12/1/09

बर्फ के आँसू

लेक एवेन्यू के सामने वाले पेड़ बर्फ से ढॅंके खड़े थे। कुछ देर पहले रात में आने वाले तूफ़ान की चेतावनी दी जा चुकी थी। नीरज को बाहर निकलता देख साथी चौंक उठे । अशोक ने कहा था-पागल हो गया है क्या? आज हैवी स्टाँर्म आने वाला है.एबाहर बर्फ में दफ़न हो जाएगा।शेखर ने व्यंग्य किया था- अरे भई इसे पैसा जान से ज्यादा प्यारा है, जानते नहीं?
नीरज उदास हॅंसी हॅंस दिया था-
बहुत कुछ नहीं जानते हो मेरे दोस्त! तुम सबको तो 'फाइनेन्शियल एड' मिली है न, मेरी बात नहीं समझोगे।
अरे एक दिन काम नहीं करेगा तो कोई कहर तो टूट नहीं पड़ेगा। आज मत जा, वर्ना पछताएगा। अशोक ने समझाना चाहा था।
नहीं जाऊॅंगा तो कल से मेरी जगह कोई और रख लिया जाएगा। सपाट स्वर में नीरज ने जवाब दिया था।
अरे तो कौन-सा बड़ा जाँब है? कोई और असाइनमेंट मिल ही जाएगा। शेखर ने समझाना चाहा था।
इतने पैसे और एक टाइम का मुफ्त खाना मेरे लिए तूफान से ज्यादा महत्वपूर्ण है। नीरज दरवाजा खोल चला गया था।
आज पता लगेगा बच्चू को! सेंट्रली हीटेड रूम में आराम से थे, बाहर निकलो तो आटे-दाल का भाव पता लग जाएगा। पहनने को यही घिसा कोट बर्फीले तूफान को भला झेल पाएगा? अशोक खीझ उठा था।
अपने यहाँ आने के पागलपन की सजा ही तो भुगत रहा है बेचारा। अब तक शान्त बैठे गौरव ने बस इतना ही कहा था।
क्या यहाँ आना पागलपन है? यार तुम भी कमाल करते हो। शेखर हॅंस पड़ा था।
बिना आर्थिक सहायता के एक मामूली घर के लड़के का यहाँ आ जाना निरा पागलपन ही तो है। जानते हो न, एक सेमेस्टर का कितना खर्च आता है? गौरव ने प्रश्न किया था।
यह नीरज की कमजोरी है, जरा भी डैशिंग नहीं है वर्ना यू एस आकर किसी को छात्रवृत्ति न मिले ताज्जुब की बात है। अशोक ने अपनी सम्मति दी थी।
जानते हो नीरज अपने परिवार का पहला इंजीनियर है। ग्रामीण बैकग्राउंड के कारण तुम उसे भले ही स्मार्ट या डैशिंग न कहो, पर बुद्धि या प्रतिभा में क्या हमसे कम है? गौरव नीरज के प्रति पूर्णतः सहानुभूतिशील था।
हाँ-हाँ, तभी तो डिश वाशिंग का काम मिला है जनाब को। अशोक ने सीधा कटाक्ष किया था।
और उपाय भी क्या है? घर से किसी तरह टिकट और एक सेमेस्टर की फीस जुटा लाया था। यहाँ रहने के लिए कोई स्थायी साधन भी तो चाहिए न? गौरव ने स्पष्टीकरण दिया था।
तुम तो उसकी ऐसी वकालत कर रहे हो मानो वह तुम्हारा क्लाएंट हो। शेखर चिढ़ उठा था।
फिर हमने भी तो उसकी कितनी मदद की है! रहने को इतनी सस्ती जगह दी.............
अशोक का वाक्य काट गोरव ने कहा था-
हाँ, उस सीलन-भरे स्टोर में जहाँ इन्सान तो क्या कीडे़ भी मुश्किल से साँस ले पाते हैं, दिन में भी रात का अॅंधेरा रहता है, क्या वह किसी इन्सान के रहने की जगह है? गौरव का स्वर आवेशपूर्ण था।
तो तुम उसे अपने कमरे में क्यों नहीं रख लेते? अशोक ने सीधा प्रश्न उछाला था।
अगर उसका स्वाभिमान आड़े न आता तो मैं यह प्रस्ताव बहुत पहले रख चुका हूँ, पर मुफ्त में वह किसी का एहसान नहीं लेना चाहता।
गौरव के उत्तर पर दोनों विस्मित रह गए थे। एक माह पहले काँलेज के एक साथी ने नीरज के विषय में गौरव को बताया था। आँफिस के बड़े बाबू के पुत्र नीरज ने कैमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त कर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका के सपने देखे थे। नीरज को एडमीशन तो मिल गया, पर आर्थिक सहायता नहीं मिल सकी थी। साथ के कुछ लड़को ने ही सलाह दी थी-
'तुम तेज, प्र्रतिभाशाली छात्र रहे हो, अगर पहले सेमेस्टर में छात्रवृत्ति न भी मिली तो वहाँ पहॅुंचने पर दूसरे सेमेस्टर मे छात्रवृत्ति जरूर मिल जाएगी।' स्वंय नीरज को अपनी योग्यता में विश्वास था। माता-पिता की इच्छा के विरूद्ध उसने यहाँ आने का निर्णय ले लिया था। पिता ने अपनी विवशता बताई थी- बड़ी बेटी के विवाह का ऋण पहले ही सिर पर सवार था, दूसरी बेटी विवाह. योग्य थी। अब तो पुत्र की नौकरी पर ही भरोसा था।
एकमात्र पुत्र के हठ आगे माता-पिता को झुकना ही पड़ा था। किसी तरह टिकट का प्रबन्ध तो पिता ने कर दिया था, पर सेमेस्टर की भारी फीस का हल निकालना कठिन था। रास्ता माँ ने निकाला था। लाड़ले पुत्र की इच्छापूर्ति के लिए जेवरों का मोह त्याग एसेमेस्टर की फीस पूरी कर दी गई थी। माता-पिता के त्याग ने पुत्र को विचलित तो किया, पर सात समुद्र पार के चमत्कारी देश का आकर्षण प्रबल था-
छात्रवृत्ति मिली नहीं कि सब कमी पूरी कर दूंगा। पढ़ाई पूरी होते ही नौकरी-भर मिलने की देर है- संसार का हर सुख आपके चरणों में धर दूंगा। चरण छू, आते-आते वह माता-पिता को सान्त्वना देता आया था। छोटी बहिन के विवाह की समस्या भी उसकी यू एस ए की नौकरी करते ही दूर हो जाएगी- इसी विश्वास के साथ छाती पर पत्थर रख माता-पिता ने विदा किया था।
यहाँ आकर ट्यूशन-फ़ीस के अलावा होस्टेल पर आने वाले खर्च को सुन नीरज को अपने सपने टूटते नजर आए थे। एक भारतीय छात्र ने ही सलाह दी थी कि भारतीय लड़को के साथ रहे तो खर्च कम आएगा। यू एस ए आए अधिकांश छात्र या तो छात्रवृत्ति पर आए थे अन्यथा अमीर बापों के बेटे थे। उन दोनों ही श्रेणियों में नीरज खप नहीं सकता था।
गौरव और उसके साथियों ने यह अपार्टमेंट जब लिया तो सीलन-भरे स्टोर को व्यर्थ की जगह कहकर छोड़ दिया था। उसी स्टोर में रहने के बीस डाँलर प्रतिमाह के प्रस्ताव के साथ जब नीरज आ पहुंचा तो सब स्तब्ध रह गए थे।
इस दरबे में रह सकोगे? गौरव ने स्पष्ट प्रश्न किया था।
सहास्य नीरज ने कहा था- रहना होगा ही कितनी देर का? सिर छिपाने को जगह-भर चाहिए।
गौरव ने कम पैसे लेने की बात कहनी चाही थी, पर शेखर और अशोक नाराज हो गए थे-
अरे बीस डाँलर होते क्या हैं? मुफ्त में रहेगा यहाँ...फिर जब वह खुद आँफर दे रहा है तो हम क्यों पैसे कम करें?
जगह मिल जाने पर नीरज का मुख कृतज्ञता से चमक उठा था। सुबह सब अपना ब्रेकफास्ट ले काँलेज निकल जाते। एक चाय का डिब्बा और एक पाउडर मिल्क का टिन नीरज भारत से लाया था। सुबह एक कप चाय ले जब वह काँलेज जाने लगा तो गौरव ने कहा था- अगर तुम चाहो तो हमारे साथ ब्रेकफास्ट शेयर कर सकते हो।
नहीं- थैंक्स। मेरी सुबह खाने की आदत नहीं है। वहीं काँलेज-कैंटीन में कुछ ले लूंगा।
उसके जाने पर अशोक ने पीछे से कहा था,
ऐसे-ऐसे नमूने अमेरिका आ जाते हैं। अरे इसे तो वहीं इण्डिया में कहीं लग जाना था, शादी में एकाध लाख माँग लेता, जिन्दगी बन जाती। यहाँ बेकार झख मारने आया है।
अरे तुम नहीं जानते- टिपिकल मक्खीचूस इण्डियन है। बाप की तिजोरी भरी होगी। यह उन लोगों में से है चमड़ी जाए दमड़ी न जाए। शेखर ने भी अशोक की बात का समर्थन किया था।
पूरे दिन काँलेज के बाद सब थककर चूर हो जाते थे। शेखर तो आते ही पलॅंग पर पसर जाता था। उस समय नीरज पैदल न जाने कहाँ जाता था। पूछने पर हमेशा यही कहकर टाल देता
शाम को देर तक घूमने की मेरी आदत है- गाँव का लड़का ठहरा न? अजीब उदास-सी हॅंसी हॅंस देता था नीरज।
और उसकी सन्ध्या को घूमने की आदत का रहस्य खोला था अशोक ने। हॅंसते-हॅंसते पूछा था
गैस, अपने नीरज दि ग्रेट शाम को कहाँ घूमने जाते हैं।?शेखर ने अटकल लगाई थी, ।लगता है किसी लड़की से इश्क फर्मा रहे हैं जनाब। वह मॅुंह की खाएँगे कि छठी याद आ जाएगी। जानते नहीं लड़कियों से दोस्ती करना कितना महॅंगा शौक है।
कमाल करता है तू भी यार! अरे इस बुद्धू के आगे कौन लड़की घास डालेगी? अरे भई वह रोज 'होटल ट्राँय' जाता है, समझे?
क्या? विस्मय से शेखर के नयन फैल गए थे-
वहाँ तो खाना बहुत महॅंगा है, कैसे एफोर्ड करता है?
गौरव ने भी पुस्तक से दृष्टि उठा अशोक की ओर ताका था।
हाँ भई, जनाब वहाँ काम करते हैं।
हाँ-हाँ, बहुत इम्पाँटैंट काम है उसका। अगर एक दिन न जाए तो होटल बन्द हो जाएगा। पहेली बुझाने में अशोक को मजा आ रहा था-
कुड यू गैस गौरव? आपके धीर-गम्भीर नीरज, कैमिकल इंजीनियर फ्राँम इण्डिया वहाँ क्या काम करते हैं?
कोई भी काम करना यहाँ अपमानजनक तो नहीं है, अशोक! उसे हमारी तरह कोई सुविधा-सहायता भी तो प्राप्त नहीं है। कुछ भी करे अपना खर्चा स्वयं निकाल रहा है, हमारे-तुम्हारे आगे हाथ तो फैलाता नहीं। गौरव को अशोक का यूँ हॅंसी उड़ाना खल रहा था।
अरे अगर उसे डिश वाशिंग ही करनी थी तो भारत ही क्या बुरा था? वहाँ कम-से-कम इंजीनियर तो रहता! यहाँ तो दूसरों के जूठे................।
उसी समय नीरज के प्रवेश ने अशोक को अपनी बात अधूरी छोड़ने को विवश कर दिया था।
उस दिन के बाद से गौरव, नीरज के प्रति और भी अधिक सदय और सहानुभूतिपूर्ण हो उठा था। रात देर गए जब सब सोते थे, नीरज पुस्तकों में सिर झुकाए अपना भविष्य सॅंजोता था। घर से आने वाले पत्रों की नीरज को बहुत प्रतीक्षा रहती थी। पत्रों को भी वह बहुत सहेजकर रखता था। एक दिन अशोक ने कहा भी था
यार, सच बता ये चिट्ठियाँ तेरे घर से आती है या कोई गर्ल फ्रेंड है? चिट्ठियों को यूं छिपाता क्यों है?
नीरज बस मुस्करा-भर दिया था, पर सचमुच घर से आई चिट्ठियाँ वह सबकी दृष्टि से मानो बचाए रखना चाहता था।
उस दिन शेखर काँलेज से जल्दी आ गया था। लेटरबाँक्स में बस नीरज के लिए एक पत्र था। पत्रों प्रति नीरज की उत्सुक प्रतीक्षा ने शेखर को वह पत्र पढ़ने को बाध्य-सा कर दिया। पत्र नीरज के पिता का था- पुत्र को अच्छी फर्म में नौकरी पाने के लिए बधाई के साथ ही घर की समस्याओं का विस्तृत ब्यौरा था। माँ को डाँक्टर ने कैंसर का संदेह बताया था, छोटी बहिन माँ की बीमारी के कारण काँलेज नहीं जा सकती। पिता के रिटायरमेंट को आठ माह शेष थे। नौकर रख पाने की सुविधा के अभाव में छोटी बहिन पर घर का सारा दायित्व आ पड़ा है। भगवान् से प्रार्थना है नीरज दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक्की करे ताकि घर की समस्याएँ हल हो सकें। नीरज की फर्म के स्वामी को पिता ने आशीष भेजी थी, साथ ही नीरज को लिखा था यदि
सम्भव हो कुछ पैसे एडवांस ले भेज दे- माँ की स्थिति चिन्ताजनक है। पुत्र के लिए आशीर्वाद के साथ पिता के हस्ताक्षर थे।
पत्र को ज्यों का त्यों लेटर बाँक्स में डाल शेखर ने हॅंसते हुए रहस्योद्घाटन किया था- तो दोस्तो, हमारे नीरज जी केमिकल मैन्यूफैक्चरिंग फैक्ट्री में मैनेजर हैं- सूचना बकौल नीरज। अरे भाई झूठ की भी हद होती है! ये तो अपने ही बाप को बना रहा है!
तुमने उसका पत्र क्यों खोला शेखर? यही तुम्हारी सभ्यता है? गम्भीर स्वर में गौरव ने प्रतिवाद किया था।
प्रतिवाद की शेखर को आशा नहीं थी; सोचा था नीरज के झूठ पर आज के मनोरंजन का मसाला मिल जाएगा। बौखलाकर सफाई दी थी-
पत्र तो पहले ही खुला, मेरी निगाह पड़ गई।
दूसरों की विवशता की हॅंसी उड़ाना कितना आसान है! काश, तुम उसकी स्थिति समझ पाते! गौरव ने शान्त स्वर में कहा था।
जो भी हो, जो अपने माँ-बाप से इतना झूठ बोल सकता है उसपर हम रिलाय नहीं कर सकते। मैं तो कहता हूँ हमें उसके पिता को सच्ची बात लिख भेजनी चाहिए। कभी अचानक उन्हें सचाई पता लगेगी तो कितना बड़ा शाँक लगेगा उन्हें! अशोक ने कंसर्न शो किया था।
अगर तुम दोनों में से किसी ने भी ऐसा कुछ किया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा, समझे? व्हाइट आई से, आई मीन इट। हमेशा शान्त रहने वाले गौरव को उत्तेजित देख दोनों डर-से गए थे।
एक क्षण बाद गौरव ने फिर सधे-संयत स्वर में कहा था,
किसी झूठ से अगर किसी का लाभ हो तो उसे मैं झूठ नहीं मानता। किसी के सपनों की निर्ममता पूर्वक हत्या का हमें क्या अधिकार है? नीरज के स्वाभिमान को तोड़ तुम्हें क्या मिलेगा?
शेखर और अशोक ने उसके बाद बात आगे नहीं बढ़ाई थी। नीरज के प्रति उनके हृदय में जो हीन भावना थी वह गौरव के सामने कभी प्रकट न होने दी।
पिछले एक सप्ताह से शीत लहरी आई हुई थी। रात में भयंकर तूफान की चेतावनी के बावजूद नीरज चला गया था। चाहकर भी गौरव उसे रोकने की जिद नहीं कर सका। नीरज के लिए अब इस कार्य का दुगुना महत्व था- यह बात उसने गौरव के सामने स्पष्ट रूप में स्वीकार की थी। माँ का कैंसर से गलता शरीर, पिता की विवशता, बहिन का कच्ची उम्र में पूरे घर का बोझ उठाना, सबके लिए वह अपने-आपको दोषी ठहराता था। अपने यहाँ आने के अपराध के प्राययिश्चत्त-स्वरूप वह कुछ भी करने को तत्पर था। किसी तरह उसे रूपए कमाकर घर भेजने ही थे। घर वापस लौटने से उसका स्वाभिमान आहत होता था। किस मुंह से वापस जाए? क्या कहेगा वह उनसे?
बाहर बादल की गरज और हवा की तूफानी साँय-साँय बढ़ती जा रही थी। बर्फ गिरना शुरू हो गई थी। कैसे इस तूफान में नीरज पैदल आ सकेगा? गौरव उद्विग्न था। अशोक और शेखर भी अब चिन्तित नजर आ रहे थे।
अच्छा हो नीरज आज होटल में ही रूक जाए। इस बर्फीले तूफान में इतनी दूर पैदल कैसे जाएगा? शेखर ने कमरे का मौन तोड़ा था।
कितना मना किया था कि आज काम पर मत जाओ, पर उसे तो बस रूपया कमाने की धुन सवार है, 'ईडियट' कहीं का! अशोक भी परेशानी में झुंझला रहा था।
और उपाय भी क्या है उसके पास? उसकी स्थिति हमसे छिपी तो है नहीं। उसका स्वाभिमान हमारी सहायता भी तो स्वीकार नहीं करता! गाड़ी भी नहीं है हमारे पास, वर्ना ले आते उसे। भगवान ही रक्षा करें। गौरव मानो अपनी व्यग्रता छिपा रहा था।
नीरज की प्रतीक्षा करते तीनों न जाने कब सो गए थे। तूफान शान्त होता जा रहा था। रात के सन्नाटे को तोड़ती टेलीफोन की घण्टी बजी थी। शेखर नींद से जागता बड़बड़ाया था- लो आ गई मुसीबत, भला वापस आने का ये वक्त है।
टेलीफोन की घंटी फिर बजी थी। रिसीवर उठा शेखर ने हलो कहा था--
हलो के प्रत्युत्तर में एक अजनबी नारी-स्वर ने पूछा था
इज इट ट्वेण्टी सेवन लेक एवेन्यू? शेखर के यस पर उसी आवाज ने गौरव को बुलाया था-
आपके एक फ्रेंड कार से हिट हो गए हैं, आपसे मिलना चाहते हैं। जल्दी से क्वीन मेरी हाँस्पिटल में आ जाइए।.......जी हाँ, वह इमरजेंसी वार्ड में हैं।
ओह गाँड! कह गौरव ने रिसीवर रख दिया था। कुछ देर में ओवरकोट, मफलर से शरीर ढक तीनों टैक्सी में क्वीन मेरी हाँस्पिटल की ओर चल दिए थे।
डाँक्टर ने सूचना दी थी,
ही इज इन कोमा।........बहुत ब्रेव लड़का है! बुरी तरह हिट होने पर भी सेन्सेज में था। होश रहते गौरव को याद किया था।
कार का स्वामी कोई अमेरिकन वृद्ध था। तीनों लड़कों के साथ नीरज के लिए प्रार्थना कर रहा था-
पुअर चाइल्ड, इतने तूफान में विजिविलिटी तो शून्य थी। 'डोंट वाक' पर सड़क पार कर रहा था। मैं तो उसे देख नहीं पाया। गाँड सेव हिम! तीनों मित्र स्तब्ध ताक रहे थे।
नर्स ने आकर उन्हें दुःखद सूचना दी थी- उनका मित्र उन्हें छोड़ गया है। वह एक्स्ट्रीमली साँरी थी। नीरज की जेब से मिला पत्र गौरव को थमा नर्स चली गई थी। डाँक्टर ने भी सहानुभूति प्रकट की थी-
ऐक्च्युली स्पीकिंग, तुम्हारे फ्रेंड में स्टेमिना था ही नहीं, वर्ना यंग लड़के इतनी चोट झेल जाते हैं। आई थिंक ही वाज अण्डर-नरिश्ड।
पत्र नीरज ने अपने पिता को लिखा था- मुझे अच्छी नौकरी मिल गई है, पिताजी! माँ के इलाज के लिए शीघ्र ही व्यवस्था कर रहा हूँ। आप व्यर्थ चिन्ता न करें। अलका पर काम का बहुत बोझ पड़ गया है, उसे मेरा प्यार दीजिएगा। वेतन मिलते ही पैसे भेजूंगा, फिलहाल अभी दो सौ डाँलर भेज रहा हूँ। माँ को अच्छे डाँक्टर को दिखाइएगा। आपके आशीर्वाद से मैं पूर्ण स्वस्थ हूँ, अपना ध्यान रखिएगा। माँ को चरण स्पर्श।
-नीरज
अशोक फफक उठा था,
चलते समय मैंने ही कहा था वह बर्फ में दफ़न हो जाएगा। मैं क्या जानता था मेरी बात सच हो जाएगी!
गौरव ने अपना सांत्वनापूर्ण हाथ उसके कन्धे पर रख दिया था। शेखर के नयन अश्रुपूर्ण थे। तीनों ने एक-दूसरे को देखा। जिसने उन पर अपना कोई दायित्व कभी नहीं डाला, जिसके स्वाभिमान ने भूखे रहकर भी उनके सामने कभी हाथ नहीं फैलाने दिया, आज वह अपना सम्पूर्ण दायित्व उन पर कैसे छोड़ गया? डाँक्टर ने दो सो डाँलर गौरव को दिए थे-
तुम्हारे फ्रेंड ने तुम्हें देने को कहा था।
कितने गलत थे वे! अपने अन्तिम संस्कार का खर्च भी नीरज स्वंय दे गया था। भला वह स्वाभिमानी जात-जाते ऐसी गलती कर सकता था?
गौरव, मैं अपनी बचत के सारे पैसे देता हूँ, तुम नीरज के पिता को भेज दो। शेखर की भावुकता फूट पड़ी थी।
हाँ गौरव, हम सब मिलकर उसकी बाँडी इण्डिया भेज दें और बाकी अपने सारे पैसे उसके घर भेज देंगे, पुअर फेलो! अब उसके घर वाले क्या करेंगे गौरव? अशोक का गला रूँध गया था।
शायद यही ठीक होगा। उसके पिता को यहाँ बुलाकर उनका भ्रम तोड़ना गलत होगा। कम-से-कम उन्हें यही सन्तोष रहेगा कि बेटा बहुत बड़ी नौकरी कर रहा था, सुखी-सन्तुष्ट था। आज पहली बार गौरव उनके विचारों से सहमत था।
पुलिस अपनी कार्रवाई कर चुकी थी। गलती नीरज की ही थी- यह स्पष्ट था। इन्स्पेक्टर ने भी यही कहा था-
पहले तो हमने सोचा वह कोई ड्रंकर्ड होगा, पर डाँक्टर ने बताया वह नाँन-अलकोहलिक था। इतने तूफान में वह क्यों निकला? कहीं कोई लव एफेयर तो नहीं था?
शान्त गौरव ने यही कहा था,
वह काम पर जाने के लिए विवश था, हम उसे रोक नहीं सके इन्स्पेक्टर, दैट्स आँल।
कार का स्वामी बार-बार अपने को कर्स कर रहा था,
क्यों आज गाड़ी बाहर निकाली? विश्वास कीजिए गलती मेरी नहीं थी- स्पीड इतनी तेज थी कि ब्रेक लगाते-लगाते एक्सीडेंट हो गया। मैं तो ग्रीन लाईट पर ही जा रहा था।
हम जानते हैं गलती आपकी नहीं थी, यह उसका दुर्भाग्य था। आप दुःखी न हों।
जेब से चेकबुक निकाल पाँच हजार डाँलर का चेक लिख वृद्ध कार स्वामी ने पूछा था, यह मेरी ओर से इस युवक के लिए है........किस नाम का चेक काटना होगा?
गौरव ने कहा था-
हम सब व्यवस्था कर लेंगे, आप चिन्ता न करें। हम उसके मित्र हैं।
लेकिन यह मेरा दायित्व हैं। कृपया इसे अस्वीकार कर मेरी आत्मा का अपराध-बोध और न बढ़ाइए। मेरी विनती है यह स्वीकार कर लीजिए। वृद्ध अत्यधिक दयनीय हो उठे थे।
अगर आपको इससे शान्ति मिलेगी तो हम ये चेक उसके पिता के पास भेज देंगे। गौरव ने काँपते हाथों से चेक थाम लिया था।
आज सुबह नीरज के नश्वर शरीर के साथ उसके पिता को सहानुभूति का पत्र भेजते तीनों रो पड़े थे। पत्र में जोड़ दिया गया था,
नीरज के कार्यालय के समस्त अधिकारी एवं कर्मचारी शोक-संतप्त परिवार के दुःख में भागीदार हैं। नीरज जैसे कुशल अधिकारी के न रहने से कार्यालय की क्षतिपूर्ति कठिन है। साथ में नीरज की नौकरी का शेष वेतन चेक-रूप में भेजा जा रहा है। गाँड ब्लेस हिज सोल!
तीनों के बैंक अकाउंट में अब कुछ भी शेष नहीं रह गया था। आपर्टमेंट में सन्नाटा गहराता जा रहा था। उस सीलन-भरे स्टोर की ओर ताकने का भी साहस खो, वे सामने मेपल से झरते बर्फ के आँसुओ पर दृष्टि निबद्ध किए स्तब्ध बैठे थे।


No comments:

Post a Comment