अपरिचिता
शैलेश राज की फ़ोटो के साथ डी0एम0 के रूम में शहर में उनकी पोस्टिंग की ख़बर हर अखवार में छपी थी। अनुपमा की नज़र फ़ोटो पर अटक कर रह गई। शैलेश का व्यक्तित्व कितना प्रभावशाली लग रहा था। नीरज के ऑफ़िस जाने के बाद शैलेश को रिंग किया था। वह इसी शहर में है जानकर शैलू को कितनी खुशी होगी। वह तो सोचता होगा हम अभी अमेरिका में ही हैं। अनुपमा के ओठों पर मीठी- सी मुस्कान तिरआई उसे चौंका देने की कल्पना अनुपमा को बड़ी अच्छी लगी थी।
नम्बर डा।यल कर उधर से आने वाली आवाज़ की उसे उत्सुकता से प्रतीक्षा थी-
‘‘डी0एम0 साहब की कोठी से बोल रहे हैं।’’
‘‘शैलेश- मेरा मतलब डी0एम0 साहब घर में हैं ?’’
‘‘जी नहीं, साहब बाहर गए हैं ?’’
‘‘कब तक लौटेंगे ’’
‘‘कह नहीं सकते, कोई मैसेज़ मैडम ?’’
‘‘हाँ- उनसे कहना अनु.....अनुपमा भारद्वाज ने फ़ोन किया था। हमारा फ़ोन नम्बर नोट कर लीजिए।’’
‘‘जी, बताइए।’’
अपना फ़ोन नम्बर नोट कराने के बाद से अनुपमा धड़कते दिल से शैलेश के फ़ोन का इंतजार करने लगी। बेमन से खाना गले से नीचे उतार, आँखे मूंद अनुपमा पलंग पर पड़ गई। रोज़ के फ़ेवरिट सीरियल्स अनदेखे ही रह गए। अनुपमा का टी0वी0 प्रेम नीरज को पसन्द नहीं आता।
‘‘क्या बच्चों की तरह टी0वी0 से चिपकी रहती हो। कितनी बार कहा कम्प्यूटर में ट्रेनिंग ले लो, मेरे काम में हेल्प कर सकती हो।’’
‘‘काम-काम-काम। इसके अलावा तुम्हें और कोई शब्द भी आता है ? किसके लिए करते हो इतना काम ? मेरे लिए वक़्त
है तुम्हारे पास ? आखि़र मुझे भी तो समय काटना होता है....’’
उत्तेजित अनुपमा से ज़्यादा बात करना बर्र के छत्ते में हाथ डालना होता। अक्सर नीरज चुप हो जाता। तनाव में रहना नीरज की आदत नहीं थी, पर अब कभी-कभी तनाव हो ही जाता।
शादी के बाद के कुछ दिन खुशी में बीते, पर धीमे-धीमे अनुपमा को छोटी-छोटी बातों से असन्तोष होने लगा। जो मिल गया, उससे संतुष्ट न हो पाना, शायद अनुपमा का जन्मजात स्वभाव था। वैसे सुखी जीवन जीने के लिए जो कुछ भी चाहिए, अनुपमा के पास वो सब कुछ था। अनुपमा के मुँह से निकली हर बात पूरी करने की सामर्थ्य नीरज के पास थी, फिर भी न जाने क्यों अनुपमा को लगता जिंदगी में कहीं कोई कमी थी...।
इकलौती बेटी होने के कारण घर मे। उसकी ज़ा-बेज़ा फ़र्माइशें तुरन्त पूरी की जातीं। पापा ईमानदार अधिकारी थे। घर में पैसों का बाहुल्य कभी नहीं रहा, पर अनुपमा के खर्चो में कटौती कभी नहीं की गई। मध्यवर्गीय परिवार में जन्मी अनुपमा आकाश छू लेने के सपने देखती। सुन्दर चेहरे-मोहरे के साथ अनुपमा ने बड़ा मीठा गला पाया था। उसके गीत सुन कोई भी मुग्ध हो जाता। माँ को उससे एक ही शिक़ायत रहती, उसमें संतोष की कमी है। कुछ भी मिल जाने पर अनुपमा और पाने को बेचैन हो उठती।
पापा के शिमला ट्रांसफ़र पर अनुपमा को खुशी हुई थी। शिमला का प्राकृतिक सौंदर्य उसे अभिनव लगा था। जब तक घर की व्यवस्था नहीं हुई, उनके रहने का इंतज़ाम गेस्ट हाउस में किया गया था।
‘‘गुड मार्निंग, सर। लंच के लिए आपका ऑर्डर लेने आया हूँ।’’
सधी आवाज़ पर अख़वार से निगाह हटा, पापा ने उस लड़के की ओर देखा था। जगमगाती सफ़ेद कमीज़ के ऊपर पहिने नीले स्वेटर में उसका गोरा रंग और भी उजला लग रहा
था। चेहरे पर बुद्धि का प्रकाश झिलमिला रहा था। साधारण कपड़ों में वह असाधारण दिख रहा था। अनुपमा के मन में अचानक आया किसी कपड़ा धोने के साबुन के विज्ञापन के लिए वह लड़का परफ़ेक्ट मॉ डेल था। मुस्कराती अनुपमा के हाथ में पापा ने मेनू कार्ड थमा दिया था।
जब से अनुपमा अपनी पसंद-नापसंद ज़ाहिर करने लायक हुई, घर में उसी की पसंद चलती।
अनुपमा का बताया मेनू नोट करते युवक ने एक पल को दृष्टि उठाई थी। अनुपमा से दृष्टि मिलते ही नज़र झुका ली थी। अनुपमा को लगा उस लड़के में कुछ ख़ास ज़रूर था।
‘‘यहाँ घूमने जाने के लिए कौन-कौन- सी ख़ास जगहें हैं ?’’ माँ अचानक उससे पूछ बैठी थीं।
‘‘आप तो टूरिस्ट सीज़न में आई हैं, लोग रोज़ साइट सीइंग टूर पर जाते हैं। यही नीचे से बसें और टैक्सियाँ चलती हैं। अगर आप कहें आपकी सीट बुक करा दें।’’ युवक उत्साहित था।
‘‘नहीं-नहीं, अब तो हमें यहाँ दो-तीन साल तो रहना ही है। आराम से सारी जगहें देख लेंगे। हाँ आसपास जहाँ पैदल जा सकें, वैसी कोई जगह बताओ।’’
‘‘घूमने-बैठने के लिए तो लोग रिज जाते हैं। एक माल रोड है, दिन भर घूमते रहिए, मन नहीं भरेगा। इस वक़्त तो माल रोड पर टूरिस्टों का मेला लगा होगा।’’
‘‘देखो लंच ज़रा जल्दी चाहिए, मुझे आफ़िस जाना है।’’ पापा को माँ की हरएक से बात करने की आदत से चिढ़ थी।
‘‘यस सर ! तुरन्त भेजता हूँ।’’ लड़का फुर्ती से चला गया।
‘‘बड़ा तौर-तरीके वाला लड़का है। किसी अच्छे घर का लगता है।’’ मम्मी की आँखों में प्रशंसा थी।
‘‘हाँ, इस प्रोफ़ेशन के लिए अच्छे मैनर्स सबसे बड़ी क्वालीफिकेशन होती है’’
‘‘पापा आप आज भी ऑफ़िस जाएँगे ? आज ही तो हम यहाँ आए हैं।’’ अनुपमा के स्वर में शिक़ायत थी।
‘‘हाँ बेटी, ड्यूटी तो आज ही ज़्वाइन करनी होगी। तुम दोनों भी आज आराम करो, थक गई होगी।’’
‘‘उंहुक, इतने अच्छे मौसम में भला आराम किया जाता है, हम तो माल रोड जाएँगे।’’ अनु के स्वर में बच्चों वाला उत्साह छलक रहा था।
लंच लाने वाला लड़का कोई दूसरा था। खाना खाकर पापा ऑफ़िस चले गये और अनु मम्मी को जबरन ‘रिज‘ खींच ले गई। चारों ओर फैले कोलाहल के बीच अचानक अनुपमा को अकेलेपन ने घेर लिया। पीछे छूट गई सहेलियाँ याद आने लगीं। अब सब कुछ नए सिरे से शुरू करना होगा। मंजरी तो उसके शिमला आते समय कितना रोई थी, पर यही तो जिंदगी है। पापा ने समझाया था शिमला यूनीवर्सिटी में पढ़ने का चाँस किस्मतवालों को ही मिलता है। यहाँ न आई होती तो उसे किसी शहर के होस्टेल में रहना पड़ता। कल उसे यूनीवर्सिटी में एडमीशन के लिए जाना था।
शिमला यूनीवर्सिटी का कैम्पस देखकर अनु का मन खुश हो गया। प्रकृति के बीच शिक्षा केंद्रो की स्थापना वैदिक ऋषियों ने व्यर्थ ही नहीं की थी। अनु को आसानी से यूनीवर्सिटी में एडमीशन मिल गया। शिक्षा-विभाग में होने के कारण पापा ने अनु की पढ़ाई पर पूरा ध्यान रखा था। अनु का जी चाहता, वह सहेलियों के साथ पिकनिक पर जाए, फ़िल्में देखे, पर पापा ने पढ़ाई से उसकी पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी। परीक्षाओं में अनु हमेशा अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण होती रही। इतिहास उसका फ़ेवरिट विषय था, इसीलिए एम0ए0 प्र्रीवियस में उसने इतिहास विषय चुना था।
यूनीवर्सिटी में पहले दिन अनुपमा थोड़ी नर्वस थी, पर सुजाता ने आगे बढ़कर दोस्ती के लिए हाथ बढ़ाया था। अनुपमा का परिचय क्लास की दूसरी लड़कियों से भी सुजाता ने ही कराया था। दो-एक दिन में सब कुछ सहज-सामान्य लगने लगा था। घर वापस लौटी अनुपमा मम्मी-पापा को रोज़ की बातें सविस्तार सुनाती।
तभी एक दिन अनु की भेंट शैलेश से हो गई थी। यूनीवर्सिटी में शोध-छात्र के रूप में शैलेश को देखकर अनु चौंक गई-
‘‘तुम....आप.....यहाँ ?’’
‘‘जी हाँ, आप ही के डिपार्टमेंट में रिसर्च कर रहा हूँ।’’ शैलेश के ओठों पर हल्की मुस्कान थी।
‘‘पर....उस दिन तो.....’’बात पूरी न कर अनु अचकचा गई थी।’’
‘‘हाँ अब भी वहाँ पार्ट-टाइम काम करता हूँ। टूरिस्ट सीज़न में होटलों और गेस्ट हाउसेज़ में कॉ लेज-स्टूडेंट्स का काम करना कोई नई बात नहीं है। अक्सर लड़के इस सीज़न में काफ़ी पैसे कमा लेते हैं।
‘‘फिर पढ़ाई के लिए वक़्त कैसे निकाल पाते हैं आप ?’’
‘‘जहाँ चाह, वहाँ राह। लोग पिक्चर देखने जाते हैं , पिकनिक पर जाते हैं पर क्या इन कामों के बीच पढ़ाई नहीं करते ? वैसे मेरे इस काम को आप मेरी ज़रूरत कह सकती हैं।
‘‘हमें तो पढ़ाई के साथ कुछ और कर पाने का वक़्त ही नहीं मिल पाता। यहाँ तक कि घर में मम्मी को भी हेल्प नहीं कर पाते।’’ बड़ी सच्चाई और मासूमियत के साथ अनु ने अपनी बात कही थी।
‘‘अच्छी लड़कियाँ माँ की मदद ज़रूर करती हैं।’’ शैलेश शैतानी से मुस्कराया था।
‘‘तो क्या हम अच्छी लड़की नहीं हैं ?’’ अनु के स्वर में मान था।
‘‘नहीं-नहीं, आप तो बहुत अच्छी हैं।’’
‘‘थैंक्स।’’ अनु मुस्काई थी।
‘‘वैसे आपको शिमला कैसा लग रहा है ?’’
‘‘बहुत अच्छा लग रहा है, पर अभी सब जगह कहाँ देख पाए हैं ?’’
‘‘हाँ, शिमला सचमुच अच्छा शहर है।’’
‘‘हमें तो यहाँ के लोग भी बहुत अच्छे लगे हैं।’’
‘‘यहाँ के लोगों में मैं भी शामिल हूँ न ?’’
‘‘हम आपको जानते ही कितना हैं ?’’
‘‘जान जाएँ तो ज़रूर बताइएगा। वैसे अगर कभी कोई ज़रूरत हो तो बेहिचक बताइएगा।’’
‘ज़रूर, थैंक्स फ़ॉर दिस कंसर्न।’’
शैलेश के चले जाने के बाद सुजाता दौड़ी आई थी। अनुपमा का हाथ पकड़, उत्सुकता से पूछा था-
‘‘तू उसे जानती है अनु ?’’
‘‘किसकी बात कर रही है सुजाता ?’’
‘‘अरे वही जीनियस ऑफ दि डिपार्टमेंट मेरा मतलब शैलेश राज़ से है। अभी तुझसे वह बात कर रहा था न ?’’
‘‘वह जीनियस है ?’’ अनु की आवाज़ में ढ़ेर- सा विस्मय था।
‘‘हर बैच का टॉ पर है। जानती है अपनी मेहनत से पढ़ाई कर रहा है।’’
‘‘ऐसा क्यों सुजाता ?’’
‘‘उसके पिता नहीं हैं। माँ अक्सर बीमार रहती है। घर में छोटी बहिनें हैं। सबका भार शैलेश पर ही है। पार्ट-टाइम काम करता है और हर साल टॉ प करता है।’’ सुजाता की आँखों में शैलेश के लिए प्रशंसा की चमक थी।
‘‘ताज़्जुब है, इतना काम करने के बावजूद, कोई पढ़ाई में भी सबसे ऊपर रहे।’’
उस दिन से शैलेश के प्रति अनुपमा की दृष्टि बदल गई थी। घर आकर पापा-मम्मी को जब उसके बारे में बताया तो पापा ने गम्भीरता से कहा था-
‘‘ऐसे लड़के कुछ असाधारण कर दिखाते हैं। वह ज़रूर एक दिन कामयाबी पाएगा।’’
यूनीवर्सिटी में शैलेश से अनुपमा की अक्सर बातचीत हो जाती। अनुपमा को जब कोई कठिनाई आती वह डिपार्टमेंट की लाइब्रेरी चली जाती। शैलेश उसकी हर कठिनाई इस आसानी से सुलझा देता कि अनुपमा ताज़्जुब में पड़ जाती। एक दिन हँसते हुए शैलेश से कहा था-
‘‘लड़कियाँ आपको चलता-फिरता इन्साइक्लोपीडिया ठीक ही कहती हैं। हर प्रश्न का जबाव है आपके पास। कैसी इत्ती ढे़र सारी घटनाएँ, उनकी तारीखें यहाँ तक कि समय भी याद रख पाते हैं।’’
‘‘लड़कियों की छोड़िए, आपका मेरे बारे में क्या ख़्याल है ?’’ शैलेश की उस मुग्ध दृष्टि का अनु जबाव नहीं दे सकी थी। सचमुच शैलेश का विषय-ज्ञान कई प्रोफ़ेसरों से ज़्यादा था।
एक दिन शैलेश अनुपमा को अपने घर भी ले गया था। छोटे-छोटे दो कमरों के घर को बहिनों ने सुरूचिपूर्ण, पर सादग़ी से सजा रखा था। घर के अभाव छिपे नहीं थे, पर उनके चेहरों पर कोई शिक़ायत नहीं थी। वे ज़िंदगी और विशेषकर अपने भाई से पूरी तरह संतुष्ट थीं। आपसी प्यार की चमक से उनके चेहरे जगमगा रहे थे। उन सबसे मिलकर अनु को बहुत अच्छा लगा। जिस प्यार और अपनेपन से उन्होंने अनु का स्वागत किया, उसने अनु को अभिभूत किया था। मम्मी ठीक ही कहती हैं- ‘‘जिनके पास पैसा नहीं होता उनके पास प्यार की दौलत होती है। यह दौलत वे जी खोलकर लुटाते हैं।’’ शैलेश के घर यह बात पूरी तरह ठीक उतरती थी।
पिछले कुछ दिनों से इतिहास विभाग में ख़ासी चहल-पहल का माहौल था। विभाग के सभी छात्र-छात्राएँ बेहद उत्साहित थे। पहली बार इतिहास विभाग में एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय सेमिनार आयोजित किया जा रहा था। सबको अलग-अलग ड्यूटी दी गई थी। अनुपमा और सुजाता को सबके स्वागत का दायित्व दिया गया था।
नियत दिन विशिष्ट व्यक्तियों की उपस्थिति में दीप जलाकर, राज्यपाल द्वारा सेमिनार का उद्घाटन किया गया। अनुपमा ने अपनी मीठी आवाज़ में स्वागत-गीत प्रस्तुत कर, सबको मुग्ध कर दिया। अनु को माँ का मीठा स्वर, विरा्सत में मिला था।
सेमिनार में भारत और विदेशों से आए विद्वान इतिहासविद्, मेधावी शोध-कर्ताओं की उपस्थिति में शैलेश ने अपना पेपर प्रस्तुत कर अपनी नई खोज़ों से सबको चमत्कृत कर दिया। शैलेश के पेपर में मध्य युग के कुछ ऐसे ऐतिहासिक तथ्य दिए गए थे जिनकी चर्चा उस दृष्टिकोण से पहले नहीं की गई थी। शैलेश का पेपर सबके बीच चर्चा का विषय बन गया। अमेरिका से आए प्रोफ़ेसर ।ज़ॉन ने तो उसे अमेरिका आने का निमंत्रण भी दिया था। गम्भीर मुस्कान के साथ शैलेश ने सबकी बधाइयाँ स्वीकार की थीं। अनुपमा सचमुच अभिभूत थी-
‘‘काश् ! हमारे पास आपकी बुद्धि का चैथाई अंश भी आ पाता।’’
‘‘मेरी बुद्धि ही क्यों, सशरीर हाज़िर हूँ, स्वीकार कीजिए। यह बुद्धि भी आपकी गुलामी करेगी।’’ अनु को गहरी दृष्टि से देखकर शैलेश ने परिहास किया था।
‘‘सच कह रहे हैं, आपकी बुद्धि क्या किसी की गुलामी कर सकती है ?’’ अपनी बड़ी-बड़ी आँखे शैलेश पर गड़ा, अनु ने परिहास का जवाब दिया था।
‘‘हुक्म कीजिए, मेरा सब कुछ आपका है। आपकी मीठी आवाज़ का जादू तो किसी को भी अपने वश में कर सकता है।’’
‘‘आपको भी ?’’ अचानक फ़िसल गए प्रश्न पर अनु ने जीभ दाँतो तले दबा ली थी।
‘‘मैं तो कब का आपके जादू के जाल में फँस चुका हूँ, हाँ आप बताइए मेरे बारे में क्या सोचती हैं आप ?’’
शैलेश को बधाई देने आई सुजाता ने अनु को जवाब देने का मौक़ा नहीं दिया था-
‘‘बधाई शैलेश जी। आज आपकी वज़ह से हमारे डिपार्टमेंट का पूरी दुनिया में नाम हो गया।’’
‘‘थैंक्स।’’
‘‘शैलेश जी, डॉक्टरेट मिल जाने के बाद आपकी क्या योजना है ?’’
‘‘पी0एच0डी0 पूरी करके यूनीवर्सिटी में पढ़ाना ही मेरा सपना है सुजाता जी।’’
‘‘हाँ वही ठीक होगा। आप जैसे मेधावी प्रोफ़ेसर से पढ़ने वाले स्टूडेंट्स का तो जीवन ही संवर जाएगा। उनमें भी आपकी तरह कुछ नया खोज़ निकालने की ललक रहेगी। इतिहास के लिए खोज़ निकालने की ललक चाहिए। इतिहास के लिए ऐसे ही शोधार्थी चाहिए।’’ सुजाता के हर शब्द से उत्साह छलक रहा था।
‘‘नहीं, आप जैसे ब्रिलिएंट स्टूडेंट को तो आई0ए0एस0 बनना चाहिए। प्रशासनिक सेवा में आप ही की ज़रूरत है।’’
‘‘आप चाहती हैं मैं टीचिंग प्रोफ़ेशन में न जाकर एडमिनिस्ट्रेटर बनूँ ? आई0ए0एस0 एक्ज़ाम की बात तो मैंने सोची ही नहीं।’’ अनु की बात पर शैलेश सोच में पड़ गया था।
‘‘सिर्फ़ हम ही क्यों, कोई भी अक्लमंद आदमी आपको यही सलाह देगा। प्रोफ़ेसरशिप में रखा ही क्या है ? आई0ए0एस0 तो तीन जादुई शब्द हैं, कितना ग्लैमर है।’’ दूर के रिश्ते के कलक्टर मामा के वैभव ने अनु को हमेशा मुग्ध किया था।
‘‘धत्तेरे की तेरे जादुई शब्दों और ग्लैमर की। शैलेश जी आप इसकी बातों पर मत जाइए, हमें विश्वास है आप कुछ ऐसा नया खोज़ निकालेंगे कि दुनिया भर में आपका नाम होगा।’’ सुजाता ने अनु की सलाह पर अपनी राय जताई थी।
‘‘हौसला आफ़जाई के लिए शुक्रिया। वैसे आप दोनों सहेलियों की पसंद बिल्कुल अलग है।’’ शैलेश हँस दिया था।
घर आकर अनुपमा सोच में पड़ गई। पिछले कुछ दिनों से शैलेश ऐसे संकेत दे रहा था जिनमें अनुपमा के लिए गहरी चाहत साफ़ झलकती। खुद अनु को शैलेश पसंद था, उसकी बुद्धि, तेजस्विता उसे आकृष्ट करती। आई0ए0एस0 परीक्षा में क्वालीफ़ाई कर लेना उसके लिए कोई कठिन बात नहीं थी। अगर वह आई0ए0एस0 हो जाए तो बचपन से कुछ ‘ख़ास’ बन सकने की अनु की इच्छा ज़रूर पूरी हो सकती है।
कलक्टर एक तरह से पूरे ज़िले का राजा ही तो होता है। स्कूल-कॉलेज में कलक्टर की पत्नी को पुरस्कार बाँटते देख, अनुपमा को उसके भाग्य से ईर्ष्या होती। क्या कोई दिन ऐसा आएगा जब वह पुरस्कार बाँट सकती ?
शैलेश की बीमारी की बात सुन, अनुपमा उसे देखने, उसके घर गई थी। उसे देखते ही शैलेश खिल उठा-
‘‘ज़हे नसीब, आप यर्हाँ आईं।’’
‘‘ऐसे क्यों कहते हो, हम कोई ख़ास मेहमान तो नहीं हैं। अनु सकुचा आई थी।
‘‘मेरे लिए तो आप बहुत ख़ास हैं, न जाने किस खु़शनसीब की क़िस्मत में आप हैं।’’ शैलेश गम्भीर था।
‘‘छिः, ऐसे क्यों कहते हो।’’
‘‘आई0ए0एस0 बने बिना क्या आप स्वीकार करेंगी ?’’
‘‘प्लीज़, ऐसी बातें मत करो.....।’’अनु संकोच से भर उठी थी।
‘‘अगर सच यही है तो आपका सपना पूरा करने का वादा रहा।’’ शैलेश हल्के से मुस्करा दिया।
‘‘आप ज़ल्दी से अच्छे हो जाइए, हम बस यही कहने आए थे।’’
धड़कते दिल से अनुपमा शैलेश की बातें दोहराती रही। शैलेश ने स्पष्ट शब्दों में अपने मन की बात बता दी थी। अनुपमा भी शैलेश को चाहती थी, पर क्या उसके घर के अभाव, बहिनों के प्रति दायित्वों को अनदेखा किया जा सकता था ? शैलेश के लिए तो अनुपमा की हर बात पूरी करना, उसका सबसे बड़ा काम होता। अनुपमा परीक्षा में टाप करे, इसके लिए उसने अपने सारे नोट्स अनुपमा को दिए थे। उसे हमेशा उत्साहित करता।
इसी बीच प्रोफ़ेसर देव के अमेरिका चले जाने पर शैलेश की उनके रिक्त स्थान पर लेक्चरर रूप में नियुक्ति हो गई थी। सुजाता ने शैलेश को सच्चे मन से बधाई दी थी।
‘‘आप जैसे प्रतिभाशाली की मानसिक-क्षुधा केवल शिक्षण द्वारा ही पूर्ण हो सकती है। हमें खुशी है आप अपनी नई जिदगी शुरू कर रहे हैं।’’
अकेले में शैलेश ने पूछा था-
‘‘मेरी नियुक्ति से तुम खुश नहीं हो अनु ?’’
‘‘हमने कब ऐसा कहा ?’’
‘‘बधाई जो नहीं दी।’’
‘‘बधाई शैलेश’’
‘‘ऊँहुक, यह दिल से दी गई बधाई नहीं है। देखो अनु मेरी थीसिस एक साल में ज़रूर सबमिट हो जाएगी, उसके बाद ही कुछ और सोच सकता हूँ। मेरा इंतज़ार करोगी न अनु ?’’
‘‘पता नहीं शैलेश, शादी का निर्णय सिर्फ़ मेरा ही तो नहीं होगा।’’ मम्मी-पापा के लिए एक हम ही तो हैं। आजकल वे दोनों बस हमारी शादी की ही बातें करते रहते हैं.....’’अनु ने अपने को बचाना चाहा था।
‘‘तुम उन्हें हमारे में नहीं बता सकतीं अनु ? अगर कहो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करने आ सकता हूँ ?’’
‘‘नहीं....नहीं इतनी ज़ल्दबाज़ी ठीक नहीं, पापा से यह सब बता पाना उतना आसान नहीं है। पापा को टीचिंग लाइन पसंद नहीं.....। उनके सपने बहुत ऊँचे हैं।’’
‘‘यानी यूनीवर्सिटी लेक्चरर उनकी निगाह में नकारा है। ताज़्जुब है खुद शिक्षा-विभाग में होते हुए उनके ऐसे विचार हैं।’’ शैलेश कुछ उत्तेजित था।
‘‘तुम समझ नहीं पाओगे शैलेश, पर मम्मी के आई0ए0एस0 भाई को लेकर उनके मन में हमेशा से कुंठा रही है। मामा जी ही नहीं, मम्मी के मन में भी पापा की नौकरी के लिए कोई सम्मान नहीं रहा है। कई बार पापा ने अपमान के घूँट पिए हैं।’’
‘‘एक बात बताओ अनु, क्या तुम्हारी जिंदगी में व्यक्ति से ज़्यादा उसके पद का महत्व है ? क्या तुम आदमी की पोज़ीशन से विवाह करोगी ?’’
‘‘ऐसी बात नहीं है शैलेश, हम सचमुच तुम्हें बहुत चाहते हैं......।’’ शैलेश के उस सीधे सवाल ने अनु को असमंजस में डाल दिया था।
‘‘फिर इसमें अगर-मगर क्यों अनु ?’’
‘‘अच्छा-अच्छा, अभी तो हम शादी नहीं करने जा रहे हैं न ? हमें भी तो अपना एम0ए0 पूरा करना है। वक़्त आने पर देखा जाएगा।’’ अनु ने बात टाल दी।
चचेरी बहिन की शादी में पापा-मम्मी के साथ अनु भी दिल्ली गई थी। उसी शादी में नीरज ने अनु को देखा था। अमेरिका से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग डिग्री के साथ, नीरज अमेरिका में ही एक ऊँची नौकरी कर रहा था। एक उपयुक्त भारतीय लड़की की तलाश में वह भारत आया था। शादी में अनुपमा के भोले सौंदर्य और उसके गले से निकले मीठे गीतों ने, नीरज का दिल जीत लिया।
नीरज के घर से अनुपमा के लिए विवाह का प्रस्ताव मिलना, आकाश के तारे झोली में आ जाने जैसी बात थी। मम्मी-पापा की खुशी का ठिकाना न था। नीरज का अपार वैभव उनकी बेटी का हो सकता है, इस बात पर विश्वास कर पाना सहज नहीं था। अनु कुछ सोच पाने की स्थिति में नहीं थी। शादी में जमा सारे रिश्तेदारों ने उस पर बधाइयों की इस तरह बौछार की कि ‘न’ कह सकने का सवाल ही नहीं उठ पाया।
नीरज के घरवालों ने तुरन्त सगाई के साथ ही शादी की पेशकश की थी। भगवान की कृपा से उनके यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं थी, चार दिन बाद नीरज को अमेरिका वापस लौटना था सो शादी करके ही जाए। बार-बार आना-जाना संभव नहीं हो पाता। अनु के चाचा ने भाई को समझाया था-
‘‘ऐसा संबंध मिलना अनु का भाग्य है भाई साहब। दिल्ली में तो एक दिन में शादी का सारा इंतज़ाम हो जाता है। आप सारी ज़िम्मेवारी मुझ पर छोड़ दें।’’
‘‘पर इतनी ज़ल्दी निर्णय ले लेना क्या ठीक होगा, सुरेन्द्र। अमेरिका में नीरज कैसे रह रहा है....हम कुछ भी तो नहीं जानते।’’
‘‘अमेरिका में भी नीरज, कीचड़ में खिले कमल जैसा है भाई साहब। मेरे दोस्त का बेटा नीरज के साथ ही काम करता है, आप उस तरफ़ से निश्चिन्त रहें। अमेरिका से आने वाले लड़कों की शादियाँ ऐसे ही होती हैं। उनके पास समय ही कहाँ होता है ?’’
हीरों के जे़वरात का वज़न सबके मन की दुविधा मिटा गया। अनु ने भी और क्या चाहा था ? अमेरिका से भारत इस तरह आना-जाना मानों दिल्ली से शिमला जा रही हो। जीवन भर आटो, बस में सफ़र करने वाली अनु के लिए मर्सडीज़, लेक्सस कारें थी। अनु की एम0ए0 की पढ़ाई की समस्या भी नीरज ने दूर कर दी थी। अनु प्राइवेट उम्मीदवार की तरह जब चाहें परीक्षा दे सकती है। पर इससे ज़्यादा अच्छा होगा वह अमेरिका में टीचिंग या जर्नलिज्म का कोर्स कर ले।
सब कुछ सपने जैसा लगा था। यूरोप में हनीमून मना दोनों का अमेरिका जाना तय हुआ था। बस चार दिनों में ही चाचा के घर से अनु की शादी हो गई थी। शिमला लौट पाने का अवसर भी नहीं था। शादी की रस्में स्वप्नवत् निबटा जब यूरोप जाने के लिए अनुपमा प्लेन में बैठी तो अचानक उसे लगा, वह बेहद थक गई थी।
नीरज ने उसका सूखा चेहरा देख पूछा था-
नीरज ने उसका सूखा चेहरा देख पूछा था-
‘‘आर यू ओ0के0 अनु ?’’
‘‘जी...ई ! बहुत थक गए हैं।’’ आँखों से अनजाने ही आँसुओं की धारा बह निकली थी।
‘‘कम ऑ न ! हर लड़की को एक न एक दिन अपने माँ-बाप का घर छोड़ना ही पड़ता है। कुछ पीलो, ठीक हो जाओगी।’’
‘‘नहीं, हम बस सोना चाहते हैं, कितने दिनों से सो नहीं पाए।’’
‘‘ठीक है अभी जितना सोना है सो लो, यूरोप में तो सोने का वक़्त नहीं मिलेगा।’’ हल्की मुस्कान के साथ नीरज ने कहा था। आँखे मूँदते ही शैलेश का चेहरा उभर आया था, उसने अनु से पूछा था-
‘‘सच बताओ अनु, तुम व्यक्ति से प्यार करती हो या उसकी पोज़ीशन से ?’’
डरकर अनु ने आँखें खोल दीं थीं। उसके जीवन में अचानक यह कैसा मोड़ आ गया था। शैलेश उसके विवाह की ख़बर को कैसे लेगा ? लेकिन अनु ने क्या उससे ऐसा कोई वादा किया था ?
लंदन के हीथ्रो एयरपोर्ट के बाहर नीरज के लिए कार प्रतीक्षा कर रही थी। एयरपोर्ट से होटल जाते रास्ते में प्रिन्सेस डायना का महल पड़ा था। महल के बाहर जैसे उदासी पसरी हुई थी। अनु का मन उदास हो आया। डायना के आकाश छूते सपनों, महत्वाकांक्षाओं का अचानक इतना दुखद अंत ?
नीरज एक अच्छा पति था, पर उसके काम की व्यस्तता ने उसे नितान्त अव्यावहारिक बना दिया था। उसकी जिं।दगी में सेंटीमेंट्स के लिए स्थान नहीं था। अनु के जिस गुण ने उसे आकृष्ट किया, उसे याद नहीं रहा कि अनु एक अच्छी गायिका है। उसकी आवाज़ में कोयल की मिठास है। अनु उसकी पत्नी थी, उस पर उसका पूरा अधिकार है, बस यह बात उसे अच्छी तरह याद रहती। पत्नी का फ़र्ज़ है वह पति की हर ज़रूरत पूरी करे, उसकी सुख-सुविधा का ध्यान रखे। बदले में अनु के लिए धन-सम्पत्ति की कमी नहीं थी। कहीं भी आने-जाने के लिए कार थी, पहनने को बढ़िया से बढ़िया कपड़े और जे़वर थे। औरतों को और चाहिए भी क्या ? जब जी चाहे किटी पार्टी दे डालो, डी वी डी पर पिक्चर लगाकर मन बहला लो। पढ़ाई की ओर अनु ने भी ध्यान नहीं दिया। अकेली अनु को शिमला का अपना डिपार्टमेंट याद आता। शैलेश की याद जैसे खाली पलों को जीवन्त बना जाती। कई बार जी चाहता उसे पत्र लिखे, पर कभी हिम्मत न बटोर पाती। अब तक तो सुजाता की एम0ए0 फ़ाइनल की परीक्षा भी समाप्त हो गई होगी।
एक साल अमेरिका में बिताने के बाद नीरज ने भारत में अपना कम्प्यूटर-बिज़नेस शुरू करने का निर्णय लिया था। पापा ने अपना ट्राँसफ़र रामगढ़ करा लिया था। शिमला जाने के सारे रास्ते बंद थे। नया काम ज़माने की व्यस्तता ने नीरज को घर से और भी दूर कर दिया। अनु बोर हो जाती। पुरानी किताबें झाड़-पोंछकर निकाली और एम0ए0 की परीक्षा की तैयारी में अनु ने भी अपने को व्यस्त कर लिया। करेसपांडेस कोर्स के पाठों के उत्तर देती अनु की कल्पना में शैलेश का तेजस्वी चेहरा चमकता दीखता। अब तक तो उसकी पी-एच0डी0 पूरी हो गई होगी। कहाँ होगा शैलेश ?
तीन सालों का लम्बा वक़्त बीत गया। आज अख़बार खोलते ही शैलेश की फ़ोटो ने उसका अतीत फिर सजीव कर दिया। अन्ततः शैलेश ने पी-एच0डी0 पूरी कर ही ली। उसके बायोडाटा में दिया गया है उसके शोध-कार्य पर उसे पुरस्कृत किया गया है।
पूरा एक दिन बीत गया, शैलेश का फ़ोन नहीं आया। शायद अनु ने जिस व्यक्ति को मैसेज दिया, वह शैलेश को
मैसेज देना ही भूल गया हो ?
अनु ने फिर शैलेश का नम्बर डायल किया था।
‘‘यस ! शैलेश राज़ स्पीकिंग।’’ दूसरी ओर से शैलेश की सधी, गम्भीर आवाज़ सुन, अनु रोमांचित हो उठी।
‘‘हलो शैलेश, हम अनुपमा बोल रहे हैं।’’ अनु की आवाज़ में उत्साह छलक आया था। कुछ देर मौन के बाद शैलेश की आवाज़ सुनाई दी थी-
‘‘बताइए अनुपमा जी, मैं आपके लिये क्या कर सकता हूँ ?’’ आवाज़ में व्यवसायिकता के पुट ने अनु को चौंका दिया।
‘‘शायद तुमने.....आपने हमें पहचाना नहीं, हम शिमला में आपके....।’’
‘‘ठीक कहती हैं, मैंने आपको सममुच नहीं पहचाना।’’
‘‘आप हमसे नाराज़ हैं ?’’ अपमानित अनु का गला रूँध गया था।
‘‘नाराज़गी अपनों से होती है। आप एक अपरिचिता हैं। अच्छा हो आप अपना काम ज़ल्दी बता दें, मुझे देर हो रही है।’’
ज़वाब में अनुपमा की सुबकियाँ सुनाई दे रही थीं।
‘‘देखिए मैडम, इस तरह का व्यवहार आपको शोभा नहीं देता। आप एक समझदार महिला हैं और मैं एक ज़िम्मेवार ऑफ़िसर हूँ....।’’
‘‘हमें माफ़ कर दो शैलेश वर्ना हम मर जाएँगे। तुम्हारा ऐसा बर्ताव हम नहीं सह पाएँगे।’’
‘‘किस बात की माफ़ी माँग रही हैं आप ? आपने मुझे स्पष्ट बता दिया था आप एक ऊँचे ओहदे वाले व्यक्ति की पत्नी बनना चाहती थीं। आपने व्यक्ति से नहीं, उसकी पोज़ीशन से प्यार किया। अब आपको आपका मनचाहा मिल गया फ़िर यह रोना-धोना क्यों ?’’ आवाज़ में पता नहीं व्यंग्य था या परिहास ?
‘‘तुमने तो यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बनना चाहा था फिर भी प्रशासनिक सेवा को अपना प्रोफ़ेशन बनाया, क्यों शैलेश ?’’
‘‘ किसी ने जिदगी की कड़वी सच्चाई बताई, अनु। एक शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति ही सबके आदर का पात्र बन सकता है, उसे चाहा जा सकता है, बस मुझे ज़िद आ गई वही बन गया, पर सब लड़कियाँ तुम्हारी तरह व्यावहारिक और महत्वाकांक्षी नहीं होतीं, अनु। इसी सच्चाई ने मुझे जीने का मंत्र दिया है।’’
‘‘कौन है वह लड़की जिसने तुम्हें जीने का मंत्र दिया है शैलेश ?’’ अनजाने ही अनु की आवाज़ में ईर्ष्या छलक आई।
‘‘सुजाता ! उसने मुझे चाहा। मुझे पाकर उसे जिंदगी की सारी खुशियाँ मिल गई.....। जब मैं लेक्चरर था तभी हमने विवाह किया।’’
‘‘सुजाता ! उसने मुझे चाहा। मुझे पाकर उसे जिंदगी की सारी खुशियाँ मिल गई.....। जब मैं लेक्चरर था तभी हमने विवाह किया।’’
‘‘तो यह क्या सुजाता की इच्छा थी तुम यूनीवर्सिटी लेक्चररशिप छोड़कर डी0एम बनों।’’
‘‘नहीं, उसने तो यूनीवर्सिटी न छोड़ने की ज़िद की थी..... यह तो मेरी ज़िद या बचपना था....।’’ बात पूरी न कर, शैलेश रूक गया था।
‘‘अभी सुजाता कहाँ है ?’’
‘‘नीचे, मेरा इंतज़ार कर रही है। हम दोनों बिना पैसे लिए एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाते हैं।’’
‘‘क्यों शैलेश, अब तुम्हें इसकी क्या ज़रूरत है ?’’
‘‘यह बात तुम नहीं समझ सकतीं, पर सुजाता जानती है, पढ़ाना मेरा पहला प्यार है, इस प्रोफ़ेशन में आना मेरी वादा-आदायगी थी। वह चाहती है मैं विद्यार्थियों का मार्ग-दर्शन कर, उन्हें कुछ नया करने के लिए प्रेरित करूँ।’’
‘‘वादा-आदायगी, कहीं तुम मुझसे किए वादे की बात तो नहीं कर रहे हो शैलेश ?’’ अनु का रोम-रोम कान बन गया था।
जी नहीं ! एक बात कहना चाहूँगा, मेहरबानी करके आज के बाद दोबारा कभी फ़ोन मत कीजिएगा। हम अपने ‘आज’ से बेहद खुश हैं, उसमें अतीत का ज़हर नहीं घोलना चाहूँगा। थैंक्स फ़ॉर कॉ लिंग। गुड बाय।’’
उधर से फ़ोन काट दिया गया था। हथेलियों में मुँह छिपा, अनु फूट-फूट कर रो पड़ी।