4/9/18

बलम सुगना


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कच्ची कली कचनारी, बलम सुगना बन के आ जाना
ढोलक की थाप के साथ कुंती मौसी की सुरीली आवाज़ गूँज रही थी. चन्दा की हथेली पर मीरा  दीदी मेंहंदी के फूल रचा रही थीं.
हाय राम, चन्दा तेरी भांवरें सुगना के साथ पड़ेंगी री. चोंच सी लाल नाक वाला सुगना- - “गौरी ने चुटकी ली.
वहां जमा लड़कियों के साथ चन्दा भी जोर से हंस पड़ी. कमरे में किसी काम से आई बड़ी बुआ ने मीठी झिडकी दी –“
“अरी चन्नी आज तो चुप्पी साध. भांवरों के समय भी ये लडकियां ऐसे ही खी-खी करती रहेंगी. तुझे ही अपने को रोकना है.
बाज आए इन लड़कियों से, हाथों में मेंहंदी रचाए लड़की यूं मुंह फाड़े हंसती क्या अच्छी लगे है? मायका छोड़ जाने का ज़रा सा भी गम नहीं है.दूर रिश्ते की ताई क्षुब्ध हो उठीं थीं.
अरे ताई, आज ज़माना बदल गया है, आज तो लड्कियां मम्मी-पापा को बाय-बाय, टाटा कह के जाए हैं. हमारा-आपका ज़माना थोड़ी रहा जो चार दिन पहले से रोना शुरू कर देते थे.मुंहबोली भाभी ने ताई को चिढाया.
ताई के कमरे से बाहर जाते ही लडकियां खुल कर हंस पडीं.
हाय चन्दा, तेरे सुगने ने तुझे कहाँ देखा था री?”शोभा ने परिहास किया.
कचनार के पेड़ पर- -- - रीता की टिप्पणी पर फिर लड़कियों पर हँसी का दौरा पड़ गया.
अजी उनहोंने कहाँ देखा हमारी चन्दा को, उनके कानों में तो इसके रूप की चर्चा पहुंची और संदेसा आ गया.ठीक कहा ना चन्नी?”नैना ने चन्नी पर अपनी प्याभरी दृष्टि जमा दी थी.
नैना की इस बात पर चन्दा गंभीर हो गई थी. क्या कहे चन्दा, स्वयं उसे कितना अजीब लग रहा था, आज के युग में भी कोई ऐसा हो सकता है जिसके मन में अपनी भावी जीवन साथी को देखने की ज़रा सी भी ललक ना हो?
चन्दा ने अपनी चाची से पूछना चाहा थाबिना उसे देखे भाले जो उससे ब्याह करने आ रहा है, क्या उसकी अपनी कोई इच्छा -अनिच्छा भी है? पर चाची के साथ वह कब इतना खुल सकी थी. तीन-चार वर्ष की रही होगी तभी से पापा उसे चाचा-चाची के पास छोड़, अपने दायित्व से मुक्त हो गए थे. जमींदारी और बिजनेस का भार चाचा के जिम्मे छोड़ अपनी नई पत्नी के साथ अमरीका जा बसे थे. नई माँ या पापा ने उसे अपने साथ ले जाना ही नहीं चाहा था. पापा द्वारा चाचा के नाम भेजे गए बैंक ड्राफ्ट काफी भारी हुआ करते थे, शायद इसीलिए चन्दा को पराश्रित होने की दुखद स्थितियां नहीं सहनी पड़ी थीं.
लगता है बन्नो को पिछले साल की घटना याद आ रही है, ठीक कह रही हूँ ना चन्नी?”चन्दा को चुप देख नैना ने कहा.
अरे वही ना रमा दीदी की शादी वाली बातरीता हंस पड़ी. चन्दा मौन थी.
सच चन्दा, हमें तो उस दिन लगा था, तेरा ब्याह उसी से होगा, पर फिर क्या हुआ?”शोभा ने सवाल किया.
होना क्या, रमा की सास ने कह दिया, एक ही घर की दो लडकियां उन्हें स्वीकार नहीं.नैना ने जानकारी दी थी.
शायद चाची की भी यही इच्छा थी ना, चन्दा?”विनीता ने पूछा था.
कुछ भी कह, लड़का था बड़ा डैशिंग और स्मार्ट, किस तरह हमारी चन्दा को बनाया था., याद है चन्दा?”रीता हंस रही थी.
याद क्यों नहीं होगा,वो भी क्या भूलने वाली बात थी?चन्दा सोच में पड़ गई.
चचेरी बहिन रमा दीदी की शादी में चंदा ने हलके जामुनी रंग पर रूपहले गोटे वाला सलवार सूट पहिन रखा था. बारात जनवासे में आ चुकी थी. संध्या सात बजे बारात दरवाज़े पर पहुँचने वाली थी. रमा दीदी का श्रृंगार लगभग पूरा हो चुका था तभी लड़कियों से भरे उस कमरे में किसी ने जोर की दस्तक दी थी. चन्दा ने ही आगे बढ़ कर दरवाज़ा खोला था. सामने एक अजनबी युवक को खडा पा अचानक चन्दा के मुख से मज़ाक में वाक्य फिसल गया-
“कहिए प्रिंस चार्मिंग किसकी तलाश है? यहाँ आपकी राजकुमारी नहीं है, समझे.”
चन्दा के अप्रत्याशित वाक्य पर अजनबी के मुख पर शरारती मुस्कान आ गई थी.
 “निश्चय ही आपकी तलाश में नहीं आया हूँ, मिस. माँ का सन्देश रमा भाभी को देना है,ज़रा रास्ता छोड़ कर हट जाएं तो भाभी तक ये चूड़ियाँ पहुंचा दूं.”
“माँ जी को शायद आपसे अच्छा संदेशवाहक नहीं मिला, महाशय, भला ये काम क्या आपको शोभा देता है?हाँ, यहाँ सीधे आ पहुँचने का रास्ता किसने बताया, मिस्टर?”अपनी टिप्पणी के साथ चन्दा ने सवाल किया था.
“हमेशा सीधा रास्ता ही चुनता आया हूँ, हाँ कभी-कभी शॉर्ट कट्स मार देता हूँ. अब ज़रा रमा भाभी तक पहुँचने की इजाज़त देंगी, देवी जी? बहुत देर आपको झेल चुका, मिस.”
अपमान से तमतमाए मुख के साथ चन्दा पीछे हट गई. राहुल सीधा रमा जीजी के पास जा पहुंचा था. सारी लडकियां उसके व्यक्तित्व से अभिभूत उसी के चेहरे पर दृष्टि निबद्ध किए मुग्ध थीं,.
“वाह भाभी, जितना सोचा आप उससे भी ज़्यादा सुन्दर हैं. मै आपका एकमात्र देवर राहुल हूँ. माँ के आदेश पर ये धानी चूड़ियां देने आया हूँ. माँ ने कहा है, विवाह के समय आप यही चूड़ियाँ पहिनें.”
“रमा जीजी के इकलौते देवर राहुल जी, इसके लिए रमा जीजी की माता श्री से बात कीजिए. यहाँ शॉर्ट कट नहीं चलेगा.’चन्दा ने व्यंग्य से कहा.
“क्यों क्या माता श्री मना कर देंगी?’ राहुल का सीधा तीखा उत्तर आया.
“ऎसी बातों में तो बड़े –बूढ़े लोग ही इजाज़त देते हैं.”
“आई डोंट केयर,इतना सा निर्णय तो रमा भाभी खुद ही ले सकती हैं,ठीक कहा ना भाभी?”
“जी - - - ई- - “रमा जीजी हडबडा सी गईं.
‘एक बात बताइए, पुरुषों के लिए सर्वथा निषिद्ध इस कमरे में आने का आपको साहस कैसे हुआ?” रमा जीजी की अभिन्न सहेली रूपा ने राहुल को छेड़ा.
“”अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हज़ार ताले तोड़ने की हिम्मत रखता हूँ. वैसे भी आपके पहरेदार बिलकुल निष्क्रिय हैं. एक पुरुष तक को रोके रखने की शक्ति नहीं है उनमें.’ सस्मित अर्थपूर्ण दृष्टि राहुल ने चन्दा पर डाली थी. चन्दा का मुख लाल हो उठा था.
“किसी को रोकने के लिए इच्छा भी तो होनी चाहिए, जनाब इतनी ज़रा सी बात भी नहीं जानते.”
“ओह, लगता है आजकल भारत ने काफी तरक्की कर ली है. अब लडकियां भी अपनी चाहत के लिए इच्छा -अनिच्छा जताने लगी हैं., वैसे खुशी हुई इस जानकारी से. ओ के भाभी  जल्दी ही मिलेंगे.”
जिस तेज़ी से राहुल आया था, उसी तेज़ी से वापिस लौट गया. राहुल के बाहर जाते ही लड़कियों में बातचीत शुरू हो गई.
“हाय रमा, तेरा देवर तो बड़ा स्मार्ट है. हमारी सिफारिश कर देना.”जूही ने खुशामद की.
“भाई इतना धाकड़ है तो जीजाजी कैसे होंगे, यही सोच रही है ना ,चन्दा.?नैना ने चन्दा को कुरेदा.
“नहीं, भगवान् से मना रही हूँ, जीजाजी में इसके अभिमान का अंश भी ना हो. ना जाने क्या समझता है अपने आप को. लगता है जैसे लन्दन से सीधा यहीं लैड किया है.”चन्दा का आक्रोश फूट पडा.
 “सच ही तो है, बड़े भाई की शादी अटेंड करने सीधे लन्दन से ही तो आए हैं, तू  क्या ये बात नही जानती, चन्दा दीदी. यूं के से एम् बी ए कर के वहीं एक बड़ी कम्पनी में नौकरी ज्वाइन की है. रमा की छोटी बहिन निक्की ने जानकारी दी.”
“वाह: तब तो ऐसा लड़का चिराग ले ढूंढें नहीं मिलेगा. चन्दा यार, तू जोर लगा, रमा जीजी के बाद तेरा ही तो नम्बर है.”रीता ने चन्दा की खिंचाई की.
“तुम्हे ही मुबारक हो, नहीं चाहिए ऐसा अभिमानी. बहुत सुपात्र पड़े हैं भारत में. अपनी सोच, मेरे लिए चिंता करने की ज़रुरत नहीं है समझी.”चन्दा चिढ गई थी.
“अरे सच तो यह है, वह हमारी सांवली-सलोनी चन्दा से बेहद इम्प्रेस्ड था. वह जो कह रहा था, इसे खिजाने के लिए था वरना इस जामुनी सूट में तो हमारी चन्दा कहर ढा रही थी. नैना ने चुटकी ली.
“अब मुझे तो बख्शो.” चन्दा ने नाराजगी जताई.
बारात आ गई, सुनते ही लड्कियां बाहर दौड़ पडीं. कार से उतरते अविनाश को सबने सराहा.छोटा भाई अगर पहले दृष्टि में ना आ गया होता तो लोग अविनाश को अद्वितीय ठहराते. दोनों भाई चाँद-सूरज की जोडी थे. बारात में आए युवक छोटी बहिन होने के नाते चन्दा को छेड़ रहे थे, पर उस अभिमानी राहुल की व्यंग्यपूर्ण तीक्ष्ण दृष्टि के कारण चन्दा अपने आप में सिमटी जा रही थी. ऐसा लग रहा था मानो उसके अंतर तक की बात वह अभिमानी पढ़ पा रहा था.
“राहुल यार, अच्छा मौक़ा है, तू भी इसी मंडप में चन्दा जी के साथ फेरे ले ले. कमाल की जोडी बनेगी.” एक मित्र ने राहुल से कहा था.
“तू तो मेरी पसंद जानता है, मुझे तो जरूरत से ज़्यादा स्मार्ट गीता  जैसी नहीं सीधी- सादी सीता चाहिए.”चन्दा को देख कर राहुल ने कहा.
नैना के रोकने पर चन्दा चुप रह गई वरना मुहतोड़ जवाब थे उसके पास भी.
रमा दीदी विदा हो कर ससुराल चली गई थी. जाते समय चन्दा के कान में कहा था
“घबरा मत, जल्दी ही तुझे भी बुला लूंगी. दोनों बहिनें साथ रहेंगी, खूब मज़ा आएगा, तुझे राहुल तो ज़रूर पसंद आया है ना?”
“धत - - “ चन्दा से और कुछ कहा नहीं गया, पर मन में आकांक्षा का एक नन्हा सा अंकुर ऊमग आया था. काश रमा दीदी के मन की बात उसके देवर के मन की बात भी हो जाए. दीदी ससुराल से वापिस आ गई थीं. राहुल वापिस यूं के चला गया था. दीदी से ही पता लगा राहुल ने वहीं अपने लिए अपनी पसंद की लड़की चुन ली थी. और आज उसे बिना देखे अवनीश उसे ब्याहने आ रहा था. लड़कियों का शोर सुनाई पड़ रहा था.
 “हाय, चन्दा का सुगना तो एकदम चिट्टा अंग्रेज है.” मीरा ने कहा.
“चन्दा बड़ी भाग्यवान है, इत्ता अच्छा वर मिला है.”रूपा के स्वर में ज़रा सा ईर्षा का पुट था.
“अजी हमारी चन्दा क्या किसी से कम है. उसके सांवले सलोने रूप में जो नमकीनियत है उस पर तो अच्छे-अच्छे फ़िदा हो जाएं.”नैना ने चन्दा का पक्ष लिया.
धड़कते दिल से चन्दा वो सब बातें सुनती रही.अनजानी पुलक से शरीर सिहर-सिहर उठता था. विवाह की रीति-रस्मे मानो स्वप्नवत पूरी की थीं. पापा के साथ विवाह में नई माँ भी आई थीं. शायद जब चन्दा सात साल की थी तब पापा उसे एक बार देखने आए थे. नई माँ के साथ पापा भी चन्दा के लिए नितांत अजनबी से थे. पापा के भेजे पैसों से चाचा के घर की सुख-समृद्धि बढ़ती गई. चन्दा मानो चाचा के घर के लिए विशिष्ट अतिथि जैसी थी, पर चाची के साथ एकात्मकता संभव नहीं हो सकी थी. कई मौकों पर चाची रमा और निक्की को डांटती, अधिकार से आदेश देतीं, पर चन्दा के लिए उनकी उदासीनता चन्दा के ह्रदय में शूल सी गड़ती. कितनी बार उसका जी चाहता, उसे भी चाची अधिकार से डांटती, आदेश देती पर वह तो उस घर की समृद्धि का ज़रिया भर थी.
विदा के समय  उन्हीं चाची के सीने पर सिर रख चन्दा रो पड़ी. पापा के आशीर्वाद दिए जाने पर वह संकुचित हो उठी. नई माँ ने भी सिर पर हाथ धर कर आशीर्वाद दिया ज़रूर, पर उस आशीष में झिझक स्पष्ट थी. ढेर सारे बहुमूल्य विदेशी उपहारों से पापा ने उसका दहेज़ जगमगा दिया था.
ससुराल में सास ने आगे आ कर आरती उतारी थी. उसका मुख देखते ही शैतान ननद का वाक्य सीने पर हथौड़े सा पडा था.
“हाय अम्मा, भाभी तो काली है, भैया को तो गोरी पत्नी चाहिए थी ना?”
“चलो. ताई जी के लाडले को ज़िंदगी भर के लिए नज़र का टीका ही मिल गया. तेरी भाभी के साथ तेरे भैया को कोई नज़र नहीं लगा सकेगा, सुनयना.”चचेरी भाभी का व्यंग्य कानों में गर्म शीशे सा उतर आया था.अवनीश का चेहरा लाल् हो आया था. अम्मा ने झिडकी दी-
“छि:, जो मुंह में आया बोल देती ही.देखती नहीं इसकी सांवली रंगत में कितना आकर्षण है. वैसे भी लड़की का रंग ही नहीं, नाक-नक्शा और गुण देखे जाते हैं. हजारों में एक है मेरी बहू.”
“देखना है कि गुणों की खान पर रीझते हैं, अवनीश या - -“भाभी का वाक्य पूरा होते ना होते अवनीश धडधडा कर घर के भीतर चले गए थे. नई-नवेली का दामन उनके साथ बंधा था, इसका भी ध्यान नहीं रहा. रीति-रिवाजों के क्रम में जब अम्मा जी ने भाभी से दोनों को कंगना खिलाने की बात कही तो अवनीश का रुष्ट स्वर सुनाई दिया था.
“बहुत हो गया अम्मा, ये सब चोंचले मुझे नहीं भाते .अब और परेशान नहीं करना, मै शान्ति से आराम करना चाहता हूँ.”अवनीश के शब्दों से घर में चुप्पी छा गई थी. कुछ दबी-दबी फुसफुसाहटें चन्दा ने पकड़ने की कोशिश की थी, पर कहाँ पकड़ सकी?
मुंह दिखाई की रस्म चल रही थी. सबसे पाहिले अम्मा जी ने हार पहिना कर अपना परिचय दिया.
“मै तुम्हारी सास हूँ, बहू. इस घर का मान-सम्मान अब तुम्हें ही रखना है. बाद में मुंह देखती स्त्रियों का परिचय अम्मा जी कराती गई थीं.
“ये तुम्हारी चचेरी जिठानी हैं, बनारस में अवनीश इन्हीं के घर में रहते हैं. हम तो यहाँ दूर पड़े हैं, तुम्हें ही बड़े जेठ-जिठानी को सास-ससुर का मान देते हुए उनके साथ रहना है.”अनायास ही चंदा के झुके नयां उठे थे. चचेरी जिठानी के मुख पर तिरस्कार स्पष्ट था.
“ताई जी, भारी दहेज़ से मात खा गईं. सोने जैसी उजली मेरी बहिन को छोड़ कोयले पर रीझ गईं.
“बहू, इस तरह की बेकार की बातें करना शोभा नहीं देता. याद रखो, जो बिंध गए सो मोती.”
“सच बात सभी को बुरी लगे है, ताई जी. अपने बेटे का मन तो जानती थीं फिर भी- - . झमक कर जिठानी उठ कर चली गईं.
वातावरण में सन्नाटा खिंच गया. अम्मा जी ने प्यार से  कहा-
“काफी कुछ तो समझ गई होगी, बहू, इन्हीं जिठानी से तुम्हें टक्कर लेनी होगी.अपनी बहिन से मुन्ना का ब्याह कराना चाहती थी, उसी की खुंदक निकाल रही है.”
चन्दा का सवाल ओंठों तक आ गया था “तो किया क्यों नहीं अम्मा जी?भरसक अपने को रोक चन्दा ने अपने ओंठ दांतों से काट लिए थे. माता-पिता के अभाव में भी चाचा के घर किसी को उसकी अवहेलना का साहस नहीं हुआ था. उसके सांवले रंग पर कोई व्यंग्य नहीं कसा गया था बल्कि सबका मानना था, उसके सांवले रंग में अनोखा आकर्षण था. अक्सर कॉलेज में साथ के लड़के उसे नमकीन कहते थे. इस क्षण उसे अपने विशिष्ट सम्मान का कारण स्पष्ट हो गया था. क्या उसके नाम आए पापा के बैंक ड्राफ्ट उसके सांवले रंग पर सोने का मुलम्मा चढा देते थे. काश, यह सत्य उस पर पहले उजागर हो गया होता.
प्रथम रात्रि के स्वप्न मानो पहले ही आहत हो गए थे. गुलाबी गोटा लगी साड़ी रमा जीजी ने विशेष रूप से इसी रात  के लिए बनवाई थी. शिफौन की साड़ी में मुकेश वर्क के सितारे झिलमिला रहे थे.
“तुझ पर हल्का गुलाबी रंग बहुत अच्छा लगता है, चन्दा. अवनीश अपनी गुलाबी चांदनी को देखते ही रह जाएंगे.”
चाची ने भले ही चन्दा को अपने  दिल से न लगाया हो, पर उनकी दोनों बेटियाँ रमा और निक्की, चन्दा पर जान देती थीं. आज उसी गुलाबी साड़ी को पहिनते चन्दा का मन उदास हो उठा. उसकी सांवली रंगत पर कभी किसी ने छींटाकशी नहीं की और आज जब वह प्रशंसा के अनगिनत उपमान पाने को आतुर थी, तो कटु सत्य यूं उघाड़ कर रख दिया गया था.
बहुत रात गए बंद द्वार खुला था.अवनीश कमरे में आ ठिठक गए थे. शायद जबरन ही उन्हें उस कैद में भेजा गया था .चन्दा अपने में और सिमट गई. दोनों के बीच चुप्पी ज़ोरों से बोलने लगी थी.काफी देर बाद अवनीश ने कहा-
“यह विवाह मेरी इच्छा से नहीं हुआ है. आप पढी-लिखी ही नहीं हमेशा टॉपर रही हैं, ये बात तो समझ ही गई होंगी.”चन्दा के मौन पर आगे कहा था-
“माँ की जिद थी इस घर की बहू आप ही बनेंगी. आपके पापा ने इस घर को हर संभावित चीज़ से भर जो दिया है.”स्वर का व्यंग्य चन्दा के कानों में बजने लगा.
“आप मना भी तो कर सकते थे” किसी तरह संयत रह कहा था चन्दा ने.
“कैसे मना करता, दो-दो बहिनों के विवाह के लिए समर्थ जो नहीं था. समझ लीजिए भगिनी-प्रेम पर बलि कर दिया गया. वैसे आपसे मुझे कोई शिकायत नहीं है, दोष हमारा ही है.”
“फिर ये सब बताना क्या ज़रूरी था?” अनायास ही चन्दा वार कर बैठी
.”मै ईमानदारी में विश्वास रखता हूँ. आपको किसी तरह की शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा. पति-धर्म का सच्चाई से निर्वाह करूंगा, पर मानसिक रूप में जुड़ने की बाध्यता नहीं होगी. हमारे बच्चे हम दोनों के होंगे,”
”:छि:: घृणा और आक्रोश से चन्दा का रोम-रोम सुलग उठा. चेहरे पर वही भाव स्पष्ट थे.
“आप परेशान हो उठीं लगती हैं. भारत के अधिकाँश परिवारों में पति-पत्नी की यही स्थिति होती है. बाहर समाज में सब मुखौटे ओढ़े हंसते-मुस्कुराते हैं, पर उनके अन्दर की बात कितने लोग जानते हैं?”
“रहने दीजिए, हमने न ऎसी बातें देखी हैं न सुनी हैं, ये सब सुन कर ही शर्म आती है,”
“आपकी इस बात पर यकीन करने का बहुत जी चाहता है, चन्दा जी.”
“क्या मतलब, क्या हम झूठ बोल रहे हैं?’ आवाज़ में तल्खी थी
“नहीं, पर अकारण ही तो आपकी माँ का परित्याग कर आपके पापा ने दूसरी शादी नहीं की थी.”
“आप ये क्या कह रहे हैं, मेरी माँ के जीवित रहते मेरे पापा ने दूसरी शादी की थी इम्पौसिबिल. ये झूठ है. इस तरह अपमानित करने का आपको अधिकार नहीं है, अवनीश जी.”चन्दा नाराज़ थी.
“सच कहिए आप इस बारे में कुछ भी नहीं जानतीं?अवनीश विस्मित था.
“नहीं- बिलकुल नहीं”
“तो इस बार अपने चाचा या पापा से पूछ देखिएगा. हाँ एक बात याद आई. शायद आपकी कजिन रमा जी का कोई देवर था उसने आपको पसंद किया था. आपके साथ विवाह करना चाहता था, पर उसके घर वाले आपके माता-पिता की कहानी जानते थे इस लिए आपके साथ बेटे की शादी के लिए तैयार नहीं हुए. हमारे घर में तो सब जानते हुए भी स्वार्थवश मक्खी निगली गई है.” आवाज़ में कडवाहट साफ़ थी.
अवनीश का मुख ताकती चंदा स्तब्ध रह गई, तो वह जबरन स्वार्थवश स्वीकार की गई थी.
“मुझे दुःख है,मैने आपके दिल को ठेस पहुंचाई. वैसे आप प्रतीक्षा कर रही होंगी , चलिए इस रात का अर्थ सार्थक करें. यह भी तो पति -धर्म का कर्तव्य है.”
अवनीश के उस अभद्र वाक्य पर चन्दा चीख सी पड़ी.
“नहीं, अगर मेरा स्पर्श भी किया तो जान दे दूंगी. मेरी ओर से आप बंधन-मुक्त हैं. आपका मन जिससे जुड़ा  है, आप उसके पास जाने को स्वतंत्र है,. हम यहाँ नहीं रहेंगे, यहाँ मेरा दम घुटता है. “उत्तेजित चन्दा के बाहर जाने के उपक्रम पर अवनीश ने शांत स्वर में कहा-
 “इस समय बाहर जा कर जग हंसाई ना कराएं. वादा करता हूँ, अच्छे मित्र की तरह आपको पूरा सम्मान दूंगा. आई एम् सॉरी. मै नहीं जानता था, अपनी माँ के जीवन की त्रासदी से आप सर्वथा अनभिज्ञ हैं. मुझे माफ़ कर दो चन्दा.”
“आप क्या बता सकते हैं, मेरी माँ अगर जीवित  हैं तो वह कहाँ हैं? क्या उन तक मुझे पहुंचा सकते हैं?दो व्याकुल उत्सुक नयन अवनीश के मुख पर निबद्ध थे,
“सुना है हरिद्वार के किसी आश्रम में वह रहती हैं. आपके पापा ने उन्हें पागल घोषित कर दिया था. पता नहीं ये बात सच है या झूठा आरोप.”
माँ पागल करार दी गईं, हरिद्वार में जीवित हैं, ये बात एक अजनबी तक जानता है और वह माँ की जायी, उसे मृत मान जीती रही. दुःख से चंदा का ह्रदय हाहाकार कर रहा था. उसकी आँखों से बहते आंसुओं को देख अवनीश पसीज गया.
“यह क्या मै अनजाने ही आपको रुलाने का अपराध कर बैठा. बिलीव मी, मैने ऐसा कभी नहीं चाहा था. प्लीज रोइए नहीं. अब आप आराम करें मै उधर सोफे पर ही सोने का आदी हूँ. गुड नाइट.”
अवनीश के सो जाने के बाद भी क्या चन्दा सो पाई थी? पागल माँ की बेटी राहुल के लिए ही नहीं, अवनीश के लिए भी अवांछित थी. काश ये सच उस पर उजागर ना होता.पूरी रात जागने के बाद, हौले से अवनीश को जगा, पलंग पर सोने को कह कर बाथरूम में नहाने चली गई. दिल पर भारी बोझ महसूस हो रहा था. प्रथम रात्रि में क्या किसी ने वैसा उपहार पाया होगा?
दूसरे दिन ससुराल के नियमानुसार पग फेरे के लिए बहू को कुछ देर के लिए मायके जाना होता है. अवनीश कार से उसे उसके घर छोड़ तुरंत वापिस चला गया. चाची द्वारा उसे रोकने के आग्रह पर कोई अच्छा सा बहाना भी बनाया था. रमा जीजी ने ही आगे बढ़ चन्दा को दुलार से अंक में ले लिया था.
“क्या बात है, चन्दा, चेहरा सूखा- सूखा सा लग रहा है. अविनाश ने रात भर जगाए रखा है, देखो न आँखें कैसी लाल हो रही हैं.चल, अपने कमरे में चल कर आराम से बातें करते हैं.”जाते-जाते निक्की को कमरे में शरबत लाने के लिए आवाज़ भी दी थी.
“दीदी, क्या तुम जानती हो मेरी माँ जीवित है?”चन्दा के सपाट प्रश्न पर रमा विस्मित हो गई.
“तुझे ये सब किसने बताया ?” किसी तरह रमा पूछ सकी.
“अवनीश ने, बताओ दीदी, सच क्या है? जब तक सच नहीं बताओगी हम ने पानी तक न पीने की कसम खाई है.”
“मैने तो बस इतना ही जाना, ताऊ जी और ताई जी में बनती नहीं थी. दोनों अलग हो गए थे.”
“जीवित माँ को मृत घोषित करना क्या ठीक था, दीदी” ना जाने मेरी माँ कैसी होगी.”चन्दा के रुके आंसू फिर बह निकले.
“मैने बचपन में ये बातें सुनी थीं, ठीक से पूरी बात मै भी नहीं जानती.”रमा चुप हो गई.
पापा बैठक में चाचा के साथ बैठे चन्दा की दूसरी विदाई के बाद विदेश वापिस जाने के कार्यक्रम के बारे में बात कर रहे थे. बैठक में आई चन्दा को देख पापा चौंक गए.
“अरे चन्नी, कैसी है, बेटी, ससुराल कैसा लगा? अवनीश रुक नहीं सका, उसके साथ बात नहीं हो पाई.”
“आपसे कुछ पूछना है, पापा.” उनकी बातों का जवाब न दे चंदा ने कहा.
“हाँ –हाँ बता न क्या पूछ्ना चाहती है?’ न जाने क्यों चन्दा को वह कुछ अस्थिर से लगे.
“”क्या मेरी माँ जीवित हैं?
पापा निरुत्तर थे.
-“माँ कहाँ हैं, मुझे उनके पास जाना है, पापा.” ’पापा के मौन पर चन्दा ने आगे कहा
“किस पगली के पास जाना चाहती है, बेटी? वह क्या तझे पहिचान सकेगी? चार माह की थी तब तुझे और मुझे छोड़ कर चली गई, उसके मन में तेरे लिए प्यार ही कहाँ था?’उनके चेहरे पर उद्विग्नता स्पाष्ट थी.
“मुझे माँ से ज़रूर मिलना है.”चन्दा ने दृढ़ता से कहा.
पापा ने फिर भी कोई जवाब नहीं दिया. पापा की चुप्पी पर चन्दा ने फिर कहा-
“मुझे माँ का पता भर दे दीजिए, मै अकेली जा सकती हूँ.”
“कल तेरी शादी हुई है,चन्नी ,ससुराल वाले क्या कहेंगे? चार दिन बाद चली जाना.”पापा धीमे से बोले.
“ससुराल से तेरा बुलावा आता ही होगा, ऐसे वक्त -- - “चाचा ने समझाना चाहा.
“नहीं जाना है मुझे ससुराल”.
“क्या कह रही है, चन्दा?”पापा का स्वर डरा हुआ था.
“ठीक कह रही हूँ पापा, उस घर में मेरे लिए जगह नहीं है. वहां किसी और का अधिकार है. मेरी नियति मेरी माँ से अलग हो भी कैसे सकती है? ठीक कहा न पापा?”व्यंग्यपूर्ण दृष्टि से देखा था उसने अपने पापा की ओर .
“तू कुछ नहीं जानती बेटी - - वह - - -“वाक्य पूरा नहीं हो सका.
“सच कहा, पापा, मै कुछ नहीं जानती. अगर जानती तो आज इस तरह से आपके साथ साक्षात्कार न होता. मुझे कुछ न बता, आपने मेरे साथ कितना बड़ा अन्याय किया है, आप समझ  नहीं सकते, पापा” चन्दा का गला रुंध गया.
रमा जीजी, चाची सब सब चन्दा को समझा कर थक गईं, पर वह अविचलित रही.ससुराल से आया बुलावा चन्दा की अस्वस्थता केबहाने टाल दिया गया. सब जान कर भी रमा चन्दा को समझाने की कोशिश करती रही, पर चन्दा का एक ही उत्तर था—माँ के पास जाना है. अंतत: पापा ने पत्नी का पता दे ही दिया.
आभूषण विहीन, सादी सूती साड़ी में एक सुबह अचानक हरिद्वार के उस आश्रम में चन्दा पहुँच गई थी, जहां पिछले बीस वर्षों से उसकी माँ एकाकी जीवन जी रही थी. सरस्वती माँ को खोजने में चन्दा को देर नहीं लगी थी. एकाकी कुटी में उस समय वह ध्यानस्थ बैठी थीं. आसन के नीचे बैठ चन्दा ने माँ के मुख को अश्रुपूरित नयनों से निहारा था. सौम्य-शांत मुख पर मलिनता की एक लकीर तक चन्दा नहीं पढ़ पाई थी. धीमे से आँखें खोल सरस्वती देवी ने मधुर स्वर में पूछा –
“कौन हो बेटी, कहाँ से आई हो?”
चन्दा के अंतर में वर्षों का दबा रुदन मानो एक साथ उमड़ने लगा था. कंठ से एक शब्द भी नहीं फूटा, पर नयनों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी.अपने आसन से उठ चन्दा का घेहरा अपने हाथों में ले एक पल निहार सरस्वती देवी ने प्यार से पूछा था-
“तू मेरी चन्नी बेटी है न?”आवाज़ में बेचैनी थी.
“माँ—माँ - - “कहती चन्दा सरस्वती माँ के सीने से जा लगी थी.
चन्दा के सिर पर प्यार से हाथ फेरती सरस्वती की आँखें भी अश्रुपूर्ण हो उठीं.कुछ देर रो चुकने के बाद चन्दा ने मुख उठा पूछा था-
“मुझे छोड़ कर क्यों चली आई, माँ? मेरा क्या अपराध था जो इतना बड़ा दंड दिया. कभी अपनी मासूम बेटी को एक पल को भी याद किया था, माँ?”
“यहाँ की हर लड़की में अपनी बेटी को ही तो खोजती रही हूँ, चन्नी. प्रतीक्षा करती रही, कब मेरी चन्नी बड़ी होगी, कब अपनी माँ को याद करेगी, कब यहाँ पहुंचेगी. तूने आने में बहुत देर कर दी, चन्नी. पूरे बीस वर्ष, पांच माह , दस दिन बाद आई है.”
“मुझे कहाँ पता था, तू यहाँ जीती है, माँ वरना क्या इत्ती देर लगती तेरी चन्नी को यहाँ आने में?”
“”क्या तुझे यह भी नहीं बताया गया, तेरी माँ जीवित है.” सरस्वती देवी के मुख पर काले बादलों की छाया घिर आई थी.
नहीं ... माँ, मुझे तो इस सच्चाई का पता ससुराल में लगा, जानते ही तुरंत आई हूँ, माँ.”
“तेरा ब्याह हो गया चन्नी? मेरा जमाई कहाँ है, फिर तू अकेली क्यों आई है,चन्नी? शादी के बाद ये कैसे वेश में आई है, ना रंगीन कपडे, न शरीर पर कोई आभूषण . क्या बात है चन्नी?” सरस्वती की व्यग्रता बोल उठी.
“वो सब बाद में बताऊंगी, माँ. बहुत थक गई हूँ. पहले माँ तुझे सुनानी होगी अपनी कहानी.” लाड से माँ की गोदी में सिर रख चन्नी बच्ची बन गई.
“सच बिटिया मै कैसी पागल हूँ,इतना लंबा सफ़र कर के आई है और मै ने पानी तक को नहीं पूछा. हरीदासी.....” सरस्वती व्यग्र हो उठीं
हरीदासी के आते ही उन्होंने आदेश दिया-
“मेरी बेटी के रहने की व्यवस्था मेरी ही कुटी में कर दीजिए और अभी कुछ फल-फूल का प्रसाद ला दीजिए.”
“नहीं माँ, अब और कुछ नहीं चाहिए, तुम्हें पाकर सब पा लिया.”
“प्रसाद के लिए इच्छा -अनिच्छा का प्रश्न नहीं उठता बेटी. प्रसाद तो मन की शान्ति के लिए ग्रहण किया जाता है, चन्नी.”थोड़ी ही देर में हरीदासी एक दूध के गिलास के साथ एक दोने में केले, अमरुद और सेव ले आई थी.
“तेरी चाय की आदत तो नहीं है, चन्नी? यहाँ चाय नहीं चलती, पर आश्रम के बाहर एक चाय की दूकान है, तू कहे तो....”
“मेरे कारण अपनी तपस्या भंग मत करो माँ , मुझे ऎसी कोई आदत भी नहीं है. इतना प्रसाद ही ज़रूरत से ज़्यादा है.”
चन्नी माँ की अनजानी ममता से अभिभूत थी, काश ये ममता उसे बचपन से मिली होती.
अपनी कुटी में पहुँच, बेटी को बड़े दुलार के साथ कुश- शैया पर बैठा सरस्वती उसके पास ही बैठ गई.
“पहले प्रसाद खा ले तब तक तेरे भोजन की व्यवस्था करती हूँ. कुछ दिन रुकेगी न चन्नी या जमाई बाबू जल्दी लेने आ जाएंगे?, बहुत प्यार करते होंगे तुझे.”आँखों में उत्सुक सवाल था.
“अब हमेशा के लिए यहीं तेरे पास रहने ही तो आई हूँ . माँ की उत्सुकता अनदेखी कर चन्दा ने कहा.
“क्या कह रही है, चन्नी? अभी कुछ देर पहले ही तो तूने बताया तेरा विवाह हुआ है और अब ये क्या कह रही है? माँ की आँखों में चिता थी.
“तू भी तो पति और दुधमुही बेटी को छोड़ कर यहाँ आई थी न माँ?”सरस्वती को गहरी दृष्टि से देख चंदा ने कहा.
“क्या उसके लिए मुझे अराधी बना, दंड देने आई है, चन्नी?”
“नहीं तुम्हारे दंड की भागी बनना चाहती हूँ माँ. आखिर क्यों वैभव का जीवन त्याग कर तू यहाँ तपस्विनी का जीवन बिता रही है, माँ.”
“पागल हूँ न?”उदास स्वर में सरस्वती ने कहा था.
“विक्षिप्तों वाली एक भी बात तो तुम में नहीं देख सकी, माँ, शायद वैसा होता तो दिल को इतनी चोट तो ना पहुंचती माँ.”चन्दा का स्वर भीग आया था.
“जिस बात को तेरे पापा, उनके सारे घरवालों ने स्वीकारा, तू उसका विरोध कर रही है, चन्नी .”
“पापा की समृद्धि दूसरों के लिए उनकी सम्मति का कारण बन सकती है, चन्नी के लिए नहीं.”
“चन्नी..मेरी बेटी..”चन्नी को सीने से लगा सरस्वती का वर्षों से रुका आंसुओं का बाँध टूट गया.
माँ को बच्चों की तरह हलके-हलके थपकी देती चदा मानो सरस्वती की माँ बन गई थी. काफी देर रो चुकने के बाद आँचल से आंसू पोंछती सरस्वती के मुख पर उजली मुस्कान आ गई थी.
“कैसा अनुभव कर रही हो, माँ “?चंदा ने एक अध्यापिका बन माँ से. पूछा.
“वर्षों से दिल पर जो बोझ ढो रही थी, एक पल में ढह गया. बहुत हलकी हो गई हूँ, चन्नी”
“तू कभी हलकी नहीं हो सकती माँ, सब पर भारी बनी रहे, यही मेरी प्रार्थना है..”
“बिना कुछ जाने प्रमाणपत्र दे रही है, चन्नी.”
“तुझे देखते ही सब जान गई, माँ.”
“पर चन्नी तू जिस तरह अकेली यहाँ आई है, देख कर मेरा जी घबरा रहा है. कहीं मेरा दुर्बाग्य तो तेरी राह में नहीं आ गया?’ सरस्वती व्याकुल हो उठी थी.’’
“पहले अपनी बात बताओ तभी मेरी कहानी जान सकोगी, माँ.”चन्दा जबरन हंस दी.
“वो सच तुझे बता पाना संभव नहीं हो सकेगा, चन्नी. तू अपने मन की सुन, मै नहीं चाहती मेरी कहानी सुन तू किसी को प्यार की जगह घृणा करने लग जाए.”
“जिसने जीते जी मेरी माँ को मृत घोषित कर दिया, अब वह मेरे लिए आदर या प्यार का पात्र कभी हो सकेगा, इस बात की कल्पना भी असंभव है, माँ.”
“पर तेरे तो वह पूज्य हैं, तेरे प्रति तो उन्होंने अपना कर्तव्य निबाहा है न? मेरी बात छोड दे.”
“हाँ माँ उन्होंने पैसे भेज अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी और तूने मुझे दूसरों की दया पर आश्रित छोड़ अपना कर्तव्य पूरा कर लिया था, माँ.” चन्दा कुछ कटु हो उठी.
“तू कैसे जानेगी चन्नी, किन परिस्थितियों में तुझे छोड़ना पड़ा था. क्या किसी माँ को ऐसा दंड मिला होगा, चन्नी.”
“जब तक तू सच बताएगी नहीं, क्या मै शान्ति से सांस ले सकूंगी, माँ?”
“कैसे उस अपमानजनक घटना को दोहराऊँ, बेटी?”
“मै तेरी बेटी, तेरे रक्त से सिंचित तेरा अविभाज्य अंग हूँ, माँ. मुझसे कैसा परदा?”
“सिर्फ तीन माह बीस दिन पूरे किए थे तूने, चन्नी.तुझे पा कर मेरा मातृत्व धन्य था. तेरा मुंह निहारते मै थकती नहीं थी, रात को तेरे रोने से तेरे पापा को तकलीफ होती थी, चन्नी. इस लिए तेरे साथ दूर के कमरे में अपने सोने की व्यवस्था कर ली थी. उस रात... .. “कहती सरस्वती चुप पड़ गई.
“क्या हुआ उस रात, माँ कहती क्यों नहीं.”
“उस रात तू बुखार में तप रही थी, तेरे माथे पर ठंडे पानी की पट्टी बदलते अचानक लगा, तेरी सांस उखड़ सी रही थी. घबरा कर तुझे वहीं पलंग पर छोड़ तेरे पापा को बुलाने उनके कमरे में भागी थी. देख कर जड़ हो गई, पलंग पर तेरे पापा के साथ . . . . बस उसके आगे की बात मत पूछ चन्नी. नहीं बता सकूंगी.”सरस्वती काँप रही थी.
“क्या पापा तेरे रहते किसी और के साथ ..... ओह माँ तेरा दुःख समझ सकती हूँ., पर जिस घर में तेरा ऐसा अपमान हुआ उस घर में मुझे जीने को क्यों छोड़ा, माँ?”

छोड़ना कहाँ चाहा था, चन्नी? जैसे ही तुझे गोद में लिए बाहर निकलना चाहा, तेरे पापा ने तुझे मेरी गोद से छीन लिया. लोगों को बताया गया मै पागल थी. पागलपन में तुझे ले कर घर से भाग रही थी. एक –दो बार कमजोरी की वजह से बेहोश हो गई थी, वही बात पागल सिद्ध करने को काफी थी.”
“क्या तेरी सच्चाई पर किसी को विश्वास नहीं हुआ, माँ?”
“जिन्होंने किया, उन्होंने भी पापा की जमींदारी की शान और दौलत के कारण मुंह सी ळिए. तेरे पापा का दबदबा ही ऐसा था.”
“नाना के घर जाने की क्यों नहीं सोची?”
“नाना के घर से डोली उठते ही नाना ने कह दिया था, अब वह घर मेरा नहीं, मामा- मामी का था. मेरी माँ की मृत्यु के बाद नाना मेरे मामा के अधीन हो गए थे और मामी को मेरा उस घर में जाना पसंद नहीं था, मेरा वहां जाना सवथा वर्जित था, बेटी.”
“पापा ने तुम्हें रोकने की कोशिश नहीं की, माँ?’
“कहा था, जमींदारों के लिए वैसी बातें कोई नई बात नही थी, नई बात तो मैने विरोध कर के की थी, चन्नी. गलत नुझे ही ठहराया गया था.”
“तुम्हारे घर छोड़ने के बाद पापा ने तुम्हारी कोई खोज-खबर नहीं ली, माँ?”
“उनके मन पर अधिकार कहाँ पा सकी थी? पुरुष को रिझाने के गुण कहाँ जानती थी, देवता मान पूजा करती थी, पर पुरुष का मन कुछ और भी चाहता है, नहीं जानती थी.”सरस्वती ने गंभीरता से कहा.
“फिर तुमने क्या किया, माँ?’
“ रिश्ते की विधवा बुआ इसी आश्रम में रहती थी, सीधी उनके पास आ गई थी कभी न वापिस लौटने की  कसम ले के. शायद अपने अंतिम दिनों में बुआ ने तेरे पापा के पास पत्र भेजा था. वह सोचती थी , मेरा पता तेरे पापा के पास होना चाहिए क्योंकि मेरा अंतिम संस्कार मेरे पति द्वारा ही किया जाना चाहिए., आखिर मै सधवा नारी जो ठहरी.”
“ बुआ का पत्र मिलने पर आकर घर वापिस ले जाने की बात भी कही थी. पर तब तक भै बदल चुकी थी. वैराग्य के बाद् जूठे सुहाग का सुख क्या भोग सकती थी?’
“फिर”
“फिर क्या, उलटे पाँव लौटते हुए धमकी दे गए थे, उनके लिए मै मर चुकी और उनहोंने यह कर भी दिखाया ,चन्नी.तुझे तक नहीं बताया तेरी माँ जीवित है. सरस्वती का मुख उदास हो उठा था.
“जानती हो, पापा ने दूसरा विवाह कर लिया है माँ. पत्नी के साथ अमरीका जा बसे हैं.”
 “जानती हूँ, शायद उम्र के इस मोड़ पर वह एक स्त्री के साथ बंध सके वरना उन दिनों क्या ऎसी बात सोची जा सकती थी?”
“तुझे पापा की वो सच्चाई मेरे जन्म के बाद ही पता लगनी थी, माँ?”
“शायद तेरी वही नियति थी, बेटी, पर आज तुझे देख कर अपने से बार-बार पूछने की इच्छा हो रही है, क्या तब का लिया मेरा निर्णय ठीक था?”
“मेरे लिए अपने को दोषी ठहरा क्यों दुःख पाती है, माँ? अवनीश और पापा में भी तो थोड़ा ही अंतर है. पिता बनने के बाद पापा ने तुम्हारा विश्वास तोड़ा और अवनीश ने विवाह के तुरंत बाद मेरा भ्रम तोड़ा    है.”   
“एक सच तो मानेगी, चन्नी, उसने तेरे साथ ईमानदारी तो बरती है. चाहता तो तेरे पापा की तरह् तुझे कुछ भी न बताता और उसी दूसरी लड्कीसे संबंध बनाए रखता,”
 “अगर विवाह के पहले वो सच बता दिया होता तो शायद तुम्हारी बात से सहमत हो सकती, माँ.”
“भविष्य के लिए क्या सोचा है, चन्नी? अकेली इतनी बड़ी दुनिया में कहाँ रहेगी तू?
“अब तो तुम मिल गई हो. माँ. आज तक अकेली थी, अपना दुःख-सुख अकेली झेलती रही, पर अब तो तू मेरे साथ है.माँ.
“न चन्नी न... मेरा साथ कब तक रहेगा? न जाने कब ऊपर से बुलावा आ जाए.”
“फिर क्या अवनीश के साथ रह कर अवांछित का अपमान सहती रहूँ? जो तू नहीं सह सकी, वही मुझे सहने की बात कह रही है, माँ.”चन्दा रुष्ट लगी.
“इसलिए कि इतने वर्षों के अनुभव से यही जाना है, अधिकाँश पुरुषों का मन एक सुगना है, चन्नी, जो नई कलियों के प्रति स्वभावता; आकृष्ट होता है. यह पत्नी का कर्तव्य है, वह् पति  का मन बांधे रखने की कोशिश करे. यह पत्नी की अपनी लड़ाई है. या तो वह अपने प्यार से सुगने को पालतू बना सकती है या उसे स्वतंत्र उड़ने को छोड़ सकती है.”
“ये जानते हुए भी तुमने ऐ सा क्यों नहीं किया, माँ?”
“आज तेरे सामने स्वीकार करती हूँ, मैने गलती की थी,चन्नी. मेरे पास भी शस्त्र थे, उनका प्रयोग किए बिना अपनी पराजय स्वीकार कर ली. तब उतना समझ पाने की उम्र नहीं थी. घर छोड़ते समय सोचा था, मैनै अपने स्वाभिमान को अक्ष्क्षुण रखा है, पर तेरे प्रति अन्याय तो कर ही गई न चन्नी. तू घर लौट जा, चन्नी.”
“किस घर में लौटूं, माँ? वहां अवनीश के मन पर मुझसे पहले ही कोई और अधिकार किए हुए है. “
“तेरी बातों से जान गई हूँ, अवनीश अच्छा लड़का है. अपने प्यार, धैर्य, और त्याग से तू उसे ज़रूर पा लेगी. मै तुझे अवनीश के साथ ही सच्चे मन से आशीर्वाद देना चाहती हूँ, चन्नी. लाएगी न उसे?”
“अगर अपना सच्चा अधिकार पा सकी तो ज़रूर आऊंगी, माँ वरना वापिस नहीं आऊंगी.”एक पल माँ का आशान्वित मुख ताकती चन्नी ने कहा.
”तू वापिस ज़रूर आएगी, चन्नी , मै तेरी प्रतीक्षा करूंगी.”
“पापा से मिलने का कभी दिल नहीं चाहा, माँ?
निरुत्तर माँ को निहार चन्दा ने फिर पूछा था-
“अगर अब पापा आएं?”
“”अब वह मेरे लिए उन हज़ारों व्यक्तियों में से ही एक होंगे जो रोज़ यहाँ आते रहते हैं, बेटी.”
“माँ, पापा से अलग रह कर तूने नहीं, उन्होंने जो खोया, वह कभी नहीं समझ सकेंगे. उसकी क्षति –पूर्ति कभी नहीं हो सकेगी.” चन्दा का कंठ रुंध आया था.
“कल सवेरे तुझे वापिस जाना है, चन्नी, अब सो जा.”
बड़े दुलार से बेटी के माथे पर झूल आई लट हटाती सरस्वती ने उसका माथा चूम, भीगी पलकों से मौन आशीर्वाद दिया था.