5/30/11

वैलेंटाइंस -डे

वैलेंटाइंस -डे




‘वैलेंटाइंस डे’ के ज़बरदस्त धूम धड़ाके से ‘जागृत नारी संस्था’ की सीनियर मेम्बर्स भी अछूती नहीं रह सकीं। शीला जी, संजना, देवयानी, पल्लवी भी ‘वैलेंटाइंस डे’ की बातें कर रही थीं। काश् ! उनके समय में भी प्रेम को इतना ही महत्व दिया जाता। उनके समय में तो प्रेम-विवाह को पाप ही समझा जाता था। सबको अपने अनुभव याद आने लगे।

मेरे घर में तो जब मेरी छोटी बहिन ने शैलेश के साथ अपने विवाह के लिए आज्ञा माँगी तो घर में ऐसा तूफ़ान उठा कि बस। अम्मा ने तो उससे वर्षो बात भी नहीं की। शीला जी मुस्करा रही थीं।

देवयानी को भी याद हो आया, उसके भाई ने जब अपनी मनपसंद लड़की से शादी की बात कही तो उसे घर से निकाले जाने की धमकी दी गई थी।

‘सच ज़माना कितना बदल गया है। आज हमारे बच्चे किस आराम से ब्वाय फ्रेंड की बातें करते हैं। पल्लवी हंस रही थी।

‘क्या बात है संजना, तुम एकदम चुप हो? भई तुम तो भावुक लेखिका ठहरीं। तुम्हारी जिंन्दगी में कोई ‘वैलेंटाइंस डे’ न आया हो, यह हो ही नहीं सकता। ‘संजना की चुप्पी पर देवयानी ने उसे छेड़ा था।

‘सच तो यह है, हमें प्रेम को पहचानने की अक्ल ही नहीं थी।“ खोई-खोई -सी संजना बात कह चुप हो गई।

‘यह कैसी बात कह रही हो संजना? प्रेम तो सर पर चढ़कर बोलता है।“ पल्लवी विस्मित थी।
‘लगता है पल्लवी ने प्रेम का स्वाद पूरी तरह चख़ा है, क्यों पल्लवी ? शीला जी के चेहरे की मुस्कान ने उम्र की लकीरें कम कर दी थीं।

‘प्रेम-रस जिसने नहीं पिया, अभागा रहा, क्यों संजना ठीक कह रही हूँ न ?’ पल्लवी के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी।

‘हाँ पल्लवी, प्रेम-रस ही तो जीने का मंत्र देता है....जीवन को उत्साह और उल्लास से आपाद मस्तक भिगो देता है।’ संजना क्षितिज में ताक रही थी।
‘लगता है गहरी चोट खाई है। संजना प्लीज़ अपनी प्रेम-कहानी सुनाओ न।’

‘प्रेम-कहानी, इस उम्र में ?’ संजना सोच में पड़ गई। जिस अतीत को धो-पोंछ जबरन भुला दिया, उसे दोहरा पाना क्या आसान होगा ?

‘संजना अब शुरू भी हो जा, हमसे और इंतजार नहीं होता।‘पल्लवी का बचपन जैसे लौट आया था।

‘मैंने कहा न, अपने मन को न तब समझ पाई न आज जान पाई। उस भूली कहानी को मन के किसी कोने में पड़े रहने देने में ही समझदारी हैं।‘ संजना ने बात टालनी चाही।

‘इसका मतलब चिंगारी आज तक दबी पड़ी है। आज तो कहानी सुनानी ही होगी।‘ देवयानी ज़िद पर उतर आई।

‘संजना, आज वह पुरानी कहानी सुना ही डाल। सच कहें तो ‘वैलेंटाइंस डे’ पर अतीत को सजीव कर पाना ही इस दिन की सार्थकता होगी।’ उम्र में बड़ी होने की वज़ह से शीला जी, संजना पर अपना अधिकार मानती थीं।

‘ठीक है, कोशिश करते हैं, पर बचकानी बातों पर हँसिएगा नहीं प्लीज़।’ संजना संकुचित थी।

‘अरे शुरू तो करो, शायद तुम्हारी कहानी के साथ हम भी उम्र के उस पड़ाव पर पहुँच जाएँ, जब हमारे सीने में भी ज़वान दिल धड़कता था।’ पल्लवी खुश दिख रही थी।

‘अच्छा कोशिश करती हूँ.....संजना ने कहानी सुनानी शुरू की थी-

"इन्द्रनगर के उस कम्पाउंड में गिनती के सात-आठ घर ही थे। नीलेश और संजना के परिवारों के बीच प्यार का रिश्ता, अब रिश्तेदारी जैसा लगने लगा था। तीज-त्योहार साथ मनाए जाते। पाँच भाई-बहिनों वाले नीलेश के घर में विधाता ने सरस्वती के साथ लक्ष्मी का भंडार भी उदारता से लुटाया था। तीसरे नम्बर का नीलेश संजना से दो-ढाई वर्ष बड़ा रहा होगा। सामान्य चेहरे-मोहरे के साथ अपनी वेशभूषा के प्रति कतई लापरवाह नीलेश, संजना और उसकी बहिनों की नज़र में ख़ासा डल और बोर लड़का था।

बचपन से रोमांटिक कहानियाँ, उपन्यास पढ़ने वाली संजना की कल्पना का रोमानी नायक, वह निहायत मामूली- सा दिखने वाला नीलेश तो हो ही नहीं सकता था। वैसे संजना भी कोई हूर की परी नहीं थी, पर सत्रह-अठारह की होते न होते उसकी सांवली रंगत में ऐसा निखार आया कि वह कुछ ख़ास लगने लगी। सपनों में खोई संजना को अपने प्रिन्स चार्मिंग की प्रतीक्षा रहने लगी थी।

अचानक संजना को महसूस होने लगा, नीलेश की उत्सुक दृष्टि में संजना के लिए चाहत उमड़ती। उसकी आँखे उसका पीछा करतीं। संजना से बात करने के लिए नीलेश बहाने ढूँढ़ता। बहिनें नीलेश को ले, जब संजना को छेड़ती तो वह चिढ़ जाती-

‘हमारे लिए वह बु्द्धू ही रह गया है। ख़बरदार जो किसी ने हमारे साथ उसका नाम जोड़ा।’

द‘हाँ-हाँ, ऊपर से जो भी कह ले, मन में गुदगुदी तो ज़रूर उठती होगी।

‘गुदगुदी, नीलेश के नाम पर- '' संजना विस्मित होती।

‘क्यों नहीं, ऐसा भी कोई गया-गुज़रा नहीं। हर बैच का टॉपर है। यही क्या कम है कि तेरे चाहने वालों में एक नाम तो जुड़ा।’ शैली चिढ़ाती।

उनकी बातों से अनभिज्ञ, नीलेश का यह सतत् प्रयास रहता, उसका अधिक से अधिक समय संजना के साथ बीते। पिकनिक या पार्टीज़ में नीलेश की दृष्टि संजना पर ही रहती। उसकी हर ज़रूरत वह अनज़ाने ही जान जाता, फिर उसे पूरा करना, नीलेश का फर्ज़ बन जाता। हद तो तब होती सब्ज़ी ख़त्म होने के पहले उसकी प्लेट में सब्ज़ी आ जाती। शिवानी नीलेश को छेड़ने से बाज़ नहीं आती।

‘क्या बात है नीलेश, तुम्हे संजी के अलावा कोई और दिखता ही नहीं ? भई हमारी प्लेट भी खाली है। हम पर भी नज़रे इनायत हो जाएँ।’

नीलेश शिवानी की बात हँसकर टाल देता, पर उसकी बड़ी दीदी ने शिवानी को आड़े हाथों लिया था।

‘इस तरह का मज़ाक ठीक नहीं, यह तो सीधे-सीधे संकेत देने की बात हुई। जो बात नीलेश के दिमाग़ में नहीं, वही बात डालने की कोशिश करना अच्छा नहीं है शिवानी। आगे से मेरी बात याद रखना।’

‘वाह दीदी, आपने भी एक ही कही। जो जग-ज़ाहिर है, वही असलियत हमने बयान की है। सब जानते हैं नीलेश संजी के आगे-पीछे लगा रहता है।’ शिवानी हमेशा की मुँहफट थी।

‘एक झूठ को असलियत का ज़ामा पहिनाना तुम्हें ही संभव है शिवानी।’ बड़़ी दीदी नाराज़ हो उठीं।

शिवानी की बात का नीलेश पर कतई कोई असर पड़ा नहीं दिखा, पर बड़ी दीदी नीलेश की गतिविधियों के प्रति विशेष सतर्क हो उठीं। अब अक्सर नीलेश के साथ उसकी बड़ी दीदी भी संजना के घर साथ आतीं और उनकी पूरी कोशिश रहती, नीलेश उनके साथ ही वापस जाए।

इत्तेफ़ाक से यूनीवर्सिटी की बी0ए0 परीक्षा में संजना ने पॉलिटिकल साइंस विषय में टॉप कर डाला। इत्तेफ़ाक कहने की वज़ह यह थी कि टॉप करने लायक पढ़ाई संजना ने नहीं की थी।

चचेरी, ममेरी और अपनी बहिनों के जमघट के बीच पढ़ने-पढ़ाने का माहौल बन ही नहीं पाता था। रोज़ हज़रतगंज के काफ़ी हाउस में कोल्ड कॉफ़ी, आइसक्रीम के अलावा फ़र्स्ट डे, फ़र्स्ट शो में पिक्चर देखने की उ्में होड़ लगती। मिलकर किसी एक की खिंचाई करने जैसे शौकों में पढ़ाई का नम्बर काफ़ी बाद में आता। इसलिए सबने यह बात मानी कि संजना का दिमाग़ सचमुच तेज़ था। क्लास में सुनी-पढ़ी बात उसके दिमाग़ में कम्प्यूटर की तरह अंकित हो जातीं।

टॉप करने वालों की मेरिट-लिस्ट में उसका नाम भी नीलेश ने ही देखा था। सच तो यह था कि अपने अच्छे अंक देखकर भी संजना ने टॉप करने की कल्पना नहीं की थी। कन्वोकेशन में स्वर्ण पदक पाने की कल्पना संजना को गुदगुदा गई।

पहली बार कन्वोकेशन के लिए संजना ने शिवानी की गुलाबी साड़ी माँगी थी। साड़ी पहिनने की कोशिश में संजना को कितना ज़्यादा वक़्त लग गया, इसका पता तो तब चला जब वे कन्वोकेशन-पंडाल पहुँचे। नीलेश के साथ संजना आगे वाली सीट पर बैठी थी, पीछे शिवानी और शैली थीं। बाकी लोग काफ़ी पहले जा चुके थे।

दूर से ही यूनीवर्सिटी कैम्पस में बना भव्य पंडाल चमक रहा था। पंडाल-गेट पर उन्हें उतार नीलेश कार-पार्क करने चला गया। गेट पर प्रॉक्टर नाथ खड़े थे। पंडाल में कार्यक्रम शुरू हो चुका था। प्रॉक्टर नाथ ने देर से पहुँचने वालों की अन्दर प्रविष्टि पर रोक लगा दी थी।

संजना वग़ैरह को भी अन्दर जाने से रोक दिया गया पीछे से आए नीलेश ने उन्हें बताना चाहा-

‘सर, संजना को स्वर्ण पदक मिलने वाला है, प्लीज इन्हें अन्दर जाने की इजाज़त दे दें।’

‘सो व्हाट, मेडल कल कलेक्ट कर सकती हैं। वक्त की अहमियत न समझने वाले को कोई छूट नहीं दी जा सकती। आप वापिस जा सकती हैं, मिस।’

‘प्लीज सर, सिर्फ आज के लिए माफ़ कर दीजिए।’ विनती करती संजना की आँखे पनीली र्र्हो आईं।

‘नो-नेवर ! बेकार अपना और मेरा टाइम वेस्ट न करें।’

प्रॉक्टर नाथ अपनी कड़ाई के लिए मशहूर थे। उनकी ‘ न’’ को ‘हाँ में बदलवा पाना असंभव था।

संजना स्तब्ध खड़ी थी। हमेशा की वाचाल शिवानी और शैली भी मूक दर्शक बन गई थीं। साड़ी पहिनकर आने की इतनी बड़ी सज़ा ? काश् ! उसने अपना सलवार-सूट पहिना होता।

नीलेश उनके पास से हटकर पास वाली कनात की ओर बढ़ गया। वहाँ खड़े वालंटियर लड़कों को वस्तुस्थिति बताने पर उन्हें संजना पर तरस आ गया। जीवन की इतनी बड़ी उपलब्धि यूँ ही व्यर्थ चली जाए तो किसे दुख नहीं होगा। नीलेश ने संकेत से उन्हें बुलाया। कनात थोड़ी- सी नीचे से ऊपर उठा देने से अन्दर घुस जाने लायक जगह बन पाई थी। उसी जगह से झुककर, वे पंडाल के अन्दर पहुँच सकी थीं। पीछे से नीलेश भी आ गया। अचानक जैसे वह संजना का अभिभावक बन गया था।

अन्दर पंडाल खचाखच भरा था। मेडल पाने वाले विद्यार्थी मंच के ठीक सामने वाली कुर्सियों पर बैठाए गए थे। वहाँ तक पहुँच पाना नीलेश की सहायता से ही संभव हो सकता था। लोगों से रिक्वेस्ट करता चलने की जगह बनाता नीलेश, संजना को उसके बैठने की जगह तक पहुँचा आया। नीलेश संजना के पास खड़ा था कि एक वालंटियर ने टोक दिया-

‘अब आप सरकिए जनाब, यहाँ क्यों खड़े हैं ?’

‘वह....इन्हें मेडल मिल रहे हैं, इसलिए....।’ नीलेश हड़बड़ा आया।

‘तो इन्हें आराम से बैठा रहने दीजिए श्रीमान। यहाँ किडनैपिंग पॉसिबिल नहीं है।’ मुस्करा कर वालंटियर ने व्यंग्य किया।

नीलेश के चेहरे की निराशा ने संजना के मन में हल्का- सा गर्व-भाव जगा दिया। उसे कुछ ख़ास मिल रहा है। जो नीलेश नहीं पा सका। संजना की सीट यूनिवर्सिटी की टॉपर के साथ बैठी थी, वह पुलक से भर उठी।

मुख्य अतिथि के भाषण के बाद पदक- विजेताओं के नाम पुकारे जा रहे थे। अपने नाम पर धड़कते दिल के ऊपर पड़ा गाउन, उस पर साड़ी थी कि बार-बार पाँव में अटक रही थी। कैमरों की क्लिक के बीच पदक ग्रहण करती संजना, मानो एक सपना जी रही थी।

हमेशा की तरह कन्वोकेशन के बाद डेलीगेसी की लड़कियों के लिए पार्टी अरेंज की गई थी। मिसेज़ कुमार गर्वित थीं, उनकी पढ़ाई छात्रा ने विषय में टॉप करके तीन-तीन पदक प्राप्त किए थे। बधाइयों की बौछार और हँसी-खुशी के बीच संजना भूल गई, वापसी के लिए नीलेश उसकी प्रतीक्षा कर रहा है। काफ़ी देर बाद गेट पर पहुँची संजना ने अपनी भूल महसूस की थी। उसे आता देख नीलेश का चेहरा चमक उठा।

‘सॉरी देर हो गई। बहुत देर इंतज़ार करना पड़ा न । असल में....’

‘आपके लिए तो पूरी जिंदगी इंतज़ार कर सकता हूँ। अब चलें ?

पहली बार नीलेश के उस वाक्य ने संजना को चौंका दिया, पर बात पर विशेष ध्यान न दे संजना कार में जा बैठी। वैसी बात परिहास ही हो सकती है। घर की जग़ह नीलेश ने कार ‘क्वालिटी’ रेस्ट्रा के सामने रोकी थी।

‘कार यहाँ क्यों रोकी, घर नहीं जाना है क्या ?’

‘घर चलते हैं, पर पहले बधाई के साथ मेरी ओर से आइसक्रीम तो हो जाए।’ नीलेश मुस्करा रहा था।

‘ऊँहुक ! अभी-अभी तो हम पार्टी खाकर आए हैं, आइसक्रीम के लिए जग़ह कहाँ बची है ? संजना ने मान दिखाया।

‘एक चम्मच ही सही, प्लीज।’

उस मनुहार को नकार पाना संजना को मुश्किल लगा था। नीलेश की मुग्ध दृष्टि पर संजना संकुचित हो उठी। पहली बार बहिनों से अलग, नीलेश के साथ संजना अकेली थी। नीलेश संजना की पसंद की आइसक्रीम मँगाना चाहता था, पर संजना ने निराश किया था-

‘जब अपनी मर्ज़ी से लाए हैं तो अपनी ही पसंद की आइसक्रीम मँगाइए।’

असमंजस में पड़े नीलेश ने दो टूटी-फ्रूटी का आर्डर दिया था। संजना पूछ बैठी-

‘यह तो हमारी पसंद की आइसक्रीम है, आपको तो पिस्ता-बादाम पसंद है।’

‘आप मेरी पसंद-नापसंद जानती हैं ?’ नीलेश का चेहरा खुशी से जगमगा उठा।

घर पहुँते नीलेश को शिवानी, शैली, अंजू ने आड़े हाथों लिया था-

‘यह क्या नीलेश जी, अकेले संजना को आइसक्रीम खिला लाए ? हमारा हिस्सा कहाँ गया ?’

‘हाँ, यह तो ग़लती हो गई। चलो कल सब चलते हैं।’ नीलेश ने आश्वस्त किया।

‘सोच लो नीलेश, तुम्हारे पापा के बहुत पैसे खर्च हो जाएँगे। डाँट तो नहीं पड़ेगी ? शिवानी ने छेड़ा था।

‘उसकी फ़िक्र न करें। आज ही स्कॉलरशिप के पैसे मिले हैं। वैसे भी अपने खर्चों के लिए पापा से बहुत दिनों से पैसे लेने बंद कर चुका हूँ।’ नीलेश के चेहरे पर हल्का- सा गर्व छलक आया।

‘वाउ ! यू आर ग्रेट नीलेश।’ मुँह गोल करके शिवानी ने हल्के से सीटी बजाई।

सच बात यहीं थी, रहन-सहन के प्रति सर्वथा लापरवाह नीलेश, पढ़ाई में बहुत तेज़ था। एम0एस0सी0 में दूसरी पोजीशन पर रहने के बावजूद लेक्चरर्स का वह विशेष प्रिय था। हर सेमिनार में नीलेश का पेपर होना ज़रूरी होता। एम0एस0सी0 करते ही उसे लेक्चररशिप मिल गई थी।

सउन दिनों गिटार बजाना, फ़ैशन-सिम्बल माना जाता। संजना को भी गिटार सीखने का शौक़ हो आया। उदार माँ-पापा ने बच्चों की हर फ़र्माइश पूरी की। म्यूज़िक स्कूल में शौक़िया गिटार सीखने संजना जाने लगी। वैसे उसके पहले वायलिन, सितार सीखने का शौक भी वह पूरा कर चुकी थी। संजना का हर काम में दख़ल रहता, पर किसी भी चीज़ में दक्षता हासिल करने की उसने कोशिश नहीं की। कुछ ही दिनों में संजना गिटार पर हल्के-फुल्के फ़िल्मी गीत बजाने लगी। घर में किसे इतनी फ़ुर्सत जो संजना का गिटार सुनता, पर गिटार सुनने के बहाने नीलेश को संजना का सानिध्य मिल जाता। घर से बार-बार बुलावे आने के बावजूद नीलेश को अपने घर लौटने की ज़ल्दी नहीं होती।

घर के पास के स्कूल में लीव वैकेंसी पर संजना को बुला लिया गया। उस दिन से नीलेश ने उसे ‘गुरूजी’ कहकर बुलाना शुरू कर दिया। नीलेश की बहिन की शादी में संजना ने रंगोली बनाई। उसकी कलात्मक अभिरूचि के सभी कायल थे। नीलेश पूरे समय उसके आसपास बना रहा। शादी में आए बच्चों को बटोर कर उसका परिचय कराया था।

‘देखो बच्चो, गुरूजी ने कितनी सुन्दर अल्पना बनाई है। तुम लोग इनकी शागिर्दी कर लो, फ़ायदे में रहोगे।’ उस दिन से बच्चे उसे गुरूजी कह कर चिढ़ाते और नीलेश अपने पर मुस्कुराता। शादी वाले दिन नीलेश ने नई शर्ट पहनी थी। शर्ट के पीछे कहीं नम्बर छपा रह गया था। शैली हँसते-हँसते लोटपोट हो गई-

‘संजना तू कुछ भी कर ले, पर नम्बर पड़ी शर्ट पहनने वाले से शादी नहीं करेगी।’

घर में संजना की शादी की चर्चा होने लगी थी। इसी बीच नीलेश को एक मल्टीनेशनल कम्पनी से ख़ासा-अच्छा ज़ॉब-ऑफ़र मिल गया और उसकी पोस्टिंग बम्बई हो गई। तभी संजना को पता चला था नीलेश ने पार्ट टाइम एम0बी0ए0 के कोर्स में भी टॉप किया था।

बम्बई जाने के पहले नीलेश संजना के घर मिलने आया। अचानक पापा से उसने जो कहा उससे पहली बार संजना चौंक गई-

‘ताऊजी आप संजना की शादी मुझसे पूछे बिना मत तय कीजिएगा।’

‘ज़रूर जहाँ भी बात पक्की होगी तुम्हें ज़रूर बताऊँगा, नीलेश।’ सीधे-सादे पापा खुश हो गए।
‘आप इनकी शादी की ज़ल्दी मत कीजिएगा ताऊजी।’ पापा-माँ के पाँव छू, नीलेश चला गया।

पहली छुट्टी मिलते ही नीलेश आया था। घर पर सामान रख नीलेश सीधे संजना के घर आ गया। पीछे-पीछे उसे बुलाने घर से नौकर आया था-

‘भइया जी, माँ जी बुला रही हैं। चाय-पानी तो कर लें।’

‘माँ से कह दो, हमारा इंतज़ार न करें। हम थोड़ी देर में आ जाएँगे।’

नई पोस्टिंग के प्रति नीलेश काफ़ी उत्साहित था। बम्बई के प्रति संजना का भी आकर्षण था-

‘आप तो धरती के स्वर्ग पर पहुंच गए।‘ संजना ने कहा था।

‘आपको बम्बई पसंद है ? थैंक्स गॉड। मुझे तो डर था कहीं आप बम्बई को नापसंद करती हों।’

‘वाह ! बम्बई तो स्वप्न-नगरी है। काश् ! हम भी बम्बई में रहते।’ संजना ने चाहत भरी साँस ली।

‘आप हुक्म तो करें, बम्बई आपके कदमों में होगी।’ नीलेश खुश था।

‘अच्छा वहाँ तो आपको बड़ा- सा घर मिला होगा, जैसा फ़िल्मों में दिखता है।’ संजना ने मज़ाक किया।

‘जो घर आप पसंद करेंगी, वहीं ले लूँगा। और आप क्या चाहती हैं ?’

‘हम चाहते हैं एक लम्बी- सी कार हो, उसमें पीछे की सीट से एक प्यारा- सा सफ़ेद डॉगी, बाहर झाँकता हो।’

‘डन ! बताइए घर के परदे किस रंग के होने चाहिए ?’

‘वह तो घर की दीवारों के रंग पर डिपेंड करेगा, ऐसे थोड़ी बताया जा सकता है ?’

‘तो चलिए, घर की दीवारों से मैच खाते अपनी पसंद के परदे ख़रीद दीजिए।’ दो मुग्ध आँखें संजना को गर्वित कर गईं।

नीलेश का आना-जाना लगा रहा। उसकी संजना के घर आने की उत्सुकता में कोई कमी नहीं आई। संजना के मन में हल्की- सी पुलक जागने लगी, कोई उसे इतना चाहता है उसकी इच्छा-अनिच्छा को इतना मान देता है। नीलेश पर उसकी बड़ी दीदी का पहरा बढ़ता जाता। जब भी वह आता, दीदी उसके साथ आतीं और साथ ही ले जातीं।

पुरानी बातें याद करती संजना को याद आता, बहिनों की लम्बी-चैड़ी ज़मात में कुछ भी व्यक्तिगत नहीं रह जाता था। किसी की किसी के प्रति चाहत या लगाव भी, सामूहिक चर्चा का विषय होता। सर्वसम्मति से लिए गए निर्णय, व्यक्तिगत बन जाते। नीलेश के मामले में भी वही बात रही। बहिनों की सम्मति मे संजना जैसी मेधावी, हाज़िर ज़वाब, स्मार्ट लड़की के लिए नीलेश जैसा गम्भीर, कुछ हद तक बोर किस्म का लड़का, कतई ठीक नहीं था। संजना ने अपना दिमाग़ लगाने की ज़रूरत ही नहीं समझी, वर्ना यह सोचना काफ़ी ठीक होता कि नीलेश के साथ वह सुखी जीवन जी सकती थी।

एक बात संजना आज तक नहीं समझ पाई, नीलेश उसे चाहता था, इसमें शक की संभावना भी नहीं, फिर वह अपने मन की बात स्पष्ट शब्दों में संजना से क्यों नहीं कह सका ? अप्रत्यक्ष रूप से उसने कई-कई बार संकेत दिए, पर सीधे शब्दों में अपने मन की बात कहने का साहस क्यों नहीं कर सका ? नीलेश को लेकर बहिनों के मज़ाक में उसने भी साथ दिया, पर क्या मन के अन्तर में उसके लिए चाहत का अंकुर नहीं फूट आया था ?

अपनी आर्थिक स्थिति के कारण माँ-बाप संजना के साथ नीलेश के विवाह का प्रस्ताव रखने में संकोच करते रहे। आर्थिक दृष्टि से नीलेश का घर उनकी अपेक्षा बहुत सम्पन्न था। हालाँकि नीलेश की माँ संजना की तारीफ़ें करती न थकतीं-

‘संजना तो जिस घर में जाएगी, घर उजाला कर देगी। बड़ी गुणी लड़की है।’

संजना के विवाह की बात एक डॉक्टर से चल रही थी। बात काफ़ी आगे बढ़ चुकी थी, स्वयं संजना भी उस प्रस्ताव में इन्टरेस्टेड थी। नीलेश सुनते ही व्याकुल हो गया-

‘नहीं ताऊजी, जब तक अच्छी तरह खोज़बीन न करे लें, विवाह मत तय कीजिएगा।’

‘ठीक कहते हो नीलेश, ज़माना बड़ा ख़राब है।’ पापा को नीलेश की बात में तथ्य दिखा।

‘आप कुछ दिन के लिए रूक जाइए, थोड़े दिनों बाद सब ठीक हो जाएगा। ताऊजी मैं....’

कुछ कहता नीलेश, अचानक चुप हो गया। शायद उस दिन बात उसके ओंठों तक आ गई थी, पर न जाने किस वज़ह से बाहर न आ सकी।

इस बीच एक अच्छा प्रस्ताव मिल गया। लड़का विदेश से आया था, चट मँगनी पट ब्याह हो गया। निमंत्रण भी फ़ोन द्वारा दिए गए। नीलेश को ख़बर करने की किसे याद रहती ? विदा के दिन,राख से बुझे चेहरे के साथ नीलेश आ पहुँचा। अम्मा चौंक गईं- -

‘नीलेश बेटा तुम ? अच्छे वक़्त पर आगए। क्या करें शादी इस हड़बड़ी में हुई, किसी को बुलाने का भी वक़्त नहीं मिला।

‘शादी के बाद संजना जी को देखने का बहुत मन था, सुनते ही चला आया।’ संजना के प्रसन्न चेहरे पर एक दृष्टि डाल, अम्मा के लाख रोकने पर भी नीलेश नहीं रूका था।

संजना चुप हो गई। सब स्तब्ध थीं।
‘उसके बाद कभी नीलेश से मिलीं संजना ?’ शीला जी ने ख़ामोशी तोड़ी थी।

‘नहीं......।’

‘अब वह कहाँ है ?’ पल्लवी उदास- सी थी।

‘शायद फ्रांस में.....।’

‘एक बात बता, उसने शादी की या नहीं ?’ देवयानी का सबका सवाल था।

‘मेरी शादी के 6-7 वर्षों बाद किसी बड़े आदमी की बेटी से उसकी शादी हो गई। सुना था शादी के लिए माँ और बड़ी दीदी ने भूख हड़ताल की धमकी दी थी।’ हल्की- सी मुस्कान संजना के ओंठों पर तिर आई।

‘उसकी शादी की ख़बर सुनकर कैसा लगा था संजना ?

‘वाह ! शीला जी, क्या सवाल पूछा है। संजना ने कभी नीलेश को चाहा ही नहीं, तो इसे क्यों भला-बुरा लगना, क्यों

संजना ?’ देवयानी ने विश्वासपूर्वक कहा।

‘नहीं देवयानी, सच यह नहीं है। आज सच्चाई स्वीकार करती हूँ, उसके विवाह की ख़बर सुनकर दिल में जो टीस उठी, सह पाना मुश्किल था।’

‘पर क्यों संजना ?’

‘इसलिए कि उस दिन पहली बार महसूस हुआ मैंने वह चीज़ हमेशा के लिए खो दी, जो मेरे जीवन की अमूल्यतम निधि थी। सच तो यह है विवाह के बाद अनज़ाने ही कई बार पति और नीलेश की तुलना कर जाती और तुलना में नीलेश बहुत ऊपर रहता। कोई किसी को चाहने की सीमा तक चाहे और अचानक चाहत का वह एहसास सर्वथा शून्य हो जाए तो ?’ संजना का सवाल अनुत्तरित ही रहा।

‘अगर आज फिर कहीं नीलेश मिल जाए तो तेरा क्या रिऐक्शन होगा संजना ?’

‘नहीं, अब उससे कभी नहीं मिलना चाहूँगी, देवयानी। नीलेश की आँखों में अपने लिए बेपनाह चाहत देखने की आदत बन चुकी थी, चाहत-रहित नीलेश की आँखें, क्या झेल सकूंगी ?’

बात कहती संजना कहीं दूर क्षितिज में ताक रही थी।

मीत मेरे

एकदम सामने आ रही कार देखकर गौरव ने घबराहट मे अपनी कार बाईं ओर मोड़ दी। किर्र की आवाज़ के साथ कार किनारे खड़े पेड़ से टकराकर रुक गई। सामने वाली कार के चालक ने ब्रेक लगाकर अपनी कार रोक ली। काकार के यात्रियों की ओर आया—

''आर यू ओके गाईज?' उनके सामने एक 28-30 वर्ष का अमरीकी युवक खड़ा था।
''जी---ई-- '' गौरव इतना ही कह सका।

किस्मत से गौरव और नेहा को ज्यादा चोट नहीं आई थी, पर स्टियरिंग-व्हील से टकराने के कारण गौरव के माथे से खून निकल रहा था। दहशत की वजह से नेहा सुन्न सी हो रही थी।

''क्या मरने के लिए घर से निकले थे,अपनी लेन का भी ध्यान नहीं रहा। ग़लत लेन मे आने पर कितना जुर्माना देना होगा जानते हो ना?'

''सॉरी। माफ़ कीजिए, मैं कुछ परेशान था, लेन का ध्यान नही रहा।'' कार से उतरे गौरव ने अपनी ग़लती मानी।

''परेशान होने का यह मतलब तो नहीं किसी दूसरे को मुश्किल मे डाल दो। अगर मेरी कार की टक्कर से तुम्हें कुछ हो जाता तो--''-बात कहते अचानक युवक की दृष्टि गौरव के माथे से निकलते खून पर पड़ी।

''अरे तुम्हारे माथे पर तो चोट लगी है,चलो तुम्हें हॉस्पिटल ले चलता हूं।'' अमरीकी युवक ने अब हमदर्दी से कहा।

''नहीं—नहीं ,इसकी ज़रूरत नहीं है। मामूली सी चोट है, घर मे फ़र्स्ट-एड का सामान है। चोट पर दवा लगा लेंगे।'' गौरव ने संकोच से कहा।

''नहीं, सिर पर लगी चोट को मामूली नहीं समझना चाहिए। यहां पास ही जीज़स-मेरी हॉस्पिटल है, वहीं चलते हैं।''

''हम हॉस्पिटल नहीं जा सकते ।'' गौरव की आवाज़ मे उदासी थी।

''क्यों, क्या प्रॉबलेम है?''

''हमारे पास मेडिकल- इंश्योरेंस नहीं है।'' मायूसी से गौरव ने बताया।

''क्या—आ--,बिना मेडिकल इंश्योरेंस के तुम अमरीका मे कैसे मैनेज कर सकते हो? यहां कब से रह रहे हो?''

''बस चार महीने पहले यहां आए थे। सब कुछ ठीक चल रहा था,पर एक वीक पहले मेरा जॉब चला गया। जॉब के साथ ही मेरा मेडिकल- इंश्योरेंस भी खत्म हो गया।''

''ओह समझा। इकोनॉमिक क्राइसिस के कारण न जाने कितनों के जॉब चले गए ,एनीहाओ मै एक डॉक्टर को जानता हूं, वह तुम्हारी हेल्प कर देंगे।''

''थैंक्स,पर मेरी कार तो शायद स्टार्ट ही ना हो सके---''कार की दयनीय स्थिति पर गौरव ने नज़र डाली।

''ओह, यस्। ऐसा करो तुम दोनो मेरी कार मे चलो, तुम्हारी कार ठीक होने पर घर पहुंचा दी जाएगी।'' युवक ने अपने मोबाइल से किसी मेकेनिक को निर्देश दे ,गौरव से उसके घर का पता बताने के लिए अपना फ़ोन बढा दिया।

''आपको तकलीफ़ होगी।'' गौरव ने संकोच से कहा।

''तुम्हारे साथ इतनी ब्यूटीफ़ुल यंग वाइफ़ है, उसके साथ तुम्हें सड़क पर तो नहीं छोड़ा जा सकता। हां अपना परिचय देना तो भूल ही गया, मैं हैरीसन, पर सब हैरी ही पुकारते हैं।'' अपना नाम बता, हाथ मिलाने के लिए हैरी ने अपना हाथ बढाया।

''मैं गौरव और यह मेरी वाइफ़, नेहा।'' हैरी से हाथ मिलाते गौरव ने कहा।

हैरी के साथ उसकी कार मे दोनो डॉक्टर के क्लिनिक पहुंचे। डॉक्टर हैरी का अच्छा मित्र था। कुछ ही शब्दों मे हैरी ने उनकी समस्या बता कर उनकी हेल्प के लिए रिक्वेस्ट की थी।

''नो प्रॉब्लेम, आइए आपकी चोट एक्ज़ामिन कर लूं।''

गौरव के माथे की चोट एक्ज़ामिन करके डॉक्टर ने नर्स को इंस्ट्र्क्शन देकर कहा-

''डोंट वरी, मामूली चोट है। नर्स अभी ड्रेसिंग कर देगी। दो-तीन दिन मे ठीक होजाएगी।''

''थैंक्स डॉक्टर।'' गौरव ने सम्मान से धन्यवाद दिया।

''वेलकम। हैरी मेरे नेबर ही नहीं,मेरे बहुत अच्छे दोस्त भी हैं ,एनीथिंग फ़ॉर हिम।'' मुस्काराते डॉक्टर ने कहा।

डॉक्टर से विदा ले तीनों क्लिनिक से बाहर आए। गौरव ने हैरी से कहा

''आपके हम बहुत आभारी हैं। अपनी ग़लती की जगह आपसे इनाम मिला है। अब हम चलते हैं।''

''कैसे जाओगे, पैदल? तुम्हारी कार तो रोड की साइड पर पड़ी है?'' हैरी के चेहरे पर मुस्कान थी।

''हम कोई बस या टैक्सी ले लेंगे, आपको बहुत थैंक्स।''

''आज संडे है। मेरे पास पूरा दिन खाली है, यहीं पास ही मेरा घर है। मेरे ख्याल से तुम दोनो को कॉफ़ी की सख्त ज़रूरत है। एक-एक कप कॉफ़ी के बाद तुम्हें घर छोड़ दूंगा।''

''नहीं मिस्टर हैरीसन, अब आपको और ज़्यादा तकलीफ़ नहीं दे सकते। हम मैनेज कर लेंगे।'' संकोच से नेहा ने कहा।

''इट्स माई प्लेज़र ,नेहा। हां, तुम्हें नेहा पुकारा बुरा तो नहीं लगा? अमरीका मे तो बच्चे भी मां-बाप को उनके नाम से पुकारते हैं। हम अमरीकी फ़्रैंक होते हैं, अगर कुछ बुरा लगा तो साफ़-साफ़ कह देते हैं। आई होप यू डोंट माइंड। एक बात और मुझे भी मिस्टर हैरीसन न कहकर सिर्फ़ हैरी कहना ही ठीक है। यहां इस तरह की फ़ॉर्मैलिटी नहीं चलती।''

''ठीक है,हम आपको हैरी ही पुकारेंगे।'' नेहा हंस पड़ी।

कार हैरी के घर मे प्रविष्ट हो रही थी। गेट से अंदर आते ही दोनो ओर सुंदर फूलों की क्यारियों को देख नेहा मुग्ध हो गई । सामने हैरी का बड़ा सा घर था। घर मे सोफ़े पर बैठी नेहा ने चारों ओर नज़र दौड़ाई, सब कुछ कितना सुव्यवस्थित था।

''आपकी गार्डेन तो बहुत सुंदर है। इतने रंगों के गुलाब देखना ही एक अनुभव है।''

''म्यूजिक और गार्डेनिंग,मेरे यही दो शौक हैं या यूं कहो इन्हीं के सहारे ज़िंदगी का मज़ा उठाता हूं।'' बात कहते हैरी हंस दिया।

''अरे वाह, नेहा को भी म्यूजिक से प्यार है। इसने इंडियन म्यूजिक मे एम ए की डिग्री ली है।''

''वाउ, ग्रेट्। गौरव, यू आर अ लकी गाई। तुम्हारी वाइफ़ म्यूजीशियन है, तुम जब चाहो अपने मनपसंद गीत सुन सकते हो।'' हैरी की आंखों मे प्रशंसा थी।

''सॉरी, मुझे संगीत से कोई लगाव नहीं है।''

गौरव के सपाट जवाब से नेहा का चेहरा उतर सा गया। सच ही तो कहा था गौरव ने,शादी के बाद से आज तक उसने कब नेहा से कोई गीत सुनाने का अनुरोध किया था। गौरव के रिश्तेदार और मित्र उसकी मीठी अवाज़ मे गाए गए गीतों की जी खोल प्रशंसा करते पर गौरव हमेशा उदासीन ही रहा।

''अगर कोशिश करो तो म्यूजिक का आनंद ज़रूर उठा सकते हो। नेहा, शायद तुम हमारी म्यूजिक को भी पसंद करो।'' हैरी ने टीवी ऑन कर दिया।

टीवी पर पाश्चात्य संगीत आ रहा था। हैरी सामने किचेन मे कॉफ़ी बनाने उठ गया। उसे कॉफ़ी बनाने का उद्यम करते देख नेहा उठ आई।

'लाइए, कॉफ़ी मै बनाती हूं। मेरे रहते आप कॉफ़ी बनाएं, यह ठीक नहीं—''

''ओह नो। तुम हमारी गेस्ट हो। वैसे तो हमारे यहां गेस्ट और होस्ट दोनो मिलकर काम करते हैं, पर आज तुम पहली बार घर आई हो इसलिए बस म्यूजिक एन्ज्वॉय करो। अगली बार कॉफ़ी तुम बनाना।'' हैरी ने परिहास किया।

''एक बात बताएं, भारत मे किचेन का काम शायद कम ही पुरुष करते हैं। ये काम हम स्त्रियों के ही जिम्मे है। गौरव को तो अपनी चाय तक बनानी नहीं आती।''

मुस्कराती नेहा ने गौरव की ओर देखा।

''कोई बात नहीं,अभी तो आप लोग यहां आए हैं,कुछ ही दिनों मे आपके हसबैंड यहां की लाइफ़- स्टाइल अपना लेंगे और आपके हर काम मे मदद देंगे। अमरीका मे पति और पत्नी दोनो बाहर भी काम करते हैं और घर के कामों मे भी बराबर का साथ देते हैं। मैं और मेरी वाइफ़ दोनो वर्क करते है, पर घर के कामों मे भी साथी हैं। हम दोनो को बराबर की आज़ादी भी है। आज वह मूवी देखने गई है वर्ना आप उससे भी मिल लेतीं।''

''शायद इसीलिए यहां रहने के बाद भारतीय स्त्रियां भी अपने देश वापस नहीं जाना चाहतीं।'' मुस्कराती नेहा ने कहा।

नेहा को याद आया उसकी चचेरी बहिन भारत लौटने को तैयार नहीं है जबकि उसके पति वापसी के लिए बेचैन हैं।

''इसका मतलब इंडिया मे पति को बहुत आराम होता है। सोचता हूं, मुझे किसी इंडियन लड़की से मैरिज करनी चाहिए थी। आराम से अपना गिटार बजाता और चैन से रहता।'' हैरी के साथ नेहा भी हंस पड़ी।

''यह सच नहीं है, आजकल वर्किंग लेडीज के पति भी घर के कामों मे मदद करते हैं, हां जो औरतें काम नहीं करतीं वो किचेन मे काम नहीं करेंगी तो फिर क्या करेंगी?'' गौरव की अवाज़ की रुखाई साफ़ थी ।

''ओके ,लेट्स फ़ॉरगेट दिस इशू। कॉफ़ी तैयार है। हां,ब्लैक कॉफ़ी या मिल्क?''

''चलिए, इतना काम तो मै कर ही सकती हूं।'' अपने और गौरव के लिए कॉफ़ी मे दूध और चीनी डाल, हैरी से मिल्क के लिए पूछा

''मै ब्लैक कॉफ़ी विदाउट शुगर लेता हूं।''

कॉफ़ी के मग थमाते हैरी ने कहा—''हां अब परिचय हो जाए। तुम्हारा क्या डिसिप्लिन है, गौरव? इंजीनियर लगते हो।''

''जी नहीं,मैने मार्केटिंग मे एम बी ए किया है। यहां जॉब मिलने की वजह से इंडिया का अच्छा भला ज़ॉब छोड़ आया। यह कब सोचा था यहां इकोनौमिक- क्राइसिस आ जाएगा। समझ मे नहीं आ रहा है क्या करूं।'' परेशानी उसके चेहरे पर स्पष्ट थी।

''अब समझ मे आ रहा है ,इसी परेशानी की वजह से तुम अपनी लेन से ग़लत लेन मे आ गए थे। तुम्हारी प्रॉबलेम तो सीरियस है। इन दिनों जॉब मिलना आसान नहीं है। बिना जॉब के मेडिकल- इंश्योरेंस भी नही रहता। इलाज इतना महंगा होता है कि अपने पैसे से इलाज कराना तो संभव ही नहीं होता। कोई डॉक्टर भी इंश्योरेंस के बिना केस नहीं लेता।'' हैरी सोच मे पड़ गया।

''मैं सोचता हूं, हम इंडिया वापस चले जाएं,लेकिन मुझे मेरे मां-बाप ने बड़ी उम्मीदों से भेजा था, उन्हें क्या जवाब दूंगा? लोग तो यही सोचेंगे मैं नाकामयाब रहा।''

''मुझे कुछ टाइम दो, मेरा एक म्यूजिक स्कूल है। मेरे स्टूडेंट्स के कुछ पेरेंट्स इंड़सट्रियलिस्ट हैं। उनसे बात करके देखूंगा, शायद कहीं चांस मिल जाए।''

''आपकी बहुत मेहरबानी होगी। अब हमे इजाज़त दीजिए। आज के लिए बहुत थैंक्स।'' गौरव की अवाज़ मे उत्साह छ्लक आया।

''चलो। तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूं। कार ठीक होने मे कुछ देर लगेगी। मेकैनिक कार घर पहुंचा देगा।''

गौरव के अपार्टमेंट् के सामने कार रोक हैरी ने विदा मांगी, पर नेहा अनुरोध कर बैठी

''आज आपकी वाइफ़ तो देर से वापस आएंगी। आइए, आज हमारे घर लंच लीजिए। हमारा इंडियन फ़ूड आपके अमरीकी फ़ूड से अलग होता है। शायद आपको पसंद आए। वैसे भी खाना तो आपको ही तैयार करना होगा।''

''नहीं, आज नहीं फिर कभी। जब आप लोग इन्वाइट करेंगे हम ज़रूर आएंगे। बिना इन्वीटेशन अचानक लंच या डिनर पर अमरीकी कहीं नहीं जाते। कहीं जाने के लिए पहले से टाइम और डेट तय रहती है। डोंट वरी ,वी विल मीट अगेन। थैंक्स फ़ॉर दि इन्वीटेशन।'' और कुछ कहने का अवसर दिए बिना हैरी कार स्टार्ट कर चला गया।

अपार्टमेंट का लॉक खुलने की आवाज़ सुनते ही पास वाले अपार्टमेंट मे रहने वाली मंगला रामास्वामी बाहर आगईं।

''अइअइयो, नेहा, तुम लोग कहां रह गया जी, हमको बहुत फ़िकर करने का। वो तुम्हारा कार कहां है ,ये अंग्रेज तुमको इधर कैसे लाने का?''

''हमारी कार खराब हो गई , हैरी ने हमे लिफ़्ट दी।'' नेहा ने संक्षेप मे बात बता दी।

''ऐसा क्या, पर ऐसन तो ये गोरा लोग किसी की हेल्प नहीं करने का जी। ठीक से बात भी नही करने का पर तुमको कैसे हेल्प किया।'' मंगला ने एक भरपूर नज़र नेहा के सुंदर चेहरे पर डाली।

''सब इंसान एक से नहीं होते ,मंगला बहन। चलूं रोटी बनानी है।''

''तुम अभी थक कर आया है, हमारे घर सांभर- राइस तैयार है। अभी लाने का, नेहा।'' मंगला ने प्यार से कहा।

''नहीं मंगला बहन आप तकलीफ़ न करें। खाना बना हुआ है।'' मंगला को और कुछ कहने का अवसर न दे, नेहा अपार्टमेंट के भीतर चली गई।

दो महीने पहले मंगला ,श्रीधर रामास्वामी की पत्नी बनकर चेन्नई से अमरीका आई थीं। श्रीधर कमप्यूटर ठीक करने का काम करता था। मंगला दसवीं पास सीधी-सादी गृहिणी थीं। अपने सीमित ज्ञान और टूटी-फूटी अंग्रेजी के कारण वह पास मे रहने वाली अमरीकी औरतों से बात करने मे हिचकती थीं। एक नेहा ही थी जो उसके साथ स्नेह्पूर्ण व्यवहार रखती थी। जब से मंगला को पता चला नेहा को इडली-दोसे पसंद हैं, तब से जब भी वह इडली-दोसा बनाती, नेहा के लिए ज़रूर देती। नेहा भी मंगला की पसंद वाली खस्ता कचौड़ियां भेजना नहीं भूलती। विदेशी धरती ने दोनो को एक सूत्र मे बांध दिया था।

पिछ्ले कुछ दिनों से मंगला का परिचय अन्य दक्षिण भारतीय परिवारों से हो गया था। मंगला पाक-कला मे दक्ष थी। वह ड्राइव नहीं कर पाती थी, पर दक्षिण भारतीय व्यंजन बनाने की कला मे निपुण होने के कारण उसके समाज के समारोहों मे कोई ना कोई दम्पत्ति उसे अपनी कार से सम्मानपूर्वक ले जाता। समारोहों मे प्रसाद बनाने का दायित्व लेने के कारण उसका सम्मान बढ गया था। अक्सर परिवारों की पार्टियों मे भी उसका सहयोग लिया जाता। अपनों के बीच मंगला चेन्नई को जैसे भूल सी जाती। पहली बार एक परिवार मे भोजन बनाने के बाद जब गृहस्वामिनी ने उसके हाथ मे 50 डॉलर दिए तो मंगला चौंक गई,

''यह क्या? मैं कोई खाना बनाने वाली नहीं हूं।'' अपमान चेहरे पर परिलक्षित था।

''ऐसा क्यों सोचती हो मंगला, अमरीका मे कोई भी इंसान किसी का काम मुफ़्त मे नहीं करता ,नाही कोई काम छोटा समझा जाता है। हमारे घर जो सफ़ाई करने आती है, हम उसे भी इज्ज़त देते हैं। कभी-कभी तो घर के बुज़ुर्ग अपने ग्रैंड चिलरेन की देख- भाल के लिए भी पैसे लेते हैं। इसे अपनी मेहनत का पहला इनाम समझ कर रख लो। यह हिंदुस्तान नहीं ,अमरीका है।'' गृह्स्वामिनी ने प्यार से समझाया।

हिचकती मंगला ने पैसे रख तो लिए पर मन मे संकोच था। नेहा ने भी मंगला को उत्साहित किया, उसने मंगला से कहा कि यह उसकी मेहनत का फल है, किसी का दिया हुआ दान नहीं। गौरव के बॉस के यहां एक अच्छे परिवार की महिला खाना बनाने का काम करती है। अपनी छोटी मोटी ज़रूरतें तो इन पैसों से पूरी की ही जा सकती हैं।अब मंगला को कुछ आय होने लगी थी, चेहरा भी आत्मविश्वासपूर्ण हो चला था। उसे देख नेहा के भी मन मे आता वह भी कोई काम कर पाती, पर गौरव का वेतन दोनों के लिए बहुत था, इसलिए उसने इस बारे मे अधिक नहीं सोचा।

अमरीका मे हर पार्टी -त्योहार वीकेंड यानी शनीवार या इतवार को आयोजित किए जाते हैं। नेहा ने गौरव से कहा—

''इस शनीवार को हैरी दम्पत्ति को डिनर पर बुलाना चाहिए, उस मुश्किल के समय अगर हैरी ने हमारी मदद न की होती तो हम क्या करते।''

''यह तो ठीक है ,पर अभी मै किसी को डिनर देने के मूड मे नहीं हूं, मेरा जॉब नहीं है, जमा –पूंजी खत्म होती जारही है।'' अनमने से गौरव ने जवाब दिया।

''हैरी ने हम पर बहुत एह्सान किया है, वर्ना हम पुलिस के चक्कर मे आ सकते थे। उनके उपकार के बद्ले हमे धन्यवाद- रूप मे डिनर तो देना ही चाहिए। तुम मायूस क्यों होते हो? हो सकता है, हैरी की मदद से तुम्हें कोई जॉब मिल जाए।''

''अरे उसकी आशा करना बेकार है, आजकल स्थिति बहुत खराब है। हां उसकी मदद मे कोई स्वार्थ नहीं था। चलो ,मै फ़ोन करता हूं।''

हैरी ने गौरव का इन्वीटेशन खुशी खुशी स्वीकर कर लिया।

नेहा ने बड़ी मेहनत से स्पेशल इंडियन डिशेज तैयार कीं मटर –पनीर, मलाई कोफ़्ता, भरवां भिंडी, दही बड़े के साथ पूरियां और कचौड़ियां बनाईं। मेवा डाल कर चावल की खीर भी तैयार कर डाली।

हैरी दम्पत्ति ने ठीक छ्ह बजे कॉलिंग- बेल बजाई, दरवाज़ा खोल गौरव ने स्वागत किया।

''गुड ईवनिंग ,हमारे घर मे आपका स्वागत है।''

''नम-स्ते –।'' कुछ अटकते हुए मिसेज़ हैरी ने हिंदी मे अभिवादन कर गौरव को विस्मित कर दिया।

''अरे आप हिंदी बोल सकती हैं?'' पीछे से आई नेहा ने आश्चर्य से कहा।

''हां मेरा स्कूल मे थोड़ा इंडियन स्टूडेंट हैं, वो सिखाया है।''

''यह तो बहुत अच्छी बात है, आइए अंदर चलें।'' नेहा की आंखों मे प्रशंसा थी।

सबके बैठने पर गौरव ने कुछ संकोच से कहा –''हमारा यह छोटा सा अपार्टमेंट है---''

''ओह, यह तो सुंदर घर है। अभी तुम्हारा स्ट्रगल- पीरियड है, इसटैबलिश होने के बाद बड़ा घर लोगे।'' हैरी ने गौरव को बढावा दिया।

''आप लोग क्या लेना पसंद करेंगे? सॉरी हमारे पास ड्रिंक्स का लिमिटेड स्टॉक है, मै ड्रिंक कम करता हूं।''

''अरे नेहा की कम्पनी मे तो सॉफ़्ट ड्रिंक भी व्हिस्की लगेगी, पर पहले इंट्रोड्क्शन तो हो जाए, यह मेरी स्वीट हार्ट एलिज़ाबेथ,यानी क्वीन ऑफ़ माई हार्ट् और डर्लिंग यह ग़ौरव और उसकी चार्मिंग वाइफ़ नेहा।'' हंसते हुए हैरी ने नेहा को देखा।

''यू नो, हैरी ऐसा ही है, हर टाइम हंसता है।''

''हंसना तो बहुत अच्छी बात है। हंसने वाले इंसान हमेशा यंग दिखते हैं। देखो न हैरी कितने यंग दिखते हैं।'' गौरव ने नेहा से कहा।

''यह तो असल मे भी यंग मैन ही है, मै इससे सात साल बड़ी हूं। क्यों हैरी,ठीक कह रही हूं न?'' एलिज़ाबेथ के चेहरे पर मुस्कान थी।

एलिज़ाबेथ की बात सुन नेहा ने सोचा, अपनी उम्र के बारे मे इतनी सच्चाई से ऐसी बात स्वीकार करने के लिए साहस होना चाहिए। भारत मे पत्नी का उम्र मे बड़ा होना सामान्य बात नहीं मानी जाती। वैसे भी वहां लड़कियां अक्सर अपनी सही उम्र कम ही बताती हैं। कभी-कभी माता-पिता भी दो-एक साल कम कर के ही बताते हैं।

''अरे तुम्हारी उम्र कुछ भी हो,मेरे लिए तो तुम स्वीट सिक्स्टीन ही हो।'' हैरी हंस रहा था।

''हैरी सबको ऐसे ही प्यार करता है,तुम दोनो का तो फ़ैन हो गया है। तुमको लाइक किया इसलिए यहां आया है नहीं तो इसे अपने गिटार और म्यूज़िक के अलावा कुछ नहीं चाहिए।'' एलिज़ाबेथ ने मुस्करा कर हैरी को देखा।

''यह तो हैरी का बड़प्पन है कोई और होता तो----''

''तो वह भी वही करता।'' गौरव की बात काट हैरी ने कहा।

''आई विश, आज टीना भी हमारे साथ आई होती।'' एलिज़ाबेथ ने कहा।

''टीना कौन?'' नेहा ने पूछा

''एलिज़ाबेथ का पहले हसबैंड से डाइवोर्स हो गया। टीना एलिज़ाबेथ के पहले हसबैंड से एलिज़ाबेथ की बेटी है, वह अपने फ़ादर के साथ रहती है। वीकेंड मे हमारे पास आती है। आज वह अपनी ग्रैनी (नानी) के पास गई हुई है वर्ना हम उसे भी साथ लाते।''

''क्या टीना के फ़ादर उसे आपके पास आसानी से आने देते हैं?'' अनजाने ही नेहा पूछ बैठी।

''हां, इसमे क्या प्रॉबलेम होगी। टीना हमारी भी तो बेटी हुई,आखिर एलिज़ाबेथ उसकी मदर है। एलिज़ाबेथ का पहला हसबैंड मेरा अच्छा दोस्त है, हम सब मिलकर पार्टी करते हैं।'' नेहा के सवाल पर हैरी विस्मित था।

''माफ़ कीजिए, असल मे भारत मे पति- पत्नी के अलग होते समय बच्चों के बटवारे को लेकर झगड़े उठ खड़े होते हैं। इसीलिए मैं सवाल कर बैठी।''

नेहा को याद हो आया उसकी कज़िन गीता को अपने दुश्चरित्र पति से तलाक लेते समय पांच वर्ष के राहुल की कस्ट्डी के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे। ऐसा नही कि उसके पति को बेटे से बहुत प्यार था,पर पुरुष का अहं और गीता को तड़पाना उसका मक़सद था। अक्सर कानूनी अड़चनें भी मां के विरुद्ध फ़ैसला देने को विवश होती हैं।

अमरीका मे दूसरी शादी के लिए मर्द या औरत को बराबरी का अधिकार है। जब दोनों को महसूस होता है वे साथ नहीं रह सकते तो आपसी समझौते से अलग हो जाते हैं। तलाक से बच्चों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता। यहां तलाक सामान्य बात है। बच्चे भी इसे आसानी से ऐक्सेप्ट करते हैं। हो सकता है, इंडिया मे हमारी मैरिज को बेमेल कहा जाए,पर यहां यह कोई नई बात नहीं है। हैरी ने गंभीरता से कहा।

हां,पहले तो इंडिया में बच्चे वाली विधवा या परित्यक्ता स्त्री का विवाह मुश्किल होता था,पर आजकल समाज बदल रहा है। मीडिया के कारण लोगों मे चेतना आ रही है। हमारा समाज उदार होता जा रहा है। जानकारी देते गौरव को मीडिया पर आने वाली कई घटनाएं याद हो आईं,जब पीड़ित स्त्री को न्याय दिलाने के लिए मीडिया आगे आया था।

कोल्ड ड्रिंक देती नेहा ने कहा- ''इफ़ यू डोंट माइंड, एक बात पूछ सकती हूं?''

''ज़रूर,हमे खुशी होगी। आप क्या जानना चाहती है?''

''आप दोनों की मुलाकात कैसे हुई थी?''

''एलिज़ाबेथ अपने स्कूल के बच्चों के साथ एक कोरस गीत के ऑकेस्ट्रा के लिए मदद लेने हमारे म्यूज़िक- स्कूल आई थी। मज़े की बात यह थी कि एलिज़ाबेथ को म्यूज़िक की ए बी सी डी भी नहीं आती। कोरस गीत के साथ जब मेरी ऑकेस्ट्रा- टीम ने साथ दिया तो लोगों की तालियां देर तक हॉल मे गूंजती रहीं। उस दिन के बाद से हर म्यूज़िक- प्रोग्राम के लिए यह मेरी मदद लेने आने लगी। बस पहले हम दोनों दोस्त थे बाद मे हसबैड-वाइफ़।'' बात खत्म करता हैरी, एलिज़ाबेथ को देख मुसकरा दिया।

''लेकिन अब तो मै काफ़ी कुछ समझती हूं न, हैरी?''

''हां,अब तुम ग़लत नोटेशन पर हंस लेती हो। वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, नेहा ने इंडियन क्लासिकल म्यूज़िक मे मास्टर्स की डिग्री ली है।''

''वाऊ,दैट्स ग्रेट्। हैरी तुम अपने स्कूल में इंडियन क्लासिकल म्यूज़िक के क्लासेज़ क्यों नहीं शुरू कर लेते? मैं ऐसे बहुत से इंडियन पेरेंट्स को जानती हूं जो अपने बच्चों को इंडियन म्यूज़िक सिखलाना चाहते हैं।'' एलिज़ाबेथ ने सुझाव दिया।

''ओह यस, गुड आइडिया नेहा, क्या तुम मेरे स्कूल में म्यूज़िक टीचर का जॉब लेना चाहोगी?'' हैरी ने पूछा।

''जी—मैने संगीत सीखा है ,पर किसी को सिखाया नहीं है।'' संकोच से नेहा ने कहा।

''वो कोई प्रॉबलेम नहीं है। एक बार सिखाना शुरू करोगी तो बहुत आसान लगेगा।'' एलिज़ाबेथ ने उत्साहित किया।

''मै सोचती हूं पहले गौरव को कोई जॉब मिल जाए फिर---''

''गौरव के जॉब के लिए भी कोशिश की जाएगी। वह क्वालीफ़ाइड है उसे ज़रूर अच्छा जॉब मिल जाएगा। जॉब लेने से तुम्हें सैलरी के साथ मेडिकल इंश्योरेंस भी मिलेगा। अभी तुम लोग जो प्रॉबलेम फ़ेस कर रहे हो,उससे छुटकारा पाना ज़रूरी है। बी प्रैक्टिकल ,नेहा।''

''तुम्हें तो कोई ऑब्जेक्शन नहीं है गौरव?'' गौरव को चुप देख एलिज़ाबेथ ने पूछा।

''नहीं,अगर नेहा को शौक है तो काम करे।'' विक्षुब्ध गौरव ने कहा।

''ठीक है, तुम दोनों सोच लो। मेरा ऑफ़र रहेगा। हां नेहा को जॉब पर रखने के लिए कुछ फ़ॉरमैलिटीज़ पूरी करनी होंगी। नेहा को आसानी से वर्क-परमिट मिल जाएगा, उसके साथ जॉब करने की परमीशन हो जाएगी।''

छोटी सी डाइनिंग टेबिल पर डिनर सजा देख,एलिज़ाबेथ चौंक गई, प्रशंसा मे बोली-

''माई गॉड,लगता है मैरिज- पार्टी की तैयारी है। इतनी मेहनत क्यों की,नेहा? हम तो सिर्फ़ दो ही गेस्ट हैं या कोई और भी आने वाला है?''

''यह तो कुछ नहीं है। हमारे देश मे अतिथि को देवता यानी गॉड कहा जाता है। उनके सत्कार मे जो भी किया जाए,कम है। आज आप हमारे गेस्ट यानी अतिथि हैं।'' हंसते हुए गौरव ने बताया।

एलिज़ाबेथ और हैरी को खाना बहुत पसंद आया। एलिज़ाबेथ हर डिश की रेसिपी पूछ रही थी । हैरी ने उसे चिढाया-

''माई डियर,अपनी कुकिंग बेकिंग तक ही रहने दो। यह मज़ेदार स्पाइसी फ़ूड बनाना तुम्हारे वश का नहीं। नेहा, तुम्हें हमारे घर में बेक्ड केक, पाई या टिन में पैक्ड

खाना ही मिलेगा।''

''हैरी ठीक कहता है, हमारी कुकिंग बिल्कुल अलग किस्म की होती है। शायद तुम्हें हमारा खाना उबला हुआ लगेगा।'' एलिज़ाबेथ ने सच्चाई से कहा।

''नहीं, ऐसी कोई बात नही है। हर देश और जगह का खान-पान अलग होता है। हमारे देश में तो अलग-अलग स्टेट्स का खाना अलग तरह का होता है। हमारी नेबर मंगला जी साउथ की हैं ,उनकी और हमारी नार्थ इंडियन- ड़िशेज अलग होती हैं,पर हम दोनों एक-दूसरे की डिशेज खूब एन्ज्वाय करते हैं।'' मुस्कुराती नेहा ने कहा।

स्वीट डिश के रूप मे मेवा पड़ी खीर ने तो उन्हें मुग्ध ही कर दिया-

''व्हॉट अ लवली स्वीट-डिश,मज़ा आगया।''

डिनर ख़त्म होने पर हैरी और एलिज़ाबेथ को अपनी प्लेटें धोने के लिए जाने की कोशिश करते देख नेहा ने रोक दिया-

''नहीं, प्लीज़,आप ऐसा न करें। हमारे यहां गेस्ट से यह काम अपेक्षित नहीं है। यह उनका अपमान माना जाता है।''

''पर अमरीका मे मेज़बान पर सारा काम छोड़कर नहीं जाया जाता। मेहमान अपनी डिशेज खुद धोकर डिश-वाशर में लगाते हैं। इस तरह से मेज़बान का काम भी हल्का हो जाता है।'' हैरी ने बताया।

''हो सकता है, अगर हम यहां रहने लगें तो यहां की लाइफ़- स्टाइल अपना लें, पर अभी तो हमारे संस्कार भारतीय ही है। हमे क्षमा करें।'' नेहा ने उनके हाथों से प्लेटें लेकर सिंक में रख दीं।

उनके जाने के बाद गौरव चुपचाप लेट गया। डिश वाशर में बर्तन लगाती नेहा सोचने लगी,यह अच्छा देश है, इस देश में हर छोटे से छोटे अपार्ट्मेंट मे भी मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। डिश-वाशर,कपड़े धोने- सुखाने के लिए वाशिंग मशीन और ड्रायर, माइक्रोवेब और फ़्रिज के रहने से सारा काम कितना आसान हो जाता है। काम ख़त्म कर, कमरे मे आकर गौरव को लेटा देख नेहा ने खुशी से कहा-

''क्या थक गए? वैसे आज की शाम बड़ी अच्छी बीती। दोनों पति-पत्नी कितने अच्छे हैं। एलिज़ाबेथ को हमारा बनाया खाना बहुत पसंद आया।''

''हां तुम्हारे लिए तो जॉब का ऑफ़र भी आ गया। तुम्हारी शाम तो अच्छी होनी ही थी।'' कुछ तल्ख़ी से गौरव ने कहा।

''अरे मैं कौन सी नौकरी करने जा रही हूं। उन्होंने कहा और मैने सुन लिया।'' गौरव की आवाज़ की तल्खी नेहा पहचान गई थी।

''सोचता हूं,हम इंडिया वापस क्यों न चलें। यहां का जो हाल देख रहा हूं, उसमें अच्छे जॉब का मिलना कठिन ही होगा।''

''इंडिया का अपना जॉब भी तो छोड़ कर आए हो?''

''तो क्या दूसरा जॉब नहीं मिलेगा,वहां के हालात यहां के मुकाबले में बहुत अच्छे हैं।''

''वह बात यहां भी तो संभव हो सकती है। तुम्हारे पास ऊंची डिग्री है, काम का अनुभव भी है, तुम्हें ज़रूर कोई अच्छा जॉब मिल जाएगा। हिम्मत रक्खो। इंडिया मे सारा सामान बेचकर घर खाली कर आए हैं। वहां जाकर फिर से गृहस्थी जमाना भी तो इतना आसान नहीं होगा। लोग क्या हमारी हंसी नहीं उड़ाएंगे?''

नेहा की बात में दम था। अमरीका से जॉब का ऑफ़र मिलने पर गौरव फूला न समाया था। ऑफ़िस मे कितनी शान से कहा था- -

''इस दो टके की नौकरी में क्या रखा है। अमरीका में जो सैलरी मिलेगी,उससे एक-दो साल में यहां शानदार बंगला बनवा लूंगा।''

असल में आज नेहा के जाब-ऑफ़र ने उसे विक्षुब्ध कर दिया। पत्नी नौकरी करे और पति घर मे निकम्मा बैठा रहे, भारतीय पति की मानसिकता इसे सहज ही स्वीकार नहीं कर सकती। अभी तो परदेस से ठीक से परिचय भी नहीं हुआ था कि नौकरी चली जाने से असहायता की स्थिति बन गई। उसकी अपेक्षा नेहा प्रसन्न लग रही थी। किसी तरह करवटें बदलते रात कट गई।

सुबह-सुबह कॉल-बेल सुनकर नेहा चौंक गई। दरवाज़ा खोलने पर मंगला खड़ी दिखीं।

''अरे मंगला बहन आप,सब ख़ैरियत तो है?''

''आइआइयो, अम्मा,बोत खुशी की बात है ,नेहा । आमको काम मिलने का जी। ये लो तुम्हारे लिए मैसूर- पाग लाया है।'' खुशी से मंगला का चेहरा चमक रहा था।

''वाह ये तो बहुत अच्छी ख़बर है। काम कहां मिला है?''

''वो जो पंजाबी होटल है ना, उसके मालिक ने बुलाया, मेरे को बोला-

पुत्तर तुसी बोत अच्छा इडली- डोसा बनाता ,हमारे होटल मे काम करो तो पैसा और नाम दोनों मिलेगा। मेरे को सुबह आठ से एक बजे तक और शाम को चार से आठ तक काम करने का जी।''

''तुम्हारे हसबैंड मान गए? मेरा मतलब अब तुम्हें काफ़ी टाइम बाहर रहना होगा?''

''काए को नही मानेगा। हमारे पैसे से उसका भी फायदा होने का कि नई? हम इंडिया जास्ती पैसा भेज सकने का।'' मंगला के चेहरे पर आशा का उल्लास था।

''हां यह तो सच बात है, पर सब मर्द ऐसा नहीं सोचते।''

''क्या बोलता नेहा, अमरीका मे हम देखा ,सारी औरतें काम करने का।''

अचानक पीछे खड़े गौरव पर निगाह पड़ते ही नेहा चुप हो गई। निश्चय ही उसने नेहा की बात सुन ली थी।

''बधाई, मंगला बहन। मिस्टर रामास्वामी को भी कॉंग्रेचुलेट कीजिएगा।''

थैंक्यूं जी, अब हमको जाने का। आज से ही ड्यूटी करने का। रामास्वामी वेट करता जी।'' उत्साहित मंगला चली गई।

''हैरी का ऑफ़र स्वीकार कर लो,नेहा।'' चाय पीते हुए गौरव ने कहा-

''क्या---?'' नेहा चौंक गई।

''हां,सोचता हूं, कम से कम कुछ समय के लिए तो समस्या से छुटकारा मिल ही जाएगा। बाद में जब मुझे जॉब मिल जाए तब तुम आराम करना।'' गौरव मुस्कुराया।

''सच कहो, यह बात दिल से कह रहे हो, पर क्या मैं संगीत सिखा पाऊंगी?''

''क्यों नहीं, आखिर तुमने संगीत में एम ए किया है। यहां तो स रे ग म से शुरू करना है। आज ही हैरी को तुम्हारी एकसेप्टेंस भेज देता हूं।'' गौरव ने उत्साहित किया।

''तुम्हें मेरे काम पर जाने से परेशानी नहीं होगी?'' नेहा ने गौरव का मन जानना चाहा।

''कैसी परेशानी? दिन भर आराम से पैर फैलाकर सोऊंगा। अभी तक काम की वजह से आठ की जगह दस- ग्यारह घंटे काम करना पड़ता था।''

''तुम घर पर रहोगे मैं काम पर जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे।'' नेहा शंकित थी।

''हम भारत में नहीं हैं, जहां लोग अपने से ज़्यादा दूसरों पर नज़र रखते हैं। इतने दिनों मे एक बात समझ गया हूं, इस देश में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता। सब अपने काम से काम रखते हैं। हां सामने पड़ने वाले अजनबी को भी हाय- हलो ज़रूर करते र्हैं।'' गौरव ने अपने चार महीनों का अनुभव बताया।

''थैंक्स, गौरव।'' नेहा के चेहरे पर खुशी झलक आई।


एक घंटे में हैरी का फ़ोन आगया –

''गुड, नेहा ने जॉब लेने का फ़ैसला लिया है। मैं कल नेहा का वेट करूंगा।'' हैरी की आवाज़ में खुशी स्पष्ट थी।

धड़कते दिल के साथ नेहा हैरी के म्यूज़िक-स्कूल पहुंची। गौरव उसे पहुंचाकर चला गया।

स्कूल की भव्य इमारत देखकर यह सहज ही अनुमान हो गया कि स्कूल बहुत अच्छा चल रहा है। हैरी के रूम में पहुंची नेहा का हैरी ने खड़े होकर स्वागत किया। नेहा से हाथ मिलाते हैरी का चेहरा चमक रहा था।

''वेलकम। इट्स अ प्लेज़र टु हैव यू विद अस।''

''थैंक्स।'' कहती नेहा ने अपना हाथ खींच लिया।

''ओह्।'' हैरी को जैसे अपनी भूल ज्ञात होगई।

नेहा का अन्य अमरीकी टीचरों से परिचय कराते हैरी ने गर्व से कहा-

''अब हम म्यूज़िक के माध्यम से इंडियन कम्यूनिटी के और ज़्यादा नज़दीक आ सकेंगे।'' पास खड़ी नेहा से कहा-

''हमारे पास आलरेडी दस ऐप्लिकेशन्स आ चुकी हैं। एक घंटे बाद तुम्हारे स्टूडेंट्स आने वाले हैं। आर यू रेडी टु स्टार्ट योर क्लास?''

'' जी ई—''नेहा के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।

नेहा के म्यूज़िक क्लास में सात लड़कियां और तीन लड़के थे। सबके नाम पूछ नेहा ने समझाया—मुझे खुशी है तुम सबको इंडियन म्यूज़िक अच्छी लगती है। अगर तुम मन लगाकर अभ्यास करोगे तो जल्दी ही हिंदी के गीत गा सकोगे।

''मैम ,असल में मुझे तो आपकी म्यूज़िक में कोई इंटरेस्ट नहीं है,पर मॉम कहती है इसलिए आना पड़ा।'' एक लड़की ने कुछ उंदडता से कहा।

उसके सपाट जवाब से एक पल को नेहा चौंक सी गई फिर उसे याद आया वह भी तो नई टीचर को ऐसे ही परेशान करती थी। नहीं, उसे हार नहीं माननी है। प्यार से कहा-

''मुझे इंडियन और वेस्टर्न म्यूज़िक दोनों अच्छी लगती है, दोनों मे मिठास होती है। देखो, उसमें डो रे मी फ़ा सो ला- - की सरगम है तो इंडियन म्यूज़िक की सरगम में स रे ग म प- - है। अगर हिंदुस्तानी संगीत नहीं सीख पाओगी तो मै तुम्हें वेस्टर्न संगीत की क्लास में ख़ुद भेज दूंगी, पर कोशिश तो करके देखो तुम्हारा गला बहुत मीठा है। तुम इंडियन म्यूज़िक सीख कर अच्छी गायिका बन सकती हो।''

''सच मैम, तब तो मै ज़रूर ट्राई करूंगी।''

अचानक एक लड़की ने कहा-

''मैम,आप जीन्स क्यों नही पहनतीं। यू एस ए मे वर्क पर जाने के लिए प्रॉपर ड्रेस पहननी होती है।''

''तुम्हें मेरी साड़ी अच्छी नहीं लगती? देखो इसमें कितने सुंदर रंगों वाली डिज़ाइन बनी हैं। साड़ी हमारी इंडिया की ड्रेस है।''

''आई लाइक योर ड्रेस।'' एक लड़के ने प्रशँसा मे कहा।

''थैंक यू। कल मै सलवार-सूट पहन कर आऊंगी। वह ड्रेस जीन्स से मिलती है। हमारे देश में अलग-अलग जगहों का अलग पहनावा होता है। चलो बहुत बातें हो गईं, अब काम की बातें करें। आज हम सरगम से शुरू करते हैं- -''

नेहा ने अपनी मीठी आवाज़ मे सरगम शुरू की तो सब मंत्रमुग्ध रह गए। सरगम दोहराते वे संकुचित थे,पर नेहा के प्रोत्साहन पर उन्होंने प्रयास शुरू किया। थोड़ी देर में माहौल बदल गया, सब सरगम दोहराते खुश थे।

क्लास के बाद नेहा को विदा देते हैरी ने कहा-

''इतनी मीठी अवाज़ के साथ इंडियन ब्यूटी तुममें साकार है, नेहा। आई कैन से गौरव इज़ अ लकी चैप।''

हैरी की बात पर नेहा सोच में पड़ गई ,क्या गौरव भी ऐसा ही महसूस करता है। शादी के बाद से आज तक उसने कभी नेहा के संगीत या रूप की प्रशंसा में शायद ही कभी कुछ कहा हो। उसकी उदासीनता को नेहा ने उसका स्वभाव मान अपने मन को समझा लिया था।

घर आई नेहा बेहद उत्साहित थी। गौरव से कहा-

''संगीत सिखाना उतना कठिन नहीं था जितना मैं सोच रही थी,गौरव। स्टूडेंट्स अगर रुचि लेने लगे तो काम और भी आसान हो जाएगा।''

''चलो तुम्हारा शौक पूरा हो गया। तुम्हें मुझसे शिकायत थी मैंने कभी तुम्हारे संगीत-ज्ञान को जानने की कोशिश नहीं की। सच कहूं तो संगीत से मेरा कोई लगाव नहीं है। चलो,बधाई।'' ओंठ भींच,गौरव ने बधाई दी।

नेहा को एक कड़वा सच याद हो आया, शादी के बाद दबी फुसफुसाहटों ने उसे जता दिया था, गौरव के साथ उसकी शादी उसके घर से आए भारी दहेज़ के कारण हुई थी वर्ना उसका मन तो कहीं और बंधा था। गौरव उस लड़की की गायकी पर फ़िदा था, पर उस लड़की की ग़रीबी के कारण गौरव के माता-पिता ने संबंध स्वीकार नहीं किया। अपनी तीन अनब्याही बहनों के विवाह की समस्या ने गौरव को नेहा से विवाह करने को विवश कर दिया। उसके रिटायर्ड पिता कैसे बेटियों के विवाह निबटाते। विवाह की पहली रात नेहा ने जानना चाहा था-

''सुना है आप किसी और को चाहते थे—''

''एक बात याद रखो, मेरे अतीत को खोदने की कोशिश न करने में ही सुख है। मुझे भी तुम्हारे अतीत से कुछ लेना-देना नहीं है। ज़िंदगी शांति से काटना चाहता हूं, बस।
तुमसे इतने सहयोग की उम्मीद तो रख सकता हूं, इसी में हमारी भलाई है, अगर ऐसा न कर सकीं तो अशांति के लिए तुम ज़िम्मेदार होगी। तुम पढी-लिखी समझदार लड़की हो, निर्णय तुम्हारे हाथ में है।''

मौन नेहा चुप रह गई, पर विवाह के बाद एक प्रेमी पति पाने के सपने चूर-चूर हो गए।

नेहा के मीठे गीतों ने सबकी प्रशंसा पाई,पर गौरव उदासीन ही रहा। नेहा के प्रति पति- धर्म का कर्तव्य गौरव उसी तटस्थता से निभाता रहा। नेहा ने उसकी उदासीनता को अपनी नियति स्वीकार जीवन जीना शुरू किया था। अचानक अमरीका से मिले नौकरी के प्रस्ताव ने नेहा को उत्साहित कर दिया। नए परिवेश में शायद पुरानी यादें धूमिल हो जाएं और वह गौरव को पूरी तरह से पा सके। अमरीका में नए काम के उत्साह के साथ अच्छा वेतन मिलने से गौरव भी सामान्य हो चला था, पर अचानक जॉब चले जाने से गौरव फिर उदास हो गया था। नेहा के विचार में उनकी उस परेशानी में नेहा को जॉब मिलना एक वरदान ही था। गौरव की कुंठा वह समझ रही थी, पर उसका सोचना था, शांत रहकर अच्छे समय की प्रतीक्षा करने में ही समझदारी है।

दूसरे दिन स्कूल पहुंची नेहा को रोक कर हैरी ने कहा-

''तुम्हारे क्लास में एक नया स्टूडेंट आना चाहता है, एड्मिट करोगी?'' परिहास हैरी के चेहरे पर स्पष्ट था।

''यह तुम्हारा स्कूल है, तुम्हें डिसाइड करना है।'' विस्मित नेहा ने कहा।

''तुम्हारा नया स्टूडेंट मै हूं, नेहा। मै इंडियन म्यूज़िक हमेशा से सीखना चाहता था, पर कोई गुरू नहीं मिला। प्लीज़ मुझे सिखाओगी? विश्वास रखो मैं एक अच्छा स्टूडेंट साबित होऊंगा।''

''बच्चों के साथ तुम सीख सकोगे ,हैरी? वे हंसेंगे नहीं?''

''नहीं, मेरा क्लास लेने के लिए तुम्हें अपने समय से एक घंटे पहले आना होगा। स्कूल के समय तो मैं अपनी गिटार क्लासेज़ लेता हूं। मेरे क्लास के लिए तुम्हें अलग से एक्स्ट्रा पैसे मिलेंगे। वैसे कोई ज़बरदस्ती नहीं है, तुम मेरी रिक्वेस्ट पर सोच लो।''

''ठीक है, मैं जल्दी आ सकती हूं। अच्छा स्टूडेंट भी भाग्य से मिलता है, हैरी, पर क्या तुम सचमुच सीरियस हो?''

''इसमें तुम्हें शक क्यों है, नेहा? मेरे पास भीमसेन जोशी और जगजीत सिंह की सी डी ज़ हैं। कभी फ़ुरसत में हम दोनों साथ-साथ उन गीतों और ग़ज़लों का आनंद लेंगे।''

''सच? मेरे पास भी कुछ अच्छे म्यूज़ीशियनस की सीडीज़ हैं, तुम्हें दूंगी। मैं नहीं जानती थी तुम्हें इंडियन म्यूज़िक से प्यार है।''

''मेरे ग्रैंड फ़ादर इंडिया मे काफ़ी टाइम तक रहे थे। उनसे इंडिया की बहुत तारीफ़ सुनी हैं। वो इंडिया को दिल से चाहते थे। उनके पास इंडियन गीतों के रेकार्ड थे। मुझे भी वो गीत बहुत अच्छे लगते थे। तबसे इंडियन म्यूज़िक सीखना चाहता था।''

''तुम जैसे संगीत-प्रेमी को संगीत सिखाने मे मुझे खुशी होगी, हैरी।''

''थैंक्स ,नेहा। मै कल अपनी नई क्लास शुरू करने का का वेट करूंगा।''

हैरी को संगीत सिखाना आसान था, उसे स्वर का ज्ञान था, पर र्हिंदी का उच्चारण ठीक कराती नेहा अक्सर हंस पड़ती। बच्चों जैसा भोला मुंह बना हैरी ‘सॉरी’ कह क्षमा मांग लेता। कभी-कभी गीत गाती नेहा को हैरी मुग्ध देखता रह जाता और गीत की पंक्ति भूल जाता। नेहा नाराज़ होती

''तुम ध्यान से क्यों नहीं सुनते, हैरी?''

''एक्स्क्यूज़ मी। असल में तुम्हारा चेहरा जैसे ख़ुद गीत बन गया था, मैं भूल गया कि तुम गा रही हो,बस और कुछ याद ही नहीं रहा।'' हैरी ने सच्चाई से कहा।

''गीत में जो भाव होते हैं वो चेहरे पर तो आ ही सकते हैं, पर इसका मतलब यह नहीं कि तुम गीत की जगह चेहरा देखो।'' सच्चाई यह थी कि हैरी की उस बात ने नेहा को गुदगुदा दिया। ऐसी बात सुनने का उसे अभ्यास नहीं था।

''ओ के टीचर जी, अब मिस्टेक नहीं होगी।''

दोनों की सम्मिलित हंसी से संगीत-कक्ष गूंज उठा। अक्सर नेहा के क्लास में हैरी अपने गिटार के साथ आ जाता और स्टूडेंट्स के गीतों के साथ अपना गिटार बजा, उनकी खुशी बढा देता। नेहा का समय अच्छा बीत रहा था। हैरी की बातें और उसका गिटार नेहा को अच्छा लगता। स्कूल में नेहा अपने घर की समस्याएं भूल जाती, लगता मानो वक़्त पंख लगाकर उड़ जाता। घर में गौरव की मायूसी उसे उदास कर देती। काश गौरव को कोई जॉब मिल जाता।

हर ओर से मायूस गौरव ने एक छोटी सी स्टार्ट-अप कम्पनी मे सहायक मार्केटिंग-मैनेजर का जॉब ले लिया। कम्पनी अपने काम को बढाने के लिए अमरीका के कई शहरों में सेंटर्स खोलने थे। पहले तो वह उन केंद्रों में दौरे पर जाया करता था, पर एक नया सेंटर खोलने के लिए उसे दो महीनों के लिए अपने शहर से बहुत दूर जाने के आदेश मिले।

गौरव परेशान हो उठा, पर नेहा ने समझाया-

''परेशान क्यों होते हो, हो सकता है तुम्हारे अच्छे काम से खुश होकर तुम्हें इसी कम्पनी में प्रोमोशन मिल जाए। भगवान तुम्हें सफ़लता ज़रूर देंगे।''

''तुम अकेली कैसे मैनेज करोगी।''

''क्यों,यहां इंडिया से न जाने कितनी लड़कियां अकेले पढ्ने या जॉब के लिए आती हैं। मेरे पास तो एक जॉब भी है यानी मै एक वर्किंग वूमन हूं, जनाब। मेरी मदद के लिए यहां मंगला और हैरी भी तो है।'' नेहा ने मज़ाक कर, गौरव को हंसाना चाहा।

''फिर भी अचानक मुश्किल के समय 911 कॉल करना मत भूलना। फ़ोन पाते ही पुलिस तुरंत मदद के लिए आ जाती है।''

''जानती हूं, गौरव। तुम मेरी चिंता छोड़, अपनी पैकिंग कर डालो। मैं मदद करती हूं।''

गौरव को विदा करती नेहा ने कब सोचा था कि उसके जाते ही सचमुच मुश्किल आ जाएगी। सीढी से उतरती नेहा का अचानक पांव फ़िसल गया। पांव में इतना ज़बर्दस्त दर्द था कि एक कदम चलना भी असंभव लग रहा था। मंगला अपने काम पर जा चुकी थी। किसी तरह अपने को घसीट नेहा कमरे में पहुंच सकी। फ़ोन मिलते ही हैरी पहुंच गया।

हॉस्पिटल में एक्सरे से पता लगा एड़ी के पास हड्डी चटक गई थी। नेहा के पैर पर प्लास्टर लगा दिया गया, चलने-फिरने के लिए बैसाखी का सहारा लेना ज़रूरी हो गया।

''मैं अब स्कूल नहीं आ सकूंगी, हैरी। सोचती हूं गौरव को ख़बर दे दूं।''

''बिल्कुल नहीं, पहली बात तो तुम्हारी छुट्टी ग्रांट नहीं करूंगा। यह अमरीका है मैडम। यहां पूरी तरह से इन्वैलिड लोग भी काम करते हैं। इतनी मामूली तकलीफ़ के लिए स्कूल सफ़र नहीं कर सकता। दूसरी बात गौरव को इन्फ़ॉर्म नही करना है। अभी उसने नया ज़ॉब लिया है, पहले असाइन्मेंट पर गया है,उसका छुट्टी लेना क्या ठीक होगा?'' हैरी ने समझाने के अंदाज़ में कहा।

''तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मैनेज करूंगी?'' नेहा की बड़ी-बड़ी आंखों में आंसू आ गए।

''मुझ पर यकीन नहीं है, नेहा? मैं तुम्हारे साथ हूं। तुम्हें सम्हालना मेरी रिसपॉंसिबिलिटी है।'' प्यार से नेहा के आंसूं पोंछ, हैरी ने कहा।

''नहीं, तुम्हें अपना घर और स्कूल दोनों देखने हैं। एलिज़ाबेथ को तुम्हारा टाइम चाहिए। मै तुम्हें तकलीफ़ नहीं दे सकती, हैरी।''

''ओह, मैं बताना ही भूल गया, एलिज़ाबेथ अपनी बेटी के साथ समर-कैम्प के लिए एक महीने के लिए कनाडा गई है। तुम्हारी सेवा के लिए मैं पूरी तरह से फ़्री हूं। ऐनी अदर प्रॉबलेम?'' हैरी हंस रहा था। हैरी की बात पर नेहा अपना दर्द भूल हंस पड़ी।

''यह हुई ना बात, इसी बात पर कॉफ़ी बनाता हूं। हां लंच में क्या लोगी, मुझे इंडियन कुकिंग नहीं आती? मेरी कुकिंग तुम्हें पसंद नहीं आएगी।'' हैरी परेशान था।

''अभी तो फ़्रिज में काफ़ी खाना रखा है। वैसे अब यहां इंडियन स्टोर्स में भी पका-पकाया खाने का सारा सामान पैक्ड मिलता है। तरह-तरह की तैयार सब्जियों के साथ बढिया नान, रोटी, पराठे, चाट सब कुछ मिलता है। तुमने सेवा का फ़ैसला किया है तो लिस्ट दे दूंगी, सामान लाना होगा। वैसे भी मेरे हाथ सही-सलामत हैं, आराम से चेयर पर बैठ कर खाना बना सकती हूं, और तुम्हें भी खिला सकती हूं।'' नेहा भी मज़ाक कर बैठी।

''इंपॉसिबिल, इस हाल में तुम कोई काम नहीं करोगी। आई एम ऐट योर सर्विस ,मैम।'' हैरी ने झुक कर आदाब किया।

नेहा के साथ कॉफ़ी पीकर हैरी ने नेहा के साथ लंच भी लिया। दूसरे दिन अपने साथ स्कूल ले जाने को कह, हैरी ने विदा ली। बैसाखी के साथ दरवाज़े तक आई नेहा को देख मंगला चौंक गई। वह अपनी एक बजे तक की ड्यूटी करके वापस आई थी।

''रामा-रामा ये क्या होने का ,नेहा कैसे हुआ।''

नेहा से पूरी बात सुनकर मंगला बोली

''तुम फ़िक्कर नहीं करने का। हम काम से छुट्टी लेने का। इधर गौरव जी भी नहीं, हम तुमको हेल्प करेगा, नेहा।''

''थैंक्यू, मंगला बहन। अमरीका में काम से बेकार छुट्टी लेना ठीक नहीं, मैं भी तो काम पर जाऊंगी। अगर ज़रूरत हुई तो आपकी हेल्प ज़रूर लूंगी।''

''ठीक है ,पर तुमको खाना नहीं बनाने का, हम खाना देगा।''

''अभी फ़्रिज मे खाने का बहुत सामान है, संडे को अगर आपका इडली बनाने का प्रोग्राम हुआ तो ज़रूर दीजिएगा। आप जैसी इडली कोई नहीं बना सकता।''

''ज़रूर बनाएगा। उधर होटेल में भी सब ऐसा ही कहता।'' मंगला खुश हो गई।

दूसरी सुबह नेहा स्कूल जाने को तैयार थी। हैरी ठीक कहता है, जहां तक हो सके तकलीफ़ में भी काम करने की हिम्मत रखनी चाहिए। ख़ुद नेहा ने यहां ऐसे व्यक्तियों को काम करते देखा है,जिनके हाथ-पांव बेकार हैं, पर व्हील-चेयर और अन्य एलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की सहायता से सामान्य व्यक्तियों की तरह काम करते है। इस देश में विकलांगता अभिशाप नहीं है। विकलांगों को सरकार की ओर से हर संभव सुविधा और सहायता उपलब्ध कराई जाती है। ठीक समय पर हैरी की कार की आवाज़ से नेहा के विचारों की श्रृंखला तोड़ दी। हैरी के सहारे नेहा आसानी से सीढियां उतर कार में बैठ गई।

अब हैरी का रोज़ का नियम हो गया,सुबह नेहा को स्कूल ले जाता और शाम को उसके साथ कॉफ़ी पीता। कभी-कभी नेहा के अनुरोध पर डिनर भी लेना पड़ता। कोई अच्छी सी ग़ज़ल या गीत सुनते हुए दोनों को साथ समय बिताते अच्छा लगता। कभी हैरी अपने हाथों से कुकिंग कर नेहा को चमत्कृत कर देता।

''वाह तुम तो बहुत अच्छे कुक हो, हैरी। तुम्हें तो गिटारिस्ट नहीं किसी होटेल का शेफ़ होना चाहिए।'' नेहा परिहास करती।

''तब तो इस शेफ़ को इनाम मिलना चाहिए,  क्या कहते हैं बख़्शीश दो।'' नेहा से संगीत सीखने के साथ-साथ वह हिंदी बोलना भी सीख रहा था।

''तुम्हें इनाम तो ज़रूर मिलना चाहिए। तुम्हारी वजह से आज हम यहां रह रहे हैं। गौरव जब भी फ़ोन करता है तुम्हारा हाल पूछ्ता है। तुम्हें थैंक्स देता है।''

''गौरव का काम कैसा चल रहा है, तुम्हें तो बहुत मिस करता होगा। अगर वह जान जाए उसकी ऐबसेंस में मैं तुम्हारी कम्पनी एन्ज्वॉय कर रहा हूं तो शायद वह काम छोड़ वापस आ जाए। ऐसी वाइफ़ को छोड़कर दूर रहना पॉसिबिल नहीं होता।'' हैरी की मुग्ध दृष्टि अपने पर गड़ी पा, नेहा संकुचित हो गई।

''ऐसी कोई बात नहीं है। गौरव बहुत प्रैक्टिकल इंसान हैं, शायद मैं भावुक हूं। वैसे उनका मन इस काम में नहीं लग रहा है। पता नहीं वह इस काम को कन्टीन्यू करेगा या नहीं।'' नेहा ने अपना भय प्रकट किया।

''इस इकॉनॉमिक- क्राइसिस के समय जॉब छोड़ना मिस्टेक होगी। आई होप वह ऐसा ना करे।'' हैरी ने सलाह दी।

''मैं उस तक तुम्हारी सलाह पहुंचा दूंगी। तुमने हमारी बहुत मदद की है, हैरी।''

''चलो इस टॉपिक को यहीं छोड़ते हैं,आज एक प्रेम- गीत सुनने का मन चाह रहा है। देखो मैं इसीलिए अपना गिटार भी लाया हूं। मेरा गिटार तुम्हारे गीत का साथ देगा।''

''प्रेम- गीत? क्या एलिज़ाबेथ की याद आ रही है?'' नेहा के चेहरे पर शरारत थी।

''ज़रूरी तो नहीं प्रेम- गीत के साथ वाइफ़ की याद आए। प्रेम तो एक ऐसा भाव है कभी भी जाग जाए। अब प्लीज़ गीत शुरू करो, नेहा। इट्स माई रिक्वेस्ट्।'' हैरी गंभीर था।

नेहा के प्रेम-गीत के साथ हैरी के गिटार ने समां बांध दिया। दोनों की तन्मयता में वक़्त जैसे रुक गया था। गीत ख़त्म होते ही हैरी अचानक एक अप्रत्याशित हरकत कर बैठा। नेहा को बाहुपाश में भींच उसके कान में बुदबुदाया- ''आई लव यू, नेहा।'' चेहरे पर चुंबन जड़ते हैरी को दूर करने की नेहा की कोशिश नाकामयाब रही। हैरी की बांहों की गिरफ़्त में नेहा अवश होती गई। दोनों बहते गए और सीमाएं टूट गईं।

चैतन्य होने पर नेहा लज्जा और ग्लानि से जैसे जड़ हो गई। यह क्या हो गया, कैसे हो गया। उससे ऐसी ग़लती क्योंकर हो गई। गौरव को कैसे फ़ेस कर पाएगी। हथेलियों में चेहरा ढांप नेहा फफक पड़ी।

''नेहा, प्लीज़ एक्स्क्यूज मी। मैं होश खो बैठा था, पर मैं तुम्हें बहुत चाहने लगा हूं। मैने अपने दिल को कंट्रोल करने की बहुत कोशिश की, पर हार गया।''

''लेकिन मैं तुम्हें प्यार नहीं करती। हमने पाप किया हैं। मैने गौरव का विश्वास तोड़ा है और तुमने एलिज़ाबेथ को धोखा दिया है। हम अपराधी हैं। अब क्या करूं, तुम चले जाओ, हैरी प्लीज़। मझे अकेला छोड़ दो।'' नेहा फिर रो पड़ी।

''ओह नो, हमने कोई पाप नहीं किया है ना किसी को धोखा दिया है। मैरिड होने का यह मतलब नहीं कि किसी और को प्यार न किया जाए। मैं तुम्हें चाहता हूं, फ़िज़िकल रिलेशन्स बनाने के लिए क्या यही बात काफ़ी नहीं है?''

''चाहने का मतलब शारीरिक संबंध बनाना ही नहीं होता। हमारे यहां यह अधिकार सिर्फ़ पति को होता है। दूसरे मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाने को पाप कहते हैं।''

''अब तुम इंडिया में नहीं अमरीका में हो। तुम चाहो तो गौरव से यह बात छिपा सकती हो, पर मैं एलिज़ाबेथ को सब बता दूंगा और मै जानता हूं, शी विल नौट माइंड इट। इस बात को ग़लत नहीं माना जाता। यह तो प्यार करने वालों का एक-दूसरे के और ज़्यादा नज़दीक आने का तरीका है, बस।''

''नहीं-नहीं ऐसा मत करना। मैं एलिज़ाबेथ से आंखें नहीं मिला पाऊंगी।''

''क्या गौरव से यह सच बता पाओगी?'' हैरी ने सीधा सवाल किया।

नेहा चुप रह गई, नहीं उसे यह सच बता पाना क्या आसान होगा। क्या वह उसे माफ़ कर सकेगा? शायद नहीं कभी नहीं।

''मेरी एडवाइस मानो, इस बात को हम अपने तक ही रखें इसी में भलाई है''

''मैं कल से स्कूल नहीं आऊंगी। मेरा रेज़िगनेशन-लेटर पहुंच जाएगा।''

''जॉब छोड़ने की गौरव को क्या वजह दोगी, नेहा? एक बात भूल रही हो, तुम दोनो को हेल्थ-इंश्योरेंस जॉब की वजह से मिला है। ऐसी भूल की नादानी मत करना। मै तुम्हारा भला चाहता हूं, तुम्हें तकलीफ़ में नहीं देख सकता।''

''आज के बाद मैं तुम्हारे साथ सामान्य नहीं रह सकूंगी, हैरी।''

''क्यों आज की बात मन को गुदगुदाएगी?'' हैरी शरारत से मुस्कुराया।

''नहीं, अपने से नफ़रत के साथ तुम पर गुस्सा आएगा।''

''तुम्हारा ग़ुस्सा सिर आंखों। सुबह स्कूल के लिए तैयार रहना। लेने आ जाऊंगा।''

रात भर करवटें बदलती नेहा अपने को कोसती रही। अपने पर कितना अभिमान था उसे, पर आज चूर-चूर हो या। वह कमज़ोर सिद्ध हो गई। यह सच है, हैरी उसे अच्छा लगता है, पर इस सीमा तक जाने की बात वह सोच भी नहीं सकती। हैरी एक अति कुशल गिटारिस्ट है। उसके गीतों के साथ उसके गिटार-वादन से उसके गीत और भी मधुर हो उठते थे, पर आज तो उसने उसके मन के तारों को छेड़ दिया था। रात भर जागी नेहा यह तो समझ चुकी थी कि अभी वर्तमान परिस्थितियों में जॉब नहीं छोड़ सकती, पर अपने को सावधान रखना होगा।

दूसरी सुबह ठीक समय पर हैरी हाज़िर था। नेहा को तैयार देख हल्के से सीटी बजा कहा

''दैट्स लाइक अ गुड गर्ल।''

''तुम्हारे स्कूल जाना मेरी मज़बूरी है, हैरी। इसे अपनी जीत मत समझ लेना।''

''प्यार में हार-जीत का कोई अर्थ नहीं होता, नेहा। वैसे मैं हारना ही चाहता हूं। तुम्हारी जीत में ही मेरी खुशी है। अब चलें।'' अचानक हैरी सीरियस हो गया।

क्लास मे निःशब्द बैठी नेहा से हैरी ने कहा- अब गीत शुरू करें?

''नहीं, मैं तुम्हें संगीत नहीं सिखा सकती।''

''तो चलो मैं तुम्हें प्यार का लेसन सिखा दूं।'' बात ख़त्म करते हैरी ने नेहा को आलिंगन में जकड़ लिया। नेहा तड़प उठी,अपने को अलग करने के लिए झटके से उठने की कोशिश में एड़ी के दर्द से बेहाल हो बैठ गई। नेहा की आंखों से झरते आंसू देख हैरी बेचैन हो उठा। बहुत संजीदगी से कह सका--

''आई एम एक्स्ट्रीमली सॉरी, नेहा।'' नेहा के हाथ को प्यार से अपने हाथों में थाम हैरी ने चूम लिया।

नेहा जैसे सुध-बुध खो बैठी। बहुत स्नेह से नेहा के माथे पर झूल आई लट हटा हैरी ने कहा-

''अपने मन से पूछना नेहा क्या तुम मुझे नहीं चाहतीं। मैंने अपने मन का सच जान लिया है,मैंने एलिज़ाबेथ के साथ कभी ऐसा महसूस नहीं किया जैसा तुम्हारे साथ करता हूं। तुमने मेरे मन का कोई खाली कोना भर दिया है।''

''नहीं, बिल्कुल नहीं। अपने मन को मैं जानती हूं, उसमें तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है।'' नेहा ने दृढता से कहा।

''झूठ, मैं दावे के साथ कह सकता हूं, तुम मुझे चाहती हो।'' हैरी के चेहरे पर मुस्कान थी।

''इन खोखले दावों से झूठ को सच नहीं बनाया जा सकता। मेरे लिए गौरव का प्यार ही काफ़ी है।''

''क्या इसीलिए गौरव तुम्हारे संगीत से प्यार नहीं कर सका? वह तो यह भी नहीं जान सका संगीत तुम्हारी आत्मा में बसता है।'' हैरी का व्यंग्य चुटीला, पर सच था।

''अब तुम मुझे हर्ट कर रहे हो। मुझे घर जाना है, तुमसे कोई बात नहीं सुननी है।''

''तुम्हें तकलीफ़ पहुंचाई, यह तो मेरा अपराध है। जब तक सच्चे मन से माफ़ नहीं करोगी, मैं एक पैर पर कान पकड़ कर खड़ा रहूंगा।'' सचमुच हैरी ने वैसा ही किया। उसके बचपने पर नेहा हंस पड़ी।

''ओ के, चलो माफ़ किया, पर अब आगे ऐसी कोई ग़लती नहीं करोगे।''

''सच। तब तो एक नया गीत सुनाना पड़ेगा।''

''वाह। यह अच्छी रही। दोषी को सज़ा मिलने की जगह वही मुझे सज़ा देगा?''

''प्यार करने वाला दोषी क्यों हुआ, नेहा?''

''तुम विवाहित हो, हैरी। एक बेटी के पिता हो। क्या इस उम्र में यह शोभा देता है?''

''मैं तो यही मानता हूं,प्यार के लिए उम्र की सीमा या विवाहित- अविवाहित का कोई बंधन नहीं होता है। मन पर कब किसका वश चला है, यह कब किसको चाहने लगे कोई नहीं जानता। मैं मानता हूं, कभी मैने एलिज़ाबेथ को मन से स्वीकार किया था, पर अब इस मन पर सिर्फ़ तुम्हारा अधिकार है, नेहा। तुम मेरी सब कुछ बन गयी हो। शायद एलिज़ाबेथ से प्यार की जगह सिमपैथी ज़्यादा थी। कल जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनी थी। वो लाइन क्या हमारा सच नही है? याद करो, क्या लाइन थी- --

“ना उम्र की हो सीमा हो ,ना जन्म का हो बंधन

जब प्यार करे कोई तो देखे केवल मन- -- ''

''अपने इस मन को काबू में रखो, हैरी। पता नहीं कल किस पर आ जाए। यह प्यार नहीं तुम्हारी दीवानगी है, हैरी। देर हो रही है। अब घर जाना हैं।'' नेहा कुर्सी का सहारा ले खड़ी हो गई।

''ठीक है चलो,पर एक बात याद रखना सच्चा प्यार करने वाला किस्मत से मिलता है। ठीक से सोच कर फ़ैसला करना, तुम्हें क्या मेरा प्यार मेरी दीवानगी लगती है।'' उस शाम हैरी नेहा को घर छोड़ रुका नहीं, सीधा वापस चला गया।

रात मे एक पल को भी नेहा सो नहीं सकी। हैरी की बातें भुला पाना आसान नहीं था। क्या गौरव उसे प्यार करता है। शादी के बाद से ही वह पति की प्यार भरी बातें कब सुन पाई? गौरव ने न कभी उसकी हॉबीज़ जानने की कोशिश की न कभी उसके रूप-सौंदर्य को सराहा। कभी उसके एक मित्र ने परिहास किया था-

''अरे इस औरंगज़ेब को यह कोयल कैसे मिल गई। बड़ा लकी है, यार।''

''अगर कोयल से इतना ही प्यार है तो बड़ी खुशी से इसे अपनी बना सकते हो, मुझे कोई ऐतराज़ नहीं होगा। मै औरंगज़ेब ही भला।'' गौरव ने रुखाई से कहा था।

गौरव की बात सुन मित्र का मुंह उतर गया और लज्जा और अपमान से नेहा सिर भी न उठा सकी। क्षमा मांग मित्र तो चला गया,पर नेहा के मन में कांटा सा गड़ता रहा।

हैरी की प्यार भरी बातें, नेहा के लिए उसका कंसर्न ,नेहा के लिए नई बातें थीं। गौरव उसका पति था, पत्नी के रूप में नेहा सहज प्राप्य थी। उसे पाने के लिए कोई प्रयास करने की ज़रूरत नहीं थी। पति के अधिकार उसके पास थे। हैरी उसका अनुरागमय प्रेमी था। नेहा को पाने के लिए आतुर था। उसकी प्यार भरी मीठी बातें नेहा को रोमांचित कर जाती। चाह कर भी वह हैरी से नफ़रत नहीं कर पाती। दिल हैरी का साथ देता, दिमाग़ पति के प्रति वफ़ादार रहने को बाध्य करता। दिल और दिमाग़ की कशमकश से नेहा की रातों की नींद उड़ गई। उस रात सोने के पहले नेहा ने हैरी को फ़ोन लगाया। फ़ोन पर नेहा की अवाज़ सुन हैरी चहक उठा-

''व्हॉट अ सरप्राइज़। कहो मेरी याद आ रही है, आ जाऊं? मैं भी बहुत मिस कर रहा हूं। नींद नहीं आ रही है न?''
''तुम्हें बताना चाहती हूं, अब मै यह दोहरी ज़िन्दगी नहीं जी सकती ,हैरी। मेरा तुम्हारे साथ कोई संबंध नहीं है, हैरी। मैं इंडिया वापस चली जाऊंगी।''

''अपने लिए कोई भी सज़ा मंज़ूर है, पर तुम्हें इंडिया वापस नहीं जाने दे सकता। कल आठ बजे हॉस्पिटल चलना है, तुम्हारा प्लास्टर कटना है। तैयार रहना। सोने की कोशिश करो,। कहो तो सुलाने आ जाऊं।''  हैरी की हंसी ने नेहा को चिढा दिया।

''शट-अप। अब वक्त आ गया है, हम अपनी-अपनी सीमाएं बांध लें। जो हो गया उसे भुला देना ही ठीक है।'' नेहा ने गंभीरता से कहा।

''तुम भूल सकोगी? आई कैन बेट, मेरे साथ तुमने अपनी ज़िंदग़ी के बेस्ट मोमेंट्स बिताए हैं। उन लमहों को भुलाना इम्पॉसिबिल है।''

''ग़लत कह रहे हो,  वो लमहे मेरी ज़िंदग़ी के शर्मनाक पल हैं, हैरी।''

फिर वही टिपिकल इंडियन दकियानूसी बातें। बहुत रात हो गई सो जाओ, गुड नाइट्। फ़ोन पर नेहा को किस कर ,हैरी ने फ़ोन काट दिया।

फ़ोन पर चुंबन की ध्वनि ने जैसे हैरी के अधर याद दिला दिए। उस वक्त भी जैसे सारे बदन में आग सी लग रही थी, ओंठ जल रहे थे। क्या करे नेहा ,न जाने क्यों हैरी के सामने वह अवश पड़ जाती है। गौरव की वापसी के लिए बस दस दिन बचे हैं, उसका सामना वह कैसे कर पाएगी।

ठीक आठ बजे हैरी हाज़िर था। हैरी के साथ जाने को तैयार होती नेहा ने जैसे अपने को समझाया था, लाख कोशिशों के बावज़ूद वह कार ड्राइव नहीं कर पाती इसलिए ही वह हैरी के साथ जा रही थी। नेहा को तैयार देख हैरी ने हल्के से सीटी बजाई थी।

''दैट्स लाइक माई गुड गर्ल।''हैरी ने फिर अपना फ़ेवरिट वाक्य दोहराया।

''मैं कोई लड़की नहीं, मैरिड औरत हूं,समझे। मैं टैक्सी काल कर सकती हूं, तुम्हें तकलीफ़ करने की ज़रूरत नहीं है।''

''ठीक है, इस टैक्सी ड्राइवर को उसका मेहनतामा दे देना।'' हैरी ने चिढाया।

प्लास्टर काटे जाने के बाद भी नेहा को सावधान रहने की सलाह दी गई थी। प्लास्टर की जगह क्रेप -बैंडेज बांध दी गई। छड़ी लेकर चलती नेहा को हैरी ने छेड़ा-

''अब तो तुम अस्सी साल की ओल्ड लेडी दिखती हो''

''अच्छा है जल्दी मर जाऊंगी।'' नेहा ने रोष दिखाया।

''स्टॉप इट। कभी ऐसी बात फिर मत कहना। तुम्हारे बिना क्या मैं जी पाऊंगा।'' नेहा का मुंह हैरी ने अपनी हथेलियों मे ले कर गंभीरता से कहा।

''यही सच्चाई है हैरी, हमे एक-दूसरे के बिना ही जीना है। अच्छा हो वक्त रहते तुम इसे एक्सेप्ट कर लो।'' नेहा की अवाज़ में उदासी थी।

ऐसे ही कुछ दिन बीतते गए। नेहा ने हैरी के सामने शर्त रख दी कि वह हैरी को संगीत नहीं सिखाएगी, तभी बच्चों का क्लास लेगी। हैरी ने शर्त मान ली, पर क्लास लेती नेहा को अपने पर निबद्ध हैरी की दृष्टि महसूस होती रहती। वह जानती थी कहीं किसी जगह से वह उसे देख रहा है। यह एह्सास उसे शायद बुरा नहीं लगता था। क्या कोई उसे इस हद तक चाह सकता है? हैरी से दूर रहने की कोशिश उसे उदास कर देती। हैरी के बिना एक खालीपन महसूस होता। अपने सोच पर नेहा डर जाती, कहीं वह उसे चाहने तो नहीं लगी है। करवटें बदलते रातें कट रही थीं। हैरी से दूर रहने का उसका फ़ैसला हैरी के सामने हार जाता । स्कूल से लौटी नेहा बैठी ही थी कि काल- बेल बज उठी। दरवाज़े पर मंगला के पति रामास्वामी परेशान से खड़े थे।

''कहिए सब ठीक तो है? मंगला कहां है?''

''सॉरी,आपको ट्रबल दिया, भोत गड़बड़ है जी। मंगला को पोलिस लेगया। आपके मिस्टर का हेल्प चाहिए।''
''गौरव तो टाउन से बाहर हैं। आइए घर में आइए। बताइए, मंगला को पुलिस क्यों ले गई, उसने क्या किया?'' नेहा भी घबरा गई।

कुर्सी पर बैठे रामास्वामी को पानी का ग्लास दे, नेहा भी बैठ गई।

''मंगला के पास वर्क-परमिट नहीं है। होटल में पोलिस आई। मंगला बोल दिया उधर काम करने का उसे पेमेंट मिलता है। इधर बिना वर्क-परमिट कहीं काम करना इललीगल (ग़ैर कानूनी) होता । मंगला के साथ चार लड़किया और होटल मालिक पोलिस-कस्टडी मे हैं।''

''इस बारे में आप किसी वकील से बात कीजिए। आपकी साउथ इंडियन कम्यूनिटी में कोई वकील होगा, आप उनकी हेल्प लीजिए।''

''मैने ट्राई किया, पर इधर आकर सब लोग प्रैक्टिकल होने का, उनकी भारी फ़ीस कैसे देने सकने का, मैडम?'' रामास्वामी दयनीय हो आए।

नेहा सोच मे पड़ गई, जो लोग मंगला से काम लेते समय उससे प्यार जताते हैं, आज उसकी मुश्किल की घड़ी मे कोई साथ देने को तैयार नहीं। यह कैसा देश है जहां स्वार्थ सर्वोपरि है। भारत में मुसीबत के समय पड़ोसी भी कितना साथ देते हैं।

''आपके यहां जो अमरीकी जेंटलमैन आते हैं, उनसे हेल्प मिल सकने का, आप प्लीज़ उनको फ़ोन से काल करने का जी। मंगला आपकी फ़्रेंड होने का प्लीज़ हेल्प हर।''

''ठीक है, मै हैरी को कॉल करती हूं।''

''आपका बहोत मेहरबानी जी।''

फ़ोन पर नेहा को सुन हैरी चहक उठा-

''तो मेरी याद आ ही गई, कहिए इस ग़ुलाम को क्या हुक्म है। अब तो नाराज़ नहीं हो।''

''प्लीज़ हैरी, तुम फ़ौरन आ जाओ। मंगला पुलिस- कस्टडी में है।''

नेहा के घर पहुंच रामास्वामी से पूरी बात सुन हैरी सोच में पड़ गया।

''यह तो सीरियस मैटर है। अक्सर यहां इस तरह की बिज़नेस चलाने वाले लोग इंडिया से पैसों और नौकरी का लालच दे, लोगों को अपना रिश्तेदार बता कर ले आते हैं। वर्क- परमिट के बिना उनसे सस्ते में काम लेते हैं। पूरी सैलरी और दूसरी सुविधाएं भी नहीं देते। यह पूरी तरह से ग़ैर कानूनी धंधा है।''

''जैसे भी हो, हैरी हमे मंगला की मदद करनी है।''

''आपका ऑर्डर सिर आंखों, पर फ़ीस देनी होगी।'' हैरी शैतानी से बाज़ नहीं आया।

हैरी और रामास्वामी के जाने के बाद नेहा की स्मृति में मंगला का उदास चेहरा कौंध रहा था। वह तो पुलिस वालों की बात भी ठीक से नहीं समझ पा रही होगी। काश मंगला ने पैसों का मोह न किया होता। चर घंटों की लंबी प्रतीक्षा के बाद हैरी के साथ मंगला और रामस्वामी वापस आए थे। रोते- रोते मंगला की आँखें लाल हो रही थी। नेहा के गले से लिपट फफक पड़ी।

''रो नहीं मंगला, अब सब ठीक है।''

''कुछ ठीक नहीं होने का। हमको चेन्नई जाने का। यहां नही रहने का---''

किसी तरह उसे शांत कर नेहा ने मंगला को चाय पिलाई। हैरी को थैंक्स देते रामास्वामी की आँखें नम हो आईं।

मंगला और रामास्वामी के जाते ही नेहा ने हैरी से कहा-

''थैंक्स अ लॉट फ़ॉर योर हेल्प, हैरी। तुम्हारा बहुत टाइम वेस्ट हो गया अब तुम जा कर आराम करो। मंगला की वजह से तुम्हे फ़ोन करना पड़ा वर्ना---''
''आराम से सो रही होतीं। मैं सोचता हूं, तुम्हें हिम्मत करनी होगी। हम दोनो को अपने-अपने पार्टनर्स को डाइवोर्स देकर एक हो जाना चाहिए। झूठ का सहारा मत लो नेहा, हम एक दूसरे से प्यार करते हैं।''

''पागल मत बनो, हैरी। मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाली। अमरीका मे तलाक एक आम बात है, पर भारत में मैरिज को सात जन्मों का बंधन कहा जाता है। मै तलाक की बात कभी सोच भी नहीं सकती। अब तुम जाओ, मुझे नींद आ रही है। गुड नाइट और एक बार फिर थैंक्स।''

''ओके,पर मै जानता हूं तुम सो नहीं पाओगी और मेरी यादों मे खोई रहोगी।''

नेहा के माथे पर चुंबन कर ,हैरी चला गया।



गौरव के आने का दिन आ पहुंचां । नेहा पर डर हावी था, अगर गौरव सब जान गया तो? उसकी उड़ी-उड़ी रंगत कहीं उसका राज़ ना खोल दे। वापस लौटा गौरव बेहद उखडा सा था। नेहा भरसक खुश बनी रहने की कोशिश कर रही थी, पर अंदर से घबराई हुई थी। गौरव की परेशानी स्पष्ट थी। डरते हुए नेहा ने पूछा

''क्या हुआ गौरव, सब ठीक तो है। परेशान लग रहे हो।''

''कुछ ठीक नहीं है। एम बी ए की डिग्री के साथ इतनी छोटी कम्पनी में अपने से कम क्वालीफ़ाइड लोगों के नीचे काम करना। उनकी फ़ूलिश एड्वाइस के अनुसार काम करना और बातें सुनना। लानत है ऐसी ज़िंदगी पर। मैं ने सोच लिया है हम वापस इंडिया चले जाएंगे।''
''हां,यही ठीक रहेगा। वहां ज़रूर तुम्हें कोई अच्छा जॉब मिल जाएगा। कल ही टीवी पर न्यूज़ थी, भारत मे नए एम बी एज़ को भी बड़े अच्छे पैकेजेस मिल रहे हैं।'' गौरव के साथ बात करती नेहा का डर भाग सा गया, नहीं उसे हैरी और उसके बारे मे कुछ पता नहीं है। अब अमरीका से इँडिया लौटने मे ही समझदारी है।

''एक ही डर है, लौटने पर सब हंसी उड़ाएंगे।'' गौरव फ़ैसला लेते झिझक रहा था।

''कहने वाले तो कहते ही हैं, पर वहां जब कोई अच्छा काम मिल जाएगा तो सबके मुंह बंद हो जाएंगे।'' नेहा ने हिम्मत से कहा।

''ठीक कहती हो, मुझे अपने देश में ज़रूर इज़्ज़त मिलेगी। मैने देखा यहां कई इंजीनियर भी मामूली मैकेनिक वाले काम कर रहे हैं। भारत मे भले ही समझा जाए वह बड़े ऑफ़िसर हैं।'' बात करते हुए गौरव की नज़र कोने में खड़ी बैसाखी पर पड़ी

''यह बैसाखी यहां। क्या हुआ?''

''कुछ नहीं, मेरे पैर की हड्डी मे चोट आ गई थी।''

''मुझे खबर क्यों नहीं दी, किसने मदद की? खबर कर देतीं तो इसी बहाने वापस आ जाता। कोई बहाना मिले बिना लौटने पर पैसे कट जाते।''

गौरव की बात सुन नेहा का मन बुझ गया, उसकी चोट का महत्व सिर्फ़ इसलिए था क्योंकि वह उसकी वापसी का बहाना बन सकती थी।

''मेरी छोड़ो, यहां मंगला मुश्किल मे फंस गई थी। वह इंडिया वापस जाना चाहती है।'' नेहा ने संक्षेप मे उसकी समस्या बता कर कहा कि हैरी की मदद से समस्या सुलझ गई, वर्ना बात सीरियस हो सकती थी।

''हैरी के हम पर भी बहुत एहसान हैं। इंडिया जाने के पहले उसे थैंक्स देने को घर पर इन्वाइट करना है।''

''नहीं, अपनी इंडिया वापसी की बात हम हैरी को नहीं बताएंगे।'' नेहा डर सी गई।

''क्यों, नेहा? उसने हमारी मदद की है, उसे अपनी वापसी के बारे में तो बताना ही होगा। बिना उसे बताए यहां से जाना कितना ग़लत होगा।'' गौरव चौंक सा गया।

''हैरी हमे रुकने की सलाह देगा और शायद हमे रुकना पड़ जाए।''

''कैसी बात करती हो। यह सच है हम उसके एहसानों तले दबे हैं, पर हमारे फ़ैसले को वह कैसे बदल सकता है?'' गौरव ने विस्मय से नेहा की ओर देखा।

''उसके स्कूल में इंडियन क्लासिकल म्यूज़िक में अब बीस स्टूडेंट्स हैं। अगर मैंने बीच मे जॉब छोड़ दिया तो क्या वह अपना नुक्सान सह सकेगा?'' नेहा ने बात बनाई।

''तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे तुम्हारे अलावा उसे दूसरी टीचर ही नहीं मिलेगी। अरे म्यूज़िक- टीचर की क्या कमी है? वह तो हम पर दया कर के उसने तुम्हें यह जॉब दिया है। ऐसा तो नहीं तुम्हें खुद जॉब करने का शौक लग गया है। हां शायद इंडिया में तुम्हें कोई ना पूछे।'' गौरव के व्यंग्य ने नेहा को तिलमिला दिया।

''ऐसी कोई बात नहीं है, हां मेरे पास योग्यता है। अगर जॉब करना चाहूंगी तो भारत में भी नौकरी आसानी से मिल जाएगी। बात कमिट्मेंट की है,मैने सेशन पूरा करने का वादा किया है। हैरी यह प्वाइंट उठा सकता है।''

''व्हाट कमिट्मेंट? हम कोई बंधुआ मज़दूर नहीं हैं। वापसी के लिए हमारे अपने कारण भी हो सकते हैं। हैरी के साथ कमिट्मेंट का इतना ही ख्याल है तो अपनी माँ की बीमारी का बहाना तो बना सकती हो।'' गौरव के स्वर की कड़वाहट स्पष्ट थी।

''ठीक है, मैं आज जाकर बता दूंगी, हमने भारत जाने का फ़ैसला लिया है।''

''दैट्स गुड, तुम जाओ। मैं थोड़ा आराम करूंगा।''

नेहा उदास हो आई। इतने दिनों बाद आए गौरव ने उसके प्रति प्यार का एक शब्द भी नही कहा। यह सच है अब नेहा को उसके साथ ऐसी ही उदासीन, मशीनी ज़िंदगी बितानी है। उसके भारतीय संस्कार उसे कोई और कदम नहीं उठाने देंगे। क्या वह हैरी का प्रस्ताव मानने का दुस्साहस कर सकती है? उसके उस कदम का परिणाम क्या उसकी दो छोटी बहनों और माता-पिता को नहीं भुगतना होगा? अपने स्वार्थ के लिए वह उन्हें समाज मे सिर न उठा पाने की सज़ा नहीं दे सकती।

नेहा को अपने ऑफ़िस में आया देख हैरी खिल उठा। हाथ मिलाने को बढे उसके हाथ को नकार नेहा ने कहा-तुमसे कुछ ख़ास बात करनी है, हैरी।

''क्या मेरा प्रोपोज़ल मंज़ूर कर लिया, नेहा?'' हैरी ने शरारत से कहा।

''तुमसे एक विनती है, हैरी।'' संज़ीदग़ी से नेहा ने कहा।

''हुक्म करो, नेहा। तुम्हारे लिए यह जान भी हाज़िर है।''

''पहले प्रॉमिस करो जो मांगूं दोगे। इंकार नहीं करोगे।''

''कहा न तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे सकता हूं, मांग कर देखो न।''

''तो प्रॉमिस करते हो, बाद में अपना वादा तोड़ोगे तो नहीं?'' नेहा शंकित थी।

''ठीक है, तुम्हारी तसल्ली के लिए वादा करता हूं, अब बताओ क्या चाहिए?''

''हमने इंडिया वापस जाने का फ़ैसला किया है। तुमसे रिक्वेस्ट है, हमारी वापसी में कोई रुकावट नहीं डालोगे। हमे यहां से खुशी-खुशी जाने दोगे।'' नेहा गंभीर थी।

''क्या—आ-? नहीं यह नहीं हो सकता। तुम नहीं जा सकतीं।'' हैरी व्याकुल था।

''तुम प्रॉमिस कर चुके हो हैरी, अब उसे नहीं तोड़ सकते।''

''क्या यह फ़ैसला मुझसे दूर रहने के लिए लिया है, नेहा? मैं वादा करता हूं तुम्हें कभी परेशान नहीं करूंगा। मै तुम्हारे बिना जी नहीं सकूंगा, नेहा।'' हैरी ने सच्चाई से कहा।

''यह फ़ैसला मैने अपने पति की खुशी के लिए लिया है। वह बहुत निराश है। मै उसे टूटता हुआ नहीं देख सकती। मुझे उसका साथ देना है।''

''अपना फ़ैसला लेते वक्त मेरे बारे में ज़रा भी नहीं सोचा,नेहा? मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूंगा?'' हैरी ने नेहा पर सीधी दृष्टि डाल कर सवाल किया।

''सोचा है, हैरी। एलिज़ाबेथ के रूप में तुम्हारे पास एक अच्छी वाइफ़ है। मुझे विश्वास है कुछ दिनों बाद तुम सब कुछ भूल,सामान्य जीवन जी सकोगे।''

''तुम सब कुछ भुला कर सामान्य हो सकोगी, नेहा?'' हैरी ने जनना चाहा।

''अपनी इतनी बड़ी ग़लती भुला पाना आसान तो नहीं होगा, पर गौरव के सामने अपना अपराध स्वीकार कर, उसकी क्षमा मांगूंगी। शायद उसकी क्षमा शांति दे सके।''
''यह क्या कह रही हो? क्या तुम्हें लगता है इस बात के लिए गौरव तुम्हें माफ़ कर देगा? मैं बेट लगा सकता हूं, तुम्हारी बात सुनते ही वह तुम्हें डाइवोर्स देने में एक मिनट की भी देर नहीं करेगा। इंडिया में एक डाइवोर्सी की तरह रह सकोगी, नेहा? तुमने ही कहा था वहां तलाक को सामान्य दृष्टि से नहीं देखा जाता।'' हैरी परेशान दिखा।

''थैंक्स फ़ॉर योर कंसर्न हैरी, पर अपने अपराध के बोझ तले मर जाऊंगी।''

''मेरे सामने मरने की बात कर के मुझे हर्ट मत करो,नेहा। बस एक बात याद रखना, तुमने कोई पाप नहीं किया है। जो हुआ वह एक हादसा था। मुझे एक रेपिस्ट कहलाना मंज़ूर है, पर तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद करने वाला अपराधी बनना मंज़ूर नहीं है। प्रॉमिस मी, तुम गौरव से कुछ नही बताओगी। मैं तुम्हारा दोस्त बना रहूं, यही काफ़ी है।''

''इतना चाहते हो मुझे, हैरी? तो सच यह है, तुम रेपिस्ट नहीं हो। उस बहाव मे मैं भी तुम्हारे साथ थी। आज एक और सच एक्सेप्ट करती हूं, मैं चाह कर भी तुम्हें नहीं भुला सकूंगी। तुम्हारे साथ अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं देना चाहती, पर मेरे मन ने तुम्हें बहुत अपना माना है।'' नेहा की आँखें भर आईं

''तुमने इतना कह कर मुझे जीने की राह दिखा दी, नेहा। तुम मेरे पास नहीं होगी, पर तुम्हारी आवाज़ हमेशा मेरे साथ रहेगी। उसी के सहारे तुम्हें अपने पास पाता रहूंगा। तुम मेरी प्रीत, मेरी मीत हो, नेहा।''

''मेरी आवाज़, तुम्हारे पास?'' नेहा चौंक गई।

''हां,नेहा। तुम्हारे हर गीत को मैने रिकार्ड किया है। तुम मुझसे कभी दूर नही हो सकतीं--- कभी नहीं।'' हैरी ने प्यार से नेहा के हाथ थाम कर सच्चाई से कहा।

''एक सवाल पूछना चाहती थी। क्या तुमने एलिज़ाबेथ को हमारे बारे में कुछ बताया है/''

''सिर्फ़ इतना कि तुम मेरी अच्छी दोस्त हो। अगर उसे बता देता तो वह माइंड नही करती, पर तुमने मना किया था। किसी के प्रति आकृष्ट होना यहां बुरा नहीं माना जाता।''

''गौरव तुम्हें डिनर के लिए इन्वाइट करना चाहता है, पर मैं---''

''समझता हूं तुम नहीं चाहती। डोंट वरी, मैं मना कर दूंगा।''

''थैंक्स,हैरी, अब चलती हूं।''

कुर्सी से उठती नेहा को आलिंगन में बांध, हैरी ने उसके अधर चुंबन से बंद कर दिए।

''तुमसे विदा लेने के लिए इसे मेरा आखिरी तोहफ़ा समझ ,माफ़ कर देना, नेहा। ऑल दि बेस्ट एंड गुड बाय, नेहा।''

जलते ओंठ और धडकते दिल के साथ वापस लौटती नेहा को पता था, उसकी पीठ पर दृष्टि निबद्ध किए हैरी, उसे वापस जाती देख रहा था।

गौरव इंडिया लौटने की जल्दी में था। उसका उत्साह देख नेहा को लगता, कहीं वापसी की खुशी उसकी अपनी पूर्व प्रेमिका की वजह से तो नहीं है। गौरव के विपरीत सामान पैक करती नेहा का मन रोने-रोने को हो रहा था। मन पर छाई उदासी और बेचैनी एक ही सत्य उजागर कर रही थी,शायद हैरी से बिछुड़ना उसे भी असह्य था। क्या वह भी हैरी को चाहने नहीं लगी थी फिर क्यों वह यह सत्य स्वीकार नहीं कर सकी? हैरी की याद, उसका नेहा के प्रति अनुराग, नेहा के मन में कसक जगा रहा था।

सामान की पैकिंग पूरी कर गौरव ने निश्चिंत भाव से कहा-

अच्छा हुआ हमने फ़र्निश्ड अपार्ट्मेंट लिया था,वर्ना यहां पुराना सामान बेचना एक बड़ी समस्या होती। इंडिया में तो पुराना सामान खरीदने वालों की कमी नहीं है। यहां तो कभी-कभी लोगों को पुराना सामान छिपकर कहीं डम्प करना होता है।

''अपनी कार का क्या करोगे?''

''रामास्वामी का कोई कज़िन आरहा है, उसे कार चाहिए थी, इसलिए उसने कार ले ली।'' नेहा को याद आया उस कार की वजह से ही तो हैरी से उनकी भेंट हुई थी। कम से कम कार-रूप में वह स्मृति-चिह्न किसी परिचित के साथ ही रहेगी।

नेहा की वापसी की बात सुन मंगला रो पड़ी-

''तुमको हम बहोत मिस करेगा, नेहा। तुम जइसा फ़्रेंड नहीं मिलने का जी।''

''तुम भी तो इंडिया जा रही हो, मंगला?''

''नहीं, रामास्वामी कहता, उधर इतना पैसा नहीं मिलने का। वो हमारा वर्क- परमिट को ऐप्लाई किया, फिर हम दोनो काम करने का।''

''हां, यह तो अच्छा है। मुझे भी तुम्हारी याद आएगी खास कर हर संडे को तुम्हारी इडली-दोसा कहां मिलेंगे।'' नेहा ने परिहास कर माहौल हल्का करना चाहा।

''वरी इल्ले। हम तुमको इडली पैक कर के देने का, नेहा।''

''नहीं-नहीं मंगला, आजकल प्लेन में फ़ूड- स्टफ़ नहीं ले जा सकते।''

''ठीक है,पर जाने के दिन हमारे घर डिनर लेने का।''

मंगला के घर डिनर के बाद रामास्वामी और मंगला उन्हें एयर-पोर्ट छोड़ने आए थे। विदेशी धरती पर वे उनके कितने अपने बन गए थे। मंगला और नेहा दोनों की आँखें नम थीं। एयरपोर्ट पर हर्षोल्लास बिखरा हुआ था। उतने शोरगुल और भीड़ के बीच नेहा अपने को नितांत अकेला पा रही थी। सूनेपन का एहसास गहराता जा रहा था, मानो किसी बहुत अपने को उस परदेसी धरती पर छोड़ कर जा रही थी।

कार से उतरती नेहा को कोने मे खड़ा हैरी दिख गया। उसके हाथ में सुर्ख लाल गुलाबों का बुके था। नेहा ने कभी उसकी गार्डेन के फूलों की तारीफ़ करते कहा था-

''तुम्हारी गार्डेन के सारे फूल बहुत सुंदर हैं, पर ये सुर्ख लाल गुलाब तो नायाब हैं। कहीं ऐसे गुलाब नहीं देखे।'' नेहा की मुग्ध दृष्टि फूलों पर निबद्ध थी।

''ये गुलाब प्यार के सिंबल हैं, नेहा। ये गहरा लाल रंग हमारे प्यार से सराबोर है। यकीन नहीं होता तो इनसे पूछ लो, मैं तुम्हें इतनी ही गहराई से प्यार करता हूं या नहीं।'' हैरी ने हंसते हुए नेहा को देख, एक गुलाब तोड़ कर उसे भेंट किया था-

''अपने प्यार के लिए यह नायाब गुलाब, अपनी मीत नेहा को।''

आज आखिरी बार उसे विदा देने वह अपनी गार्डेन के वही गुलाब लाया था जिन्हें उसने अपने प्यार का साक्षी बनाया था।

दृष्टि मिलते हैरी उनकी ओर बढ आया। फूलों का बुके नेहा को देकर कहा

''हैप्पी जर्नी और फ़्यूचर के लिए बेस्ट विशेज़। अगर अनजाने में कोई ग़लती होगई हो तो प्लीज़ एक्स्क्यूज़ मी। ऑल दि बेस्ट, गौरव।''

''थैंक्स, हम तो आपके आभारी हैं। आपसे ग़लती का सवाल ही नहीं उठता। हो सके तो इंडिया आइए, आपका स्वागत रहेगा।''

''आई विश तुम यहां से कभी न जाते।'' नेहा पर एक गहरी दृष्टि डाल

गौरव से हाथ मिला, हैरी मुड़ कर चला गया।

''वो कितना अच्छा मैन है, नेहा। हमारी कितनी हेल्प किया, हम उसको थैंक्स देने का, पर वो चांस नहीं दिया। चला गया।''

फूलों मे सिर गड़ाए नेहा ने उमड़े आ रहे आंसुओं के सैलाब को छिपा लिया। उनकी फ़्लाइट की घोषणा की जा रही थी। फूलों को सीने से लगाए, गौरव के साथ नेहा के बोझिल कदम बढ चले।