1/16/11

स्कैंडल प्वांइट की सीमा

स्कैंडल प्वांइट की सीमा

रिज तक पहुँचते-पहुँचते तेज़ बारिश के साथ ओले गिरने लगे थे। रिज स्थित चर्च में शरण लेने के अलावा दूसरा उपाय नहीं बचा था। सचमुच शिमला के मौसम का मिज़ाज़ पहचान पाना संभव नहीं। मेनटेनेंस के अभाव में वह शानदार चर्च विगत वैभव पर आँसू बहाता- सा लगा। काश् ! ब्रिटिश-काल के उसके वैभव की तस्वीर मिल पाती ? केयर- टेकर ने बताया रिज से काफ़ी ऊपर ‘रोज़ विला-कॉटेज के विलियम बाबा से अच्छी जानकारी कोई नहीं दे सकता।  

बीस मिनट की कड़ी चढ़ाई के बाद ‘रोज़विला कॉटेज’ का धुंधला बोर्ड दिखाई पड़ा था। कॉटेज चारों ओर से पाइन के हरे-लम्बे पेड़ों से घिरा हुआ था। रंगीन गुलाबों की क्यारियाँ झाड़ियों में बदल चुकी थीं। पूरे माहौल मे अज़ीब उदासी फैली हुई थी। शायद वर्षों से उस कॉटेज को अकेले रहने की आदत हो गई थी। बरामदे में पड़ी एक पुरानी आराम-कुर्सी किसी व्यक्ति की उपस्थिति का एहसास दिलाती लगी थी। ग़ौर से देखने पर बरामदे के एक कोने में कॉल-बेल दिखाई दी। कुछ देर प्रतीक्षा के बाद चरमराहट के साथ द्वार खुला। अधखुले दरवाजे से सफ़ेद बालों वाले एक वृद्ध का चेहरा दिखा।  

‘नमस्ते.....मैं एक टूरिस्ट हूँ.....।’  

‘टूरिस्ट का यहाँ क्या काम ? ये कोई टूरिस्ट स्पॉट नहीं है।’  

द्वार बंद करने के उनके प्रयास पर मैंने बाधा दी थी.....  

‘क्षमा करे, बहुत दूर से आपसे मिलने आई हूँ, बस दस मिनट का समय चाहिए। प्लीज़ मुझे निराश मत कीजिए।’  

‘आइए.....।’ वृद्ध दरवाज़ा खोल पीछे हट गए। खुले दरवाज़े से कमरे में प्रविष्ट होते ही सीलन की गंध नाक में भर गई थी। निश्चय ही कमरे के कार्पेट आदि को काफ़ी समय से धूप नहीं दिखाई गई थी। पुराना और बिखरा फ़र्नीचर गृहस्वामी की लापरवाही का परिचायक था। एक कुर्सी पर बैठने का संकेत दे वृद्ध सामने की कुर्सी पर बैठ गए।  

‘यस ! क्यों मिलना चाहती थीं मुझसे ?’
‘सुना है शिमला के साथ आपका घनिष्ठ संबंध रहा है। रिज के चर्च के विगत वैभव के बारे में आपकी आँखों देखी सुनना चाहती हूँ। हाँ उस वक़्त के अगर कुछ फ़ोटोग्राफ़्स भी हों तो देखना चाहूँगी।’  

‘चर्च के विगत वैभव की कहानी या हिन्दुस्तानियों के अपमान की दास्तान ?‘   

स्वर का आक्रोश और व्यंग्य विस्मित कर गया।  

‘अपमान की दास्तान, क्या कह रहे हैं आप ?’  

‘वही जो सच है.....।’  

‘हिन्दुस्तानियों का अपमान तो उनकी गुलामी का अभिशाप था, पर उस अपमान को सीने से लगाए रखने के पीछे कोई ख़ास वजह तो ज़रूर होगी ?’  

‘उस वजह की सार्वजनिक रूप मे चर्चा करने की कतई इच्छा नहीं है। ठीक कहती हैं, बहुतों ने अपमान झेला और भूल गए, पर मुझे वह संभव नहीं हो सका....।’  

‘उस वजय की सार्वजनिक रूप में चर्चा करने की कतई इच्छा नहीं है। ठीक कहती हैं, बहुतों ने अपमान झेला और भूल गए, पर मुझे वह संभव नहीं हो सका...।’  

‘क्यों, ऐसा क्या हुआ जो आप आज तक नहीं भुला सके, सर।’  

वृद्ध जैसे कहीं खो- से गए। मैंने फिर अनुरोध दोहराया-  

‘आपके पास बहुत उम्मीद लेकर आई हूँ, विली बाबा। विश्वास करें आपकी जानकारी का कभी दुरूपयोग नहीं करूंगी।  

मेरी आवाज़ का विश्वास उन्हें छू गया। एक पल मुझे ग़ौर से देख पूछा-  

‘तुम लिखती हो ?।  

‘जी..... ये मेरा शौक़ है।’  

‘तो एक वादा करना होगा ?’  

‘आज्ञा दीजिए, विली बाबा ?’  

‘मेरी सच्चाई में अपनी कल्पना नहीं जोड़ोगी ?।  

‘मुझे मंजूर है।’ स्वर की खुशी छिपाए नहीं छिपी थी।  

‘ठीक है, पर पहले एक-एक कप चाय हो जाए।’ विलियम के चेहरे पर सहजता थी।  

‘आप बैठिए बाबा, चाय मैं बनाती हूँ। किचेन कहाँ है ?’  

घर के मुकाबले किचेन काफ़ी व्यवस्थित था। सामने ही गैस के साथ वाले रैक पर चाय की पत्ती, चीनी; रखी हुई थी। एक कोने में फ्रिज़ था। चाय का पानी चढ़ाते देख, अचानक वह बोले-  

‘वह भी माँ को चाय नहीं बनाने देती थी, वैसे चाय बनाना उसने माँ से ही सीखा था।’ आवाज़ जैसे कहीं दूर से आ रही थी।  

चाय के कप के साथ हम दोनों वापस उसी कमरे में आगए। चाय ख़त्म कर अल्मारी से एक पुरानी डायरी निकाली थी। कुछ पृष्ठ उलट-पुलट कर देखने के बाद डायरी मुझे थमा दी।  

‘अपनी जिंदगी का दस्तावेज़ तुम्हें सौंप रहा हूँ। न जाने कितनी साँसें बची हैं, कब ख़त्म हो जाएँ। तुम्हें देख लगा, इसके लिए तुम सुपात्र हो.....।’  

‘ऐसा क्यों सोचते हैं बाबा, विश्वास दिलाती हूँ आपने मुझ पर जो यकीन रखा है, वो कभी नहीं टूटने दूँगी। आपका दस्तावेज़ मेरे पास आपकी अमानत है।’  

‘सच्चाई ये है बेटी, शायद मुझे किसी ऐसे इंसान की तलाश थी जो मुझसे मेरा अतीत पूछता....। अच्छा अब दस मिनट पूरे हो गए, अब तुम जाओ।’  

उस अचानक विदाई ने मुझे चौंका दिया।  

घर पहुँच डायरी का पहला पृष्ठ खोला था। डायरी पर 5 जुलाई, 1944 की तारीख़ पड़ी थी।  

‘पापा की अंग्रेजी की जानकारी ने उन्हें अंग्रेज हाकिमों की नज़रों में चढ़ा दिया था। जब जोसेफ़ साहब ने पापा को अपना पी0ए0 बना लिया तो पापा का रूतबा बढ़ गया। स्वेच्छा से रामसिंह से रॉनिक जॉन बनने में उन्होंने देर नहीं की थी, पर पार्वती से पैरी में बदल पाना, माँ को सहज नहीं लगा था। जन्मजात संस्कारों से मुक्ति पा लेना उन्हें संभव नहीं हो सका था। पापा के साथ गिरजाघर जाकर भी आँखे मूँद वह अपने राम-कृष्ण का ही स्मरण करतीं। शिवरात्रि और जन्माष्टमी पर पूरे दिन उपवास रख, पूजा के बाद ही उपवास तोड़तीं। मैं उनका इकलौता बेटा वीरेन्द्र, विलियम को आसानी से पचा गया, पर ज़्यों-ज़्यों बड़ा होता गया मन में आक्रोश घर करता गया। हिन्दुस्तानियों का अपमान माँ को क्षुब्ध कर जाता। अकेले में समझातीं, ये देश हमारा है। गाँधी बाबा स्वराज के लिए तकलीफ़ सहते हैं, हिन्दुतानियों को उनका साथ देना चाहिए। जब से शिमला में उन्होंने गाँधी बाबा का भाषण सुना, उनके दिल में अंग्रेजों के खिलाफ़ बग़ावत की आवाज़ उठने लगी थी। बेटे के साथ हिन्दुस्तान की आज़ादी की बात करती माँ का चेहरा आशा से जगमगा उठता। भोली माँ का वह चेहरा विलियम को मुग्ध करता, पर सच्चाई पर विश्वास कर पाना, सहज नहीं हो पाता। माँ की बातों की सच्चाई विलियम को अच्छी लगती।  

जोसेफ़ साहब की सिफ़ारिश पर विलियम को शिमला के अंग्रेजी स्कूल में दाखिया मिल गया। स्कूली पढ़ाई पूरी कर ग्रेज्युएशन के लिए विलियम दिल्ली चला गया। जोसेफ़ साहब का कहना था, दिल्ली रहकर वक़ालत पढ़ना आसान होगा। पापा का सपना साकार कर, विलियम दिल्ली से लॉ की डिग्री के साथ शिमला लौटा था। पापा का सपना था बेटा लंदन जाकर बैरिस्टरी की पढ़ाई कर, साहब बने। इसके लिए जोसेफ़ साहब की कृपा ज़रूरी थी, उन्हें खुश करने के लिए वह हर संभव प्रयास करते।  

उस दिन इतवार का दिन था। पापा की ख़ास हिदायत रहती, संडे को चर्च ज़रूर जाना चाहिए। वक़ालत की डिग्री का ज़ोश विलियम में नया ज़ोश भर गया था। अपने में मस्त विलियम उस दिन सचमुच भूल गया स्कैंडल प्वाइंट से ऊपर रिज पर जाने की हिन्दुस्तानियों को इज़ाज़त नहीं थी। विलियम ने स्कैंडल प्वाइंट से ऊपर एक-दो क़दम ही बढ़ाए थे कि एक ज़ोरदार गर्जना सुनाई दी-  

‘हाल्ट ! वहीं रूक जाओ....।’  

निगाह उठाते ही एक बंदूकधारी संतरी को अपनी ओर आते देखा था।  

‘हाउ डेयर यू क्रॉस दिस लिमिट। जानते नहीं तुम हिन्दुस्तानियों को इस सीमा से ऊपर जाने की इज़ाजत नहीं है।’  

दिल्ली में पिछले छह वर्षो से रहने वाला विलियम ताज़्जुब में पड़ गया। कानून की पढ़ाई ने न्याय-अन्याय का मतलब उसे समझा दिया था।  

‘पर मैं तो क्रिश्चियन हूँ, चर्च जाना मेरा अधिकार है।’  

‘व्हॉट क्रिश्चियन, तुम्हारा खून तो गंदा हिन्दुस्तानी खून ही है न ? तुम साहब लोगों के चर्च में जाना माँगता, उनसे बराबरी करेगा ?’ उस आवाज़ में ऐसी हिक़ारत थी कि वकील विलियम तिलमिला गया।  

‘अगर हमारा खून गन्दा है तो ह्मे क्रिश्चियन क्यों बनाया ?’  

‘इसीलिए कि तुम्हारी आत्मा पाक-साफ़ बन सके।’ संतरी व्यंग्य से हँसा था।  

‘ठीक है अपने मन की सफ़ाई के लिए ही चर्च जा रहा हूँ, रास्ता छोड़ो।’  

‘ऐ यू बास्टर्ड तू रिज के चर्च में जाएगा, तेरी ये जुर्रत ? जानता नहीं ऊपर क़दम बढ़ाने वाले को गोली मार देने ऑडर्स हैं। अपनी ज़ान की ख़ैर चाहता है तो पीछे चला जा वर्ना......।’  

‘ठीक है चलाओ गोली.....।’ युवा विलियम सीना तान खड़ा हो गया था।  

तभी ऊपर खड़े दूसरे सिपाही ने बंदूक ताने संतरी के कान में कुछ कहा। उसकी बात सुन संतरी ने विलियम को ऊपर से नीचे देख, बंदूक नीची कर कहा था-  

‘रॉनिक जॉन का बेटा है इसलिए छोड़ रहा हूँ। तेरा बाप कप्तान साहब का वफ़ादार है, वर्ना आज तेरी लाश ही वापस जाती।’  

विलियम को अडिग खड़ा देख, दूसरे सिपाही ने कंधे से पकड़ विलियम का मुँह रिज के दूसरी ओर कर, धक्का दे दिया।  

आवेश और उत्तेजना से विलियम का पूरा शरीर थरथरा रहा था। किसी के मन में यह बात क्यों नहीं आती कि हिन्दुस्तानियों के लिए रिज और रिज पर स्थित चर्च तक जाना भी निषिद्ध था। अंग्रेज और हिन्दुस्तानी क्रिश्चियन्स के लिए अलग-अलग चर्च थे। रिज के उस भव्य चर्च के लिए लाख आकर्षण होने के बावजूद वह उनकी पहुँच से परे था। उसकी घंटियाँ सुन वे अपने शरीर पर क्रूस का चिन्ह बना, धन्य हो लेते। रिज पर न जाना उनकी नियति क्यों थी ?  

स्कैंडल प्वाइंट से नीचे उतर रहे विलियम पर पानी की ताबड़तोड़ बौछार का कोई असर नहीं हुआ, हाथ में पकड़ा छाता खोलने की भी सुध नहीं थी। पता नहीं कब सामने वाले पार्क में पहुँच गया। अचानक एक मीठी आवाज़ ने चैतन्य किया था-  

‘एक्सक्यूज मी जेंटलमैन......यस दिस साइड, आई एम हियर।’  

आवाज़ का अनुसरण करते विलियम की दृष्टि एक गौरांग युवती पर पड़ी थी। पानी की बौछार से उसका गुलाबी ब्लाउज़ बदन से चिपक गया था। बालों की लटें माथे पर झूल आई थीं।  

‘कैन आई हेल्प यू ?’ पास पहुँच विलियम ने पूछा।

‘अगर अपना बंद छाता खोद दें  तो हम दोनों की हेल्प कर सकते हैं।’ लड़की के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी।  

‘ओह श्योर।’ छाता पूरी तरह लड़की पर तान, विलियम भीगता खड़ा था।  

‘हे ! आर यू अफ्रे़ड ऑफ मी ? मेरे साथ छाते के नीचे खड़े होने से डरते हो ?’  

‘नहीं, पर साथ खड़े होने में आपका अपमान होगा।’ स्वर में तल्खी थी।  

‘वहाट रबिश.....आपके साथ मेरा अपमान क्यों.....कैसे ?’ लड़की विस्मित थी।  

‘वैसे ही जैसे मेरे रिज तक जाने से अंग्रेजों का अपमान होता है आप अंग्रेज हैं और मैं गंदे खून वाला हिन्दुस्तानी....’  

‘स्वर की तल्खी पर लड़की ने ग़ौर से विलियम को देखा था।  

‘हाउ फ़नी। आपके रिज तक जाने से अंग्रेजों का अपमान क्यों होगा ?’  

‘यहाँ नई आई हैं ?’  

‘हाँ, कल शाम लंदन से आई हूँ।’  

‘लंदन से हिन्दुस्तान में क्या करने आई हैं.....मिस ?’  

‘जूलिएट ! वैसे सब मुझे जूली पुकारते हैं। लंदन से हिस्ट्री में गे्रज्युएशन कम्प्लीट करके कल ही पहुँची हूँ। मेरे पापा की पोस्टिंग इंडिया हुई है और आपका परिचय ?’ दो उत्सुक नयन विलियम पर निबद्ध थे।  

‘मैं ? रामसिंह उर्फ रॉनिक जॉन का बेटा विलियम, पर माँ आज भी मुझे मेरे पुराने वीरेन्द्र नाम से पुकारती हैं।’ स्वर में थोड़ा- सा आक्रोश झलक उठा था।  

‘कन्वर्ट होना शायद आपको अच्छा नहीं लगा ?’  

‘पहले शायद अच्छा ही लगा था, सोचा शायद क्रिश्चियन बनकर वो सब कुछ पा लूँगा जो एक महत्वाकांक्षी युवक को चाहिए, पर अब लगता है माँ का सोचना ही ठीक था अपनी
जाति, धर्म, देश के प्रति अभिमान रखना ही गौरवान्वित करता है।’  

‘आपकी माँ आपसे अलग सोचती हैं ?’  

‘हाँ ! इसीलिए कन्वर्ट होने के बाद भी माँ पूरी तरह भारतीय है।’  

‘ताज़्जुब है मैंने तो सुना था हिन्दुस्तानी औरत, अपने आदमी से अलग न सोच सकती है, न कुछ कर सकती है।’  

‘आपने ग़लत सुना था, भारतीय नारी तो शक्ति है, पूरे परिवार की धुरी है। वैसे और क्या-क्या सुना है हमारे बारे में ?’ न चाहते हुए भी विलियम उत्सुक हो उठा।  

‘यही कि यहाँ के लोग अनपढ़ हैं, सुपरस्टीशन्स में बिलीव करते हैं। साँप की पूजा करते हैं..... आएम सॉरी ! आपके सामने ये सब नहीं कहना चाहिए था न ?’ जूली संकुचित थी।  

‘नहीं आप कुछ सीमा तक ठीक कह रही हैं, दरअसल हम हिन्दुस्तानी मूर्खता की सीमा तक भोले हैं। अगर ऐसा न होता तो क्या हम इतनी आसानी से अपने अधिकार छोड़ देते ? अपनी ही ज़मीन पर पाँव न रखने को बाध्य किए जाते ?’  

‘आप किससे नाराज़ हैं, अपने आप से या अंग्रेजी हुकूमत से ?’  

‘शायद दोनों से। बहुत देर हो गई ये बारिश रूकने वाली नहीं ऐसा कीजिए मेरा छाता ले जाइए, मुझ पर इन बौछारों का असर नहीं होने वाला।‘  

‘वो तो देख रही हूँ, पर मैं ये अन्याय नहीं कर सकती। चलिए हम दोनों साथ चलते हैं।’  

‘वो तो पॉसिबिल नहीं होगा क्योंकि जहाँ आपको जाना है, उस सीमा को पार करने की हम हिन्दुस्तानियों को अनुमति नहीं है।’  

‘आप न जाने किस सीमा, सिस्टम की बात कर रहे हैं, मैं पापा से बात करूँगी।’  

‘नो.....नेवर....। अपनी लड़ाई खुद लड़ने की ताकत है मुझ में। आपके पापा खुद उस सिस्टम के अंग हैं, जिससे मुझे लड़ना हैं।’  

‘जानकर खुशी हुई। वक़ील हैं ज़िरह भी अच्छी कर लेते हैं। उज्जवल भविष्य के लिए मेरी शुभकामनाएँ।’ मुस्कराती जूली ने हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ बढ़ा दिया।  

‘थैंक्स फ़ॉर दि काम्प्लिमेंट्स ! शायद मैं कुछ ज़्यादा ही बिटर था..... माफ़ करेंगी।’ बात पूरी होते न होते वर्दीधारी ड्राइवर के साथ एक कार ठीक सामने आ रूकी थी। तत्परता से उतर ड्राइवर ने कार का पिछला द्वार खोल दिया।  

कार में साथ जाने के जूलिएट के निमंत्रण को धन्यवाद के साथ नकार, विलियम तेज़ कदमों से सड़क से नीचे की ओर चला गया।  

दो दिन बाद जूली से विलियम की फिर मुलाक़ात हो गई-  

‘हेलो विलियम ! हाउ आर यू ?’ जूली के चेहरे पर खुशी की मुस्कान थी।  

‘थैंक्स, फ़ाइन। हाउ आर यू ?’  

‘कौन- सी किताब ढूंढ रहे हैं ?’  

‘ब्रिटिश-साम्राज्य के विस्तार की कहानी.....’  

‘आप ब्रिटिश हिस्ट्री में इन्टरेस्टेड हैं ? तब तो मैं आपकी हेल्प कर सकती हूँ, रिमेम्बर मैंने हिस्ट्री में ग्रेज्यूएशन किया है ?’  

‘तो बताइए क्या ब्रिटिशर्स ने हमेशा धोखे से अपने साम्राज्य का विस्तार किया है ?’  

‘व्हाट नानसेंस। धोखेधड़ी का मतलब जानते हैं आप ? मेरे देश पर आरोप लगा रहे हैं, याद नहीं मैं एक अंग्रेज नागरिक हूँ।’  

‘इसमें नाराज़गी की क्या बात है मिस जूलिएट। मैंने तो सच ही कहा है, हाँ कड़वा सच डाइजेस्ट कर पाना कठिन ज़रूर होता है’  

‘किस सच की बात कर रहे हैं आप ?’  

‘यही कि आपके देशवासी हमारे यहाँ दोस्त बनकर आए थे। हम भारतीय मेहमान को देवता मानते हैं, हमने उन्हें सर-आँखों लिया और अंजाम सामने है। दोस्त बनकर हमारे देश को गुलाम बना लिया।’  

‘याद रखिए मिस्टर विलियम, जो गुलाम बनने लायक है, उसे ही गुलाम बनाया जा सकता है। आपसी फूट-दुश्मनी की वज़ह से हिन्दुस्तानी अपने पाँवों पर खड़े रहने लायक रह गए थे क्या ?’  

‘किसी की कमज़ोरी का ये मतलब तो नहीं कि उसे अपंग बना दिया जाए ? दोस्त बनकर ठीक राह सुझाई जा सकती है, मिस जूली।’  

‘तब तो आपने सचमुच वो सब कुछ भुला दिया जो अंग्रेजों ने भारत को दिया। उन्होंने ही विज्ञान का प्रकाश फैलाया, ज्ञान का दीपक जलाया। अंग्रेजों के आने के पहले हिन्दुस्तान में ज़हालत थी। हिन्दुस्तानियों को तो हमारा आभारी होना चाहिए और आप हैं कि हमें दोषी ठहरा रहे हैं।’ उत्तेजित जूली का गोरा रंग तांबई हो उठा।  

‘आप जिस ज्ञान-विज्ञान की बात कर रही हैं, वो सब हमारे वेदों की देन है। अगर वेद पढ़े होते तो यह बात न कहतीं।’  

‘आपने वेद पढ़े हैं?’  

‘नहीं, पर यह मेरी ग़लती थी। आजकल वेदों का अध्ययन कर रहा हूँ। माँ ने हमेशा समझाना चाहा अपनी ज़मीन से जुड़े रहने के लिए ‘रामायण, गीता’ जैसे ग्रन्थों का अध्ययन ज़रूरी है। आज उनकी बातों की प्रासंगिकता समझ पा रहा हूँ।’  

‘मैं आपकी माँ से मिल सकती हूँ ?’  

‘ज़रूर, पर वह अंग्रेजी नहीं समझतीं।’  

‘मेरे लिए आप दुभाषिया नहीं बन सकते ? विश्वास कीजिए बहुत ज़ल्दी हिन्दी सीखकर माँ से बात कर सकूँगी।’  

‘माँ को खुशी होगी। अन्ततः वह भारतीय नारी हैं, मेहमान नवाज़ी उनके खून में है।’  

‘तो चलें ?’  

‘आज ही ?’  

‘अभी ही क्यों नहीं ? हाँ बताइए उन्हें विश कैसे करना होगा ?’  

‘ऐसे......नमस्ते’ दोनों हाथ जोड़कर विलियम ने अभिवादन का तरीक़ा बताया था। माँ ने प्यार से जूली को अपने पास बैठाया था। माँ के माथे पर बड़ी सी- लाल बिंदी और माँग में सिन्दूर दमकता था। बिंदी और सिन्दूर का महत्व विलियम को ही समझाना पड़ा था। यही नहीं माँ से रोज़ हिन्दी पढ़ने का समय भी जूली ने ले लिया था। जूली के लौट जाने के बाद माँ ने कहा था-  

‘हर जाति-देश में अच्छे-बुरे दोनों तरह के लोग होते हैं। जूली अच्छी लड़की है।’  

जूली के साथ विलियम को माँ के पास बैठ रामायण और गीता की व्याख्या करनी पड़ती। अक्सर दोनों की चर्चा के विषय राजनीति से हटकर भारतीय जीवन और दर्शन हो जाते। भारतीय संस्कृति ने जूली को अभिभूत किया। पति-पत्नी, माता-पिता के संबंधों की गरिमा जूली को विस्मित करती। क्या ये भी सच हो सकता है, राम का आदर्श चरित्रा, सीता का पति के लिए समर्पण उसे सोचने को विवश करता। अनजाने ही दोनों का झुकाव एक दूसरे के प्रति बढ़ता जा रहा था।  

उन्हीं दिनों शिमला में चार हिन्दुस्तानियों को अंग्रेजी सरकार के विरूद्ध षणयंत्र करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था। विलियम ने उन चारों की ओर से मुकदमा लड़ने का जब फ़ैसला किया तो कप्तान जोसेफ़ चौंक उठे। उनके अनुचर का बेटा बाग़ी कैसे हो सकता है ?  रॉनिक जॉन को बुलाकर चेतावनी दी गई-  

‘अपने बेटे को समझा लो वर्ना अंजाम बुरा होगा। उससे कहो अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन जाने की तैयारी करे। बाग़ी हिन्दुस्तानियों के झंझट में पड़ने से क्या फ़ायदा ?’  

घर आकर रामसिंह बेटे पर बरस पड़ा-  

‘इसी दिन के लिए तुझे वक़ील बनाया था। जिस सरकार का दिया खाते-पहिनते हो, उससे लड़ाई करोगे ? बड़े सरकार तुझे बैरिस्टरी की पढ़ाई के लिए लंदन भेजने की बात कर रहे हैं और तू है कि अपने पाँवों पर कुल्हाड़ी मार रहा है ? ख़बरदार जो कभी उल्टा-सीधा किया ?’  

‘जिस देश में जनम लिया, जिसकी माटी में खेलकर आज वक़ील बन सका, उस देश को आज़ाद कराने वालों के लिए नहीं लड़ेगा तो मेरे दूध को वीरेन्द्र लजाएगा।’ पार्वती के दृढ़ स्वर ने चौंका दिया।  

‘अगर विली मुकदमा लड़ेगा तो उससे मेरा कोई वास्ता नहीं, मैं उसे अपने उत्तराधिकार से बेदख़ल करता हूँ। चला जा इस घर से......‘  

‘जो करना है कर लो, पर याद रखो उसके साथ मैं भी घर छोड़ जाऊँगी।’  

पूरे शहर में मुकदमें की चर्चा थी। जूलियट और विलियम की मित्रता ने अंग्रेज हाकिमों के कान खड़े कर दिए। माँ और बेटा मिलकर एक भोली लड़की को बरगला कर न जाने कौन- सी गुप्त जानकारी लेना चाहते हैं। जूली के पापा को ताक़ीद की गई कि जूली हिन्दुस्तानी षणयंत्रकारियों से न मिले। जूली नाराज़ हो उठी-  

‘उन्हें बाग़ी या षणयंत्रकारी कहना सरासर ग़लत ,पापा। विलियम वकील है, किसी की ओर से भी मुकदमा लड़ने का उसे पूरा हक़ है। वह एक खुद्दार इंसान है, किसी का गुलाम नहीं।  

जूलिएट के पापा को बेटी की बातों में बग़ावत नज़र आई, पर जवान बेटी पर ज़बरदस्ती करना भी मुश्किल हैं। साफ़ ज़ाहिर था विलियम के लिए उसके मन में दोस्ती से कुछ ज़्यादा ही जगह थी। हद तो उस दिन हो गई जब जूलिएट बिंदी लगाकर, साड़ी पहिन क्लब पहुँची थी। स्पष्टतः उसकी बिंदी अंग्रेजियत को चुनौती थी। जूलिएट के उस दुस्साहस पर सब स्तब्ध थे। महिलाएँ हँसना भूल गईं। अंग्रेज अधिकारियों की आँखों में आक्रोश जल रहा था।  

दो दिन के भीतर जूलिएट के पापा को लंदन वापस जाने के आदेश मिल गए। उसी शाम जूली विलियम से मिली थी-  

‘मैं वापस नहीं जाना चाहती, विली।’  

‘तुम्हें यहाँ रहने का पूरा अधिकार है, जूली।’  

‘पर जिस अधिकार के साथ यहाँ रहना चाहती हूँ, वो सिर्फ़ तुमसे ही मिल सकता है।’  

‘मतलब ?’  

‘मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ, विली।’  

‘तुमसे विवाह मेरा सौभाग्य होगा, पर उसके लिए तुम्हें इंतजार करना होगा।’  

‘क्यों , विली ?’  

‘इसलिए कि मेरी शर्त है, मैं उसी दिन तुमसे शादी करूँगा, जिस दिन हिन्दुस्तानियों को स्कैंडल प्वाइंट की सीमा पार करने की इजाज़त मिल जाएगी।’  

‘हमारी शादी के लिए यह शर्त क्यों, विली ? मैं तो सारी सीमाएँ, सारे बंधन तोड़कर तुम्हारे पास आई हूँ। मैं तो खुद रिज से नीचे उतर आई हूँ।’  

‘देखो जूली, भारतीय संस्कृति में वर को अपनी वधू लाने के लिए, उसके घर जाना होता है। आज मैं रिज पर बने चर्च तक नहीं जा सकता, तुम्हारे घर कैसे पहुँचूँगा। मैंने निर्णय लिया है रिज पर बने चर्च में ही मैं तुम्हें अपनी पत्नी बनाऊँगा, यह मेरा वादा है।  

‘मुझे मंजूर है, पर वो दिन कब आएगा, विली ?’ जूली आतुर थी।  

‘वो दिन बहुत जल्दी आएगा, जूली, तुम मेरा इंतजार करोगी न ?’  

‘मैं पूरी जिंदगी तुम्हारा इंतजार कर सकती हूँ, विली-पूरी जिंदगी।’  

पहली बार झुककर विलियम ने जूली के माथे पर स्नेह-चुंबन अंकित किया। जूली रोमांचित हो उठी।  

विलियम अब अक्सर हिन्दुस्तानियों की बैठकों में शामिल होने लगा। एक दिन एक ज़ोशीले भाषण के बाद, उत्तेजित स्वतंत्रता के दीवाने वंदे मातरम् के नारों के साथ रिज की ओर चल पड़े। सिपाहियों की चेतावनी उनके कानों तक न पहुँच सकी। उन्हें स्कैंडल प्वाइंट की सीमा तोड़नी थी। सबको बंदी बना लिया गया। विलियम को हुकूमत के खिलाफ़ लोगों को भड़काने के जुर्म  में 5 साल के लिए जेल में डाल दिया गया। कोर्ट में जूली रोज़ आती।  

‘अपने पापा के गुनाह का बदला ज़रूर लूँगी, विली। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ़ अब मैं बग़ावत करूँगी।’ जेल जाता विलियम जूली को मुग्ध दृष्टि से ताकता रह गया।  

जेल में विलियम को ख़बर मिली, अपने ऊपर लगाए गए परिवार के प्रतिबंधों के खिलाफ़ जूली ने कोर्ट में अपील की है। प्रतिबंध हट जाने के बाद जूली ने खुल्लमखुल्ला हिन्दुस्तानियों का साथ देना शुरू कर दिया। एक दिन जुलूस पर पुलिस ने गोलियाँ बरसाई, जूली भी उसमें शामिल थी। सबको हटाती जूली सामने आ गई। सीने पर गोलियाँ झेल, जूली ने अपने पापा की गल्तियों का प्रायश्चित कर लिया।  

स्वतंत्रता मिल जाने के बाद जूली के मन पसंद सफ़ेद रजनी गंधा के फूल लेकर विलियम, जूली से मिलने गया था। जूली ने अपना वादा पूरा किया। वह उसी धरती की गोद में सो रही है, जिसे विलियम ने पूरे मन से प्यार किया है। मरने के पहले उसकी यही अंतिम इच्छा थी-  

‘उसे शिमला में ही दफ़नाया जाए’.....आगे के खाली पृष्ठ, विलियम के एकाकी जीवन के प्रतीक बने फड़फड़ा रहे थे......  

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