मम्मी....... मम्मी ......... चोर।
सोनू की आवाज पर सब चौंक पड़े थे। तत्परता से उठती सविता की दृष्टि कम्पार्टमेंट के फर्श पर बैठे ढेर सारे आदमी-औरतों पर पड़ी थी। न जाने कब वे सब आकर उस कम्पार्टमेंट में बैठ गए थे।
कालका से शिमला के लिए एक पैसेंजर पौने चार बजे सुबह चली थी, उस समय तक उस कम्पार्टमेंट में बस उन्हीं का परिवार था। खाली कम्पार्टमेंट में पीछे की सीट पर पैर फैला लेटते राकेश ने सुतुष्टि की साँस ली थी।
”वाह, ये तो बढ़िया रहा। चलने से पहले रेलवे. टाइमटेबल में तो इस ट्रेन का नाम ही नहीं देख पाया।“
”तुम्हें ठीक से रेलवे टाइमटेबल देखना आता ही कहाँ है?“ सामान पर दृष्टि डालती सविता ने परिहास किया था।
”असल में इस ट्रेन का दिल्ली से आने वाली ट्रेनों के साथ कनेक्शन नहीं है, इसीलिए पैसेंजर कम आते हैं।“
कुली ने ठीक ही कहा था, ”गाड़ी प्लेटफार्म पर रात दस-साढ़े दस बजे ही लग जाती है। आराम से दरवाज़ा बन्द कर सो रहिएगा साहब।“ खाली बोगी देख राकेश ने उसे अच्छी बख्शीश भी दे डाली थी।
बैग से चादर और कम्बल निकाल सविता ने पहले बच्चों के सोने की व्यवस्था कर, राकेश के लिए कम्बल और बेड-कवर बढ़ाए थे।
शायद लेटते ही उन्हें नींद आ गई थी। शिमला की ओर बढ़ती ट्रेन में ठंडी हवा के झोंके उन्हें गहरी नींद में सुला गए थे। सोनू की डरी आवाज ने सबको जगा दिया था।
”ऐ, इस डिब्बे में कैसे आए तुम लोग! देखते नहीं, ये रिजर्व बोगी है।“ राकेश ने कड़कती आवाज में कहा था।
”हाय राम, इन्होंने तो एक तिल भी जगह नहीं छोड़ी है, बाथरूम जाने तक का रास्ता नहीं है।“ सविता भुनभुनाई थी।
”अरे कंजर हैं साले, जहाँ जी चाहा बैठ गए। इनके बाप की गाड़ी है ये?“ राकेश का अफ़सर दहाड़ उठा था।
”ऐ साहब, हमको कंजर नहीं बोलना......... काट के फेंक देगा।“ एक नारी-स्वर प्रत्युत्तर में उसी तेजी में आया था।
दृष्टि उठाते ही सविता आपाद-मस्तक सिहर गई थी। उस युवती की आयु शायद 25 से 30 वर्ष रही होगी। आँखों में क्रोध की आग जल रही थी। फटे कपड़े, कानों में प्लास्टिक की बाली जैसी कोई चीज लटक रही थी। उस चलती ट्रेन में वे उतने ......... और उधर अकेला राकेश, कहीं सचमुच वे वार कर बैठे तो?
”अरी नोनी चुप कर, देखती नहीं मालिक लोग हैं.............।“
”क्यों चुप करें..... हमको कंजर बोलता है....... कंजर........!“ स्वर में तीखा आक्रोश था।
”अरे कंजर नहीं तो क्या मेम साहब कहलाएगी?“ एक प्रौढ़ पुरूष ने उसे झिड़की दी थी।
सविता को उस पुरूष की बात से मानो तसल्ली-सी मिली थी, साहस करके बोलना चाहा था, ”देखो इस गाड़ी में बहुत सारे डिब्बे हैं, तुम लोग सब डिब्बों में एक-दो करके बैठ जाओ। ये बच्चे अगर बाथरूम जाना चाहें तो भी नहीं जा सकते न?“
”हमको बस धरमपुर तक जाना है, थोड़ी देर में आने का है।“ एक अन्य प्रौढ़ा उत्तर दे चुप हो गई थी।
कम्पार्टमेंट में सन्नाटा छा गया था। भोर की उजास अभी नहीं फैली थी। उस हल्के अंधेरे में ठसाठस भरे फर्श को ताकती सविता डर-सी गई थी।
दो-तीन स्त्रियाँ बच्चों को सीने से लगाए शांत बैठी थीं। कुछ देर के सन्नाटे के बाद एक मीठा स्वर गूँज उठा था। न जाने उस गीत के क्या भाव थे, सविता तो नहीं समझ सकी पर राकेश चिड़चिड़ा उठा था।
”नाउ वी आर फ़ोर्स्ड टु एक्ट आकर्डिग टु देयर ट्यून..........।“
”मम्मी......!“ नन्हा शैलू बुदबुदाया था।
”शायद इसे पाँटी चाहिए, .....यहाँ कहीं भी तो जगह नहीं.......।“ सविता खीज उठी थी।
”दीज बैगर्स हैव पौल्यूटेड दि होल कम्पार्टमेंट..........।“
”मेम साहब, आपका बच्चा बाथरूम जाना माँगता?“ एक औरत ने सविता से पूछा था। शायद वह उसकी परेशानी समझ गई थी।
”नहीं, उसकी पाँटी हमारे साथ है पर उसे कहाँ रखें?“
”यहाँ रख दो मेम साब। छोटे बच्चे को हमारे लिए तकलीफ नहीं होना चाहिए न।“ उसी स्त्री ने सहानुभूतिपूर्वक अपने पास के जरा से स्थान में पाँटी का पाँट रखने की पेशकश की थी।
सविता ने उठकर कष्ट से पाँटी अपनी सीट के सामने जब नीचे रखी तो सबकी आँखें उस कौतुक को देखने के लिए पाँट पर निबद्ध हो गई थीं। सूसू करने के लिए तैयार शैलू उन सबको देख, डर के कारण रो पड़ा था।
”कितनी देर में तुम्हारा धरमपुर आएगा? तुम लोग तो कह रहे थे थोड़ी दूर है।“ राकेश ने खीजे स्वर में पूछा था।
”बस थोड़ी देर में...........।“
भोर का उजाला कम्पार्टमेंट में फैल रहा था, उसके साथ ही राकेश का साहस भी बढ़ गया था। एक छोटे-से स्टेशन पर ट्रेन रूकते ही अंग्रेजी में सविता को सावधान रहने के निर्देश देता, राकेश नीचे उतरने को तत्पर था। सहमे-सिकुड़े बैठे कंजर, राकेश को पाँव धरने के लिए स्थान देने को मानो अपने आप में ही सिमट गए थे। आगे बढ़ते राकेश का पाँव उस तेज तर्रार युवती के पाँव पर पड़ गया था। बिजली की तेजी से उठ उस स्त्री ने राकेश की राह रोक ली थी-
”हमको क्या जानवर समझता है, पाँव धर के जाएगा? हम तुम्हारी आँख निकाल लेगा।“
सामने खड़ी उस धूल-मिट्टी से लिपटी युवती का आवेश देख राकेश सकपका गया था।
”ऐ नोनी.......साहब से जबान लड़ाती है.............अभी धक्का देकर फेंक देने का समझी।“ प्रौढ़ पुरूष की कठोर चेतावनी पर नोनी भड़क उठी थी-
”क्यों, हम क्या आदमी नहीं बाबू? ये टांगे पसारे सो रहे हैं और हम इनका पाँव के नीचे भी नहीं बैठ सकते!“ क्रोधावेश में नोनी अपने स्थान से उठकर सविता की सीट पर जाकर बैठ गई थी। भय से सविता काठ हो गई थी। राकेश के कुछ कहने-करने के पूर्व उस प्रौढ़ का झन्नाटेदार तमाचा नोनी के गाल पर पड़ा थां उसकी चोटी खींचता वह प्रौढ़ उसे अनगिनत गालियाँ देता जा रहा था।
आँखों से बहते आँसू और मुख पर ढेर सारा बिखरा तिरस्कार लिए नोनी ने राकेश और सविता पर आग्नेय दृष्टि डाली थी। इतना बड़ा कांड पलक. झपकते हो गया था।
”माफ़ करना मेम साब, ये लड़की शहर जाकर चार दिन क्या रह आई है, इसका दिमाग ही खराब हो गया है, अपनी औकात भूल गई है।“ अपने गन्दे गमछे से सविता की सीट पोंछता वह प्रौढ़ दयनीय हो आया था।
”इसके इसी लच्छन के कारण इसका आदमी भी इसे हमारे सिर पटक गया है, साहब। दूसरी शादी के नाम पर ये कुत्ते के माफ़िक काटने को दौड़ता है।“ उन्हीं में से एक स्त्री ने सूचना दी थी।
दोबारा ट्रेन रूकते ही राकेश ने देर नहीं की थी। झपटकर ट्रेन के नीचे कूद गया था। थोड़ी ही देर में गार्ड के साथ अंग्रेजी में बात करता राकेश कम्पार्टमेंट के सामने आ पहुँचा था। उसका अधिकारी रूप अब पूर्णरूपेण जाग चुका था। कम्पार्टमेंट के सामने आते ही गार्ड ने उन्हें जोरों से झिड़का था,
”ऐ उतरो, फौरन उतरो!“
”कमबख्तों का यही ढंग है। बाथरूम तक भर दिया है।“
”साहब, बस अगले स्टेशन तक ही जाना है। यहीं बैठे रहने दें। मेहरबानी ,साहब!“
”तुम पर कोई मेहरबानी नहीं चलेगी। देखते नहीं ये साहब और इनके घरवाले कितने परेशान हैं, जल्दी उतरो वर्ना...........“
”साहब, हमें माफ़ कर दें........... बस अगले स्टेशन पर उतर जाएँगे। इस नोनी को अस्पताल भर्ती करना है, साहब..........।“
”मुझे कुछ नहीं सुनना है, उतरो फौरन वर्ना पुलिस बुलाता हूँ। तुमने साहब को जान से मारने की धमकी दी थी। जानते हो पुलिस तुम्हारे साथ क्या सलूक करेगी?“
”नहीं साहब, पुलिस नहीं बुलाना...... उसी का पाप ये नोनी पेट में ढो रही है। एक सिपाही से लड़ बैठी थी.... बस पकड़ ले गए.......।“ प्रौढ़ जैसे कहीं खो गया था।
”चुप कर अपने घर का मैला बाहर नहीं फेंकने का।“ एक वृद्ध स्त्री का तीखा स्वर गूँज उठा था।
”तुम्हारी फ़ालतू बातें हमें नहीं सुननीं हैं। अरे इस जैसी लड़की के साथ तो यही होना था।“ गार्ड के मुख पर किंचित् व्यंग्य उभर आया था।
”ऐ, क्या बोला तू...... नोनी तुरा मुंह नोच लेगी कमीने! तेरी माँ-बहन को ऐसा बोलने का।“ उत्तेजित नोनी को मुश्किल से पीछे किया जा सका था।
”अब तुमको नहीं छोडूँगा। इस लड़की को जेल की हवा न खिलाई तो मेरा नाम रामनाथ नहीं।“ क्रोध से गार्ड के नथुने फूल उठे थे।
”नहीं माई-बाप, इस लड़की पर दया करें, कितना कुछ सहा है इसने। आप इसे छिमा करें, सरकार!“ एक स्त्री रो पड़ी थी।
”चलो चलो, अब और टंटा नहीं करने का, उतरो सब।“
प्रौढ़ की आवाज पर एक-एक कर सब अपनी गठरी-मुठरी सहेज नीचे उतरने लगे थे। माँओं के सीने से चिपके बच्चे, अचानक छेडे़ जाने से बुक्का फाड़ रो पड़े थे।
नोनी को तो जबरन ही उतारा गया था। उसके उभरे पेट पर दृष्टि पड़ते ही, सविता सिहर-सी गई थी। किसके पाप का दंड कौन झेल रही है!
”ये सब डबलू टी (बिना टिकट) हैं, जेल में क्यों नहीं डलवा देते?“
”क्या फायदा-मुफ्त में जेल की रोटी खाएँगे और बाहर आकर फिर वही धंधा अपनाएँगे।“
”फिर भी उन्हें पनिश तो किया जाना चाहिए, वर्ना इनकी हिम्मत बढ़ती जाती है। मैं अपना स्टेटमेंट दूँगा कि मुझे मार डालने की धमकी दी गई थी।“
”बिना टिकट गाड़ी में क्या सोचकर बैठे थे कि सरकार तुम्हारा जुर्माना भरेगी? निकालो जुर्माना, वर्ना चार महीने जेल की चक्की पीसोगे, समझे!“ राकेश के शह पर गार्ड और दबंग हो गया था।
”हम चोर-उचक्के नहीं हैं, सरकार। ये लीजिए हमारे टिकट.......।“ प्रौंढ़ ने अपनी जेब से सारे टिकट निकाल कर गार्ड की ओर बढ़ाए थे।
”इस लड़की को अस्पताल में भर्ती कराने जा रहे थे, हुजूर....... वहाँ की डाक्टर नोनी को जानती है। अगर इसका आपरेशन नहीं हुआ तो ये लड़की मर जाएगी.........।“ प्रौढ़ का कंठ रूंध गया था।
राकेश और गार्ड उन टिकटों को अवाक् ताकते रह गए थे।
टिकट रहते, पूरे समय वे फ़र्श पर बैठे रहे। सीट पर पाँव पसारे उसके सोते परिवार के प्रति उन्होंने कोई आपत्ति नहीं प्रकट की थी। उनकी झिड़कियाँ, व्यंग्य सुनते रहे...... क्यों? क्या इसीलिए नहीं कि आज भी अपने अधिकारों के प्रति वे सजग नहीं है? फ़र्श पर बैठ यात्रा करना ही उनकी नियति है?
उलझन और शर्म का रंग सबके चेहरों पर पुत गया था। उनकी उस स्थिति से बेखबर, अपना सामान सहेजते वे मजदूर अगली गाड़ी की प्रतीक्षा में एक कोने में जा बैठे थे............।
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