12/2/12

उसका फ़ैसला

शांति-हवन समाप्त हो चुका था, पंडित जी दान की सामग्री के साथ जा चुके थे। एक-एक कर के हवन में शामिल होने वाले भी दीपा को तसल्ली दे कर चले गए। उस सन्नाटे में दीपा का साथ देने बस सुधीर और सुशान्त ही रह गए थे। आज अतुल को गए तीसरा दिन था। कमरे के कोने में अतुल द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला वॉकर और व्हीलचेयर रखी थी। यह सत्य जानने के बावजूद कि अतुल उनका इस्तेमाल शायद कभी ना कर पाएं, दीपा के मन के किसी कोने में क्षीण सी आशा थी, शायद चमत्कार हो जाए और अतुल वॉकर पर न सही, व्हील-चेयर के सहारे चल सकें। एक दृष्टि उन उपकरणों पर डाल, दीपा ने सुशान्त से कहा-

अब इनकी ज़रूरत नहीं है, सुशान्त्। अगर हॉस्पिटल में आने वाले ज़रूरतमंद इंसान के काम आ सकें तो अच्छा है। इन्हें हॉस्पिटल भिजवा दूंगी।

यह अच्छा विचार है, दीपा। अब मैं चलता हूं। तुम हिम्मत रखो, भगवान ने हमे अतुल का साथ इतने ही दिनो के लिए दिया था। अतुल का अंश सुधीर तुम्हारे साथ है। मुझे विश्वास है, सुधीर तुम्हारा बहुत ख्याल रखेगा।

जी अंकल, मैंने डिसाइड कर लिया है, अब मां के साथ रह कर उनके काम में साथ दूंगा।शांति से सुधीर ने अपना निर्णय सुना दिया।

सुशान्त के जाने के उपक्रम पर दीपा रो पड़ी, रुद्ध कंठ से बोली- -

तुम तो हमारा साथ नहीं छोड़ोगे, सुशान्त? सुधीर को तुम्हारी गाइडेंस की ज़रूरत होगी।

ऐसा तुम सोच भी कैसे सकती हो, दीपा? अतुल मेरा सिर्फ़ दोस्त ही नहीं भाई जैसा था। उसे खोने का मुझे भी कम दुख नहीं है। मैं हर ज़रूरत में तुम्हारे और सुधीर के साथ हूं।

सुधीर के कहने पर दीपा आराम करने अपने बेड-रूम में आगई, जहां उसने अतुल के साथ सत्ताइस वर्ष कितनी खुशी से बिताए थे। पलंग पर लेटी दीपा के ठीक सामने अतुल के साथ उसका चित्र लगा था। तस्वीर देखती दीपा की आँखों के सामने अतीत की यादों की परतें खुलने लगीं।

उस दिन बैडमिंटन खेलने गए अतुल को फिर जल्दी घर वापस आते देख उसे विस्मय हुआ था। पिछले कुछ दिनों से अतुल महसूस कर रहे थे वह बैड्मिंटन ठीक से नहीं खेल पा रहे थे। शायद उनका पार्ट्नर खेलने नहीं आ रहा था। घर में प्रविष्ट हो रहे अतुल से वह पूछ बैठी थी।

अरे, आज भी जल्दी वापस आ गए। क्या तुम्हारा पार्टनर आज भी नहीं आया था?” दरवाज़ा खोल कर अंदर आते अतुल को देख कर दीपा ने सवाल किया। पिछले कुछ दिनो से अतुल खेल छोड़ कर जल्दी लौट रहा था।

बैड्मिंटन-रैकेट कोने की मेज़ पर रख अतुल पास के सोफ़े पर निढाल सा बैठ गया।

नहीं वह तो आया था, पर न जाने क्या बात है, मैं न शाट दे पाता हूं न ले पाता हूं, रिटर्न भी ठीक से नहीं कर पाता। ऐसा लगता है, हाथ में ताकत ही नहीं रह गई है। जब ठीक से खेल ही नहीं पा रहा हूं तो अपने पार्टनर के खेल का मज़ा क्यों बिगाड़ूं?

पूरे दिन कम्प्यूटर पर काम करते रहते हो, शायद हाथ थक जाता हो। मैं गरम तेल की मालिश कर दूंगी, ठीक हो जाएगा। दो-चार दिन काम से छुट्टी ले लो। आखिर इंसान का शरीर भी तो आराम चाहता है।चाय का कप थमाती दीपा ने समझाया।

कप थामते अतुल के हाथों से कप छूट गया। फ़र्श पर चाय फैल गई।

सॉरी, दीपा। मैं ठीक से कप थाम नहीं सका।अतुल ने अपराधी भाव से कहा।

इसमें सॉरी कहने की क्या बात है? क्या मेरे हाथों से अक्सर शीशे के ग्लास और कप नहीं टूट जाते हैं।

असल में मैने तुम्हें बताया नहीं, आजकल कभी-कभी पेन भी ठीक से नहीं पकड़ पाता। ना जाने क्या प्रॉबलेम है।

कोई प्रॉब्लेम नहीं है। तुम्हें वीकनेस हो गई है और आराम चाहिए। बस कल से पंद्रह दिन की छुट्टी की ऐप्लीकेशन भेज दो। मुझे कोई बहाना नहीं सुनना है।दीपा ने ज़ोरदार शब्दों में फ़ैसला सुना दिया।

जैसी आज्ञा मेरी सरकार्। आपका हुक्म तो मानना ही पड़ेगा। कल से बंदा आपके रहमो-करम पर रहेगा वर्ना ना जाने क्या नया गुल खिला दें।मुस्कराते अतुल ने जवाब दिया।

अच्छा जी, आप हमसे इतना डरते हैं, ऐसा क्या किया है हमने?”हल्की नाराज़गी जताती दीपा ने पूछा।

आपसे पहले दिन की मुलाकात और आपकी नाराज़गी का अंदाज़ क्या भुलाई जाने वाली बात है? बाप रे, क्या धमाकेदार एंट्री थी। इंटरव्यू-बोर्ड के मेम्बर भी थर्रा गए थे। क्या ज़ोरदार भाषण दिया था।पुरानी याद से अतुल के चेहरे पर मुस्कान आ गई।

तो और क्या करती मैं। इंटरव्यू के लिए दस बजे का टाइम दिया गया था। मैं साढे नौ बजे पहुंच गई थी। बारह बजे तक भी इंटरव्यू शुरू नहीं किया गया था। इतनी बड़ी कम्पनी में टाइम- मैनेजमेंट की शायद किसी को जानकारी ही नहीं थी। जैसे हमारे समय की कोई कीमत ही नहीं थी।

आपकी तरह इंटरव्यू के लिए आए और उम्मीदवार भी तो शांति से प्रतीक्षा कर रहे थे।

हो सकता है उन्हें अपने पर विश्वास ना रहा हो और वे मैनेजमेंट को मन में कोसते हुए भी अपने नाम के पुकारे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हों। मुझे अपनी क्वालीफ़िकेशन पर पूरा विश्वास था। जानती थी इस कम्पनी में ना सही, किसी दूसरी कम्पनी में तो चुनी ही जाऊंगी। वैसे भी अन्याय सहना मुझे स्वीकार नहीं।

तुम्हारी ये बात तो मानता हूं। वाह, क्या देवी दुर्गा की तेजस्विता के साथ अंदर आने की इजाज़त लिए बिना इंटरव्यू- रूम का दरवाज़ा खोल अवतरित हुई थीं। अपना भाषण आज भी याद है या भूल गईं? अतुल ने परिहास किया।

वो कोई भाषण थोड़ी था, सच ही तो कहा था कि अगर आपका समय कीमती है तो, दूसरों के समय का भी महत्व समझना चाहिए। हम सुबह से इंटरव्यू शुरू होने की प्रतीक्षा में बैठे हैं, पर इतना समय बीत जाने के बाद भी इंटरव्यू शुरू नहीं हुआ है। हो सकता है किसी के घर में कोई अस्वस्थ हो या कोई ज़रूरी काम रहा हो। अपने काम छोड़ कर उम्मीदवार यहां आए हैं।

सॉरी, मिज़्। असल में हमारे एक्सपर्ट की फ़्लाइट विलम्ब से आई है। बस थोड़ी देर में वह पहुंच जाएंगे और इंटरव्यू शुरू हो जाएगा। तब तक आप सबके लिए लंच अरेंज करवाता हूं।बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में बीच की कुर्सी पर बैठे अतुल ने उसे शांत करना चाहा था।

एक मेम्बर ने दीपा के शब्दों के विरोध में कुछ कहना चाहा, पर अतुल ने उन्हें हाथ के इशारे से रोक दिया था।

थैंक्स। मुझे आपके लंच की कोई ज़रूरत नहीं है। अगर इंटरव्यू शुरू होने का कारण बाहर बैठे लोगों तक पहुंचवा दें तो मेहरबानी होगी। एक सुझाव देना चाहूंगी, भविष्य में अपने एक्सपर्ट को एक दिन पहले बुलाने की व्यवस्था करने से ऐसी समस्या से बचा जा सकता है।

ओह माई गॉड! क्य तेवर थे, जानती हैं, एक मेम्बर तो नाराज़ हो गए थे। कहने लगे, इस उम्मीद्वार का तो नाम ही काट दो। अगर यह हमारी कम्पनी में आ गई तो न्याय-अन्याय का झंडा ले कर कर्मिकों को भड़काती रहेगी। देखा नहीं, उसके तेवर बिल्कुल एक विद्रोहिणी के थे।

सच तो यह है, बाहर आ कर मैंने भी अपने सेलेक्शन की आशा नहीं रखी थी। ऑफ़िस के पियून ने बताया था, जब से बड़े साहब नहीं रहे, उनके बेटे अतुल जी ने सब सम्हाला है। तुम्हारी तारीफ़ों के पुल बांध दिए थे। वैसे विरोध के बावजूद मुझे कैसे चुना गया?”

अजी आपकी उस तेजस्वी अदा ने ही तो हमे आपका दीवाना बना दिया था। सबको समझाया था, ऐसे ही अधिकारी अंतर में कुछ कर-गुजरने की आग रखते हैं। कुछ ही दिनो के काम द्वारा तुमने सचमुच ऑफ़िस की काया ही पलट दी। उसी दिन तुम्हें अपनी जीवन-संगिनी बनाने का निश्चय कर लिया था। ऑफ़िस में आज भी लोग तुम्हें याद करते हैं। जब तुमने ऑफ़िस छोड़ा सबको दुख हुआ था।“

तुम्हारी पत्नी के रूप में तुम्हारे ऑफ़िस में काम करना उचित नहीं लगा था। अब मैं समाज-सेवा के जो कार्य कर रही हूं, उनमें मुझे बहुत शांति और संतोष मिलता है। सुधीर की अच्छी देख्र -रेख की वजह से ही आज वह एक पॉपुलर प्रोफ़ेसर बन सका है।

सच समय कितनी जल्दी बीत जाता है, दीपा। अब तो हमे अपने बेटे सुधीर के विवाह के लिए एक अच्छी लड़की ढूंढनी है, लड़की बिल्कुल तुम्हारी तरह होनी चाहिए।

आज कितने दिनो बाद पुरानी बातें याद करके अच्छा लगा। ऐसा लगता है कल की ही बात है। तुम्हारे द्वारा जब मेरे साथ विवाह का प्रस्ताव आया तो घरवाले विस्मित रह गए थे। इतने बड़े उद्योगपति के साथ विवाह असंभव कल्पना थी। इसीलिए मैने कहा था पहले तुमसे बात करूंगी। जानना चाहती थी मुझमें ऐसा क्या देखा जो विवाह करना चाहते हैं।“दीपा के चेहरे पर मुस्कान थी।

“मेरा जवाब याद है? अतुल की सवालिया दृष्टि दीपा के मुख पर गड़ गई।

“तुम्हारे जवाब की वजह से ही तो तुम्हारे साथ विवाह के लिए सहमति दी थी। सच कहो, तुम जैसी पत्नी चाहते थे तुम्हें मिली या नहीं?”दीपा ने सवाल किया।

“मैंने यही तो चाहा था, मेरी जीवन-संगिनी सिर्फ़ बुद्धिमान और शिक्षित ही ना हो, उसमें सही और गलत का निर्णय करने की क्षमता हो। अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने की हिम्मत हो, जीवन के उतार- चढाव का सामना करने का साहस हो। तुम मेरी सच्चे अर्थों में अर्धांगिनी हो, दीपा।“ अतुल ने दीपा को मुग्ध दृष्टि से देखा था।

विवाह के लंबे सत्ताईस वर्ष बीत जाने के बाद भी दीपा की ऊर्जा और उत्साह में कोई कमी नहीं आई थी। अतुल से विवाह के बाद अतुल के ऑफ़िस में नौकरी करना उसे उचित नहीं लगा था। उसके साथी उसे बॉस की पत्नी की तरह से सम्मान दें, यह उसे कतई स्वीकार नहीं होता। समाज-सेवा का कार्य उसे रुचिकर लगा था। घर में पैसों की कोई समस्या नहीं थी, अपने पैसों का सदुपयोग अनाथ बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए व्यय करने में उसे संतोष मिलता। बच्चे उसकी उत्सुकता से प्रतीक्षा करते। लड़कियों को उनके घरों की चारवारी से बाहर लाकर उनकी शिक्षा के लिए किए गए उसके प्रयत्न सराहे जाते। एकमात्र पुत्र सुधीर को उसने दुनिया की कठिनाइयों और जीवन के कटु यथार्थ से परिचित कराया था। अपार धन-सम्पत्ति का वारिस होने के बावजूद सुधीर ने धन को कभी महत्व नहीं दिया। हर परीक्षा में सर्वोच्च अंक  पाने पर लोगों ने उसे प्रशासनिक सेवा में जाने को कहा, पर उसने प्रोफ़ेसर बनने का निर्णय लिया था। बचपन से दीपा उसे समझाती आई थी, एक अच्छा शिक्षक ही भावी पीढी को सही दिशा दे सकता है। शिक्षक सदैव पूज्यनीय हैं।

“अच्छा अब दीपा-पुराण बंद करो, मैं तेल गरम करके लाती हूं। मालिश से आराम मिलेगा।अतुल के सोच को दीपा ने तोड़ा था।

दीपा ने जब हाथ पर तेल से मालिश शुरू की तो अतुल को आश्चर्य हुआ उसे ऐसा नहीं लगा जैसे उसके हाथ पर मालिश की जा रही है। सा महसूस हुआ जैसे किसी बेजान जगह को छुआ जा रहा हो। शायद दीपा ठीक कहती है, उसे आराम करना भी ज़रूरी है। ऑफ़िस में एक पल को भी तो अवकाश नहीं मिलता।

आश्चर्य इस बात का था कि रोज़ की नियमित मालिश से भी हाथ की कमज़ोरी बढती ही जा रही थी। अब तो कभी-कभी पांव भी झनझनाते से लगते । तेज़ चलना तो संभव ही नहीं था। पहले तो दीपा से कुछ कहना ठीक नहीं लगा, वह बेकार में परेशान होगी। अंततः अपने बचपन के डॉक्टर मित्र सुशान्त के पास जाने का निर्णय लेकर अतुल ने फ़ोन पर समय मांगा था। सुनते ही डॉक्टर सुशान्त नाराज़ हो उठे।

“कमाल करता है, यार। तुझे मुझसे अप्वाइंट्मेंट लेने की ज़रूरत है। अभी आ जा, तेरे लिए मेरे पास हमेशा समय है। इतने दिनो से तकलीफ़ उठा रहा है, आज मेरी याद आई है?”

अतुल से पूरा हाल सुन कर सुशान्त हंस पड़े।

“लगता है दीपा तेरे खाने पर ध्यान नहीं दे रही है। अक्सर वीकनेस की वजह से ऐसा हो जाता है। विटामिन लेता है या नहीं? अगर नहीं लेता तो मैं लिख रहा हूं ठीक हो जाएगा।“

“पता नहीं क्यों मुझे लगता है, यह कोई सीरियस प्राबलेम ना हो।“

“पहली बार तुझे चिंतित देख रहा हूं। डर मत, अगर कुछ सीरियस प्राबलेम भी हुई तो हम यहां किस लिए बैठे हैं?

सुशान्त से मिलकर आने के बाद अतुल ने काफ़ी राहत महसूस की। ठीक ही तो कहता है, मैं अपने प्रति लापरवाह तो ज़रूर हूं। दीपा इसी बात को ले कर अक्सर नाराज़ हो जाती है। अब विटामिन याद करके ले लूंगा। सुशान्त ने दर्द की भी दवा दी है, दर्द होने पर खा लेना ही ठीक है।

नियमित मालिश और विटामिन लेने के बावजूद हाथ-पांव की कमज़ोरी बढती ही जा रही थी। ऑफ़िस में लड़खड़ाते हुए चलते देख सहकर्मी निशान्त ने कहा था

“अतुल जी, अगर आपके पैर में तकलीफ़ है तो छड़ी लेकर चलिए। इस उम्र में गिरने से अक्सर फ़्रैक्चर होने का खतरा होता है।“

छड़ी के साथ आए अतुल को देख कर सुशान्त चौंक गए।

अतुल से पूरी बात सुन कर सुशांत का चेहरा गंभीर हो गया।

“क्या हुआ, सुशान्त, क्या कोई सीरियस प्राब्लेम है?”

“अभी कुछ नहीं कह सकता, भगवान ना करे मुझे जो शक है, वह सच निकले। तेरे ब्लड टेस्ट के साथ और कुछ टेस्ट कराने होंगे।“

“तुझे क्या शक है, सुशान्त?’

“जब तक टेस्ट के रिज़ल्ट नहीं आ जाते कुछ कहना ठीक नहीं होगा। हो सकता है, कोई मामूली तकलीफ़ हो और अपना संदेह बता कर तेरी नींद उड़ा दूं।“

“मेरी नींद तो उड़ ही गई, सुशान्त्। मैं जानता हूं, तेरा डायगनोसिस शायद ही कभी ग़लत निकला हो। ऐसे ही तो तू शहर का नामी डॉक्टर नहीं बन गया है। प्लीज़ बता दे, मुझे क्या हो सकता है?”

“कैंसर तो नहीं है, क्या इतना ही काफ़ी नहीं है।“ अपनी बात कहते सुशान्त हंस पड़े।

सुशान्त द्वारा मंगाई गई कॉफ़ी अतुल के गले से नीचे नहीं उतर रही थी। उसका उतरा चेहरा देख कर सुशान्त ने तसल्ली दी थी।

“रिलैक्स, यार्। ये शरीर है, इसमें कुछ ना कुछ टूट-फूट तो लगी ही रहती है। घर जा कर दीपा को परेशान मत कर डालना। टेस्ट की रिपोर्ट आ जाने दे।“

घर पहुंचे अतुल का उतरा चेहरा दीपा की नज़र से छिपा नहीं रह सका।

“क्या बात है, कुछ परेशान दिख रहे हो। कहां गए थे?’

“बहुत दिनो से सुशान्त से नहीं मिला था, उससे मिलने चला गया था।“

“कैसे हैं सुशान्त भाई, बहुत दिनो से आए नहीं हैं। हां तुमने अपनी तकलीफ़ उनको बताई या नहीं? हो सकता है, वह कोई दवा या एक्सरसाइज़ बताते।“

“वह इतना बिज़ी रहता है, उसके पास मिलने-मिलाने के लिए वक्त ही कहां रहता है।‘ अपने बारे में उसने सुशान्त से बात की है, यह बात अतुल छिपा गया।

“ठीक है तुमने बात नहीं की मैं ही फ़ोन पर बताऊंगी। इतने दिनो की मालिश से तुम्हारी तकलीफ़ में कोई फ़र्क ही नहीं आया है। अब तुम कहते हो पैरों में भी कमज़ोरी लगती है। मुझे तो चिंता हो रही है।“

“तुम बेकार में ही चिंता कर रही हो। मैं खुद ही सुशान्त से टाइम ले कर मिल आऊंगा।“पहली बार अतुल ने दीपा को सच नहीं बताया था। जिस बात का डर उस पर हावी है, उसे बता कर दीपा की चिंता बढाना ठीक नहीं लगा।

सुशान्त ने फ़ोन कर के अतुल को बुलाया था। नियत समय पर अतुल सुशान्त के पास पहुंच गया। हमेशा की तरह सुशान्त ने अतुल का गर्मजोशी के साथ स्वागत नहीं किया। उसके गंभीर चेहरे को देख कर अतुल को परिस्थिति की गंभीरता का सहज ही अनुमान हो रहा था।

“क्या बात है सुशान्त, तू परेशान दिख रहा है। लगता है तेरा यह दोस्त किसी सीरियस बीमारी के चक्कर में पड़ गया है।“ अतुल ने मुंह पर जबरन मुस्कान ला कर कहा।

“तू ठीक समझ रहा है, पर अभी मैंने तेरी रिपोर्ट्स एक्सपर्ट के पास भेजी हैं। उनका ओपीनिअन आने के बाद ही कनफ़र्म कर सकूंगा।“सुशान्त अब सचमुच चिंतित दिख रहा था।

“ऐसी क्या बात है, तुझे जो संदेह है, वह तो बता ही सकता है।‘

“सच तो यह है अपने संदेह पर मैं खुद विश्वास नहीं करना चाह रहा हूं। इतना कह सकता हूं, मुझे जो लग रहा है अगर वही सच है तो तुझे हिम्मत से काम लेना होगा।‘

“मैं बच्चा नहीं हूं, सुशान्त, ज़िंदगी में बहुत उतार-चढाव देखे हैं। माँ-बाप को खो कर, सब कुछ अकेले सहा है’ साफ़-साफ़ बता दे मुझे क्या तकलीफ़ है।“

“तू मस्कुलर- डिस्ट्राफ़ी की चपेट में आ गया लगता है। आजकल इसको जल्दी ना बढने देने के लिए के लिए बहुत से उपाय हैं। परेशान मत हो, हम एक्सपर्ट की रिपोर्ट और सलाह की प्रतीक्षा करेंगे।“

“नहीं, यह कैसे हो सकता है? यह रोग तो मेरी सक्रिय ज़िंदगी ही खत्म कर देगा, सुशान्त्।“अतुल स्तब्ध था।

साहस और प्रयासों से बड़ी से बड़ी तकलीफ़ पर विजय पाई जा सकती है। तेरे साथ दीपा जैसी पत्नी है, वह तेरी पत्नी ही नहीं तेरी सच्ची साथी हैं। मुझे विश्वास है उसके साथ तू हर मुश्किल को आसानी से सह सकेगा।

एक्सपर्ट की रिपोर्ट की प्रतीक्षा में अतुल की रातों की नींद उड़ गई थी, उसे करवटें बदलते देख दीपा पूछती-

क्या बात है, क्या मन मे कोई परेशानी है? ऑफ़िस में तो सब ठीक है न?

हां, ऑफ़िस में तो सब ठीक है, पर आजकल न जाने क्यों सोचता हूं, अगर मुझे कोई गंभीर बीमारी हो जाए तो तुम क्या करोगी?’

कमाल है, जो बात हुई नहीं, उसे ले कर परेशान होते हो। ऐसी बेकार की बातें दिमाग में क्यों लाते हो?’

अतुल उसे बता नहीं सका उसके दिमाग में ऐसी बातें क्यों आती हैं। सच तो यह था कि उसने इंटरनेट पर मस्कुलर डिस्ट्राफ़ी के बारे में पढ कर काफ़ी हद तक अपने को तैयार कर लिया था, फिर भी आशा की एक किरण बाकी थी, शायद रिपोर्ट नेगेटिव आए।

अचानक एक दिन डॉक्टर सुशान्त के फ़ोन ने दीपा को चौंका दिया।

दीपा, क्या तुम मेरे क्लिनिक में अभी आ सकती हो? हां इस बारे में अतुल से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है।

क्या बात है, सुशान्त, कहीं फिर किसी बात को लेकर अतुल से बहस तो नहीं हो गई? अक्सर अतुल और सुशान्त के छोटे-मोटे झगड़ों के लिए दीपा को ही बीच-बचाव करना होता था।

तुम आ जाओ, तुम्हारे आने पर ही बात करूंगा।

दीपा के क्लिनिक पहुंचने पर सुशान्त हमेशा की तरह न उत्साहित हुआ ना ही चेहरे पर खुशी थी।  कुर्सी पर बैठती दीपा ने सुशान्त के गंभीर चेहरे को देख, मुस्करा कर कहा-

मालूम होता है, आज फिर दोनो दोस्तों में ठन गई है। कहने को तो दोनो की उम्र बढ रही है, पर बचपना नहीं गया है। बताओ क्या प्रॉबलेम है।

आज सचमुच सीरियस प्रॉबलेम है। अपने को तैयार कर लो। तुम्हें हिम्मत रखने की सख्त ज़रूरत है, दीपा।

सुशान्त के गंभीर चेहरे और स्वर ने दीपा को डरा दिया।

जल्दी बताओ, सुशान्त्। तुम जानते हो, मैं बहुत हिम्मत वाली हूं।

अच्छी तरह से जानता हूं। कई बार तुम्हारी हिम्मत की दाद दी है, पर आज शायद तुम सह न पाओ।

मैं सह लूंगी, अब और भूमिका मत बांधो। प्लीज़ जल्दी बताओ।

अतुल के हाथ-पांव की जिस वीकनेस को मामूली बात समझा जा रहा था, वो असल में एक लाइलाज बीमारी मस्कुलर डिस्ट्राफ़ी की शुरुआत है, दीपा।

नही, ये नहीं हो सकता, सुशान्त। ज़रूर कोई गलती हुई है।

कोई गलती नहीं हुई है, दीपा। मुझे भी यह सत्य स्वीकार करना संभव नहीं था। अपने संदेह पर एक्सपर्ट की कन्फ़र्म-रिपोर्ट मिलने के बाद ही तुम्हें यह सच बताने को बुलाया है।

अतुल इस बात को कैसे सह सकेंगे, सुशान्त? मैने मस्कुलर डिस्ट्राफ़ी के दो रोगियों को तिल-तिल कर के मौत के मुंह मे जाते देखा है।हथेलियों में चेहरा ढाप दीपा रो पड़ी।

शायद अतुल अब तक समझ चुका होगा।आपना संदेह मैने उस पर प्रकट कर दिया था और वह मेरे डायगनोसिस पर भरोसा रखता है।सुशान्त गंभीर था।

इसका मतलब वह तुमसे मिलता रहा है। अतुल ने यह बात मुझसे क्यों छिपाई? शायद इसीलिए वह कहता था, अगर उसे कोई सीरियस बीमारी हो जाए तो मेरा क्या होगा।

तुम्हें अतुल की हिम्मत बनना है। तुम तो जानती होगी, इस बीमारी में मानव-शरीर की मांसपेशियां और टिशूज़ वीक होते जाते हैं। हाथ-पांव की ही नहीं शरीर के प्रत्येक अंग की मांसपेशियां समाप्त होती जाती है। ये रोग लाइलाज तो ज़रूर है, पर इसे बढने से रोका जा सकता है। अमरीका में इसके लिए कुछ आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं।

मैं अतुल को अमरीका ले जाऊंगी। प्लीज़ सुशान्त, अतुल को उनकी बीमारी की खबर तुम ही दे दो। मैं नहीं बता सकूंगी।दीपा का कंठ भर आया।

“नहीं , दीपा यह काम तुम्हे ही करना होगा और वह भी इतने सहज होकर उसे बताओगी जैसे ये  कोई खास बीमारी नहीं है। मुझे विश्वास है ये बस तुम्हें ही संभव होगा।‘

शाम को अतुल को चाय का कप थमाती दीपा बहुत सहज दिख रही थी। पूरे दिन रो चुकने के बाद अपने मन के अंधड़ को उसने किस मुश्किल से बांध रखा था, बस वही जानती थी। सुशान्त ने ठीक कहा है, उसे अपनी हिम्मत से अतुल को सत्य सह्ने की शक्ति देनी है।

“तुम सुशान्त के पास जाते रहे और मुझे बताया भी नहीं। क्या तुम्हें डर था, मस्कुलर डिस्ट्राफ़ी का नाम सुन कर मैं डर जाऊंगी? जबरन चेहरे पर हल्की मुस्कान ला कर दीपा ने कहा।

“क्या - - तुमने सुशान्त से बात की है, क्या कहा उसने? अतुल चौंक गया।

“हां, उसने तो तुम्हें बताया ही था, उसका डायगनोसिस ठीक ही निकला।“

“इसका मतलब मुझे मस्कुलर डिस्ट्राफ़ी है, यह बात कन्फ़र्म हो गई है? अतुल का चेहरा पीला पड़ गया।

“इसमें डरने या परेशान होने की क्या बात है। इस शरीर में कब क्या हो। कौन जानता है।“दीपा ने स्वर को भरसक सामान्य बनाने की कोशिश की।

“ओह नो, शायद तुम इसकी भयंकरता का अनुमान नहीं लगा सकतीं। आई एम फ़िनिश्ड्।“

“सब जानती हूं जनाब, अब हम इसी बहाने अमरीका की सैर करेंगे। सुशान्त वहां के एक स्पेशलिस्ट को जानता है। सुशान्त के रेफ़रेंस से तुम्हारे इलाज की पूरी व्यवस्था हो जाएगी।“

“नहीं एक बात अच्छी तरह से समझ लो मैं अपना देश, अपना ये घर छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाला हूं। परदेश में  अजनबी लोगों के बीच मै अपनी मौत से पहले मर जाऊंगा। अगर तुम मेरी खुशी चाहती हो तो फिर दिल्ली छोड़ कर जाने की बात कभी मत करना।“ अतुल ने दृढ शब्दों में अपनी बात स्पष्ट कर दी।

सुशान्त, सुधीर और दीपा के लाख समझाने पर भी अतुल अपनी बात पर अड़ा रहा। दीपा से कहा था-

“कल से तुम मेरे साथ ऑफ़िस चलोगी। तुम्हारी क्वालीफ़िकेशन और आत्मविश्वास पर मुझे पूरा भरोसा है। तुम सब काम अच्छी तरह से संभाल लोगी।“

“यह क्या कह रहे हो? मैं ऑफ़िस जा कर क्या करूंगी।“

“अब सब कुछ तुम्हें ही सम्हालना होगा, दीपा। सच्चाई स्वीकार करनी ही है।“

अतुल की ज़िद पर दीपा ने ऑफ़िस जाना शुरू कर दिया था। अतुल ने आपने विश्वस्त सहकर्मी विनोद वर्मा और रमाकान्त के सामने स्थिति स्पष्ट करके दीपा की सहायता करने का वादा ले लिया था।

सुशान्त खुद अतुल को साथ ले कर स्पेशलिस्ट के पास गए थे। उनकी बताई दवाइयां और थेरेपी शुरू की गई थीं। दीपा को याद आया उसके बाद के तीन यातनापूर्ण वर्ष कैसे कटे थे। न जाने कितनी दवाइयों और, फ़िज़िकल थेरेपी के बावजूद अतुल की हालत बिगड़ती ही गई। दिल की तसल्ली के लिए होमयोपथिक और प्राकृतिक चिकित्सा तक ट्राई की गई, पर सारे प्रयत्न व्यर्थ गए।

 छड़ी की जगह वॉकर से चलने के प्रयास में अतुल के चेहरे की उदासी दीपा से छिपी नहीं रही थी। पहले वॉकर फिर व्हील-चेयर के बाद तो अतुल निराश हो चले थे। दीपा अतुल के साथ सामान्य रहने का अभिनय करती और अतुल भी वैसा ही व्यवहार करते। अचानक सांस लेने में तकलीफ़ होने की वजह से अतुल को हॉस्पिटेलाइज़ करना पड़ा था। ऑक्सीजन के बिना सांस ले पाना कठिन था। उस दिन के बाद अतुल की हालत दिन-बदिन बिगड़ती गई। छह त्रासदीपूर्ण महीनों की याद करने से भी दीपा का सर्वांग कांप उठता था। जिस दिन गले में छेद करके ट्यूब डाला गया दीपा दूसरे कमरे में जाकर रो पड़ी। बोलने में कष्ट, सांस लेना दूभर, ट्यूब नली से खाना देते देखना दीपा को सहन नहीं हो पाता था। पिता की गंभीर स्थिति की सूचना पाकर सुधीर भी आ पहुंचा था। बोल पाने में असमर्थ अतुल के चेहरे पर सुधीर को देख कर खुशी आ गई। सुधीर उनके साथ साए की तरह लगा रहा। ऑफ़िस वाले दिन-रात अतुल के लिए प्रार्थना कर रहे थे। रिश्तेदारों के नाम पर एक विधवा चाची ही थीं। उनका भी रो-रो कर बुरा हाल था।

“इस घर पर ना जाने किसका श्राप लगा है, कोई आदमी लंबी उम्र नहीं जी पाता।“

“ऐसा ना कहें चाची जी, अतुल ठीक हो जाएं, यही आशीर्वाद दीजिए।“ सच्चाई जानते हुए भी दीपा अतुल की मृत्यु की बात स्वीकार नहीं कर पा रही थी।

जैसा कि संभावित था एक सुबह सुशान्त का फ़ोन आया  था। अतुल संसार से विदा ले गए थे। अतुल के साथ दीपा हर रात हॉस्पिटल में रहती थी, उस दिन सुशान्त ने सुधीर के साथ उसे जबरन घर भेज दिया था।

“तुम बहुत थक गई हो, दीपा। आज रात मैं अतुल के साथ रहूंगा। चिंता मत करना।“

दीपा अपने को कर्स कर रही थी क्यों वह सुशान्त की बात मान गई। अंतिम सांस लेते अतुल उसे ना देख कितने व्याकुल हुए होंगे। जीवन भर साथ देने का वादा करके अतुल को अंतिम समय अकेला छोड़ देना उसका  क्षम्य अपराध बन गया। क्या अतुल उसे कषमा कर सकेंगे?

आज सुशान्त ने उसे अतुल का अंतिम पत्र दिया । पत्र देते सुशान्त ने कहा था-

“यह पत्र अतुल की अमानत की तरह पिछले एक वर्ष से मेरे पास था। उसने वादा ले लिया था उसकी मृत्यु के बाद ही तुम्हें दूं।“

कांपते हाथों से दीपा ने पत्र खोला था। टेढे-मेढे शब्द देख कर स्पष्ट था अतुल ने वो खत बहुत मुश्किल से लिखा था। अतुल की सुंदर लिखाई की दीपा हमेशा से प्रशंसक रही थी। अशक्त हो चुके हाथों से लिखे पत्र को दीपा ने पढना शुरू किया था- -

मेरी दीपा, 

यह पत्र जब तुम तक पहुंचेगा, मैं तुमसे बहुत दूर जा चुका होऊंगा। तुम्हारे साहस और आत्मविश्वास से अच्छी तरह से परिचित हूं, फिर भी मैंने जो फ़ैसला लिया है, उसे तुमसे छिपाया है। जीवन मे कभी तुमसे कोई बात नही छिपाई, पर इस जाती बेला में तुमसे अपना फ़ैसला बताने का साहस नहीं कर पा रहा हूं। जिस दिन एक्सपर्ट ने कहा अगले सात-आठ महीनों में शायद मेरा ब्रेन भी निष्क्रिय हो सकता है, बस उसी दिन अपनी लिविंग- विल साइन करके सुशान्त को दे दी। सुशान्त व्यावहारिक डॉक्टर है, उससे वादा ले लिया अपनी इच्छा- मृत्यु के फ़ैसले को तुम्हें ना बताए। उससे कह दिया जिस दिन मेरा जीवन व्यर्थ हो जाए, मस्तिष्क काम न कर सके, उस दिन मुझे मृत्यु देते बिल्कुल मत हिचकना। मेरी मृत्यु में ही मेरा जीवन होगा।

मैं जानता हूं तुम मेरी निष्क्रियता भी झेल लेतीं, पर दीपा मेरे लिए वो स्थिति मौत से भी बद्तर होगी। तुम मेरी पत्नी ही नहीं अभिन्न मित्र भी रही हो, आज अपना इतना बड़ा फ़ैसला तुम्हें बिना बताए ले रहा हूं, इस दृष्टि से तुम्हारा अपराधी हूं। अपने इस अपराध के लिए क्षमा चाहूंगा। इस मृत्यु पथ के राही को माफ़ करोगी न, दीपा। सच तो यह है, एक वेजीटेबल के रूप में पड़ा रहने की जगह, मृत्यु ही मेरे लिए वरदान होगी।

तुमसे दूर जाने की बात भी नहीं सोच पाता था और आज स्वेच्छा से अपनी मृत्यु के दस्तावेज़ पर साइन किया है। नहीं दीपा, मैं निष्क्रिय वेजीटेबल बन कर अपने को पलंग पर पड़ा देखने की कल्पना भी नहीं कर सकता। यह सिर्फ़ मेरी ही नहीं, तुम्हारी भी सज़ा होगी, दीपा।

तुम्हारे साथ जीवन बिताने का वादा किया था और बीच में ही छोड़ कर जा रहा हूं, इस अपराध के लिए माफ़ करोगी न, दीपा। तुम्हारे साथ बिताया एक-एक पल मैंने पूरी तरह से जिया है। तुम्हें अपने से भी ज़्यादा प्यार किया है। तुमने हर कदम मेरा साथ दिया, पर अब साथ देने वाले मेरे कदम बेजान हैं। तुम मेरी शक्ति और प्रेरणा रही हो। मेरी  मृत्यु के दिन अगर तुम मेरे सामने रहीं तो शायद मेरा फ़ैसला् कमज़ोर पड़ जाए, इसीलिए सुशान्त से कहा है, उस दिन तुम मेरे सामने ना रहो।

अब और नहीं लिखा जाता, अनजाने मे अगर कभी तुम्हारा दिल दुखाया हो तो मफ़ कर देना।

बहुत- बहुत प्यार

बस तुम्हारा

अतुल

अतुल के अंतिम पत्र को सीने से लगा दीपा बिलख उठी—

‘नहीं अतुल तुमने यह सत्य मुझसे क्यों छिपाया। तुम अपनी दीपा को नहीं पहचान पाए। तुम्हारी हर बात स्वीकार की थी, अगर तुम कहते तो दिल पर पत्थर रख कर भी मैं तुम्हारे फ़ैसले को मान देती। कम से कम तुम्हारा सिर अपनी गोद में रख कर तो तुम्हें विदा देती। तुमने जीवन की हर खुशी दी, पर मुझसे दूर जाने का फ़ैसला अकेले ले लिया। बस मेरी शक्ति और हिम्मत पर तुम्हे इतना ही विश्वास था, अतुल?”

रोती हुई माँ को अपने से चिपटा, सुधीर की आँखों से भी आँसू बह निकले।

2 comments:

  1. Bahut hi achi story...y story nhi real story thi 😢 anshu aa gye

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