिर क्या हुआ, आप चुप क्यों हो गए।“दीप्ति जानने को उतावली हो उठी।
रॉबिन ने अपने खींचे कुछ फ़ोटोग्रफ़्स अमरीका भेजे थे। उन फ़ोटोग्रफ़्स के आधार पर रॉबिन को अमरीका से फ़ोटोग्रफ़ी की एक्ज़ीबीशन में भाग लेने को बुलाया गया था। रॉबिन की खुशी का ठिकाना न था। अगर उस एक्ज़ीबीशन में उसके फोटोग्रफ़्स पसंद किए गए तो वह आकाशीय ऊंचाइयां छू सकेगा। दीदी को उदास देख प्यार से तसल्ली दी थी-
“बस कुछ ही महीनों की तो बात है, उसके बाद तो ये रॉबिन यहीं इस सुंदर पलाश-वन में तुम्हारे साथ अपना घर बनाएगा।“
दो माह में दीदी की पीली पड़ती काया ने मम्मी को समझा दिया उनकी बेटी ऐसी भूल कर बैठी थी, जिसका इलाज बस रॉबिन ही था। रॉबिन अपनी एक्ज़ीबीशन की तैयारी में व्यस्त था। अचानक टीवी पर आई न्यूज़ ने सबको स्तब्ध कर दिया। समाचार में रॉबिन को वर्ष का सर्वश्रेष्ठ फ़ोटोग्राफ़र घोषित किया गया था। रॉबिन के साथ प्रसिद्ध उद्योगपति की इकलौती बेटी मरीना रॉबिन की मंगेतर के रूप में उसका हाथ पकड़े मुस्करा रही थी। टीवी देखती दीदी उठ कर अपने कमरे में चली गई। बंद कमरा खोलने पर दीदी का निष्प्राण शरीर ही मिला था। रॉबिन की आवाज़ रुद्ध हो गई।
“मैं तुम्हारा दुख समझती हूं, रवि। रॉबिन को अमरीका में आसानी से ढूंढा जा सकता था। उसे सज़ा दिलाई जा सकती थी। अमरीकी कानून अपराधियों को दंड देने में देर नहीं करते।‘
“सज़ा दिला कर क्या मिलता, दीप्ति? हमारे पास क्या सबूत था, बड़ी मुश्किल से दीदी की जिस मौत को बदनामी से बचाया गया था, वो जग-ज़ाहिर न हो जाती।“उदास रवि ने कहा।
“ठीक कहते हो, पर मैं अमरीका जाकर उस रॉबिन की खबर ज़रूर लूंगी। अब मैं अमरीका और अमरीकियों के प्रति तुम्हारी नफ़रत की वजह समझ सकती हूं।“शायदे उत्तेजना या क्रोध की वजह से दीप्ति का गोरा चेहरा बीर बहूटी बन गया।
“तुम्हारे प्रति मैं शायद ज्यादा ही कठोर था। मुझे माफ़ कर सकोगी, दीप्ति। आई एम सॉरी।“
“अब हम दोनो दोस्त हैं, हमारे बीच सॉरी या थैंक्स या ऐसी ही कोई औपचारिकता नहीं चलेगी, रवि। मैं ने भी तो तुम्हें बहुत ग़लत समझा। तुम्हारे प्रोपोज़ल्स को दिखावा कहा। मुझे माफ़ कर सकोगे।‘’
“थैंक्स, दीप्ति। मुझे खुशी है तुमने मेरा दुख समझा। क्या तुम यहां कुछ ज़्यादा टाइम के लिए नहीं रुक सकतीं,दीप्ति? अभी तो हम दोनो एक-दूसरे को समझ सके हैं।“रवि ने दीप्ति के हेहरे पर दृष्टि निबद्ध कर दी।
“मुझे तो जाना ही होगा, रवि, पर एक दोस्त की तरह तुम हमेशा याद रहोगे।“दीप्ति का मन बुझ सा गया। ऐसा क्यों हुआ दीप्ति समझ नहीं सकी।
देर संध्या हॉस्पिटल से वापसी में दोनो मौन थे। दीप्ति को पुरानी बातें याद आ रही थीं। क्या रवि की हर बात में उसके लिए कंसर्न नहीं था? क्या वह सिर्फ़ अपनी ज़िम्मेदारी ही निभा रहा था? अब दीप्ति की अमरीका वापसी के लिए कुछ ही समय शेष था। इस बीच उसने उस बस्ती की आदिवासी स्त्रियों और बच्चों को सफ़ाई के मूल सिद्धान्तों से परिचित कराया था। महुआ की सहायता से सबको पढाना शुरू किया था। ब्लैक बोर्ड, चाक, कॉपी-पेंसिलें सब दीप्ति अपने पैसों से मंगवाने वाली थी, पर अचानक सब चीज़ें पहुंचा दी गई थीं। जानते हुए भी वो सब सामान रवि ने उपलब्ध कराया था, दीप्ति ने उसे धन्यवाद देने की भी ज़रूरत नहीं समझी थी। रवि क्यों चाहता है, वह कुछ समय और रुक जाए। खुद दीप्ति भी क्यों वापसी के नाम पर उत्साहित नहीं है। क्या उसे इस वनांचल से प्यार हो गया है?
जीप से उतरते रवि ने दीप्ति पर गहरी नज़र डाल “गुड नाइट” कह कर विदा ले ली। दीप्ति के कॉटेज से रवि का घर पास ही था। दीप्ति उत्तर भी नहीं दे सकी, रवि तेज़ी से मुड़ कर चला गया।
रात के कपड़े बदल दीप्ति सोने का प्रयास कर रही थी, पर जैसे नींद उसकी दुश्मन बन गई थी। काफ़ी देर बाद शायद उसे झपकी आई ही थी कि शोर सुन कर जाग गई। महुआ दरवाज़ा खोल अंदर आ गई थी। दीप्ति की मदद के विचार से रवि ने कॉटेज के पीछे वाले कमरे में महुआ के रहने की व्यवस्था कराई थी। घबराई महुआ को देख दीप्ति पूरी तरह से जाग गई।
“क्या हुआ, महुआ। इतना शोर क्यों है?”
“रवि भैया को कोई घायल करके भाग गया है। पेट में छूरी लगी है, काका जीप में अस्पताल ले जा रहे हैं। चौकीदार जी भी जा रहे हैं। हम देख कर आए है, कितना ढेर सारा खून बह रहा है।“महुआ की आवाज़ कांप उठी, आँखों से आंसू बह निकले।
‘नहीं-नहीं ऐसा नहीं हो सकता।‘बदहवास सी दौड़ती हुई दीप्ति स्टार्ट हो चुकी जीप के सामने जा खड़ी हुई।
हरि काका और चौकीदार रवि को जीप में लिटा रहे थे। तेज़ी से जीप में चढ कर दीप्ति ने रवि का सिर अपनी गोद में रख लिया। अर्द्ध चैतन्य रवि ने उनींदी आँखें खोल कर एक पल दीप्ति पर नज़र डाल आँखें मूंद लीं। पता नहीं ये दीप्ति का भ्रम था या सच में रवि के चेहरे पर आश्वस्ति उभर आई।
हॉस्पिटल में रवि को आई सी यू में ले जाया गया। बाहर हरि काका के साथ दीप्ति बैठी थी। हरि काका ने जो कुछ बताया उसकी वजह से दीप्ति को एक-एक पल भारी पड़ रहा था। हरि काका ने बताया था-
"देर रात तेज़ हवा की वजह से रवि भैया की नींद टूट गई। खिड़की बन्द करते हुए उन्होंने देखा दो आदमी आपके कॉटेज का दरवाज़ा खोलने की कोशिश कर रहे थे। मुझे आवाज़ देते भैया आपके कॉटेज की ओर दौड़ पड़े। मैं थोड़ा पीछे रह गया था। भैया ने जैसे ही एक आदमी को पकड़ने की कोशिश की दूसरे ने भैया के पेट में छूरी भोंक दी।“
“कौन थे वो लोग, काका? मुझ से क्या दुश्मनी थी। रवि ठीक तो हो जाएंगे न, काका?”दीप्ति की आवाज़ भीग गई।
रवि ने उसकी जान बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी। आज इस अपरिचित देश में रवि उसे कितना अपना लग रहा था। अगर रवि को कुछ होगया तो? नहीं भगवान इतना अन्यायी नहीं हो सक्ता। हे भगवान रवि को ठीक कर दो। दीप्ति ने अदृश्य को हाथ जोड़े थे।
चार घंटों बाद डॉक्टर बाहर आए थे। दीप्ति उठ खड़ी हुई।
“रवि कैसे हैं। वो ठीक तो हो ज़ाएंगे डॉक्टर?’’
“पेट में गहरा घाव हुआ है। घाव स्टिच कर दिया गया है। क्या आपका नाम दीप्ति है, रवि जी किसी दीप्ति को याद कर रहे थे।“
“जी हां मैं ही दीप्ति हूं, क्या मैं उनसे मिल सकती हूं?” व्यग्र दीप्ति ने पूछा।
“सॉरी, अभी वह अन्कांशस हैं। हैव फ़ेथ इन आलमाइटी, सब ठीक होगा। डोंट वरी।“
डॉक्टर तसल्ली दे कर चले गए। हरि काका ने भी प्यार से समझाया-
“घबराओ, नहीं बिटिया। भगवान इतना निर्दयी नहीं हो सकता। भैया ने किसी का बुरा नहीं चाहा। जिस रॉबिन ने हमरी बेटी को इतना बड़ा धोखा दिया, उस शैतान को भी बख्श दिया। तुम नहीं जानती, यहां के आदमी अपनी औरतों की कमाई दारू पीकर उड़ा देते थे। ऐसी औरतों को भैया का ही सहारा है। भैया अपने पैसों से जहां तक हो सकता है, हर तरह से उनकी मदद करते हैं।“
किसी तरह से रात कटी। सुबह बहुत से आदिवासी मर्द और औरतें हॉस्पिटल के बाहर आ पहुंचे। सब अपने रवि भैया के लिए दुआ कर रहे थे। डॉक्टर राउंड पर आ गए थे। सीनियर डॉक्टर सीधे रवि के पास गए थे। दीप्ति का रोम-रोम रवि की हालत जानने को बेचैन था।
“आपकी प्रेयर भगवान ने सुन ली। रवि कुमार अब खतरे से बाहर हैं आप उनसे मिल सकती हैं।
“थैंक्यू डॉक्टर’ कहती दीप्ति की सुंदर आंखों में मोती झिलमिला उठे।
पलंग पर लेटा रवि जैसे किसी की प्रतीक्षा कर रहा था। दीप्ति के पांवों की हल्की सी आहट पर रवि की दृष्टि रूम में प्रविष्ट हो रही दीप्ति पर निबद्ध हो गई। चेहरे पर जैसे ढेरों गुलाब खिल आए।
“कैसे हो रवि? मेरी जान इतनी कीमती तो नहीं कि अपनी जान खतरे में डाल दी। ऐसा क्यों किया, रवि?” दीप्ति का कंठ रुद्ध हो आया।
“अपने बारे में तुम बहुत सी बातें नहीं जानतीं। मेरे लिए तुम अनमोल हो, दीप। तुम्हें कैसे खो सकता था।“ रुक-रुक कर रवि ने कहा।
“अगर तुम खो जाते तो क्या मैं सामान्य जीवन जी पाती, रवि?”दीप्ति ने सवाल किया।
‘तुम क्यों आईं दीप, दीदी की यादों को किसी तरह से भुला रहा था, अब तुम्हें कैसे भुला सकूंगा?”रवि बेचैन था।
“मुझे क्यों भुलाना चाहते हो, रवि। क्या मैं इतनी खराब हूं।“दीप्ति ने मान भरे स्वर में कहा।
“तुम तो अनजाने ही मेरी ज़िंदगी की धड़कन बन गई हो, दीप्ति। तुम्हें भुला कर क्या मैं जी सकूंगा? उस दिन जब तुम पलाश के फूल पाने की कोशिश कर रही थीं, मैने कहा था उन फूलों में कोई मीठी सुगन्ध नहीं। गुण विहीन सौंदर्य व्यर्थ होता है। मेरी बात पर तुमने जो जवाब दिया, उसने मुझे निरुत्तर कर दिया। बस मेरे मन में तुम्हें हराने की अदम्य इच्छा अंकुरित हो आई। सच तो यह है कि तुम्हें हराने के प्रयास में मैं हारता गया। तुम्हारी हर बात काट कर मैं तुम्हारे पास आता गया।“
“अच्छा चाहत के इस नए रूप को क्या नाम दूं? अमरीका में प्यार करने वाले ऐसे एक -दूसरे से लड़ते नहीं, फूल दे कर प्यार का इज़हार करते हैं।“दीप्ति ने शरारत से कहा।
“मुझे स्वीकार कर लो, दीप्ति, तुम्हें प्यार के पलाशी रंगों से सराबोर कर दूंगा, ये मेरा वादा है। बोलो मुझे छोड़ कर तो नहीं जाओगी। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकूंगा, दीप्।“रवि बेचैन हो उठा।
“अब आपने मेरे पास विकल्प ही क्या छोड़ा है, रवि कुमार्। मेरी जान बचाने के बदले में मंज़ूरी तो देनी ही होगी। अब इस जीवन पर तुम्हारा ही तो अधिकार है।“शोखी से दीप्ति ने कहा।
“हौले से दीप्ति का चेहरा हाथों में थाम, रवि ने दीप्ति के माथे पर स्नेह- चुंबन अंकित कर दिया। दीप्ति का गोरा चेहरा सिंदूरी पलाशों सा दहक उठा।
No comments:
Post a Comment