12/11/10

फूलों के कैक्टस

फूलों के कैक्टस

संकरी रोड पर मरम्मत का काम चल रहा था। घर पहुंचने के लिए बस आधी सड़क ही बची थी। कार में आती ममता को आधी उपलब्ध सड़क पर मेट्रो खड़ी दिखायी दी। अमेरिका में मेट्रो बसों को किसी घर के सामने, पार्किंग ळॉट, हॉस्पिटल जैसी जगहों में देखना आम बात है। असहाय बुजुर्गों, शारीरिक दृष्टि से अक्षम लोगों के लिए मेट्रो बस सेवा एक वरदान है। ममता ने मेट्रो से कुछ दूरी पर कार रोक दी। काफी देर प्रतीक्षा के बाद भी रास्ता खाली ना होता देख ममता कार से उतर आयी। मेट्रो के पास पहुंचने पर जो दृश्य दिखा, वह स्तब्ध कर देने को काफी था। व्हील चेअर पर बैठी महिला की आधी कुर्सी मेट्रो की लिफ्ट पर अटकी थी और आधी कुर्सी काफी ऊंचाई पर अधर में लटक रही थी। भयभीत ड्राइवर फोन से मदद मांग रहा था।
 ‘मेट्रो की लिफ्ट बीच में अटक गयी है। पैसेंजर को नीचे उतार पाना असंभव है। कोई भी हादसा हो सकता है। तुरंत हेल्प भेजिए।’

‘यह कैसे हो गया? लिफ्ट नीचे क्यों नहीं आयी?’ ममता ने घबड़ा कर पूछा।

‘मैं लिफ्ट नीचे कर ही रहा था, पर मैडम तेजी से व्हील चेअर चलाती आ गयीं। लिफ्ट बीच में ही अटक गयी,’ ड्राइवर परेशान था।

‘अब उन्हें नीचे कैसे उतारा जाएगा?’ ममता अधर में लटकी महिला के प्रति चिंतित थी, पर वह निर्विकार भाव से शून्य में निहार रही थी।

‘इनके साथ घर में कोई और नहीं रहता?’

‘नहीं, मैडम अकेली ही रहती हैं। थोड़ी देर में हेल्प आ जाएगी, तभी कुछ हो सकेगा।’

ममता कुर्सी पर लटकी महिला के पास आ गयी।

‘डोंट वरी। सब ठीक होगा। अच्छा है, आज बारिश नहीं हो रही है, धूप खिली है। आपको विटामिन डी मिल रहा है।' ममता ने बात कह माहौल को हल्का करना चाहा।

ममता की बात पर महिला ने उस पर एक हल्की दृष्टि डाली। चेहरे पर डर का नाम तो लेशमात्र को भी नहीं था। अनुत्तरित महिला से ममता ने फिर कहा,
‘आपने इतने सुंदर फूल लगा रखे हैं कि कोई भी इन्हें देखने जरूर रुकना चाहेगा’, ममता ने घर के प्रवेश द्वार पर खिले रंगबिरंगे फूलों पर प्रशंसाभरी दृष्टि डाल कर कहा।

‘उसने लगाए थे। पीछे गार्डन है, देख सकती हो’। फिर वह फिर दूर लगे पेड़ों को देखने लगी।

उसी समय मेट्रो-ऑफिस से 3-4 गाड़ियां आ पहुंचीं। एक व्यक्ति ने कैमरे से अलग-अलग ऐंगल से धड़ाधड़ फोटो खींचनी शुरू कर दीं। दो अधिकारी स्थिति का निरीक्षण करने में व्यस्त थे। उनके कार्य में व्यवधान ना डालने की दृष्टि से ममता ने पीछे की गार्डन देखने का निर्णय ले लिया।

घर के पीछे बड़े से बाग में फूलों की बहार थी। ना जाने कितने किस्म के फूल खिले थे, पर सबसे ज्यादा मनोहारी ट्यूलिप थे। एक पूरी क्यारी में सिर्फ गुलाब थे। इतने सुंदर गार्डन में ना जाने ममता को क्यों लगा, हवा के दुलारने से हंसने की जगह फूल सिहर जाते थे। फूलों से सजे उस गार्डन के बीच खामोश उदास खड़ा वह बड़ा सा घर बेहद मायूस लग रहा था। शीशे के दरवाजों से दिखनेवाला घर के अंदर का दृश्य भी बड़ा विचित्र था। कमरे के एक ओर कुछ सूखे पौधे और फूल फर्श पर पड़े थे। गार्डन में भी उदासी थी, ना तितलियां, ना चिड़ियों की चहचहाहट, माहौल इतना क्यों उदास था। फूलों की क्यारियों के बीच कंटीले कैक्टस की पंक्ति विरोधाभास प्रस्तुत कर रही थी।

सेच में डूबी ममता को अचानक ड्राइवर की आवाज ने चौंका दिया,
 ‘कंस्ट्रक्शनवालों ने गाड़ियां निकालने के लिए रास्ता बना दिया है। आप जा सकती हैं। फायर ब्रिगेड को बुला लिया गया है, मैडम को सुरक्षित उतार लिया जाएगा।’

‘इतने सुंदर फूलोंवाले गार्डन देखने का मौका दिया, बहुत शुक्रगुजार हूँ। आपसे मिलने फिर जरूर आऊंगी’ ममता ने महिला को धन्यवाद देना अपना फर्ज समझा।

‘क्यों?’ अजीब सवाल किया।

‘आपसे जानकारी लेनी है।  इन फूलों को कौन सी खास देखरेख की जरूरत है, शायद कोई स्पेशल फर्टिलाइजर दिया गया है।  हल्की मुस्कान के साथ ममता ने कहा।

‘नफरत के जहर से सींचे गए फूल हैं’। निर्लिस भाव से उसने कहा।

‘क्या....आ?’ उस विचित्र जवाब से ममता का चौंकना जरूरी था।

‘तुम नहीं समझोगी।’

‘आपका नाम जान सकती हूं?’

‘जेनीफर, पापा जेनी पुकारते थे।’ उसने कभी कोई नाम नहीं दिया।

‘आप किसकी बात कर रही हैं?’

‘माइकल, पर माइक नाम से जाना जाता था।’

‘माइक आपके कौन थे?’

‘कभी जान नहीं सकी। तुम्हें देर हो रही है। घर में कोई इंतजार करनेवाला है?’

‘हां, मां हैं।’

‘अभी शादी नहीं हुई, अच्छा है। लकी गर्ल, तुम्हारे साथ मां है। ओके बाय।’

अचानक उसने ममता को छुट्टी दे दी।

कार ड्राइव करती ममता के दिमाग में एक ही बात घूम रही थी, नफरत के जहर से सींचे गए फूलों का क्या मतलब था? माइक कौन था? ममता के अंदर का कहानीकार सब कुछ जान लेने को बेचैन था। उसे जेनी से मिलने जरूर जाना होगा।

हफ्ताभर बाद ममता ने जेनी के घर की डोर -बेल बजायी। बिना इजाजत लिए किसी के घर जाना असामान्य बात थी, पर ना जाने क्यों ममता को लगा कि अगर वह फोन से समय मांगेगी, तो जेनी उसे मिलने नहीं आने देगी। दरवाजा व्व्हील चेअर में आयी जेनी ने ही खोला था।

‘हेलो जेनी, मुझे पहचाना?’ हल्की मुस्कान के साथ ममता ने विश किया।

‘हाँ, तुम वही लड़की हो। उस दिन देखा था। कहो, क्या काम है?’

‘आपसे मिलने आयी हूं...’

‘ठीक है, अंदर आ जाओ,’व्हील चेअर पीछे करती जेनी ने ममता को भीतर आने की जगह दी।

बडे़ से हॉलनुमा कमरे में प्रविष्ट होती ममता ने चारों ओर नजर दौड़ायी। घर का फर्नीचर वैभव का साक्षी था। कीमती सोफा सेट, अलमारियों में सजी किताबें, डाइनिंग रूम में शानदार चाइना क्राकरी से सजा शो केस, दीवारों पर पेंटिंग्स, कारपेट सब कुछ भव्य था। उस शांत घर में एक अजीब से सन्नाटे का माहौल था।

‘बैठो। कहो, क्या काम है? जानती हूं, तुम ऐसे ही नहीं आयी हो।
 जेनी ने सपाट आवाज में कहा।

‘जी...ई। उस दिन आपने एक अजीब बात कही थी, वही बात मुझे बेचैन कर रही है।’

‘कौन सी बात?’

‘आपने यह क्यों कहा कि ये फूल नफरत के जहर से सींचे गए हैं। मैं तो यही जानती हूं, सिर्फ फूल ही नहीं, पेड़-पौधे भी प्यार चाहते हैं। अपनी अवज्ञा उन्हें स्वीकार नहीं होती, वे सूख जाते हैं।’

‘मेरा एक्सपीरिएंस अलग है।’

‘क्यों, जेनी?’

‘क्या करोगी जान कर?’

‘प्लीज जेनी, अपनी बेटी या छोटी बहन ही समझ कर अपने मन की बात बता दो। कहते हैं, अगर मन पर कोई बोझ हो, उसे किसी के साथ बांटने से मन हल्का हो जाता है। प्लीज....’

ममता की आवाज में गहरी अनुनय थी। ममता के चेहरे पर नजर डाल कर जेनी सोच में पड़ गयी।

‘चाय पियोगी? चाय के साथ मुझे झेल सकोगी। ना जाने क्यों आज महीनों बाद तुमसे बात करने को मन तैयार है।’

‘सच? तो मैं चाय बनाती हूँ।’ खुशी से ममता का चेहरा चमक उठा। उसके उठने के उपक्रम पर जेनी ने नाराजगी से कहा,
 ‘मैं अपना काम खुद करती हूं। मुझे किसी की दया नहीं चाहिए। तुम ये बुक्स और पेंटिग्स देखो। मैं चाय लाती हूं।’

बुकशेल्फ में सजी किताबें देख कर ममता विस्मित थी। नामी लेखकों के कलेक्शंस के साथ कई पेंटिंग की किताबें थीं। दीवारों पर लगी पेंटिग्स के नीचे छोटे अक्षरों में माइक लिखा था। कौन है यह माइक?

जेनी अपनी चेअर पर लगी ट्रे में 2 कप चाय-बिस्किट ले आयी। ममता कुर्सी पर बैठ गयी।

‘ये किताबें आपकी हैं? लगता है, आपको पढ़ने का बहुत शौक है?’

‘पापा के साथ मैं भी बुक्स में इंटरेस्टेड थी। उनकी लाइब्रेरी को माइक ने और बढ़ा दिया। मैनेजमेंट और पेंटिंग की किताबें उसकी हैं।’

‘यह घर आपका है?’

‘यह घर मेरे पापा-मम्मी के प्यार की निशानी है। पापा को मम्मी से सच्चा प्यार था। उनका सब कुछ मम्मी के नाम था। विकलांगता के साथ मेरा जन्म मम्मी को तोड़ गया। अपने शिशु के लिए उन्होंने ढेर सारे सपने देखे थे। मम्मी बहुत भावुक थीं। दुखी मम्मी को पापा समझाते -
'तुम दुखी क्यों होती हो, नैन्सी? यह बच्ची दे कर गॉड ने हमें सेवा का मौका दिया है। हम अपनी जेनी को दुनिया की हर खुशी देंगे। पर मम्मी ज्यादा दिन दुखी नहीं रह सकीं’। जेनी अचानक चुप हो गयी।

‘क्यों, क्या हुआ, जेनी?’

‘पता नहीं, मम्मी किन ख्यालों में डूबी थीं, उनकी कार का एक्सीडेंट हो गया। आखिरी सांस लेती मम्मी ने पापा से प्रॉमिस लिया था कि जेनी को कभी दुखी मत होने देना। पापा ने अपना प्रॉमिस पूरा किया। मेरी कमर से नीचे के निर्जीव शरीर के इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी। पानी की तरह पैसा बहाने पर भी डॉक्टरों की कोशिशें नाकाम साबित हुईं। सचाई स्वीकार करना ही उनकी नियति थी।

‘सच आपके पापा महान थे, वरना दूसरी शादी करके नयी जिंदगी शुरू कर सकते थे,’ ममता ने सचाई से कहा।

‘बढ़ती उम्र के साथ पापा की मेरे लिए चिंता बढ़ती जा रही थी। मेरी फिक्र उन्हें चैन से सोने भी नहीं देती थी। एक-दो रिश्तेदा्रों ने मदद की पेशकश की, पर उनकी शर्त थी कि पापा अपनी जायदाद उनके नाम कर दें। पापा को डर था, जायदाद पाने के बाद वे मेरे साथ ना जाने कैसा बर्ताव करेंगे।’

‘हां, उनका डर तो ठीक ही था। पैसों के लालच से बड़े-बड़ों का ईमान डोल जाता है,’ ममता ने हामी भरी।

‘पापा ने एक तरीका सोच लिया। माइकल अनाथालय का सबसे जहीन युवक था। ओल्ड एज होम में रहनेवाली कैंसरग्रस्त मां अपने बेटे को अनाथालय में रखने को मजबूर थी। पापा ने माइकल को बुला कर साफ शब्दों में अपना प्रस्ताव रख दिया,

‘तुम्हें पैसों की समस्या  है, राइट? चाह कर भी किसी अच्छे कॉलेज में एडमीशन नहीं ले सकते, क्या मैं ठीक कह रहा हूं।                

‘जी कॉलेज की भारी फीस नहीं दे सकता।’

‘अगर मैं तुम्हारा एडमिशन अमेरिका के सबसे अच्छे कॉलेज में करा दूं...?’

‘इस मेहरबानी की वजह?’

‘इसकी वजह यह मेरी बेटी जेनी है।’

मइकल ने उड़ती नजर व्हील चेअर में बैठी जेनी पर डाली, ‘
"ओह1 तो आप इनके लिए एक केअर- टेकर चाहते हैं?’

‘केअर- टेकर नहीं, अपनी बेटी के लिए एक पति की तलाश है।’

‘माफ करें, सर। इनके लिए केअर- टेकर या पति दोनों में कोई फर्क नहीं होगा।’

'फर्क है। केअर- टेकर को मैं अपना वारिस नहीं बना सकता, ना उसके साथ मेरी बेटी एक बीवी की तरह सुकूनभरी जिंदगी बिता सकती है।’

‘यानी आप चाहते हैं, मैं आपकी बेटी का पति बन कर मजबूरी की जिंदगी काटूं? माफ कीजिए, यह मेरे लिए कतई मुमकिन नहीं होगा,’ कुछ तल्खी से माइक ने कहा।

‘फैसला लेने में जल्दबाजी मत करो। अच्छी तरह से सोच-समझ कर फैसला करना। तुम्हारी मां कहां हैं? उनका इलाज कहां चल रहा है?’ मइकल की कमजोर रग पापा ने पहचान ली थी।

‘माइकल चुप रह गया। पापा ने फिर समझाया,
‘अगर तुम मेरा प्रस्ताव मंजूर करते हो, तो समझ लो, तुम आकाश छू सकते हो। अपना हर सपना पूरा कर सकते हो। तुम्हारी मां के इलाज के लिए अमेरिका के नामी डॉक्टर आएंगे। सोच लो, एक ओर सुख और आराम की जिंदगी है, दूसरी ओर अभावों से भरा संघर्षमय जीवन। तुम अपनी मां को वे खुशियां दे सकते हो, जो सोच भी नहीं सकते।’

मइकल के मुकाबले उसकी मां को समझा पाना ज्यादा आसान था। तकलीफों ने उसको समझा दिया था, जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है। उसका बेटा इतने बड़े आदमी का वारिस बने, यह तो सपना था। अपंग बीवी के साथ जिंदगी गुजारना कठिन जरूर है, पर अगर शादी के बाद किसी हादसे में ऐसा हो जाता तो? शायद मां की खातिर माइक ने पापा का प्रस्ताव मंजूर कर लिया। सादे ढंग से हमारी शादी हो गयी। पापा ने माइकल से वचन लिया कि वह हमेशा मेरे साथ रहेगा।’

‘माफ कीजिए एक व्यक्तिगत सवाल पूछना चाहती हूँ, आप दोनों के बीच कैसा रिश्ता था?’

‘नफरत और मजबूरी का।’

‘मतलब?’

‘वह मुझसे नफरत करता था, पर मेरा साथ निभाता उसकी मजबूरी थी। पापा ने अपनी वसीयत में हम दोनों को बराबर का साझीदार बनाया था। वह मुझे तलाक देता, तो पूरी जायदाद मेरे नाम हो जानी थी। मां का कैंसर लंबा खिचता गया। अच्छा खानपान और देखरेख के अलावा नामी डॉक्टरों के इलाज ने उन्हें जिंदगी के कुछ और बरस दे दिए।’

‘माइक कभी तो आपसे कुछ बात करते होंगे?’

‘नहीं, वह मुझसे दूर रहने की कोशिश करता। उससे कभी कुछ पूछना चाहा, तो नजरें नीचे किए जवाब दे देता। कभी सोचती, पति की जगह अगर वह मेरा केअर टेकर होता, तो शायद हम ज्यादा नजदीक होते।’

‘पर उस हालत में वह आपके पैसों और जायदाद का हक कैसे पाता?’

‘ताज्जुब इसी बात का है, उसे पैसों का मोह नहीं था। कार की जगह वह बस से आता-जाता। मैनेजमेंट की पढ़ाई करते हुए किताबें खरीदने की जगह लाइब्रेरी से ला कर किताबें पढ़ता। उसका मौन मुझे खलता, पर उसकी नफरत मेरा दिल जलाती।’

‘आपके पापा ने कुछ नहीं कहा?’

‘पापा बिजनेस में बिजी हो गए। उन्हें माइक पर यकीन था। कभी जी चाहता माइक से चिल्ला कर पूछूं, पापा का प्रस्ताव क्यों मंजूर किया? उसका मौन और आंखों से झांकती नफरत मेरे लिए उसकी सौगात थी। अपनी नफरत वह फूलों में बोता था। फूल मेरे दुश्मन बन गए....।’

‘क्या, फूलों से दुश्मनी? अजीब बात है।’

‘मां की मौत के बाद माइक अपनी नफरत गार्डन में फूल लगा कर निकाला करता। जिस दिन ज्यादा अपसेट होता कुछेक पौधे उखाड़ डालता। कभी-कभी आक्रोश में सूखे फूल-पौधे मेरे सामने डाल देता। वह जताना चाहता, मैं उन सूखे फूल-पौधों की तरह बेजान और बेकार हूं।’

‘अपने पापा से कभी माइक के बारे में बात क्यों नहीं की, जेनी?’

‘बढ़ती उम्र के साथ पापा का स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा था। उन्हें परेशान करना क्या ठीक होता। जब तक वे रहे, माइक को अपने साथ ऑफिस ले जाते। उसके काम की तारीफ करते, पापा के बाद माइक ने ऑफिस जाना बंद कर दिया। हमारा पुराना वफादार मैनेजर काम संभालता हैं।’

‘फिर माइक सारे दिन कया करते थे?’

‘पेंटिंग और गार्डनिंग में डूबा रहता। दीवार की पेंटिग उसी की बनायी हुई है।’

ममता की नजर दीवार पर लगी पेंटिंग्स पर थी। एक में पेंटिंग में एक युवक जंजीरों में पूरी तरह जकड़ा असहाय पड़ा था। ममता की दृष्टि का अनुसरण करती जेनी ने कहा,

‘यह माइकल है।’

‘माइकल इन जंजीरों को तोड़ भी तो सकते थे?’ ममता का प्रश्र स्वाभाविक था।

‘पापा ने उसकी मां की बेहतरी के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी थी। माइक और उसकी मां के लिए पापा ने जो कुछ किया, उसके लिए वह उनका हमेशा अहसानमंद रहा। ये जंजीरें पापा को दिए गए प्रॉमिस से बंधी है। सोचती हूं, माइक से सीधे सवाल क्यों नहीं कर सकी कि ये जंजीरें उसने अपनी मर्जी से मंजूर की थीं। मैंने उसे जबरन नहीं बांधना चाहा फिर मुझसे इतनी नफरत क्यों?’

‘शायद हालात की मजबूरियों की वजह से उनके दिल के प्यार का झरना असमय ही सूख गया हो?’ ममता कुछ कह गयी।

‘ऐसा नहीं था। जूली के लिए उसके प्यार का झरना पूरी तरह से फूट पड़ा था। जूली उसके प्यार से भीगी थी।’

‘जूली कौन थी?’

‘मेरी पुरानी नैनी रिटायरमेंट ले कर गांव चली गयी थी, उसकी जगह मार्था आने लगी। मार्था के साथ उसकी पांच बरस की प्यारी सी पोती जूली आती थी। अनाथ जूली के साथ माइक का मौन मुखर हो उठता। जूली के साथ एक दूसरा ही माइक जीता। उसे गोद में उठा कर चक्कर दिलाता, दोनों हाथों में उछाल कर आकाश छुआता। बाग में तितली सी दौड़ती जूली के पीछे भाग कर उसे हंसाता। गुलाब के पौधे उसने जूली से ही लगवाए थे। मेरे जन्मदिन पर उसके कभी एक भी फूल नहीं दिया, पर बाग का सबसे सुंदर फूल जूली के नाम होता।

‘एक दिन मार्था ने कहा, ‘जेनी बेबी, तुम जूली को अडॉप्ट कर लो। माइक तो इसका पापा बन गया है, तुम मम्मी बन जाओगी।’

‘मैंने मार्था को डपट दिया। उसकी हंसी में कही बात ने मेरे तन-बदन में आग लगा दी। मैं जूली से जलती थी। वह मेरी दुश्मन बन गयी थी।’

‘मेरे दिल की बात जान कर माइक गुस्से से पागल सा हो गया। टयूलिप पूरी बहार पर थे, पर माइक ने सारे खिले ट्यूलिप काट डाले। नफरत जताने का उसका यह खास तरीका था। इतनी नफरत पाने के बावजूद धरती के अंदर दबे ट्यूलिप के बल्ब फिर सिर उठा कर खिल गए। उसकी नफरत की चुनौती उन्हें खत्म नहीं कर सकी।’

‘ओह! शायद इसीलिए आपने कहा था, ये फूल नफरत के जहर से सींचे गए है,’ ममता समझ गयी।

‘तुम सोचोगी फूलों और एक बच्ची से नफरत करनेवाली औरत इंसान कैसे हो सकती है? इसकी वजह है। अकसर जूली को कहानियां सुना कर मेरे लिए वह अपनी नफरत का इजहार करता। उसकी परियों की कहानियों में एक लंगड़ी डायन होती। डायन परियों से नफरत करती, उन्हें सताती। मैं समझ जाती, वह लंगड़ी डायन मैं थी,’ बात कहती जेनी का चेहरा उदास हो आया।

‘आप ऐसा क्यों सोचती हैं? मैंने भी कुछ कहानियां पढ़ी थीं, उनमें परियों को परेशान करनेवाली कोई डायन होती थी,’ ममता ने समझाना चाहा।

‘मेरा अनुभव तुम्हारी बात नहीं मान सकता। मैंने हर पल उसकी आंखों से अपने लिए झांकती नफरत साफ देखी है। जूली के लिए उसके प्यार में मेरे लिए नफरत होती। शायद इसीलिए मैं जूली और फूलों से जलती रही।’

‘एक बात कहूं? यह सच है कि माइक से जो प्यार आपको मिलना चाहिए था, वह जूली के हिस्से में गया, पर वह प्यार तो एक अनाथ बच्ची के लिए ममता का रूप था। शायद माइक को जूली में अपना अतीत दिखता रहा हो, फिर भी आपकी ईर्ष्या स्वाभाविक थी। एक पल को माइक के बारे में सोचिए, उसे क्या मिला?’ अचानक बिना परिणाम सोचे ममता गलत बात कह गयी।

ममता पर गहरी नजर डाल कर जेनी कहती गयी,
‘सब कुछ जानते-समझते माइक ने अपनी मंजूरी दे कर मुझसे रिश्ता जोड़ा था। उसने सिर्फ मेरा अपंग शरीर देखा, मेरे मन में झाकने की कभी कोशिश क्यों नहीं की? मेरा तन नहीं, पर मन भी तो कुछ चाहता रहा होगा? प्यार के दो मीठे बोल की तो हकदार थी मैं, जिंदगीभर सिर्फ उसके हाथ से एक गुलाब पाने के लिए तरसती रही्।’ जेनी का गला रुंध गया।

‘सॉरी मुझसे गलती हो गयी।’

‘अपनी कमी से मैं अनजान नहीं थी, पर मन तो किसी का नहीं मानता। माइक की मौत ने मुझे विक्षिप्त सा कर दिया। आक्रोश मुझ पर हावी था। क्रोध में आ कर गुलाब की क्यारी में पानी तक ना देने की सख्त ताकीद कर दी, पर बिना देखरेख के पौधे पनपते गए, गुलाब खिलते रहे।’

‘शायद इसकी वजह प्यार है। प्यार की ताकत से तो पत्थर पर भी फूल खिल सकते हैं। ये गुलाब माइक के स्नेह के साक्षीहैं।  ’ ममता का कहानीकार कह उठा।

‘गलत कह रही हो। मेरी कहानी सुन कर भी तुम यकीन क्यों नहीं कर पा रही हो, नफरत पा कर भी फूल खिलते हैं।’

‘शायद आप मन के अंदर खिले फूलों की बात कर रही हैं,’ ममता फिर कह बैठी।

‘नहीं, मैं इस बाग के फूलों की बात कह रही हूँ। ये सब मेरे लिए उसकी नफरत के गवाह हैं। एक सच बताऊं, इन फूलों की तरह ही मुझसे नफरत की वजह से तो जीता रहा, पर जूली के प्यार ने उसे खत्म कर दिया।’

‘क्यों, क्या हुआ?’ ममता चौंक उठी।

‘हां, जूली के दिल में जन्म से छेद था। मार्था उसकी तकलीफ नहीं समझ पायी। इलाज में देर हो गयी। जूली की मौत ने माइक को पूरी तरह से तोड़ दिया। जूली की मौत के लिए उसने मुझे ही जिम्मेदार ठहराया। अगर मैंने जूली को अडॉप्ट कर लिया होता, तो उसकी जिंदगी इतनी छोटी नहीं होती।’

‘क्या इस बात में सचाई नहीं थी?’ गलत चोट करती ममता ने दांतों तले जीभ दबा ली।

‘मैं इतना ही जानती हूं, जिंदगी और मौत तय करनेवाला बस ग़ॉड है। काश! माइक भी यह सच मंजूर कर पाता, पर जूली के बिना माइक की जिंदगी बेमानी हो गयी। उसने अपने को कमरे में बंद कर लिया। जिंदगी से बेजार माइक ज्यादा दिन जिंदा नहीं रह सका। आखिरी वक्त तक वह जूली की तस्वीरें बनाता रहा और उन्हीं के साथ हमेशा के लिए सो गया।

‘क्या मैं वे तस्वीरें देख सकती हूं?’

‘नहीं, वह कमरा सील कर दिया है। उन दोनों को कोई डिस्टर्ब ना करे,’ जेनी ना जाने कहां थी।

‘इसका मतलब आप माइक के सें।टीमेंट्स का आदर करती हैं?’

‘मैंने कभी उसका अपमान नहीं किया, पर उसने बदले में कुछ नहीं दिया। हर संडे मैं उसकी कब्र पर उसके प्यार के गुलाब जरूर भिजवाती हूं। शायद वे फूल उसकी आत्मा को सुकून देते हों।’

‘आप खुद गुलाब ले कर नहीं आती?’

‘नहीं, डरती हूं, कहीं मेरे छूने से उन गुलाबों पर उसकी नफरत का रंग ना चढ़ जाए।’

‘आप उसके लिए इतना सोचती हैं, पर माइक ने तो अपनी नफरत जताने के लिए अपने प्यार के गुलाबों और दूसरे फूलों के बीच कैक्टस की कंटीली दीवार खड़ी कर दी है।’ ममता को फूलों के बीच खड़े कैक्टस याद हो आए।

‘कैक्टस की यह कंटीली दीवार माइक ने नहीं, मैंने खड़ी करायी है,’ जेनी कहीं दूर देख रही थी।

‘क्यों, जेनी?’ अब ममता विस्मित थी।

‘इसलिए कि अपने लिए रोपे गए उसकी नफरत के फूलों और जूली के प्यार के गुलाबों के बीच कैक्टस की कंटीली जिंदगी तो मैंने जी हैं। उसने मुझे बहुत नफरत दी, पर मैंने उसे बहुत चाहा था, प्यार किया था.....’

रूमाल से आंखें पोंछती जेनी को देखती ममता स्तब्ध थी।



6 comments:

  1. संवेदन शील रचना, मै भी स्तब्ध हूँ, बहुत खुबसूरत बधाई

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  2. उफ़ ! बेहद मार्मिक्।

    आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  3. बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।

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  4. बहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।

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  5. कहानी ने आपके मन को छुआ, मेरा लेखन सार्थक है। यह एक कड़वा सच हो सकता है कि नफ़रत की आग में जलते इंसान को अपनी छोटी आयु भी बहुत लंबी लग सकती है। मन की कड़वाहट उसे हर पल ज़िंदगी से नफ़रत करने को बाध्य करती है। माइक के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही घटा।अन्य कहानियों पर भी आपकी ऐसी ही प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी। पुष्पा सक्सेना

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