यह कहानी महात्मा गौतम बुद्ध के बचपन की है। बालक गौतम का हृदय कोमल था। उसमें जीव-जंतुओं के प्रति करूणा थी। उसका चचेरा भाई देवदत्त क्रूर था। उसे जानवरों का शिकार करने में आनंद आता था। एक बार देवदत्त ने हंस पक्षी को मार गिराया और गौतम ने उसकी जान बचाई। देवदत्त कहता है- ”यह मेरा शिकार है। मुझे दे दो।“ गौतम कहता है- ”नहीं ! मैंने इसकी जान बचाई, यह मेरा है।“ देखो कौन जीतता है।,
सुबह का समय था। ठंडी-ठंडी हवा बह रही थी। मगध के राजकुमार सिद्धार्थ राजमहल के बाग में घूम रहे थे। राजकुमार को लोग प्यार से गौतम पुकारते थे। उनके साथ उनका चचेरा भाई देवदत्त भी था। गौतम बहुत दयालु स्वभाव के थे। वह पशु-पक्षियों को प्यार करते, पर देवदत्त कठोर स्वभाव का था। पशु-पक्षियों के शिकार में उसे बड़ा आनंद मिलता।
बाग बहुत सुंदर था। तालाब में कमल खिले हुए थे। फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मॅंडरा रही थीं। पेड़ों पर चिड़ियाँ चहचहा रही थीं। राजकुमार गौतम को देखकर बाग के खरगोश और हिरन उनके चारों ओर जमा हो गए। गौतम ने बड़े प्यार से उन्हें हरी-हरी घास खिलाई। उसी बीच देवदत्त ने एक तितली पकड़ उसके पंख काट डाले। गौतम को बहुत दुख हुआ-
”यह क्या देवदत्त, तुमने तितली के पंख क्यों काटे?“
”मैं इसे धागा बाँधकर नचाऊंगा। बड़ा मजा आएगा।“ देवदत्त हॅंस रहा था।
”नहीं देवदत्त, यह ठीक बात नहीं है। भगवान ने तितली को पंख उड़ने के लिए दिए हैं। उसके पंख काटकर तुमने अपराध किया है।“ गौतम ने कहा।
”अगर तुम तितली और चिड़ियों के बारे में सोचते रहे तो राजा कैसे बन सकोगे गौतम? तुम खरगोश से खेलो, मैं किसी पक्षी का शिकार करता हूँ।“ हॅंसता हुआ देवदत्त बाग के दूसरी ओर चला गया।
गौतम सोच में डूबे बाग में घूम रहे थे। तभी आकाश में सफ़ेद हंस उड़ते हुए दिखाई दिए। सारे हंस पंक्ति बनाकर उड़ रहे थे। उनकी आवाज समझ पाना संभव नहीं था। ऐसा लग रहा था जैसे वे खुशी के गीत गा रहे हों। गौतम हंसों को प्यार से देख रहे थे। अचानक हंस चीख पड़े।
हंसों की पंक्ति टूट गई थी। अचानक खून से लथपथ एक हंस गौतम के पाँवों के पास आ गिरा। हंस के शरीर में एक बाण लगा हुआ था। घायल हंस कष्ट से कराह रहा था। गौतम को लगा मानो हंस उनसे दया की भीख माँग रहा हो। हंस के कष्ट से गौतम को बहुत दुख हुआ। वे सोचने लगे-
”कुछ देर पहले यह हंस कितना खुश था। अपने साथियों के साथ गीत गाता, आकाश में उड़ रहा था। एक बाण ने इसे इसके साथियों से अलग कर दिया। यह अन्याय किसने किया?“
गौतम ने बड़ी सावधानी से उसके शरीर से बाण बाहर निकाल दिया। उसके घाव को धोकर साफ किया। प्यार पाकर हंस ने गौतम की गोद में सिर छिपा लिया।
तभी बाग के दूसरी ओर से देवदत्त तेजी से दौड़ता हुआ आया। उसे आता देख, हंस डर से सिहर गया। गौतम के पास आकर देवदत्त ने तेज आवाज में कहा-
”सिद्धार्थ, यह हंस मेरा है। मैंने इसे बाण मारकर गिराया है।“
”नहीं देवदत्त, यह हंस मेरी शरण में आया है। यह हंस मेरा है।“ गौतम ने शांति से जवाब दिया।
”बेकार की बातें मत करो गौतम। मैंने इसका शिकार किया है। हंस मुझे दे दो।“ देवदत्त ने गुस्से से कहा।
”मैं यह हंस तुम्हें नहीं दूंगा देवदत्त। इसे मैंने बचाया है। इस हंस पर तुम्हारा कोई अधिकार नहीं है।“ गौतम अपनी बात पर अटल थे।
गौतम और देवदत्त के बीच बहस छिड़ गई। दोनों ही अपनी बात पर अड़े थे। अंत में देवदत्त ने कहा-
”ठीक है, चलो महाराज के पास। वे ही हमारा न्याय करेंगे।“
दोनों बालक गौतम के पिता महाराज शुद्धोधन के पास पहुंचे। देवदत्त बहुत क्रोध में था, पर गौतम शांत थे।
देवदत्त ने महाराज से कहा-
”महाराज, मैंने आकाश में उड़ते इस हंस का शिकार किया है। इस हंस पर मेरा अधिकार है। मुझे मेरा हंस दिलाया जाए।“
महाराज ने गौतम से कहा-
”राजकुमार गौतम, तुम्हारा भाई ठीक कहता है। शिकार किए गए पक्षी पर शिकारी का हक होता है। देवदत्त का हंस उसे दे दो।“
”नहीं महाराज, मारने वाले से बचाने वाला ज्यादा बड़ा होता है। देवदत्त ने इस हंस के प्राण लेने चाहे, पर मैंने इसकी जान बचाई है। अब आप ही बताइए, इस हंस पर किसका अधिकार होना चाहिए?“ गौतम ने कहा।
महाराज सोच में पड़ गए। उन्हें गौतम की बात ठीक लगी। प्राण लेने वाले से जीवन देने वाला, अधिक महान होता है। उन्होंने कहा- ”गौतम ठीक कहता है। इस हंस के प्राण गौतम ने बचाए हैं, इसलिए इस हंस पर गौतम का अधिकार है।“
क्रोधित होकर देवदत्त ने प्रश्न किया- ”अगर हंस मर जाता तो क्या आप यह हंस मुझे दे देते, महाराज?“
”हाँ, तब यह हंस तुम्हारा शिकार होता और तुम्हें तुम्हारा हंस जरूर दिया जाता।“ बड़ी शांति से महाराज ने समझाया।
गौतम ने प्यार से हंस को सीने से चिपटा लिया। हंस ने खुश होकर चैन की साँस ली। महाराज ने हंस की प्रसन्नता देखी। अचानक उनके मुंह से निकला-भक्षक से रक्षक बड़ा है। अर्थात् मारकर खाने वाले से रक्षा करने वाला महान है।
बाद में राजकुमार गौतम ही महात्मा गौतम बुद्ध ने सब प्राणियों को प्यार करने की सीख दी। विश्व को अहिंसा और शांति का संदेश दिया। गौतम बुद्ध को लोग आदर से भगवान बुद्ध भी कहते हैं। वे सचमुच महान थे।
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