12/1/09

उसके नाम का पत्र



क्या समझता है यह अपने-आपको? इसे मजा न चखाया तो मेरा नाम अनिता नहीं
अनिता अतीव सुन्दरी भले ही न हो, पर उसके चेहरे का आकर्षण कइयों से प्रशंसा पा चुका था।
थैंक्स, आपका ब्यूटी-सेंस काबिले-तारीफ है। किसी तरह अपने को संयत रख अनिता ने उत्तर दिया था।

आपकी एक क्वालिटी की तारीफ करनी पडे़गी, सच को सहजता से स्वीकार कर लेने की शक्ति हैं आपमें। सुमीत अपने उसी मूड में था।

मेरी क्वालिटीज आप न जानें तभी अच्छा है, सुमीत

उसके कथन से निरपेक्ष सुमीत हल्के स्वर में सीटी बजा कोई गीत गा रहा था।

घर पहॅुंचते ही दीदी उसके आने की सूचना पर बाहर दौड़ी आई थी। उसे गले से लिपटा अन्दर ले जाती दीदी बार-बार पूछ रही थी,

रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई, अन्नी? तेरे जीजाजी को लड़के वाले के यहाँ जाना पड़ गया था, मैं भी काम छोड़ पहुंच नहीं सकती थी। देवर की ओर मुड़ती ममता ने स्नेहसिक्त स्वर में पूछा था

इसे पहचाना, मीत?

इसके विषय में तो कुछ न पूछो भाभी, तभी ठीक है। व्हाट अ कन्ट्रास्ट? क्या सोचा क्या पाया!

अनिता को शर्बत का गिलास थमाती ममता चौंक उठी थी,

क्या मतलब?

और नहीं तो क्या, आप दिन-रात अपनी बहन के रूप-गुणों की जो यश-गाथा सुनाती रहती थी, क्या उसमें और इनमें कोई साम्य था? यूं कहो आकाश और पाताल का अन्तर था

ममता जैसे डर गई थी,

अन्नी, इसकी बातों पर ध्यान मत देना! यह तो यूं ही उलटी-सीधी बोलता है। मीत, तुम्हारी इन्हीं आदतों से सब परेशान रहते हैं। मेरी बहन पर अपनी कृपा कर, मीत!

तुम्हारी बहन को किसी की कृपा की जरूरत नहीं है, दीदी, विशेषकर उसकी जो शिष्टाचार का अर्थ भी नहीं जानता। अनिता के स्वर में तिरस्कार बोल उठा था।

देयर-देयर-भाभी, कुछ आग तो जरूर है तुम्हारी बहन में। चलो, अच्छी कटेगी। भाभी के हाथ में पकड़ी नाश्ते की प्लेट से एक रसगुल्ला उठा सुमीत बाहर चला गया था।

आ अन्नी, तुझे तेरा कमरा दिखा दूँ । इतने लम्बे सफर से थक गई होगी। फ्रेश हो ले तो सबसे मिला दूं तुझे।

क्यों, इस रूप में सबसे मिलाते डरती हो, दीदी?

छिः, कैसी बातें करती है, अन्नी! लगता है, सुमीत ने जरूर तंग किया है, वर्ना तू ऐसी बात कभी न करती। उसे स्टेशन भेजने से पहले ही डर रही थी मैं, पर क्या करूँ, मजबूरी ही ऐसी आ गई थी।

ममता के दुःखी स्वर पर अनिता हॅंस पड़ी थी,

मैं तुम्हें नाहक परेशान कर रही हूँ,दीदी! चलो, मेरा कमरा दिखा दो। अनिता के मुख पर आई मुस्कान को देख ममता ने चैन की साँस ली थी।

वैसे सुमीत दिल का हीरा है, अन्नी! सर्जरी में एम एस कर रहा है। सबसे छोटा है न, सो सबको छेड़ने में उसे मजा आता है। अम्माजी का खास लाड़ला बेटा है।

और तुम्हारा खास लाड़ला देवर भी तो।

तू भी उसे कुछ देखे-परखेगी, तो मेरी बातों से सहमत हो जाएगी।

असम्भव! इस जीवन में तो यह बात सम्भव नहीं दीखती, दीदी!

अनीता के दृढ़ स्वर पर ममता के अधरों पर रहस्यात्मक मुस्कान तैर गई थी-

देखते हैं, अन्नी।

देख लेना। स्वर विश्वासपूर्ण था।

घर की बड़ी बहू होने के नाते ममता पर विवाह के आयोजन का पूरा दायित्व था। वृद्ध सास-श्वसुर हर बात के लिए ममता की सलाह पर निर्भर करते थे। ममता की छोटी बहन के रूप में अनिता को सारे घर ने स्नेह से लिया था, पर सुमीत की उन बातों ने उसे रात में सोने नहीं दिया था।

अभिमान की भी कोई सीमा होती है। काश! वह भी उसे अपमानित कर पाती। आश्चर्य का विषय यही था कि रात में सोते समय दूर बैठे अम्मा-बाबूजी की जगह सुमीत के ही विषय में सोचते हुए वह सोई थी।

दूसरे दिन तिलक जाना था। अनिता ने अपनी गुलाबी शिफाँन की साड़ी-ब्लाउज के साथ मोती के टाप्स व माला पहनी थी। दीदी के आग्रह पर ब्यूटी पार्लर से फेशियल और मेक-अप भी करा आई थी। न जाने क्यों, सुमीत को हरा देने की अदम्य इच्छा उभर आई थी।

उस पर दृष्टि पड़ते ही सुमीत ने हल्के से सीटी बजाई थी,

वाह.......... लगता है शहर के सारे काँस्मेटिक्स खत्म हो गए हैं।

सिर्फ इसी शहर के नहीं, आसपास के सभी शहरों की वैसी ही हालत है, जनाब!

चलिए, हमारे शहर ने आपको इस काबिल तो बनाया कि आप पर निगाहें डाली जा सकें।

यहाँ रहनेवालों का दृष्टि-दोष है, कहीं बाहर से डाँक्टर बुलाएँ, जनाब?

अजी हमारे जैसे डाँक्टर के रहते बाहर वाले आएँगे? कहिए तो आपके अन्दर तक का पूरा पोस्टमार्टम मिनटों में कर दूं। उसकी चुनौतीपूर्ण दृष्टि के आगे अनिता का मुख गुलाबी हो उठा था।

दीदी के श्वसुर-गृह के सभी लोग अनिता को विशेष स्नेह दे रहे थे। दीदी उसके पहॅुंच जाने से निहाल थी, पर अनिता का हाल कौन समझे? बात-बात में उसे अपमानित करने की सुमीत ने मानो कसम खा रखी थी। क्या दुश्मनी थी उसकी, अनिता नहीं जानती। तिलक का सामान सजाती ममता ने सुमीत से कहा था,

अब तो इस घर में तुम्हारा ही तिलक आना शेष है मीत, कब मॅंगा रहे हो?

अजी, यहाँ तो लाइन लगी है भाभी, जब कहो दो-चार हौदे भर सोना-चाँदी मॅंगा दूं।

आप दहेज लेंगे? अनिता के स्वर में तिरस्कारपूर्ण आक्रोश था।

जब तक भारत में आप-जैसी लड़कियाँ हैं, दहेज तो देना ही होगा। बिना दहेज विवाह, वह भी आप-जैसी लड़की से? असम्भव कल्पना, हैं न भाभी?

मेरी-जैसी लड़की क्या आपसे विवाह करेगी? क्या समझते हैं अपने को आप डाँक्टर, सुमीत सिन्हा? मैं विवाह करूँगी एक पुरूष से, किसी दम्भी-मिथ्याचारी से नहीं, समझे? उत्तेजना में अनिता का मुख लाल हो उठा था।

छिः मीत, तुमने अन्नी का मूड खराब कर ही दिया न? जब से आई है पीछे पड़ा है। क्या बिगाड़ा है अन्नी ने तेरा?

मैं पीछे पड़ा हूँ इनके? ओह, माई गाँड! भाभी, इससे बड़ा मजाक भी हो सकता है क्या?

दीदी, तुम्हें कुछ भी कहने की जरूरत नहीं है। इनकी बातों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है।

तुनककर अनिता उठ गई थी। सुमीत यूं ही हॅंसता रहा। ममता असहाय-सी देखती रह गई थी।

तिलक की दावत बाहर लाँन में आयोजित की गई थी। शुरू नवम्बर की हल्की सर्दी भी अनिता के मन को ठंडक नहीं पहुंचा सकी थी। लाँन के कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठी अनिता को पता ही नहीं लगा, कब उसके अशान्त हृदय को सहलाने वर्षा की हल्की बॅंदें गिरने लगी थीं। अपने में डूबी अनिता को सुमीत ने चौंका दिया था,

कयों अपनी दीदी से दुश्मनी निभा रही हैं? अगर बीमार पड़ गईं तो भले ही जहर लगे, इस डाँक्टर की दवा ही खानी पडे़गी, मिस अनिता वर्मा!

आपकी दवा खाने की अपेक्षा मैं जहर खाना ही पसन्द करूँगी, डाँक्टर सुमीत!

इतनी नफरत करती हैं अपनी जिन्दगी से?

अपनी जिन्दगी से नहीं, आपसे।

चलिए, प्यार न सही, नफरत ही सही, कुछ तो दिया आपने!

आपको प्यार दे सकने वाली लड़की इस दुनिया में पैदा ही नहीं हुई है।

अजी, प्यार और नफरत की बात छोड़िए, अन्दर चलिए, वर्ना भाभी हमें लेकर बड़ी प्यारी कहानी गढ लेंगी।

दीदी मेरे मन को जानती हैं सुमीत जी, उन्हें पता है वह कहाँ बॅंधा है, फिर आपको लेकर कोई कहानी गढ़ने की गलती वो कभी नहीं कर सकतीं।ड

ओह, अच्छा........। एक क्षण को लगा सुमीत के चेहरे का प्रकाश भक्क से बुझ-सा गया था।

जी हाँ! दर्प से अनिता का मुख उज्ज्वल हो उठा था।

आई एम साँरी............मैं तो यूं ही............ चलिए बात यहीं खत्म हो गई। अब अन्दर चलें?

सुमीत सहज हो आया था।

अन्दर पहूँचते ही दीदी ने मीठी झिड़की दे डाली थी,

फिर कोई कहानी लिखने लगी थी, अन्नी? गिरती बूंदें भी पता नहीं लगीं?

कहानी मैं नहीं लिख रही थी, दीदी! आपके इन डाँक्टर देवर को डर था, हमें बाहर देख कहीं कहानी तुम न गढ़ लो।

चल, मुझे कहाँ आता है कहानियाँ लिखना? मीत तो सबको यूं ही बनाता रहता है।

नहीं भाभी, तुमसे अच्छा कहानीकार जन्मा ही नहीं है। बहुत आकर्षक कहानी बना लेती हो तुम।। अजीब सरकास्टिक ढंग से बात कह सुमीत चला गया था।

दो-बार छींकों ने अनिता को ठण्ड लगने की बात जता दी थी। दीदी ने अदरक की चाय थमा जल्दी सो जाने की सलाह दी थी।

सुबह आँखें खोलती अनिता घबरा गई थी। दर्द से सिर फटा जा रहा था, आँखें जल रही थीं। निश्चय ही उसका कहा सच हो गया। दीदी ने माथे पर हल्के से स्पर्श किया तो अनिता के नयन भर आए थे।

छिः पगली, जरा-सा बुखार-भर तो है, अभी ठीक हो जाएगी। मैं सुमीत को बुलाती हूँ।

नहीं-नहीं, उन्हें न बुलाना दीदी! मैंने तुम्हें किस मुश्किल में डाल दिया।

अरे मामूली सर्दी-बुखार-भर तो है, मुश्किल कैसी? ममता की हॅंसी में चिन्ता की स्पष्ट झलक थी।

दूसरे कमरे से सुमीत को आवाज लगाती ममता घबरा गई थी- जरूरत के समय तो इसका कभी पता नहीं लगता, न जाने कहाँ चला गया।

थोड़ी ही देर बाद सुमीत की आवाज आई थी-

भाभी! डाँक्टर रोहिताश्व को पकड़ लाया हूँ, अपनी बहन का अच्छी तरह चेकअप करा लेना।

अरे, तुझे कैसे पता लगा, मीत? अन्नी के बुखर का तो बस मुझे ही पता था।

जिस तरह रात पानी में भीग रही थी, बुखार तो आना ही था। इसीलिए रोहित को क्लीनिक जाने से पहले ही पकड़ लाया।

क्यों, क्या कुछ सीरियस बात है, मीत? मामूली सर्दी से बुखार हुआ है, दवा तो तू भी दे सकता था न?

न बाबा, मेरी दवा तो आपकी बहन को जहर लगेगी और जहर देने को मैं तैयार नहीं।

किसने कहा तेरी दवा जहर लगेगी? ममता के स्वर में झिड़की थी। अन्नी ने एक बार नयन उठा-भर के देखा था, फिर आँखें मूंद ली थीं।

अरे वह क्या कहावत है-घर का जोगी जोगिया, आन गाँव का सिद्ध। तो भई हमारी स्थिति तो घर की मुर्गी दाल बराबर वाली ठहरी न? कल को कहीं उलटा-सीधा हो गया तो दोष मुझे ही लगेगा न कि दवा की जगह जहर दे दिया! सुमीत की बात द्वि-अर्थी थी।

डाँक्टर रोहिताश्व ने अनिता का चेकअप कर ममता से कहा था,

सर्दी लगने से बुखार हो गया है, घबराने की कोई बात नहीं। दवाएँ घर में ही होंगी, सुमीत दे देगा।

बुखार कब तक उतरेगा डाँक्टर? क्षीण स्वर में अनिता ने प्रश्न किया था। निश्चय ही विवाह के उस व्यस्त घर में अपनी बीमारी से अनिता संकुचित थी।

आपको बुखार की क्या चिन्ता, मिस? अब लेटिए आराम से, सेवा कराइए। वर्ना यूँ पानी में कोई अकारण ही तो नहीं भीगता है न? सुमीत का स्वर व्यंग्यपूर्ण था।

फिर तू उसे छेड़ने लगा मीत? तुझे पता नहीं कितनी भावुक है अन्नी। कोई कहानी सूझ गई होगी उसे।

अच्छा तो आप कहानी लिखती हैं? हमें पद़ाएँगी अपनी कोई कहानी? डाँ रोहिताश्व के मुख पर मुस्कान आ गई थी।

हमें कहाँ आता है कहानी लिखना? दीदी तो बस यूं ही.......... सलज्ज मुस्कान से अनिता का मुख चमक उठा था।

अच्छा अगर दो दिन में आपको एकदम ठीक कर दिया तो क्या इनाम देंगी?

जो आप कहेंगे।

तो वादा रहा.........। डाँ रोहिताश्व उठ गया था।

उन्हें बाहर छोड़ वापस आए सुमीत ने अजीब कसैले शब्दों में कहा था,

शायद वादे करना आपकी एक और क्वालिटी है, ठीक कहा न?

जी नहीं, न मैं झूठे वादे करती हूँ, न किसी से एक्सपेक्ट करती हूँ। अनिता को क्रोध चढ़ रहा था कि बीमारी में भी वह उसकी शांति नहीं देख सकता।

अगर वादे में वो............ आपको माँग ले? रुकते हुए सुमीत ने कहा।

ओह, यू आर इम्पाँसिबिल, डाँ सुमीत! अनिता ने झल्लाकर चादर सिर तक ओढ ली थी।

सचमुच दो दिन बाद अनिता पूर्णतः स्वस्थ थी। ममता दीदी के सिर से भार उतर गया, अन्यथा शादी की भीड़भाड़ में बहन के प्रति उनकी चिन्ता बढती ही जा रही थी। डाँ रोहिताश्व इस बीच अनिता को देखने नियमित रूप से आते रहे। उनकी स्नेहसिक्त बातें अनिता को जितनी शांति पहॅुंचातीं, उतनी ही सुमीत की बातें उसे जला डालतीं-न जाने क्या शत्रुता थी उसकी अनिता से! विवाह के दिन बाबूजी पहॅुंच गए थे। अनिता उनके सीने पर सिर रख रो पड़ी थी। बाबूजी एकदम घबरा गए थे-

क्या हुआ, अन्नी? किसी ने कुछ कहा है, बिटिया?

नहीं, आपने आने में इत्ती देर क्यों की, बाबूजी?

पगली कहीं की! वहाँ भी तो काम था न।

और फिर बेटियों को तो एक-न-एक दिन पराए घर जाना ही होता है, समधी जी! इतना मोह अच्छा नहीं, बिटिया! ममता दीदी की सास ने परिहास किया था।

विवाह के समय अनिता के जयमाल-गीत पर सभी मुग्ध हो गए। दीदी की सास तो उस पर न्यौछावर थीं,

कितना सुन्दर गाती है अनिता! काश! यह डाँक्टर होती तो अपने सुमीत के लिए माँग लेती।

अच्छा तो डाँ सुमीत को डाँक्टर पत्नी चाहिए। बाबूजी का स्वर कुछ उदास था।

हाँ, डाँक्टर का जीवन ही त्यागपूर्ण होता है। उसके साथ पत्नी भी अगर उसी व्यवसाय की हुई तो दोनों एक-दूसरे का कष्ट समझ सकते हैं। सास का तर्क शायद ठीक ही था।

अनिता क्रुद्ध हो उठी, बाबूजी को भी यह क्या सूझी? उलटी-सीधी बातें करके अपमान करा लेते हैं। उन्हें क्या पड़ी है उस अभिमानी के विवाह के विषय में बात करने की? न जाने क्यों, मन के किसी कोने में हल्की-सी टीस उठी थी अनिता के। क्या त्याग सिर्फ डाँक्टर पत्नी ही कर सकती है? पति के काम में सहयोग देना, उसे प्रेरणा देना तो हर पत्नी का कर्तव्य होता है।

विवाह में अनिता और उसकी हम उम्र लड़कियों ने बरातियों को खूब बनाया। अनिता की हाजिर-जवाबी पर तो बाराती मुग्ध थे। बारात में आए कुछेक लड़के उससे बेहद प्रभावित थे। उस बीच व्यस्तता में भी सुमीत उसे छेड़ने और तंग करने से बाज नहीं आता था-

 हमारे घर का पानी आपको सूट कर गया है! जब आई थीं कितनी अनइम्प्रेसिव थीं आप! अब तो पर निकल आए हैं!

थैंक्स, याद रखूंगी। अनिता चिढ जाती थी।

विवाह के बाद वापस लौटते समय अनिता का मन भारी हो रहा था। पिछली सन्ध्या की बातें उदासी और बढा रही थीं। नाश्ते की प्लेटें लिये वह ड्राइंगरूम की ओर जा रही थी, तभी डाँ रोहिताश्व के स्वर कानों में पड़े थे-

लगता है भाभी की बहन ने तुम पर रंग जमा लिया है। चलो, कोई तो पसन्द आई, वर्ना हर लड़की में कोई-न-कोई कमी तुम्हें मिल ही जाती थी।

व्हाट नाँनसेंस! शी इज नाँट माई कप आँफ टी। अरे यार, बस जरा उसे बनाने में मजा आता है।

आर यू श्योर ? डाँ रोहिताश्व का स्वर संशयपूर्ण था।

हण्ड्रेड परसेंट श्योर। स्वर विश्वासपूर्ण था।

उसके बाद अनिता से रूका नहीं गया था। नाश्ते की प्लेटें वापस रख, स्टोर में छिपकर अपने आँसू किस मुश्किल से रोके थे उसने!

विदा करती दीदी से लिपटकर वह रो पड़ी थी। दीदी की सास ने स्नेह से आशीर्वाद देते हुए कहा था,

तुझे इतनी जल्दी वापस भेजने का जी नहीं चाहता, अन्नी! दीपा के आने पर चली जाती बिटिया।

वहाँ भी इसकी माँ इसे बहुत याद कर रही थी, समधिन जी! सुमीत की शादी में फिर आ जाएगी। अभी तो आज्ञा दें। बाबूजी ने हाथ जोड़ दिए थे।

सुमीत की शादी........अनिता के दिल में हूक-सी उठी थी। जल्दी से नयन पोंछ कार में जा बैठी थी। आज स्टेशन पहुंचाने जीजाजी जा रहे थे। आश्चर्य है, हर पल उसका अपमान करनेवाले सुमीत की वह क्यों प्रतीक्षा कर रही थी? उसे देखे बिना वहाँ से जाने को उसका हृदय क्यों नहीं तैयार था? दीदी भी विस्मित थीं,

न जाने कहाँ निकल गया! उसे तो पता था तू जा रही है।

डाँ रोहिताश्व प्रातः आकर उसे अपनी शुभकामनाएँ दे गए थे। कितना अन्तर है दोनों के स्वभाव में - एक सौम्य-शालीन, शान्ति का दूत और दूसरा झंझावात के साथ आकर आपाद-मस्तक झकझोर देनेवाला अंधड। उस आँधी से वह डरती क्यों नहीं? क्यों उसकी प्रतीक्षा करती रहती है वह?

ट्रेन के स्टेशन छोड़ने तक उसे लगता रहा शायद कहीं से अचानक वह आ जाएगा और कहेगा 'लीजिए, मैं फिर टाइम पर आ गया न? न आ पाता तो भाभी कहतीं उनकी दुलारी बहन को स्टेशन भी छोड़ने नहीं पहॅंुचा। यूं मुझे आपको पहुंचाने की खास इच्छा नहीं थी, पर न आता तो रात का खाना गोल हो जाता अपना।' और फिर वही मन-भावन हॅंसी...............।

घर पहॅुंच वह अनमनी-सी रही थी। अम्मा ने खोद-खोदकर ममता दीदी का हाल पूछा था।

सब ठीक है माँ, दीदी के यहाँ सब लोग बहुत अच्छे हैं। दीदी का वहाँ बहुत मान है।

पर तू यह कैसी बुझी-बुझी-सी आई है, अन्नी? कोई बात हुई थी वहाँ? अम्मा परेशान थीं।

वहाँ क्या होना था अम्मा? अन्नी फीकी हॅंसी हॅंस दी थी।

एम ए में प्रवेश लेते ही अन्नी फिर व्यस्त हो गई थी। सुबह यूनीवर्सिटी, शाम को म्यूजिक काँलेज ने उसे सुमीत की याद भले ही धॅुंधलाने में मदद दी हो, पर दीदी के पत्रों में वह उसका नाम खोजती रहती थी।

तभी अचानक अप्रत्याशित घट गया था। दीदी के पाँव में कील चुभ गई थी। मामूली बात समझ घर में ही तेल की पट्टी बाँध दी गई थी। डाँ सुमीत एम एस के लिए दिल्ली गया हुआ था। दो दिन बाद ही उस साधारण कील के घाव ने टिटनेस का रूप धर लिया। दीदी जब तक हाँस्पिटल पहुंचाई गई, सब-कुछ समाप्त हो गया था। बाबूजी ने बताया था सुमीत तो सिर पटक-पटक के रो रहा था। सब घरवालों पर दहाड़ रहा था,

भाभी को पहले हाँस्पिटल क्यों नहीं ले गए? उसे क्यों नहीं बुलाया गया?

होनी को कौन टाल सकता है? पाँव में कीलें तो गड़ती ही रहती हैं। हमारी ही बेटी को यूं ही जाना था! अम्मा ने सिसकी ले आँचल से आँखें पोंछी थीं।

घर में मृत्यु का सन्नाटा छा गया था। बचपन से अब तक की एक-एक बात याद करती अनिता रो पड़ती। दीदी से कितना स्नेह मिला था उसे! अम्मा और बाबूजी को अब उसे ही सहारा देना था। अपना दुःख उसने पी लिया था।

पाँच-छह महीनों बाद दीदी के श्वसुर का पत्र बाबूजी के नाम आया था,

आपकी बेटी ममता की कमी तो कभी पूरी नहीं हो सकती। वह तो देवी थी। हम चाहते हैं उसकी जगह आपकी बेटी अनिता हमारे घर आ जाए।

अम्मा-बाबूजी ने क्या निर्णय लिया, यह जाने बिना ही अनिता तड़प उठी थी, हर्गिज नहीं! दीदी की जगह उसका जाना असम्भव है। अनिल को उसने केवल जीजा के रूप में देखा है, उसी रूप में उन्हें स्वीकार सकती है, पति-रूप में तो कदापि नहीं।

माँ ने कुछ कहना चाहा,

घर-वर सभी जाना-पहचाना है, अन्नी! तू सुखी रहेगी। ममता की आत्मा को भी शान्ति मिलेगी बेटी!

आज के बाद फिर कभी ऐसा मत कहना अम्मा, मैं मर जाऊॅंगी। अनिता की बात सुन माँ डर गई थीं। अम्मा-बाबूजी ने ही बड़ी सावधानी से पत्र लिखा था कि अनिता की दृष्टि में अनिल उसके पूज्य जीजा हैं। यदि अपने छोटे बेटे सुमीत के लिए उसको स्वीकार कर सकें, तो उन्हें हार्दिक प्रसन्नता होगी।

उत्तर में संक्षिप्त-सा पत्र आया था, हमने तो आपको पहला अवसर देना चाहा था, वर्ना अनिल के लिए लड़कियों की क्या कमी है? अभी उसकी आयु ही क्या है! रही बात सुमीत की, सो उसका विवाह तो बस डाँक्टर लड़की से ही किया जाना निश्चित है। क्षमा करें।

अम्मा-बाबूजी को उबार लिया था डाँ रोहिताश्व ने। सीधे-सादे शब्दों में उन्होंने अनिता से विवाह का प्रस्ताव भेजा था। अपने सगों में उनकी एक बड़ी बहन थी। उन्होंने ही आकर अनिता के गले में शगुन की चेन पहनाई थी। डाँ रोहित ने ही उसे बताया था कि सुमीत रिसर्च के लिए कनाडा चला गया था।

आज 2 वर्ष बाद सामने बैठा सुमीत कितना बदल गया है! अन्धड़ न जाने कहाँ थम गया था! एक अजीब सन्नाटा-सा था उसके मुख पर। बातें करना तो मानो वह भूल ही गया था। इतनी देर में शायद उसने दो-चार औपचारिक प्रश्न भर पूछे थे,

रोहित का काम कैसा चल रहा है?

अब तो अपना क्लिनिक खोल लिया है, बहुत व्यस्त रहते हैं।

आपको उनकी व्यस्तता से शिकायत तो नहीं?

जी नहीं, खाली समय में मैं कुछ लिख-पढ़ लेती हूँ.........फिर बच्चों का काँलेज से आना-जाना लगा रहता है। समय कहाँ जाता है पता ही नहीं लगता।"

गुड ..............।

अनिता आशा कर रही थी देखते ही कोई वाक्य उछाला जाएगा, 'वाह जम रही हैं आप, कुछ मोटी हो गई हैं। लगता है दोस्त का खाना सूट कर रहा है! कहाँ गया वह सुमीत?'

काँल-बेल पर दरवाजा खोलते एक थका-उदास व्यक्ति नजर आया था। पहचानने की चेष्टा करते देख, उदास अधरों पर तिर आई थी-

नहीं पहचाना? मैं सुमीत हूँ।

सुमीत......... बीस वर्षो की स्मृतियाँ एक पल में मन के कोरों से बाहर अचानक आ गई। थोड़ा संयत होते बोली थी-

आप? आइए न! असल में आपने दाढी रख ली, इसीलिए पहचान नहीं सकी थी।

दाढी न होती तो क्या पहचान लेतीं? स्वर में न कोई चुनौती थी न उत्सुकता, बस अजब ठंडापन-भर था।

शायद हाँ..........शायद नहीं।

पर मैं आपकी परछाई देखकर भी आपको पहचान लेता। स्वर सपाट था।

जी.......... कुछ एम्बैरेस्ड थी अनिता।

तब से 2 वर्ष पूर्व का डाँ सुमीत शान्त, निर्विकार सिगरेट-भर पीता बैठा है। याद आया, शायद दो वर्ष पूर्व रोहित ने बताया था, सैड न्यूज। सुमीत ने कनाडा में विवाह किया था न, उसका डाइवोर्स हो गया। ही इज सो डेसपरेट। एक बेटी है वह भी माँ के साथ चली गई है। पुअर सुमीत।

वह वापस इण्डिया क्यों नहीं आ जाते?

यहाँ आकर ही क्या होगा?

नई जिन्दगी शुरू कर सकते हैं।

अब इस उम्र में? सब-कुछ नये सिरे से शुरू करना क्या उतना आसान है अन्नी? रोहित गम्भीर थे।

उसकी पत्नी क्या डाँक्टर थी?

नहीं, शायद जर्नलिस्ट थी। क्यों?

कुछ नहीं..........यूं ही, मैंने सुना था वह डाँक्टर पत्नी चाहते थे।

नेवर। इस बारे में तो वह एकदम क्लियर था कि उसे डाँक्टर पत्नी नहीं चाहिए। कहता था दोनों वापस आकर पेशेट्स और मुर्र्दों की ही बातें करेंगे।"।।पर उनकी माँ तो डाँक्टर बहू चाहती थीं न?
अरे माँ-बाप क्या चाहते हैं वो अलग बात है। यू नो, फाँर समटाइम मुझे लगता था, वो तुममें इन्टरेस्टेड था।

छि...... आप तो बस..........। अनिता लजा उठी थी।

अच्छा, बस, अब बनाना छोड़ चाय पीजिए।

अनिता को याद आ गया था- 'शी इज नाँट माई कप आँफ टी।'

आप कैसे हैं? अनिता ने पूछना चाहा था।

जी तो रहा हूँ।

भारत कब आए?

एक महीना पहले।

ओर हमारे यहाँ आने की आज याद आई? स्वर में उलाहना था।

असल में आपकी एक चीज मेरे पास थी, वही देनी थी।

मेरी चीज?

हाँ, ममता भाभी ने आपके नाम एक पत्र लिखा था, शायद पोस्ट नहीं कर सकी थीं।

इतने वर्षो बाद दीदी का मेरे नाम पत्र?

जी हाँ। मैं और भाभी एक ही अल्मारी शेयर करते थे। भाभी के न रहने पर अल्मारी लाँक कर दी गई थी। मेरे कुछ कागजात पड़े थे उसमें। इस बार वापस आने पर कागजात उलटते-पुलटते यह बन्द लिफाफा मिला। पहले तो सोचा पोस्ट कर दूं, फिर स्वयं चला आया।

खोलकर पढ़ने की इच्छा नहीं हुई, सुमीत जी?

सच कहूँ तो जी चाहा था- पहले खोलकर पढ लूं, फिर सोचा यह भाभी के प्रति अन्याय होगा।

उत्सुकता से अनिता ने पत्र खोला था। बीस वर्ष पहले का जीवन जी उठा था। दीदी ने घर के सारे हालचाल लिखे थे, साथ ही अन्नी को एक विशेष बात लिखी थी-

जानती है अन्नी, कल रात सुमीत ने एक सच स्वीकार किया है। उसे तू बहुत-बहुत पसन्द है; कहता है विवाह करेगा तो बस तुझसे। तुझमें जो फाइटिंग स्पिरिट है, उससे वह बहुत प्रभावित है। मैंने कहा, माँ से यह बात बता दूं? तो बोला- नहीं, पहले अनिता जी की सम्मति जान लो, वह मुझे पसन्द भी करती है या नहीं। हाँ, तूने उसे क्या बताया था कि तेरे मन में कोई और है- तेरा मन कहीं और बॅंधा है? भई मुझे तो इस बारे में कुछ पता नहीं, पर उसका कहना है तूने कहा था- मैं उस विषय में जानती हूँ। लगता है सुमीत को बुद्धू बनाने के लिए तूने कोई मजाक किया है न? कितना अच्छा रहेगा, हम दोनों बहनें एक-साथ इस घर में रहेंगी! मुझे पूरा विश्वास है तू सुमीत को पसन्द ही नहीं प्यार भी करती है, क्यों ठीक गैस किया न मैंने? आखिर दीदी हूँ तेरी। अच्छा अन्नी, पत्र का उत्तर तुरन्त देना, वैसे तेरा मन मैं पहचानती हूँ। माँ और बाबूजी को प्रणाम। तेरी अपनी दीदी।

टपटप आँसू गिरने लगे। नवम्बर की वह रात अन्नी को याद आ गई जब उसने सुमीत से चिढ़कर उसे उत्तर दिया था- 'दीदी मेरे मन की बात जानती है, वह कहाँ बॅंधा है।'

क्यों, पत्र में ऐसा क्या लिखा है भाभी ने? पढ सकता हूँ मैं? सुमीत व्यग्र हो उठा था।

नहीं, यह पत्र मेरे लिए है, सुमीत जी! अच्छा हुआ आपने इसे पढा नहीं।

लेकिन क्या मैं जान सकता हूँ इसमें कोई विशेष बात थी? आखिर भाभी का अन्तिम पत्र था। कुछ अधिकार उन पर मेरा भी था न!

सुमीत जी! हमारे बीच बीस वर्षों का जो समय गुजर गया, यह पत्र उसकी एक कड़ी बन सकता था। मुझे जीवन से कोई शिकायत नहीं। रोहित एक अच्छे पति और पिता हैं और शायद मैं एक अच्छी पत्नी और माँ। अगर इस पत्र का जिक्र आप रोहित से न करें, तो मैं आभारी रहूँगी।। अनिता के नयन फिर भर आए थे।

तुम्हारी आँखों में मैंने पत्र को पढ़ लिया,अनिता! यह पत्र तुम तक पहुंचा ही नहीं और मैं उत्तर की व्यर्थ प्रतीक्षा करता रहा। एक उत्सुकता है, अगर उस समय पत्र का उत्तर देतीं तो क्या वह 'हाँ' में होता? सुमीत के दो आतुर नयन अनिता के चेहरे पर गड़ गए थे।

जो वक्त बीत गया, उस कल को लेकर, मैं अपने आज को नष्ट नहीं करना चाहूँगी,सुमीत जी! अम्मीद है, आप मेरी बात समझ मुझे क्षमा करेंगे।

उत्तर भी मुझे मिल गया, अनिता! मेरे दिल में एक कचोट थी, मैं तुम्हारे द्वारा अस्वीकारा गया हूँ। मैं सोचता रहा तुमने मेरे प्रस्ताव के उत्तर में 'न' लिख दी। तुम्हारी दृष्टि में मैं एक मिथ्याचारी, दम्भी सिद्ध हुआ। आज बीस वर्षो पुराने इस पत्र ने मेरा भ्रम दूर कर दिया, अनिता! सुमीत उठ खड़ा हुआ था।

यह क्या! आप जा रहे हैं? रोहित से नहीं मिलेंगे? अनिता विस्मित थी।

फिर कभी, आज नही।

अनिता को कुछ कहने का अवसर देने के पूर्व सुमीत दरवाजा खोल चला गया था।






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