12/19/09

वह साँवली लड़की

 एक


सूटकेस में कपड़े रखती अंजू को देख पूनम पास आ खड़ी हुई थी।
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”कहीं बाहर जा रही है, अंजू?“

”ऑल इंडिया काँन्फ्रेंस के लिए मुझे नॉमिनेट किया है, भाभी।“

”कहाँ जाना है, सो तो बताया ही नहीं?“

”त्रिवेन्द्रम.....।“

”त्रिवेन्द्रम........शायद वहीं तो विनीत...............“

बात अधूरी छोड़, पूनम सब कुछ कह गई थी।

निरूत्तरित अंजू कपड़े रखने-सहेजने में व्यस्त बनी रही।

”सुना है त्रिवेन्द्रम का कोवलम ‘सी-बीच’ बड़ी रोमांटिक जगह है, कहीं खो न जाना।“ पूनम के चेहरे पर शरारती मुस्कराहट थी।

”मेरी इतनी ही चिन्ता है तो साथ चली चलो भाभी,मां भी निश्चिंत रहेगी।
तो चिंता  करने वाला खोज क्यों नहीं लेती अंजू? कब तक उसके नाम की माला जपती रहेगी।“

”भाभी, प्लीज। तुम जानती हो, मुझे इन बातों से सख्त नफ़रत है।“

”जिससे नफ़रत करनी चाहिए, उससे तो कर नहीं पाती............ भगवान तुझे सदबुद्धि दे। ला मैं कपड़े रखती हूँ, तू जाकर चाय पी ले, कैसा तो मुँह सूख रहा है।“

”थैंक्स भाभी। सच, तुमने मेरी आदत खराब कर दी है, तुम्हारी पैकिंग भी तो कितनी अच्छी होती है, कोशिश करके भी मैं तुम्हारी जैसी पैकिंग नहीं कर पाती।“

”अच्छा-अच्छा, अब ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं, पर देख, अम्मा जी को मत बताना कि तू त्रिवेन्द्रम जा रही है, वर्ना वह बेकार शोर मचाएँगी।“

”पर झूठ बोलना तो सम्भव नहीं है, भाभी।“

”अच्छा तू जा, वो सब मैं सम्हाल लूँगी।“ अंजू को जबरन उठा, पूनम उसके सूटकेस में कपड़े सजाने लगी।

अपनी इस छोटी ननद के प्रति पूनम के मन में बहुत प्यार था। दोनों बड़ी ननदें जब भी घर आती, पूनम असहज हो उठती। घर के काम निबटाती, ननदों की फर्माइशों पर दौड़ती पूनम, पागल हो उठती थी।

रेवा दीदी मायके आते ही बीमार हो जातीं और माला दीदी अपनी ससुराल की थकान उतारने ही मायके आतीं।

”वहां तो सुबह पाँच बजे से रात के बारह बजे तक एक पाँव पर खड़े, सबके हुक्म बजाने पड़ते हैं। एक पल का आराम नहीं आता, इसीलिए यहाँ काम में मदद नहीं दे पाती।“ माला दीदी भोला-सा मुँह बना, विवशता जतातीं।

”अरे चार दिन को मायके आई है, कम-से-कम चार दिन तो आराम कर ले। अरे बहू, आज रात जरा माला के सिर में तेल डाल देना, न जाने कब से तेल नहीं डाल पाई है बेचारी।“

बेटी का दुलार करती अम्मा भूल जातीं कि दिन-रात मशीन की तरह काम में जुटी पूनम को भी दो घड़ी आराम की जरूरत पड़ सकती है।

ऐसे समय पूनम का हाथ बॅंटाती अंजू अम्मा को समझाती- ”माला दीदी के सिर में तेल मैं डाल दूँगी। पूनम भाभी पर तो पहले ही काम का इतना बोझ है।“

”हाँ-हाँ, हम लोग तो बोझ हैं, बड़ी आई भाभी की हिमायत करने वाली। हमसे जैसे इसका कोई नाता ही नहीं है।“

दोनों बहिनें रूआँसी हो आतीं। अंजू की ओर से क्षमा माँगती पूनम उनसे मनुहार करती-
”अंजू अभी छोटी है दीदी, बात समझ नहीं पाती। आप भला बोझ है? आप तो हमारे सिर-आँखों रहें दीदी। इसे क्षमा कर दें।“

पूनम से अंजू का अतिशय स्नेह दोनों बहिनों को नहीं सुहाता था।

”अम्मा ने इसे सिर चढ़ा रखा है, हम पर ही सारे अंकुश लगाते थे। जो जी में आया बक देती है।“

इसी अंजू से जब विनीत ने दो वर्षो की लगी सगाई तोड़ दी तो पूनम ने ही उसे सम्हाला था।

भावनात्मक स्तर पर अंजू विनीत के साथ किस गहराई से जुड़ चुकी थी, यह तो सगाई टूटने के बाद ही पूनम जान सकी। विनीत पर पूनम को बहुत गुस्सा आया था, जब जनाब को अपने दिलो-दिमाग पर भरोसा नहीं था तो निर्णय ही क्यों लिया? अंजू से बार-बार मिलने या पाँच-पाँच पेज लमबे प्रेम-पत्र लिखने की क्या जरूरत थी? उतनी आसानी से सगाई तोड़, मुँह छिपाने सिंगापुर भाग जाना क्या ठीक था? विनीत त्रिवेन्द्रम में है, क्या वहाँ अंजू सहज रह पाएगी? विनीत के साथ बिताए सारे पल जीवित हो उठेंगे, कैसे झेल पाएगी अंजू?

अंजू को एयरपोर्ट छोड़ने पति के साथ पूनम भी गई थी। काश, अंजू के इस व्यक्तित्व को विनीत देख पाता। अंजू-सी सलोनी पत्नी क्या वह पा सका होगा? कम्पनी की मुख्य वित्त अधिकारी अंजू किससे कम है! चार्टर्ड अकाउंटैंसी कितनी लड़कियों को कर पाना सम्भव होता है। अपने पाँवों पर झुकती अंजू को पूनम ने सीने से लगा लिया था। धीमे से फुसफसाती पूनम ने कहा था- ”देख अंजू, यह दुनिया जितनी ही बड़ी है, उतनी ही छोटी भी- अगर वहाँ कहीं विनीत मिल गया तो झेल सकेगी?“

”तुम निश्चिन्त रहो भाभी, अब तुम्हारी अंजू बदल चुकी है।“

”हाँ, पहले से ज्यादा निखर आई है हमारी अंजू, नजर न लग जाए।“

कहने को पूनम हॅंस पड़ी थी, पर मन पाँच वर्ष पूर्व की बेहद टूटी उदास अंजू की तस्वीर याद कर रहा था। विनीत के पापा का संक्षिप्त पत्र अचानक मिला था.......... ”विवाह सम्भव नहीं, क्षमा करें,“ यद्यपि पत्र में उन्होंने कोई कारण नहीं लिखा था, पर बाद में खबर मिली थी, सिंगापुर में बसे रबर-व्यापारी ने विनीत को खरीद लिया था। अन्ततः उसकी मध्य-वर्गीय मानसिकता ही जीत गई थी। अचानक बहुत अमीर बन जाने का मोह विनीत छोड़ नहीं सका था।

किसी ने तसल्ली देते कहा था- ”चलो अच्छा हुआ, पहले ही सब खत्म हो गया, शादी के बाद अगर यह सब होता तो?“

अंजू तो जैसे अपने होश ही खो बैठी थीं दो दिन-दो रात, पलंग पर लेटी छत को ताकती रही थी। नींद का इंजेक्शन देकर डाक्टर ने सुलाया था। होश आने पर पूनम के कंधे पर सिर धर कितना रोई थी अंजू। कितना मुश्किल था उसे समझा पाना। उस समय पूनम ही थी, जिसने उसे सम्हाला था।

”यह क्या बचपना है! लोग दुनिया छोड़ चले जाते हैं, तब बर्दाश्त करना होता है या नहीं? समझ ले वह तेरे लिए मर गया है अंजू.............।“

”नहीं.......ऐसा मत कहो भाभी।“ अंजू ने पूनम के होंठों पर अपनी हथेली धर दी थी।

”वाह, कया किस्मत पाई है विनीत ने, हम उसे कुछ कह भी नहीं सकते।“

धीमे-धीमे अंजू चैतन्य हो आई थी। चार्टर्ड अकाउंटैंसी का कठिन कोर्स दुख भुलाने का बहाना बन गया था। उसकी मेहनत रंग लाई थी। परीक्षा में प्रथम स्थान पा अंजू गौरव से भर उठी थी। तब से आज तक उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा है।

”चलूँ ,भाभी?“ अंजू की आवाज ने पूनम की विचार-तन्द्रा तोड़ी थी।

”जाते ही फ़ोन करना। दस-पन्द्रह दिन बाहर रहेगी, पत्र लिखती रहना, वर्ना हम परेशान रहेंगे।“ छिपे शब्दों में पूनम ने अपनी शंका प्रकट कर ही दी थी।

”ओके, बाय भइया, बाय भाभी।“ कंधे पर बैग टाँग अंजू चल दी।

प्लेन में कुछ ही पलों में त्रिवेन्द्रम पहुँचने की घोषणा की जा रही थी। नीचे दृष्टि डालती अंजू मुग्ध हो उठी । इतना गहरा हरा रंग.......... मानो हरा सागर मौन पड़ा सुस्ता रहा हो ,इसी हरियाली में सुख-एश्वर्य के बीच अपनी पत्नी के साथ कहीं विनीत भी होगा। हमेशा चाहे-अनचाहे विनीत उसके ख्यालों में क्यों आ जाता है? सिर झटक कर अंजू ने विनीत को जैसे अपनी सोच से बाहर निकालने की कोशिश की थी।

‘मिस अंजलि मेहरोत्रा’ के नाम का प्लेकार्ड लिए व्यक्ति ने बाहर आती अंजू को देखते ही पहचान लिया था। ”मिस मेहरोत्रा?“

”जी...........“

”आपके लिए कार आई है, आइए।“

पूरे रास्ते नारियल से लदे वृक्षो का मनोहारी दृश्य निहारती अंजू, विनीत और घर को भूल-सी गई थी। अक्टूबर के महीने में भी कजरारे बादल घिर आए थे। आलीशान होटल के सामने कार जा रूकी थी। साथ आए व्यक्ति ने शालीनतापूर्वक अंजू के लिए कार का द्वार खोला था-
 ”कल सुबह साढ़े आठ बजे कार आपके लिए पहुँच जाएगी। आज शाम कहीं जाना चाहेंगी?“

”नहीं, आज तो बस रेस्ट चाहूँगी।“

”वैसे यहाँ से थोड़ी ही दूरी पर, एक अच्छा ‘सी-बीच’ है, आप चाहें तो......।“ साथ आए व्यक्ति ने सूचना देनी चाही थी।

”मैं देख लूँगी, थैक्स।“

होटल के उस कमरे में पहुँचते ही अंजू को जैसे अकेलेपन ने डरा दिया दिया था। पोर्टर को टिप थमा, अंजू पलंग पर पड़ गई थी। आँखें मूँदते ही विनीत का चेहरा सामने आ गया था। इसी शहर में विनीत है, उसके यहाँ रहते भी अकेलेपन का सन्नाटा उसे डस रहा था। अगर उसकी शादी विनीत से हो गई होती तो?

पहली मुलाकात में ही विनीत उसे भा गया था। पापा के रिटायरमेंट पर उनके सहकर्मी मिस्टर मेहता ने पापा को सपरिवार डिनर के लिए आमंत्रित किया था। उस दिन अम्मा को अंजू पर बड़ा लाड़ हो आया था।

‘अंजू, आज मेरी गुलाबी साड़ी पहन ले, तुझ पर खूब खिलेगी।’

इसी गुलाबी साड़ी को जब उसने कालेज की फेयरवेल पार्टी में पहनना चाहा था तो अम्मा ने कितनी जोर से डाँट लगाई थी- ‘साड़ी पहनने की तमीज़ नहीं, इतनी कीमती साड़ी बर्बाद करनी है!’

अन्ततः पूनम भाभी की फीरोजी साड़ी बेमन से पहननी पड़ी थी, इसीलिए अम्मा के उस दुलार पर अंजू चौंक गई थी।

‘हमें नहीं पहननी आपकी साड़ी, हम सलवार-सूट ही पहनेंगे।’

‘जिद नहीं करते बेटी...। तुम्हीं इसे सम्हालो बहू। मेरी तो बात ही नहीं मानती, जो कहो उसका ठीक उल्टा करेगी।’ अम्मा झुझला उठी थीं।

पूनम भाभी ने प्यार से उसे समझाया
 ‘देखो अंजू रानी, वहाँ बहुत सारे लोग आएँगे। सलवार-सूट में भला कोई मानेगा कि यह नन्ही-सी लड़की चार्टर्ड अकाउंटैंसी जैसे कठिन विषय की स्टूडेंट हैं? लोग तो यही कहेंगे हाईस्कूल में पढ़ने वाली लड़की है।’

‘लोग क्या कहेंगे इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।’

‘पर एक कोई क्या कहेगा, उससे तो फ़र्क पड़ेगा ,अंजू रानी?’

‘मुझ पर किसी के कुछ कहने का फर्क नहीं पड़ने वाला है, भाभी- जान। मैं साड़ी नहीं पहनूंगी, नहीं पहनूंगी, बस..........।’

‘ओ.के. बाद में जब पछताओ तो मेरे पास रोने मत आना।’ कभी हार न मानने वाली पूनम भाभी ने हथियार डाल दिए थे।

सचमुच विनीत से परिचय कराती पूनम भाभी ने जब अंजू की तारीफों के पुल बाँधने शुरू कर दिए  तो अपनी जिद पर अंजू को कितना पछतावा हुआ था-‘काश, बह अम्माँ की गुलाबी सितारों वाली साड़ी पहन आती..........’

‘क्या यह चार्टर्ड अकाउंटैंसी कर रही है? स्ट्रेंज! लड़कियाँ आज कहाँ पहुँच गई हैं, पर इन्हें देखकर तो लगता है अभी डिग्री वन की स्टूडेंट हैं।’ विनीत उसे देखता मुस्करा रहा था। शर्म से अंजू की साँवली रंगत और भी सलोनी हो उठी थी।

अपनी सम्पूर्ण आभा के साथ अंजू में साँवले रंग का आकर्षण साकार था। गहरी काली बड़ी-बड़ी आँखें, तीखी नाक के साथ प्रखर बुद्धि के प्रकाश से आलोकित चेहरा, अनायास ही सबको आकृष्ट कर लेता था। इस सबके बावजूद अम्मा हमेशा परेशान ही रहतीं-
‘न जाने इस लड़की का बेड़ा कैसे पार लगेगा? आजकल तो लड़के गोरी मेम चाहते हैं। सब कुछ देकर भगवान ने रंग में कंजूसी कर डाली।’

‘रंग ही सब कुछ नहीं होता कमला, हमारी बेटी जैसा दिमाग कितनों ने पाया होगा? तुम्हें इसके विवाह की चिन्ता नहीं करनी है, इसके लिए घर बैठे लड़का मिलेगा।’

पापा ने अंजू को सदैव सबसे ऊपर रखा था। पापा न होते तो अम्मा की बातें उसे न जाने किस कुंठा में जकड़ लेतीं।

बी.एस.सी. में जब अंजू के मैथ्स में सर्वोच्च अंक आए तो पापा का सीना गर्व से फूल उठा था, ‘मेरी अंजू ही मेरा सपना पूरा करेगी। इसे मैं चार्टर्ड अकाउंटैंसी करने के लिए भेजूंगा।’

‘हाँ-हाँ, अब यही कमी रह गई है, लड़की की कमाई पर घर चलेगा।’

‘तुम्हें समझा पाना कठिन है, कमला। अंजू हमारी साधारण लड़की नहीं है।’

कभी-कभी अम्मा की बातों पर पापा उदास हो उठते थे। अतुल भइया पढ़ाई में साधारण ही रहे। पापा की तीक्ष्ण बुद्धि का अंश अंजू ने ही पाया था। वित्त विभाग में अकाउंटैंट पापा के लिए चार्टर्ड अकाउंटैंट आदर्श व्यक्ति था। उनकी दृष्टि में सी.ए. से अधिक अच्छा कोई प्रोफेशन नहीं था। साधारण बुद्धि वाली अम्माँ पापा की सोच तक शायद ही कभी पहुँच पाई थीं। फिर भी पापा ने अम्माँ के साथ जीवन खुशी से बिता लिया था।

सोच में डूबी अंजू अचानक द्वार की दस्तक से जग गई-”कम इन...............।“

हाथ में ट्रे लिए वेटर कमरे में प्रविष्ट हुआ। करीने से चाय की ट्रे साइड- टेबिल पर रख, केटली से चाय ढालते वेटर ने पूछा-

”शुगर मेम?“

”वन स्पून।“

कप थामती अंजू से वेटर ने पूछा, ”मैडम, ऑफिस- वर्क से आया है.....?“

”हूँ।“

”इसीलिए अकेला है।“

वेटर का प्रश्न अंजू को जैसे चिढ़ा-सा गया। क्या उसकी नौकरी एक विवशता है? विनीत क्या उसे नौकरी करने देता? ऊंह! फिर विनीत....... अंजू अपने पर झुंझला उठी थी।

डिनर की उस शाम कॉफी थमाते विनीत ने कहा था- ‘जानती हैं आपकी कम्पनी कॉफ़ी-सी ताज़गी देती है। बेहद नमकीन हैं, आप।’

‘थैंक्स........’

छिः, भला यह भी कोई बात हुई, कॉफ़ी के साथ नमकीन चीज, जैसे लड़की न हुई, कोई परोसी जाने वाली डिश थी अंजू। फिर भी वह उपमा अच्छी लगी थी उसे।

वापिस घर पहुंची अंजू का मन उमगा पड़ रहा था। एक अजीब उत्तेजना उसे अवश बनाए दे रही थी। विनीत का आकर्षक व्यक्तित्व, उसकी बातें अंजू के मन-मस्तिष्क पर छा गई थीं।

आई.आई.टी. से इंजीनियरिंग करने के बाद विनीत ने अहमदाबाद से एम0बी0ए0 की डिग्री ली थी। आकाश की ऊंचाइयाँ छूने को व्याकुल विनीत की आँखों में ढेर सारे सपने थे। उन सपनों की चमक अंजू के अन्दर तक उतर आई थी।

पूनम भाभी खोद-खोद कर पूछे जा रही थीं- ‘क्या बातें हो रही थीं अंजू रानी, बड़ी छन रही थी दोनों में, हमें नहीं बताओगी?’

‘तुम्हारी यही बातें हमें अच्छी नहीं लगती भाभी, हमेशा बेपर की उड़ाती हो। हम नहीं बोलते तुमसे।’

‘हाँ-हाँ, अब हमसे बोलने की क्या जरूरत है, अब बातें करने वाला जो मिल गया है।’ पूनम ने छेड़ा था।

‘ओह भाभी, तुम भी कमाल करती हो, बातें जानने की ऐसी ही बेचैनी थी तो हमारे साथ क्यों नहीं बैठी थीं?’ उस समय तो भइया से चिपकी बैठी थीं और अब बातें बना रही हो।’

‘हाय राम, हम इनके साथ कब थे, हम तो किचन में पूड़ियाँ छान रहे थे।’ पूनम भाभी मुख रक्ताभ हो आया था। दो वर्षो की परिणीता पूनम भाभी भइया के नाम पर यूँ ही लजा जाती थीं।

दो दिन बाद पापा ने मेहता परिवार को अपने घर चाय पर आमंत्रित किया था। सुबह से घर में तैयारियाँ चल रही थी। पापा और अतुल भइया बाहर की तैयारी में व्यस्त थे। माला दीदी की ससुराल पास में ही थी, भइया की उन्हें बुलाने की बात पर, अम्मा चिहुँक उठी थीं-
‘क्या बात करता है अतुल, अरे माला के सामने तो अंजू काली दिखेगी - धूप-सा उजला रंग है माला का। उसे इस समय बुलाना ठीक नहीं।’

‘तुम भी कभी-कभी हद कर देती हो, क्या कमी है हमारी अंजू में? देख-सुनकर ही विनीत ‘हाँ’ कहेगा।’ पापा का स्वर विश्वासपूर्ण था।

अम्माँ की गुलाबी साड़ी पहन अंजू ने जब कमरे में प्रवेश किया था तो सबकी निगाहें उस पर जमी रह गई थीं।

‘मेहरोत्रा साहब, आज से आपकी बेटी हमारी हुई।’

पापा ने मेहता साहब को गले लगा लिया था।

‘ऑफिस में हम दोनों मित्र थे, आज से सम्बन्धी हो गए।’ पापा गदगद थे।

विनीत की माँ का चेहरा पढ़ पाना जरूर मुश्किल लगा था।

‘अंजू बेटी, रात में चेहरे पर मलाई लगा लिया करो, मलाई से रंग निखरता है।’

उनकी बात सुन अंजू का मन कसैला हो आया था। अम्मा ने बात सम्हाली थी-
 ‘अरे बहिन जी, शादी-ब्याह के बाद लड़कियों का रंग-रूप अपने-आप निखर आता है। अभी तो पढ़ाई का बोझ ही मारे डालता है।’

‘हमारे विनीत का रंग तो देखा ही है आपने। उसे गोरे रंग की वीकनेस थी पर आपकी बेटी पर न जाने कैसे रीझ गया..........’

‘जरूर पूर्वजन्म के संस्कार हैं बहिन जी, तभी तो कहा जाता है शादी-ब्याह पहले से तय होते है।’ अम्मा दयनीय हो आई थीं।

उस बात पर कोई तीखा उत्तर देने को अंजू बेचैन हो उठी थी, पर पास बैठी पूनम भाभी ने हाथ दबा चुप रहने को विवश कर दिया था।

हॅंसी-खुशी मेहता परिवार की विदा के बाद, अम्माँ ने लम्बी साँस ली थीः

‘हे भगवान, लड़की की नैया पार कर दे! विनीत की माँ ने जब अंजू के रंग की बात उठाई तो मेरा तो कलेजा धड़क उठा था।’

‘पागल हो तुम कमला। मिसेज मेहता तो जाहि्ल औरत हैं। अंजू नहीं, उन्हें हीरा मिल रहा है। बाद में यह बात समझेंगी, देख लेना।’ पापा नाराज हो उठे थे।

कभी विनीत ने कहा था-‘देखना अंजू, मैं बहुत जल्दी अपना बिजनेस शुरू करूँगा और तुम मेरी फाइनैंस कंट्रोलर होगी। इसीलिए तो तुम्हें लाइफ-पार्टनर चुना है।’

‘अच्छा, बस इसीलिए तुम्हें मेरी जरूरत है विनीत?’ अंजू की कजरारी आँखें और कजरारी हो उठतीं।

‘अरे नहीं यार, तुम्हें तो दिलो-जान से चाहा है ,मेरी जान! ऐसी नमकीन चीज भला कोई छोड़ सकता है?’

‘ऐ विनीत, तुम हमें यह नमकीन-समकीन मत कहा करो, ऐसा लगता है जैसे कोई खाने की चीज हूँ।’ अंजू ने रोष दिखाया था।

‘सच, पूरी की पूरी निगल जाने को जी चाहता है।’ विनीत ने शरारत की थी।

‘धत्त ..........हम नहीं बोलते तुमसे।’

फोन की घंटी पूरी कर्कशता के साथ बज उठी।

”हलो.............?“

”मेम, डिनर इज रेडी, वुड यू लाइक टू कम डाउन टु अवर रेस्ट्राँ ऑर शुड वी सर्व दि डिनर इन योर रूम प्लीज?“

”आज डिनर नहीं चाहिए। सेंड मी ए कप ऑफ कॉफ़ी ओनली।“

विनीत ने कहा था- ‘तुम्हारा कॉफ़ी- कलर ही तुम्हारी सबसे बड़ी ब्यूटी है। इस शाइनिंग काफी कलर पर तो अमेरिकन्स भी मर मिटेंगे अंजू।’

‘ऊह’ फिर वही विनीत ...... भाभी कहती हैं, ‘इतने वर्षो के बाद भी अंजू विनीत-फोबिया से मुक्त नहीं हो सकी है।’

बाथरूम में ठंडे पानी के छींटे मुँह पर डाल अंजू बाहर आ गई। सागर की ओर से आ रही ठंडी हवा का स्पर्श, बाल्कनी में खड़ी अंजू को बड़ा भला लगा था। वहीं कुर्सी पर बैठ काफी पीती अंजू बहुत देर तक जागती रही।


दो


सुबह पौने आठ बजे तैयार हो अंजू नीचे रेस्ट्राँ में उतर आई। मेनू कार्ड सामने रख वेटर आर्डर की प्रतीक्षा में खड़ा हो गया था।

”टोस्ट और चाय।“

”थैंक्यू मैम।“ मेनू कार्ड उठा वेटर तत्परता से चला गया

अंजू के ठीक सामने वाली टेबल पर बैठा सुदर्शन युवक भी शायद उत्तर भारत से आया प्रतीत होता था। अंजू के साथ ही उसका भी आर्डर सर्व किया गया।

ब्रेकफ़ास्ट खत्म कर अंजू बाहर गार्डेन में आ गई। द्वार पर खड़े संतरी को बता दिया था, वह गार्डेन में है, कार आते ही उसे बुला लिया जाए।

सवा आठ बज चुके थे। समय की पाबंद अंजू बेचैन होने लगी। नौ बजे मीटिंग शुरू हो जानी थी, उसका लेट पहुँचना ठीक नहीं। काउंटर पर इन्क्वायरी कर रही अंजू को रिसेप्शनिस्ट ने सुझाया -
 ”मैडम, आप मिस्टर कुमार के साथ उनकी कार में चली जाइए, वह भी इसी सेमिनार में जा रहे हैं।“

”पर मैं मिस्टर कुमार को नहीं जानती, क्या उनके साथ जाना ठीक होगा? अच्छा हो आप मुझे टैक्सी बुलवा दें। आई एम गेटिंग लेट.....“

”वन मिनट मैम, प्लीज वेट करें।“ तत्परता से अपना स्थान छोड़ सामने से आ रहे युवक की ओर रिसेप्शनिस्ट बढ़ गया।

दृष्टि घुमाते ही अंजू ने उसी युवक को देखा जो कुछ देर पहले उसके ठीक सामने वाली मेज पर बैठा था। रिसेप्शनिस्ट ने शायद अंजू को साथ ले जाने की रिक्वेस्ट की थी क्योंकि उस युवक ने अंजू की ओर निगाह उठाई थी।

कुछ ही पलों में वह युवक तेजी से बाहर चला गया, रिसेप्शनिस्ट लगभग भागता हुआ आया- ”आइए मैम, आप उनके साथ जा सकती हैं, मैंने बात कर ली है।“

रिसेप्शनिस्ट के साथ अंजू होटल के पोर्टिको में पहुँची। एक लम्बी विदेशी कार अंजू की प्रतीक्षा कर रही थी। अंजू के पहुँचते ही वर्दीधारी ड्राईवर ने गाड़ी का पिछला द्वार खोला था। अपनी आँखों के सामने न्यूज-पेपर लगा, कार-स्वामी ने अंजू की उपस्थिति को सर्वथा नकार दिया।

”थैंक्स।“ रिसेप्शनिस्ट को धन्यवाद देती अंजू कार में बैठ गई । घमंडी कहीं का ! अहंकार की भी सीमा होती है! शायद सोच रहा है टैक्सी के पैसे बचाने के लिए ही उसने लिफ्ट ली है। रिसेप्शनिस्ट पर भी गुस्सा आ रहा था, जबरन ही ऐसे आदमी के सिर मढ़ गया। बाहर का मनोहारी दृश्य भी अंजू का मूड नहीं बदल सका ।

करीब बीस मिनट बाद कार गंतव्य स्थल पर पहुंची थी। बड़े-बड़े बैनर, बैज लगाए वालंटियर दूर से ही किसी बड़े समारोह की सूचना दे रहे थे। उनकी कार के पहुँचते ही दो-चार वालंटियर्स कार के पास आ पहुँचे। ड्राइवर ने तत्परता से अंजू के लिए द्वार खोला। साथ का व्यक्ति स्वयं उतर आया था।

”काँन्फ्रेंस में आपका स्वागत है,मैम“।

”अंजलि मेहरोत्रा ,फ़्रॉम लखनऊ।“

”सुजय कुमार, दिल्ली से।“

”ओह डॉ कुमार, स्वागत है।“ दूर खड़े आयोजक सुजय कुमार के स्वागत के लिए लगभग दौड़ते-से आए थे।

”कार में इतनी देर मुझे टॉलरेट करने के लिए थैंक्स। अफ़सोस है आपके एकान्त में बाधा दी।“

सुजय के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना अंजू धड़धड़ाते हुए स्वागत-कक्ष की ओर बढ़ गई

”अंजलि मेहरोत्रा..........।“

”हाय, अंजू! तू यहाँ?“

चौंक कर अंजू ने देखा, रिसेप्शन काउण्टर पर शाहीन खड़ी थी।

”अरे ,शाहीन? व्हाट ए वंडरफुल सरप्राइज!“

”सच, तू यहाँ इस तरह मिल जाएगी, यह तो सोचा ही नहीं था। लगता है अभी तक तूने शादी नहीं की है। क्या इरादे है?“

”सब यहीं पूछ डालेगी या बाद के लिए भी कुछ छोड़ेगी? तेरे और गेस्ट्स इन्तजार कर रहे हैं।“

”ओ के , चल तेरी ही बात सही, इन्हें निबटा लूँ फिर तुझसे मिलती हूँ, यहाँ दो वीक्स का प्रोग्राम है न?“

”हाँ कॉन्फ्रेंस के बाद एक ट्रेनिंग प्रोग्राम है, करीब दस-बारह दिन चलेगी।“

”चल, तब तो कम-से-कम पन्द्रह दिन का साथ रहेगा। सुन, आज लंच साथ ही करेंगे....“

”पर डेलीगेट्स के लिए तो लंच अलग है.....।“

ओह् हो ! बड़ी डेलीगेट बनकर आई हैं, चाय तो चलेगी न? ठीक ग्यारह बजे इधर ही आ जाना। बढ़िया चाय पिलाऊंगी, यहाँ की सीनियर रिसेप्शनिस्ट ठहरी।“ शाहीन जोर से हॅंस पड़ी थी।

काँन्फ्रेंस का उद्घाटन- सत्र बहुत ही शानदार था। विशिष्ट व्यक्तियों के साथ बैठी अंजू उन पलों को जी रही थी। अगर विनीत से उसका विवाह हो गया होता तो क्या वह आज इस काँन्फ्रेंस में डेलीगेट बन उपस्थित हो पाती? न चाहते भी, उसके मन में विनीत को एक बार देख पाने की चाहत जरूर थीं। पूनम भाभी को भी भय था कहीं विनीत न मिल जाए-पर अगर वह मिल भी जाए तो क्या अन्तर आने वाला था?

चाय के लिए लोग हाल के पीछे लगी मेजों की ओर बढ़ रहे थे। अंजू बाहर रिसेप्शन पर पहुँच गई। उसे देखते ही शाहीन ने आवाज लगाई,
”नारायण, मेरे रूम में दो कप चाय और स्नैक्स भेज देना। रमेश, तुम कुछ देर मेरी जगह ड्यूटी कर लोगे? यह मेरी पुरानी फ्रेंड अंजू काँन्फ्रेंस में आई है।“

”ओह, श्योर मैम! इन्ज्वाय योर टाइम।“

”थैंक्स! आ, अंजू।“

अंजू का हाथ पकड़े शाहीन कुछ ही देर में होटल के पीछे बने अपने क्वार्टर में पहुंच गई। सुरूचिपूर्ण ढंग से सजा छोटा-सा घर शाहीन की कलात्मक अभिरूचि का परिचायक था।

”वाह, घर तो बड़ा सुन्दर बसा लिया है, पर हमारे सलीम भाईजान कहाँ हैं?“

”उन्हें क्या पता था उनकी चार्मिग सिस्टर इन-ला मिस अंजलि मेहरोत्रा उर्फ अंजू आ रही है, वर्ना क्या वे घर छोड़ते! चार-पाँच दिनों को मद्रास गए हैं- कुछ ऑफीशियल काम था। अपनी सुना, कैसी कट रही है?“

”बस यूँ ही ...... नया कुछ नहीं जो सुनाऊं।“

”वाह, नया कुछ क्यों नही?  विनीत कैसे हैं?  कहाँ है जनाब, तुम लोगों ने शादी क्यों टाल दी, अंजू!“

”टाली नहीं, बात ही ख़त्म हो गई ,शाहीन।“

”क्या कह रही है ,अंजू?  मुझे तो ब्याहकर अम्मी ने ऐसी जल्दी रूख़सत कर दिया कि तुम लोगों से बाद में मिल भी न सकी। किसी का हाल पता नहीं।“

”अच्छा ही तो किया, तेरे चेहरे पर ,खुशी का नूर टपक रहा हैं, लगता है भाई जान बेहद चाहते हैं।“

”इसमें तो कोई शक नहीं, पर मेरी शादी के पहले तेरी सगाई भी हो गई थी फिर क्या हुआ?“

”वो सब छोड़ ,शानी, तेरे शहर में आई हूँ, बता क्या खातिर करेगी,“

”सबसे पहले तो वह अपना होटल छोड़ यहाँ आ जा। सलीम को वापस आ जाने दे। फिर हम लोग तुझे घुमाने का प्रोग्राम बनाएँगे।“

”न बाबा, होटल छोड़ना तो पॉसिबिल नहीं, यहाँ तुम्हारे बेडरूम में अगर मैं सो गई तो सलीम भाई की गालियाँ खाऊंगी।“

”धत्त! बड़ी बातें बनाने लगी है। उनकी मजाल जो तुझे गालियाँ दें। तलाक न दे दूँगी।“

”इसीलिए तो यही ठीक है मैं वहीं रहूँ, वैसे भी घूमने का समय तो बस शाम को ही मिल सकेगा। पूरे दिन तो बिजी रहूँगी न!“

”सच अंजू, तूने तो कमाल कर दिया। यह कॉन्फ्रेंस तो चीफ एक्जीक्यूटिव्स के लिए है, तू क्या इतनी बड़ी ऑफिसर बन गई है ,अंजू?“

”बड़ी तो नहीं हूँ-हाँ, नाम जरूर चीफ़ फाइनैंस ऑफिसर कर दिया गया है।“

”एक बात पूछूँ, कहीं तेरी इस नौकरी की वजह से ही तो विनीत अलग नहीं हो गया? तू नहीं जानती पुरूष का इगो, जो न करे थोड़ा है।“

”उस सबका मौका ही नहीं आया। बड़े आसामी की बेटी के सहारे ऊपर उठना विनीत को ज्यादा आसान लगा- शायद इसीलिए। मिडिल क्लास मानसिकता की यह भी एक कमजोरी होती है न-कैसे जल्दी से आकाश छू ले.............।“

”मार गोली विनीत को। अभागा था, वर्ना तुझ पर तो हजारों न्योछावर हो जाएँ।“

वेटर चाय के साथ स्नैक्स ले आया था। अंजू को चाय थमाती शाहीन फिर पूछ बैठी थी-
”अम्माँ-पापा के लिए तो बहुत बड़ा धक्का रहा होगा?“

”महीनों पूरे घर में अवसाद की काली छाया मॅंड़राती रही। अम्माँ तो बार-बार पापा से विनीत के पापा के पास जाने को कहती रहीं, पर पापा को तो तू जानती ही है-टूट जाएँगे पर झुकेंगे नहीं। अम्माँ को डाँट दिया था, ‘हमारी अंजू को जो अस्वीकार करे वह स्वयं अभागा है। मैं उसके यहाँ गिड़गिड़ाने नहीं जाऊंगा। पछताएगा, देख लेना।’“

”मैंने भी पापा का साथ दिया था। अपने को सहेज, पढ़ाई पूरी करने में जुट गई थी। किसी के सामने पापा को हाथ फैलाते देखना मुझे किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है, शानी।“

”ठीक किया तूने। सच, लड़की की जिन्दगी भी क्या है-शादी टूटे या सगाई, दोष हमेशा लड़की को ही दिया जाएगा। उसमें नुक्स ढूँढ़े जाएँगे, भले ही लड़का ऊपर से नीचे तक अवगुणों का भंडार हो, पर उसे हमेशा लड़का होने का एडवांटेज मिलेगा।“

”ओ माई गॉड, देख तेरे साथ बातों में टाइम का अंदाज ही नहीं हुआ, वहाँ सेशन शुरू हो जाएगा।“ चाय का कप धर अंजू उठ खड़ी हुई थी।

”क्या प्रोग्राम रहेगा यहाँ?“

”लंच तक पेपर-प्रोग्राम चलेंगे। बाद में विचार-विमर्श के लिए ओपन सेशन होंगे। एक तरह से यह हमारा ट्रेनिंग प्रोग्राम है।“

”देख अंजू, तू चाहे कितनी भी बिजी रहे, रोज चाय मेरे साथ ही पीनी होगी, समझ गई न।“

”हाँ बाबा, तुझे क्या जानती नहीं? अगर ‘हाँ’ न कही तो क्या आसानी से बख्शने वाली है! सच शानी, यहाँ तुझे पाकर कितना अच्छा लग रहा है, तू समझ नहीं सकती।“ दोनों हॅंस पड़ी थीं।

लंच के समय अंजू के आसपास विभिन्न कार्यालयों के लोग घिर आए थे।

”मिस मेहरोत्रा, आप पहले कभी साउथ आई थीं?“

”जी नहीं, यह पहला चांस है।“

”कोवलम सी-बीच मिस मत कीजिएगा। मेरे ख्याल से तो लास्ट टू-थ्री डेज आप वहीं शिफ्ट कर जाएँ। वहाँ रहना भी एक अनुभव है।“ मिस्टर तनेजा ने सजेस्ट किया था।

”सच, वहाँ रहते लगता ही नहीं हम भारत में है। रात में झिलमिल करती लाइट्स और वेस्टर्न म्यूजिक-अजीब समाँ बाँध देते हैं।“ मिस्टर पांडे सपनों में खो गए थे।

”अगर आप चाहें आज ही आपको वहाँ शिफ्ट करा दूँ, मैं तो वहीं सी-बीच के हॉलीडे होम में ठहरा हूँ।“ तनेजा अत्सुक हो उठे।

”नो, थैंक्स, मैं जहाँ हूँ बहुत अच्छी जगह है। प्योरली इंडियन एटमॉसफियर और मैं यही चाहती हूँ। एक्सक्यूज मी, मैं सेकेंड सर्विस के लिए जा रही हूँ।“

सबको वहीं छोड़ अंजू डाइनिंग टेबिल की ओर बढ़ गई थी। खीरे के टुकड़े उठाती अंजू को पास की आवाज ने चौंका दिया।

”तो आप विशुद्ध भारतीय वातावरण पसन्द करती हैं, आश्चर्य है।“

अंजू ने मुड़कर देखा, सुजय कुमार प्लेट में पुलाव ले रहे थे।

”आपको तो आश्चर्य होना ही चाहिए। शायद आपको भारतीय संस्कृति की ज्यादा जानकारी नहीं, जहाँ घर आया शत्रु भी आदर पाता है.............।“

”ओह! शायद आप मेरी किसी गलती की ओर इशारा कर रही हैं, पर मिस मेहरोत्रा, एक बात जान लीजिए लड़कियों को लिफ्ट देना मेरी आदत नहीं।“ धीमे टोन में सुजय ने जानकारी दी थी।

”लिफ्ट मैंने नहीं माँगी थी। रिसेप्शनिस्ट ने आपको एक सज्जन पुरूष मानकर यह गलती कर दी थी। अब आप समझ गए न मिस्टर ............।“ अंजू का स्वर शायद तीखा पड़ गया था।

आसपास के लोग उन्हें उत्सुकता से देख रहे थे। अंजू वहाँ से हटकर एकान्त में चली गई।

खाने का स्वाद ही जैसे पूरा कड़वा हो उठा था। बिन खाए खाने की प्लेट अंजू ने टेबिल के नीचे सरका पानी का ग्लास उठा लिया। दूर खड़ी मालती सिन्हा अंजू के पास खिसक आई।

”क्या बात है मिस मेहरोत्रा, आपने कुछ खाया ही नहीं?“

”नहीं, ऐसी बात नहीं है, काफ़ी खा लिया........... बाहर का खाना ज्यादा न खाना ही ठीक है।“ अंजू ने मुस्कराने की चेष्टा की।

”हाँ-हाँ - तभी तो यह छरहरी काया मेनटेन कर सकी हो पर भाई, अपन से यह कंट्रोल नहीं होता।“ अपनी स्थूल काया को देखती मालती जी, मुक्त रूप से हॅंस पड़ीं।

”आप ऐसे ही अच्छी लगती हैं।“ अंजू ने सादगी से उत्तर दिया।

”चलो इस हाल में भी कोई तो अच्छा कहने वाला मिला। कहाँ ठहरी हो ,अंजलि? माफ करना, यह मिस मेहरोत्रा बड़ा लम्बा-सा नाम है न?“

”गोदावरी में हूँ, आप कहाँ ठहरी है?“

”भई मुझे तो शुरू से एकान्त में सागर का संगीत सुनना अच्छा लगता है। कोवलम बीच के लाइट हाउस के ठीक नीचे वाले गेस्ट हाउस में ठहरी हूँ। एक्सलेंट प्लेस फ़ॉर राइटर्स एंड पेंटर्स ....... दूर-दूर तक फैला निस्सीम सागर, बस...... और कुछ नहीं।“

”लगता है आप भी कलाकार है...........।“

”कलाकार तो नहीं पर विधाता की बनाई सुन्दर पेटिंग्स अभिभूत जरूर करती हैं। तुम्हीं सोचो अंजलि, यह ऊपर वाला कितना बड़ा कलाकार है.....“

”दर्शनशास्त्र में भी आपकी रूचि है, मिसेज सिन्हा?“

”मिसेज सिन्हा न कहकर दीदी कहतीं तो अच्छा लगता, उम्र ओर अनुभव दोनों में बड़ी हूँ न तुमसे?“

”ठीक है, आगे से ऐसी गलती नहीं होगी, दीदी ही पुकारूँगी आपको, पर आप भी मुझे बस अंजू पुकारें।“ अंजू मुस्करा दी थी।

”चलो त्रिवेन्द्रम आने का एक फायदा तो हुआ एक छोटी बहिन मिल गई।“ मालती सिन्हा कुछ भावुक हो आई थीं।

”चलें मालती दी, सेशन शुरू होने वाला है, दूसरे नम्बर पर मेरा ही प्रेजेण्टेशन होना है“।

”क्या टॉपिक है पेपर का?“

”टैक्सेशन ऑन एम्प्लॉइज़ सैलरी।“

”वाह, इसमें तो लोगों की खूब रूचि होगी। मेरे साथ प्रॉबलेम है लिख सकती हूँ ,पर पेपर प्रेजेण्ट करते सयम न जाने क्यों नर्वस हो जाती हूँ।“

”यह भी अपना-अपना स्वभाव होता है, मैं भी पता नहीं क्या करूँगी।“

”आल दि बेस्ट, तू जो करेगी अच्छा ही होगा।“ मालती जी ने शुभकामनाएँ देते हुए कहा।



अंजलि का प्रेजेण्टेशन बहुत प्रभावशाली रहा। स्पष्ट, श्रंखलाबद्ध विचारों के साथ सधी आवाज में उसकी प्रस्तुति सराहनीय थी। इतने लोगों की दृष्टियाँ अपने ऊपर गड़ी होने का अहसास शुरू में अंजू को डरा रहा था, पर बोलना शुरू करने के बाद उसका भय न जाने कहाँ भाग गया। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपने स्थान पर वापस जाती अंजू हल्की मुस्कान के साथ बधाइयाँ स्वीकार करती जा रही थी।

संध्या चाय के दौरान वित्त विशेषज्ञ प्रो0 रामनाथन ने अंजू के पास आकर बधाई दी,
 ”आपके नये सुझाव नोट किए गए हैं, उम्मीद है इनसे सबको फ़ायदा होगा।“

”थैंक्यू सर!“ अंजू का मुख प्रसन्नता से खिल उठा।

पापा अगर उसका यह सम्मान देख पाते तो कितने खुश होते।

मालती सिन्हा तो बार-बार सबसे उसकी तारीफ़ कर रही थीं।

”इतनी छोटी उम्र में अंजलि को इतनी नॉलेज है, कितना सुन्दर प्रस्तुतीकरण था।“

”तो आज का दिन मिस अंजलि मेहरोत्रा के नाम रहा, क्यों मिस मेहरोत्रा?“ सुजय के शब्दों में व्यंग्य था या प्रशंसा, पहचान पाना बहुत कठिन था।

”नो कमेंट्स।“ कह अंजू चुप लगा गई।

”फाइनैंस जैसे नीरस विषय में आपकी रूचि की कोई खास वजह?“

”मिस्टर कुमार, कुछ देर पहले आपने जो जानकारी दी थी, उससे आपका यह व्यवहार कतई मेल नही खाता। देख रही हूँ लड़कियों की रूचि-अरूचि में भी आप बेहद इण्टरेस्टेड हैं।“

”लड़कियाँ किस तरह लोगों को मूर्ख बना सकती हैं, मैं अच्छी तरह जानता हूँ। आपका आज का प्रेजेण्टेशन भी उसी का एक अंग था या नहीं? लड़कियों को समझ सकना इम्पॉसिबल होता है। वे बाहर से जैसी होती हैं अन्दर से ठीक उसकी उल्टी.............।“

”अच्छा हो आप अपने इसी निष्कर्ष पर दृढ़ बने रहें। फिर भी पुरूषों की अपेक्षा लड़कियों की कम्पनी आपको ज्यादा पसन्द है, ठीक कहा न ,मिस्टर कुमार?“

”शायद आपने नोट नहीं किया, मेरे चाहने वाले पुरूषों की संख्या गिन पाना आसान नहीं।“

सुजय ने ठीक कहा था, अंजू ने नोट किया, वह जहाँ भी बैठता, लोग उसे घेर लेते थे।

दूसरे दिन शाहीन के साथ चाय पीती अंजू कुछ खिन्न-सी थी।

”क्या बात है अंजू, आज तेरे तेवर ही दूसरे हैं ,किसी से झगड़ा हुआ क्या ?
तू तो जानती है शानी अपनी आदत झगड़ा करने की नहीं है, पर हर बात की सीमा होती है। एक हैं कोई सुजय कुमार, हर समय लड़कियों पर तानाकशी करते रहते हैं।“

”क्या कहा सुजय कुमार? अरे, वह तो निहायत शरीफ़ इंसान हैं, अंजू। जाड़ों में हमेशा त्रिवेन्द्रम आते हैं, इसी होटल में तो ठहरते हैं। वह हमारे रेगुलर कस्टमर हैं। इस बार यहाँ सेमिनार की भीड़ की वजह से गोदावरी में ठहरे हैं। उनके बारे में तूने ऐसी राय कैसे कायम कर ली ,अंजू?  ही इज़ ए परफ़ेक्ट एलिजिबिल बैचलर........... कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है?“

”बलिहारी है तेरी शरीफ़ इंसान की इंसानियत पर। हर समय ऐसे-ऐसे टॉंट कसते हैं कि सारा मूड खराब हो जाता है।“

”ताज्जुब है, चल तेरी ओर से मैं लड़ आती हूँ। क्या वजह है जो हमारी भोली-भाली अंजू रानी का मूड खराब कर डाला है।“

”रहने दे, निबटने के लिए मैं अकेली ही काफ़ी हूँ। सलीम भाईजान कब आ रहे हैं, लगता है तेरी मोहब्बत में कमी आ रही है शानी, वर्ना.........।“

”खुदा तेरा बेड़ा गर्क करे, बड़ी आई बातें बनाने वाली। हम दोनों एक जान दो बदन हैं, समझी। अरे हाँ, तुझे बताना ही भूल गई, सलीम का आज ही फोन आया है, उसे मद्रास चार दिन और रूकना है, मुझे भी बुलाया है। सोचती हूँ चली जाऊं,पर तुझे छोड़ने का जी नहीं चाहता।

”अब बातें मत बना, सलीम भाई की जगह भला मैं ले सकती हूँ?“

”आज रात यहीं क्यों नहीं ठहर जाती? फिर तो चार दिन बाद ही मिल पाएँगे।“

”आज तो मालती जी के साथ उनके ऐतिहासिक गेस्ट-हाउस में जा रही हूं। रात में सागर कैसा लगता है, देखना है।“

”पागल है, भला मालती जी की कम्पनी में सागर-तट का मजा आएगा? अरे हनीमून के लिए कोवलम पर अपने मियाँ के साथ आना, मजा आ जाएगा।“

”फिर वही रट, इसके अलावा जैसे कोई और बात तू जानती ही नहीं है? पिछले तीन-चार दिनों में मालती जी इतना स्नेह देने लगी हैं कि लगता है ,पूर्व जन्म में मेरी बहिन ही थी।“

”ओ के बाबा, कान पकड़े फिर जो कभी इस साधुनी से मजाक करूँ, फिर लौटकर मिलती हूँ तुझसे।“

”ओ के , ऑल दि बेस्ट।“

तीन


प्रोग्राम खत्म होने पर अंजलि मालती सिन्हा के साथ उनके गेस्ट-हाउस चली गई। दूसरे दिन इतवार  था।   सबको अपने  ढंग से छुट्टी  मनाने की स्वतंत्रता थी। अंजू के साथ होने के कारण मालती सिन्हा बेहद उत्साहित थीं।

”आज रात कोवलम का नजारा देखना अंजू। आशीष इसे सपनों का तट कहते थे।“

”आशीष.......यानी मिस्टर सिन्हा?“

”नहीं री, आशीष दत्त, मिस्टर सिन्हा कैसे हो जाते?“

”कौन हैं आशीष दत्त?“

”कितना अजीब सवाल है......सब कुछ होते हुए भी अगर रिश्ते का कोई नाम न दिया जाए तो वह कुछ नहीं होता,अंजू।

”आई एम सॉरी दीदी, मैं समझ गई। अब कहाँ हैं आशीष जी?“

”कभी हम दोनों ने इसी गेस्ट हाउस में हनीमून मनाने का सपना देखा था ,अंजू।

”सपना पूरा क्यों नहीं हुआ ,दीदी?

”जीवन की अंतिम कहानी इसी जगह तो लिखी गई थी,अंजू।“

”कहानी तो अधूरी ही रह गई, पूरी कहाँ हो पाई, मालती दी?“

”जरूरी तो नहीं जो अन्त चाहा जाए वही मिले, आशीष इसी गेस्ट-हाउस में रहते हुए अपने कैनवस पर कोवलम के विविध रूप उतारा करते थे तभी उनकी मुलाकात नैन्सी से हुई थी। नैन्सी स्वीडन से आई थी, वह आशीष के चित्रों पर ही नहीं, आशीष पर भी मर मिटी थी।“

”क्या आशीष जी ने भी आपको भुला दिया ?“

”न जाने कौन किसे भुला पाता है? नैन्सी तो जबरन आशीष को स्वीडन ले गई, वहाँ से उनका पत्र आया था। क्षमा माँगते हुए एक अच्छा जीवन-साथी खोज लेने की सलाह दी थी।“

”सिन्हा साहब यह कहानी जानते हैं, दीदी?“

”नहीं, ,मैंने उनके अहं को ठेस नहीं पहुँचाई, अंजू। उन्होंने मुझे साफ़ स्लेट के रूप में स्वीकार किया है,  जिस पर बस उन्हीं का नाम अंकित है, फिर भला मैं उन्हें क्यों दंडित करूँ? अपनी पराजय का दंड उन्हें देना क्या ठीक है ,अंजू?“

”पता नहीं दीदी, परन्तु अगर कभी उन्हें यह बात पता लगी तो?“

”तब तक मुझे पूरी तरह पहचान कर क्षमा कर सकना, उन्हें बहुत आसान हो जाएगा, अंजू।“

”कैसा लगता है उन यादों के साथ इस गेस्ट-हाउस में जीना, दीदी?“

”सच कहूँ अंजू तो लाख चाहने पर भी हर पल आशीष को अपने पास पाती हूँ। यह पाप है, पर क्या करूँ, इस जगह मैं अपने को बेहद विवश पाती हूँ।“

”बीते क्षणों को दोहराना शायद बहुत सुखद होता है, इसीलिए न चाहकर भी हम उन्हें दोहराते हैं। पापा कहते थे, आज का महत्व हम कल समझ पाते हैं। आपने कोई पाप नहीं किया है, दीदी।“

”तुझसे बातें करके कितना अच्छा लगता है ,अंजू। लगता है तू मेरे दुख की सहभागिनी है। चल आज नीचे किसी रेस्ट्राँ में ही डिनर लिया जाए।“

दोनों पैदल चलकर सागर-तट पर पहुँचीं। तट पर बने रेस्ट्राँज की झिलमिलाती रोशनी की झालरें, पाश्चात्य संगीत की धुन सुनते विदेशी जोडे़, अदभुत समाँ उपस्थित कर रहे थे।

”यहाँ आकर तो लगता ही नहीं यह सी-बीच इंडिया का पार्ट है। इसे तो विदेश कहना ही ठीक होगा। एक भी इंडियन दिख रहा है दीदी?“

”यह लो तुमने कहा और वो देखो सामने की टेबिल पर अपने मिस्टर कुमार बैठे हैं।“

अंजू के कुछ कहते न कहते, मालती सिन्हा सुजय के पास पहुंच गई थीं।

”हलो मिस्टर कुमार। अभी हम लोग किसी भारतीय को खोज ही रहे थे कि आप दिख गए। कहिए कहाँ ठहरें हैं?“

”थिंक ऑफ डेबिल एण्ड दि डेबिल इज़ देयर।“ अंजू बुदबुदाई ।

”ओह, वेलकम मिसेज सिन्हा, हलो मिस मेहरोत्रा। आइए।“ सुजय उठ खड़ा हुआ।

”नहीं-नहीं, हम आपकी प्राइवेसी में बाधा नहीं डालना चाहते, हम उधर चलेंगे ,दीदी।“ अंजू ने मालती जी को जबरन खींचना चाहा।

”मिस मेहरोत्रा, अभी आपका अनुभव बहुत कम है, एक उम्र पर पहुँचकर महसूस करेंगी, सबके बीच भी आदमी अपनी प्राइवेसी बनाए रख सकता है। भीड़ में अकेले आदमी के अहसास जैसा......“

”वाह ! अंजू तो मुझे ही दार्शनिक कहती है, आप तो पक्के दार्शनिक निकले। आ अंजू, हम यहीं बैठते हैं, कुमार साहिब की बातें सुनने का फिर न जाने कब मौका मिले।“ अंजू का हाथ पकड़ मालती जी ने उसे जबरन कुर्सी पर बैठा लिया।

”कहिए मालती दीदी, आप क्या लेंगी, मिस मेहरोत्रा तो कोल्ड ड्रिंक प्रिफ़र करेंगी।“

”अब दीदी का रिश्ता जोड़ा है तो मैं तुम्हें जय ही कहूँगी। मेरे लिए तो हॉट कॉफ़ी मॅंगाना।“

”मुझे कुछ भी नहीं चाहिए। जबरदस्ती की मेहमानदारी मुझे स्वीकार नहीं।“

”तो आप मेहमाननवाजी का फ़र्ज़ निभाएँ ,मिस मेहरोत्रा, मैं बिन बुलाया मेहमान बनने का तैयार हूँ।“ हॅंसकर सुजय ने कहा।

”मेहमान का चुनाव करने का अधिकार मेरा होना चाहिए, आप तो मेरे मेहमान कभी हो ही नहीं सकते।“

मालती सिन्हा ने चौंक कर अंजलि और सुजय का चेहरा देखा ।
 ”ठीक है जय, आज रहने दो, फिर कभी तुम्हारा आतिथ्य ज़रूर स्वीकार करूँगी।“ मालती सिन्हा गम्भीर मुख उठ खड़ी हुई। सुजय मौन ही रह गया था।

थोड़ी दूर बने रेस्ट्राँ के सामने पड़ी कुर्सियों में से एक खींच मालती सिन्हा बैठ गई थीं। अंजलि उनके मौन से संकुचित हो उठी।

”मुझे माफ़ कर दें ,दीदी- असल में मिस्टर कुमार ने ऐसे-ऐसे कटाक्ष किए हैं कि उन्हें सहन कर पाना कठिन लगता है।“

”जानती है, मिस्टर कुमार से ज्यादा वेल-बिहेव्ड आदमी मिलना कठिन है। इतना बड़ा उद्योगपति पर अभिमान जरा-सा भी नहीं है। अमेरिका से फाइनैंस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आया है। हजारों लड़कियाँ मर मिटें, पर मज़ाल है किसी की ओर दृष्टि उठाकर भी देखा हो...... पर तेरे साथ वह क्यों इतना रूखा है, समझ में नहीं आता।“

”मेरे साथ ही क्यों, वे तो हर लड़की को एक्सपोज़ करने की तमन्ना रखते हैं।“ कुछ रोष से अंजू ने कहा।

”तब ज़रूर उसके जीवन में कुछ ऐसा घटा है जिसकी वजह से वह लड़कियों से चिढ़ता है। अंजू, क्या तू पता कर सकती है?“ मालती सिन्हा की उत्सुक दृष्टि अंजू के मुख पर गड़ गई।

”सॉरी, यह काम करना मेरे वश का नहीं। अब कुछ खिलाएँगी भी या बस सुजय-पुराण ही सुनना पडे़गा?“

”ओह, मैं तो सचमुच भूल ही गई थी। बोल वेज, नान-वेज क्या लेगी? जानती है, यहाँ दस रूपयों में इतनी ढेर सारी सब्जी मिलती है कि पूरा घर खा ले। अगर फ़िश पसन्द है तो वही मॅंगाती हूँ, बीस रूपयों में हम दोनों का पूरा हो जाएगा।“

”कोई वेज-डिश ही मॅंगा लें, आज फ़िश का मन नहीं कर रहा है।“

खाना खाकर गेस्ट हाउस की ओर जाती अंजू भी कोवलम के सौन्दर्य का लोहा मान चुकी थी।

आते समय पूनम भाभी ने गलत नही कहा था, ‘यहाँ कोई भी खो सकता है। जी चाहता है यहाँ से कभी न जाऊं।
 ”आशीष हर साल जाड़ों में एक महीना इसी सागर-तट, पर बिताते थे। कहा करते थे मुक्त सागर का सौन्दर्य अनोखा होता है, उसे चित्र में समेट लेना आसान नहीं है। अब वहाँ बर्फ जमे सागर-तट, इस तट की याद नहीं दिलाते होंगे?“

”सिर्फ सागर-तट ही क्यों, ठंडे देश की नैन्सी क्या हमारी जीवन्त मालती दीदी की बराबरी कर पाती होंगी? जरूर पछताते होंगे, आशीष जी।“

”अब पछताने न पछताने का कोई अर्थ नहीं रह गया है ,अंजू। सिन्हा साहब शायद आशीष की तुलना में सामान्य ठहरें, पर उनसे जो सम्मान पाया है वही मेरी निधि है।“

दूसरी सुबह उत्साहित मालती जी ने अंजू को बहुत जल्दी उठा दिया -
 ”देख अंजू, इस समय सागर कितना सुन्दर लग रहा है। चल आज सागर-स्नान का मजा लेंगे।“

”पर हमारे पास स्वीमिंग कॉस्ट्यूम कहाँ है?“

”अरे छोड़ अपनी कॉस्ट्यूम को, सलवार कुर्ता पहने हैं,  इसी के साथ नहा लेंगे.....।“

मालती जी के उत्साह से अंजू भी उत्साहित हो उठी, रात का अवसाद न जाने कहाँ तिरोहित हो गया। पूरी रात अपराध-बोध ने अंजू को सोने नहीं दिया था। किसी का अपमान करना उसने कभी जाना ही नहीं था, पर कल अनजाने ही वह सुजय का अपमान कर गई थी। अपने व्यवहार को वह किसी तरह भी जस्टीफ़ाई नहीं कर पाई थी।

ऊपर खिड़की से झाँकती अंजू को नीचे लहराता सागर आमंत्रित करता-सा लगा। एक कप चाय पी दोनों नीचे उतर आईं। अपने स्थूल शरीर के बावजूद मालती सिन्हा आसानी से नीचे उतर आई थीं।

”सागर तल को नीचा दिखाती, दूर ऊंची खड़ी गर्वित पहाड़ियों के शिखर चूर-चूर कर ,सागर ने इनका अभिमान तोड़ दिया है न, अंजू?“

”आपके साथ रह आपके और कितने गुणों से परिचित होना पडे़गा मालती दी? अभी तक दार्शनिक ही थीं, अब कवयित्री के गुण भी दिख रहे हैं।

”तेरे साथ तो कोई भी कवि बन जाए, पर एक बात बता अंजू, सुजय से तू इतना क्यों चिढ़ती है।?“

”अब आज तो मूड ठीक ही रहने दें शायद हम दोनो के ग्रह नहीं मिलते बस।“

”कहे तो ग्रह मिलवा दूँ, अच्छी ज्योतिषी भी हूँ।“ मालती जी हौले से मुस्कराई थीं।

”छिः, आप तो बस........।“

पाँव तले ठंडे पानी का स्पर्श होते ही अंजू पुलक उठी।

”वाह, मजा आ गया, मैं तो सोचती हूँ ‘गोदावरी’ छोड़ यहीं आ जाऊं।“

”ठीक है, कल ही तेरा सामान उठा लाएँगे। तू नहीं जानती अंजू,  तेरे साथ मैं अपने सारे दुख भूल जाती हूँ, पर तू कभी-कभी बेहद खो जाती है, अंजू......... क्या वे बातें मुझे नहीं बताएगी?“

”टूटी चीज बार-बार देखने से क्या फ़ायदा, मालती दी। दोहराने से दुख ही तो बढ़ता है।“

”किसी से कहकर दुख हल्का भी तो हो जाता है।“

”फिर कभी ,मालती दी।“

मालती जी बच्चों-सी उत्साहित थीं। सलवार-कमीज पानी में भीग उनकी काया से चिपक गई थीं, पर वे निश्चिन्त सागर-स्नान का मजा ले रही थी। अंजू बार-बार कपड़े निचोड़ रही थी। मालती जी हॅंस पड़ी थीं-
”अरे यहाँ कोई किसी को नहीं देखता। जानती है दो साल पहले गोआ-तट पर नंगे विदेशियों को फुटबाल खेलते देख मैं तो आँखें भी न उठा सकी थी, दो दिन बाद सब सामान्य-सा लगा था।“

”अब चलें मालती दी, भूख लग आई है।“

”ब्रेकफास्ट में क्या लेगी? यहाँ हर तरह का ब्रेकफास्ट उपलब्ध है। आलू के पराठे खाएगी?“

”आलू के पराठे यहाँ?“

”हाँ, वह सामने इस्माइल का रेस्ट्राँ है न, वह नार्थ इंडियन डिशेज का एक्सपर्ट है। चल वहीं उसके होटेल में कपड़े चेंज भी कर लेंगे।“

मालती सिन्हा को देखते ही इस्माइल आगे बढ़ आया।

”वेलकम, मैडम। आज खाने में क्या स्पेशल चाहिए?“

”पहले तो हमें एक बाथरूम- अटैच्ड रूम दो, हम कपड़े बदल लें, तब आलू के पराठे और अपना इमली वाला मिर्ची का अचार तैयार रखना।“

”ओ के मैडम, हफ़ीज़, मैडम को फिफ्टी टू में ले जा फटाफट।“

रेस्ट्राँ के पीछे बने कमरों में विदेशी टूरिस्टों की भीड़ थी। मालती दी जैसे कोवलम की एक-एक बात से परिचित थीं। बाथरूम में शॉवर के नीचे खड़ी अंजू, ठंडे पानी की बौछार में भीगती रही।
मालती जी ने द्वार पर दस्तक दी - ”ऐ अंजू, क्या सो गई, मुझे भी चेन्ज करना है, जल्दी कर।“

”सॉरी दीदी, अभी निकली।“

तौलिये से भीगे बाल सुखाती अंजू जल्दी ही बाहर आ गई थी। बालों से गिरती छोटी-छोटी बूंदें माथे पर बिखर आई थीं।

”वाह, क्या रूप पाया है। सच कह, ऐसे रूप के साथ तू आज तक कुंवारी कैसे रह गई ,अंजू?“

”आप तो हद कर देती हैं, मालती दी।“ मालती सिन्हा की मुग्ध दृष्टि पर अंजू लजा आई।

आलू के पराठे परोसता इस्माइल मालती दी से चुहल करता था रहा था-
 ”आशीष साहब तंदूरी चिकन खाता था और दीदी आलू का पराठा। साहब शिकायत करता था-‘इस्माइल, तुम दीदी के पराठे में ज्यादा घी डालता है, दीदी मोटा हो जाएगा तो उन्हें इधर ही छोड़ जाएगा।’ दीदी तो सचमुच मोटा हो गया अब बताओ दीदी, साहब तुमको छोड़ा या नहीं?“

मालती का चेहरा पीला पड़ गया। पराठे का ग्रास जैसे गले में अटक गया था।

”इस्माइल, थोड़ा पानी मिलेगा?“ अंजू ने बात टालनी चाही।

”एक बात बता अंजू, मुझे इस रूप में देख क्या आशीष मुझसे नफरत करेंगे? जानती है उस समय तुझसे भी एक-आध किलो कम वजन रहा होगा मेरा।“ मालती जी जैसे कहीं खो गई।

”छिः मालती दी, आप भी किन ख्यालों में खो गई हैं। प्यार क्या सिर्फ़ शरीर से होता है?  प्यार तो आत्माओं का मिलन होता है, वर्ना क्या कोई बिना किसी बात या कारण के सगाई तोड़ सकता है?“

”किसकी बात कर रही है, अंजू?  किसने सगाई तोड़ दी है?“

”किसी ने नहीं,  मैंने तो एक उदाहरण-भर दिया था ,मालती दी। अब अगर आपकी भूख नहीं रही तो चलते हैं।“

”नहीं-नहीं......... तूने तो आधा पराठा भी नहीं खाया, ये अचार चखा तूने?“

नारियल के पेड़ के नीचे पड़ी केन की कुर्सियों पर बैठी अंजू और मालती जी अपने-अपने ख्यालों में खो गई थीं। सागर-तट पर तैनात सुरक्षा गार्ड, सागर स्नान का मजा ले रहे पर्यटकों को, सीटियाँ बजा सतर्क कर रहे थें जिधर सागर का जल बढ़ रहा था, वहाँ से हटने के लिए सीटियों के साथ-साथ हाथ से भी संकेत कर निर्देश दे रहे थे।

”पहले तो ये गार्ड यहाँ ड्यूटी नहीं देते थे, इस्माइल?“

इस्माइल के हाथ से पाइन ऐपल जूस लेती मालती दी ने पूछा।

”दो बरस पहले एक ट्रेजेडी हो गया था, तभी से ये गार्ड लोग इधर ड्यूटी करता है, दीदी साहेब।“

”कैसी ट्रेजेडी, इस्माइल?“

”वो सामने रॉक देखता है न, दीदी?  याद है वहाँ बैठ आशीष साहब ने एक पेटिंग खींचा था..........“

”हाँ इस्माइल, सब याद है....... तब ये पहाड़ी पानी में इतनी डूबी नहीं थी...... पूरे चार दिन आशीष ने वहाँ बिताए थे।“

”दो बरस पहले दिल्ली से एक साहब शादी बनाकर आया था। अपनी वाइफ़ को उस रॉक पर खडे़ होने को बोल, वह फोटो खींच रहा था तभी एक जोर का वेव आया और उसकी वाइफ़ को बहा ले गया.....। बेचारा पानी के साथ उसकी फोटो लेना माँगता था-पानी उसकी वाइफ़ को ही ले गया।“

”ओह माई गॉड, फिर क्या हुआ? उसे बचाया जा सका या नहीं, इस्माइल?“ अंजू डर गई।

”बचाने को उस टाइम कोई नहीं था, फिशरमैन तो मार्निग में इधर रहता है, शाम को वहाँ कौन था? वह साहब चिल्लाता रहा। डेड बॉडी भी नहीं मिला उसका। बस तब से ये सिक्यूरिटी गार्ड की ड्यूटी लगती है और उस रॉक पर जाना एकदम मना है।“

”आज न जाने क्या सुनना पड़े। चल अंजू ,गेस्ट-हाउस ही चलते हैं।“

उदास मन अंजू और मालती जी गेस्ट हाउस चली गई थीं।

चार

दूसरे दिन आयोजकों की और से त्रिवेन्द्रम की प्रमुख फ़ैक्टरीज दिखाने का कार्यक्रम बनाया गया था। किन्हीं मिस्टर खन्ना की ओर से डेलीगेट्स के लंच के लिए त्रिवेन्द्रम के नामी होटल में बुकिंग कराई गई थी। मालती सिन्हा प्रसन्न थीं।

”इस बार की कॉन्फ्रेंस सचमुच एन्ज्वॉय की है, पहले तो बस हाल में बैठ, बोरिंग लेक्चर ही सुनने पड़ते थे। मैं तो कहूँगी हर साल कॉन्फ्रेंस यहीं ऑरगेनाइज की जाए।“
”पर मैं तो इसका पक्का विरोध ही करूँगी, बेचारे सिन्हा साहब घर में अकेले रहें और आप यहाँ एन्ज्वॉय करें, मुझे मंजूर नहीं।“

”वाह, यह भली कही, दीदी मैं हूँ और हमदर्दी सिन्हा साहब से। अरे, उन्हें अपनी बेटी इतनी प्यारी है कि उसके रहते उन्हें अकेलेपन का एहसास भी नहीं होता।“

”कितनी बड़ी बिटिया है, दीदी? उसकी जरा भी चिन्ता नहीं है?“

”शुरू से ही वह अपने पापा और दादी की दुलारी है। इस मामले में मैं लक्की रही, वर्ना कई कामकाजी स्त्रियों को बच्चों के कारण जॉब छोड़ना पड़ जाता है।“

”आपसे उसका लगाव कम है, इससे दुख नहीं होता, दीदी?“

”सच कहूँ अंजू, कभी जी चाहता है उसे अपने से लिपटा, अपने को भूल जाऊं, पर ऐसा हो नहीं पाता..........।“

”न जाने क्यों वह मुझे आशीष की याद दिलाती है। उसी की तरह मीनू को भी पेंटिंग का शौक है। आँखों में वैसे ही सपने...... न जाने क्या सिमिलैरिटी है कि उसके पास जो, मैं खो जाती हूं........।“

”ऐसी बेकार की बातें सोचनी भी नहीं चाहिए, दीदी, जो तुम्हारे अस्तित्व को नकार कर चला गया, उसके प्रति मोह रखना क्या ठीक है?“

”तू क्या अपने मोह-पाश को तोड़ सकी है, अंजू? यह बात इतनी आसान होती तो क्यों मृग-तृष्णा के पीछे कोई भागता?“

”जिस दिन किसी और का वरण कर लूँगी-मोह-पाश को तार-तार कर दूँगी।“ दृढ़ता से अपनी बात कह अंजू ने होंठ भींच लिए थे।

”यह बात तो बाद में पूछूंगी......। शायद तू ऐसा कर सके, अंजू। मैं भी कोशिश तो करती हूँ, पर अनजाने ही आशीष याद आने लग जाते हैं।“

”जो चीज नहीं मिल पातीं उसके प्रति आकर्षण ज्यादा ही होता है, भले ही प्राप्य वस्तु उससे हजार गुना ज्यादा अच्छी हो।“

”तू कितनी समझदार है, अंजू? तू जिसकी जीवन-साथी बनेगी वह बहुत भाग्यवान होगा।“

”सिन्हा साहब भी कम भाग्यवान नहीं हैं, जिन्हें हमारी मालती दी मिली हैं।“

”कल मेरा प्रेजेण्टेशन है, अभी से नर्वस हूँ, और तू मेरे गुण गाए जा रही है।“

”अरे आप बेकार डर रही हैं,  देखिएगा आपका प्रेजेण्टेशन ए वन होगा।“

”कल डर इसलिए और लग रहा है क्योंकि कल सुजय स्पेशलिस्ट है। तू नहीं जानती वह कितना बड़ा विद्धान है। कहीं कुछ पूछ बैठा और जवाब न दे पाई तो?“

”आप भी मालती दी, कमाल करती हैं, जवाब क्यों नहीं दे पाएँगी। अपने को अंडर-एस्टीमेट करना तो कोई आपसे सीखे।"

”मैडम, कार वेट कर रही है। लंच के लिए सागर होटल चलना है।“ एक वालंटियर ने आकर नम्रता से उनकी बातों में बाधा डाली।



होटल सागर की भव्य इमारत आकाश छूती लग रही थी। राजसी सोफा-सेट, कार्पेट, शैंडेलियर सभी कुछ भव्य था। पीछे लगे शीशे के पार फ़ाउंटेन चल रहा था। फ़ाउंटेन के नीचे तरह-तरह के पेड़-पौधे अद्भुत दृश्य उपस्थित कर रहे थे। शीतल पेय सर्व किया जा चुका था, पुरूष-वर्ग ठंडी बीयर के ग्लासों के साथ बातों में व्यस्त थे।

मालती सिन्हा, अंजू, नम्रता नागपाल, दीपा गांगुली, अर्चना सब एक जगह सिमट आई थीं।

”आज  हमारे लंच का होस्ट कौन है ,मालती दी? इस तरह के प्रोग्राम से सेशन्स का बोरडम दूर हो जाता है न।" नम्रता चहकी।

”पता नहीं आज का होस्ट कौन है, पर उसके लिए ज्यादा उत्सुकता ठीक नहीं, मेरिड है वह ,नम्रता।“

”छिः मिसेज सिन्हा आप तो मजाक की हद कर देती हैं, क्या मैं यहाँ मैच खोजने आई हूँ?“

सब हॅंस पड़े। तभी दीपा गांगुली ने इशारा किया- ”वो देखो, लगता है आज के होस्ट आ गए।“

पीछे मुड़कर देखती अंजू के चेहरे का रंग बदल गया। कीमती सूट में विनीत का व्यक्तित्व और निखर आया था। उसके साथ चल रही युवती क्या विनीत की पत्नी हो सकती थी? इतना गहरा रंग, उस पर मेकअप की पर्ते उसके चहरे को अजीब बना रही थीं। कीमती साड़ी और जेवर भी उसके शरीर पर जैसे अपनी आभा खो बैठे थे।

”हाय राम, प्रिन्स चार्मिग के साथ नज़र का टीका होना क्या ज़रूरी है?“ नम्रता मुस्करा पड़ी।

आयोजक ने आगे बढ़ विनीत का स्वागत किया। सबसे परिचय प्राप्त करते विनीत के चेहरे पर मंद मुस्कान तैर रही थी। उसकी पत्नी को आयोजक दल का एक व्यक्ति महिलाओं की ओर ले आया था।

”मैडम खन्ना ........ हमारी आज की मेजबान हैं। ये हैं मालती सिन्हा...... नम्रता नागपाल.......“

सबके अभिवादन ग्रहण करती मिसेज खन्ना पास पड़े सोफे पर बैठ गई। दूसरी ओर से चलकर विनीत महिलाओं के सामने आ खड़ा हुआ। हाथ में पकड़ा ग्लास कहीं रखने जाने के बहाने, अंजू पीठ फेर आगे चल दी। दिल जोरों से धड़क रहा था। अपनी ओर से काफ़ी देर लगा, वापिस आती अंजू को आयोजक ने घेर लिया।

”वाह मिस मेहरोत्रा, आप तो छूट ही गई। सर, ये हैं मिस अंजलि मेहरोत्रा, परसों इनका प्रेजेण्टेशन था, बहुत बढ़िया रहा। अंजलि जी, आज के हमारे होस्ट मिस्टर विनीत खन्ना............।“

”हलो अंजू, कब पहुँची? मुझे इन्फ़ार्म कर देतीं, कहाँ ठहरी हो?“

उत्तर में अंजू का मौन बहुत जोरों से गूँज उठा था।

”वाह ! सर आपको जानते हैं, हमें पता ही नहीं था ........ लीजिए आप लोग बातें करें, मैं अभी आया।“

आयोजक के हटने के साथ ही अंजू भी विनीत को अकेला खड़ा छोड़ मालती जी की ओर बढ़ गई।
”मालती दी, मैं वापिस होटल जाना चाहती हूँ......।“

”क्या बात है अंजू, तेरा चेहरा इतना उड़ा हुआ क्यों है? चल मैं भी चलती हूँ।“

”न ....... न........... आप यहीं रहें, किसी से कुछ कहने की जरूरत नहीं है, नीचे टैक्सी लेकर चली जाऊंगी। प्लीज डोंट मेक अ फ़स आफ इट।“

मालती सिन्हा को और कुछ कहने का मौका दिए बिना, अंजू तेजी से रिसेप्शन की ओर चल दी थी।

”कैन आई गिव यू अ लिफ्ट?“ सुजय शायद अंजू के साथ ही बाहर आ गया था।

”नो, थैंक्स.......।“

”लेकिन मैं तो आपके लिए ही लंच छोड़ आया हूँ।“

”किसने कहा था, आप लंच न लें, प्लीज गो एंड हैव योर लंच एंड थैंक्स फ़ॉर दी सेक्रीफ़ाइस.......।“

”जब तक मेरे सवाल का जवाब नहीं मिलेगा मैं आपको छोड़ने वाला नहीं ,मिस मेहरोत्रा।“

”मुझे आपके किसी सवाल का जवाब नहीं देना है। प्लीज लीव मी अलोन।“ अंजू के तेजी से बढ़ते कदमों के साथ सुजय भी रिसेप्शन से बाहर आ गया था। द्वार पर खड़े संतरी ने शालीनता से द्वार खोल, कार का नम्बर पुकारा।

”टैक्सी प्लीज......।“ अंजू ने संतरी से कहा।

”नहीं, आप मेरे साथ चल रही हैं।“ अंजू के अनुरोध पर दृढ़ता से अपनी बात कहते सुजय ने संजरी को टैक्सी न बुलाने का इशारा कर दिया था।

पल-भर में सुजय की कार होटल-पोर्टिको में आ खड़ी हुई। तत्परता से उतरे वर्दीधारी चालक ने सुजय के लिए कार का पिछला दरवाजा खोला।

”आइए.......।“ सुजय ने अंजू को निमंत्रण दिया।

”नो थैंक्स.........।“

”डू यू वांट टू क्रिएट ए सीन, मिस? चलिए देर हो रही है। वैसे मिस्टर खन्ना का लंच लेना है तो आराम से रूक सकती हैं।“

रूकती-रूकती अंजू न जाने क्या सोच कार में बैठ गई थी।

”परिवेश ...........।“

स्वामी का आदेश पाते ही चालक ने कार की गति बढ़ा दी।

”आई वांट टु गो टु माई होटेल ओनली.........।“

”डोंट वरी, यू विल रीच देयर, बट फ़ॉर दि टाइम बींग कुड यू कीप क्वाइट प्लीज?“

खिसियाई अंजू कार-मिरर के बाहर ताकती रह गई थी। एयर कंडीशण्ड कार में बंद शीशे को खोलने की मूर्खता कर, चालक की दृष्टि में उपहास-पात्री ही बनना था। उस ठंडे वातावरण में भी अंजू का पारा ऊपर ही चढ़ता जा रहा था।

भारतीय कलाकृतियों से अलंकृत ‘परिवेश’ सचमुच दक्षिण भारत का सात्त्विक परिवेश प्रस्तुत कर रहा था। बड़े-बड़े तैल चित्र, केन का फर्नीचर, चटाइयों से सज्जित दीवारें, लैम्पों से निकलती हल्की रोशनी के साथ विशुद्ध भारतीय वाद्यों की धुन पर अंजू मुग्ध हो उठी ।

‘परिवेश’ का सभी स्टाफ सुजय को पहचानता था। एकान्त केबिन में सुजय अंजू के ठीक सामने बैठा था। कुछ ही देर में वेटर दो थम्स- अप रख गया।

" ऑर्डर सर?“

”अपना स्पेशल लंच लाइए।“

”ओ के “, विनीत भाव से सिर झुका वेटर चला गया था।

”आपने मिस्टर खन्ना को क्यों नहीं पहचाना, मिस मेहरोत्रा?“

”इट्स नन ऑफ योर बिजनेस ,सर।“ अंजू के शब्दों में व्यंग्य घुल आया था।

”इट्स वेरी मच माई बिजनेस, जानते-बूझते किसी अपने को न पहचानना कितना तकलीफदेह हो सकता है, पता है आपको?“ सुजय के उस स्वर पर अंजू चौंक गई।

”अगर कहूँ मैंने इसे भोगा है तो?“

”इमपॉसिबिल ......एक बार उस तकलीफ़ को भोग, दुबारा उसे कोई दोहरा ही नहीं सकता......।“

”मैं किसी विनीत खन्ना को नहीं जानती..............।“

”यह झूठ है..... विनीत खन्ना आपके बहुत क्लोज था।“

”प्लीज मिस्टर कुमार, अपनी निजी जिन्दगी में इंटरफ़ियर करने की मैंने आपको इजाज़त नहीं दी है।“

”आप नहीं जानतीं आपके सिर्फ न पहचानने से उसकी पूरी जिन्दगी बदल सकती है।“
"जो स्वयं पूरा बदल गया,उसकी ज़िंदगी मे अब बदलने को रह ही क्या गया है?

”हो सकता है इसमें गलती आपकी हो वर्ना..........।“

”निश्चय ही पुरूष हैं आप, उसी का तो पक्ष लेंगे।“ अंजू जैसे उदास हो गई थी।

”आई एम सॉरी, आपकी फीलिंग्स हर्ट करने का मेरा कोई इरादा नहीं था, पर आज विनीत खन्ना के आपकी ओर बढ़ते कदम, आपने जैसे रोक दिए.......... उसने मुझे कोई पुरानी बात याद दिला दी थी।“

”मैं कभी एक विनीत मेहता को जानती थी, विनीत मेहता विनीत खन्ना कैसे बन सकता है, पर शायद गलत कह रही हूँ, मैंने विनीत मेहता को ही कब जाना था?“ अंजू जैसे अपने-आप से बातें कर रही थी।

लंच सजाकर वेटर चला गया था। निःशब्द सुजय डोंगे उठाकर अंजू को थमाता गया। बिना प्रतिवाद किए अंजू स्वीकार करती गई, पर खाने के नाम पर जैसे दोनों ही की भूख खत्म हो चुकी थी।

”आपके घर में कौन-कौन हैं, मिस मेहरोत्रा?“

”माँ, भाई, भाभी......... पापा को जरूर होना था, पर वह दो वर्ष पूर्व हमें छोड़ गए ..... दो बड़ी बहिने हैं-अपने-अपने घरों में......।“

”फिर विवाह के विषय में नहीं सोचा ,अंजलि जी?“

”नहीं सोचूंगीं, ऐसा आपसे किसने कहा ,मिस्टर कुमार? एक बात जान सकती हूँ, मैंने आपको कौन-सी बात याद दिला दी थी?“ अंजू के उत्सुक नयन सुजय के मुख पर गड़ गए थे।

”जान जाएँगी....।“ संक्षिप्त उत्तर दे सुजय ने भोजन की थाली परे सरका दी ।

वेटर फिर हाजिर हुआ था।

”स्वीट डिश मैडम?“

”क्या लेंगी...........?“

”कुछ नहीं.......।“

”कडुवाहट भुला, हमें मिठास के साथ अलग होना चाहिए न?“ दो टूटी-फ्रूटी........।“

”मुझे प्लेन स्ट्राबेरी चाहिए, टूटी-फ्रूटी नाम से न जाने क्यों लगता है, सब कुछ टूट गया है।“

अंजू की उस व्याख्या पर सुजय हॅंस पड़ा।

”कभी आप इतनी मैच्योर लगती हैं कि डर लगता है, कभी एकदम बच्ची बन जाती हैं।“

”बच्ची तो किसी तरह नहीं हूँ, पर कुछ शब्द मुझे अजीब-से अहसास कराते है, उनमे से यह एक है। आपके साथ कभी ऐसा नहीं हुआ?"-
"आपको देखकर ऐसा लगा जैसे बहुत पहले से जानता रहा हूं, जबकि सच यह है, हम पहले कभी नहीं मिले।“

”इसके बावजूद जब पहली बार आपके साथ लिफ्ट ली..........।“

”उस बात को जाने दीजिए। समझ लीजिए गलती हो गई। अब तो हम शत्रु नहीं हैं न?“

”इस जीवन में मेरा कोई शत्रु नहीं है, मिस्टर कुमार।“

”विनीत खन्ना भी नही?“

”आप बार-बार विनीत खन्ना का नाम क्यों ला रहे हैं?  मैंने कहा न मैं किसी विनीत खन्ना को नहीं जानती, मेरा मूड खराब करके ही शायद आपको आनंद मिले तो लेते रहिए यह नाम......... ऐण्ड थैंक्स, फ़ॉर दि हास्पिटैलिटी।“

आधा खाया अइसक्रीम छोड़ अंजू उठ खड़ी हुई ।

”सॉरी...... न जाने क्यों मैं आपको हर्ट कर जाता हूँ।“ सुजय सोच में पड़ गया।

गोदावरी के पोर्टिको में कार रूकते ही अंजू तेजी से उतर, लिफ्ट की ओर बढ़ गई । पीछे आ रहे सुजय को उसके साथ पहुँचने के लिए काफ़ी तेज कदम बढ़ाने पड़े थे। फोर्थ फ्लोर पर लिफ्ट पहुँच गई । लिफ्ट से उतरते सुजय ने अंजू का हाथ हल्के से पकड़ कर कहा-
”अगर माफ़ कर सकें तो आभारी रहूँगा आपका दिल दुखाने की सोच भी नहीं सकता, शायद मैं गलत था।“

अपना हाथ छुड़ाती अंजू कुछ भी नहीं कह सकी। सुजय फिर रूका नहीं, वापिस मुड़, उतर गया।

कमरे में पहुंच, सीधे शॉवर के नीचे जा खडे़ होने की इच्छा हो आई । तौलिये से भीगे बाल पोंछती अंजू फिर विनीत में खो गई।

अच्छा हुआ वह विनीत की पत्नी नहीं बनी। धन-सम्पत्ति के लिए जो अपना नाम भी बेच दे, वह क्या पुरूष कहलाने योग्य है? और उसकी वह पत्नी...... क्या उसे देखते विनीत ने अपनी आँखें बन्द कर ली थीं? और यह सुजय.........लगता है कहीं कुछ है जो उसे मथता रहता है। शाहीन उसकी कितनी तारीफ़ करती है।

अचानक अंजू को शाहीन बेतरह याद आने लगी, वह होती तो उसका मन बदल जाता। अभी उसके आने में दो दिन बाकी थे। तभी फोन की घंटी जोरों से धनधना उठी।

”हलो ......हाँ, मैं अंजू बोल रही हूँ.... कौन पूनम भाभी... हाँ-हाँ, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, खूब एन्ज्वॉय कर रही हूँ। कल ही लेटर डाला है। अम्मा से कहना परेशान न हों, बिल्कुल ठीक हूँ......।“

”नहीं ..... मेरी किसी से मुलाकात नहीं हुई अच्छा भाभी, कोई डोर-बेल बजा रहा हैं, फिर कॉल करूँगी.... हाँ-हाँ, पूरे हाल लिखे हैं.......ओ के बाय.......।“

रिसीवर क्रेडल पर रख, अंजू ने दरवाजे की लैब खोली थी। सामने खड़े विनीत को देख अंजू चैंक गई थी।

”मैं अन्दर आ सकता हूँ?“

”क्यों आना चाहते हैं?“

”माफी माँगने का अधिकार भी नहीं दोगी, अंजू?“

”आई एम अंजलि मेहरोत्रा.........।“

”इतनी कठोर न बनो, अंजू।“

विनीत जैसे गिड़गिड़ा उठा।

”मिस्टर खन्ना, अगर आपको कुछ कहना है तो आइए। विजिटर्स-रूम में चलते हैं।“

”नहीं अंजू, वहाँ जाने की जरूरत नहीं, मैंने जो गलती की उस अपराध का दंड भोग रहा हूँ। मेरी पत्नी मुझे हमेशा हीनता का बोध कराती रहती है। मेरा सब कुछ उसके कारण है, जैसे मैं निरा अकर्मण्य व्यक्ति हूँ। क्या यह दंड मेरे लिए काफी नहीं, अंजू?“

”मिस्टर खन्ना, आपकी व्यक्तिगत जिन्दगी में मेरी जरा सी  भी रूचि नहीं है। अच्छा हो आप ये बातें अपने किसी हमदर्द से करें।“

”तुम ठीक कह रही हो अंजू, मैं इसी योग्य हूँ। काश, मैंने तुम्हारे साथ अपना जीवन बाँधा होता!

”मिस्टर खन्ना, आप मेरे लिए एक अपरिचित व्यक्ति हैं, आपके साथ बॅंधने का सवाल ही नहीं उठता। हाँ, अगर कभी आपको ऑफिस अकाउंट की ऑडिट-चेकिंग की जरूरत हो तो मेरे रेट्स पता कर लीजिएगा।“

”तुम, मुझे अपने विनीत को नहीं जानतीं, अंजू?“

”किस विनीत की बात कर रहे हैं, विनीत मेहता या विनीत खन्ना?“ न चाहते भी अंजू के स्वर में व्यंग्य घुल आया।

”फादर-इन-ला का बिजनेस उन्हीं के नाम से चलता है, इसीलिए लोग मुझे भी खन्ना कहने लगे हैं। पापा का कहना हैं मैं उनके बेटे जैसा ही तो हूँ, पर मैं तो आज भी तुम्हारा विनीत मेहता हूँ, अंजू।“

”दिस इज़ लिमिट मिस्टर खन्ना, फ़ॉर हेवन्स सेक, आप वापिस चले जाएँ। मेरी जिन्दगी से विनीत मेहता का नाम कब का मिट चुका है- आपको अपना नया नाम-नया जीवन मुबारक हो मिस्टर खन्ना।“

दरवाजे के बाहर खड़े विनीत के मुँह पर अपने कमरे का द्वार अंजू ने जोरों से बन्द कर दिया।

अंजू का पूरा शरीर थरथरा उठा था। दुस्साहस की भी कोई सीमा होती है। पत्नी को वहाँ छोड़, मेरे पास भागा आया है। आँखें आक्रोश से जल उठीं , अपमान के आँसू छलछला आए। अंजू को ठंडे पानी से आँखें धोने की जरूरत पड़ गई।

एक साँस मे पानी का ग्लास गले से नीचे उतार कर भी जैसे अन्तर में आग लग रही थी। कहाँ जाए अंजू, यहाँ कोई तो अपना नहीं... वक्त का अंदाज किए बिना थोड़ी देर में अंजू रिसेप्शन पर आई थी।

”अगर मुझसे कोई मिलने आए तो पहले मुझसे पूछ लीजिए, बिना मेरी परमीशन किसी को रूम में न भेजें।“

”आई एम सॉरी मैम.... एनी प्रोब्लेम?  इन फ़ैक्ट, मैं आपको इन्फ़ॉर्म कर ही रहा था, पर मिस्टर खन्ना को टोकना कठिन है...... यू नो ही इज ए बिग शॉट।“

”आई अंडरस्टैंड, एनी हाओ, फ्यूचर के लिए प्लीज, याद रखें।“

”श्योर मैम।“

”यहाँ से सी-बीच के लिए कैसे जाना होगा?“

”होटल गेट से राइट टर्न ले लें, हार्डली टेन मिनट्स वाक पर सी-बीच है,पर अभी  इस टाइम उधर बहुत हॉट होगा। ईवनिंग में...............।“

”थैंक्स ।“

अंजू बाहर आ गई। उसके मन के कोलाहल को सागर ही समझ सकता था।

पाँच


अजीब मनोदशा में अंजू होटल से निकल पड़ी थी। सिर पर चमक रहे सूरज का ताप जैसे उसे छू भी न गया था। दस की जगह पन्द्रह मिनट पैदल चलने के बाद अंजू को दूर लहराता सागर नजर आया। किनारे नारियल के हरे-हरे पेड़ आकर्षक दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे, पर उस समय कुछ सोचने-समझने की जैसे शक्ति ही शेष नहीं रह गई थी।

थके कदमों से चलती अंजू ने समुद्र के खारे पानी में पाँव डाल दिए। स्कूल में जिस दिन दौड़ हुआ करती, अंजू घर आकर निढाल पड़ जाया करती।

‘अम्मा पाँव में बहुत दर्द हो रहा है।’

‘किसने कहा था तुझसे दौड़ लगाने को?  डेढ़ हड्डी का शरीर भला एक मील दौड़ने लायक है? अब जैसा किया है वैसा भुगत।’ अम्मा झुंझला उठतीं। घर के काम भी तो ढेरों हुआ करते थे। नौकर या दाई रखने के लिए अतिरिक्त पैसों की जरूरत होती है, यह बात अंजू काफ़ी देर में समझ पाई थी।

‘उस पर बेकार नाराज क्यों हो रही हो? माला बेटी, थोड़ा नमक डालकर पानी गर्म कर दे, अंजू के पाँवों में दर्द है।’ पापा ने अंजू को हमेशा बेहद दुलार दिया था।

‘पापा तो अंजू को एकदम बिगाड़ कर रख देंगे। अब अम्मा के काम निबटाएँ या इसके लिए पानी गर्म करें।’ माला दीदी भुनभुनाती भगौने में गर्म पानी ला, पटक देती थीं-‘
"ये लो रानी साहिबा, गर्म पानी तैयार है।’

सच, पापा का बताया नुस्खा अक्सीर का काम करता था। दूसरे दिन सोकर उठती अंजू एकदम नॉर्मल होती थीं। खल-कूद में अंजू भले ही आगे न रही हो, पर पढ़ाई में उस-सा घर में कोई नहीं था।

तीन बहिनों में सबसे छोटी अंजू को अम्मा का आक्रोश और पापा का अतिशय दुलार मिला था। एक तो तीसरी बेटी उस पर साँवला रंग, अम्मा हर समय भुनभुनाती ही रहती थीं। दूसरे नम्बर पर जन्मे अतुल भइया अम्माँ और दादी के लाड़ले, आँखों के तारे थे, पर उनकी सामान्य बुद्धि उनके प्रति पापा की उदासीनता का कारण बनी थी। समझदार होने पर अंजू को अतुल भइया के प्रति बहुत सहानुभूति हो आई थी। पापा का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तिरस्कार भइया को मौन और अन्तर्मुखी बना गया था। अंजू को उनका तिरस्कार कभी-कभी बहुत चुभता था। भइया के तिरस्कार पर वह पापा से नाराज हो उठती थी। हर बार भइया का रिजल्ट, उनके अपमान का कारण बन जाता था।
 ‘पापा, आप तो भइया के पीछे ही पड़े रहते हैं, जरूरी तो नहीं जो फ़र्स्ट आए बस, वही बुद्धिमान है?’

‘तू नहीं समझेगी अंजू, यह तो कूढ़ मगज है, दिमाग में कुछ घुसता ही नहीं। क्या-क्या सपने देखे थे, पर इससे कुछ उम्मीद रखना ही बेकार है।’

अपनी बुद्धिहीनता की बात सुनते भइया बड़े जरूर हो गए, पर मन से पापा को उन्होंने शायद कभी क्षमा नहीं किया था।

‘एक बात बता अंजू, अगर उन्नति के लिए सिर्फ तेज दिमाग ही जरूरी है तो पापा क्यों अकाउण्टैट ही बन पाए?’

सचमुच अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के बावजूद पापा को उनका प्राप्य नहीं मिल सका था। ऑफिस में उन्नति के मानदंड कुछ और हुआ  करते हैं, वर्ना अति सामान्य बुद्धि वाले नागर अंकल क्या पापा को सुपरसीड कर सकते थे? उस घटना के बाद से ही पापा मानो टूट गए थे। पहला हार्ट-अटैक भी उन्हें तभी पड़ा था। हमेशा अपनी बुद्धि का गुणगान करने वाले पापा अचानक चुप पड़ गए थे। भइया तब तक एम0एस-सी0 कर चुके थे। पापा ने उनकी सर्विस के लिए सहायता की पेशकश की थी, पर भइया की ओर से उत्साह न था।  पापा झुंझला उठे थे-‘बिना सिफारिश मामूली सेकेंड क्लास को अच्छी नौकरी तो मिलने से रही। क्लर्की के लिए भी सोर्स चाहिए।"

भइया ने स्थानीय कॉलेज में लेक्चररशिप के लिए आवेदन दिया था। प्रिन्सिपल नगेन्द्र नाथ को उनमें न जाने क्या दिखा कि फ़र्स्ट क्लास उम्मीदवार की जगह भइया को नौकरी मिल गई थी। कुछ ही दिनों में भइया की मेहनत रंग लाई। आत्मविश्वास से उनका चेहरा चमकने लगा। प्राचार्य उनकी सिंसियरिटी से बेहद प्रसन्न थे। प्राचार्य के प्रिय पात्रों में भइया भी एक थे। पापा फिर भी संतुष्ट नहीं थे-
‘मास्टरी करने के लिए एम0एस-सी0 करने की जरूरत थी? सोचा था, एक लड़का है ढंग से लग जाए तो घर बन जाएगा।’

‘पापा, भइया कॉलेज में प्रोफेसर हैं, मास्टर नहीं है। अपने बल पर काँलेज में कितने लोग जॉब ले पाते हैं, कभी सोचा है आपने?’

बारहवीं में पढ़ रही अंजू तब तक भइया का दुख समझने लगी थी। अंजू के परीक्षा-परिणाम सदैव पापा को उत्साहित कर जाते।
 ‘इस लड़की ने मेरा दिमाग पाया है। देख अंजू, मैं तो घर-गृहस्थी के पचड़ों में कुछ नहीं कर पाया, पर तुझे खूब पढ़-लिखकर बड़ा ऑफीसर बनना है। मैं तो चाहता हूं मेरे ही डिपार्टमेंट में तू बड़ी अधिकारी बनकर आए ताकि सबके सामने सीना तान कर सकूं-देखो यह है मेरी बेटी..........’

पापा की उन बातों से अंजू का उत्साह बढ़ता ही जाता था। कुशाग्र बुद्धि अंजू का प्रिय विषय गणित ही था। जिस दिन उसने चार्टर्ड अकाउंटैंसी में एडमीशन का फ़ार्म भरा उस दिन से पापा अंजू का विशेष ध्यान रखने लगे थे।

‘देखो कमला, अंजू को दूध जरूर मिलना चाहिए। मेरी जगह अंजू को दूध दिया करो।’

‘वाह, भली कही, बेटी के प्यार में ऐसा दीवाना होते किसी को नहीं देखा। बेचारे अतुल पर इतना लाड़ उड़ेला होता तो कुछ फायदा भी था।’ अम्मा भुनभुनातीं।

‘क्या खाक फायदा होता? मैं तो कहता हूँ तुम्हारे ही लाड़ ने उसे निकम्मा बना दिया है।’ पापा झुंझला उठते।

‘अरे वंश तो उसी से चलना है, लाख लड़की पर प्राण न्योछावर करो, आखिर तो पराई ही कहलाएगी।’ तुलसी की माला हाथ में लिए दादी की कड़ी दृष्टि अंजू पर पड़ती।

रात में अम्मा एक कप दूध भइया को दिया करती थीं, बहुत बाद में पता लगा था, अम्मा को अपनी कसम दे, भइया ने अपने हिस्से का दूध, अंजू के नाम कर दिया था।

चार्टर्ड अकाउंटैंसी एडमीशन के सफल प्रत्याशियों में अंजू का नाम देख पापा ने पूरे ऑफिस को मिठाई खिलाई थी। उस दिन पापा का गर्वित चेहरा अंजू का श्रम सार्थक कर गया था।

शाम को एकान्त में भइया ने एक पैकेट थमाते कहा था-
‘तेरी इस सफलता के लिए तो बहुत बड़ा इनाम देना चाहिए था, पर तू तो मेरी औकात जानती ही है, पापा के सपने तू सच कर, यही मेरा आशीर्वाद है।’

‘भइया’ कहती अंजू अतुल के सीने पर सिर रखकर रो पड़ी थी।



”वाह ! क्या यहाँ खड़े-खड़े कोई खास साधना की जा रही है?“

अचानक पीछे से आई आवाज पर अंजू चैंक उठी। सुजय न जाने कहाँ से उसके पीछे आ खड़ा हुआ था।

”ओह......नहीं......बस, यूँ ही पाँव सेंक रही थी।“

”सचमुच तपते सूरज का छत्र लगाए, गर्म पानी में भी कोई यूँ आराम से खड़ा रह सकता है, देखा न होता तो विश्वास कर पाना कठिन था।“

”मेरी तो गर्म पानी में पाँव डाल, घंटों बैठने की आदत है, मिस्टर कुमार, पर आप इस समय यहाँ?“

”क्यों, सागर-तट पर आने के लिए कोई खास समय हुआ करता है? चारों ओर नजर दौड़ाइए, नारियल के पेड़ो के नीचे से लेकर चारों ओर बिखरे लोगों को गिनिए, तो गिन नहीं पाएँगी। समझ लीजिए उन्हीं कुछ लोगों में से मैं और आप भी हैं। काफ़ी है न, ये एक्सप्लेनेशन?“ स्वर में शरारत स्पष्ट थी।

”आपके एक्सप्लेनेशन से मुझे कुछ लेना-देना नहीं है, अपनी स्वतंत्रता में किसी की दखलअंदाजी मुझे पसंद नहीं, बस।“

”शायद आपको पता नहीं, पानी में टखनों तक साड़ी उठाए खड़ी आप, कितनी आँखों का आकर्षण बन चुकी है। न जाने कितने कैमरों में आपकी यह अविस्मरणीय छवि कैद हो चुकी है।“

”ओह नो।“ ऊपर कर पकड़ी साड़ी, अनायास ही हाथ से छूट, पानी में गिरते ही गीली हो गई थी। न जाने लोग क्या सोचते होंगे......। अंजू के साथ सुजय ने भी कदम बढ़ाए।

”क्या विनीत खन्ना से झगड़ा किया था या द्वार से खाली हाथ लौटाए व्यक्ति के लिए यहाँ दुख मनाने आई थीं?“

”आपकी व्यर्थ की बातों के लिए मेरे पास कोई जवाब नहीं है, मिस्टर कुमार।“

”तो आइए काम की बात हो जाए। चलिए वहाँ बैठ, ठंडा नारियल का पानी पीते है।“

”मुझे नारियल-पानी कतई पसंद नहीं।“

”तो एक ग्लास समुद्र का खारा पानी ऑफर करूँ........वैसे तो आपकी आँखों में भी आक्रोश का सागर लहरा रहा है।“

”टु हेल विद यू ,मिस्टर कुमार। किसी इन्सान को शांति से अकेला जीने का अधिकार है या नहीं?“

”अगर अकेलापन शांति दे तो जरूर है, पर कभी अकेलापन खाने को दौड़ता है, उस समय लगता है, कोई होता जिससे अपना सब कुछ बाँट पाता...........।“ सुजय अचानक बेहद गम्भीर हो आया था।

‘वह’ कोई मैं नहीं बन सकती ,मिस्टर कुमार......।

”जानता हूँ वो कमी, कभी कोई पूरी नहीं कर सकता.......।“

”फिर बेकार कोशिश क्यों? भगवान के लिए अब मेरा पीछा न करें।“

तेज कदमों से वापिस लौटी अंजू के लिए मालती सिन्हा वेट कर रही थीं।

”अरे मालती दी, आप यहाँ..........?“

”तू अचानक लंच छोड़ वापिस क्यों चली आई, अंजू? मैं परेशान थी....... क्या हुआ पूछने आ गई।“

”कुछ नहीं, बस अजीब-सी घुटन होने लगी थी.......।“

”तेरे पीछे सुजय भी चले आए थे, कुछ कहासुनी हो गई थी, अंजू?“

”नहीं दीदी, वैसी कोई बात नहीं है। चलो रूम में चलते हैं।“

कोल्ड ड्रिंक सिप करती मालती सिन्हा कुछ गम्भीर हो उठी थीं।

”इतने दिन तेरे साथ बड़े अच्छे बीत गए। चार दिन बाद हम अलग-अलग राहों पर होंगे। फिर न जाने कब मिलें।“

”क्यों आपने प्रॉमिस किया है न सिन्हा साहब और बिटिया के साथ लखनऊ आएँगी?“

”तू जल्दी से शादी कर डाल, हम बस जरूर आएँगे।“

”यानी आपके लखनऊ आगमन के लिए मुझे अपनी बलि देनी होगी?“

”बलि कैसी? माँ बनकर ही नारीत्व सार्थक है, अंजू।“

”तुम अपने नारीत्व को सार्थक कर सकी हो, मालती दी?“

”कुछ भी कह, आशीष के बाद अगर विवाह न करती तो बहुत रीती रह जाती। पति-बेटी के साथ पूर्ण तो हूँ।“

मालती सिन्हा की बात पर अंजू चुप रह गई थी।

दूसरे दिन कॉन्फ्रेंस में आए डेलीगेट्स के लिए स्थानीय पाँच सितारा होटल से डांस कम्पिटीशन के निमन्त्रण आए थे। कम्पिटीशन के बाद डिनर के लिए सभी आमन्त्रित थे।

मालती सिन्हा के साथ-साथ दीपा, नम्रता, अर्चना चहक उठीं।

”वाह मजा आ गया, हमें ये सब देखने की ओपरच्यूनिटी कहाँ मिलती है? चलेंगी न, मालती जी! दीपा विशेष उत्साहित थी।“

”क्यों नहीं, तू भी चलेगी न, अंजू?“

”अभी डिसाइड नहीं किया है।“

”सुजय, तुम तो जरूर चलोगे न? एलिजिबिल बैचलर ठहरे, शायद वहाँ कोई लाइफ-पार्टनर के लिए जंच जाए।“ पास खडे़ सुजय से मालती जी ने परिहास किया था।

”नानसेंस! नंगे जिस्मों की नुमाइश देखने में मुझे कोई इंटरेस्ट नहीं। ऐसी लड़कियाँ........ किसी धनी व्यक्ति की जेब खाली करना उन्हें खूब आता है, आई सिम्पली हेट सच थिंग्स......।“

आक्रोश के कारण सुजय का चेहरा तमतमा आया।

पास खडे़ लोग चौंककर देखने लगे। मालती सिन्हा का चेहरा स्याह पड़ गया और महिलाएँ धीमे से हट गई थीं।

सुजय तेजी से बाहर चला गया।

”मैंने ऐसी कौन-सी बात कही अंजू, जिससे सुजय इस तरह चिढ़ गया?“

”पता नहीं ,मालती दी। आप बेकार परेशान न हो, इसमें आपकी कहीं कोई गलती नहीं थी।“

उसके बाद मालती जी सहज नहीं रह सकीं। डांस कम्पिटीशन में जाने का उत्साह कपूर-सा उड़ चुका था। शाम को प्रोग्राम खत्म होने के बाद अंजू मालती जी के साथ बाहर आ रही थी कि दूर से शाहीन ने आवाज दी- ”अंजू..........।“

”अरे शानी तू? कब आई। मैं रोज तेरा इंतजार कर रही थी।“

”इसीलिए आज हम पर निगाह भी नहीं डाली?“

”मुझे क्या पता था तू आज आ रही है। सलीम भाई भी आ गए हैं क्या?“

”आने वाले तो कल थे, पर जैसे ही सुना उनकी प्यारी साली यहाँ हैं, सारा काम छोड़ दौडे़ आए हैं।“

”धत्त, शैतान की बच्ची.........।“

”अच्छा, अंजू, मैं चलती हूँ।“

”नहीं मालती दी, आज आप डिप्रेस्ड हैं, आप मेरे साथ चलेंगी।“

”नहीं वैसी कोई बात नहीं हैं, आज इतने दिनों बाद शाहीन मिली है, तुझे सुनाने के लिए ढेर-सी बातें होंगी उसके पास। मैं एकदम ठीक हूँ।“

”आर यू श्योर, मालती दी?“

”एकदम श्योर, अब कल-भर का ही तो साथ है, फिर हम कहाँ होंगे।“ मालती सिन्हा चली गई।

अंजू शाहीन के साथ उसके घर चली गई थी। अंजू ने सलीम को फोन से बुला लिया। आते ही सलीम ने अंजू को सलाम बजाया-
 ”अपनी महबूबा की प्यारी दोस्त को बन्दे का आदाब।“

”आदाब, भाईजान। वैसे ये शाहीन की बच्ची आज तक आपकी महबूबा बनी हुई है, जानकर हैरत हुई।“

”अब आप इनकी जगह ले लें तो बेशक यह हमारी महबूबा नहीं रहेंगी।“

”तुम्हारी ऐसी की तैसी, शर्म नहीं आती बीवी के सामने ऐसी बातें करते?“

”आह! यह बात तो मैं भूल ही गया था, बताइए क्या हाजिर करूँ आपकी खिदमत में?“

”होटल की सबसे लाजवाब डिशेज डिनर में और फिलहाल कोल्ड ड्रिंक्स के साथ पनीर पकौड़े ठीक है न ,अंजू?“

”तेरा हुक्म तो मानना ही होगा वर्ना कैसे बचूँगी।“

”आप भी मानती हैं न ये बात। अब सोचिए यह बंदा किस मुश्किल में जिन्दगी काट रहा है।“

”तुम्हारी तो..........।“ शाहीन ने तकिया उठा सलीम पर फेंक मारा।

वह शाम अंजू की बहुत अच्छी कटी। शाहीन और सलीम के साथ वक्त को जैसे पंख लग गया था। बहुत रात हो जाने पर शाहीन अंजू से वहीं रूकने की जिद करती हार गई, पर अंजू नहीं मानी थी। सलीम के साथ स्कूटर पर उसे भेजती शाहीन हिदायतें देती जा रही थी-
”देखो स्कूटर धीमे चलाना, अंजू को इम्प्रेस करने के लिए स्कूटर दौड़ाने की जरूरत नहीं है, समझे?“

”ठीक है भई, समझ गया। ऐतबार न हो साथ ही चली चलो। दोनों को एक साथ बिठाकर उड़ा ले जा सकता हूँ।“

”जानती हूँ, कितने पानी में हो, एक तो झेली नहीं जाती, दो की बातें करते हैं। अच्छा अंजू, कल मिलेंगे। बाय।“

रिसेप्शन काउंटर पर अंजू के लिए एक हल्का नीला लिफाफा और दूसरा पूनम भाभी का पत्र रखा था। दोनों चिट्ठियाँ ले अंजू रूम में आ गई थी।

पूनम भाभी को अंजू के बिना घर अच्छा नहीं लगता। अम्मा भी अंजू को बेहद याद कर रही हैं। पूरे घर के हालचाल लिख अन्त में एक लाइन जोड़ दी थी-विनीत से उसका सामना तो नहीं हुआ? उसके भइया का फ़ॉरेन जाने का चांस करीब पक्का हो गया है....... आदि-आदि.........। पत्र रख अंजू सोच में पड़ गई थी। काश, पापा भइया की यह सफलता देख पाते!

”हल्का नीला लिफाफा साइड टेबिल पर धर अंजू ने उस पर से ध्यान हटा लेना चाहा था। बिना खोले उसे पता था नीला रंग विनीत का फेवरिस्ट कलर था। सगाई टूटने के बाद ऐसे नीले लिफाफे पूनम भाभी ने जबरदस्ती उसके सूटकेस से निकलवा लिए थे।

‘इन्हें सहेज कर रखने से फ़ायदा? झूठ में पगे अक्षर दोहराने की कोई जरूरत नहीं, उसकी तरह उसके ये पत्र भी दगा देंगे, अंजू। उसमें जरा भी शराफ़त हुई तो तेरे पत्र भी वापिस भेज देने चाहिए वर्ना ब्लैक-मेल के न जाने कितने किस्से लड़की की जिन्दगी बर्बाद कर गए हैं।’“

‘वे ऐसे नहीं हैं भाभी।’ स्वंय उससे अपमानित होने के बावजूद अंजू के दिल में विनीत के लिए बहुत जगह थी।

‘वह कैसा है, बताने की जरूरत नहीं।’ पूनम भाभी नाराज हो उठीं।



पलंग पर लेटती अंजू की नजर फिर उसी लिफाफे पर पड़ी। दिमाग कहता था बिन पढ़े फाड़कर डस्टबिन में डाल दे अंजू, पर दिल उसके अन्दर बन्द इबारत पढ़ने को बेचैन था। टेबिल से लिफाफा उठा कुछ देर उसे हाथ में लिए रही फिर खोल डाला। विनीत की परिचित लिखाई सामने थी-अंजू..........

‘मेरी अंजू’ लिखने का तो स्वंय अधिकार खो चुका, शिकायत कैसे करूँ? देखो बिना पढ़े खत फाड़कर मत फेंक देना। फाँसी के अपराधी को भी अंतिम इच्छा व्यक्त करने की अनुमति मिलती है, पर मेरा अपराध शायद उससे भी ज्यादा है।

कल तुम्हें देख, बहुत मुश्किल से जो कुछ भुलाना चाहा था, फिर दुगनी तीव्रता से याद आ रहा है। कितने अच्छे थे वे दिन। आज इतने सुख-ऐश्वर्य के बीच करवटें बदलता, कितना अकेला छूट गया हूँ मैं। तुम्हारे साथ कितना पूर्ण पाता था अपने-आप को। तुम्हारी आँखों में उतरते मेरे सपने तुम्हारी आँखों की चमक बढ़ा जाते थे। पत्नी से प्राप्त ऐश्वर्य का स्वाद कितना फीका है, काश, तुम्हें बता पाता! मैने वो सब कुछ पा लिया है, जिसका कभी मैंने स्वप्न देखा था, पर सब कुछ पाकर भी मैंने आत्म-विश्वास, गौरव और सम्मान खो दिया है, अंजू।

सविता मेरी पत्नी कम, स्वामिनी अधिक है, यह स्वीकार करते मैं तुम्हारे प्रति किए अपराध का दंड भोग रहा हूँ, अंजू। कभी जी चाहता है वो दिन फिर वापिस आ जाते -नन्ही गौरैया-सी तुम किस कदर मुझ पर डिपेंड करती  थीं। तुम्हारी मुग्ध चमकती आँखें मेरी हर बात कैसे सराहती थीं...... मैं अन्दर से टूट चुका हूँ ,अंजू। विनीत मेहता-वह महत्वाकांक्षी युवक उसी दिन मर गया जिस दिन उसने अपना मूल्य लगाया था........इकलौती बेटी के पिता, मिस्टर खन्ना ने इतनी ऊंची बोली लगाई थी कि लगा सारे सपने अचानक एक साथ मेरी मुट्ठी में कैद हो गए हैं। आज मेरी मुट्ठी एकदम खाली है-बिल्कुल रीती है, मेरी तरह।

क्या हम आगे मिलते रह सकते हैं, अंजू? तुम्हारी दो पंक्तियाँ मेरा मनोबल बढ़ा, मुझे जीवन दे सकती हैं, अंजू।

विनीत

न चाहते हुए भी अंजू की आँखें भीग आई थीं। विनीत को उसने अपने से अधिक चाहा था, पर आज का यह पत्र क्या उसके जीवन का सत्य है? सगाई टूटने के बाद पूनम भाभी ने कहा था-
‘अंजू, मेरी बात मान, उसे अच्छी तरह समझाते हुए एक खत डाल दे। भला यह कोई गुड्डे-गुड़िया का खेल हुआ, जब जी चाहा सगाई कर ली, जब जी चाहा सगाई तोड़ दी?’

‘न भाभी, यह मैं किसी हालत में नहीं कर सकती। उससे अपने लिए भीख नहीं माँगी जाएगी मुझसे।’ आगे अंजू बोल नहीं सकी थी।

आज वही विनीत उससे दो पंक्तियों की भीख माँग रहा है, क्या करे अंजू? पूरी रात शायद जागते बीत गई थी, पर सुबह तक अंजू निर्णय ले चुकी थी। पुरूष हमेशा स्त्री की कोमल भावनाओं पर प्रहार कर, विजय पाता रहा, अब वह अपने पर विनीत की विजय नहीं होने देगी। वह विनीत का शिकार बनी नहीं रह सकती।

धीमे से चिट्ठी के छोटे-छोटे टुकड़े कर लिफाफे में बन्द कर, एक पंक्ति लिखी थी-

‘अगर यह पत्र आपकी पत्नी को भेज देती तो? अपने को दयनीय दिखाने वाले व्यक्ति को मैं कायर कहती हूँ। कायर पुरूष को किसी भी स्थिति में सम्मान दे पाना या उससे सम्बन्ध बनाना, मुझे सम्भव नहीं। अपनी नियति के निर्माता हम खुद हैं।

विनीत खन्ना के नाम लिफाफा पोस्ट कर, अंजू काफी हल्का महसूस कर रही थी। इतने दिनों से विनीत जिस तरह उस पर हावी था, आज उससे वह अपने को मुक्त महसूस कर, हल्की हो आई थी।

त्रिवेन्द्रम में आज सबका अंतिम दिन था, कल सब अपनी अलग राहों पर होंगे। आज लंच के बाद सेशन समाप्त हो जाना था। कई डेलीगेट्स अंजू को अपने-अपने कार्ड थमा रहे थे।

”आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा ,मिस मेहरोत्रा।“

”कभी हमारी ओर आएँ तो फोन-भर कर दें, आपका स्वागत रहेगा।“

”आप हमारी स्मृति में हमेशा सजीव रहेंगी, मिस मेहरोत्रा। आपका जीवन्त व्यक्तित्व भुलाना आसान नहीं है।“

सबकी बातें सुनती, कार्ड्स पर्स में धरती अंजू हौले-हौले मुस्करा रही थी। मालती सिन्हा सबसे हॅंस-हॅंस कर विदा ले रही थीं। नेहा, नम्रता, दीपा, अंजू सब एक-दूसरे से सम्पर्क बनाए रखने के वादे कर रही थीं। तभी पीछे से मालती सिन्हा ने अंजू की पीठ पर हाथ धर स्नेह से कहा था- ”सबमें मेरा भी नाम है या नहीं?“

”क्या कहती हैं ,मालती दी? आपका नाम ही क्यों, आप तो मेरे दिल में हमेशा-हमेशा बसी रहेंगी।“

”इधर आ, तुझसे कुछ कहना है।“ अंजू का हाथ पकड़ मालती जी एकान्त में ले गई।

”जानती है कल क्या हुआ?“

”क्या हुआ कैसे जानूंगी मालती दी, अन्तर्यामी तो हूँ नहीं।“ अंजू हॅंस पड़ी।

”बहुत डिप्रेस्ड मूड में होटल पहूँची थी। सोचा था बिना खाए-पिए किसी तरह रात काटूंगी। मेरे पहुँचने के तीन-चार घण्टे बाद सुजय आ पहुँचा था। आते ही पाँवों पर झुक गया-
‘मुझे माफ कर दो दीदी, आज अनायास ही आपसे ऊंचे स्वर में उल्टा-सीधा बोल गया।’“ मैं चौंक गई थी, समझाते हुए कहा था-

”ठीक है। हरएक की अपनी कोई मजबूरी होती है। शायद तुम्हारा मूड ठीक नहीं था ,जय।“

”‘मूड तो मेरा हमेशा के लिए बदल चुका है, दीदी। कभी मैं, आज का रूखा सुजय कुमार, एक खुशमिजाज, लापरवाह युवक-भर हुआ करता था। पापा की अपार सम्पत्ति से बेखबर, अपनी धुन में मस्त।“

”ऐसा क्या हो गया ,जय?“

”‘बता पाना सम्भव नहीं, अगर हो सके तो ये चंद पंक्तियाँ लिख लाया हूँ, पढ़ देखना।’“

”‘उन पंक्तियों को पढ़, मैं तो ताज्जुब में पड़ गई ,अंजू। लड़कियां भी इतनी क्रुएल हो सकती हैं, विश्वास नहीं होता। बहुत दुख पाया है बेचारे ने।’“

”आप भी मालती दी, इन बातों पर विश्वास करती हैं? स्त्री की वीकनेस ये खूब जानते हैं। आपकी भावनाएँ उभारने के लिए कोई मन-गढ़न्त कहानी लिख डाली होगी और आप पसीज गई।“ अंजू को विनीत के खत का ख्याल हो आया।

”अरे नहीं, मैं क्या कोई बच्ची हूँ जो बहकावे में आ जाऊं, विश्वास नहीं होता तू ही पढ़ देख।“ मालती दी ने चार-पाँच पृष्ठ अंजू की ओर बढ़ाए थे।

”मुझे क्या पड़ी है जो ये सब पढ़ अपना टाइम वेस्ट करूँ?“

”मेरे लिए तू पढ़कर तो देख अंजू, फिर अपना फ़ैसला देना। अभी तेरे पास टाइम नहीं है तो ले, तू ही इसे रख ले।“

मालती जी ने जबरन अंजू के बैग में वो कागज डाल दिए।

विदाई की बेला भावभीनी हो उठी थी। मालती सिन्हा ने अंजू को अपने सीने से चिपटा प्यार किया था।

”देख अंजू, बहिन बनी है तो बड़ी बहिन के घर आना होगा। लखनऊ से झाँसी ज्यादा दूर तो नहीं है।“

”सात समुन्दर पार भी आपसे मिलने पहुँचूँगी ,मालती दी।“ अंजू भावुक हो आई।



बहुत मना करने के बावजूद शाहीन ने एक सलवार-सूट का पैकेट अंजू को थमा दिया-
 ”उम्र में हम भले ही बराबर हों, पर शादी हो जाने की वजह से मेरा दर्जा तुझसे ऊपर है। छोटी बहिन खाली हाथ विदा नहीं की जाती।“

सलीम को शिकायत थी अंजू कॉन्फ्रेंस में बिजी रही, इसीलिए उन्हे टाइम नहीं दिया। फिर आने का वादा कर, अंजू वापिस होटल आई थी।

दूसरे दिन बहुत सवेरे लखनऊ की फ्लाइट अंजू को पकड़नी थी। सामान पैक कर, पास के सी-बीच तक घूम आने के इरादे से अंजू नीचे उतरी थी। रिसेप्शन पर उसके नाम एक स्लिप छोड़ी गई थी-

भविष्य में हमें कभी नहीं मिलना है, जितना मिले याद रहेगा।

-सुजय

स्लिप पढ़ते ही अंजू का मन उदास-सा हो आया। पिछले कुछ दिनों में जैसे यहाँ एक नया परिवार-सा बन गया था-शाहीन, मालती दी, सलीम और हमेशा उस पा व्यंग्य कसते रहने वाला सुजय, भी उस परिवार का सदस्य बन गया था। आज सब अपनी अलग-अलग राहों में होंगे। कुछ दिन एक-दूसरे से पत्र-व्यवहार चलेगा फिर सब खत्म हो जाएगा। इस सच को जानते हुए भी उन दो पंक्तियों ने अंजू को उदास कर दिया। विनीत के प्रति मोह-भंग पर अंजू को ताज्जुब हो रहा था। जिनसे मात्र कुछेक दिनों का परिचय था, उनसे बिछोह पर मन उदास हो रहा था, पर जिसे प्राणों से भी अधिक चाहा था, जाते समय वह दूर तक कहीं नहीं था। पूनम भाभी भला उसकी इस बात पर विश्वास कर सकेंगी? सी-बीच तक घूम आने का जैसे उत्साह ही खत्म हो गया। कमरे में वापिस लौट अंजू बालकनी में जा बैठी थी।

रेसेप्शन पर वेकअप-काल देने के निर्देश दे अंजू सोने की तैयारी कर ही रही थी कि मालती जी का फोन आ गया था-

”क्या कर रही है ,अंजू? बहुत खाली-खाली महसूस कर रही थी इसीलिए कॉल किया।“

”बहुत अच्छा किया मालती दी, मुझे भी बड़ा सन्नाटा-सा लग रहा है। पैकिंग हो गई?“

”हाँ, सब हो गया, सच कहूँ तो इस वक्त बेटी बेतरह याद आ रही है। लग रहा है पंख लगा उड़ जाऊं।“

”कल तो जा ही रही हैं, पहुँचकर खत लिखना मत भूलिएगा।“

”वह कैसे भूल सकती हूँ ,अंजू। तेरे बारे में तो सिन्हा साहब को ढेर-सी बातें बतानी हैं।“

”तारीफ ही कीजिएगा दीदी, बुराई तो नहीं करेंगी?“

”तेरी तो सभी तारीफ करते हैं। आज शाम सुजय भी तेरी ही बात कर रहा था।“

”मेरी बात?...... सुजय?.......क्या कह रहे थे?“ अंजू ताज्जुब में पड़ गई।

”तेरी बुराई नहीं कर रहा था क्या यह कम नहीं है? वैसे भी उसकी बुराई-तारीफ़ से तुझे तो कुछ लेना-देना है नहीं, ठीक कहा न, अंजू?“

”जी......ई.....। कल कितने बजे निकलना है मालती दी?“ अंजू की आवाज लड़खड़ा गई थी।

”ओह, मैं तो भूल ही गई, तेरी फ्लाइट तो अर्ली मार्निग है, ओ के बाय। फिर मिलेंगे।“

”मेरा यह मतलब तो नहीं था मालती दी........।“

”नहीं-नहीं, मुझे भी रेस्ट लेना है, ऑल दि बेस्ट।“ मालती जी ने फोन काट दिया।

सुजय मालती जी से मिलने गया, उनसे अंजू के बारे में न जाने क्या बात की, अंजू को वो स्ल्पि देना जरूरी था क्या? उधेड़बुन में पता नहीं कितनी देर अंजू सोई, कितनी देर जागी, हिसाब लगा पाना कठिन था।

सुबह की ताजी हवा ने रात का नैराश्य भुला दिया था। काउंटर पर ताजे लाल गुलाबों का बुके, कार्ड सहित अंजू की प्रतीक्षा कर रहा था।

विनीत ने गुलाब भेजे ये। एक पंक्ति थी-

अपने सबसे अच्छे मित्र को बहुत प्यार सहित......।

-विनीत

बुके हाथ में लिए अंजू मुस्करा उठी थी। विनीत का चेहरा गुलाबों में साकार हो उठा था। प्यार से फूलों को सहलाती अंजू ने घर पहॅचते ही विनीत को पत्र लिखने का निर्णय ले डाला था। कमजोरियों के बावजूद विनीत से अंजू नफरत नहीं कर सकी। मित्र रूप् मे विनीत का स्नेह उसे आहृलादित कर गया था।

छह


घर पहुंचते ही अम्मा ने बाँहो में भर लिया।

”पन्द्रह दिनों में तेरी तो शक्ल ही बदल गई है। पहले ही कमजोर थी, अब और भी सूख गई है।“

”तुम्हें तो अम्मा, अपने बच्चे हमेशा ही दुबले नजर आएँगे। मेरे ख्याल में तो अंजू को चेंज सूट किया, चेहरा चमक रहा है।“ अतुल भइया ने स्नेह से उसकी पीठ थपथपाई।

पूनम भाभी एकांत की तलाश में थीं। अकेला पाते ही अंजू पर प्रश्नों की बौछार कर डाली-
 ”सच कह अंजू, विनीत मिला था न?“

”हाँ.........आँ..........।“

”क्या.......? कहाँ मिल गया? क्या तूने इन्फार्म किया था?“

”इतना ही जान पाई हो अपनी अंजू को, मैं उसे इन्फ़ार्म कर सकती हूँ, भाभी?“

”फिर कैसे मिल गया, सच मेरी तो जान सूखी जा रही है।“

”मैं अच्छी-भली तुम्हारे सामने खड़ी हूँ और तुम्हारी जान सूख रही है। अब क्या मैं बीस साल की अंजू हूँ?“

”देखने में तो अब भी कोई फ़र्क नहीं आया है, ज्यादा ही निखर आई हो। पूरी बात नहीं बताई तो देख लूँगी।“

”देख लेना, अब हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए हैं, भाभी। सच तो यह है ,वह एक बेहद कमजोर इंसान था। उस समय बचपने में सब कुछ ठीक लगता था, पर इस बार लगा उसका अपना व्यक्तित्व ही नहीं है।“

”तो अब सही व्यक्ति की तलाश शुरू की जाए?“

”तलाशने की क्या जरूरत है भाभी, अब तो मैं भी भगवान की इच्छा-अनिच्छा मानने लगी हूँ। जो होना है सो होगा।“

”अच्छा मेरी पुरखिन दस-पन्द्रह दिनों में ही इतना ज्ञान बटोर लाई है, कोई गुरू मिल गया था क्या?“

”क्यों मुझमें मेरी अपनी अकल नहीं है क्या?“

”अरे उसकी तो बात ही नहीं, तुझ-सा कोई दूसरा है इस घर में?“

”क्यों, भइया क्या किसी से कम हैं? भइया इज ए सेल्फ़-मेड पर्सन, आई एम प्राउड ऑफ हिम।“

पूनम का मुँह चमक उठा।

कुछ दिन घर-ऑफिस की व्यस्तता में बीत गए। रात में अंजू को कभी-कभी सब कुछ बहुत याद आता था। कोवलम-सी- बीच तो स्मृति में बार-बार कौंधता था। मालती सिन्हा को लम्बा-सा खत लिख, अंजू उनके पत्र की प्रतीक्षा करने लगी।

पूनम भाभी के साथ शॉपिंग को जाने को तैयार अंजू ने अपना बैग निकाला। त्रिवेन्द्रम से इसी बैग में अंजू ढेर सारे नारियल भरकर लाई थी। इस बैग की यही खासियत थी फोल्ड करने पर एकदम छोटा हो जाता था और सामान भरने पर खूब बढ़ जाता था। बैग झाड़ते वक्त कागज के कुछ पृष्ठ निकल आए थे। उन कागजों पर अंकित अपरिचित लिखाई ने उत्सुकता जगा दी-



.......... जब से होश सम्हाला अपने को अकेला ही पाया। मम्मी के लिए पापा बहुत बड़ी जायदाद और फैक्ट्री छोड़, उन्हें बहुत जल्दी अकेला कर गए थे। मम्मी ने अपना सब कुछ ही नहीं, अपने को भी सागर अंकल को सौंप दिया था- ये बातें बड़े होने पर समझ पाया था। तब से सागर अंकल मेरे प्रतिद्वन्द्धी बन गए थे। मम्मी ने मुझे न जाने क्यों बड़ा हो जाने दिया।

उस रात मम्मी जिद करके क्लब के बाल-डांस में ले गई थीं।

‘हमेशा घर में पड़े किताबें चाटते हो, घर के बाहर भी कोई दुनिया है, तुम्हें जानना चाहिए।’

‘क्यों?’

‘क्यों.......पूछ रहे हो, इतनी बड़ी सम्पत्ति के अकेले वारिस हो, इसलिए अच्छा-बुरा जानना जरूरी है न?’

‘इस सम्पत्ति से मेरा कोई लेना-देना नहीं है, मम्मी"
"दिमाग तो नहीं खराब हो गया तेरा?

‘कुछ भी समझ लो, यह सब कुछ मेरे लिए अस्पर्श्य है।’

‘पर क्यों? तेरे पापा के कारोबार पर और किसका हक है?’

”जिसे तुम यह हक दे चुकी हो, मम्मी........“

‘पागल हो गया है? किसे हक दिया है मैंने?’

‘कई बार हक अनजाने ही दे दिए जाते है। खैर, उस बात को छोड़ दो। वैसे भी इस सब पर फिर अधिकार पा सकना आसान नहीं होगा।’

‘तेरी बातें मेरी समझ से परे हैं, पर आज मेरी खातिर चला चल, प्लीज, जय बेटे।’

मम्मी ने बहुत कम बार मुझे बेटा कहा होगा, उनकी उस मनुहार पर मैं पसीज गया। मम्मी की जिद के कारण सूट पहन कर जाना पड़ा था।

पूरा क्लब विद्युत झालरों से जगमगा रहा था। ढेर सारी लड़कियाँ, रंग-बिरंगे परिधान, तरह-तरह की परफ्यूम्स की सुगन्ध, उनकी खिलखिलाहटें अजीब समाँ बाँध रही थीं। वहाँ पहुँच ,अपने को अजनबी-सा महसूस करने लगा था। मम्मी न जाने किस-किससे मुझे इंट्रोड्यूस कराती जा रही थीं। न जाने क्यों सारी लड़कियाँ मेरे आस-पास ही मॅंड़रा रही थीं। शायद मेरी अपार सम्पत्ति मेरे प्रति उनके प्रबल आकर्षण का कारण थी।

मेरे सामने वाले सोफे पर बैठी लड़की मेरी ही तरह भौचक दर्शक थी। तभी एक युवक ने उसके पास पहुंच शायद उससे डांस की रिक्वेस्ट की थी। लड़की उसके अनुरोध पर अपने-आप मे और भी सिकुड़ गई थी। युवक ने जैसे उसे जबरन खींच डांस- फ्लोर पर ला खड़ा किया था। मैं स्पष्ट देख पा रहा था कि वह लड़की डांस नहीं जानती थी। शर्म से पानी-पानी हो रही लड़की को युवक ने हल्के से फ्लोर के बाहर कर दिया। डांस कर रहे एक जोड़े से टकराती वह लड़की ठीक मेरी गोद में आ गिरी थी। उसके स्पर्श से मेरा सर्वाग रोमांचित हो उठा था-‘सॉरी.........।’ अपने को सॅंभालती लड़की रोने-रोने को हो आई थी।

‘इट्स ओ के ! आइए यहाँ आराम से बैठ जाइए।’

मेरे पास सिमट कर बैठी लड़की भयभीत चिड़िया-सी लगी। पास से गुजर रहे वेटर को कोल्ड ड्रिंक लाने का आर्डर दे, मैंने बातचीत शुरू की-

‘आपका नाम?’

‘मोनिका।’

‘कहाँ रहती हैं?’

‘उदयपुर..... यहाँ मामा के घर आई हूँ।’

‘कौन हैं आपके मामा?’

‘बैरिस्टर विश्वम्भर राय।’

”ओह आप राय अंकल के घर ठहरी हैं?“

‘आप मामा को जानते हैं?’

‘उनके घर तो मम्मी की ब्रिज पार्टी होती है।’

‘आप भी कार्ड खेलते हैं?’ दो भोली आँखें मन की सारी उत्सुकता समेटे मुझ पर निबद्ध थीं।

‘अगर खेलता हूँ तो?’

‘तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा, आई हेट कार्ड ऐंड ड्रिंक पार्टीज..........।’

‘मी टू।’

मोनिका के साथ कितना सुकून मिल रहा था। उस भीड़ और घुटन-भरे हाल के कोने में मोनिका खुली हवा के झोंके ले आई थी। इस बीच न जाने कितनी जोड़ी ईष्र्यालु आँखें हमें तरेरती रहीं, पर हम दोनों उनसे उदासीन कोल्ड ड्रिंक्स खत्म कर, आइसक्रीम ले बाहर आ गए।

‘तुम्हारे मामा इतने एडवांस्ड हैं और तुम उनसे इतनी डिफरेंट कैसे हो?’

‘तुम भी तो अपनी मम्मी से कितने अलग हो, फिर वह तो मेरे मामा ठहरे।’

‘क्या तुम जानती हो मुझे?’  मैं चौंक गया।

‘इस पार्टी की कौन लड़की तुम्हें नहीं जानती? मोस्ट एलिजिबिल बैचलर.......पढ़े-लिखे सुन्दर अमीर। मेरी कजिन अनिता तो तुम पर मरती है।’

‘मुझे इस क्लास से नफरत है।’

‘किस क्लास की बात कर रहे हो? मुझे तो अपना क्लास बेहद पसन्द है। मेरी टीचर मुझे मोस्ट रिमार्केबल गर्ल ऑफ दि क्लास कहती हैं।’

मैं बेतहाशा हॅंस पड़ा।

‘तुम्हारे भोलेपन का जवाब नहीं।’

‘मैं भोली हूँ? शायद इसीलिए अनीता मुझे ‘लल्ली’ कहती है।’

‘नो प्रोब्लेम, यहाँ की ज्यादातर लड़कियाँ पीठ पीछे मुझे ‘लल्लू’ पुकारती हैं। जानता हूँ यह बात, लेकिन मुझे इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मैं अपने को जानता हूँ, वही काफ़ी है।’

मोनिका मुझे खिली पांखुरी पर शरद की ओसबिन्दु-सी मोहक लगी थी।

दूसरे दिन से मम्मी के साथ मैं भी राय अंकल के घर जाने को तैयार था। मम्मी खुश थीं।

‘चलो तुम्हें अक्ल तो आई। चार लोगों में बैठोगे तो एटीकेट्स सीखोगे। सब कहते है, तुम्हारा बेटा कितना घरघुस्सू है।’

उस दिन के बाद से मैं हर बार राय अंकल के घर जाता रहा। मेरे पहुँचते ही मोनिका खिल उठती। कोई बहाना बना हम दोनों घंटों बाहर लॉन की घास पर बैठे बातें करते रहते थे। मोनिका के बिना जीवन की कल्पना भी कर पाना कठिन था।

मम्मी मेरे बदलते रूख से बेहद खुश थीं, जाने-अनजाने उनका प्यार मेरे लिए छलकने लगा था।

एक बात के लिए मम्मी का अहसान मानता हूँ- अगर वे चाहतीं तो सागर अंकल से शादी कर लेतीं, पर पापा की डेथ-बेड पर उन्होंने पापा को वचन दिया था, मेरे लिए वह दूसरी शादी नहीं करेंगी। उस समय मैं दो साल का था। पापा की बात रखकर मम्मी ने उन्हें जो मान दिया, उसके लिए मैं हमेशा उनका आभारी रहा। कभी-कभी पापा की सेलफिशनेस पर उन्हें मन-ही-मन दोषी भी ठहराया- क्यों उन्होंने मम्मी को अपने वचन से जकड़ दिया? मम्मी की उस समय उम्र ही क्या थी।

मम्मी के प्रति सदय होते मन पर, कहने वालों ने इतने क्रूर आघात किए थे कि उनकी चोटों से मैं तिलमिला जाता। शादी न करके मम्मी ने सागर अंकल से जो सम्बन्ध रखे उसके लिए मम्मी अपनी अन्तिम साँस तक अक्षम्य रही......। आज सोचता हूँ क्या यह मेरे पुरूष का अहं नहीं था.........स्त्री पर जिसका कानूनन अधिकार है, वह उसके साथ कैसा भी व्यवहार करे, स्त्री का धर्म आजीवन उसी खूँटे से बंधकर रहना है। पापा को ऐयाशी का हक था, पर जाते-जाते भी वे मम्मी को अपने वचन की सूली पर चढ़ा गए। मोनिका पर किसी और का अधिकार क्या मैं सह सकता हूँ?

उस दिन पियानो बजाती मोनिका के पीछे मैं मुग्ध खड़ा था। मेरी ताली की आवाज से मोनिका चौंक गई-
‘अरे तुम, कब आए?’

‘मैं गया ही कब था, हमेशा तुम्हारे पास ही तो हूँ न?’

‘ये तो ठीक कहा, कैसा बजाती हूँ पियानो?’

‘तुम्हारे स्वभाव से मेल नहीं खाता।’

‘क्यों?’

‘भारतीय परम्परा के अनुरूप् तो तुम पर वीणा सोहेगी।’

‘तब तो मेरे सामने सिर झुकाकर वीणा वादिनि, वर दे गाना पड़ेगा।’ मोनिका हॅंस रही थी।

‘जो वरदान माँगूँ, मिलेगा न?’

‘माँगकर तो देखो।’

‘आज नहीं, फिर कभी, पर याद रखना वचन दिया है।’

‘ओ के । आज क्या प्रोग्राम है?’

‘आठ-दस दिनों के लिए बांबे जा रहा हूँ। न्यू ईयर पर विश करने और तूमसे वरदान माँगने वापिस पहुंच जाऊंगा।’

‘वादा रहा, बहुत मिस करूँगी तुम्हें।’

मोनिका की हथेली पर हाथ धर मैंने वायदा किया था।

बाम्बे में काम जल्दी खत्म हो गया था, उसी दिन की फ्लाइट ले घर पहुँचा। मोनिका के घर फोन करने पर पता लगा, वह क्लब गई हुई थी। सरप्राइज देने के लिए इससे अच्छा मौका कब मिलता! कार दौड़ा, क्लब पहुंच गया। अपनी फेवरिट जगह मोनिका को न पा, हाल में पहुँचा था। डांसिंग फ्लोर पर युवा जोड़े नृत्य कर रहे थे। मोनिका को वहाँ पाने की आशा व्यर्थ थी, पर शायद उसकी कजिन अनिता उसका पता दे सके, यही सोच, अनिता की खोज में नजरें दौड़ाई थीं, पर जो देखा, उसने चौंका दिया । अत्याधुनिक परिधान में एक सुन्दर युवक के कन्धे पर सिर टिकाए मोनिका, आत्मविस्मृत-सी झूम रही थी। स्तब्ध खड़ा मैं उसे पुकार भी न सका।

धुन समाप्त होते ही युवा जोडे़ अपनी-अपनी जगहों पर जा बैठे थे। युवक का सहारा लिए मोनिका एक कोने में उसी युवक के कन्धे पर सिर टिकाए बैठ गई थी। पेग बना युवक ने मोनिका के होंठों से लगा दिया था। यह सब सहन कर पाना कठिन था, सीधे उनके सामने जा खड़ा हुआ। विश्वास करोगी मालती दी, मोनिका ने मुझे कतई नहीं पहचाना- सुजय को नहीं पहचाना। मैं शायद उत्तेजित था, चीख-सा पड़ा था-

‘मोनिका, यह क्या तमाशा है? कौन है यह .......... आई वांट ऐन एक्सप्लेनेशन...........।’

‘हाउ डेयर यू? हू आर यू? गेट लॉस्ट.........। रोहित, मुझे यहाँ से ले चलो प्लीज।’

‘नहीं, तुम यहाँ से ऐसे नहीं जा सकतीं, तुम्हें बताना होगा।’

मेरी आवाज पर काफी लोग घिर आए थे। उनमें अनिता भी थी। मेरा हाथ जबरन खींच एक ओर ले गई।

‘आई एम सॉरी सुजय, ही इज मोनिकाज फियान्सी। अमेरिका में बहुत बड़ा बिजनेस है उसका। परसों दोनों की एंगेजमेंट हुई है। तुम उसे भुला दो, वह एक मजाक था। यू आर नॉट हर च्वाइस.......।’

‘क्या वह एक खेल था........नानसेंस। वह मुझे प्यार करती थी। हम दोनों..........।’

‘शायद सच्चाई तुम्हें नहीं पता, हम लड़कियों में तुम्हें इम्प्रेस करने की शर्त लगी थी। मोनिका वह शर्त जीत गई। दैट्स ऑल, टेक इट ईजी। मोनिका वह नहीं थी, जिसे तुमने प्यार किया, मोनिका यह है।’

समझ सकती हो मालती दी, उस अपमान-पीड़ा का दंश किस तरह झेला होगा मैंने! माँ से लेकर मोनिका तक का सफर तय करना आसान तो नहीं रहा होगा?

जलते कान और सुलगते मन के साथ मैं कैसे घर पहुंचा, पता नहीं। उस दिन पहली बार पापा की बोतल नीट चढ़ा गया था। पूरी रात न पहचाने जाने की आग में जलता रहा था मैं। उस रात का नशा उतरा भी तो कैसे- सुबह-सुबह दरबान ने जगाया था।

ड्राइंग रूम में पुलिस इंस्पेक्टर उस मनहूस खबर के साथ मेरी प्रतीक्षा कर रहा था। क्लब से सागर अंकल के साथ वापिस आती मम्मी की कार को ट्रक ने सामने से हिट किया था। मम्मी और सागर अंकल ने वहीं दम तोड़ दिया था।

सब कुछ निबटा, अपने को बेहद अकेला पाया था। मम्मी के जीते, उनसे सामंजस्य नहीं बैठा सका, पर उनके बाद, उनकी कमी बेहद खलने लगी थी। शुरू से अपने को किताबों में डुबोए रखता था, मम्मी के बाद उन्हीं ने साथ निभाया। खालीपन भरने को ढेर सारी डिग्रियाँ ले डालीं। वही डिग्रियाँ काम बढ़ाने में सहायक बनीं। जिस सम्पत्ति को कभी हाथ भी न लगाने की सोची थी, वही मेरे गले पड़ गई।

मातमपुसीं में आए लोग मेरी अक्षमता का अंदाज लगाना चाहते थे। उनकी वही बात मेरी चुनौती बन गई। सम्पत्ति का मोह न रहते भी उसे किसी अन्य को न देने की जिद आ गई और आज इस मुकाम पर पहुंच सका हूँ।

यह सच है लाख भुलाना चाहकर भी मोनिका से मिला अपमान हर पल जीता रहा हूँ मैं। शायद इसीलिए हर लड़की में उसी का प्रतिरूप देखता रहा। किसी अभिन्न से न पहचाने जाने का दंश आप नहीं समझ सकेंगी ,मालती दी। इसी बात पर एक दिन अंजलि जी से भी लड़ बैठा था-खैर उसे जाने दीजिए, शायद हमेशा गलती मैं ही करता रहा हूँ।

अब तो माफ करेंगी न?

-जय

उन इबारतों में डुबी अंजू को पूनम भाभी की आवाज ने जगाया-

”अंजू, चलना नहीं है क्या, कहाँ रह गई हो भई?“

”अभी आई, भाभी..........।“

उन पृष्ठों को अंजू फाड़ नहीं सकी थी, जल्दी से ड्राअर में डाल तेजी से अंजू बाहर चली आई।

दो दिन बाद मालती सिन्हा का लम्बा-सा पत्र आया था। घर की ढेर सारी बातें लिख भेजी थीं। अन्त में लिखा था- ”कुछ दिन तेरे साथ रहने के बाद लगता है अपने अतीत से उबर आई हूँ। अपनी बेटी में भी अब अपनी परछाई पाती हूँ ,अंजू। मेरी मान, पिछला भूल एक अच्छा-सा जीवन-साथी चुन ले। सुजय से बात करूँ? नाराज मत होना।“

-तेरी
मालती दी

छिः ये मालती दी भी.....बस। अंजू चिढ़ गई। पूरी दुनिया में उसके हिस्से विनीत और सुजय ही आएँगे? दोनों बेहद कमजोर, परिस्थिति के आगे हथियार डाल देने वाले डरपोक।

अम्मा को अंजू का कुंवारा डोलना नहीं भाता था।

”तू ही समझा ,बहू। वो तो अपना घर बसा मजे उड़ा रहा है और ये उसके नाम की माला लिए जोगन बनी बैठी है।“

”कौन जोगन बना है अम्मा? अगर तुम मेरे ज्यादा पीछे पड़ोगी, मैं अपना ट्रान्सफर कहीं और करा लूंगी।“ अंजू नाराज हो उठती।

”अब हमारा बोलना भी बुरा लगता है। इतना पढ़ा-लिखाकर दिमाग खराब कर गए। खुद तो चले गए, हमारे सिर पर बोझ छोड़ गए।“ अम्मा बिसूरने लगतीं।

”अम्मा, पापा को कुछ मत कहा करो। आज उन्हीं की बदौलत अंजू बन सकी हूँ।“

पापा ने जो चाहा अंजू ने पा लिया, पर पापा के सामने उनके ऑफिस कहाँ जा पाई थी अंजू? पापा की साध मन में ही रह गई। इतने महत्वाकांक्षी पापा क्या पा सके? पापा हमेशा कहते-

‘काश अंजू मेरी बेटा होती............।’

‘क्यों बेटी कुछ नहीं कर सकती ,पापा?’ अंजू ठुनकती।

‘तू सब कुछ कर सकती है ,अंजू। तू ही तो मेरा बेटा है।’

हार्ट-अटैक का कष्ट झेलते पापा ने कितनी मुश्किल से हाथ उठाकर अंजू के सिर पर रखा था। आँख की कोर से एक आँसू ढलका और पापा ने संसार से विदा ले ली थी।

अम्मा को पापा से हमेशा यही शिकायत रहती कि उन्होंने अंजू को सिर चढ़ाकर उसका दिमाग खराब कर दिया था। वही अम्माँ पापा के न रहने पर अंजू को सीने से चिपटा कितना रोई थीं।

”तुझे पापा के सपने सच करने हैं बिटिया। वे तुझे बड़ा आफिसर बना देखना चाहते थे, तू बनकर दिखएगी न ,अंजू?“

पापा की मृत्यु के बाद अम्मा में गजब का परिवर्तन आ गया। अंजू उनके हर काम की केन्द्र-बिन्दु बन गई थी। अंजू ने शादी करने की साफ़ मनाही कर दी थी, उस जगह अम्मा उससे सहमत नहीं थीं, पर अंजू की दृढ़ता के आगे हार गई थीं।

”जैसी तेरी मर्जी, तू जान, पर एक बात याद रखना, उम्र के पड़ाव पर एक वक्त ऐसा आता है जब हर एक को किसी सहारे की जरूरत जरूर पड़ती है,अंजू। जब तक माँ-बाप जीते हैं ठीक रहता है, बाद .........में।“

अंजू ने अम्मा को उनकी आगे वाली बात कभी पूरी नहीं करने दी थी।

”अम्मा ,तुम चिन्ता मत किया करो, मुझे भइया-भाभी कितना प्यार करते हैं, तुम देखती हो फिर भी।“

”भगवान करे उनका साया हमेशा तुझ पर बना रहे, पर जब अपने बाल-बच्चे हो जाते हैं तो बात दूसरी हो जाती है, यही दुनिया का कायदा हैं ,बेटी।”

“अम्मा, प्लीज ऐसी बातें मत किया करो। भाभी सुन लें तो क्या सोचेंगी? “

पपा की दृष्टि में अति सामान्य बुद्धि वाले भइया की पत्नी-रूप में पूनम भाभी आदर्श थीं। सामान्य रंग-रूप वाली भाभी की तीक्ष्ण मेधा पापा की दृष्टि से छिपी ही रह गई थीं। मध्यमवर्गीय परिवार की बेटी पूनम भाभी बी0ए0 तक शिक्षा के बाद ब्याह दी गई थीं। भइया के लिए पूनम वरदान सिद्ध हुई थीं। पूनम भाभी के आते ही उनकी सर्विस स्थायी हो गई। भाभी के आने के बाद से भइया का चेहरा आत्मविश्वासपूर्ण होता चला गया था।

घर के काम निबटाती पूनम ने कब इतिहास विषय में एम0ए0 कर लिया किसी को पता भी न चला। विवाह के दो-तीन वर्षो बाद भी अम्मा दादी न बन सकीं। नीची नजर किए पूनम भाभी अम्मा के उलाहने सुनती काम करती जाती थीं।

”आजकल जमाना ही बदल गया है। बड़ी उम्र में शादी करो फिर भी बच्चों के बिना घर सूना पड़ा रहे।“

पापा के बाद भइया घर के सर्वेसर्वा भले ही बन गए थे, पर अम्मा की किसी बात का प्रतिवाद उन्होंने कभी नहीं किया। कभी-कभी तो अम्मा की अन्यायपूर्ण बातों पर अंजू ही उनसे उलझ पड़ती थी।

त्रिवेन्द्रम से लौटने के करीब पन्द्रह दिन बाद पूनम भाभी रात में अंजू के पास आ बैठी थीं।

”क्या बात है भाभी, अम्मा ने कुछ कहा है?“

”आज तक कभी उसके लिए मुझे कुछ कहने की जरूरत पड़ी है, मेरी ढाल तो तुम हो न ,अंजू?“

”फिर क्या बात है?“

”महिला कॉलेज में मेरी नियुक्ति हो गई है, तुम्हें अम्माजी को मनाना होगा ,अंजू।“

”अरे वाह, इतनी बड़ी खबर अब सुनाई जा रही है। तुमने तो कमाल कर दिया ,भाभी।“

”कमाल तो तुम्हारे भइया का है, अंजू। देर रात तक मेरे साथ बैठ-बैठकर मुझे इस योग्य बनाया है......वर्ना मैं किस लायक थी।“

”चलो हमारा भइया का कोई तो गुण्ग्राही मिला, इण्टरव्यू कब दिया, भाभी?“ भइया के प्रति पूनम भाभी के विश्वास ने ही भइया की काया पलट कर दी थी।

”जब तुम त्रिवेन्द्रम गई थीं, तभी इण्टरव्यू- कॉल आई थी।“

”जब सब कुछ अपने-आप कर लिया तो अम्मा को समझाना भी तुम्हें ही होगा ,भाभी।“

”ये काम तो तुम्हें ही करना होगा, अंजू। तुम तो जानती हो अम्मा जी मेरी नौकरी की बात कभी पसंद नहीं करेंगी।“

”अम्मा ने मेरी नौकरी ही कब पसंद की ,भाभी? अब अपना मोर्चा तुम्हें खुद सॅंभालना है। यूँ डर-डर कर कब तक चलेगा?“

”अम्मा जी सह सकेंगी?“

”अगर बेटी की नौकरी सह सकती हैं तो बहू की भी सहनी ही होगी“ फिर भी न माने तो भइया को बात करनी पडे़गी।“

”ये अम्मा जी के सामने मुँह खोलेंगे“

”नहीं खोलेंगे तो पछताएँगे।“

”तुम कुछ नहीं करोगी?“

”मेरी जरूरत ही नहीं पडे़गी, तुम अकेली ही काफ़ी हो। मेरा विश्वास करो भाभी, कुछ नहीं होगा।“

घर में अम्मा दो-चार दिन बड़बड़ाती रहीं, भइया और भाभी निःशब्द उनका बड़बड़ाना सुनते रहे। आठ जुलाई को सूती कलिफ़दार साड़ी पहन पूनम भाभी कॉलेज जाने को तैयार थीं। जाते समय अम्मा के पावों पर झुकती पूनम भाभी को अम्मा का आशीर्वाद मिला या नहीं, अंजू ने जोरदार शब्दों में घोषणा की-
”आते समय मिठाई लाना मत भूलना भाभी, और हाँ तुम्हारी फ़र्स्ट- सैलरी में मेरी साड़ी पक्की है न?“

”पहले वेतन पर तो अम्मा जी और तुम्हारा ही अधिकार होगा ,अंजू।“

अम्मा ने आँखों की कोर जबरन आँचल से पोंछ डाली थीं। स्कूटर पर भइया के पीछे बैठ भाभी चली गई थीं। अंजू का मन संतोष से भर गया था- भइया को उनका प्राप्य मिल गया। काश, पापा उन्हें इस रूप में देख पाते। जिस बेटे से उन्होंने कभी कोई उम्मीद नहीं रखी, वही आज पूनम भाभी के व्यक्तित्व का निर्माता है।

सात


ऑफिस में पहुँचते ही अंजू को कम्पनी चेयरमैन के आने का मैसेज मिला। उनके साथ कुछ कम्पनीज के चेयरमैन और डाइरेक्टर भी आ रहे थे। अंजू तैयारी में जुट गई। कुछ बड़ी कम्पनियों के आर्डर की चेकिंग के लिए पत्र आए हुए थे। पूरे विभाग के लिए मार्च का महीना व्यस्ततम समय होता था। उन दिनों देर से घर पहुँचने पर अंजू को अम्मा की फटकार सुननी पड़ती थी।

”यह भी कोई घर आने का समय है। इतना खराब जमाना है, कहीं कोई ऊंच-नीच हो जाए तो जिन्दगी-भर का रोना लिए बैठी रहो।“

”अम्मा, तुम बेकार ही परेशान होती हो, देर होने पर कोई पैदल तो नहीं आती। कम्पनी की गाड़ी में आती हूँ।“

”यही तो मैं भी समझा रहा था। वह तो कहो तुम आ गई, वर्ना अम्मा मुझे दौड़ा रही थीं।“ मितभाषी भइया अम्मा के साथ अंजू की प्रतीक्षा करते रहते थे।

घर में पूनम अंजू की उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी।

”कैसा रहा, कॉलेज का पहला दिन?“

”बहुत मजा आया। आओ पहले मुंह तो मीठा कर लो।“

”यह हुई न बात, अब बताओ रैगिंग कैसे झेल पाई।“

”रैगिंग.........? मेरी?“

”क्यों, नई लेक्चरार की रैगिंग नहीं की जाती? बड़े सीधे स्टूडेंट्स हैं तुम्हारे?“

”कोशिश तो की थी, पर मैंने अच्छी तरह हैंडल कर लिया। पिछले कुछ दिनों से अतुल मुझे ट्रेनिंग दे रहे थे, इसीलिए प्रोब्लेम नहीं आई।“

”वाह, भइया की असली चेली बन गई हो ,भाभी।“ अंजू हॅंस पड़ी।

”काश, तुझे भी कोई गुरू मिल जाता ,अंजू  तो जीवन सार्थक हो जाता।“

”नो चांस, अब इस उम्र में किसी की चेली बनना पॉसिबिल नहीं भाभी।“

”कौन-सी ज्यादा उम्र हो गई है, आजकल छब्बीस-सत्ताइस के पहले भला शादियाँ होती हैं? पद ऊंचा पा जाने से उम्र तो नहीं बढ़ जाती ,अंजू?“

”ओ के , ठीक है बाबा, मैं अभी बच्ची ही सही, जी भर के मिठाई खाने दोगी या नहीं?“

”क्यों, आज ही पूरा कोटा खत्म कर डालेगी ,अंजू? अपनी भाभी को यूँ सस्ते में छोड़ देगी?“ कमरे में प्रवेश करते अतुल ने परिहास किया था।

”आज तो भइया, सच्चे मन से तुम्हें प्रणाम करने की चाह रहा है। क्या व्यक्तित्व निखारा है हमारी भाभी का!“

”मैंने क्या किया? सच तो यह है अंजू, पूनम ने ही मुझसे मेरी पहचान कराई है। मैं उसका आभारी हूँ।“

”अच्छा-अच्छा, अब यह प्रशंसा- पुराण बन्द, तुम दोनों सुखी रहो यही मेरी कामना है। अम्मा ने मिठाई खाई?“

”अम्मा जी तो शाम से ही सरला चाची के घर जा बैठी थीं अंजू, मेरी हिम्मत नहीं हुई..........।“

”परेशान होने की जरूरत नहीं है, दो-एक दिन में स्वयं एडजस्ट कर लेंगी।“

दूसरे दिन कार्यालय में चेयरमैन के आने का हल्ला-गुल्ला था। एक दिन में ही ऑफिस की कायापलट हो गई थी। सब कुछ नया-चमचमाता-सा लग रहा था। डाइरेक्टर ने दो-तीन बार स्वंय निरीक्षण कर लिया था। अंजू को बुलाकर पूछा-

”मिस मेहरोत्रा, आपकी सब फाइलं ठीक हैं न? चेयरमैन के साथ कुछ बड़ी कम्पनीज के चेयरमैन और डाइरेक्टर भी होंगे। सब पेपर्स ठीक रहने चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण मीटिंग है।“

”आप चिन्ता न करें सर, मैंने सब तैयार कर रखा है।“

”ओ के । मीटिंग में आपको भी रहना है, कम्पनी अकाउंट्स पर भी बात हो सकती है।“

”ठीक है, सर।“

दस बजे से मीटिंग शुरू होनी थी, अंजू पौने दस बजे काँन्फ्रेंस हाल में पहुँच गई थी। चेयरमैन के साथ पाँच बड़ी कम्पनियो के चेयरमैन और मैनेजिंग डाइरेक्टर आ रहे थे। सम्मान में खड़ी अंजू चेयरमैन के पीछे प्रवेश कर रहे व्यक्ति को देख चौंक गई। सुजय कुमार की इस मीटिंग में उपस्थिति की तो अंजू ने कल्पना भी नहीं की थी।

अतिथियों का परिचय चेयरमैन ने कराया, डाइरेक्टर ने कार्यालय अधिकारियों का परिचय दिया था। अंजू से दृष्टि मिलने पर भी सुजय की आँखों में कहीं कोई परिचय का भाव नहीं कौंधा। गम्भीर मुख सुजय अंजू को निहायत अपरिचित लगा था।

मीटिंग बहुत सफल रही। अंजू से पूछे गए हर सवाल का उत्तर संतोषजनक था। कम्पनी का कार्यक्षेत्र बढ़ाने की दिशा में सभी अतिथियों ने हर तरह के सहयोग का आश्वासन दिया। चेयरमैन की प्रसन्नता स्वाभाविक ही थी। लंच के लिए अंजू भी आमंत्रित थी, पर उसने डाइरेक्टर से घर जाने की अनुमति माँगी।

”यह कैसे हो सकता है, बाहर से अतिथि आए हुए हैं, आपका रहना जरूरी है। मान लीजिए चेयरमैन कुछ पूछना ही चाहें, तो मैं क्या जवाब दूँगा?“

मन मार अंजू को लंच में रहना पड़ा। प्लेट में सलाद ले एक  अंजू कोने मे  जा बैठी थी। मन न जाने क्यों रोने-रोने का कर रहा था। त्रिवेन्द्रम में सुजय ने ही कहा था-
”न पहचाने जाने की तकलीफ़ आप नहीं समझ सकतीं।“ विनीत को न पहचानने पर सुजय अंजू पर किस तरह नाराज हुआ था और आज......? पर अगर सुजय ने उसे नहीं पहचाना तो उसमें उदास होने की की क्या ज़रूरत है, अंजू ने सुजय से कोई ऐसी अपेक्षा तो नही रखी थी, फिर .......“

सलाद के टुकड़े मुँह में धरती अंजू को बार-बार लग रहा था, शायद सुजय आकर कहे-
‘आप इतनी एफीशियेंट आफिसर हैं, आज ही पता लगा। पूरी मीटिंग में छा गई थीं आप।’

अंजू के पास उसका सहकर्मी घोष आकर बैठ गया था।

”यह क्या मैडम, सलाद से ही पेट भरेंगी? नो स्ट्रेंज, इसीलिए आप अपनी फिगर मेंटेन कर सकी हैं।“

”थैंक्स फ़ॉर दि कांम्प्लिमेंट“, प्लेट नीचे रख अंजू उठ खड़ी हुई। मजाक करने के लिए घोष प्रसिद्ध था, पर इस समय उसकी बात अंजू को जरा नहीं भाई थी।

”सर, अब मैं जा सकती हूँ?“

”ठीक है, यू हैव डन ए गुड जॉब।“

”थैंक्यू, सर।“

अपने कमरे में पहुँच अंजू ने सहज होने की कोशिश की थी। एक ग्लास ठंडा पानी पी, अंजू ने फाइल खोल ली थी, पर फाइल के पृष्ठों पर त्रिवेन्द्रम के दृश्य उभरते देख, अंजू अपने से नाराज़ हो उठी।

सुजय ने होटल काउंटर पर स्लिप छोड़ी थी, ”अब हम कभी नहीं मिलेंगे, पर जितना मिले हमेशा याद रहेगा...............“

झूठ, वह फिर मिला पर पहले की पहचान झाड़-पोंछ कर। न जाने क्यों अंजू हर फोन कॉल पर बेहद सतर्क होती जा रही थी। जिसने सामने देखकर ‘हेलो’ तक नहीं कहा, वह उसे फोन करेगा, आशा ही व्यर्थ थी।

शाम को अंजू बेहद थकी-सी घर पहुंची थी।

”क्या हुआ अंजू, आज बड़ी थकी दिख रही है? सब ठीक-ठाक है न?“ अतुल भइया कंसर्न दिख रहे थे।

”कुछ नहीं भइया, सुबह से टेंशन में थी न, इसीलिए ऐसा लग रहा है। मीटिंग काफी अच्छी रही। हमारी कम्पनी को बहुत फ़ायदे की उम्मीद है।“

”चल अच्छा है, कम्पनी के फ़ायदे के साथ तेरा भी फ़ायदा होगा। अब एक शुभ समाचार दूँ।“

”क्या, जल्दी बताओ न?“ अंजू का रोम-रोम जैसे कान बन गया।

”मुझे 26 मई को स्टेट्स जाना है। आज ही वहाँ से लेटर आया है।“

”ओह भइया, कांग्रेच्युलेशन्स। अब तुमसे मिठाई खानी है।“

”आज हम सब बाहर ही डिनर लेंगे, ठीक है न?“ अतुल ने पहले ही प्रोग्राम तय कर रखा था।

”वो तो ठीक है पर भाभी से अलग डिनर लूँगी। क्यों भाभी, दोगी न?“

”पहले एक डिनर तो हो जाने दो।“

”देखो भइया, भाभी कितनी कंजूस हैं? अरे अगर मेरे हसबैंड को ऐसा चांस मिलता तो.....“ अपनी बात पूरी करने के पहले ही अंजू ने दाँत से जीभ काट ली।

”क्या ........सुना तुमने हमारी अंजू ने क्या कहा? मतलब अब अंजू रानी अपने पतिदेव के बारे में सोचने लगी है।“ पूनम का चेहरा चमक रहा था।

”छिः भाभी, वह तो मैंने उदाहरण भर देना चाहा।“

हॅंसी-खुशी सब डिनर के लिए होटल गए। अंजू और पूनम की जिद पर अम्मा को भी जाना पड़ा था। होटल में बैठी अम्मा संकुचित हो रही थीं-

”तुम लोगों की जिद पर आना पड़ा, वर्ना यह जगह क्या हम बूढ़ो के लिए है।“

”तुम बूढ़ी कहाँ हो अम्मा? रंगीन साड़ी पहनो तो मेरी बड़ी बहन दिखोगी।“ अंजू हॅंस पड़ी।

अचानक अंजू की हॅंसी को जैसे ब्रेक लग गया। सामने से एक अत्याधुनिक युवती के साथ सुजय रेस्ट्राँ में आ रहा था। अंजू का मुँह रेस्ट्राँ के द्वार की ओर ही था। दृष्टि मिलते ही सुजय उन्हीं की ओर बढ़ आया-

”हलो ,मिस मेहरोत्रा।“

”नमस्ते........।“ अंजू हड़बड़ा गई।

”रोमा, आप अंजलि मेहरोत्रा। इन्हीं की कम्पनी में काम से आया था............चीफ फाइनैंस एक्जीक्यूटिव हैं मिस मेहरोत्रा।“

”हलो, मैं अंजलि का भाई अतुल। आइए, हैव डिनर विद अस।“ अतुल ने सुजय को आमंत्रित किया।

”थैंक्स, ग्लैड टु मीट यू, मिस्टर मेहरोत्रा। आज का यह निमंत्रण फिर कभी के लिए उधार रहा, आज माफ़ करें। कम ऑन ,रोमा।“ सुजय अपने लिए रिजर्वड टेबिल की ओर बढ़ गया।

”कौन थे ये महाशय?“ अतुल से अंजू ने सुजय का परिचय भी नहीं कराया।

”जय इंडस्ट्रीज के चेयरमैन सुजय कुमार..........।“ न जाने क्यों अंजू का मूड बेहद खराब हो गया।

”इतने बड़े आदमी को तू जानती है ,अंजू?  यह तो बिजनेस की दुनिया का राजा है!“ भइया ताज्जुब में पड़ गए।

”आज ऑफिस में ही परिचय कराया गया था..........।“

”फिर भी इतने बड़े आदमी ने यहाँ परिचय दिखाया, यह कम बात तो नहीं है।“

”उसके साथ वह लड़की कौन थी, अंजू?“ पूनम की उत्सुकता बढ़ चली थी।

”मुझे क्या पता भाभी, न जाने किन-किन के साथ घूमते हैं ये अमीर लोग। मैंने उनका ठेका थोड़ी ले रखा है।“

”छोड़ो बेकार की बातें, आज अंजू की पसंद का मेनू रहेगा। क्या मॅंगवाया जाए?“ भइया ने बात टाल दी थी।

”जो सब लें, वही मॅंगा लो।“

”वाह, शोर मचाकर तू लाई है और अब जो चाहो मॅंगा लो कह रही है।“ अतुल सचमुच बहुत प्रसन्न था।

”मुझे तो टमाटर का सूप और ब्रेड मॅंगा दो।“

”वाह, यही खाना था तो घर में बना देते। आज ज़रूर कोई बात है वर्ना अंजू होटल में आ, टोमेटो सूप न पीती। क्या बात है अंजू, कहीं अभी जो महाशय आए थे उनसे तो कोई चक्कर नहीं चल रहा है?“ अंतिम वाक्य पूनम ने अंजू के कानों के पास धीमे से पूछा।

अन्ततः अम्मा की पसंद का खाना खा, सब घर लौटे थे।

सबके सो जाने के बाद भी अंजू को नींद नहीं आई। टेबल लैम्प जला, अंजू मालती दी को खत लिखने बैठ गईः



प्रिय मालती दी,

तुमने जिन सुजय कुमार का अपने नाम लिखा पत्र बड़ी सहानुभूतिपूर्वक मुझे पढ़ने को दिया था, उनकी असलियत आज देख ली। ऑफिस की मीटिंग में मुझे नहीं पहचाना तो कोई  बात नहीं, पर होटल में जिस लड़की के साथ वह खाना खा रहे थे, वह किसी भी स्थिति में शरीफ़ घर की लड़की नहीं दिख रही थी। मैंने पहले ही कहा था, सब पुरूष एक-से होते हैं...........।

-अंजू

दूसरे दिन से सब अतुल के स्टेट्स जाने की तैयारी में लग गए थे। अम्मा की आँखें बार-बार भर आती थीं। भइया का बिछोह सह पाना उन्हें कठिन लग रहा था। पूनम भाभी भी जबरन अपनी उदासी छिपा मुस्कराने का प्रयास कर रही थीं। अंजू ही भइया के सामान की लिस्ट बनाती फिर सामान खरीदने, रखने में पूनम की सहायता कर रही थी।

व्यवस्तता के बीच मालती दी का पत्र आया था।

तेरा लिखा पत्र मिल गया। सुजय कैसी भी लड़कियों के साथ रहे-घूमे, उसमें तुझे फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए, आखिर तेरा उससे नाता ही क्या है? किसी गैर को लेकर यूँ परेशान होना ठीक नहीं। अपना ख्याल रख।

-मालती

मालती दी का खत पढ़कर अंजू खिसिया आई। बेकार ही उन्हें पत्र डाला। न जाने क्या सोचती होंगी।

भइया को दिल्ली तक पहुंचा आने को पूनम और अंजू की बहुत इच्छा थी, पर अतुल ने सबको मना कर दिया।

”इस बचपने की जरूरत नहीं है। दो-चार घंटे और साथ रहने के लिए व्यर्थ ही हजारों रूपये नष्ट हो जाएँगे।“

अतुल भइया के जाने के बाद घर में सन्नाटा-सा छा गया। तीन स्त्रियों की गृहस्थी जैसे सूनी हो उठी थी। अम्मा हर समय बेटे को याद करती रहतीं-
”एक आदमी से घर में कैसी रौनक रहती थी। न जाने अतुल कैसा होगा।“

”तुम तो बेकार ही परेशान होती हो, अम्मा। अमेरिका जैसा समृद्ध देश दूसरा नहीं, वहाँ जो मिलेगा, तुम सोच भी नहीं सकतीं।“

भइया की अनुपस्थिति में अंजू घर की गार्जियन-सी बन गई थी। अपनी बातों से अंजू पूनम का खालीपन भरती रहती।

ऑफिस में अपनी मेज पर रखे लिफाफे को अंजू ने उलट-पुलट कर देखा। भइया का पत्र अभी पहुंचने की उम्मीद नहीं थी। उत्सुकता से खोले गए पत्र में मात्र चंद पंक्तियाँ ही थीं-

”मालती दी का डाँट-भरा खत मिला है, ऐसा क्या लिख दिया था आपने? मेरे साथ की लड़की शरीफ़ नहीं, ऐसा अनुमान कैसे लगा लिया? अपने जीवन को जैसे भी जीऊं, किसी को दखलंदाजी का अधिकार नहीं दिया है मैंने। एनी हाउ थैंक्स फ़ॉर दिस कंसर्न।“

-सुजय

अंजू का मुँह तमतमा आया। ये मालती दी भी कमाल करती हैं, मुझे कुछ लिखा और मेरे ही विरूद्ध उसे भड़का डाला। अपमान और क्रोध से अंजू का मन कसैला हो उठा। काम से तबीयत उचाट हो गई, तभी डाइरेक्टर का चपरासी उसे बुलाने आ गया।

”साहब याद कर रहे है।“

”मे आई कम इन, सर?“

”कम इन, आइए बैठिए।“

”चेयरमैन का लेटर आया है। आपको बधाई दी है। उम्मीद है जल्दी ही हेडक्वार्टर से आपका बुलावा आएगा।“

”थैंक्यू सर, यह तो आपकी गाइडेंस से ही संभव हो सका है।“

”आपका भविष्य बहुत उज्ज्वल है, मिस मेहरोत्रा। आपके पिता की उम्र का हूँ इसलिए कह रहा हूँ, आपको विवाह कर लेना चाहिए। कहें तो मैं मदद करूँ?“

”थैंक्यू सर, जब जरूरत होगी आपके पास आऊंगी। मुझे बेटी मानते हैं तो आगे से मुझे ‘आप’ कभी न कहें ,सर।“

”ओ के पर तुम भी मुझे ‘सर’ न कहकर अंकल पुकारोगी।“

”जी सर..............अंकल।“

दोनों हॅंस पड़े। कुछ देर पहले का अवसाद अंजू के मन से कुछ हद तक छंट गया।

उस रात अंजू ने मालती जी को लम्बा-सा खत लिख डाला, पर उसका खत उन तक पहुंचने के पहले ही उनका पत्र अंजू तक आ पहुंचा।

मेरी अंजू,

पिछले खत में शायद कुछ उल्टा-सीधा लिख गई थी, असल में उस दिन बहुत बेचैन थी। बुरी खबर मिली थी- आशीष नहीं रहे। अपने अन्तिम दिनों का बनाया चित्र मुझे भेजने को कह गए थे। नैन्सी ने पोस्ट से भेजा। चित्र में त्रिवेन्द्रम का परिचित सागर-तट था, पर बर्फ से जमा, स्थिर-निर्जीव। नीचे शीर्षक दिया था ‘मैं’।

समझ सकती है, मुझ पर क्या बीती होगी। सिन्हा साहब ने कुछ नहीं पूछा पर मैंने ही बता दिया। वे ऊपर से शांत हैं पर जानती हूँ उनके अन्दर कैसा द्वन्द्व चल रहा है।

सुजय के पागलपन की क्या कहूँ मोनिका के ‘क्लास’ की नफरत वह भुला नहीं सका है। उस दिन उसके साथ रोमा थी। आज सुजय के पास जो सब है, उसकी वजह से मोनिका भी दस बार उसके सामने शीश झुकाए, रोमा की तो बात ही क्या, पर वह किसी पर नजर डाले भी तब न? कल तक सबकी दृष्टि से अपने को छिपाता, अपने-आप में सिमटा ‘लल्लू’ बना सुजय आज आत्मविश्वास से परिपूर्ण, सबकी दृष्टि में इतना ऊंचा उठ चुका है। कितनों की हिम्मत होगी उससे निगाह मिलाने की? उसकी बुद्धि और प्रतिभा के सभी कायल हैं, उससे विवाह किसी भी लड़की का सपना होगा।.......... सब कुछ प्राप्य है उसे, पता नहीं कौन लड़की उसके अन्दर के बर्फ को पिघला सकेगी।

-मालती दी

मालती जी के पत्र ने अंजू को व्यथित किया था। शान्त चल रहे घर में सिन्हा साहब के मन की आँधी न जाने क्या करे? पर मालती दी ने कहा था- जब तक उन्हें यह सब पता लगेगा, वह मुझ पर बहुत विश्वास कर सकेंगे-भगवान उनकी यह बात सच करे, पर इतने दुःख में भी सुजय के लिए परेशान होना क्या ठीक है? वह कोई दूध-पीता बच्चा तो नहीं जिसे समझाया जाए? अंजू समझ नहीं पा रही थी मालती दी को सांत्वना का पत्र लिखना चाहिए या नहीं। अन्ततः उन्हें पत्र न लिखने का निर्णय ले अंजू ऑफिस चली गई।

ऑफिस पहुँचते ही डाइरेक्टर ने बुलवाया था।

”अंजू, तुम्हें हेडक्वार्टर जाना होगा। जय इंडस्ट्रीज के साथ हमें कांट्रैक्ट मिल रहा है। इट्स ए बिग अचीवमेंट। तुम्हारी प्रेजेंस जरूरी है, शायद पाँच-छह दिन लग जाएँ। तैयारी कर लो।“

”जी ........। क्या मेरी जगह मिस्टर गुप्ता को नहीं भेजा जा सकता?“

”क्या कह रही हो, अंजू? ऐसे अवसरों की लोग प्रतीक्षा करते हैं और तुम हाथ आया मौका गॅंवाना चाहती हो! एनी प्रोब्लेम?“

”नहीं अंकल, वैसी कोई बात नहीं है, ठीक है मैं तैयारी कर लेती हूँ। कब जाना है?“

”परसों की फ्लाइट से चली जाओ, एक दिन पहले पहुँचना ठीक रहेगा। चेयरमैन से भी बात कर लोगी, शायद वे कुछ कहना चाहें।“

”ओ के, सर।“

दिल्ली जाने का उत्साह जय इंण्डस्ट्रीज के नाम ने खत्म कर दिया था। साथ के लोग उसकी किस्मत पर रश्क कर रहे थे, पर वह परेशान दिख रही थी।

”क्या बात है, मिस मेहरोत्रा, घर में कोई समस्या है, आप कुछ परेशान हैं?“

”नहीं, बस मेरी ही तबियत कुछ डाउन थी।“

जरूरी कागजातों की फाइल बनाने में अंजू जुट गई। काम के बीच अंजू को ध्यान आता रहा उसकी नियति में सुजय से बार-बार की भेंट क्यों लिखी है? पिछली बार उसके पत्र की अपमानजनक पंक्तियाँ भुला पाना आसान तो नहीं था, कैसे उसे फ़ेस कर पाएगी?

दिल्ली एयरपोर्ट पर कम्पनी की कार उसे लेने पहुँच गई थी। गेस्ट हाउस में फ्रेश होने के बाद वह हेड ऑफिस पहुँची। संक्षेप में कल की कार्रवाई के बारे में जानकारी दे, चेयरमैन दूसरी मीटिंग मे चले गए।
"मिस मेहरोत्रा, आप भाग्यशाली हैं, चेयर्मैन की निगाहों में चढ़ गई हैं, वर्ना उनकी कृपा-दृष्टि में आ पाना क्या संभव है?“ मिस्टर जयराज के शब्दों में उसके प्रति प्रशंसा थी या व्यंग्य समझ पाना कठिन था।

सुबह ठीक साढ़े दस बजे कांट्रैक्ट साइन करने के लिए मीटिंग थी। चेयरमैन के साथ सुजय और दो अन्य अधिकारियों ने प्रवेश किया था। सम्मान में खड़ी अंजू की ओर सुजय ने दृष्टि भी न डाली।

वार्ता के बाद चेयरमैन और ‘जय इंडस्ट्रीज’ के अध्यक्ष सह- प्रबंध निदेशक के रूप में सुजय ने समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। फोटोग्राफर ने हस्ताक्षर की प्रक्रिया को कैमरे में कैद कर लिया। चेयरमैन बहुत अच्छे मूड में थे, फोटोग्राफर को रूकने का संकेत दे अंजू को पुकारा।

”मिस मेहरोत्रा और आप सब यहाँ आ जाइए, आज के दिन की याद में एक ग्रुप फोटो हो जाए, क्यों मिस्टर कुमार?“

”जैसी आपकी मर्जी।“

ग्रुप में सबके खड़े होने की जगह बनाते हुए अंजू के लिए सुजय के साथ जगह बनाई गई।

”मिस मेहरोत्रा, आप आज के हमारे मुख्य अतिथि के साथ खड़ी हों, आज के इस कांट्रैक्ट में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है, ठीक कहा न, मिस्टर कुमार?“ सदा के गम्भीर चेयरमैन नारायण आज मुक्तकंठ हॅंस रहे थे।

न चाहते हुए भी अंजू को सुजय के बायीं ओर खड़ा होना पड़ा था। सुजय के चेहरे पर हल्की-सी मुस्कराहट भी नहीं थी। अपने को बेहद विवश मानते हुए अंजू खड़ी हो गई।

‘स्माइल प्लीज’ के साथ कम्पनी फोटोग्राफर ने कैमरे का बटन दबा दिया। अंजू के चेहरे पर मुस्कराहट की जगह जैसे मातम छाया रहा था।

रात्रि-भोज पर अंजू विशेष रूप् से आमंत्रित थी, पर सिर-दर्द के बहाने के साथ अंजू गेस्ट हाउस में ही रूक गई।

रात करीब ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे फोन की घंटी घनघनाई।

”मिस मेहरोत्रा, आपका टेलीफोन, सॉरी फ़ॉर दि इनकन्वीनियेंस, पर आपके लिए कोई अर्जेण्ट मैसेज है।“

अंजू घबराकर उठ बैठी, न जाने घर से कोई खबर है या.......

”हेलो.......... मैं अंजू बोल रही हूँ।“

”देखिए मेरी आवाज सुनते ही फ़ोन नीचे मत रख दीजिएगा। पहचान गई न?“

सुजय की आवाज पहचानना कठिन तो नहीं था।

”आपको अपने लिए इतना कंसर्न देखकर मैंने शादी करने का निर्णय लिया है।“

”टु हेल विद योर निर्णय, मिस्टर सुजय कुमार, इतनी रात गए मुझे डिस्टर्ब करना जरूरी था क्या?“

”आप आज डिनर में क्यों नहीं आई?“

”आपको देखना नहीं चाहती थी बस इसलिए। एनी ऑब्जेक्शन? वैसे भी अपनी जिन्दगी मैं अपने तरीके से जीना चाहती हूँ, मिस्टर कुमार। अपने लिए प्रयुक्त सुजय के शब्द अंजू के दिमाग में झनझना उठे थे।“

”ओह...... शायद मेरी बातें बेहद गम्भीरता से लेती हैं आप वर्ना आज तक यह बात क्यों याद रखतीं?“

”बड़ा गुमान हैं आपको अपने-आप पर? एक बात बता दूँ, मेरे लिए आप के पैसों का जरा भी मोह नहीं है, जिन्हें पैसे से प्यार हो, उन्हीं से फ्लर्ट कीजिए, मिस्टर कुमार। मेरी जिन्दगी में आप जैसों के लिए कोई जगह नहीं, समझे।“

”पैसों से नहीं, मुझसे तो मोह है, अंजू?“

”क्या....... आप होश में तो हैं?“

”तुमसे मिलना चाहता हूँ, अभी इसी वक्त..........।“

”इम्पॉसिबिल।“ फोन अंजू ने लगभग पटक-सा दिया। दिल की धड़कन जोरों से कानों में बज रही थी। यह कैसा पागलपन है। विनीत और सुजय एक तस्वीर के दो पहलू......... एक ने अपने स्वार्थवश उसका परित्याग कर दिया और दूसरा अपने अहं की तुष्टि के लिए उसके पीछे पड़ा है। एक लड़की से अपमानित होने के बाद वह अन्य लड़कियों को अपमानित करना चाहता रहा है। अंजू भी क्या उन्हीं में से एक नहीं? उसकी चाहना कर, सुजय क्या चाहता है?

कमरे के बन्द दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी थी। अंजू को पसीना आ गया। उठकर दरवाजा खोलने की हिम्मत नहीं हुई थी।

दरवाजे पर फिर जोर की दस्तक के साथ आवाज आई-
”मैडम, प्लीज दरवाजा खोलिए। मैं होटल-मैनेजर बोल रहा हूँ। बहुत जरूरी बात है।“

कुछ पल शंकित खड़ी अंजू ने अन्ततः दरवाजा खोल दिया।

”मैडम, मिस्टर सुजय कुमार जिस होटल में ठहरे थे वहाँ बम- विस्फोट हुआ है। मिस्टर कुमार ने कुछ देर पहले आपको फ़ोन किया था, होटल- एक्सचेंज से आपका नाम-पता ले, ये इंस्पेक्टर साहब आए हैं।“

”सॉरी मैडम, इस समय आपको तकलीफ़ दी, पर मिस्टर कुमार के बारे में आपसे कुछ जानकारी चाहते हैं। अभी वे अनकांशस हैं। आप उनकी परिचित हैं? उनके घर में किसे खबर दी जानी है, बता सकेंगी?“

”ओह माई गॉड। कैसे हैं वे?“ अंजू के स्वर में बेहद घबराहट थी।

”परेशान न हों, उन्हें हॉस्पिटल भेजा जा चुका है। मिस्टर कुमार आपके रिलेटिव हैं?“

”जी नहीं, उनसे मेरा कोई रिश्ता नहीं।“

”उनकी डायरी में आपका नाम-पता मिला है। होटल की फ़ोन- ऑपरेटर ने बताया- जिस समय विस्फोट हुआ, उससे कुछ क्षण पहले वे फोन पर आपसे बातें कर रहे थे।“

”कल उनका हमारी कम्पनी के साथ एक कांट्रैक्ट हुआ है, वहीं परिचय हुआ था।“ अपनी ही बात अंजू के अपने कानों में खटकने लगी।

”ओह, बस कल-भर की पहचान है, तब तो हमने बेकार आपको परेशान किया।“ इंस्पेक्टर के स्वर में व्यंग्य का पुट था।

”आप मेरी कम्पनी के चेयरमैन मिस्टर नारायण से फ़ोन पर सम्पर्क करें। वे आपको पूरी जानकारी दे सकेंगे।“

”ओ के, मैडम। सॉरी फार दि ट्रबल। गुड नाइट।“ इंस्पेक्टर मुड़कर चला गया था।

इंस्पेक्टर के चले जाने के बाद अंजू कुर्सी पर जा बैठी। मन में भयानक उथल-पुथल हो रही थी। घबराहट में इंस्पेक्टर से यह भी नहीं पूछा वह किस हॉस्पिटल में एडमिट है? न जाने किस हाल में होगा।

”हे भगवान, उसे बचा लेना। अपने वंश का वही एकमात्र वारिस है, उसकी रक्षा करना।“

अनजाने ही अंजू के हाथ जुड़ गए थे। फ़ोन की घंटी ने फिर उसे चैतन्य किया।

”मिस मेहरोत्रा, मिस्टर कुमार होटल में एक बम- ब्लास्ट में घायल हो गए हैं, क्या आप रात हॉस्पिटल में आ सकती हैं? मैं गाड़ी भेज रहा हूँ।“ फ़ोन मिस्टर नारायण का था।

”सर, मिस्टर कुमार की कंडीशन क्या ज्यादा सीरियस है?“

”कुछ कहा नहीं जा सकता, प्लीज आप आ जाएँ, वहीं बात करेंगे।“ अंजू को कुछ और कहने-सुनने का मौका दिए बिना उन्होने फ़ोन रख दिया था।

अंजू का दिल घबरा रहा था, न जाने क्या होने वाला था-किस घड़ी में उसने दिल्ली की यात्रा की थी! ज्ल्दी में सामने पड़ा सलवार-सूट पहन अंजू नीचे रिसेप्शन पर उतर आई। रिसेप्शनिस्ट उसे खोजी निगाहों से ताक रहा था। कुछ देर पहले इंस्पेक्टर द्वारा की गई खोजबीन का उसने न जाने क्या अर्थ निकाला होगा। अपनी घबराहट छिपा अंजू बेहद संयत दिखने का नाटक कर रही थी। कुछ ही देर में उसे गाड़ी पहुँचने की खबर दी गई।

गाड़ी का द्वार खोल, उसके बैठ जाने पर संतरी ने सलाम ठोका था, उसे क्या पता अंजू किस परेशानी में थी।

गनीमत थी रात के उस पहर भी दिल्ली में उतना सन्नाटा नहीं था। कम्पनी की गाड़ी में जाने से किसी तरह का डर न होने पर भी अंजू को पसीना आ रहा था। करीब आधे घंटे बाद, कार हॉस्पिटल के पोर्टिको में जा पहुँची थी। तत्परता से उतरे ड्राइवर ने अंजू के लिए दरवाजा खोला। चेयरमैन के 0पी0एस0 खड़े अंजू की प्रतीक्षा कर रहे थे।

”आइए, मैडम।“

”कैसे हैं मिस्टर कुमार?“ साथ चल रहे मिस्टर जयराज से अंजू ने सवाल किया।

”अभी अनकांशस हैं, कुछ कह पाना कठिन है।“

इंटेसिव केयर यूनिट के सामने गम्भीर मुख चेयरमैन खड़े थे। उस परेशानी में उन्हें अभिवादन करने की भी अंजू को याद नहीं रही। अंजू के परेशान चेहरे पर एक क्षण दृष्टि डाल, उन्होंने सांत्वना-सी दी-
”आई एम सॉरी इस वक्त आपको परेशान करना पड़ा, असल में मिस्टर कुमार की डायरी में आपका नाम व पता था.......इसीलिए ....... आप तो जानती ही हैं, ये पुलिस वाले.............“

”जी सर, होटल में इंस्पेक्टर से बात हो चुकी है।“ अंजू के चेहरे का रंग बदल-सा गया।

”ओह, आई सी। वैसे आप दोनों पहले से परिचित थे?“

”त्रिवेन्द्रम में एक कॉन्फ्रेंस हुई थी, वहीं जान-पहचान हुई थी।“

चेयरमैन की उत्सुकता में डाक्टर ने बाधा डाली- ”मिस्टर कुमार को होश आ गया है। अब चिन्ता की कोई बात नहीं है।“

”थैंक्स गॉड। क्या हम उनसे मिल सकते है।?“

”अच्छा हो सुबह मिल लें, हाँ अंजू कौन हैं? कुछ देर पहले मि0 कुमार उन्हें याद कर रहे थे।“

”अंजू...... ओह शायद मिस मेहरोत्रा यह आपका ही नाम है?“ चेयरमैन ने अंजू की ओर देखा।

”जी... घर में सब अंजू ही पुकारते हैं।“

”मिस्टर कुमार शायद आपसे मिलना चाहें। आप यहाँ विजिटर्स रूम में प्रतीक्षा कर सकती हैं?“ सदय डाक्टर के स्वर में सहानुभूति थी।

”जी ..........कब तक रूकना होगा?“

”आपको तकलीफ तो होगी, पर शायद सुबह हो ही जाए।“

”आप परेशान न हों मिस मेहरोत्रा, मेरी पत्नी आपके साथ रह सकती है। मैं अभी उन्हें गाड़ी भेजकर बुलवा लेता हूँ।“ मिस्टर नारायण अपना फ़र्ज़ निभाने को तत्पर थे।

”नहीं सर, आप उन्हें तकलीफ़ न दें, आप भी घर जाकर थोड़ा रेस्ट लें, मैं यहाँ प्रतीक्षा करूँगी।“

”पर आप यहाँ अकेले मैनेज कर लेंगी?“

”मैनेज करने को हैं ही क्या, सर?  डाक्टर और भगवान, दोनों पर भरोसा करना ही इन्सान की नियति है।“

”ठीक है, मैं थोड़ा घर हो आता हूँ। मेरी वाइफ़ हाई ब्लड प्रेशर की पेशेण्ट है। थोड़ी-सी देर में नर्वस हो जाती है। आपके पास नर्मदा को भेज दूँगा। हमारे घर की केयर-टेकर है, बहुत होशियार लड़की है।“

”आप बेकार परेशान हो रहे हैं सर, यहाँ पूरा हॉस्पिटल- स्टाफ़ है, ज़रूरत पड़ने पर आपको फ़ोन कर लूँगी।“

”ओ के मिस मेहरोत्रा, मैंने एस0पी0 से बात कर ली है, अब वे लोग आपको परेशान नहीं करेंगे।“

”थैंक्यू, सर!“ न जाने क्यों अंजू का गला भर-सा आया।

हॉस्पिटल के माहौल से अंजू हमेशा घबराती थी। जब से पापा की मौत अस्पताल में हुई, अंजू को हॉस्पिटल के नाम से दहशत-सी होने लगी थी।

सुजय उसका कोई नहीं, पर यहाँ वह उसकी अपनी बनी बैठी थी। सुजय ने उसे ही पुकारा था। क्यों? मालती दी सुजय को अभागा कहती हैं..........बेचारे के पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नही है। उसका दुख-दर्द बाँटने वाला कौन है, अंजू?

”मिसेज मेहरोत्रा..........अंजू जी......“ न जाने कैसे उस टेंशन में भी अंजू को झपकी आ गई थी। आँखें खोलते ही नर्स को देखा था।

”आप शायद सो गई थी। आपके पेशेंट अब पूरी तरह होश में है। आप उनके पास जा सकती हैं, पर उनसे बहुत बात मत कीजिएगा!“

”मेरा जाना क्या ज़रूरी है?“ अचानक अंजू पूछ बैठी।

”आप नहीं तो और कौन जाएगा? आप उनकी वाइफ़ हैं न? वह बार-बार आपको बुलाता था। डरने की कोई बात नहीं है, वह एकदम ठीक है। थोड़ा-सा शॉक था बस..............। प्रौढ़ा नर्स ने बच्चों की तरह अंजू को सांत्वना दी।“

केबिन में सफ़ेद बेड पर सुजय लेटा था। खिड़की से भोर की उजास अन्दर उतर आने को व्याकुल थी। सुजय के क्लान्त मुख पर दृष्टि डालती अंजू ठिठक गई। ढेर-सी ममता उमड़ आई थी.............. कितना अकेला, निस्सहाय शिशु-सा लगा था सुजय।

खिड़की से आए हवा के झोंके ने अंजू का आँचल सुजय के माथे पर लहरा-सा दिया था। मुंदी पलकें आंचल के स्पर्श से हौले खुलीं.............

”तुम.............आप......।“ क्षीण स्वर में सुजय ने कुछ कहना चाहा।

”अब तबियत कैसी है?“

”आपको देखना था सो बच गया।“ हल्की-सी मुस्कराहट बिखरी थी।

”बुरा मान गई ,अंजू?“ अंजू का मौन देख सुजय ने पूछा।

”आपको किसी के अच्छा-बुरा मानने की चिन्ता है?“ नर्स का निर्देश भुला अंजू पूछ बैठी।

”किसी की न सही, तुम्हारी ज़रूर है।“

”इसीलिए मना करने के बावजूद उतनी रात में कार- ड्राइव कर मेरे पास आने को तैयार थे न?“

”उस समय मैं अपने आपे में नहीं रह गया था, अंजू।“

”ऐसी कौन-सी बात हो गई थी, मिस्टर कुमार।“

”मिस्टर कुमार नहीं, सिर्फ जय। उस वक्त इतना अकेला महसूस कर रहा था कि लगा किसी तरह तुम्हारे पास पहुंच जाऊं, वर्ना मेरा दम घुट जाएगा।“

”आपके पास अकेलापन काटने के लिए तो बहुत से उपाय हैं, मिस्टर कुमार।“

”प्लीज अंजू..... मैं बस सुजय बना रहना चाहता हूँ। तुमने कभी अकेलेपन की गूंज सुनी है, अंजू?“

”अकेलेपन में सन्नाटा होता है, गूंज नहीं।“

”नहीं अंजू, तुम नहीं जानतीं। किसी गुम्बद के नीचे खड़ी होकर आवाज दो, वह आवाज तुम तक वापिस आ जाती है न? बस, बिल्कुल उसी तरह मेरे अतीत की गूंजे दुगने ........... चौगुने शोर के साथ मेरे मानस से इस तरह टकराने लगती हैं कि उन्हें सह पाना कठिन हो जाता है। उस वक्त मुझे एहसास होता है मैं कितना अकेला छूट गया हूँ.........। कैसे मुक्ति पाऊं इन आवाजों के शोर से-  कैसे..............?“

”अभी आप आराम कीजिए। डॉक्टर ने आपको बातें करने के लिए मना किया है।“

”मैंने बात अभी की ही कहाँ हैं, अंजू? मन में बातों के इतने बड़े हिमालय खड़े हो गए हैं, आज बोलने दो, अंजू।“

”हिमालय को एक ही दिन में ढहा देना चाहते हैं, पर इतना जान लीजिए, मैं उसके बोझ तले दब तो नहीं जाऊंगी?“ न चाहते भी अंजू ने परिहास कर डाला।

”तुम्हें जरा-सी खरोंच भी लगे, मैं सह नहीं पाऊंगा, यह बात जानती हो, अंजू?“ अनुत्तरित अंजू को पूरी दृष्टि से देखता सुजय गम्भीर हो उठा था।

”तुम्हें बहुत चाहता हूँ, अंजू........जानना चाहोगी क्यों?“

”मुझे कुछ नहीं जानना है...........आपको आराम करना चाहिए।“

”बहुत दिनों बाद आज अच्छा महसूस कर रहा हूँ।“

”तब तो आपको रोज ऐसे हादसे झेलने चाहिए।“ अंजू हॅंस पड़ी।

”उसके लिए तैयार हूँ, बशर्ते पलंग के पास तुम इसी तरह हॅंसती बैठी रहो।“

”मेरे पास फ़ालतू समय नहीं है, मिस्टर............“

”सुजय कहना इतना कठिन लगता है, अंजू?“ सुजय जैसे आहत हो गया था।

”बहुत आसान तो नहीं लगता, अन्ततः हम इतने नज़दीक तो नहीं हैं न?“

”तुम मेरे इतनी नजदीक हो अंजू, कि मैं तुमसे दूर रहकर, जी नहीं सकता। मेरे ऊसर मन में ठंडे पानी की बौछार की तरह तुम मेरे जीवन में आई हो, अंजू। मालती दी ने मेरे बारे में सब बताया होगा, पर उन्हें भी जो नहीं बता पाया उस बात को जानती हो?“

”कौन-सी बात?“ अचानक अंजू के मुँह से प्रश्न छलक गया।

”यही कि तुम विनीत से इस कदर आहत होकर भी बेहद संयमित रहीं। मन के झंझावात को अपने ऊपर कभी हावी नहीं होने दिया, जबकि मैंने अपने अपमान को अपने से प्रतिशोध का माध्यम बना लिया। अपमानित होकर अपमान करते जाना मेरी गलती थी। इस सत्य को तुमसे ही जान पाया, अंजू।“

”नारी और पुरूष में अन्तर होता ही है, सुजय- उसके लिए मुझे इतनी इम्पॉर्टेन्स देने वाली कोई बात नहीं है।“ अनायास ही अंजू उसे ‘सुजय’ कह गई थी।

”तुम बहुत मॉडेस्ट हो अंजू, इसीलिए तो तुम मेरी प्रेरणा.............“

”मेरी कमजोरियों को नहीं जानते वर्ना.............“

”तुम्हारी दृढ़ता को अच्छी तरह जाँच-परख चुका हूँ, अंजू। विनीत को भी तुमने जीने का मंत्र दिया है, वर्ना वह आत्महीनता के कॉम्प्लेक्स से कभी न उबर पाता। आज अपनी मेहनत से वह एक बड़े कारोबार का स्वामी बन सका है।“

”आपको कैसे पता?“

”त्रिवेन्द्रम के बाद विनीत से कई बार मिलना हुआ, काम के सिलसिले में हम दोनों अच्छे मित्र बन चुके हैं, अंजू।“

”उसने मेरे बारे में क्या कहा, सुजय?“

”तुम्हारे बारे में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, अंजू, तुम्हारी तो प्रेजेन्स महसूस की जाती है। पहली बार तुम्हें देखते ही लगा था तुम ओस की बूंद हो।“
"ओस की बूंद मै,वाह क्या उपमा दी है। अंजू हंस पड़ी।
"जानती हो अंजू,बचपन मे मै ओस की बूंदों का दीवाना हुआ करता था। पापा सुबह जल्दी उठा दिया करते थे। उनके साथ गार्डेन मे फूलों पर पड़ी ओस की बूंदें एकदम मोती सी लगा करती थीं और मै उन मोतियों को बटोरता फिरता था।
”ओस की बूंदों को बटोरने की कल्पना ही यूनीक है, सुजय  हाथ में न आने पर रोते होंगे न?“

”जीवन-भर जो पाना चाहता था- पा गया......। तुम मिल गई।“

”अपने बारे में इकतरफा निर्णय लेने का अधिकार मैंने किसी को नहीं दिया है, सुजय..........।“ अंजू को सुजय की लिखी पंक्ति याद आ गई थी....... अपने जीवन में दखलअंदाजी का अधिकार मैंने किसी को नहीं दिया है।

”तुम मुझे बहुत चाहती हो ,अंजू, यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ।“

”जिससे ठीक से परिचय भी नहीं, उसे मैं चाहने लगूँगी.........यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है, सुजय।“

”तुम इस वक्त मेरे पास हो, क्या यह सच नहीं?“

”यह मेरी मज़बूरी थी.............।“

”तुम इसे टाल सकती थीं।“

”मानवता के नाते क्या वह ठीक होता?“

”नहीं अंजू, अपने को झूठलाने की कोशिश मत करो। उस दिन होटल में मेरे साथ उस लड़की को देख तुम क्या सामान्य रह पाई थीं? सच तो मैं उसी दिन जान गया था.......... फिर जब मालती दी का खत मिला तो कन्फ़र्म हो गया।“

”आप अपने निर्णय लेने को स्वतंत्र हैं और मैं अपने निर्णय के लिए स्वतंत्र हूँ। नदी के किनारों में से क्या चाहकर भी एक किनारा दूसरे तक पहुंच सकता हैं?“

”किनारे साथ-साथ चल तो सकते हैं - क्या जीने के लिए इतना ही काफ़ी नहीं? तुमसे बहुत-सा नही, पर थोड़ा-सा प्यार ज़रूर चाहूँगा, अंजू, मिलेगा न?“ एक जोड़ी मुग्ध आँखें अपने ऊपर गड़ी पा, अंजू संकुचित हो उठी।

”जीवन में न जाने कितनों का साथ चाहे-अनचाहे मिल जाता है। अब आप ठीक हैं, मुझे चलना चाहिए।“

सुजय की ओर दृष्टि डाले बिना अंजू उठ खड़ी हुई थी। सामने खड़ी टैक्सी ले, अंजू गेस्ट हाउस पहुंच गई थी। जल्दी-जल्दी सामान समेट चेयरमैन को फ़ोन मिलाया-

”सर, मिस्टर कुमार अब ठीक हैं, घर से फोन आया है, मुझे फौरन लौटना होगा।“

”एनीथिंग सीरियस, मिस मेहरोत्रा?“

”नहीं सर, माँ की तबीयत खराब हैं, घर में भाभी अकेली है, इसीलिए जाना ज़रूरी है।“

”ठीक हैं, मैं गाड़ी भेज रहा हूँ। फ्लाइट टिकट की बुकिंग है?“

”मैं एयरपोर्ट पर ही ट्राई कर लूँगी सर, लखनऊ के लिए ज्यादा रश नहीं होता...........।“

”मैं दयाल से कह देता हूँ वह टिकट अरेंज कर देगा। टेक केयर ऑफ योरसेल्फ़ एण्ड थैंक्स फ़ॉर एवरीथिंग यू डिड फ़ॉर दि ऑफिस।“

”थैंक्स सर, वह तो मेरी ड्यूटी है।“

एयरपोर्ट पर मिस्टर दयाल उसके टिकट के साथ खड़े मिले थे। प्लेन में बोर्ड करने के बाद अचानक अंजू को लगा वह बहुत थक गई है। पिछले दो दिन ऑफिस की कड़ी ड्यूटी, फिर कल की पूरी रात जिस टेंशन में गुजरी उसने अंजू को पूरी तरह थका दिया था। आँखें बंद कर अंजू ने सिर पीछे टिका दिया।

आज सुबह की सुजय की बातें फिर जी उठी थीं। अंजू की किस्मत में क्या ऐसे ही पुरूष हैं जो किसी से टूट उसके आँचल में सिर छिपाना चाहते है? विनीत ने उसे चाहा, फिर स्वयं ही छोड़ दिया, पत्नी के व्यवहार से उसके अहं को चोट लगी तो फिर उसकी ओर मुड़ना चाहा। सुजय उससे पहले मिला होता तो क्या उसे पसंद करती? मालती दी का कहना है क्या नहीं है उसके पास, पर फिर भी बेहद अकेला हैं, उदास है। वैसे नापसंद करने लायक तो सुजय में सचमुच कुछ नहीं है, पर मोनिका उसकी प्रथम चाहत थी, यह बात अंजू के गले से नीचे नहीं उतरती। नहीं, वह किसी का विकल्प नहीं बन सकती। शायद उसकी किस्मत में विवाह का योग ही नहीं है। वर्ना विनीत क्यों उसके जीवन से जाता?

आठ


घर पहुँचने पर भी अंजू बेचैन-सी थी। न जाने कौन-सी अशांति उसे घेरे हुए थी। अम्मा, भाभी दोनों ठीक थीं, पर अम्मा उसका उतरा मुँह देख आश्वस्त नहीं हो पा रही थीं।

”क्या बात है अंजू, ऐसा चेहरा क्यों उतरा हुआ है तेरा? हजार बार कहा, इतनी मेहनत न किया कर। तू किसी की सुने तब न?“

”अच्छी-भली हूँ अम्मा, तुम्हें तो हमेशा कमजोर ही दिखती हूँ। भइया की चिट्ठी आई है?“

”तेरे जाने वाले दिन ही तो आई थी.........उतनी दूर से क्या रोज-रोज चिट्ठी आती है? भगवान उसे अच्छा रखे।“ अम्मा ने उसाँस ली।

शाम को पूनम ने उसे पकड़ा-

”सच कह अंजू, क्या बात है? इस तरह बुझी हुई तू कभी नहीं थी।“

”कोई बात नहीं है, भाभी.................“

”हम दोनों एक-दूसरे का बहुत अच्छी तरह जानते हैं न, अंजू, मैं गलती नहीं कर रही हूँ, तू कुछ परेशान ज़रूर है।“

”तुम्हीं बताओं भाभी, क्या मेरी नियति में केवल किसी का विकल्प बनना ही लिखा है? क्या कोई सिर्फ मुझे नहीं चाह सकता? क्या जरूरी है किसी की तुलना में मैं जब भारी पड़ूं तभी दूसरों को मेरे गुण दिखाई पड़े?“

”किसकी बात कर रही है, अंजू? साफ़-साफ़ बताए बिना न्याय कर पाना कठिन है।“

पूरी बात बताते अंजू कहीं अटकी नहीं थी। पूनम के साथ उसका रिश्ता भाभी और ननद का नहीं, दो सहेलियों का था। बात सुनने के बाद पूनम गम्भीर हो आई।

”एक बात बता अंजू, तू जैसा सोच रही है, कोई दूसरा क्या वैसा ही नहीं सोच सकता?“

”मतलब?“

”यही कि तू भी तो पहले विनीत से कहीं गहराई से जुड़ी रह चुकी है........“

”ठीक कहती हो भाभी, पर वह बात तो तब होती न, जब मैं विनीत की तुलना में सुजय को ज्यादा पसंद करती? मेरे साथ तो वैसी बात नहीं है, शायद आज भी विनीत को पूरी तरह नहीं भुला सकी हूँ ,भाभी।“

”मतलब तुम आज भी विनीत को ही पसंद करती हो।“

”मैंने ऐसा तो नहीं कहा।“

”तुम्हारा और क्या मतलब था?“ सीधी-सी बात है, मन को जब कोई इतना अच्छा लगने लगे कि उसके सिवा और कुछ चाहना ही शेष न रहे तो बस उसे ही स्वीकार करना चाहिए। इसमें तर्क-वितर्क का स्थान नहीं रहता, अंजू।“

”जिस दिन मुझे ऐसा लगेगा, जरूर बताऊंगी।“

”वह दिन दूर नहीं अंजू, यह मेरा अनुभव कह रहा है।“ पूनम का चेहरा दमक उठा।

”ओह बहुत एक्सपीरिएंस्ड हो गई है न? यह तो बताओं भइया के क्या हाल हैं, कहीं किसी अमेरिकन लड़की के प्रेम-वेम में तो नहीं फंस गए हैं? “ अंजू के चेहरे पर शरारत छा गई।

”धत्त, प्रेम में शक नहीं किया जाता, विश्वास होता है और इसी विश्वास के सहारे इतनी दूर रहकर भी हम इतने पास हैं।“

पास रखे फोन की घंटी बज उठी। अंजू ने फोन उठाया।

”हलो..........।“

”कैसी हो, अंजू? बहुत याद आ रही हो। जी नहीं माना इसलिए कॉल कर लिया, होप यू डोन्ट माइन्ड इट।“

”इट्स ओ के । कोई खास बात?“

”इससे खास बात और क्या होगी कि तुम्हें अपने बेहद पास पा रहा हूँ। अब तो हर पल तुम्हारी याद मेरे साथ रहती है, अंजू।“

”थैंक्स।“ अंजू ने फोन पटक-सा दिया। माथे पर पसीना चमक उठा।

”किसका फोन था, अंजू?“

”ऑफिस से..............।“

”इस वक्त वहाँ कौन बैठा होगा?“ पूनम के स्वर में शंका थी।

”ऑफिस वालों के घर में भी तो फोन हो सकता है, भाभी।“

”हाँ, यह बात तो भूल ही गई थी, घर में रहते लोगों को काम की बातें ज्यादा याद आती है।“ पूनम ने हल्के से मजाक कर डाला।

”चलती हूँ भाभी, जोरों की नींद आ रही है।“

”वैसे इस फोन के बाद सो पाओगी, इसमें मुझे शक है, अंजू रानी।“

”शक की दवा तो हकीम लुकमान के पास नहीं है, भाभी।“

सचमुच बिस्तर पर लेटी अंजू से नींद कोसों दूर थी। सुजय की बातें बार-बार याद आ रही थीं। क्या वह भी सुजय को चाहने लगी है? इस वक्त सुजय क्या कर रहा होगा? शायद अकेलेपन के एहसास ने उससे वह फ़ोन करा दिया। वैसे उसका और सुजय का क्या नाता था? न जाने क्यों उससे मिलना हो गया?  वह सुजय से क्यों चिढ़ती है, क्या सिर्फ़ इसलिए कि उसने कभी मोनिका को चाहा था .........विनीत की चाहना अंजू ने भी तो की थी फिर......? फिर विनीत...... सचमुच अंजू हद करती है, विनीत आज भी उसे याद है।

उधेड़बुन में न जाने कब आँख लगी थी। सुबह अम्मा ने आवाज देकर उठाया-

”आज ऑफिस नहीं जाना है अंजू, क्या जी अच्छा नहीं है, बिटिया?“

”नहीं अम्मा, रात देर तक जागती रही, सुबह आँख लग गई थी।“

जल्दी-जल्दी तैयार हो अंजू बाहर निकली, पूनम का फ़र्स्ट पीरियड था, वह पहले ही निकल गई थी। ऑफिस पहुँचने में पन्द्रह मिनट लग जाते थे। कई बार सोचा, कार खरीद ले, ऑफिस से एडवांस भी मिल सकता था, पर भइया के पास कार नहीं, स्कूटर था, इसीलिए अंजू हमेशा कार खरीदने की बात टालती आई है। इस बार स्टेट्स से लौटने पर शायद भइया कार खरीद सकें, उसके बाद ही अंजू अपनी कार की बात सोचेगी। ऑटो या बस से जाने पर कुछ लोग पीठ पीछे उसे कंजूस की संज्ञा देते हैं, इस तथ्य से अंजू अनभिज्ञ नहीं थी।

‘कंजूस’ की संज्ञा सोच, अंजू के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान आ गई।

”क्या बात है मिस मेहरोत्रा, आप अकारण ही तो नहीं मुस्करातीं। कोई अच्छी खबर?“ पास बैठे मिस्टर गुप्ता ने परिहास किया।

”कभी-कभी किसी की मूर्खता की बात सोचकर भी तो मुस्कराया जा सकता है, गुप्ता जी।“ अंजू अब हॅंस रही थी।

”मेरी मूर्खता पर तो आप नहीं हॅंस रही हैं, मिस मेहरोत्रा।“

”मिस मेहरोत्रा को जो कहना था कह दिया, बाकी बात अपनी-अपनी समझ की है, गुप्ता जी।“ मुँहफट मिसेज मीरचंदानी ने गुप्ता को निरूत्तर कर दिया।

”चलिए कारण जो भी रहा हो मिस मेहरोत्रा की ओर से आज चाय के साथ गर्मागर्म पकौड़ियाँ हो जाएँ।“ नितीश रंजन ने सुझाव दिया।

”वाह, यह जुर्माना मेरे ही सिर क्यों?“

”क्योंकि आज न जाने कितने दिनों बाद आपके चेहरे पर हॅंसी जो आई है, मैडम।“ नितीश हमेशा अंजू से बेधड़क बातें कर लिया करता था। उम्र में अंजू से दो-चार साल छोटा वह लड़का अंजू को कभी मैडम, कभी दीदी पुकार, उसका काफ़ी अपना-सा बन गया था। नितीश की बात पर अंजू जोरों से हॅंस पड़ी।

”ठीक है आज बिना किसी कारण चाय-पकौड़ी का जुर्माना मैं ही भर देती हूँ।“

हॅंसी-मजाक के बीच सब कुछ बेहद सहज व सामान्य-सा लग रहा था। अम्मा और भीभी के साथ शॉपिंग का मूड बनाती अंजू बहुत खुश घर लौटी थी। पर पहुंचते ही अम्मा ने कोरियर से भेजा खत थमा दिया । पत्र की लिखाई मालती दी जैसी लग रही थी। पत्र पढ़ती अंजू के चेहरे का बदलता रंग देख अम्माँ शंकित हो उठी।

”किसका खत है, अंजू? कोई बुरी खबर तो नही...... कहाँ से आया है यह खत?“ जब से भइया अमेरिका गए थे, अम्मा हर पत्र को लेकर डरी ही रहती थीं।

”कोई खास बात नहीं है अम्मा, मालती दी का पत्र है, अपने हालचाल लिखे हैं। और हाँ, आज सिर बहुत दर्द कर रहा है, थोड़ा सोऊंगी। मुझे खाने के लिए मत जगाना ऑफिस में पार्टी थी, भरपेट खाकर आई हूँ।“

”कोई दवा ले ले अंजू, यह रोज-रोज की बीमारी अच्छी नहीं.......“

”थोड़ा सोने से ही ठीक हो जाएगा, तुम परेशान मत हो अम्मा।“

अम्मा को और अधिक बात करने का अवसर न दे, अंजू ने कमरे का दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।

दिल्ली से मालती दी ने लिखा था-

"अचानक सुजय के सेक्रेटरी का फोन पाकर सिन्हा साहब के साथ दिल्ली भागी आई हूँ। सुजय को माइल्ड स्ट्रोक पड़ा है। अपनो में उसका है ही कौन, सो मुझे ही याद किया था।

अब वह ठीक है खतरा तो टल गया, पर छह हफ्ते अस्पताल में रहना पड़ेगा। मेरे ख्याल में उसकी इस हालत के लिए उसका अकेलापन ही जिम्मेदार है। कल सुजय से हॅंसी में कहा, ”अंजू को भी बुला लेते हैं, उसके साथ कम्पनी बढ़िया हो जाएगी तो जैसे वह परेशान-सा हो उठा। कहने लगा-
 ”नहीं-नहीं, मिस मेहरोत्रा को पहले ही कई रातें जगा चुका हूं, अब उनको और तकलीफ़ देना अन्याय होगा। उन्हें कतई यह खबर मत दीजिएगा, मालती दी।“

”उसकी आवाज में न जाने कैसा दर्द था अंजू, मैं समझ नहीं सकी। तुम दोनों के बीच क्या घटा- क्या हुआ जानने का हक मुझे नहीं, पर सुजय तुझे बेहद चाहता है, यह बात मेरी अनुभवी आँखों ने पकड़ ली है। तुझे यह खबर न देना मुझे अपनी गलती लगती, इसलिए लिख रही हूँ, पर यहाँ आने न आने का निर्णय तेरा अपना होगा।“

मैं यहाँ एक सप्ताह और रूकूंगी, मीनू को उसकी दादी के पास छोड़ आई हूँ अतः सिन्हा साहब कल जा रहे हैं। एक बात बताऊं अंजू, लगता है आशीष की बात अब इन्हें परेशान नहीं करती। उनकी इस उदारता ने मुझे उनके बहुत नज़दीक कर दिया है, अंजू। मेरा अतीत मुझे नहीं सताता। हम दोनों खुश हैं।

प्यार सहित,

तेरी

मालती दी

हॉस्पिटल में पड़े सुजय का क्लान्त चेहरा अंजू को व्याकुल किए दे रहा था। अन्ततः अकेलेपन की गूंज सुजय पर हावी हो गई थी।

उस रात इतने बड़े हादसे के बाद भी बातें करता सुजय कितना सहज लग रहा था। दुर्घटना से बच निकलने पर भी उसका सदमा काफी देर तक छाया रहता है, पर सुजय के चेहरे पर उसका नामोनिशान भी नहीं था। अंजू से परिहास करता सुजय अंजू के साथ अकेला नहीं था। मालती दी क्या उसका अकेलापन बाँट पाएँगी? त्रिवेन्द्रम से लौटने के बाद शायद सुजय उनसे अक्सर मिलता रहा है, तभी तो उन पर इतना अधिकार मानता है वह। मालती दी ने निर्णय उस पर छोड़ दिया है, क्या वह जा सकेगी? बेहद बेचैनी में पूरी रात काट अंजू बहुत सुबह उठ गई थी।

चाय पीती पूनम उसके गम्भीर चेहरे को देख्चौं गई।

”क्या बात है, अंजू? तबियत खराब है क्या?“

अंजू ने मालती दी का पत्र पूनम को थमा दिया। खत पूरा पढ़ पूनम ने अंजू को देख पूछा-
 ”क्या सोच रही हो अंजू? कहो तो मैं भी साथ चलूँ?“

”किसलिए?“

”क्योंकि उसे तुम्हारी जरूरत है।“

”नहीं भाभी, अगर इस समय पहुंची तो यह प्यार नहीं, सहानुभूति समझी जाएगी। सुजय मेरी सहानुभूति या दया का पात्र नहीं है, उसे यह अकेले ही झेलना होगा।“

”अगर न झेल सका तो?“

”तो जो झेलना होगा, मैं झेलूंगी। मुझे कायर पुरूष कभी अच्छे नहीं लगे, भाभी। मुझे खुशी है इस ज़रूरत के समय उसने मुझे नहीं बुलाया।“

”तेरी तो फ़िलासफी ही समझ में नहीं आती। ज़रूरत के वक्त आदमी अपनों को ही तो याद करता है, बुलाता है।“

नहीं भाभी, अगर इस वक्त मुझे बुलाता तो मैं दबाव में जाती, ठीक से सोचने-समझने की शक्ति नहीं रहती। उसने इसके लिए मुझे समय दिया है भाभी, मैं सोचकर निर्णय ले सकूं।“

”तेरी बातें तू ही जाने। आज तेरे भइया को पत्र लिख रही हूँ, सुजय के बारे में लिख दूँ।“

”प्लीज भाभी, यह गलती मत करना। सुजय को लेकर कोई सपने मत बुनना............. भइया को कुछ नहीं लिखना वर्ना..........।“

”ठीक है भई जब तुम आज्ञा दोगी तभी लिखूँगी, पर एक बीमार को जल्दी अच्छे होने की कामना के साथ कार्ड तो भेजा जा सकता है या उसमें भी कोई बाधा है?“

”बाधा तो कहीं कोई नहीं है, देखूँगी।“

ऑफिस जाने के पहले अंजू ने एक सुन्दर-सा कार्ड सुजय के नाम पोस्ट किया था। अन्त में एक पंक्ति जोड़ी थी-

”मृत्युंजय बनकर सदैव जय पाएं। - अंजू“

पूरे मन से अंजू सुजय के लिए प्रार्थना करती रही थी। अम्मा ने अपने कमरे में जब भगवान की प्रतिमा स्थापित की थी, उस समय अंजू ने उनकी कितनी हॅंसी उड़ाई थी-

”वाह, यह खूब रही। अम्मा ने भगवान को अपने कमरे में कैद कर लिया, अब हम बाकी लोगों की पुकार उन तक कैसे पहुंचेगी।“

”छिः, जो मुंह में आया बोल देती है। भगवान तो अन्तर्यामी हैं, हर जगह रहते हैं तभी तो हर भक्त की पुकार आसानी से सुन पाते हैं।“

अम्मा के सामने अंजू ने कभी उनके भगवान के आगे सिर नहीं नवाया था। सुजय की बीमारी की बात जान, अम्मा की आँख बचा, अंजू रोज भगवान के सामने शीश नवाती, सुजय की लम्बी उम्र की प्रार्थना कर आती। सुबह सबके सोकर उठने के पहले बगीचे से सबसे ताजा गुलाब तोड़ भगवान को अर्पित करती थी। अम्मा ने कहा भी-

”लगता है आजकल पूनम बहुत जल्दी उठ जाती है। रोज भगवान की पूजा-अर्चना करती है। मेरा अतुल जल्दी आ जाए, भगवान दोनों को सुखी रखें।“

एक सप्ताह बाद एक नीला लिफाफा आया था-

”तुम्हारी एक पंक्ति ने जो कमाल कर दिखाया उससे डॉक्टर भी ताज्जुब में पड़ गए हैं। इतना हल्का, इतना पूर्ण अपने को कभी नहीं पाया। कब मिल रही हो, बहुत इंतजार है-सुजय।“

अंजू पत्र पढ़ मुस्करा उठी थी। नहीं, वह नहीं जाएगी, अब तो सुजय को ही आना होगा। पूनम भाभी सब सुन गम्भीर हो उठी थीं-

 ”दिल के मरीज से शादी करने का तेरा निर्णय क्या ठीक है, अंजू?“

”अगर शादी के बाद ऐसा होता तो?“

”वो बात और होती............“

”मेरे लिए अब कोई बात बाधा नहीं बन सकती, भाभी। इन पिछले कुछ दिनों में अपने मन को अच्छी तरह जान गई हूँ। सुजय को मेरी ज़रूरत है.........“

”और तुझे?“

”मैं भी शायद उसके साथ पूर्ण हो सकूं।“

”कोई निर्णय लेने के पहले अपने भइया की राय ले लेती अंजू, तो अच्छा होता।“

”भइया मेरे निर्णय को जरूर स्वीकार करेंगे भाभी, तुम चाहो तो उन्हें लिख देना............“

अंजू दिल्ली नहीं गई, पर सुजय को लिख दिया था, पूर्ण स्वस्थ होने पर उसे लखनऊ जल्दी आना होगा।

”क्या इस दिल के दौरे के बाद उसका सफ़र करना कठिन होगा, अंजू?“ पूनम ने शंका प्रकट की।

”सुजय ने आज तक अपना जीवन किसी न किसी कांप्लेक्स के साथ काटा है, मैं नहीं चाहती अब यह बीमारी उस पर हावी हो जाए, भाभी।“

”पर शारीरिक कष्ट की उपेक्षा करना क्या ठीक होगा?“

”मैं चाहती हूँ वह अपने आत्मविश्वास को न खोए, मैं उसकी सहधर्मिणी बनना चाहूँगी, उसकी अभिभाविका नहीं, इसलिए जरूरी है वह अपने-आप में समर्थ, पूर्ण पुरूष बने। वही मैंने लिख दिया है।“

”वाह, क्या बात है, लगता है तेरे तर्को के आगे मेडिकल साइंस भी परास्त हो जाएगी।“

”मुझे विश्वास है.........।“ बस इतना ही कहा था अंजू ने।

अतुल को बीस फ़रवरी को वापिस आना था। पूरे घर में उत्साह की लहर दौड़ गई थी। पूनम का चेहरा जगमगा रहा था। अम्मा ने भइया के मन के पकवान बनाने शुरू कर दिए थे। अंजू अम्माँ को चिढ़ाती-
 ”अम्माँ, ये पकवान किसके लिए बन रहे हैं? इतने दिन अमेरिका में रहने के बाद भइया को तुम्हारे ये देशी व्यंजन पचेंगे?  पेट खराब हो जाएगा बेचारे का।“

”तू चुप रह, क्या अपनी माटी से इतनी जल्दी नाता टूट जाता है?“

पूनम को प्रतीक्षा की घड़ियाँ काटनी कठिन लग रही थीं।

”अब ये दो रातें कैसे कटेंगी भाभी? ऐसा करो कल की फ्लाइट से दिल्ली चली जाओ। अकेले में कुछ समय तो पा सकोगी वर्ना यहाँ अम्मा ने पूरे मोहल्ले को दावत दे रखी है। कल दोनों दीदियाँ भी तो सपरिवार आ रही हैं।“ अंजू ने पूनम को चिढ़ाया।

”टिकट मॅंगा दो, जरूर चली जाऊंगी।“

शाम को अंजू ने पूनम के हाथ में जब प्लेन का टिकट रखा तो वह  चौंक गई-

”यह क्या? मैंने तो मजाक किया था, इसे लौटा दो।“

”लौटाने के लिए इतनी परेशानी थोड़ी झेलती। जानती हो इस टिकट के लिए निशीथ को रिश्वत देनी पड़ी, तब जाकर ओ के टिकट मिल सका है। अब तो तुम्हें जाना ही है, सुजय तुम्हें रिसीव करने का इंतजाम कर देगा।“

”अम्मा जी क्या कहेंगी, ऐसी भी क्या बेताबी, मैं नहीं जाऊंगी।“ पूनम नवोढ़ा-सी लजा उठी थी।

”वाह, अच्छी कही, मेरा पैसा यूँ ही पानी में जाएगा। अम्मा की तुम मुझ पर छोड़ो और जल्दी से भइया की पसंद की साडियाँ पैक कर डालो, समझीं।“

”अंजू.....तुम कितनी अच्छी हो, थैंक्स अंजू।“ भावातिरेक के कारण पूनम की आँखें छलछला आई।

”तुम वापिस लौटने की जल्दी मत करना भाभी, अम्मा को मैं सॅंभाल लूँगी।“

”अम्मा जी बेटे के लिए कितनी व्यग्र हैं, अंजू, इस समय देर करना मुझे संभव नहीं होगा।“

अम्मा की समझ में नहीं आ रहा था दो दिन बाद बेटा स्वंय आ रहा है, फिर बहू को जाने की क्या ज़रूरत थी? अंजू ने समझाया-
”अगर भइया साथ में अमेरिकन बहू लाएँगे तो भाभी ही तो उसे वापिस भेज पाएगी ,अम्मा। तुम्हें तो उसकी गिटर-पिटर समझ में आने से रही।“

”धत्त, कैसी अपशकुनी बातें करती है अंजू, मेरा बेटा वैसा नहीं है।“

”तुम्हारा बेटा कैसा है वो तो उसके वापिस आने पर ही पता लगेगा।“

रात में दिल्ली से पूनम का फ़ोन आया-

”अंजू, तू सचमुच बहुत खुशकिस्मत है। बाप रे यह घर है या महल और तेरे सुजय तो एकदम ग्रीक देवता हैं। मुझे लेने खुद एयरपोर्ट पहुँचे थे। इत्ती खातिर कर रहे हैं कि बस पूछ मत।“

”केवल धन-सम्पत्ति ही सौभाग्य नहीं बनाते, भाभी। तुम्हें भइया जितना चाहते हैं उसके आगे धन क्या ठहर सकता है।“

”अच्छा जी, बस आपके भइया ही हमें चाहते हैं, हम उन्हें कम चाहते हैं क्या?“

”नहीं भाभी, तुमने भइया के लिए जो किया है, उसके लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। इस वक्त क्या कर रही हो?“

”सुजय जी के साथ बातें कर रहे थे, उन्हीं का सुझाव था तुम्हें फ़ोन करूँ। लो उनसे बातें कर लो।“

अंजू के प्रतिवाद के पहले ही फोन सुजय को थमा दिया गया था।

”कैसी हो, अंजू?“

उस परिचित स्वर को सुन अंजू जैसे खो गई थी।

”अंजू, मुझे सुन पा रही हो न?“

”जी... आप कैसे हैं?“

”‘तुम’ से मैं ‘आप’ कैसे हो गया?“

”पूनम भाभी ज्यादा तंग तो नहीं कर रही हैं, जय?“

”पूनम किसी को तंग कर सकती हैं, यह सोचना भी गलत है, अंजू। बहुत भाग्यशाली हैं तुम्हारे भइया।“

”ओह, मैं ही खराब हूँ न?“ हल्की-सी ईर्षा स्वर में बज उठी थी।

”तुम क्या हो, मिलने पर बताऊंगा। तुम क्यों नहीं आई, अंजू?“

”कैसे आती, तुमने बुलाया ही नहीं।“

”जब बुलाऊंगा, आओगी, अंजू?“

”बुलाकर देख लो, जय।“

”मेरा रोम-रोम हर पल तुम्हें बुलाता है, सुन पाती हो अंजू!“

”पता नहीं.......।“ अपने ऊपर अंजू नियत्रंण खोती जा रही थी। सुजय की बाणी उसे अवश बनाए दे रही थी। विनीत के साथ उसने अपने को कभी ऐसा अवश महसूस नहीं किया।

”अब तुम्हारे बिना रहना संभव नहीं, कल भइया के आने पर सब तय कर लूंगा। अब सो जाओ, पर एक शर्त है, तुम्हारे सपनों में मुझे ही आना चाहिए। मंजूर है न?“

”मंजूर करती हूँ बशर्ते आपके सपनों में मेरे अलावा कोई मोना-सोना, लीना-टीना न आए।“

”बस, इतने ही नाम याद हैं, जानतीं नहीं कितना बदनाम रहा हूँ।“

”इसमें क्या शक, मैं खुद साक्षी हूँ..........।“

”अब जय जी को सोने दोगी या पूरी रातें बातें की जाएँगी। भई कुछ आगे के लिए भी तो छोड़ दो।“ पूनम का परिहास से खनकता स्वर सुनाई दिया।

”क्या बात है भाभी, कुछ ही देर में तुम्हारी तो आवाज ही बदल गई है। खराब कम्पनी का इतनी जल्दी असर होते आज ही देखा है। एकदम वैम्प बन गई हो।“

”अब आगे-आगे देखिए होता है क्या। जलन हो रही है क्या?“

”छिः, फिर उल्टी-सीधी बातें कर रही हो। आने दो भइया को कह दूंगी सॅंभाल के रखें, बहुत पर निकल आए हैं हमारी भाभीजान के।“

”देखना है कौन किसके पर कतरता है।“ पूनम खिलखिला के हॅंस पड़ी।

अम्मा को भइया की एक दिन ज्यादा प्रतीक्षा करना भारी पड़ रहा था।

”ऐसा क्या काम पड़ गया अतुल को जो आज नहीं आ रहा है। बहू को तो सोचना था हम सब इंतजार कर रहे हैं।“

”अम्मा, जहाँ इतने दिन इंतजार किया दो-एक दिन और सही समझ लो उन्हें कल ही आना था।“

अंजू समझती थी घर आने पर अम्मा के लिहाज में उसके संकोची भइया भाभी से बात करने में भी कतराएँगे। इतने दिनों की न जाने कितनी बातें इकट्ठी हो गई होंगी। अच्छा हुआ अंजू ने पूनम को जबरन दिल्ली भेज दिया।

दोनों बहिनें बच्चों सहित आ गई थीं। अतुल भइया के लाए उपहारों पर उनका भी तो अधिकार था। कम-से-कम पूनम भाभी की चीजें तो अब उनके हिस्से में आएँगी वर्ना दोनों बड़ी बहिनें अच्छी चीजें सबसे पहले हथिया लेतीं। उन सबके आ जाने से अम्मा व्यस्त हो उठी थीं। अंजू मौसी को घेरे बच्चे अपनी-अपनी फ़र्माइशें करते जा रहे थे।

”अम्मा, अब तो अंजू की शादी कर दो वर्ना यूँ ही बुढ़ा जाएगी।“ रेवा दीदी ने अंजू की ओर प्यार-भरी दृष्टि डालते हुए कहा।

”मेरी सुने तब न? इसके पापा ने इसे सिर चढ़ा ऐसा बिगाड़ दिया कि अपने सामने किसी को कुछ समझती ही नहीं।“

”अगर अब शादी न की तो पछताएगी। दो-चार साल बाद कोई नहीं पूछेगा।“ माला दीदी ने हाँ में हाँ मिलाई।

रेवा दीदी का बड़ा बेटा गौतम बाहर से हाँफता दौड़ा आया-

”मम्मी, जरा बाहर आकर तो देखो, कित्ती बड़ी मोटर कार आई है।“

”अरे कौन आया है, कहीं अतुल ही तो नहीं आ गया।“ अम्मा के पीछे दोनों बहिनें और अंजू बाहर आ गई।

सफ़ेद कार से उतरा विनीत ऊपर आने के लिए सीढ़ियाँ चढ़ रहा था। हल्के ग्रे सूट में उसका गोरा रंग और भी उजला दिख रहा था। उस व्यक्तित्व में अम्मा विनीत को नहीं पहचान सकी थीं। दोनों बड़ी बहिनें मुग्ध दृष्टि से आगन्तुक को ताक रही थीं।

”अम्मा जी, प्रणाम, मुझे नहीं पहचाना?“

अम्मा की चरण- धूलि ले विनीत ने अंजू की ओर देखा।

”चेहरा तो कुछ पहचाना-सा लग रहा है पर अब याददाश्त धोखा दे गई है, कौन हो बेटा? अन्दर आओ।“

सबके साथ विनीत ड्राइंग रूम में आ गया। अंजू के चेहरे के भाव पढ़ पाना मुश्किल था।

”अम्मा जी, आपका अपराधी हूँ मैं, क्षमा माँगने का भी साहस नहीं, पर आपकी माफ़ी नहीं मिली तो मैं शांति न पा सकूंगा।“

”कौन हो बेटा..... मेरी माफ़ी........मैं कुछ समझ नहीं पा रही हूँ।“

”मैं विनीत हूँ अम्मा जी।“

”विनीत...........मेहता साहब के बेटे हो न?“ कुछ देर पहले अम्मा के चेहरे पर जो वात्सल्य छाया हुआ था, अचानक रूखाई में बदल गया।

”जी.......वही विनीत हूँ।“

”माफ़ी की याद कैसे आ गई, विनीत? तुम्हारे कारण हमने कितने दुख झेले, बता नहीं सकती। अंजू के पापा को तो वही ग़म खा गया।“ अम्मा ने आँचल से आँसू पोंछ डाले।

”अब उन बातों का कोई प्रयोजन नहीं रहा, कृपया उस विषय में बात न करें।“ अंजू ने दृढ़ता से कहा।

”जानता हूँ मैंने अक्षम्य अपराध किया है, पर गलती इन्सान से होती है अंजलि, मैं अपने अपराध का दण्ड भुगतने को तैयार हूँ।“

”आपकी इन बातों से हमें ज्यादा तकलीफ़ हो रही है, मिस्टर खन्ना।“

”विनीत खन्ना को हमेशा के लिए छोड़ चुका हूँ, अंजलि। अब मैं विनीत मेहता हूं।“

”विनीत खन्ना से विनीत मेहता बनने के लिए बधाई दे सकती हूँ, पर इस परिवर्तन से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला, मिस्टर मेहता।“

”अब चुप भी कर अंजलि, इतनी दूर से ये अम्मा के पास आए हैं, तेरे पास नहीं समझी। माला, चाय तू लाएगी या मैं जाऊं?“ रेवा दीदी ने अपना बड़प्पन झाड़ा।

”तुम बैठो दीदी, चाय मैं ही लाती हूँ।“ तेजी से मुड़कर अंजू किचेन में चली गई।

किचेन में उसका हृदय जोर-जोर से धड़क रहा था। सुजय ने कहा था मैंने विनीत को जीने का मंत्र दिया है............कैसे .......... क्यों आया है विनीत? अपने को प्रकृतिस्थ कर अंजू ट्रे में चाय और बिस्किट के साथ ड्राइंग रूम में पहुँची। रेवा और माला दीदी के चेहरे खुशी से चमक रहे थे। इतनी ही देर में घर के बच्चे विनीत के साथ घुल-मिल गए थे।

”अंकल, यह कार आपकी है?“ माला दीदी के बेटे अमर ने पूछा।

”जी हाँ, आप इसमें घूमना चाहेंगे?“ विनीत ने प्यार से पूछा।

”आप घुमाएँगे?“ प्रसन्नता से अमर की आँखें चमक उठीं।

”अभी लीजिए, जाइए ड्राइवर से कहिए आप जहाँ तक जाना चाहें आपको घुमा लाएगा।“

”सच...मम्मी, हम लोग जाएँ?“ गौतम का चेहरा चकम रहा था।

”अरे क्यों बेकार अंकल को तंग कर रहे हो.........।“ माला दीदी ने रोकना चाहा।

”इसमें तंग करने की क्या बात है, वैसे भी ड्राइवर खाली बैठा बोर ही हो रहा है, वह भी यह शहर देख लेगा। जाइए अब देर मत कीजिए।“

बच्चों की मम्मी, नानी विनीत की उस बात पर चुप रह गई थीं; शोर मचाते बच्चे बाहर भाग गए। बच्चों के बाहर जाते ड्राइंग रूम में सन्नाटा-सा पसर गया था। माला दीदी ने अम्मा को याद दिलाया-

”अम्मा, लड्डू बाँध लो, वर्ना बाद में नहीं बॅंधेगे।“

”चलो मैं भी बॅंधवा दूँ।“ अम्मा के साथ माला और रेवा दीदी, निष्प्रयोजन ही नहीं गई थीं। अंजू को विनीत के साथ अकेले छोड़ने में उनका कोई विशेष प्रयोजन सर्वथा स्पष्ट था।

”अंजू, असल में मैं तुम्हारे पास ही आया हूँ। तुमने मेरे आत्मविश्वास को जगाया है। बहुत आभारी हूँ तुम्हारा। तुम..........“

”मुझे खुशी है आज तुम वो सब पा चुके, जिसकी कभी कामना की थी- बधाई। मिसेज खन्ना कैसी हैं?“

”आजकल अपने पापा के साथ वर्ल्ड टूर पर हैं......।“

”तुम नहीं गए?“

”किस रिश्ते से जाता?“

”कमाल है, अपनी पत्नी के साथ जाने के लिए रिश्ता खोजना पडे़गा?“

”पिछले एक वर्ष से हम अलग रह रहे हैं, इस वर्ष डाइवोर्स मिल जाएगा।“

”यह तुम्हारा निजी मामला है....... मेरी इसमें दिलचस्पी नहीं।“

”डाइवोर्स के बाद मैं फ्री हो जाऊंगा, तुम्हें यही बताने आया हूँ.........उसके बाद हम विवाह कर सकते हैं।“ विनीत ने रूक-रूक कर अपनी बात कही।

”यही बताने इतनी दूर से भागे आए? क्या सोचा था कि अंजू आज भी आपके लिए आँखें बिछाए बैठी है कि कब विनीत खन्ना वापिस आएँगे?“

”मैं विनीत खन्ना नहीं, विनीत मेहता हूँ, अंजू। आज तक तुमने विवाह नहीं किया, क्या यह अकारण ही था? त्रिवेन्द्रम में भी अपनी दो पंक्तियों में क्या तुम्हें संकेत नहीं दिया था कि मुझे विनीत खन्ना का कवच छोड़, विनीत मेहता बनना है? मैंने वही किया, आज तुम्हारे सामने वही विनीत मेहता आया है, अंजू।“

”कितना गलत इंटरप्रिटेशन था आपका, मिस्टर विनीत मेहता! किसी दूसरे के पति में मेरा क्या इंटरेस्ट हो सकता है? और हाँ, एक बात और - विनीत खन्ना से विनीत मेहता बनने के लिए पत्नी का परित्याग ज़रूरी नहीं है। यह मेरी योजना थी, कहकर और अपमानित मत करो, विनीत।“ अंजू का स्वर बेहद आहत था।

”अपनी सारी गलतियाँ स्वीकार करता हूँ अंजू, पर आज मुझे खाली हाथ मत लौटाना। मैं टूट जाऊंगा- विखर जाऊंगा।“

”नहीं विनीत, अब हमारा कोई और सम्बन्ध संभव नहीं। अच्छे मित्र बने रहने के लिए निजी स्वार्थो का परित्याग जरूरी है - पर तुम तो उसकी जगह पत्नी का परित्याग करने चले हो। पहली सगाई तोड़, मेरा अपमान ही क्या कम था जो अब अपनी पत्नी का............।“

”मैं एक पूर्ण जीवन जीना चाहता हूँ अंजू, जो सिर्फ तुम्हारे साथ ही संभव है।“

”कुछ दिन बाद महसूस करोगे, तुम सविता के साथ ज्यादा सुखी थे। सच तो यह है तुम्हें आज भी अपने पर विश्वास नहीं है। विनीत, तुम हमेशा कोई सहारा खोजते रहे हो-खोजते रहोगे।“

”मैं अपना अतीत धो-पोंछकर तुम्हारे पास आया हूँ अंजू, तुम्हारे साथ में............।“

”मैं अपना अतीत पूरी तरह जलाकर राख कर चुकी हूँ ,विनीत। ठंडी राख में अतीत की कोई छोटी-सी चिंगारी भी शेष नहीं। बंद द्वार पर बार-बार दस्तक देकर अपना अपमान मत कराओ।“

”यह झूठ है, तुम मुझे भुला नहीं सकतीं। तुमसे जो प्यार मिला, उसका अंश मात्र भी सविता से नहीं पा सका। सविता कभी मेरी पत्नी नहीं बन सकी।“

”इसमें क्या सारा दोष सविता का ही था, विनीत? पुरूष हमेशा यह क्यों सोचता आया है कि प्यार-त्याग स्त्री को ही देते जाना है। स्त्री के प्यार को ग्रहण कर पुरूष उसको कृतार्थ करता है। देने की पहल पुरूष भी तो कर सकता है, पर शायद वह सिर्फ लेना ही जानता है.............।“

”पर मैं तो तुम्हें अपना सब कुछ देने ही आया हूँ, अंजू।“

”जिसके पास कुछ शेष ही नहीं, वह भी दाता का ढोंग रचे, है न हास्यास्पद? पत्नी से प्राप्य न पा, तुम यहाँ आ गए हो। अंजू आज भी अविवाहित बैठी तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही है- वाह, क्या सुखद कल्पना है! मुझे सब कुछ दे, तुम्हारा अहं कितना गर्वित होगा- ठीक कहा न, मिस्टर विनीत मेहता?“ अंजू का स्वर तीखा हो गया था।

”ठीक कहा, तुम्हारे प्यार से अपनी खाली झोली ही भरने आया हूँ, अंजू। और यह विनीत मेहता कहना क्या जरूरी है, सिर्फ विनीत काफी नहीं है क्या?“

”दूसरे की अमानत से अपनी झोली भरना क्या संभव है, विनीत? क्या यह कृत्य किसी सभ्य पुरूष को सोहेगा?“

”क्या मतलब, मैं समझा नहीं?“ विनीत अचकचा गया।

”मैं विवाह कर रही हूँ...........।“

”किससे? कौन है वह?“

”समय आने पर जान जाओगे।“

”मेरी शुभकामनाएँ, अंजू।“ विनीत का स्वर बुझा-सा था।

”इस खबर से खुशी नहीं हुई?“

”नहीं, पर कुछ देर पहले तुमने कहा था- अच्छे मित्र बने रहने के लिए निजी स्वार्थ छोड़ने पड़ते हैं, उसी की कोशिश करूँगा।“

”सच्चे मन से कह रहे हो, विनीत?“

”कोशिश ज़रूर करूँगा। एक मित्र के रूप में भी तुम्हें पा सका तो मेरी उपलब्धि होगी।“

”यह हुई न बात। अब बताओ मुझे क्या उपहार दोगे?“

”जो माँगो.............।“

”एक हितैषी बंधु की तरह हमेशा तुम्हारा स्नेह पाती रहूँ। सविता भाभी के साथ विवाह में आना होगा, आ सकोगे?“

”कोशिश करूँगा, वादा नहीं कर सकता।“

”एक और बात मानोगे?“

”कहो।“ विनीत के नयन अंजू के चेहरे पर निबद्ध थे।

”अपनी प्रतिभा-मेहनत से तुमने आज बहुत कुछ पाया है, इस सुख-ऐश्वर्य पर तुम्हारी पत्नी का अधिकार है। तुम्हें एक आत्मविश्वासयुक्त पति के रूप में देखने की उसकी भी तो चाहत रही होगी। तुम नहीं जानते एक स्वाभिमानी पत्नी, अपने पति को एक पूर्ण पुरूष के रूप में ही स्वीकार करना चाहती है।“

”मैंने तो उसे सब कुछ देना चाहा था अंजू, पर...............“

”वो सब कुछ जो उसके पिता से तुम्हें मिला था? उसमें तुम्हारा अपना क्या था? उसका मूल्य सविता की दृष्टि में तुच्छ नहीं रहा होगा? आज स्थिति भिन्न है। मुझे विश्वास है अब तुम दोनों का अहं नहीं टकराएगा।“

”कितना अलग सोच है तुम्हारा। शायद तुम ठीक कह रही हो, इस दृष्टि से मैं कभी नहीं सोच सका। एक बात माननी होगी।“

”क्या?“

”कुछ दिन सविता को अपनी ट्रेनिंग में रखना होगा। अपनी समझदारी का अंश उसे भी देना होगा।“

”ट्रेनिंग देने के लिए तुम ही काफी हो, विनीत।“ विनीत की मुग्ध दृष्टि पर अंजू संकुचित हो उठी थी।

”अंजू, दिल्ली से अतुल का फोन है।“ रेवा दीदी ने अन्दर से आवाज लगाई।

”एक्सक्यूज मी, भइया का फ़ोन है, अभी आई।“

”मेरी भी उन्हें नमस्ते कहना, अंजू।“

फ़ोन पर अतुल की उत्साहित आवाज सुनाई पड़ी थी-

”इतने अच्छे जीवन-साथी के चयन के लिए मेरी बधाई अंजू। हीरा खोज निकाला है तूने।“

”लगता है ‘हीरे’ ने तुम्हें भी अपने साँचे में ढाल लिया है। कब आ रहे हो भइया-यहाँ सब तुम्हारे लिए बेचैन हैं।“

”कल पहुंच रहे हैं। सुजय को भी लाना चाहता हूँ, मान नहीं रहा है। तू कह देख, शायद आ जाए।“

”तुम्हारे कहने से ज्यादा क्या मेरा कहना है, भइया? नहीं आते तो न आएँ। मैं तो बुलाने से रही।“

”सच्चे दिल से कह रही है, अंजू? कह दूँ सुजय से तू उन्हें नहीं बुलाएगी?“ अतुल से फोन ले, पूनम ने उसे छेड़ा था।

”अब और कैसे कहूँ, झूठ बोलने का तो मेरा स्वभाव नहीं। जो चाहे कह दो।“ अंजू ने मान दिखाया।

”ला मुझे भी तो बात करने दे, किसके बुलाने की बातें हो रही हैं?“ माला दीदी ने अंजू के हाथ से फ़ोन छीन-सा लिया।

”यह लो, हमने बात करनी चाही तो लाइन ही कट गई।“ बुरा-सा मुँह बना माला दीदी ने फ़ोन पटक-सा दिया।

”किसे लाने की बात कर रहा था, अतुल“ अम्मा ने पूछा।

”अम्मा, भइया कल सुबह की फ्लाइट से आ रहे हैं। पूरी तैयारी कर डालो, कोई कसर न बचे।“ अंजू ने सुजय की बात टाल दी थी। भइया ही उसकी बात अम्मा से करें तो ठीक है।

”हे भगवान, हम इतनी देर से यहाँ हैं और वहाँ बेचारा विनीत अकेला है। अंजू, माला, तुम लोग उसके पास चलो, मैं लड्डू लेकर आती हूँ।“ अम्मा को अचानक विनीत पर बहुत प्यार उमड़ आया।

ड्राइंग रूम खाली पड़ा था, विनीत जा चुका था। बाहर से आते बच्चों के हाथों में टाफियाँ और आइसक्रीम देख माला दीदी ने गौतम से पूछा- ”अरे वह तेरे अंकल कहाँ गए, गौतम?“

”वो तो अभी-अभी अपनी गाड़ी में चले गए-तुमने नहीं देखा?“

”मौसी, देखो न उन्होंने हमें ये फूल दिए हैं, कित्ते अच्छे हैं न?“ श्वेता ने सफेद रजनीगन्धा की टहनी ऊपर उठा, फूलों से अपने गालों को सहलाया था।

”ये फूल तो उन्होंने अंजू मौसी को देने को कहा था, तुझे तो वो गुलाब दिए हैं। ये लो ,मौसी।“ गौतम ने श्वेता से रजनी गंधा छीन, अंजू को थमा दिए।

इन रजनीगंधा के फूलों ने अंजू को कोई भूली बात याद दिला दी - एक बार विनीत उसे बिना बताए मित्रों के साथ शिकार को चला गया था। नाराज़ अंजू ने उसके लौटने पर बात न करने का निर्णय ले डाला था।

वापिस आए विनीत के हाथ में एक नाजुक-सी रजनीगंधा की टहनी थी! अंजू के कपोल पर उसे हल्के से छुआ, विनीत ने कान पकड़े थे-
”हजार बार अपनी गलती के लिए माफी माँगता हूँ, देखो हमारी मित्रता और संधि के प्रतीक हैं ये रजनीगंधा के फूल। जिन्दगी में जब भी गलती करूँगा- माफीनामे और संधि के रूप में हमेशा तुम्हें ये मुस्कराते रजनीगंधा के फूल मिलेंगे। बोलो है मंजूर ?“

”यानी जिन्दगी-भर गलतियाँ करने का इरादा रखते हैं, जनाब?“ अंजू हॅंस पड़ी थी।

मित्रता और संधि के प्रतीक रजनीगंधा के फूल, फ्लॉवर- वाज में सजाती अंजू के अधरों पर प्यारी-सी मुस्कान तिर आई। फूलों के बीच सुजय का मुस्कराता चेहरा खिल आया।

17 comments:

  1. आत्मीय!

    वन्दे मातरम.

    नारी-मनोविज्ञान पर केन्द्रित सार्थक कथा, सहज बोधगम्य भाषा...सम्यक परिवेश चित्रण...साधुवाद...

    नव वर्ष पर समर्पित नवगीत
    *
    महाकाल के महाग्रंथ का
    नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा....
    *
    वह काटोगे,
    जो बोया है.
    वह पाओगे,
    जो खोया है.
    सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
    कर्म-मर्म सब आज तुल रहा....
    *
    खुद अपना
    मूल्यांकन कर लो.
    निज मन का
    छायांकन कर लो.
    तम-उजास को जोड़ सके जो
    कहीं बनाया कोई पुल रहा?...
    *
    तुमने कितने
    बाग़ लगाये?
    श्रम-सीकर
    कब-कहाँ बहाए?
    स्नेह-सलिल कब सींचा?
    बगिया में आभारी कौन गुल रहा?...
    *
    स्नेह-साधना करी
    'सलिल' कब.
    दीन-हीन में
    दिखे कभी रब?
    चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
    खरा कौन सा कर्म तुल रहा?...
    *
    खाली हाथ?
    न रो-पछताओ.
    कंकर से
    शंकर बन जाओ.
    ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो.
    देखोगे मन मलिन धुल रहा....
    **********************

    Acharya Sanjiv Salil
    http://divyanarmada.blogspot.com

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  2. प्रिय पाठक मित्रों,
    आपके शब्द मेरी प्रेरणा हैं। अन्य रचनाओं पर भी आपकी प्रतिक्रिया और विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।
    नव वर्ष मंगलमय हो
    धन्यवाद
    पुष्पा सक्सेना

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  3. अन्य कहानियों पर भी आपके विचार आमत्रित हैं धन्यवाद्।
    पुष्पा सक्सेना

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  4. Hello Aunty,

    It is always a pleasure to read your stories and this is an excellent medium to communicate our thoughts across each other.

    All the best!
    Regards,
    Shailja

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  5. Dear Shailja,
    Thank you for your encouraging comment. I am looking forward to your comments on other stories also.
    Thank you.
    Pushpa Saxena

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  6. Great story please publish more

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  7. नमस्ते पुष्पा जी,

    आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा । कहानी पढकर अपने विचार दूंगा ।
    जानकर अच्छा लगा कि आप रांची और इलाहाबाद से जुड़ी हैं।

    शेष फिर,
    सादर,

    अमरेन्द्र

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  8. Thank you. I wish I can get some producer to make a film on this story. I will be adding more stories soon. Please keep commenting on my stories. Pushpa Saxena

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  9. Aapke blog par bahut achhi kahani padhne ko mili aur aapka blog bahut achha laga.. kuch printout nikale taki aaram se padh payongi..
    aapko Haardik shubhkamnayne

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  10. आपकी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाएं आप जैसे पाठकों के लिए और अधिक लिखने की प्रेरणा देती हैं। कुछ और कहानियां और उपन्यास शीघ्र ही मिलेंगे। धन्यवाद्।
    पुष्पा सक्सेना
    29/10 2010

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  11. jindgi me aane wali tabdeeliyon ke sath haqiqat ko bayan karti bahut hi behtareen kahani...
    jindgi me jo apni jindgi me kabhi thokar khate hain aur use hi jindgi ki niyat man kar..nirudesya jeete hain unke liye ye kahani PRERNA hai

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  12. jindgi ki haqiqat ko bayan karti behtreen kahani

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  13. your stories are quite meaningful,very interesting and soulful.i must congratulate you on your achievment.its a pleasure to get such material on net.thanks alot for such creativity....looking forward to some more equally good stories..once again congratulations and best wishes....kirti

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  14. प्रिय आंटी जी !!
    नमस्कार
    आपकी कहानी ने तो एकदम मंत्र मुग्ध कर दिया. आप एक बेहतरीन लेखिका हैं. आशा है की हम जैसे पाठकों के मनोरंजन और समाज की उन्नति के लिए आपकी देखर साडी रचनाएं पढने को मिलेंगी.
    बहुत बहुत धन्यवाद् और ढेर साडी शुभकामनाएं.

    उत्तम कुमार.

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  15. bahut achchhi story hai... aapki story ki khas bat hai aap vachkonko bandh kar rakh pati hai. aap jo flashback use karti hai usko sarahna hoga, kyonki kabhi kabhi iskivajhse kahani se pakad chut jati hai par aap use behad achchha nibhati hai. sirf yahi kahunga god bless u. n thank u so much

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