12/1/09

औरत एक पैबन्द लगा दिल



 भिड़े दरवाजे को खोल अचानक मधु घर में प्रविष्ट हुई थी। तत्परता से द्वार की सांकल चढ़ा विस्मित खड़ी आशा के दोनों हाथ पकड़ मधु मानो गिड़गिड़ा उठी थी-
आशा ..........प्लीज मुझे बचा ले, वे लोग मुझे ले जाएँगे। मुझे कहीं छिपा दे, आशा। जल्दी कर! बात पूरी करते न करते मधु की दृष्टि कमरे में अपने को छिपाने लायक स्थान खोजने लगी थी।
तू यहाँ कैसे, कब वापस आई? बात क्या है मधु........कौन तुझे ले जाएँगे? आश्चर्य से आशा मधु को निहारती रह गई थी। मुसी साड़ी, बिखरे बाल, अस्तव्यस्त वेशभूषा और आँखों में आतंक की छाया...... क्या हो गया था मधु को?,

पहले कुछ खाने को दे आशा, बहुत भूख लगी है।

तू बैठ, दो मिनट में आई।

जल्दी से किचेन से एक कप दूध के साथ चार स्लाइस पर जैम लगा आशा ने जैसे ही मधु के सामने प्लेट रखी, वह मानो उस पर टूट पड़ी थी। मधु शायद एक स्लाइस ही खा पाई थी कि द्वार पर किसी ने जोर से दस्तक दी । मधु आतंकित हो उठी थी। अधखाई स्लाइस छोड़ वह सामने खुले आशा के बेडरूम की ओर भागी ।

वो आ गए आशा, मुझे ले जाएँगे। तुझे बचा ले आशा, मैं उनके साथ नहीं जाऊॅंगी।

तू डरती क्यों है, मधु? ये मेरा घर है, तू यहीं ठहर ...........मैं देखती हूँ कौन तुझे ले जाएगा। आशा ने मधु को आश्वस्त करना चाहा था।

द्वार खोलते ही डाँक्टर अग्रवाल के साथ खड़े वार्ड ब्वाँय और नर्स को देख आशा सहम गई।

क्या हुआ डाँक्टर, आप यहाँ? सब ठीक तो है?

शायद मिसेज अरोड़ा आपके घर आई हैं, हम उन्हें ले जाने आए हैं। डाँक्टर ने सपाट उत्तर दिया था।

मिसेज अरोड़ा  यानी मधु......क्या हुआ है मधु को ,डाँक्टर?

मुझे अफसोस हैए वह अपना मानसिक सन्तुलन खो चुकी हैं। आज वार्ड से न जाने कैसे निकलकर यहाँ आ गई हैं।

पर उनके यहाँ आने का आपको कैसे पता लगा, डाँक्टर?

उनके पति को विश्वास था इस शहर में वह सिर्फ आपके पास ही आ सकती हैं।

मिस्टर अरोड़ा कहाँ है? क्या अपनी पत्नी की खोज में वह शामिल नहीं हैं, डाँक्टर? आशा का विस्मय स्वाभाविक था।

उन्हें डर था कहीं उनकी शक्ल देखते ही मिसेज अरोड़ा कोई सीन न क्रिएट कर दें।

अच्छा ऐसा क्या किया है उन्होंने? आशा के स्वर में हल्का-सा व्यंग्य घुल आया था।

मैडम, इस समय पर्सनल बातें डिस्कस न करना ही ठीक है। हमें जल्दी है, कृपया मिसेज अरोड़ा को जल्दी बाहर ले आएँ। डाँक्टर का स्वर गम्भीर और किसी सीमा तक निर्देशात्मक था।

पर डाँक्टर, शी इज परफेक्टली नाँर्मल........मुझे तो उसके व्यवहार में कोई असामान्यता नजर नहीं आई। आशा ने प्रतिवाद किया था।

आप वह बात नहीं समझ सकेंगी मैडम! डन्हें हमारे साथ जाना ही होगा। शी इज अंडर ट्रीटमेंट....।

यह भी तो हो सकता है किसी खास वजह से एक सामान्य व्यक्ति को पागल सिद्ध करने की कोशिश की जाए, डाँक्टर?

देखिए मैडम, इन व्यर्थ की बातों के लिए हमारे पास समय नहीं है। आप अगर उन्हें बाहर नहीं बुलाएँगी तो हमें जबरदस्ती करनी पड़ सकती है। मुझे उम्मीद हे एक डाँक्टर के निर्णय को आप चैलेंज नहीं करेंगी। डाँक्टर का स्वर क्रुद्ध हो उठा था।

ठीक है, पर असल बात का मैं भी पता लगाकर रहूँगी- यह मेरा भी चैलेंज है। आशा के स्वर में आक्रोश स्पष्ट था।

ओ के , नाउ हरी-अप, मैडम!

बेडरूम में अल्मारी के पीछे भय से काँपती मधु को देख आशा का हृदय रो पड़ा था। दो वर्षों में  मधु क्या से क्या हो गई थी! डसके नयनों में दहशत थी या विक्षिप्तता के चिन्ह, आशा समझ नहीं सकी थी।

मधु! तू घबरा नहीं, कल ही मिस्टर अरोड़ा के साथ हाँस्पिटल से तुझे वापस न ले आई तो मेरा नाम आशा नहीं।

नहीं-नहीं, उसे मत लाना! मै उसे मार डालूँगी.......आई हेट हिम...... आई हेट दैट रास्कल। दोनों हाथों की मुट्ठियाँ भींच मधु ने दाँत पीस डाले थे। उसके उस रूप से शायद आशा डर गई थी, वहीं से आवाज दी थी-

डाँक्टर, प्लीज यहाँ आइए............।

डाँक्टर आशा की आवाज की प्रतीक्षा ही कर रहे थे। तुरन्त नर्स और वार्ड ब्वाँय के साथ आ गए थे। उन्हें देखते ही मधु चीख पड़ी

- मुझे मत छूना........ मैं तुम्हें मार डालॅंूगी ........ भागो यहाँ से ..... भाग जाओ.........!

कमरे में भागती मधु को नर्स और वार्ड. ब्वाँय ने पकड़ लिया था।

नाउ कम-आँन मिसेज अरोड़ा! आप मेरे घर चलेंगी न? मिसेज अग्रवाल आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। स्नेहपूर्ण स्वर में डाँक्टर ने मधु को दिलासा देना चाहा था।

तुम झूठ बोलते हो............तुम सब मुझे कमरे में बन्द रखना चाहते हो...... मैं नहीं जाऊॅंगी। मैं यहाँ आशा के पास रहूँगी...... तुम सब मेरे दुश्मन हो............।

जबरन सामने खड़ी एम्बुलेंस में मधु को अन्दर कर एवार्ड ब्वाँय ने एम्बुलेंस का द्वार जोर से बन्द कर दिया था। बन्द द्वार के पीछे से आता मधु का चीत्कार सहन कर पाना कठिन था।

कमरे में वापस पहॅंुच आशा सोफे पर निढाल पड़ गई थी। अतीत के पृष्ठ खुलते जा रहे थे-

विवाहोपरान्त पति के साथ रहते आशा ने तीन-चार माह ही व्यतीत किए थे कि स्थानीय काँलेज की प्राचार्या ने आशा को बुला भेजा था। प्राचार्या सविता दीदी की अच्छी मित्र थीं। उन्हीं ने आशा के सामने प्रस्ताव रखा था-

दिन-भर तुम्हारे पतिदेव ड्यूटी पर रहेंगे। आठ घण्टे की ड्यूटी करनी होती है न विवेक को? उतनी देर अकेली घर में बैठी क्या कौवे हंकाएगी, आशा? अभी काँलेज में वेकेन्सी है- समय आसानी से कट जाएगा, हाथ में पैसे आएँगे सो अलग।

विवेक से आशा ने जब इस विषय में पूछा तो उसने सहज भाव से स्वीकृति दे दी थी- जैसी हमारी श्रीमती जी की मर्जी, हम तो हुक्म के बन्दे हैं। नाटकीय अन्दाज में विवेक ने कन्धे उचकाए थे।

अगले सप्ताह से आशा काँलेज जाने लगी थी। नियुक्ति अस्थायी थी पर आशा के ब्रिलिएंट कैरियर के प्रति प्राचार्या पूर्ण आश्वस्त थीं।

तुम्हें तो इन्टरव्यू में कोई रिजेक्ट कर ही नहीं सकता आशा! यही बात उन्होंने उसकी सहकर्मियों और छात्राओं के समक्ष भी कही थी। उनकी बात अन्ततः सिद्ध भी हो गई थी। इन्टरव्यू-बोर्ड के सभी सदस्य उसकी प्रतिभा से कितने प्रभावित हुए थे! नये काँलेज का रेपुटेशन बनाने के लिए उस-जैसी प्राध्यापिका मिल जाना सौभाग्य ही था।

काँलेज में पहले ही दिन आशा की धाक जम गई थी। लड़कियों ने उसे परेशान करने के लिए जितनी भी योजनाएँ तैयार कर रखी थीं, उन्हें विफल कर वह सफल सिद्ध हुई थी।

स्टाफ-रूम में मधु अरोड़ा ने सहास्य पूछा था-

कहिए मिसेज सिन्हा, कैसा एक्सपीरिएंस रहा? लड़कियों ने ज्यादा परेशान तो नहीं किया?

जी नहीं, इतना तो एक्सपेक्टेड था। शायद उन्हें निराश होना पड़ा। आशा हल्के से मुस्करा दी थी।

चलो कोई तो मेरा जोड़ीदार आया। आज तक मेरे अलावा सबकी कई दिनों तक इन लड़कियों ने छुट्टी कर दी थी, है न मिसेज रस्तोगी? मधु के स्वर में स्पष्ट गर्व का पुट था।

हाँ भई तुम ठहरी समार्ट महिला, पर मिसेज सिन्हा, आपने उनकी योजनाएँ कैसे विफल कीं ? मुझे तो कम-से-कम दो सप्ताह क्लास नहीं लेने दी थी। श्रीमती रस्तोगी के स्वर में मधु के लिए व्यंग्य और आशा की सफलता के प्रति विस्मय था।

दरअसल हम भी तो अपनी लेक्चरार्स को पहले कुछ दिन इसी तरह परेशान किया करते थे न! हल्की शैतान मुस्कान आशा के अधरों पर तिर आई थी।

अच्छा तो आप भी उस्ताद थीं! भई हमने तो अपनी अध्यापिकाओं को बस आदर देना ही जाना। हमारे जमाने में दूसरा कल्चर था, आज तो बस- क्या कहें जमाना बदल गया है। मिसेज रस्तोगी ने उसाँस छोड़ी।

सच मिसेज रस्तोगी, इसीलिए तो लड़कियाँ आपको इतना सम्मान देती हैं। हमें देखकर तो ये अभिवादन तक नहीं करतीं। अन्य प्राध्यापिकाओं की ओर आँख से व्यंगात्मक इशारा कर मधु अरोड़ा गम्भीर बनी बैठी रही थी। मिसेज रस्तोगी के मुख पर सन्तुष्टि की मुस्कान आ गई थी। अन्यों को मुस्कराहट छिपानी पड़ी थी।

आइए मिसेज सिन्हा, आपका पहला दिन है, एक कप काँफी हो जाए। मधु अरोड़ा ने आशा को काँलेज कैंटीन के लिए आमंत्रित किया था।

मधु अरोड़ा के साथ आशा को उठते देख फिलाँसफी की लेक्चरार शर्मिष्ठा घोष भी साथ हो लीं ।।भई काँफी की तलब तो अपन को भी हो रही है। काँफी तू पिलाएगी न, मधु?
यह भी भला पूछने की बात है? अरे मधु के रहते किसकी मजाल कि पेमेंट का दुस्साहस करे? मिसेज बजाज ने पता नहीं व्यंग्य किया था या वही सत्य था, आशा समझ नहीं सकी थी।

हाँ-हाँ, जाइए-जाइए......इस उम्र में चाय-काँफी ही तो चलेगी! मिसेज रस्तोगी कुछ क्षुब्ध थीं।

आप भी आइए न! आशा ने सादर आमंत्रित किया था।

न भई, हमें तो छोड़ दो। इतना करेक्शन वर्क रहता है, न जाने लोगों के पास इतना फ्री टाइम कहाँ से आ जाता है। मिसेज रस्तोगी ने व्यस्तता जताई थी, पर उनकी आँखों में आशा के लिए स्नेह जरूर छलक आया था।

स्टाफ-रूम से बाहर आते ही मधु ने मुंह बिचकाया था

फ़नी लेडी! ऐसा जताती है जैसे सारी दुनिया का भार इन्हीं के कन्धों पर है। चाय पीने जाएँगी तो मानो काँलेज ढह जाएगा!

छोड़ भी उनकी बात, अरे रिटायरमेंट के नजदीक हैं बेचारी। वैसे भी हिन्दी में करेक्शन वर्क होता भी ज्यादा है। शर्मिष्ठा ने मिसेज रस्तोगी के प्रति सहानुभूति जताई थी।

काँफी पीती मधु ने आशा से पूछा था-

कहाँ रहती हो? लगता है न्यूली मैरिड हो।

बस चार महीने पहले मैरिज हुई है। सेक्टर सिक्स के ए ब्लाँक मे विवेक को घर मिला है। आशा के चेहरे पर हल्की लालिमा छा गई थी।

भई तुम तो जूनियर ठहरीं, आशा पुकारूँ तो कोई आँब्जेक्शन तो होना नहीं चाहिए। दूसरे तुम हमारी पड़ोसिन भी हो, अतः व्यर्थ की औपचारिकता त्याग देना ही ठीक होगा। हम भी तुम्हारे ए ब्लाँक के फिफ्टी नम्बर के वाशिन्दे हैं।।

यह तो बहुत ही खुशी की बात है- और हाँ, आप मुझे आशा ही पुकारें, मैं मधु कहूँ, तो?

नाम-भर की मधु हूँ, अतः जरूर पुकारो, पर यहाँ सबका खयाल है मैं मधु के स्थान पर विष-वर्षा करती हूँ- ठीक कहा न, शर्मिष्ठा? मधु हॅंस पड़ी थी।

व्यर्थ की बातें करती है। वैसे भी सीधी-सच्ची बातें कर्ण-कटु तो होती ही हैं। शर्मिष्ठा ने बात टाल दी थी।

तो भई आशा, काँलेज आना-जाना कैसे करोगी? क्या अपनी नई-नवेली को श्रीमानजी लेने-पहॅुंचाने आएँगे?

अरे उन्हें अवकाश कहाँ? प्लांट में आठ घण्टों की ड्यूटी करनी होती हैं! आशा के स्वर में मायूसी झलक आई थी।

शुक्र मना जनरल शिफ्ट में हैं, अगर नाइट-ड्यूटी होती तो करवटें बदलते सारी रात गुजारनी पड़ती। अरोड़ा साहब को तो कभी-कभी बारह-चैदह घण्टे की इमर्जेन्सी ड्यूटी करनी पड़ जाती है। हाँ, तो ऐसा करते हैं हम साथ रिक्शा शेयर कर लें, तेरा नम्बर क्या है? मधु एकदम अनौपचारिक हो उठी थी। वैसे भी आशा की माँ हमेशा कहती थीं- पंजाब में छोटो को 'तू' पुकारते हैं। आशा मधु के अपनत्व से भीग उठी थी।

पहले दिन से ही आशा मधु के नजदीक आती गई थी। दोनों की बढ़़ती निकटता देख मिसेज रस्तोगी ने एक बार आशा को अलग बुला अपनेपन से समझाना चाहा था- ।

अभी नई आई हो, इसीलिए बता रही हूँ- ये मधु अरोड़ा बड़ी अहंकारी है। अपने आगे किसी को कुछ समझती ही नहीं। पति के दो नम्बर के पैसों का बड़ा घमण्ड है- जब-तक दूसरों का अपमान कर देती है। किसी से इसकी पटरी नहीं बैठती। तुम अपनी यू पी की हो इसीलिए सावधान कर रही हूँ, वर्ना मुझे क्या किसी से लेना-देना?

मुझे तो ऐसी नहीं लगती, मधु दिल की बहुत ही साफ है, बस जरा मॅुंहफट जरूर है। मिसेज रस्तोगी के मुख पर आई वितृष्णा आशा ने पहचान ली थी।

मधु अरोड़ा के विषय में प्रायः अधिकांश प्राध्यापिकाओें की यही धारणा थीं उनकी उस धारणा के लिए मधु काफी सीमा तक उत्तरदायी थी। दूसरों की वस्तुओं में मीन-मेख निकाल मधु अपनी या अपनी वस्तु की श्रेष्ठता का बखान जरूरत से ज्यादा कर जाती थी। आत्म-प्रशंसा के अतिरिक्त दूसरों से भी वह अपनी प्रशंसा की अपेक्षा रखती थी। उसकी इसी दुर्बलता की पीठ-पीछे हॅंसी भी उड़ाई जाती थी। व्यंजन बनाने में भी मधु सचमुच कुशल थी, पर कभी पूल लंच में उसकी कटु आलोचना असंभव हो उठती थी।

बाबा रे शीला, तेरे ये छोले खाते ही अरोड़ा साहिब तो प्लेट तोड़ देंगे। मेरे बनाए छोले ऐसे होते हैं कि लोग उॅंगलियाँ चाट जाएँ।

खिसियाकर शीला गुप्ता ने अपना कटोरदान मधु के आगे से हटा लिया था-

हम कौन-सा अरोड़ा साहिब को ये छोले खिलाने जा रहे हैं! हमारे यहाँ ऐसे ही पसन्द किए जाते हैं। आँखें पनिया आई थीं।

छिः मधु, यूं ही छेड़ती रहती है। अच्छे-भले तो बने हैं। ला शीला! मुझे दे।। धीरा सान्याल ने शीला गुप्ता का पक्ष लिया था।

कभी मधु के घर की सज्जा की किसी ने तारीफ की नहीं कि उसका रिकाँर्ड चालू हो जाता था-

मेरी सम्हाल ऐसी है कि बरसों पुरानी चीज भी एकदम नई लगती है। ये देख, इस फ्लावर वाँज को मैंने दिल्ली की एक बूटिक शाँप से खरीदा था, चमकाकर इसकी शक्ल ही बदल डाली है। अगर वह शाँप की मालकिन यहाँ आ जाए तो अपना ही फ्लाँवर वाज पहचान नहीं पाएगी। गर्व से मधु का मुख दमक उठता था।

उसकी ऐसी ही बातों पर किसी ने व्यंग्य किया था-

मिस्टर अरोड़ा को कहीं ऐसे सम्हाल-चमका के न रखना मधु कि वह तो नए बने रहें और तू पुरानी पड़ जाए!

क्या बात करती है, माया! मैं पुरानी पड़ जाऊॅं? कैन यू गेस माई एज? उत्सुकता से मधु ने अपनी दृष्टि माया ठाकुर पर निबद्ध कर दी थी।

ऊॅं............ शायद बाईस या तेईस? माया ठाकुर ने जानकर मधु को बनाना चाहा था।

क्या .........बाईस? अरे सलवार-कमीज में तो मधु बस सोलह-सत्रह की ही लगती है। मिसेज रस्तोगी को भी इस चुहल में आनन्द आ रहा था।

मिसेज रस्तोगी की बात पर मधु खुलकर हॅंस पड़ी थी-

अरोड़ा साहिब भी यही कहते हैं कि मैं आज भी वैसी ही हूँ जैसी शादी के समय थी, बट यू नो आई एम नियरिंग थर्टी। माया ठाकुर की ओर देख मधु ने बात समाप्त की थी।

यंग दिखने का क्या राज है, हमें नहीं बताएगी, मधु? उसे बनाने में कुछ को आनन्द आता था।

एक राज की बात बताऊॅं...........अरोड़ा कहते हैं- लेडीज थर्टीज में ब्लूम करती हैं।

ओह, तो इसीलिए आप खिल रही हैं, मिसेज अरोड़ा? या खुदा, हमें भी जल्दी थर्टीज में पहॅुंचा। युवा शमीम ने इबादत में दोनों हाथ ऊपर उठा दिए थे।

मेरे रूप का राज कोई खास चीज नहीं है, बस त्वचा की खास केयर लेनी पड़ती है। रेगुलर मसाज से चेहरा ऐसा चमक उठता है जैसे .............

मिसेज मधु अरोड़ा का ........टिन.....टिना.. मीरा द्वारा वाक्य पूरा किए जाने पर सह-प्राध्यापिकाएँ हॅंस पड़ी थीं।

अपने पर मुग्ध मधु अरोड़ा इसी भ्रम में जीतीं कि सब उसे इतना एप्रीसिएशन दे रहे हैं। आशा ने कई बार चाहा मधु को समझाए, पर विवेक ने उस डेलीकेट मैटर से हमेशा दूर रहने की सलाह दी थी।

मुझे लगता है तुम्हारी ये मधु अरोड़ा किसी काँम्पलेक्स से ग्रसित हैं, इसीलिए हर बात में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करना चाहती हैं, वर्ना सामान्य व्यक्ति के लिए यह व्यवहार विचित्र ही है।

वह किस कुण्ठा से ग्रसित होंगी विवेक? स्वंय प्रतिभाशाली हैं, पति सम्मान देते हैं, प्यारा-सा बेटा है, और क्या चाहिए किसी को? आशा ने प्रतिवाद किया था।

पता नहीं, पर कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है। विवेक ने बात वहीं समाप्त कर दी थी।

पारिवारिक समारोहों में जब भी आशा मिसेज अरोड़ा के घर गई, मिस्टर अरोड़ा को शान्त ही देखा। विवेक हमेशा कहते-

अरे इतनी वाचाल पत्नी के सामने बेचारे अरोड़ा की बोलती बन्द नहीं होगी तो और क्या होगा?

रहने दो! मधु स्मार्ट है, इसीलिए पुरूष-वर्ग तो उसका शत्रु होगा ही। मुझे तो अरोड़ा साहिब मानसिक रूप से कुछ पिछडे़ यानी बुद्धू-से लगते हैं।

अजी स्मार्ट तो हमारी श्रीमती जी ही क्या कम हैं? पर हाँ, अरोड़ा कुछ है काँम्प्लेक्स किस्म का, कभी खुलकर बात ही नहीं करता। वैसे सुन्दर महिलाओं को घूरता जरूर है। मुझे तो डर है कहीं तुम पर तो उसकी निगाह नहीं है? विवेक आशा को छेड़ने के मूड में आ जाते थे।

छिः, शर्म नहीं आती ऐसी बातें करते? आशा झुंझला उठती थी।

जब से मधु के भाई कनाडा में सेटल हो गए उसकी हर बात में कनाडा की चर्चा जरूर होती थी। मधु अरोड़ा पर कनाडा जाने की धुन सवार थी-

भइया ने लिखा है तुम लोग इण्डिया में व्यर्थ समय नष्ट कर रहे हो, मुझे कम्प्यूटर-डिप्लोमा कोर्स में एडमीशन मिल रहा है, पर मिस्टर अरोड़ा हैं कि भारत-भूमि छोड़ेंगे ही नहीं- महान् देशप्रेमी हैं न, सो भारत का उद्धार करेंगे।।

ऐसा क्या रखा है कनाडा में? यहाँ दोनों की अच्छी-भली सर्विस है। मैंने सुना है वहाँ जब तक उसी देश की डिग्री न हो इंजीनियर को भी मैकेनिक की सर्विस करनी पड़ती है। आशा समझाती।

तो ये भी किसी यूनीवर्सिटी में एडमीशन ले सकते हैं। भइया का बहुत लोगों से परिचय है वहाँ।

हो सकता है अरोड़ा साहिब इस उम्र में पढ़ाई में रूचि न रखते हों! वैसे भी यहाँ तो घर का सारा काम तेरी दाई फूलवन्ती कर लेती है और तू आराम से बेड-टी लेती है, वहाँ सब काम हाथ से करना पडे़गा तो विदेश का सारा नशा टूट जाएगा देवीजी!

वहाँ जो सुविधाएँ हैं उनके साथ काम पता ही नहीं लगता। भाभी कितना एन्ज्वाय कर रही हैं! मधु को समझा पाना कठिन था।

मधु के कनाडा-अनुराग की स्टाफ-रूम में अच्छी खिंचाई की जाती थी-

कहो मधु, कब उड़ रही हो कनाडा?

भई कनाडा जाकर तो हमारी मधु और भी निखर आएगी। कनेडियन मर-मिटेंगे मधु पर।

हाय मालती, ऐसा न कहो! हमारे अरोड़ा साहब क्या करेंगे? दिलो-जाँ से फिदा हैं बेचारे मधु पर।

अरे वह भी यहाँ खोज लेंगे किसी और को?
इम्पाँसिबिल ...........अरोड़ा साहिब सच मुझसे इस तरह बॅंधे हैं कि कल को मुझे कुछ हो जाए तो आजीवन दूसरा विवाह नहीं करेंगे। गर्व से मधु उत्तर देती।
रहने दे मधु, आदमी की जात बड़ी बदजात होती है, जरा ढील दी नहीं खाद्य-अखाद्य का भी ध्यान नहीं रखते। बड़े-बड़े धर्मात्मा देखे हैं मैंने। मिसेज रस्तोगी का अनुभव मुखर हो उठा था।

देखे होंगे मिसेज रस्तोगी, पर आदमी को एक खूंटे से बाँध-रखने की कला भी तो सबके पास नहीं होती। मधु का गर्व बोल उठा था।

हाय मधु, हमें वह कला सिखा दे, काम आएगी हमारे। शोख शमीम का अभिनय लाजवाब होता था।

अपने प्रति कभी लापरवाह न होना! इसीलिए तो कहती हूँ अपनी देखरेख, अपनी सम्हाल के प्रति स्त्रियों को सदैव सतर्क रहना चाहिए। मधु गम्भीरता से अपना राज खोल पुलक उठती थी।

सच शीला, तू तो गई काम से। तेरे इस मेकअप-रहित चेहरे पर गुप्ता साहिब क्या खाक रीझेंगे? अरे कुछ दिन मधु से ट्रेनिंग ले डाल। मीरा परिहास करती।

वह ट्रेनिंग उसे ही मुबारक! हमारे गुप्ता जी पत्नी को चाहते हैं, किसी अभिसारिका को नहीं। शीला गुप्ता का व्यंग्य तीखा था।

पत्नी में प्रेयसि बनना गुण है, शीला! मधु की कामशास्त्र की जानकारी पूर्ण थी।

कनाडा में स्प्रिग-सेमेस्टर शुरू होते ही मधु कनाडा के लिए उड़ गई थी। बहुत कहने पर भी कनाडा में नौकरी या पढ़ाई के लिए मधु अरोड़ा साहिब को तैयार न कर सकी थी। सात-आठ माह बाद आने वाले प्रोमोशन के कारण मधु के साथ उनका कनाडा जाना भी संभव नहीं था, पर मधु की महत्वाकांक्षा में वह बाधा नहीं बने यही क्या कम था? दो वर्षीय पुत्र अतुल का मोह भी मधु को अपने निर्णय से डिगा न सका था।

तू अतुल को अपने साथ क्यों नहीं ले जाती मधु? आशा ने पूछा था।

वहाँ क्रश में बहुत पैसा लगता है आशा! अभी तो भइया मुझे स्पांसर कर रहे हैं, वहाँ जाकर अगर टीचिंग- एड मिल गई तब ही सोच सकती हूँ। वहाँ सुबह सात से रात दस-ग्यारह बजे तक पढ़ाई और काम करना होगा -अतुल नेगलेक्ट हो जाएगा।

और यहाँ तेरे पीछे कौन देखेगा उसे? आशा विस्मित थी।

यहाँ फूलवन्ती जो है, पिछले दो वर्षों से वही तो उसे रख रही है। अतुल फूलवन्ती से ज्यादा हिला हुआ है। एक वर्ष बाद मैं आ ही रही हूँ, हो सकता है बीच में अरोड़ा साहब भी कनाडा आ जाएँ।" मधु ने अपना मन दृढ़ कर लिया था।

फूलवन्ती क्या अतुल के लिए माँ का स्नेह दे सकेगी, मधु? कहीं ऐसा न हो मीलों दूर से तुझे भागते आना पड़े। ये भी तो हो सकता है फूलवन्ती तेरे पीछे काम छोड़ जाए। आशा शंकित थी।

फूलवन्ती ऐसा कभी नहीं करेगी। कनाडा से उसे गोल्ड चेन, घड़ी और साड़ी ला देने का मैंने उससे वादा जो किया है।

धन्य है तेरा कनाडा-प्रेम, पुत्र का मोह भी तुझे रोक नहीं सकेगा। आशा ने हार मान ली थी।

शुरू में आशा के पास मधु के पत्र नियमित रूप से आते रहे। हर पत्र में उत्साह छलका पड़ता था। कनाडा के जीवन से मधु बेहद प्रभावित थी। अरोड़ा साहब के कनाडा न पहुंचने पर कभी-कभी उसके पत्रों में खीज और आक्रोश के मिले जुले भाव भी रहते थे। अतुल के लिए वह बराबर उपहार भेजती रहती थी। प्रोमोशन के बाद अरोड़ा साहब अतुल और फूलवन्ती के साथ दिल्ली ट्रान्सफर पर चले गए थे। राहुल के जन्म के बाद आशा भी अपने में इतनी व्यस्त हो गई थी कि बहुत दिनों बाद उसने अनुभव किया कि मधु के पत्र अचानक आने बन्द हो गए थे। और आज अचानक मधु को उस अवस्था में अपने घर देख आशा विस्मित थी।

विवेक के घर पहॅुंचते ही आशा एक साँस में पूरी बात बता बोली थी -

मुझे हाँस्पिटल छोड़ आओ विवेक, मधु से बात करके ही चैन पड़ेगा।

राहुल को साथ ले जाओगी?

नहीं, उस माहौल में वह घबरा जाएगा।..........आज शाम थोड़ी देर तुम उसे सम्हाल लोगे, विवेक?

आप हुक्म तो करें, आज्ञा शिरोधार्य है।............चलें?

हाँस्पिटल के मुख्य द्वार पर आशा को छोड़ विवेक लौट गया था। उस मेंटल हाँस्पिटल में कभी किसी अपने के लिए आना होगा, आशा ने स्वप्न में भी न सोचा था। इन्क्वायरी पर बैठे व्यक्ति से पूछा था-

मिसेज मधु अरोड़ा कौन-से केबिन में मिलेंगी, बता सकते हैं?

उन्होंने तो आज बहुत हल्ला किया था, सेडेटिव देकर सुलाया गया है। पता नहीं अभी होश में आई है या सो रही है। थोड़ा वेट करना होगा मैडम, अभी नर्स को बुलाता हूँ। वार्ड ब्वाँय से नर्स बुलाने को कह उस व्यक्ति ने पूछा था-

आपकी रिश्तेदार हैं, अरोड़ा मेम साहिब?

जी.........हाँ.........नहीं, मेरी सखी है। आशा हड़बड़ा गई थी।

बड़ा दुःख है, इस बीमारी से तो मृत्यु भली! जानते हैं अपने बेटे तक को नहीं पहचान सकीं मिसेज अरोड़ा- साफ इन्कार कर दिया!

क्या? मधु ने अतुल को नहीं पहचाना?

कहाँ पहचाना? चार दिन पहले मिस्टर अरोड़ा बेटे के साथ आए थे तो जानती हैं क्या कहा आपकी सहेली ने? ........ कह दिया- यह उनका बेटा नहीं, किसी फूलवन्ती का बेटा था। जोर-जोर से चिल्ला रही थीं- ले जाओ इसे.........ये मेरा बेटा नहीं..........! अब आप ही सोचिए, माँ बेटे को न पहचान सके तो जीवन व्यर्थ हुआ न? वह व्यक्ति आशा की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहा था।

क्या कहा........ फूलवन्ती का बेटा?

हाँ मैडम, बेचारा बच्चा डरकर बाप के सीने से चिपक गया, पर माँ ने उसे हाथ नहीं लगाया।

नर्स के आते ही आशा को मधु के पास ले जाने के निर्देश दे वह व्यक्ति दूसरे प्रतीक्षारत व्यक्ति की ओर उन्मुख हो गया था।

पीले मलिन मुख के साथ आँखें मूंदे मधु बिस्तर पर निश्चेष्ट पड़ी थी। आशा का हृदय उसके प्रति द्रवित हो उठा था। बहुत स्नेह से उसके माथे की लट हटाती आशा ने हौले से पुकारा था-

मधु...........!

धीमे से सप्रयास आँखें खोल मधु ने आशा को ताका था। आँखों में पहचान उभरते ही वह उठकर बैठ गई थी।

आशा तू...........? मुझे यहाँ से बाहर ले चल...............। मधु के स्वर की करूणा आशा को छू गई थी।

अभी ले चलूंगी, पर तू जरा अपने को सॅंवार तो ले! ये बाल कैसे बिखरा रखे हैं? न जाने कब से कंघी नहीं की है। ला जरा कंघी तो दे, तेरे बाल बना दूं, तभी तो बाहर चलेंगे न?

अपने को सॅंवार लूं, इससे क्या होगा आशा? प्रश्न ने आशा को असमंजस में डाल दिया था।

क्या होगा तुझे बताना होगा, मधु? अरे अरोड़ा साहिब निहाल हो जाएँगे पगली! आशा ने परिहास करना चाहा था।

कहाँ है वह ...... मैं उसे मार डालूंगी..........आई विल किल हिम.........। मधु असंतुलित हो उठी थी।

छिः, भला ऐसी अपशकुनी बातें की जाती हैं, मधु? अरोड़ा साहिब तेरे लिए कितने परेशान हैं, जानती है?

सब जानती हूँ, सब जान गई हूँ, तभी तो........मैं पागल नहीं हूँ, आशा, यह उसके प्रति मेरा आक्रोश, मेरी घृणा है, समझी?

ऐसा आक्रोश जो बेटे को भी भुला दे?

बेटा......क्या तू अतुल की बात कर रही है? कहाँ है मेरा अतुल? मेरा बेटा? मधु का स्वर व्याकुल हो उठा था।

चार दिन पहले अरोड़ा साहिब के साथ आए अपने बेटे को पहचान क्यों न सकी थी, मधु? पागलपन के अलावा उसे और क्या कहा जाएगा तू ही बता।

उसके साथ मेरा बेटा कैसे आ सकता था आशा? वह तो फूलवन्ती के बेटे को गोद में लाया था। मैंने पहचानने में भूल नहीं की थी आशा! वह मेरा बेटा नहीं था- नहीं था। मधु का स्वर फिर आवेशपूर्ण हो उठा था।

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा, मधु! याद कर, तू अपने बेटे को फूलवन्ती के पास छोड़ गई थी। वही तेरा बेटा अतुल अब साढे तीन वर्ष का हो गया है, समझी?

तू नहीं समझ पा रही है, आशा।

क्या नही समझ पा रही हूं, इसमें ऐसा है ही क्या?

इसी में तो मेरे पूरे जीवन की पराजय है, आशा! जीवन-भर जिस जीत पर गर्वित रही उसका ऐसा भयंकर अन्त...............?

पहेली न बुझा, मधु! अपनी आशा से भी साफ-साफ बात नहीं करेगी?

याद है आशा, कनाडा जाते समय मैं अतुल को फूलवन्ती की देखरेख में छोड़ गई थी?

हाँ...........फिर?

जानती है मुझे अचानक क्यों लौटना पड़ा था?

जान कैसे पाती? कनाडा जाकर तूने हमें भुला जो दिया था। एक पंक्ति भी लिखी थी? मुझे तो यह भी नहीं पता था तू यहाँ इसी शहर में है। आशा के स्वर में मान छलक आया था।

इस शहर में थी नहीं, लाई गई हूँ, मेंटल हाँस्पिटल में इलाज के लिए, पागल ठहरी न!

कौन कहता है तू पागल है? एकदम ठीक तो है

ठीक कहाँ हूँ- शायद जीवित भी नहीं रह गई हूँ।

तब क्या बातें तेरा भूत कर रहा है?

मर तो उसी दिन गई जब नेहा के पत्र पर दिल्ली लौटी थी..........।

नेहा तेरी बहिन है न......क्या अतुल बीमार था या मिस्टर अरोड़ा ............। आशा का वाक्य अधूरा ही रह गया था।

अतुल नहीं, उसका पिता-नामधारी जीव मानसिक सन्तुलन खो, पागल हो गया था......नहीं, गलत कह रही हूँ........ वह हमेशा से ऐसा ही था। मैं उसके मुखौटे में छिपे असली चेहरे को नहीं पहचान सकी थी, आशा!

फिर वही बकवास शुरू कर दी? चलो बाहर चलते हैं।

मैं बकवास नहीं कर रही आया! वह काम-पिपासु मेरी अनुपस्थिति में फूलवन्ती के साथ......ओह नो......... आई विल किल हिम.......... मुट्ठियाँ बाँध मधु दाँत पीसने लगी थी। उसकी विकृत मुखाकृति देख आशा डर गई थी।

मधु.........होश में आओ! ...........मधु! ...........नर्स............!

मुझे कुछ नहीं हुआ है आशा, और अब होने को शेष भी क्या रह गया है! अपने नीचे के अधर को दाँत से दबा मधु संयत होने की चेष्टा कर रही थी।

पर तूने अपना ये क्या हाल बना डाला है, मधु? याद है हम सब तेरी ड्रेसेज़ देख ईर्ष्या करते थे।

वो सब झूठे पहनावे थे, मेरी पराजय के साक्षी। मैंने अपनी सारी साड़ियाँ तार-तार कर दीं। अब तो शायद उनके चिथडे़ भी शेष नहीं बचे होंगे, आशा!

हाय मधु, उन्हें फाड़ते तेरा जी नहीं फट गया? तेरी तो एक-एक साड़ी की कोई-न-कोई कहानी हुआ करती थी। किस दिल से तूने उन्हें तार-तार किया होगा?

दिल तो पहले ही तार-तार हो गया था, आशा! नेहा का पत्र पाते ही पहली फ्लाइट से दिल्ली पहॅुंची थी। भइया-भाभी वैंकूवर गए हुए थे, उनके नाम एक चिट छोड़ आई थी। दिल्ली किसी को खबर देने का भी समय नहीं था। टैक्सी ले सीधे घर पहॅुंची थी........... दिल धड़क रहा था न जाने क्या अनहोनी मिले?

सब ठीक-ठाक तो था न, मधु?

काँल बेल पर एक छोटे-से लड़के ने द्वार खोल पूछा था-

किससे मिलना है?

साहब कहाँ है मैं व्यग्र थी।

साहब तो आँफिस गए हैं, मेम साहिब सो रही है।

मेम साहब? मेरा माथा ठनका था, फिर भी सोचा शायद अरोड़ा साहिब की माँ आई हों।

लड़के को एक ओर हटा धड़धड़ाते हुए बेडरूम में पहॅुंची थी। जानती है बेड पर कौन सो रहा था?

कौन? आशा चौंक गई थी।

फूलवन्ती.....................मेरे बच्चे की आया, साहब की मेम साहब।

पर मधु, अक्सर मालकिन की अनुपस्थिति में आया उनके बिस्तर पर सो जाती हैं, तूने उसे डाँटकर भगा नहीं दिया था?

मैं भगा देती? अपने पति की प्रियतमा को? उनकी प्रयसि को?

तेरा दिमाग सचमुच खराब हो गया है। वितृष्णा आशा के मुख पर लिख गई थी।हाँ-हाँ, मेरा ही दिमाग खराब है। सब यही कहते हैं, तू भी वही कहेगी...........मेरा कोई नहीं....। मधु रो पड़ी थी।

मुझे माफ कर दे मधु, मेरा वह मतलब नहीं था। आई एम साँरी...........।

पूरी बात जानती तो मेरा दुःख जान पाती। मधु सहज होने का प्रयास कर रही थी।

जानती नहीं, पर कल्पना तो कर सकती हूँ- तूने अरोड़ा साहब को आड़े हाथों लिया होगा। घर में महाभारत का दृश्य बन गया होगा। आशा ने परिहास किया था।

मुझे देखते ही फूलवती का मॅुंह स्याह पड़ गया था। डाँटने के लिए मॅुंह खोला ही था कि दृष्टि उसके उभरे पेट पर पड़ गई थी। अनहोनी घट चुकी थी। वह दो टके की छोकरी मेरी सौत ही नहीं, मेरे अतुल के लिए सौतेला भाई या बहिन जनने वाली थी।

हे भगवन्, अरोड़ा साहिबा ने तो हद ही कर दी! आशा का स्वर घृणापूर्ण था।

नहीं आशा, हद यही नहीं थी- अरोड़ा से जब कुछ कहना चाहा तो शुरू में तो बेशर्मी से अपना दोष मेरे सिर मढ़ दिया..........। मधु अचानक चुप हो गई।

भला इसमें तेरा क्या दोष था? ये तो उनका तेरे प्रति सरासर अन्याय था, मधु!

पर उसने इसे अन्याय कहाँ स्वीकारा? कहा था- भूल मेरी ही थी, अपनी साडियाँ फूलवन्ती को क्यों दीं? मेरी साड़ियों में आवृत् फूलवन्ती को वह मधु समझने की भूल कर बैठा था, बस। कहता है मेरी साड़ियाँ फूलवन्ती की गठी फिगर पर बहुत फबती थीं.........और...........और आशा, मैं अपनी फिगर पर सदैव गर्व करती रही.........। मधु के आंठ काँपने लगे थे।

इस तरह की बातें कोई नाँर्मल व्यक्ति कर ही नहीं सकता। मुझे लगता है अरोड़ा साहब जरूर असामान्य हो गए हैं। आशा क्रुद्ध हो उठी थी।

उनका कहना है मैं जरूरत से ज्यादा डोमिनेटिंग हूँ..........ही वाज ट्रीटेड लाइक ए स्लेव.......मुझे बेटे की भी परवाह नहीं.........। मेरी कमी उस जाहिल गॅंवार फूलवन्ती ने पूरी की थी। तू ही बता आशा, क्या मैं कनाडा रंग-रेलियाँ मनाने गई थी? मधु ने अपनी दृष्टि आशा के मुख पर टिका दी थी।

पर मधु, कहीं तो तेरी भी गलती थी। एक युवा लड़की के साथ अरोड़ा साहब को अकेले छोड़ जाना क्या ठीक था?।

कौन कहाँ गलत था क्या पता! मुझे अपने अभिजात्य का कितना अभिमान था! हमेशा यही सोचती रही- मेरे सुसंस्कृत परिवार को गन्दगी छू भी नहीं सकती। अपने पति पर कितना विश्वास था - मेरे न रहने पर भी वह मुझे नहीं भुला सकेंगे। देवता का स्थान दिया था उस व्यक्ति को.......। मेरे विश्वास को चूर-चूर कर दिया.......... कीचड़ में आपदमस्तक स्नान कर अब वह व्यक्ति मेरे लिए सर्वथा अस्पृश्य हो गया है, आशा!

कभी-कभी जरूरत से ज्यादा निर्देश भी बन्धन बन जाते हैं। तू उन्हें क्या बहुत टोकती रहती थी मधु? शायद उन्होंने प्रतिक्रिया की हो!। आशा ने समझाना चाहा था।

ऐसी प्रतिक्रिया कि घर ही उजड़ जाए? नहीं आशा, ये बातें सिर्फ मन को तसल्ली देने के लिए कही-सोची जा सकती हैं, सच बेहद घृणित है। मैंने नंगे सत्य का साक्षात्कार किया है, आशा!

पर अतुल पर इसका कितना बुरा प्रभाव पडे़गा ये भी सोचा है, मधु?

सबसे बड़ी पराजय तो मुझे अपने रक्त से सिंचित बेटे से मिली है, आशा! मुझे क्रोध मे देख उसी फूलवन्ती के सीने से 'माँ' कह जा चिपटा था। बस उसी क्षण वह फूलवन्ती का बेटा बन गया। मेरे जीवन में अब उनका अस्तित्व ही शेष नहीं रह गया।। सूनी दृष्टि से मधु ने आशा को ताका था।

फिर इतना आक्रोश, इतनी पीड़ा क्यों झेल रही है, मधु? तू वापस कनाडा भी तो जा सकती थी?

अपनी पराजय के कलंक के साथ?

और...........फूलवन्ती का वह गर्भ? डरते-डरते आशा ने पूछा था।

अबाँर्शन के समय बच्ची मर गई......बहुत एडवान्स्ड स्टेज थी।

ओह माई गाँड.............! आशा स्तब्ध थी।

................ और जानती है हाँस्पिटल में लिखाया था, फूलवन्ती विधवा थी.............बहुत पैसा भरना पड़ा और अरोड़ा बेदाग छूट गया। पर मैं उसे नहीं छोड़ूंगी, उसने एक-दो .........नहीं, तीन हत्याएँ एक-साथ की हैं। उस हत्यारे को फाँसी पर चढ़ाना है...........हैंग हिम टिल डेथ.......... मुट्ठियाँ भींच, दाँत पीसती मधु बेड से उतरकर भागी थी।

नर्स........नर्स............प्लीज यहाँ आइए............. आशा चीखती जा रही थी।

आशा की चीखों पर पास के वार्ड से नर्स भागती आई थी। वार्ड ब्वाँय की मदद से मधु को पकड़ जबरन बेड पर लिटा, सोने का इंजेक्शन दे दिया था। आशा के भयभीत चेहरे को देख प्रौढ़ा नर्स ने पूछा था-

मेंटल हाँस्पिटल में पहली बार आई हो?

आशा के स्वीकृतिसूचक सिर हिलाने पर नर्स मुस्करा दी थी,

इसीलिए इतना डर गई। पर मिसेज अरोड़ा खतरनाक नहीं हैं। बेचारी के साथ ट्रेजडी हुई है, उसे सह नहीं पा रही हैं।

यह ठीक तो हो जाएगी, सिस्टर?

जरूर हो जाएगी.......... औरत जात बड़ी बेशरम होती है बेटी! आदमी के दिल में एक सूराख हो तो जीने-मरने पर बन आती है, पर औरत दिल में हजार सूराखों पर पैबन्द लगा आराम से पूरी उम्र जी जाती है।

पर मधु वैसी नहीं है, सिस्टर! वह शायद इस हादसे को न झेल सके............।

मेरा अनुभव कहता है औरतें सब एक-सी होती हैं। बेटे को पहचानने भर की देर है। बेटे ने जहाँ 'माँ' कहकर पुकारा नहीं कि इनके दिल पर जो गहरा घाव दिख रहा है उसका नामो-निशाँ नहीं रह जाएगा।

पर पति का इतना बड़ा अन्याय क्या मधु भुला सकेगी?

अरे उनके बेटे का पिता ही तो है वह पति। हम औरतें पैबन्द लगाने में माहिर हैं, बेटी! सारे मान-अपमान, प्यार-घृणा को औरत का दिल ऐसी आसानी से झेल जाता है कि आँपरेशन करो तो एक महीन सूराख भी नजर नहीं आएगा।.........बहुत थक गई हो, जाकर आराम कर लो।

पर सिस्टर, मधु को अकेले छोड़कर मैं................।

उनके लिए भगवान से प्रार्थना करो, वह शीघ्र अपने को पहचान सकें। मेरी बात पर भरोसा रखो बेटी, इस बूढ़ी ने बहुत जमाना देखा है। न जाने कितने दिलों के पैबन्द लगते-उखड़ते देखे हैं इन आँखों ने। आशा की पीठ पर प्यार की थपकी दे अनुभवी नर्स बाहर चली गई थी।

बोझिल कदमों से आशा हाँस्पिटल रोड की ओर बद़ चली थी। शायद नर्स की बात ही सही सिद्ध हो, पर अगर नहीं, तो?................तो आशा, तुझे मधु से उसका अपना परिचय फिर कराना होगा। एक नया सम्मानपूर्ण जीवन जीने के लिए उसमें चेतना की चिंगारी प्रज्वलित करनी ही होगी। मनोविज्ञान की प्राध्यापिका आशा, यह तेरे लिए चुनौती है, तू ऐसा जरूर कर सकेगी।

आशा की गति तेज हो गई थी................।




4 comments:

  1. VERY NICE AND TOUCHING STORY

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  2. बहुत ही सुन्दर कहानी ! - नीरज

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  3. so touching and realistic story, insist to think again and again

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  4. The story begins on sound plot but sudden gets dip as character building down the road. If there would be more meat on character building about Mr Arora grey character, Madhu ambitions and prejudice behaviour and in between Asha faith she seems loosing in different cycle of thoughts, story would turn far better and less feminist.

    Overall sounds interesting..

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