12/16/09

यहाँ फूल तोड़ना मना है

पास की टहनी पर लगी गुलाब की कली तोड़, सुधीर ने अल्पना के बालों में सजानी चाही थी।


ये क्या कर रहे हो ..............?

क्यों ...........? सुधीर उस अप्रत्याशित प्रश्न पर चौंक सा गया था।

देखते नहीं ......... वो सामने की तख्ती पर क्या लिखा है ?

यहां फूल तोड़ना मना है ........ यही न ? अरे यार, वर्जना तोड़ने में जो मजा है, तुम उसे समझ नहीं सकोगी।

फिर भी ये कली थी, दो-तीन दिन बाद इत्ता बड़ा गुलाब बन जाता, बहुत निर्दयी हो तुम।

प्रेमिका को फूल का उपहार देने पर निर्दयी की संज्ञा पाने वाला शायद पहला प्रेमी मैं ही हूं।

किसने कहा तुम मेरे प्रेमी हो ? अल्पना ने चेहरे पर नाराज़गी का भाव लाकर पूछा।

अच्छा जी अब ये बात भी हमें बतानी होगी ? पिछले दो साल से मेरे साथ इस पार्क में बैठकर क्या बस फ्लर्ट कर रही हो ?

फ्लटरिंग का क्या सवाल ? हम दोनों के रास्ते में ये पार्क आ जाता है, बस जरा सा सुस्ताने भर को बैठ जाते हैं। कुछ शरारत से अल्पना ने कहा।

अब तो यहां आने वाले भी हमें प्रेमी-प्रेमिका के जोड़े के रूप में पहिचानते होंगे।

बहुत पहिचाने जा चुके, अब चलें ? मम्मी रोज नाराज होती हैं।

देर से पहुंचने के लिए रोज नया बहाना बनाना पड़ता होगा, सच क्यों नहीं बता देतीं ?

बता दूंगी, समय तो आने दो।

समय की कब तक प्रतीक्षा करनी होगी।

जब तक कल्पना दीदी का विवाह नहीं हो जाता ...............

हे भगवान ! अपने इस भक्त की पुकार सुन, इसकी कल्पना दीदी के लिए आकाश से एक अदद सुपात्र भेज दे। हाथ जोड़े प्रार्थना करते-करते सुधीर की नाटकीय मुद्रा पर अल्पना जोर से हंस पड़ी थी।

तथास्तु ..........! चलो भगवान की ओर से मैंने ही आशीर्वाद दे डाला। अब चलें ?

हंसते-बतियाते दोनों पार्क से बाहर चल दिए थे। शहर से दूर होने के कारण पार्क में संध्या के समय काफी लोग शुद्ध हवा का आनंद लेने आ जाते थे। अल्पना कॉलेज का रास्ता पार्क के ठीक बीच से गुजरता था। पहली बार र्कॉलेज जाते समय पार्क के बीच वाली सड़क से जब रिक्शा गुजरा था तो सड़क के दोनों ओर लगे बैगनी फूलों से लदे छतनारी वृक्षों ने अल्पना को मोह लिया । गर्मियों में अमलतास के पीले और गुलमोहर के लाल फूलों से सज्जित सड़क से वह परिचित थी, पर बैजनी फूलों के उस आकर्षक रूप से वह सर्वथा अपरिचित थी।

घर पहुंचते ही कॉलेज की बातों से पहले उसने उस बैजनी फूलों वाली सड़क का वर्णन विस्तार से किया था।

अच्छा-अच्छा अब ये सड़क-गाथा छोड़ कॉलेज की बता, कैसा लगा अपना ये नया कॉलेज।

बहुत अच्छा है। चारों ओर फेले लॉन और फव्वारे, बहुत ही सुन्दर हैं, मम्मी।

तुझे तो नेचर-स्टडी के स्कूल में जाना था अल्पना, व्यर्थ ही ज़ूलॉज़ी  विषय लेकर मेरे पैसे बर्बाद कर रही है। पापा ने परिहास किया था।

वह भी तो प्रकृति के जीवों से जुड़ा विषय है पापा और विश्वास रखिए आपके पैसे व्यर्थ नहीं जाने दूंगी, टॉप करके दिखा दूंगी। कुछ गर्व से अल्पना ने कहा था।

ओ के आई बिलीव दैट, अन्ततः तू एक प्राचार्य की बेटी ठहरी, किसी से पीछे भला कैसे रह सकेगी। पापा प्रसन्न थे।

और पापा, अब तो मुझे यह शहर भी अच्छा लगने लगा है। अल्पना चहक सी रही थी।

चल, मेरी चिन्ता दूर हुई वर्ना तू तो दिल्ली छोड़ना ही नहीं चाहती थी।

वैसे यहां शांति तो जरूर है, पर कभी इसी सन्नाटे से अकस्मात आने वाली विपदा का डर भी लगता है। मम्मी भी उस शहर के प्रति पूर्णतः आश्वस्त नहीं हो सकी थीं।

भगवान की इच्छा के आगे हम-सब अवश हैं सुप्रिया, उसी पर विश्वास रखो, व्यर्थ के भय से क्या मिलेगा ? प्राचार्य दत्त के जीवन के कटु अनुभव, उन्हें एक सीमा तक वीतरागी ही बना गए थे।

अपने जीवन में हम अपने कर्मो के फल भोगते हैं सुमित्रा, जैसा बोएंगे, वैसा पाएंगे। अब चाय मिलेगी देवीजी ? बात परिहास में टाल प्राचार्य दत्त फूलों के पौधों में पानी देने बाहर चले गए थे।

उस नवनिर्मित कालेज के आस-पास प्राध्यापकों के घर और कुछ दूरी पर छात्रावास बने हुए थे। प्राचार्य दत्त का घर छात्रावास के बाहर अलग बना हुआ था। उस शांतिपूर्ण वातावरण में कमी थी तो बस एक, वहां अल्पना की हम उम्र कोई और लड़की नहीं थी, पर जल्दी ही कॉलेज के माली की लड़की बेला उसकी सहेली बन गई थी।

उस दोपहर आस-पास का सर्वे करने निकली अल्पना के साथ बेला भी थी। कॉलेज के अहाते के उस पार पेड़ में लगे अमरूदों पर दृष्टि पड़ते ही अल्पना खिल उठी थी। इतने गदरे अमरूद यहाँ ?

बेला ने भय दिखाया था - वो दूसरे का गाछ है दीदी, कोई पकड़ लेगा तो ?

चुप, डरपोक। देख मैं इस दीवार पर चढ़कर कैसे अमरूद तोड़ती हूं।

आनन-फानन एन0सी0सी0 की कैडेट अल्पना पास के पेड़ का सहारा ले दीवार पर जा खड़ी हुई थी। चुन-चुन कर दो-चार अमरूद ही बेला तक पहुंचे होंगे कि उस पार से एक कठोर मर्दाना स्वर उभरा था ...............।

का हो छोकरिया ......ई अमरूद गाछ का तोहार आपन जागीर था ? अबइहन थाना पहुंचा देई ......

बिना डरे अल्पना वहीं वैसे ही खड़ी, आने वाले की प्रतीक्षा करती रही थी, बाग के रखवाले माली के स्थान पर पैंट-कमीज पहिने एक सुन्दर, सम्भ्रान्त युवक की आकृति सामने उभरी थी।

वाह ! आपकी हिम्मत की तो दाद देनी होगी। इसे कहते हैं चोरी पे चोरी ऊपर से सीना जोरी .......

ऐ मिस्टर .... माइंड योर लैंग्वेज, मैं कोई चोर नहीं ............

अच्छा, तो दूसरे के घर से बिना आज्ञा लिए अमरूद तोड़ने वाले को और क्या कहा जा सकता है ?

पेड़ में ढेर सारे फल लगे हैं, अकेले तुम तो नहीं खा लोगे ? दूसरों को देते ही होंगे। समझ लो अपने हिस्से के अमरूद मैंने तोड़ लिए। पैसे चाहिए तो वह भी दे सकती हूं।

अपने स्थान से जरा सा उछल कर युवक अल्पना के निकट आ बैठा था।

बात में कुछ दम तो जरूर है। चलिए माली की ओर से आपको ये अमरूद उपहार में दिए, अगर और भी चाहिए तो सेवा के लिए ये बन्दा हाजिर हैं। अमरूद तोड़ते कहीं गिर कर हाथ-पांव तोड़ बैठीं तो लंगड़ी लड़की की शादी के लिए आपके माता-पिता को व्यर्थ परेशानी उठानी पड़ेगी।

मेरे लिए इतना कष्ट करने की जरूरत नहीं, ऐंड थैक्स फ़ॉर दि हॉसपिटालिटी ... बेला ला इनके अमरूद इन्हें ही मुबारक।

अरे ... अरे ... आप तो नाराज़ हो गई। चलिए क्षमा मांगता हूं। आप इन्हें मेरी ओर से स्वीकार करें मिस .........

आपका माली कहां है ? अभी इतनी जोर से चिल्ला रहा था। उसे तो पैसे स्वीकार करने में संकोच नहीं होगा।

माली की जगह इस समय तो मैं ही हाजिर हूं, जो जी चाहे, बख्शीस दे दीजिए।

पर वह आवाज ......?

मेरी ही थी ........ अन्दर नाटक का रिहर्सल चल रहा है। मेरी नज़र आप पर पड़ी तो बस यूँ ही माली बन गया था।

नाटक का रिहर्सल ?

हां ! हम जैसे कुछ और भी ये शौक रखते हैं। छुट्टी के दिन हम सब यहीं रिहर्सल रखते हैं।

ये किसका घर है ?

मेरे पूज्यनीय बाबाजी के पुत्र मेरे पिताश्री का .............

ओह ! बाई दि वे आप यहां क्या हमेशा नाटक के रिहर्सल करते हैं ?

बैंक में प्रॉवेशनरी आफीसर हूं, सुधीर कुमार और आप ?

अल्पना दत्त वीमेंस कॉलेज से जुलॉजी में एम0एस0सी0 कर रही हूं।

अक्लमंदी की कि वीमेंस कॉलेज में एडमीशन लिया वर्ना ..........

वर्ना क्या ?

वर्ना को-एड कॉलेज के लड़कों की पढ़ाई मिट्टी में मिल जाती।

क्यों ? अल्पना विस्मित थी।

ठसलिए कि पढ़ाई छोड़ वे आप पर लाइन मारते न।

छिः .............. नानसेंस। अल्पना का चेहरा सिन्दूरी हो उठा था।

घर में और कौन-कौन है ?

मम्मी-पापा और दीदी। दीदी दिल्ली में हाउस जॉब कर रही हैं। हम सब पहले दिल्ली ही थे। बहुत मिस करती हूं दीदी को।

दीदी को या दिल्ली को ?

फिर वही .... हमें ऐसी बातें अच्छी नहीं लगती।

ओ के चलो अच्छी बातें करते हैं। हमारा रिहर्सल देखोगी। दूरदर्शन के लिए एक नाटक तैयार कर रहे हैं।

आपके फ़्रेड्स को ऑब्जेक्शन तो नहीं होगा ? घर में मम्मी से भी नहीं पूछा .........

क्राइस्ट ने कहा था 'लव दाई नेबर्स' कह देना उन्हीं की बात चरितार्थ कर रही थीं। तुम्हें छोड़ने साथ मैं चलूंगा। आ रही हो ?

अल्पना को हाथ का सहारा दे सुधीर ने अपने अहाते में उतार लिया था।

सुधीर के साथ पहुंची अल्पना का उसके साथियों ने हृदय से स्वागत किया था।

एक नए साथी का स्वागत है। सबीना ने तालियां बजाई थीं।

मिस अल्पना क्या आप भी एक्टिंग में शौक रखती हैं ? गुरनाम सिंह ने पूछा।

एक्टिंग तो नहीं जानती पर नाटक देखने का शौक जरूर है। कुछ संकुचित अल्पना ने बताया।

चलो सुधीर की कृपा से एक दर्शक तो मिला। अल्पना तुम हमारी गलतियां प्वांइट-आउट करोगी तो हमें नाटक सुधारने में सहायता मिलेगी। टीम के वरिष्ठ सदस्य गोपाल दा ने प्यार से उसकी पीठ थपथपा दी।

इतनी जल्दी से वे सब अल्पना से यूं घुल-मिल गए मानो वर्षो से वह उनके साथ ही काम करती आ रही थी।

लौटते समय अल्पना के साथ सुधीर उसके घर चला आया था। मम्मी अल्पना की प्रतीक्षा में व्यग्र थी।

आज तो इन्हें माफ़ करना ही होगा, मांजी। हमारी ज़िद पर इन्हें हमारा नाटक जो देखना पड़ा था। झुक कर मां के पांव छूता सुधीर हंस दिया था।

विस्मित मां आशीर्वाद भी ठीक से नही दे पाई थीं। पापा ने ही उसे स्नेह से भीतर बुलाकर पूछ था-
कैसा नाटक कर रहे हो,घर मे कौन कौन है,बेटा?

पापा प्रायः दौरे पर बाहर रहते हैं, मां बहुत पहले हमेशा के लिए मुझे अकेला छोड़ गई- बस घर के खालीपन को हम सब दोस्त मिलकर नाटकों से भर लेते हैं। आज से अल्पना जी भी हमारी सदस्या बन गई हैं।

बड़ी ही सहजता से अपना और अपने परिवार का परिचय देता सुधीर घर का सदस्य जैसा बन गया था।

सुधीर के प्रति मां का वात्सल्य छलक आया था -

वेचारा लड़का मां का प्यार भी नहीं पा सका।

पापा ने बड़े स्नेह से सुधीर का उत्साह बढ़ाया।

भई जब तुम्हारा नाटक टी0वी0 पर आए तो खबर देना, हम जरूर देखेंगे। अल्पना को भी कोई रोल दे दो, अकेली काफ़ी बोर होती है।

अब ये मेम्बर बन गई हैं तो रोल तो करना ही पड़ेगा।

सुधीर का नाटक दर्शकों द्वारा काफी सराहा गया था। उसकी टीम से एक और नाटक की मांग आई थी। नए नाटक में सुधीर की प्रमिका के लिए सर्वसम्मति से अल्पना को चुना गया था।

पर मैंने पहले कभी एक्टिंग नहीं किया है ... मैं नहीं कर पाऊंगी।

अरे डरती क्यों है, मैं हूं न तेरा उस्ताद। ऐसी ऐक्टिंग कराऊंगा कि लोगों की जुबां पर बस तेरा ही नाम रहेगा। गोपाल दा ने उसका साहस बढ़ाया था।

क्लासेज के बाद कभी शाम को, कभी देर रात तक रिहर्सल चलने लगे थे। रात में रिहर्सल के लिए मम्मी ने अपने घर को उपयुक्त समझा था।

मम्मी आपको हमारे शोर के बीच नींद आएगी ? सबीना चिन्तित थी।

इसी शोर के लिए तो तरस गई हूं, सबीना बेटी। कल्पना अकेली दिल्ली में पड़ी है, अल्पना पूरे दिन कॉलेज में व्यस्त रहती है। इसके पापा की तो बात ही निराली है, उनका असली घर तो उनका कॉलेज ही है।

सच सबी, पापा के रेपुटेशन की वजह से ही उन्हें यहां इस कॉलेज में भेजा गया है। पापा ने न जाने कितने राह से भटके छात्रों को सही दिशा दी है। अल्पना के स्वर में पिता के प्रति सम्मान झलक आया था।

इन्हें तो अपने कॉलेज के छात्र अपनी बेटियों से अधिक प्यारे हैं। उनके एडमीशन, एक्जाम्स, होस्टेल की व्यवस्था की जितनी पर्वाह रखते हैं, उतनी कभी बेटियों के लिए नहीं की। श्रीमती दत्त ने शिकायत-सी की थी।

और मम्मी, पाप की बागवानी वाली थियरी के विषय में तो तुम भूल ही गई। जानते हैं गोपाल दा, पाप कॉलेज के हर नए छात्र से एक-एक पौधा लगवाते हैं। जब तक ये छात्र कॉलेज में रहते हैं, उस पौधे के लिए वे ही उत्तरदायी होते हैं। पौधों की देख-रेख। बच्चों की तरह करते हैं। अल्पना हंस पड़ी थी।

इसके पापा का कहना है इन फूल- पौधों से प्रेम करते हुए ये छात्र प्रकृति के हर प्राणी से प्रेम करेंगे। आतंकवाद समाप्त करने के लिए प्रकृति से प्रेम जरूरी है। श्रीमती दत्त का मुख पति-प्रेम से चमक रहा था।

आप सचमुच बहुत भाग्यशाली हैं मिसेज दत्त। काश प्रिन्सिपल साहब की ये बात हम समझ पाते। गोपाल दा कुछ संजीदा हो उठे थे।

इसीलिए तो पापा को यहां भेजा गया है। कुलपति ने कहा था कि यह जगह आतंकवाद से प्रभावित है। सिर्फ़ तुम ही उस जगह जाकर स्नेह का पौधा रोप सकते हो, दत्त। पिता के प्रति अल्पना के स्वर में अगाध विश्वास था।

सचमुच तुम्हारे पापा जीनियस हैं अल्पना। मुझे तुमसे ईष्र्या होती है। सबीना ने प्यार से कहा था।

छुट्टी के दिन सब सुधीर के खाली घर में रिहर्सल करना पसंद करते थे।

रामदीन काका तुम चाय लाजवाब बनाते हो। एक-एक कप और मिलेगी ? गोपाल दा घर के प्रौढ़ सेवक को मान देते थे।

अबहिन लो भइया। उस दिन रामदीन काका चाय बनाते थक जाते थे। अल्पना ने अगर उनकी मदद करनी चाही तो वह बड़े गर्व से सबको सुना कर कहते -

अरी बिटिया पूरी जिनगानी बबुआ की फरमाइस पूरी करत निकल गई। भला हमारे सिवा उन्हें किसी और की चाय भावत है ? तू ओहरे बइठ, हम अभी चाह ले आते हैं। शुरू-शुरू में सुधीर की प्रेमिका की भूमिका में अल्पना संकुचित सी रहती, पर टीम के सब साथियों के सहयोग से वह जल्दी ही सहज हो गई थी।

यार कभी-कभी तो तुम ऐसा अभिनय करती हो कि लगता है तुम सचमुच मेरी ..... प्रेमिका ही हो। सुधीर उसे चिढ़ाता।

धत् ..... अल्पना के रक्ताभ मुख को सुधीर प्यार से निहारता रह जाता।

जब से सुधीर का ट्रान्सफर अल्पना के कॉलेज के पास वाले बैंक की ब्रांच में हो गया, प्रायः शाम को वह अल्पना के कॉलेज के सामने खड़ा उसकी प्रतीक्षा करता।

नहीं, नहीं, तुम्हारें साथ स्कूटर पर नहीं जाऊंगी।

क्यों ? मंच पर प्रेमिका के रूप में मेरे गले लग सकती हो, पर एक मित्र के रूप में मेरे साथ नहीं चल सकतीं ?

नाटक और बात है, सुधीर .........

और बात क्या है ? तुम्हारे मन में कोई चोर है, अल्पना ?

कैसा चोर ?

बोलो बोलने में संकोच क्यों ?

मम्मी से पूछना पड़ेगा ?

आज तक मम्मी ने कभी कुछ मना किया है, अल्पना ? उन्हें मुझ पर तुमसे ज्यादा विश्वास है समझीं।

उस दिन से प्रायः दोनों साथ घर वापिस आते। रास्ते में कभी-कभी उस पार्क में सुधीर कुछ देर को रूक जाया करता। अल्पना के विरोध पर सुधीर हमेशा कोई नया तर्क दिया करता -

घर जाकर कमरे की दीवारों के कैद होने से यहां कुछ पल ताज़ी हवा लेना अधिक स्वास्थ्यप्रद है अल्पना, चाहो तो पापा से भी पूछ लेना।

फूलों वाले उस पार्क में सुधीर के साथ कुछ पल बिताना अल्पना को रोमांचित कर जाता था।

सुधीर ने अपने प्यार की अभिव्यक्ति भी अपने ही अन्दाज में की थी -

अब तुम मेरी आदत बन गई हो, अल्पना - आदत छुड़ा पाना आसान नहीं, इसलिए सोचता हूं जल्दी से हम शादी कर लें और फिर लम्बे हनीमून पर चले जाएं।

अरे वाह ! ये एकतरफ़ा निर्णय लेने का अधिकार तुम्हें किसने दिया सुधीर ? मेरा तो अभी विवाह का इरादा ही नहीं।

तो क्या इरादा है जनाब का ?

एम0एस0सी0 कम्पलीट करके कनाडा जाऊंगी।

अपनी इच्छा से कनाडा जा सकती हो, अल्पना ?

क्यों, कौन रोकेगा हमें ? कुछ शोखी से कहा था अल्पना ने।

मेरी इच्छा के बिना कहीं जा सकोगी, अल्पना ? सुधीर की उस दृष्टि में न जाने क्या था कि अल्पना के मुंह से बरबस निकल गया था -

नहीं ..... कभी नहीं ............ सुधीर ..............

अल्पना को अपने वक्ष से सटा, उसके माथे की अलकों को हौले से हटा, सुधीर ने अपना प्रेम चिन्ह अंकित कर दिया था।

आज भी घर लौटने पर मम्मी ने हल्के स्वर में कहा था -

तू रोज देर कर देती है, अल्पना। आज तेरे पापा का मूड ठीक नहीं, दस बार तेरे बारे में पूछ चुके हैं।

क्यों पापा को क्या हुआ, मम्मी ? अल्पना चिन्तित हो आई थी।

आज तक तेरे पापा के प्राचार्यात्व में ऐसी घटना कभी नहीं घटी थी अल्पना, मुझे बहुत डर लग रहा है। कॉलेज के दो ग्रुपों में मारपीट हो गई। एक लड़के को छूरा मार दिया गया। वाइस प्रिंसिपल ने पुलिस को सूचना दे दी बस पुलिस आकर चार-पांच लड़कों को पकड़ ले गई है। हल्के स्वर में मम्मी ने सूचना दी थी।

पापा के कमरे में पहुंचते ही बाहर से आ रहा शोर सुनाई पड़ा था।

प्रिंसिपल दत्त हाय-हाय।

प्रिंसिपल दत्त मुर्दावाद ........

बाहर निकलो प्रिंसिपल, वर्ना हम घर में आग लगा देंगे।

हमारे साथियों को छोड़ना पड़ेगा।

जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा।

ये सब क्या है पापा ? अल्पना पापा के पास जा खड़ी हुई थी।

गुंडागर्दी की भी हद होती है। सरे आम कॉलेज सेक्रेट्री को छूरा मार दिया। अब हवालात में बन्द हैं, तो यहां ये हंगामा मचा रहे हैं। जिस देश का भविष्य इतना उच्छृंखल है, उस देश का क्या होगा अल्पना। मेरा जीवन-दर्शन व्यर्थ गया बेटी। गहन अवसादपूर्ण स्वर सुन, अल्पना चौंक गई , पापा और निराशा ...?

आपने पुलिस को फ़ोन किया, पापा ?

वही तो ग़लती हो गई है, बेटी। कॉलेज में हंगामा होते ही वाइस प्रिंसिपल ने बिना मेरी इजाज़त लिए ही पुलिस बुला ली, यहां वही गलती मिस्टर शर्मा ने दोहराई है। एस0पी0 आते ही होंगे। जानती है अल्पना पुलिस के हाथों में इन बच्चों को नहीं देना चाहिए था। मैं उन्हें समझा देता।

नहीं पापा, इनके बीच हम सुरक्षित नहीं हैं। इन स्टूडेंट्स में न जाने कितने आतंकवादी होंगे, वे तो कोई बहाना ही खोजते हैं ....... अच्छा हुआ शर्मा अंकल ने पुलिस को इन्फार्म कर दिया। अल्पना कुछ उत्तेजित हो गई थी।

जिन्हें बच्चों सा प्यार दिया वे ही इनकी हाय-हाय कर रहे हैं। अब ज़माना बदल गया है, पर ये बात इनकी समझ में नहीं आती, बेटी। मम्मी क्षुब्ध थीं।

बाहर पुलिस साइरन के साथ ही एस0पी0 की चेतावनी गूंज उठी थी।

मेरे पांच गिनने तक यहां से हट जाओ वर्ना गोली चला दूंगा ...... हवाई फायर के साथ थोड़ी देर में भीड़ छंट गई थी।

क्या ज़माना आ गया है, एक्ज़ाम्स में नकल करेंगे, परीक्षा का वहिष्कार करेंगे, जो ईमानदारी से काम करना चाहे उसको छुरा मार देंगे। प्रिंसिपल साहब मानो स्वंय से बात कर रहे थे।

आप परेशान न हों सर, मैं यहां सिक्यूरिटी का इन्तजाम किए देता हूँ। एस0पी0 ने उन्हें आश्वस्त करना चाहा था।

कितने दिन, कहां-कहां सिक्यूरिटी देंगे ? कल उन लड़कों के सस्पेंशन आडर््रस देख हिंसा और बढ़ेगी एस0पी0 साहिब। दत्त साहब गम्भीर थे।

फिर भी हम आपको असुरक्षित तो नहीं छोड़ सकते सर।

बाहर से घबराया हुआ सुधीर आ गया था।

ये सब क्या हंगामा है, पापा ?

वही जो आज हर जगह सामान्य बात हो गई है सुधीर, अन्याय करेंगे और अन्यायी जीतेंगे।

ऐसा नहीं है पापा, अन्यायी कभी-न-कभी जरूर पराजित होगा।

काश ऐसा हो जाता ...... पापा बुदबुदाए भर थे।

घर के बाहर दो कांस्टेबल्स की ड्यूटी लगा, एस0पी0 साहिब पापा को सावधान रहने की सलाह दे चले गए थे।

रात के गहरे सन्नाटे में सिपाहियों की सीटी की आवाज उन्हें बार-बार जगा देती थी।

पता नहीं कब तक इस कैद को भुगतना पड़ेगा। सुनो जी तुम कल उन लड़कों में समझौता करा देना ...... मुझे डर लगता है। मम्मी ने सलाह देनी चाही थी।

तुम सो जाओ, मुझे क्या करना है अच्छी तरह जानता हूं।

अचानक द्वार पर दस्तक हुई थी। मम्मी भय से जड़ हो गई थीं।

देखो जी तुम द्वार नहीं खोलना।

प्रिंसिपल साहिब जरा दरवाजा खोलिए थाने में एक लड़के की मृत्यु हो गई है।

क्या ..... आ ..... ? पापा पलंग से उछल कर उठ गए थे।

द्वार खोलते ही अप्रत्याशित घटा था। पुलिस कांस्टेबलों को दबोचे, काले लबादों में पांच-सात व्यक्ति खड़े थे।

कौन हो तुम ? पापा ने कड़कती आवाज में पूंछना चाहा था।

पापा की कनपटी पर एक जोरदार मुक्का पड़ा था।

साल्ला सरकारी पिट्टू .... देश का उद्धार करेगा।

खत्म कर दो इस देश-प्रेमी को ..........

नहीं इसे तो जीने की ऐसी सजा देनी है कि पूरी जिंदगी मर-मर कर जीए साल्ला ........

पापा के गश खाकर गिरते ही उनकी रक्षा के लिए मम्मी ने अपने शरीर को ढाल बना दिया था।

शर्म नहीं आती, निहत्थों पर वार करते .... एन0सी0सी0 कैडेट अल्पना का वाक्य पूरा होने के पहले ही कई सबल हाथों ने उसे दबोच लिया था।

पूरे घर की एक-एक चीज तहस नहस कर, वे आतातायी अल्पना को उठा कर ले गए थे। मम्मी में आर्तनाद की भी शक्ति नहीं रह गई थी।

होश आने पर लुटे हुए प्राचार्य दत्त ने एस0पी0 को सूचना देने के लिए फ़ोन उठाया था। फ़ोन के कटे तार पूरी कहानी सुना गए थे। अर्द्ध चैतन्य पत्नी को सहारा दे, प्राचार्य दत्त ने बेटी की खोज की थी।

अल्पना ..... अल्पना ..... अल्पना ......मेरी बच्ची............

कहां गई अल्पना ......हाय मेरी बिटिया ......... मां का हृदय हाहाकार कर उठा था।

सुधीर ने ही पुलिस को सूचना दे, मम्मी-पापा को सम्हाला था।

आप घबराइए नहीं पापा, अल्पना हमें मिल जाएगी। मरी इजाज़त के बगैर वह कहीं नहीं जा सकती ..... अपने आंसुओं को सुधीर ने कमीज की बांह में सुखा लिया।

दो घंटे बाद थाने से खबर आई थी गाँधी पार्क में एक लड़की का शव मिला है। ट्रक से शरीर और मुंह बुरी तरह कुचल जाने के कारण उसकी पहिचान कठिन है......... अगर प्रिंसिपल साहब आ सकें ......

नहीं .......ई ......... मम्मी चीख पड़ी थीं।

जरा याद करके बताओ सुमित्रा हमारी बेटी किस रंग के कपड़े पहिने थी ? किसी तरह हृदय पर पत्थर रख दत्त साहब ने पूछा था।

वो ........गुलाबी सलवार.......... कमीज पहिने थी- हाय मेरी बच्ची .........ई ......

किसी तरह प्रिंसिपल साहब को सहारा दे सुधीर उन्हें पार्क के उस कोने तक ले गया था।

शव ट्रक से बार-बार इस तरह कुचला गया था कि सुधीर उस पर दृष्टि तक न डाल सका। निर्वस्त्र शरीर पर पुलिस द्वारा एक कपड़ा डाल दिया गया था।

कैसे पहिचानूं इसे सुधीर ? इसमें मेरी बेटी का क्या है, बेटा ? ये मेरी बेटी नहीं इंस्पेक्टर ......दत्त साहब फूट पड़े थे।

अपने को सम्हालिए पापा ..... अभी हमें न जाने क्या सहना .........पड़ेगा ......... सुधीर ने रूंधे कंठ से प्रिंसिपल को सांत्वना देनी चाही थी।

लाहौर छोड़ते समय पूरे परिवार को समाप्त होते देख सोचा था, अब इससे अधिक और क्या देखूंगा ....मुझे नहीं पता था बेटे यहां अपने देश में अपनों से ............ वह बात पूरी नहीं कर सके थे। सुधीर के कंधे पर सिर रख फूट-फूट कर रो पड़े थे।

तभी सुधीर की दृष्टि क्यारी में लगी उस तख्ती पर पड़ी थी। तख्ती से लिपटा एक गुलाबी कपड़े का टुकड़ा हवा से उड़कर बार-बार तख्ती पर लगी पंक्ति का स्पर्श सा करता लग रहा था 'यहां फूल तोड़ना मना है।'

पापा देखिए उन दरिन्दों ने इस इबारद को नहीं देखा .......... यहां तो फूल तोड़ना मना है पापा...... फिर हमारी अल्पना को ..............

अचानक उत्तेजित सुधीर का स्वर आंसुओ में डूब गया था।

तूफ़ानी हवा ऐसी इबारतें नहीं पढ़ती ...... मेरे बेटे .. सुधीर को वक्ष से सटा प्रिंसिपल दत्त रो पड़े थे। ये तूफ़ान कब थमेगा पापा, कैसे थमेगा ? सुधीर उत्तेजित था।

मैं पूरा केस समझ गया हूं सर, ये वे ही गुंडे थे जिन्होंने कल शाम आपके घर का घेराव किया था।एक-एक को ऐसी सज़ा दूंगा कि छठी याद आ जाए। इंस्पेक्टर का आक्रोश स्वाभाविक था।

नहीं इंस्पेक्टर वो ऐसा नहीं कर सकते .................

यह आप कैसे कह सकते हैं सर, कल शाम का बदला लेने ..............

नहीं-नहीं, मैं उन्हें जानता हूं .................

फिर आपकी बेटी को ............. इंस्पेक्टर वाक्य पूरा न कर सका था।

उन दरिंदों ने उसे रौंद डाला, इंस्पेक्टर

उन दरिंदों की बात कर रहे हैं, प्रिंसिपल साहिब ? इंस्पेक्टर सतर्क था।

भगवान की बनाई दुनिया में जो ज़हर घोल रहे हैं, इंस्पेक्टर ...................

पूरा कॉलेज उमड़ पड़ा था। कल शाम प्राचार्य के घर का घेराव करने वाले लड़कों के नयन अश्रुपूर्ण थे।

विश्वास कीजिए सर, ये हमारा काम नहीं है। छात्र-नेता रो पड़ा था।

मैं जानता हूं बच्चों ....... सुधीर बेटे, ये ही लड़के तूफ़ानी हवा का रूख बदलेंगे ...... तूफ़ान ज़रूर थमेगा .......... जरूर थमेगा।

सर, हम उन्हें यूं नहीं छोडेगे। उन्हें खोज निकालेंगे ........... छात्र उत्तेजित थे।

इंस्पेक्टर ! अपनी बेटी का शव मैं सीधे श्मशान ले जाना चाहूंगा। इसकी मां अपनी फूल सी बच्ची को यूं रौंदा हुआ नहीं देख सकेगी, नहीं देख सकेगी।

जैसे कोई सुदृढत्र प्राचीर अचानक भरभरा कर गिरने लगे, शोक विहृल प्राचार्य को छात्रों ने अपने कंधों पर सम्हाल लिया था।

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