तूफ़ान
‘एक्सक्यूज़ मी, क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ ?’ कॉफ़ी-मग के साथ नज़र उठाती जेनिफ़र को एक हिन्दुस्तानी नौज़वान खड़ा दिखाई दिया। रेस्ट्रा में सैलानियों की भारी भीड़ थी। उस भीड में बस जेनिफ़र के सामने वाली कुर्सी ही खाली थी।
‘ओह, श्योर।’ जेनिफ़र ने हामी भर दी।
आश्वस्ति की साँस लेता युवक अपनी जैकेट कुर्सी की पीठ पर टाँग, आराम से बैठ गया। जेनफ़िर के सामने कॉफ़ी- पॉट और मग रखा था।
‘आप कॉफ़ी लेना चाहेंगे ?’
थैंक्स्। आपने तो काउंटर की भीड़ में जाने से बचा लिया। भारतीयों की पहचान ही मेहमान- नवाज़ी होती है। आप इंडिया के किस शहर से हैं ?’ अपनी बात कहते सुधीर के चेहरे पर मुस्क़राहट आ गई। उसके दोस्तों का कहना था वैसे तो सुधीर एक निहायत शरीफ़, भोला-भाला युवक है, पर बातें बनाने में उस्ताद है।
‘न आप मेरे मेहमान हैं, न मेरा जन्म इंडिया में हुआ है। मैं अमरीकी नागरिक हूँ। कॉफ़ी ऑफर करना एक कर्टसी है, दैट्स ऑल।’ कॉफ़ी का सिप लेती जेनिफ़र की बात ने सुधीर को चुप- सा कर दिया।
‘माफ़ कीजिए, पर आपको देखकर तो कोई भी आपको इंडियन ही कहेगा। हिन्दी में बात भी कितनी आसानी से करती हैं।’
‘इसमें ताज़्जुब की क्या बात है। मेरे पेरेंट्स इंडिया से हैं। मेरा जन्म अमरीका में हुआ है, इसलिए मैं अपने को अमेरिकन कह सकती हूँ। यहाँ जन्म लेने वालों को अमरीकी नागरिकता जन्म से ही प्राप्त हो जाती है।’
‘चलिए, मैं कुछ हद तक तो सही हूँ। आखि़र आपकी रगों में भी खून तो हिन्दुस्तानी है। अपना परिचय देना चाहूंगा, मैं सुधीर आई0आई0टी कानपुर से कम्प्यूटर-इंजीनियरिंग करते ही यहाँ एक अच्छी सॉफ़्टवेयर कम्पनी में जॉब मिल गया। अपने बारे में बताते सुधीर के चेहरे पर हल्का- सा गर्व छलक आया।
‘आजकल तो अमरीका से लोग काम के लिए इंडिया जाते हैं। एनीहाउ, आपके बारे में जानकर खुशी हुई।’
‘आपका परिचय जान सकताहूं, मिस?’
‘अगर अपरिचय काफ़ी नहीं तो, जेनिफ़र हूँ।’ मग रखकर ज़ेनिफ़र ने अपनी कलाई घड़ी पर नज़र डाली।
‘शायद आप ग्लेशियर-टूर पर ले जाने वाली बस का टाइम देख रही हैं। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। अथाबास्का ग्लेशियर का टूर लूँ या यहीं बैठकर दूर से ही नज़ारा देख लूँ। इतनी ठंड में आप बर्फ़ीले ग्लेशियर पर जाएँगी ?’
‘उस अनुभव के बिना यहाँ आने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। वहीं अनुभव लेने तो यहाँ सैलानियों की भीड़ है।’
‘अगर आप जा रही हैं तो मेरा जाना भी ज़रूर बनता है। लड़की होकर भी आप हिम्मत कर रही हैं, तो भला मैं कैसे पीछे रह सकता हूँ।’
‘माफ़ कीजिए, अमरीका में लड़कियों को किसी भी क्षेत्रा में लड़कों से कम नहीं समझा जाता।’
‘सॉरी ! मेरा वो मतलब नहीं था।’ बातें बनाने में उस्ताद सुधीर से ग़लतियां होती जा रही थीं।
‘बस जाने का टाइम हो रहा है, मैं चलती हूँ।’ ज़ेनिफ़र खड़ी हो गई।
‘ओ0के0 मैं भी चलता हूँ, वर्ना मेरी बस छूट जाएगी। तेज़ी से डग भरता सुधीर रेस्ट्रा की कुर्सी पर टांगी अपनी जैकेट लेना भूल कर, जेनिफ़र के आगे हो लिया। कांउटर से दो टिकट खरीद, एक टिकट जेनिफ़र की ओर बढ़ाकर बोला-
‘आपका टिकट मैंने ले लिया है।’
‘थैंक्स। वैसे इस मेहरबानी की ज़रूरत नहीं थी।
जेनिफ़र ने पर्स खोल, पैसे निकाले।
‘रहने दीजिए, क्या फ़र्क पड़ता है, मैं पैसे दे चुका। हमारी इंडिया में अगर कोई पुरूष किसी महिला के साथ है तो पुरूष का फर्ज़ है, पर्स वही खोले।’
‘सॉरी, यह आपका इंडिया नहीं है। किसी अज़नबी से फ़ेवर लेना मुझे पसंद नहीं है।’ जेनिफ़र ने टिकट के पैसे सुधीर को थमा दिए।
रेस्ट्रा ऊँचाई पर था। काफ़ी सीढ़ियाँ उतरने के बाद दोनों बस के पास पहुँचे। बहुत से सैलानी पहले से मौजूद थे। बर्फ़ के ग्लेशियर पर चलने वाली बसें भारी लागत से बनाई गई थीं। सामने फैली बर्फ़ की मोटी चादर का नाम अथाबास्का ग्लेशियर था। जेनिफ़र बोली-
‘जानते हो, अथाबास्का ग्लेशियर को कोलम्बिया आइस फ़ील्ड से बर्फ़ की सप्लाई मिलती है। हर साल करीब तेईस फ़ीट स्नो फ़ॉल होता है। बर्फ़ की गहराई दो सौ सत्तर फ़ीट से एक हजार फ़ीट तक है। यह छह किलोमीटर लंबा है। देखकर कोई नहीं जान सकता यह ग्लेशियर धीमी गति से नीचे आ रहा है।’
‘वाह ! लगता है तुमने तो इस ग्लेशियर के बारे में पूरी रिसर्च की है।’
‘मैं जिस टूरिस्ट- स्पॉट पर जाती हूँ, वहाँ के बारे में पूरी जानकारी लेना मेरी आदत है।’
गुड, चलो बस में बैठते हैं। बाहर तो ठंड से हाथ सुन्न हो रहे हैं।’
‘बाई दि वे, तुम्हारी जैकेट कहाँ है ?’ सुधीर पर निगाह डालती ज़ेनिफ़र ने पूछा।
‘ओह गॉड। वह तो मैं रेस्ट्रा में ही छोड़ आया। अब अगर वापस जाता हूँ तो यह बस मिस हो जाएगी।’ अपने पूरी बाँह के स्वेटर में सुधीर ज़ेनिफ़र के पीछे ज़ल्दी में भागता आ गया था। कुर्सी से जैकेट लेने की याद ही नहीं रही।
‘कोई बात नहीं, ऐसी छोटी-छोटी बातों पर परेशान होना बेकार है। यह आखि़री बस है, तुम्हारे लिए इंतज़ार नहीं करेगी। चाहो तो कल की बस ले लेना।’
‘कल तक रूकना मुश्किल है। मैं लापरवाह इंसान हूँ, सज़ा तो मिलनी ही चाहिए। चलो, यह भी एक अनुभव है। लौटने पर जैकेट मिल जाएगी, न ?’
‘अगर जैकेट किसी ईमानदार इंसान को मिली तो शायद वह रेस्ट्रा के मालिक के पास रख देगा, अगर ऐसा न हुआ तो जैकेट को भूल जाना की बेहतर हैं। वैसे सामान्यतः अमरीकन ईमानदार होते हैं। ग़नीमत है तुम पूरी बांह का स्वेटर पहने हो।
बस में हीटिंग चल रही थी। अंदर आरामदेह तापक्रम था। बस चल पड़ी। साथ बैठी ज़ेनिफ़र से सुधीर ने पूछा-
‘सुना है, ग्लेशियर पर लोग स्नो बॉल बनाकर खेलते हैं। स्नोफ़ाल का खूब मज़ा लेते हैं। मुझे इन बातों का कोई एक्सपींरियंस नहीं है। टेक्सास में तो कभी बर्फ़ नहीं पड़ती।’
‘हाँ, हमारे लिए स्नो या स्नो फ़ाल कोई नई चीज़ नहीं है। शिकाग़ो में रहने वाले बर्फ़ झेलने के आदी होते हैं। हम, स्नो फ़ॉल एन्ज्वॉय करते हैं।’
‘तुम शिकागो में रहती हो ?’
‘रहती थी, अब कहीं और जॉब लेना है।’
‘कहाँ और किस फ़ील्ड में जॉब लोगी ?’
‘ अभी कुछ पता नहीं। ज़ेनिफ़र चुप हो गई।
बस-ड्राइवर अथाबास्का ग्लेशियर के बारे में जानकारी देता जा रहा था। बर्फ़ पर कुछ स्थानों पर फ़्लैग से निशान लगाए गए थे। ड्राइवर ने बताया, उन जगहों में गढ़े हैं, अगर ग़लती से बस उनमें फँस जाए तो बर्फ़ में छिपे गढ़ों से बाहर आना कठिन है। बर्फ़ पर बस में यात्रा एक अद्भुत अनुभव था। जिधर दृष्टि डालो, सफ़ेद बर्फ़ का साम्राज्य था। ग्लेशियर पर एक नियत स्थान पर पहुँच कर बस रूक गई। पहले से पहुँची बसों से उतरे पर्यटक बर्फ़ पर मस्त खेल रहे थे। हल्की स्नो फ़ाल उनके आनंद को बढ़ा रही थी। ज़ेनिफ़र खुश हो गई।
‘वाउ, वी आर लकी। ग्लेशियर पर रूई जैसी स्नोफ़ॉल हो रही है। इसके साथ खेलने में मज़ा आ जाएगा। कम ऑन।’ जेनिफ़र ने सुधीर से बस से उतरने को कहा।
‘नहीं, मैं बस में ही रहूँगा। नीचे बर्फ़ और ऊपर से स्नोफ़ॉल मैं नहीं सह पाउँगा। जैकेट भी तो नहीं पहनी है।'
‘बी ए स्पोर्ट। अगर यह अनुभव नहीं किया तो यहाँ आना बेकार है। चलो, मैं अपनी जैकेट तुम्हें उधार देती हूँ। बात कहती जे़निफ़र ने अपनी जैकेट उतार, सुधीर की ओर बढ़ा दी।
‘नहीं, मुझे यह नहीं चाहिए। बिना जैकेट के तुम इस ठंड में कैसे रहोगी ?’
‘तुम भूल रहे हो। हम ये सब एन्ज्वॉय करते हैं। हम कई दिनों तक जमी रहने वाली बर्फ़ के बीच मज़े से रहते आए हैं। नाउ, कम ऑन।’
सुधीर को अपनी जैकेट पहनने को विवश कर जे़निफ़र ग्लेशियर पर उतर गई। ज़ेनिफ़र का साथ और ग्लेशियर पर खड़े होने का अनुभव सुधीर को रोमांचित कर गया। जेनिफ़र ने बर्फ़ का गोला बनाकर सुधीर पर फेंका तो जवाब में सुधीर ने भी गोला फेंका।
अब सुधीर को भी खेल में मज़ा आने लगा। स्नोफ़ॉल की बढ़ती गति की पर्यटकों को कतई चिंता नहीं थी। ग्लेशियर पर कुछ स्थान फ़्लैग से चिन्हित किए गए थे। टूरिस्ट-गाइड ने चेतावनी दी-
‘उन जगहों में लूप-होल्स हैं। उधर कोई न जाए। पिछले साल दो टूरिस्ट ऐसे ही बर्फ़ के गढ्ढ़े में फंस गए और ज़ान से हाथ धो बैठे।’
चेतावनी के बावजूद एक-दो दुस्साहसी उन चिन्हित होल्स में झाँकने का प्रयास कर रहे थे। स्नोफ़ॉल की तेज़ी बढ़ने लगी थी। रूई के फाए जैसी स्नो की साइज़ और मात्रा बढ़ गई थी। तेज़ सर्द हवा और ठंडा ग्लेशियर सुधीर को डरा गया। बस-ड्राइवर ने आवाज़ लगाई-
‘भारी तूफ़ान के आसार हैं। ज़ल्दी वापस लौटना होगा। ज़ल्दी करो।’
सारे पर्यटक मिनटों में बस में समा गए। बंद शीशों के बाहर तेज़ हवा के साथ गिरती बर्फ़ आतंकित कर रही थी। विज़िबिलिटी इतनी कम हो गई कि बस-ड्राइवर भी चिंतित दिख रहा था। आते समय बस की राह में बताए गए बर्फ़ में छिपे गढ्ढे़, सुधीर को डरा रहे थे। अगर ग़लती से बस किसी ऐसे गढ्ढ़े में फँस गई तो वापसी असंभव थी। जे़निफ़र उसका डर भाँप गई, तसल्ली देती बोली-
‘डरो मत, हम सही-सलामत पहुँच जाएँगे। ऐसी बातें मुझे परेशान नहीं करतीं।’
‘यू आर कूल। मैं ज़ल्दी घबरा जाता हूँ। मेरे दोस्त भी ऐसा ही कहते हैं। थैंक्स गॉड, तुम 0इंग साथ हो।’
ज़ेनिफ़र की बात सच निकली। बस सही-सलामत अपने स्टॉप पर पहुंच गई। यात्रियों ने ताली बजाकर अपनी खुशी ज़ाहिर कर दी।
बस स्टॉप से सड़क के उस पार वाले रेस्ट्रा। में पहुँचने के लिए कई सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती थीं, पर उस तूफ़ान में वही एक शरणस्थल था। सीढ़ियाँ पार करने में तूफ़ान बाधा डाल रहा था। किसी तरह तूफ़ान से लड़ते हुए दोनों रेस्ट्रा के साथ वाली गिफ़्ट शॉप में पहुंचे ही थे कि बत्ती गुल हो गई। लोगों में हड़कम्प- सा मच गया। टॉर्च की रोशनियाँ झिलमिला उठीं।’
‘अब क्या होगा ? पता नही जैकेट न जाने कहाँ होगी ?’भयभीत सुधीर ने पूछा।
‘अब अपनी जैकेट को तो भूल ही जाओ। किसी और का भला हो जाएगा।’ ज़ेनिफ़र ने परिहास किया।
‘जैकेट की नहीं, मैं आगे की सोच रहा हूँ, रात कहाँ काटेंगे ?’
‘यहाँ जो भी गिफ़्ट शॉप या रेस्ट्रा हैं , वहाँ भी तो इंसान काम करते हैं। हमे धक्के देकर तो बाहर नहीं निकालेंगे। यहीं किसी कोने में रात काटनी होगी। चलो अपने लिए कोई कोना ढूँढ़ लें।'
जे़निफ़र के हाथ में एक पेननुमा टॉर्च था। उसकी हल्की रोशनी के सहारे दोनों ने शॉप के पीछे एक कोने में जगह ढूँढ़ ली।
रात गहराती जा रही थी। हीटिंग बंद थी, ठंड बढ़ती जा रही थी। सुधीर ने जैकेट ज़ेनिफ़र को दे दी, पर सर्दी सह पाना कठिन था। सुधीर के दाँत बज उठे। उनींदी ज़ेनिफ़र ने निःसंकोच सुधीर को अपने शरीर से सटा लिया। उस शरीर के स्पर्श ने जैसे सुधीर को जीवन-दान दे दिया। सुधीर के हाथ अनायास ही चंचल हो उठे। सुधीर ने पूरी ताक़त से जेनिफ़र को भींच लिया और उसके ओंठों पर चुंबन करने का दुस्साहस कर बैठा। जे़निफ़र तड़प कर उठ बैठी-
‘यू रास्कल। मैंने इंसानियत के नाते तुम्हारी हेल्प करनी चाही, पर तुमने उसका ग़लत मतलब निकाला। नाउ गो अवे फ़्राम हियर।’
‘सॉरी, ज़ेनिफ़र। अनजाने में ग़लती हो गई। मैं अपने पर कंट्रोल नहीं रख सका।’ सुधीर दयनीय हो आया।
‘नहीं, मैं सब समझती हूँ। तुमने सोचा होगा, अमरीका में पली-बढ़ी ज़ेनिफ़र को सेक्स से कोई परहेज़ नहीं होगा। एक बात अच्छी तरह से समझ लो, मैं इस देश की हवा में पली-बढ़ी ज़रूर हूँ, पर मेरे अंदर एक विशुद्ध हिन्दुस्तानी लड़की साँस लेती है। मेरी माँ ने हमेशा सही-ग़लत की शिक्षा दी है। शादी के पहले सेक्स का अनुभव ग़लत बात है। शायद हिन्दुस्तान में तुम्हें यह बात नहीं बताई गई।’
‘यकीन करो, ज़ेनिफ़र मैं तुम्हारा आभारी हूँ। मैं भी जानता हूँ, शादी के पहले सेक्स गुनाह है। तुमने मुझे इस गुनाह से रोक दिया। अपनी ग़लती के लिए मुझे जो चाहो सज़ा दो। मैं कोई भी प्रायश्चित करने को तैयार हूँ।’ सुधीर ने सच्चाई से कहा।
‘तुम जैसे इंसान को सज़ा मैं नहीं दे सकती। तुम्हारी सज़ा भगवान तय करेगा। अब तुम्हें एक पल भी सहना, मेरे लिए सज़ा होगी। प्लीज़ जाओ।’
उदास सुधीर थोड़ी दूरी पर एक खाली कोने में बैठ गया। ठंड से शरीर अकड़ा जा रहा था। बाहर से तेज़ हवा खिड़कियों के शीशे तोड़ने की नाकाम कोशिश कर रही थीं। पता नहीं कब सुधीर संज्ञा खो बैठा।
होश आने पर सुधीर ने अपने को एक हॉस्पिटल में पाया।
‘मैं यहाँ कैसे आया ?’ पास खड़ी नर्स से सुधीर ने पूछा।
‘कोई जे़निफ़र नाम की लड़की थी। आपके लिए यह नोट दे गई है।’ नर्स ने एक कागज़ पकड़ा दिया। काग़ज की सुंदर लिखाई को सुधीर एक साँस में पढ़ गया-
‘सॉरी। हिन्दुस्तानी किसी का बुरा नहीं चाहते। कल गुस्से में कहा था, भगवान तुम्हें सज़ा देंगे। सुबह शोर मचा था, ठंड के कारण कोई बेहोश हो गया है। तुम्हें बेहोश देखकर अपने को कर्स किया। उम्मीद है तुम ज़ल्दी ठीक होकर वापस चले जाओगे। तुम्हारे लिए अपनी जैकेट छोड़े जा रही हूँ। एक बात हमेशा याद रखना, कभी कोई ऐसी ग़लती मत करना, जिसके लिए शर्मिन्दा होना पडे़। यह बात निभा सको तो इसे ही अपनी सज़ा समझना।'
विदा,
ज़ेनिफ़र
स्तब्ध सुधीर ज़ेनिफ़र का नोट देखता रह गया। काश् ! जे़निफ़र जान पाती, सुधीर उन गए-गुज़रे युवकों में से नहीं है जो ऐसा जघन्य अपराध करे। वह तो उस तूफ़ान का नतीज़ा था, जिसने उसके भीतर तू़फ़ान छेड़ दिया। क्या अब वह कभी ज़ेनिफ़र से फिर मिल सकेगा ? अगर भगवान उसकी सच्चाई जानता है, तो ज़ेनिफ़र उसे ज़रूर मिलेगी, सुधीर को पूरा विश्वास है।
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