मम्मी और पापा में आज सुबह से फिर ठन गई हैं। दोनों का अहं हमेशा आड़े आ जाता है। पापा फिर रजनी आंटी के घर पाँच दिन रहकर आए हैं। पापा का आक्रोश-भरा स्वर जोर से सुनाई पड़ रहा है, ”जाऊंगा-हजार बार जाऊंग॥ मैंने कोई पाप नहीं किया है। मेरे अपने हैं वे लोग-यहाँ तो गैरों को गले लगाया जा रहा है।“
जब से पापा आए हैं मम्मी आहत हैं। विवाह के पन्द्रह वर्षो बाद भी उनकी स्थिति में जरा-सा भी परिवर्तन नहीं आया है। रजनी आंटी ने मम्मी का हज़ार बार अपमान किया है, जान-बूझकर मम्मी की उपेक्षा की है, हमें तिरस्कृत किया है। मम्मी की उपेक्षा और अपमान एक बार पापा ने महसूस कर कहा भी था,
”ठीक है अब रजनी से कोई नाता नहीं रखूंगा“। कितनी ढेर सारी खुशी और आश्वस्ति मम्मी के मुख पर छलक आई थी! पूरे दिन उमगती, गीत गुनगुनाती रही थीं। पर उस आश्वासन के बाद भी पापा क्यों रजनी आंटी के पास जाते रहे? पापा ने अपनी प्राँमिस क्यों तोड़ा? उनके वहाँ जाने से मम्मी का मुख कुम्हला गया-कितनी असहाय दिखती हैं मम्मी!
मम्मी के बेडरूम से उनकी सिसकियाँ सुनाई पड़ रही है। भयभीत रेखा जागकर भी बिस्तर में दुबकी हुई है। नन्हीं-सी रेखा मुझ पर कितनी निर्भर हो गई है! मम्मी को अपनी नौकरी और ढेर सारी समस्याओं से ही फुर्सत कहां मिल पाती है। हम दोनों स्कूल, घर-बाहर की न जाने कितनी बातें कर डालते हैं। कभी हम दोनों की बातों में से रेखा की बातों के कुछ अंश अगर मम्मी की पकड़ में आते हैं तो उन्हें कितना आश्चर्य होता है- ”नन्हीं-सी रेखा इतनी ढेर सारी बातें कैसे करती है?“ हम दोनों ने मिलकर मम्मी को कितने अच्छे ढंग से अनालाइज किया है। मम्मी न जाने क्यों कुछेक हीन ग्रन्थियों से ग्रसित हैं, उनमें से एक सर्वोपरि है कि मम्मी को खूब महत्व मिले। शायद पापा से मिली उपेक्षा ने इस ग्रन्थि को और भी दृढ़ कर दिया है।
मम्मी हमेशा कहती हैं पापा ने व्यर्थ ही विवाह किया, उन्हें पत्नी की आवश्यकता ही नहीं थी। मम्मी के अनुसार पापा पर रजनी आंटी इस तरह हावी रहीं कि उन्होंने हर बात में मम्मी को रजनी आंटी से ही तौला। कई बातों में मम्मी, रजनी आंटी से भारी पड़ती थीं, पर पापा ने कभी जानने की कोशिश ही नहीं की थी। मम्मी बताती हैं, ”बाबा भी दादी की सदैव अवहेलना करते थे, इस बात के लिए पापा, बाबा के प्रति कभी सदय न हो सके थे।“ फिर अपने जीवन में पापा वही भूल क्यों दोहरा रहे हैं? चाचा, ताऊजी ने शायद इसीलिए अपनी पत्नियों को आवश्यकता से अधिक महत्व दिया, पर मम्मी को वह आदर-स्नेह पापा से कभी क्यों नहीं मिल सका?
मम्मी-पापा जब खुश रहते हैं-घर स्वर्ग लगता है, पर काँच कब चटख जाए का भय हमेशा मुझ पर हावी रहता है। छुट्टियों में मम्मी ने काश्मीर जाने का प्रोग्राम बनाना चाहा था, पर मैं टाल गई थी। कारण जान मम्मी का मुख घने अवसाद से काला पड़ गया था-
”वहाँ जाकर भी तुम्हारा और पापा का झगड़ा होगा।“ उस समय उदास मम्मी पर कितना तरस आया था-मानो हम भी उन्हें अपराधी करार दे गए थे।
पापा की उपेक्षा का जहर मम्मी पीती रही हैं। मम्मी कहती हैं-
”कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता है, छोड़ना पड़ता हैं।“
मम्मी अपना अतीत, अपना सब कुछ छोड़ कर पापा को चाहती थीं, पर पापा क्यों मम्मी की पकड़ से हमेशा बाहर रहे? न जाने कितनी बार मम्मी हमारे सामने रो पड़ीं,
”इन्हें मैं कभी न पा सकूंगी, अपना सब कुछ देकर कुछ भी न पा सकी। एकदम रीती रह गई हूँ मैं।“
मम्मी ने जब भी पापा के अन्याय का विरोध करना चाहा, पापा ने मम्मी से बात करना बन्द कर दिया। पापा का तिरस्कार मम्मी के रक्त में बहता है। मम्मी दिल से बहुत उदार हैं, कोई जरा-सा भी उनके लिए करे मम्मी अपने प्राण देने को तत्पर हैं। पापा भी बहुत उदार हैं, पर न जाने क्यों मम्मी के प्रति पापा सदैव अनुदार रहे। मम्मी को पापा का न्याय नहीं मिल सका।
मम्मी ‘को-एड’ काँलेज में पढ़ी थीं। अपने समय की बेहद स्मार्ट, मेधावी छात्रा थीं। रजनी आंटी ने मम्मी को देखते ही पापा से कहा था,
”बहुत तेज है, तुम्हें तो बेच खाएगी।“
तनिक इतरा कर हल्की मुस्कान ला और भी जोड़ा था, ”वह तो हम ही थे इस आसानी से तुम्हारे बहकावे में आ गए, ये तो पूरा घाघ दिखती है।“ शायद उसी दिन पापा ने गाँठ बाँध ली थी- मम्मी को अंगूठे तले धर, रजनी आंटी को अपने पुरूषत्व से परिचित करा देंगे।
विवाह के बाद घर में सबको मक्खन-ब्रेड मिलती, पर मम्मी को रात की रोटी अचार के साथ दी जाती। चतुर दादी को पापा का रूख जो पता लग गया था। माँ के घर मम्मी ने कभी बासी रोटी चखी भी न थी। न जाने कितने आँसुओं के साथ बासी रोटी गले से नीचे उतारती थीं मम्मी। मम्मी एक बार अस्वस्थ थीं। स्थिति की गम्भीरता देख डाँक्टर ने उन्हें एडमिट कर लिया था। पूरा दिन उपवास में बिता मम्मी संध्या को पापा के पहुँचने की राह ताकती रही थीं। संध्या को पापा के स्थान पर उन्हें लाने पापा का चपरासी पहुंचा था। घर पहुँच पता लगा था रजनी आंटी कुछ अस्वस्थ थीं, अतः पापा उन्हें कार से शहर के किसी विशेषज्ञ डाँक्टर के पास ले गए थे। पता नहीं उसी दिन मम्मी अपने को समाप्त क्यों नहीं कर सकी थीं!
कर्तव्यपालन की भावना मम्मी में कूट-कूट कर भरी हुई थी। अपने ऊपर खर्च उन्हें अपव्यय प्रतीत होता था। रिक्शे में पैसे व्यर्थ न जाएँ की भावना से स्कूल पैदल जाती थीं। मेरे जन्म के बाद मम्मी को भूखे रहना पड़ता था- ”बच्ची है स्कूल में भूख लगती है।“ मम्मी पापा से भयवश यह भी नहीं कह पातीं कि उन्हें मेरा भी तो पेट भरना था। बासी रोटी खा पूरे दिन भूखी रह शिशु का पेट कैसे भर सकेंगी? मम्मी को अपना वेतन रखने का भी अधिकार नहीं था। एक बार साहस कर अपने वेतन में से पचास रूपए धर मम्मी अपना वेतन नहीं देगी तो घर का खर्च कैसे चलेगा? सचमुच मम्मी सबके लिए पैसा कमाने की मशीन ही रहीं, उनके लिए कब किसने सोचा?
रेखा के जन्म के समय डाँक्टर ने मम्मी को पूर्ण विश्राम के निर्देश दिए थे। इसके पूर्व मम्मी कई बार अस्वस्थ हो चुकी थीं, अतः डाँक्टर ने पूरी पर्वाह की कड़ी चेतावनी दे रक्खी थी। चाचा का विवाह आ गया, पापा के पास दादी के आँर्डर आ गए ”रूपया लेकर फौरन पहुंचो।“ मम्मी का पूरा वेतन पापा ले गये थे। पैसे देती मम्मी के मुंह से निकल गया था-
”लड़के के विवाह में भी पूरा पैसा दे रहे हो, कल को अगर मेरे आँपरेशन की जरूरत पड़ी तो.......? मम्मी बात पूरी भी न कर सकी थीं कि पापा दहाड़ उठे थे। भयभीत मैं मम्मी के सीने में सिर छुपा रो पड़ी थी। मम्मी की इच्छा के विरूद्ध पापा मुझे भी चाचा की शादी में ले गए थे। मम्मी का कातर चेहरा मुझे टुकुर-टुकुर ताकता रह गया था। अगर मम्मी का किसी को भी ख्याल होता तो चाचा का विवाह दो-चार महीनों को क्या टाला नहीं जा सकता था? मैं क्यों गई थी? अगर मेरे पीछे मम्मी को कुछ हो जाता तो? शादी की धूमधाम में मम्मी कहाँ थीं? मम्मी कैसी होंगी- क्या एक क्षण को भी पापा सोच सके थे? विवाह में आई स्त्रियाँ, जब अपने बच्चों को सजाती-सॅंवारतीं तो रोने का जी कर आता था। मम्मी की जब रजनी आंटी हॅंसी उड़ातीं, तो मैं क्रुद्ध हो भाग जाती थी, पर पापा ने कब मेरे भागने पर ध्यान दिया था? पता नहीं रजनी आँटी के साथ पापा इतने खुश क्यों रहते थे, और गुस्सा तो मानो वह जानते ही नहीं थे।“
हम जैसे-जैसे बड़े होते जा रहे हैं, मम्मी को नैतिक बल मिलता जा रहा है। अब वह दादी से भी उतना नहीं डरती। पहले मम्मी को यही डर लगता था- पापा उनका परित्याग न कर दें। पापा कई बार ऐसा कह चुके थे। पिछली बार ताऊजी के यहाँ से लौटते समय जब पापा ने फिर अलग रहने की बात दोहराई थी तो मम्मी का मुंह कितना उतर गया था! मम्मी ने कभी पापा का विरोध करने का साहस नहीं किया क्योंकि उनकी एक बहन परित्यक्ता का जीवन झेल रही थीं। इसी दुर्बलता का पापा हमेशा फायदा उठा, मम्मी के घर के इस अभिशाप की याद दिलाते रहे। मम्मी हमेशा दबती रहीं।
पापा से इतनी उपेक्षा पाकर भी मम्मी अन्य लोगों के मध्य अपनी वाक्पटुता, मुखर व्यक्तित्व के कारण बहुत लोकप्रिय हो जाती हैं। पापा के प्रति कई पुरूषों की आँखों में ईर्ष्या स्पष्ट झलकती है। स्वंय रजनी आंटी के पति मम्मी की प्रशंसा करते नहीं थकते। पापा, मम्मी मे वह सब क्यों नहीं देख पाते, जो और लोग देखते हैं।
पापा का लखनऊ ट्रान्सफ़र हो गया। मम्मी ने निर्णय लिया जब तक उन्हें वहाँ दूसरी नौकरी नहीं मिलेगी, वह नहीं जायेंगी। पहली बार पापा के ट्रान्सफ़र पर म्ममी ने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी थी, आज तक उसके लिए उन्हें पछतावा है। इस बार मम्मी ने अपना निर्णय स्वयं लिया है। निखिल अंकल ने पापा को किसी प्रकार की चिन्ता न करने का पूर्ण आश्वासन दिया है। मम्मी के सबसे बड़े प्रशंसक निखिल अंकल हैं। पापा के जाने के बाद से निखिल अंकल का घर पर आना बढ़ता ही जा रहा है। जब भी निखिल अंकल की गाड़ी आती है, मैं अपने कमरे का दरवाजा जोरों से बन्द कर देती हूँ। कई बार मम्मी ने टोका भी है, पर न जाने क्यों उनके साथ मम्मी का हॅंसना असह्म हो जाता है।
पापा की अनुपस्थिति में निखिल अंकल हमारे अभिभावक से बनते जा रहे हैं। मेरी पढ़ाई में रूचि लेते हैं, पर उनकी बताई हर बात का ठीक उल्टा करना मानो मेरा उद्धेश्य हो गया है। निखिल अंकल रोज-रोज चले आते हैं, क्या एक दिन भी घर पर रहना अच्छा नहीं लगता उन्हें? बार-बार निखिल अंकल का फ़ोन आता है। उन्हें क्या और कोई काम नहीं है? मम्मी की इतनी परवाह रखने की उन्हें क्या जरूरत है? मम्मी की हर बात पर यूं मुग्ध होना क्या अच्छा लगता है? मम्मी के मुंह से निकली हर बात पूरी करना, शायद आँफ़िस के काम से भी अधिक महत्वपूर्ण है। मम्मी क्यों छोटे-छोटे कामों का दायित्व भी अंकल को देती हैं? क्या मैं वह काम नहीं कर सकती? मम्मी क्यों नहीं समझतीं, किसी के एहसान तले दब उनका अहं कब तक जिन्दा रह सकेगा?
पिछली बार जब पापा लखनऊ से आए थे, निखिल अंकल को लेकर मम्मी और पापा में कुछ कटु बातें हुई थीं। मम्मी कितना रोई थीं! घर में जब तक पापा रहे, तनाव बना रहा। निखिल अंकल पर कितना क्रोध आया था! यह सच है-पापा मम्मी के प्रति सदैव अनुदार रहे, पर पिता के रूप में हमारे लिए उनके हृदय में अगाध स्नेह है। पहली बार लगा, पापा अन्दर से टूट गए हैं। ऊपर से वह मम्मी को डाँटते रहे, क्रोध करते रहे, पर स्वयं कहीं गइराई में वह बहुत आहत थे। क्या मम्मी ने अपनी उपेक्षा का प्रतिशोध लिया है? नहीं, मम्मी कभी ऐसा नहीं कर सकतीं।
शायद मम्मी अपनी जिस उपेक्षा के ठूंठ को वर्षो से पालती आई थीं, निखिल अंकल के छलकते स्नेह ने उस ठूंठ को हरे-भरे पत्तों से पुष्पित और पल्लवित कर दिया था। पापा की अनुपस्थिति में मम्मी का व्यक्तित्व कितना सहज हो उठा था! हर बात में अपनी बुद्धिमत्ता, हाजिर-जवाबी, परिहास से मम्मी आश्चर्यान्वित कर देती हैं। मम्मी के इस नए व्यक्तित्व से पापा सर्वथा अपरिचित ही क्यों रह गए? मम्मी निखिल अंकल के सामने कितनी छोटी-सी, दुलराई जाने जैसी लड़की-सी क्यों लगती हैं? पापा के सामने तो वह एकदम गम्भीर प्रौढ़ा दिखती हैं।
पिछले दो दिनों से पापा, मम्मी से बात नहीं कर रहे हैं। मम्मी कभी हमारे सामने रो रही हैं तो कभी पापा की मनुहार करती दीखती हैं। मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रही हूँ-एक मन कहता है, मम्मी जिस आग में जीवन-भर जली हैं, आज कुछ देर उसकी ज्वाला में पापा को भी दहकने दो। पर दूसरी ओर पापा के प्रति बहुत सहानुभूति हो रही है। कुछ दिन पहले एक कहानी पढ़ी थी-पति-पत्नी और दो बच्चों का सुखी परिवार था। पति ट्रान्सफ़र पर दूसरे शहर चला गया। बच्चों की पढ़ाई के कारण पत्नी उसी शहर में रह गई थी। पति के घर आने के दिन पत्नी और बच्चे दरवाजे पर प्रतीक्षा में दृष्टि निबद्ध किए रहते, हर आहट पर कान सतर्क हो जाते। धीरे-धीरे प्रतीक्षा में उत्सुकता के स्थान पर उदासीनता आती गई। पत्नी को शायद प्रेमी मिल गया था और बच्चे अपने में मस्त हो गए थे। न जाने क्यों यह कहानी पढ़ते ही मैं भयभीत हो गई थी। कहानी सुन, मम्मी उपेक्षा से हॅंस दी थीं, पर क्या मम्मी अब भी पापा की उतनी ही उत्सुकता से प्रतीक्षा करती थीं?
हर झगड़े में पापा, मम्मी पर सदैव हावी रहे हैं। सदा अपने प्रति किए गए अन्याय की दुहाई देने वाली मम्मी इस बार न जाने क्यों मौन हैं। पापा की हर बात में निखिल अंकल को ले तीखे व्यंग्य हैं। निखिल अंकल का घर आना एकदम बन्द हो गया है। मम्मी से पूछने पर कोई उत्तर नहीं मिला। पापा ने निखिल अंकल के लिए जिन शब्दों का प्रयोग किया, उससे मन गहरी विरक्ति से भर गया है। पापा की अनुपस्थिति में हमारी बीमारी, कठिनाइयों में अंकल ने जो कुछ किया है, वह यूं आसानी से अस्वीकार कर पाना, मम्मी को कठिन है। मम्मी क्यों अंकल पर इतनी निर्भर हो गई थी?
मेरी परीक्षाएँ सिर पर आ पहुँची हैं-मन इस तरह उलझा है कि ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल है। मम्मी क्यों इतनी भावुक-इतनी कल्पनाशील हैं? क्यों उन्होंने ढेर सारे सपने देखे थे? जीवन की वास्तविकता झेलने के लिए काश मम्मी व्यावहारिक बन पाती! मम्मी हमसे कहती हैं-
”सेंटीमेंटल होना मूर्खता है। किसी को भी आवश्यकता से अधिक अपनत्व देना या लेना मूर्खता है।“ फिर अपने जीवन में मम्मी यही गलती क्यों करती रहीं?
मम्मी शायद चुप हो गई है। पापा रामू को चाय लाने को पुकार रहे हैं। बेडरूम से निकल कर मम्मी किचेन में गई हैं। कुछ भी होने पर मम्मी, पापा की पसन्द, उनकी आवश्यकता कभी नहीं भूल सकतीं। शायद दोपहर तक पापा और मम्मी में सन्धि हो जाएगी और जब हम दोपहर में स्कूल से वापस लौटेंगे, मम्मी खिले मुख से हमें बताएँगी-
”पापा ने अपनी गलती मान ली है, अब वह रजनी आंटी के घर कभी नहीं जायेंगे-उन्होंने वादा किया है।“
बस इस छोटी-सी खुशी को मुट्ठी में दबाए मम्मी , उल्लसित मन से शाम को पिक्चर और रात में बाहर डिनर का प्रोग्राम बना डालेंगी। हम सब बहुत उत्साह से एक अत्यन्त सुखी परिवार के रूप में बाहर जायेंगे, पर मम्मी-पापा नहीं जानते, रेखा और मेरा हृदय धड़कता रहता है-न जाने कब काँच चटख जाए-न जाने किस पल यह सुख-स्वप्न टूट जायेगा और हम दोनों सहमे-सिमटे, फिर कभी मुट्ठी-भर खुशी पाने की प्रतीक्षा में, अपने कमरे में दुबक जाएँगे।
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