इतने दिनों बाद एम0ए0 फाइनल की कक्षा में प्रवेश करते ही तनु को लगा मानो सारी दृष्टियाँ उस पर गड़ गई है। क्या सब उसकी पराई आँखों की ओर नहीं देख रहे थे? अनजानी लज्जा से तनु मानो अपने में सिमट-सी गई। तनु की अभिन्न सखी श्वेता ने तनु का हाथ थाम उसकी आँखों में आँखें डाल परिहास किया था-
”ऐ तनु, इन आँखों से हम पहले जैसे दिखते हैं या कोई फ़र्क लगता है?“
”और क्या........अंकिक ग्रेजी तो पहले ही बढ़िया बोलती थी, अब तो अंग्रेजी आँखों से देखेगी भी.....।“ आनंदिता ने सहास्य कहा था।
”सच कह तनु, क्या सपने में भी वह अपनी आँखें माँगने नहीं आई?“ चंचला शर्मा ने गम्भीर बन पूछा।
प्रोफेसर नाथ के आते ही सब शान्त हो गए थे। तनु ने आश्वस्ति की साँस ली। घर-बाहर सब वही क्यों जानना-सुनना चाहते हैं, जिसे वह हमेशा के लिए भुला देना चाहती थी। अटेंडेंस लेने प्रोफेसर नाथ ने जब उसके नाम पर ‘यस सर’ सुना तो दृष्टि उठा तनु से पूछा-
”आर यू परफ़ेक्टली ओ के मिस सरकार? कोई तकलीफ़ तो नहीं है न?“
”जी..........!“ क्या करे तनु सरकार? कब मिलेगी उन प्रश्नों से मुक्ति? तनु का मन कसैला हो उठा।
क्लासेज खत्म होते ही श्वेता तनु को सबसे अलग खींच एकान्त में ले गई थी। तनु के हाथ स्नेह से पकड़ श्वेता ने बहुत दुलार से पूछा था- ”
कैसे इतनी बड़ी दुर्घटना हो गई तनु..... कुछ याद है तुझे? एक शब्द भी नहीं निकला था तेरे मुंह से।“
”उस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की याद मत दिला श्वेता......उसे दुहरा पाना एक यातनापूर्ण यात्रा-सा है।“
”जब तक उसे दोहराएगी नहीं, अंधेरे- गर्त में डूबती रहेगी तनु! मौसी कह रही थीं, तू एकदम अन्तर्मुखी हो गई है, रातों में चीख उठती है। सामान्य होने के लिए तुझे उस घटना को भुलाना होगा
”उस घटना को भूल पाना क्या आसान है श्वेता?“
”कार में तू उनके साथ शायद ताज जा रही थी न?“
”हाँ ............याद है प्रोफेसर प्रसाद ने एक दिन क्लास के बाद मुझे बुलाया था....तू हॅंसी उड़ा रही थी........।“
”हम सब यही कह रहे थे तू प्रोफेसर प्रसाद की फ़ेवरिट छात्रा है, शायद अपना कोई पेपर तुझसे उन्हें लिखवाना हो...............।“
”लंदन से भारत के दर्शनीय ऐतिहासिक स्थलों को देखने लिजा ओर एलिस आई थीं...!“
”उनसे मिलाने बुलाया था तुझे?“
”आगरा के सभी दर्शनीय स्थान दिखाने का दायित्व मुझे सौंपा था प्रोफेसर प्रसाद ने।“
”यूँ कह गाइड बन साथ जा रही थी हमारी तनु।“ श्वेता ने तनु की गम्भीरता अपने परिहास से तोड़नी चाही थी।
”सच, उन आनंदी युवतियों का गाइड बनना किसी का भी सौभाग्य होता श्वेता। हॅंसती-खिलखिलाती, जीवन से भरपूर, दोनों ने क्या स्वप्न में भी सोचा होगा, कुछ ही पलों बाद प्रलय आने वाली थी......! हमारी कार जैसे ही वायीं ओर मुड़ी, सामने से आता भीमकाय ट्रक बस दिखा-भर था...... उसके बाद तो सब कुछ शून्य-अंधेरा भर था......।“ तनु का शरीर सिहर उठा था।
”क्या हुआ तनु........ शायद वे युवतियाँ बच नहीं सकी थीं न?“ श्वेता का मुख भी पीला पड़ गया था।
”होश आने पर भी तो कुछ देख नहीं सकी थी श्वेता ! आँखों पर पट्टी जो बॅंधी थी...उसी पीड़ा में माँ को पुकारा था।“
”भगवान का लाख-लाख धन्यवाद, तू बच गई तनु बेटी।“ माँ का स्नेहिल स्वर कान में पड़ते ही तनु मानो जी गई थी।
”उनका क्या हुआ माँ....... दोनों ठीक तो हैं न?“ तनु का स्वर व्यग्र था।
”बेटी, भगवान की इच्छा के आगे किसका वश चला है! विधाता ने लिजा की मृत्यु उसी तरह लिखी थी। भारत-दर्शन को आते समय क्या उसने सोचा था, यहाँ से वापिस ही न जा सकेगी?“ माँ ने निःश्वास छोड़ी थी।
”...............और एलिस........वह कहाँ है माँ? मेरी आँखों पर ये पट्टी क्यों बॅंधी है?“ तनु का स्वर व्याकुल हो उठा था।
”एलिस के दोनों पाँवों में कॉम्प्लेक्स फ्रैक्चर भर हुए हैं तनु, दो-तीन माह में एकदम ठीक हो जाएगी। ये ले डाक्टर साहिब तुझे देखने आ रहे है।“ माँ चुप हो गई थी।
”ये क्या मिसेज सरकार, लगता है बिटिया को आराम नहीं करने दिया। अगर आप अपने पर नियंत्रण न रख सकीं तो मुझे देखने आ रहे हैं।“ डाक्टर का स्वर गम्भीर था।
”नहीं........डाक्टर, मैं बिल्कुल बात नही करूँगी, पर माँ को यहाँ रहने दीजिए, प्लीज डाक्टर!“ तनु ने अनुनय की थी।
”ठीक है, तुम्हारी बात तो माननी ही पड़ेगी तनु। भगवान ने भी तुम पर खास कृपा की है, वर्ना उस एक्सीडेंट से बच पाना चमत्कार ही तो था।“ डाक्टर के स्वर में परिहास झलक आया था।
”सच कहिए डाक्टर अंकल, क्या मैं अन्धी हो गई हूँ?“ उत्तर के लिए तनु का रोम-रोम नयन बन गया था।
”तुम्हारी आँखों का आपरेशन हो चुका है, जाते-जाते तुम्हारी मित्र तुम्हारे नयनों के लिए अपनी ज्योति दे गई है।“ डाक्टर गम्भीर थे।
”ओह नो........क्या यह भी पॉसिबिल है डाक्टर-मेरा आपरेशन सक्सेसफुल न हो......क्या करूँगी मैं? अंधी जिन्दगी की अपेक्षा मुझे मृत्यु स्वीकार है डाक्टर!“ तनु फूट पड़ी थी।
”रिलैक्स मिस सरकार। लिजा की दुर्घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी। जीवित बची उसकी बहिन एलिस ने बहुत उदारतापूर्वक तुम्हें लिजा की आँखें देने की अनुमति दी थी। काँच के नुकीले टुकड़ों ने बेरहमी से तुम्हारी आँखों की ज्योति हमेशा के लिए खत्म कर देनी चाही थी तनु! एलिस के प्रति अपना आभार व्यक्त करने जरूर जाना तनु!“ डाक्टर ने अपना स्नेहपूर्ण हाथ तनु के माथे पर धर विश्वास दिलाया था।
”जरूर जाOऊंगी डाक्टर अंकल, कोशिश करूँगी एलिस के लिए मैं लिजा बन सकूँ।“ तनु का कंठ भर आया था।
आँखों की पट्टी खुलवाती तनु का हृदय आशंका से धड़क रहा था। अगर आपरेशन असफल रहा तो किस तरह काटेगी अंधेरी जिंदगी? परीक्षा-परिणाम के लिए तनु कभी व्यग्र नहीं हुई, पर उस पल के परिणाम के लिए तनु अधीर थी। पट्टी खोलने संबंधी आवश्यक निर्देश देने के बाद डाक्टर ने सहास्य तनु से पूछा था- ”आँख से पट्टी हटते सबसे पहले किसे देखना चाहोगी तनु? कोई विशेष मित्र हो तो उसे बुलवा दिया जाए?“
”सबसे पहले तो आपको देखना चाहूँगी डाक्टर, ये दृष्टि तो आपकी दी होगी न?“ तनु के शुभ्र मुख पर हल्का-सा गुलाल छिटक आया था।
”अरे मुझे देख बहुत निराश होगी, एकदम भूत दिखता हूँ।“ डाक्टर जोर से हॅंस दिए थे। कुशल हाथों ने तनु की आँखों से पट्टी उतार दी थी। अपनी हथेली से तनु की आँखें कुछ पलों को बंद कर डाक्टर ने धीमे-धीमे हथेली हटा ली थी। उजाले की किरण देखते ही उल्लसित तनु शायद चीख पड़ी थी- ”मेरी आँखें ठीक हैं माँ, मैं सब देख पा रही हूँ।“ तनु का उल्लास सबके चेहरों पर प्रतिबिम्बित था। डाक्टर के सफलता से दमकते मुख पर दृष्टि डाल तनु ने श्रद्धापूर्वक उनके पाँव छू लिए थे। स्नेह से आशीष दे डाक्टर ने पिता से कहा था-
”भगवान ने बिटिया की सुन्दर आँखों की रक्षा की है मिस्टर सरकार! एक दिन लिजा के नाम से गरीबों को दान करवा दीजिएगा। न जाने कितने अतृप्त सपनों के साथ विदा ली बेचारी ने! मुझे खुशी है तनु उसकी आँखों से देख सकेगी।“ तनु की पीठ थपथपा डाक्टर चले गए थे।
”सच तनु, अगर तुझे लिजा की आँखें नहीं मिलतीं तो इस संसार के रंग तू नहीं देख पाती।“ पिता का कृतज्ञ स्वर उस अपरिचित लिजा के प्रति स्नेह-विगलित था।
अस्पताल के प्राइवेट वार्ड में भर्ती एलिस को देखने तनु फूलों के साथ गई थी। द्वार खोलती तनु को देख एलिस के अधरों पर हल्की-सी मुस्कान तिर आई थी। फूल थामती एलिस की दृष्टि से टकरा गई थी। अपराधी भाव से तनु संकुचित हो उठी।
”मुझे बहुत खुशी है मेरी बहिन के नयन तुम्हारे साथ जीवित रहेंगे। वापिस जाकर मम्मी को बता सकूँगी तुम्हारे पास किसी रूप में लिजा जीवित है। तुम्हारी आँखों से वह भारत देख सकेगी।“ सच्चे हृदय से तनु को बधाई देती एलिस का गला भर आया था।
”क्या मैं तुम्हारी लिजा नहीं बन सकती एलिस?“ तनु ने बहुत प्यार से एलिस का हाथ अपने हाथों में थाम लिया था।
प्रत्युत्तर में एलिस ने तनु के हाथ पर अपना स्नेह-चुम्बन अंकित कर स्वीकृति जता दी।
उस दुर्घटना ने तनु को अन्तर्मुखी बना दिया था। उसके मौन से माता-पिता चिन्तित हो उठते थे। कभी-कभी माँ से तनु बचकाने प्रश्न पूछ बैठती थी- ”सच कहना माँ, मेरे पास अपनी आँखें देख लिजा को दुःख होता होगा न?“
”छिः पगली, जो इस संसार से जाता है, वह अपना माया-मोह त्याग कर जाता है। जा कुछ दिन अपनी बुआ के पास रह आ, तेरा सारा वहम, भ्रम दूर हो जाएगा।“
तनु की डॉक्टर बुआ उसे अपने पास छुट्टियाँ बिताने को कब से बुला रही थीं। अस्पताल में एलिस के पास बैठी तनु न जाने अपने को क्यों बहुत सुरक्षित पाती थी। एलिस की स्नेहपूर्ण बातों में समय मानो पंख लगा उड़ जाया करता था। एलिस के पास प्रति संध्या जाना तनु का अनिवार्य काम था। बुआ के पास जाने का मोह भी उसे आकृष्ट नहीं कर सका था।
एक संध्या सफेद रजनीगंधा के फूलों के साथ तनु जब हॉस्पिटल पहुंची, एलिस के पलंग के पास बैठे आकर्षक विदेशी युवक को देख वह ठिठक गई थी। बहुत दुलार-भले स्वर में तनु को पुकार एलिस ने उस युवक से उसका परिचय कराया था-
”हेनरी, तुम्हारी लिजा को मैं सुरक्षित न रख सकी, पर तनु में उसकी जीवन्त आँखें मैंने सुरक्षित रख ली हैं। पहिचानते हो न?“
तनु की आँखों पर अपनी गहरी दृष्टि निबद्ध कर हेनरी मानो दृष्टि उठाना ही भूल गया था। तनु के आरक्त मुख को एलिस ने उबार लिया था-
”तनु, हेनरी और लिजा शीघ्र ही परिणय-सूत्र में बॅंधने वाले थे। लिजा के हृदय में भारत के प्रति आकर्षण हेनरी ने ही जगाया था। हेनरी के पितामह कई वर्ष भारत रहे थे।“
”हेनरी, ये तनुश्री सरकार एम0ए0 इतिहास की मेधावी छात्रा है..........उस दिन हम सब साथ ही थे...........।“
जैसे सपने से जाग हेनरी ने तनु से हाथ मिलाने को अभ्यासवश हाथ बढ़ाया था- ”आपसे मिलकर खुशी हुई, पर दुःख है........“ तनु के अभिवादन में जुड़े हाथों को एलिस ने स्नेहपूर्वक अपने हाथों में ले लिया था।
”सिली गर्ल......जानते हो हेनरी, लिखा के प्रति ये लड़की अपने को न जाने क्यों अपराधी मानती है। शायद यहाँ के लोग ज्यादा भावुक होते हैं। हम हर घटना को व्यावहारिक रूप में लेते हैं न?“
”सच तो यह है मिस सरकार, हम आपके प्रति कृतज्ञ हैं। लिजा कहीं किसी रूप में है, ये बात हमें शांति देती है। आप व्यर्थ का अपराध-बोध न रखें।“ शांत-सहज स्वर में हेनरी ने मानो दिलासा देना चाहा।
पूरे समय तनु को लगता रहा उस युवक की आँखें उसके मुख पर गड़ी रही थीं। घर वापिस आने की आज्ञा माँगते ही तनु के साथ हेनरी भी उठ खड़ा हुआ था- ”चलिए, आपको नीचे तक छोड़ आऊं।“
”नहीं-नहीं............ मैं रोज आती हूँ, चली जा।ऊंगी। आप एलिस के साथ रहें।“
प्रत्युत्तर में मुस्कान के साथ हेनरी तनु के साथ चल दिया था। नीचे पहुंच तनु से हेनरी ने अचानक पूछा था-
”कल मेरे साथ ताज चल सकेंगी मिस सरकार? हम दोनों साथ ही ताज देखना चाहते थे, पर लिजा के साथ आ नहीं सका था...............।“
तनु चैंक उठी थी.......... हेनरी के शब्दों में प्रार्थना थी या अधिकार, समझ पाना कठिन था। ताज के प्रति हेनरी का आकर्षण एक इंजीनियर का उस भव्य स्मारक के प्रति था या लिजा के प्रेमी रूप में, वह लिजा की आँखों के साथ उसे देखना चाहता था? तनु का हृदय तेजी से धड़क उठा था।
”मैं कल सुबह पहुंच जाऊंगा, तैयार रहिएगा।“ हेनरी के इस कथन में निश्चय ही अधिकार-भाव प्रबल था।
अगले दिन टैक्सी पर हेनरी स्वयं तनु के घर आ गया था। उसके सुन्दर व्यक्तित्व, शिष्ट व्यवहार से सब प्रभावित हुए थे। माँ का मन उदास हो आया था-
”लोग कहते हैं पश्चिम में आत्मिक प्यार नहीं तलाक प्रचलित है, पर देखो न बेचारा हजारों मील दूर से अपनी प्रेयसी की बहिन को देखने आया है।“
ताज के रास्ते में टैक्सी जब दुर्घटना के मोड़ पर पहुंची तो तनु सिहर उठी थी। अस्फुट शब्दों में जब उसने हेनरी को उस विषय में बताना चाहा तो एक क्षण बाहर देख तनु के काँपते हाथों पर अपना सबल हाथ धर सांत्वना देनी चाही थी। हेनरी का गम्भीर मौन तनु को व्याकुल कर गया, निश्चय ही उस दुर्घटना के लिए हेनरी उससे रूष्ट था। आकुल कंठ से तनु पूछ बैठी थी-
”बहुत नाराज़ हैं न आप मुझसे?“
विस्मयान्वित हेनरी तनु को निहारता रह गया था-
”आपसे नाराज अकारण ही क्यों होऊंगा? क्या जानकर कोई अपनी आँखें खो सकता है? अपने मन में ऐसे व्यर्थ के काम्प्लेक्सेज़ डेवलप कर क्या आप नॉर्मल रह सकेंगी, मिस सरकार?“
”लेकिन लिजा की वस्तु पर अधिकार करना क्या मेरी अनधिकार चेष्टा नहीं है?“
”व्यर्थ ही दिल पर बोझ डाल रही हैं आप, लिजा का मैं प्रिय था क्या आपसे मित्रता की आशा नहीं रख सकता, तनु?“
हेनरी के शब्दों में न जाने क्या था कि तनु संयम तोड़ रो पड़ी थी। इतने दिनों का संचित गाम्भीर्य आँसुओं में बह निकला था। तनु की हथेलियाँ अपने हाथों में ले हेनरी शांत बैठा रह गया।
ताजमहल के सामने बिछी हरी घास पर बैठी तनु उस अपरिचित विदेशी युवक को आद्योपान्त दुर्घटना की कहानी सुना चुकने के बाद मानो हल्की हो उठी। तनु का हाथ पकड़ हेनरी ताज की ओर चल दिया था। शाहजहाँ-मुमताज की प्रणय-गाथा सुनाती तनु तनिक संकुचित हो उठी थी। शाहजहाँ की व्यथा से हेनरी की व्यथा का कहीं तो साम्य था। चलते समय ताज का एक बड़ा-सा मॉडेल हेनरी ने पैक करा लिया था।
तनु के ड्राइंग रूम में उसकी बनाई पेंटिग्स देख हेनरी मुग्ध हो उठा था। संध्या कब रात में उतर आई घर के किसी भी प्राणी का ध्यान नहीं गया। अपने खुले स्वभाव के कारण कुछ ही देर में हेनरी सबका प्रिय पात्र बन चुका था। सबके साथ डिनर लेता हेनरी भारतीय भोजन की जी खोल प्रशंसा कर रहा था-
”अब मेरी समझ में आ गया ग्रैंड पा इंडिया छोड़कर क्यों नहीं जाना चाहते थे........ भला ऐसा मजेदार खाना उन्हें इंग्लैंड में मिल पाता?“
”कितने वर्ष रहे थे तुम्हारे ग्रैंड पा यहाँ?“ पापा की उत्सुकता स्वाभाविक ही थी।
”पूरे पच्चीस वर्ष ग्रैंड पा ने यहाँ सर्विस की थी, और जाते समय यहाँ के मसाले साथ बाँध ले गए थे। बचपन में वह हमें यहाँ की बहुत इंटरेसटिंग स्टोरीज सुनाते थे। लिजा और एलिस को भारत के प्रति आकर्षण इन्हीं कहानियों से शुरू हुआ था।“ अचानक हेनरी चुप हो गया था।
मम्मी ने ही बात सम्हाली थी- ”जब यहाँ आए हो तो फ़तेहपुर सीकरी जरूर देख लो, हेनरी। एक दिन की राजधानी के उजड़े वैभव में भी अपना ही आकर्षण है।“
”तो चलिए कल चलते हैं और हाँ हमारे साथ फ्री गाइड तो है ही-मिस तनु सरकार मध्ययुगीन इतिहास-विशेषज्ञा.........“
हेनरी की नाटकीय मुद्रा पर परिवार के सदस्य जोर से हॅंस पड़े थे। तनु की सर्दी की छुट्टियाँ चल रही थीं, अतः उस निमंत्रण को टाल पाना सहज नहीं था। मम्मी-पापा ने व्यस्तता जता आसानी से पूरा दायित्व तनु पर छोड़ दिया था।
प्रातः ठीक साढे़ सात बजे टैक्सी के साथ हेनरी द्वार पर खड़ा था। लंच पैकेट्स टोकरी में डाल तनु भी बाहर आ गई थी।
”वाह, क्या-क्या ले आई हैं इस पिटारी में?“
”मम्मी ने मटर की कचैड़ियाँ आई मीन समर्थिंग लाइक फ्राइड हैम्बर्गर बनाया है।“
”योर मम्मी इज़ ग्रेट-मुझे आपसे जलन होती है।“
”किसी की कुकिंग की इतनी तारीफ की जाए तो कम-से-कम इतना तो करना ही होता है न?“ तनु हॅंस पड़ी थी।
”तारीफ़ से और क्या पाया जा सकता है मिस सरकार?“
हेनरी के नयनों में न जाने क्या था कि तनु जल्दी में आ गई थी- ”अब अगर यहाँ बातें करते रहे तो शाम को सीकरी पहुंचेंगे श्रीमान हेनरी.............“
मुस्कराते हेनरी ने कार का दरवाजा खोल तनु को आमंत्रित किया था।
फ़तेहपुर सीकरी का रास्ता तनु को हमेशा आवश्यकता से अधिक लम्बा लगता था, पर उस दिन वही रास्ता कितना छोटा हो गया था! गम्भीर हेनरी कभी बच्चों-सी हरकतें कर बैठता था। हरे चनों को कैसे छीलकर खाया जाता है बताती तनु उसके अनाड़ीपन पर हॅंस पड़ी थी। कभी उस पल हेनरी उसमें अपनी लिजा नहीं देख रहा था?
इतिहास की मेधावी छात्रा तनु सरकार ने भोलेपन से बताया था-
”यहाँ इसी जगह नूरजहाँ ने कबूतर उड़ा कर शहजादे से कहा था...........“
अचानक हेनरी अप्रत्याशित कर बैठा था, तनु को एकदम अपने पास खींच उसके मुख पर अपना स्नेह-चुम्बन अंकित करना ही चाहा था कि झटके से अलग होती तनु लगभग चीख उठी थी-
”छिः, यह क्या?“
विस्मित हेनरी अपना अपराध कहाँ समझ पाया था-
”क्या हुआ तनु? मैंने कहाँ गलती की.............?“
”भारतीय समाज में चुम्बन केवल बच्चों का लिया जाता है या...........।“ आगे कह पाना तनु को सम्भव नहीं था।
”आई एम सॉरी ............. एक्स्ट्रीमली सॉरी..........पर उस पल आप मुझे एकदम नन्हीं-सी बालिका ही लगी थीं। क्षमा कर सकेंगी? आपके आचार-विचार जानने में तो समय लगेगा ही।“ हेनरी सचमुच परेशान था।
”ठीक है, आइए वहाँ उस बारादरी के पास चलें। अब तो आपको भूख लग आई होगी?“
बारादरी में बैठ तनु ने बताया था- ”यहाँ बैठ बादशाह संगीतकारों के संगीत का आनंद लिया करते थे............. आप गाते हैं?“
”सिर्फ सुनने का शौक है, अगर अब तक आपने मुझे माफ़ कर दिया हो तो एक गीत सुनाएँगी?“
”मैं गा सकती हूँ, यह आपने कैसे जाना?“
”बहुत-सी बातें बिना कहे-सुने भी जानी जा सकती हैं, अब मैं आपसे सचमुच गीत की रिक्वेस्ट कर रहा हूँ, मिस सरकार प्लीज!“
तनु का मीठा स्वर बारादरी के सामने फैली जलराशि को मानो आंदोलित कर गया था। विस्मय-विमुग्ध हेनरी तनु को निहारता रह गया था। प्रशंसा का एक भी औपचारिक शब्द मुंह से नहीं निकला।
एक संध्या एलिस तनु से पूछ बैठी थी-
”हेनरी कैसा लगा, तनु? अब तक तो तुम उसे काफ़ी जान चुकी होगी?“
”............. लिजा भाग्यशाली थी एलिस, काश दोनों मिल पाते!“
”हेनरी जिसे भी मिलेगा भाग्यशाली होगा, तनु! “
”हाँ एलिस! हेनरी दूसरों की भावनाओं को सम्मान देते हैं, स्नेह देते हैं, वर्ना.......“
”वर्ना क्या, तनु?“ एलिस तनु की बात समझ न पाई थी।
”वर्ना जिसने उनकी प्रेमिका की सबसे प्रिय ज्योति चुराई हो उससे घृणा न करते ?“
”घृणा........... तुमसे ?“ अजीब मुस्कान आ गई थी एलिस के अधरों पर।
”एलिस, तुम मुझे प्यार करती हो न?“ तनु के स्वर में बच्चों-सी उत्कंठा थी।
”मैं अकेली ही क्यों, तुमसे जो भी मिलेगा प्यार करेगा, ठीक कहा न, हेनरी?“ एलिस की दृष्टि का अनुसरण करती तनु संकुचित हो उठी थी। द्वार से टिककर खड़ा हेनरी मुस्करा रहा था।
”छिपकर अपनी तारीफ सुनना क्या अच्छी बात है?“ तनु नाराज़ थी।
”हम तो खुलकर प्रशंसा करते हैं और खुले-दिल उसका प्रदर्शन करना जानते हैं-इसीलिए कभी अपराधी तक बन जाते हैं, मिस सरकार !“
हेनरी की बात पर मानो फतेहपुर सीकरी का चुम्बन-प्रयास तनु के ओठों पर दहक उठा था। धीमे से हेनरी ने फिर कहा था-
”यहाँ कितना लम्बा और औपचारिक नाम लेना पड़ता है आपका मिस सरकार.............!“
”आप मुझे सिर्फ तनु क्यों नहीं कहते, मिस्टर............“
”थैंक्यू, आप भी मुझे सिर्फ हेनरी ही कहेंगी।“
चार दिनों बाद हेनरी के वापिस जाने की बात पर न जाने क्यों तनु का मन उदास हो रहा था। हेनरी जिसे पहले जाना भी नहीं था, उसका जाना उसे इतना बुरा क्यों लग रहा था! कहीं वह हेनरी को लिजा की दृष्टि से ही तो नहीं देखने लगी थी? तनु डर गई थी। अगली संध्या के लिए हेनरी ने तनु को आमंत्रित किया था-”जाने के पहले आपके साथ कुछ समय बिताने की अनुमति चाहता हूँ- कल ‘युवराज’ में हम साथ डिनर लेंगे।“
हेनरी के निमंत्रण की बात पर माँ ने सस्नेह कहा था-”तुमहें भारतीय खाना पसंद है, अपने हाथ का बनाया खाना खिला मुझे सुख मिलेगा हेनरी ! कल रात तुम हमारे साथ ही खाना खाओ।“
”नहीं .............कल तो अपने गुरू के सम्मान में भोज देना चाहूंगा........कल के लिए क्षमा करें।“
”तुम्हारा गुरू कौन है, हेनरी?“ माँ विस्मित थीं।
”वही जिसने भारतीय संस्कृति से परिचय कराया है...............आपकी बेटी तनु।“
”तनु..............तुम्हारी गुरू?“ माँ खिलखिला कर हॅंस पड़ी थीं, पर हेनरी ने अपना निमंत्रण जब फिर दोहराया तो माँ को आज्ञा देनी ही पड़ी थी।
होटल के एकान्त केबिन में कोल्ड-ड्रिंक लेते हेनरी ने कहा था-
”लिजा की आँखों को बहुत प्यार करता था तनु, आज उन्हें जी भर देखने का भी अधिकार नहीं रह गया है।“
तनु जैसे जम गई थी, धीमे से कहा था-”लिजा की आँखों पर अधिकार तुम्हारा ही होना चाहिए हेनरी! तुम कहो तो मैं ये तुम्हें वापिस कर सकती हूँ, यह मेरा वचन है।“
”वचन तो दे रही हो, पर क्या सचमुच अधिकार दे सकोगी तनु? मुझे लिजा की वही जीवन्त आँखें चाहिए, जिनसे उसने मुझे बहुत चाहा था..........दे सकोगी तनु सरकार?“
”क्यों नहीं, मैं इनके प्रति तुम्हारा आकर्षण समझती हूँ हेनरी ! इन पर मेरा कोई अधिकार नहीं, कल ही डाक्टर से कह तुम्हें वापिस कर दूंगी...........।“ तनु कुछ भावुक और कुछ उत्तेजित हो उठी थी।
”पर मुझे तो जीवन्त आँखें चाहिए तनु...........!“
”तुम्हारी लिजा का कोई अंश मुझमें जीवित है, इसे तुम सह नहीं पा रहे हो न, हेनरी? क्या करूँ मैं?“ तनु परेशान हो उठी थी।
”तुम सदैव के लिए मेरे पास आ जाओ, तनु !“ दो उत्सुक नयन तनु के निष्प्रभ मुख पर गड़ गए थे।
”इसीलिए न कि तुम हमेशा मुझमें लिजा खोजते रहो। इस मृगतृष्णा से तुम्हें हमेशा निराशा मिलेगी, हेनरी। मैं कभी लिजा नहीं बन सकती।“
”मैंने कब चाहा तुम्हें लिजा रूप में स्वीकार करूँ?
”पर हमारे बीच हमेशा लिजा जीवित रहेगी। मुझे तो ये भी नहीं पता लिजा क्या थी, जबकि तुम्हे मुझसे उसी की अपेक्षा रहेगी। सच कहो, क्या लिजा को भुला सकोगे, हेनरी.........क्या इतना क्षणिक था तुम्हारा उसके प्रति प्यार?“ तनु आवेश में आ गई थी।
”अगर कहूँ मैं सिर्फ तुम्हें पाना चाहता हूँ?“
”तो लिजा के साथ अन्याय करोगे, हेनरी!“
”देखो तनु, मैं एक व्यावहारिक वैज्ञानिक हूँ। लिजा की क्षति से मैं बहुत आहत हुआ, पर तुम्हें देख लगा अभी भी बहुत शेष है। तुम्हें पा मैं पूर्ण हो सकता हूँ। क्या हम एक नया जीवन शुरू नहीं कर सकते, तनु?“
”नहीं........नहीं.............मुझे क्षमा करो, हेनरी ! अगर तुम कभी एक पल को भी उदास हुए तो मुझे लगेगा मैंने तुम्हें निराश किया है। मुझे कठिन से कठिन सज़ा दो हेनरी, मैं स्वीकार करूँगी, बस यही मत माँगो।“ तनु का कंठ भर आया था।
”मेरी दी सजा स्वीकार करने को प्रस्तुत हो, तनु?“ हेनरी ने अपने दोनों हाथों में तनु के काँपते हाथ ले पूछा था।
प्रत्युत्तर में तनु की भीगी पलकें जैसे ही ऊपर उठीं, हेनरी ने दृढ़ शब्दों में कहा था- ”मुझे जीवन-भर के लिए स्वीकार करना होगा तनुश्री ! क्या इससे बड़ी सजा कोई और हो सकती है, तनु?“
”तुम मेरे अपराध का बदला ले रहे हो, हेनरी?“
”यहाँ आने के पहले शायद कहीं कोई आक्रोश रहा हो कि दुर्घटना में लिजा क्यों......... तुम क्यों नहीं, या उसकी मृत्यु से कोई अन्य लाभान्वित हुआ है, पर यहाँ आकर जब तुमसे मिला तो आक्रोश न जाने कहाँ बह गया। तुम्हारा अपने प्रति अपराध-भाव, सहमी-भोली-निष्पाप छवि ने पहले मेरी सहानुभूति जीती और फिर मेरा प्यार। तुम्हारे गुणों ने, निश्छलता ने मुझे इस सीमा तक आकृष्ट किया कि मैंने स्वयं अपने को हज़ार-हज़ार बार कर्स किया है......तुम लिजा नहीं हो, यह सत्य शीशे-सा स्पष्ट है, फिर तुम बार-बार वही बात क्यों दोहराती हो, तनु?“
”किसी को इतनी जल्दी भुला देना क्या न्यायोचित है, हेनरी?“ तनु के स्वर में शायद कहीं कोई निराशा थी।
”एक अच्छे मित्र की तरह लिजा सदैव मेरी स्मृति में रहेगी तनु, पर उसके कारण तुम कभी उपेक्षित या अपमानित हो, यह असम्भव है। अब कहो मेरा दिया दंड स्वीकार है या वचन हार रही हो, तनु?“
विस्मयान्वित तनुश्री सरकार, एम0ए0 की छात्रा हतबुद्धि हेनरी का मुख ताकती रह गई थी.......... ”पर ............पर माँ-पिताजी?“
”उनकी स्वीकृति पहले ही पा चुका हूँ, तनु ! हाँ उन्हें यह नहीं बताया था कि तुम मुझे अपराध-दंड रूप में स्वीकार करोगी। विवाह के बाद काश्मीर चलेंगे-ठीक है न? एक बात और, तुम्हारे दंड की अवधि आजीवन मेरा साथ होगी-बोलो है मंजूर?“ शरारती मुस्कान से हेनरी ने पूछा।
”सजा पाने की स्वयं स्वीकृति दी थी हेनरी, अब आजीवन तुम्हारी बंदिनी हूँ।“ लज्जा से आरक्त मुख तनु ने झुका लिया था।
”बंदिनी नहीं मेरी प्रेरणा, मेरी मीत, मेरी सब कुछ तुम हो, तनु!“ तनु के झुके मुख को बहुत प्यार से ऊपर उठा हेनरी ने अपना स्नेह-चिन्ह अंकित कर दिया।
रचना अच्छी लगी ।
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